रजवार, सरगुजा का एक खेतिहर समुदाय है। आर्थिक रूप से संपन्न रजवार अपने आप को आदिवासी नहीं मानते। अभी हाल में सरकार ने उन्हें पिछड़ी जातियों में घोषित किया है। रजवार स्त्रियां घर सजाने पर विशेष ध्यान देती हैं। यदि सरगुजा के किसी गांव का कोई साफ़ लिपा-पुता और भित्तिचित्रों के अलंकृत घर दिखे तो निश्चय ही वह किसी रजवार का होगा। यहाँ पाई जाने वाली सफ़ेद छुही मिट्टी से दीवारों पर लिपाई को इन्होने जो कलात्मकता प्रदान की है वह देखते ही बनती है। घर में आँगन के चारों ओर बने गलियारे को ये लोग बांस के ढाँचे पर मिटटी और भूसे के गारे से सुन्दर जालियां बनाकर अलंकृत करते हैं। कच्ची मिट्टी से बनाई गई मानव और पशु पक्षी आकृतियों से दीवारों को बहुत आकर्षक ढंग से सजाते हैं। गांव फुहपुटरा की सोनाबाई रजवार को तो इस कला में उत्कृष्टता के लिए तुलसी सम्मान और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। प्रस्तुत विवरण १९८३ से १९८६ के मध्य किये गए सर्वेक्षण पर आधारित है।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.