प्रमुख राजस्थानी लोकगाथाओं का लोकतात्विक और साहित्यिक मूल्याङ्कन

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Published on: 24 September 2019

डॉ सतपाल सिंह (Dr Satpal Singh)

डॉ सतपाल सिंह ने हिंदी, राजस्थानी और भूगोल में अपना एम.ए किया है और वह पीएच.डी शोधकर्ता है| उनकी पुस्तक ‘राजस्थानी भाषा और साहित्य’ 2015 में प्रकाशित हुई थी और भारतीय भाषाओं के लोक सर्वेक्षण के राजस्थान संस्करण में राजस्थानी भाषाओं की चार बोलिओं पर हिंदी व अंग्रेजी में शोध प्रकाशित हुआ (2015–16)

राजस्थान के पाँच पीरों में से एक गोगाजी पश्चिमी राजस्थान के चुरू जिले में स्थित ददरेवा (राजगढ़) नामक ठिकाने के शासक जेवर चैहान के पुत्र थे। इनकी माता का नाम बाछल था। गोगाजी का जन्म प्रसिद्ध नाथयोगी गोरखनाथ के आशीर्वाद से माना जाता है। गोगाजी के समय के बारे में इतिहासकारों में अनेक मतभेद हैं। कर्नल जेम्स टॉड इन्हें फिरोजशाह तुगलक का समकालीन मानते हैं।कुछेक इन्हें लोकदेवता पाबूजी का समकालीन मानते हैं। डॉ. भरत ओला एवं डॉ. भवानीसिंह पातावतने प्रमाणिक शोधों के आधार पर गोगाजी का समय ग्यारहवीं शताब्दी माना है। श्री चन्द्रदान चारण ने ‘गोगाजी चैहान री राजस्थानी गाथा’ में गोगाजी की वंशावली के आधार पर इन्हें महमूद गजनवी का समकालीन माना है। यहाँ यह तथ्य है कि गोरखनाथ तथा गजनवी का समय ग्यारहवीं शताब्दी रहा है। इतिहासकारों के अनुसार पिता जेवर चैहान के बाद गोगाजी ददरेवा के शासक बने । इनका अपने मौसेरे भाइयों अरजन-सरजन से विवाद था। गोगाजी को परास्त करने के अनेक असफल प्रयत्नों के बाद उन्होंने गोगाजी को हराने के लिए मुस्लिम शासकों की मदद ली। इसके बाद हुए युद्ध में गोगाजी के हाथों ये दोनों भाई मारे गये। इस युद्ध में गोगाजी भी वीरगति को प्राप्त हुए। कुछ इतिहासकार गोगाजी का युद्ध गजनवी के साथ हुआ बताते हैं। उनके अनुसार सोमनाथ मंदिर पर हमला करने जाते समय महमूद गजनवी को गोगाजी ने रोका और उसके साथ हुए युद्ध में गोगाजी अपने पुत्रों व अनेक संबंधियों सहित वीरगति को प्राप्त हुए े। इस युद्ध में गोगाजी के चमत्कार देखकर गजनवी भी अचंभित रह गया और उसने गोगाजी को ’जाहरपीर’ (प्रत्यक्ष चमत्कारी) की उपाधि प्रदान की। 

परन्तु लोक में गोगाजी की गाथा का स्वरूप इससे कहीं  अलग है जो इस प्रकार है - ददरेवा शासक जेवर चैहान का विवाह बाछल से हुआ और बाछल की बहिन आछल का भी जेवर के परिवार में अन्य पुरूष के साथ विवाह हुआ। लम्बे समय तक बाछल और आछल निःसंतान रहीर्, जिसके चलते रानी बाछल ने गुरू गोरखनाथ की आराधना की और वे चैदह सौ शिष्यों के साथ ददरेवा पहुँचे। जेवर व उनकी पत्नि बाछल ने गोरखनाथ की खूब सेवा की। इससे प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने बाछल को वर मांगने को कहा। वर के समय बाछल की बहिन आछल उसके वस्त्र पहनकर गोरखनाथ के पास गई और उसने दो संतानों का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया,और गोरखनाथ दूसरे क्षेत्र में चले गये। बाछल को जब हकीकत का पता चला तो वह उनके पीछे गई,गोरखनाथ को फिर दया आई और उन्होंने पुनः योगबल से आराधना करके नागलोक से बासग नाग से एक पुत्र मांगा। गोरखनाथ ने बाछल से कहा कि तुम्हारा पुत्र अत्यन्त प्रतापी होगा। रानी बाछल प्रसाद लेकर घर आई और कुछ सामग्री निःसंतान पुरोहितनी, दासी और घोड़ी को भी दी जिससे भविष्य में उनके प्रभावी संतति उत्पन्न हुई। युवा होने के बाद गोगाजी का विवाह राजा सिंझा की पुत्री सरियलदे के साथ हुआ। इसके बाद गाथा में गोगाजी का शासक बनना, भाइयों से विवाद चलना व उनका  वध  करना,भाइयों द्वारा गोगाजी की पत्नी सरियलदे का अपमान,, माता बाछल का क्रोध में गोगाजी को बारह वर्षों का देशनिकाला देना, गोगाजी का ददरेवा छोड़कर अपने गुरू गोरखनाथ की तपोभूमि गोरखटीला क्षेत्र (वर्तमान गोगामेड़ी ग्राम, हनुमानगढ़) के बीहड़ में आना, चोरी-छुपे रात्रि में पत्नी से मिलने ददरेवा जाना, माता बाछल के सामने इसका भेद खुलना, गोगाजी को रूकने का आग्रह करना, वचनभंग के प्रायश्चित के रूप गोगाजी का गोरखनाथ की तपोस्थली में आकर धरती में समा जाने की इच्छा जाहिर करना और घोड़े समेत धरती के भीतर समाना, अंत में उनकी पत्नि का वस्त्रों के साथ सती होना आदि हैं जो गाकर सुनाया जाता है। 

गोगाजी की गाथा के साथ नाना प्रकार के अंश जुड़ गये हैं और यह गाथा राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, दिल्ली, पंजाब, मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश तक गाई जाती है। इन क्षेत्रों से श्रद्धालु यह गाथा गाते हुए गोगाजी की मेड़ी (मन्दिर) गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) और ददरेवा (चुरु) स्थित ’शीशमेड़ी’ तक भाद्रपद (अगस्त) की दोनों अष्टमी व नवमी तिथि को आते हैं। भाद्रपद (अगस्त) माह में गोगाजी के रात्रि जागरणों मेंउनकी गाथा ’गोगाजी रो झेड़ो’ का गायन होता है जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर हो जाते हैं। अनेक श्रोताओं को तो गाथा के भावों के अनुरूप ‘भाव’ (स्थानीय शब्द घोट) आ जाते हैं जिसे वे नाचकर व लोहे की बनी सांकल आदि खाकर प्रकट भी करते हैं। गोगाजी की विशेष आराधना भाद्रपद सुदी नवमी को की जाती है। किसान भी बुवाई के समय लोकदेवता गोगाजी के नाम की राखड़ी (रक्षासूत्र) हल पर बांधते हैं और उन्हें सांपों आदि से रक्षा करने वाला देवता मानते हैं। गोगाजी साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में राजस्थान के साथ-साथ समीपवर्ती प्रांतों में भी पूजे जाते हैं।