সোহম দাস (Soham Das)
সুদীর্ঘ ৪৫ বছর ধরে যাঁর সংস্কৃতি এবং দর্শন কেটেছে এই লোকসঙ্গীতকে কেন্দ্র করে, সেই মানুষটির সাহচর্যে জেনে নেওয়া গিয়েছিল তাঁর যাত্রাপথের অলি গলি—তাঁর অনুভব, জীবনবোধ এবং শিক্ষানুভূতি।
সোহম দাস: আপনি কুড়মালি ভাষাতে প্রচুর গান লিখেছেন এবং বাংলাতেও প্রচুর লিখেছেন। আপনার কী মনে হয়, বর্তমানে স্থানীয় এবং…
in Interview
সোহম দাস (Soham Das)
সুদীর্ঘ ৪৫ বছর ধরে যাঁর সংস্কৃতি এবং দর্শন কেটেছে এই লোকসঙ্গীতকে কেন্দ্র করে, সেই মানুষটির সাহচর্যে জেনে নেওয়া গিয়েছিল তাঁর যাত্রাপথের অলি গলি—তাঁর অনুভব, জীবনবোধ এবং শিক্ষানুভূতি।
সোহম দাস: আপনারা যখন শুরু করেছিলেন ঝুমুর নিয়ে এই গবেষণা, তখন ঝুমুরকে কী চোখে দেখা হত, এবং সেই প্রতিবন্ধকতাগুলোকে…
in Interview
সোহম দাস (Soham Das)
রাঢ়বঙ্গের আপাত রুক্ষ প্রকৃতির মাঝে যে গানের ব্যপ্তি, সেই গানের ধারা বা চরিত্রেও যে সেই একই স্বাতন্ত্র্য বজায় থাকবে, এ আর আশ্চর্যের কী! এই অংশে ঝুমুরের কয়েকটি বিশেষ দিক সহ তার বর্তমান অবস্থা ও ভবিষ্যৎ নিয়ে সবিস্তার আলোচনা করা হবে।মূলত, ‘পুরুল্যা’, অর্থাৎ যে জেলাকে পুরুলিয়া বলা হয়ে থাকে, সেই অঞ্চলের…
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সোহম দাস (Soham Das)
ভূমিকা
বাংলা তথা ভারতের মানচিত্রে এক গুরুত্বপূর্ণ স্থান অধিকার করে রয়েছে পূর্ব ভারতের পশ্চিমাংশের বিস্তীর্ণ পাথুরে ও জঙ্গলাকীর্ণ অঞ্চলটি, যাকে আমরা মূলত চিনি ‘রাঢ়ভূমি’ নামে। লালচে কালো মাটির এই দেশের রুক্ষ ভূ-প্রকৃতি, শাল-পিয়াল-মহুয়ার গহন সজীবতা, অজস্র ছোট ছোট টিলা-পাহাড়ের মায়া ভরা…
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সোহম দাস (Soham Das)
পশ্চিমবাংলার পশ্চিমে পুরুলিয়া-বাঁকুড়া-বীরভূম-মেদিনীপুর জেলায় ব্যাপৃত যে অঞ্চলটি রাঢ়বঙ্গ নামে পরিচিত, তা এক অদ্ভুত স্বতন্ত্রে সজ্জিত। এখানকার কাঁকরময় পরিবেশের সঙ্গে দিব্যি মানিয়ে যায় এখানকার সংস্কৃতি। যেসব উৎসব, পালা-পার্বণ এখানে অনুষ্ঠিত হয়, তা প্রায় সামগ্রিকভাবে প্রকৃতি ও মানুষেরই উদযাপন। পাহাড়-…
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डॉ सतपाल सिंह (Dr Satpal Singh)
डाॅ. सतपाल सिंह: राजस्थान के सामाजिक परिदृश्य में लोक देवी-देवता संस्कृति के प्रादुर्भाव और उसके लोकप्रिय होने के क्या कारण रहे हैं ?
डाॅ. भरत ओला: देखिए, राजस्थान के जितने भी लोकदेवी-देवता हुए हैं, वो उस वक्त में हुए हैं जब पूरा सामन्ती काल था और पूरा समाज जाति व्यवस्था में बंटा हुआ था। जो कमेरा…
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डॉ सतपाल सिंह (Dr Satpal Singh)
लोकगाथाओं के अध्ययन की दृष्टि से भारतीय लोकसाहित्य बेहद महत्त्वपूर्ण है। यहाँ की भाषाओं-संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश तथा मध्यकालीन क्षेत्रीय भाषाओं में विपुल परिमाण में लोक ने गाथाओं का सृजन किया जो विविध रूपों में गाई और कही जाती हैं। वेद, उपनिषद, पुराण, बौद्ध,…
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डॉ सतपाल सिंह (Dr Satpal Singh)
लोकसाहित्य आदिकाल से ही लोकमानस के लिए से अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है। यह श्रव्य परंपरा का वह माध्यम है जिसमें ग्राम्य जीवन अपने आपको प्रकट कर सका है। भारतवर्ष लोकसाहित्य की दृष्टि से समृद्ध राष्ट्र रहा है और इसमें लिखित साहित्य के अलावा मौखिक साहित्य की भी विशिष्ट परंपरा रही है। इसके विविध…
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डॉ सतपाल सिंह (Dr Satpal Singh)
गोगाजी लोकदेवता के रूप में राजस्थान ही नहीं अपितु समीपवर्ती हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, दिल्ली और मध्यप्रदेश तक पूजे जाते हैं। इनसे जुड़ी हुई लोकगाथा भी इन क्षेत्रों में प्रचलित भाषाओं और बोलियों में गाई जाती हैं जिसे गोगा गाथा, गोगाजी रौ झेड़ौ /झड़ौ, गोगाजी…
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डॉ सतपाल सिंह (Dr Satpal Singh)
राजस्थान के पाँच पीरों में से एक गोगाजी पश्चिमी राजस्थान के चुरू जिले में स्थित ददरेवा (राजगढ़) नामक ठिकाने के शासक जेवर चैहान के पुत्र थे। इनकी माता का नाम बाछल था। गोगाजी का जन्म प्रसिद्ध नाथयोगी गोरखनाथ के आशीर्वाद से माना जाता है। गोगाजी के समय के बारे में इतिहासकारों में अनेक मतभेद हैं। कर्नल…
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