Ramta Jogi-Behta Paani: The Wanderings of Gorakhpanthis in chhattisgarh
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Ramta Jogi-Behta Paani: The Wanderings of Gorakhpanthis in chhattisgarh

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Published on: 14 March 2019
Sarangarh, Chhattisgarh, 2019

गोरखनाथ लोक कथा

 

तैं जोगी बने बेटा तैं साधु बने रे, काय खातिर बेटा तैं साधु बने रे

 

तैं जोगी बने बेटा तैं बैरागी बनै रे, काय खातिर बेटा तैं साधु बने रे

 

तैं जोगी बने बेटा तैं साधु बने रे, कहां रोवय तोर दाई ददा ल कहां रोवय संगवारी

 

गोरखनाथ का प्रथम चेला राजा भरथरी राजा भरथरी है,

 

जय गुरु गोरख तेरे दरस बिना सुख गए कोमल शरीर,

 

नयन अभागा क्या करें प्रभु बह बह आवत नीर।

 

तो ये गुरू गोरख तेरे दसर बिना, सुख गए कोमल शरीर,

 

तो ये गुरू गोरख तेरे दसर बिना, सुख गए कोमल शरीर,

 

घर छूटा परिवार लोग सब छूटय, तो लग गए संतन से प्रीत।

 

भरथरी का येई कथा येई है, कि जब राजा भरथरी जन्म लिए थे तो उनका मकान जो गढ़ उज्जैन में जहां महाकलेश्वर भगवान शंकर की बास है, वहीं पर उसका जो है ना जन्मभूमि है, तो राजा भरतरी जब जन्म लिए थे ने तो उसको काशी से ब्रह्मन आए थे, नाम करन करने के लिए अउ जब नामकरण करने के लिए आये थे तो वो ने जब नामकरण, पंचांग को खोल करके जब देखे तब उनका भाग्य में लिखा हुआ था, कि इसमें बारा साल तक की राज्य है अउ तैरा साल म बैराग बनेगा कहके। तैरा साल में मने वो बैराग बनेंगे। उनका मां का नाम था रूप दई, मां की नाम थी रूप दई। ओ ने ब्रह्मन से बोला के महराज तो इसका क्या उपाय है। जो है ना कइसे क्या होगा, जब इसका भाग्य में एक ही ठो पुत्र था, राजा भरथरी था। तो उसका भाग्य में जोग लिखा है महराज, तो जोग को तो काटिए आप, आप ब्रह्मन हैं, तो बोले बेटा ये तो कटने वला नई है, जो भाग में ब्रह्म लिख देता है वो कभी कटता नइ है। इसका भाग्ये में जोगी ही लिखा हुआ है तो जोगी ही बनेगा, बारे तेरे साल में।

 

ब्रह्मन को दान दक्षिणा, जइसे हुआ दिया, राजा भरथरी धीरे धीरे बड़े हो गए। करीब पांच साल का नइ था, पांच बरस का था वो, इधर सिंगल दीप में राजा सिंह नाम का कोई राजा था, जिनकी बेटी थी, एक ठी उनका नाम शाम दइया थी बाबा, रानी शाम दइया उसका स्वयंवर के लिए नाउ अउ ब्रह्मन को भेजे थे वो। अउ नाउ ब्रह्मन को खोजने के लिए भेजे तो खोजते खोजते चारों दिशा में परेशान हो गए, लेकिन उनके लायक बर नइ मिला। जइसे भगवान राम राजा जनक जब स्वयंबर रचा था तब बहुत वीरों पहुंचे थे, लेकिन वो धनुष को कोई ना हिला नइ पाया। जो है ना उसी तरह उसको कहीं भी बर नइ मिला। जब कहीं बर नइ मिला तो खोजत खोजत मना ब्रम्हन जो है, उसी जगा पर पहुंच गए, कहां? गढ़ उज्जैन में।

 

उस समय राजा भरथरी पांच बरस के बच्चे थे। पढ़ने के लिए स्कूल जा रहे थे बाबा। जब स्कूल जा रहे थे तो वो नाउ अउ ब्रह्मन का जो है ना, नजर उनके ऊपर पड़ गया। तो छतरी का पुत्र था उसका लिलार में मणि जल रहा था। जो है ना लिलार में मणि जल रहा था तो देखा अरे ये तो छतरी पुत्र है। शाम दइ के लायक वोी हो सकता है। तो वो बच्चा को पूछा, वो ब्राह्मण अउ राव, के बेटे बताओ तुम्हारा घर दुवार कहां है? तुम्हारा नाम क्या है? एक चीज तुम बताओ, वो ने राजा भरथरी सारा बात को उसे बताया। कि मेरे पिता का नाम गदरभ सेन है, दादा का नाम अस्‍पष्‍ट है मेरी माता का नाम अस्‍पष्‍ट है अउ मेरा नाम राजा भरथरी है, अउ मैं गढ़ उज्जैन का राजा हूं। उनको बच्चे को छोड़ दिए, पूरा पता लेकर, उनको छोड़ दिया कि जाओ तुम पढ़ो अउ बच्चा जो है, पढ़ने को चला गया। अउ वो नाउ अउ ब्रह्मन जो है उनके बच्चे के घर में प्रवेश कर गए।

 

अलख जगाया हर हर बम बम किया ब्रह्मन। रानी मैया रूप दई निकली अउ रूप दई मैया ने उनसे बात करने लगी, कि महराज किधर से आना हुआ, क्या बात है बताएं। तो बोला कि देखिए बात तो येई है, कि तुम्हारा पुत्र है राजा भरथरी जो है, राजा भरथरी नाम का, उसका बियाह करना है। महराज देखिए उस का नसीब में विवाह नइ लिखा है, जो है ना उसका नसीब में जोग लिखा है, बारा साल के राज का भोग हैं उसके बाद में उसका जोग लिखा है। उसके बाद वो जोगी बन जाएगा महराज। उसको शादी ब्याह क्या करोगे, वो तेरे साल में वो बैराग बन जाएगा। ब्राह्मण बोला देखो कि जब विवाह होता है तब उसका आधा भाग्य का मालिक उसकी पत्नी होती है। तब हो सकता है कि रानी शाम दई के भाग से उसका जोग कट जाएगा। तो बोले जब विवाह से इसका योग कट भी सकता है तो इसके साथ उसका विवाह जो है होना चाहिए। जो है ना तो बोले महराज आपका इच्छा है तो वो करिए लेकिन मेरा बेटा जो है बारा साल तक राज करेगा, तेरे साल में बैराग बन जाएगा। आपका इच्छा है तो इसका विवाह कर दीजिए। स्वयंवर के टाइम बैराग बन जाएगा, आपका इच्छा है तो विवाह कर दीजिए। स्वयंवर का टाइम मिल गया बाबा, शादी विवाह भी हो गया।

 

शादी विवाह होने के होने के बाद जब शादी विवाह भी हो गया, गवन करा के लाए रानी शाम देई को राजा भरथरी अपने मकान में लाए, महल में लाए। तो जिस दिन सुहागरात कहा जाता है हमारे देहात में, अउ टाउन में भी कहा जाता है। उस दिन शुभ घड़ी लगन होता है बाबा, तो उस दिन राजा भरथरी भवन में गए। तो पहले लात जब पलंग पर रखा, तब उस समय रानी शाम दई पलंग में बैठी हुई है, घूंघट लगाकर। पहली लात को जब रखे तो उसका पलंग जो है, टूट गया। जो है ना पलंग टूट गया अउ राजा भरथरी की जो रानी थी, जो रानी रूप दई वो बहुत खटखिटा करके हंस गई, हंस गई तो राजा भरथरी के मन में कुछ डाउट हो गया, मतलब शक हो गया, की अउ रानी से कहिस राजा भरथरी के, देख के, हे रानी सुन मेरी बात, एक तो सगुनवा का दिनवा है, दूजे गवना की रात, तीजे पलंग दानी टूट गई , चौथे हत्या लगी। हे रानी आज मेरा जो है शुभ दिन था, शुभ घड़ी था। लेकिन हे रानी आज मेरा शुभ दिन था, शुभ घड़ी था, लेकिन ये पलंग जो है टूट गया। पलंग टूट गया रानी अब तुम हंस भी गई, तो गई, तो ये पलंग क्यों, इसको तुम हमको बताओ? इसको तुम हमको बताओ कि ये पलंग क्यों टूटी? ये पलंग क्यों टूटी?

 

राजा भरथरी के वचन सुनकर के रानी सामदई ने उनको जवाब दिया, कि देखिए महराज ये पलंग आपके बाप दादा पुरखा का था इसलिए ये पलंग आपका टूट गया है। बोले महराज ये एक पलंग यदि टूट गया तो क्या हुआ, ये पलंग यदि टूट गया तो कितना पलंग बन जाएगा प्रभु। कितना पलंग बन जाएगा, इसलिए आप जो है, जो है ना पहले तो आज मेरा काम आज जो है, शगुन का दिन है, सुहाग का रात है महराज, तो पहले स्त्री गमन कीजिए।

 

राजा भरथरी कहीस के देख रानी, मैं छतरी का बालक है, रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई। ये रानी ये पलंग टूट गया तो कोई बात नइ है, ये कोई बात नइ कि कईयों बन जाएगा, लेकिन मेरा ये पलंग मेरे पूर्वज का था, ये पलंग तो बन जाई लेकिन तुम हांसी है तो तुम हंसन का भेद हमें बताओ रानी? तो क्यों हंसने का क्या कारण है? रानी शाम दई कहे ना, कि महराज सुनो, बहुत मनाए राजा भरथरी फेर रानी मानस नाई, लेकिन रानी शाम दई बताने के लिए तैयार नइ। राजा भरथरी जो है ना, तलवार निकाले लेकिन रानी कहीस, महराज देखिए। रानी शाम इई कहीस हंसने का क्या कारण है, रानी शाम दई जो है ना कहिस के महराज देखिए, बहुत मनाईस राजा भरथरी ना, फिर तलवार को खींच दिया, म्यान से तलवार को। कहिस रानी मैं छतरी कुल का बालक हूं, रानी तुम नइ बतायेगी, नई तो तुम को खत्म कर देंगे। रानी सामदई जो है ना बाबा, उनको बोल दिया के महराज, इसका भेद हम नइ जानते हैं। अउ जान रही थी जरूर, सती नारी थी, लेकिन वो कई दिस की महराज मैं इसका भेद को नइ जापंव। जो है ना मेरे बहन दिल्ली शहर में रहते हैं जिसका नाम रानी पिंगला है। अउ वई इसके भेद को बताएगी, राजा भरथरी कहिस के ये रानी जब रानी पिंगला ही बताही सब भेद को, तब आपसे हमारा संपर्क कोई नइ है। जब तक इस राज को नइ पता चलेगा, रानी तब तक आपके राजमहल में, कचेरी में जाके धुनी रमा लिए। परन ठान लिया कि जब तक इसका भेद नइ पायेंगे, अपनी स्त्री का मुख नइ देखेगें। जो है ना इंतजार करने लगा, मन में सोचने लगा कि, पिंगला का जीजा है, राजा भरथरी, तो कहीं उसका निमंत्रण आए तब हम उसके पास जायें।

 

सोचत सोचत कुछ महीना दू चार साल जइसे कहिए बीत गया, अउ बिता कर के उनको भगवान का कृपा जब हुए तो, पिंगला के घर पूत ने जन्म लिया। पुत्र जनम लिया तो सभी को निमंत्रण दिया। राजा भरतरी को निमंत्रण नइ दिए थे, क्योंकि कि वो राजा भरथरी वो सबसे महराजा थे वो। अउ उनका साढ़ू का नाम था मानसिंह, राजा भरथरी का साढ़ू का नाम था मानसिंह। वो छोटे राजा थे, वो जो है ना वो, बोला कि वो मेरे पास आएगा तो उनका, सेवा वाहन नइ कर पाएंगे। जो है ना इसलिए उसको निमंत्रण नइ दिया। पिंगला कहीस के महराज एक ठो मेरा जीजा है, अउ सभी को निमंत्रण दे दिए अउ उनको नइ दीजिएगा तो, ये भी व्यर्थ है। ये छठीयारी करना बेकार है। त्रिया हठ में राजा मानसिंह ने उसको भी पत्र को भेज दिया। पत्र गया, नाउ लेकर के, बाएं हाथ से पत्र को फेंक दिया, कह दिसे कि महराज ऐसी ऐसी बात है। आपको निमंत्रण है, दिल्ली शहर में। दिल्ली शहर उनका घर था राजा मानसिंह का। पत्र को खोला राजा भरथरी कि बहुत सुंदर समाचार लिखा हुआ है। कि पुत्र जन्म लिया है, छठीयारी मा बुला रहा है। आनंद हो गया राजा भरथरी, सदा दिन के लिए के मैं जो पांच साल से इंतजार कर रहे थे वो मेरा साली आज निमंत्रण दे दिए।

 

मैं जाएंगे अउ उसी समय उस पत्र को लेकर के राजा भरथरी अपने पत्नी के पास गए। अउ जाकर के उनको कहीस के हे रानी आज प्रभु का माया हुआ है, भेद पूछने का। तो अइसा करो के दोनों पति पत्नी चलें। अउ उसके साथ भेद पूछ लेंगे, अउ निमंत्रण भी पूरा हो जाएगा। जो है ना एक पंथ दो काज हो जाएगा। रानी साम दई के आंख से आंसू गिरने लगे। क्यों गिरने लगे? के मेरा छोटी बहन है पिंगला, उनको एक ठी पुत्र हो गया। उसका छठीयारी मे हम जाएंगे, उसका बड़ी बहन हम हैं तो उनका घर का, गांव का, कोई भी दाई बहिनी मन पूछेगा, ये कौन है कह के, तो वो कहेगी मेरा बड़े बहन है। तो बड़ी बहन है तो इनको लोग लइका कइसे नइ है। कईबेच करी गा, तो लोग लइका तो महराज नइ है। तो वहॉं तो हमको मतलब बांझ कहाना पड़ेगा। तो महराज हम उसके साथ, आपके साथ जाने का लायक नइ है। अउ जानती थी वो के भेद पूछने में, मने लफड़ा है। जो है ना तो हम उवां बीच में फंस जाएंगे इसलिए कह दी के महराज हम नइ जाएंगे। आप वहॉं जाइए अउ जइसा करना है कीजिए। राजा भरथरी क्रोध में बोला कि जब तुम नइ जाओगे तो मेरा जितना सेना है सभी को ले जायेंगे। अउ तुम्हारा बहन का जो है ना, उतना औकात नइ है, शक्ति नइ है, जो कि भोजन भोजन हम लोग को करा सकता है। तो तुम्हारा बहन का बेज्जती होगा। अउ जितना उसका था बाबा, कहा जाए तो लाखों लाख आदमी सभी को निमंत्रण दे दिया कि वो फलाना दिन जो है ना, दिल्ली शहर में मेरा साढ़ू घर में आया है निमंत्रण चलना है।

 

अब सबको हाथी घोड़ा, एक जने को एक हाथी एक जने को एक घोड़ा, जब उसका जिस दिन तथा मुहूर्त था, उस दिन सब चला, तो उसको अब चलने से इतना, हाथी घोड़ा हो गया, लाखों लाख, क्योंकि बारा साल से आगे अउ बारा साल के पीछे, पूरा अंधकार हो जाता था। जो है ना अउ उसका धूल उड़ने से जइसा जइसा छिलकत छिलकत बइल भी चलता है, तो देखते हैं ना, हवा कितना उड़ता है, उसी तरह अंधकार हो जाता था। उसका मतलब फुदका उड़ने से, अउ जाकर के राजा भरथरी जो है ना बारा, जो है ना दिल्ली शहर के बारा कोस पीछे जब रहे ना, तब दिल्ली शहर अंधकार मच गए। जब दिल्ली शहर अंधकार मच गया तो दिल्ली शहर में जो है, जो है ना राजा मानसिंह जान डारिस के मेरा साढ़ू जी आ रहे हैं। ये तो जितना लेकर के आ रहे हैं उतना घर में खुराकी ही नइ है। बिचरा मूर्छित हो गए वो, तो मेरा मान जो सम्मान है वो आज खत्म हो जाएगा, कह कर के।

 

रानी पिंगला देखीस कि मेरा पति तो चिंतित हो चुका है। तो बोला महराज इसमें चिंता करने की कोई बात नइ है। गरीब तो गरीब है, वो जान रहा है कि वो गरीब आदमी है। अउ वो मेरे घर आ रहे हैं तो वो खुद बेज्जती है मेरा क्या बेज्जती होगा। मान लिया जाए कि आप आए हैं संत के पास, तो संत के पास कोई सामान नइ रहेगा, है नइ चावल दाल नइ रहेगा, तब आपको हम क्या खिला सकते हैं बाबा। तो मेरा बेज्जती नइ, आपका बेज्जती है। इतना कह करके उनको संतुष्ट करा दिये। अउ बच्चा को पकड़ा दिया कि इस बच्चे को राखना तू। अउ वो जो है, रानी पिंगला जो है, भोलेनाथ का बहुत दिन से पूजा कर रही थी। उसी दिन नहा धो कर के, स्नान ध्यान कर कर के, ओ भोले नाथ के पास जाकर के पूजा करना चालू कर दी।

 

प्रभु का माया हुआ भोलेनाथ उनके ऊपर प्रगट हो गए। परसन्न हो गए, बोला बेटी बताओ, बहुत दिन तुम तो मेरा पूजा किया है। बहुत दिन मेरा बुता किया है, लेकिन आज बता बेटी तुमको क्या चाहिए? तो तुम ले सकते हो हमसे। जो है ना पिंगला कहिस महराज मैं तो पूजा आपके कर रहे हैं लेकिन आपसे मांगे तो मांगे क्या? मांगेंगे तो ये पूजा का निस्‍फल हो जाएगा। मान लिया जाए आपका बूता किया अउ आप से भूति ले लिया तो आपका मदद नइ ना किए। जो है ना हम आपका तो भूती ले लिए तो महराज हम। आपसे क्या भूती मांगे, हम तो राजा है ही, सुंदर पति है, जो कमी था मेरा संतान का वो संतान भी आ गया। महराज तो मांगे क्या? तो बोले नइ बेटा तुम कुछ मांग लो हमसे आज, भोलेनाथ बोले, बेटा तुम कुछ मांग लो, अउ पिंगला जो है ना, वो बोल दिस के महराज अब आपका इच्छा है तो देखिए मेरा जीजा जी आ रहे हैं उनका व्यवस्था मेरे पास नइ है, तो प्रभु तो, आप इच्छा करके, आप उनका व्यवस्था कर दीजिए। बोला एवमस्‍तु बेटी।

 

अरवा चावल का दाना जो है ना बाबा। उसको तीन ठो दे दिया, तीनी पीस दिया तो बोला, जाओ बेटी, लाल किला मैदान में तुम जो है ना, छींच देना, दिल्ली में। जो है ना एक दाना चावल तो जहां कुंबेर भंडार रखते हो ना, उहों छीच देना। अउ एक गाना चावल तुम रखे रहना, बेटा अपना पास। गए रानी लाल किला मैदान में खींचबे दिया एक ठीक दाना को, अउ वहां जो है ना कुर्सी टेबल बांध करके कुरथा पहन कर के, मतलब हुवा बारा हजार आदमी आवे तो वो चोबिस हजार के व्यवस्था बने हे। प्रभु का माया है अउ चोबिस हजार बिवस्था हो गया। अउ वहॉं सब का भंडार है बाबा। सझने नें अउ जब कुबेर ने छींच दिया एक दाना चावल को तो वहॉं छप्‍पन प्रकार की भोजन, आए सभी को बैठ कर के भोजन पानी कीए।

 

राजा भरथरी बोले महराज आप भी तो बैठिए, भोजन कीजिए साथ में। तो उसके पास तो घमंड था, थोड़ा राजा भरतरी के पास। क्या ये तो गरीब आदमी, तो हमको क्या क्या है। मेरा सैने लोगों को तो तुम खिलाओ ना पैले। हमको बाद में खिलाना। सब झन भोजन कर रहा है, राजा भरथरी घूम-घूम कर पूछ रहा है कैसा भोजन है। तो वो सेना लोग हैं ना वो तो भगवान का भोजन था ईश्वर का दिया हुआ चीज था, सेना लोगन बोलते हैं, कि महराज आज ये भोजन इतना स्वादिष्ट है कि हमको लगता है कि आप भी कभी भोजन नइ किए हो। कम से कम आप भी भोजन पा लीजिए महराज। सभी को भोजन करा दिया। राजा भरथरी अउ सभी को अपने-अपने जगह, मतलब सेना को बोला के जाओ तुम लोग। उसको बस देखना था कि खिला सकता है कि नइ।

 

सभी को भेज दिया अउ अपने महल में गए, कहां गए तो रानी पिंगला के पास। अपने साली के पास। पुत्र को देखने के लिए, पुत्र के पास गए, जैसा बना उसको अपना चढ़ावा दिए। जो है ना अउ उसी समय जो है राजा भरतरी, वो बात को बोले के हे रानी तुम तो साली हो अउ तुमको तो भगवान एक ठी संतान भी दे दिया। अउ तुम्हारा इंतजार करते करते मैं पांच साल बिता दिया हूं। अभी तक अपनी पत्नी का मुख भी नइ देखे हैं। त कारन क्या है महराज। पिंगला कहीस कारन क्या है, तो कहिस के कारन यइ है कि मेरा पलंग वो दिन टूट गया था। अउ पलंग टूट गया अउ रानी लोग हंसने लगे तो रानी से हम पूछे के ये क्या कारन है। पलंग टूटने का, तो बोले ये पलंग क्या है, ये पुराना पलंग था, टूट गया। मैं बोला के हंसने का तो तू बताओ के क्यों हंसी। तो बोली के महराज इसका भेद हम नइ जानते। हमारी बहन जो है दिल्ली शहर में रहती है, वही इसके भेद को बता सकती है। बोले ठीक है तो महराज आज इसको आपको मेरा बहन मेरा बता देगी। के मेरा साली जो है जानती है। तो हमने आपको बता दइए लेकिन आप ये चीज बोलिए कि, आंख से देखिएगा, कान से सुनिएगा, भरथरी भी तेज दिमाग का था छतरी के पुत्र थे, बोले के देखो भाई सुना हुआ चीज गलत भी हो सकता है। है ना। लेकिन देखने की बात जो है, है ना, वो सत्य साबित हो जाएगी। बोले देखो रानी, जब दिखाने की लाइक है तो फिर तुम हमको अस्पष्ट दिखा दो। तो बोले देखिएगा महराज, तो बोला अवश्य देखें। बोला ठीक है आप रहिए आप येईं पर अउ देखिए महराज मैं अभी दस मिनट के बाद में मर जाती हूं। समझ लिए अउ मर करके किसी राउत के घर में गरूवा में जनम लेंगे हम। गरूवा में जनम लेंगे हम, वहॉं पर तू जाना, मैं बछिया पिला होंगे। वहॉं पर जाकर के आपका भेद मिल जाएगा। इतना कहते-कहते राजा भरथरी जाने को तइयार हुआ। घर की रानी मर गई। तियाग दी चोला, तो उसको अस्पष्ट बता दिया था कि फलने गांव में फलने के घर में जन्म लेंगे करके। गरूवा पिला में बछिया रहेंगे।

 

राजा भरथरी पता लगाते लगाते वहॉं चल चला गया, येां कंगना रोना अट्टी- मट्टी देने का चक्कर लग रहा है, लेकिन वहॉं राजा भरथरी नइ रुका निकल गया, चल दिया। जाकर के राउत घर में गया, बोले महराज अब राउत के घर में अब राजा है तो जाएगा कैसे। तो उसको दूध को मांगने के बहाने में गया। क्या आपके पास दूध है, दीजिए तो सरकार दूध है तो। तो जब जब तक वो दूध लेने गया तो, तब तक बछिया को पकड़ लिये। अउ कहे कि महराज इसका भेद मतलब अभी भी तो बताओ बछिया। पहले थी साली अब गरूवा में जनम ले ली हो अब तो बताई।

 

इस तरह करते-करते वो सातवां जन्म हुबा बाबा उसका। समझे ने, सातमा जन्म में जो है, वो रानी फुलवा नाम की लड़की घर में जनम लिए। फूलन पुर शहर में उसका बाप का नाम फूलन सिंह था, फुल पुर शहर में, जनम लिए। जब जनम लिये तो राजा भरथरी पता दे दिया था कि उस राजा के घर में कि छठा जन्म में के उनको घर में हम जन्म लेंगे। तो राजा भरथरी जो है ना, तो उस नगर में तो पहुंच गया, फूलपुर शहर में। लेकिन बोला, वो भी राजा है ये तो राउत था या तो कोई भी जात था उसके पास किसी तरह बहन से फलना चीज लेने के लिए, नाउ को पास जाना है तो दाढ़ी बनाने के लिए, है ना अउ किसी के पास जाना है तो कोई भी बहाना है। लेकिन राजा के पास हम जाएंगे, मैं भी राजा है, तो किस बहाने से जाएंगे। तो एक माली रहते थे उस नगर में। समझे ने, अउ उस माली को, उस माली का जो है न, एक ठो बगीचा थे, फुल को। माली का बूता क्या होता है, फूल को भगवती पर, देवता पर चढ़ाना, किसी को मतलब देना। वो मालीन जो है, उसका माली का जो फुलवारी है, बारा साल से मरा हुआ था। मूर्छित थे, अउ राजा भरथरी आकर रात को वई जाकर को वई फुलवारी में सो गया, तो इधर कि ईश्वर की माया हुआ, वो फुलवारी जो है वो सुबह हरा भरा हो गया। मालिन तो खुश हो गए। जा कर के देखे के कौन है भाई मेरा फुलवारी में, देवता है कि प्रेत है, कि भूत है कि राक्षस है, कि दलिदर है। जा कर के के देखे कईसे मेरा फुलवारी बारे साल का मूर्छित था , वो मतलब हरा हो गया। जाकर के पहुंचे देखे तो एक नौजवान लड़का सोया हुआ है। सुंदर बरन का था वो, कोई भी देख कर के मोहित हो जाते थे, उसके रूप से। बोला प्रभु आप हैं कौन आप देवता है, पीतर हैं, के प्रेत हैं बोलिए। बारे साल से मेरा मूर्छित फुलवारी था और आज जगा दिए इसको। भरथरी जो है ना वहॉं पर नाम को बदल दिया अपना। कि देखिए मैं भूत प्रेत देवता राक्षस कुछ भी नइ है। मैं मनुष्य है, अउ मैं तुम्हारा बहन का बेटा है, तुम मेरा मौसी है। ता मौसी है, तो बोला हां बोला, बेटा जब तुम मौसी है रे, तब फिर येां क्यों बैठा है। अउ तुम्हारा घर नइ जाना का बेटा। बोला घर चले जाते हैं मौसी, कहीं घर चले जाते मौसी, तो ये फुलवारी तुम्हारा हरा भरा नइ हो पाता। इसलिए हमने सोचा मौसी का रोजी रोटी इसी से चलता है, तो प्रभु का माया हुआ, देखिए फुलवारी हरिया गया। तो तुम्हारा नाम क्या है बेटा, जब तुम मेरा बहन का बेटा है तब तुम्हारा नाम तो होगा। त नाम मेरा भीकू माली है बोल दिया। क्या बोला, भीकू माली। बोला, चलो घर।

 

घर चले गए उनका मौसी के पास, रहने लगे वहॉं पर। कुछ दिन तक क्या मतलब बहुत दिन तक दो-चार महीना रहा वहॉं पर। अउ वो जो मालिक जो है ना फुलवारी को फूल को तोड़ तोड़ के हार बनाए बना करके उसी राजा के घर में देने का रोज उसका बूता था। जो है ना अउ जो भूती मिलती थी उसे लेकर के आती थी। एक दिन वो भरथरी जी को माली माली को माली माली के रूप में पूछा की मौसी, ये जो फूल का नार बनाते हो किसको देते हो? एक राजा है फूलन सिंह उसका बेटी फुल कुमारी जन्मी है, बहुत जतन रतन से जन्मी है उसी के पास जाते हैं। बोला अरे तो दो ना हम बना देते हैं फूल को, तुम क्यों रोज इतना परेशान होती हो मौसी। मौसी कहिस कि महराज देखिए बेटा तुमसे नइ बनेगा ये बूता। राजा के कहीं गड़बड़ हो जाएगा ना तो राजा की बात है कुछ बोला भी देगा। बोला, अरे तुम्हें मालील त मैं है तुम्हारा पुत्र, त क्या हम नइ बना सकते हैं। दो बनाते हैं, तो वो फूल को जो ना अति सुंदर, मतलब उनसे सुंदर बना दिया। वो फूल को ले करके जब गए, तब राजा जो खुश हो गया। कि बहुत सुंदर बना है ये फूल, फूल जो है बहुत सुंदर बना है। कौन बनाया है इसको मालिनी, तुम तो जीवन भर दे रही हो फूल, लेकिन ऐसा कभी नइ बना पाया। बोले, क्या कहे प्रभु मेरा पुत्र आये हुए हैं उसका नाम है भीकू माली, अउ वोी इस फूल को को बनाया है हार। हार को, बोले तो अरे तो तुम्हारा बेटा है, मेहमान है गांव का, कम से कम हमको भी दर्शन कराओ,क्यों, कि फूल को इतना सुंदर बनाए तो, उसका संस्‍कार कितना सुंदर होगा। बाबा अउ जो दस रूपिया देते थे उसको उस दिन उसको पंद्रे रूपिया दिया, खुशी में, अउ बोला बाबा उसको तुम लेकर के आना। बोला ठीक है महराज, अउ वो जो है जाकर के खबर किया। के हे पुत्र, तुमको राजा की बुलहार है।

 

राजा के घर में जाकर के वो भीकू माली राजा भरथरी पहुंच गए, पहुंच गए, देखे, तो वो तो देखने के लिए नइ गया था, वो सिरिफ जो है उस रानी को पूछने के लिए गए थे। रानी तो छोटी थी बाबा दू-चार महीना के, खटिया पर सोई हुई थी। उसका कोई दासी था, नौकरनी उसका घर में, वो बच्चा को खिला रही थी। उनसे बोला कि देखो ये जो पुत्र जो है, हमको दो रखने के लिए, लड़की को, अउ तुम जाओ दासी एक लोटा पानी लेकर के आना, मैं पिएंगे करके, अउ उस लड़की को जो है ना, अपने गोद में वो राजा भरथरी ले लिए अउ उनसे पूछते हैं कि अरे इतना दिन से मैं बिटिया सात जनम तुम्हारा को गिया अउ तुम बोला कि तुम बोला कि तुम्‍हारा आंख से दिखाएंगे, तो कब दिखाओगे? बोले देखिए राजन, आंख से दिखाएंगे, थोड़ा समय अउ लगेगा। अभी नइ देख पाओगे। बोला, ठीक है। उनको जो है ना फिर बच्चा को दे दिया, पानी कांजी पिया फिर अपना मौसी को घर में चला गिया। अउ वंइ पर वो जो जिंदगी को बताने लगा। जो है ना समय आ गया उसका जो बारे साल बीत गया, लड़की का शादी स्वयंवर रचने लगा बाबा। अउ भीकू माली वंइ पर, है ना वई मालिन के घर में बारे बरस की बात उस लड़की को शादी जो है ना, जब शादी मतलब स्वयंवर जब होने लगा तो, सबर टूट गया कि उससे वहॉं जा कर के वंइ लड़का से बात करेंगे। किस लड़का से? राजा मानसिंह दिल्‍ली शहर, जिसको पिंगला जन्म देकर के मरी थी, उसी को घर में शादी का रिश्ता जुड़ गया। अब शादी रिश्ता जुड़ गया तो निमंत्रण तो सभी जगह चला गया। अउ यहां मालिन का आर्डर हो गया कि आज मड़वा को बनाना है, तो आज फूल को ये आज ये गली को सजाना है। तब उस गेट को सजाना है, तब तुम जो है फूल को ज्यादा बनाकर लाना। अब वो तो मंजू है पूरा बनाने लगा। सब फूल फाल बनाते बनाते बनाते, तब वो भीकू माली देख लिया। की मौसी कल तो एक-दो तो ले जाती थी सदा दिन, लेकिन आज पूरा टोकनी टोकनी बना रहा है, क्या बात है? बोला अरे वो लड़की का जो है ना, उसका शादी हुआ है, लगा है, वो शादी करेगा तब उसका मंडप है, इसलिए मंडप उंडप सजाने के लिए ज्यादा फूल का जरूरी पड़ता है।

 

अब राजा भरतरी का दिमाग में घूम गया, कि शादी लगा है तो शादी लगा है तब अब वो भेद हमको कब बताएगी? वो तो अब ससुराल चली जाएगी तो हमको भेद तो बताई बताई नइ वो। तो शादी लगा है कहां पर मौसी उसको? तो जो है ना बोला दिल्ली शहर में राजा मानसिंह का बेटा है, बंशीधर उसका नाम है। राजा भरथरी कहे, उस लड़की के उस बच्चा को जन्म देकर के मरी है अउ फिर उसी लड़की से उसका शादी हो रहा है, लड़का से, तो वो तो मेरा बहू बन जाएगी, ये जो साली है अभी जो मरी है मतलब येां भेद पूछना है, तो वो तो मेरा बहू बन जाएगी तो फिर उससे भेद पूछने के लायक बात नइ रहेगा। अउ मेरा साढ़ू के घर में शादी है तो निमंत्रण तो वो भी पहुंचा देगा। तो हमको तो जाना जरूरी है, वो क्या किया उसी समय जो है न, उसका मौसी से बोल दिया कि मौसी मैं जा रहा हूं, जा रहा हूं फिर कभी समय आएगा तो आपके पास आएंगे। अउ जब बाराती आए ना तब राजा भरथरी अपना पोशाक डरेस बदल करके, अउ उसी के पास पहुंच गए। जब पहुंच गए, तब पहुंचकर के जो ना, मतलब स्वयंवर मा विवाह में उसका विवाह में उसका साथ हो गए। जो है ना शादी बिहा हो चुका, जब लड़की का विदागिरी हुए ना, तो देख लिया राजा भरथरी कि मैन रास्ता कौन है जाने का सरसींवा? तो मैन इधर से जाएगा तब वंइ पर मिलेगा, हैं ना, पर मिलेगा, है नइ, जिधर से आप लोग आए हैं, उस जगह पर जो है ना, राजा भरतरी खड़ा हो गीया। कि इधर से ही तो वो डोला जाई, सला आज येई पर भेद को पूछेंगे, कि तुम अब बहू बन गई है अब कब बताएगी भेद कह करके। अउर जाकर के वहॉं पर जो है उस डोला को रोक दिए।

 

डोला को रोक दिया अउ घूंघट को खोल दिया। वो समय तो गाड़ी घोड़ा नइ था बाबा, राजा भरथरी को विवाह के समय, अभी तो बोलेरो स्कॉर्पियो कुछ भी है लेकिन वो समय पालकी रहते थे। वो डोला को रोक करके अउ अउ घूंघट को खोल दिया, अपना मर्जी से, खोल दिया अउर कहिस, अय पिंगला फुलवा रानी, तुम तो पहले साली था उसके बाद सांप बना, उसके बाद गरूबा, उसके बाद सात जनम लिया अउर अब तुम हमरा बहू बन गई है। तब अब फिर तुम हमको भेद कब बताएगी। पिंगला किहिस कि महराज, आपको आपको दिखाई नइ दे रहा है, पूरा आपको, आप बोले आंख से देखेंगे तो आंख से दिखा दिए कि देखिए ये बच्चा को हमने जनम दिए थे। दिए थे ने, बोल हां। अउर इस बच्‍चा के साथ मेरा शादी हो गया है, तो मेरा बेटा है कि नइ ये? तो बोला हां बेटा तो है। बोला तो येई तुम्हारा कारण है, लेकिन हमरा सात जनम हो चुका है, तो मेरा प्राछित जो है मां अउ पुत्र का जो है खतम हो गिया। कोई दोष नइ है, हम लोगों में। अउर आपका जो है पहला जनम का मां थी, शाम दइया। अब दूसरा जन्म में स्त्री भी बन गया इसलिए वो धरम का पलंग था वो तुम्हारा पूर्वज का टूट गया। जो है ना अभी भी आप समझ जाइए, तो फिर उनसे जो है ना, सवाल किए। क्या सवाल किए, के महराज हैं तो पिंगला से वो रानी से कहिस के जब मेरी मां है, तो तब तो अब हमको गड़बड़ हो गिया। प्राछूत है, बेटा अउ मां में संभोग नइ हो सकता। अउर दूसरा बात है कि अब हम करें तो करें क्या। तुम ही बताओ रानी, जब तुम भेद को बताया है तब तुम ही रास्ता भी बताओ, कि हम जोग करें कि भोग करें? बोला देखिए महराज ना तो हम जोग करने के लिए कहेंगे ना तो भोग करने के लिए कहेंगे। क्यों कि कहीं हम आपको भोग करने के लिए आपको कहते हैं तो आप के ऊपर जो है, भोग करने के लिए कहते हैं तो मेरा अपराध दिखेगा क्यों कि वो मां है। अउ जोग करने के लिए कहते हैं तो मेरा जो बहन है पिंगला वो बिधवा बन जाएगी। वो तुम संत साधु बन जाओगे तो, तो हम इसको अउडर नइ दे सकते। जो है ना जइसा आपका इक्‍सा आप कर सकते हो।

 

अब ऐसे समझ कर के उसको समझा करके रानी को डोला चल दीस बाबा, अपना पति को घर में।

 

अब राजा भरथरी जो है ना प्रन ठान लिया के हम तो करें तो करें क्या। इससे अच्छा क्या हमको जोग ही करने से ही अच्छा है, तो जोग करेंगे। तो जोग करने के लायक गुरु भी होना चाहिए। गुरु बिना प्रकासका नइ हो सकता, तो गुरु किस को बनाएं भाई हम, तो वो प्रन ठान लिया कि सिंगल दीप में सतरा सो मिरगिन, सत्रा सो मिरगिन का पति एक जो था काला मिरगा। उसी को हम मारेंगे बोला, अउ उस मुर्दार को जो जिला देगा उसी को चेला बनेंगें, वोी मेरा गुरु बन सकता है। समझे नइ, अउर वो जो है ना, अपना वहॉं से वापस आकर फिर रानी साम दई को पास घर गए। अउ बोला हे रानी तुम हमको तीर कमान दो, हम शिकार करने के लिए जाएंगे। रानी साम दई कहीन के महराज आप शिकार करने लायक नइ हो, आप ज्ञान नइ हैं मत जाइए। बोला नई रानी, मेरा जो छतरी मैं है, छतरी का काम है शिकार करना, मैं जाएंगे ही, आप मेरा तीर कमान दे दो। तीर कमान उनसे ले लिया लेकिन रानी साम दई जो है ना, कह दिस के देखिए महराज, आप जा रहे हैं तो जरूर शिकार करने के लिए, लेकिन सत्रा सो मिरगिन का पति, एक ही गो है काला मिरगा, दू-चार को मिरगिन को मार देना लेकिन काला मिरगा को नइ मारना, क्योंकि एक पति को मारने से सत्रा सो मिरगिन विधवा हो जाएगी, तो उसका सराप जो है ना पतिदेव नइ कटेगा। जो है ना अउ दो चार गो मिरगिन को मार लेना तो कोई बात नइ। तो राजा भरथरी क्या कहते हैं कि नइ रानी मैं छतरी हैं, मर्द है तो हमको कामै मर्द से लड़ना, लेडिस से नई लड़ना है, तो वो नारी है नारी से मर्द का लड़ना अपराध लिखेगा। हम मार भी देंगे तो अपराध लिखेगा, अउ उसी से लड़ना है किससे? तो काला मिरगा से। अउर वो बोल दी के महराज के आज मैं तीन दिन का जगह देते हैं, तीन दिन में मैं वापस घर आ जाएंगे बोल दिया।

 

रानी शाम दई कहिस के महराज ऐसा नइ हो सकता है, तो आप मेरा कुछ निशान दे दीजिए। कि आप तीन दिन में आइयेगा, अउर नइ आइयेगा तब दुख संपत्ति विपत, हो सकता है कि काला मिरगा को आप नइ मार सकते आपही को मार दे तो हम कइसे जानेंगे कि हमारा पति को मारा है काला मिरगा। आपके ऊपर पूरा कोई आपत्ति विपत्ति आ जाए तो हम कैसे जान सकेंगे, कि आपके ऊपर आपत्ति विपत्ति आया हुआ है करके। तो महराज तो राजा भरथरी जो है उससे दो गो निशान दे दिया। क्या दिया, की अंगना में तुलसी का चोरा था, इसको देखते रहना रानी बोला। प्रतिदिन तुम इसमे जल तुम डालना, जिस दिन ये तुलसी का चोरा मूर्छित हो जाएगा तो उस दिन तुम समझ लेना कि मेरा पति पर संकट पड़ चुका है। दूसरा निशान क्या है, तुम्हारा मांग में सिंदूर है, निस दिन तुम दर्पण में निहारना। जिस दिन तुम्हारे मांग का सिंदूर जो है मलिन हो जाएगा उस दिन जानना कि तुम्हारा पति पर बिपत पड़ चुका है। जो है ना इतना कह कर के अउ राजा भरथरी जो है ने महल से निकल गया। महल से निकल कर के तीर कमान लेकर के सिंगल दीप में पहुंच गया।

 

सिंगल दीप में पहुंचा तो अभी ना आप आया तो हम लोग मिल गया। लेकिन एक घंटा के बाद दस बजे आते तो कोई साधु जो येां नइ मिलता आपको। है ना, क्योंकि अपना धंधा में चले जाते हैं घूमने फिरने के लिए। उसी प्रकार से क्या है ना मिरगा अउ मिरगिन जो है ना सब अपने भोजन करने के लिए चले गए थे। घूमने के लिए जंगल में, अब राजा भरथरी देखा कि देखा कि कि अखाड़ा पूरा खाली है, वो ने क्या किया उसके पास घोड़ा था श्याम बरन का, घोड़ा को बांध दिया वोी कदम का झाड में, अपना तीर कमान को रख कर के एक ठो गमछा बिछा कर के सो गया, कि वो लोग आएगा तभी तो युद्ध करेंगे। जब टाइम हुआ आने का, बारे-एक बजा तो है ना अब सत्‍तर सो पति का रखवाली केहू के वो काला मिरगा है, तो मिरगिन मन आगे आगे चले और उसका पति पीछे पीछे काबर के कौन पीछे पीछे जाही वो इधर उधर बिगड़ जाही तो सतरा सौ मिरगा मान लिया जाए मने यहां से लेजा कर वो चौक तक हो ही बाबा है ना, उसके पहले मिरगिन मन आ गया। पहले जो अगुआ गे रहीसे तो वो देखा के राजकुमार सोया हुआ है। क्या बात है, उनसे पूछा के हे महराज आप कोन हैं, कहां से आए हैं, क्या बात है, तीर कमान लेकर के आये हो, किस से लड़ाई करोगे?

 

राजा भरथरी बोले मैं राजा भरथरी नाम का लड़का हूं। मेरा घर गढ़ उज्जैन है और मैं शिकार खेलने आया हूं। हम काला मिरगा का शिकार करेंगे। मिरगिन भी उस बात को बोला के देखिए हम लोग सत्रा सौ मिरगिन हैं। दू-चार ठो मार लीजिए महराज। बान को अपना सम्‍हला दीजिए, काला मिरगा को मत मारिए। जो रानी बोली वही बात मिरगिन भी बोली। लेकिन राजा भरथरी बोला, नई हम तुम लोगों को नई मारेंगे। मारेंगे तो उन्हीं को मारेंगे। जो है ना अब ये बेचारी जो बात जो सुनिस ना, कुछ मिरगिन उठ करके मतलब उनके पास चले गए। किनके पास, आकर के पीछे चले गए। अपना पति को पाकर के बोला, के हे महराज इस जंगल को हम लोग छोड़ दीजिए और चलिए भाग चलिए। तो बोले, क्यों? बोला एक राजा भरथरी नाम का अति सुंदर लड़का आया हुआ है, उसके पास श्याम बरन का घोड़ा है। तीर कमान रखा हुआ है और वो बोलता है कि हम मारेंगे तो काले मिरगा को मारेंगे और जब आप को मार देगा तो जिव बिन देह नदी बिन पानी अस्‍पष्‍ट पुरूष बिन नारी तइसे हे, हे प्रभु। आप को मार देगा तो हम लोग जो है ना, अंधकार हो जाएगा। जैसे भी अपना दीपक का बाती बिना लाइट नई हो सकता है उस तरह से हम लोग अंधकार में पड़ जाएंगे महराज। तो आप लोग हम लोग ऐसा जंगल को छोड़कर के चलिए। जो है ना मिरगा कहिस के कइसा पगली है तुम लोग आज मेरा घर में, वो हम को मारने को तैयार हुआ है तो हम घर से भग जाएंगे तो कल फिर वो जंगल में तो जाएंगे वहॉं भी तो कोई पहुंच सकता है। तो फिर वहॉं से भगेंगे तो कहां जाएंगे हम। जब वो छतरी मुझसे लड़ने के लिए आया तो महूं तो छतरी है, मैं भी उसका साथ लड़ूगा, मारेगा तो मरना तो एक दिन है ही, इंसान को। चलो डरो मत कहीस। और उसके साथ वो है जो लड़ने के लिए तियार हो गया। जब लड़ने के लिए तियार हो गया तो, दोनों तरफ से चलने लगा, पहला बाण मारा ना तो, राजा भरथरी से बच गया ना, मिरगा। दूसरा बाण मारा, बच गया, काट दिया उसका बाण को। लेकिन तीसरा भाग जब मारा ना, तो राम राम कहकर के मिरगा गिर गया। अब गिर गया तो मिरगिन मन बाबा उसको श्राप देने लगा कि जाओ राजा भरथरी कि जिस तरह से हम लोग विधवा हो करके इस जंगल में घूम रहे हैं, उस तरह तुम्हारा पत्नी जो है, तुम्हारा महल में विधवा हो के रोएगी। भरथरी को तकलीफ बुझाया, अरे भाई मारे हैं मुर्गा को हम। अउ गाली मेरा पत्नी सुन रही है। तो अइसा बात करो, मिरगिन हमको जितना गाली देना है दो, बोला, के तुम ही मरेगा तब ना तुम्हारा पत्नी जो है विधवा होगी। वो जो बोले ना राजा भरथरी, कंबल को बिछा दिए, गमछा को, और बोले जितना श्राप देना है हमको दे दो, और नइ तो एक बात और है।

 

बताओ तुम लोग जंगल में रहने वाले हो, इस मिरगा को मैं मार दिए लेकिन ऐसा कोई साधु है इस जंगल में, जो इस मिरगा को जिला सकता है। बोला, जो है ना इस मिरगा को जलाने वाला महराज जरूर है। त कौन है? त गुरु गोरखनाथ, बहुत दिन से तपस्या कर रहे हैं, वो इनको जिला सकते हैं। बोला, तो चलो उनके पास, हम तो रास्ता तो नइ देखा है। वो मिरगा को जो है ना अपने कंधे पर, अपने कंधे पर रख लिए। और वहॉं से वो चल दिए। जब चल दिए, तो जब चलते जो है ना, एक घंटे में पहुंचने वाला था ना, वो उसको ऐसा मति कुमति हो गया, मिरगिन को कि, खोजते खोजते बाबा नौ दिन बित गया। नौ दिन में वो मिरगा, नौ दिन में बाबा के धुनी के पास पहुंचा। बाबा के धुनी के पास पहुंचा तो, बाबा जो है अपने ध्यान में लगे हुए हैं। तपो ध्यान में, ध्यान करते रहे, ओम नमः शिवाय का जाप करते थे और वो मिरगा देखिए जो है ना क्या किया वो राजा भरथरी, वो साधु है और साधु से टक्कर करना ठीक बात नइ हे। हे मिरगिन तुमन इसको जगाओ कहीन और मैं छिपकर के रहते हैं, जब वो जग जाएगा तब उसके सामने स्पष्ट होंगे। नइ कहीं वो जगा और क्रोध में देख लिया तो भसम हो जाएंगे हम। तो फिर तुम्हारे मिरगा को जिलाएगा कौन? इसलिए राजा भरथरी जो है तउन छिप गए पेड़ के पीछे। और वो मिरगिन मन रोना सत्रा सौ मिरगिन, येां का, सरसींवा तक सुना दारही। सारंगढ़ घलव चल जाही, सुनने में जो है ना, मिरगा का आवाज मिरगिन को आवाज, बाबा गोरखनाथ जाग गए।

 

बाबा गोरखनाथ बोले, मिरगिन तुम तो जंगल का राजा है। जंगल में रहने वाला है, तुम को क्या तकलीफ है? वहॉं तो बीच में मढ़ाया हुआ है अस्पष्ट। बोले महराज तकलीफ तो हम लोगों का बहुत बड़ा है। हम लोग सब विधवा बन गए हैं। बोला क्यों? बोले, देखिए मेरा पति को मार दिया। कोन मारा? तो मारा है एक राजा भरथरी नाम का। कहां है चांडाल? बोला, लाओ, बुलाओ उसको। जब वो बोला ने के बुलाओ उसको। तब उस को बुलाना नइ परा वो स्वयं से ना तुरते उसके सरण में। प्रभु में पापी हूं कई दीस। बोले पापी है रे बुरबक राजा भरथरी। तुम इसको क्यों मारा? बोले, क्या बोले महराज हम लोग छतरी का काम ही है शिकार करना। जो है ना चलाया बांन मर गया तो क्या करें हम। तो बोले मर गया तो मर गया, जाने दो हटाओ इसको, जाओ मिट्टी दे दो।

 

बोला, नइ महराज ये मिरगिन मन सब बहुत शराप देत हैं हमको। कि महराज इनको जो है ना आपका काम है जिलाना। बोला साला अरे एकाध घंटा हुआ रहता ना बुरबक तो जी जाता गा। लेकिन ये नौ दिन हो गया, मिरगा का गंध आ रहा है, कहर आ रहा है। ये नइ जी सकेगा बेटा, इसको तुम मिट्टी दे देना। राजा भरथरी जउन है ना, उस समय क्रोधित हो गए बाबा। पर भी क्या बोलता है, यै बाबा आप क्या ये कर रहे हैं, ये सब अडंबर कर रहे हैं। धुनी जला रहे हैं, काहे के लिए जला रहे हैं, एक ठो मिरगा को नइ जिला सकते तो, तो गोरखनाथ जो है ना क्रोधित हो गया। बोला, अरे साला चंडाल, तुम साधु से टक्कर करता है रे। विनाश हो जावोगे, जय गोरखनाथ किया, मछिंदर नाथ उसका गुरु का नाम था। जय माया मछिंदर किया और उसको ऊपर धुनी के राख ल छीटा तो मिरगा राम-राम कहकर उठ गया। जब उठ गया तब मिरगिन मन खुश हो गया। वहॉं कहां बर रही, परनाम करिस अउ चल दिद वो। अपना बूता से काम रहिस ओकर और वो चल दिस। अब तो दूसरा नंबर मा नै राजा भरथरी अउ गोरखनाथ बांच गया ना उहां बस।

 

गोरखनाथ कथे महराज, अब तुम भी बेटा जाओ, तुम्हरा काम हो गया। वो कहता के महराज अब मैं कहां जाई। अब हमको कहीं जाना नइ है। आप के शरण में ही रहना है। हे प्रभु, आप हमको दासी बना लीजिए। आपका सेवक बनेंगे मैं। बोला, सेवक बनोगे? तो बोले, हां। बोला, एक तो तुम्हारे मिरगा को जिला दिए, दूसरा मां तुम सेवक बनेगा तो अइसा ठीक नइ होगा। बेटा, तुम बालक है तुम जोगी का जोग भी नइ जानेगा, कदर नइ जानोगे, चले जाओ घर। जो है ना अब तुम्हारा रानी साम दई रोती रहेगी घर में। बोले, नइ महराज हम तो जइबे नइ करेंगे, हम तो चेला आपका बनेंगे। बोला चेला बनोगे? तो हां। अउ नइ बनाओगे चेला ना महराज तो हम धूनि में कूदकर के मर जाएंगे। आपका जो सकती है, छीन हो जाएगा बोला। बोला, छीन हो जाएगा? तो बोला हां।

 

बोला, बुरबक मुंह को गोरखनाथ जो है, अपना मुंह को खोल दिया पूरा। बोले तुम क्या मर करके सकती को छीन कर सकते हो, हमको रे, देखो, कहीस उसका मुंख में जो नई गोरखनाथ का मुख में, तीनो लोक दिखाई दिया। आकाश पाताल मृत्यु भुवन क्‍या कि कितना आदमी मरता है रोज और कितना जीव जनमता है, तुम देख लो। बोला, एक जन मरेगा तो मेरा धुनी का धुनी खतम हो जाएगा? बेटा तुम ऐसा बदमाशी मत कर। तुम घर चले जाओ। बोले, नइ महराज आप को मैं परनाम करता हूं, मेरा चेला बना लीजिए, अउ मैंने इसीलिए मिरगा को मारे है। तो ठीक है, जब तुमरा ऐसा ही विचार है, तो चेला तुमको बनाते हैं। लेकिन सुन ले राजा चेला बनाने का एक ही जगा है, कि तुम जाओ रानी शाम दई के पास और तुम मां कह करके भिक्षा मांग लेना, अउ वो पुत्र कह कर के तुम को दान दे देगी, तो हम तुमको चेला बना लेंगे।

 

कहीस ठीक है महराज, लेकिन चेला बनाओगे अउ भिक्षा मांगने हमको भेज रहे हो तो महराज। तो ऐसा शर्ट फूल पैंट चश्‍मा जूता पेने रहेंगे अउ जाएंगे भिक्षा मांगने के लिए तो ये तो सुभावित नई देगा। शोभा ये नइ दय अउ वो उसको हम बोल नइ सकते हैं महराज। त कम से कम चेला नइ बनाइयेगा अभी तो कम से कम, चोला को तो बदल देंगे। जो है ना उसी समय जो है ना राजा भरथरी का सब पोशाक वंइ पर खोल करके जला दिया गोरख नाथ धूनी में। अउ उ राख भभूत को लगा लिया, लंगोटा कस लिया, लूंगी पहन लिया और वो जो है कमंडल एक ठो को धर करके अपने मां के पास रानी शाम के पास पहुंच गया।

 

और महल में जाकर के क्या कहते हैं राजा भरथरी, महल में जा करके कहते हैं कि भोला भरेगा भंडार, बैठे-बैठे मैया दान करना, बैठे-बैठे गंगा नहाओ। हे माता तुम्हारा द्वार में बहुत बड़ा साधु आ गया है। तुम हमको भिक्षा दे दो। भिक्षा तुम हमको दे दो और भिक्षा देने के लिए मैया रानी शाम दइ, रानी शाम दई जो है अपना चंपा से कहीस के हे रानी चंपा, तुम कौन ऐसा जोगी आ गया है दरबार में। तुम जाओ और उसको भिक्षा दे दो। भिक्षा देने के लिए चंपा जो है अन धन सोना संपत्ति जो है निकालकर उसको सजा दिया। अउर सजा कर के कंचन के थाल में और भिक्षा देने के लिए चल दिए। चल तो दिए लेकिन वहॉं जो है ना बिपत पड़ गया, राजा भरथरी के ऊपर में। जोगी बन गया तो वो तुलसी का निशान दिए थे, वो तो मूर्छित हो गया था। जो सिंदूर का निशान दिए थे वो तो मलिन हो गया था। तो रानी जान दारिस कि मेरा पति पर कोई कष्ट आ चुका है। तो तो वो चिंतित मे थी, लेकिन अब जोगी पहुंच गया तो काय किया जाए। चंपा जो है भीक्षा लेकर के गए। प्रभु भिक्षा लीजिए, स्वीकार कीजिए विदाग्री को और इस दरबार को त्याजिये और जाइए अपने दरबार।

 

बोला, देखो चंपा तुम्हारा हाथ से ये भिक्षा नइ लेंगे क्यों तुम छोटे जात वाला है। चेरी के जात है तुम, तुम्हारा हाथ से भिक्षा लेंगे तो हमारा जोग भी खत्म हो जाएगा। धरम मेरा गोरखनाथ का चला जाएगा चंपा। तुम जाओ भिक्षा रानी शाम इई को बोलो देने के लिए। उनका हाथ से भिक्षा लिखता है मेरा। भिक्षा अब नइ लिया राजा भरथरी, चंपा कहिस के महराज केतना जोगी आया और केतना गया, सबको भिक्षा हमी देते हैं और आप कसेन बड़का जोगी मेरा हाथ से भिक्षा नइ ले रहे हैं। हम छोटा हो गए बोल रहे हैं। जो है ना साधु के जात नइ होता है, गंगा के लिए जात नइ होता है रामायण के लिए जात नइ होता है तलाब के लिए जात नइ होता है महराज। आप कईसा साधु हैं जात की बात कर रहे हैं। आपको भिक्षा लेना है लीजिए, अउ नइ लेना है जाइए। आपके जैसे बहुत जोगी मेरे पास आते हैं, उसी को दे देंगे।

 

राजा भरथरी कहीस एै चंपा गड़बड़ मत करो, साधु से। पंगा मत करो नइ तो शराप दे देंगे मैं। नइ तो तुम भस्म हो जाओगे, अभी तुम को श्राप दे देंगे चंपा, तो तुम नाश हो जाओगी तुरंत। कुछ नइ समझ रहे हो बाबा। ये तुम्हारा दरबार में तब अब वो बेचारी भ्रमित हो गए। भ्रमित हो कर तुरत वहां से मतलब क्या रह गए बाबा, वहां भय में चले गए रानी शाम दइ के पास। बोले की महारानी ऐसे ऐसे बात कह रहे हैं साधु, बहुत क्रोधित हो गए कोई उपाय नइ बताता है। कुछ भी बोलता है तो, बात लेबइ नइ करता है। रानी शाम दइ को है, ना जाने शक हो गिया के कौन ऐसा जोगी आ गया भाई, रावण जइसा तो नइ आ गिया है पखंडी। भिक्षा लेने के लिए रानी के हाथ से मांगेगा और लेकर के भाग जाएगा और दूसरा तो इहां चिंतित है कि मेरे पति पर संकट है।

 

चंपा से बोलिस के जाओ चंपा के बोल देना जोगी को, के भाई के मेरा पति राजा भरथरी जो है शिकार करने के लिए गए हैं, वो नहीं आए हैं जो निशान दिए थे वो निशान साबित बता रहा है कि वो तकलीफ में हैं। तो उसको चिंतित है, महराज, आप जाइए बाद में आइएगा। राजा भरथरी भिक्षा देगा रानी साम दई। जाकर के चंपा कहिस जो है ना के महराज, ऐसी ऐसी बात है तो रानी चिंतित है, तो आप को भिक्षा नइ दे, ये आप जाइए, बाद में आइएगा तो आपको भिक्षा मिल जाएगा, रानी के हाथ से। राजा भरथरी कहीस अरे बुरबक क्यों चिंता कर रही हो तुम, राजा भरथरी को तो मइ देखे हैं सिंगल दीप में, शिकार कर रहा है काला मिरगा को। उसका, उसको मई वरदान देकर आया हूं वो अचल है उसको कोई संकट नइ है। अउ नइ यकीन होता तुमको विश्वास नइ है तो देखो, बोल दिया के बियाही कंगन मेरा है, जाओ रानी साहब को बोल दो, उसको चिंता करना नइ है, भिक्षा देना है उसको। अउ देखा ने और ये कंगन भी देख लिया चंपा, उसको साबित।

 

अरे बोला सही तो बोला, बात तो गलत नइ ना बोल रहा है, ओ रानी व्यर्थ का चिंता कर रहे हैं। जा कर के फेर कहीन के महराजीन तुम क्यों चिंता कर रही हो। बाबा तो बोलिस के हम उसको वरदान दे कर के आए हैं, अभी आए हैं सुबह को, वो तो बढ़िया शिकार कर रहा है अउ तुम चिंता कर रही हो, झूठे और उस को वियाही कंगन दान में दिया है बोला। रानी साहब का और दिमाग घूम गया कि राजा भरथरी के पास इतना रुपया पइसा हाथी घोड़ा धन दौलत था, तीर कमान था औजार सौजार था उसको कुछ दान नहीं दिया साधु को, अउ बियाही कंगन दे दिया, अइसा नइ हो सकता है, के जरूर कोई इसमें पखंडी का काम है, कि जरूर कोई मलब हमको हरने के लिए आया है। इसको नइ देना है भिक्षा, जाओ उसको बोल दो, बोला ठीक है कि उसको ना रानी का आर्डर है कि, जाओ उसको बोल दो मंदिर में बइठा रहेगा। मेरा अउ वंइ पर भोजन भोग जो भी बनेगा बाबा को वइ पुराया जाएगा और जिस दिन राजा भरथरी आएगा उस दिन उसको भिक्षा दे दिया जाएगा।

 

जब वो देखा है नइ खेल रहा है शिकार, तो उसी को दे देंगे। जो है ना अब जाकर के उनको बोला कि महराज ऐसी ऐसी बात है, आप जाइए और वहां पर बैठे रहिए। आपका भोजन पानी का जुगाड़ सब हो जाएगा। राजा भरथरी बोला ये तो जाना ही पड़ेगा कोई उपाय नइ है। जा कर के उहां बइठ गिया मंदिर में। अब उसको है न बाबा, हीरा एक ठो, एकक हीरा का दाम कनम करोड़ो रुपया नइ होही गा। और वो हीरा जो है ना चार-पांच ठी उसको दे दिया, के लीजिए महराज इसको मलब बेंच बिकन के आप खाइए। जब तक राजा भरथरी नइ आता है तब तक चलाइए अपना पेट। उसके बाद हम आ जाएंगे भिक्षा आपको दे देंगे। अब राजा भरथरी उसको हीरा को क्या देखेंगे बाबा। जो आए उसको अरे कोन बेंचथे गांजा, तो फलानी बेंचथे बाबा। तो जा उसको कइस एक ठो दे देना, एक पुतकी गांजा ले आया, पी के फूंक दिया हीरा उसको दे दिया। जो है ना चार ठो हीरा को चार दिन नहीं पूरा उसको। बोला ए रानी चंपा, खबर करो रानी से जाओ, खत्म हो गया हीरा।

 

रानी कहिस, हीरा ये सौ बरिस खाता तभो नइ होता रे, चारे दिन में खत्म कर दिया ये कइसा साधु है। बोले, जा बोल दो भागेगा येां से, अभी नइ देंगे भिक्षा शिक्षा। अउ भोजन पानी नइ करा सकते हैं। रोज एक ठो हीरा खाएगा, तो कहां खवायेंगें। जो है ना भगा उसको कहीस। अब वो जो है क्या भगायेगा, उसको बोला के महराज आप चल जाइए नइ तो अब और अठ करके वंइ आ गया। साला चांडाल कहीस राजा के दरबार में घमंड कर रहा है। साधु से टक्कर कर रहा है साला। बिनाश कर देंगे बोला और जाकर के उसी को है ना दरबार पै बैठकर के धुनी को जला दिया। सरंगी को बजाने लगा, भजन कीर्तन गाने लगा हरि भजन करने लगा। ये तो अखाड़ा मतलब पूरा मच गया वहां जुलुम। चंपा कहिस के महराजिन अइसा मा नइ बनेगा कहीस। अरे ये तो भिक्षा लेने के लिए चाह रहा है ना, फेर बता हम बुद्धि लगावे। बोले बता, बोला तुम्हारा जितना पोसाग है, रानी का जितना अहना गहना जेवर जटिया है हमको दे दो। हम साथ चीज पहन लेते हैं। हैं ना अउर हम उसको पालकी के अंदर में, महल में मतलब, घुंघट के अंदर में उसको भिक्षा दे देंगे। वो ले लेंगे चले जाएंगे। अउ रानी का रूप बाबा वो बना लिया। जो है ना सारा सजन जो था रानी का सोलह सिंगार बतीसो अवरन वो दे दीस उसको। अउ पिंगला पहन लिस करके सुंदर बन गई, और वो भिक्षा ले करके गईस पालकी के भीतरी पांच झन डोला, बोहे रहै चार झन। अउ कहिस के महराज मैं परनाम करथंव तोरा, तैं ये भिक्षा ल लेके सवीकार करो महराज। मोर दुआर मा काबर आ के अलग मचाए हव, तब तक आकसबानी होगे, गोरखनाथ का, के ये बेटा, ये रानी नइ है, ये चंपा है। त तुमको पखंडी बन कर के तुमको भिक्षा दे रहा है, तुम्हारा जोग को नाश करेगा। तो उनको क्या ज्ञान हो गया, भरथरी कहीस के महरानी ठीक है तो हम लोग संत साधू हैं, तुम्हारा कोई ससुर रिश्ता रिलेशन नइ हैं। ये परदा भीतर ये बंधन भिक्षा नइ लेंगे हम। तुम नीचे हो, पांच कदम बूलो रेंगो। उसके बाद हम तुमरा हाथ से भिक्षा लेंगे, ये पालकी में घुंघट के साथ हम लोग भीक्षा नइ लेंगे हम लोग साधु हैं, हमसे तुम्हारा कोई रिश्ता नइ है। साधु के लिए जितना भी होता है वो सब माता बहन के बराबर होता है। तुमको हम से क्या सरम हैं जो घूंघट में छीपी हो औ नहीं उतरती हो रानी, तो अभी श्राप देंगे, तुमरा नाश हो जाएगा, भसम हो जाओगे।

 

चंपा बेचारी मर गेया संसो में पड़ गया। करे तो करे क्या हम, तन से उसको उतरना पड़ा, और उतरा तो देख डारा, बोला अरे चंपा तुम, क्या अरे तुम कुछ अपना भविष्य को सोचके राजा भरथरी जो है उस समय हंस गए, क्या हंस गया के देखिए के जो है ना इसका कैसा नसीब है इसका चंपा को, हम थे राजा, बन गए जोगी अउ ये थी मेरी नौकरानी चेरी उसका किसमत कईसा ले जा रहा है कि रानी बन गया ये। किस्‍मत का रेखा कहां तक पहुचाता है देख लो बोला, वाह। धन्‍य है भगवान कहिस, तो ओ जुवर हांसे ना राजा भरथरी तो उसका दांत में जउन बिजली जइसा सोन बईठा था वो बिजली चमक रहा था, देख लिया। कोन देखिस हे, चंपा देखिस। बोलिस अरे ये तो गड़बड़ हो गया, पहचांन गई वो के ये कोई दूसरा नइ है, हमने देखे थे बावन सुवा राजा को, हमने देखे थे कुंवर मल विजय को, हमने देखे थे फलना राजा को, छिलना राजा को, लेकिन किसी को पास में बत्‍तीसो दांत नहीं जलता था। बिजली के जइसा राजा भरथरी के सिवाय और ये जो है कोई राजा नइ है, कोई फकीर नइ है, कोई चोर-चंडाल नइ है, ये जो है राजा भरथरी ही है।

 

अब वो क्‍या किया, थारी को पटक दिया और रोते-गाते जो है ना, रानी के पास गया। अब जो रानी जो रोना सुनिस ना, मानो वो क्‍या सोंचती है दिल में कि, अरे साला ये चंडाल साधू जरूर है, रानी के रूप में गया है, भिक्षा देने के लिए वो साधू उसका हाथ-पांव धरा होगा। रानी समझ गई कि दृष्टि गलत में देखा होगा, इसलिए चंपा मेरा रो रही है। कहीं दूसरा ढंग से देखा होगा, हाथ बांह उसको धरा होगा, तो अभी ये साधू को जो है ना, फांसी पर लटका दिया जायेगा। मैं तो रानी हूं, ऐसे समझ करके और रानी दूसरा सोंच रहे हैं। और चंपा जो रो रही है। और चंपा जब गई बोलती है कि, एै रानी चंपा, बोलो तो क्‍या बात है। बोलो क्‍या किया तुमको साधु ने, साधु क्‍या किया, अभी उसको फांसी दे देगा उस साधु को, बहुत बड़ा साधु बन करके आया है। चंपा कहिस महराजिनी मैं क्‍या कहें, वो ना तो हमको गाली दिया है, ना तो हमको गलत दिरिस्‍टी से देखा है, और ना तो मेरा हाथ बांह पकड़ा है। बिचारा कुछ नइ किया है। लेकिन हे रानी तुम्‍हारा किस्‍मत में आग लग गिया। तुम्‍हारा नसीब जल गिया। बोला, क्‍यों। बोला ये कोई राजा, ये जो कोई चोर चंडाल नइ है, या कोई फकीर जोगी नइ है, ये राजा भरथरी है। और ये भिक्षा मांगने के लिए आपके पास आया है। रानी को क्रोध हो गया, अरे चेरी चंपा आज मेरा पति शिकार करने के लिए गया, कोई आपत्ति बिपत्ति पड़ गया, तो आज तुम मेरा नौकरानी कहेगा के जोगी तुम्‍हारा पति है। तो कल मेरा वो मुंसी दीवान है, उसको भी बोल दोगे के वो तुम्‍हारा पति है। तब तो मेरा रानी का कुछ मन्‍यता ही नइ रहेगा।

 

बोला, ये चंपा तुम गलत बात बोले हो, मेरा पति राजा भरथरी, बावर बीगा जो छप्‍पन लाख तसील रहने वाला प्रभु है और वो जोगी बनेगा। तुम हमको गाली दे रहे हो, जोगी से कह करके चलो तुमको अभी फांसी दिया देते हैं। अउ उलटा जो है ने बिचारी चंपा को फांसी देना चालू कर दिया, और बोला जाओ रे जल्‍लाद लोग जहां राजा भरथरी का धुनि जमा है उसका आघू म ही फांसी दे दो, अइसे कहिस। एै चंपा तुमको तो फांसी तो होगा ही, पास हो गया है ये कथा तो होगा ही। कोई उपाय नइ है, लेकिन तुम्‍हारा इस संसार में कुछ है बचा हुआ खाना पीना देखना सुनना बोलना चालना किसी से मिलना जुलना बताओ कहिस टैम लगेगा, लेकिन आपको फांसी पड़ेगा चंपा। वो कहिस महराजिनी, मैं सारा बूता कर चुका कोई चीज आपके घर में रहते हुए हमको कोई तकलीफ नइ है और सारा संउख पूरा हो चुका है। किसी से नइ मिलना है लेकिन हमको जो है अभी फांसी पड़ेगा तो कम से कम आधा घंटा का टाईम दीजिये, के हम गंगा में नहां करके महामहेश्‍वर भगवान को एक लोटा जल रिको कर, करके आ रहे हैं। उसके बाद आप हमको फांसी दे दिजिये।

 

कहिसे ठीक है, चलो जावो तुम्‍हारा टाईम दे दिया। एक घंटा आधा घंटा का टाईम है, ना तो एक घंटा का टाईम दे दिया उसको। कहिस जाओ, अउ गया बिचारी असनान धियान का करेगी बिचारी वो गई गंगा मा जाकर के कूद गई। के हे गंगा मईया जो पापी के हाथ से मरेंगें सो तुम ही हमको मारो। उसका गोद में चला गया। गंगा जो है प्रकट हुए, बोले बेटा, तू अकबकाओ मत कहिस, क्‍या बात है तुम, तुम ये प्रान को त्‍यागने के लिए मेरे पास आए हो। तो बोला, क्‍या कहें महराज, माता हमको तो बहुत बड़ा अपराध है, वो जोगी आया है उसको तो हम बोल दिये कि राजा भरथरी है और ये हमको फांसी दे रहा है। तो जल्‍लाद के हाथ से क्‍यों मरें, तो माता तुमरे सरन में आ गए हैं।

 

बोले बेटा ओमस्‍त जाओ तुमको कोई नइ मार सकता है, अउ तुमको जो बोला है वो सई साबित है के वो राजा भरथरी है, तुम जाओ वई रानी जिस जोगी के कारन तुमको फांसी पड़ रहा है, वही जोगी तुमको बचायेगा। तो वहां से फिर वापस माता को परनाम करके गंगा को वो आ गये। रानी किहिस हां चंपा, त हां महरानी, आ गये। त आ गये हैं त फांसी जाओ तब बोले महराज आपका इच्‍छा है महारानी, अब जउन पांच झन जल्‍लाद चला गया, और चंपा को साधु यहां बैठा है और सामने में वहां फांसी पर झूला दिये। भरथरी देखे अभी तो ये था रानी बना हुआ, अभी क्‍या हो गया देखो, क्‍या नसीब होता है, पल भर में है, अभी था ये रानी बना हुआ, अभी तुरते इसको फांसी पड़ रहा है। क्‍या कारन होगा भाई। फांसी पर जब झुलाया न उसको तो राजा भरथरी के पास फउड़ी था, फउड़ी, फउडी मतलब होता है लकड़ी का जिसको एंठा हुआ रहता है सांप के कस समझे ना। अउ उसमें पकड़ने वाला बना रहता है, वो फउड़ी को लिया राजा भरथरी और कूदा, अरे साला चंडाल से जल्‍लाद, तुमी लोग फांसी दे रहे हो नारी को, सो साधू के डर मा ना जो है सभी भाग गए अउ चंपा को उतार लिया, बैठा दिया। बोले चंपा बता का बात है। अभी तो तुम रानी बन के आई थी, और अभी तुमको फांसी मिल रहा है। क्‍या बात है, ये कईसा राजनीति है।

 

अब चंपा डर मा बोले नहीं बाबा, के कईसे बोले हम आपी के बारे का बात है, जोगी का अब कह देंगें आप राजा भरथरी हैं। हम कह डारे हैं, चिन डारे हैं, त आप भी तकलीफ पाओगे ना। बोला कोई बात नहीं चंपा, बता तो बात क्‍या है। क्‍यों फांसी दे रहा है आपको। बोला क्‍या कहें महराज, आपको बारे म हम बोल दिये रानी को के ये राजा भरथरी है। इसलिए हमको फांसी के, मेरा पति जो है, जोगी नहीं बन सकता है। बहुत बड़ा राजा है वो, जोगी क्‍यों बनेगा। और तुम हमको गाली दिया जोगी को कहकर के इसलिए हमको फांसी दे रहा है। तो आप सहीं साबित कीजिये कि आप राजा भरथरी हैं के नइ हैं। राजा भरथरी बोला ये रानी चंपा तुम शांत रहो, तुम कुछ नइ होगा तुमको हम हैं यहां बैठे हुए ने, मैं राजा भरथरी हूं तुम्‍हारा कहना गलत नै है। तो जल्‍लाद मन जो है ना, जल्‍लाद मन वो रानी के पास जाकर के खबर किया कि कईसा साधू हम लोगों को मार करके भगा दिया, फांसी नइ देने दिया। तो कालिका के रूप में जो ना रानी को अति क्रोध हो गया, के ये जो मेरा गएहें मेरा राज है, मेरा सब कुछ है, अउ ये साधु आकर के मेरा घर में अड्डा जमा दिया और मेरा जल्‍लाद को भगा दिया चलो रे दस झन जल्‍लाद इनको पकड़ करके फांसी दो साधुये को।

 

अउ रानी जो है ना कालका रूप में आए बोले, ये महराज का है। क्‍या बात है बोलिये, क्‍यों इसको फांसी से उतारे आप। उतारने वाला कोन होते हो, क्‍या बात है। मतलब रानी तो अब लेडिस है, लेडिस के पास जादा उसके पास जादा गुस्‍सा हो जायेगा ने बाबा तो आपको शांत ही होने से फयदा है। नइ तो अस्पिट कीजियेगा, ना तो वो बिनास कर देगा, राजा भरथरी चुप, जितना बात बोलना था, रानी बोला। ये है, वो है, चोर है, चंडाल है, साधु नइ है, साधु भिक्षा से जादा दरकार लेता है, चल देता है। क्‍यों अइसा कर रहे हैं। चंपा जो है बइठी है बिचारी जब उसका मतलब बोल करके थक गई रानी, तब राजा भरथरी बोले, हे देवी फांसी तो देना ठीक बात है, गलत नइ है लेकिन फांसी उसी को दिया जाता है देवी जो अति किया जाता है। जो अति करता है उसको फांसी दिया जाता है। तो चंपा बिचारी अकेली है अउ इसको है ना तुम रानी बनाकर के भेजी हो, भिक्षा देने के लिए और भिक्षा हम नइ लिये फिर इसको फांसी क्‍यो दे रही हो। क्‍या बात है।

 

अब रानी साम दई भी शरमाती है, कईसे कहें के आप मेरा पति हैं, कहकर के परिचय नहीं है तो अब नहीं कहता हूं तो बनता भी नही है। बोला सुनिये महराज, अउ ये आप जोगी जो हैं, कहता है ये जोगी तुम्‍हारा पति है। बोला, एकदम सई बात है। रानी पति ही मैं है, देख लो तुम्‍हारा बिचार है तो। अब देखा तो सहिन म पति है। हे महराज तो आपने क्‍या किया, अइसा कर दिया, लंद कर दिये फंद कर दिये, इतना आपका राज पाठ था महराज, एक ठो संतान भी नहीं है, और आप जोगी बन बरके मेरा दुवार पर आ गए भिक्षा मांगने के लिए, ये तो बहुत अति का बात है। तो आपको तो भिक्षा मिलेगा नई। बोला, भिक्षा देना ही होगा। महराज आप कियों जोगी बन गिये। बोला, आपको जो ना, यहीं पर मैं सत का गंगा बहा देते हैं, सत का गोरखनाथ कहे हम मंगा देते हें, यहीं बइठा देते हैं, हैं ना और आप यहीं पर बईठे बईठे उनको साधिये, प्रभु हम आपको देख करके संतुष्‍ट कर लेंगें। बोला रानी अइसा नइ होगा, हे रानी बांध हुआ जल गंदा होता है, जो बहता है वही निर्मल है। हे रानी हम लोग रमता जोगी, बहता पानी हैं। हम तुमरे पास नइ रह सकते, एक दिन से दूसरा दिन रहेंगें ना तो तीसरा दिन गांव का अदमी क्‍या कहेगा, ये साला साधु नइ है रे। आडंबर रचा है, पत्‍नी को साथ रखा है अउ जो मंदिर में बईठक रहता है। घर का चोर का कोई पकड़ सकता है क्‍या, नइ पकड़ सकता, तो मेरा कलंकित हो जायेगा, तो हम यहां पर नहीं रहेंगें। हम मां करके भिक्षा मांग रहे हैं, तू पुत्र कहकर के भिक्षा दे दो। ताकि मेरा कल्‍याण हो जाये, और तुम्‍हारा भी नाम संसार में चले।

 

तो बोला, महराज, हम रहेंगें इस महल में कइसे। ये भवन है गढ़ उज्‍जेन, इसमें एक ठो कोई संतान भी नहीं है, तो फिर कहां से रहेंगें। तो कम से कम एक बार स्‍त्री गमन कर लीजिये उसके बाद हम आपको छोड़ देंगें। जाइये बैराग बन जाईये। बोल, देखो रानी बबूल का पेंड़ लगा दो उसमें आम नई फल सकता, तुम्‍हारा नसीब में है ही नइ, पुत्र और पुत्री है तो कहां से मिलेगा। तुमको नइ मिल सकता है ये सब, जो है भरम है और यहां कोई किसी का पुत्र और मां किसी का नइ है। ये मायावी संसार है, तुम भिक्षा दे दो कल्‍याण हो जायेगा मेरा, तुमरा भी अउ मेरा भी कल्‍याण हो जायेगा। तो बोला ठीक है महराज, जब अइसे बात है तो जइसे भगवान रामचंद्र जी बनवास गए थे सीता मइया को संग में लेकर के वइसे आप जोगी बन गिये बहुत सुन्‍दर किये हैं, पूतबती उबलती जग साई जाके जाके पुत्र राम भक्‍त होई, हे प्रभु आप जोगी बन गिये बहुत अच्‍छा आनंद किये हें, लेकिन जइसे सीता मईया संग म ले गए हैं भगवान राम बनवास उसी तरह हमको भी आप ले जाईये। आपका दासी बने रहेंगें, सेवा करेंगें, भगवान।

 

राजा भरथरी कहता है कि देखो रानी, भगवान राम का है जो है ना बनवास जंगल का था। वह बन में रहते थे, वहां दूत भूत बाघ सियार भी रहते थे, लेकिन हम लोग को जो है ना, हम लोग जो है गांव में जायेंगें, तो दाई बहिनी मन मिलहीं ना ता का कही, ये साधु नइ है वा बदमास है, ककरो बाई लेके भागत है। ककरो दाई लेके भागत है, ककरो बहिनी पत्‍नीच होई खुद जानत है तब मोर कलंक हो जाई। गोरखनाथ के हीन हो जाई, शक्ति। कहे हे रानी तुम धीरज धरो, हमको भिक्षा दे दो। बोला, महराज ऐसा नइ होगा, राजा वो भगवान रामचंद्र जी बनवास गया तब उसका कुछ में दागी नइ लगा, और तुमरा कुल में दाग लग जायेगा। गोरखनाथ कितना बड़ा साधू है, भगवान से बड़े हैं क्‍या। बोला, देखो रानी, भगवान राम से बड़ा तो गोरखनाथ नइ हैं लेकिन सब वही है, सकल पदारथ वइ है। एक ही जीच, नाम अनेक है और प्रभु एक है। हे रानी भगवान राम जब बनवास गिया सीता को लेकर के तो सीता को हर करके रावन ले गया, और रावण ले गया तो उसके लिए सीत बांध रमेसर बंधा गया। उसके लिए कितना सेना मरा गया, रावन को किनारा कर दिया गया, लक्ष्‍मण को शक्ति बान लग गिया, उसके लिए अगनी परीक्षा पास किया गया, तो उसका कलंकित तो बन ही गिया रानी। तुम समझो मेरा बात को, और भिक्षा दे दो, और मई गुरू के घर में चले जायेंगें।

 

उसके बाद ना अपने हाथ से रानी समदई बाबा उसको बहुत और कितना कहिएगा, नो दिन का कथा है यह, वो बोला नइ तो अइसा तो साबित नइ हो सकता है। बोला, नइ तुम मेरा मां है इसलिए तुमको मां कई करके भिक्षा माग रहे हें, तुम मां है अउर तुम मेरा भिक्षा दे दो। बोला, इसका परिचय, पूरा गांव में जउन है, हांका करवा दिया, गाला इसका परिचय, परीक्षा लिया जाए के तुम्‍हारा मां हूं। तो वस्‍त्र जो है ना, लाल कलर का वस्‍त्र होता है, पतला सूती का उसको जो है ना छत्‍तीसग तह बना दिया उसको। समझ गे, अउर उस तरफ रानी साम दई को रख दिया अउर इधर से राजा भरथरी था। रानी सामदई जब अपने स्‍तन से दूध को गारा ना बाबा, तो राजा भरथरी जो है उधर है और रानी सामदई बीच म परदा लगा है अपना स्‍तन से जब ना अब देखिये लोग लईका भी उसको नइ है, लेकिन जब अपने अस्‍तन से जब अपने दूध को गारा ने, दूध को गारा तब राजा भरथरी के मुख में जाकर के गिरा। तो सब कोई जान गया के नई, पुत्र ने, ये बेटा है। तब रानी सामदई उसको भिक्षा दे दिये, और भिक्षा देकर के गुरू गोरखनाथ में जाकर के सिद्ध किये। बोलिये भक्‍त भगवान की, गुरू गोरख नाथ की कहानी बहुत लम्‍बी कहानी है बाबा, इतने में बम बम कीजिये। जो राजा भरथरी का कथा बहुत लम्‍बा है, बहुत भयंकर है, इतना कहानी है राजा तो दो चार पद को लिए, आप लोग आ गये हैं। सेवा का मौका आप लोग को भी मिल जाए अउ हम लोग को भी मिल जाये समझे नइ तो राजा भरथरी जब बाबा गोरखनाथ के पास गए अउर चेला बनने के लिए क्‍या कहते हैं उसको सुनिये थोड़ा सा-

 

तो बिधना क्‍यार करतार बोले बचन राजा

 

अरे चेलवा बना ले बाबा गउरख

 

सेवा करेंगें महराज

 

चारनो के दासी बना लो

 

बतिया मना ले महराज

 

अथा करे म चरने दबा देंगें

 

भूखे म भोजन बनाय

 

चारनो के दासी बना लो

 

ओहो, जुलुम मच गईलो राम

 

अरे, जुलुम मचय रे बाबा धुनिया में

 

बिधिना क्‍यार करतार

 

बोलय बचन राजा भरथरी

 

ओ बाबा गउरख महराज

 

हम धुरि बचन बाबा बोलत हे

 

बालक सुन हमरी गियान

 

बारह बरस के उमरिया है

 

बाला पना का गियान

 

अरे कदरो ना जानेगा जोगी का

 

बतिया मन ले हमार

 

जोगिया बैराग तुम मत बन हो

 

बतिया मन ले हमार

 

अउ लौट के घरवा एक उमर चल जा

 

अउ, गढ़ उज्‍जैनवा म राम

 

लौट के घरवा एक उमर चल जाव

 

बतिया मन ले हमार

 

डगमग करय रे काठ म्‍हारे कठवा

 

सच्‍चा उतरेगा पार

 

चेलवा बनाने का न उमरवा है

 

बिधना क्‍यार करे रे करतार

 

तब तो बोलत है राजा भरथरी

 

बाबा सुन गोरखनाथ

 

अरे छतरी कुलवा के मेरा जनमवा है

 

बनेंगें जोगिया तुम्‍हार

 

अरे लौट के घवा बाबा नइ जइहैं

 

बतिया मन ले महराज

 

अरे, डगमग करय बाबा काठ म्‍हारी

 

अरे चेला बनेंगें तोम्‍हार

 

चेलवा बना ले बाबा गउरख

 

बिधना म चघई लव राम

 

अ अब तो बोलय राजा गउरख

 

बिधना क्‍यार करतार

 

धारवा जाई रे रानी सामदई के

 

भिछा मता कह कर लाव

 

अरे पूत कहकर के बाबा भीछा दई दे

 

जोगवा अमर होई जाए

 

भिखवा जाकर कुंमर लेइ आवो

 

रूपवा जोगी के बनार

 

अरे जा के पहुंचे रे गढ़ उजेन म

 

जुलुम मच गईले राम

 

बोले बचन राजा भरथरी

 

कुंमर सुन हमरा बात

 

या अलख जगई ले राजा भरथरी

 

भोला भरेगा भंडार

 

बईठे बईठे भईया बन देना

 

बईठे गंगा बहाए

 

अरे कलि में अमर राजा भरथरी

 

जग में रहेगा अब नाम

 

भीखा दई दे रानी सामदई

 

स्‍वामी सुन महराज

 

घर ही म मंदिर बनाई देंगें

 

कि हरद्वार से मूरती मंगाइ

 

बईठे बईठे जोग साधो ना

 

बतिया मन ले महराज

 

देखिके फिर जाय बाबा बंधि लेंगें

 

रानी सुन हमरा बात

 

अरे बंधवा जलवा रे अरे गंदा होता

 

निरमल बहता है धार

 

अरे जइसे गंगा के धारा है

 

वइसे जोगियान के धार

 

जा के बोलो मईया भिछा दे दे

 

जोगी अगनी समान

 

डगमड करय रे मईया काठ म्‍हारे

 

सच्‍चा उतरेगा पार

 

हरि ना भजय राजा भरथरी

 

रानी सुन हमरा बात

 

नदियन म बड़ी गंगा माई है

 

देवता म भोला नाथ

 

अता पति में बड़े बाबा गोरख हैं

 

जेकर चेलवा कहाय

 

डगमड करय रे मईया काठ म्‍हारे

 

सच्‍चा उतरेगा पार

 

हई रे सकल राजा भरथर का

 

जुलुम मच गईल रे राम

 

अउ प्रेम का निरगुन रानी जोगी गावय

 

हरि ओम, हरि ओम, दाता की जय हो, दाता की जया हो।

 

श्रुतलेखन- संजीव तिवारी