राकेश तिवारी- नमस्कार आज हमारे बीच देवार घुमंतू जाति के बहुत ही प्रसिद्ध कलाकार, जो छत्तीसगढ़ राज्य ही नहीं अपितु पूरे देश में अपना प्रदर्शन नृत्य का, गीत का कर चुकी हैं ऐसे होनहार कलाकार हमारे बीच है रेखा देवार जी। नमस्कार रेखा जी।
रेखा देवार- नमस्कार।
Chhattisgarhi (Hereafter, C)- राकेश तिवारी- तो आप बताओं कि आप कहां रहिथव।
Hindi (Hereafter, H)- राकेश तिवारी - तो बताइये कि आप कहां रहते है?
C- रेखा देवार- मैं ह ग्राम पंचायत कुकसदा म रइथंव, तहसील पथरिया ये, थाना भी पथरिया ये, जिला मुंगेली।
H- रेखा देवार - मैं ग्राम पंचायत कुकुसदा में रहती हूं, तहसील पथरिया, थाना भी पथरिया और जिला मुंगेली है।
C- राकेश तिवारी - ये जोन आप देवार गीत गाथव अउ नृत्य करथव, के साल के उमर ले करत हव अउ कइसे प्रेरणा मिलिस आप मनला।
H- राकेश तिवारी - ये जो आप देवार गीत गाते और नृत्य करती हैं, कितनी वर्ष की उम्र से कर रही है और कैसे प्रेरणा मिली आपको?
C- रेखा देवार- हमर इहां बबा रिहिसे मोर दाई के ओकर ददा तेन हा मांदर बजात रिहिसे, अउ ओ समे मेहा सात-आठ साल के रेहे हवं। त ओहा का करय गांव-गांव जावय। त ओकरे संग म मैं हा जाववं मांदर के संग म।
H- रेखा देवार - हमारे नाना थे, मेरी मां के पिता जी जो मांदर बजाते थे। उस समय मेरी उम्र लगभग सात-आठ वर्ष की थी। वो गांव-गांव जाते थे, तो मैं भी उनके साथ जाती थी मांदर के साथ।
C- त ओ समय, अभी तो आनी-बानी के कपड़ा पहिनथे। ओ समे छोटे-छोटे लुकरी राहय। लुगरी। बने बारह-तेरह हाथ के उही ल कई भांवर लपेट लेववं। अउ लपेट के न हमर डोकरी दाई नाचय ओकरे संग म नाचवं। ताहन हमर घर, दाई ह काहय नहीं पढ़ाबो-लिखाबो अउ ताहन अपन बाबू ल काहय तैहा झन लेगे कर अइसे कइके, त मैंहा मानबेच नइ करवं। चल देवव। त बहुत दिन ले ओकर संग म न त ओ पाए पाएच लेग जवय। त ककड़ी गयेन, उही मेर तिर म हमर गांव तिर म सरगांव तिर म। ककड़ी गयेन त अब हमर डोकरी दाई ह पुरानेच गवइया रिहिसे त ओहा पेटी तबला म गावय अउ मोला नई आवय गाय ल।
H- तो उस समय, अभी तो अनेक प्रकार के कपड़े पहनते है पहले छोटी - छोटी लगुरी (छोटी साड़ी) हुआ करती थी। छोटी साड़ी लगभग बारह-तेरह हाथ की, उसे ही कई फेरे लपेट लेती थी। और पहनकर मेरी दादी नाचती थी उसी के साथ मैं भी नाचने लगती। उसके बाद मेरी मां ने कहा- हम पढ़ाई-लिखाई करायेंगे। मेरी मां अपने पिता जी को कहती थी कि इनको मत ले जाया करो। मैं मानती ही नहीं थी, चली जाती थी। बहुत दिनों तक तो मुझे गोद में उठा कर ले जाते थे। ककड़ी गांव गये, ककड़ी हमारे गांव के पास का ही गांव है सरगांव के पास। ककड़ी गये तो हमारी दादी तो पुरानी गायिका ही थी और वो हारमोनियम तबला में गा लेती थी और मुझे नहीं आता था।
C- त अही समय का किथे चंदैनी गोंदा के गीत सुनन कान म ओ सब बढिय़ा-बढिय़ा गीत। त एकात ठू ठीन महू ल गाये ल आवय। थोर-थोर जानवं, त लेना बेटी तहू गा अइसे कइके। त ओ एक ठी गीत ल गायेव मैं हा-
H- तो उस समय चंदैनी गोंदा की अच्छी-अच्छी गीते सुनते थे। एक-दो गीत मुझे भी गाने आने आते थे, थोड़ी-थोड़ी ही जानती थी। तो लो ना बेटी तुम भी गाओं कहते थे लोग। तो एक गीत गाया मैंने-
C- आ जाबे आ जाबे रे आ जाबे रे... अमरइया के तिर बइरी आ जाबे रे...
आ जाबे आ जाबे ना.. आ जाबे ना..
आ जाबे आ जाबे ना.. आ जाबे ना..
अमरइया के तिर बइरी आ जाबे ना।।
आम ल देख के जिवरा डोले ना, जिवरा डोले ना... जिवरा डोले न...
सुवा ल देख के कोइली बोले न... कोइली बोले न... कोइली बोले न...
कूकू के बोली समा जाबे रे... अमरइया के तिर बइरी आ जाबे ना।
H- आ जाना आ जाना आ जाना रे... अमराई के पास बैरी (बैर रखनेवाला) आ जाना रे...
आ जाना आ जाना... आ जाना रे...
आ जाना आ जाना... आ जाना रे...
अमराई के पास बैरी आ जाना...
आम को देख जीव डगमगाये, जीव डगमगाये...जीव डगमगाये ना...
तोता को देख कोयली बोले ना, कोयली बोले ना... कोयली बोले ना...
कूकू की बोली में समा जाना रे... अमराई के पास बैरी आ जाना रे...
C- इही ल पेटी तबला म गाओ। तब गांव म तो होवत रिहिस हावय त सबे झन कोनो दस पैसा देवय कोनो चार आना देवय कोनो पांच पैसा देवय अइसे करके तीन-चार रूपिया होगे रिहिसे। त टूप ले एक झन उहे के राऊत पारा के राहय सियनहा ह। ओकर नाव लखन नाव रहिस तेन ह खूब ले पा लेवय। सात साल कतेक रहेवं। खूब ले पांव लेवय तहान हाथ ल धर-धर के चिलहर पइसा मन ला लाववं।
H- इसी को हारमोनियम और तबले में गाती थी। गांव में हो रहा था और जब मैं गायी तो कोई दस पैसा देते कोई चार आना देते तो कोई पांच पैसा देते थे, ऐसे करते तीन-चार रूपये हो गये थे। तभी लपक कर एक राउत पारा(यादव मुहल्ला) का बुजुर्ग व्यक्ति मुझे अपने गोद में उठा लेते थे, लखन नाम था उनका। सात साल की तो थी। गोद में उठा लेते थे फिर चिल्हर पैसों को उठा उठाकर लाती थी ।
C- ओकर बाद ताहन गांव आयेव न त हमर इहां बाबू के दाई डोकरी दाई खतम होइस त बहुत हमर एकदम गरीबी स्थिति आगे। त हमर इहां बड़े दाई रिहिसे, पार्वती काहय। लाला, केदार येमन पहली तबला पेटी म खूब नाचय। मंडला जिला जावय। ताहन ले ओ दाई ह पार्वती ह कथे भेज देना नोनी ल मोर संग म सिखही नाचा-कूदा अइसे कइके। ताहन बाबू कहिथे नहीं भइगे नइ जावय नाचे-कूद ल कइके तव दाई कइथे ले जान देना सिखही अइसे कइके। त माने छै सात महीने ले उकरे संग म चल देव।
H- उसके बाद गांव आये तो पिता जी की मां, हमारी दादी का देहांत हो गया। उसके बाद तो हमारी बहुत ही गरीबी स्थिती आ गई। हमारे यहां बड़ी मां थी, पार्वती नाम की। जो लाला, केदार के साथ तबला हारमोनियम में खूब नाचती थी। मंडला जिला भी जाती थी। उसके बाद वो बड़ी मां पार्वती मेरी मां को कहती है भेज दो न लड़की को मेरे साथ सीखेगी नाच-गाना। पिता जी कहते थे अब बस नहीं जायेगी नाचने-कूदने। तो मां ने कहा ठीक है जाने दो सीखेगी। तब फिर छ: सात महीने तक उनके साथ चली।
C- त येती बर दाई गोदन-उदना गोदे ल जावय अउ भीख मांग-मांग के सब झन ल पूरा पोसय। त ओती बर गयेन त उहू डहर ओमन पहिलीच सब उहू मन नाचत-कूदत रिहिन त दूनिया भर के लंदर-फंदर। ओती बर जाके ओमन दारू-गांजा सब पियत राहय त सुनिच हमर बाबू अउ भइया ह ताहन तुरंत जाके मोला मंडले ले आइस। हमन अइसन म अपन बेटी ल नइ राखन अइसे कइके।
H- इधर मां गोदना आदि गोदने जाती और भीख मांग-मांग कर सबका पालन-पोषण करती थी। उधर मैं गई थी तो बाकी सब लोग पहले से ही नाचना-कूदना कर रहे थे, तो सब लोग इधर-उधर की नशा दारू-गांजा सब करने लगे, थे इस बात का पता जब मेरे पिता और भाई को हुआ तो मंडला जाकर मुझे ले आये कि हमारी बेटी को ऐसे में नहीं रखेंगे कहते हुए।
C- ओति ले आयेव ताहन फेर, मोर मन म एक ठो विचार आइस के हमू एक ठो पालटी खोलबो अइसे करके। पालटी खोलबो काहत मैं दगउरी आगेंव झुमुक ममा मन सो बर। त ओ समे मैहा मांदर के कोई गीत, कोई कोई कुछ नइ जानत रेहेव। त दगउरी आयेव तहान झुमुक ममा कथे भांची त चलन पालटी खोलबो त ऐती जाबो बकरकुदा डहर नाचा पालटी। त करीबन मैं एक साल ले पंदरह आदमी ल पोसे हवं। माने मोरे संग म जावय।
H- वहां से आने बाद मेरे मन में एक विचार आया की हम लोग भी एक पार्टी शुरू करेंगे। पार्टी शुरू करेंगे करके दगउरी (गांव) आई झुमुक मामा के पास। तो उस समय मैं मांदर के गीत के विषय में कुछ भी नहीं जानती थी। दगउरी में मामा ने भी कहा की चलो भांजी नई पार्टी शुरू करते हैं, इधर चलते हैं बकरकुदा (गांव) की ओर बहुत नाचा पार्टी है। तो लगभग मैं एक साल तक पंद्रह आदमी को पालती रही, मेरे साथ ही चलते थे गांव-गांव।
C- त गांव-गांव म पूरा, बकरकूदा म तो पंदरा दिन के नाच होइसे रास असन। त सब्बे झन चाउर दार उसूल कर करके देवय। उही ल रांधन उही ल खान उहें नाचन। त उहां पंदरा दिन ले नाचा होइस। जब उहां ले निकलेव ताहन थेमहापर गायेव, मल्हार म होइस कबरकूदा म होइस अइसे करत-करत मैहा पिढ़री गयेव। इहां मस्तूरी के आगे म पिढ़री। पिढ़री गये रेहेव त तीन दिन के उहां नाच रिहिसे। दू दिन के नाच डर रेहेवं त येती बर हमर घर भइया अउ भउजी ह हमन एक भाई बहिनी होथन। मोर भाई नाव पुनउ हे।
H- बकरकुदा में तो पंद्रह दिन का नाच हुआ रहस जैसा। लोग चावल दाल वसूल करके देते थे। उसी को वहीं बना कर खाते और नाचते थे। पंद्रह दिन तक नाच हुआ। वहां से निकल कर फिर थेमहापर(गांव) गयी, मल्हार (गांव) में हुआ फिर बकरकुदा में हुआ ऐसे करते-करते मैं पिढ़री(गांव) गयी। यहां मस्तूरी के आगे में पिढ़री है। पिढ़री गई थी तो वहां तीन दिन का नाच था। दो दिन का नाच हो चुका था और इधर हमारे भैया और भाभी, हम लोग एक भाई और बहन होते हैं। मेरे भाई का नाम पुनउ है।
C- त माने डेढ़ दू महीना होय रिहिसे मोर भतीजा होय, रोज मोर भइया ह नांगर जोते ल जावय उहां लावय कोदई-उदई तेन दर-उर के खवय माने एकदम गरीबी स्थिति हमर रिहिसे। अब दाई मोर संग म रिहिसे। दाई ओ कोति बर ले चाउर उर धर के आवय अमराय ल। पिढ़री म दू दिन के होय रिहिसे नाच ह। अउ एक दिन काकथे बांचे रिहिसे नाच ह तइसने मोर भतीजा ह खतम होगे। भतीजा खतम होइस ताहन भइया ह हमन ल खोजत-खोजत गइस। लइका ल माने माटी दइस ताहन हमन ल खोजत गइस त उहां देखित तहान खाये पिये नइ राहन, रोना गाना।
H- डेढ़ दो माह का रहा होगा मेरा भतीजा। मेरा भाई हल चलाने जाता था वहां से कोदई (एक प्रकार का अन्न) की कुटाई पिसाई कर खाते थे। मतलब इतनी गरीबी स्थिती थी। मां मेरे साथ थी, जो उधर से दाल-चावल छोड़ने आती थी। पिढ़री में दो दिन का नाच हो चुका था, एक दिन का और बाकी था कि इतने में मेरे भतिजे का देहांत हो गया। भतीजा की मृत्यु के बाद भैया हम लोगों को ढूंढते हुए आये।बच्चे का अंतिम संस्कार करने के बाद। वहां पहुंचने के बाद सबका रोना-गाना शुरू हो गया, खाना-वाना नहीं खाये थे।
C- त जेकर घर म रहे हावन हमन ह सतनामी पारा ये त रोये गावेय त कथे का होगे बेटी अइसे कइके माने रांधन पसावत राहन। ताहने कथवं बाबू मोर भतीजा खतम ह होगे, भइगे हमन ह घर जाबे अइसे करके। त कथे बेटी ठीक हे जाबे तोला घर जाये ल नइ काहन ये मेर खबर कर डारेहन दू चार गांव नाच होवथे कइके त आज भर नाचबे। त मैं कथवं कइसे नाचहवं बाबू महू ह लाहू धरे हवं। त कथे बेटी तै कठवा के छाती अउ पथरा के आंखी करके तै नाच तो तोर भतिजा के काम ल हमन करबो।
H- जिसके घर रूके थे हम लोग सतनामी मोहल्ले में, वो रोना—गाना सुनकर पुछने लगे क्या हुआ बेटी मैंने कहा बाबू जी मेरे भतिजे का देहांत हो गया है और हम लोग अब नाच गा नहीं सकते। तब उन्होंने कहा कि ठीक है बेटी तुमको जाना है तो जाओं लेकिन आस—पास के दो-चार गांव में खबर कर चूके हैं कि नाच हो रहा है, तुम आज बस और नाच लो। मैंने कहा इस दुख में मुझसे नहीं होगा बाबू जी। फिर उन्होने कहा कि बेटी तुम लकड़ी की छाती और पत्थर की आंख करके नाचो तुम्हारे भतिजे का काम हम करेंगे।
C- अइसे करके तव भइया ह रात कन उही मेर बइठे राहय, रात भर नाचेव। बड़े बिहनियां ओहा एक खाड़ी लंबर म धान दिस अउ दू काठा राहेर दिस, तीन काठा तिवरा दिस, एक काठा मसूर दिस अउ कथे बेटी जा मोर तरफ से। अउ सात सौ पइसा दिस। येले तै जा अपन भतीजा के काम कर।
H- इस तरह मैं रातभर नाची और भैया वही पर बैठे रहे। सुबह होते ही वो एक खंडी (लगभग ६० किलो) धान दिये और दो काठा (काठा लकड़ी का बना हुआ अनाज नापने का पात्र जो लगभग तीन किलो में भरता है।) अरहर, तीन काठा तिवरा, एक काठा मसूर दिये और कहां लो बेटी सब मेरी ओर से। और साथ में सात सौ रूपये भी दिये कि जाओं और अपने भतिजे का क्रियाकर्म करो।
C- धान उन ल बोह के आगे मस्तुरी म कुटवायेन। कुटा के ताहन फेर बिलासपुर आयेन। बिलासपुर ले चकरभट्टा। चकरभट्टा ले हमन मुड़ बोहे-बोहे सब समान ल धरके। कुकुसदा आयेन, ओ समे नइ चलत रिहिस गाड़ी मोटर। इहां आयेन ताहन सब काम-उम करेन ताहन फेर ककड़ी म ताहन नाचे ल गयेव। अइसके करके नाचत-नाचत कहा मैं पउसरी आयेव। ताला पउसरी म नाच होइस। ताला पउसरी म रात भर नाचेवं।
H- धान आदि को सिर पर रख कर चलते हुये मस्तुरी आये धान की कुटाई करवाने (धान से चावल निकालने की प्रक्रिया)। कुटाई कराने के बाद फिर बिलासपुर और वहां से चकरभट्टा। चकरभट्टा से सब सामान को सिर पर रखकर कुकुसदा आये, उस समय मोटर गाड़ी नहीं चलता था। वहां सब क्रियाकर्म किये। उसके बाद फिर ककड़ी (गांव)में नाचने गये। इस तरह नाचते-नाचते मैं पउसरी (गांव)आयी, ताला पउसरी में नाच हुआ रात भर का।
C- त उहा पठान रहिसे हवय, पठान-पठानीन ए ओमन डोकरी-डोकरी उकर बाल-बच्चा नइ रिहिसे अउ एकके घर के रिहिसे, ओमन मरगे। त ओ रात भर मोर गीत ल सुनय, गाववं नाच पार्टी म रेहेवं त। परी गीत गाववं, जोक्कड़ गीत गाववं। सब उकरे संग म जइसे भी अब ओ समे तो कोई ये नइ रिहिसे। त रात भर सुनिस अउ बड़े बिहनिया राउत ल कथे- राउत, ओ रात कन नोनी गात रिहिसे तेला बला के लाबे अइसे कहिस। तहान कथे नोनी तोला बलावथे ओ डोकरी-डोकरा मन काबर ए त।
H- वहां एक मुसलमान थे, मियां-बीवी रहते थे। बुजुर्ग थे उनकी कोई औलाद नहीं थी। एक ही परिवार थे आजकल वो नहीं है खत्म हो गये दोनो। तो वो रात भर मेरे गीतों सुने, मैं नाच पार्टी में थी तो गाती थी। परी गीत गाती थी, जोकर गीत गाती थी उन्ही लोगों के साथ, उस समय ऐसा कुछ तो था नहीं। तो रात भर सुनने के बाद सुबह होते ही अहीर को बुलाके कहते है जाओ तो उस लड़की को बुला के लाना जो रात को गा रही थी। फिर वो आये और बोले चलो बिटिया तुम्हे बुजुर्ग पति-पत्नी बुलाये है।
C- गायेव ताहन बइठारिस सुघ्घर बइठ बेटी। ताहन कहा रइथच कइके पुछते ताहन त कतेक दिन होगे नाचत। त मैं कथव जादा दिन नइ होहे डेढ़े-दू साल होहे। त कथे बेटी एक काम कर मोर बात मान कहिस। बहुत अच्छा तोर आवाज हे। बहुत अच्छा तोर कला हे। तै अतका बढ़िया गाये हस मैं रात भर सुने हवं बेटी। अउ मोर आत्मा ह रो डरिस तोर गीत ल सुने हवं त। तै हा एक काम कर कोई अच्छा असन पार्टी म जा। कोनो पार्टी म जाबे न त आजकल नवा-नवा बढ़िया-बढ़िया पाल्टी खुलत हे त तोला गीत सीखे ल मिलही। अच्छा बेवहार करे ल मिलही। अच्छा रही अउ ते गली-गली म नाचत हस बेटी आजकाल के दिन ह कलउ ये। त काकर मन काहे, काकर मन म काहे अइसे करके। त ओ गियान ह मोर मन अइस।
H- मैं गई तो दोनो बड़े प्यार से बिठाये और पूछे कि कहां रहती हो बेटी, कितने दिन हो गया नाचते हुये। मैंने कहा ज्यादा दिन नहीं लगभग डेढ़-दो साल हुआ है। फिर वो कहने लगे मेरी बात मानो बेटी बहुत ही अच्छी तुम्हारी आवाज है, बहुत अच्छी कला है। इतना बढ़िया गाती हो कि मैं रातभर सुनता रहा और मेरी आत्मा रो पड़ी तुम्हारी गीत सुनकर। तुम एक काम करो किसी अच्छी पार्टी में जावो। किसी भी पार्टी में जावो आजकल तो नई-नई पार्टी खुल रही है तुम्हे वहा गीत सीखने को मिलेगा। अच्छा व्यवहार मिलेगा, यहां तुम गली-गली में नाच रही हो आज का समय ठीक नहीं है। किसके मन में क्या है, किसके मन में क्या है। तो वो ज्ञान मेरे अंदर आई।
c- ओ गियान ह मोर म अइस। ओ गियान ह मोर मन म अइस ओकर बाद ताहन मैं हा ककड़ी आगेवं। त ककड़ी म माने, हर समय आबेच करत रेहेन। उहा हमर दाई मन गोदना गोदे ल आवय। बाबू तक बजात रिहिसे हमर सरांगी। बाबू हमर सरांगी बजात रिहिसे। त उहे आयेन न त लोहदा के मन कहिस के रेखा हमन पाल्टी खोलत हन एक ठो नवा अंजोरी ते जाबे धन नहीं। त मैं हा का कहेवं के मैं आकाशवाणी मोर रिकार्डिग करवाहा त जाहा मैं कहेव तुहर संग म, असन मैं ह नई जाववं अइसे कहेवं। त कथे नहीं हां आकाशवाणी म करवाबो अइसे कथे।
H- वो ज्ञान मुझ में आई। ज्ञान प्राप्त होने के बाद मैं ककड़ी आ गई। ककड़ी आते जाते रहती थी वहां मेरी मां गोदना (शरीर की उपरी त्वचा पर सुई चुभोकर बना आकृति) गोदने आती थी। पिता जी भी सारंगी बाजते थे। पिता सरंगिहा (सारंगी बजाने वाला) थे। तब वहां लोहदा(गांव) वालों ने कहा कि रेखा हम लोग पार्टी खोल रहे है नवा अंजोरी तुम जाओगे कि नहीं। तो मैंने कहा आकाशवाणी में मेरी रिकॉर्डिंग करायेंगे तो ही मैं आऊंगी, तो उन लोगो ने कहा हां रिकॉर्डिंग भी करवाएंगे।
C- अब इंकर माने गुरूजी मनके पहिली से रिहरसल चल राहय। इंकर रिहरसल चलत राहय ताहन बलइस उही लोहदा वाले मन के संग म मैं आयेव। त लोहदा वाले मन के संग म आयेव न त येकर मन के रोजके रिहरसल गुरूजी मन के। देखिन ताहन आयेवं ताहन पांव पलौटी सब सबके। ताहन गुरूजी पुछिस मोला तै पढ़े-लिखे हस कहिके त मोला त, नहीं नइ पढ़े लिखे हवं कहेवं। चल त एकात ठन अपन मन पसंद गीत सुना कहिस त उही फेर गीत ल गायेव.... आ जबे आ जबे अमरइया के तिर बइरी आ जबे। अइसे करके।
H- इनका रिहर्सल भी चल रहा था मलतब गुरूजी लोगों का। रिहर्सल चल रहा तो बुलाए, मैं लोहदा वालों के साथ आयी। पहुंच कर देखी तो सभी के पैर छुये तब गुरूजी पूछे पढ़ी-लिखी हो की नहीं। मैंने कहा नहीं। तो कहने लगे चलो एकाध मन पसंद गीत सुनाओ। फिर मैंने उसी गीत को गायी कि ...आ जाना आ जाना आ जाना रे... अमराई के पास बैरी आ जाना रे... इस तरह।
C- ताहने ह कथे हमन गीत देबो तेन गा डरबे धन नहीं। त गुरू जी ल तक कहेव मैहा हमर रिकार्डिंग-उकार्डिंग कराहा गुरूजी तुहर पार्टी म रइबो अइसन नइ राहन अइसे करके त ठीक हे रिकार्डिंग-उकार्डिंग सब हो जही। त पहिली तै गीत ल याद करबे त तो, पढ़े लिखे तो नइ अस। त मै कथव कोनो बतावत जाही त सीख लेहवं अइसे करके। ताहने एक ठो गीत बताइए गुरूजी ह। गढ़ेवाल के, काबर तै मारे नैना बान पिरोहिल दया नइ लागय।
H- तब वो कहने लगे कि हम जो गीत देंगे उसे गा लोगी। तब मैंने गुरूजी से भी कहा कि रिकॉर्डिंग करायेंगे गुरूजी तभी मैं आपके पार्टी में रहूंगी अन्यथा नहीं। गुरूजी भी बोले कि रिकॉर्डिंग भी हो जायेगी लेकिन पहले गीत को तो याद करो, पढ़ी-लिखी भी नहीं हो। मैंने कहा कि कोई बताते जायेंगे तो मैं सीख जाऊंगी। तब गुरूजी ने एक गीत बताया गढ़ेवाल का.... क्यों तुमने मारे नयन बाण पिरोहिल (प्रेमी के लिए संबोधन शब्द) दया नहीं लगा
C- ताहन अपन गइस गुरूजी ह, मैं गाहू तइसने तहू गाबे कहिस।
H- गुरूजी स्वयं गाये फिर कहा कि जैसे मैं गाऊंगा वैसे ही तुम भी गाना।
C- काबर तै मारे नैना बान पिरोही, दया नइ लागय का। मोला तै मारे नैना ...
H- क्यों तुमने मारे नयन बाण पिरोही दया नहीं लगा क्या। मुझे तुमने मारे नयन...
C- काबर तै मारे नैना बान पिरोही, दया नइ लागय का। मोला तै मारे नैना ...
H- क्यों तुमने मारे नयन बाण पिरोही दया नहीं लगा क्या। मुझे तुमने मारे नयन...
C- मोला तै मारे नैना बान, मोला तै मारे नैना बान
H- मुझे तुमने मारे नयन बाण, मुझे तुमने मारे नयन बाण
C- मोला तै मारे नैना बान, मोला तै मारे नैना बान
H- मुझे तुमने मारे नयन बाण, मुझे तुमने मारे नयन बाण
C- मोला तै मारे नैना बान पिरोही दया नइ लगाय का। मोला तै मारे नैना ...
H- मुझे तुमने मारे नयन बाण पिरोही दया नहीं लगा क्या। मुझे तुमने मारे नयन...
C- कथे येला तो मैं कथवं गुरूजी कोनो बतावत जाही एकक पइत पढ़-पढ़ के बतात जाही तव सीख लेहवं। ठीक हे कहे। ताहन जब रिहर्सल करे ताहन आठ दिन, आठ दिन म हमर रिहर्सल। त गांव म पढ़य, कोनो पढ़े राहय तेन ल लेतो येदे गीत ल बता दे भाई अइसे करके। एक कोटवार रिहिस गांव म गोविंद नाव के। त लेन भाई येदे गीत ल बता दे अइये करके। त कइसे सीख जबे वो पढ़े-लिखे नइ आस त अइसे काहय ओहा। मैं कथवं ओला बता न अइसे कइके।
H- मैंने कहा कि गुरूजी कोई बताते जायेंगे एक-एक बार पढ़-पढ़के तो मैं सीख लूँगी। ठीक है कहा उन्होने। तो जब रिहर्सल किये तो आठ - आठ दिन में हमारा रिहर्सल होता। गांव में कोई पढ़े-लिखे होते थे तो उनसे मैं कहती थी कि भैया इस गीत को पढ़ कर बता दीजिए। एक कोटवार थे गांव में गोविंद नाम का। उनको बोली कि भाई ये गीत पढ़कर बताओ तो। उसने कहा कि पढ़ी-लिखी नहीं हो कैसे सीखोगी, मैंने कहा की मैं सुनकर सीख जाऊंगी बताओ।
C- त अभी भी मोर अइसे आदत हावय महराज मोला अइसे गीत देदे न येला पढ़ के सीख कइके न त मै नइ सीखे सकवं। अउ धुन ल बता दिही न त धुन ह दिमाक म रही। तहान तै बताव जा ताहन मैं सीख जाहा। त फेर एक ठो नवा अंजोरी पार्टी खोलेन। त सुमित्रा साहू करके अइस उहां बिलासपुर ले, अइसे करके बहुत झन भीम यादव अउ येदे हमर गुरूजी, सोनउ गुरूजी। अउ फेर अइसे करके पूरा फेर एक ठो पूरा टीम बनायेन सरगांव म।
H- आज भी मेरी आदत है महाराज (राकेश तिवारी) मुझे गीत देदो पढ़कर सीखों करके तो मैं नहीं सीख सकती। हां धुन को बता देंगे न तो दिमाग में धुन रहेगा और आप बताते जाये मैं सीख जाऊंगी। इस तरह एक नई पार्टी शुरू किये। उसमें एक सुमित्रा साहू करके आयी वहां बिलासपुर से। ऐसे करके बहुत लोग आये भीम यादव और हमारे गुरूजी, सोनऊ गुरूजी। ऐसे करके पूरा एक टीम तैयार किये सरगांव में।
C- सरगांव म टीम बनायेन त चार महीना म पूरा रात भर के प्रोग्राम के गीत तइयार कर डरेवं। अउ ऐकेच ठो गावय सुमित्र ह। त फेर नवा अंजोरी बनायेन पालटी ओकर बाद फेर ओ साल ल तो नइ जानव कोन सन ये तेन ल। त पंद्रह अगस्त के प्रोग्राम राखेन बाउली म। 84 ये कथे। 15 अगस्त के प्रोग्राम रखेन त बद्रीसिंह कटरिहा, माधव चंद्राकर अब सब खुशी- खुशी म 15 अगस्त के दिन स्कूल म गायेन।
H- सरगांव में टीम बनाने के बाद चार महीने में मैं पूरा रातभर के लिए गीत तैयार कर डाली और वो सुमित्रा एक ही गीत गाती थी। नई पार्टी नवा अंजोरी बनाने के बाद फिर वो सन् तो मुझे याद नहीं है 15 अगस्त को प्रोग्राम रखे बाउली में। हां गुरूजी 1984 कह रहे है। 15 अगस्त को प्रोग्राम रखे तो बद्रीसिंह कटरिहा, माधव चंद्राकर सभी खुशी-खुशी 15 अगस्त को स्कूल पहुंचे।
C- त ओ समे खड़े-खड़े गाववं। गुरूजी बांसुरी बजावय, त ओ सब लड़की मन तइयार होवत राहय। त ओला कहाय सुमित्र ल तैं गा, मैं ह ओला कहाय तैं गा न, अइसे कइके त ओ कभू गाय नइ रिहिसे बीचारी ह। स्कूल म गायेन त 2 हजार इनाम अउ एक उहे के पंजाबी एक ठो साल दिस माने स्कूल म। ओकर बाद बाउली म प्रोग्राम करने एक सौ अउ एक रूपिया। बाउली म रात भर प्रोग्राम बढ़िया दू तीन घंटा के। त ओमा नाटक तक सीखोय रिहिसे बद्रीसिंह कटरिहा ‘भय के भूत’ अउ ‘ठाकूर की जुबान’।
H- उस समय मैं खड़ा होकर गाती थी। गुरूजी बांसुरी बजाते थे। सभी लड़कियां तैयार हो रही थी। कहती तुम गाओ, मैं कहती सुमित्रा तुम गाओ। तुम गाओ, तुम गाओ चल रहा था। वो तो बेचारी कभी गायी नहीं थी। स्कूल में गायी तो 2 हजार ईनाम और वही एक पंजाबी ने एक शाल दिये स्कूल में। उसके बाद बाउली में प्रोग्राम करने का मिला 101 रूपये। बाउली में बढ़िया रात के दो-तीन घंटे का प्रोग्राम था उसके नाटक भी सिखाये थे बद्रीसिंह कटरिहा 'भय के भूत’ और 'ठाकूर की जुबान’।
C- राकेश तिवारी- ओ समय तै गाना गावत रेहे तव जोन चलत रिहिस पारंपरिक गीत तेला गावत रेहेस का ?
H- राकेश तिवारी- उस समय आप गाना गा रही थी तब जो चल रहा था पारंपरिक गीत उन्हें ही गाती थी क्या?
C- रेखा देवार - नइ गावत रेहेवं पारंपरिक गीत ल सब सीख-सीख के गात रेहेवं। अउ ओकर बाद जब होइस प्रोग्राम 15 अगस्त के ताहन फेर।
H- रेखा देवार- नहीं गाती थी पारंपरिक गीत, सब सीख-सीख के गा रही थी। उसके बाद 15 अगस्त को प्रोग्राम हुआ तो फिर।
C- राकेश तिवारी - त पारंपरिक गीत ल कइसे गाये ल धरेस ?
H- राकेश तिवारी- तो फिर पारंपरिक गीत को कैसे गाना शुरू कर दिये?
C- रेखा देवार - हा त बतावत हवं न। ओकर बाद फेर अइसने-अइसेन हमर पालटी सुरू होगिसे। त भरथरी ल गात रेहेवं मैं ओ समय। फेर भरथरी गुरूजी मन सीखोइस। त सुरूज बाई खांडे के भरथरी ल गावत रेहेंव। घोड़ा रोवय घोड़सार म त उही ल पहिली मैं गाववं। ओकर बाद ताहन मैं भरथरी ल गायेन त हमन ला दिल्ली बुलाइन भरथरी बर, त उहों गायेव भरथरी ल।
H- रेखा देवार - हां तो बता रही हूं न। उसके बाद ऐसे करते हुये हमारी पार्टी शुरू हुई। तो मैं भरथरी (लोक गाथा गायन की एक विधा जिसमें राजा भृतहरि की जीवनी गायी जाती है।)गा रही थी। गुरूजी सिखाये थे सुरूज बाई खांडे की भरथरी 'घोड़ा रोवय घोड़सार म’ इसी को पहले गाती थी। उसके बाद फिर मैं भरथरी गायी तो दिल्ली बुलाये, वहां भी भरथरी गायी।
C- त उहे फेर मोला कहिस के तै देवार जाति के अस तै हा कबर ये भरथरी-उरथरी ल दूसर गीत ल गाथस तै अपन जात के गीत काबर नइ गास अइसे करके। त फेर उहां ले आयेन न त हमर गुरूजी अउ सोनउ गुरूजी अतका जी जान से तन-मन-धन देके लगगे। माने अपने मन जाके मोर सगा घर सीखके आवय देवार गीत ल तेकर बाद मोला सीखोय।
H- फिर वही मुझसे कहा गया कि तुम देवार जाति की हो तो तुम अपना गीत क्यों नहीं गाती। ये भरथरी आदि दूसरों का गीत तुम क्यो गाती हो। वहां से आने के बाद हमारे गुरूजी और सोनउ गुरूजी इतना जी जान से तन-मन-धन देकर लग गये। मतलब मेरे स्वजातिय लोगों के घर जा जाकर देवार गीत सीखकर आते थे और मुझे सिखाते थे।
C- अतका दूनो गुरूजी ह मोर उपर येहा तो मोर बाप बरोबर अउ ओहा मोर पति के रूप म कम देखथवं मोर गुरूजी के रूप म जादा देखथवं। माने ओहा अतका मोला ज्ञान देहे जेन ल मैं कहे नइ सकवं। बहुत ज्ञान दे हावे। अभी भी मेहा सीखतेच हवं किदे अपन जीयत भर अतका मोला सीखोय हे। पूरा मोर देवार जाति म दगउरी गयेन, जिहा काहय तिहा अपन मन पूरा गीत ल सीख के आवय, ओकर बाद मोला सीखोवय। पहिली ओ टेप चलत रिहिसे। कई जगह तो अइसनेहे, उहां जेवरा गयेन त महू गयेव त टेप ल धरके। ये मन चूतिया बनात हे ताहन टेप करके लेग जाही ताहन अइसे करके अब कइसे करे, गाबेच नइ करय। कोनो मुड़ी ल गा देवय ताहन भइगे गुरूजी अतके कइ देय। त फेर का कारन उंकर बर मंगवायेन गांजा। गांजा अउ दारू-उरू पियाके त फेर उकर चढ़िन त गइन त फेर रिकॉडिंग करेन। अइसे कर-कर के सीखेव मैं जतका भी सीखेवं लोकगीत जतका भी आगे बड़ेव मैं अपन गुरू ले।
H- इतना दोनो गुरुजनों का कृपा रहा मुझ पर, ये गुरूजी तो मेरे पिता तुल्य है और वो उन्हे मैं पति के रूप में कम और गुरू के रूप में ज्यादा देखती हूं। मुझे इतना ज्ञान दिये है कि मैं शब्दों में बता नहीं सकती। बहुत ज्ञान दिये है और आज भी सीख रही हूं। कहने का मतलब अपना जीवन मुझ पर लगाये है। मेरे पूरे देवार जाति के लोगों के यहां गये, जहां भी कहते वहीं चले जाते थे और सीख कर आ करके मुझे सिखाते थे। पहले वो टेप हुआ करता था। ऐसे ही एक बार जेवरा गये थे तो मैं भी साथ गई थी। वहां टेप लेकर गये तो कोई गाने को तैयार नहीं कि ये लोग ऐसे ही बेवकूफ बनाते है टेप करके पूरा ले जायंगे। कोई पूरा गाते ही नहीं थे, कोई मुखड़ा गाकर बस इतना ही है कह देते थे। फिर हम लोगों ने उनके लिये गांजे की व्यवस्था की। खूब गांजा और शराब पिलाये तब जाकर नशे में पूरा गाये और हम लोग रिकॉर्ड कर पाये। इस तरह से लोकगीत सीखकर आगे बड़ी हूं, आज जितना भी सीखी हूं आगे आ सकी हूँ , अपने गुरू की कृपा से है।
C- राकेश तिवारी- तै अभी जतका भी देवार गीत गावत हस नृत्य करत हस बहुत अच्छा करत हस। तै का चाहत हस के कोनो नवा पीढ़ी सीखय या येला कोनो सीखे बर करत हे। मोला तो अइसे लगत हे तोर बाद, तोर जाये के बाद तो मोला अइसे लगत हे के रतनपुरिहा देवार मन कोनो अइसन पारंपरिक ढंग ले कोनो गावत बजावत नइये। तो का इच्छा हे के तै कोनो ल सीखाथस के सीखाबे ?
H- राकेश तिवारी- अभी आप जितने भी देवार गीत गाये, नृत्य किये बहुत ही बेहतरीन रहा। किन्तु आगे आप क्या चाहती है कि कोई नई पीढ़ी इस कला को सीखे, किसी को सिखाने का प्रयास किये? मुझे तो ऐसा लगता है कि आप के बाद रतनपुरिहा देवारों में ऐसा कोई नहीं है जो पारंपरिक ढंग से गाते होंगे। तो क्या इच्छा है किसी को सिखा रही है या सिखायेंगे?
C- रेखा देवार - मैं बहुत इच्छा हे सीखाहवं कइके कोनो सीखइया आहि ततो सीखाहवं। अभी भी कोई सीखही तव ओला मैं फिरी म सीखाहवं कइथो कोनो लड़की सीखना चाही तव, बाकी मोला पइसा-वइसा नइ चाही बाकी मैं अपन इतिहास ल तो रखहवं।
H- रेखा देवार- मेरी भी बहुत इच्छा है कि कोई सीखने आये तो मैं जरूर सिखाऊंगी। अभी भी कोई सीखना चाहेंगे तो मैं नि:शुल्क सिखाऊंगी, मुझे पैसा नहीं चाहिए। बहरहाल मैं अपने इतिहास को तो बरकरार रखूंगी ही।
C- राकेश तिवारी- दूनों म का अंतर समझथव। पहिली तोर पीढ़ी गावत रिहिसे तोर पुरखा मन ओ समय देवार गीत सब नृत्य करय। अभी कुछ झन मन गाथे तव दोनो म फरक का आगे ?
H- राकेश तिवारी- दोनो में क्या अंतर समझते है, पहले आपके पूर्वज जो देवार गीत नृत्य करते थे और अब कुछ लोग गा बजा रहे हैं दोनों में फर्क क्या है?
C- रेखा देवार - अब दूनो म ये फरक आगे, अभी जेन गाथे तेन तबला पेटी म गाथे। तबला पेटी म गाथे अउ लोक चीज ल छोड़त हे। गोदना गोदे ल छोड़त हावय। जानवर रखे ल छोड़त हे। जबकि हमर जाति घुमंतू जाति एक जघा स्थाई घर म नइ रहे हे। अउ हमर जाति अइसे जाति ये ते माने येला सीखोय ल हाथ धरके येला नइ लागय। तै गाथस, तोर ल सुन के मैं गा लेथवं। मोर ल सुन के तै गा लेथस। अइसे करके त सब लइका मन नवा-नवा सब फिलमी दुनिया आगे हे त कोनो बिहार जाथे त अउ कोनो छत्तीसगढ़ी म जाथे त कोना अउ प्रोग्राम म जाथे।
H- रेखा देवार- अब दोनो में ये अंतर आ गया है कि अभी जो गा रहे है वो हारमोनियम तबला में गा रहे हैं और लोक चीजों को छोड़ रहे हैं। गोदना गोदने छोड़ रहे हैं, जानवर (सुअर)रखना छोड़ रहे हैं। जबकि हमारी जाति घुमंतू जाति एक स्थान पर स्थाई घर में नहीं रहे हैं। और हमारी जाति तो ऐसा है कि किसी को हाथ पकड़कर सिखाने की आवश्यकता नहीं है, मैं गा रही हूं, मेरा सुनके वो गा रहा है, उनका सुनके मैं गा रही हूं इस तरह चल रहा है। अब सब नई पीढ़ी के युवा फिल्मी दुनिया में आ रहे है कोई बिहार जा रहा है तो छत्तीसगढ़ी प्रोग्राम में जा रहे है।
C- राकेश तिवारी - तुहर जाति के जो कोन-कोन कलाकार हे। कोन कोन के कार्यक्रम देखेस तोला सुरता हे के तोर जमाना में देवार में कोन-कोन से महिला मन गावत रिहिसे। कोन-कोन जेंटस मन बजावत रिहिसे। ओकर बारे म बता हमला।
H- राकेश तिवारी - आपकी देवारी जाति के कौन-कौन कलाकार है जिनका कार्यक्रम आपने अपने समय में देखे है, कुछ याद है। कौन-कौन महिला गा रही थी, कौन-कौन पुरूष लोग गा बजा रहे थे। उनके बारे में बताइये?
C- रेखा देवार - मोर का कथे फूलबाई दीदी रिहिसे। चिकरीहा रिहिसे सरंगिहा अउ झुकुमराम इकरो सो ले तो पहिली देखे हवं। अउ येकर बाद फंदू रिहिसे। फंदू माने ओहा मोरेच दाई के ओहा कका ये ओहा। ओहू ह बजावत रिहिसे। ओकर गोसइन के नाम जुगरी रिहिसे उहू गीत गात रिहिसे डोकरी ह। अउ नाहर बाई काहय पमबाई काहय, फोसवा काहय येमन ल मैं अपन आखी म सुरता म देखे हाववं। कामा देखे हवं जब का कथे न जब हमर ननूहा बबा ह खतम होइस न मोर दाई के ददा ह त मोर दाई ह न मोर बाबू ह सब झन ल बुलाय रिहिसे। सब झन ल बुलाके न माने नाहउर करे के बाद जेन दिन तेरही होथे तेन दिन सब कहू नाचे गाये रिहिन हे पूरा।
H- रेखा देवार - मेरी फूलबाई दीदी थी। एक चिकरा और सारंगी बजाने वाले थे झुमुकराम इनही को तो मैंने पहली बार देखा। इनके बाद फंदू थे जो कि मेरे ही मां के चाचा लगते है वो बजाते थे। और उनकी पत्नी का नाम जुगरी था वो भी गीत गाती थी। नाहर बाई नाम की थी, पमबाई नाम की थी और फोसवा थी उनको तो मैंने अपनी आंखों से देखा है। कहां जब मेरे नाना का देहांत हुआ तब। मेरी मां और पिता जी ने सभी को बुलाये थे। नाहउर(मृत्यु के बाद परिवार वाले तालाब में स्नान कर जल अर्पित करते है।) कार्यक्रम करने के बाद जिस दिन तेरहवीं होता है उसी दिन सब लोग पूरा नाचा-गाना किये थे।
H- मुस्ताक खान- तो आपकी बात से ऐसा लगता है कि जो देवार थी उसमें पहले से गाने होते थे ?
C- रेखा देवार - ये हमर देवारे जाति ये जब कइना नंगेसर ह जेन दिन जनम होय हे। सोने बरसे हे रात, माने ओकर गुनगान गान। जब कइना नंगेसर ह मल्हार म जनम लिस त येमन खुद गे रिहिन ओकर गुनगान करे ल।
H- रेखा देवार - हां ये हमारी देवार जाति की गीत है। जब कइना(युवती) नंगेसर का जिस दिन जन्म हुआ उस दिन सोना बरसा था रात को, मलतब उन्ही का गुनगान गाते है। और जब युवती नंगेसर का मल्हार में जन्म हुआ तो स्वयं ये लोग उनका गुनगान करने गये थे।
H- मुस्ताक खान- तो अलग-अलग अवसरों के अलग-अलग गाने होथे थे क्या ?
C- रेखा देवार– ह अलग-अलग।
H- रेखा देवार- हां अलग-अलग।
H- मुस्ताक खान- माने किसी के शादी में गये या किसी के यहां कोई मर गया या किसी के यहां बच्चा हुआ। तो उनके लिये अलग-अलग गाने होते है ?
C- रेखा देवार - हां अलग-अलग, छट्टी म अलग गाथे।
H- रेखा- हां अलग-अलग, छट्टी में अलग गाते हैं।
C- मुस्ताक खान- जैसे। उसके क्या अलग गाने होते है?
रेखा देवार- जइसे मरनी म गावय- मन मिले।
H- रेखा देवार- जैसे मृत्यु में गाते है- मन मिले...
C- मन मिले जोही अब तो भूलागे हो गुने ल भइगे।
H- मन मिले साथी अब तो भूल गये हो... सोचन लगे।
C- दिल मिले जोही मन मिले जोही अब तो भूलागे।।
H- दिल मिले साथी, मन मिले साथी अब तो भूल गये।।
C- एक तो भूलागे दीदी बन के कोयलिया दीदी, बन के कोयलिया
H- एक तो भूले दीदी वन के कोयलियां दीदी, वन के कोयलियां।
C- एक तो भूलागे दीदी बन के कोयलिया दीदी, बन के कोयलिया
H- एक तो भूले दीदी वन के कोयलियां दीदी, वन के कोयलियां।
C- दूजे भूलागे संगी साथी हो गुनेल भइये...
H- दूसरे भूले यार साथी हो सोचन लगे...
C- मन मिले जोही दिल मिले जोही अब तो भूलागे।।
H- दिल मिले साथी मन मिले साथी अब तो भूल गये।।
C- अइसे करके मरनी म तक गावन येला
H- इस प्रकार से मृत्यु में गीत गाथे थे।
C- मुस्ताक खान- तो देवार लोगों में अभी-अभी वो परंपरा जारी है।
रेखा देवार - हां अभी भी परंपरा हे।
H- रेखा देवार- हां अभी भी परंपरा है।
C- मुस्ताक खान- जादा लोग किस इलाके में है।
रेखा देवार- आए।
H- रेखा देवार- क्या?
H- मुस्ताक खान- जो देवार लोग है।
C- रेखा देवार- अइसे हमर पैदाइसी ल अब ये गुरूजी ह जानथे मंडला के जनम ए।
H- रेखा देवार- वैसे तो मेरी पैदाइस को ये गुरूजी जानते है मंडला का जन्म है।
C- राकेश तिवारी - कोन से इलाका म जादा देवार हे, तोर एरिया में पूछत हे।
H- राकेश तिवारी- कौन से इलाके में ज्यादा देवार है ये पूछ रहे हैं।
C- रेखा देवार - अभी येती हमर रायपुर राज म जादा हावय।
H- रेखा देवार- अभी इधर रायपुर राज में ज्यादा हैं।
C- राकेश तिवारी - अच्छा रायपुर राज के किथे के रईपुरिहा देवार किथे।
H- राकेश तिवारी- अच्छा रायपुर राज के कहते है कि रईपुरिहा देवार कहते है?
C- रेखा देवार - रईपुरिहा देवार ए अउ हमर ओति मन बिलासपुरिहा आन त हमन रतनपुर अउ बिलासुपर के हमर एक मेल हवय।
H- रेखा देवार- रईपुरिहा देवार है और हमारे उधर हम लोग बिलसपुरिहा है। हमारे उधर रतनपुर और बिलासुपर का सब एक मेल है।
C- राकेश तिवारी - रईपुरिहा देवार के गाना अउ संस्कृति अउ डांस अउ रतनपुरिहा म का फरक हावय ?
H- राकेश तिवारी- रायपुर अंचल के देवारों के गीत, नृत्य और संस्कृति तथा रतनपुर अंचल वालों में क्या अंतर है?
C- रेखा देवार - रईपुरिहा देवार के गाना येमन का हे अपन जीयत भर न, जइसे कोनो कई दिन येमा गाना ओमा गाना हे त अइसे करना हे वइये करना हे माने परबुध मानके आगे। अउ हमर बिलासपुरिहा हे न तेन अभी तक अपन पंरपरा म चलत हे। माने सरांगी धरके गाना बजाना कोई समाज म जानथन त अपने समाज म जानथन त जसगीत जइसे होवथे त कोनो समय होगे त बढ़िया खुशी के दिन ताय त जेवारा गीत गाबो। तब ते गाथस ते अलगेच हे हमन अपन दूसरे तर्ज म गा देथन जेवारा गीत ल।
H- रेखा देवार- रायपुर अंचल के देवारों का क्या है वे जीवन भर किसी ने कहा इसमें गाना है उसमें गाना है तो इस तरह दूसरों की बातों में आ गये है और हमारे उधर बिलासपुर अंचल के देवार अभी तक अपनी पंरपरा में चल रहे हैं। सरांगी लेकर गाना बजाना। किसी सामाजिक कार्यक्रम में जाते है तो जसगीत चल रहा है तो जसगीत गा देते है। बढ़िया खुशी का माहौल है तो जवांरा गीत गा देते है। आप जो गाते है उनका तर्ज अलग होता है और हम अलग तर्ज में गा देते है।
H- मुस्ताक खान- कितने देवार गीत होंगे कभी आपने उनको इकट्ठा किया?
C- रेखा देवार - बहुत सारा देवार गीत हे इकट्ठा तो नई करे हवं। कतका ल मैं जानत हवं अभी भी मैं खोज करत हवं। डोकरी-डोकारी जीयत हे न तेकर मन सो जा जाके मैं सीखथवं।
H- रेखा देवार- बहुत सारे देवार गीत है इकट्ठा तो नई की हूं। कितनी सारी गीत तो मैं स्वयं जानती हूं और अभी भी खोज ही कर रही हूं, जो बड़े बुजुर्ग जीवित है उनके पास जा जाकर सीखती हूं।
H- मुस्ताक खान- अभी आपने इकट्ठा नहीं किया तो वो अगली पीढ़ी को कैसे पहुचेंगे।
C- रेखा देवार - नहीं पीएचडी करवाये हवं न।
H- रेखा- नहीं। पीएचडी करवाये हैं न।
H- मुस्ताक खान- उसमें सारे गाने है।
C- रेखा देवार- ह पूरा सब।
H- रेखा देवार- हां पूरा सब।
(184 गाने। हां पूरा 35 देवार भाटा है। ...ये आपके पीएचडी के थिसेस है।)
C- रेखा- जसगीत के बारे से बताये हवं त हमर सगा म कइसे गाथे। अइसे तो सिंपल गाथे त हमर सगा म गाथे-
H- रेखा देवार- जसगीत के विषय में बतायी हूं । तो हमारी जाति में कैसे गाते है, वैसे तो साधारण गाते है हमारे समाज में-
C- अलिन-गलिन वो खोजेव सेवक बलकुवा वो, खोजे म सेवइक नइतो पाए हो मां...
दुर्गा खोजे म सेवइक नइतो पायेव, हो मां... (येमा तालो अलग बजथे।)
एक तो सेउक खोजेव कुम्हरा वो बलकुवा वो, हाथे कलशा वो दुई लाये हो मां...
(पिड़वा ल धर ले रही दीया ल धर ले रही रात भर मगन होके नाचत हे जाना देवता चढ़े तइसे।)
दुर्गा हाथे कलशा वो दुई लाये हो मां...
छिन भर डोला बिलमई देबे दुर्गा वो कलशा ल देहू मैं चढ़ाय...
झूम-झूम के नाचत हे।
H- गली-गली वो खोजे सेवक बालक वो, खोजे से सेवक नहीं पाए हो मां...
दुर्गा खोजे से सेवक नहीं पाए, हो मां...
एक तो सेवक खोजे कुम्हार वो बालक वो, हाथ में कलशा वो दो लाये हो मां...
दुर्गा हाथ में कलशा वो दो लाये हो मां...
क्षण भर अपनी डोली को रोक दो दुर्गा,मैं कलश अर्पित कर दूँदी .
(झूम-झूम कर नाचते हैं। )1= नयनों से ओझल, 2= अर्पण
H- मुस्ताक खान- आपको क्या लगता है ये परंपरा आगे और चलेगी।
C- रेखा देवार- हां आगे चलय कइके महू काहत हवं अब जेन सीखही लइका तेन ल मैं सीखोहू, अब मैं हा कइसनो करके भले मोला साहब मन ह कोई सहयोग नइ करही तभो मोर इच्छा हे अउ कोई लइका सीखही त सीखो देतेव अइसे करके। मैं तो गरीब हवं त कोन मेर वर्कशॉप लगाये सकहवं।
H- रेखा देवार- हां आगे चले यही सोचकर मैं भी कह रही हूं कि अब जो सीखना चाहते है उन्हे सिखाऊंगी, चाहे जैसे भी हो, कोई सहयोग न करे तो भी मेरी इच्छा है कि जो सीखेंगे उन्हे सिखा दूंगी। मैं तो गरीब हूं, कही वर्कशॉप नहीं लगा सकती।
H- मुस्ताक खान- अभी आप खुद ही बता रहीं थी कि शुरू में वो केवल एक तार का तंबूरा लेके और डफली एक रागी के साथ में दो लोग गाते थे तो ये फिर हारमोनियम, तबला, डोलक कब से शुरू होगा।
C- रेखा देवार - येला सर अइसे हे काहे बेस के नाम से। अब बहुत दिन जइसे काहे ये खुद बहुत दिन म अइसे का दूख ल तोला बताबो तइसे, मांदर वाले हे अब सब गरीब-गरीब बिचारा कोनो भट्ठा गेहे कोनो अउ कहू गये हे। त बहुत-बहुत दिन म मिलथे त कहू ताल म कथे। अब तो अड़ही मन जानन नहीं ताल-लय-सुर सबसे बड़े जीच ए। त ओकर नाम लेके अपन सुर के नाम लेक ओला हमन अपन रखथन। जबकि अइसे किबे त सोज्झे गाथन हमन, जइसे अभी गाथन। ऐदे, त ओला थोरिक सुर मिले ओकर नाम से जबकी येहा सही बाते कोई ए नइये।
H- रेखा देवार- ये सर ऐसा है कि बेस के नाम से है। अब बहुत दिनों में मिलते है तकलीफ को क्या बताये मांदर वाले आदि सब गरीब बेचारे कोई ईंट भट्ठा जाता है,मजदूरी करने . तो कोई और कहीं जाता है और लम्बी अंतराल के बाद मिलते है, तो ताल के नाम से रखते है। मैं अनपढ़ हूं जानकार लोग ही कहते है कि ताल-लय-सुर ही सबसे बड़ी चीज है, सुर के नाम से ही हम लोग भी रखते हैं। वैसे भी हम सीधे ऐसे ही गाते थे, जैसे अभी गा रही हूं।और कुछ नहीं।
H- मुस्ताक खान- कब से शुरू हुआ होगा।
C- रेखा देवार- अब ये सुरू कब से होय हे। (बीच म येकर विरोध बरसाती भइये आकाशवाणी में किये थे) अब हमन नइ जानन, कब चदैंनी गोंदा सुरू होय तभे के सुरू होही। (जसगीत को आप मांदर में सुनेंगे तो एक अलग लगेगा, उसी को आप तबला में सुनेंगे तो उसका खांचा दूसरा होगा। ये मेलोडी बनाने लगे उसको और दूसरा सिनेमा टाइप हो गये।)
H- रेखा देवार - अब शुरू कब से हुआ होगा? (बीच में बरसाती भैया आकाशवाणी में इसका विरोध भी किये थे।) हमें तो जानकारी नहीं है, चदैंनी गोंदा के समय से शुरू हुआ होगा। (जसगीत को आप मांदर में सुनेंगे तो एक अलग लगेगा, उसी को आप तबला में सुनेंगे तो उसका खांचा दूसरा होगा। ये मेलोडी बनाने लगे उसको और दूसरा सिनेमा टाइप हो गये।)
C- त ओ बतइसे जइसे हमन अभी मांदर म गाये हन ये बारी म अड़े रसिया मोर मसरंग के साड़ी रे बारी म। येहा ओरिजनल ये माने ओ चिन बतावथे बारी म मोर मसरंग के साड़ी उड़त रही।
H- तो जैसे बताये कि हम लोग अभी मांदर में गाये- ये बारी म उड़े रसिया मोर मसरंग के साड़ी रे बारी म। ये ओरिजनल है अपनी पहचान बता रही है कि बाड़ी में मेरी मसरंग की साड़ी उड़ रही है।
C- इही ल अपन गइन, H- (इसी को हम गाते है- )
C- हा... चौरा में गोंदा...
H- घर के चौरा में गेंदे का पौधा है
C- चौरा म गोंदा रसिया मोर बारी म पताल रे चौरा म गोंदा...
H- घर के चौरा में गेंदे का पौधा है रसिया और बाड़ी में टमाटर
C- चौरा म गोंदा रसिया मोर बारी म पताल रे चौरा म गोंदा...
H- घर के चौरा में गेंदे का पौधा है रसिया और बाड़ी में टमाटर
C- लाली गुलाली रंग छिचत आबे राजा तै छिचत आबे
H- लाल, गुलाली रंग तुम छिड़कते हुये आना राजा, तुम छिड़कते हुए
C- ये छिचत अइबे रसिया मैं रइथवं रे कुकुसदा म पूछत अइबे...
H- ये छिड़कते हुए आना,मैं रहती हूँ कुकुसदा में पूछते हुए आना
C- त येला ओ अपन तबला पेटी म गा दीन। जबकि येहूच हमरे पुराना गीत ए। (H- तो इसको वे अपने तबला हारमोनियम में गा दिये जबकि ये भी हमारा पुराना गीत है। )
C- राकेश तिवारी - ठीक है बहुत-बहुत धन्यवाद रेखा जी। अतका समय देस तै कुकुसदा ले आके। सोनउ गुरू जी, विजय भइया आप मन ला भी बहुत-बहुत धन्यवाद।
H- राकेश तिवारी- ठीक है बहुत-बहुत धन्यवाद रेखा जी। इतना समय दिये आप कुकुसदा से आकर। सोनउ गुरूजी, विजय भैया आप लोगों को भी बहुत-बहुत धन्यवाद।