यहाँ हम बस्तर के काष्ठशिल्प के बारे में विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। बस्तर के पारम्परिक काष्ठशिल्प यहाँ की प्राचीन आदिवासी संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। इन्हे बनाने वाले शिल्पी गोंड, मुरिया, लोहार जैसे समुदायों से भी रहे हैं, परन्तु इनका एक बड़ा भाग मुरिया आदिवासियों की घोटुल संस्कृति एवं माड़िया मृतक संस्कारों से जुड़ा है। इसमें कंघियां, मुखौटे, तम्बाकू रखने की डिब्बियां, वाद्ययंत्र, दरवाजे, माड़िया मृतक खाम्ब, दरवाज़े, सजावटी पैनल एवं उपयोगी वस्तुएं प्रमुख हैं। जब बस्तर के काष्ठशिल्प शहरी बाजार में आ गए और उनकी मांग बढ़ी तो अनेक आदिवासी एवं गैर-आदिवासी युवकों ने इसे अजीविका का साधन बना लिया। आज बस्तर का काष्ठशिल्प शहरी बाजार में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.