Pandvani: Ashwamedh Parv- Prabha Yadav & Mandali
00:01:19

Pandvani: Ashwamedh Parv- Prabha Yadav & Mandali

in Video
Published on: 11 May 2019
Raipur, Chhattisgarh, 2018

 

Pandvani is one of the most celebrated performative genres from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.

 

The parv presented in this video is the Ashwamedh Parv. The prasangs contained in this parv are Amantran, Shyamkaran Ashwa, Kaccha Sona, Neeldhwaj Raja se Yuddh, Chandi Uddhar, Hansdhwaj Raja se Yuddh, Paramil Triyaraj Yuddh, Babruvahan se Yuddh, Arjun ka Mrityu, Ratnapuri Morakdhwaj Raja se Yuddh, Kuntalpur Raja Chandrahaas se Yuddh, Sindhudesh me Yuddh, Digvijay kar Ashwa ki Wapasi.

 

Transcript

Chhattisgrahi: अब सीधा हम राजा जन्मेजय ल वैसम्पायन जी महराज फिर अश्‍वमेघ पर्व के कथा बतावत हे रागी भैया। राजा बिचार करिस। मैं गोत्र के हत्या करे हौं। भाई बंधु ल मारे हौं, ब्राम्हण ल मारे हौं रागी। अब ये पाप से मोला मुक्ति कइसे मिलही। पाप से उद्धार होय बर। कहे त्रेता के युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी जब रावण के बंस के बध करे रिहिसे। रागी भैया पाप ले उरिन होय खातिर वो अश्‍वमेघ यज्ञ करे रिहिसे। मैं भी करूंगा अश्‍वमेघ यज्ञ। राजा ह मन में विचार लिस रागी। भगवान ब्यास नारायण के आगमन होथे। अऊ ब्यास नारायण ल कहिस के महराज मैं भी अश्‍वमेघ यज्ञ करहूँ। हस्तिना नाथ के नगर में। चारों दिशा लिख लिख के पत्रिका बांटत हे पांचो भैया कि पाण्डव अश्‍वमेघ यज्ञ करत हे। मैं आप सबको आमंत्रित करता हूँ। ये यज्ञ देखे बर जरूर आना। हजारों हजार तपस्वी आवथे रागी। कहे अश्‍वमेघ यज्ञ करबो तो सामान लगही। का का समान के जरूरत परही। तो ब्यास नरायण बताइस। कहे के धरमराज सबले पहिली तो तोला श्यामकरण नाम के घोड़ा लाये ल लगही। जब तक तैं श्यामकरण घोड़ा नइ लाबे तोर अश्‍वमेघ यज्ञ नइ होय। बोले श्यामकरण घोड़ा है कहां ? मिलही कहां ? तो कहे वो भद्रावती नाम के नगर में हे। जिंहा एवन नाम के राजा राज करथे। बताये हे रागी भाई जब वो घोड़ा नदिया मे पानी पिये ल जाय नहीं रागी। तो 10,000 बीर वोकर रक्षा म जाय। श्यामकरण ल पहिली लाये ल लगही। तेकर पाछू कच्चा सोना लाए ल परही रागी भैया। एक लाख घी से भरे हुए घड़ा मंगाए ल लगही। तीन लाख सांकल्‍य कलश लाये ल लगही। कहे घोड़ा ल लाने ल कोन जाही ? ओतका सुनिस - भीम जोसियाके कहे भैया मैं जाहूं! श्यामकरण घोड़ा लाकर के कहीं न दौं भैया अश्‍वमेघ कराये बर तो मैं भीमसेन कहाए ल छोड़ दौं। भीम जब तैयार होथे भीमसेन के साथ जाये बर मेघवर्ण तैंयार होथे। ये दुषासन के बेटा ए। वृषकेतु नाम के वीर तैयार होथे जऊन ह रविनंदन करन के बेटा ये। कथे पिताजी मैं तोर संग में सहयोगी के रूप में हम भी जायेंगे। ये तीनो बीर आये अऊ  भद्रावती नगर में पहुंच जथे  अऊर एक पहाड़ के ऊपर में -

अगा बइठे बइठे भीम देखन लागे भाई

पर्वत के ऊपर बइठगे।

भैया बइठे बइठे भीम देखन लागे भाई

हॉ घोड़ा तब आवन लागे गा ए गा भाई

घोड़ा तब आवन लागे गा ए गा भाई।

 

Hindi: राजा जन्मेजय को वैसम्पायन जी महाराज फिर अश्वमेघ पर्व की कथा बता रहे हैं, रागी भैया। राजा नें विचार किया। मैं गोत्र की हत्या किया हूँ। भाई बंधु को मारा हूँ, ब्राम्हण को मारा हूँ रागी। अब इस पाप से मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी। कहते हैं पाप से उद्धार के लिए त्रेता युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी जब रावण वंश का वध किये थे। रागी भैया, पाप से उरिण होने के लिए उन्‍होंनें अश्वमेघ यज्ञ किया था। धर्मराज नें कहा कि मैं भी अश्वमेघ यज्ञ करूंगा। राजा मन में विचार लिए रागी। भगवान व्‍यासनारायण का आगमन होता है। और धर्मराज व्‍यासनारायण को कहते हैं कि महाराज मैं भी अश्वमेघ यज्ञ करूंगा। हस्तिनानाथ के नगर में चारों दिशा में लिख-लिख कर पत्रिका बांटा जा रहा है। पांचो भैया पाण्डव अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं। हम आप सबको आमंत्रित करते हैं। इस यज्ञ को देखने के लिए जरूर आना। हजारों हजार तपस्वी आ रहे हैं रागी। वेदव्‍यास जी कहते हैं अश्वमेघ यज्ञ करोगे तो सामान लगेगा। क्‍या-क्‍या समान की जरूरत पड़ेगी। तब व्‍यास नारायण बताते हैं। कहते हैं कि धर्मराज सबसे पहले तो तुम्‍हें श्यामकर्ण नाम का घोड़ा लाना पड़ेगा। जब तक तुम श्यामकर्ण घोड़ा नहीं लाओगे तुम्‍हारा अश्वमेघ यज्ञ नहीं होगा। पाण्‍डव बोले श्यामकर्ण घोड़ा कहां है? कहां  मिलेगा? तो व्‍यास जी कहते हैं, कि वह भद्रावती नाम के नगर में है। जंहा एवन नाम का राजा राज्‍य करते हैं। बताया गया है रागी भाई जब वह घोड़ा नदी मे पानी पीने को जाता है रागी। तो दस हजार वीर उसकी रक्षा मे जाते हैं। श्यामकर्ण को पहले लाना पड़ेगा। उसके बाद कच्चा सोना लाना पड़ेगा, रागी भैया। एक लाख घी से भरे हुए घड़ा मंगाना पड़ेगा। तीन लाख सांकल्‍य कलश लाना पड़ेगा। व्‍यास जी कहते हैं कि घोड़ा को लाने कौन जायेगा ? इसे सुनते ही - भीम जोश में आकर कहता है भैया, मैं जाउंगा! अश्वमेघ कराने के लिए श्यामकर्ण घोड़ा लाकर कहीं न दूं भैया तो मैं भीमसेन कहाना छोड़ दूंगा। भीम जब तैयार होता है भीमसेन के साथ जाने के लिए मेघवर्ण तैयार होता है। वह दुशासन का बेटा है। वृषकेतु नाम का वीर तैयार होता है जो रविनंदन कर्ण का बेटा है। कहता है पिताजी हम आपके साथ मे सहयोगी के रूप में जायेंगे। ये तीनो वीर भद्रावती नगर में पहुंच गये और एक पहाड़ के ऊपर मे

अजी बैठे बैठे भीम देखने लगा भाई, पर्वत के ऊपर में बैठ गये। भैया बैठे बैठे भीम देखना लगा भाई, घोड़ा तब आने लगा भाई, घोड़ा तब आने लगा भाई।

 

 

पहाड़ ऊपर बइठे हे। ठीक 12 बजे के समय ये रागी। श्यामकरण घोड़ा जब पानी पिये बर चलिस। 10,000 सेना वो घोड़ा के रक्षा करे बर रेंगत हे। पहाड़ के ऊपर से जब देखिन कि घोड़ा आवथे पानी पिये बर। जब भीमसेन कमर कस के वो पहाड़ ले कूदे बर तैयार होथे। तो मेघवर्ण नाम के बीर हाथ जोड़ के भीमसेन ल कहे पिताजी - ये सेना तोर लायक नइ हे। कहे तैं जाके का करबे मैं ह जावथौं। बोले - विश्राम कर तें। तोर लायक नइ हे। हाथ मे गदा लेके मेघवर्ण नाम के बीर फेर पर्वत से कूद गे। औरफेर पर्वत से कूदके एवन नाथ नामक राजा के सेना मे जाथे - मारो मारो आवाज आवथे रागी भैया। घमासान युद्ध करथे। मेघवर्ण ल लड़त देखे तो वृषकेतु नाम के बीर ह आथे। रागी भाई राजा संग घमासान यु़द्ध करथे। अऊर युद्ध करके राजा ल विजय पा के -

श्यामकरण तब अरे भई श्यामकरण तब लेगन अब लगे लेगन अब लगे

सुन्‍दर के सब देखन लागे सुन्‍दर के सब देखन लगे एगा भाई

 

भीम पहाड़ के ऊपर बैठे हैं। ठीक बारह बजे का समय है रागी। श्यामकर्ण घोड़ा जब पानी पीने के लिए चला। दस हजार  सेना उस घोड़ा की रक्षा करने के लिए चल रहा है। पहाड़ के ऊपर से जब भीम और पुत्रों नें देखा कि घोड़ा पानी पीने के लिए आ गया। तब भीमसेन कमर कस कर उस पहाड़ से कूदने के लिए तैयार होता है। मेघवर्ण नाम के वीर हाथ जोड़ कर भीमसेन को कहते हैं पिताजी - यह सेना आपके लायक नहीं है। वह कहता है आप जाकर क्‍या करेंगे मैं जा रहा हूँ। वह बोला – आप विश्राम करें। आपके लायक नहीं है। हाथ मे गदा लेकर मेघवर्ण नाम का वीर पर्वत से कूद गया। पर्वत से कूद कर एवन नाथ नामक राजा के सेना मे जाते हैं - मारो मारो ! आवाज आ रहा है रागी भैया। घमासान युद्ध होता है। मेघवर्ण को लड़त देख कर वृषकेतु नाम का वीर आता है। रागी भाई राजा के साथ घमासान यु़द्ध करता है और युद्ध कर राजा को विजय पाकर  -

फिर श्यामकर्ण को तब ले जाने लगे, सभी सुन्‍दर घोड़े को  देखने लगे,  सभी सुन्‍दर घोड़े को  देखने लगे।

 

 

श्यामकरण घोड़ा ल जीत के लानथे। रागी भैया श्यामकरण ल देखते हस्तिनापुर म गदगद हो जथे। ला करके घोड़ा बांध दे जाथे। रागी भाई। राजा युधिष्ठिर बोले भीमसेन भाई भगवान ह नइ आये हे। भगवान ल लाना जरूरी हे। आखिर भीमसेन भगवान ल आमंत्रित करे बर जाथे। द्वारिका नगर के समस्त यदूवंषी ल साथ लेके। 16,100 पटरानी ल लेके भगवान फेर यज्ञ देखे बर जाथे। रागी भाई सब रानी मन कथे तुंहर आडर होतिस त वो घोड़ा ल देख आतेन श्यामसुंदर। घोड़ा ल देखना चाहथन। कुन्ती, द्रोपदी, देवी सुभद्रा भगवान के धर्मपत्नी माँ रूखमणी। सत्यभामा, जामवन्ती जतेक भी राहय। सब मिल के घोड़ा के पूजा करत हे रागी भैया। बोलिए वृन्दावन बिहारी लाल की जय। (लम्‍बा ब्रेक.....)

 

श्यामकर्ण घोड़ा को जीत कर लाते हैं। रागी भैया, श्यामकर्ण को देखते ही हस्तिनापुर की जनता गदगद हो जाती है। घोड़ा को लाकर बांध दिया जाता हैं। रागी भाई, राजा युधिष्ठिर बोलते हैं भीमसेन भाई, भगवान नहीं आये हैं। भगवान को लाना जरूरी है। अंत में भीमसेन, भगवान को आमंत्रित करने के लिए जाते हैं और द्वारिका नगर के समस्त यदुवंशियों को साथ लेकर आते हैं। 16,100 पटरानी को लेकर भगवान यज्ञ देखने के लिए आते हैं। रागी भाई, सब रानियॉं कहती हैं, श्यामसुंदर आपकी आज्ञा हो तो उस घोड़े को देख आते। घोड़े को देखना चाहते हैं। कुन्ती, द्रौपदी, देवी सुभद्रा भगवान की धर्मपत्नी माँ रूखमणी, सत्यभामा, जामवन्ती जितनी भी रानियॉं हैं सब मिल कर घोड़ा की पूजा कर रही हैं रागी भैया। बोलिए वृन्दावन बिहारी लाल की जय।

 

 

रामे रामे रामे, रामे गा रामे भाई

राजा जन्मेजय पूछन लगे भैया

वैसम्पायन गा कहन लगे भाई।

अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसम्पायन ऋषि कथे राजा जन्मेजय। रानी मन घोड़ा के पूजा करत हे। ओतके बेरन उत्सल्य नाम के बीर ह आके -

अगा घोड़ा हरन तब करन लागे भाई।

उत्सल्य नाम के वीर आके फिर घोड़ा के हरन करथे। घमासान युद्ध होथे। अऊ घमासान युद्ध करके

भैया घोड़ा के रक्षा करन लगे भाई

अपना मया ल देखन लगे गा एगा भाई

अपना मया ल देखन लगे गा एगा भाई।

 

राम राम,  राम ही राम है भाई, राजा जन्मेजय पूछने लगे भैया। वैसम्पायन कहने लगे भाई।।

अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसम्पायन ऋषि कहते हैं राजा जन्मेजय। सभी रानियॉं घोड़े की पूजा कर रही हैं। उसी समय उत्सल्य नाम का वीर आकर -

घोड़ा को चुराने लगा भाई, उत्सल्य नाम का वीर आकर घोड़ा को चोरी करने लगा। फलत: घमासान युद्ध होता है और घमासान युद्ध करके..

भैया घोड़े की रक्षा करने लगे भाई, अपने प्रेम को देखने लगे भाई। अपने प्रेम को देखने लगे भाई।

 

 

उत्सल्य नाम के बीर ल युद्ध म जीत के घोड़ा के रक्षा करके। रागी भैया यज्ञ शुरू होथे। पांचों भैया पाण्डव ह विचार करथे। तैं ये घोड़ा के मस्तक में सोन के पत्रिका बांधे जाही। बोले कच्चा सुरन (स्वर्ण) लाये ल लगही। कच्चा सोन के जरूरत पड़ही। बोले कच्चा सुरन (स्वर्ण) कहां मिलही तो लंका मे। भैया लाने ल कोन जाही ? तो बोले अर्जुन कहे मैं जाहंव। महावीर अर्जुन कच्चा सोना लाये के खातिर जाथे। चलते चलते समुद्र के नजदीक पहुंचगे रागी। एक निसाचर देखथे क्षत्रिय ला आवत। बड़े जनिक पहाड़ ल फेंकथे। अर्जुन निकाल के बाण मारथे तो पहाड़ दो टुकड़ा करके गिरा देथे। निसाचर प्राण ल धरके भाग जाथे। जाके विभीषण ल बताये भाई। कोई बीर आये महराज। ये बात ल सुनके महराज बिभीषण हनुमान जी ल कथे - महराज। कोन जनी वो आवत हे तेन ह राम ये का लक्ष्मण ये। कोन आवत हे। हनुमान जी जाके देखे तो अर्जुन आये हे। हनुमान जी पूछत हे - अर्जुन कैसे आये हो। अर्जुन कथे महराज। मोला कच्चा सोना के जरूरत हे मैं सोन लेगे बर आये हौं। हनुमान जी कहते है अर्जुन - तू यहीं विश्राम कर। इही जगा रहा। अऊर मैं लंका से सोना लेके आवत हौं। पवनपुत्र हनुमान जाके लंका ले सोना भेजत हे। सोन नइ मिलै। बताये हे हनुमान जी लंका में तीन दिन तक खोजिस सोन नइ मिलिस, हनुमान जी क्रोधित हो जाथे। कालके समान हनुमान गर्जना करथे करते है। हनुमान जब गरजिस। लंका ह कांप गे। विभीषण जाके पूछे - महराज। अइसे मोर से का गलती हो गे। हनुमान जी बीले - महराज मोला कच्चा सुवरन के जरूरत हे। कच्चा सोना दो। विभीषण कथे मैं कहां ले तोला सोन दिहूँ। महराज - तैं तो सारी लंका मे आग लगा के सोन ल जला देहस। अरे प्रथम लात कंगूरा ल मारा - कहे तें पहिली लात जब कंगूरा ल मारे रेहेस। महल के ऊपर मे तो वो कंगूरा -

अगा जाके समुद्रे में गिरे गा हावय भाई।

लात मे मारे। कंगूरा टूटके समुद्र में गिरे हे। हो सकत हे समुद्र ह तोला दे सकत हे।

भैया जाके समुद्रे ले मांगन लगे भाई

हॉं राजा ह काहन लागे गा एगा भाई

राजा ह काहन लागे गा एगा भाई।

 

उत्सल्य नाम के वीर को युद्ध मे जीत कर घोड़ा की रक्षा करने लगे। रागी भैया यज्ञ शुरू होता है। पांचों भैया पाण्डव विचार करते हैं। इस घोड़े के मस्तक में सोने की पत्रिका बांधी जायेगी। व्‍यास जी बोले कच्चा स्वर्ण लाना पड़ेगा। कच्चे सोने की जरूरत पड़ेगी। पूछते हैं कच्चा सुरन (स्वर्ण) कहां मिलेगी तो बताते हैं लंका मे मिलेगी। भैया उसे लाने को कौन जायेगा ? तो अर्जुन कहते हैं मैं जाउंगा। महावीर अर्जुन कच्चा सोना लाने के लिए जाते हैं। चलते चलते समुद्र के नजदीक पहुंच जाते हैं रागी। एक निशाचर क्षत्रिय को आता देखता है। बड़ा सा पहाड़ को फेंकता है। अर्जुन बाण निकाल कर मारता है तो बाण उस पहाड़ को दो तुकड़ा कर गिरा देता है। निशाचर जान बचाकर भाग जाता है। जाकर विभीषण को बताता है भाई। कोई वीर आया है महाराज। इस बात को सुन कर महाराज विभीषण हनुमान जी को कहते हैं - महाराज। पता नहीं वह जो आ रहा है वह राम है कि लक्ष्मण। कौन आ रहा है ? हनुमान जी जाकर देखते हैं पता चलता है अर्जुन आया है। हनुमान जी पूछते हैं - अर्जुन कैसे आये हो। अर्जुन कहता है महाराज, मुझे कच्चे सोने की आवश्‍यकता है। मैं सोना ले जाने के लिए आया हूँ। हनुमान जी कहते है अर्जुन – आप यहीं विश्राम करो, यहीं रहो मैं लंका से सोना लेकर आ रहा हूँ। पवनपुत्र हनुमान लंका जाकर सोना खोजते हैं, सोना नहीं मिलता। बताया गया है कि हनुमान जी लंका में तीन दिन तक खोजते हैं,  सोना नहीं मिलता, हनुमान जी क्रोधित हो जाते हैं। काल के समान हनुमान गर्जना करते हैं। हनुमान जब गरजते हैं, लंका कांप उठता है। विभीषण जाकर पूछते हैं - महाराज। मेरे से ऐसी क्‍या गलती हो गई। हनुमान जी बोले - महाराज मुझे कच्चा स्‍वर्ण की आवश्‍यकता है। कच्चा सोना दो। विभीषण कहते हैं मैं कहां से तुम्‍हें सोना दूं। महाराज - तुम तो पूरी लंका मे आग लगा कर सोने को जला दिये हो। अरे प्रथम लात कंगूरा को मारा - कहते हैं आप जब पहिली लात कंगूरा को मारे थे, महल के ऊपर मे जो कंगूरा है वह जाकर समुद्र में गिरा था भाई। लात मारने पर कंगूरा टूट कर समुद्र में गिरा है, संभत: समुद्र तुम्‍हें दे सकता है।

भैया हनुमान समुद्र के पास जाकर समुद्र से उसे मांगने लगे भाई, राजा विभीषण कहने लगे भाई, राजा विभीषण कहने लगे भाई।

 

 

वो सोना समुंद्र मे हे। हनुमान जी आये अऊर आके समुंद्र ल चिल्लाए - बोले- मोला कच्चा सोना के जरूरत हे जेला तैं छुपा के रखे हस। बोले सोना निकाल करके दे दे। ब्राम्हण के रूप मे समुद्र प्रगट हो जाथे। दोनो हाथ जोड़के बोले - मै नइ जानव महराज। समुद्र काहय मैं नइ जानव महराज। मारे क्रोध में हनुमान पूंछ ल उठाथे कहे - अरे समुद्र। अगर उठा के पूंछ में कहीं मैं मार दिहूँ त सारी जल ल मैं सूखा सकथौं। डर में कांप गे समुद्र। रागी भैया समुद्र के अन्दर में एक राघव नाम के मछली हे । वो मछली ह सोन ल खाये राहय। समुद्र ह कथे - राघव। पेट भीतर मे जो तैं सोना रखे हस तेला उलग दे भैया। राघव मछली। कच्चा सोना ल खाये राहय ओला उलग देथे। ला करके समुद्र हनुमान ल देथे। हनुमान लान के अर्जुन ल देथे। अर्जुन वो कच्चा सोना ल लान के राजा युधिष्ठिर ल देथे। रागी भैया। वही कच्चा सोना ल फिर पत्रिका बनाए जाथे। अऊर पत्रिका मे लिखे हे - अरे धर्मराज नृप यज्ञ करावा।

पत्रिका में लिखत हे रागी। हस्तिना नगर में कुन्ती नंदन महराज यधिष्ठिर अश्‍वमेघ यज्ञ करत हे।

तब इनकर रक्षक अर्जुन आवा

तब घड़ी एक जब रोकहि कोई

अर्जुन संग युद्ध तब होई

त अइसे कोई माई के लाल ये घोड़ा ल एक घड़ी भी बिलमा दिही

तो अर्जुन के संग युद्धे ल करव भैया

अर्जुन के संग युद्धे ल करव भाई

अइसे पत्रिका लिखन लगे भैया

अइसे पत्रिका लिखन लगे भाई।

 

वो सोना समुद्र मे है ! हनुमान जी आये और आकर समुद्र को चिल्लाते हैं – बोलते हैं- मुझे कच्चा सोने की जरूरत है जिसे तुम छुपा कर रखे हो। बोलते हैं सोना निकाल कर दे दो। ब्राम्हण के रूप मे समुद्र प्रगट हो जाता है। दोनो हाथ जोड़ कर बोलता है - मै नहीं जानता महाराज। समुद्र कहता है मैं नहीं जानता महाराज। सुनकर बहुत क्रोध में हनुमान पूंछ को उठाते हैं और कहते हैं - अरे समुद्र ! अगर पूछ उठा कर मैं कहीं मार दूंगा तो संपूर्ण जल को मैं सूखा सकता हूँ। समुद्र डर से कांप गया। रागी भैया, समुद्र के अन्दर मे एक राघव नाम की मछली है। वह मछली सोन को खा ली रहती है। समुद्र कहते हैं - राघव ! पेट के भीतर मे जो तुम सोना रखी हो उसे निकाल दो। राघव मछली कच्चा सोने को खायी रहती है उसे निकाल देती है। समुद्र उसे ला कर हनुमान को देते हैं। हनुमान ला कर अर्जुन को देते हैं। अर्जुन उस कच्चे सोने को ला कर राजा युधिष्ठिर को देते हैं। रागी भैया, उस कच्चे सोने से पत्रिका बनाया जाता हैं और पत्रिका मे लिखा गया है - धर्मराज नृप यज्ञ करावा। (महाराजा धर्मराज यज्ञ करा रहे हैं)

पत्रिका में लिख रहे हैं रागी। हस्तिनानगर में कुन्ती नंदन महाराज यधिष्ठिर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं।

इनका रक्षक अर्जुन आया है, कोई इसे एक घड़ी भी कहीं रोकेगा तो अर्जुन के साथ युद्ध करना होगा। है कोई माई का लाल जो इस घोड़े को एक पल भी रोक ले। उसे अर्जुन के साथ युद्ध करना होगा, अर्जुन के साथ युद्ध करो भाई। पत्रिका में ऐसा लिखने लगे भैया, ऐसा पत्रिका में लिखन लगे भाई।

 

 

जऊन ये घोड़ा ल बिलमाही। वोला अर्जुन संग लड़े बर परही। बड़े-बड़े वीर बड़े-बड़े रथी, बड़े-बड़े महारथी ल लेके अर्जुन चलत हे। अर्जुन के संग में वृषकेतु, मेघवर्ण, एवननास अऊर अनुशल्य नाम के बीर जावत हे। रागी भैया, घोड़ा निकलथे और नाना प्रकार जंगल, झाड़ी पहाड़ पर्वत ल पार करत करत। आखिर में श्यामकरण सरस्वती नाम के नगर में पहुंच जथे। सरस्वती नगर में नीलध्वज नाम के राजा राज्य करत हे। नीलध्वज राजा के बेटा के नाम प्रदीप कुमार हे। एक झन बेटी हे जेकर नाम स्‍वाहा हे रागी। रानी के नाम ज्वाला हे। जब घोड़ा जाथे। गांव के पनिहारिन मन पानी भरे ल गेहे। अचानक पनिहारिन मन के नजर परगे कहय - अई।

यहां अड़बड़ सुन्दर घोड़ा आये गा हावय भाई।

पनिहारिन मन पानी ल बोहे हे। अऊ घोड़ा ल देख के कथे - कस वो

अजी अतेक सुन्दर घोड़ा आये हावय भाई

हॉ पनिहारिन काहन लगे गा एगा भाई

 पनिहारिन काहन लगे गा एगा भाई।

पनिहारिन मन देखे - घोड़ा आये हे। रागी भाई। कोनो कोनो पनिहारिन मन ह पढ़े लिखे घलो रिहिन हे। जेन पढ़े लिखे रिहिन तेन ओकर माथा म लिखाए राहय तेला पढ़य।

अरे धर्मराजा नृप यज्ञ करावा

राजा युधिष्ठिर अश्‍वमेघ यज्ञ करत हे। तेकर रखवार अर्जुन आये हे। एक घड़ी जऊन ये घोड़ा ल बिलमाही तेला लड़े बर लागही रागी भाई। पनिहारिन मन जाके अपन-अपन घर में बताये - घोड़ा आये हे। ये खबर ल सुनिस - प्रदीप कुमार, आये अऊर आकर के -

सुन्दर घोड़ा ल पकड़न लगे भाई

सुन्दर घोड़ा ल पकड़न लगे भाई

सुन्दर घोड़ा ल बांधन लगे भाई

सुन्दर घोड़ा ल बांधन लगे भाई

 

जो इस घोड़े को रोक लेगा उसे अर्जुन के साथ लड़ाई करना होगा। बड़े-बड़े वीर, बड़े-बड़े रथी, बड़े-बड़े महारथी को लेकर अर्जुन चल रहे हैं। अर्जुन के साथ वृषकेतु, मेघवर्ण, एवननास और उत्सल्य नाम के वीर जा रहे हैं। रागी भैया, घोड़ा निकलता है और नाना प्रकार जंगल, झाड़ी पहाड़ पर्वत को पार कर रहा है। अंत में श्यामकर्ण सरस्वती नाम के नगर में पहुंच जाता है। सरस्वती नगर में नीलध्वज नाम का राजा राज्य कर रहा है। नीलध्वज राजा के बेटे का नाम प्रदीप कुमार है। एक बेटी हे जिसका नाम अनुशल्‍य है रागी। रानी का नाम ज्वाला है। जब घोड़ा जाता है। गांव की पनिहारिनें पानी भरने को गई हैं। अचानक पनिहारिनों की नजर पड़ती है कहती हैं – ओह ! यहां तो बहुत सुन्दर घोड़ा आया है भाई। पनिहारिनें पानी को सिर में उठाई हैं और घोड़े को देख कर कह रही हैं – कैसे

अजी इतना सुन्दर घोड़ा आया है भाई, पनिहारिनें कहने लगीं भाई, पनिहारिनें कहने लगीं भाई।

पनिहारिनों नें देखा - घोड़ा आया है। रागी भाई, कोई-कोई पनिहारिनें पढ़ी लिखी भी हैं। जो पढ़ी लिखी है वे उसके माथे मे लिखा था उसे पढ़ रही हैं। ‘धर्मराजा नृप यज्ञ करावा’

राजा युधिष्ठिर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं,  उसका रक्षक अर्जुन आया है। एक घड़ी जो इस घोड़े को रोक लेगा उसे लड़ना पड़ेगा रागी भाई। पनिहारिनें जाकर अपने-अपने घर में बताती हैं - घोड़ा आया है ! इस खबर को प्रदीप कुमार सुना तो आया और आकर ..

सुन्दर घोड़ा को पकड़ने लगा भाई, सुन्‍दर घोड़े को बांधने लगा भाई।

 

 

घोड़ा ल बांध देथे। पाण्डव के दल में खलबली मच जाथे भैया के घोड़ा के हरन होगे। घोड़ा पकड़ लिए गे हे। प्रदीप कुमार सेना तैयार करके आवत हे रागी भाई। अऊर प्रदीप कुमार के संग में फिर पाण्डव दल के घमासान युद्ध होथे। वृषकेतु। मेघवर्ण। अनुषल्य, यवननास्य राजा। एक एक करके सब लड़थे रागी भैया। एक एक करके सब लड़त हे। राजा नीलध्वज सारी सेना तैयार करके आए हे अऊर घमासान युद्ध करत हे। आखिर मे लड़ाई के मैदान में प्रदीप कुमार मारे जाथे। नीलध्वज के बेटा प्रदीप जूझ जथे। रागी भैया नीलध्वज राजा घोड़ा ल आगे करथे अऊ घोड़ा ल आगे करके अर्जुन के सामने आथे। ये जब दृष्य ल देखथे ज्वाला रानी के नेत्र लाल हो जाथे। पुत्र के शोक में व्याकुल होगे ज्वाला रानी ह। देखिस के मोर बेटा प्रदीप मरगे। महराज नीलध्वज अर्जुन से मित्रता कर लिस। तो ज्वाला नाम के रानी क्रोधित हो जथे। क्रोध में भरके ज्वाला गंगा के तीर मे जाथे रागी। जहाँ माँ भगवती सुरसरि बहत हे। गंगा के तीर में जाके भुजा उठा के ज्वाला रानी फिर गंगा ल गाली देना शुरू कर देथे। चिल्ला के ज्वाला कहत हे - के अरे ! रांड़ गंगा। कहे निपुत्री कहीं के। सात झन बेटा ल जनम देय अऊ देते ही सात झन बेटा ल मार डरेस। एक झन बेटा ल राजा बचाइस। आज महाभारत के युद्ध मे तोर बेटा ल अर्जुन ह मार दिस। गंगा। तोर बेटा भीष्म के मृत्यु होगे। ये अवाज ल सुनिस तो गंगा फेर भड़कगे। ज्वाला रानी काहत हे - गंगा। जेन अर्जुन ह तोर बेटा ल मारिस हे। उही अर्जुन आज मोर बेटा ल मार के मोर कोरा ल सुन्ना कर दिस। बताए हे -गंगा क्रोधित हो जाथे। क्रोध में भी जाथे। बोले - जाओ। मैं श्राप देवत हौं अर्जुन ल आज से छटवा मास में। अर्जुन के मृत्यु हो जही वो भी अपन बेटा के हाथ में। श्राप देवत हे गंगा ह। आज से छः महीना बाद। अर्जुन के मौत हा जही। ओतका ल सुनिस ताहेन ज्वाला कहे माँ। एक ठन अऊ कृपा कर। मैं तोर जल मे कुद के प्राण ल त्यागत हौं। अउ बाण के मोला जनम दे दाई। बाण के रूप दे। बताए हे ज्वाला नाम के रानी गंगा में डूब के प्राण ल त्याग देथे। अऊर बाण के रूप ले लेथे। अर्द्धचंद्र नाम के बाण बनथे, अऊ अर्द्धचंद्र बाण बनके बब्रुब्राम्हण के तुणिर मे जाके।

रानी ह समावन लागे गा एगा भाई

रानी ह समावन लागे गा एगा भाई।

भैया रानी ज्वाला तब देखन लागे भाई

भैया रानी ज्वाला तब देखन लागे भाई।

भैया रानी ज्वाला सोचन लागे गा एगा भाई

भैया रानी ज्वाला सोचन लागे गा एगा भाई।

 

प्रदीप कुमार घोड़ा को बांध देता है। पाण्डव के दल में खलबली मच जाती हैं भैया। घोड़ा का हरण हो गया ! घोड़ा पकड़ लिया गया है ! प्रदीप कुमार सेना तैयार करके आ रहा है रागी भाई और प्रदीप कुमार के साथ में फिर पाण्डव दल का घमासान युद्ध होता है। वृषकेतु ! मेघवर्ण ! अनुशल्य ! यवननास्य राजा ! एक-एक करके सब लड़ते हैं रागी भैया। एक-एक कर सब लड़ते हैं। राजा नीलध्वज संपूर्ण सेना को तैयार करके आए हैं और घमासान युद्ध कर रहे हैं। अंत मे लड़ाई के मैदान में प्रदीप कुमार मारा जाता हैं। नीलध्वज का बेटा प्रदीप वीरगति को प्राप्‍त होता है। रागी भैया, नीलध्वज राजा घोड़ा को आगे करता है और घोड़ा को आगे करके अर्जुन के सामने आता है। इस दृश्य को जब ज्वाला रानी देखती है तो उसकी आंखें लाल हो जाती है। वह देखती है कि मेरा बेटा प्रदीप मर गया। तो पुत्र के शोक में वह व्याकुल हो जाती है। महाराज नीलध्वज अर्जुन से मित्रता कर लेते हैं। इस पर ज्वाला नाम की रानी और क्रोधित हो जाती हैं। क्रोध में भर कर ज्वाला गंगा के किनारे जाती है रागी। जहाँ माँ भगवती सुरसरि बह रही हैं। गंगा के किनारे जाकर भुजा उठा कर ज्वाला रानी गंगा को गाली देना शुरू कर देती है। चिल्ला कर ज्वाला कहती है - अरे ! विधवा गंगा ! निपुत्री कहीं की ! सात बेटे को जन्‍म दी और देते ही सातो बेटों को मार डाली। एक बेटे को राजा नें बचाया था। आज महाभारत के युद्ध मे तुम्‍हारे बेटे को अर्जुन ने मार दिया, गंगा ! तुम्‍हारा बेटा भीष्म भी मर गया। इस आवाज को सुनते ही गंगा नाराज हो गई। ज्वाला रानी कह रही है - गंगा ! जो अर्जुन तुम्‍हारे बेटे को मारा है। वही अर्जुन आज मेरे बेटे को मार कर मेरी गोदी को सुना कर दिया। बताया गया है -गंगा क्रोधित हो जाती हैं। क्रोध में बोलती हैं - जाओ ! मैं श्राप देती हूँ अर्जुन को, आज से छठवें मास में अर्जुन की मृत्यु हो जायेगी और उसकी मृत्‍यु अपने ही बेटे के हाथ में होगी। श्राप दे रही हैं गंगा ! आज से छः महीने बाद ! अर्जुन की मौत हो जायेगी। इतना सुन कर ज्वाला कहती हैं माँ ! एक कृपा और करो। मैं तुम्‍हारे जल मे कूद कर प्राण त्याग रही हूँ मुझे बाण के रूप में नया जन्‍म दो माता। बाण का रूप दो ! बताया गया है कि ज्वाला नाम की रानी गंगा में कूद कर अपना प्राण त्याग देती हैं और बाण का रूप ले लेती हैं। ज्‍वाला अर्द्धचंद्र नाम का बाण बनती हैं और अर्द्धचंद्र बाण बन कर बब्रुवहान के तूणिर मे जाकर..

रानी समाने लगती है भाई, रानी समाने लगती है भाई। भैया रानी ज्वाला तब देखने लगी भाई, भैया रानी ज्वाला तब देखने लगी भाई। भैया रानी ज्वाला सोचने लगी भाई, भैया रानी ज्वाला सोचने लगी भाई।

 

 

अर्द्धचन्द्र बाण बनके रागी भैया बब्रुवाहन के त्रुण में जाके समाए हे। नीलध्वज राजा के घर में कुछ दिन विश्राम करथे महावीर अर्जुन अऊर फिर वहां से घोड़ा चलथे। नाना प्रकार के देश के भ्रमण करत हे रागी भैया। चलते चलते घोड़ा भयानक बड़े जंगल में पहुंचथे। बताए हे। ओ जंगल मे एक योजन के एक ठन सिला हे। पथरा हे चार कोस के लंबा। वो पथरा म गिस ताहने घोड़ा के पांव ह चिपक जथे। अब वो घोड़ा ल छुड़ाये के प्रयास करय गा। घोड़ा के गोड़ ह वो पथरा ले हिटबे नइ करय। नइ निकले। जइसे लोहा में चुंबक चिपक जथे ओसने पांव चटके हे। अर्जुन वृषकेतु ल इजाजत दिस।  बोले - आसपास देखौ कोई ऋषिमुनि होही। पता करौं कि ए पांव ह काबर नइ निकलत हे घोड़ा के। आसपास म जाके दखिन ल एक संभरी नाम के मुनि हे। महावीर अर्जुन कुटिया में चल देथे रागी। जाके पूछत हे महराज ये राजा युधिष्ठिर के घोड़ा ए। एकर रखवार बनके आये हन फेर घोड़ा के पांव पथरा म चिपक गे हे। कइसे निकलही। ऋषि बतावत हावय। अर्जुन। ये पथरा आज तक तोर रस्ता देखत हे। उद्दालक ऋषि के पत्नी ए जेकर नांव ह चंडी हे। जो एक योजन के पथरा के रूप में पड़े हे वो कौन है ? तो महर्षि उद्दालक के पत्नी ये। अर्जुन पूछत हे - ये काबर पथरा बने हे ? एला उद्दालक ह श्राप दे देहे। काबर श्राप दिस ? तो बताए हे रागी भैया एक पापी चंड नाम के राजा रिहिसे। अऊ पापी चंड राजा के बेटी के नाम चंडी रिहिसे। चंडी के बिहाव ह उद्दालक ऋषि के संग होय रिहिस हे। चंडी के विवाह उद्दालक के साथ होय रिहीस हे। पर चंडी के स्वभाव विपरित रिहीस हे। उद्दालक ह काहय - चंडी। मोला भूख लागत हे। तैं मोला भोजन देते रानी। उद्दालक अपन पत्नी ल काहय भूख लागत हे, खाये ल दे। तो ओतका  ल सुनय ताहेन चंडी क्रोध में भर जाय। रांधे राहय भात साग तेन ल -

अगा उठा के रानी ह फेंकन लागे भाई

भैया उठा के रानी ह फेंकन लागे भाई।

हॉ, उद्दालक काहन लागे गा ए गा भाई

उद्दालक काहन लागे गा ए गा भाई।

 

अर्द्धचन्द्र बाण बन कर रागी भैया बब्रुवहान के तूणीर में जाकर रानी समा जाती है। महावीर अर्जुन नीलध्वज राजा के घर में कुछ दिन विश्राम करता है और फिर वहां से घोड़ा लेकर आगे बढ़ता है। नाना प्रकार के देशों का भ्रमण कर रहा है रागी भैया। चलते-चलते घोड़ा भयानक और बड़े जंगल में पहुंचता है। बताया गया है कि उस जंगल मे एक योजन का एक शिला है, चार मील लंबा पत्‍थर। उस पत्‍थर में जब घोड़ा गया तो उसका पांव उसमें चिपक गया। घोड़ा उसे छुड़ाने का प्रयास करता था किन्‍तु उसका पैर पत्‍थर से निकल ही नहीं रहा है। नहीं निकल रहा। जैसे लोहे में चुंबक चिपक जाता है उसी तरह पांव चिपका है। अर्जुन वृषकेतु को आदेश देता है।  बोलता है - आसपास देखो कोई ऋषिमुनि होंगें उनसे पूछो कि घोड़े का पांव निकलत क्‍यों नहीं रहा है। आसपास मे जाकर देखते हैं तो वहां एक संभरी नाम के मुनि रहते हैं। महावीर अर्जुन उनके कुटिया में चल देते हैं रागी। जाकर पूछते हैं महाराज यह राजा युधिष्ठिर का घोड़ा है, हम इसके रक्षक बन कर आये हैं किन्‍तु इस घोड़े का पांव पत्‍थर मे चिपक गया है, कैसे निकलेगा ? ऋषि बताते हैं, अर्जुन ! यह पत्‍थर आज तक तुम्‍हारा राह देख रहा है। यह उद्दालक ऋषि की पत्नी है जिसका नाम चंडी है। अर्जुन आश्‍चर्य से पूछता है यह एक योजन पत्‍थर के रूप में पड़ा है वह कौन है? तो मुनि कहते हैं यह महर्षि उद्दालक की पत्नी है। अर्जुन पूछता है - यह पत्‍थर क्‍यों बन गई? इसे उद्दालक मुनि नें श्राप दिया है। अर्जुन फिर पूछते हैं क्‍यूं श्राप दिये ? तो बताते हैं रागी भैया, एक चंड नाम का पापी राजा था और चंड राजा की बेटी का नाम चंडी था। चंडी का विवाह उद्दालक ऋषि के साथ हुआ था। चंडी का विवाह उद्दालक के साथ हुआ किन्‍तु चंडी का स्वभाव विपरित था। एक समय उद्दालक कहते हैं - चंडी ! मुझे भूख लगी है, तुम मुझे भोजन दो रानी ! उद्दालक अपनी पत्नी को कहते हैं भूख लगी है, खाने को दो। इतना सुन कर चंडी क्रोध में भर जाती है। चांवल और सब्‍जी बनाई रहती है उसे -

उठा कर रानी फेंकने लगती है भाई, भैया उठा कर रानी फेंकने लगती है भाई। उद्दालक कहने लगता है भाई, उद्दालक कहने लगता है भाई।

 

 

भात खाहूँ काहय। रांधे राहय तेन ल फेंक दे। नींद आवथे बिस्तर बिछा। बिस्तर बिछे राहय तेन ल उठाके फेंक दै। अं ऽ ऽ ऽ व्याकुल होग हे उद्दालक। रागी दिन दिन दुबरावत हे दुख में। उद्दालक ला समझ नइ आवय का करना चाहिए। एक दिन के बात ये बताए हे रागी भेया। कमण्डलु नाम महाऋषि के आगमन होथे। कुटिया में। ऋषि जात रहय तीर्थ स्थान भ्रमण करे बर। बीच में परिस उद्दालक महराज के कुटिया तो वो कहिस - थोड़ा सा विश्राम कर लेते हैं। कमण्डलु मुनि अइस। उद्दालक ल दुबर-पातर देखिस कहे - तोला का दुख हे। काबर तोर शरीर ह क्षीण होवत जात हे भैया। उद्दालक बताइस अपन पत्नी के स्वभाव ल, कमण्डलु हंस दिस। कहै तैं एकर स्वभाव ल जान नइ पायेस। कमण्डलु कहात हे उद्दालक ! तोला जो भी काम करना हे, तोर पत्नी ल उल्टा गोठिया तैं। कहे अगर तोला भूख लगत हे। भोजन करना हे। तें कइबे मैं नइ खांवंव तैं मोर बर खाना झन बना। कोई भी काम करना हे। उल्टा कहिके देख ओला। अऊ मैं तो अभी तीरथ धाम जावत हौं। लहुटती बेरा आहूँ तब बताबे। गोठिया के कमण्डलु चलदिस। अब महाऋषि उद्दालक ह चंडी ल काहत हे - चण्डी। आज मोल भूख नइ लागत हे। मैं भोजन नइ करौं कहै तैं भोजन झन बनाबे। ओतके ल सुनिस ताहन चंडी काहत हे - काबर नइ खाहू। कुटिया में जाके चंडी ह -

अरे हंस हंस के भोजन बनावन लागे भैया

हंस हंस के भोजन गा बनावन लागे भैया

धुंक धुंक भोजन खिलावन लगे भैया

ऋषि भोजन करत हे।

धुंक धुंक भोजन खिलावन लगे भाई।

 

चावंल खाउंगा कहते हैं तो चंडी जो भोजन बनाई है उसे फेंक देती है। मुनि कहते हैं कि नींद आ रही है चंडी बिस्तर बिछाओ तो बिछे हुए बिस्तर को चंडी उठाकर फेंक देती है। अं ऽ ऽ ऽ उद्दालक व्याकुल हो जाते हैं। रागी दिनों दिन दुख में पतले होने लगे। उद्दालक को समझ नहीं आ रहा है कि क्‍या करना चाहिए। एक दिन की बात है, बताया गया  है रागी भैया। कमण्डलु नाम के महाऋषि का उनकी कुटिया में आगमन होता है। ऋषि तीर्थ स्थान भ्रमण करने के लिए निकले रहते हैं। बीच में उद्दालक महाराज की कुटिया पड़ती है तो वो सोचते हैं - थोड़ा सा विश्राम कर लेवें। कमण्डलु मुनि आकर उद्दालक को देखते हैं जो बहुत कमजोर दिख रहे हैं तो पूछते हैं- तुम्‍हें क्‍या दुख है। तुम्‍हारा शरीर क्षीण क्‍यों हो रहा है भैया। उद्दालक अपनी पत्नी का स्वभाव बताते हैं, कमण्डलु हंस देते हैं। कहते हैं तुम इसकी स्वभाव को जान नहीं पाये हो। कमण्डलु कह रहे हैं उद्दालक ! तुम्‍हें अपनी पत्‍नी से जो भी काम करवाना है उससे उल्‍टा बोलो। कहते हैं कि कहीं तुम्‍हें भूख लगे और भोजन करना है तो कहो मैं खाना नहीं खाउंगा तुम मेरे के लिए खाना मत बनाना। जो भी काम करना है उससे उल्टा कह कर देखो। मैं अभी तीर्थ धाम जा रहा हूँ। लौटते समय आउंगा तब बताना। इस प्रकार समझा कर कमण्डलु चले गये। अब महाऋषि उद्दालक  चंडी को कह रहे हैं - चण्डी ! आज मुझे भूख नहीं लग रही है, मैं भोजन नहीं करूंगा, तुम भोजन मत बनाना। इतना सुन कर चंडी कह रही है - क्‍यों नहीं खाओगे। कुटिया में जाकर चंडी -

अरे हंस-हंस कर भोजन बनाने लगी भैया, हंस-हंस कर भोजन बनाने लगी भैया। पंखे में हवा कर-कर के भोजन खिलाने लगी भैया। ऋषि भोजन कर रहे हैं, चंडी पंखे में हवा करते हुए भोजन खिलाने लगी भैया।

 

 

भोजन नइ करंव। चंडी काहय काबर नइ खाहौ। भोजन परोसे हे रागी। उद्दालक भोजन करत हे। चण्डी -ओला हवा देवत हे। खाके उठे उद्दालक कहे। नींद नइ आवत हे। नइ सोवंव मैं ह। तुरंत बिस्तर बिछ जाये। अब जान डरिस गा। जेन काम राहय तेला उल्टा गोठियावय ताहेन चंडी ह समझ जाय। ओ काम ल पूरा कर दय। समय बीतत हे रागी । अइसन करते करते समय बितीस। अऊर पितर पक्ष आ जथे। रागी भैया। श्राद्ध के समय होथे। महाऋषि उद्दालक अपन पितर मन ल तर्पण करत हे श्राद्ध देवत हे। 15 दिन ले पानी दिस पितर ल श्राद्ध करिस। आखिरी दिन थोड़ा से उद्दालक ह भूलागे गा उल्टा कहे बरे। कहे - चण्डी ये पितर ल लेके ये हुम धुप ल लेके लैं गंगा ले जाके ठण्डा करदे। गंगा मे ठण्डा कर दे। ये बात ल सुनिस तो मारे क्रोध के मारे चण्डी के नेत्र लाल हो जथे। उठाइस हुम धूप जितना श्राद्ध के सामान तेला अऊ -

लेके घुरूवा में फेंकन लगे भैया।

लेके घुरूवा में फेंकन लगे भाई।

 

भोजन नहीं करूंगा। चंडी कहती क्‍यों नहीं खाओगे। भोजन परोस रही हैं रागी। उद्दालक भोजन कर रहे हैं। चण्डी पंखे से हवा कर रही है। खा कर उठते हैं उद्दालक और कहते हैं। नींद नहीं आ रही है मैं नहीं सोउंगा। तुरंत बिस्तर बिछ जाता है। अब जान जाते हैं। जो काम करवाना हो उसे उल्टा बोलना होगा तभी चंडी समझती है। उस काम को पूरा कर देती है। समय बीतता है रागी। ऐसे करते-करते समय बीता और पित्र पक्ष आ गया। रागी भैया, श्राद्ध का समय है, महाऋषि उद्दालक अपने पितरों को तर्पण कर रहा है, श्राद्ध कर रहा है। 15 दिन तक पानी दिया अपने  पितरों को। अंतिम दिन उद्दालक अपनी पत्‍नी से उल्‍टा कहने मे थोड़ा चूक गये। कह डाले - चण्डी इन पितरों और पूजा के सामान को लेकर गंगा में जाकर ठण्डा कर दो। इस बात को उसने सुना तो क्रोध के कारण चण्डी के नेत्र लाल हो गए। पूजा और श्राद्ध के सामान को वह  उठाई और -

लेकर घुरूवा (कचरा फेंकने वाले स्‍थान घूरा) में फेंकने लगी भैया, लेकर घुरे में फेंकने लगी भाई।

 

 

घुरूवा में फेंक देथे महाऋषि उद्दालक ल दुख हो जथे रागी भैया। उद्दालक कथे अरे पापिनी। कहे - अरे दुष्ट त्रिया। आज तैं मूर्ख मोर पूरखा ल आज मोर पितर श्राद्ध ल तैं घुरूवा मे फेंक देस। गंगा मे ठण्डा करे बर कहेंव घूर मे लेके डार देस। बोले - जाओ। मैं श्राप देथौं पत्थर हो जा कहि दिस रागी भैया। पथरा बन जा। चण्डी पथरा हो जथे। उद्दालक ल चण्डी पूछथे महराज। मोर मोक्ष कइसे होही ? कथे - अर्जुन ये रस्ता में कहीं आही तोर ऊपर हाथ ल फेर दिही तैं फिर से नारी के समान रूप मे आ जबे। संभरी मुनि बतावत हे अर्जुन ल आज तक घाम, भूख, प्यास में पथरा बने चण्डी तोर रस्ता देखत हे। ये बात ल सुनथे अर्जुन ह जाके हाथ ल रेंगा देथे ऋषि पत्नी प्रगट हो जाथे रागी भैया। महावीर अर्जुन दोनो हाथ जोड़के चरण में प्रणाम करथे। शिला से घोड़ा के पांव छूट जाथे। अऊर फिर वहां से घोड़ा फिर आगे चलथे -

सिया राम भजन कर प्राणी भैया

तोर दो दिन के जिनगानी गा, सिया राम भजन कर।

सिया राम भजन कर प्राणी भैया, तोर दो दिन के जिनगानी गा।

सिया राम भजन कर प्राणी भैया, तोर दो दिन के जिनगानी गा।

 

घुरे में फेंक देती हैं, महाऋषि उद्दालक को दुख हो जाता हैं रागी भैया। उद्दालक कहते हैं अरे पापिनी ! कहते हैं - अरे दुष्ट त्रिया ! मूर्ख आज तुमने मेरे पुरखों को मेरे पितरों के श्राद्ध को तुम घुरे मे फेंक दी। गंगा मे ठण्डा करने के लिए कहा था घूरे मे लेकर डाल दी। बोलते हैं - जाओ ! मैं श्राप देता हूँ, पत्थर हो जाओ ! रागी भैया चण्डी पत्‍थर हो गई। उद्दालक को चण्डी नें पूछा महाराज, मेरा मोक्ष कैसे होगा ? तो उन्‍होंनें कहा - अर्जुन जब इस रास्ते में आयेगा तब तुम्‍हारे ऊपर अपना हाथ फेर देगा तब तुम फिर से नारी रूप मे आ जाओगी। मुनि बता रहे हैं अर्जुन को, आज तक धूप, भूख, प्यास में पत्‍थर बनी हुई चण्डी तुम्‍हारा राह देख रही है। इस बात को सुनने के बाद अर्जुन जाकर पत्‍थर में हाथ लगा देते हैं। ऋषि पत्नी प्रगट हो जाती है रागी भैया। महावीर अर्जुन दोनो हाथ जोड़ कर उनके चरणों में प्रणाम करते हैं। शिला से घोड़ा का पांव छूट जाता है और फिर वहां से घोड़ा फिर आगे चलता है -

सिया राम का भजन करो प्राणी भैया, तुम्‍हारी जिन्‍दगी दो दिन की है, सिया राम का भजन करो। सिया राम का भजन करो प्राणी भैया, तुम्‍हारी जिन्‍दगी दो दिन की है।

 

 

घोड़ा फिर वहां सिला से छूटते हैं फिर वहां से आगे बढ़थे रागी भैया। नाना प्रकार के देश भ्रमण करते करते जंगल झाड़ी पहाड़ पर्वत नदी नाला पार करते हुए आखिर घोड़ा हंसध्वज राजा के राज्य में पहुंच जथे। हंसध्वज राजा के पांच झन बेटा हे। सूरन, सेरन, सुबल, सूरत अऊर सुधन्वा। सबसे छोटे सुधन्वा हे। नगर में ढिंढोरा पीट दे जाथे हरि अर्जुन आये हे। भगवान के घोड़ा आये हे। अर्जुन के घोड़ा आए हे। बोले लड़े बर जाना हे सबला रागी भाई। हरि अर्जुन के दर्शन होही लड़े बर सब ला जाना हे। अऊ जेन ह लड़ाई में जाये बर पीछूवा जही रागी भाई ओला तपत कड़ाही में भूंज दे जाही। तपते हुए तेल में कड़ाही में डाले जाही। बड़े बड़े बीर, बड़े बड़े योद्धा वहां से लड़े बर चलथे। बताए हे। हंसध्वज राजा के सबसे छोटे बेटा हे सुधन्वा नाम के। सुधन्वा नाम के कुमार जब लगाते हें कवच कुण्डल वसन भूषण। युद्ध के मैदान में जब चले बर तैयार होथे रागी। माँ से बिदा लेथे। और माँ से बिदा लेके अपन धर्मपत्नी के भवन में जाथे। सुधन्वा के धर्मपत्नी के प्रभावती नाम हे। वोई दिन प्रभावती पवित्र स्नान करे राहय रागी। राजा ल युद्ध में जावत देखिस। दोनो हाथ जोड़ के प्रभावती कहे - प्राणनाथ। कहां जात हस ? सुधन्वा काहत हे - प्रिये मैं तो युद्ध में जावत हावंव। रानी कथे आज मैं पवित्र स्नान करे हौं मोला छोड़ के जाबे त तोला बाल हत्या लग जही। पाप लगही। बाल हत्या के पाप लग जही। मैं रमण करना चाहत हौं। मोर साथ आप ल रमण करे ल लगही। सुधन्वा समझावथे - देख प्रभा। पिताजी के आदेश हे। अगर कहीं मैं पीछे हो जहूँ तो मोल जलत कड़ाही में डाल दे जाही। रानी नइ माने रागी भैया फिर सुधन्वा वसन भूषण ल उतारथे राजमहल पंहुचथे अऊ दोनो के रमण होथे अऊ रमण के बाद फिर से स्नान करते है सुधन्वा और किरीट कुण्डल वसन भूषण लगा करके फिर युद्ध के मैंदान बर चलथे रागी। येती राजा पूछत हे - कौन पिछवाए हे ? सेना बतावत हे महराज सुधन्वा नइ आये हे। आपके छोटे कुमार नइ आए हे। सुधन्वा पहुंचथे। हंसध्वज प्रष्न करथे - अरे सुधन्वा ! पीछे कइसे होगेस कहे ? तोला लाज नइ लगै। भगवान अऊ अर्जुन के दर्शन करना हे केहे। अऊ तैं डर के मारे अभी आवथस। सुधन्वा दोनो हाथ जोड़ कर के कहे- बोले - पिताजी एमा मोर कोनो दोस नइये। सुधन्वा बताइस आपके पतोह मोरसे मिलना चाहत रिहिसे महराज। मैं राजमंदिर में थोरिकन बिलम होगे मोर से। कहे इसको जलत कड़ाही में भूंज दिया जाय। अब राजा मंत्री मन ल पूछिस - काय करबो ? तो उहू मन कहिथे अब कइसे पूछत हस ? अरे तोर बेटा तब तैं का करबो कहिके पूछथस नियम तें बनाए हस। महराज जलत कड़ाही में डाल दिया जाय। बताए तेल खौलत हे रागी कड़ाही में शंख अऊर लिखित नाम के पुरोहित खड़े हे। सुधन्वा ल वो डबकत कड़ाही में डाल दे जाथे। कड़ाही मे डाल दिस। सुधन्वा म नही मन भगवान ला कहत हे -

मुरारी मुरारी मुरारी हो अब रखि हौ लाज हमारी

मुरारी रखि हौ लाज हमारी।

मुरारी मुरारी मुरारी हो अब रखि हौ लाज हमारी

मुरारी रखि हौ लाज हमारी।

गज अऊ ग्राह लड़े जल भीतर लड़त लड़त गज हारी,

गज अऊ ग्राह लड़े जल भीतर लड़त लड़त गज हारी।

गज के टेर में रघुनंदन,

गज के टेर में रघुनंदन।

गरूड़ छोड़ पग धाए हो - मुरारी रखिहौ लाज हमारी।

मुरारी रखिहौ लाज हमारी।

मुरारी रखिहौ लाज हमारी।

 

घोड़ा शिला से छूटता है फिर वहां से आगे बढ़ता है रागी भैया। नाना प्रकार के देशों का भ्रमण करते करते जंगल झाड़ी पहाड़ पर्वत नदी नाला पार करते हुए अंत में घोड़ा हंसध्वज राजा के राज्य में पहुंच जाता है। हंसध्वज राजा के पांच बेटे हैं। सूरन, सेरन, सुबल, सूरत और सुधन्वा। सबसे छोटा सुधन्वा है। नगर में ढि़ढोरा पीटा जाता है कि हरि अर्जुन आये हैं। भगवान का घोड़ा आया है। अर्जुन का घोड़ा आया है। बोला जाता है कि सबको लड़ने के लिए जाना है भाई। हरि अर्जुन का दर्शन होगा, सबको लड़ने के लिए जाना है और जो लड़ाई में जाने से  पीछे छूट जायेगा रागी भाई उसे गर्म कड़ाही में भूंज दिया जायेगा। तपते हुए तेल की कड़ाही में डाला जायेगा। बड़े बड़े वीर, बड़े बड़े योद्धा वहां से लड़ने के लिए चलते हैं। बताया गया है, हंसध्वज राजा का सबसे छोटा बेटा सुधन्वा कुमार कवच कुण्डल वस्‍त्राभूषण लगाता है, युद्ध के मैदान में चलने के लिए तैयार होता है रागी। माँ से विदा लेता है और माँ से विदा लेकर अपनी धर्मपत्नी के भवन में जाता है। सुधन्वा की धर्मपत्नी का नाम प्रभावती है। उस दिन प्रभावती पवित्र स्नान की रहती है रागी। राजा को युद्ध में जाते देखती है तो दोनो हाथ जोड़ कर प्रभावती कहती हैं - प्राणनाथ। कहां जा रहे हो ? सुधन्वा कह रहा है - प्रिये मैं युद्ध के लिए जा रहा हूँ। रानी कहती हैं आज मैं पवित्र स्नान की हूँ मुझे छोड़ कर जाओगे तो तुम्‍हें बाल हत्या लगेगी। पाप लगेगा, बाल हत्या का पाप लगेगा। मैं रमण करना चाहती हूँ, मेरे साथ आप रमण करो। सुधन्वा समझा रहा है - देखो प्रभा, पिताजी का आदेश है। कहीं मैं पीछे हो जाउंगा तो मुझे जलते कड़ाही में डाल दिया जायेगा। रानी नहीं मानती रागी भैया। सुधन्वा वस्‍त्राभूषण को उतारता है और राजमहल पंहुचता है, दोनो में रमण होता है और रमण के बाद सुधन्वा फिर से स्नान करता है और किरीट कुण्डल वस्‍त्राभूषण लगा कर फिर युद्ध के मैंदान के लिए चलता है रागी। इधर राजा पूछते हैं - कौन पीछे छूट गया है? सैनिक बता रहे हैं महाराज सुधन्वा नहीं आया है। आपका छोटा कुमार नहीं आया है। सुधन्वा पहुंचता हैं। हंसध्वज प्रश्न करते हैं - अरे सुधन्वा ! पीछे कैसे हो गया था? कहते हैं कि तुम्‍हें लाज नहीं लगी? भगवान और अर्जुन का दर्शन करना है और तुम डर कर अभी आ रहे हो। सुधन्वा दोनो हाथ को जोड़ कर कहता है- पिताजी इसमें मेरा कोई दोष नही है। सुधन्वा बताता है आपकी पतोहू मुझसे मिलना चाहती थी महाराज। मुझे राजमंदिर में थोड़ा विलंब हो गया। राजा कहते हैं इसे जलते कड़ाही में भूंज दिया जाय। अब राजा मंत्री को पूछते हैं – क्‍या किया जाए? तो वे भी कहते हैं अब क्‍यूं पूछते हो ? अरे तुम्‍हारा बेटा है हमें क्‍यों पूछ रहे हो, नियम तो आपने बनाया है। महाराज कहते हैं इसे जलते कड़ाही में डाल दिया जाय। बताया गया है कि कड़ाही में तेल खौल रहा है रागी, शंख और लिखित नाम के पुरोहित खड़े हैं। सुधन्वा को उस खौलते कड़ाही में डाल दिया जाता है। कड़ाही मे डाल दिए। सुधन्वा मन ही मन भगवान को कहते हैं -

मुरारी मुरारी मुरारी हो अब हमारी लाज रखो, मुरारी हमारी लाज रखो।

गज और ग्राह जल के भीतर लड़ रहे हैं लड़ते लड़ते गज हार जाता है, गज की पुकार पर रघुनंदन गरूड़ को छोड़ कर नंगे पांव दौड़ते आते हैं। मुरारी मुरारी मुरारी हो अब हमारी लाज रखो, मुरारी हमारी लाज रखो।

 

 

रागी भैया सुधन्वा भगवान ल कथे प्रभु कहे मै कोई अपराध नइ करे हौं। कहे मोर रक्षा करबे। खौलत कड़ाही में कूदगे रागी भैया। आह ! तेल डबकत हे। पर सुधन्वा अइसे नजर आत हे दुरिहा ले मानो वो तेल मे स्नान करत हे। शंख अऊर लिखित नाम के ब्राम्हण खड़े हे। महराज खड़े हे। दोनो झन। वोमन काहय ये तेल बने नइ तीपे हे का गा ? है न ! शंख अऊर लिखित नाम के पुरोहित एक ठन नारियल निकालके तेल मे डार देथे नारियल तेल मे पड़थे दो भाग में बंट जाथे, फूट जाथे अऊ जाके शंख अऊर लिखित के मस्तक मे पड़ जथे। साधु साधु के आवाज आथे सुधन्वा तोर हृदय में भगवान के बास हे तैं तो भगवान के भक्त अस। सुधन्वा ल निकालथे फिर दूसरा पोषाक पहनथे अऊर वहां से फेर लड़े के खातिर जाथे। लड़ाई के मैदान में मारो मारो के आवाज होवथे रागी भाई। सुधन्वा और अर्जुन दोनो में फिर घोर संग्राम होथे। मेघवर्ण वृषकेतु नीलध्वज हंसध्वज राजा मन सब एक एक करके लड़त हे अऊ सुधन्वा ल कोनो विजय नइ पा सकथे। आखिर में सुधन्वा कथे - अर्जुन तैयार हो जा। सुधन्वा कहते हैं अर्जुन ! 18 दिवस महाभारत जीत के आये हस ओखर धोखा ल छोड़ देबे। बोले - कहां हे कमला कांत भगवान बोले अपन रक्षा चाहत हस तो बला ले। बोले भगवान ल बला ले अगर तैं अपन खैरियत चाहत हस त। महावीर भगवान बांके बिहारी के याद करथे। अऊर भगवान बांके बिहारी तत्काल पहुंचथे अऊ रथ के ऊपर में जाके -

अगा घोड़ा के रस्सी खींचन लगे भैया

घोड़ा के रस्सी ला खींचन लगे भाई।

दोनो बीरे लड़न लगे भैया

दोनो बीरे लड़न लगे भाई।

 

रागी भैया सुधन्वा भगवान को कहते हैं प्रभु मै कोई अपराध नहीं किया हूँ। मेरी रक्षा करना। खौलते कड़ाही में कूद गया रागी भैया। आह ! तेल खौल रहा है किन्‍तु सुधन्वा, इस तरह नजर आ रहा है मानो उस तेल मे स्नान कर रहा है। शंख और लिखित नाम के ब्राम्हण खड़े है, महाराज खड़े है। दोनो कहते हैं यह तेल ठीक से गर्म  नहीं है क्‍या? शंख और लिखित नाम के पुरोहित एक नारियल को निकाल कर तेल मे डालते हैं, नारियल तेल मे पड़ते ही दो भाग में बंट जाता हैं, फूट जाता हैं और जाकर शंख और लिखित के मस्तक मे पड़ता है। साधु साधु की आवाज आती है, सुधन्वा तुम्‍हारे हृदय में भगवान का वास है तुम तो भगवान के भक्त हो। सुधन्वा को निकालते हैं फिर दूसरा वस्‍त्र पहनाते हैं और वहां से पुन: लड़ने के लिए जाते हैं। लड़ाई के मैदान में मारो मारो की आवाज आ रही है रागी भाई। सुधन्वा और अर्जुन दोनो में घोर संग्राम होता है। मेघवर्ण वृषकेतु नीलध्वज हंसध्वज सब राजा एक एक कर लड़ते हैं और सुधन्वा को कोई जीत नहीं पाते हैं। अंत में सुधन्वा कहता है - अर्जुन तैयार हो जा। सुधन्वा कहता है अर्जुन ! 18 दिवस महाभारत जीत कर आये हो उसका धोखा छोड़ देना। बोलता है - कहां हैं कमलाकांत भगवान ? अपनी रक्षा चाहते हो तो बुला लो। भगवान को बुला लो कहीं तुम अपनी खैरियत चाहते हो तो। महावीर, भगवान बांके बिहारी को याद करते हैं और भगवान बांके बिहारी तत्काल पहुंचते हैं रथ के ऊपर में जाकर -

अजी घोड़ा की रस्सी खींचन लगे भैया, घोड़ा की रस्सी को खींचन लगे भाई। दोनो वीर लड़ने लगे भैया, दोनो वीर लड़ने लगे भाई।

 

 

लड़ते हैं। अर्जुन चिल्लाकर करके बोले - अरे सुधन्वा। आज मै प्रतीज्ञा करत हौं। मैं तीन बान में अगर कहीं तोला नइ मारहूँ तो कुंती के बेटा अर्जुन कहाना छोड़ देहूँ। सुधन्वा कथे अर्जुन मैं कहूं वो तोर तीनो ठन बान ल नइ काटिहौं तो राजा हंसध्वज के बेटा सुधन्वा कहाना मैं छोड़े देहूँ। रागी भाई अर्जुन निकालथे तुणुर से बान गांडीव ले छोड़ देथे। बान जब गर-गर-गर चलथे। भगवान हांस के काहय - अर्जुन। तैं तीन बान में वो कुमार ल मारहूँ केहे हस अऊ वो तोर तीन ठन बान ल काटहूँ केहे हे। तैं अइसे का पुण्य करे हस जेकर बल से तैं सुधन्वा ल मारबे। भगवान विचार करिस। रागी भैया जेन समय भगवान ह गोबरधन उठाए रिहिस हे अऊ गोबरधन पहाड़ ल उठाके सब गोप ग्वाल रक्षा करे रिहिस हे। ओ समय भगवान ल जतका कन पुण्य मिले रिहिस हे वो पुण्य ल मारे के खातिर, सुधन्वा ल मारे खातिर -

अगा अर्जुन के बाने में बैंठन लगे भाई

वोह अर्जुन के बाने में बैंठन लगे भाई।

बाने गा चलन लगे गा ए गा भाई

हाँ बाने गा चलन लगे गा ए गा भाई।

 

दोनों लड़ते हैं। अर्जुन चिल्लाकर कर बोलता है - अरे सुधन्वा। आज मै प्रतिज्ञा करता हूँ, मैं तीन बाण में कहीं तुम्‍हें नहीं मारूं तो कुंती का बेटा अर्जुन कहाना छोड़ दूंगा। सुधन्वा कहता है अर्जुन मैं कहीं तुम्‍हारे उन तीनो बाणों को काट ना दूं तो राजा हंसध्वज का बेटा सुधन्वा कहाना छोड़ दूंगा। रागी भाई अर्जुन तुणीर से बाण निकालता है, गांडीव से छोड़ देता है। बाण जब सर-सर कर चलता है। भगवान हंस कर कहते हैं - अर्जुन ! तुम तीन बाण में उस कुमार को मारूंगा बोले हो और वह तुम्‍हारे तीनों बाण को काट दूंगा बोला है। तुमने ऐसा क्‍या पुण्य किया है जिसके बल पर तुम सुधन्वा को मारोगे। भगवान नें विचार किया रागी भैया जिस समय मैने गोवर्धन पर्वत उठाया था और उस पहाड़ को उठा कर सब गोप ग्वालों की रक्षा किया था उस समय भगवान को जितना पुण्य मिला था उतना पुण्य सुधन्वा को मारने के लिए चाहिए -

अजी अर्जुन के बाण में बैठने लगे भाई, वे अर्जुन के बाण में बैठने लगे भाई। बाण चलने लगा भाई, हाँ बाण चलने लगा भाई।

 

 

गोप ग्वाल के प्राण बचाए रिहिस हे। जतका कन भगवान ल पुण्य मिले रिहिस हे। वो पुण्य के फल ल वो बाण मे चढ़ा दिस। सुधन्वा जानगे कहे - प्रभु आज अपन पुण्य ल बान मे बिठाके मोला मारे बर भेजत हस। पर ये बान ल मैं जरूर काटिहौं द्वारिका नाथ। निकाल के बान सुधन्वा छोड़थे अऊ वाकई वो बान ल काट के गिरा देथे। महावीर अर्जुन दूसरा बान छोड़थे। दूसरा बान छोड़थे त भगवान त्रेता युग में जब राम अवतारे रिहिस रागी। अऊ राम अवतरे रिहिस हे मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से जाने जात रिहिस हे। जितना त्रेतायुग में वोला पुण्य मिले रिहिस हे वो त्रेतायुग के पुण्य ल बान मे फन में बिठा के भेजिस। सुधन्वा नाम के वीर वो दूसरा बान ल भी काट दिस। महावीर अर्जुन ह फिर तीसरा बान ल छोड़थे। तीसरइया बान जब छूटिस। गर-गर-गर जब बान ह जाथे तो तीसरइया बान के फन में स्वयं भगवान बइठे हे। अऊ राजकुमार सुधन्वा ल मारे बर दऊड़त हे रागी। सुधन्वा के नजर परिस। भगवान ल आवत देखिस बान के फन मे बइठे। दोनो हाथ जोड़ के सुधन्वा काहत हे -

जय बोलो वृन्दावन बिपिन बिहारी भाई

सिया रामा हो राधे श्यामा।

शेष महेषे ये तोर गुन गावय भाई हो

सिया रामा हो राधे श्यामा।

बड़े-बड़े ज्ञानी ये ध्यान लगावै हो

सिया रामा हो राधे श्यामा।

राम जय बोलो वृंदावन बिपिन बिहारी भाई

सिया रामा हो राधे श्यामा।

सिया रामा हो राधे श्यामा।

 

गोप ग्वालों की प्राण बचाए थे तो जितना भगवान को पुण्य मिला था वो पुण्य का फल उस बाण मे चढ़ा दिए। सुधन्वा जान गया कहता हैं - प्रभु आज अपने पुण्य को बाण मे बिठाकर मुझे मारने के लिए भेजते हो। किन्‍तु इस बाण को मैं जरूर काटूंगा द्वारिकानाथ। सुधन्वा निकाल कर बाण छोड़ते हैं और वाकई उस बाण को काट कर गिरा देते हैं। महावीर अर्जुन दूसरा बाण छोड़ते हैं, दूसरा बाण छोड़ते हैं तो भगवान त्रेता युग में जब राम अवतार लिए थे रागी, तब वे मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से जाने जाते थे। जितना त्रेतायुग में उन्‍हें पुण्य मिला था उस त्रेतायुग के पुण्य को बाण के फण में बिठा कर भेजते हैं। सुधन्वा नाम का वीर उस दूसरे बाण को भी काट देता है। महावीर अर्जुन फिर तीसरा बाण छोड़ते हैं। तीसरा बाण जब छूटा, सर-सर करता हुआ बाण जब जाता है तब तीसरे बाण के फन में भगवान स्वयं बैठ जाते हैं और राजकुमार सुधन्वा को मारने के लिए दौड़ते हैं रागी। सुधन्वा देख लेता है, भगवान को आते देख रहा है, बाण के फन मे बैठे हैं भगवान। दोनो हाथ जोड़ कर सुधन्वा कह रहा है -

जय बोलो वृन्दावन बिपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्यामा। शेष महेश तुम्‍हारा गुन गाते हैं भाई, सिया रामा हो राधे श्यामा। बड़े-बड़े ज्ञानी ध्यान लगाते हैं, सिया रामा हो राधे श्यामा। राम जय बोलो वृंदावन बिपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्यामा।

 

 

बान के फन में स्वयं भगवान बइठे हे। सुधन्वा निकाले एक बान अऊ अर्जुन के तीसरा बान भी काटथे। बान टुट के पृथ्वी में गिर जथे रागी भैया। अऊर गिरे हुए बाण के अघुवा भाग उड़ जथे अगास में अऊ उड़के वहां से जब गिरथे -

तब कुंवर के सिरे ल छेदन लागे भाई

वोह बालक के सिरे ल छेदन लागे भाई।

हाँ अर्जुन अब देखन लागे गा ए गा भाई

ए अर्जुन अब देखन लागे गा ए गा भाई।

 

बाण के फण में स्वयं भगवान बैठे हैं। सुधन्वा निकालता है एक बाण और अर्जुन के तीसरे बाण को भी काट देता है। बाण टूट कर पृथ्वी में गिर जाता है रागी भैया। गिरे हुए बाण का अग्र भाग आकाश में उड़ जाता है और उड़ कर वहां से जब गिरता है -

तब कुंवर के सिर को छेदने लगा भाई, वो बालक के सिर को छेदने लगा भाई। अर्जुन अब देखने लगा भाई, अर्जुन अब देखने लगा भाई।

 

 

सुधन्वा के सिर कट जाथे। सुधन्वा पृथ्वी में गिर पड़थे। रागी भैया सुधन्वा के सिर उड़के आथे अऊ अर्जुन के रथ में भगवान के चरण में गिर जथे। भगवान बांके बिहारी वो सिर ल उठाके गगनपंथ में फेंकथे। सिर उड़के कैलास में जाथे। भगवान शिव वोला मुण्ड माला बनाके पहिनथे। भगवान गला में मुण्ड माला बना के पहिनत हे। छेटे भाई सुधन्वा के मौत होथे। सूरत नाम के कुमार लड़े बर आथे। घमासान सूरत कुमार वृषकेतु, मेघवर्ण, नीलकुंज, नीलध्वज, हंसध्वज राजा यवन नास जितने भी है सबके साथ युद्ध होथे आखिर में वो सूरत नाम के कुमार ल मार दे जाथे। कुमार के सिर कटथे। जाके भगवान के चरण में गिरथे। रागी वो दूसरइया सिर ल भी भगवान गरूड़ के द्वारा काहत हे भैया येला तैं लेग के प्रयाग में मड़ा देबे भाई। कहे सिर ले जा गरूड़ अऊर तीर्थ राज प्रयाग म रख देना। गरूड़ जी सूरत के सिर ल लेग के प्रयाग म मड़ावत हे। तब भगवान महादेव भेजिस श्रृंगी ल के भैया जा ओ सिर ले करके आओ। क्योंकि हम मुण्ड माला बना करके पहनेंगे। सूरत के सिर ल लेग के देथे, भगवान वोला माला बना करके पहिरत हे। आखिर में हंसध्वज राजा भगवान के शरण मे आ जथे। महावीर अर्जुन फिर नगर में चलके विश्राम करथे। मित्र हो जथे। मित्रता कर लेथे। नगर में विश्राम करथे हंसध्वज राजा के राज में और राजा से फेर विदा लेके वहां से फिर संग में चलथे। हंसध्वज राजा बड़े बड़े सेना लेकर के फिर अर्जुन के संग में वो घोड़ा के रक्षा करे बर जाथे। बड़े बड़े जंगल झाड़ी पहाड़ पर्वत नदी नाला पार करत हावे रागी। आखिर में घूमते घूमते घोड़ा त्रिया राज पहुंचत हे। त्रियाराज मे परामिल नामे के एक लड़की राज्य करत हे। रागी, जिहां पुरूष के नाम नइ हे। सब त्रिया मिलके अर्जुन के घोड़ा ल पकड़ लेथे। परामिल रानी इजाजत देथे घोड़ा बांध दौ। घोड़ा बंध जथे। सेना तैयार हा जथे। सब त्रिया मिलके लड़े बर आ जथे अर्जुन के आगे। रागी भैया अर्जुन कथे मैं स्त्री के ऊपर मे हाथ नइ उठावौं। बोले -मैं त्रिया के साथ युद्ध नइ करौं। परामिल कहे अर्जुन ले - लड़े के काम नइये। बोले हमर नगर मे चलके हमर साथ भोग विलास कर। सुख में तैं जीवन बिता। तो अर्जुन काहत हे - परामिल मैं तो अश्‍वमेघ यज्ञ करत हौं। अऊ ये घोड़ा के रक्षा करे बर आये हौं। आखिर में रानी परामिल के साथ अर्जुन महराज के मित्रता हो जथे। रागी भैया। परामिल कहिथे - जा तैं हस्तिनापुर नगर जहां हम अश्‍वमेघ यज्ञ करत हन। अऊ हम दिग्विजय करके आवत हन। महारानी परामिल सोना चांदी द्रव्य लेकि हस्तिनापुर चलथे। अऊ नाना प्रकार के देश के भ्रमण करते हुए अर्जुन के रथ फेर घोड़ा फिर आगे चलथे। सबल सिंह बताए हें आखिर में नाना प्रकार के देश ल घूमत एक दिन फेर श्यामकरण घोड़ा ह -

अरे मणिपुर देशे पहुंचन लगे भैया ये दे जी

मणिपुर देशे पहुंचन लगे भाई।

राजा ल पता लगन लगे भैया जी

राजा ल गा पता गा चलन लगे भाई।

 

सुधन्वा का सिर कट जाता है, सुधन्वा पृथ्वी में गिर जाता है। रागी भैया सुधन्वा का सिर उड़ कर आता हैं और अर्जुन के रथ में भगवान के चरण में गिर जाता है। भगवान बांके बिहारी उस सिर को उठा कर गगनपंथ में फेंकते हैं। सिर उड़ कर कैलाश में जाता हैं। भगवान शिव उसे मुण्ड माला बना कर पहन लेते हैं। भगवान गला में मुण्ड माला बना कर पहनते हैं। छेाटे भाई सुधन्वा की मृत्‍यु होती है। सूरत नाम का कुमार लड़ने के लिए आता है। सूरत कुमार के साथ वृषकेतु, मेघवर्ण, नीलकुंज, नीलध्वज, हंसध्वज जितने भी है सबके साथ युद्ध होता है अंत में सूरत नाम के कुमार को मार देते हैं। कुमार का सिर कट जाता है। उसका सिर भी जाकर भगवान के चरण में गिरता है। रागी उस दूसरे सिर को भी भगवान गरूड़ के द्वारा प्रयाग में रखवा देते हैं भाई। भगवान गरूड़ से कहते हैं कि जाओ इस सिर को तीर्थ राज प्रयाग म रख देना। गरूड़ जी सूरत के सिर को ले जाकर  प्रयाग में रख देते हैं। तब भगवान महादेव श्रृंगी को भेजते हैं कि भैया जा कर उस सिर को ले आओ। क्योंकि हम उसे मुण्ड माला बनाकर पहनेंगे। सूरत के सिर को भी ले जाते हैं, भगवान उसे माला बना कर पहन रहे हैं। अंत में हंसध्वज राजा भगवान की शरण मे आ जाते हैं। महावीर अर्जुन फिर नगर में चल कर विश्राम करते हैं, मित्र हो जाते हैं, मित्रता कर लेते हैं। हंसध्वज राजा के राज में नगर में विश्राम करते हैं और राजा से फिर विदा लेकर वहां से चलते हैं। हंसध्वज राजा बड़े बड़े सेना लेकर अर्जुन के साथ में उस घोड़ा की रक्षा करने के लिए जाते हैं। बड़े बड़े जंगल झाड़ी पहाड़ पर्वत नदी नाला पार कर रहे हैं रागी। अंत में घूमते घूमते घोड़ा त्रिया राज पहुंचता है। त्रियाराज मे परामिल नाम की एक लड़की राज्य कर रही है। रागी, जहां पुरूष का नाम नहीं है। सब त्रिया मिल कर अर्जुन के घोड़ा को पकड़ लेती हैं। परामिल रानी इजाजत देती है घोड़ा बांध दो। घोड़ा बंध जाता है। सेना तैयार हो जाता है। सब त्रिया मिलकर अर्जुन के सामने लड़ने के लिए आती हैं। रागी भैया अर्जुन कहते हैं मैं स्त्री के ऊपर हाथ नहीं उठाउंगा। बोलते हैं -मैं त्रिया के साथ युद्ध नहीं करूंगा। परामिल अर्जुन से कहती है - लड़ने का काम नही है। बोलती है हमारे नगर मे चल कर हमारे साथ भोग विलास करो। सुख में तुम जीवन बिताओ तो अर्जुन कहते हैं - परामिल मैं तो अश्वमेघ यज्ञ कर रहा हूँ और इस घोड़े की रक्षा करने के लिए आया हूँ। अंत में रानी परामिल के साथ अर्जुन महाराज की मित्रता हो जाती है रागी भैया। अर्जुन कहते है - जावो तुम हस्तिनापुर नगर जहां हम अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं और हम दिग्विजय करके आ रहे हैं। महारानी परामिल सोना चांदी द्रव्य ले कर हस्तिनापुर जाती है और नाना प्रकार के देश के भ्रमण करते हुए अर्जुन का रथ और घोड़ा फिर आगे चलता है। अंत में नाना प्रकार के देश को घूमते हुए एक दिन फिर श्यामकर्ण घोड़ा -

मणिपुर देश पहुंचने लगा भैया, मणिपुर देश पहुंचने लगा भाई। वहां के राजा को पता चल गया  भैया जी, वहां के राजा को पता चल गया भाई।

 

 

मणिपुर देश पहुंचथे। मणिपुर नगर में बब्रुवाहन नामे के राजा राज करत हे। राजा ल पता चलिस श्यामकर्ण घोड़ा आये हे रागी भैया। घोड़ा बांध दे जाथे। जब घोड़ा ला बांधथे माथा में पत्रिका लिखाए हे। धर्मराज राजा अश्‍वमेघ यज्ञ करत हे। एकर रखवार अर्जुन आए हे। एक घड़ी भी कहीं ये घोड़ा ल बिलमा दिही तो अर्जुन संग में लड़े बर लगही। बब्रुवाहन पढ़िस अर्जुन आये हे। रागी भैया। रानी उलुपी सुनिस - अर्जुन आये हे, रानी चित्रांगदा सुनथे अर्जुन आये हे। रागी भैया। रानी मन कथे - बेटा उही ह तोर पिताजी ये। लड़े के काम नइये बब्रुवाहन। न जाने आज कित्ता दिन के बाद अर्जुन के दर्शन होने वाला हे। रागी, श्यामकर्ण घोड़ा ल आगे करके बब्रुवाहन नाम के राजा जब अर्जुन से मिले बर जाथे और दोनो हाथ जोड़के अर्जुन से कहते हैं - अर्जुन ल काहत हे। महराज। मोर से गलती होगे। क्षमा कर दे। कहे! मैं तोर बेटा बब्रुवाहन औं कहे महराजा। तैं अर्जुन मै आपके बेटा बब्रुवाहन। शत शत नमन करत हौं मैं। अर्जुन के चरण में जब गिरथे रागी मारे क्रोध में अर्जुन के आँख लाल हो जाथे। बताए हे अर्जुन उठाए लात अऊर लात उठाके मणिपुर नरेष बब्रुवाहन ल मार देथे। अरे बब्रुवाहन तेला लाज नइ लागय। अर्जुन काहत हे - अरे बब्रुवाहन लाज नइ लागय तोला रे। कहे मोर एक ही बेटा रिहीस हे। जेन ला दुनिया जानथे, अभिमन्यु के नाम से अऊ मोर हित के खातिर वो ह कुरूक्षेत्र में जूझगे। अरे बब्रुवाहन तैं तो एक वेष्या के पुत्र अस। तें एक नाचने गाने वाली के पुत्र अस। चित्रांगदा के बेटा अस। अधर्म के पुत्र अस। अ ऽऽऽ मारे क्रोध में बब्रुवाहन के आँखी लाल हो जथे। कहे अर्जुन तैं मोर छाती म लात मार देस मोला दुख नइये। लेकिन तैं मोर माँ ल गाली दे हस। आज इतना बड़े वीर मन के बीच मोर माँ ल वेष्या कहि देस। याद रखबे अर्जुन मैं वेष्या के पुत्र आज प्रतीज्ञा करत हौं कहूँ मैं तोला नइ मारहूँ अर्जुन मैं बब्रुवाहन कहाना छोड़ दिहूँ। घोड़ा ले जाओ। बांध दो। बांध दो घोड़ा। घोड़ा वापिस होगे। बांध दे जाथे रागी भैया। सबलसिंह बताए हे - बब्रुवाहन के सेना सेज के आथे और फिर पाण्डव के सेना से घमासान युद्ध होथे। यवननास राजा और उत्सल्य राजा, नीलध्वज राजा हंसध्वज राजा लड़थे। दुषासन के बेटा मेघवर्ण लड़थे। करण के बेटा वृषकेतु लड़थे। पर बब्रुवाहन ल विजय नई पावत हे रागी। सबलसिंह महराज बताए हे, वृषकेतु अऊर बब्रुवाहन में बिना एक क्षण विश्राम किये बिना -

अरे पांच दिवस लड़ाई होथे भैया ऽऽऽ भाई

 पांच दिवस गा लड़ाई होवय भाई

बब्रुवाहन गा काहन लगे भैया ऽऽऽ भाई

कहे - वाह

बब्रुवाहन गा लड़न लागे भाई।

 

मणिपुर देश पहुंचते हैं, मणिपुर नगर में बब्रुवाहन नाम का राजा राज कर रहा है। राजा को पता चलता है कि श्यामकर्ण घोड़ा आया है रागी भैया। तो घोड़ा बांध दिया जाता है। जब घोड़ा को बांधते हैं तो माथे में लिखा पत्रिका पढ़ते है। धर्मराज राजा अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं। इसके रक्षक अर्जुन आए हैं। एक घड़ी भी कहीं इस घोड़े को कोई रोक देगा तो अर्जुन के साथ युद्ध करना पड़ेगा। बब्रुवाहन पढ़ा कि अर्जुन आया है ! रागी भैया, रानी उलुपी सुनी  - अर्जुन आया है, रानी चित्रांगदा सुनती है अर्जुन आया है ! रागी भैया, रानियां कहती हैं - बेटा वही तुम्‍हारे पिता हैं। लड़ने का काम नही है बब्रुवाहन, ना जाने आज कितने दिनों के बाद अर्जुन के दर्शन होने वाले हैं। रागी, श्यामकर्ण घोड़ा को आगे कर बब्रुवाहन नाम का राजा जब अर्जुन से मिलने के लिए जाता है और दोनो हाथ जोड़ कर अर्जुन से कहता है - अर्जुन को कह रहा है। महाराज ! मुझसे गलती हो गई, क्षमा कर दे, कहता है! मैं आपका बेटा बब्रुवाहन हूँ। महराजा कहता है  आप अर्जुन और मै आपका बेटा बब्रुवाहन ! मैं शत शत नमन कर रहा हूँ। अर्जुन के चरणों में जब बब्रुवाहन गिरता है रागी, अत्‍यंत क्रोध से अर्जुन की आँख लाल हो जाती है। बताया गया है कि अर्जुन लात उठाते हैं और लात उठा कर मणिपुर नरेश बब्रुवाहन को मार देते हैं। अरे बब्रुवाहन तुम्‍हें लाज नहीं आती। अर्जुन कह रहा है - अरे बब्रुवाहन तुम्‍हें लाज नहीं आई रे। कहते हैं मेरा एक ही बेटा था। जिसे दुनिया अभिमन्यु के नाम से जानती है और मेरे हित के लिए वह कुरूक्षेत्र में शहीद हो गया। अरे बब्रुवाहन तुम तो वेश्या पुत्र हो, तुम एक नाचने गाने वाली के पुत्र हो, चित्रांगदा के बेटे हो, अधर्म के पुत्र हो ! ओह ऽऽऽ भयंकर क्रोध में बब्रुवाहन की आँखी लाल हो जाती है। कहता है अर्जुन तुमने मेरी छाती मे लात मारा, मुझे दुख नही है। लेकिन तुम मेरी माँ को गाली दे रहे हो। आज इतने बड़े-बड़े वीरों के बीच में मेरी माँ को वेश्या कह दिए। याद रखना अर्जुन मैं वेश्या का पुत्र आज प्रतीज्ञा कर रहा हूँ, कहीं मैं तुम्‍हें नहीं मारूं तो मैं बब्रुवाहन कहाना छोड़ दूंगा। अपनी सेना को आदेश देते हैं घोड़ा ले जाओ, बांध दो, बांध दो घोड़ा, घोड़ा वापस हो गया, बांध दिया गया रागी भैया। सबल सिंह बताए हैं - बब्रुवाहन सेना सजा कर आते हैं और फिर पाण्डव की सेना से घमासान युद्ध होता है। यवननास राजा और उत्सल्य राजा, नीलध्वज राजा हंसध्वज राजा लड़ते हैं। दुशासन का बेटा मेघवर्ण लड़ता है, कर्ण का बेटा वृषकेतु लड़ता है किन्‍तु बब्रुवाहन से विजय नहीं पा सकते रागी। सबल सिंह महाराज बताए हैं, वृषकेतु और बब्रुवाहन में बिना एक क्षण विश्राम किये -

अरे पांच दिवस लड़ाई होता है भैया ऽऽऽ भाई, पांच दिवस लड़ाई होगा भाई, बब्रुवाहन कहने लगा भैया ऽऽऽ भाई

कहते हैं - वाह ! बब्रुवाहन लड़ने लगा भाई।

 

 

एक घड़ी विश्राम किये बगैर ब्रब्रुवाहन नाम के बीर अऊ वृषकेतु नाम के बीर जब दोनो लड़िस रागी आखिर में बब्रुवाहन ल केहे ल पड़गे वाह वृषकेतु वाकई मैं आज तक तोर जइसे वीर नइ देखे हौ। कहे - माने ल पड़ही तोला। अर्जुन के बेटा बब्रुवाहन ये अऊ करण के बेटा वृषकेतु ये। घमासान युद्ध होवत हे रागी। बताए जब अर्जुन मणिपुर मे जाथे न रागी तो नाना प्रकार के असगुन होथे। अर्जुन के रथ के ऊपर में चील गिद्ध मण्डराना शुरू कर देथे। चील गिद्ध मण्डराथे। श्वान, गधा ये भयंकर अशुभ बोली ले बोलथे। जब ये नाना प्रकार के अषुभ घटना ल देखत हे न रागी तो अर्जुन वृषकेतु ल काहत हे। वृषकेतु ! तैं ये लड़ाई ल छोड़ के हस्तिना चल दे बेटा। अर्जुन समझाथे वृषकेतु। माँ कुन्ती तोला सऊँपे हे मोला। अऊ कहे हे - वृषकेतु ल संग में लिए बिना मत आबे। वृषकेतु आज कहीं तैं जूझ जबे त माँ मोला माफ नइ करही। ऐसे लगथे मोर मृत्यु नजदीक आगे हे बेटा। असगुन होवत हे। वृषकेतु तें वापिस घर जा। वृषकेतु कहे पिताजी मैं क्षत्री औं। जइसे मोर पिता लड़ाई के मैदान में मरगे, कौरव के हित के खातिर आज मैं भी मर जाहूँ, पर पीठ दिखाके नइ जावंव। सातवा दिन लड़िस आखिर मे बब्रुवाहन नाम के कुमार ह सारी सेना ल खतम कर देथे। हंसध्वज, नीलध्वज, यवननास रागी भैया वृषकेतु मेघवर्ण। बताए हे ब्रब्रुवाहन के त्रुण में अर्द्धचन्द्र नाम के बान समाए हे, रानी ज्वाला ह बान के रूप लेके। आखिर में बब्रुवाहन वही अर्द्धचन्द्र बान लेथे अऊ निकालके धनुष में चढ़ाके छोड़ देथे। गर-गर बान जाथे। रागी भैया अऊ जाके अर्द्धचन्द्र बान अर्जुन के सिर ल काट देथे। अर्जुन जेसे भारत वीर पृथ्वी म गिर जथे। जुझ गे अर्जुन। सारी सेना मारे गै। बब्रुवाहन विजय शंख फूंक के वापिस आते हैं। जब नगर मे पहुँचथे खुशी के लहर छागे रागी उत्सव होवत हे। राजमंदिर में जाके बब्रुवाहन अपन माँ मन ल काहत हे माँ। नाना प्रकार के श्रंगार कर क्योंकि आज मैं युद्ध जीत के आ रहा हूँ। कहे - माँ! अर्जुन ल  मार के आवत हौं। दोनो झन रानी मन कथे - तोला लाज नइ लागय बब्रुवाहन। तैं अरे ! तोला तो मर जाना रिहिस हे। कहे - आज अर्जुन तोर पिता जी कहे अऊ ओला मार के तैं आवत हस। आज तैं हमला विधवा बना दिये बब्रुवाहन, ये बात सुनिस बब्रुवाहन, कहे - माँ! मोर दोस नइहे। मैं तो अर्जुन के शरण में गे रेहेंव पर अर्जुन मोला लात मार दिस। कहे तोर सतीत्व के ऊपर में लांछन लगाइस हे। दोनो रानी कथे - बेटा अब हमला अर्जुन के लाश के पास लेग जा। आथे दोनो रानी लाश पड़े हे रागी भैया। उलुपी कहिथे - बब्रुवाहन चिंता झन कर। उलुपी कोन ये ? शेष नांग के बेटी ये। उलुपी काहत हे - मैं अपन वस्त्र आभूषण ल देवत हौं येला धरके तैं पाताल लोक जा मोर पिता जी शेषनाग जगा। जाके ओला बता देबे तोर बेटी विधवा होगे हे। अऊ अगर कहीं वोला तैं बचाना चाहत हस, अर्जुन ल जियाना हे तो मणि संजीवन दे कहिबे। ए बात सुनिस तो बब्रुवाहन भी करथे - माँ। अरे मैं पाताल चलि मणि लेई आहौं। भुजा उठा के फिर बब्रुवाहन कहिथे -

अरे मैं पाताल चलि अरे भई मणि लेई आहौं

अजी जीत नांग अब तात जियाऔं।

 

एक घड़ी भी विश्राम किये बगैर ब्रब्रुवाहन नाम का वीर और वृषकेतु नाम के वीर दोनो लड़ते हैं रागी, अंत में बब्रुवाहन को कहना पड़ गया, वाह वृषकेतु मैं आज तक तुम्‍हारे जैसा वीर नहीं देखा था। कहता है - मानना पड़ेगा तुम्‍हें। अर्जुन का बेटा ब्रब्रुवाहन और कर्ण का बेटा वृषकेतु दोनों में घमासान युद्ध हो रहा है रागी। बताया गया है जब अर्जुन मणिपुर मे जाता है रागी तब नाना प्रकार का अपशगुन होता है। अर्जुन के रथ के ऊपर में चील-गिद्ध मण्डराना शुरू कर देता है। चील-गिद्ध मण्डराता है। श्वान और गधा भयंकर अशुभ बोली बोलते हैं। जब ये नाना प्रकार से अशुभ घटना को देखता हैं रागी तो अर्जुन वृषकेतु को कह रहा है, वृषकेतु ! तुम इस लड़ाई को छोड़ कर हस्तिना चले जाओ बेटा। अर्जुन समझा रहा है वृषकेतु ! माँ कुन्ती तुम्‍हें सौंपी है मुझे, उन्‍होंनें कहा है वृषकेतु को साथ में लिए बिना मत आना। वृषकेतु आज कहीं तुम शहीद हो जाओगे तो माँ मुझे माफ नहीं करेगी। ऐसे लग रहा है मेरी मृत्यु नजदीक आ गई है बेटा, अपशगुन हो रहा है। वृषकेतु तुम वापस घर जाओ, वृषकेतु कहता है पिताजी मैं क्षत्रीय हूँ। जैसे मेरे पिता लड़ाई के मैदान में कौरवों के हित में मरे उसी प्रकार आज मैं भी मर जाउंगा, किन्‍तु पीठ दिखा कर नहीं जाउंगा। सातवे दिन लड़ाई के अंत मे बब्रुवाहन नाम का कुमार समस्‍त सेना सहित हंसध्वज, नीलध्वज, यवननास, वृषकेतु, मेघवर्ण को खत्‍म कर देता है। रागी भैया बताया गया हैं ब्रब्रुवाहन के तूणीर में अर्द्धचन्द्र नामक बाण समाया है, रानी ज्वाला बाण का रूप लेकर समाई है। अंत में बब्रुवाहन उसी अर्द्धचन्द्र बाण को निकाल कर धनुष में चढ़ा कर छोड़ देता है। सर-सर करता हुआ बाण जाता है। रागी भैया, अर्द्धचन्द्र बाण जाकर अर्जुन के सिर को काट देता है। भारत वीर अर्जुन पृथ्वी में गिर जाते हैं। वीरगति को प्राप्‍त हुए अर्जुन, समस्‍त सेना मारी गई। बब्रुवाहन विजय शंख फूंक कर वापस आते हैं। जब नगर मे पहुंचते हैं खुशी की लहर छा गई रागी, उत्सव हो रहा है। राजमंदिर में जाकर बब्रुवाहन अपनी माँ को कह रहा है माँ, नाना प्रकार से श्रृंगार करो क्योंकि आज मैं युद्ध जीत कर आ रहा हूँ। वे कहते हैं - माँ! अर्जुन को मार कर आ रहा हूँ। दोनो रानियॉं कहती हैं - तुम्‍हें लाज नहीं आती बब्रुवाहन! अरे ! तुम्‍हें तो मर जाना था! कहती हैं - अर्जुन तुम्‍हारे पिता हैं और उसे मार कर तुम आ रहे हो। आज तुमने हमे विधवा बना दिया बब्रुवाहन! इस बात को सुन कर बब्रुवाहन, कहता है - माँ! मेरा कोई दोष नहीं है। मैं तो अर्जुन के शरण में गया था किन्‍तु अर्जुन नें मुझे लात मार दिया और तुम्‍हारे सतीत्व के ऊपर में लांछन लगाया। दोनो रानी कहती हैं - बेटा अब हमें अर्जुन के लाश के पास ले जाओ। दोनों रानियॉं आती हैं, लाश पड़ी है रागी भैया। उलुपी कहती है - बब्रुवाहन चिंता मत करो! उलुपी कौन है? शेष नाग की बेटी है। उलुपी कह रही है - मैं अपने वस्त्र आभूषण को देती हूँ इसे पकड़ कर तुम पाताल लोक जाओ, मेरे पिता शेष नाग को जगाओ। जाकर उसे बताना कि तुम्‍हारी बेटी विधवा हो गई है। कहना कहीं उसके पति को तुम बचाना चाहते हो, अर्जुन को जीवित करना चाहते हो तो संजीवन मणि दे दो। इस बात को सुन कर बब्रुवाहन करता है – माँ, अरे मैं पाताल में जाकर मणि ले कर आउंगा, भुजा उठा कर बब्रुवाहन कहता है -

अरे मैं पाताल जाकर मणि लेकर आउंगा, नागों को जीत कर पिता को जीवन दूंगा।

 

 

अगर मणि संजीवन नइ दौ कही तब वो नाग मन ल जीत के मणि संजीवन लाके अपन पिता ल जिंदा न कर दौ तो ब्रब्रुवाहन कहाना छोड़ देहूँ। रागी भैया सबल सिंह महराज लिखे हे। अर्जुन कोन दिन मरिस हे। तो अरे भई

कार्तिक सुदी एकादशी अऊर उत्तरा मंगल वार,

ताहि जूझै सांझ समय अजी पारथ पाण्डु कुमार।

 

बब्रुवाहन कहता है  कहीं नागों को जीत कर संजीवन मणि ला कर अपने पिता को जिंदा न कर दूं तो ब्रब्रुवाहन कहाना छोड़ दूंगा। रागी भैया, सबल सिंह महाराज लिखे हैं अर्जुन किस दिन मरे हैं ..

कार्तिक सुदी एकादशी और उत्तरा मंगलवार के दिन संध्‍या के समय पार्थ पाण्डु कुमार वीरगति को प्राप्‍त हुए हैं।

 

 

कार्तिक सुदी एकादशी। कार्तिक के महीना ये रागी एकादशी के दिन ए मंगलवार परे हे। संझा के बेरा ये। अर्जुन के मौत हो जाथे। रतिहा के बेरा रानी कुंती सपना मे देखत हे। सारी सेना गदहा मे बइठ के दक्षिण दिशा मे जाथे। रागी भइया अर्जुन गदहा मे बइठ के जाथे। तेल के कुण्ड मे जाके स्नान करत हे। ये अषुभ सपना ल देखथे कुंती ह। भगवान ल कथे मोला अइसे लगथे अर्जुन के ऊपर कोई मुसीबत अवइया हे, द्वारिका नाथ! च्लो चलके देखथन। तो द्वारिका नगर ले गरूड़ में बइठ के भगवान महारानी कुंती -

अगा राजा धर्मे तब चलन लगै भाई

भैया राजा धर्मे तब चलन लगै भाई।

भगवाने काहन लागे का ए गा भाई

भगवाने काहन लागे का ए गा भाई ।

 

कार्तिक सुदी एकादशी, कार्तिक का महीना था रागी, एकादशी का दिन था मंगलवार पड़ा था, संध्‍या का समय था, अर्जुन की मौत हो जाती है। रात के समय में रानी कुंती सपना देख रही है। संपूर्ण सेना गधे मे बैठ कर दक्षिण दिशा मे जा रही है। रागी भइया कुंती सपने में देखती है कि अर्जुन गधे मे बैठ कर जा रहा है, तेल के कुण्ड मे जाकर स्नान कर रहा है। कुंती यह अशुभ सपना देखती हैं। भगवान को कहती है मुझे ऐसे लग रहा है कि अर्जुन के ऊपर कोई मुसीबत आने वाली है, द्वारिका नाथ! चलो चल कर देखते हैं। द्वारिकानाथ नगर से गरूड़ में बैठ कर भगवान महारानी कुंती ..

धर्मराज चलने लगे भाई, भैया धर्मराज तब चलने लगे भाई। भगवान कहने लगे भाई, भगवान कहने लगे भाई।

 

 

भगवान आथे। देखथे एक ठन तंबू तनाय हे रागी। सारी बीर मरे पड़े हे, दू झन रानी मन ह रोवथे। उलुपी अऊ चित्रांगदा। भगवान ह उही जगा आ जथे रागी भैया। आके देखथे अर्जुन बीर मरे पड़े हे। बेटा के मरना ला देखके कुंती व्याकुल हा जथे। बब्रुवाहन दूत ल भेजिस पताल लोक मणि संजीवन लाने बर। पाताल लोक मे नाग निवास करे रागी। नागमन मणि संजीवन देबर इंकार कर दिन। आखिर मे स्वयं बब्रुवाहन जाथे। अऊर बब्रुवाहन शेषनाग से कहे - महराज! मैं मणि संजीवन बर आये हौं। मणि संजीवन नइ देबे त तोला लड़े बर लगही। शेषनाग काहत हे। दे देहौं। तो सांप मन काहत हे - महराज उही तो हमर जीव ए। मणि संजीवन कहीं हम मृतलोक मे दे देबो तो हमला डर्राही कोन महराज। हमर तो विष ह निष्फल हो जही। मणि के बिना हम नइ रहे सकन। धृतराष्ट्र नाम के सांप हे। वो धृतराष्ट्र नाम के सांप ल दुख होगे। राजा इजाजत देते हैं मणि संजीवन दे दो, तो धृतराष्ट नाम के जो मंत्री हे रागी भैया सांप वो ह आके अर्जुन के सिर ल चोरा लेथे। घर मे आके रूदन करथे। पाण्डव हमर दुश्‍मन ए। अर्जुन मर गेहे। आज ओला मणि संजीवन देवत हे तो अर्जुन ह फेर जी जही। वो समय धृतराष्ट्र सर्प के दू झन लइका हे तेमन कथे चिंता झन कर हमन जाके अर्जुन के सिर ल चोरा लेथन। अरे ओकर सिर नइ रिही त वो कइसे जिही। सिर ल चोरी कर लेथे। मणि संजीवन लाये त सिर ह नइहे। अब वो सिर ल खोजय रागी। त सिर ह मिलय नहीं। आखिर में भगवान कथे कि द्वापर के युग में अगर ब्रम्हचर्य व्रत के पालन करे हौं, वो ब्रम्हचर्य व्रत के कितना भी पुण्य हे वोला मैं देवत हौं अऊ कहे अर्जुन के सिर वापिस आ जावय। रागी भाई अर्जुन के सिर वापिस आ जथे। फिर धड़ मे जोड़थे। जइसे चुंबक में लोहा चटकथे तइसने चटक जथे। अऊर मणि संजीवन अमृत ल जब मुंह मे डारथे अर्जुन राम कहिके जी जथे। जतेक सेना हे सारी सेना खड़े हो जथे। बब्रुवाहन ल छाती म लगा लेथे। मणिपुर मे विश्राम करथे अऊ मणिपुर विश्राम करे के बाद में -

अरे सुन्दर घोड़ा गा चलन लगे भैया

अरे सुन्दर घोड़ा गा चलन लगे भाई।

वैसम्पायन गा कहन लगे भाई

सुन्दर घोड़ा गा बढ़न लगे भाई।

 

भगवान आते हैं, देखते हैं एक तंबू तना है रागी। समस्‍त वीर मरे पड़े हैं, दो रानी रो रही हैं, उलुपी और चित्रांगदा। भगवान उसी स्‍थान में आते हैं रागी भैया। आकर देखते हैं कि अर्जुन वीर मरे पड़े हैं। बेटे की मृत्‍यु को देख कर कुंती व्याकुल हो जाती है। बब्रुवाहन दूत को मणि संजीवन लाने के लिए पाताल लोक भेजता है । पाताल लोक मे नागों का निवास है रागी। नाग संजीवन मणि को देने से इंकार कर देते हैं। अंत मे स्वयं बब्रुवाहन जाता है, और बब्रुवाहन शेषनाग से कहता है - महाराज! मैं मणि संजीवन के लिए आया हूँ। मणि संजीवन दो नहीं तो मुझसे युद्ध करो। शेषनाग कह रहा है, दे दूंगा। किन्‍तु नाग कह रहे हैं - महाराज उसी में तो हमारा प्राण है। कहीं हम मणि संजीवन मृतलोक मे दे देंगे तो हमसे कौन डरेगा महाराज। हमरा विष तो निष्फल हो जायेगा। मणि के बिना हम नहीं रह सकते। धृतराष्ट्र नाम का एक सांप है, उसे राजा के मणि संजीवन दे देने के आदेश पर दुख हो रहा है। धृतराष्ट नागों का मंत्री है रागी भैया वह धरती में आ कर अर्जुन के सिर को चुरा लेता है। वह घर मे आकर रूदन करने लगता है। पाण्डव हमारे दुश्मन हैं, अर्जुन मर गया है। आज उसे राजा मणि संजीवन दे रहे हैं ऐसे में अर्जुन पुन: जीवित हो जायेगा। उस समय धृतराष्ट्र सर्प के दो पुत्र हैं वे कहते हैं चिंता मत करो पिताजी, हम जाकर अर्जुन के सिर को चुरा कर लाते हैं। अरे उसका सिर ही नहीं रहेगा तो वह कैसे जीवित होगा ? सिर को चोरी कर लेते हैं। इधर बब्रुवाहन मणि संजीवन लाते हैं तो देखते हैं अर्जन का सिर नहीं है। अब वो सिर को खोज रहा है रागी, सिर मिल नहीं रहा है। अंत में भगवान कहते हैं कि द्वापर युग में मैं अगर ब्रम्हचर्य व्रत का पालन किया हूँ, तो उस ब्रम्हचर्य व्रत का जितना भी पुण्य है उसे मैं दे रहा हूँ, अर्जुन का सिर वापस आ जाये। रागी भाई अर्जुन का सिर वापस आ जाता है। फिर उसे धड़ मे जोड़ते हैं। जैसे चुंबक में लोहा चिपकता है उसी तरह सिर चिपकता है और मणि संजीवन अमृत को जब उसके मुंह मे डालते हैं तो अर्जुन, राम कह कर जी उठता है। समस्‍त वीर और सेना सभी जीवित हो जाते हैं। अर्जुन बब्रुवाहन को छाती में लगा लेते हैं। वे कुछ दिन मणिपुर मे विश्राम करते हैं और मणिपुर में विश्राम करने के बाद में -

अरे सुन्दर घोड़ा चलने लगा भैया, अरे सुन्दर घोड़ा चलने लगा भाई। वैसम्पायन कहने लगा भाई, सुन्दर घोड़ा बढ़ने लगा भाई।

 

 

नाना प्रकार के देश के भ्रमण करते हुए आखिर में घोड़ा मन ह जावथे रागी भैया। घोड़ा मन जाथे। बड़े बड़े देश, नाना प्रकार के राज ल भ्रमण करत आखिर मे अर्जुन के घोड़ा ह -

पंचकपुर तब ऽ ऽ ऽ

पंचकपुर तब पहुंचन अब लगे ऽ ऽ जी।

बड़े बड़े वीर तब ऽ ऽ

बड़े बड़े वीर तब देखन तब लगे ऽ ऽ जी।

नाना प्रकार के देश भ्रमण करते करते आखिर मे महावीर अर्जुन के घोड़ा ह राजा मोरध्वज के राज पहुँच जाते हैं रागी भैया। मोरध्वज के राज पहुंच जथे। मोरध्वज ले जतका बड़े बड़े बीर हे तेमन अर्जुन के घोड़ा ल धर के -

अगा सुन्दर घोड़ा अब लेगन लगे ए गा भाई

भैया सुन्दर घोड़ा अब लेगन लगे ए गा भाई।

हॉ राजा ह जावन काहन लागे गा ए गा भाई

हॉ राजा ह जावन काहन लागे गा ए गा भाई।

 

नाना प्रकार के देशों का भ्रमण करते हुए अंत में घोड़ा जा रहा है रागी भैया, घोड़ा जा रहा हैं। बड़े बड़े देश, नाना प्रकार के राज्‍य को भ्रमण करते हुए अंत मे अर्जुन का घोड़ा -

पंचकपुर पहुंचने लगा, तब बड़े बड़े वीर देखने लगे।

नाना प्रकार के देशों का भ्रमण करते करते अंत मे महावीर अर्जुन का घोड़ा राजा मोरध्वज के राज्‍य में पहुँच जाता है रागी भैया। मोरध्वज के राज में पहुंच जाता है। मोरध्वज के राज्‍य के जितने भी बड़े बड़े वीर हैं वे अर्जुन के घोड़े को पकड़ कर-

सुन्दर घोड़ा को ले जाने लगे भाई, भैया सुन्दर घोड़ा को ले जाने लगे भाई। राजा के जाने पर कहने लगे भाई,

राजा के जाने पर कहने लगे भाई।

 

 

अरे भैया घोड़ा रत्नपुरी पहुच जथे। अऊर जाथे ताहन वो घोड़ा ल बांध दे जाथे। भाई। घोड़ा ल बांध दे जथे। राजा मोरध्वज जी के बेटा हे ताम्रध्वज नाम के, सेना तैयार करके पाण्डव के सेना मन से लड़े बर जाथे। घमासान युद्ध होथे। सारी सेना में 7 दिवस युद्ध होथे। सात दिन लड़ाई करके अर्जुन ल जीत जथे। अऊ घोड़ा ल जीत के ले जाथे ताम्रध्वज ह। ले जाके बांध दे जाथे। कुछ देर के बाद अर्जुन के मूर्छा जगथे। अऊ अर्जुन के मूर्छा जब जगथे। त भगवान ल काहत हे - केशव।

ये बजार ए गा भैया दुनिया मड़ई मेला बजार ये

ये बजार ए गा भैया दुनिया मड़ई मेला बजार ये।

राम नाम दुनिया मे सार हे गा मोर भैया

राम नाम दुनिया मे सार हे गा मोर भैया।

बोल दे वृन्दावन बिहारी लाल की जय।

 

अरे रामे रोम भैया रामे गा रामे भाई

रामे रामे रामे, रामे गा रामे भाई।

 

भैया घोड़ा रत्नपुरी पहुंच जाता है और वहॉं घोड़ा को बांध दिया जाता है भाई। घोड़ा को बांध दिया जाता है,  राजा मोरध्वज का बेटा जिसका नाम ताम्रध्वज है, सेना तैयार करके पाण्डव की सेना से लड़ने के लिए जाता है। घमासान युद्ध होता है। सात दिन युद्ध होता है। सात दिन लड़ाई करके अर्जुन को जीत जाता है और घोड़ा को जीत कर बांध देता है। कुछ देर के बाद अर्जुन की मूर्छा जाती है और जब अर्जुन मूर्छा से जब जगता है तब भगवान को कह रहा है – केशव..

यह बाजार है जी भैया यह दुनिया मड़ई-मेला बजार है, यह बजार है भैया दुनिया मड़ई मेला बजार है।

राम नाम दुनिया मे सार हे गा मेरे भैया, राम नाम दुनिया मे सार हे गा मेरे भैया। (पहले के पर्व में इसका विस्‍तृत हिन्‍दी अर्थ दिया गया है)

 

 

राजा जन्मेजय पूछन लगे भैया

वैसम्पायन गा कहन लगे भाई।

अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसम्पायन कथे राजा जन्मेजय।

आखिर में महावी अर्जुन के घोड़ ह-

अगा रत्नापुरी बर जावन लगे भाई

राजा मोरध्वज के बेटा ताम्रध्वज

भैया सुन्दर घोड़ा अब लेगन लगे ए गा भाई

भैया सुन्दर घोड़ा अब लेगन लगे ए गा भाई।

हॉ राजा ह जावन काहन लागे गा ए गा भाई

हॉ राजा ह जावन काहन लागे गा ए गा भाई।

 

बोल दो वृन्दावन बिहारी लाल की जय।

अरे राम ही राम भैया रामे गा रामे भाई, रामे ही रामे रामे, रामे ही राम है भाई।

राजा जन्मेजय पूछने लगे भैया, वैसम्पायन गा कहने लगे भाई। (पहले के पर्व में इसका विस्‍तृत हिन्‍दी अर्थ दिया गया है)

अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसम्पायन कहते हैं राजा जन्मेजय।

अंत मे महावीर अर्जुन का घोड़ा -

रत्नापुरी के लिए जाने लगा भाई, राजा मोरध्वज का बेटा ताम्रध्वज, भैया सुन्दर घोड़ा को अब ले जाने लगा भाई, भैया सुन्दर घोड़ा को अब ले जाने लगा भाई। राजा जाने को कहने लगा भाई, राजा जाने को कहने लगा भाई।

 

 

अरे भैया मारो-मारो के आवज आथे ताम्रध्वज नाम के कुमार अऊ अर्जुन के सेना मे 7 दनि ले लड़ाई हाथे अऊ पाण्डव के दल ले विजय पाके ताम्रध्वज नाम के राजकुमार -

अरे सुन्दर घोड़ा गा लेगन लगे भाई

सुन्दर घोड़ा गा लेगन लगे भाई

करन घोड़ा गा लेगन लगे भाई

करन घोड़ा गा लेगन लगे भाई

 

अरे भैया मारो-मारो की आवजा आ रही है, ताम्रध्वज नाम का कुमार और अर्जुन की सेना मे सात दिन से लड़ाई हो रही है और पाण्डव के दल से विजय पाकर ताम्रध्वज नाम का राजकुमार -

सुन्दर घोड़ा को ले जाने लगा भाई, सुन्दर घोड़ा को ले जाने लगा भाई, श्‍यामकर्ण घोड़ा को ले जाने लगा भाई।

 

 

घोड़ा ले जाथे। रागी भैया जब अर्जुन के मूर्छा दूर होथे भगवान ल कथे द्वारिका नाथ घोड़ा कहां चलदिस ? भगवान बोले - अर्जुन! घोड़ा तो लेकर रत्नपुरी मे चल दे हे भैया। मोरध्वज राजा के बेटा ताम्रध्वज घोड़ा लेगे। बोले - राजा मोरध्वज बहुत दानी हे अर्जुन। बोले - महान प्रतापी हे। भगवान कथे चल मैं दिखावत हौं, मोरध्वज कते प्रतापी हे तेला। कितना दानी हे। रागी भैया भगवान द्वारिका नाथ ह -

ब्राम्हण रूपे, अरे भई विप्र के रूपे धरन अब लगै, धरन अब लगे भाई

भई विप्र के रूपे धरन अब लगै, धरन अब लगे भाई।

महावीर अर्जुन काहन अब लगे देखन अब लगे भाई।

महावीर अर्जुन काहन अब लगे देखन अब लगे भाई।

 

घोड़ा को ले जाता है। रागी भैया, जब अर्जुन की बेहोशी दूर होती है, भगवान को कहते हैं द्वारिका नाथ घोड़ा कहां चला गया? भगवान बोलते हैं - अर्जुन! घोड़ा को तो ताम्रध्वज लेकर रत्नपुरी चला गया है भैया। मोरध्वज राजा का बेटा ताम्रध्वज घोड़ा ले गया। बोलते हैं - राजा मोरध्वज बहुत दानी है अर्जुन। बोलते हैं - महान प्रतापी है। भगवान कहते हैं चलो मैं दिखाता हूँ, मोरध्वज कितना प्रतापी है, वह कितना दानी है। रागी भैया भगवान द्वारिकानाथ -

ब्राम्हण रूप, अरे भाई विप्र का रूप लेने लगे, अब लेने लगे भाई। भाई विप्र का रूप लेने लगे, अब लेने लगे भाई। महावीर अर्जुन देखने लगे भाई, महावीर अर्जुन देखने लगे भाई।

 

 

भगवान द्वारिका नाथ बुड्ढा ब्राम्हण के रूप धरे हे। महावीर अर्जुन लड़का बनथे रागी। अऊ ब्राम्हण के रूप बना करके राजा मोरध्वज के राज में पहुच जथे भैया। विराजमान है राजा मोरध्वज। हरि-अर्जुन अब सभा में पहुंचे। भगवान जाके काहत हे -

अरे जय है भैया तोर जय होवय भैया जी

अरे जय है भैया तोर जय होवय भाई।

सुन्दर भगवान काहन लगे भैया

सुन्दर भगवान काहन लगे भैया।

 

भगवान द्वारिका नाथ बूढ़ा ब्राम्हण का रूप बनाये है। महावीर अर्जुन लड़का बना है रागी और ब्राम्हण का रूप बना कर राजा मोरध्वज के राज्‍य मे पहुंच जाते हैं भैया। राजा मोरध्वज सभा में विराजमान है। हरि-अर्जुन अब सभा में पहुंचते हैं। भगवान जाकर कहते हैं

जय हो भैया तुम्‍हारी जय हो भैया जी, अरे जय हो भैया तुम्‍हारी जय हो भाई। सुन्दर भगवान कहने लगे भैया, सुन्दर भगवान कहने लगे भैया।

 

 

जय हो/ राजा मोरध्वज के जय हो। राजा मोरध्वज कथे - महराज! मैं तोर प्रणाम नइ करे औं अऊ तैं प्रणाम करे के पहिली मोला आसिरवाद देवत हस। कहे - महराज तैं मोला पाप लगावत हस। भगवान कहे - भैया ये तो ब्राम्हण के स्वभाव ये। मोरध्वज पूछत हे - का सेवा करौं। भगवान बताथे। कहे - वो सामने खड़े हे मोर पुत्र ये। कहे - कृष्णषर्मा मोर नाम ए। ए नजदीक मे जो गांव हे वो गांव के मैं निवासी औ। कृष्णषर्मा नाम हे। नजदीक मे गांव हे तिहां रहिथौं। मोर बेटा के विवाह होय हे, बेटा अऊ बहु के संग मे आवत रहेव। बोले - राजन! ये भयानक जंगल के बीच में एक शेर हे। कहे वो शेर मोर बेटा ल खाना चाहत हे। कहिस कि महराज मैं शेर से प्रार्थना करेंव - तैं मोर बेटा छोड़ दे भाई। तो शेर एक चीज के मांग करत हे अऊ वो चीज ल मैं तोर जगा मांगे बर आए हौं राजा। तें कहूं दे देबे त मोर बेटा के जीव बांच जही। राजा मोरध्वज कहिस - बता महराज! मांग। भगवान कथे - राजा! देना चाहत हस तो कान खोल के सुन ले। वो जो बाघ हे, सिंह हे, वो काहत हे - ताम्रध्वज के मॉस ला, अगर ताम्रध्वज ल राजा अऊ रानी आरा में चीर के दे दिही अऊ ओला मैं खा लिहूं त मैं तोर बेटा ल छोड़ दिहूं। ये बात सुनके राजा मोरध्वज बोले - मैं धन्य हौं। रागी भैया पांच सात साल के ताम्रध्वज कुमार स्नान करते है। तुलसी के दल मुख में लेथे कहे - महराज चिंता झन कर। रागी भाई रानी अऊ राजा आरा ल धरे हे। लइका बइठे हे। अऊ रानी-राजा आरा ल धरके -

अरे बेटा के सिरे अऊ फाड़न लगे भैया जी

बेटा के सिरे अऊ फाड़न लगे भैया जी

देवकीनंदन ना देखन लगे भैया

देवकीनंदन ना देखन लगे भैया

 

जय हो, राजा मोरध्वज की जय हो। राजा मोरध्वज कहते हैं - महराज! मैं आप लोगों को प्रणाम नहीं किया हूँ और आप मेरे प्रणाम करने के पहले ही मुझे आशिर्वाद दे रहे हैं। वे कहते हैं - महाराज आप मुझे पाप लगा रहे हैं। भगवान कहते हैं - भैया ये तो ब्राम्हण का स्वभाव है। मोरध्वज पूछते हैं - क्‍या सेवा करूं। भगवान कहते हैं - वो सामने मेरा पुत्र खड़ा है। मेरा नाम कृष्ण शर्मा है, ये पास मे जो गांव है मैं उसी गांव का निवासी हूँ। मेरा नाम कृष्णशर्मा है। पास में ही गांव है वहीं रहता हूँ। मेरे बेटे का विवाह हुआ है, बेटा और बहु के साथ मे मैं आ रहा था। राजन! इस भयानक जंगल के बीच में एक शेर है। वो शेर मेरे बेटे को खाना चाहता है। महराज मैं शेर से प्रार्थना किया कि - आप मेरे बेटे को छोड़ दो भाई, तो शेर बदले में एक चीज की मांग कर रहा है और वह चीज मैं तुमसे मांगने के लिए आया हूँ राजा। आप यदि दे देंगे तो मेरे बेटे का प्राण बच जायेगा। राजा मोरध्वज कहते हैं - बताओ महराज! मांगो। भगवान कहते हैं - राजा! देना चाहते हैं तो कान खोल कर सुन लो। वह जो बाघ है, सिंह है, वह कह रहा है - ताम्रध्वज का मांस लाओ, कहीं ताम्रध्वज को राजा और रानी आरा मे चीर कर दे देगें और उसे मैं खा लूंगा तो मैं तुम्‍हारे बेटे को छोड़ दूंगा। इस बात को सुनकर राजा मोरध्वज बोलते हैं - मैं धन्य हूँ, रागी भैया, पांच सात साल का ताम्रध्वज कुमार स्नान करता है। तुलसी दल मुख में लेता है और कहता है - महराज चिंता मत करो। रागी भाई, रानी और राजा आरे को पकड़े है। बच्‍चा बैठा है। और रानी-राजा आरा को पकड़कर -

अरे बेटा का सिर को फाड़ने लगे भैया जी, बेटे के सिर को फाड़ने लगे भैया जी। देवकी नंदन देखने लगे भैया, देवकी नंदन देखने लगे भैया।

 

 

रानी राजा आरा में बेटा के सिर ल चीरना शुरू कर दिन रागी। ओह ऽऽ हाहाकार मचगे। नगर के प्रजा, बड़े बड़े जीव जन्तु के आँखी में आंसू के धार आगे। कहे - अरे ये कहां ले काल समान ब्राम्हण आये हे। रागी भैया जब लइका ल आरा म चीरथे तो राजा के डेरी आँसू बोहा जथे। भगवान के नजर पड़गे। बोले - राजन! रूदन करते हुए दान देवत हस। खुशी से दान नइ देवत हस। कहे तोर आत्मा ह रोवत हे। आज रूदन करते हुए तैं दान देवत हस। बोले - हम वो दान नइ लेवन। कहे - अब हम चलत हन। ओतका ल सुनिस ताहेन मोरध्वज ह -

जाइ चरण तब अरे भाई जाइ चरण तब गिरन लगे, गिरन अब लगे ए भाई

बड़े बड़े  भूपति कहन अब लगै, कहन अब लगै ए भाई

 

रानी राजा आरे मे बेटे के सिर को चीरना शुरू कर देते हैं रागी। ओह ऽऽ हाहाकार मच गया। नगर की प्रजा, बड़े-बड़े जीव जन्तु की आँखों से अश्रु की धार बहने लगी। कह रहे हैं - अरे यह कहां से काल के समान ब्राम्हण आये है, रागी भैया। जब बच्‍चे को आरे मे चीरते हैं तो राजा के बायें आंख से आँसू गिर जाता है। भगवान की नजर पड़ती है। बोलते हैं - राजन! रूदन करते हुए दान दे रहे हो। खुशी से दान नहीं दे रहे हो। कहते हैं तुम्‍हारी आत्मा रो रही है। आज रूदन करते हुए तुम दान दे रहे हो। बोलते हैं - हम ऐसा दान नहीं लेंगे। कहते हैं - अब हम चलते हैं। इतना सुनने पर मोरध्वज -

जाकर चरण अरे भाई, जाकर चरण में तब गिरने लगे, गिरने लगे भाई, बड़े बड़े  भूपति कहने अब लगे, अब कहने लगे भाई

 

 

राजा के आँखी म आँसू आ जथे। भगवान कृष्ण कथे - तैं रोवत रोवत दान देवत हस। बोले - हम ये दान नइ लेवन। राजा दंऊँड़त जाके ब्राम्हण के चरण में गिर जथे रागी। दोनो हाथ जोड़के मोरध्वज कहे - महराज! मैं बेटा ल आरा म चीरे के तोला दान देवत हौं, एकर मोला दुख नइये। मोला दुख ये बात के हे। जेवनी अंग तो वो शेर ह खा दिही। अऊ डेरी अंग जो हे वो बेकार हो जही कहीं काम नइ आही। ओकर कारण ये डेरी आँखी ले मोर आँसू बोहावत हे। देवत लोक में साधु साधु के आवाज आवत हे। देवता लोक मे कहते हैं - मोरध्वज तोर जइसे दानी ये दुनिया मे कोई नइये। भगवान साक्षात चतुर्भुज रूप लेके दर्शन देथे। राजा अऊ रानी भगवान के चरण मे गिर जथे रागी। लइका के हाथ, ऊपर मे हाथ फेरथे तो ताम्रध्वज खड़े हो जथे भैया। भगवान कथे - मांग। मोरध्वज कहे का मांगना चाहत हस? मोरध्वज दोनो हाथ जोड़ के कहिथे - प्रभु आज जो कठिन परीक्षा तैं मोर ले हस अइसना परीक्षा तैं कलयुग मे मत लेबे द्वारिका नाथ। काबर कि कलयुग मे अइसन दान देवइया नइ मिलही। आज जो मोर से मांगेस वो आगे काकरो से झन मांगबे। रागी भैया अर्जुन रत्नपुरी मे कुछ दिन विश्राम करथे। अऊ ओकर बाद में फिर घोड़ा के फिर विदा लेके वहां से चलथे। रत्नपुरी से निकलके बीर बर्मा देश जाथे घोड़ा ह। अऊ बीर बर्मा के राजा के साथ घमासान युद्ध करथे। बीर बर्मा ल जीते के बाद अर्जुन के घोड़ा चंद्रहास के राज पहुंचथे। राजा चन्द्रहास से घमासान युद्ध होथे। आखिर मे राजा चंद्रहास से महावीर अर्जुन के मित्रता होथे। वोकर बाद में घोड़ा फिर से आगे चलते हैं रागी। आगे जाय के बाद अचानक घोड़ा समुद्र के अंदर मे घूस जथे। समुद्र के अंदर में भगवान हंसध्वज राजा अर्जुन पांच व्यक्ति रथ मे बइठ के जाथे तो मुगदालक मुनि के दर्शन होथे जो बर के पेड़ में बालरूप में भगवान ल देखे हे। अऊर नाना प्रकार के देश ल भ्रमण करत-करत आखिर में अर्जुन के घोड़ा ह -

अगा सिंधु देश तब जावन लागे भाई

भैया सिंधु देश बर जावन लागे भाई।

हॉ अर्जुन अब काहन लागे गा ए गा भाई

अर्जुन अब काहन लागे गा ए गा भाई।

 

राजा के आँखों मे आँसू आ जाता हैं। भगवान कृष्ण कहते हैं - तुम रोते-रोते दान दे रहे हो। बोलते हैं - हम यह दान नहीं लेंगे। राजा दौड़ते हुए जाकर ब्राम्हण के चरण में गिर जाता है रागी। दोनो हाथ जोड़ कर मोरध्वज कहता है - महराज! मैं बेटे को आरे मे चीर कर आपको दान दे रहा हूँ, इसका मुझे दुख नहीं है, मुझे दुख इस बात का है कि दाहिने अंग को तो वह शेर खा लेगा। किन्‍तु जो बायां अंग है वह बेकार हो जायेगा कहीं काम नहीं आयेगा। इस कारण मेरे बायें आँख से आँसू टपक पड़ा। देव लोक से साधु साधु की आवाज आ रही है। देवता अपने लोक मे कहते हैं - मोरध्वज तुम्‍हारे जैसा दानी इस दुनिया मे कोई नहीं है। भगवान साक्षात चतुर्भुज रूप ले कर दर्शन देते हैं। राजा और रानी भगवान के चरण मे गिर जाते हैं रागी। बच्‍चे के ऊपर हाथ फेरते हैं तो ताम्रध्वज खड़ा हो जाता हैं भैया। भगवान कहते हैं - मांग ! मोरध्वज क्‍या मांगना चाहता है? मोरध्वज दोनो हाथ जोड़ कर कहते हैं - प्रभु आज जो कठिन परीक्षा आपने मेरा लिया हे ऐसी परीक्षा आप कलयुग मे मत लीजियेगा द्वारिका नाथ। क्‍योंकि कलयुग मे ऐसा दान देने वाला नहीं मिलेगा। जैसे आज आपने मेरे से मांगा वैसा आगे किसी से भी मत मांगना। रागी भैया, अर्जुन रत्नपुरी मे कुछ दिन विश्राम करते हैं। उसके बाद फिर घोड़ा को विदा करा कर वहां से चलते हैं। घोड़ा रत्नपुरी से निकल कर बीर बर्मा देश जाता है। बीर बर्मा के राजा के साथ अर्जुन घमासान युद्ध करते हैं। बीर बर्मा को जीतने के बाद अर्जुन का घोड़ा चंद्रहास के राज्‍य में पहुंचता है। राजा चन्द्रहास से घमासान युद्ध होता है। आखिर मे राजा चंद्रहास से महावीर अर्जुन की मित्रता होती है। उसके बाद मे घोड़ा फिर से आगे चलता हैं रागी। आगे जाने के बाद अचानक घोड़ा समुद्र के अंदर मे घुस जाता है। समुद्र के अंदर में भगवान, हंसध्वज, राजा अर्जुन पांच व्यक्ति रथ मे बैठ कर जाते हैं तो मुगदालक मुनि का दर्शन होता है, जो बट के वृक्ष के नीचे में बालरूप में भगवान का दर्शन किये है,  और नाना प्रकार के देश का भ्रमण कर अंत मे अर्जुन का घोड़ा -

अजी सिंधु देश तब जाने लगा भाई, भैया सिंधु देश के लिए जाने लगे भाई। अर्जुन अब कहने लगे भाई, अर्जुन अब कहने लगे भाई।

 

 

सिंधु देश जहां जयद्रथ के पुत्र निवास करत हे। रागी भैया रानी दुशाला जानिस आज मोर भाई अर्जुन आवत हे। अपन बेटा ल इजाजत देथे। जाके अर्जुन से मिलथे। अऊर चारो दिशा दिग्विजय करे के बाद श्यामकर्ण घोड़ा फिर वापिस लौट के हस्तिना नगर आथे। हस्तिना नगर में जब आथे तेकर बाद में फिर यज्ञ शुरू होथे। हवन पूजन होथे रागी भैया। सब राजा महराजा बड़े बड़े तपस्वी बड़े बड़े महामुनि मन अपन अपन संग में अपन अपन धर्मपत्नि ल लेके गंगा में जाके -

अगा सुन्दर जले वहां लेवन लागे भाई

जलयात्रा होथे। गंगा से जल भर के लावत हे, राजा युधिष्ठिर अऊ महरानी द्रोपदी स्नान करथे।

भैया सुन्दर जले तब लेवन लागे भाई।

भगवाने देखन लागे गा ए गा भाई

भगवाने देखन लागे गा ए गा भाई ।

 

सिंधु देश जहां जयद्रथ का पुत्र निवास कर रहा है। रागी भैया, रानी दुशाला जानती है कि आज मेरा भाई अर्जुन आ रहा है। अपने बेटे को आदेश देती है। जाकर अर्जुन से मिलती है और चारो दिशा दिग्विजय करने के बाद श्यामकर्ण घोड़ा फिर वापस लौट कर हस्तिना नगर आता है। हस्तिनानगर में जब आता है उसके बाद मे फिर यज्ञ शुरू होता है। हवन पूजन होता है रागी भैया। सब राजा महराजा बड़े बड़े तपस्वी बड़े बड़े महामुनि अपने अपने साथ मे अपनी अपनी धर्मपत्नि को लेकर गंगा में जाकर -

अजी सुन्दर जल वहां से लेने लगे भाई, जलयात्रा होता है। गंगा से जल भर कर ला रहे है, राजा युधिष्ठिर और महरानी द्रौपदी स्नान करती हैं।

भैया सुन्दर जल तब लेने लगे भाई, भगवान देखने लगे भाई, भगवान देखने लगे भाई।

 

 

जल भर के लाथे रानी-राजा स्नान करथे। धर्मपुरोहित जी भगवान के पूजा करथे। फिर इजाजत देथे भीमसेन ल - भीम श्यामकरण घोड़ा के डेरी कान ल काट दे। जब बांयां कान कट जथे रागी। तब बताए हे दूध के धार बहे हे। इजाजत देथे घोड़ा ल दो टुकड़ा चीरथे, क्षीर के धार बहथे जेकर से फिर वहां कपूर बनथे रागी। भैया। कपूर के रूप लेवत हे। उही ल फिर अग्नि में आहूति देके सब देवता मन ल शांति करथे। अश्‍वमेघ पर्व सम्पन्न होथे। बड़े बड़े राजा बड़े बड़े महराजा यज्ञ देखे ल आहे तेमन बिदा ले लेके वापिस होवथे। भगवान द्वारिका नाथ समस्त यदुवंशी के समाज, 16108 पटरानी लेके द्वारिका नगर जाथे। यही से अश्‍वमेघ पर्व के प्रसंग जो हे सम्पन्न होथे।

 

जल भर कर लाते हैं रानी-राजा स्नान करते हैं। धर्मपुरोहित जी भगवान की पूजा करते हैं। फिर भीमसेन को अनुमति देते हैं - भीम श्यामकरण घोड़ा के बांये कान को काट दो। जब बांयां कान कट जाता है रागी। तब बताया गया है कि दूध की धार बहती है। अनुमति देते हैं तो घोड़ा को दो टुकड़े में चीरते हैं, क्षीर की धार बहती है जिससे वहां कपूर बनता है रागी। भैया। वह क्षीर कपूर का रूप लेने लगता है। उसी को फिर अग्नि में आहूति दे कर सब देवताओं की शांति करते हैं। अश्वमेघ पर्व सम्पन्न होता है। बड़े-बड़े राजा बड़े-बड़े महराजा यज्ञ देखने के लिए आए रहते हैं वे विदा ले कर वापस होते हैं। भगवान द्वारिकानाथ समस्त यदुवंशी समाज, 16108 पटरानियों को ले कर द्वारिका नगर जाते हैं। यही से अश्वमेघ पर्व का जो प्रसंग है सम्पन्न होता है।

 

गायिका – प्रभा यादव

छत्तीसगढ़ी श्रुतलेखन एवं हिन्दी  लिप्यांतरण: संजीव तिवारी

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.