छत्तीसगढ़ में जंगल सत्याग्रह

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Published on: 12 July 2018

आशीष सिंह

पत्रकार, लेखक एवं संपादक।
छत्तीसगढ़ के इतिहास, साहित्य एवं संस्कृति में रूचि।

छत्तीसगढ़ में जंगल के संघर्ष का इतिहास पुराना है। छत्तीसगढ़ में जंगल सत्याग्रह की घटनाएं ब्रिटिश शासन के फरमान का नतीजा थीं। ब्रिटिश सरकार के भारतीय कारिन्दे उनके आदेशों का पालन करवाने के लिए अमानवीय रवैया अपना रहे थे। इससे इस संघर्ष को अधिक बल मिला।   

 

नगरी-सिहावा जंगल सत्याग्रह: वर्ष 1920

नगरी-सिहावा के क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों का जीवन पुराने समय से जंगल पर ही निर्भर रहा है। उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति जंगल से होती रही है। ब्रिटिश सरकार ने वनोत्पादनों को सरकारी घोषित कर दिया। आदिवासियों के परंपरागत अधिकार समाप्त कर दिए गए। अब वे जलावन के लिए भी लकड़ी लेने जाते थे, तो उन्हें जुर्माना  देना पड़ता था। मवेशियों के जंगल में घुसने की स्थिति में सरकारी अधिकारी उन्हें बंधक बना लेते थे। आदिवासी समुदाय अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश हो गया।

 

वर्ष 1922 के जनवरी महीने के पहले सप्ताह में नगरी में जंगल सत्याग्रह की घोषणा की गई। इसके सूत्रधार थे श्यामलाल सोम। नगरी-सिहावा जंगल सत्याग्रह दरअसल देश का पहला जंगल सत्याग्रह था, जिसका सूत्रपात स्वयं आदिवासियों ने किया था। आंदोलनकारियों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि जंगल से जलावन की लकड़ी काटकर ब्रिटिश सरकार का जंगल कानून तोड़ा जाए और गिरफ्तारी दी जाए। सत्याग्रह की सूचना वन विभाग के रायपुर स्थिति अधिकारियों को दी गई। सत्याग्रह के तीसरे दिन अंग्रेज अधिकारी व हथियारों लैस पुलिस के दर्जनों सिपाही नगरी पहुंच गए। 33 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

 

इस घटना के बाद से ब्रिटिश पुलिस ने आदिवासियों के घरों में घुस कर तलाशी की। उनके घरों से जो भी लकड़ियां मिलीं, उन्हें जब्त कर लिया गया। उन पर चोरी का आरोप लगाया गया। तत्काल अदालती कार्रवाई कर उनसे जुर्माने की वसूली की गई।

 

अहमदाबाद कांग्रेस से जब पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. नारायण राव, नत्थू जी जगताप, मो. अ. करीम लौटे तब उन्हें नगरी में सत्याग्रह का पता चला। तत्काल ये सभी नेता धमतरी से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का दल लेकर नगरी पहुंचे। इस दल में पं.गिरधारी लाल तिवारी, शिव बोधन प्रसाद, गोपाल प्रसाद, रामलाल अग्रवाल, रामजीवन सोनी, श्याम लाल सोनी, बलदेव सिंह, श्यामलाल दाऊ आदि प्रमुख थे।

 

महासमुंद तहसील में जंगल सत्याग्रहः वर्ष 1930

वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश में चल रहा सविनय अवज्ञा आंदोलन रायपुर में पूरी तीव्रता से चल रहा था। महासमुंद तहसील के तमोरा ग्राम के जंगल में एक दिन गांव के कुछ पशु सरकारी जंगल में घुस गए, जिन्हें चौकीदार ने पकड़ लिया। जंगल विभाग ने किसानों पर मुकदमा दायर कर दिया। घटना की सूचना होने पर रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी ने शंकरराव गनोदवाले और यतीयतन लाल को तमोरा भेजा।

 

1 सितंबर 1930 से शुरू हुआ जंगल सत्याग्रह

जंगल सत्याग्रह के संचालन का दायित्व शंकरराव गनोदवाले को सौंपा गया। 8 सितंबर को तमोरा में हुई आमसभा में हजारों लोग उपस्थित हुए और सत्याग्रहियों का जत्था जंगल की तरफ भेजा गया। यहां मौके पर पुलिस बल मौजूद नहीं था, इसलिए गिरफ्तारी नहीं हुई। इसके अगले दिन सत्याग्रह के दौरान पुलिस ने सत्याग्रहियों पर बल प्रयोग किया। 10 सितंबर के दिन शंकरराव गनोदवाले को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद लगातार आंदोलन चलने लगा। प्रतिदिन चल रहे इस आंदोलन से ब्रिटिश पुलिस का धैर्य खत्म हो गया। इलाके में धारा 144 लगा दी गई और सभा-स्थल पर लाठीचार्ज के आदेश दे दिए गए। उस दिन सभा स्थल पर पांच हजार से अधिक ग्रामीण मौजूद थे। बड़ी संख्या में महिलाएं भी वहां उपस्थित थीं। यह सत्याग्रह 24 तारीख तक लगातार चलता रहा था।

 

तानवट-नवापारा जंगल सत्याग्रह

वर्ष 1930 में तानवट-नवापारा इलाके में स्वदेशी का प्रचार और मद्य निषेध का कार्यक्रम संचालित हुआ था। ये दोनों गांव खरियार जमींदार के अंतर्गत आते थे। जमींदार लोगों से बेगार लेने का आदी था। वह किसानों पर लगान का बोझ लादने का बहाना खोजता था। अत्याचार की खबरें जिला कांग्रेस कमेटी के पास पहुंची। जांच के लिए ठा. प्यारेलाल सिंह, भगवती प्रसाद मिश्र, यती यतन लाल और मौलाना अब्दुर रऊफ खां को 11 अप्रैल 1931 को वहां जाने का आदेश दिया गया। इस दल ने पीड़ितों से मुलाकात कर उनसे गवाही ली गई।

 

पं. भगवती प्रसाद मिश्र के नेतृत्व में आंदोलन

इससे पहले 16 जुलाई 1930 को पं. भगवती प्रसाद मिश्र छह स्वयंसेवकों के साथ खरियार पहुंचे थे। दूसरे दिन वहां कांग्रेस की कार्यकारिणी का गठन किया गया। इसमें पं. बेचरलाल, जगन्नाथ प्रसाद तिवारी, सेठ धनपतलाल, सेठ नरसिंह दास, सेठ कन्हैया लाल के अलावा बुधराम अग्रवाल, जगदीश प्रसाद नायक और गंगाप्रसाद त्रिवेदी, जान मोहम्मद और मुश्ताक हुसैन शामिल किए गए। पं. भगवती प्रसाद मिश्र वहां 12 दिनों तक रहे। पं. भगवती प्रसाद मिश्र ने सिर्फ खरियार में ही सौ स्वयंसेवक तैयार कर अपनी संगठन क्षमता का परिचय दिया। ग्रामीण क्षेत्रों में अलग से स्वयंसेवक बनाए गए।

8 सितम्बर 1930 से यहां लगातार अनशन, आंदोलन चल रहा था। इसके बाद क्रमशः जगदीश प्रसाद, बुधराम अग्रवाल भोलाराम सेठ, हेडमास्टर भिखारी प्रसाद, जानकी प्रसाद ब्राम्हण, छोटेलाल व शेख हबीबुल्ला को अलग-अलग दिन गिरफ्तार कर लिया गया। इनके अलावा मो. गफूर, प्रसन्न कुमार पटनायक, प्रेमजी जेठा, सोलंकी, मनराखन और धनीराम भी गिरफ्तार कर लिए गए।

 

सत्याग्रहियों की रिहाई के लिए आंदोलन

खरियार के गंगासागर त्रिवेदी ने सत्याग्रहियों की रिहाई के लिए आंदोलन शुरू किया। 23 सितम्बर को दोपहर दो बजे ध्वज के साथ जुलूस निकाला गया। जुलूस में करीब एक हजार लोग शामिल हुए। जुलूस पर पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी। खरियार जमींदार के लगभग दो सौ गांवों में अंतहीन अत्याचार हुए।

 

नवापारा-तानवट के जेल यात्री

गांधी-इरविन समझौते के बाद देशभर की जेलों से राजबंदियों की रिहाई हो गई। फिर भी सैकड़ों की संख्या में आंदोलनकारी जेल में ही थे। उन्हें मुक्त कराने के उद्देश्य से ठा. प्यारेलाल सिंह ने प्रयास प्रारंभ किया। उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट के आधार पर 31 मार्च 1931 तक रायपुर जिला जेल में 83 आंदोलनकारी बंद थे।

रुद्री जंगल सत्याग्रह – वर्ष 1930
21 अगस्त 1930 को धमतरी में एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में सरकारी जंगल में घास काट कर सत्याग्रह करने की घोषणा की गई। सत्याग्रह संचालन के लिए एक युद्ध समिति का गठन किया गया। पं. नारायण राव मेघावाले युद्ध समिति के प्रथम संचालक  नियुक्त किए गए। नारायण राव ने 22 अगस्त से सत्याग्रह आरंभ करने की घोषणा की। इसी दिन सूर्योदय के समय नत्थू जगताप तथा नारायणराव मेघावाले को गिरफ्तार कर लिया गया। इस तरह जो सत्याग्रह रुद्री नवागांव से आरंभ होने वाला था, वह इन नेताओं के घर से ही शुरू हो गया।

 

अगले दिन 23 अगस्त को छोटेलाल बाबू के नेतृत्व में धमतरी में सत्याग्रही स्वयंसेवकों का जत्था रवाना हुआ। हजारों लोग जुटे। पुलिस ने सत्याग्रह स्थल के आस-पास धारा 144 लगाने की घोषणा कर दी थी। ज्यों ही बाबू साहब जुलूस के साथ पहुंचे, पुलिस ने जुलूस को रोक दिया। हालांकि, बाबू साहब के साथ अन्य सत्याग्रही जंगल में घुस गए और उन्होंने घास काट कर कानून तोड़ दिया। बाबू साहब, रामलाल अग्रवाल, गोविंद राव जोशी, अमृतलाल खरे, शंकर राव कथलकर गिरफ्तार कर लिए गए।

 

24 अगस्त को धमतरी में ही पं. गिरधारीलाल की अध्यक्षता में एक आमसभा का आयोजन हुआ। इसमें भोपाल राव पवार, गंगाधर पडोले आदि नेता उपस्थित थे। यहां से नेताओं-कार्यकर्ताओं का जत्था रूद्री नवागांव की ओर रवाना हुआ। जंगल में प्रवेश करते ही वे गिरफ्तार कर लिए गए। प्रत्येक सत्याग्रही को 15 से 50 बेतों की सजा दी गई। 25 अगस्त को प्रातःकाल पं. गिरधारीलाल तिवारी तथा गंगाधार राव पडोले गिरफ्तार कर लिए गए। हालांकि, इन गिरफ्तारियों के बावजूद सत्याग्रह पूर्ववत चलता रहा।

 

मिंदू की शहादत

9 सितम्बर 1930 को सत्याग्रहियों पर पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरू कर दिया। भगदड़ मची तो कुछ पुलिसकर्मियों को भी चोटें आई। इससे बौखलाकर पुलिस ने सत्याग्रहियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। ये गोलियां दो सत्याग्रहियों—लमकेनी ग्राम के मिन्दू कुम्हार तता रतनू को लगी। मिन्दू तथा रतनू को घायल अवस्था में ही गिरफ्तार कर रायपुर जेल भेज दिया गया। रतनू तो स्वस्थ हो गए, किन्तु मिन्दू की 11 सितम्बर 1930 को जेल में मृत्यु हो गई।

 

रायपुर जेल में अप्रैल 1931 तक 24 राजबंदी रायपुर जिले के बलवा केस में बंदी थे। इनमें से 4 रुद्री सत्याग्रह से संबंधित थे तथा 20 तानवट नवापारा आंदोलन से संबंधित थे। रूद्री के बलवा कांड में कुल 19 सत्याग्रहियों को सजा हुई थी। इसी प्रकार नवापारा के बलवा कांड में कुल 20 लोगों को सजा हुई थी। ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने यह रिकार्ड जेल रजिस्टर के आधार पर तैयार की थी। 5 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौते के अनुसार तय हुआ था कि सरे राजबंदी मुक्त कर दिए जाएंगे। इस समझौते के बावजूद जिन्हे जेल से रिहा नहीं किया गया।

 

स्रोत 

ठाकुर, हरि. पांडुलिपि. 'छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम'. रायपुर.

 

देवांगन, शोभाराम. पांडुलिपि. 'धमतरी में स्वतंत्रता संग्राम'. धमतरी.

 

शुक्ला, अशोक. छत्तीसगढ़ का राजनैतिक तथा राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास .

 

सिंह, ठाकुर प्यारेलाल. 'रिपोर्ट जो महाकोशल कांग्रेस कमेटी को प्रेषित की गई'. हरि ठाकुर के निजी संग्रहालय.

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.