दसराहा गीत- गंगा दशहरा के गीत, Dasraha Folk Songs of Chhattisgarh

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Published on: 14 November 2018

अजय कुमार चतुर्वेदी

अध्यापक, लेखक, कवि, गीतकार एवं शोधकर्ता

 

सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा को ‘गंगा दसराहा’ के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर पांच दिनों तक दशहरा मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में झूला, खिलौने, दैनिक उपयोग की वस्तुएं, फल और मिठाईयों की दुकानें सजी हुई रहती हैं।

दसराहा मेला में पान की दुकानों का विशेष आकर्षण रहता है। क्योंकि इस दिन पान खाने का विशेष महत्व समझा जाता है। युवक-युवतियाँ पान खाकर, छाता ओढ़कर ‘दसराहा गीतों’ का गायन करती हैं। दसराहा गीतों में सवाल-जवाब किया जाता है। दसराहा गीत को धंधा गीता और उधुवा गीता भी कहा जाता है। यह गंगा दशहरा मेले का विशेष आकर्षण होता है। दसराहा गीतों में पान का उल्लेख सुनने को मिलता है। ऐसा एक गीत इस प्रकार है-

           लड़का-

                       पान ला मुँह ला करे लाल,

                       बेसी माया ला झिन करबे,

                       एक दिन हो जाही जीव कर काल।

                       चला चली दसराहा मेला देखे ला।।

         लड़की-

                       जरइया ला तय जरे-मरे दे,

                       तेर मोर प्रीत ला आगू बढ़े दे

                       चल चली दसराहा मेला देखे ला।।

 

भावार्थ -

लड़का कहता है कि पान खा कर मुँह लाल किया है, अधिक प्रेम मत करना नहीं तो एक दिन जीव का काल हो जायेगा। चलो दसहारा मेला देखने। लड़की जबाब देती है कि जलने वालों को जलकर मरने दो। तेरे-मेरे प्रेम को आगे बढ़ने दो। चलो दशहरा मेला देखने के लिए।

गंगा दशहरा मेले में युवक-युवती एक दूसरे को पान खिलाते हैं और प्रेम पूर्वक दसराहा गीतों का गायन कर मनोरंजन करते हैं। इसका वर्णन दसराहा गीतों में मिलता है-

 

                           पान खाये सोपारी खाये छोटे छैला चले आवा रे।

                          मय छैला सही हो रे, तोर पान सोपारी सही आहा रे।

                          मोर दांत नइया तो तोर पान सोपारी ला खाओ कइसे।

                          तोर जग मय कइसे जाओं रे। छोटे छैला चले आवा रे।

 

भावार्थ-

इस गीत में युवक कहता है कि दसराहा मेले में पान-सुपारी खाने मेरे पास आओ। इस पर युवती कहती है कि मैं सही हूं तुम्हारा पान और सुपारी भी सही है। किन्तु मेरे दांत ही नहीं है तो मैं तुम्हारे पास पान-सुपारी खाने कैसे आऊं?

सरगुजा अंचल का दसराहा मेला अपरिचित से परिचय बनाने का एक माध्यम भी होता है। लड़के-लड़कियां दसराहा गीत गाकर एक दूसरे के करीब आते हैं और उनका परिचय हो जाता है। इसका उल्लेख दसराहा गीतों में सुनते ही बनता है-             

 

                                  पाकल आमा हिलाओं कइसे,

                                  अनगइहाँ ला मिलाओं कइसे।

                                  पांव परे लेहे रे पान मिठाई।

                                  तांय धराये पान मिठाई सब मिल जाही रे।

 

भावार्थ-

इस गीत में लड़का कहता है कि पके हुए आम को कैसे हिलाऊं? और ठीक उसी तरह अनगइहाँ (अपरिचित) को अपने से कैसे मिलाऊं। लड़की कहती है कि एक दूसरे का अभिवादन (पांव परे) कर मेले से पान और मिठाई खिलाने से अपरिचित व्यक्ति भी परिचित हो जाता है।

 दसराहा गीतों में भक्ति भावना के गीत भी सुनने को मिलते हैं-

 

                          कहां आहा राम, कहाँ आहां लक्षिमन

                          कहाँ आहाँ भरत भगवान।

                          राम बने राम आहां अयोध्या में लक्षिमन,

                          भरतपुर में भरत भगवान।

 

भावार्थ-

कहाँ राम, कहाँ लक्ष्मण और कहाँ भरत भगवान हैं। रामवन में राम, अयोध्या में लक्ष्मण और भरतपुर में भरत भगवान हैं।

सरगुजिहा दसराहा लोक गीतों में मनचले युवक-युवतियों द्वारा प्रेम प्रसंग के भी गीत गाये जाते हैं। मसलन, एक दसराहा गीत में युवक-युवती से कहता है-

 

                                       नागर ला जोते निकले टुकू,

                                       तंय समाचेती रह।

                                       तेला मय हर ले जाहूँ ढुँकू

                                       तंय समाचेती रह।

 

भावार्थ-

नागर (हल) चलाते समय टुकू (ढेला) निकलता है, तुम सचेत रहो नहीं तो मैं तुमको भगा कर शादी कर लूंगा।

 

सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत

यह गंगा दशहरा मेले में गाये जाने वाले विशिष्ट प्रकार के लोक गीत हैं। गंगा दशहरे के अवसर पर गांव के युवक-युवतियां झुण्ड बनाकर दसराहा मेला देखने जाते हैं और दसराहा गीत के माध्यम से सवाल-जबाब करते हैं। इस तरह के गीतों को धंधा गीत (पहेली गीत) कहते हैं। दसराहा गीतों में मनचले युवक-युवतियों द्वारा बुझउल (धंधा) पूछा जाता है। कुछ सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत इस प्रकार हैं-

 

सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत क्रं. 1

                    कोन हर दिया, कोन हर तेल

                    कोन हर मागत है नींदरी,

                    कोन हर मांगेल खेल।

                    दिया मागेल बाती,

                    बाते रे मागेल तेल।

                    दोनों नयना मागत है निदरी,

                    जवानी मांगेल खेल।

 

भावार्थ-

लड़का सवाल करता है कि कौन दिया, कौन तेल, कौन नींद और कौन खेल मांगता है। लड़की जबाब देती है कि दिया बाती (बत्ती), बाती तेल, दोनों नयन नींद और जवानी खेल मांगती है।

 

सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत क्रं. 2

         दस परिसा कुइंया, बीस परीसा जोजन,

         मोर धंधा ला छोरे बीन झिन करिहा भोजन।

         धरे लोटा मुखारी पानी लोटा,

         दस परिसा कुइया बीस परिसा जोजन।

         मोर धंधा ला छोरे बीन झिन करिहा भोजन।

 

भावार्थ-

लड़का पूछता है कि दस परिसा (गहराई मापने का मानक) कुआँ है और बीस परिसा जोजन (गहरा) है। यह क्या है? मेरे धंधा (पहेली) को बिना बताये भोजन नहीं करना है। लड़की जबाब देती है कि यह मुखारी (दातून) का पानी और लोटा है। जिसे दस परिसा कुआँ और बीस परिसा जोजन कहा गया है।

 

सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत क्रं. 3 

                  जाम पके जमटी, पहारे पाके लिम।

                  कातो जीनिस कर उठारह कोरी सींग रहेल रे।

                  काटे जी घाही, तोर धंधा हर होय जंगल कर साही।

 

भावार्थ-

लड़का पूछता है कि किस जीनिस (जानवर) का अट्ठारह कोरी (एक कोरी =20) सींग रहता है। लड़की जबाब में कहती है वह जंगल का साही नामक जानवर है।

 

सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत क्रं. 4

                 खूंटा उपर कोठार, तिहा निम्हें दुनिया संसार रे।

                 बनाये गये लेहे चाक एहर होय रे कुम्हारा कर चाक।

 

भावार्थ-

लड़का पूछता है कि वह क्या है जिसमें खूंटे (लकड़ी के खम्भे) के उपर कोठार (खलिहान) रहता है। जिसकी आवश्यकता सभी को होती है। इसके उत्तर में लड़की कहती है कि यह कुम्हार का चाक है।

 

सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत क्रं. 5

                 चांदनीपुर में चोरी करे, चिमटपुर में धराये रे,

                 हांथपुर में ओकर जान जाही रे।

                 काटे जो घाही तोर धंधा हर हवे मुड़कर डीला।

 

भावार्थ-

इस गीत में युवक पूछता है कि वह क्या है जो चाँदनीपुर (सिर) में चोरी करता है। वह  चुटकी (चिमटपुर) में पकड़ा जाता है और हाथ (हाथपुर) में उसकी जान जाती है। इसके उत्तर में लड़की कहती है कि यह सर का ढीला (जूँ, एक परजीवी) है।  

 

सरगुजिहा दसराहा धंधा लोक गीत क्रं. 6

                     टिटही अस गोड़ बदरी अस पेट,

                     मोर धंधा ला छोरे बीन झिन गाबे गीत।

                     कहे बाजार गये लेहे आंछी,

                     तोर धंधा हवे रे कपड़ा कर छाता।

 

भावार्थ-

इस गीत में लड़का पूछता है कि टिटही चिड़िया के समान पैर और बादल की तरह पेट है उसे क्या कहते हैं? इसके उत्तर में लड़की कहती है कि इस धंधा गीत का उत्तर कपड़े का छाता है। बाजार जाकर अच्छी तरह से आंछा (पूछा) जाता है फिर छाता खरीदा जाता है।

           

इस प्रकार धंधा लोकगीत युवक-युवतियों की सवाल-जवाब के ज़रिये आपस में जान-पहचान करने व मेल-मिलाप बढ़ाने का माध्यम हैं।

 

समग्रतः सरगुजा में मेल-जोल, भाई-चारा, खुशी और मनोरंजन का त्योहार है गंगा दशहरा। यह सरगुजा अंचल में विवाह संस्कारों से बच्चों को अवगत कराने, उनका मनोरंजन करने और मेल-जोल बढ़ाने का माध्यम है। इस अवसर पर गाये जाने वाले लोकगीत व निभाई जाने वाली परम्पराएं यहाँ के स्थानीय जीवन को समझने में मददगार हैं साथ ही लोकजीवन में गंगा की महत्ता का भी प्रमाण देती हैं।

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.