सन १९८२ में भोपाल में भारत भवन की स्थापना के उपरांत तत्कालीन मध्यप्रदेश के जो लोक कलाकार प्रकाश में आए, इनमें सुंदरी बाई रजवार भी थीं। सरगुजा के रजवार समुदाय में अपनी झोपड़ियों की कच्ची मिट्टी से बनी दीवारों पर भित्तिचित्र बनाने की परंपरा तो थी परन्तु सन १९८३ में सोना बाई रजवार को मिली प्रसिद्धी ने इस समुदाय की स्त्रियों को बहुत प्रेरित किया। अनेक स्त्रियों ने अपनी इस परम्परा को नए सिरे से अपनाना आरंभ किया, श्रीकोतंगा गांव की सुंदरी बाई रजवार ने भी उन्हीं से प्रेरणा लेकर अपनी कला को आगे बढ़ाया। श्रीकोतंगा गांव, सोना बाई रजवार के गांव फ़ुहपुटरा से तीन-चार किलोमीटर दूरी पर है। सुंदरी बाई का सोना बाई के परिवार से अच्छा मेल मिलाप है।
सुंदरी बाई रजवार
सन १९८५-८६ में भारत भवन, भोपाल द्वारा शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली के लिए सरगुजा और रायगढ़ से आदिवासी-लोक कलाकृतियों का संग्रह किया जा रहा था। इसी संग्रह के दौरान सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां सामने आई। क्योंकि उस समय सोना बाई रजवार का बहुत नाम हो चुका था, अतः सुंदरी बाई को कोई अवसर नहीं मिला। सन १९८८ में उन्हें पहली बार शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली आमंत्रित किया गया, इसके बाद उनकी ख्याति बढ़ गयी। उन्हें देश-विदेश के अनेक संग्रहालयों एवं प्रदर्शनियों में बुलाया जाने लगा।
सुंदरी बाई रजवार के घर में बने भित्ति अलंकरण
यह भी एक संयोग है कि सुंदरी बाई का मायका फ़ुहपुटरा गांव का ही है जहाँ की सोना बाई रजवार थीं। लगभग पैंसठ वर्षीय सुंदरी बाई की माता दौली बाई और उनके पिता सुखदेव रजवार गरीब किसान थे। ग्यारह वर्ष की आयु में सुंदरी बाई का विवाह श्रीकोतंगा गांव के केंदुराम रजवार से हो गया था। वे कहती हैं लड़कपन से ही मिट्टी में और मिट्टी से खेलने का शौक था। घर के अन्य छोटे बच्चों के लिए मिट्टी के खूब खिलौने बनती थी, वही सब बनाते-बनाते दीवारों पर बनाने लगी।
सुंदरी बाई रजवार के घर में बने भित्ति अलंकरण
सुंदरी बाई रजवार के घर में बने भित्ति अलंकरण
सुंदरी बाई रजवार के घर में बने जाली एवं भित्ति अलंकरण
अधिकांश रजवार परिवारों में जब कच्चे घर की मरम्मत की जाती है तब पुरुष भी काम में हाथ बंटाते हैं अतः उन्हें भी मिट्टी के काम का थोड़ा-बहुत अनुभव होता है। सुंदरी बाई का जब बहुत नाम हो गया और उन्हें अनेक शहरों में अपनी कला के प्रदर्शन के लिये बुलाया जाने लगा तब इनके पति केंदूराम ने भी इनके काम में रूचि लेना आरम्भ किया और इन्हे सहयोग करने लगे। सन १०८९-९० में मध्यप्रदेश शासन द्वारा सुंदरी बाई के अद्भुद शिल्प कौशल के लिए उन्हें शिखर सम्मान से सम्मानित किया। यह मध्यप्रदेश शासन द्वारा किसी लोक-आदिवासी कलाकार को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है। इसके बाद सन २०१० में भारत सरकार और फिर केरल सरकार द्वारा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
सन २००३ में वे पहलीबार विदेश गयी, उन्हें इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर में अपनी कला का प्रदर्शन करना था। सन २०१० में फ़्रांस की राजधानी पेरिस में भारतीय आदिवासी-लोक कला की एक विशाल प्रदर्शनी आयोजित की गयी, जिसमें सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित थीं। वहां उन्होंने अपनी कला का जीवंत प्रदर्शन भी किया।
भोपाल स्थित राष्ट्रीय मानव संग्रहालय एवं जनजातिय संग्रहालय तथा दिल्ली स्थित संस्कृति संग्रहालय में सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रमुखता से प्रदर्शित हैं।
आरम्भिक दिनों में सुंदरी बाई की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी, घर भी छोटा था परन्तु उनकी कला की प्रसिद्धी साथ उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरती गयी और अब उन्होंने बड़ा सा घर बना लिया है। आंगन, गलियारे और कमरे, समूचा घर उनके बनाये भित्ति अलंकरणों से भरा हुआ है।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.