बस्तर

Displaying 11 - 20 of 31
मुश्ताक खान
      वर्तमान में इंटरनेट पर उपलब्ध विवरणों में बंगाल, उड़ीसा एवं छत्तीसगढ़ के आदिवासी-लोक धातु शिल्प को ढोकरा धातु शिल्प कह कर संबोधित किया गया है । कुछ पुस्तकों में भी ढोकरा धातु शिल्प का संबोधन मिलता है । इस शब्द का प्रचलन संभवतः 1970 के दशक में आरंभ हुआ और जल्द ही आम बोल-चाल में आ गया । लेखिका…
in Article
मुश्ताक खान
  लॉस्ट-वैक्स पद्धति से धातु ढलाई द्वारा खोखली एवं ठोस मूर्तियां बनाने की कला एक प्राचाीन भारतीय कला है। 2500 वर्ष ईसा पूर्व बनी, सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहनजो दाढ़ो से प्राप्त नर्तकी की धातु प्रतिमा  इस कला का उपलब्ध सबसे प्राचीन नमूना है । इस प्रकार भारत में लॉस्ट-वैक्स पद्धति से धातु ढलाई की लगभग…
in Module
Mushtak Khan in cinversation with Sukdei Koramon her life and the Gurumay tradition of Bastar.
in Video
हरिहर वैष्णव
    जगार संभवतः ‘जागृति’ या ‘यज्ञ’ शब्द का अपभ्रंश है। यह एक ऐसा लोक महाकाव्य है जिसका पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण स्मृति आधारित है। इसकी विशेषता यह है कि इसका गायन केवल महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। जगार की प्रक्रिया में इसकी गायिकाएं, जिन्हें इस क्षेत्र में ‘गुरुमांय’ कहा जाता है, देवताओं का आह्वान…
in Article
मुश्ताक खान
बस्तर के पारम्परिक आहार   हम सभी मानते हैं कि किसी भी प्रान्त का खान -पान वहां की भौगोलिक स्थिति , जलवायु और वहां होने वाली फसलों पर निर्भर करता है। छत्तीसगढ़ एक वर्षा और वन बहुल प्रान्त है, यहाँ धान ,हरी भाजी -सब्जियां और मछली का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है और यही सामग्रियां यहाँ का मुख्य आहार…
in Article
मुश्ताक खान
पनका बुनकरों द्वारा बुने  जाने वाले पैटर्न एवं मोटिफ्स (यह आलेख गांव तोकापाल , बस्तर के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित बुनकर सिंधुदास पनका सेअगस्त २०१८ में हुई चर्चा पर आधरित है )   बस्तर में कपड़ा बुनाई का काम पनका , माहरा , कोष्टा देवांगन ,चंडार और गांडा जाति के लोग करते थे। इनमें से पनका और…
in Article
मुश्ताक खान
  गुरुमांय: वाचिक परम्परा की संवाहिकाएं   आमतौर पर पूजा अनुष्ठानों का संचालन एवं संबंधित कथागायन पुरुष पुजारियों एवं कथा वाचकों द्वारा संपन्न किया जाता है परन्तु महाराष्ट्र के वर्ली आदिवासियों , ओडिशा  और छत्तीसगढ़ के बस्तर के भतरा, परजा एवं हल्बा आदिवासियों के साथ-साथ अन्य गैर आदिवासी जातियों में…
in Article
हरिहर वैष्णव
बस्तर अंचल में  हरियाली अमावस्या (श्रावण अमावस्या), के साथ ही कृषि-चक्र आरम्भ हो जाता है।  इसी के साथ कृषि-सम्बन्धी त्यौहारों और उत्सवों का सिलसिला आरम्भ होता है। यहाँ यह जगार उत्सव के रूप में माने-मनाये जाते हैं। जागर के चार प्रकार होते हैं- आठे जगार, तीजा जगार, लछमी जगार और बाली जगार। जगार धान…
in Module
मुश्ताक खान
बस्तर के अनुष्ठानिक दिये विभिन्न प्रकार के सुन्दर एवं कलात्मक दीपक बनाने की परंपरा समूचे भारत में देखने को मिलती है। मिट्टी,लोहा,पीतल जैसे भिन्न .भिन्न माध्यमों में बनाए जाने वाले इन दीपकों की एक सुदीर्घ एवं समृद्ध श्रृंखला है। विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं के अवशेषों से भांति .भांति के दीपक…
in Article