सुनार और सुनारी काम

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सोने-चांदी के गहने बनानेवाले सुनार या सोनी कहलते हैं, जबकि मानकों-मोतियों की माला पिरोने वाले मनिहार कहे जाते हैं। सभी सुनार नए गहने नहीं बनाते: नए गहने बनाने वाले सुनार ऊंचे कारीगर माने जाते हैं, जबकि पुराने गहनों की मरम्मत और उन पर पालिश का काम साधारण सुनार करते हैं। रायपुर के सदर  बाजार की सुनार हवेली गली तैयार गहनों की बिक्री तथा पुराने गहनों की मरम्मत का बड़ा केंद्र है, यहाँ पचासियों सुनार कतार में अपने ठिये लगाए बैठे हैं। यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि छत्तीसगढ़ के अधिकांश सुनारों के पूर्वज  कन्नौज, दिल्ली और अयोध्या से यहाँ आ बसे थे। 

 

एक समय चांपा, रतनपुर, धमधा, दुर्ग , रायगढ़ और आरिंग पारम्परिक छत्तीसगढ़ी गहने बनाने के मत्वपूर्ण केंद्र थे तथा बिलासपुर और राजनंद गांव इनकी बिक्री के बड़े बाजार थे। चांपा में बनी पीतल की चूड़ियां दूर-दूर तक मशहूर थीं।

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.