लगभग अड़तालीस वर्षीय पंडवानी गायिका प्रभा यादव पंडवानी के पितामह कहलाने वाले झाडूराम देवांगन की शिष्या और वर्तमान पंडवानी गायकों की अग्रिम पंक्ति में से एक हैं। पंडवानी प्रस्तुति और प्रक्रिया में परंपरा तथा कलाकार की निजिता का क्या स्वरुप है इस विषय पर उनके विचार जानना रुचिकर है। यह एक अल्प शिक्षित परन्तु अनुभव की धनी पारम्परिक ग्रामीण कलाकार की कलादृष्टि और कला प्रस्तुति की जटिलताओं को समझने का अपना प्रयास है।
प्रभा यादव कहती हैं सभी पंडवानी गायक, पंडवानी गाते हैं जिसकी मूल कथा एक ही है परन्तु सभी उसकी प्रस्तुति अलग-अलग ढंग से करते हैं। प्रत्येक पंडवानी गायक का अपना अलग ढंग होता है। वे इस कथा के संवाद और उनमें गीतों और भजनों के सम्मिश्रण से भिन्न-भिन्न प्रभाव उत्पन्न करते हैं। रागी भी उस समय की स्थति के अनुरूप हास्य के लिए कुछ संवाद अपनी इच्छा से जोड़ देते हैं।
Pandvani Performer, Prabha Yadav
गायक अपनी-अपनी कल्पना से कथा दृश्य की रचना करते हैं जो गायक की निजी कल्पनाशीलता और कथा प्रसंगों एवं कथा पात्रों के प्रति उसके निजी रुझान पर निर्भर रहता है। वे अपने अनुभव के बारे में कहती हैं, जब वे प्रस्तुति करती हैं तब-तब उन्हें कथा और उसके सारे चरित्र अपने सामने घटित होते अनुभूत होने लगते हैं, फिर दृश्य रचना और संवाद स्वतः ही मुख से निकलने लगते हैं। उनका मानना है कि जब तक गायक स्वयं को चरित्र नहीं अनुभव करेगा तब तक उसका अभिनय और संवाद सहज और स्वस्फूर्त नहीं हो सकते।
प्रभा यादव बैठकर पंडवानी गायन करती हैं, वे बीच-बीच में घुटनों के बल खड़े होकर अभिनयपूर्ण संवादों की अदायगी करती हैं। कथावाचन के मध्य अनेक बार सबलसिंह चौहान का उल्लेख करती हैं, जिनकी हिंदी चौपाइयों में लिखी महाभारत कथा का वे गायन करती हैं। वे दृढ़ता से कहती हैं कि झाडूराम देवांगन के बाद केवल वे ही शुद्ध वेदमती शैली यानि सबल सिंह चौहान कृत महाभारत के कथा विन्यास के अनुरूप पंडवानी प्रस्तुति करती हैं।
Pandvani Performer, Prabha Yadav with her Mandali
वे मानती हैं, जब कोई गायक प्रस्तुति करता है तब वह व्यास गद्दी पर आसीन रहता है, अर्थात उस समय वह वेद व्यास के अनुरूप महाभारत कथा की रचना करता है। सबल सिंह द्वारा महाभारत हिंदी भाषा में चौपाई और दोहों में लिखी गई है परन्तु पंडवानी छत्तीसगढ़ी बोली में प्रस्तुत की जाती है। इसका छत्तीसगढ़ी में कोई विधिवत अनुवाद नहीं किया गया है। पंडवानी गायक उतने पढ़े-लिखे भी नहीं हैं कि लिखित अनुवाद कर सकें। परन्तु अधिकांश गायक कथा को पढ़ कर नहीं सुनकर याद करते हैं, इस कारण हिंदी से छत्तीसगढ़ी में अनुवाद स्वतः ही सहजता और सरलता से होता जाता है।
वे पंडवानी गायकों का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह मानती हैं कि वे एक ही कथा प्रसंग को पांच दिन तक गा सकते हैं और उसे कुछ घंटों अथवा मिनटों में भी समाप्त कर सकते हैं। कथा का यह विस्तार और संक्षेपीकरण गायक के अपने विवेक, कल्पनाशीलता और संपादन क्षमता पर निर्भर करता है। यह सारा कार्य इतनी सहजता और शीघ्रता से निबटालिया जाता है कि श्रोता को पता ही नहीं चलता। यही पंडवानी गायक की कसौटी है।
Pandvani Performer, Prabha Yadav with her Tanpura
वे मानती हैं कि पंडवानी गायन में गुरु की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि कथा, संवाद, दृश्य रचना,अभिनय और प्रस्तुति की बारीकियां तथा स्थिति के अनुरूप तत्कालीन सामंजस्य बैठाना आदि, शिष्य अपने गुरु को देखकर ही सीखता है। मैं, वही गाती हूं जो मैंने अपने गुरु झाडूराम देवांगन से सीखा और उन्हें करते देखा।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.