Mushtak Khan in conversation with Anita and Pura Banjara
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Mushtak Khan in conversation with Anita and Pura Banjara

in Interview
Published on: 10 December 2018
अनीता और पुरा बंजारा के साथ बातचीत में मुश्ताक खान, छत्तीसगढ़, 2018
 
 
 
 
मुश्ताक खान : तो आपका नाम क्या है? आप अपना नाम बताइये। 
अनिता नायक : अनिता नायक।
 
 
मुश्ताक खान : और वो, आपके साथ कौन-कौन लोग हैं?
अनिता नायक : सास...ये बेटा है। ससुर..।
 
 
मुश्ताक खान : क्या नाम है इन लोगों का?
सोहन लाल : सोहन लाल
 
 
मुश्ताक खान : और आपका नाम क्या है?
पूरा : पूरा।
 
 
मुश्ताक खान : पूरा नायक है उनका नाम? तो ये नायक कौन? बंजारे लोग होते हैं? 
अनिता नायक : हाँ, हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो इस गाँव में कितने बंजारे लोग रहते हैं?
अनिता नायक : दस-बारह घर के होंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : कब से रह रहे हैं आप लोग?
अनिता नायक : होगा। दस-बारह साल से ज्यादा ही हो गये होंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : अभी लेकिन आपके जो बाप-दादी थे, वो कहाँ के थे? यहीं के थे या कहीं और के?
अनिता नायक : राजस्थान से हैं, कहते हैं सर। 
 
 
मुश्ताक खान : ऐसा बोलते हैं कि राजस्थान से हैं?
अनिता नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : और यहाँ पर, इस गाँव में कितनी पीढ़ी? आपका मायका किधर का है?
अनिता नायक : मायका? सोनारपाल, बस्तर।
 
 
मुश्ताक खान : सोनारपाल के हो?
अनिता नायक : जी हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो वहाँ पर भी नायक लोग रहते हैं।
अनिता नायक : हाँ, बहुत हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : उधर बहुत हैं? कितने घर होंगे उधर?
अनिता नायक : होंगे। साठ-सत्तर घर से ज्यादा होंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : वो लोग भी ये करते हैं?
अनिता नायक : नहीं। नहीं करते हैं अब। 
 
 
मुश्ताक खान : उन लोग ये काम नहीं करते। मतलब जितने बंजारे लोग हैं, सब लोग ये कौड़ी का काम नहीं करते?
अनिता नायक : नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : क्यो बोलते हैं इस काम को आप लोग?
अनिता नायक : हम लोग, घाघरा-चोली।
 
 
मुश्ताक खान : ये तो बनाते हो। इस काम को क्या बोलते हो?
अनिता नायक : कैसा?
 
 
मुश्ताक खान : किसी को यह बोलना है कि ये काम करो तो क्या बोलोगे? क्या काम करना है? अपनी भाषा में क्या बोलोगे?
अनिता नायक : हम लोगों के यहाँ काचड़ी-फेटवा बोलते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : क्या?
अनिता नायक : काचड़ी-फेटवा।
 
 
मुश्ताक खान : काचड़ी-फेटवा?
अनिता नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : काचड़ी-फेटवा यानी इस काम का नाम?
अनिता नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो ये बरसों से बना रहे हो आप लोग?
अनिता नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : कितने साल हो गये होंगे बनाते-बनाते?
सोहन नायक : बहुत साल हो गये। 
 
 
मुश्ताक खान : बहुत साल हो गये?
अनिता नायक : बहुत साल हो गये। 
 
 
मुश्ताक खान : तो सारे बंजारा ये काम नहीं करते?
अनिता नायक : नहीं।
 
 
मुश्ताक खान : ये काम, काचड़ी-फेटवा का काम कहाँ-कहाँ होता है?
अनिता नायक : यहाँ होता है और ऐसे ही मेला में भी होने पर बारदा (नामक गाँव) में भी।
 
 
मुश्ताक खान : बारदा में?
अनिता नायक : हाँ, वहीं पर होता है।
 
 
मुश्ताक खान : और...?
अनिता नायक : और कहीं नहीं होता। 
 
 
मुश्ताक खान : मतलब ये यहाँ पर इरकापाल...?
अनिता नायक : इरिकपाल। 
 
 
मुश्ताक खान : इरिकपाल और बरदा में होता है?
अनिता नायक : हाँ, बारदा में।
 
 
मुश्ताक खान : ये बारदा कहाँ पर है?
अनिता नायक : मूली साईड होता है। मूली साईड।
 
 
मुश्ताक खान : मूली किधर है?
अनिता नायक : जगदलपुर। बकावँड की तरफ।
 
 
मुश्ताक खान : बकावँड की तरफ। वहाँ पर कितने लोग करते होंगे ये काम?
अनिता नायक : वहाँ भी ज्यादा लोग नहीं करते। ऐसे ही चार-पाँच घर के लोग करते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। तो आपने किससे सीख लिया ये काम?
अनिता नायक : हम सब काम सीख लिये हैं।
 
 
मुश्ताक खान : किससे सीखा यह काम?
अनिता नायक : इन्हीं से।
 
 
मुश्ताक खान : अपने ससुर से?
अनिता नायक : हाँ, हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो आपके पहले ये ससुर काम करते थे?
अनिता नायक : हाँ। सास-ससुर।
 
 
मुश्ताक खान : दोनों काम करते थे।
अनिता नायक : हाँ, हाँ।
 
 
सोहन नायक : खेती भी करते हैं, ये भी करते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा, मतलब खेती भी होता है.....
सोहन नायक : खेती भी होता है, ये भी होता है।
 
 
मुश्ताक खान : ,,,और ये काम भी करते हैं। 
अनिता नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो जो खाली समय है....
अनिता नायक : गरमी में ज्यादा करते हैं ये वाला काम।
कोई पुरुष स्वर : गरमी में ज्यादा करते हैं। बाजार-बाजार घुमाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : गरमियों में ज्यादा चलता है ये वाला काम?
अनिता नायक : हाँ, हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो बाजार में जा-जा कर बेचते हो?
सोहन नायक : बेचते हैं बाजार में गपा, टुकना, घागरो, चोली....
 
 
मुश्ताक खान : हाँ।
सोहन नायक : टोपी...ये सब बेचते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो ये क्या काम आता है?
अनिता नायक : देबी......
सोहन नायक : देबी लोग के लिये ले जाते हैं। 
अनिता नायक : माड़या मन। 
सोहन नायक : कोई रखते भी हैं, शौक के लिये। 
मुश्ताक खान : हाँ। 
सोहन नायक : ऐसा करते हैं ना। 
मुश्ताक खान : तो पहले कौन लोग खरीदते थे इनको?
सोहन नायक : माड़या लोग।
 
 
मुश्ताक खान : माड़िया लोग ज्यादा खरीदते थे?
सोहन नायक : माड़या लोग ज्यादा लेते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : क्या करते हैं वे लोग?
सोहन नायक : वो देवी वाले हैं। देवी लोग पहनते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : मतलब उनकी जब देवी किसी को चढ़ती है तब....
सोहन नायक : हाँ, फिराद में। 
 
 
मुश्ताक खान : वो सिरहा लोग....
अनिता नायक : पहनते हैं। 
सोहन नायक : वो पहनते हैं। पहनते हैं सिरहा लोग। 
मुश्ताक खान : और जो माड़िया लोग सिर में जो पहनते हैं.... 
अनिता नायक : हाँ, हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : ... गौर-सींग लगा कर...?
अनिता नायक : हाँ, हम ही लोग बनाते हैं। 
सोहन नायक : हम ही बनाते हैं। वो लाते हैं तब बाँध देंगे। जो टोकरा है उसमें भी सब कर देंगे।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, वो गौर-सींग वो ला कर देते हैं?
सोहन नायक : हाँ, वो ला कर देते हैं। हम कहाँ से लायेंगे?
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ। 
अनिता नायक : ला कर देते हैं तो हम लगो बना देते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। तो वो गौर-सींग होता है, उसको जो सिर से लगाते हैं वो लोग, उसको आप लोग क्या बोलते हैं?
सोहन नायक : उसको? उसको सींग ही बोलते हैं। सींग ही बोलते हैं उसको।
 
  
मुश्ताक खान : नहीं। सींग को तो सींग बोलते हैं, लेकिन जो पूरा टोपी सिर पर लगाते हैं.....
सोहन नायक : ऐसा..ऐसा टोकरा होता है। वो टोकरा अलग टोकरा होता है।
 
 
मुश्ताक खान : है आपके पास?
सोहन नायक : वो तीन कोने वाला होता है। 
मुश्ताक खान : हाँ।
सोहन नायक : एक कोना ये, एक कोना ये। एक कोना यहाँ होता है। 
मुश्ताक खान : हाँ। 
सोहन नायक : यहाँ एक सींग डाल देंगे, यहाँ एक सींग। सिर्फ यहाँ रहेगा कोना। ये नहीं रहेगा। तीन कोनों का बनाएँगे टोकरा और बाँस में डालेंगे, ऐसा। 
मुश्ताक खान : हाँ। 
सोहन नायक : ऐसा।
 
 
मुश्ताक खान : अभी भी बनवाते हैं वो लोग आपसे?
अनिता नायक : हाँ, बनवाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : हर साल ऐसे लोग आते हैं? कौन गाँव के माड़िया ज्यादा आते हैं आपके पास?
सोहन नायक : माड़या तो हैं ही। ....इधर। 
अनिता नायक : कोड़ेनार, डिलमिली, बास्तानार इधर सब जगह से। 
मुश्ताक खान : काफी दूर-दूर से आते हैं। 
अनिता नायक : लोहण्डीगुड़ा भी जाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : और बाजार कहाँ-कहाँ जाते हो?
अनिता नायक : कोड़ेनार, जगदलपुर, डिलमिली, लोहण्डीगुड़ा...।
 
 
मुश्ताक खान : सब जगह जाते हैं?
 सोहन नायक : गीदम। 
अनिता नायक : गीदम, दन्तेवाड़ा।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, दन्तेवाड़ा भी जाते हैं?
अनिता नायक : हाँ, दन्तेवाड़ा भी ले जाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो गरमी के कितने दिन यह काम चलता रहता है?
अनिता नायक : तीन महीने।
 
 
मुश्ताक खान : तीन महीने ये काम चलता है?
अनिता नायक : तीन महीने के बाद फिर वही धान बोआई शुरू हो जाती है तो फिर छोड़ देते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, तीन महीने। तो तीन महीने कौन से होते हैं वे?
अनिता नायक : कौन महीना.....?
मुश्ताक खान : चैत का महीना रहता है?
अनिता नायक : हाँ, हाँ। 
मुश्ताक खान : हाँ?
अनिता नायक : धान बोआई शुरू होने पर छोड़ देते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा, जब धान की बोआई शुरू होती है, ये जुलाई में? जैसे ही बरसात शुरू होती है तो ये बन्द हो जाता है। 
अनिता नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : गरमी का टाईम है तो क्या उसमें देव-धामी ज्यादा होते हैं?
अनिता नायक : हाँ।
सोहन नायक : ज्यादा होते हैं। मेला होता है। बाजार होता है। कोई छकड़ा-कुकड़ी की बलि देते हैं। तो उस समय वहाँ ले जा कर पहनते हैं। बाजार में। वो सिरहा लोग।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। तो ये कौन....कोई आर्डर देकर बनवाते हैं..?
अनिता नायक : नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : आर्डर नहीं देते?
अनिता नायक : नहीं। नहीं देते आर्डर। 
सोहन नायक : खरीदते हैं बाजार में।
 
 
मुश्ताक खान : बाजार में आ कर ले कर जाते हैं?
सोहन नायक : हाँ, बाजार में आ कर। 
अनिता नायक : बाजार में भी ले जाकर रखे रहते हैं। फिर जब माड़िया लोग इसी तरह का कोई बड़ा सामान बताते हैं और बयाना देते हैं तो फिर हम बना कर बाजार में ले जाते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा।
अनिता नायक : प्रत्येक हाट में।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, मतलब बाजार में ही यदि उनको चाहिये तो वो बता देते हैं कि ऐसा बड़ा वाला बना दो यदि नहीं है तो?
अनिता नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : तो फिर आप लोग बना कर रखते हैं और फिर ले जाकर देते हैं?
अनिता नायक : बनाते हैं और ले जाकर देते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो इसका कोई महूरत होता है या कोई भी...?
अनिता नायक : होता है, ब्राह्मणों के लिये।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। आप लोगों के लिये कुछ नहीं...?
अनिता नायक : नहीं।
 
 
मुश्ताक खान : तो ये कपड़ा कहाँ से लाते हो आप लोग?
अनिता नायक : जगदलपुर।
 
 
मुश्ताक खान : कोई खास कपड़ा है?
अनिता नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : क्या कपड़ा है ये?
अनिता नायक : इसी तरह का कपड़ा उधर से आता है। वो लोग ला कर रखते हैं। 
सोहन नायक : सेठ लोग।
अनिता नायक : सेठ लोग।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। तो इसका कोई खास दुकान होता है क्या?
अनिता नायक : हाँ, हाँ। 
सोहन नायक : खरीद कर लाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो उसी दुकान पर मिलेगा ये कपड़ा?
अनिता नायक : हाँ, हाँ। दूसरे दुकान में नहीं मिलता।
 
 
मुश्ताक खान : दूसरा दुकान में नहीं मिलता?
अनिता नायक : नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : तो जगदलपुर में कौन है जो ये रखता है?
अनिता नायक : दुर्गा सेठ। 
 
 
मुश्ताक खान : दुर्गा सेठ?
अनिता नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : तो उसके पास ये कपड़ा मिलता है।
अनिता नायक : हाँ। 
सोहन नायक : जी।
 
 
मुश्ताक खान : तो क्या मीटर मिल जाता है ये?
अनिता नायक : मीटर? सत्तर भी है, अस्सी भी है। एक मीटर।
 
 
मुश्ताक खान : एक मीटर?
अनिता नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : पहले तो सस्ता आता होगा?
अनिता नायक : नहीं, नहीं।
सोहन नायक : नहीं होगा सर। 
 
 
मुश्ताक खान : तो आपके जमाने में तब से दुर्गा सेठ से ले रहे हैं या कहाँ से ले रहे हैं?
अनिता नायक : हाँ, वहीं से लेते हैं।
सोहन नायक : वहीं से लेते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : पुराने, पुराने....?
सोहन नायक : पुराने समय से।
 
 
मुश्ताक खान : आपके पिताजी भी वहीं से ले रहे थे?
अनिता नायक : हाँ, वहीं से।
 
 
मुश्ताक खान : और जो बारदा के...?
अनिता नायक : हाँ, सब वहीं से लेते हैं। 
सोहन नायक : सब वहीं से लेते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : सब वहीं से ले जाते हैं?
अनिता नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : फिर ये कैसे, क्या क्या-क्या बनाते हैं? थोड़ा बताएँ।
अनिता नायक : ये चोली है ये। ये घागरा। 
सोहन नायक : घाघरा। नीचे, नीचे पहनने वाला। 
अनिता नायक : ये।
सोहन नायक : ये, यहाँ पहनने वाला। यहाँ।
 
  
मुश्ताक खान : ये सामने पहनने का होता है? 
सोहन नायक : जी। हाँ, हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : तो ये औरतें पहनती हैं या आदमी?
अनिता नायक : हाँ। औरत भी पहनती हैं। लेकिन औरतों के पहनने वाले चोली-घाघरा का दूसरा डिजाईन होता है।
 
 
मुश्ताक खान : तो ये क्या....?
अनिता नायक : इसे माड़िया लोग पहनते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : ये माड़िया लोग पहनते हैं?
अनिता नायक : हाँ। 
सोहन नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : शादी में या किसमें....?
अनिता नायक : नहीं, नहीं। देवी आने पर।
मुश्ताक खान : देवी आने पर। सिरहा....।
अनिता नायक : हाँ, सिरहा।
 
 
मुश्ताक खान : तो ये कौन देवी आती है तब ये पहनते हैं?
सोहन नायक : माता देवी।
अनिता नायक : माता देवी, हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : कोई भी माता हो या कोई खास....?
सोहन नायक : ये काला भी है। ऐसा काला भी पहनते हैं। एक सफेद पहनते हैं। तीन-चार किस्म के हैं।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। तो काला कौन पहनेगी?
सोहन नायक : डाँड।
 
 
मुश्ताक खान : डाँड पहनेगा। और लाल कौन पहनेगा?
सोहन नायक : लाल माता पहनती है। और सफेद, ऐसे सफेद को बामनदई डोकरा कहते हैं, वे पहनते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : बामनदई डोकरा?
सोहन नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : तो हर एक देवता का अलग-अलग कपड़ा होता है?
सोहन नायक : अलग-अलग है।
अनिता नायक : हाँ, अलग-अलग है।
सोहन नायक : आदमी एक ही है किन्तु वो (देवता) अलग-अलग हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : तो कितना देवता का कपड़ा बनाते हो आप लोग?
सोहन नायक : तीन-चार किस्म के देवी-देवताओं के कपड़े बनाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : कौन-कौन?
सोहन नायक : माता, तेलंगिन, डाँड, बामनदई डोकरा के कपड़े बनाते हैं। फिर बनाते हैं फिरन्ता देवी के भी।
 
 
मुश्ताक खान : फिरन्ता माता के भी बनाते हैं?
सोहन नायक : हाँ, वह भी बनाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : वो कपड़े अभी हैं अलग-अलग देवी-देवताओं के?
अनिता नायक : हाँ, हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : आप बोल रहे थे कि ये काला भी बनाते हैं?
सोहन नायक : हाँ, काला भी बनाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : ये रखा हुआ है काला?
सोहन नायक : ये अलग काला है। ऐसा काला अलग होता है। उसे छाता-काला कहते हैं। छाता के कपड़े वाला काला। वो अलग है।
 
 
मुश्ताक खान : वो कौन पहनता है?
सोहन नायक : उसको डाँड पहनते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : उसको डाँड पहनते हैं?
सोहन नायक : हाँ। उसको नहीं। उसको गपा वाली पहनती है, गोंडिन देवी।
 
 
मुश्ताक खान : गोंडिन देवी?
सोहन नायक : हाँ, गोंडिन देवी।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, जब वो काला पहनेगी और काला गपा लेगी?
सोहन नायक : हाँ, गपा लेगी।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, लाल अगर वो पहनेगी तो...?
सोहन नायक : लाल अगर पहनेगी तो वो माता देवी होगी। 
मुश्ताक खान : माता देवी होगी। 
सोहन नायक : माता देवी। डोकरा देव होंगे तो वे सफेद पहनेंगे। 
मुश्ताक खान : हाँ।
सोहन नायक : पूरा सफेद ही होना उसको। 
मुश्ताक खान : हूँ। 
सोहन नायक : ऊपर वाला भी और नीचे वाला भी सफेद। 
 
 
मुश्ताक खान : वो भी गपा लेते हैं?
सोहन नायक : वो गपा नहीं लेते। गपा वाली देवी यही एक है।
 
 
मुश्ताक खान : काला वाला?
सोहन नायक : काला वाला। दूसरा नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : ये लाल, माता वाला नहीं होगा?
सोहन नायक : नहीं, नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : वो जो गोंडिन देव...?
सोहन नायक : हाँ, वो चलेगा।
 
 
मुश्ताक खान : वो काला ही पहनेंगी?
सोहन नायक : हाँ, काला ही पहनेंगी।
 
 
मुश्ताक खान : और ऐसा काला गपा लेंगी?
सोहन नायक : हाँ, काला गपा लेंगी।
 
 
मुश्ताक खान : और ये लाल गपा कौन लेगा?
सोहन नायक : वह दूसरा है। दो किस्म के होते हैं। यह यदि यह नहीं हुआ तो ये ले जाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, काला नहीं मिला तो लाल ले लेंगे?
सोहन नायक : हाँ, लाल ले लेंगे। यही लेंगे किन्तु दूसरा नहीं। 
मुश्ताक खान : अच्छा, अच्छा।
सोहन नायक : हाँ। अब आप भी जो खाते हैं, वही तो खायेंगे। दूसरी चीज तो नहीं खायेंगे, ना?
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ। 
सोहन नायक : ठीक ऐसा ही इसके साथ भी है। 
मुश्ताक खान : अच्छा।
सोहन नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : तो उसको जब....। इसको क्या सिंगार बोलते हैं देवी का?
सोहन नायक : हाँ। देवी का सिंगार।
 
 
मुश्ताक खान : तो वो जब सिरहा के ऊपर चढ़ेगी और इस कपड़े को माँगेगी तो समझ जायेंगे?
सोहन नायक : हाँ, समझ जायेंगे।
 
 
मुश्ताक खान : फिरन्ता माता कौन-सा कपड़ा पहनती हैं?
सोहन नायक : जी..?
मुश्ताक खान : फिरन्ता माता? फिरन्ता माता इसे पहनेंगी, इसे। यह देखिये इसे, इसे पहनेंगी फिरन्ता माता। 
सोहन नायक : इसे तो गोंडिन देवी पहनती हैं?
मुश्ताक खान : नहीं, नहीं। 
अनिता नायक : दोनों के लिये होता है।
सोहन नायक : दोनों के लिये होता है। 
अनिता नायक : ऐसा भी चलेगा लेकिन इससे अधिक काला वाला....।
सोहन नायक : ज्यादा काला वाला......। ऐसा काला....।
मुश्ताक खान : लेकिन सादा काला चलेगा?
सोहन नायक : वो चलेगा। 
 
 
मुश्ताक खान : तो उसको क्या बोलते हो? थोड़ा खोल कर दिखायें उसको।
अनिता नायक : इसको? इसको घाघरा। 
सोहन नायक : घाघरा।
 
 
मुश्ताक खान : ये घाघरा है?
सोहन नायक : हाँ, ये घाघरा है। ये नीचे पहनने वाला है।
मुश्ताक खान : नीचे?
सोहन नायक : हाँ।................ यह देखिये, ऐसा पहनते हैं। 
मुश्ताक खान : ये घाघरा हो गया।
सोहन नायक : घाघरा हो गया।
 
 
मुश्ताक खान : और...?
अनिता नायक : ये चोली।
 
 
मुश्ताक खान : थोड़ा दिखायें। पूरा....। ..........................ये चोली है?
सोहन नायक : ये चोली है। 
 
 
मुश्ताक खान : तो जो भी देव या देवी है, उसको चोली और घाघरा दो ही चीज़ चाहिये,?
सोहन नायक : हाँ, दो चीज।
अनिता नायक : और टोपी..।
 
 
मुश्ताक खान : टोपी कहाँ है? टोपी भी जरा दिखाना। 
सोहन नायक : टोपी भी है। बाद में निकालेंगे।
 
 
मुश्ताक खान : दिखाओ, थोड़ा दिखाओ। जरा टोपी निकालो। राजस्थान से नायक लोग यहाँ आये?
सोहन नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : कब की बात होगी?
सोहन नायक : वो चार-पाँच पीढ़ियाँ हो गयीं। 
मुश्ताक खान : हूँ। 
सोहन नायक : पाँच पीढ़ियों से ज्यादा ही हो गयीं।
मुश्ताक खान : हाँ। 
सोहन नायक : वो राजस्थान से आया हुआ। दादा आये या बड़े दादा या दादा, पता नहीं कौन दादा आये। आये तो यहाँ पर ज़मीन ली। कहाँ-कहाँ से आ कर यहाँ जमीन ले कर सभी बाल-बच्चों के साथ यहाँ बस गये।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। अभी राजस्थान कभी-कभी जाते हो?
सोहन नायक : नहीं। नहीं जाते। पता ही नहीं है तो कहाँ जायेंगे? दादा ले कर आये थे। 
मुश्ताक खान : अच्छा, ये आन्ध्रप्रदेश में जो बंजारा लोग हैं...। 
सोहन नायक : हाँ...।
 
 
मुश्ताक खान : वो लोग भी आपके जैसे ही हैं?
सोहन नायक : हाँ, ऐसे ही हैं।
 
 
मुश्ताक खान : उनके साथ कोई रिश्ता...? कोई आना-जाना होता है?
सोहन नायक : होता है। कभी कोई बैठक होती है तो हम वहाँ जाते हैं और मिलते हैं। कोई बात होती है तो उस पर चर्चा भी करते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो उनके साथ कोई शादी-वादी करते हैं?
सोहन नायक : हाँ, करते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : आन्ध्रप्रदेश में शादी करते हैं?
सोहन नायक : करते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : किस जगह?
सोहन नायक : देवड़ा से भी लाये हैं। बेटे की बहू बनाये हैं।
 
 
मुश्ताक खान : देवड़ा कहाँ है?
अनिता नायक : सोनारपाल...।
सोहन नायक : सोनारपाल-देवड़ा।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। मैं पूछता हूँ कि जो राजस्थान के बंजारा हैं, उनके साथ अभी कोई शादी-वादी होती है आप लोगों में?
अनिता नायक : नहीं, नहीं। 
सोहन नायक : नहीं, नहीं। 
अनिता नायक : उतना दूर कौन जायेगा?
सोहन नायक : उधर कौन जायेगा?
 
 
मुश्ताक खान : ये आन्ध्रा में होता है?
अनिता नायक : आन्ध्रा में नहीं।
सोहन नायक : आन्ध्रा में भी नहीं। 
अनिता नायक : बहुत दूर होता है। 
सोहन नायक : बहुत दूर होता है। यहीं नजदीक में, आसपास में होता है।
 
 
मुश्ताक खान : लेकिन आन्ध्रा वालों से मिलना-जुलना होता है आप लोगों का?
सोहन नायक : नहीं होता है। सिर्फ मुँह से बोल लेते हैं, बाकी रिश्ता-विश्ता नहीं है।
 
 
मुश्ताक खान : वो भी आपकी बोली बोलते हैं या?
सोहन नायक : हाँ। ऐसी ही बोली है। 
अनिता नायक : लेकिन अलग-अलग है।
सोहन नायक : अलग है। भाषा थोड़ी अलग है।
अनिता नायक : उनकी भाषा थोड़ी दूसरी है। 
सोहन नायक : थोड़ी दूसरी है। 
 
 
मुश्ताक खान : उनकी भाषा थोड़ी दूसरी होती है?
अनिता नायक : हाँ, आन्ध्रा वालों की। 
मुश्ताक खान : अच्छा, और....।
अनिता नायक : राजस्थान वालों की भाषा भी थोड़ी दूसरी ही है।
मुश्ताक खान : अच्छा?
अनिता नायक : हम लोग जिस तरह की भाषा बोलते हैं, वैसी नहीं है।
सोहन नायक : ऐसी नहीं है।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। तो यहाँ पर आप लोगों की जो भाषा है, वो क्या माड़िया भाषा या छत्तीसगढ़ी से थोड़ी अलग है?
अनिता नायक : अलग है।
सोहन नायक : अलग है। 
अनिता नायक : हम लोगों की भाषा माड़िया लोग नहीं समझते, छत्तीसगढ़ी। हम लोग समझ जायेंगे छत्तीसगढ़ी। 
मुश्ताक खान : अच्छा।
अनिता नायक : लेकिन वे लोग नहीं समझते। 
सोहन नायक : वो लोग नहीं समझेंगे।
मुश्ताक खान : वो लोग नहीं समझेंगे। तो ये....
अनिता नायक : आदिवासी लोग भी नहीं समझेंगे हमारी भाषा।
मुश्ताक खान : आदिवासी लोग भी.....
अनिता नायक : मारवाड़ी लोगों की भाषा और हमारी भाषा एक ही है। 
मुश्ताक खान : अच्छा, जो यहाँ मारवाड़ी हैं....
सोहन नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : वो भाषा वही बोल रहे हैं जो आप लोग बोलते हैं?
सोहन नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : अच्छा, अच्छा। 
अनिता नायक : ये लीजिये टोपी।
 
 
मुश्ताक खान : ये टोपी है?
सोहन नायक : ये टोपी है।
 
 
मुश्ताक खान : ये क्या जिस सिरहा पर देवी आएगी वही लगायेगा?
सोहन नायक : हाँ, हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : मतलब, जैसा उसका कलर होगा....?
अनिता नायक : ये वाला ड्रेस खरीदेगा तो ये वाली टोपी देंगे। अगर ये वाला खरीदेगा तो इसके साथ ये वाला देंगे।
सोहन नायक : लाल रंग का।
 
 
मुश्ताक खान : इसको टोपी बोलते हैं?
सोहन नायक : हाँ, टोपी बोलते हैं।
मुश्ताक खान : थोड़ा लगा के बताइये। 
मुश्ताक खान : मतलब, मारवाड़ी लोगों की बोली से आपकी बोली थोड़ी मिलती है?
सोहन नायक : हाँ, मिल जाती है। और कोई दूसरे नहीं जानते। 
मुश्ताक खान : क्या चीज?
सोहन नायक : दूसरे लोग नहीं जानते हमारी बोली।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, वो लोग उसको लम्बाड़ी बोलते हैं। कोई बंजारा बोलते हैं। तो आपके इधर भी लम्बानी या लम्बाड़ी ऐसा कुछ बोलते हैं आप लोगों को?
अनिता नायक : हम लोगों को आदिवासी लोग कहते हैं लमान-लमानिन। 
सोहन नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : लमान-लमानिन बोलते हैं?
सोहन नायक : हाँ। 
अनिता नायक : और हम लोगों को, मेरे मायके की ओर बोलते हैं बैपारी।
 
 
मुश्ताक खान : उधर बैपारी बोलते हैं?
अनिता नायक : हाँ।
मुश्ताक खान : और यहां लमान-लमानिन बोलते हैं। 
अनिता नायक : हाँ, यहाँ लमान-लमानिन बोलते हैं हम लोगों को।
 
 
मुश्ताक खान : उसका मतलब क्या होता है, लमान-लमानिन का?
अनिता नायक : नहीं मालूम। 
सोहन नायक : कैसे मालूम होगा?
मुश्ताक खान : लेकिन वो लोग ऐसा बोलते हैं। 
सोहन नायक : यहाँ तो नायक लोग बोलते हैं ना। अब ऐसा कैसे बोलते हैं, यह तो वही जानें। 
अनिता नायक : लेकिन हम लोगों को, उधर बस्तर की ओर बैपारी बोलते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : उधर व्यापारी बोलते हैं, क्योंकि आप लोग ये सामान-वामान बेचते हैं?
अनिता नायक : हाँ। 
सोहन नायक : हाँ।
 
 
मुश्ताक खान : तो क्या कीमत देते हैं इनके बदले में आपको वो लोग?
सोहन नायक : कीमत?
अनिता नायक : गपा की कीमत होती है बाजार में साढ़े चार सौ, चार सौ (रुपये)। एक की कीमत होती है।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, और ये....?
अनिता नायक : और इनकी कीमत होती है दो सौ, ढाई सौ।
 
 
मुश्ताक खान : टोपी दो सौ, ढाई सौ। और लहँगा?
अनिता नायक : बड़े वाले लहँगे की कीमत होती है पन्द्रह सौ, सोलह सौ। 
 
 
मुश्ताक खान : और ये चोली?
अनिता नायक : दोनों की कीमत एक साथ होती है। 
मुश्ताक खान : दोनों की कीमत एक साथ होती है।
अनिता नायक : और एक लेने पर पाँच सौ।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, ऐसा देते हैं। तो ये पैसा तो अभी देने लग गये होंगे। पहले क्या देते थे?
अनिता नायक : पहले भी पैसे ही देते थे। 
सोहन नायक : पैसे ही देते थे। 
 
 
मुश्ताक खान : वो धान, अनाज...ये सब बकरी-कुकरी नहीं?
सोहन नायक : नहीं।
 
 
मुश्ताक खान : शुरु से ही वो पैसे देते थे?
सोहन नायक : पैसे ही देते थे।
 
 
मुश्ताक खान : और घूम-घूम के आप लोग उधर....?
सोहन नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : बेच रहे थे।
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो ये, मतलब आपने तो उनसे सीख लिया। आपने किससे सीखा था ये?
सोहन नायक : मैंने अपने-आप से सीखा। स्वाध्याय से। दूसरे किसी से नहीं। हमारे पिताजी ने भी सीखा था। पिताजी ने कहाँ से सीखा, यह नहीं मालूम। फिर माँ ने सीखा और उनसे हमने। 
 
 
मुश्ताक खान : तो राजस्थान में जो रहते हैं बंजारा लोग, वो ऐसा काम करते हैं?
सोहन नायक : नहीं करते। उधर नहीं करते। जितने भी लोग हैं, उनमें से कोई भी नहीं करते। बारदा (नामक गाँव) में करते हैं, पाँच मकान (परिवार) के लोग और यहाँ करते हैं चार-पाँच परिवार। 
अनिता नायक : पाँच परिवार करते हैं।
सोहन नायक : पाँच परिवार करते हैं बाकी नहीं करते।
 
 
मुश्ताक खान : और ये कौड़ी कहाँ से लाते हो आप लोग?
सोहन नायक : जगदलपुर से लाते हैं। भद्राचलम् से लाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : भद्राचलम् से लाते हैं?
सोहन नायक : हाँ। कभी-कभी लाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो ये भद्राचलम् से आपको कैसे पता लगा कि....?
सोहन नायक : तो सेठ को मालूम है। वहाँ से मँगाते हैं सेठ। 
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ। 
सोहन नायक : उधर बसें जाती हैं। तो सेठ बस वालों के माध्यम से रुपये भेज कर बोरी में भरवा कर मँगाते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो ये कौड़ी जो है, वो भद्राचलम् से आती है?
सोहन नायक : हाँ, भद्राचलम् से आती है।
 
 
मुश्ताक खान : और ये टोकनी आप लोग बनाते हो या .......?
सोहन नायक : हम बनाते हैं। अच्छा, टोकनी? टोकनी हम खरीदते हैं धुरवा से। 
 
 
मुश्ताक खान : धुरवा लोग बनाते हैं?
सोहन नायक : हाँ, धुरवा लोग बनाते हैं टोकनी।
 
 
मुश्ताक खान : यहाँ, इस गाँव में भी बनाते हैं?
सोहन नायक : नहीं। इस गाँव में नहीं। 
अनिता नायक : एक टोकरी की कीमत चालीस रुपये है। 
सोहन नायक : एक टोकरी (गपा) की कीमत चालीस रुपये है। 
मुश्ताक खान : चालीस का है।
अनिता नायक : और ये, एक की कीमत बीस रुपये है। 
मुश्ताक खान : अच्छा। तो वो धुरवा लोगों से आप लोग लेते हैं।
सोहन नायक : धुरवा लोग बनाते हैं। हम .......
 
 
मुश्ताक खान : और जो माड़िया लोगों के लिये सिर पर रखने का जो.....?
सोहन नायक : वो भी धुरवा लोग ही बनाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : वो लोग भी धुरवा लोगों से ही बनवाते हैं?
सोहन नायक : हाँ। धुरवा लोग ही बनायेंगे। तीन कोनों वाला। 
 
 
मुश्ताक खान : तीन कोना?
सोहन नायक : तीन कोना। 
 
 
मुश्ताक खान : तो उसको क्या बोलते होगे तुम धुरवा को?
सोहन नायक : सिंगारी टुकना। 
 
 
मुश्ताक खान : सींग वाली टुकना? 
सोहन नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : तो वो बना कर देंगे।
सोहन नायक : किन्तु धुरवों में भी सभी नहीं जानते इसे बनाना। कुछ ही लोग जानते हैं। एक या दो।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, सारे धुरवा नहीं जानते?
सोहन नायक : नहीं, नहीं। नहीं जानते।
 
 
मुश्ताक खान : वो बनाने वाले एक-दो लोग ही हैं?
सोहन नायक : हाँ, वही बनायेंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : तो कौन है इधर वो बनाने जानने वाला?
सोहन नायक : वो धुरवा इधर है, फूलपदर की तरफ। 
मुश्ताक खान : फूलपदर।
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : कोई पारा (मोहल्ला) है ये?
सोहन नायक : हाँ, ये तो यहाँ से बहुत दूर है। बहुत दूर होगा। 
 
 
मुश्ताक खान : तो उससे बनना के ले आते हो?
सोहन नायक : हाँ। पैसे दे कर लाते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा?
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो इसका कोई नाप रहता है? कितने नाप का बनाना है?
अनिता नायक : वो लोग बनाते हैं। 
सोहन नायक : वो बनाते हैं, जानते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : नहीं। ये जो चोली और लहँगा होता है, उसका नाप?
सोहन नायक : हाँ, तो ऐसा है। इसको नापते हैं ऐसा और काट देते हैं। यहाँ जोड़ है यहाँ से। ये अलग बाँह। ये अलग है। ये देखिये, ये। ये अलग-अलग है। ये देखिये।  
अनिता नायक : दोनों को जोड़ के ये वाला अलग बनता है। ये फिर अलग बनाते हैं। 
सोहन नायक : अलग बनाते हैं।
मुश्ताक खान : अच्छा।
सोहन नायक : फिर हाथ से सिलते हैं सब को। 
अनिता नायक : इसे भी अलग बनाते हैं। 
सोहन नायक : सब अलग-अलग है। 
अनिता नायक : इसको और इसको जोड़ते हैं। इसके बाद फिर इसको जोड़ते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। ये जो कंगूरा-कंगूरा बनाया हुआ है, इसको क्या बोलते हैं?
अनिता नायक : इन्हें?
मुश्ताक खान : सफेद रंग का जो ये कंगूरा बनाया है?
अनिता नायक : कापा, कापा। 
मुश्ताक खान : इसको कापा बोलते हैं। 
सोहन नायक : हाँ, कापा बोलते हैं। 
अनिता नायक : कापा मोड़े हैं, बोलते हैं। 
मुश्ताक खान : कापा बोलते हैं। 
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। और ये जो सफेद धागे से ऐसे डिजाईन डाला है, उसको क्या बोलते हैं?
अनिता नायक : कौड़ी।
 
 
मुश्ताक खान : ये तो कौड़ी है। नहीं, ये जो सफेद धागे से...?
सोहन नायक : वो डोरा है, डोरा। 
अनिता नायक : ये वाला?
मुश्ताक खान : हाँ। नहीं, उसका कुछ नाम होता है?
अनिता नायक : इसको खड़पा बोलते हैं।
मुश्ताक खान : तो ये खड़पा हो गया और वो कोपा?
अनिता नायक : कापा। 
मुश्ताक खान : कापा। 
अनिता नायक : कापा बोरे हैं, बोलते हैं। 
मुश्ताक खान : कापा मोड़े और ये खड़पा। और ये.....
अनिता नायक : और ये वाला पेटी। 
मुश्ताक खान : ये पेटी है।
अनिता नायक : हाँ, ये छाती।
 
 
मुश्ताक खान : वो छाती है? और ये फूल को क्या बोलते हो, कौड़ी लगाने के ......?
अनिता नायक : ये वाला तो यों ही बनाते हैं लेकिन कुछ नहीं बोलते। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। इसमें क्या ऊन का धागा लगाते हो?
अनिता नायक : हाँ। 
सोहन नायक : हाँ। 
अनिता नायक : पहले आईना को धागा के साथ बाँधे हैं। सफेद धागे के साथ। उसके बाद ऊन लगाये हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा, पहले जो शीशा लगा के उसके साथ धागा लगा के....
अनिता नायक : शीशा लगा के धागा के साथ बाँधते हैं। उसके बाद फिर ऊन को। 
सोहन नायक : ऊन को। ऐसा करते हैं। 
अनिता नायक : उसके बाद कौड़ी। 
 
 
मुश्ताक खान : उसके बाद, सबसे बाद में कौड़ी लगाते हैं?
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : इस फूल का भी कोई नाम रखा है?
अनिता नायक : नाम नहीं रखे हैं। बस, ऐसे ही है। 
मुश्ताक खान : लहँगा का कैसा होता है, वह भी थोड़ा बता दो। 
अनिता नायक : क्या?
मुश्ताक खान : वो लहँगा का क्या नाम है उसमें? वो भी बता दो। 
अनिता नायक : ये वाला? ये वाला मीटर हिसाब....।
मुश्ताक खान : नहीं, नीचे वाले को क्या बोलेंगे?
सोहन नायक : घेरो। 
अनिता नायक : इसको बोलते हैं, घेरो। 
मुश्ताक खान : घेरो।
अनिता नायक : और ये, इसको बोलते हैं लेको। 
मुश्ताक खान : लेको?
सोहन नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : अच्छा, हाँ। 
अनिता नायक : ये वाला। ये वाला घेरो। 
 
 
मुश्ताक खान : ये घेरो। और बीच वाला भाग?
अनिता नायक : ये कपड़ा। 
मुश्ताक खान : ये कपड़ा रहेगा?
अनिता नायक : जोड़ते हैं। 
मुश्ताक खान : मतलब, घेरो....?
अनिता नायक : ....भी बनाते हैं अलग से और ये वाला भी अलग से बनाते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा, वो बाद में इसके ऊपर लगा दिया जाता है?
अनिता नायक : फिर बाद में, इसको, ये वाले को मीटर हिसाब देख के.....। 
सोहन नायक : फाड़ेंगे।
अनिता नायक : इसको फाड़ेंगे और फिर जिस प्रकार साड़ी कुचियाते हैं, उसी तरह इसे भी कुचियाते हैं। इसके बाद ..............।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा। और टोपी में कैसे करते हैं?
मुश्ताक खान : इसका क्या नाम? इसके भाग का अलग-अलग कुछ नाम है?
अनिता नायक : इसे चार कोनों में चौकोर चीरते हैं, इस कपड़े को। और इस अस्तर को भी। इसके बाद प्रत्येक कोने को पकड़ कर जोड़ते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, अच्छा। चारों कोनों को जोड़ते हैं?
सोहन नायक : हाँ। जोड़ देते हैं। 
अनिता नायक : इसके बाद ये वाला कापा लगाते हैं। 
मुश्ताक खान : हूँ।
अनिता नायक : फिर इसको लगाते हैं। 
मुश्ताक खान : हूँ। 
अनिता नायक : इसके बाद फिर काँच-कौड़ी लगाते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा। 
अनिता नायक : चार-पाँच...।
 
 
मुश्ताक खान : ऐसा करके इसको जोड़ देते हैं?
अनिता नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : तो अभी, वो जो आप लोग पहले मैंने देखा आन्ध्र प्रदेश के जो बंजारा होते हैं वो इसी तरीके से कपड़े पहनते हैं। 
सोहन नायक : हम भी तो पहनते हैं ना। अभी नहीं पहनते। सभी ब्लाऊज पहनने लगे। पहले ये घागरो-चोली सब पहनते थे। अब नहीं पहनते। सब बदल गया अभी। 
 
 
मुश्ताक खान : आप लोग वैसा कपड़ा नहीं पहनते?
सोहन नायक : टोपली, टोपली। 
 
 
मुश्ताक खान : उसको टोपली बोलते हैं?
सोहन नायक : टोपली। 
 
 
मुश्ताक खान : आप लोग भी पहनते थे पहले?
अनिता नायक : पहनते थे पहले लेकिन अभी नहीं है। 
सोहन नायक : नहीं पहनते अभी। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, मतलब वो जो चीज...उसको टोपली बोलते हैं?
सोहन नायक : हाँ, टोपली बोलते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : और वो जो कपड़ा होता है उसको क्या बोलते हैं?
अनिता नायक : घागरा-चोली। 
 
 
मुश्ताक खान : वो घाघरा-चोली। आप लोग भी पहनते थे?
सोहन नायक : हाँ, हाँ, हाँ। 
अनिता नायक : पहले पहनते थे। 
मुश्ताक खान : लेकिन अभी उसका.....
अनिता नायक : अभी नहीं..। 
सोहन नायक : अब छोड़ दिये उसको। अब ब्लाऊज-साड़ी पहनते हैं। बदल गया ना साहब, क्या करेंगे? 
मुश्ताक खान : टोपली के अलावा भी तो ऐसा गले में पहनने का......
सोहन नायक : हाँ, वो पैसा। माला।
अनिता नायक : माला पहनते हैं...।
 
 
मुश्ताक खान : उसको क्या बोलते हैं?
सोहन नायक : पहुँची, नाँगमोड़ी। 
 
 
मुश्ताक खान : नागमोड़ी?
सोहन नायक : नाँगमोड़ी। 
 
 
मुश्ताक खान : बाकेया भी पहनते हैं?
सोहन नायक : हाँ, बाँकेया भी पहनते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : तो वो सब गहना जो राजस्थान के बंजारा पहनते हैं, आन्ध्र प्रदेश के बंजारा पहनते हैं, आप लोग भी पहनते थे पहले? 
सोहन नायक : जी। 
 
 
मुश्ताक खान : अभी वो बन्द कर दिया?
सोहन नायक : बन्द कर दिया। 
अनिता नायक : अब नहीं हैं वे सामान।
सोहन नायक : वे सामान नहीं हैं अभी।
 
 
मुश्ताक खान : कब से बन्द हो गया होगा?
अनिता नायक : वो....।
सोहन नायक : वो बहुत वर्षों से बन्द है। 
 
 
मुश्ताक खान : कितने साल हो गये होंगे?
सोहन नायक : वो बन्द हो गया.....।
अनिता नायक : दस-बारह साल....।
सोहन नायक : पहले हो गया। वो....।
 
 
मुश्ताक खान : पहले वो सब चलता था?
मुश्ताक खान : पहले जो बंजारा लोग गहना पहनते थे, वो नहीं पहनते आप? क्या हो गया?
अनिता नायक : नहीं, नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : आपके पास कोई पुराना गहना है?
अनिता नायक : नहीं है। 
 
 
मुश्ताक खान : ये?
अनिता नायक : यही वाला है।
 
 
मुश्ताक खान : इसको क्या बोलते हैं?
अनिता नायक : टोपली। 
 
 
मुश्ताक खान : टोपली बोलते हैं। कहाँ पर पहनते थे इसे?
अनिता नायक : यहाँ। ऐसे।
 
 
मुश्ताक खान : ऐसे पहनते थे?
अनिता नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो इसके साथ चैन जुड़ा हुआ होता था क्या?
अनिता नायक : नहीं। धागा रहता है। धागा। 
सोहन नायक : धागा रहता था वहाँ और बाल के साथ में.....। 
अनिता नायक : गूँथते हैं। 
सोहन नायक : गूँथते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, उसको बालों के साथ में गूँथ के.....?
सोहन नायक : हाँ, बालों के साथ में। 
 
 
मुश्ताक खान : लेकिन अभी ये सब थोड़ा बन्द हो गया?
अनिता नायक : बन्द हो गया। 
सोहन नायक : गूँथ के और बाल यहाँ दोनों ओर रहेंगे। ये दो-दो। बालों को गूँथने पर इधर से ला कर यहाँ फँसा देते हैं, पीछे। 
 
 
मुश्ताक खान : ताकि वो लटका रहे?
सोहन नायक : हाँ। 
अनिता नायक : इस तरह लटका रहेगा। 
 
 
मुश्ताक खान : और चेहरे पर क्या-क्या पहनते थे? नाक में भी कुछ पहनते थे?
सोहन नायक : नाक में वो फुल्ली पहनते थे। 
मुश्ताक खान : अच्छा। 
सोहन नायक : हाँ, फुल्ली।
 
 
मुश्ताक खान : और गले में?
सोहन नायक : गले में माला...।
अनिता नायक : लाल वाला बड़ा-बड़ा मिलता था न, वही वाला माला।  
मुश्ताक खान : अच्छा। 
सोहन नायक : और वो पैसा-माला। रुपया। एक रुपया, अठन्नी वाले सिक्कों की माला रस्सी में फँसा कर गूँथ कर पहनते थे। अभी तो सब बन्द कर दिया। 
मुश्ताक खान : अभी सब छोड़ दिये। 
सोहन नायक : सब छोड़ दिये। 
 
 
मुश्ताक खान : जो आप लोगों का शादी का रसम होता है, वो वही रसम है जो पहले होता था?
अनिता नायक : नहीं, नहीं। अब बदल गया। 
 
 
मुश्ताक खान : वो भी बदल गया?
सोहन नायक : बदल गया। 
 
 
मुश्ताक खान : अब क्या हो गया? पहले क्या होता था?
अनिता नायक : पहले तो सात-आठ दिनों की शादी होती थी। अभी तो एक ही दिन में खतम कर देते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : तो वो सात-आठ दिन करते क्या थे?
अनिता नायक : एक-एक रसम को एक-एक दिन में खतम करते थे। सात-आठ दिनों की शादी करते थे पहले। अभी तो नहीं करते हैं। अभी एक ही दिन में खतम कर देते हैं। 
सोहन नायक : अभी आप जो बोल रहे थे, टोपली के बारे में। इसे भी देते थे। वो घागरा देते थे सब। वो साड़ी-वाड़ी नहीं देते थे। उसको पहना कर निकालते थे दुल्हन को। 
 
 
मुश्ताक खान : दुल्हन को वो पहनाते थे?
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : तो अभी...?
सोहन नायक : अब नहीं देते हैं। नहीं देते हैं। अब तो सब सोना-चाँदी, साड़ी-ब्लाऊज, आलमारी-पेटी यही तो देते हैं और कुछ नहीं देते। 
 
 
मुश्ताक खान : तो ये जो काम है आपका, ये हरेक लड़का-लड़की को सीखना जरूरी नहीं है? 
अनिता नायक : सीखना चाहें तो अच्छा ही है। लेकिन यहाँ तो नहीं सीखेंगे।
 
 
मुश्ताक खान : यहाँ कम लोग सीखते हैं?
अनिता नायक : यहाँ हम एक ही घर-परिवार के हैं जो ये काम करते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा।
अनिता नायक : एक ही परिवार के। 
 
 
मुश्ताक खान : तो ये काम आप कर के थोड़ा बताएँ। कैसे नाप लेंगे, कैसे क्या करेंगे? 
अनिता नायक : ये वाला दो मीटर का एक घाघरा। छोटा वाला। एक घाघरा बनेगा इतने कपड़े से। दो मीटर कपड़े से। चार हाथ का एक घाघरा। फिर यहाँ का, जैसे यहाँ से फाड़ेंगे इसे तो जो यहाँ का बचेगा इतना चौड़ा ये वाला तो इतना निकाल देंगे। और बचेगा इधर का, तो इसका घाघरा बना देंगे। 
मुश्ताक खान : अच्छा।
अनिता नायक : और ये वाला बचेगा न इसका, तो उसका चोली बना देंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : चोली बना देंगे?
अनिता नायक : टुकड़ा-टुकड़ा कर के लगायेंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : फिर सिलाई कैसे करते हो?
सोहन नायक : ये देखिये, सिलाई इस तरह करते हैं। 
अनिता नायक : ये वाला जैसे मैंने बताया। ये वही है जिसे जोड़ा गया है। इसको इस तरह पकड़ कर जोड़ते हैं। 
अनिता नायक : यह देखिये। इतना अधिक रखते हैं।
अनिता नायक : ये देखिये। इस तरह बनाते हैं चोली के लिये। 
मुश्ताक खान : हाँ।
अनिता नायक : ये है छोटा वाला। इसे थोड़ा छोटा बनाते हैं। 
अनिता नायक : यह देखिये। 
अनिता नायक : यह देखिये, ऐसा बनाते हैं चोली के लिये। 
मुश्ताक खान : अच्छा। 
अनिता नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : ये बना हुआ...?
अनिता नायक : यह देखिये, ऐसे। 
अनिता नायक : लाल और नीला। 
मुश्ताक खान : हूँ।
अनिता नायक : दोनों को जोड़ते हैं। ऐसे। इसे इस तरह जोड़ते हैं। 
मुश्ताक खान : हूँ। 
अनिता नायक : इसके बाद फिर इस तरह मोड़ते हैं। एक को चार बार सीते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : एक को चार बार सीना पड़ता है?
अनिता नायक : हाँ। 
सोहन नायक : यहाँ से। 
अनिता नायक : यही हो गया है तीन बार। 
मुश्ताक खान : हाँ।
अनिता नायक : इसके अन्दर और भी है सिलाई। 
 
 
मुश्ताक खान : कैसे करेंगे? थोड़ा कर के बताएँ। 
अनिता नायक : ये देखिये। खड़पा बोलते हैं इसको। 
मुश्ताक खान : हाँ। 
अनिता नायक : इसको एक बार इस तरह सीते हैं। ऐसे।
मुश्ताक खान : हाँ।
अनिता नायक : लाल वाले को ज्यादा करते हैं और नीला वाले को थोड़ा कम। 
मुश्ताक खान : हाँ।
अनिता नायक : क्योंकि इसे अधिक बनायेंगे तो ये दब जायेगा।
मुश्ताक खान : अच्छा।
अनिता नायक : फिर इसको इस तरह बनाते हैं एक बार। ऐसे। 
मुश्ताक खान : हाँ।
अनिता नायक : ऐसे। तो ये वाला पूरा हो जायेगा तब फिर इसको पकड़ कर ऐसे मोड़ते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा।
अनिता नायक : ये वाला एक ही में चार बार होता है। 
मुश्ताक खान : मेहनत का काम है?
अनिता नायक : ये वाला चार बार। यहाँ तो है तीन।
मुश्ताक खान : हूँ।
अनिता नायक : और इधर-इधर ये वाले हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : कोने वाले में तीन दफे करेंगे?
अनिता नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : बीच वाले में चार दफे करेंगे।
अनिता नायक : हाँ, एक ही में। 
 
 
मुश्ताक खान : और शीशा कैसे रखते हैं? जरा थोड़ा शीशा का काम और कौड़ी का थोड़ा बताएँ। 
अनिता नायक : यहाँ तो ऐसा शीशा रखते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : और ये धागा भी? अलग रहता है ये?
अनिता नायक : हाँ, बीस रुपये। अब पचीस रुपये। 
 
 
मुश्ताक खान : मोटा धागा इस्तेमाल करते हैं?
अनिता नायक : मोटा वाला धागा।
 
 
मुश्ताक खान : क्या बोलते हैं इसको?
अनिता नायक : डोरा। बन्दूक छाप डोरा दो, कहने पर देते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : बन्दूक छाप बोलते हैं?
सोहन नायक : ये देखिये धागा।
अनिता नायक : ये देखिये धागा। 
मुश्ताक खान : उसको थोड़ा शीशे को लगा के दिखाइये। 
सोहन नायक : इसको कैसे बाँधेंगे, धागा को? इधर से ऐसा करेंगे। ऐसा यहाँ लायेंगे। यहाँ से डालेंगे यहाँ। यहाँ से कहाँ लायेंगे? इधर लायेंगे। 
मुश्ताक खान : हूँ। 
सोहन नायक : यहाँ से फिर इधर लायेंगे, नीचे से। यहाँ ले जायेंगे। यहाँ से फिर यहाँ डालेंगे और यहाँ लायेंगे। ऐसा बाँधेंगे। बाँधने के बाद ऊन में धागा के साथ कपड़े को लपेट कर.....।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, मैंने एक जगह देखा था कि वो देव-गुड़ी में उन्होंने ऊपर से एक शामियाना जैसा इसका ही कपड़े का उन्होंने डाला हुआ था। वो लोग भी बनाते हैं? उआड़ी बोलते हैं या क्या बोलते हैं उसको?
अनिता नायक : डोली?
मुश्ताक खान : हाँ, डोली के ऊपर कपड़ा होता है। 
अनिता नायक : हाँ। 
मुश्ताक खान : आँगा के ऊपर भी मैंने वो कपड़ा देखा है.....
अनिता नायक : हाँ, हाँ। वो बनाते हैं हम लोग। 
सोहन नायक : हम भी बनाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : क्या बोलते हैं उसको?
सोहन नायक : उसको? डोली का कपड़ा बोलते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : डोली का कपड़ा तो हिन्दी है। तुम्हारा भाषा में वो लोग माड़िया लोग क्या बोलता है उसको?
सोहन नायक : माड़िया लोग ऐसे ही बोलते हैं। डोली का कपड़ा। 
अनिता नायक : डोली का कपड़ा....
सोहन नायक : डोली ही बोलते हैं। 
अनिता नायक : डोली, आँगा।
सोहन नायक : आँगा। 
कोई अन्य : लाठी रहता है एक। 
अनिता नायक : लाठी में बाँधते हैं।
 
 
मुश्ताक खान : गुटाल रहता है, क्या रहता है वो?
कोई अन्य : गुटाल में भी चढ़ता है। 
 
 
मुश्ताक खान : और ये डाँग-बैरक होता है, उसमें भी बनाते हैं?
सोहन नायक : बनाते हैं। वो छोलका। वो लाठ में पहनाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : लाठ में पहनाने के लिये? वो भी बना के देते हो?
सोहन नायक : हाँ, वो भी। सब बनाते हैं। 
अनिता नायक : वह देखिये, वैसे ही बाँधते हैं। 
सोहन नायक : वैसे ही बाँधते हैं। 
मुश्ताक खान : थोड़ा इसको बना के दिखाइये। 
 
 
मुश्ताक खान : पहले इसको, शीशे को रखेंगे?
अनिता नायक : यह देखिये। 
 
 
मुश्ताक खान : इधर दिखा दीजिये। अच्छा, ये पहले चार तरफ चार टाँका लगायेंगे?
सोहन नायक : तब वो बैठेगा अन्यथा वह निकल जायेगा। 
मुश्ताक खान : हूँ। 
सोहन नायक : डबल लगायेंगे वहाँ। डबल धागा।
मुश्ताक खान : अच्छा।
अनिता नायक : अभी सिंगल में लगा रहे हैं। 
सोहन नायक : सिंगल में लगा रहे हैं। 
अनिता नायक : इसमें लगाना होगा तो डबल धागा लगायेंगे। 
सोहन नायक : डबल-डबल डालते हैं। धागा के ऊपर सब रहेगा अन्यथा निकल जायेगा।
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा? तो बाकी सब जगह सिंगल धागा, एक धागा लगायेंगे लेकिन काँच को फिक्स करेंगे, काँच लगायेंगे तो डबल धागा लगायेंगे?
अनिता नायक : हाँ। नहीं तो टूट जाता। 
सोहन नायक : टूट जाता। निकल जाता। 
 
 
मुश्ताक खान : तो ऐसा कपड़ा आप लोग अपने लिये कोई नहीं बनाते?
अनिता नायक : नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : बस! देव-धामी के लिये वहाँ माड़िया लोगों के लिये बना के देते हैं?
सोहन नायक : और कोई ले जाते हैं। शौक के लिये रखते हैं। जगदलपुर में भी तो ले जाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : हाँ?
सोहन नायक : वो आफिस में। ये कपड़ा, गपा पूरा ले जाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, ये जो हैण्डीक्राफ्ट बोर्ड वाले जो बेचते हैं दुकान में वो?
सोहन नायक : हाँ, हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : वो भी आप लोगों से इसको लेते हैं?
सोहन नायक : हाँ, लेते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा।
सोहन नायक : लेते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : उससे कुछ फायदा हुआ आपको?
सोहन नायक : फायदा होता है तभी तो ले जाते हैं। बिना फायदा के थोड़े ही ले जायेंगे? 
 
 
मुश्ताक खान : आपको भी उससे फायदा हो रहा है?
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : साल भर में कितना बेच लेते होंगे वो?
सोहन नायक : वो आने पर देते हैं। पटाड़ी, टोपी, घागरो, चोली, गपा आदि ले जाते  हैं। बाद में कहाँ ले जाते हैं, पता नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : तो अभी नयी लड़कियाँ सीख रही हैं ये काम?
सोहन नायक : नहीं। 
 
 
मुश्ताक खान : तो खतम हो जायेगा ऐसे में तो ये?
अनिता नायक : हाँ?
 
 
मुश्ताक खान : अगर कोई सीखेगा नहीं तो....?
सोहन नायक : सीखेंगे ना। बच्चे लोग सीख रहे हैं। 
कोई अन्य : .....काम चलता है ना सर परिवार में।
सोहन नायक : परिवार में सब सीख रहे हैं। 
मुश्ताक खान : हाँ?
सोहन नायक : हाँ। 
अनिता नायक : ये देखिये। ऐसा बनाते हैं।
सोहन नायक : ऐसा बनाते हैं।
अनिता नायक : ऊन में बनाने पर अच्छा दिखता है। धागा का उतना अच्छा नहीं दिखता। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा? तो ऊन कैसे करेंगे अभी इसके ऊपर?
सोहन नायक : ये देखिये। ऐसा बाँधेंगे इसके ऊपर।
अनिता नायक : ऐसा बाँधेंगे आईना। फिर बाद में इसी ऊन से ऐसा बनायेंगे।
सोहन नायक : गोल बनायेंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : तो इस तरीके से ये पूरा बन जाता है? इसमें भी छोटे-बड़े बनाते हैं?
सोहन नायक : हाँ। छोटे भी बनेंगे, बड़े भी बनेंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : तो ये केवल माड़िया लोग खरीदते हैं या कोई दूसरे जाति के लोग भी?
सोहन नायक : दूसरे भी खरीदते हैं। 
अनिता नायक : दूसरे भी खरीद सकते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : कभी खरीदते हैं?
सोहन नायक : हाँ। 
 
 
मुश्ताक खान : कौन-कौन जाति के लोग खरीदते हैं?
अनिता नायक : हिन्दू लोग भी खरीदते हैं। 
सोहन नायक : सब, सब। पूरे लोग खरीदते हैं। जब बीमार पड़ जाते हैं तब सिरहा-गुनिया की शरण में जाते हैं और हम इस तरह की वस्तु देंगे, इस तरह मनौती मानते हैं। ठीक हो जाने पर ये वस्तुएँ ले कर चढ़ाते हैं। बाजार से भी खरीदते हैं। हम तो बाजार भी जाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, घर तक भी आते हैं लोग?
सोहन नायक : हाँ। घर में भी ले जायेंगे। 
 
 
मुश्ताक खान : तो पहले लोग ऐसा ज्यादा खरीदते थे या आजकल ज्यादा खरीदते हैं?
सोहन नायक : नहीं। पहले से चला आ रहा है। 
 
 
मुश्ताक खान : नहीं। मैं ये पूछता हूँ, पहले ज्यादा खरीदते या आज ज्यादा खरीदते हैं?
अनिता नायक : पहले वो वाला कलर ला कर मिलाते थे। 
सोहन नायक : मिलाते थे कलर में। 
अनिता नायक : अभी खाली नया वाला लाते हैं। 
सोहन नायक : अभी नया लाते हैं।
अनिता नायक : अभी ये लाल वाला है। लाल वाला कलर ला के पुराना वाला मिला के लगाते हैं अस्तर। और काला वाला होता तो काला वाला कलर ला के मिलाते। 
 
 
मुश्ताक खान : पहले क्या करते थे?
अनिता नायक : पहले ये वाला ज्यादा नहीं मिलता था। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, ये कपड़ा ज्यादा नहीं मिलता था?
सोहन नायक : नहीं मिलता था। 
अनिता नायक : और ये वाला भी ज्यादा नहीं निकलता था। ये वाला पुराना वाला डालते थे। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, पुराना कपड़ा डालते थे?
सोहन नायक : रंगीन करते थे। 
 
 
मुश्ताक खान : तो बाहर नया कपड़ा लगाते थे पहले अन्दर पुराना कपड़ा चलाते थे?
सोहन नायक : हाँ, चलाते थे। 
 
 
मुश्ताक खान : लेकिन अभी दोनों नया...?
अनिता नायक : अभी दोनों नया ही है। सौ-डेढ़ सौ वाला साड़ी खरीद कर लाते हैं। 
 
 
मुश्ताक खान : अच्छा, तो अन्दर साड़ी का कपड़ा लगाते हैं?
अनिता नायक : हाँ, अन्दर में। और ऐसे छह मीटर, बारह मीटर वाले भी बताते हैं बड़े वाले घाघरे बनाने के लिये। तो वो लोग आठ-पन्द्रह दिनों पहले बताने पर हम बना देते हैं। 
मुश्ताक खान : अच्छा, अच्छा। 
सोहन नायक : क्योंकि बड़ा वाला जल्दी नहीं बन पाता है, न।
मुश्ताक खान : हाँ, हाँ। 
अनिता नायक : ये वाला, वो बड़ा वाला। जैसे छह मीटर, बारह मीटर वाला बनाते हैं तो वह ज्यादा जल्दी-जल्दी नहीं बन पाता। 
मुश्ताक खान : अच्छा?
अनिता नायक : इसमें आ कर चबाते हैं न तो इसमें बड़ा वाला जल्दी नहीं बन पाता। 
 
 
मुश्ताक खान : उसमें थोड़ा टाईम लगता है?
अनिता नायक : हाँ, टाईम लगता है। ये वाला गुच्छा ज्यादा होता है, न। बड़ा वाला में। 
मुश्ताक खान : हाँ?
अनिता नायक : तो ज्यादा टाईम लगता है चबाने के लिये।