छत्तीसगढ़, रायपुर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी

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Published on: 13 July 2018

आशीष सिंह

पत्रकार, लेखक एवं संपादक। छत्तीसगढ़ के इतिहास, साहित्य एवं संस्कृति में रूचि।

 

उपलब्ध विवरण के आधार पर छत्तीसगढ रायपुर के स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी एवं सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही है।  

 

नारायण सिंह

वर्ष 1856 में छत्तीसगढ़ में भीषण अकाल पड़ा था। जमींदार नारायण सिंह की प्रजा के समक्ष भूखों मरने की स्थिति थी। उन्होंने अपने गोदाम से अनाज लोगों को बांट दिया, लेकिन वह मदद पर्याप्त नहीं थी। अतः जमींदार नारायण सिंह ने शिवरीनारायण के माखन नामक व्यापारी से अनाज की मांग की। उसने नारायण सिंह का आग्रह ठुकरा दिया। नारायण सिंह कुछ किसानों के साथ माखन के गोदाम पहुंचे और उस पर कब्जा कर लिया। इस बात की सूचना जब अंग्रेजों को मिली तो नारायण सिंह को गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया गया। उन्हें 24 अक्टूबर 1856 को गिरफ्तार कर रायपुर जेल में डाल दिया गया। संबलपुर के क्रांतिकारी सुरेंद्र साय के नारायण सिंह से अच्छे संबंध थे। सिपाहियों की मदद से वह जेल से निकल भागने में कामयाब रहे। सोनाखान पहुंच कर नारायण सिंह ने 500 लोगों की सेना बना ली। 20 नवंबर 1857 को रायपुर के असिस्टेंट कमिश्नर लेफ्टिनेंट स्मिथ ने 4 जमादारों व 53 दफादारों के साथ सोनाखान के लिए कूच किया। उसकी सेना ने खरौद में पड़ाव डाला और अतिरिक्त मदद के लिए बिलासपुर को संदेश भेजा। सोनाखान के करीब स्मिथ की फौज पर पहाड़ की ओर से नारायण सिंह ने हमला कर दिया। इसमें स्मिथ को भारी नुकसान पहुंचा। उसे पीछे हटना पड़ा। इस बीच, स्मिथ तक कटंगी  से अतिरिक्त सैन्य मदद पहुंच गई। बढ़ी ताकत के साथ उसने उस पहाड़ी को घेरना शुरू कर दिया, जिस पर नारायण सिंह मोर्चा बांधे डटे थे। दोनों ओर से दिन भर गोलीबारी होती रही। नारायण सिंह की गोलियां खत्म होने लगी। नारायण सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें रायपुर जेल में डाल दिया गया। मुकदमे की कार्यवाही चली और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई।  

 

हनुमान सिंह

नारायण सिंह के बलिदान ने रायपुर के सैनिकों में अंग्रेजी शासन के प्रति घृणा और आक्रोश को तीव्र कर दिया। रायपुर ने भी बैरकपुर की तरह की सैन्यक्रान्ति देखी है। इसके जनक तीसरी रेजिमेन्ट के सैनिक हनुमान सिंह थे। उनकी योजना थी कि रायपुर के अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर छत्तीसगढ़ में अंग्रेज शासन को पंगु बना दिया जाए। हनुमान सिंह ने 18 जनवरी 1858 को सार्जेन्ट मेजर सिडवेल की हत्या  की थी। एवं अपने साथियों के साथ तोपखाने पर कब्जा कर लिया। सिडवेल की हत्या तथा छावनी में सैन्य विद्रोह की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को मिल गई। लेफ्टिनेंट रॉट और लेफ्टिनेंट सी. एच. लूसी स्मिथ ने अन्य सैनिकों के सहयोग से विद्रोह पर काबू पा लिया। हनुमान सिंह के साथ मात्र 17 सैनिक ही थे, लेकिन वह लगातार छः घंटों तक लड़ते रहे। अधिक देर टिकना असंभव था, इसलिए वह वहां से फरार हो गए। इसके बाद वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। उनके साथी गिरफ्तार कर लिए गए। 22 जनवरी 1858 को इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई,जिनके नाम हैं: गाजी खान, अब्दुल हयात, मल्लू, शिवनारायण, पन्नालाल, मतादीन, ठाकुर सिंह, बली दुबे, लल्लासिंह, बुध्दू सिंह,  परमानन्द, शोभाराम,  दुर्गा प्रसाद,  नजर मोहम्मद, देवीदान,  जय गोविन्द।

 

बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव

बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव दृढ़ता और संकल्प के प्रतीक थे। छत्तीसगढ़ के इतिहास की प्रमुख घटना कंडेल नहर सत्याग्रह के वह सूत्रधार थे। छोटेलाल श्रीवास्तव का जन्म 28 फरवरी 1889 को कंडेल के एक संपन्न परिवार में हुआ था। पं. सुंदरलाल शर्मा और पं. नारायणराव मेघावाले के संपर्क में आकर उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया। वर्ष 1915 में उन्होंने श्रीवास्तव पुस्तकालय की स्थापना की। यहां राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं मंगवाई जाती थी। आगे चल कर धमतरी का उनका घर स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया। वह वर्ष 1918 में धमतरी तहसील राजनीतिक परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे। छोटेलाल श्रीवास्तव को सर्वाधिक ख्याति कंडेल नहर सत्याग्रह से मिली। अंग्रेजी सरकार के अत्याचार के खिलाफ उन्होंने किसानों को संगठित किया। अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संगठित जनशक्ति का यह पहला अभूतपूर्व प्रदर्शन था। वर्ष 1921 में स्वदेशी प्रचार के लिए उन्होंने खादी उत्पादन केंद्र की स्थापना की। वर्ष 1922 में श्यामलाल सोम के नेतृत्व में सिहावा में जंगल सत्याग्रह हुआ। बाबू साहब ने उस सत्याग्रह में भरपूर सहयोग दिया। जब वर्ष 1930 में रुद्री के नजदीक नवागांव में जंगल सत्याग्रह का निर्णय लिया गया, तब बाबू साहब की उसमें सक्रिय भूमिका रही। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें कड़ी यातना दी गई। वर्ष 1933 में गांधीजी ने पुनः छत्तीसगढ़ का दौरा किया। वह धमतरी गए। वहां उन्होंने छोटेलाल बाबू के नेतृत्व की प्रशंसा की। वर्ष 1937 में श्रीवास्तवजी धमतरी नगर पालिका निगम के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बाबू साहब की सक्रिय भूमिका थी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। स्वतंत्रता संग्राम के महान तीर्थ कंडेल में 18 जुलाई 1976 को उनका देहावसान हो गया।  

 

पंडित माधवराव सप्रे

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में पंडित माधवराव सप्रे का नाम स्वर्णाक्षर में दर्ज है। उनका जन्म 19 जून 1871 को दमोह जिले के पथरिया ग्राम में हुआ था। वर्ष 1900 में उन्होंने पं. वामनराव लाखे तथा रामराव चिंचोलकर के सहयोग से रायपुर से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ नामक मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।