घोटुल: मुरिया और माडिया आदिवासी समुदायों का सांस्कृतिक केन्द्र

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Published on: 31 August 2019

हर्षित चार्ल्स (Harshit Charles)

बालघाट से आने वाले हर्षित चार्ल्स एक फ्रीलान्स फोटोग्राफर और डिज़ाइनर हैं | वे कई सालों से आदिवासियों के साथ काम कर रहे हैं | उन्हें हमेशा से ही फोटोग्राफी के ज़रिये कहानियां बताने में दिलचस्पी रही है |आदिवासी जीवनशैली से वे काफी प्रभावित रहे हैं और चाहते हैं की अपने काम के ज़रिये और लोगों को भी आदिवासियों की जीवनशैली के बारे में समझा सकें और आदिवासियों के इर्द गिर्द जो नासमझी है उसे दूर कर
सकें |

घोटुल एक तरह का सामुदायिक स्थान है जो मुरिया एवं माडिया गोंड समुदाय के लगभग सभी गाँव में होता है| यह मुरिया एवं माडिया गोंड आदिवासियों के लिए एक शिक्षा, निर्णय, संचार, संस्कृति और धर्म से जुड़ा स्थान है| सालों पहले बस्तर के मुरिया एवं माड़िया समुदाय ने अपने पारंपरिक ज्ञान को आगे बढ़ाने और गाँव में एकता कायम रखने के लिए घोटुल बनाए| घोटुल लंबे समय तक  जवानों एवं बुजुर्गों के लिए एक सामुदायिक स्थान रहा जिसका समय-समय पर अलग महत्व रहता था| घोटुल के बारे में शोधकर्ताओं और अन्य मानवविज्ञानियों ने जो लिखा उसमें से सिर्फ कुछ बातों को ही लोगों ने जाना और घोटुल के बारे में अपनी एक सोच बना ली| घोटुल के बारे में बने गलत धारणाओं को बदलना, घोटुल से जुड़े कार्यों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बारे में लिखना, घोटुल के ढांचे और कार्य प्रणाली के बारे में जानना, घोटुल के बारे में बुजुर्गों एवं युवाओं की सोच, यह सभी इस  मोड्यूल के मुख्य बिंदु हैं| छत्तीसगढ़ राज्य के कांकेर एवं नारायणपुर जिला और महाराष्ट्र राज्य के गडचिरोली जिला के विभिन्न गाँवों से इस दस्तावेजीकरण की जानकारी और छायाचित्र संग्रहीत किये गये हैं|  इसका मुख्य विषय घोटुल और उससे जुड़ी मुरिया एवं माडिया गोंड समुदाय की संस्कृति और जीवन को समझना और एक आदिवासी के नज़रिए से देखना है| इस दस्तावेजीकरण में एक लेख एक छायाचित्र संग्रह और एक विशेषज्ञ (लालसू नोगोटी) का साक्षात्कार है |