छत्तीसगढ़ी खेल गीत फुगड़ी
फुगड़ी छत्तीसगढ़ के ग्राम्य जीवन में प्रचलित व्यक्तिगत अर्थात एकल लोक खेल है। इसमें किसी तरह की सामग्री नहीं होती है और न ही लम्बा चौड़ा मैदान। फुगड़ी का खेल घर के अंदर आंगन या बराम्दे में खेला जाता है। ग्रामीण खेलों की विशाल संस्कृति में फुगड़ी मात्र खेल न होकर नारी उत्पीड़न का दर्शन भी है। नारी खेल श्रृंखला में यह शीर्ष पर है। यह खेल नाबालिग लड़कियां खेलती हैं युवा एवं विवाहिता को मान्यता नहीं है। यह गीतिक खेल है इसमें जो गीत हैं वह मात्र नारी पीड़ा का दर्शन कराते हैं।
खेलों को खेलते समय गाये जाने वाले कुछ छत्तीसगढ़ी लोक गीत व उनके हिन्दी अनुवाद इस प्रकार हैं:
छत्तीसगढ़ी लोक खेल फुगड़ी
गोबर दे बछरू गोबर दे
चारो खूंट ल लीपन दे
चारो डेरानी ल बईठन दे
अपन खाथे गूदा गूदा
हमला देथे बीजा
ये बीजा ल का करबो
रीह जबो तीजा
तीजा के बिहान दिन
घरी घरी लुगरा
चींव चींव करे मंजूर के पीला
हेर दे भउजी कपाट के खीला
एक गोड़ म लाल भाजी
एक गोड़ म लाल कपूर
कतेक ल मानंव
देवर सुसर।
हिन्दी अनुवाद
गाय (बच्चा) गोबर दो
चारों तरफ की लिपाई करने दो
चारों देवरानियों को बैठने दो
वे खा जाते हैं गूदे
हमें देते हैं बीज
बीज को क्या करें
रह जाते हैं तीज
तीज के दूसरे दिन
नयी-नयी साड़ी
व्याकुल है मयूर के बच्चे
खोल दे भाभी दरवाजे
एक पैर में लाल भाजी
एक पैर में कपूर
कितनों को मानूं देवर-ससुर।
2) छत्तीसगढ़ लोक खेल: फुगड़ी
ममा घर में हम
पांच पईसा पाय हम
पांच पईसा पा के
महल बनाये हम
ये महल का के
भईसा ओईलाय के
ये भईसा का के
गोबर हगवाय के
ये गोबर का के
ये अंगना का के
भउजी ह आय के
ये भउजी का के
लईका होवाय के
ये लईका का के
गिल्ली डंडा धराय के
ये गिल्ली डंडा का के
पईसा जीताय के
ये पईसा का के
पान लेवाय के
ये पान का के
मुहूं रचाय के
येमुहूं का के
दुनिया दिखाय के
एक गोड़ म लाल भाजी
एक गोड़ म कपूर
कतेक ल मानंव
में देवर ससुर
फुगड़ी रे फूं फूं।
हिन्दी अनुवाद
मामा घर गये थे
पांच पैसे मिले थे
पांच पैसे मिले तो
महल बनाये हम
ये महल किसलिए
भैंस रखने के लिए
ये भैंस किसलिए
गोबर पाने के लिए
आंगन लिपाई करने के लिए
ये आंगन किसलिए
भाभी आने के लिए
ये भाभी किसलिए
बच्चे जन्म देने के लिए
ये बच्चे किसलिए
गिल्ली डंडा खेलने के लिए
ये गिल्ली डंडा किसलिए
पैसा जीतने के लिए
ये पैसा किसलिए
पान खरीदने के लिए
ये पान किसलिए
मुंह रंगवाने के लिए
ये मुंह किसलिए
दुनिया को दिखाने के लिए
एक पैर में लालभाजी
एक पैर में कपूर
कितनो को मैं मानूं
देवर-ससुर
फुगड़ी रे फूं फूं।
3) छत्तीसगढ़ी लोक खेल: अटकन-मटकन
अटकन-मटकन दही चटाका
लउआ लाटा बन म कांटा
चिहुरी चिहुरी पानी गिरे
सावन में करेला फूले
चलचल बिटिया गंगा जाबो
गंगा ले गोदउरी
आठ नांगा पागा
कोलिहान सिंग राजा
हिन्दी अनुवाद
श्वास अटकी आँख बंद दही खिलाना
जल्दी-जल्दी वन से लकड़ी इकट्ठा करना
गम का आंसू झरना
अनचाहे आहार लेना
चलो बिटिया गंगा चले
गंगा से गोदावरी
समज के मध्य पगड़ी रस्म
कोलिहान सिंग घर का मुखिया बन जाना।
4) छत्तीसगढ़ी लोक खेल: अजला-बजला
अजला रे अजला
बावन बजला
तीन के तेला
चार करेला
पांच भाई पंडो
छः के गंडो
सात के छिताफल
आठ के गंगाजल
नौ के नागीन
दस के भागीन
गियारा बेटा राम के
जय बोलो हनुमान के।
हिन्दी अनुवाद
अजला रे अजला
बावन बजला
तीन का तेला
चार का करेला
पांच भाई पांडव
छः का गांडव
सात का सीताफल
आठ का गंगाजल
नौ का नागीन
दस का भागीन
ग्यारह बेटा राम का
जय बोलो हनुमान का (की)।
5) छत्तीसगढ़ी लोक खेल: गोल गोल रानी
गोल गोल रानी
अतका अतका पानी
गोल गोल रानी
मुठुवा अतका पानी
गोल गोल रानी
गाड़ी अतका पानी
गोल गोल रानी
अनिहा अतका पानी
गोल गोल रानी
छाती अतका पानी
गोल गोल रानी
टोंटा अतका पानी
गोल गोल रानी
मूड़ अतका पानी
गोल गोल रानी
येती ले जाहूं
तारा लगे हे
सचर लगे हे
येती ले जाहूं
बाहरी म ठठाहूं।
हिन्दी अनुवाद
गोल गोल रानी
इतना इतना पानी
गोल गोल रानी
एड़ी जितना पानी
गोल गोल रानी
घुटना जितना पानी
गोल गोल रानी
कमर जितना पानी
गोल गोल रानी
सीना जितना पानी
गोल गोल रानी
गला जितना पानी
गोल गोल रानी
सिर जितना पानी
गोल गोल रानी
इधर से जाऊंगा
ताला लगा है
इधर से जाऊंगा
फाटक लगा है
इधर से जाऊंगा
झाडू से मारेंगे।
6) छत्तीसगढ़ी लोक खेल: पच्चीसा
हागे डार घोसनीन
घोसर घोसर
पानी नइये पसिया
पसर पसर
हाड़ा के दातुन कर
गुहू के भोजन कर
चीता हाड़ा बिनाथाबे
चित्ताहाड़ा बिनाथाबे।
हिन्दी अनुवाद
घसीया जाति की तरह
मल की सफाई करो
यहां अंजुली भर
पानी है न माड़
हड्डी का दातून करो
मल को ग्रहण करो
बिखरी हड्डी उठा रहा है
बिखरी हड्डी उठा रहा है।
7) छत्तीसगढ़ी लोक खेल: डांडी पौहा
कुकरूस कूँ
काकर कुकरा
राजा दसरथ के
का हे चारा
कनकी कोड़हा
का खेल
डांडी पौहा
कोन चोर
गन्नु।
हिन्दी अनुवाद
कुकरूंस कूं
किसका मुर्गा
राजा दशरथ का
क्या आहार
खण्डा चावल व भूसा
कौन सा खेल
हांडी पौहा
कौन चोर
गन्नु।
8) छत्तीसगढ़ी लोक खेल: खुडुवा
खुमरी के आल-पाल, खाले बेटा बीरो पान
में चलावंव गोंटी, तोर दाई पोवय रोटी
मैं मारंव मुटका, तोर ददा करे कुटका
आमा लगे अमली, बगईचा लागे झोर।
उतरत बेंदरा, खोधरा ला टोर
राहेर के तीन पान, देखे जाही दिन मान
तुआ के तूत के, झपट भूर के
खुडूवा के डू डू डू...
हिन्दी अनुवाद
सजाया हुई खुमरी (छतरी) है
मुंह रंगने वाला पान खा लो बेटा
मैं चलाऊंगा लट्टू, तुम्हारी माँ बनायेगी रोटी
मेरे कहने से तेरा पिता करेगा टुकड़ा
आम और इमली का सुंदर बगीचा
बंदर के उत्पात से हो रहा है नष्ट
अरहर की खेती है सुबह देखेंगे
प्यार से या मार कर उसे बचायेंगे
खुडुवा (कबड्डी) के डू डू डू...
9) छत्तीसगढ़ी लोक खेल: कोबी
चल भईया आवन दे
चल भईया आवन दे
तबला बजावन दे
तबला बजावन दे
कनवा हे धोबी
कतर दे कोबी।
हिन्दी अनुवाद
चलो भैया आने दो
चलो भैया आने दो
तबला बजाने दो
तबला बजाने दो
काना है धोबी
काट दो कोबी (बाल)।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.