This video is based on the recitation of the Bharthari epic by the Chhattisgarhi artist Rekha Jalkshatri, who began performing the epic at the age of twelve, and has been performing this epic for over forty years, receiving accolades and recognition. An interview with the artist draws out the significance of this tale based on her experience of performing this tale and charts shifts in its performance in her living memory, recording her own agency in introducing change.
गायिका - रेखा देवी जलक्षत्री
Chhattisgarhi: बोलो गनेस भगवान के जय! प्रेम से बोलो श्री महाकालेश्वर महराज की जय! त हम आपके सामने अब भरथरी राजा के कथा सुनात हवन।
Hindi: बोलिए गणेश भगवान की जय! प्रेम से बोलो श्री महाकालेश्वर महाराज की जय! तो हम आपके सामने अब भरथरी राजा की कथा सुना रहे हैं।
आज जनम प्रसंग ऊपर गाहंव। आत्म प्रसंग हे, छठ्ठी के ऊपर हे, बिहाव हे, वैराग, भिक्षा प्रसंग, राजा भरथरी के गोरखनाथ बाबा के सवाल जवाब, त यइ सब बारे में, राजा भरथरी के गाथा हे, ओकर जीवन चरित के गाथा हे, ये सब ल लेके मैं सुनावत हंव।
आज जन्म-प्रसंग, आत्म-प्रसंग, छठी, विवाह, वैराग, भिक्षा-प्रसंग, राजा भरथरी के गोरखनाथ बाबा के साथ सवाल-जवाब; इन सब के संबंध में जो राजा भरथरी की कथा है, उनके जीवन चरित्र के संबंध में जो गाथा है, वह सब मैं सुना रही हूँ।
जइसे हर गाथा गायन के पहिली देव सुमिरन के परंपरा है उहि अनुसार मैं सुमिरन प्रस्तुत करत हंव-
जैसे हर गाथा गायन के पहले देव स्मरण की परंपरा है उसी के अनुसार मैं सुमिरन प्रस्तुत कर रही हूँ।
पहिली मैं सुमिरंव गनेस ल, ये गनेस ल ओ, जेला सबो झन जानत हें।
पहले मैं गणेश का सुमिरन कर रही हूँ, उन्हीं गणेश को जिन्हें सब लोग जानते हैं।
दूजे सुमिरंव दीदी, ये महेस ल ओ, ये महेस ल ओ, भाई येदे गा।
दूसरा सुमिरन बहन ये महेश को, ये महेश को, भाई यहाँ पर।
विद्या के माता सरसती, माता सरसती ना, माता सरसती ना, जेकर जोरंव दोनों हाथे ल।
विद्या की माता सरस्वती, उनका दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करती हूँ।
काया म देव, तीनो देव रहय, ये वोकर लागत हाँवव पंइया ला, येदे पंइया ला, ये दीदी।
शरीर मे तीनों देवों का निवास है, मैं इनको प्रणाम करती हूँ।
पांच गणो मिल रक्षा करो, मिल रक्षा करो, यही कहंव वरदानी ल।
पांचों गण मिलकर मेरी रक्षा करो, यही मैं वरदानी को कह रही हूँ।
महादेवे ह ओ ये हे यज्ञ करय, तेला कोनो तो परघाये वो, हव येदे जय हरि।
महादेव जी यज्ञ कर रहे हैं, उनका क्या किसी ने स्वागत किया है, जय हरि।
गढ़ उज्जैन जग जाहिर हे, जग जाहिर हे, तेकर बेटा हवय,
वोह राजा रइथे, चित्रसेने दीदी, वोह राजा नोहय महाराजा ये, महाराजा ये भाई येदे वो।
गढ़ उज्जैन पूरे विश्व में प्रसिद्ध है जिसका बेटा है राजा चित्रसेन, बहन वह राजा नहीं, महाराजा है, मेरे भाई वह तो।
वोह राजा रइथे, चित्रसेने दीदी, वोह राजा नोहय महाराजा ये, महाराजा ये भाई येदे जी।
रागी! सहर उज्जैन कहत लागय, गढ़ उज्जैन के नाव सारी दुनिया जानथे। कतका सुग्घर महाकालेश्वर हे उन्हां। महाकालेश्वर कहत लागे।
रागी! शहर उज्जैन कहाँ बताएं, गढ़ उज्जैन का नाम सारी दुनिया जानती है। कितना सुंदर महाकालेश्वर है वहाँ।
रागी! उहि सहर उज्जैन म सुग्घर राजा के महल म गोठ बात चलत रहय।
रागी! उसी शहर उज्जैन में सुंदर राजा के महल में बातें हो रही थीं।
रानी रूपदाई कहत लागे, स्वामी एक ठिन बात ला मोर मानव। का कहत हव बतातो तब वो कहिस - अरे जगा-जगा तैं चिट्ठी ला लिख के फेंक देस। हमार इहाँ त लड़का जन्म ले लिस, अउ देवता बनके आइस। बस अतके कन बात ये।
रानी रूपदाई कहने लगी स्वामी एक मेरी बात भी मान लो, क्या कह रही हैं बताएं, वह कहने लगीं अरे जगह-जगह तुम चिट्ठी लिख कर फेंक रहे हो हमारे यहाँ लड़का जन्म लिया है और वह देवता बन कर आया है, बस इतनी ही बात है।
कहाँ-कहाँ के राजा और महाराजा, दीवान ल चिट्ठी लिख लिख के भेजत हे।
कहाँ-कहाँ के राजा और महाराजा, दीवान को चिट्ठी लिख-लिख कर भेज रहे हैं।
एके चिठ्ठी लिखे, येदे काबुल ल वो, येदे काबुल ल वो, दूजे चिठ्ठी दीदी, राजा लिखत हे गा।
एक चिट्ठी लिखी काबुल को, हाँ काबुल को, बहन दूसरी चिट्ठी राजा लिख रहे हैं।
दूजे चिठ्ठी ल ओ राजा लिखथे ना, येदे एकेक चिठ्ठी ल भेजत हे, येदे भेजथे, राजा येदे ना।
दूसरी चिट्ठी राजा लिख रहे हैं, ये एक-एक चिट्ठी भेज रहे हैं राजा अभी।
रागी! एक ठिन चिट्ठी ल लिख के भेज दिस काबुल म, अउ दूसर चिट्ठी फेर लिखे के तइयारी, तिसरा चिट्ठी लिख के भेज डरिस।
रागी, एक चिट्ठी लिखकर काबुल भेज दी और दूसरी चिट्ठी फिर लिखने की तैयारी कर रहे हैं, तीसरी चिट्ठी लिखकर भेज दिए।
अउ जब चंउथईया चिट्ठी लिखथे ना पृथ्वीराज ला, जब पृथ्वीराज चिट्ठी पाथे महल म त पृथ्वीराज कथे अच्छा गढ़ उज्जैन म लइका जनमे हे, ये लइका जनमे हे तेखरे चिट्ठी आए।
और जब चौथी चिट्ठी लिख रहे हैं पृथ्वीराज को, जब पृथ्वीराज चिट्ठी पाते हैं अपने महल में, तब पृथ्वीराज कहते हैं, अच्छा गढ़ उज्जैन में लड़का पैदा हुआ है? यह उसी की चिट्ठी है।
पांचवा चिट्ठी लिख डारिस, छठवां चिट्ठी लिखत हे पंडा ल, सातवां चिट्ठी भेज डरिस, आठवां चिट्ठी भेजत हे, जयभान, कहत लागे, लाल्हा-उदल, मैदा-मोती, ये सब ओकरे बीच म हे रागी।
पाँचवीं चिट्ठी लिख डाले, छठवीं चिट्ठी लिख रहे हैं पंडा को, सातवीं चिट्ठी भेज डाले, आठवीं चिट्ठी भेज रहे हैं, जयभान की कहाँ कहें, आल्हा-उदल, मैदा-मोती यह सब उन्हीं के बीच में है रागी।
छप्पन गढ़ ल भेजत हे चिट्ठी लिख-लिख के। अपन-अपन लोक पहुँचत हे।
छप्पन गढ़ को भेज रहे हैं चिट्ठी लिख-लिख कर अपने-अपने लोग में पहुँच रहे हैं।
रागी, घोड़ा वाला घोड़ा म आवत हे, रथ वाला रथ म आवत हे अउ पैअल वाला पैदल आवत हे। रागी- रेंगईया मन घलो आवत हे वो।
रागी, घोड़ा वाला घोड़ा में आ रहा है, रथवाला रथ में आ रहा है और पैदल वाला पैदल आ रहा है। रागी - रेंगने वाले लोग भी आ रहे हैं क्या?
अई, अगो पइदल वाले मन तको आवत हे गा, रेंगईया अउ पैदल अलग-अलग होथे न, कईसे।
विस्मय से, अजी पैदल वाले लोग भी आ रहे हैं, रेंगना और पैदल चलना क्या अलग-अलग है?
रागी-.....
तोर गोठ अलकरहा चलथे। अरे अलग-अलग ये वो, नहीं रेंगई अउ पैदल एको होथे रागी।
रागी - तुम्हारी बातें विचित्र होती है अरे अलग-अलग नहीं होते रेंगना और पैदल एक ही होते हैं।
रागी, इही बीच म रानी किथे, सब झने तो आवत हे। काशी के पंडित ल बला लेते महराज, अउ काशी के पंडित आतिस त मैं नामकरण करवा लेतेंव। फेर वो चिट्ठी लिखथे। राजा रहय तउन, अउ चिट्ठी लिख के दीवान के हाथ म देवत हे। जब दीवान के हाथ म देथे, जा के पहुँचत हे।
रागी, इसी बीच में रानी कहती है कि सब लोग तो आ रहे हैं, काशी के पंडित को भी बुला लेते महाराज और काशी के पंडित आते तो मैं नामकरण करवा लेती। राजा फिर चिट्ठी लिख रहे हैं, राजा और चिठ्ठियाँ लिखकर दीवान के हाथ में दे रहे हैं। जब दीवान के हाथ में देते हैं, दीवान वहाँ पहुँचता है।
कोन, दीवान रहय तउन पंडित के घर में, पंडित ओतके समें म नहा धो के निकलत रिथे, दीवान ओतके समें चले आत रहिथे। ..... चार दिन हो गए रहिस, आयेच नइ रहिस, ओतका बात ल सुन के कथे, महराज प्रणाम्।
कौन? जो दीवान था वह पंडित के घर में, पंडित उसी समय में नहा-धो के निकल रहे थे, दीवान उसी समय वहाँ चले आए और कहा महाराज प्रणाम।
अरे कहाँ ले आवत हस आतो, वो किथे मैं गढ़ उज्जैन ले आथों, राजा के महल म सुघ्धर लइका जनमे हे तो ओकर नामकरन बर आप ल बलावत हे। महराज तुरत तइयार होगे। अइसे बात ये, महराज रहय तुरंते तइयार होथे, अउ तइयार, अउ महराज रहय तउन ओती आवत हे।
अरे कहाँ से आ रहे हो, आओ तो, दीवान कहता है कि मैं गढ़ उज्जैन से आ रहा हूँ, राजा के महल में सुंदर बच्चा पैदा हुआ है तो उसके नामकरण के लिए आप को बुला रहे हैं। महाराज तुरंत तैयार हो जाते हैं। महराज तुरंत तैयार हो गए, महराज तैयार और महाराज उधर आ रहे हैं।
दूनो एक संग गढ़ उज्जैन पहुँच गए रहय। गढ़ उज्जैन पहुँचही त का कहत हे जानत हस। रानी के महल म जउन चेरिया मन रइथे तउन उहिंचे रथें तउन बताथें, महराज आगे, महराज आगे। रानी रहय तउन लोटा म पानी धर लेथे अउ महराज के चरन ला धोथे तब अंदर म आ जाथे। सुघ्घर ओकर बर आसान बिछाथे नहीं, जब महराज बइठथे त का कहत हजे जानत हस।
दोनों एक साथ गढ़ उज्जैन पहुँच गए थे। गढ़ उज्जैन पहुँचने पर क्या कह रहे हैं जानते हो? रानी के महल में जो दासी और सेविकायें रहती हैं वे बता रही हैं, महाराज आ गए, महाराज आ गए। रानी जो हैं वो लोटे में पानी पकड़ती हैं और महाराज के चरणों को धोती हैं तब वे अंदर आते हैं। उनके लिए सुंदर आसन बिछाया जाता है। जब महाराज बैठते हैं तब क्या कहते हैं जानते हो?
रागी- का कहत हे ओ, महराज तुमन तो बइठ गएव फेर तुंहर बेद-पुरान ल निकालव ना महराज, वो किथे रा, रा, मैं अभी आए हंव मैं जरूर निकालहंव रानी साहिबा।
रागी पूछता है कि महाराज क्या कह रहे हैं? महाराज आप तो बैठ गये पर आपके वेद-पुराण को निकालो ना महाराज। महाराज कहते हैं रूको, रूको, मैं अभी आया हूँ, मैं अवश्य निकालूँगा रानी साहिबा।
नहीं, नहीं, निकाल लेतेव त मैं जान लेतेंव कहत हे रानी। महराज तब अपन बेद-पुरान ल निकालथे अउ महराज ओकर नाव ल निकालथे। तब देखथे, अहा, अति सुंदर, अति सुंदर तो जनमें हे लेकिन..... लेकिन किथे तहॉं रानी के मुँह उतर जथे।
रानी कह रही हैं नहीं, नहीं, निकाल लेते तो मैं जान जाती। महाराज तब अपना वेद-पुराण निकालते हैं और महाराज बच्चे का नाम निकालते हैं। तब देखते हैं, अहा, अति सुंदर तो जन्म लिए हैं किंतु.. किंतु कहते हैं वैसे ही रानी का मुँह उतर जाता है।
लेकिन किंतु परन्तु ये शब्द ह... महराज लेकिन कहत हस, वो का बात ये मोला बतावव, काय कहत हे जानत हस। रागी- काय कहत हे।
लेकिन, किंतु, परन्तु ये शब्द तो.. महाराज आप किंतु कह रहे हैं, यह क्यों मुझे बतायें, क्या कह रहे हैं जानते हो। रागी पूछता है क्या कह रहे हैं?
रानी अतका सुघ्धर लइका हे, अति सुंदर तो हे लेकिन बारा बरस म तोर बेटा जोगी हो जही। नहीं... अइसन मत कहव महराज, जोगी हो जही ये मत कहव, ये मोर तिर के मोहर लेवव फेर जोगी हो जही मत कहव।
रानी इतना सुंदर बच्चा है, बहुत सुंदर तो है किंतु बारह वर्ष में तेरा बेटा जोगी हो जायेगा। नहीं... ऐसा मत कहो महाराज, जोगी हो जायेगा ऐसा मत कहो, ये मेरे पास की मोहरें ले लो किंतु जोगी हो जायेगा यह मत कहो।
चाहे मोहर नहीं चाहे कुछ भी दे, ब्रह्मा के लिखे मिटे नहीं। जउन ब्रह्मा लिख देहे हे तउन नइ मिटय। सात के जघा तै चउदा ले ले। अरे नई मिटय दाई। अरे इन्कावन लेलेलो। अरे नई मिटय, ब्रह्मा के लिखे, नइ मिटे वो।
चाहे मुहर दो या कुछ भी दो, ब्रह्मा के द्वारा लिखा हुआ नहीं मिटता। जो ब्रह्मा ने लिख दिया है वो नहीं मिटता। सात के स्थान पर आप चौदह ले लो। अरे नहीं मिटेगा माता। अरे इक्यावन ले। अरे नहीं मिटेगा, ब्रह्मा का लिखा नहीं मिटेगा।
तभो ले महराज किथे नहीं जउन ब्रह्मा लिख देहे तउन नइ मिटे। अब रानी एती पूजा पाठ के समान ल अपन थारी म धर के भोले नाथ के मंदिर चलत हे, अउ का कहत हे सुनव-
हाथ म फूल धरके चढ़ावंव दिदी वो,
हाथ म फूल धरके चढ़ावंव दिदी वो,
ये भोले बाबा ल वो दिदी काकर के मनांवव।
तब भी महाराज कहते हैं जो ब्रह्मा लिख दिए है वह नहीं मिटेगा। अब रानी इधर पूजा-पाठ के सामान को अपने थाली में रखकर भगवान शंकर के मंदिर की ओर जा रही हैं। और क्या कह रही हैं जानते हो -
हाथ में फूल पकड़कर चढ़ा रही हूँ बहन
उस भोले बाबा को बहन क्या करके मनाउँ
नरियर दूबी दूध रखे फूल के हार
नरियर दूबी दूध रखे फूल के हार
बिगरी बना दे मोर आयेंव तोर दुवारी म
बिगरी बना दे मोर आयेंव तोर दुवारी म
हाथ जोर माथे मे नवांवव बाबा तोर
हाथ जोर माथे मे नवांवव बाबा तोर। ये भोले बाबा ल ओ..
नारियल, दूब, दूध और फूल का हार रखकर
मेरी बिगड़ी को बना दो आपके दरवाजे पर आई हूँ
हाथ जोड़ कर आपके सामने मस्तक को झुका रही हूँ
एक हाथ डमरू धरे एक हाथ म तिरछूल
एक हाथ डमरू धरे एक हाथ म तिरछूल
अंग भर म राख चुपरे गाँजा पिये फुक-फुक वो
गाँजा पिये फुक-फुक।
धतुरा गाँजा पीके, गुस्साये हवय वो। ये भोले बाबा वो ..
एक हाथ में डमरू पकड़े एक हाथ में त्रिशूल
सारे अंग में राख चुपड़कर फूँक-फूँक गाँजा पी रहे हैं
धतूरा गाँजा पीकर, गुस्सा गए हैं
एक पल म भोले बाबा कथे, थोकन वोकर मन गुस्सा होथे अउ फेर दया आथे। अउ एक पल म भोले कथे, बोल बेटी तैं काबर आए हस।
एक क्षण में शंकर भगवान कहते हैं, थोड़ा उनके मन में गुस्सा आता है और दया आ जाता है। और एक क्षण में भगवान शंकर कहते हैं, बोलो पुत्री तुम किसलिए आई हो?
रानी कथे - भोलेनाथ, मोर घर सुघ्घर लइका जनमे हे, महराज कहत हे, बारा बसरस म वो जोगी हो जाही। उहाँ महराज आए हे अपन बेद-पुरान ल देखे हे जब नांव धरे हे भरथरी। महराज कथे ये ह बारा बरस म जोगी हो जही, वोकर नाम ल मोला बदलना हे भोलेनाथ।
रानी कहती हैं – भोलेनाथ, मेरे घर में सुंदर बच्चे ने जन्म लिया है, महाराज कह रहे हैं कि बारह वर्ष में वह जोगी हो जायेगा। वहाँ जो पंडित आए हैं वे अपने वेद-पुराण को देख कर बच्चे का नाम भरथरी रखे हैं। पंडित जी कहते हैं कि बारह वर्ष में वह जोगी हो जायेगा, मुझे उसका नाम बदलना है भोलेनाथ।
हव, ब्रह्मा के लिखे मिटे नइ जाए, ये जउन ब्रह्मा लिख देहे हे, नइ मिटे। वो कुल के दुहाई दिदी, जघ-जघा जाही तोर नाम चलही लेकिन नाम नहीं बदला जाये। आज काल तो नाना प्रकार के नाम ह बदलाथे लेकिन वो भरथरी महराज के नाम ह नइ बदलय, भरथरीच रहिही।
हाँ, ब्रह्मा का लिखा नहीं मिट सकता, ये जो ब्रह्मा ने लिख दिया है वह नहीं मिटेगा। वह कुल की दुहाई देगा, जगह-जगह जायेगा तो तुम्हारा नाम चलेगा किंतु उसका नाम बदला नहीं जा सकता। आजकल तो नाम कई प्रकार के बदल जाते हैं किंतु भरथरी महाराज का नाम नहीं बदलेगा, भरथरी ही रहेगा।
रानी रहय तउन हंसत कुलकत, अपन चेरिया संग हंसी करत अपन घर म आथे। अतिक लोगन आही, राजा महराजा आही, सब झन ला कपड़ा लत्ता, राजा महाराजा कहात लागे।
जो रानी रहती है वह हँसते मुस्कुराते, अपनी दासियों के साथ हँसते हुए अपने घर आती है। इतने सारे लोग आयेंगें, राजा महाराजा आयेंगें, सभी को कपड़ा आदि, राजा महाराजा का क्या कहें।
महराज ल किथे, महराज ये लव तुहंर इक्कीस ठन मुहर धर अउ मोर लइका के नांव भरथरी रइही त भरथरी च राखिहंव। अउ रानी तउन खुसी के मारे कुलके, नाम करन ल तुमन रख देव।
पंडित जी को कहती है, पंडि़त जी ये लो अपना इक्कीस नग मुहर पकड़ो और मेरे बच्चे का नाम भरथरी ही रहेगा, मैं तो भरथरी ही रखूँगी। और रानी खुशी के मारे कुहुक रही है, आप नामकरण कर दो।
झुला म डारत हे लइका ल, सब झन आए हें, चारो मुड़ा घेर के वइठें हें अउ काय कह त हे रागी। नाम करन होवत रहय, नामकरन रखत हे ओखर राजा भरथरी कहत लागय छप्पन गढ़ के राजा, बोल बोल के कहत हे, ओकर नामकरन शब्द हो जाना चाही, सुन कहत हे बता।
बच्चे को झूले में डाल रही है, सभी लोग आए हैं, चारों ओर घेर कर बैठे हैं और क्या कह रहे हैं रागी। नामकरण हो रहा है, उसका नाम रख रहे हैं, राजा भरथरी कहाँ कहें। छप्पन गढ़ के राजा, बोल बोल के कह रही है उसका नामकरण हो जाना चाहिए। सुनो कह रही है बता।
चलव संगी जाबो जी राजा के भुवन मा
चलव संगी जाबो जी राजा के भुवन मा
सोहर गीत गाए बर…
चलो सहेली जायेंगें राजा के महल में
सोहर गीत गाने के लिए
सोहर गीत गाबो, पलना झुलाबो गा
सोहर गीत गाबो लल्ला ल खेलाबो
राजा के भुवन म, चलव संगी …
सोहर गीत गायेंगें, पलना झुलायेंगें
सोहर गीत गायेंगें, लल्ला को खिलायेंगें
राजा के महल में, चलो सहेलियों
राजा ल कइथें रानी मिले
राजा ल कइथें रानी मिले
चऊँथा पन म बेटा ल पाके
खुसी म वो ह बेहाल हे
खुसी म खुसी लुटाबो जी
सब देंवता फूल बरसावत हे। चलव संगी ..
कहते हैं कि राजा को रानी मिली
चौथे पन में बेटा पाके
खुशी में वह बेहाल है
खुशी में खुशी लुटायेंगें
सभी देवता फूल बरसा रहे हैं। चलो सहेलियों ..
रागी, गाना बजना सोहर गीत तो होगे लेकिन अउ बात हे। बताइच डर महराज का बात हे, बताइच डर। महराज बताथे, देख बारा बरस म जोगी हो जही, इही म येकर सादी कर दे, बारा साल के अंदर म।
रागी, गाना-बजाना, सोहर गीत सब तो हो गया किंतु और बात है। बता ही डालो महाराज, बता डालो। पंडित बताता है, देखों बारह बरस में जोगी हो जायेगा, इसी बीच इसका विवाह कर दो, बारह साल के भीतर ही।
अई, बारा साल के अंदर म सादी करिहंव? अभी तो लइका हे महराज। सादी करबे तभे बनही। अब में कइसे कहंव, जावव तुही मन लइका उइका होही त तुही मन लड़की उड़की खेजव। महराज रहय तउन रागी, सुनत हस, ये गाँव वो गाँव सब गाँव ल घुमत रहिथे। घुमत घुमत जाथे सहर सहर म पहुँचथे लेकिन कहीं लड़की नइ मिलय। कोनो अच्छा मिलथे त त कोनो राजा घर नइ मिले, कोनो राजा घर मिलथे त लड़की बने नइ मिलय। उही बीच म, सिंघल दीप म जाथे, उन्हें एक झिन लड़की रहय, श्याम देवी नाम के। सुघ्घर स्कूल जात रहय।
ओह, बारह वर्ष के अंदर विवाह कर दूं? अभी तो बच्चा है पंडित जी। विवाह करोगी तभी बनेगा। अब मैं कैसे कहूँ, जाइये आप ही लड़की होगी तो ढूँढि़ये। जो पंडित था वह रागी, सुन रहे हो, यहाँ-वहाँ सब गाँव में घूम रहा है। घूमता रहता है हर शहर में जाता है किंतु कहीं भी लड़की नहीं मिलती। कोई अच्छी मिलती भी है तो राजघराना नहीं होता, कोई राजघराना मिलता है तो लड़की अच्छी नहीं मिलती। इसी बीच में पंडित सिंहल द्वीप जाता है, वहाँ श्याम देवी नाम की एक लड़की रहती थी। सुंदर थी, स्कूल जा रही थी।
पहिली के स्कूल म पांचवी-छठवीं तक तो रहय, अब तो जादा होगे ग, सही बात ये। नाना प्रकार के कालेज, ये, वो, सब पढ़त लिखत हें। आन भई, हव। वो श्याम देवी करके वो लड़की जाथे स्कूल। लड़की उपर नजर ल डारथे अउ किथे, बेटी ऐती आतो। लड़की लजाथे। अब के मन भकरस ले जाथें, काये। पहिली के मन थोड़ा अइसे लजा के आथें। हमला काबर बलाथे, अउ तीर म जाथे, काये, त किथे तोर का नाम हे, वो किथे मोर नाम श्याम देवी हे अउ तोर माँ बाप के नाम, काबर हमर माँ बाप के नांव ल पूछत हस, त कथे नई बेटी जरूरत हे, चल तोर घर जाहंव, अउ वोकर घर जाथे। रागी, जब ओकर घर जाथे त किथे ये बेटी काकर ये, मोरे ताय, काय। मैं उज्जैन ले आए हंव, सहर उज्जैन म राजा भरथरी कहत लागय चंद्रसेन, इंछ्रसेन, गंधर्वसेन, संगमहल हे। अब आस-पास म रइथस तोला खुदे पता होही, मैं उहें ले आए हंव। वहीं के पंडित अंव, किथे, मैं कासी के अंव राजा मोला बलाए रहिस त आए हंव, तोर बेटी ल देख डरेंव त इहाँ आए हंव।
पहले स्कूल पांचवी-छठवीं तक ही रहता था, अब तो ज़्यादा हो गया है, हाँ यह सही बात है। नाना प्रकार के कॉलेज, यह, वह, सब पढ़-लिख रहे हैं। क्यों है ना भाई, हाँ। वह श्याम देवी नाम की लड़की है वह स्कूल जाती है। पंडि़त लड़की की ओर देखता है और कहता है, बेटी इधर आओ तो। लड़की लजाती है। अब की लड़कियां फ़टाक से चली जाती हैं, क्या है। पहले की लड़कियां थोड़ा लज्जा के साथ आती थीं। मुझे क्यों बुला रहे हैं, वह पास जाती है, क्या है, तब पंडित कहता है तुम्हारा क्या नाम है, वह कहती है मेरा श्याम देवी नाम है। और तुम्हारे माँ-बाप का क्या नाम है, क्यों मेरे माँ-बाप का नाम को क्यों पूछ रहे हो, तब पंडित कहता है नहीं बेटी जरूरत है, चल तेरे घर जाऊँगा, और उसके घर जाते हैं। रागी, जब पंडित उसके घर में पहुँचते हैं तब कहते हैं कि यह किसकी बेटी है? मेरी है, क्या है। मैं उज्जैन से आया हूँ, शहर उज्जैन में राजा भरथरी कहने लगे चंद्रसेन, इंद्रसेन, गंधर्वसेन, रंगमहल है। अब तुम आस-पास में ही रहते हो तुम्हें स्वयं पता होगा, मैं वहीं से आया हूँ। वहीं का पंडित हूँ, कहता है मैं काशी का हूँ राजा ने मुझे बलाया है तो आया हूँ, तुम्हारी बेटी को देखा तो यहाँ आया हूँ।
त बता तो महराज का बात ये तेला, तोर बेटी ल हम राजा भरथरी के नाम में, राजा भरथरी हे, वोकर साथ सादी करना चाहत हन। वो किथे अभी लइका हे महराज, लइका हे त लकइा पन म पहिली पर्रा म तको भांवर परय। अइ हव वो। लइका ये त का होइस, तंय हाँ कह। त चल भई, राजा महराजा कहत लागय। मोर घर कुछ नइ हे महराज, तोर घर कुछ नइ हे त राजा घर ले सब समान आही, हव, तै ह न हव कहि दे। अब वो ह हाँ कहि दीस रागी। एक मन के आगर घुघरी नोहे घाघर, किथे रागी हमर छत्तीसगढ़ म, तइसनहे किस्सा ये। पंडित रहय तउन आगे सहर उज्जैन। आके किथे रानी, सुग्घर लड़की मिले हे। अच्छा कहाँ मिले हे महराज। सिंहलदीप म। अच्छा सिंहल दीप म मिले हे, लड़की के का नाव हे, श्यामदेवी, त श्यामदेवी नाम हवय लड़की के। त चल ठीक हे चट मंगनी पट बिहाव।
तो बताओ तो महाराज क्या बात है, तुम्हारी बेटी का हम राजा भरथरी के साथ विवाह करवाना चाहते हैं। वह कहता है अभी बच्ची है महाराज। तो क्या हुआ बच्चों को बचपने में पर्रा (बांस से बना चौड़ा पात्र) में बैठाकर भी विवाह किया जाता था। अरे हाँ। बच्ची है तो क्या हुआ, तुम हाँ कहो। तो चलो भई, राजा महराजा कहते बने। मेरे घर में कुछ भी नहीं है महाराज। तुम्हारे घर में कुछ नहीं है तो राजा के घर से सब समान आयेगा, हाँ, तुम हाँ कह दो। अब उसने हाँ कह दी। एक टन से भी भारी मसूर की सब्जी नहीं है, तीतर है, हमारे छत्तीसगढ़ में ऐसा ही कहते हैं रागी, वैसा ही किस्सा है। अब जो पंडित है वह शहर उज्जैन आ गया। आकर कहता है, रानी सुंदर लड़की मिली है। सुंदर लड़की मिली है, अच्छा, कहाँ मिली है महाराज। सिंहल द्वीप में। अच्छा सिंहल द्वीप में मिली है, लड़की का क्या नाम है। श्यामदेवी। तो श्यामदेवी नाम है लड़की का। तो चलो ठीक है, चट मंगनी पट विवाह।
तइयारी चलत हे वोती समान भेजवा दीस अउ एती तइयारी, रागी अब तइयार होगे, रात दिन का होगे, हमर मन के तीन अउ ऊँखर मन के सात तेल। पहिली वइसनहे होवय, सहीं बात ये। अब तो जघा जघा हो जात हे, तुरत नेंग तुरत सादी। सब तेलिया कथें, अब ओकर बाद का कहत हे जानत हस। अब जघा जघा बर बिहाव म त निमंत्रण देहे हस ना। सब ल भुलाबे, आल्हा उदल ल मत भुलाबे। आल्हा उदल ल भुला गए रहिस, पहिली जनम के रंजिस करत करत जब राजा भरथरी के जनम होइस न तब उनला मिलाए बर। पृथ्वीराज, आल्हा-उदल सब मिलके उहाँ आवत हे सादी म। जब सादी म आथे, वो हो मत पूछ बाजा अउ गाजा, ठिकाना नइये, सहीं बात ये। बाजा अउ गाजा के ठिकाना नइ हे बर बिहाव म। अब हमर छत्तीसगढ़ के बाजा के तो अलगे बात हे लेकिन हमला कथा लेना हे। रागी, अब वो कहाँ चल दीस। सिंहलदीप म एती देखथे, घोड़ा, ओती देखथे हाथी, वोती देखथे त आदमीच-आदमी, ठिकाना नहीं। मनखेच मनखे। त आदमी अउ मनखे का होइस, अलग अलग ये। फूलपेंट वाले मन ल आदमी कथे अउ धोती पहिरे रथे ते मन ल मनखे कथें। त उहाँ धोतीच धोती दिखता रहिस हे, अइसे। तोर बात अलग रहिथे। रागी हे, उही बीच म सब बात तो अच्छा होवत हे फेर एक ठी बात बने नई होवत ये, का बात ये, गढ़ उज्ज्ौन कहत लागय तब हमन येला परघाए जाबोन।
तैयारी चल रही है, उधर सामान भिजवा दिया गया और इधर तैयारी। रागी अब तैयार हो गया, रात-दिन क्या होगा, हम लोगों का तीन तेल और उन लोगों के सात तेल। पहले वैसा ही होता था, सही बात है। अब तो स्थान-स्थान में हो जाता है, तुरंत रस्म तुरंत विवाह। सब तेलिया कहते हैं, अब उसके बाद क्या कहते हैं जानते हो। अब स्थान-स्थान में विवाह का निमंत्रण दिये हो ना। सब को भूल जाना, आल्हा-उदल को मत भूलना। आल्हा-उदल को भूल गए थे, पिछले जन्म से रंजिश करते करते जब राजा भरथरी का जन्म हुआ तब उनको मिलाने के लिये। पृथ्वीराज, आल्हा-उदल सब मिलकर वहाँ आ रहे हैं विवाह में। जब विवाह में आये, तो मत पूछो बाजा गाजा, ठिकाना नहीं, सही बात है। बाजा गाजा का ठिकाना नहीं है विवाह में। अब हमारे छत्तीसगढ़ के वाद्य की तो अलग ही बात है किंतु हमें कथा लेना है। रागी, अब वो कहाँ चला गया। सिंहल द्वीप पर, इधर देखो घोड़ा, उधर देखो हाथी, उधर देखो तो आदमी ही आदमी, ठिकाना नहीं। मनुष्य ही मनुष्य। तो आदमी और मनुष्य क्या अलग होता है। फ़ुल पैंट वाले लोगों को आदमी कहते हैं और जो धोती पहने हैं उसे मनुष्य कहते हैं। तो वहाँ धोती ही धोती दिख रहा है, ऐसा क्या। तुम्हारी बातें अलग ही रहती हैं। रागी, उसी बीच में सब बातें तो अच्छी हो रहीं हैं किंतु एक बात ठीक नहीं हो रही है, क्या बात है, गढ़ उज्जैन की क्या कहें, तब हम लोग इनका स्वागत करने चलते हैं-
दशरथ आये हे बराती अगा मोर सगा दशरथ आये हे बराती
दशरथ बाराती आये हैं एजी मेरे संबंधी दशरथ आये हैं बाराती
हर घड़ी ऊपर घड़ी ल उपर के लेगे कइथे नहीं आज, लेगे के बाद सुग्घर टीकावन टिकीस टीके के बाद अब रात्रि के समे कथे नहीं आज गुरूवार परगे तोर अमल तो करहौं अरे अमल करहौं।
साढ़े बारा बजे राज के ओकर बिदा करिस गढ़ उज्जैन में
हर क्षण घड़ी के कांटे को उपर ही सरकाता है उसी तरह समय आगे बढ़ता है, सुंदर टीका होने के बाद अब रात्रि के समय कहता है कि नहीं आज गुरूवार पड़ा है, तुम्हारा मान करूंगा, मान करूंगा, बारह बजने के बाद उसे विदा करूंगा। (छत्तीसगढ़ में परम्परा के अनुसार बेटी को लक्ष्मी का रूप माना जाता है और उसकी विदाई गुरूवार, जिसे लक्ष्मी का वार माना जाता है, उस दिन नहीं की जाती, प्रहर बदलने के बाद दूसरे वार का प्रहर आने के बाद ही बेटी की विदाई की जाती है।)
पालकी में राजा हॅ बइठथे एदे बइठय रागी
डोली सजावथे रानी के
रानी जावथे न गढ़ उज्जैन बर
रानी जावय दीदी गढ़ उज्जैन बर
गढ़ उज्जैन पहुँचन लागय वो भाई एदेजी।
पालकी में राजा बैठ रहे हैं, ऐ बैठ रहे हैं रागी
रानी की डोली सज रही है
रानी गढ़ उज्जैन के लिए जा रही हैं
गढ़ उज्जैन पहुँचने लगी भाई अभी
डोला ले उतरगे सुग्घर --------- सोन के पलंग उहाँ बीच म बिछे रानी जाके बइठगे। एक कपड़ा रहिथे ओकर घुंघट म, सुहागरात के दिन रहिथे। राजा भरतरी ओती ते आवत हे। अब राजा रंगमहल म चढ़थे। रानी सोचथे हे भगवान, ये पहिली जनम के मोर बेटा ए अऊ ए जनम म मोर पति ---- हे माँ, हे भोलेनाथ। हे गंगा मइया, सब ल पुकारथे, रागी। धीरे-धीरे राजा भरतरी राहय तेन कहाँ पहुँचगे।
रागी - राजमहल में।
डोली से उतर गई, सुंदर सोने का पलंग वहाँ बीच में बिछा था, रानी उसमें जाके बैठ गई। उसके घूँघट में एक कपड़ा रहता है, सुहागरात का दिन रहता है। राजा भरथरी उधर से आ रहे हैं। अब राजा रंगमहल में चढ़ रहे हैं। रानी सोच रही है हे भगवान, यह पिछले जन्म का मेरा बेटा है और इस जन्म में मेरे पति हैं, हे माँ, हे भोलेनाथ। हे गंगा मइया, सब को पुकार रही है, रागी। धीरे-धीरे राजा भरथरी जो हैं वे कहाँ पहुँचते हैं?
रागी - राजमहल में।
जब रगंमहल म पहुँचथे त अपन एक पांव ल पलंग म रखथे। जब एक पांव ल अपन पलंग म रखथे तब पलंग कुछु नइ होवय। जब दूसरा पांव ल रखे लगिस। सोन के पलंग टूटगे, जब सोन के पलंग टूटथे न। राजा भरतरी उही म बोजागे, जब बोजा जथे। गुस्सा के देखत रथे रानी ल।
आज सुख के दिन आज सुहागरात के दिन ---- कइसे होगे। रानी वा ताली भरथे अउ जाके कोन्टा म खड़ा हो जथे अऊ हीं हीं हीं हाँसथे।
रागी - हाँसे ल धर लेथे।
जब रगंमहल में पहुँचते हैं तब अपना एक पांव पलंग पर रखते हैं। जब एक पांव को अपने पलंग पर रखते हैं तब पलंग कुछ नहीं होता। जब दूसरा पांव को रखने लगे। सोने का पलंग टूट गया, जब सोने का पलंग टूट जाता है ना। राजा भरथरी उसके अंदर धंस जाते हैं, जब उसमें धंस जाते हैं। रानी को गुस्सा कर देखते हैं।
आज सुख का दिन है, आज सुहागरात का दिन है, ये कैसे हो गया। रानी इधर ताली बजाते हुए कोने में जाकर खड़ी हो जाती है और हीं हीं हीं हसने लगती है।
रागी - हँसने लग जाती है।
राजा काय कथे जानथस। तैं हाँसत काबर हस ? ताली काबर मारथस ? यहाँ मै पलंग म मैं बोजाय परे हे। तैं मोला उठाये ल छोड़ दे हस ? एकर राज काए ए मोला पहिली बता।
वो कहिथे स्वामी एकर राज मोला पता नइहे। अगर राज मैं तोला बता देहूँ तो कहानी खतम हो जाही। काबर राज ह रानी ल पता रथे। रानी कहिथे स्वामी - मैं अतका के राज ल नइ जानौं। मोर दिल्ली साहर में हे रानी पिंगला जे मोर बहिनी ए वो पिंगला ल ए राज पता हे। मार गुस्सा के उठथे राजा। अउ उठे के बाद राजा तेन जाके कछेरी म बइठगे। अब कछेरी म जाके बइठगे राहय। ----
राजा क्या कहते हैं जानते हो? तुम हस क्यों रही हो? ताली क्यों बजा रही हो? यहाँ मै पलंग के अंदर धंस गया हूँ। तुमने मुझे उठाना छोड़ दिया है? इसका राज़ क्या है मुझे पहले बताओ।
वह कहती है स्वामी इसका राज़ मुझे पता नहीं है। अगर आपको राज़ बता दूंगी तो कहानी खत्म हो जायेगी। क्योंकि राज़ रानी को पता था।
रानी कहती है स्वामी मैं इस राज़ को नहीं जानती। दिल्ली शहर में मेरी बहन रानी पिंगला है उस पिंगला को इसका राज़ पता है। बहुत गुस्से के साथ राजा उठते हैं। और उठने के बाद राजा कचहरी में जाकर बैठ जाते हैं। अब कचहरी में जाकर बैठे रहते हैं। -----
(कचहरी से अभिप्राय राजसभा होगा)
अउ एती रानी राहय ते रोवथे। स्वामी मोर गुस्सागे। अई स्वामी मोर से गुस्सा के चलेगे। ए मेर के बात इही मेर रहिगे। अब वो कछेरी म जाके बइठथे। कछेरी म जाके बइठगे। उही बीच म ओ रानी पिंगला के तक लड़का जनमगे। ओकर स्वामी के नाम रहिथे मानसिंग। वो राजा मानसिंग ल कहिथे स्वामी। मोर भाटो हवय गढ़ उज्जैन में। भुलाबे झन। --- सब जगा चिट्ठी बॉट देबे लेकिन गढ़ उज्जैन ल झन भुलाबे। उहाँ मोर भांटो हे। उहू ल निमंत्रण दे ल लागही। अरे केहे के बात नइहे ले चिट्ठी लिख देंव।
और इधर रानी जो है वह रो रही है। अरे मेरे स्वामी मुझसे गुस्सा होकर चले गए। यहाँ की बातें यहीं रह गयीं। अब वो कचहरी में जाकर बैठते हैं। कचहरी में जाकर बैठ गए। उसी बीच रानी पिंगला को भी लड़का हुआ। उसके स्वामी का नाम मानसिंग है। वह राजा मानसिंग को कहती है स्वामी, मेरे जीजाजी गढ़ उज्जैन में हैं। भूलना नहीं। सब जगह चिट्ठी भेज देना किंतु गढ़ उज्जैन को मत भूलना। वहाँ मेरे जीजाजी हैं। उन्हें भी निमंत्रण देना पड़ेगा। अरे कहने की बात नहीं है लो चिट्ठी लिख दी।
काहत के देरी रहिथे चिट्ठी लिखत देनी नइ राहय। --- राजा मानसिंग ----। दीवान राहय तेन कहाँ पहुँचगे गढ़ उज्जैन। --- राजा भरतरी घरे म नइ राहय। राजा भरतरी कछेरी म बइठे राहय। कारण गुस्सा।
घर म पता करथे त कहिथे वो कछेरी चल देहे। अब दीवान ह कछेरी म जाके देखथे। वा गुस्सा ह चढ़े हे ओकर। चुपचाप बइठे हे। अऊ बइठे बइठे का काहथे।
कहते देरी होती है चिट्ठी लिखते देरी नहीं होती। --- राजा मानसिंग ----। दीवान रहता है वह कहाँ पहुँच गए गढ़ उज्जैन। --- राजा भरथरी घर में ही नहीं रहते। राजा भरथरी कचहरी में बैठे रहते हैं। कारण - गुस्सा।
घर में पता करते हैं तो बताते हैं वे तो कचहरी चल दिए हैं। अब दीवान कचहरी में जाके देख रहे हैं। बहुत गुस्सा चढ़ा है उनको। चुपचाप बैठे हैं। और बैठे-बैठे क्या कह रहे हैं।
राजा देखथे जी ए दीवान ल वो, रागी, दीवान राहय तेन एक हाथ म दे दिस राजा ल पाती ल अउ सलाम करथे। राजा दीवान ल पूछथे- तैं कहाँ ले आये हस ? वो कहिथे मैं गढ़ उज्जैन ले आये हौं। अच्छा तैं गढ़ उज्जैन ले आये हस ? काबर आये हस ? त वो कहिथे महराज मैं राजा भरतरी के पाती धर के आये हौ मैं हॅ। अउ तैं --- भेजेहस। मोरो घर लड़का जनमें हे --- वो पाती ल धर के वो गढ़ उज्जैन गेहे। -------
राजा देखते हैं दीवान को, रागी, दीवान रहता है वह एक हाथ में राजा को पत्र दे दिया और सलाम किया। राजा दीवान से पूछते हैं- तुम कहाँ से आए हो? वह कहता है मैं गढ़ उज्जैन से आया हूँ। अच्छा तुम गढ़ उज्जैन से आये हो? क्यों आये हो? तब वह कहता है महाराज मैं राजा भरथरी का पत्र लेकर आया हूँ। और आपने --- भेजा है। मेरे घर में लड़के का जन्म हुआ है --- वह पत्र को लेकर गढ़ उज्जैन गया। -------
राजा भरतरी कहिथे --- अच्छा तैं कहा ले आये हस भैया। वो कहिथे मैं दिल्ली साहर ले आये हौं ----
पढ़थे त कहिथे - अच्छा उहाँ लड़का जनमें हे। छट्ठी म मोला बुलाए हे।
एक पंथ दुई काज। राजा भरतरी कथे अब मोला राज के पता उहें मिलही। काबर रानी पिंगला ल ये राज पता हे। उही बीच में रागी राजा भरतरी कहिथे। तैं मोर हाँथी घोड़ा ल दे --- काबर स्वामी ? उहाँ ले छट्ठी के निमंत्रण आये हे।
नहीं........ ? छट्ठी के निमंत्रण में मत जावव। ----
काबर नइ जाहूँ। मैं बिलकुल जाहूँ। राजा भरथरी राहय तेन --- अउ छट्ठी में जाये के तैयारी हे ओहो।
अपन ह जातीस ते जातीस। पूरा गढ़ उज्जैन ल, बावन सुवा ल, ---- सब ल निमंत्रण दे दिस। अब निमंत्रण देके दिल्ली साहर जाथे।
राजा भरथरी कहते हैं - अच्छा तो तुम कहाँ से आए हो भैया। वह कहता है मैं दिल्ली शहर से आया हूँ ---- पढ़ते हैं फिर कहते हैं - अच्छा वहाँ लड़का पैदा हुआ है। छट्ठी में मुझे बुलाए हैं।
एक पंथ दो काज। राजा भरथरी कहते हैं अब मुझे राज़ का पता वहाँ मिलेगा। क्योंकि रानी पिंगला को यह राज़ पता है। उसी बीच में रागी राजा भरथरी कहते हैं। तुम मेरे हाथी, घोड़े को दो --- क्यों स्वामी ? वहाँ से छट्ठी का निमंत्रण आया है।
नहीं........ ? छट्ठी का निमंत्रण में मत जाओ। ----
क्यों नहीं जाऊँ। मैं बिलकुल जाऊँगा। राजा भरथरी जो हैं वे --- और छट्ठी में जाने की तैयारी करते हैं ओहो।
खुद जाते तो जाते। पूरा गढ़ उज्जैन को, बावन सुवा को, ---- सब को निमंत्रण दे दिया। अब निमंत्रण देकर दिल्ली शहर चले गए।
अंधाधुंध। दरबारी से लेके किसान तके। वो कहिथे हम जाबो, वो कहिथे हमू जाबो, छट्ठी में। एती आल्हा-उदल, वो घोड़ा म बइठ के अेती वो चलत हावय। पूरा किसान मन के खेती खार रऊंदागे।
अब पहुँचगे कहाँ दिल्ली साहर। अब दिल्ली साहर में पहुंचे लागिस। का कहिथे - आल्हा - उदल ल बइठार दिस दरवाजा में अउ अपन, राजा मानसिंग --- राजा भरथरी राहय तेन पहुँचगे राजा मानसिंग के घर। राजा मानसिंग हॅ देखथे दूरिहा ले। ए तो हमर साढ़ू अरे हाँ! एक गढ़ उज्जैन के राजा भरथरी आवथे। जोहार-जोहार। राम-राम। पलगी करथे रागी। ............
सब अंधाधुंध इकट्ठे हो जाते हैं। दरबारी से लेकर किसान तक। हर कोई कहता है हम भी जायेंगें, छट्ठी में। इधर आल्हा-उदल, वे घोड़े में बैठ कर चल रहे हैं। किसान लोगों का पूरा खेत रौंदा गया।
अब पहुँच गए कहाँ, दिल्ली शहर। अब दिल्ली शहर में पहुँचने लगे। क्या कहते हैं - आल्हा-उदल को बैठा दिए दरवाजे में और खुद, राजा मानसिंग --- राजा भरथरी जो हैं वे पहुँच गए राजा मानसिंग के महल में। राजा मानसिंग देख रहे हैं दूर से। ये तो हमारे साढ़ू हैं अरे हाँ! गढ़ उज्जैन के राजा भरथरी आ रहे हैं। जोहार-जोहार। राम-राम। अभिवादन करते हैं रागी। ...........
कहाँ हे पिंगला हॅ ? वो तो सुते हे लइका ल धरके। मानसिंग पूछथे तुमन कतका झन आये हौ। अरे मत पूछ हमन कतका झन आये हन तेला। राजा महराजा काहत लाकय। अइसे। मानसिंग राहय तेन अपन सहायक मन ल भेज दिस। कहाँ ? जहाँ खड़े रहिथे वहाँ।
पिंगला कहाँ है? वो तो बच्चे को लेक सोई हैं। मानसिंग पूछते हैं आप कितने लोग आये हैं। अरे मत पूछो हम कितने लोग आये हैं। राजा महराजा नाम ही काफी है। ऐसा। मानसिंग जो हैं वे अपने सहायक लोगों को वहाँ भेजते हैं। कहाँ? जहाँ राजा खड़े रहते हैं वहाँ।
रागी अब राजा भरथरी जाथे। जाके रानी पिंगला ल देखत हे। सुग्घर लड़का जनमे हे। मोर छट्ठी म तैं आये हस। एक ही बात पूछना हे मोला कहिथे। देख सोन के पलंग। बीच मे ओ सोन के पलंग टूटिस त टूटिस काबर ? तो रानी पिंगला कहिथे मैं तोला ए जनम में नइ बतावंव। मै सूआ जनम लेहूँ। त मैं कइसे जानहूँ। मोर एक्कीस ठो बच्चा रही। अब धीरे-धीरे राजा भरथरी राहय तेन राज ल तियाग दिस।
ऐती रानी पिंगला राहय तेन रागी (हमर छत्तीसगढ़ी म ओला काय कहिथे) ओला बाई आगे। बाई आये के बाद माने सर्दियागे। सर्दी म ओ रानी राहय तेन खतम होगे। खतम होये के बाद रागी। सूवा के जनम लेवथे। सूवा के जनम लेके काय काहथे
रागी अब राजा भरथरी जाते हैं। जाकर रानी पिंगला को देखते हैं। सुंदर बच्चा जन्म लिया है। मेरी छट्ठी में आप आये हो। एक ही बात पूछनी है मुझे, कहते हैं। देख सोने का पलंग। बीच में वह सोने का पलंग टूटा तो टूटा क्यों? तो रानी पिंगला कहती है मैं आपको इस जन्म में नहीं बताऊँगी। मैं सूआ का जन्म लूंगी। तो मैं कैसे जानूँगा। मेरे इक्कीस बच्चे रहेंगें। अब धीरे-धीरे राजा भरथरी जो हैं वे राज को त्याग देते हैं।
इधर रानी पिंगला जो हैं वह रागी, हमारे छत्तीसगढ़ में उसे क्या कहते हैं, उन्हें सन्निपात आया। सन्निपात आना अर्थात सर्दी हो गयी। सर्दी के कारण वह रानी जो है, वह मर जाती है। मरने के बाद रागी। सूवे का जन्म लेती है। सूवा के जन्म के बाद क्या कहती है -
तोर मन म काहे मितवा ----
रागी जाके ओला वोह बोलत हे कोन हॅ ? पिंगला हॅ। तोर मन म काहे मितवा मैं नइतो जानौ रे
राजा भरथरी राहय तेन, अच्छा। वो सुवा पाला ल उड़उा लेथे अऊ -- --
तेरे मन में क्या है मीत
रागी, जा कर वह उसे बोल रहा है, मैं कौन हूँ, पिंगला हूँ। तेरे मन में क्या है मीत मैं तो नहीं जानती रे। राजा भरथरी जो है वह, (कहता है) अच्छा। वह उस सुवा को उसके घोंसले से उठा लेता है और ..
पहिली जनम के तैं मोर सारी अस। नॉव रिहिस हे तोर पिंगला लेकिन अब सुवा जनम लेहे हस। मोर सोन के पलंग काबर टूटिस तेला मोला बता। पिंगला कहिथे अगर मैं तोला ऐला अभी ल बता देहौं तो एहा गलत होहै। तेखर ले ---
पिछले जन्म की तुम मेरी साली हो। तुम्हारा नाम पिंगला था किंतु अब सुवा के रूप में जन्म लिया है। मेरा सोने का पलंग क्यों टूटा मुझे बताओ। पिंगला कहती है कहीं मैंने तुम्हें बता दिया तो ग़लत हो जाएगा। इसलिए …
राऊत के यहाँ। एक ठो होही सड़क में। अइसे अइसे वा छै जनम लिस। सात में ओह जनम लिस जेकर नाम है - फूलवा। वोह काहथे, शहर होही गोंदिया। त गोंदिया में सुग्घर फूल धरे आबे। फूल धरे खड़े रहिबे। पूजा करे ल जाहौं तब तोला राज ल बताहूँ।
ग्वाले के यहाँ। एक सड़क में। इस प्रकार से छ: जन्म लिया। सातवाँ जन्म लिया उसमें उसका नाम है फुलवा। वो कहती है शहर होगा गोंदिया। तो गोंदिया में सुंदर फूल पकड़ कर आना। फूल पकड़े खड़े रहना। पूजा करने जब जाऊँगी तब तुम्हें राज़ बताऊँगी।
अब ओतका बात ल सूनिस। दिन के इंतज़ार करत रहिथे राजा भरथरी हॅ। जब इंतज़ार करत आये के बाद मंदिर म पहुँचत हे। माली बनके देखत हे राजा भरथरी हॅ। कब ओकर डोला उतरही। कब ओकर डोला उतरही। डोला उतरगे। मंदिर में पहुँचगे। डोलाहार ल कहिथे भैया एक कना मैं मंदिर म जाहूँ पूजा रे बर।
अब उसकी बात को सुनने लगा। राजा भरथरी दिन का इंतज़ार करने लगा। इंतज़ार करने के बाद मंदिर में पहुँचता है। राजा भरथरी माली बनकर देखता है। कब उसकी डोली आयेगी। कब उसकी डोली आयेगी। डोली आ गई। मंदिर में पहुँच गई। कहार को कहती है भैया मैं थोड़ा मंदिर में पूजा करने जाऊँगी।
उतार देथे अपन डोला ल। ए फूलवा के नाम से रहिथे रानी पिंगला हॅ। जब रानी पिंगला मंदिर म पहुँचथे त फिर वही पूछथे ? पहिली जनम के तैं मोर सारी अस। तोर नाम हे पिंगला। ओकर बाद तैं कइयों जनम लेस। कइयो जनम ले के बाद अब तैं फूलवा बनगे।
अपने डोले से उतरती है। फुलवा के नाम से रहती है रानी पिंगला। जब रानी पिंगला मंदिर में पहुँचती है तो (भरथरी) फिर वही पूछता है। पिछले जन्म की तुम मेरी साली हो। तुम्हारा नाम पिंगला है। उसके बाद तुमने कई जन्म लिए हैं। कई जन्म के बाद अब तुम फुलवा बनी हो।
गोंदिया गढ़ के ए राज ल बता। ये सोन के पलंग टूटिस ते टूटिस काबर ? वो कहिथे - पहिली जनम के वो तोर माँ ए। कोन हॅ ? रानी सामदेवी हॅ पहिली जनम के तोर माँ ए अऊ ए जनम तोर का ए ? पत्नि। तेकर सेती तोर वो सोन के पलंग हॅ टूटिस हे। काबर वो सत्यवती ए। सत्यवती के वजह से टूटिस हे। अइसे अऊ अभी भी वो मोर माँ ए। अइसे कहिके रागी राजा भरथरी राहय तेन वापस आगे।
गोंदिया गढ़ के इस राज़ को बताओ। वो सोने का पलंग टूटा तो टूटा क्यों। वह कहती है पिछले जन्म की वो तुम्हारी माँ है। कौन है, रानी श्यामदेवी, पिछले जन्म की तुम्हारी माँ है और इस जन्म की पत्नी। इसी कारण तुम्हारा वह सोने का पलंग टूट गया। क्योंकि वह सत्यवती है। सत्यवती के कारण टूटा है। ऐसा, और अभी भी वो मेरी माँ है। इस प्रकार कह कर रागी, भरथरी जो है वह वापस