बैगा समुदाय की महिलाएं परिवार की आजीविका के लिए जंगलों से लकड़ी लाकर बेचने का काम करती हैं, उन कस्बों और छोटे शहरों के पास यदि बैगा जनजाति निवास करती है तो उनके लिए आजीविका का बेहतर साधन होता है| पर ये काफ़ी मेहनत का कार्य है| सुबह 4 बजे से महिलाये लकड़ी लेने जंगल जाती हैं और 6 से 7 बजे के दौरान वापस आती हैं| फिर लकड़ियों को लेकर बेचने जाती हैं और उससे जो पैसा मिलता है उससे घर के लिए सामान खरीद कर वापस जाती हैं, और खाना बनाती हैं (सौजन्य: अमीन चार्ल्स)

कान्हा मैकल के आदिवासी जनजातियों की भोजन विविधता

in Interview
Published on: 14 August 2019

अमीन चार्ल्स (Ameen Charles)

अमीन चार्ल्स ने कॉलेज की पढाई जबलपुर और बालाघाट से पूर्ण की, वर्ष 1990 से मंडला स्थित एक स्वैच्छिक संगठन के साथ जुड़कर मंडला जिले में आदिवासी समुदाय के साथ कार्य किया और वर्ष 2000 में बालाघाट में स्वैच्छिक कार्य करना प्रारंभ किया | वर्ष 2000 में अमीन चार्ल्स को इंटरनेशनल यूथ फाउंडेशन की ओर से महिलाओं की शिक्षा पर कार्य के लिए यूथ एक्शन नेट अवार्ड प्राप्त हुआ, इंडियन एचीवर्स फोरम की ओर से समाज कार्य के लिए सम्मानित किया गया |

कान्हा मैकल के आदिवासी जनजातियों की भोजन विविधता समझने के लिये साक्षात्कार

 

कान्हा मैकल के आदिवासी जनजातियों की भोजन विविधता को जानने के लिए माह दिसंबर 2018 और जनवरी 2019 में इस अध्ययन के अंर्तगत चार व्यक्तियों के साथ साक्षात्कार किये गये। साक्षात्कार में विषय से संबंधित प्रश्न पूछे गये। साक्षात्कार किये गये व्यक्तियों का विवरण निम्नलिखित हैं-

श्रीमती रामकली सैयाम ग्राम मोहरई, मध्य प्रदेश की ग्राम पंचायत की उपसरपंच हैं तथा गोंड समुदाय से हैं
श्री प्रताप सिंह मरकाम ग्राम धनियाजोर, मध्य प्रदेश से कृषि हैं तथा बैगा समुदाय से हैं
श्री केसर सिंह ताराम ग्राम खजरा मध्य प्रदेश से कृषि हैं तथा गोंड समुदाय से हैं।
लोक सिंह ग्राम धीरी विकासखंड मध्य प्रदेश से कृषि हैं तथा गोंड समुदाय से हैं।

सभी से अलग-अलग प्रश्नों के आधार पर समझने का प्रयास किया गया कि गोंड और बैगा समुदाय में भोजन की विविधता क्या है और वर्तमान में उपलब्धता का स्तर कैसा है[1]

अमीन चार्ल्सखाने के कौन से तौर तरीके हैं? आपने आपके बचपन में जो खाना खाया था क्या आज भी आप वही खाना खाती हैं?

रामकली सैयामखाना में तो पहले और आज के में बहुत अन्तर आ गया हैं, जो खाना हमारी दादी खिलाती थी वो खाना आज के खाना में अन्तर आ गया हैं। पहले हमारी दादी खखसा, थलका[2] की सब्जी (बनाती थीं जो बचपन में खाई हैं पर अब तो वे सब्जियाँ दिखाई नहीं देतीं) हमारी दादी भैंस चराने जाती थीं और जंगल से रोज सब्जी लेकर आती थी नये-नये तरीके से बनाती थीं परन्तु आज हम वही सब्जी बनाते हैं तो अलग-ही स्वाद आता है, कभी बाँस का पतला वाला कवला (छोटा और नरम) वाला करील (bamboo sprouts) लाती थीं आज जंगलों में ये सब नहीं दिखते, भेलवा (Semecarpus anacardium), चार[3], तेंदु (Diospyros virginiana) हैं जो दुकानों में देखते हैं पर जंगलो में नहीं हैं। कुछ वर्षों पहले (बड़ी-बड़ी कंपनियों ने) बड़ी मात्रा में वनोपज की खरीददारी की और लोगों ने अधिक बेचने के चक्कर में ये सब जड़ सहित खत्म कर दिये, जैसे देशी आवला जंगलों में बहुत कम हो गया है पेड़ को काटकर फलों को तोड़ने से बहुत नुकसान हुआ है।

.चा.: खाना बनाने के तरीके में आदिवासी समुदाय और दूसरे समुदाय के बीच में क्या अन्तर पड़ा?

रा. सै.: जैसे पहले हमारी दादी मिट्टी के बर्तन में सादा, बिना मिर्च, मसाला, तेल का (खाना) बनाती थीं पर अब तो कढ़ाही, गंजी[4], कूकर, गैस ले लिये इसलिये भी खाने के स्वाद में बदलाव आ रहा है।

.चा.: खाने में ऐसी कौन सी चीज है, जो पहले नहीं खाते थे और आज खाने लगे?

रा. सै.चाय, नाश्ता, शादी-बारसा[5] में नहीं चलता था अब चलने लगा है सरबद (शर्बत), पूड़ी-सब्जी पहले ये सब नहीं चलता था। पीने की बात जैसे शराब पेज[6], मडिया (millet[7]) का घोल डिलीवरी के पहले महिला को पिलाते थे। पेज, मक्का की और गेहूँ का दलिया कोई दवा कुछ नहीं दिया जाता था। अब पेज बहुत कम मात्रा में बनाने लगे हैं साथ में भाजी बनाया करते थें चरोटा (Cassia tora), चेच[8], कोयलार (Bauhinia purpurea) बनते थे परन्तु अब नहीं मिलते हैं।

.चा.: कितना हिस्सा समुदाय में सब्जी जगंल से आता था?

रा. सै.आधा से ज्यादा हिस्सा आता था मई जून वाले माह में भाजी (leafy vegetables) पिहरी (मशरूम) लाते थे, जंगलो में मिल जाती है। गिर्ची कंद भी खाते थे।

.चा.: खटाई के लिये क्या करते थे?

रा. सै.आम को सुखाते थे, नींबू, अमाडी (Hibiscus canabinus) पूरा चीज घर से होता था। अब ये सारी चीजें नहीं मिल रही हैं। अब हमें किसी के घर में नहीं देखते हैं।

.चा.: गोंड और बैगा के खाने में कितना अन्तर हैं?

रा. सै.भाजी, पेज दोनों बनाते हैं पर साफ-सफाई में अन्तर आ जाता है, बनाने के तौर-तरीके अलग हैं।

.चा.: ऐसी कौन सी चीज है जो आने आने वाले समय में और भी कम हो जायेगी?

रा. सै.: तेंदु, चार दाना (चिरौंजी) सब कुछ नहीं मिल रहा है सब काट कर जड़ से समाप्त कर रहे, जैसे कांदा (tuber)- गिर्ची कांदा है नहीं मिल रहा है।

.चा.: पिहरी कितने प्रकार की उपयोग करते हैं?

रा. सै.: बास पिहरी, सरई पिहरी, भोंडों पिहरी, पुटपुडा[9] हैं।

.चा.: यदि इसे लंबे समय तक के लिये रखना है तो क्या करते हैं?

रा. सै.: लंबे समय तक रखना है तो सुखा कर रखना होता है बारिश के दिनों में चूल्हे के ऊपर सुखाते हैं, बाँस का पर्रा[10] में रस्सी बांधकर थोड़ा उपर सुखाते हैं दो से तीन दिनों के बाद सूख जाता है।

 

अमीन चार्ल्सआदिवासी समुदाय जो आपका है, आपके जीवन में जंगलों का कितना महत्व है?

प्रताप सिंरकाम: जंगलो में कंद मूल मिलते हैं, शहद, जड़ी बूटी से पहले जीवन सफल होता था, आज के दिनों में सरकारी दवाईयों से और भी स्वास्थ्य बिगड़ता है।

.चा.: भोजन में कितना महत्व है?

प्र.सिं..: जंगल से कंद मूल, कनिया कांदा, गिर्ची कांदा[11], जड़ी बूटियाँ हैं।

.चा.: आदिवासी समाज में खाने की क्या भिन्नताएँ हैं, तौर तरीके कैसे हैं?

प्र.सिं..: पहले से खाना में बदलाव आया है, पहले सादा भोजन खाते थे अब सब्जी-भाजी में खाद वाले खाने से स्वाद खराब होता है।

.चा.: आदिवासी समाज में क्या-क्या चीज ज्यादा खाया जाता हैं?

प्र.सिं..: दाल, चावल, चेच भाजी, चरोटा भाजी ज्यादा खाया जाता हैं।

.चा.: आदिवासी समुदाय में शाकाहारी, मांसाहारी भोजन कहाँ से मिलता है?

प्र.सिं..: जंगलों से, घर से जैसे मछली, नदियों से केकड़ा मिलता है, पर बहुत कम मिलता है क्योंकि नदियों में रेत कम होते जा रहा है इसलिए केकड़ा की मात्रा नहीं मिल पा रहा है। पहले की अपेक्षा अभी कोई भी चीज कम मात्रा में पाया जाता है, पहले से अभी के फसल में भी अन्तर आया हैं जैसे कोदो, कुटकी, मडिया, मक्का, जवार, बाजरा (मिलेट/millet के प्रकार) पाया जाता था धान में सरिया धान, पीसो धान, छोरय धान, लोचई धान, पीसो धान सेरो धान जल कोंगा धान[12], मिलता था, अब तो सारा हाइब्रिड धान पाया जाता है।

.चा.: आप जो भोजन करते हो, उसकी गुणवत्ता को कैसे नापते हो आप कि भोजन अच्छा नहीं हैं?

प्र.सिं..: हाइब्रिड, यूरिया, से पहले जो सादा भोजन स्वाद का था अब रसायनिक वाला भोजन होता है, फसल ज्यादा होता है पर स्वाद नहीं होता है।

.चा.: भोजन जो खाते हो शाकाहारी/मांसाहारी कौन से ऐसे पदार्थ हैं, जो कच्चे खाये जाते हैं?  

प्र.सिं..: कंद में शकरकंद, अनाज में कोई नहीं, भूंज कर कांदा को खाते हैं, स्वाद एवं पौष्टिक होता है, गिर्ची कांदा को भूंज कर और पका कर भी खाया जाता है।

.चा.: कौन से कांदे हैं जिसकी सब्जी खाते हैं?
 

प्र.सिं..: रताल कांदा (yam), धूमका कांदा, कोचई (Colocasia esculenta) हैं जिसकी सब्जी बनाकर खाते हैं।

.चा.: ये जो कांदे हैं पहले जो मिलते थे आज भी उतने ही मिलते हैं क्या?

प्र.सिं..: मेहनत करने में उतने ही मिलते हैं, मेहनत नहीं करने में कुछ नहीं मिलता है। जो कांदे जंगलों मे पाये जाते थे वे कांदे जंगलों में ही मिलते हैं।     

 

अमीन चार्ल्स: आदिवासी समुदाय के खाना बनाने के तरीके क्या हैं, अभी क्या बदलाव आया है?

लोसिं: पहले की अपेक्षा खाना बनाने के तरीके में बदलाव आया है, जैसे कोंदो, कुटकी, भात, बेसन, चना, मक्का, बाजरा, बेसन- अब बेसन नहीं भजिया (पकौड़े) खाते हैं।

.चा.: आप जो भोजन खाते हो इससे स्वास्थ्य के उपर भी प्रभाव पड़ेगा यह सोच कर खाते हैं?

लो. सिं.: भोजन जो हम ठंड के समय में ज्यादा खाते हैं, गर्मी, बारिश के समय कम खाते हैं गर्मी में पानी ज्यादा पीते हैं।

.चा.: ऐसी कौन सी चीज हैं जो बचपन के समय खाये अब नहीं मिलते हैं?

लो. सिं.: जंगल में गिर्ची कांदा, बेल, जंगल आम, तेंदु, चार (चिरौंजी), चूरना (जंगल में मिलने वाला एक फल) मिलता था पर अब कम मिलता है।

.चा.: अभी बाज़ार में कौन-कौन से फल मिलते हैं?

लो. सिं.: जाम, केला, सेव मिलता है परंतु हमने हमारे बचपन में जाम खाये केला नहीं खाये तेंदु, सूरी[13], चार, चूरना मिलते थे।

.चा.: आदिवासी समुदाय और दूसरे समुदाय हैं, जिसमें खाने में कितनी भिन्नता है?

लो. सिं.: खाना एक समान सा बन रहा पहले अलग था अभी अलग है, समाज में बैठने से आदिवासी समुदाय पर प्रभाव पड़ा है।

.चा.: आदिवासी समुदाय में पीने की कौन-कौन सी चीजें हैं?

लो. सिं.: शराब पीते थे, अब बंद है, शराब महुआ (Madhuca longifolia) का बनाते हैं, पेज पीते हैं ।

.चा.: आदिवासी और बैगा समुदाय में खाने में कितना अन्तर है?

लो. सिं.: अन्तर नहीं लगा है, अब दोनों समुदाय का खाना समान ही है।

 

अमीन चार्ल्सआपके बचपन में ऐसी कौन सी महत्वपूर्ण चीज खाये थे और आज आपको देखने को नहीं मिल रहा है?

केशर सिंताराम: हमारे बचपन में जो खाना हम खाते थे, कोदो, कुटकी, मक्का, मडिया, खाते थे चावल की खेती कम होती थी गेंहू की फसल ज्यादा होती थी। मडिया जो है विटामिन है, पौष्टिक अनाज है, जिसे पीसकर महुआ उबालकर आटा के साथ लड्डू बनाते थे। जो भाप में बनता था जो आज नहीं बनता है, मडिया, मक्का का पेज, दलिया, रोटी बनाते थे, जिससे पौष्टिक भोजन मिलता था और बीमारी कम होती थी।

.चा.: आदिवासी समुदाय में मासांहार का कितना महत्व था?

के.सिं.ता.: मासांहार का महत्व तो था पर आय के स्त्रोत न होने के कारण कम था। मुर्गी, बकरा, अंडा, मछली, केकड़ा खाया करते थे। केकड़ा अब नहीं पाया जाता है क्योंकि किसान अपने खेत में दवा डाला करते हैं जिससे ये खत्म होते जा रहे हैं, इसलिए आज नहीं पाये जाते हैं। और इनकी संख्या में कमी आने लगी है।

.चा.: चूहा को लोग क्यों पकड़ते थे? खाने के लिए या कोई और वजह थी?

के.सिं.ता.: चूहा नुकसान पहुंचाते थे इसलिए उन्हे पकड़ा जाता था, खाने के लिए नहीं पकड़ा जाता था।

.चा.: मासांहार पहले ज्यादा था या अभी?

के.सिं.ता.: समय-समय में खाते हैं।

.चा.: पहले कौन-कौन से जंगली जानवर खाते थे?

के.सिं.ता.: साभंर, चीतर (चीतल), मोर, वन मुर्गी (जंगली मुर्गी) खाया करते थे जो पहले प्रतिबंध नहीं था, जो हमारा भोजन था जंगल से, खेत से, शिकार करके हमें प्राप्त होता था।

.चा.: जंगल से कौन सी सामग्री थी खाने के लिए?

के.सिं.ता.: फल-फूल मांस, कंद, पिहरी थे, जो हमें जंगलों से प्राप्त होते थे।

.चा.: शहद पहले उपलब्ध था?

के.सिं.ता.: हाँ उपलब्ध था हम जंगल जाकर निकालते थे, बड़े मधुमक्खी का निकालते थे, रोटी के साथ शहद खाते थे। पहले का जो पुराना शहद है दवा के काम आता है, परंतु अभी शहद कम पाया जाता है।    

.चा.: आप जब समाज में बैठते हो तो कभी चर्चा करते हैं, क्या जो खाने पीने की चीजें थीं इन्हें बचाने की आवश्यकता है?

के.सिं.ता.: हाँ हम कभी बैठते हैं तो चर्चा होती है, कि खेतों में पेड़-पौधे लगाएँ इस प्रकार की बात होती है जैसे बैगा समुदाय के साथ भी बैठते हैं तो उन्हें भी यह बात कहते हैं वो भी हमारी बात सुनते हैं, समाज में एक सा भोजन आज बनने लगा है।

 


[1] ये साक्षात्कार अगस्त 2018 से सितम्बर 2018 के दौरान मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के बैहर विकासखंड के लगभग 20 गाँवों, मंडला जिले के मवई विकासखंड के 18 गाँवों, डिंडोरी विकासखंड के समनापुर विकासखंड के पाँच गाँवों और कवर्धा विकास खंड व बोडला विकासखंड के तीन गाँवों में गोंड तथा बैगा समुदाय से बातचीत के क्रम में किये गए| यह उनमें से कुछ साक्षात्कारों के संपादित अंश हैं| इन सभी साक्षात्कारों में उल्लिखित से बहुत सी स्थानीय/ जंगली फल व सब्ज़ियाँ ऐसी हैं जो अब खाई नहीं जातीं या उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए इन सभी के वैज्ञानिक/वानस्पतिक नाम ठीक-ठीक पता नहीं कए जा सके हैं।

[2] कुछ स्थानीय, जंगली सब्जियाँ।

[3] चार या चार दाना- चिरौंजी (Buchanania lanzan)  जिसके फल से चिरौंजी निकाली जाती है।

[4] खाना बनाने का बर्तन या पात्र जिसे स्थानीय भाषा में गंजी कहते हैं।

[5] बच्चे के जन्म लेने के सात दिनों के बाद का आयोजन जिसे स्थानीय बोली में छठी भी कहा जाता है।

[6] यह एक प्रकार का स्थानीय पेय है जिसे मक्का या चावल उबालने के बाद बचे हुए पानी सी या फिर स्थानीय मोटे अनाज (millet) जैसे- कोदों (Paspalum scrobiculatum or cow grass) या कुटकी (Paspalum scrobiculatum) से बनाया जाता है।

[7] यानी मोटा अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा आदि।

[8] ‘चेंच’ पेड़ की पत्ती, जिसकी सब्ज़ी बनाई जाता है।

[9] मशरूम के नाम, स्थानीय बोली में मशरूम अलग-अलग प्रकार के होते हैं, उपरोक्त सभी मशरूम के प्रकार हैं।

[10] बाँस का बनाया हुआ एक प्रकार का पात्र जो काफ़ी बड़ा होता है जिससे पड्डा भी कहा जाता है।

[11] Tubers या कंद के कुछ स्थानीय प्रकार या variety जो यहाँ के जंगलों में मिलती है।

[12] ये धान या चावल की अलग अलग प्रजातियाँ हैं जिनके स्थानीय नाम हैं।

[13] एक जंगली फल।