The Gorakhpanthi Origins of the Tale of Bharthari/ भरथरी कथा का गोरखपंथी स्रोत
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The Gorakhpanthi Origins of the Tale of Bharthari/ भरथरी कथा का गोरखपंथी स्रोत

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Published on: 14 March 2019
Sarangarh, Chhattisgarh, 2019

भरथरी लोककथा सार

मान्‍यता है कि गुरू गोरखनाथ का प्रथम चेला राजा भरथरी था। कथा के अनुसार राजा भरथरी का जन्म गढ़ उज्जैन में हुआ था। उनसे जन्म के समय नामकरण के लिए काशी से ब्राह्मण आए थे।उन्‍होनें ज्‍योतिष गणना करके बताया कि यह बालक बारह वर्ष तक राज करेगा उसके बाद तेरहवें वर्ष में यह योगी बना जायेगा। राजा भरथरी की मां का नाम रूप दई था, उसने ब्राह्मणों से कहा कि ऐसा कोई उपाय बतायें जिससे कि इसे योगी ना बनना पड़े। ब्राह्मणों नें बताया कि भाग्‍य नहीं बदला जा सकता।

राजा भरथरी धीरे-धीरे बड़ा हो गया। जब वह करीब पांच साल का था, तब सिंहल द्वीप के राजा की बेटी साम दइया से उसका विवाह कर दिया गया। सोंचा यह गया कि विवाह से भरथरी के योगी बन जाने का योग कट भी सकता है। विवाह होने के बाद भरथरी ने साम दई को गवना करा कर लाया और सुहाग रात में अपने पलंग पर जैसे ही पहला पांव रखा तो पलंग टूट गया। रानी सामदई उसमें बैठी थी वह जोर से हंसने लगी। राजा भरथरी नें रानी से, पंलग के टूटने और रानी के हंसने का भेद पूछा। राजा भरथरी के द्वारा बार-बार पूछने पर भी रानी साम दई नें भेद नहीं बताया। साम दई नें कहा कि इसका भेद या उत्‍तर मेरी छोटी बहन पिंगला को मालूम है जो दिल्‍ली में राजा मानसिंह के लिए व्‍याही है।

राजा भरथरी का मन विचलित हो गया, वह उसी समय रनिवास से निकल गया और दरबार में जाकर बैठ गया। इसके बाद वह ऐसे समय का इंतजार करने लगा जब उसकी मुलाकात पिंगला से हो। कुछ समय बाद पिंगला के गर्भ से एक पुत्र नें जन्म लिया। राजा मानसिंह नें सबको निमंत्रण भेजा किन्‍तु वह राजा भरथरी को निमंत्रण नहीं भेजना चाहता था। क्‍योंकि राजा भरथरी राजाओं के भी राजा, महाराजा थे। उनकी खातिरदारी करने में मानसिंह अपने आपको कमजोर समझ रहा था। इसका समाधान रानी पिंगला नें निकाला, उसने भगवान शंकर की तपस्‍या की और तीन चावंल का दाना वरदान में प्राप्‍त करके राजा भरथरी और उसके विशाल सेना को छककर भोजन कराया और आवभगत की। राजा भरथरी बालक को देखने के बहाने रानी पिंगला के पास गया और सुहाग रात वाली बात बतलाते हुए। पलंग टूटने और रानी के हंसने का कारण पूछा। रानी पिंगला नें कहा कि मैं आपको इसका जवाब प्रत्‍यक्ष रूप से आपके आंखों से दिखाउंगी। इसका भेद मैं आपको अगले जन्‍म में बताउंगी। अगले जन्‍म में गाय के कोंख से बछिया के रूप में जन्‍म लूंगी तब तुम वहां आकर पूछ लेना। ऐसा कहते ही रानी पिंगला की मौत हो गई।

पिंगला अगले जन्‍म में गाय के बछिया के रूप में जहां जन्‍म ली थी। वहां राजा भरथरी पहुंच जाता है, राजा जब बछिया से इस भेद को पूछता है तब बछिया कहती है कि अगले जन्‍म में इसका उत्‍तर दूंगी। ऐसा करते करते वह कई जीव के रूप में जन्‍म लेते हुए सातवें जन्‍म में फूलनपुर शहर में रानी फुलवा के नाम से जन्‍म लेती है। राजा भरथरी उस नगर में पहुंचकर माली का काम करने लगता है। अवसर पाकर वह उस कन्‍या के पास पहुंच जाता है और उस कन्‍या से भेद पूछता है। कन्‍या कहती है कि अभी थोड़ा और इंतजार करो। भरथरी भीकू माली बनकर वहां रहने लगता है। कुछ वर्षो के बाद उसे पता चलता है कि उस कन्‍या का विवाह हो रहा है। उस कन्‍या का विवाह दिल्‍ली के राजकुमार बंशीधर से हो रहा था। राजा भरथरी नें अनुमान लगाया कि वह राजकुमार वही है जिसे जन्‍म देकर रानी पिंगला मर गई थी। रानी पिंगला जन्‍म-पे-जन्‍म लेते हुए आज इस कन्‍या के रूप में जन्‍म ली है। इस प्रकार से इन दोनो के बीच मां और पुत्र का संबंध है, किन्‍तु इन दोनों के बीच विवाह हो रहा है। राजा भरथरी के पास अब यह तीसरा अनुत्‍तरित प्रश्‍न था। राजा भरथरी माली के भेष को त्‍यागकर अपने साढ़ू के घर विवाह में पहुंच जाता है।

राजा भरथरी कन्‍या के डोले को रास्‍ते में ही रोक कर उससे भेद पूछता है। तब वह कहती है कि कि महाराज, आपको दिखाई नहीं दे रहा है, आपने कहा था कि आंखों से देखेंगें तो हमने भी कहा था कि आपको आंखों से दिखायेंगें। हमने आपको आंखों से ही तो दिखाया है। देखिए जिस बच्‍चे को हमने जन्‍म दिया था उसी से हमारा विवाह हो रहा है, यह मेरा पुत्र है। यही तुम्‍हारे प्रश्‍नों का उत्‍तर है। अर्थात अगले जन्‍म में रानी साम दई आपकी मां थी इसलिए आपके पुरखों का घर्म पलंग टूट गया और रानी हंस दी। राजा भरथरी नें पूछा कि ये तो ठीक है किन्‍तु तुम्‍हारा विवाह भी तो तुम्‍हारे पुत्र से हो रहा है। तब उस कन्‍या नें बताया कि हमारा सात जन्‍म हो चुका है, इसलिए हमारा प्रायश्चित हो गया, दोष का निवारण हो गया किन्‍तु तुम्‍हारा तो दूसरा ही जन्‍म था।

भेद जानकर राजा भरथरी के मन में पूर्ण वैराग्‍य भाव आ गया। उसने कन्‍या से पूछा कि अब आगे हम क्‍या करें तो कन्‍या नें कहा कि महाराज मैं दुविधा में हूं। यदि आपको भोग करने को कहती हूं तो आप दोनों को दोष लगेगा। यदि मैं आपको जोग करने को कहती हूं तो अपनी बहन को आपके जीते जी विधवा का जीवन जीने को विवश करती हूं। इस प्रकार से जो आपको उचित लगे वही करो मैं कुछ सलाह नहीं दे सकती।

राजा भरथरी यहां से अपने गढ़ उज्‍जैन जाता है और रानी साम दई से धनुष-बाण मांगता है। कहता है कि मैं शिकार खेलने के लिए जाउंगा। रानी साम दई मनाती है कि साथ रहो और गृहस्‍थ धर्म का पानल करो किन्‍तु राजा भरथरी नहीं मानता। वह कहता है कि जंगल में सत्रह सौ मृगों के पति काला मृग का शिकार करेगा। राजा भरथरी के हठ पर रानी कहती है कि जाने से पहले अपनी सलामती की निशानी दे जाओ। राजा भरथरी कहता है कि जब आंगन की तुलसी मुरझा जाए और तुम्‍हारे मांग का सिंदुर जब धूमिल पड़ जाये तब जानना कि मेरे उपर संकट आ गया है नहीं तो मैं सही सलामत हूं।

राजा भरथरी जंगल में आता है। वहां सत्रह सौ मादा गृग के एकलौते पति काला मृग का शिकार करता है। काला मृग के मर जाने से सत्रह सौ मादा गृग भयंकर विलाप करने लगती है और राजा भरथरी को श्राप देने लगती है। तब राजा भरथरी कहता है कि आस-पास कोई योगी होगा जो इसे जिन्‍दा कर सकता है तो चलो मुझे उसके पास ले चलो। मैं उनसे इसे जिन्‍दा करने की प्रार्थना करूंगा। सत्रह सौ मादा गृग उसे बताती है कि पास में ही बाबा गोरखनाथ तपस्‍या कर रहे हैं। राजा भरथरी उस काला मृग को कंधे में उठाकर बाबा गोरखनाथ के पास जाने के लिए निकलता है। सत्रह सौ मादा गृग जंगल में दिशाभ्रम के कारण रास्‍ता भटक जाती हैं और उन्‍हें बाबा गोरखनाथ के पास पहुचने में नौ दिन लग जाते हैं।

बाबा गोरखनाथ के पास पहुंचने पर राजा गोरखनाथ काला मृग को तप में बैठे बाबा के सामने रखकर कहता है कि तुम लोग विलाप करो मैं वृक्ष ओट में हूं। सत्रह सौ मादा गृगों के रोने से बाबा गोरखनाथ जाग जाते हैं। वे पूछते हैं तो सत्रह सौ मादा गृग वाकया बताती है। राजा भरथरी भी सामने आता है और अपनी गलती स्‍वीकारते हुए बाबा से मृग को जिन्‍दा करने की प्रार्थना करता है। बाबा कहते हैं कि इसे मरे नौ दिन हो गये हैं, इसको जिन्‍दा करना संभव नहीं है। तब राजा भरथरी बाबा को व्‍यंग्‍य वचन कहते हैं और कहते हें कि यदि आपने इसे जिन्‍दा नहीं किया तो मैं अग्नि में कूदकर प्राण त्‍याग दूंगा। जिसका दोष आप पर लगेगा और आपका योग घट जायेगा।

बाबा गोरखनाथ अपना मुह खोलते हैं जिसके अंदर संपूर्ण ब्रम्‍हांड, तीनों लोक राजा भरथरी को नजर आता है। इसके बाद राजा भरथरी के अनुरोध पर बाबा गोरखनाथ उस काला मृग को भभूत छिड़कर कर जिन्‍दा कर देते हैं। सत्रह सौ मादा गृग और काला मृग वहां से बाबा को प्रणाम कर चले जाते हैं।

राजा भरथरी काला मृग का शिकार इसीलिए किये रहते हैं कि वे अपने गुरू से मिल सकें। राजा भरथरी को अपना सच्‍चा गुरू मिल जाता है। वह बाबा को अपना चेला बना लेने के लिए कहते हैं। बाबा उसकी उम्र को देखते हुए मना करते हैं तो राजा भरथरी जिद करते हैं। नहीं मानते तब बाबा कहते हैं कि तुम्‍हें चेला तभी बनायेंगें जब तुम अपनी पत्‍नी से माता कहकर भिक्षा मांगों और तुम्‍हारी पत्‍नी रानी साम दई तुम्‍हें बेटा कहकर भिक्षा दे दे।

राजा भरथरी जोगी का वेश बनाकर गढ़ उज्‍जैन में भिक्षा मागने जाता है। महल के द्वार पर माता कहकर भिक्षा मांगता हैं। दासी चंपा भिक्षा लेकर आती है जिसे मना करते हैं कि हम रानी के हाथ से ही भिक्षा लेंगें। जोगी के रानी के हाथ से भिक्षा लेने के जिद पर अड़े रहने पर रानी साम दई से चंपा कहती है कि वह रानी का रूप धरके उसे भिक्षा देकर आती है। इधर महल के आंगन की तुलसी कुम्‍हला जाता है और रानी का सिंदुर मलिन हो जाता है। जोगी रानी के वेश में आई चंपा को पहचान जाता है और भिक्षा फिर नहीं लेता। इस समय दोनों के बीच हुए बातचीत में चंपा योगी के दांतों को देख कर पहचान जाती है कि यह योगी राजा भरथरी है। राजा भरथरी के बत्‍तीसों दातों में सोना जड़ा था।

चंपा रानी साम दई को बताती है कि वह जोगी राजा भरथरी है। रानी सामदई नाराज हो जाती है और विश्‍वास नहीं करती। रानी झूठ बोलने के लिए चंपा को फांसी की सजा दे देती है। जोगी जल्‍लादों को भगा कर चंपा को फांसी से बचता है। रानी सामदई इस समाचार को सुनकर बहुत क्रोधित हो जाती है और योगी के पास उसे ही फांसी देने के लिए आ जाती है। योगी और रानी में वार्ता होता है। योगी बता देता है कि वह राजा भरथरी है और वह योगी बन गया है। रानी बहुत समझाती है कि योग त्‍याग दो, किन्‍तु राजा नहीं मानता और कहता है कि तुम मेरी मां हो, मुझे बेटा कहकर भिक्षा दे दो।

रानी कहती है इसका कोई प्रमाण है तब राजा भरथरी कहता है कि पूरे शहर को बुला लो, परीक्षा ले लो। ऐसा ही किया जाता है, नियत समय में रानी और योगी के बीच में लाल सूती कपड़े का परदा कर दिया जाता है। योगी माता कहकर भिक्षा मांगता है, रानी के स्‍तन से दूध की धारा फूटती है जो वस्‍त्र के परदे के पार योगी के मुख में आकर गिरने लगता है।

रूपांतरण- संजीव तिवारी