Rakesh Tiwari in conversation with Rekha Jalkshatri: Bharthari Performance
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Rakesh Tiwari in conversation with Rekha Jalkshatri: Bharthari Performance

in Interview
Published on: 22 February 2019
2018, Chhattisgarh, Purkhauti Muktangan

 

Rakesh Tiwari speaks to Rekha Jalkshatri, well-known Bharthari performing artist, about her life and the performing art traditions of Chhattisgarh.

भरथरी लोक गाथा गायिका रेखा देवी जलक्षत्री से साक्षात्कार

नमस्कार जोहार! छत्तीसगढ़ के लोककला के विविध रंग हे विविध रूप हे। इहाँ के नाच हे, इहाँ के गान हे। लेकिन जब हमन जब गाथा के बात करथन त बहुंत अकन गाथा हे इहाँ जइसे पंडवानी हे भरथरी हे चंदैनी हे ढोला मारू हे, कण्ठी ठेठवार हे गोपीचंदा हे सरवन हे। बहुत अकन गाथा हे। अउ गाथा ओला कथन जब हम कोई भी कथा ल गाथन त वो कहलाथे, गाथा। गाना गाके वो कथा ल आगे बढ़ाबोन वो कहलाथे गाथा। आज हम भरथरी के बात करथन, भरथरी के छत्तीसढ़ में अगर कहे जाय तो सबले पहिली जो नाम आथे जो प्रसिद्ध हे वो सुरूज बाई खाण्डे अउ दूसर जो नाम हे वो हे रेखा बाई जलक्षत्री। बड़ा दुख के बात हे के सुरूज बाई खाण्डे हे तेखर अभी-अभी हाल में 3-4 दिन पहिली निधन होइस हे। वोला नमन करत हन वोला हार्दिक श्रद्धांजली। हमर बीच में आज दूसर जोन विश्‍वस्‍त वोकर गायिका हे रेखा देवी जलक्षत्री वो हमर बीच हे। रेखा जी राम-राम! राम-राम।

नमस्कार जोहार! छत्तीसगढ़ के लोककला का विविध रंग है विविध रूप है। यहाँ का नाच है, यहाँ का गाना है। लेकिन जब हम यहाँ की लोक गाथा की बात करते हैं तो यहाँ बहुत सारी गाथायें हैं। जैसे यहाँ पंडवानी है, भरथरी है, चंदैनी है, ढोला-मारू है, कण्ठी-ठेठवार है, गोपी-चंदा है, सरवन है। बहुत सारी गाथायें हैं। जब हम किसी कथा को गाते हैं तो वह गाथा कहलाती है। गाना गाते हुए कथा को आगे बढ़ाना गाथा कहलाता है। आज हम भरथरी की बात कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ में यदि कहा जाए तो सबसे पहले भरथरी गायन में जो प्रसिद्ध नाम आता है वह सुरूज बाई खाण्डे हैं। और जो दूसरा नाम है वह है रेखा बाई जलक्षत्री। दुखद है कि सुरूज बाई खाण्डे का अभी हाल ही में निधन हुआ है। उन्हें नमन करते हुए हमारी उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि। भरथरी की दूसरी जो विश्वस्त गायिका हैं, रेखा देवी जलक्षत्री, वे आज हमारे बीच हैं। रेखा जी, राम-राम!

राम-राम!

 

अउ रेखा जी हॅ बहुत लम्बा समय से हम एला सुनत आवत हन तो आज ये कइसे काकर से सीखिस, कइसे गाथे कोन से शैली में गाथे अउ पुराना जोन गावत रिहिस अभी जोन गावत रिहिसे, वोमा का फरक आगे हे वो सब ल पूरा अपन ढंग से हमन ला विस्तार से बताही रेखा देवी जलक्षत्री जी हॅ। रेखा देवी हमर प्रदेश के जतका भी प्रसिद्ध जेन आयोजन हे राज्योत्सव हे राजीम कुंभ हे, भोरमदेव महोत्सव हे  अउ तोर छेदी लाल बैरिस्टर उत्सव हे, एकर बाद दिल्ली हे, इलाहाबाद हे, लखनऊ हे, कलकत्ता हे, बहुंत सारा हमर देस के जोन अलग-अलग प्रतिष्ठित जेन आयोजन हे ओमा अपन हिस्सादारी करे हे ओमा अपन कार्यक्रम दे हे अउ ताली भी बटोरे हे तो एकर लिए बहुत-बहुत स्वागत हे। अउ अभी आपमन सुने भरथरी।

बहुत लम्बे समय से हम रेखा जी को सुनते आ रहे हैं। तो आज इन्होंने इसे कैसे, किससे सीखा, इसे कैसे गाते हैं, कौन सी शैली में गाते हैं और पुराने समय में जो गाया जाता था, अभी जो गाया जाता है, उसमें क्या फर्क आया है? यह सब रेखा देवी जलक्षत्री जी हमें अपने ढंग से पूरे विस्तार से बतायेंगी। रेखा देवी हमारे प्रदेश के जितने भी प्रसिद्ध आयोजन हैं जैसे राज्योत्सव, राजिम कुंभ, भोरमदेव महोत्सव और छेदी लाल बैरिस्टर उत्सव सहित दिल्ली, इलाहाबाद, लखनऊ, कलकत्ता जैसे बहुत से स्थानों में और देश के अलग-अलग प्रतिष्ठित आयोजनों में अपनी हिस्सेदारी देती हैं और तालियाँ बटोरती हैं। इसके लिए इनका बहुत-बहुत स्वागत है। अभी आप लोगों नें रेखा जी के द्वारा भरथरी सुना है। आइये हम इनसे चर्चा करते हैं।

 

राकेश तिवारी (रा.ति.):- जइसे आपमन सुरू करे रेहेव पहिली ओइसने ऊर्जा आप मन के आखिरी तक रहिथे। अउ हम चाहत हन कि आपमन सुरू से बताहू। हम जानना चाहत रहेन कि आपमन पहिली एला कहाँ से सीखेव ? भरथरी गाना ?

राकेश तिवारी (रा.ति.):- जैसे आपने प्रारंभ किया था वैसी ही ऊर्जा आपकी अंत तक रहती है। हम चाहते हैं कि आप प्रारंभ से बतायें। हम जानना चाहते हैं कि आपने पहले भरथरी गाना कहाँ सीखा?

रेखा जलशक्ति (रे.ज.):- ये भरथरी गीत ल मैं सीखे हौं बचपन ! याने मोर दादा जी हॅ महाभारत, रमायन, पंडवानी, जेकर नाम रिहिस हे मेहत्तर प्रसाद अउ वइसे हमन मांढर के रहइया अन। ग्राम मांढर जिला रायपुर त मै मोर दादाजी से प्रेरणा ले हौं। मोर दादाजी हॅ सिखोइस हे। मोर दादाजी के कहना ए रिहिस हे कि पहिली बहुत पंडवानी जइसे कि झाड़ूराम देवांगन। वो हमर गाँव में बहुत जाय। मैं तीर म बइठे राहंव देखिहौं कहिके। त मोर दादा बोलथे मोर पंडवानी ओकर पंडवानी। पंडवानी गवैया तो बहुत हो जही लेकिन ये भरथरी हे। राजा भरथरी के जीवन गाथा एला तैं अपना। तो सर मैं राजा भरथरी के गाथा ल अपनाएं हौं। 12-13 साल के रेहे हौं। अइसे कण्ठस्थ करे हौं।

रेखा जलशक्ति (रे.ज.):- यह भरथरी गीत मैंने बचपन से सीखा है। मेरे दादा जी मेहत्तर प्रसाद; महाभारत, रामायन, पंडवानी गाते थे। हम मांढर जिला रायपुर के रहने वाले हैं। मैंने अपने दादा जी से प्रेरणा ली है। मेरे दादा जी ने मुझे सिखाया है। छत्तीसगढ़ में पंडवानी गायन बहुत प्रचलित है इसके झाड़ूराम देवांगन जैसे कई सिद्धहस्त गायक-गायिका हैं। झाड़ूराम देवांगन के पंडवानी की प्रस्तुति हमारे गाँव में अक्सर होती थी। मैं बचपन में उनके पास बैठ कर पंडवानी सुनती थी और उनकी प्रस्तुति को देखती थी। बाद में उसे घर में दुहराती थी तो मेरे दादा बोलते थे मेरी पंडवानी और झाड़ूराम की पंडवानी एक जैसी है। दादा कहते थे कि पंडवानी गाने वाले तो बहुत हैं किन्तु भरथरी गायक कोई नहीं है। दादाजी का कहना था कि पहले राजा भरथरी के जीवन गाथा को तुम अपनाओ। इसलिए मैनें राजा भरथरी गाथा गायन को अपनाया। 12-13 वर्ष की उम्र में ही इसे कण्ठस्थ कर लिया था।

 

रा.ति.:- 12-13 साल के रेहे हौ तो स्कूल पढ़ाई-लिखई कैसे होइस?

रा.ति.:- उस समय जब आप 12-13 वर्ष की थीं तो स्कूल की पढ़ाई-लिखाई कैसे हुई ?

रे.ज.:- मैं पढ़े लिखे नइ हौं। एको क्लास नइ पढ़े हौव सर।

रे.ज.:- मैं एक भी कक्षा नहीं पढ़ी हूँ।

 

रा.ति.:- दस्तखत-वस्तखत ?

रा.ति.:- दस्तखत-वस्तखत ?

रे.ज.:- दस्तखत कर लेथंव वइसे।

रे.ज.:- दस्तखत कर लेती हूँ।

 

रा.ति.:- तो दादा बोलिस भरथरी ल गा ?

रा.ति.:- तो दादा बोले भरथरी को गाओ?

रे.ज.:- भरथरी ल गा।

रे.ज.:- हाँ भरथरी को गा।

 

रा.ति.:- कइसे ढंग से आप के प्रशिक्षण सुरू होइस ? के घण्टा सिखौ माने आप दिन में ?

रा.ति.:- किस तरह से आप का प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ? कितने घण्टे रियाज़ करती थीं आप दिन में?

रे.ज.:- मोर दादा पहिली चिकारा राहय। चिकरहा एक झन चिकारा बजावय। वो दादा के नाम तो भूल गए हौं। दादा-दादा काहौं। मोर दादा के नाम जानथौं मेहत्तर प्रसाद रिहिस हे तेन ला। तो एक झन चिकारा धरै। एक झन खंझेरी धरै। मात्र चिकारा अउ खंजेरी अउ एक झन बीच में रागी। ये तीन झन में पहिली भरथरी चलत रिहिस हे।

रे.ज.:- मेरे दादा पहले चिकारा बजाते थे। वे चिकारा और एक और दादा जिनका नाम नहीं जानती वे खंझेरी पकड़ते थे और एक बीच में रागी होता था। पहले ऐसे ही तीन कलाकार इस भरथरी को गाते थे।

 

रा.ति.:- तीने झन राहय पहिली ?

रा.ति.:- पहले तीन लोग ही प्रस्तुत करते थे?

रे.ज.:- तीने झन। माने रागी भरथरी, गायिका माने गायक मोर दादा जी रिहिस अउ चिकारा वाले एक झन बबा रिहिस हे।

रे.ज.:- हाँ तीन लोग ही। अर्थात रागी, भरथरी गायिका या गायक, उस समय मेरे दादा जी गाते थे और चिकारा भी बताते थे और एक खंझेरी वाले।

 

रा.ति.:- अभी आप मन जो गाथव वोमा हारमोनियम बेंजो सब रहिथे?

रा.ति.:- अब आप गाती हैं तो उसमें हारमोनियम बेंजो आदि सब रहते हैं?

रे.ज.:- ये सब अभी आइस हे।

रे.ज.:- ये सब अभी आए हैं।

 

रा.ति.:- तो वो समय के शैली कइसे रिहिस हे ? कइसे गावव आप थोड़ा गाके बतावौ न। एक दम सुरता करलौ। सोच लो के मैं 12-13 साल के हौं।

रा.ति.:- उस समय इसकी शैली कैसी थी, कैसे गाया जाता था? याद करके बताईये, यह सोच लीजिये कि मैं 12-13 वर्ष की हूँ। उसी के अनुसार गा के बताईये।

रे.ज.:- मोर दादा के शैली अइसे रिहिस हे -   

ये दे बोलत हे वो कलमें अमर राजा भरथरी।

राजा काहथे न कलमें अमर राजा भरथरी। बाई एदे जी।

गढ़ उज्जैन जग जाहिर हे जग जाहिर हे।

होत एकर बेटा हावय चंद्रसेन न।

उहाँ राजा रहिथे राजा के ये महाराजा ये। बाई एदे जी।

रे.ज.:- मेरे दादा की शैली ऐसी थी -   

ये बोल रहे हैं बहन कलयुग में अमर राजा भरथरी।

राजा कह रहे हैं ना कलयुग में अमर राजा भरथरी। बाई ये जी।

गढ़ उज्जैन जग जाहिर है जग जाहिर है।

उसका बेटा होता है चंद्रसेन ना।

वहाँ राजा रहता है राजा का वह महाराजा है। बाई ये जी।

 

रा.ति.:- खंजेरी अउ चिकारा ?

रा.ति.:- खंजेरी और चिकारा ?

रे.ज.:- खंजेरी-चिकारा। खाली एक शैली एक तर्ज राहय।

रे.ज.:- खंजेरी-चिकारा। सिर्फ एक शैली एक तर्ज रहता था।

 

रा.ति.:- बीच-बीच में एकर भावार्थ चलत रिहिस होही ?

रा.ति.:- बीच-बीच में इसका भावार्थ चलता रहा होगा ?

रे.ज.:- भावार्थ चलत रिहिस हे।

रे.ज.:- हाँ भावार्थ चलता था।

 

रा.ति.:- अइसे होवय, वइसे होवय ?

रा.ति.:- ऐसा हुआ, वैसा हुआ?

रे.ज.:- हाँ। वोइसने कहानी।

रे.ज.:- हाँ। उसी तरह कहानी।

 

रा.ति.:- तो वो जमाना में अउ कोन-कोन भरथरी गावत रिहिस हे ?

रा.ति.:- उस जमाने में और कौन-कौन भरथरी गाते थे?

रे.ज.:- वो जमाना में मात्र मोर दादा रिहिस हे एक झन अउ हमरे गावेंच के रिहिस हे वो हॅ। दादा दादा काहौं। दुए झन गावत रिहिस हे।

रे.ज.:- उस जमाने में मात्र मेरे दादा गाते थे। एक और थे हमरे गावं में वे भी, दो लोग गाते थे।

 

रा.ति.:- सुरूज बाई खाण्डे जी के सुने हौ आप मन हॅ ?

रा.ति.:- सुरूज बाई खाण्डे जी की भरथरी सुना है आपने ?

रे.ज.:- वो सुरूज बाई खाण्डे हॅ समझ जा हमर जमाना के ए। तो सुरूज बाई खाण्डे के बारे में बतावत हौं। विजय गुरू करके हमर गुरू हे रायपुर के। सतनामी समाज के। तो खंडवा गाँव हे। तो बरसाती दादा मेर मैं आकाशवाणी आवंव। वो तो मैं पहिली खेत-खलिहान निंदई कोड़ई में जात रेहेंव। बिना स्वर परीक्षण के मोला बुला लिस। इहू मोर भाग्य हे। तो बरसाती दादा हॅ कहिथे - तैं हॅ अउ कोनो गायिका ल जानथस ? तो विजय गुरू कहिथे - सुरूज बाई खांडे हे वोला जानथस ? मैं कहिथौं - हौ। वोला एक दू बार देखे रेहेंव। ओकर गाँव जात रेहेन। बिलासपुर में। कुदुदण्‍ड के रहइया ये। अउ अइसे ओकर गाँव दंतरेंगी ए। तो सुरूज बाई खांडे ल बिचारी ल लाए बर गेन। त कथे ओकर मां के तबियत खराब रिहिस हे। सुरूज बाई खांडे ल जब लाये बर गे हन तो वोह बहुत अच्छा गाके सुनाइस। बहुत कुछ गावय हे चंदैनी, ढोला मारू अउ अपन ए घोड़ा रोवय घोड़सार। ए अभी हाल के ए समझ जा। वो तो बचपना वाले बात रिहिस हे। जब हमर जानती में सुरूज बाई खांडे भी गाइस हे। अउ में तो अभी गातेच हौं। अउ हम दूनो अब मिल के भरथरी गायन करथन।

रे.ज.:- सुरूज बाई खाण्डे समझो हमारे ज़माने की है। मैं आपको सुरूज बाई खाण्डे के बारे में बताती हूँ। मैं पहले खेत-खलिहान में निंदाई-गुड़ाई का काम करती थी। उस समय बिना स्वर परीक्षण के मुझे आकाशवाणी में बुला लिया गया था। यह मेरा सौभाग्य था। रिकार्डिंग के लिए मैं बरसाती दादा के पास आकाशवाणी आती थी। उन्हीं दिनों बरसाती दादा ने कहा कि - तुम और किसी गायिका को जानती हो तो उसे भी आकाशवाणी में रिकार्डिंग के लिए लाओ। मैनें कहा हाँ, लाती हूँ। सतनामी समाज के विजय गुरू हमारे गुरू हैं, रायपुर में रहते हैं, खंडवा उनका गाँव है, वे एक दिन मुझसे कहते हैं - सुरूज बाई खांडे है उसे जान रही हो क्या? मैंने कहा – हाँ, उन्हें मैंने उस समय दो बार देखा था। हम उनके गाँव में जाते थे। बिलासपुर के पास कुदुदंड की रहने वाली हैं। वैसे वह मूलत: दंतरेंगी गाँव की रहने वाली हैं। उन्हीं सुरूज बाई खांडे को ले के रायपुर आए। उन्होंने चंदैनी, ढोला मारू और घोड़ा रोवय घोड़सार आदि अपनी प्रस्तुति दी। वो भी बचपने से गा रही हैं। तब से हम दोनों भरथरी गायन करते हैं।

 

रा.ति.:- सुरूज बाई जोन गावत रिहिस हे। वो अलग-अलग शैली म गावत रिहिस हे ?

रा.ति.:- सुरूज बाई जो गाती थीं वह अलग शैली है क्या?

रे.ज.:- जी हाँ।

रे.ज.:- जी हाँ।

 

रा.ति.:- ओकर कोई धुन बताऔ सुरूज बाई खाण्डे जो धुन गावै ?

रा.ति.:- सुरूज बाई खंडे का कोई धुन गा कर बताइये?

रे.ज.:- हाँ वो अलग धुन गावै -

    घोड़ा रोवय घोड़सार म वो

    रानी रोवय रससार म

    ये दे बोलथे न कलमें अमर राजा भरथरी

    ये दे काहथे न कलमें अमर राजा भरथरी। बाई ये दे जी

    फाट जते धरती हमा जातेंव हमा जातेंव न

    काहन लगथे आज, ये दे चला

    बोलन लागथे राजा हे। बाई एदे जी।

रे.ज.:- हाँ वो अलग ही धुन में गाती थीं-

घोड़ा रो रहा है घुड़साल में।

रानी रो रही है रंग महल में।

ये बोल रहे हैं कलयुग में अमर हैं राजा भरथरी।

ये कहते हैं ना कलयुग में राजा भरथरी अमर हैं। बाई ये दे जी।

धरती फट जाती जिसमें समा जाती मैं।

कहने लगी आज, ये चलो।

बोलने लगता है राजा। बाई एदे जी।

 

रा.ति.:- बहुत अच्छा। अच्छा रेखा जी ए बतावौ जब बचपन में दादाजी से जइसे आपमन सीखेव, तो फिर ये टीम कइसे बनाएव ? जइसे पेटी तबला बेंजो।

रा.ति.:- बहुत अक्छा। रेखा जी ये बताइये बचपन में आपने दादाजी से सीखा, फिर आगे टीम कैसे बनायी? जैसे पेटी, तबला, बेंजो।

रे.ज.:- ए टीम ल बनाये हौं सर। मैं सबसे पहिली गायिका ये चुनके अच्छा गाथे ये लइका हॅ थोड़ा तोतली हे कहिके न ---।

रे.ज.:- तब से इस टीम को मैंने बनाया है। मैं बचपन में तुतलाती थी तो सब अच्छा गाती हैं कह कर प्रोत्साहित करते थे।

 

रा.ति.:- थोड़ा थोड़ा तोतराथस ? घोड़ा ल घोरा बोल देथस ?

रा.ति.:- थोड़ा-थोड़ा अभी भी तुतलाती हैं? घोड़ा को घोरा बोलती हैं?

रे.ज.:- हौ। बड़े शब्द नइ बनै।

रे.ज.:- हाँ। बड़े शब्दों का उच्चारण नहीं बनता।

 

रा.ति.:- तो रायखेड़ा पाल्टी रिहिस हे ?

रा.ति.:- पहले आप रायखेड़ा पाल्टी में जाती थी उसके संबंध में बतायें?

रे.ज.:- हूँ नाचा पाल्टी! हाँ नाचा पाल्टी। जेमा मेन रिहिस हे वो अंकल के नाम झाड़ूराम शांडिल्य। तो ओला पता चलिस के मांढर में एक छोटे से गुड़िया गाना वाना गाथे।

रे.ज.:- हाँ रायखेड़ा नाचा पाल्टी था जिसके मुखिया झाड़ूराम शांडिल्य थे। उन्हें पता चला कि मांढर में एक छोटी सी गुड़िया गाना गाती है।

 

रा.ति.:- माने तैं अपन दादाजी से भरथरी सीखे के बाद सीधा भरथरी के टीम नइ सीधा नाचा पार्टी म भर्ती होए हस ?

रा.ति.:- मतलब आप अपने दादाजी से भरथरी सीखने के बाद पहले नाचा पार्टी में भर्ती हो गईं?

रे.ज.:- सीधा नाचा पार्टी में। वोमन हॅ केवल वो तोतली के नाम से मोला गवाए बर लेगै। तो नाचा पार्टी में मात्र मैं हॅ गाना वाना गावत रेहेंव। अउ कभू-कभू अइसे डांस-वांस भी कर लेत रेहेंव। पांव में घुंघरू बांध के। अब अइसे-अइसे अब वो पाल्टी ल छोड़ के। जब वो अंकल के देहाँत होगे। देहाँत होये के बाद ओकर पाल्टी टूटगे। टूटे के बाद फिर मैं सोंचेव अब काय किया जाय। तो पद्मलोचन जायसवाल मिलगे वोही बीच म, काबर कि हमन रायगढ़ गे रहे हन। वो कटही के रहैया ए हमर जायसवाल भैया हॅ। वोला पता चलिस। कहिस बड़ सुग्घर गाना गाये रे छोकरी कहिस। जायसवाल भैया अपन बरसाती दादा ल फेर लाइस। बरसाती दादा के द्वारा खैरागढ़ गेंव। खैरागढ़ में लल्ला परिवार में ठहराइस। संगीत विश्‍वविद्यालय में बहुंत कुछ प्रशिक्षण फोंक डांस, फोंक गाना अइसे सीखेन। सिखाए ल गेन। सीखे नइ आंव। सीखाए ल गे रेहेंव दादा के द्वारा। ओकर बाद सर फिर मै अपन मन के ठान लेंव कि मोला भरथरी भजन गाना हे। जेन मोला 20-22 साल ले साथ दिस हे वोकर नाम रिहिस हे मोर हारमोनियम वाला मानसिंग धीवर ... साहू अउ मोर रागी तो हई हे।

रे.ज.:- हाँ पहले नाचा पार्टी में। वे मुझे तोतली है कह कर मुझसे गवाते थे। फिर कभी-कभी पांव में घुंघरू बांध कर डांस-वांस भी करने लगी। झाड़ूराम जी की मृत्यू के बाद पार्टी टूट गई। फिर मैं छुटपुट स्वतंत्र रूप से भरथरी गायन की प्रस्तुति देने लगी। उसी समय पद्मलोचन जायसवाल मिले वे ही बरसाती दादा से मिलाये उनके द्वारा खैरागढ़ विश्वविद्यालय गई। वहाँ विद्यार्थियों को लोक गीत, गायन, नृत्य सिखाते-सिखाते बहुत कुछ सीखने को मिला। उसके बाद मैने ठान लिया कि मुझे भरथरी भजन ही गाना है। तब से लगभग 20-22 वर्ष से मेरा हारमोनियम वाला मानसिंग धीवर और मेरे अन्य साथी मेरा साथ दे रहे हैं।

 

रा.ति.:- सुरू से हे ?

रा.ति.:- प्रारंभ से हैं?

रे.ज.:- सुरू से हे।

रे.ज.:- हाँ प्रारंभ से हैं।

 

रा.ति.:- ए मन ल सब बताए के हमन अइसन-अइसन टीम बनाबो। भरथरी के कहिके ?

रा.ति.:- इनको आपने बताया होगा कि भरथरी की टीम बनायेंगें ऐसा?

रे.ज.:- हाँ। टीम बनाबो कहिके। तो हम पहिली 6 टीम लेवत रेहेन। 6 झन के। 6 झन के देके बाद आदिवासी लोक कला परिषद में भोपाल। ए खैरागढ़ से भोपाल भेज दिस। भोपाल वाला मोला भेज दिस नागपुर जोन नागपुर वाला सीधा इलाहाबाद केन्द्र। इलाहाबाद वाले कहिथे कि एमा बहुत चीज के कमी हे रेखा जी आपका। तो कइसे सर ? तो कहिथे - हाथ में कुछ लौ। खाली हाथ खाली गाथस भर। हुंकारू देवईया तो हे लेकिन खाली खाली लगत हे ये हाथ हॅ। जइसे पंडवानी वाले तमूरा बजाथे वइसे कुछ होना चाहिए। ओकर से कुछ हटके। पंडवानी से हटके। तो पंडवानी से हट के मैं करताल रखेंव। करताल बनवाएंव अपन मर्जी से। तो करताल धरके गाथौं बजाथौं। मोर टीम भी खड़ा होगे। ओकर बाद अब कुछ दिन के बाद ये पुराना टीम ल छोड़ के फिर ये लइकामन ल शामिल करेंव।

रे.ज.:- हाँ। पहले हमारी छः लोगों की टीम रहती थी। खैरागढ़ विश्‍वविद्यालय की अनुशंसा से मैं आदिवासी लोक कला परिषद भोपाल के संपर्क में आई। कला परिषद नें भारतीय सांस्कृतिक केंद्र नागपुर ज़ोन और इलाहाबाद केन्द्र से संपर्क कराया। इन सभी संस्थाओं के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुति देती रही। इलाहाबाद केंद्र वाली एक मैडम ने कहा कि आपकी प्रस्तुति में बहुत कुछ कमी है रेखा जी। तो मैनें पूछा कि बताईये उसे कैसे पूरा करें। उन्‍होनें कहा कि प्रस्तुति में तुम गाने के साथ हाथों में कुछ लो। जैसे पंडवानी में तंमूरा रहता है उसी तरह कुछ होना चाहिए, उससे कुछ हटके। तब मैं करताल रख के गाने बजाने लगी। धीरे-धीरे मैंने टीम बनाया, समयान्‍तर में पुराने टीम को छोड़ कर इन लड़कों को शामिल किया।

 

रा.ति.:- गहना गूठा भी पहिने ल परथे ?

रा.ति.:- आभूषण भी पहनना पड़ता है क्या?

रे.ज.:- 3 तोला के पइरी हे, एदे अंगूठी के पहुंची हे, सर्रा हे सूता हे ये सब किसिम किसिम के पहिरे लगथे छत्तीसगढ़ी में।

रे.ज.:- तीन तोले की पैरी, अंगूठी, पहुंची, सर्रा, सूता ये सब किस्म-किस्म के छत्तीसगढ़ी आभूषण पहनने पड़ते हैं।

 

रा.ति.:- अइसे तुम कहाँ कहाँ प्रोग्राम दे हौ देश भर में ? प्रदर्शन कहाँ कहाँ करे हौ ?

रा.ति.:- आपने कहाँ-कहाँ प्रोग्राम दिया है?

रे.ज.:- वइसे तो भारत के हर कोना। अब कहे के मतलब हर जगइ अइसे नइ केहे सकौं कि मै कई जगह देहौ। एक ठी अउ बतावत हौ एक जगह कई घौं कार्यक्रम दे हौं। 4 घांव, 5 घांव। तीजन दीदी जिहाँ जाय रेखा जाय जिहाँ रेखा जाय उहाँ तीजन दीदी जाय। पहिली हमर मन के अच्छा चलत रिहिस हे। अब कारण ये हे कि छत्तीसगढ़ के शिखर हे कोन ? हमर तीजन दीदी तो छत्तीसगढ़ के तीजन दीदी शिखर हे तो तीजन दीदी के पीछे पीछे जिहाँ तीजन दीदी जाथे तिहाँ रेखा जाय। हर वार्षिक मैं ह दिल्ली मनाये जात रेहेंव।

रे.ज.:- भारत के कोने-कोने में हमने अपना प्रोग्राम दिया है।

 

रा.ति.:- एक बात बताइये कि शुरू में जब आपके दादाजी ये उस समय तो पुरूष लोग सब गा रहे थे तो फिर स्त्रीयों का इसमें प्रवेश कैसे हुआ ?

रा.ति.:- शुरू में जब आपके दादाजी गाते थे तो उस समय तो गाथा गायन पुरूष लोग ही करते थे तो फिर इसमें स्त्रियों का प्रवेश कैसे हुआ?

रे.ज.:- प्रवेश बचपना से हे। बचपन से मैं हॅ

रे.ज.:- मैं बचपन से गा रही हूँ। बस यही समझ लें तब से।

 

रा.ति.:- उन्होने कैसे परमिट किया ? इजाजत कैसे दी कि यह बच्ची गायेगी।

रा.ति.:- आपके परिवार वालों नें कैसे इजाज़त दी कि यह बच्ची गायेगी।

रे.ज.:- मोर दादा के कहना ये रिहिस हे सर कि हरेक कोई पंडवानी गावत हे तो मोला पंडवानी न गाके दूसर गा (शांति बाई चेलक, तीजन बाई के साथ साथ शुरू हो जा।) तो तैं हॅ भरथरी गा। वइसे मैं पंडवानी भी गावत रेहेव सर बइठ के वैसे चौंरा में सुना कहय।

रे.ज.:- उस समय बहुत सी महिलायें पंडवानी गाने लगी थीं तो मेरे दादा जी का कहना था कि हर कोई पंडवानी गा रहे हैं तो तुम पंडवानी न गाके दूसरा कुछ गाते हुए, शांति बाई चेलक, तीजन बाई के साथ-साथ शुरू कर दो। उन्‍होंनें कहा तुम भरथरी गावो, वैसे मैं पंडवानी भी गाती थी और प्रस्तुति भी देती थी।

 

रा.ति.:- ये जो चिकारा, ये खेजेरी जो लोग बजा रहे थे वो कौन से सन की बात होगी जो अपने ये हारमोनियम बेंजो वगैरह इसमें आये ?

रा.ति.:- ये चिकारा, खेजेरी जो लोग बजा रहे थे वो कौन से सन की बात होगी और ये हारमोनियम बेंजो वगैरह इसमें आये वह?

रे.ज.:- सन तो याद नइ हे।

रे.ज.:- सन तो याद नहीं है।

 

रा.ति.:- के साल के रहे तै ?

रा.ति.:- आप कितने साल की रही होंगें जब ये आया?  

रे.ज.:- मैं वो साल में रहेव करीब 15 साल के।

रे.ज.:- मैं करीब 15 साल रही होंगी।

 

रा.ति.:- 15 से 17 साल के रहे तो शुरू करे रहे ?

रा.ति.:- 15 से 17 साल की रही होंगी तब शुरू किया आपने?

रे.ज.:- हाँ जी।

रे.ज.:- हाँ जी।

 

रा.ति.: मतलब सन 2000 मं मतलब अभी 2018 है तो मान के चले कि 2000 में ये हारमोनियम और बैंजो इसके अन्दर आये ? 90-91 में। 85-90 ? हौ 85-90। मतलब के कहा जाए कि 85-90 मे हारमोनियम यूज हूआ। हा शुरू हो गया था। और तबला ? तबला, हारमोनियम, ढोलक, बेंजो

रा.ति.: अर्थात अभी 2018 है तो मान के चलें कि 2000 में ये हारमोनियम और बैंजो इसके अन्दर आये? 90-91 में? 85-90? हाँ 85-90। मतलब कहा जाए कि 85-90 मे हारमोनियम का उपयोग हुआ। हाँ शुरू हो गया था। और तबला? तबला, हारमोनियम, ढोलक, बेंजो?

रे.ज.:- बेंजो ? बेंजो नइ रिहिस सर।

रे.ज.:- बेंजो? बेंजो पहले नहीं था।

 

रा.ति.:- बेंजो पहिली नइ रिहिस हे ?

रा.ति.:- बेंजो पहिले नहीं था?

रे.ज.:- हाँ। बेंजो तो अभी येदे 10-12 साल होवत हे। आजकाल दुनिया भर के वो ड्रम, पेड वगैरह ये सब नइ रिहिसे, अभी-अभी आइस हे।

रे.ज.:- हाँ। बेंजो तो अभी अभी 10-12 साल हो रहा है। आजकल तो दुनिया भर के वो ड्रम, पैड वगैरह आ गए है पहले ये सब नहीं था, अभी-अभी आए हैं।

 

रा.ति.:- आपके जो ड्रेसेस जो आपने पहने हैं और स्टेज बनाके उसके उपर करने लगते हैं ये कब से शुरू किया ?

रा.ति.:- आपने जो परिधान पहना हैं और जो स्टेज बनाते हैं वह कब से शुरू किया?

रे.ज.:- ये जो ड्रेस बनाके पहने हौं। तो मोर दादा के कहना रिहिस हे कि जब ते राजा भरथरी के गाथा ल आगे बढ़ावत जाबे तो हमर छत्तीसगढ़ के परम्परा दिखाबे तो ये सब वेशभूशा ल पहिल के तोला उतरे बर परही। तो मैं थोड़ा लइकुसहा रेहव तो लुगरा हॅ तो पहिनत नइ बनत रिहिस। तो पहिली लुगरी मिलय। छोटे-छोटे। तो लुगरी पहिना के मोला स्टेज मे लाइस हे।

रे.ज.:- ये परिधान बनाके पहले मैंनें अपनाया। मेरे दादा का कहना था कि जब तुम राजा भरथरी की गाथा को आगे बढ़ावोगी तो हमारे छत्तीसगढ़ की परम्परा को दिखाना इसीलिए ये सब वेशभूषा को तुम्हें उपयोग करना पड़ेगा। पहले मैं जब बच्ची थी तब साड़ी पहनते नहीं बनता था तो लुगरी (छोटी साड़ी) पहनती थी।

 

रा.ति.:- आज देखा जाये तो सब कुछ सरकारी आयोजनों के उपर डिपेन्ड है लेकिन उस समय सरकारी आयोजन नहीं होते थे तो क्या होता था कैसे जिन्दा रहते थे वो ?

रा.ति.:- आज देखा जाये तो कुछ सरकारी आयोजनों के उपर डिपेन्ड है लेकिन उस समय सरकारी आयोजन नहीं होते थे तो क्या होता था गायक कैसे जीवन चलाते थे?

रे.ज.:- ये भरथरी गायन जइसे कि मोहल्ला हे, गाँव हे तो बोले आज तोर भरथरी भजन ल मोहल्ला में ला देबे तो, हटवारा पारा, तो आज पचरीपारा में लेगे देते। तो कल टेकारी लेग जबे तो ये सब होवय।

रे.ज.:- पहले भरथरी गायन गाँव-मोहल्ले में होता था। सुनने वाले लोग गाँव-मोहल्ले में बुलाते थे।

 

रा.ति.:- आज भी तोर चलथे ?

रा.ति.:- आज भी आप जाती हैं?

रे.ज.:- हाँ आज भी मोर चलथे। प्रोग्राम मोर चलते रहिथे। गाँव-गाँव जावत रहिथौं।

रे.ज.:- हाँ आज भी मैं जाती हूँ। मेरा प्रोग्राम चलता ही रहता है। गाँव-गाँव जाती रहती हूँ।  

 

रा.ति.:- अभी हाल के हाल में आपका किस गाँव में कार्यक्रम हुआ ?

रा.ति.:- अभी हाल में आपका किस गाँव में कार्यक्रम हुआ ?

रे.ज.:- वो गाँव के नाव मोला कहे ल नइ आय। बता तो दसराहा गाँव। भिलौरी के पास हे सर पानी बहुत गिरत रिहिस हे।

रे.ज.:- उस गाँव का नाम तो मुझे बोलना नहीं आता। (अपने साथी से पूछकर कहती हैं) दसराहा गाँव। भिलौरी के पास है, जब हमने कार्यक्रम दिया तो भारी बारिश हो रही थी।

 

रा.ति.:- कब के बात ये हर?

रा.ति.:- ये कब की बात होगी?

रे.ज.:- ये मोर रिहिस हे तारीख हर --- (कुछ सोचती है)

रे.ज.:- ये था, तारीख --- (कुछ सोचती हैं)

 

रा.ति.:- अच्छा गाँव म तो प्रोग्राम देथस तैं ह तो के घण्टा के देथस ?

रा.ति.:- अच्छा गाँव में जब प्रोग्राम देती हैं तो आप कितने घण्टे का देती हैं?

रे.ज.:- मैं पूरा 3 घण्टा के देथौं।

रे.ज.:- मैं पूरे तीन घण्टे का देती हूँ।  

 

रा.ति.:- कोई साज समुदाय होते है जो ये कहते हैं कि जो भरथरी है वो नाथ पंथी लोगों का है। आस्था है। उनकी कथा नाथ पंथ से जुड़ी हुई कथा है, तो यहाँ के जो सतनाम पंथ से जो जुडे़ हुए लोग हैं वे किस दृष्टि से देखते है, सुनते है ? क्या वो भरथरी सुनते है ?

रा.ति.:- कोई साज-समुदाय होते हैं जो ये कहते हैं कि जो भरथरी है वह नाथ पंथी लोगों का है। आस्था है। उनकी कथा नाथ पंथ से जुड़ी हुई कथा है, तो यहाँ के जो सतनाम पंथ से जो जुडे़ हुए लोग हैं वे किस दृष्टि से देखते है, सुनते हैं? क्या वो भरथरी सुनते हैं?

रे.ज.:- सुनते है सर सब सुनते है। ध्यान से । मोर हमेशा यही कहिथौं कि महाभारत पंडवानी ल तो छोटे से लेके बड़े सब सुनथे लेकिन ये राजा भरथरी के जीवन गाथा ल कोई नइ जानय। पहिली के बुजुर्ग या सियान मन हॅ ये राजा भरथरी के गाथा ल जानथे। ये गढ़ उज्जैन के राजा ए अइसे मै पहिली बोलथौं ओकर बाद अपन ----।

रे.ज.:- सुनते हैं, सब ध्यान से सुनते हैं। मैं हमेशा यही कहती हूँ कि महाभारत के पंडवानी को तो छोटे से लेकर बड़े तक सब सुनते हैं लेकिन ये राजा भरथरी के जीवन गाथा को कोई नहीं जानता। पहिले के बुजुर्ग लोग राजा भरथरी की गाथा को जानते थे कि वे गढ़ उज्जैन के राजा थे। मैं उन्हें पहले बताती हूँ फिर गाथा गायन करती हूँ।

 

रा.ति.:- जो आपके दादा थे वो कैसे गाते थे? उन्हे जुबानी याद था या कोई कापी किताब थी?

रा.ति.:- जो आपके दादा थे वो कैसे गाते थे? उन्हें ज़ुबानी याद थी या कोई कॉपी-किताब थी?

रे.ज.:- हाँ। दादाजी के पास बहुत बड़े भरथरी के पुस्तक रिहिस हे।

रे.ज.:- हाँ, दादाजी के पास बहुत बड़ी भरथरी की पुस्तक थी।

 

रा.ति.:- किसका लिखा था ? कुछ ध्यान है आपका ?

रा.ति.:- किसका लिखा था? कुछ ध्यान है आपको?

रे.ज.:- महादेव बघेल करके रिहिस हे।

रे.ज.:- महादेव बघेल करके था।

 

रा.ति.:- आप भी जो भरथरी गाती है वो महादेव बघेल की लिखी भरथरी गाती है ?

रा.ति.:- आप भी जो भरथरी गाती हैं वो महादेव बघेल की लिखी भरथरी गाती हैं?

रे.ज.:- हाँ! ओकरे हे।

रे.ज.:- हाँ! उन्हीं की है।

 

रा.ति.:- ओकरे ल दादाजी गाइस ओकरे ल तैं?

रा.ति.:- उसी को दादाजी ने गाया, उनसे ले के आप... ?

रे.ज.:- हाँ ! ओकरे हे।

रे.ज.:- हाँ! उन्हीं की है।

 

रा.ति.:- पढ़े हौ ?

रा.ति.:- पढ़ी हैं?

रे.ज.:- दादाजी पढ़े लिखे रिहिस हे। वो गावय त मैं सुनौ। मै लिखे पढ़े नइ हौं। वोह अपन गावय। ले तो अब तैं गाके बताबे काहय तो मै सुनावंव।

रे.ज.:- दादाजी पढ़े थे, वे गाते थे तब मैं सुनती थी। मैं लिखना-पढ़ना नहीं जानती। वो गाते थे और मुझे कहते थे लो अब तुम गा कर बताओ, तो मैं सुनाती थी।

 

रा.ति.:- अच्छा जइसे अपन ये नवा पीढ़ी हे। भरथरी में सुरूज बाई बिचारी तो गै। वोकर बाद तैं हस। अउ कोन कोन गाथे हमर छत्तीसगढ़  म ?

रा.ति.:- भरथरी गायन में सुरूज बाई थीं जिनका निधन हो गया उसके बाद आप हैं। नई पीढ़ी में और कौन-कौन गाते हैं छत्तीसगढ़ में?

रे.ज.:- अभी हमर छत्तीसगढ़  मे भरथरी गायिका मै सुने हौं कि सफरी मरकाम गण्डई के सरस्वती निशाद, वन्दना, मोर शिष्‍या हे किरण शर्मा। मोर शिष्‍य तो 6-7 झन हे।

रे.ज.:- अभी हमारे छत्तीसगढ़ मे भरथरी गायिका में गण्डई के सफरी मरकाम, सरस्वती निषाद, वन्दना, मेरी शिष्या किरण शर्मा। इसके अलावा मेरे छः-सात शिष्य हैं।

 

रा.ति.:- अभी भी गुरू शिष्‍य परम्परा हे ?

रा.ति.:- अभी भी गुरू-शिष्य परम्परा है?

रे.ज.:- हाँ।

रे.ज.:- हाँ।

 

रा.ति.:- आदमी जात मन में नइ हे का गवईया।

रा.ति.:- पुरूष गायक नहीं हैं क्या इसके?

रे.ज.:- आदमी म हे करके हे । वो हमर इहाँ प्रशिक्षण ले रिहिस वो लइका मन हे। फेर पूरा नइ गाय ओमन। नई गावय थोड़ा-थोड़ा गाथे। राहुल ग। हे राहुल तिवारी।

रे.ज.:- पुरूषों में कम हैं, जो मुझसे प्रशिक्षण लिये थे वे लड़के लोग हैं। किन्तु वे लोग थोड़ा-थोड़ा गाते हैं, पूरा नहीं गाते। राहुल तिवारी हैं।

 

रा.ति.:- तोर आगे का सोच हे ? भरथरी कइसे आगे बढ़ै ?

रा.ति.:- आपकी आगे क्या सोच है? भरथरी गायन आगे कैसे बढ़ेगा?

रे.ज.:- मोर सोच ये हे कि जब तक मोर सांस हे, जब तक मै जीवित हौं तब तक मै ओकर गाथा ल गाते रइहौं। अउ आगे मै बढ़ते रहंव।

रे.ज.:- मेरी सोच है कि जब तक मेरी सांस चल रही है, जब तक मै जीवित हूँ तब तक मैं भरथरी गाथा गाती रहूँगी। और इसे आगे बढ़ाती रहूँगी।

 

रा.ति.:- तो अइसे कोई प्रशिक्षण वगैरह दे सकथस ?

रा.ति.:- तो ऐसा कोई प्रशिक्षण वगैरह दे सकती हैं?

रे.ज.:- हाँ दे सकथन। मोला अगर शासन बोले तो।

रे.ज.:- हाँ दे सकती हूँ। यदि मुझे शासन बोले तो।

 

रा.ति.:- अभी यहाँ जितने भी लोग हैं आपने जिनका भी नाम लिया। उनमें से सतनामी कोई नहीं है। फिर ये लोगों से जब जुड़ा हुआ है तो उसमें कोई गायक क्यों नहीं हुआ ? उनके मठो से गाने का संबंध कुछ कुछ है ? ऐसी कोई जानकारी है ?

रा.ति.:- अभी यहाँ जितने भी लोग हैं, आपने जिनका भी नाम लिया। उनमें से सतनामी कोई नहीं है। फिर ये पंथ से जब जुड़ा हुआ है तो उसमें से कोई गायक क्यों नहीं हुए? उनके मठों से गाने का संबंध कुछ-कुछ है? ऐसी कोई जानकारी है?

रे.ज.:- सतनामी मन नई गावत हे। ओमन तो खाली अब मंगल भजन करत हे। अउ पंडवानी।

रे.ज.:- इसे सतनामी लोग नहीं गाते, वे मंगल भजन करते हैं और पंडवानी गाते हैं।

 

रा.ति.:- और इसमें जैसे आप बता रहे है मुझको ऐसा लगता है कि इसमें वंश परम्परा नहीं है। ये गाये जरूरी नही है। कोई भी लोग इसको सीख लेते हैं?   

रा.ति.:- इसमें जैसे आप बता रही हैं, मुझको ऐसा लगता है कि इसमें वंश परम्परा नहीं है। यही गायेगा ज़रूरी नही है। कोई भी इसको सीख सकता है?   

रे.ज.:- जी।

रे.ज.:- जी।

 

रा.ति.:- तो जैसे उन लोगों ने सीखा तो कैसे सीखा ? आपके और सूरूज बाई के अलावा कोई था या नही तो वो तीसरे लोगों ने कहाँ से सीखा ?

रा.ति.:- जिन लोगों ने इसे सीखा, कैसे सीखा? आपके और सूरूज बाई के अलावा कोई था या नहीं तो वो तीसरे लोगों ने कहाँ से सीखा?

रे.ज.:- वो सब रेडियो सुन-सुन के सर। मैं रेडियो मे गाए हौ तो गाना मन सुन सुन के सब थोरा थोरा बहुत लोग गा लेथे। 4-4, 5-5 मिनट के लिये लेकिन मैं जब गाथौं न वइसे वोमन नइ गावै।

रे.ज.:- वे सब रेडियो सुन-सुन के सीखे हैं। मैं रेडियो मे गाई हूँ तो उस गाने को सुन-सुन के लोग थोड़ा बहुत लोग गा लेते हैं। चार-चार, पाँच-पाँच मिनट का आता है उन्हें लेकिन मैं जैसे मैं गाती हूँ वैसा वे नहीं गाते।

 

रा.ति.:- दस मिनट, आधा घण्टा, पांच मिनट ?

रा.ति.:- दस मिनट, आधा घण्टा, पांच मिनट?

रे.ज.:- हौ। वोमन मात्र गाना ही गाये। गाथा कोनो नइ गाय। जैसे कि थोड़ा देर के लिए बोलत हौं (सूरूज बाई खांडे) बिचारी अब तो स्वर्गवास होगे। वो भी गाना बस गावत रिहिस हे कथा नई गावत रिहिस हे। अउ मैं कथा अपनाये हौं।

रे.ज.:- हाँ, वे मात्र गाना ही गाते हैं। गाथा कोई नहीं गाते। जैसे कि, क्षमा सहित बोल रही हूँ उनका (सूरूज बाई खांडे का) तो अब स्वर्गवास हो गया, वो भी गाना ही गाती थीं, कथा नहीं गाती थीं। मैं कथा अपनाई हूँ।

 

रा.ति.:- जैसे आप कथा अपनाये हौ तो अलग-अलग लोग सुनने वाले होते है ? तो आप उसके लिए बीच बीच में कुछ गाती हैं ?

रा.ति.:- जैसे आपनें कथा अपनाया है तो अलग-अलग सुनने वाले लोग होते हैं, तो आप उनके लिए बीच-बीच में कुछ गाती हैं?

रे.ज.:- भजन डालती हूँ।

रे.ज.:- भजन डालती हूँ।

 

सवालः- केवल भजन गाती हो या जो कथानक है उसमें भी आप परिवर्तन करते है ?

सवालः- केवल भजन गाती हैं या जो कथानक है उसमें भी आप परिवर्तन करती हैं?

जवाबः- हाँ कथा के परिवर्तन यही हे के जैसे बोलत हौ वोकर बीच जो गाना गायक वो अपन खुद लिखे। खुद गाये। जतना भी मैं भजन गाथौं वैसे वो सब मोर आकाशवाणी दूरदर्शन में चलथे सर।

जवाबः- हाँ कथा में परिवर्तन यही है कि जैसे बोल रही हूँ उसके बीच में जो खुद का लिखा भी गाती हूँ। जितना भी मैं भजन गाती हूँ वो सब आकाशवाणी-दूरदर्शन में चलते हैं।

 

सवालः- जइसे तोला कोनो छट्ठी में बुलाए हे कखरो घर लइका होय हे तो कुछ चेंज करथस ?

सवालः- जैसे आपको कोई छट्ठी में बुलाया, किसी के घर बच्चा हुआ है तो कुछ बदलाव करती हैं क्या?

रे.ज.:- हाँ करथौं न करथौं।

रे.ज.:- हाँ करती हूँ ना।

 

रा.ति.:- सोहर-वोहर ?

रा.ति.:- सोहर-वोहर?

रे.ज.:- हाँ सोहर गा देथौं।

रे.ज.:- हाँ सोहर गा देती हूँ।

 

रा.ति.:- सोहर सुनाव थोड़ा से

रा.ति.:- सोहर सुनाइये तो थोड़ा।

रे.ज.:- चलव संगी जाबो जी राजा के भुवना, ये सोहर गीत ये।

रे.ज.:- ‘चलो मित्र जायेंगें जी राजा के भवन में..’, ये सोहर गीत है।

 

रा.ति.:- तोर सबसे ज्यादा करीब। तोर मनपसन्द कोन हे ?

रा.ति.:- आपके सबसे ज्यादा करीब। आपका मनपसन्द प्रसंग कौन सा है?

रे.ज.:- मोर सबले मनपसंद प्रसंग बराह प्रसंग हे दूसरा ये अपन ये दीक्षा प्रसंग। अउ सबसे ज्यादा। ज्यादा ही से ज्यादा जइसे करूण रस में राजा भरथरी वापस होवत हे दिक्षा लेके भीक्षा मांगे ल। ओकर सवाल जवाब होवथे। गोरखनाथ बाबा राजा भरथरी के ये दूनो के सवाल जवाब होथे। वैसे सब प्रसंग अच्छा हे फेर ये 4-5 प्रसंग मोला ज्यादा अच्छा लगथे।

रे.ज.:-  मेरा सबसे मनपसंद बारह प्रसंग है दूसरा दीक्षा प्रसंग। इससे भी ज्यादा जैसे करूण रस में राजा भरथरी वापस होता है दीक्षा लेके भिक्षा मांगने के लिए तब गोरखनाथ बाबा और राजा भरथरी का सवाल-जवाब होता है, वह। वैसे मुझे सब प्रसंग अच्छा लगता है किन्तु ये चार-पाँच प्रसंग मुझे ज्यादा पसंद हैं।

 

रा.ति.:- जैसे आपने अभी कहा कि करूण रस उसमें आता है। जब आप ये कथा गायन करते है तो रस को आप कैसे अभिव्यक्त करते हैं ? आप कैसे दिखाते है करूण रस को अपने गाने में?

रा.ति.:- जैसे आपने अभी कहा कि करूण रस उसमें आता है। जब आप ये कथा गायन करती हैं तो रस को आप कैसे अभिव्यक्त करती हैं? आप कैसे दिखाती हैं, करूण रस को अपने गाने में?

रे.ज.:- मै अपन गाना में अइसे दिखाथौ सर -

ए पिंजरा के मैना ।।3।।

तै हरि भजन ल गाले रे।।2।।    

ए पिंजरा के मैना

रे.ज.:- मैं अपने गाने में इसे इस तरह दिखाती हूँ -

ए पिंजड़े की मैना ।।3।।

तुम हरि भजन को गा लो रे।।2।।

ए पिंजड़े की मैना

 

रा.ति.:- आपको कैसा लगता है ये गायन जो है भविष्‍य में चलेगा ? भविष्‍य है इसका ?

रा.ति.:- आपको कैसा लगता है इस गायन का भविष्य क्या है?

रे.ज.:- हाँ है सर। अगर ध्यान दे। लोग अब अइसे पहिली तो नइ रिहिस। लेकिन अब टीवी में देखत जावत हे तब से सुनत जावत हे। अभी आजकल तो में यू-ट्यूब आगे हे। ओला सब देखत हे न तो मोला आगे आगे कार्यक्रम मिलत जावत हे। जइसे मैं इही इंटरव्यू के सेती कल के प्रोग्राम ल कैंसिल करे हौं। 17 तारीख के प्रोग्राम हे। 24 के मोर प्रोग्राम हे। अउ 31 से हनुमान जयंती से हे मोर प्रोग्राम हॅ, मैं वो दिन चांपा जाहूँ।

रे.ज.:- हाँ है, अगर ध्यान दिया जाये। अभी के जैसे लोग पहले नहीं थे लेकिन अब टीवी में देखते हैं तब से इसे सुनते जा रहे हैं। अब तो यू-ट्यूब आ गया है, उसमें सब देखते हैं तो मुझे पहले से ही आगे कार्यक्रम मिलता जाता है। जैसे मैंने इस इंटरव्यू के कारण कल के कार्यक्रम को स्थगित किया है।

 

रा.ति.:- ये जो चलता है आपका प्रोग्राम उसमें आपके पतिदेव जो हैं वो सहयोग करते हैं ?

रा.ति.:- आपके प्रोग्राम में आपके पतिदेव सहयोग करते हैं?

रे.ज.:- नहीं है ? मोर पतिदेव नइ हे सर। मोर दो भाई एक बहन और मोर एक भतीजा हे जेन मोर साथ हे। बचपन से मैं अइसी हौं। पतिदेव दूसर जगह हे।

रे.ज.:- नहीं हैं, मेरे पतिदेव नहीं हैं। मेरे दो भाई, एक बहन और एक भतीजा है जो मेरे साथ हैं। बचपन से मैं इसी तरह से हूँ। पतिदेव दूसरी जगह हैं।

 

रा.ति.:- तो इससे आपकी आजिवीका अच्छे से चलती है ?

रा.ति.:- तो इससे आपकी आजिवीका अच्छे से चलती है?

जवाबः- अब मोर अहो भाग्य हे सर जोन सांस्कृतिक विभाग से मोला मिलते रहिथे। अइसे तो नहीं के सांस्कृतिक विभाग मोला कार्यक्रम नइ देवय। देते रहिथे। कभू कभार भले नइ देही लेकिन देथे। जइसे भी हो। लेकिन बीच-बीच में प्रोग्राम देते रहिथौं।

जवाबः- ये मेरा अहो भाग्य है जो संस्कृति विभाग से मुझे कार्यक्रम मिलता रहता है। विभाग मुझे बीच-बीच में प्रोग्राम देता रहता है।

 

रा.ति.:- कहीं भी ? प्राइवेट प्रोग्राम ?

रा.ति.:- कहीं भी? प्राइवेट प्रोग्राम?

रे.ज.:- अब ओतका म तो जीवन ह नई चलय सर कभू-कभू काम करे ल जाये बर परथे जइसे निंदई के समय निंदई चल देंव। धान लुवई के समे धान लुए ल चल देंव।

रे.ज.:- अब उतने में ही तो जीवन नहीं चलता, कभी-कभी काम करने भी जाना पड़ता है जैसे निंदाई के समय निंदाई करने चली जाती हूँ। धान लुवई के समय धान काटने चली जाती हूँ।

 

रा.ति.:- रेखा जी के मोला याद आथे, जब आजिविका के बात चलथे तो। रेखा जी (साथ ही) अभी तक आपने कुछ रिकार्ड बनाया था जो कार्यक्रम देते है उसका रिकार्ड बना है ? कोई कैसेट रिकार्ड ?

रा.ति.:- रेखा जी, जब आजिविका की बात चल रही है तो बतायें कि आप जो कार्यक्रम देती हैं उसका ग्रामोफोन रिकार्ड बना है? कोई कैसेट रिकार्ड निकला है?

रे.ज.:- कैसेट रिकार्ड अभी जो बने रिहिस हे वो हे सर सुशील शर्मा हे ये सब रिहिस हे। टी-सिरीज से निकले रिहिस भरथरी गायन के।

रे.ज.:- सुशील शर्मा ने रिकार्ड करवाया था, टी-सिरीज़ से भरथरी गायन का कैसेट निकला था।

 

सवालः- अच्छा तोर जीविका-वीविका के बात चलत रिहित त मोला याद आइस तैं नौकरी-वौकरी भी करत रहेस ?

सवालः- आप नौकरी भी तो करती थीं ना ?

रे.ज.:- हाँ ..... दे हौं न मैं।

रे.ज.:- हाँ ..... करती थी न।

 

रा.ति.:- कामा करत रेहेस नौकरी?

रा.ति.:- कहाँ नौकरी करती थीं?

रे.ज.:- ए सिक्यूरिटी गार्ड में।

रे.ज.:- सिक्यूरिटी गार्ड में।

 

रा.ति.:- सिक्यूरिटी गार्ड रिहिस फैक्ट्री में।

रा.ति.:- सिक्यूरिटी गार्ड थीं फैक्ट्री में।

रे.ज.:- हाँ

(11 साल। ड्रेस लगाके स्टार-विस्टार लगाके। बैच वगैरह लगाके गेट में खड़े राहय अउ चोरी-वोरी करय वोला पीटय भी। डण्डा से अउ पर्सानलटी भी हे। हे हे हे। अउ एकर बड़ा अजीब रूप रिहीस हे। एक सिक्यूरिटी गार्ड रहय अउ आके भरथरी गावय। तो दूनो रूप ल हम देखे हन।)

रे.ज.:- हाँ 11 साल।

(ड्रेस लगा कर स्टार-बैच लगाके गेट में खड़ी रहती थी और चोरी-वोरी जो करता था उसे पीटती भी थी। इनकी इसी के लायक पर्सानलटी भी है। हे हे हे। इनकी बड़ी मज़ेदार ज़िदगी थी सिक्यूरिटी गार्ड की ड्यूटी से आकर भरथरी गाती थीं। हम दोनों रूप को देखे हैं।)

 

रा.ति.:- तो इसका रोज अभ्यास करते हैं ?

रा.ति.:- तो इसका रोज अभ्यास करते हैं ?

रे.ज.:- हाँ सर।

रे.ज.:- हाँ।

 

रा.ति.:- कइसे ?

रा.ति.:- कैसे?

रे.ज.:- अभ्यास इही से के मोर म्यूजिक वाले मन तो एती ओती रहिथे, गवैया ववैया मन। मैं अपन काम बूता करे के बाद दिन रात मन मे उही ल लगाए रहिथौं रानी सामदेवी, पिंगला माँ, राजा भरथरी ल एही कहिथौं मोला सदाबहार ऐसी बनाये रखे रहव। आप आगे-आगे चलव मोला पीछे लगाए रहव।

रे.ज.:- मेरे संगीत वाले लोग तो इधर-उधर रहते हैं, मैं अपना काम करने के बाद दिन-रात मन में इसे बसाए रहती हूँ। वही रानी सामदेवी, पिंगला माँ, राजा भरथरी। इन्हें ही कहती हूँ मुझे इसी तरह सदाबहार बनाये रखे।

 

रा.ति.:- कार्यक्रम कोनो मेर होथे अब रिहर्सल करना हे है न ?

रा.ति.:- कहीं कार्यक्रम तय होता है उसके पहले रिहर्सल करती हैं ना?

रे.ज.:- हौ कार्यक्रम लगगे तब रिहर्सल करना हे।

रे.ज.:- हाँ कार्यक्रम तय होता है तब रिहर्सल करते हैं।

 

रा.ति.:- काली कार्यक्रम हे त आज बइठ गये ?

रा.ति.:- कल कार्यक्रम है तो आज बैठ गये?

रे.ज.:- हाँ लेकिन मन में गुनगुनावत रहिथौं। एक गाथा अउ साथ में लेके चलथौं। छोटे से झलकी। कोनो मेर कहि देथे न चंदैनी वंदैनी सुना दे तो लोक वोक वइसे थोड़ा बहुत सुना देथौं।

रे.ज.:- हाँ मन में गुनगुनाती रहती हूँ। एक और गाथा, छोटी सी झलकी साथ में लेके चलती हूँ। बीच में कहती हूँ। बीच में चंदैनी आदि भी सुना देती हूँ।

 

रा.ति.:- तो थोड़ा चंदैनी हो जाय। चंदैनी सुना दे। थोड़ा से किस्सा जोन तोला चंदैनी के पसंद हे। जो तोला अच्छा लगय वो प्रसंग ल थोड़ा सुना दे ।

रा.ति.:- थोड़ा चंदैनी सुना दीजिए। जो थोड़ा सा किस्सा जो आपको पसंद हो वो प्रसंग को सुना दीजिए।

रे.ज.:- पहिली मैं ओकर सुरू कर लेथौं थोड़ा से -

अगा अगा भैया दूरवा गा मोर

कहना बचन गा ये मान जाबे तोर

जौने ये समें कर बेराच रे

यही रे समय के ये बात रे तोर

64 जोगिनी के पुरखा ए तोर

अखरा के गुरू मोहबा के मोर

राजा महर कर बेटी ये वो

लोरी गावत हावय चंदा

ए दीन तोर (कोरस)

लोरी काहत हावे चंदा

ए दीन तोर

लोरी बोलत हावे चंदा  

ए दीन तोर

एदे वही समय मं चंदा देखत हे वो

एदे टूरा लोरिक ल

देखत हे न

येदे काहत हावे दीदी

काहत हे मोर

ये जेला बोलत हावय का या

बोलत हे मोर

ए दूरिहा ले देखेव मो जहुंरियाच ये रे

लकठा ले देखेव लोरिक

ए दिन तोर

ए गड़रियाच रे।।

ये दोनों के प्रेम गाथा ये।

रे.ज.:- पहले मैं शुरू करती हूँ थोड़ा -

ऐ भैया दूरवा जी मेरे।

कहना को मान जावो।

जिस समय की यह बात है।

इसी समय की ये बात है।

64 जोगिनी के पुरखा हैं।

अखरा के गुरू मोहबा के हैं।

राजा महर की बेटी है।

चंदा लोरी गा रही है।

चंदा लोरी कह रही है।

चंदा लोरी बोल रही है।

उसी समय में चंदा देख रही है।

ए लोरिक नाम का लड़का।

देख रहा है।

कह रहा है बहन। कहता है।

जिसे बोल रहा है, बोल रहा है।

दूर से देखी मेरा हमउम्र है।

पास से देखी लोरिक है।

ए गड़रिया रे।

यह दोनों की प्रेम गाथा है।

 

रा.ति.:- अच्छा तुम बतावत रेहेव कि भरथरी एक मार्मिक गाथा ए करके तो अतेक दिन के तुंहर अतेक किस्सा हे तुंहर तो कोनो गाँव में कोनो मनखे –

रा.ति.:- भरथरी एक मार्मिक गाथा है तो इसकी प्रस्तुति के दौरान दर्शक-श्रोताओं में से कभी कोई संवेदना अभिव्‍यक्‍त होती है क्या, कोई विशेष जो आपको याद हो।  

रे.ज.:- हाँ वो मेर होये हे जइसे मिरगीन मन रोये चांव-चांव। दर्शक मन रो डालथे।

भूखे तैं हावस शिकार के ये शिकार के गा

मार ले मिरगीन दूई चार न

काला मिरगा राजा तुम झन मारौ

सब मिरगीन हो जाबो रांड़ गा भाई एदे जी।

माने मिरगीन के रोना अउ एती पब्लिक जो समझथे।

रे.ज.:- हाँ कथा में जहाँ हिरणियां अपने काले हिरण की मृत्‍यु में विलाप करती हैं तब दर्शक लोग भी रो डालते हैं। यानी इधर हिरणियों का रोना और उधर पब्लिक, जो इसे गहराई से समझते हैं।

 

रा.ति.:- चलो ठीक हे। अच्छा तोर भरथरी चलत रहय। गुरू गोरखनाथ के कृपा तोर उपर रहय। हमर सब झन के शुभकामना हे। धन्यवाद। धन्यवाद सर। आप मन इहाँ तक आयेव अउ हमन ला बुलाएव आप मन के महानता ये। आप मन के बहुत-बहुत धन्यवाद।

रा.ति.:- चलो ठीक है। आपका ये भरथरी चलता रहे। गुरू गोरखनाथ के कृपा आपके उपर रहे। हम सबकी शुभकामना है।

रे.ज.:- धन्यवाद। धन्यवाद। आप लोग यहाँ तक आये और हमें बुलाया ये आप लोगों की महानता है। आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.