छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में रहने वाले रजवार समुदाय द्वारा की जाने वाली भित्ति अलंकरण कला को आज जो लोकप्रियता हासिल हुई है उसमे पण्डितराम रजवार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। विलक्षण प्रतिभा के धनी और एक सफल कलाकार पण्डितराम रजवार सरगुजा, छत्तीसगढ़ के रजवार भित्ति अलंकरण एवं भित्ति चित्रण के एक विख्यात कलाकार हैं। इस कला के विकास में उनका सबसे बड़ा योगदान यही है कि उन्होंने इसे शहरी पक्के मकानों की सीमेंट कंक्रीट से बनी दीवारों पर पूर्ण स्थायित्व के साथ बनाने की पद्यति विकसित की।
रायपुर स्थित पुरखौती प्रांगण में रजवार कुटीर का निर्माण करते पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी
ईंट एवं सीमेंट कांक्रीट से बनी दीवारों पर मिट्टी के गारे से काम करते पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी
उन्होंने इस कला के ग्रामीण परिवेश एवं शहरी परिवेश में करने के अंतर को पहचाना है। कच्ची दीवारों और ईंट-प्लास्टर से बनी पक्की दीवारों पर मिट्टी का काम करना एकदम भिन्न है। ईंट-प्लास्टर से बनी पक्की दीवारों पर यह काम किस प्रकार किया जाये एवं उसे कैसे स्थायी किया जाय, इस विषय पर उन्होंने बहुत काम किया है और काम के माध्यम में बहुत परिवर्तन किये हैं। अब वे मिट्टी, गोबर, मिटटी के रंगों, बांस एवं लकड़ी की तीलियों के साथ लोहे का पतला तार, फेविकोल, कीलें, लोहे के तार की जालियों और एक्रेलिक रंगों का प्रयोग भी करने लगे हैं।
लगभग ६३ वर्षीय पण्डितराम क जन्म ग्राम सोनपुर खुर्द में हुआ जहां आज वे रहते हैं। उनके पिता और माता धनसाय तथा फुलेसरी बाई दौनों ही मिट्टी के काम में कुशल थे। मां गोबर-मिट्टी से लिपी दीवारों पर छूही मिट्टी से की जाने वाली पारम्परिक रजवार लिपाई जिसे पाखा लिखी कहते हैं, में दक्ष थीं।
वे रजवार समुदाय के ऐसे पहले शिल्पी हैं जिन्होंने इस क्षेत्र की आदिवासी-लोक कला को एक ठेकेदारी व्यवसाय के रूप में अपनाया है। वे अच्छे लोक गायक, वादक और कच्ची मिट्टी के काम के कुशल शिल्पी हैं। उन्होंने सरगुजा क्षेत्र की सभी कलाओं जैसे मिट्टी का काम, चित्रकारी, बांस का काम, काष्ठ नक़्क़शी, पत्थर का काम, टेराकोटा, गृह निर्माण आदि के शिल्पियों का एक सामूहिक संगठन तैयार किया है। इस संगठन के पचासों कलाकार उनके निर्देशन में सामूहिक रूप से कार्य करते हैं। उनका समूह ठेके पर कलाकार्य करता है।
बांस तथा लकड़ी का काम करते पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी
लकड़ी से दरवाज़े पे नकाशी करते हुए पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी
पण्डितराम रजवार के साथ जाली पर काम करते हुए शिल्पी
लिपाई का काम करते हुए पण्डितराम रजवार
पिछले कुछ वर्षों में देश के विभिन्न भागों में स्थित संग्रहालयों में पारम्परिक ग्राम परिसर बनवाने का काम काफी बढ़ गया है। छत्तीसगढ़ एवं देश के अन्य हिस्सों में इस प्रकार के अनेक ग्राम परिसर बने हैं। इन परिसरों में विभिन्न आदिवासी समुदायों द्वारा बनाई जाने वाली पारम्परिक झोपड़ियां अथवा आवासों का संकुल तैयार कराया जाता है। प्रत्येक झोंपड़ी में उसे बनाने वाले समुदाय द्वारा बनाई जाने वाली शिल्प विधाएँ दर्शाई जाती हैं, जैसे भित्ति अलंकरण, भित्ति चित्र, बांस का सामान, लकड़ी पर नक्काशी और उससे बनी कलाकृतियाँ, टेराकोटा, धातु शिल्प तथा लोहे से बना सामान आदि। यह सारा काम जटिल होता है जिसमें अनेक विधाओं के शिल्पियों की आवश्यकता होती है। सामान्यतः संग्रहालयों के पास इस प्रकार की जानकारियों का आभाव रहता है, इस कारण वे ऐसे व्यक्ति अथवा संस्था की तलाश में रहते हैं जो उनके लिए इस प्रकार का कार्य सम्पादित कर सके। पंडित राम रजवार ने इस आवश्यकता को पहचाना। सन २०१०-११ के आस-पास जब वे रायपुर स्थित महंत घासीदास संग्रहालय एवं पुरखौती प्रांगण के लिए काम कर रहे थे, तब उन्होंने देखा कि बस्तर के कुछ कलाकार हैं जो वहां की विभिन्न कलाओं के शिल्पियों को साथ लेकर ठेके पर काम करते हैं। परन्तु सरगुजा अंचल में कोई भी ऐसा व्यक्ति अथवा संस्था नहीं है जो वहां की विभिन्न कलाओं के शिल्पियों को एक साथ लाकर उनसे काम करा सके। उन्हें लगा कि यह कार्य वे भलीभांति कर सकते हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र के विभिन्न कलाओं के कारीगरों से संपर्क कर उन्हें अपने विश्वास में लिया और एक जुट होकर काम करने लिए प्रेरित किया। अब तक वे छत्तीसगढ़ एवं देश के अनेक संग्रहालयों में सरगुजा के रजवार एवं अन्य समुदायों की झोंपड़ियां एवं भित्ति अलंकरण आदि बनवा चुके हैं। इनमें जनजातिय संग्रहालय, भोपाल; पुरखौती प्रांगण, रायपुर; मानव संग्रहालय, भोपाल तथा कुरुक्षेत्र संग्रहालय, हरियाणा आदि प्रमुख हैं। इस प्रकार उन्होंने सरगुजा क्षेत्र के परम्परागत शिल्पियों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा किये।
भित्ति अलंकरण बनाने हेतु प्रयुक्त होने वाली सामग्री पुवाल एवं मिट्टी
मिटटी और सुखी घास के मिश्रण से पुतला बनाते पण्डितराम रजवार
मिटटी और सुखी घास के मिश्रण से बना पुतला
भित्ति अलंकरण
भित्ति चित्र पर रंग करते पंडित राम
पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पियों द्वारा बनाया भित्ति अलंकरण
पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पियों द्वारा बनाया भित्ति अलंकरण
जाली पर काम करते हुए पंडित राम
पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पियों द्वारा बनाया भित्ति अलंकरण
रायपुर स्थित पुरखौती प्रांगण में बनाई गई रजवार कुटीर
सरगुजा क्षेत्र का काष्ठशिल्प जो लगभग मृतप्रायः हो चुका हो चुका था, उसे पुनर्जीवन केवल पंडित राम रजवार के प्रयासों से मिल सका है। यद्यपि इस काम में उन्होंने बस्तर के काष्ठशिल्पियाँ की सहायता ली और कुछ उनकी नक़ल भी की, फिर भी उनके प्रयासों से वर्तमान में ओरांव जनजाति के लगभग २० काष्ठशिल्पी उपब्ध हैं।
बेशक पण्डितराम रजवार के काम में सोनाबाई रजवार और सुंदरीबाई रजवार जैसी सहजता और गहराई न हो परन्तु उन्होंने रजवार भित्ति अलंकरण कला को लोकप्रिय बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.