चित्रकोट जलप्रपात

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Published on: 17 June 2019

Dr Rajendra Singh

Dr Rajendra Singh holds an MA in Anthropology and Sociology, and did his Doctoral Research on Adivasi traditions of Bastar. He is based in Jagdalpur, Chhattisgarh.

परिचय


छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग का मध्य-पूर्व क्षेत्र अर्थात् बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर के समीप का क्षेत्र प्रकृति के भरपूर सौगातों से परिपूर्ण है। इस क्षेत्र में अनेक जलप्रपात, भूमिगत गुफायें, घने वन व जीव-जंतुओं से भरा समृद्ध परिवेश हैं। इस क्षेत्र में निवासरत आदिम जनसमुदाय व उनकी संस्कृति अनेक विशिष्टताओं से युक्त है। उपरोक्त विशेषताएं बस्तर क्षेत्र को बाहरी दुनिया के लिये आकर्षण का केन्द्र बनाती हैं। जिसके साक्षात् दर्शन, अनुभव व बूझने के लिये पर्यटक, अध्येता, प्रशासक आदि उत्सुक रहते हैं।

 

चित्रकोट जलप्रपात


बस्तर संभाग के मध्य में प्रवाहित इंद्रावती नदी छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिण भाग में प्रवाहित सबसे प्रमुख नदी है। यह संभाग में पूर्व से पश्चिम प्रवाहित होकर गोदावरी नदी से मिलती है। इंद्रावती नदी बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर के पश्चिम में चित्रकोट व तीरथा नामक गांव के मध्य में एक विशाल जलप्रपात के रूप में गिरती है। यह जलप्रपात चित्रकोट जलप्रपात के रूप में प्रसिद्ध है। चित्रकोट जलप्रपात न सिर्फ छत्तीसगढ़ राज्य बल्कि भारत के सबसे प्रसिद्ध जलप्रपातों में से एक है। चित्रकोट जलप्रपात, इंद्रावती नदी का सबसे खूबसूरत भाग है। यह जलप्रपात अपने विशालता, आकर्षक व मनोहारी स्वरूप, सुलभ पहुॅच व बारहमासी स्वरूप के कारण सदैव पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है।  

 

R Indravati

Image: River Indravati. Photo Credit: Anzaar Nabi

 

 

Chitrakote Waterfall

Image: Chitrakote Waterfall, Chhattisgarh. Photo Credit: Anzaar Nabi

 


जलप्रपात का नामकरण


चित्रकोट शब्द ‘चीतल’ नामक वन्यप्राणी के स्थानीय उच्चारित स्वरूप ’चीतर‘ अर्थात् स्पाॅटेड हिरण तथा ‘कोट‘ अर्थात् रहवास संबंधी शब्द से बना है। जलप्रपात को स्थानीय बोली में ’घूमर’ षब्द से संबोधित करते हैं तथा जलप्रपात के किनारे स्थित बसाहट को ’घूमरमुंड पारा’ अर्थात् ’जलप्रपात के षीर्ष पर स्थित बसाहट’ के नाम से जाना जाता है। इस स्थान के चित्रकोट या चीतरकोट नामकरण संबंधी जनश्रुति के अनुसार- प्राचीन काल में यह सघन वन क्षेत्र था तथा इस क्षेत्र में चीतल अधिक संख्या में पाये जाते थे। एक बार कोई राजा इस क्षेत्र में षिकार करने आया, काफी प्रयास के बाद भी उसे कोई जानवर न मिलने पर राजा क्रोधित हो गया। उसने इस क्षेत्र के ग्राम प्रमुख को बुलाया व क्रोधित होकर उससे कहा कि ’मैने सुना था कि इस क्षेत्र में बहुत जंगली जानवर हैं, लेकिन मुझे नही मिले। तुम बताओ कि जानवर कहाॅं हैं।’ राजा की क्रोधपूर्ण बातों से ग्राम प्रमुख डर गया तथा उसने अपने जादू के प्रभाव से गांव के बाहरगुड़ा पारा में स्थित ’मुसाडीह’ (चूहे का बिल) की ओर इषारा कर राजा से कहा कि जानवर इसमें हैं। उसके जादू के प्रभाव से एक साथ अनेक चीतल निकल कर भागने लगे, जिससे राजा हतप्रभ होकर देखने लगा तथा अंत में एक ही चीतल का षिकार करने में सफल हुआ। इस प्रकार इस जगह में चीतल का रहवास ’कोट’ होने के कारण इस स्थान का नाम चीतर कोट पड़ा जो धीरे-धीरे ’चित्रकोट’ में परिवर्तित हुआ तथा स्थान नाम के आधार पर इंद्रावती नदी के जलप्रपात का नाम चित्रकोट जलप्रपात पड़ा। 

 

स्थिति


चित्रकोट जलप्रपात बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से पश्चिम दिशा में 38 कि,मी. की दूरी पर स्थित है। चित्रकोट जलप्रपात पहुॅच मार्ग चैड़ा तथा शानदार है, इस मार्ग के अंत पर चित्रकोट जलप्रपात स्थित है। यह  19ं 12‘ 23‘‘ उत्तरी अक्षांश तथा 81ं 84‘ 00‘‘ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। चित्रकोट जलप्रपात की ऊंचाई 29 मीटर अर्थात् 95 फीट तथा चैड़ाई 980 फीट अर्थात् 299 मीटर है। चित्रकोट जलप्रपात के चैड़े स्वरूप के कारण इसे विष्व के सबसे बड़े ‘नियाग्रा जलप्रपात‘ के सदृष्य माना जाता है तथा इसे ‘भारत का नियाग्रा‘ कहा जाता है।

 

चित्रकोट जलप्रपात के दोनों छोर की बसाहट


चित्रकोट जलप्रपात के दोनों ओर बसाहट है। इसके एक ओर चित्रकोट ग्राम बसा हुआ है तो दूसरी ओर तीरथा ग्राम बसा हुआ है। चित्रकोट ग्राम पंचायत है, यह सात मुहल्लों में विभाजित है- घुमरमुंड पारा, पदरगुड़ा, लामड़ागुड़ा, बाहरगुड़ा, खरियागुड़ा, खालेपारा तथा इंगराभाटी पारा है। जलप्रपात घुमरमुंड पारा में स्थित है, हल्बी बोली का ‘घुमर‘ षब्द हिंदी भाषा के झरना या जलप्रपात का समानार्थी षब्द है। इस प्रकार घुमरमुंड पारा का अर्थ जलप्रपात के उपरी भाग में बसा पारा है। 
जलप्रपात के दूसरी ओर तीरथा ग्राम बसा हुआ है। ‘तीरथा‘ शब्द की उत्पत्ति संभवतः तीर्थ षब्द से हुई होगी। कुछ जानकार ‘तीरथा‘ शब्द की उत्पत्ति इस क्षेत्र में तीर्थंकर की उपासना से जुड़ा मानते हैं। तीरथा के समीप स्थित कुरूसपाल नामक स्थान से जैन संप्रदाय के 24 वें तीर्थंकर महावीर की प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई है, जो इस क्षेत्र में तीर्थंकर की उपासना की पुष्टि करते हैं। चित्रकोट तथा तीरथा ग्राम में कुड़ुख, धाकड़, माहरा, यादव/राउत, पनका, मुरिया, भतरा, हल्बा तथा माड़िया जाति के परिवार निवास करते हैं।

 

ऋतुवार चित्रकोट जलप्रपात का दृष्य


चित्रकोट जलप्रपात की ख्याति भारत के सबसे सुंदर जलप्रपातों में है। प्रत्येक मौसम में जलप्रपात की सुंदरता नयनाभिराम होती है। वर्षाकाल में यह अपनी सीमाओं से परे जाने को आतुर दिखायी देता है, शीतकाल में शांत, स्वच्छ प्रवाहमान होता है जबकि ग्रीष्मकाल में अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष करता प्रतीत होता है। 

 

Chitrakote Waterfall during Monsoon

Image: Chitrakote Waterfall during Monsoon. Photo Credit: Anzaar Nabi

 


वर्षाकाल में इंद्रावती नदी व उसकी सहायिका नदी-नालों में भरपूर जल होने के कारण चित्रकोट जलप्रपात में विशाल जलराशि प्रवाहित होती है। इस काल में संपूर्ण प्रपात क्षेत्र में जल प्रवाहित होकर गिरता है। मटमैला रंग का भीषण गर्जना के साथ प्रवाहित जल पूरे क्षेत्र में गुंजायमान होता है। इसका विषाल स्वरूप प्रेक्षकों के मन भयामिश्रित रोमांच से भर जाता है। 
शीतकाल तक इंद्रावती नदी का जल साफ हो जाता है व जल की मात्रा कम हो जाती है। चित्रकोट में इंद्रावती नदी का जल तीन भागांे में विभक्त होकर प्रपात के रूप में गिरने लगता है, जिससे जलप्रपात अत्यंत सुंदर व मनमोहक हो जाता है। प्रकृति में हरियाली भर जाती है। यह दर्शकों का मन मोह कर उन्हें मंत्र मुग्ध कर देता है। यह सुर्योदय से सूर्यास्त व कृत्रिम रोशनी में भी सुंदरता से परिपूर्ण होता है। षीतकाल पूर्णिमा में चंद्रमा की रोशनी में चित्रकोट जलप्रपात को निहारना बेहद सुखद होता है।
ग्रीष्मकाल में इंद्रावती नदी का जल कम होता जाता है। वर्तमान भीषण गर्मी, नदी की सहायिका नदी-नालों में जल सूख जाने व नदी के प्रवाह क्षेत्र में अनेक बांध, एनीकेट का निर्माण होने के कारण ग्रीष्मकाल में इंद्रावती नदी व चित्रकोट जलप्रपात में जल प्रवाह बेहद कम हो जाता है, पूरा परिवेष गर्म हो जाता है। वर्षाकाल में पूरे प्रपात क्षेत्र में गिरने वाला जल एक कोने में सिमट जाता है। जलप्रपात के नीचे का क्षेत्र जो जल से परिपूर्ण होता है, वह एक ताल के समान दिखाई देता है। रेत व चट्टान दिखायी देते हैं। ग्रीष्मकाल में चित्रकोट जलप्रपात का पूरा परिदृष्य एैसा प्रतीत होता है कि जलप्रपात अपने अस्तित्व के लिये संघर्षरत है। 
ग्रीष्मकाल के पष्चात् वर्षा ऋतु का आगमन पुनः पुरे परिदृष्य को बदल देता है। इस प्रकार प्रकृति के इस ऋतुचक्र के सापेक्ष चित्रकोट जलप्रपात का भी अपने रूपों को बदलता हुआ अनवरत प्रवाहमान है। 

 


चित्रकोट जलप्रपात एवं पर्यटन


    चित्रकोट जलप्रपात की पहचान बस्तर के साथ-साथ छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन केन्द्र के रूप में है। यहां पूरे वर्ष पर्यटकों की आगमन होता रहता है किंतु मध्य जून से फरवरी तक की अवधि चित्रकोट जलप्रपात को निहारने का सर्वश्रेष्ठ काल है। चित्रकोट जलप्रपात में नीचे उतरने के लिये दोनों ओर सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। चित्रकोट जलप्रपात के नीचे कुंडक्षेत्र में पर्यटन विकास के लिये नौकायन सुविधा प्रारंभ किया गया है। जिसमें स्थानीय समुदाय के प्रषिक्षित नाविकों द्वारा पूरी सुरक्षा के साथ नौकायन कराया जाता है। नौका विहार के माध्यम से जलप्रपात के समीप तक जाना पर्यटकों के लिये बेहद सुखद व रोमांचकारी अनुभव होता है। चित्रकोट जलप्रपात में एडवेंचर टूरिज्म के तहत् रोप लिफ्टिंग, ट्रेकिंग, केंपिंग आदि अनेक आयोजन किये जाते हैं। 
    चित्रकोट जलप्रपात के समीप पर्यटकों के रूकने के लिये षानदार सुविधाओं का विकास किया गया है। इसके समीप षासकीय गेस्ट हाउस, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल द्वारा मोटल व लक्जरी लाॅजिंग व रेस्टोरेंट सुविधाओं का विकास किया गया है। स्थानीय प्रषासन सहयोग व स्थानीय युवाओं के पहल पर चित्रकोट ग्राम में होम स्टे जैसी सुविधाओं का विकास हुआ है, ताकि स्थानीय संस्कृति को रूबरू होने के इच्छुक पर्यटक एैसी जगहों पर रूक सकें। इस प्रकार सुविधाओं से युक्त चित्रकोट जलप्रपात एक बेहतरीन पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हुआ है। 

 


चित्रकोट जलप्रपात तथा धार्मिक स्थल


चित्रकोट प्राचीन काल से धार्मिक आस्था का केन्द्र रहा है। चित्रकोट जलप्रपात के दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर व देव स्थल हैं। जलप्रपात के चित्रकोट छोर में अनके षिव मंदिर स्थापित हैं, इससे थोड़ी दूरी पर विशाल शिव मंदिर है, जिसकी स्थापना संभवतः सातवें दषक के प्रारंभ में किया गया था, जिसे कुछ वर्ष पूर्व पुनर्निर्माण कर नया स्वरूप प्रदान किया गया है। इसी भाग में जलप्रपात से लगभग आधे कि.मी. की दूरी पर घुमरमुंड पारा में संभवतः 11 वीं-12 वीं सदी के मध्य का छिंदक नागवंषीय राजाओं द्वारा निर्मित षिव मंदिर है, जिसमें वर्गाकार जलहरी पर विशाल शिवलिंग स्थापित है। इसी मंदिर परिसर के सामने भाग में हजारी वृक्ष के नीचे सिद्दई मावली देवी या सिद्देष्वरी देवी व भैरम देव तथा हल्दू वृक्ष के नीचे जलंधरी माता के मूर्तियों व प्रतीक को स्थापित किया गया है। सिद्देष्वरी देवी के कारण इस मंदिर को सिद्दई गुड़ी या सिंघई गुड़ी भी कहा जाता है। मंदिर परिसर के बाहर पूर्व दिषा में ईमली वृक्ष के नीचे बूढ़ादेव व उसेंडी देव मंदिर है। इसके अलावा चित्रकोट के अलग-अलग मुहल्लों में मोरकी मावली, गंगई मावली, बंधा मावली, बुधनी मावली व माता मंदिर हैं।

 

A shrine nearby Chitrakote Waterfall

Image: A Shrine nearby Chitrakote Waterfall. Photo Credit: Anzaar Nabi

 

जलप्रपात के दूसरी ओर स्थित तीरथा गांव में जलप्रपात के समीप देवी मंदिर है। इसके सामने दो शिव मंदिर तथा सोनकुंवर देव का मंदिर है। तीरथा भाग में जलप्रपात के नीचे खोह में मंदिर है, जिसे ‘पार्वती कोंटा‘ के नाम से जानते हैं। यहां नंदी देव की पूजा किया जाता है। ग्रामीणों का यह विष्वास है कि नंदी की मूर्ति स्वयं प्रकट है। इस स्थल पर प्रत्येक सोमवार को शिव-पार्वती व नंदी की  विशेष पूजा होती है। निसंतान दंपत्ति संतान हेतु व अन्य व्यक्ति इच्छित मन्नत मांगते हैं तथा पूर्ण होने पर पाषाण निर्मित नंदी अर्पित करते हैं।

 

चित्रकोट महोत्सव


    चित्रकोट जलप्रपात के समीप प्रतिवर्ष महाशिव रात्रि के अवसर पर तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है। जिसमें आसपास के ग्रामों के ग्रामीणों व पर्यटकों की भीड़ रहती है। इस मेले की लोकप्रियता देखकर जिला प्रशासन द्वारा चित्रकोट महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें स्थानीय प्रशासन द्वारा विभिन्न विभागों के विकासीय प्रदर्शनी, चिकित्सा, जागरूकता से संबंधित स्टालों का निर्माण कर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। 

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.