छत्तीसगढ़ का बंजारा समुदाय / Chhattisgarh's Banjara community

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Published on: 07 December 2018

मुश्ताक खान

चित्रकला एवं रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर।
भारत भवन ,भोपाल एवं क्राफ्ट्स म्यूजियम ,नई दिल्ली में कार्यानुभव।
हस्तशिल्प,आदिवासी एवं लोक कला पर शोध एवं लेखन।

 

बंजारा शब्द ही अपने आप में एक पूरी जीवन शैली और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता  है। एक समय भारत ही क्या समूचे विश्व व्यापर में इनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। छत्तीसगढ़ में बंजारों की उपस्थिति अथवा यहाँ के समाजिक जीवन में उनकी उनकी भूमिका के उल्लेख यहाँ प्रचलित मध्ययुगीन कथा –कहानियों में मिलते हैं। बंजारों को छत्तीसगढ़ में नायक कहा जाता है।

 

माड़िआ  आदिवासी इन्हे लमान-लमानिन भी कहते हैं। वस्तुत: बंजारा और लमान दो समान जातियाँ हैं। लमानों को बड़ी माँ तथा बंजारों को छोटी माँ की सन्तान माना गया है। दोनों की भाषाएँ भी एक ही हैं और काम भी। लमान जाति की महिलाएँ शरीर पर गोदना गोदने के व्यवसाय से जुड़ी रही हैं। कौड़ी, काँच और हाथी दाँत की विभिन्न श्रृंगारिक वस्तुओं का निर्माण भी इनका प्रमुख व्यवसाय रहा है। काचड़ी, फेटवा, आदि भी बनाते रहे हैं। 

 

कोंडागांव क्षेत्र में इन्हे बैपारी कहा जाता है , बंजारों को बैपारी कहे जाने के पीछे कारण यह है कि पहले यही लोग आन्ध्र प्रदेश के सालूर नामक स्थान से बैलों या गधों की पीठ पर नमक लाद कर लाते थे और इस तरह बस्तर के आदिवासियों को नमक की आपूर्ति होती थी। चूँकि यह जाति नमक का व्यापार करती थी। 

 

छत्तीसगढ़ के इतिहास एवं  सामुदायिक स्मृतियों में बंजारा समुदाय की एक स्थायी छाप परिलक्षित होती है। छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों की अपेक्षा बस्तर जैसे दुर्गम क्षेत्र में यह छाप और भी अधिक गहरी है। छत्तीसगढ़ में राजस्थान की लोक कथा ढोला - मारु जनसामान्य में अति लोकप्रिय है। कौन जाने यह कथा राजस्थान से निकले घुमक्कड़ बंजारों के साथ छत्तीसगढ़ तक पहुंची हो।

 

बस्तर का कोई भी मढ़ई –मेला और हाट बाजार इन की बहुरंगी दुकानों के बिना असंभव है। वास्तव में बस्तर की रंगभरी आदिवासी संस्कृति में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज गौरसींघ और कौढ़ियों से सुसज्जित शिरस्त्राण पहने माड़िया पुरुष बस्तर और छत्तीसगढ़ की पहचान बन गए हैं ,यह शिरस्त्राण बंजारा समुदाय की स्त्रियां ही सदियों से बना रही हैं।

 

छत्तीसगढ़ का वर्तमान बंजारा समुदाय अपनी घुमक्कड़ जिंदगी छोड़ कर पूरी तरह स्थाई जीवन अपना चुका है। इस मॉड्यूल में इनकी वर्तमान स्थिति , छत्तीसगढ़ी संस्कृति में इनके योगदान और इनकी  शिल्पकला के बारे में जानकारियां प्रस्तुत की गयीं हैं।

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.