छत्तीसगढ़ी सतनामी रहस, The 'Rahas' of the Satnamis in Chhattisgarh

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डॉ. अनिल कुमार भतपहरी

सहायक प्राध्यापक, शासकीय बृजलाल वर्मा महाविद्यालय, पलारी, छत्तीसगढ़। निर्गुण संत साहित्य पर शोध एवं लेखन।

रासलीला ही छत्तीसगढ़ी जनमानस में रहस कहलाती है। सतनामियों में रहस की परंपरा आरंभ से रही है। सतनामी रहस का प्रलेखन इस मायने में महत्वपूर्ण है की यह एक विलुप्त होती अनुष्ठानिक कला है, जिसमें गायन, वादन, नृत्य संगीत के साथ मूर्तिकला का भी समावेश होता है।  मिट्टी से  बनी यह मूर्तियां समूचेअनुष्ठान के लिए पृष्ठभूमि उपलब्ध कराती हैं। जनश्रुति और ऐतिहासिक साक्ष्य हैं कि नारनौल दिल्ली मथुरा के इर्द-गिर्द सतनामियों की बसाहट रही है। यह समाज कृषक  पशुपालक व योद्धा समाज रहा है। वीरभान जोगीदास ने उदादास बाबा से सतनाम पंथ की दीक्षा लेकर सतनाम पंथ का प्रचार- प्रसार किया । यह जाति वर्ग विहीन मानवता पर आधारित, कर्मकांड आदि से रहित सादगी व साधना का मार्ग है। इनके साधक कोई भी हो सकते हैं।

 

 

 

 

 क्यूंकि  सतनामी ब्रजक्षेत्र  के रहवासी थे फलस्वरूप उनमें कृष्ण का प्रभाव गहराई से पड़ा है। कहते हैं छत्तीसगढ़ में  सतनाम पंथ  को अहीर और तेली लोग सर्वाधिक अंगीकृत किए थे। फलस्वरूप उनकी पूर्व संस्कृति के अंश आज भी विद्यमानहैं। इसलिए सतनाम पंथ की निर्गुण  निराकार  उपासना, सुमरन ध्यान आदि क्रिया में  कृष्ण की साकार पूजा एंव उनकी लीला चरित का आख्यान गायन एवं भागवत आयोजन का प्रचलन है।

 सतनामियों का रहस शास्त्रीय नहीं अपितु लोक स्वरुप हैं। जहाँ भक्ति के साथ आनंद व मनोरंजन भी प्रधान तत्व हैं।

 

 

 

रहस के प्रकार

प्रायः रहस दो प्रकार के होते हैं:

१ सामाजिक रहस

२ बदना रहस

पहले प्रकार के रहस में किसी ग्राम के लोग मिलकर निर्णय करते हैं कि रहस आयोजित  करना हैं या नहीं ? यह सामूहिक निर्णय और चंदे व सहयोग से सम्पन्न होते हैं। जिसमे सबकी सहमति होती  है। इसे कम से कम लगातार ३ वर्षों तक आयोजन करते हैं। 

 

दूसरे प्रकार  के रहस ऐच्छिक हैं ।इसे  किसी व्यक्ति द्वारा मनौती के रुप में, उनकी मन्नत पूर्ण हो जाने पर आयोजित करवाते हैं। इसका सारा व्यव वह स्वयं उठाते हैं। यह एक वर्षीय आयोजन होते हैं।

ग्राम रहंगी, जिला कबीरधाम, छत्तीगढ़ के सतनामी रहस आयोजन का प्रलेखन

ग्राम रहंगी जिला कबीरधाम, छत्तीगढ़ में सतनामी रहस का सामाजिक आयोजन जून २०१८ में हुआ।

इस आयोजन के दो महत्वपूर्ण पक्ष हैं , मूर्ती निर्माण और रासलीला का प्रदर्शन।

१० दिवसीय रहस में, प्रत्येक दिन क्रमशः  निम्न प्रसंग पर आधारित लीला कथा, वृतान्त प्रदर्शित किये गए  ।

प्रथम दिवस: यदुवंश महात्म्य एंव वासुदेव देवकी विवाह।

द्वितीय दिवस: कृष्ण  जन्म, नंद यशोदा के घर आगमन भविष्य फल वाचन।

तृतीय दिवस: बाल महिमा पूतना वध।

 

चतुर्थ दिवस: अन्न प्रासन्न, गोचारण,  बकासुर वध।

पंचम दिवस: माखन चोरी।

षष्ठम  दिवस: कंदुक खेल, कालिया नाग नाथना,  गोपिकाओ एंव राधा से मिलन।

सप्तम  दिवस: महारास।

 

 

अष्टम दिवस: कृष्ण-बलराम मथुरा प्रवास।

नवम दिवस: चाटुर मुष्टिक पहलवान से युद्ध ।

दशम दिवस: कंस वध के साथ प्रात: गणेश विसर्जन एंव समापन 

 

इस तरह 'रहस बेड़ा' या 'रहसलीला' एक लम्बा अनुष्ठान है जिनका आयोजन भक्ति-भाव, मनोरंजन सहित  सुख-शांति समृद्धि के लिए किए जाता  है। इसमें कृष्ण लीला एवं गुरु घासीदास के उपदेश एवं भजनों को संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया जाता है।

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.