ग्रामीण आदिवासी समुदाय में भोजन की व्यवस्था एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया है| चाहे खेत में उगाया गया अनाज ही क्यों ना हो, उत्पादन में लगने वाला लंबा समय, मौसम की तमाम चुनौतियों के साथ घर में अनाज पहुँचने तक आदिवासी किसान काफ़ी मेहनत करता है, पहले खेती किसानी से कम और वनों से भोजन की ज़रूरतें अधिक पूरी होती थीं| अब खेती किसानी के काम अधिक बढ़ गए हैं क्योंकि जंगलों तक पहुँच और जंगलों से भोजन सामग्री निकालना मुश्किल काम होता जा रहा है|
मध्यप्रदेश के बालाघाट, मंडला, डिंडोरी और छत्तीसगढ़ के कवर्धा (कबीरधाम) जिलों के बैगा और गोंड आदिवासी बहुलता वाले क्षेत्र में भ्रमण किया गया और उनके परंपरागत भोजन सामग्री वनों से प्राप्त होने वाले भोज्य पदार्थ जिसमे कंद, भाजियाँ और प्रसंस्करित भोज्य पदार्थो को देखने और उनका फोटो दस्तावेज किया गया| अध्ययन के दौरान कान्हा मैकल के क्षेत्र से ली गयी फोटो में प्रयास किया गया है कि फोटो विषयाधारित हों एवं कुछ ठोस जानकारी दे सकें| मुख्यत: आदिवासी समाज की पहुँच से दूर हो रहे खाद्य पदार्थों को फोटो दस्तावेज़ीकरण करने का प्रयास किया है| फोटो जुलाई से दिसम्बर के बीच लिए गए हैं| समुदाय के साथ-साथ जंगलों का भ्रमण किया गया और कंदों की पहचान कैसे की जाती है इस पर चर्चा की गई एवं भाजियों की उपलब्धता और उनको सुखा कर रखने की प्रक्रियाओं को समझने का प्रयास किया गया है| काफ़ी ऐसी खाद्य सामग्री हैं जिसकी फोटो इस अवधि में नहीं ली जा सकी जिसमें अलग-अलग तरह की पिहरी (मशरूम) शामिल हैं, पर सूखे हुए मशरूम के फोटो लिए गए हैं| इसके अतिरिक्त, सभी कंद भोजन के रूप में ही उपयोग में लाये जाएँ ज़रूरी नहीं कुछ दवाई के रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं जैसे निरबिस कांदा|
जंगलों से खाद्य पदार्थ संग्रहण करना एक चुनौती पूर्ण कार्य है| इसमें काफ़ी समय लगता है और जानकार व्यक्ति ही इन्हें संग्रहित कर सकता है| कौन सा कांदा कितनी गहराई में मिलता है और खुदाई (खोदने) का तरीका क्या होगा, या क्या होना चाहिए ये जानना भी जरुरी है| अगर जानकारी नहीं है खोदने के उपकरण से कंदों का नुकसान हो जाएगा| एक बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि नयी पीढ़ी तक इस तरह के ज्ञान का हस्तांतरण नहीं हो रहा है|