Pandavani: Shanti Parv- Prabha Yadav & Mandali
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Pandavani: Shanti Parv- Prabha Yadav & Mandali

in Video
Published on: 11 May 2019
Raipur, Chhattisgarh, 2018

Pandvani is one of the most celebrated performative genres from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.

 

The parv presented in this video is the Shanti Parv. The prasangs contained in this parv are Ekadash, Vrinda, Ganga Utpatti, Charat Vyaghr and Bhishm ka Deh Tyag.

 

Transcript

Chhattisgarhi: पांचो भाई पांडव। भगवान द्वारका नाथ फिर गंगा स्वर्ण भीष्म पितामह से कुछ ज्ञान के बात सुने खातिर। कुरूक्षेत्र के मैदान में आय। कुरूक्षेत्र के मैदान में तंबू तनाय हे छैंहा बने हे। गंगा के बेटा भीष्म पितामह बान के सैया मे पड़े हे। राजा युधिष्ठिर जाथे अऊ जाके दोनो हाथ जोड़ के प्रणाम करत हवे। अऊर चिल्ला के रो पड़थे - पितामह। अरे मोर सम पापी अरे भाई जगत मे न कोई ऽऽऽ- राजा रोवथे। बबा! मोर जइसे पापी ये दुनिया मे कोनो नइये। ये राज के लालच में आज मै तोला बान के सर सैया में सोवा देंव। राजा युधिष्ठिर कहते हैं, बालक काल पिता कर हीना, तो प्रतिपाल तुमहि कीन्‍हा, जे दिन बाप मरगे वो दिन पालन पोषण करे हस। ऊँगली धरके ये पृथ्वी में मोला चले बर सिखाये। जे थारी मे खावत रेहेंव वो थारी में बइठार के मोला खवाए। पर आज वो थारी मे मैं खायेंव, छेद कर देंव। बात सुनिस - गंगा पुत्र भीष्म पितामह नेत्र ल खोलिस। अऊर नेत्र खोलके बोले - युधिष्ठिर, तैं काबर चिंता करथस। कहे बेटा इही हॉ तो क्षत्रिय के धरम ये। लड़ाई के मैंदान में जा करके युद्ध करना। विजय पाना। या वीरगति पाना। राजा तैं अपन काम ल पूरा करे हस। लड़े बर जब तइयार रागी भाई। वो समय वो न कोई गुरू थे न कोई वो पिता थे न वो कोई भाई ये न कोई बंधु थे। गंगा के बेटा भीष्म कथे ये तोर संग तोर जगत के स्वामी भगवान द्वारका नाथ हे। भीष्म काहत हे एकर रहत ले तोला का फिकर हे। रागी भगवान ल देखथे तो गंगा के बेटा भीष्म मन ही मन भगवान के सत सत नमन करथे अऊ भगवान ल काहथे -  द्वारिका नाथ !

ये झूलना श्याम झूलना का गा

झूलना श्याम झूलना

ये वृंदावन मे गड़े ल हिंडोलना

झूलना श्याम झूलना का।।

 

Hindi: पांचो भाई पाण्‍डव, भगवान द्वारकानाथ फिर गंगा पुत्र भीष्म पितामह से कुछ ज्ञान की बात सुनने के लिए कुरूक्षेत्र की मैदान में आते हैं। कुरूक्षेत्र के मैदान में तंबू तना है छाया बना है। गंगा का बेटा भीष्म पितामह बाण की शैया मे पड़े हैं। राजा युधिष्ठिर जाते हैं और जाकर दोनो हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं। और चिल्ला कर रो पड़ते हैं - पितामह ! अरे मेरे समान पापी जगत मे न कोई ऽऽऽ- राजा रो रहे हैं। दादा ! मेरे जैसा पापी इस दुनिया मे कोई नही है। इस राज्‍य के लालच में आज मै तुम्‍हें बाण की सर शैया में सुला दिया हूँ। राजा युधिष्ठिर कहते हैं, जिस दिन से मेरे पिता की मृत्‍यु हुई है उस दिन से हमारा पालन पोषण आपने किया है। ऊँगली पकड़ कर आपने इस धरती में मुझे चलना सिखाये हैं। जिस थाली मे आप खाते थे उसी थाली में बैठा कर मुझे खिलाए हैं। किन्‍तु आज मैं उस थाली मे छेद कर दिया। बात सुनते हैं गंगा पुत्र भीष्म पितामह, नेत्र को खोलते हैं और नेत्र खोल कर बोले - युधिष्ठिर, तुम क्‍यूं चिंता कर रहे हो। वे कहते हैं बेटा यही तो क्षत्रिय का धर्म है। लड़ाई के मैंदान में जा कर युद्ध करना, विजय पाना या वीरगति पाना। राजा तुम अपने काम को पूरा किये हो। युद्ध के लिये जब तैयार थे रागी भाई। उस समय वहां न कोई गुरू था न कोई वहां पिता था न वहां कोई भाई और ना कोई बंधु थे। गंगा पुत्र भीष्म कहते हैं यह तुम्‍हारे साथ जगत के स्वामी भगवान द्वारकानाथ है। भीष्म कह रहे हैं इसके रहते हुए तुम्‍हें क्‍या चिंता है। रागी, भगवान को देखते हैं तो गंगा पुत्र भीष्म मन ही मन भगवान को सत सत नमन करते हैं और भगवान को कहते हैं .. द्वारिका नाथ !

यह झूलना श्याम का झूलन है क्‍या जी, झूलना यह श्याम का झूलना है। वृंदावन मे गड़ा है हिंडोलना, झूलना श्याम का झूलना है क्‍या।

 

 

रागी भैया। गंगा के बेटा भीष्म कहिस - युधिष्ठिर तोर तो रक्षा करैया भगवान बांके बिहारी हे। अरे जनम जनम मुनि यतन कराई-अंत राम मुख आवत नाही। हजारों बरस तपस्या के बाद भी बड़े बड़े तपस्वी के भगवान के एक झलक दर्शन नइ होवय। राम के नाम नइ आवय। आज वो भगवान ह तोर संग मे साक्षात खड़े हावय। भीष्म कहिथे - चिंता झन कर। नाना प्रकार के ज्ञान उपदेश देवथे बाण के सैया में पड़े पड़े। भीष्म पितामह काहथे युधिष्ठिर अजी मृत्यु पाई चले उत्तर द्वारा। वो समय भीष्म काहत हे - धरमराज एक बात गांठ बांध ले। कोई भी इंसान के जब मृत्यु होथे। अऊ कहूँ वो उत्तर दिशा की ओर जीव ह जाथे रागी। तो भगवान कहे हे - भीष्म पितामह न जाने वो जीव ह अइसे कोन से पुण्य कर्म करे हे। वो अइसे कौन से पुण्यात्मा जीव होही

पुण्य करथे तेन ह मृत्यु पाये के बाद में -

अगा उत्तर दिशा में गा जावन लागे भाई

भैया वोह उत्तर दिशा में गा जावन लागे भाई

गंगासुत काहन लागे गा ए गा भाई

गंगासुत काहन लागे गा ए गा भाई।।

 

रागी भैया। गंगा पुत्र भीष्म कहते हैं - युधिष्ठिर तुम्‍हारी रक्षा करने वाले भगवान बांके बिहारी हैं। जन्‍म जन्‍म तक मुनि प्रयत्‍न करते हैं किन्‍तु मृत्‍यु के समय राम नाम मुख में आता नहीं है। हजारों के वर्ष तपस्या करने के बाद भी बड़े बड़े तपस्वी को भगवान की एक झलक भी नहीं मिलती। अंत में मुह में राम का नाम नहीं आता। आज वही भगवान तुम्‍हारे साथ में साक्षात खड़े हैं। भीष्म कहते हैं - चिंता मत करो। बाण की शैया में पड़े पड़े नाना प्रकार का ज्ञान उपदेश दे रहे हैं। भीष्म पितामह कहते हैं युधिष्ठिर, अजी मृत्यु पाई चले उत्तर हारा। उस समय भीष्म कह रहे हैं - धर्मराज एक बात गांठ बांध लो। कोई भी इंसान की जब मृत्यु होती है और कहीं उसकी उत्तर दिशा की ओर प्राण जाये रागी। तो भगवान कहते हैं - भीष्म पितामह वह जीव, ना जाने ऐसा कौन सा पुण्य कर्म किया है। वह ऐसा कौन सा पुण्यात्मा जीव है जो पुण्य करते हैं वे मृत्यु पाने के बाद में -

अजी उत्तर दिशा में जाने लगा भाई, भैया वो उत्तर दिशा में जाने लगा भाई। गंगासुत कहने लगे भाई, गंगासुत कहने लगे भाई।

 

 

भीष्म कहे मैं बता नइ सकौ। अइसे कौन से जीव है जो उत्तर दिशा में जाथे। का पुण्य करथे तब उत्तर दिशा में गमन करथे। रागी भैया जतेक साधु सन्यासी ऋषि मुनि हे वो मृत्यु पाथे त पश्चिम द्वार ले जाथे। जो कन्यादान करथे, गऊ दान करथे रागी भैया। भूमि दान करथे। वो व्यक्ति जब मृत्यु पाथे तब पूर्व दिशा की ओर जाथे। तेन दिशा के वर्णन होथे। अऊ भीष्म काहथे अब दक्षिण दिशा ल मैं नइ बता सकौं। काबर कि दक्षिण दिशा में 84 धारा हे, वैतरणी के धारा जिहाँ पापी जीव ह नाना प्रकार के तकलीफ पाथे रागी। यमराज के दूत ह नाना प्रकार के कष्ट देथे। वैतरणी के नदी ल पार करे बर पड़थे। गंगा के बेटा भीष्म पितामह ह राजा युधिष्ठिर ल बतावथे। कहे - धरमराज। तोला कहीं करे ल नइ लागय। काबर कि तोर संग में तो भगवान नारायण हे बेटा। भीष्म काहथे युधिष्ठिर। नदिया मे जो है सर्वश्रेष्ठ नदी है जो गंगा है। वृक्ष मे तुलसी हे। कहे तुलसी जैसे कोई वृक्ष नहीं हे युधिष्ठिर। रागी भाई जेकर घर के अंगना मे तुलसी के पेड़ हे चौरा में अऊर तुलसी चौरा के नीचे में कहीं तुलसी के नीचे मे सालिक राम कही भगवान हे। भैया वो घर ल तीर्थ के समान मानबे तैं। वोला तीरथ जाये बर नइ लागै। हजारों तीर्थ वार करथे। जहां भगवान साक्षात विष्णु के निवास हे। कोनो जीव मरथे कहूँ वो भगवान सालिगराम ल स्‍नान करके पिया देबे। जो जीव आवागमन से रहित हो जाथे। वैसे नाना प्रकार के ज्ञान के बात सुनावत हे राजा युधिष्ठिर ल। कहिस धरमराज। व्रत में एकादशी। एकादशी जैसे तो व्रत ही नइ हे। कोई भी व्यक्ति कोई भी इंसान चाहे कोई भी व्रत करे या न करे लेकिन एकादशी व्रत जरूर करै। राजा पूछिस महराज ये एकादशी व्रत कइसे होथे ऐला करे ले का फल मिलथे का पुण्य होथे। तो कहिस के बेटा एकादशी के व्रत करे ल भगवान के लोक के वास होथे। कहै एक झन मंगल नाम के राजा रिहिस हे रागी भैया। शांति पर्व में भीष्म जी बताते हैं। एक झन मंगल नाम के राजा रिहिस हे। जेकर रानी के नाव ह संध्यावती रिहिस हे। वो रानी अऊ राजा के एक झन बेटा रिहिस हे। राजा मंगल रानी संध्यावती हर एकादशी के व्रत करै। गांव के नर नारी एकादशी के व्रत करे रागी भैया। जहां तक के बताए हे पशु पक्षी राजा मंगल के राज में जितना भी एकादशी व्रत करे। दशमी में एक दिन 12 बजे भोजन करै दशमी के दिन। रात के समय भोजन नई करै। फिर एकादशी के दिन उपास रहने लगे। अऊ द्वादसी के दिन दान करके परायण करना हे। ए प्रकार से बताथे भीष्म जी। एक दिन बात ये रागी। एक ठिन कौतुक होइस। बताथे राजा मंगल के राज मे एक झन चण्डाल रिहिस हे। अऊ वो चण्डाल के मृत्यु होगे। वो पापी जीव के।चण्डाल जब मरिस तो वो जीव ल लेगे बर यम के दूत आइस। कुछ देर बीते के बाद में भगवान विष्णु जी के दूत पहुंचथे। यमराज के दूत ल मार पीट के भगाथे। अऊ वो चण्डाल के जीव ल धरके -

अगा विष्णु लोके बर जावन लागे भाई

भैया स्वर्ग में ओला लेगन लागे भाई

यमराज काहन लगे गा मोर भाई।

यमराज काहन लगे गा मोर भाई।

 

भीष्म कहते हैं, मैं बता नहीं सकता। ऐसा कौन सा जीव है जो उत्तर दिशा में जाते हैं। क्‍या पुण्य करते हैं तब उत्तर दिशा में गमन करते हैं। रागी भैया जितने साधु सन्यासी ऋषि मुनि है वे मृत्यु पाते हैं तो पश्चिम द्वार से जाते हैं। जो कन्यादान करते हैं, गऊ दान करते हैं रागी भैया, भूमि दान करते हैं। वे व्यक्ति जब मृत्यु पाते हैं तब पूर्व दिशा की ओर जाते हैं। इसी प्रकार से दिशा का वर्णन होता है और भीष्म कहते हैं अब दक्षिण दिशा को मैं नहीं बता सकता। क्‍योंकि दक्षिण दिशा में 84 धारा है, वैतरणी की धारा, जहाँ पापी जीव हैं नाना प्रकार से तकलीफ पाते हैं रागी। यमराज के दूत उन्‍हें नाना प्रकार का कष्ट देते हैं। वैतरणी नदी को पार करना पड़ता है। गंगा पुत्र भीष्म पितामह राजा युधिष्ठिर को बता रहे हैं। कहते हैं - धर्मराज। तुम्‍हें कुछ करना नहीं पड़ेगा, क्‍योंकि तुम्‍हारे साथ में तो भगवान नारायण है बेटा। भीष्म कहते हैं युधिष्ठिर। नदियों मे जो सर्वश्रेष्ठ नदी है वह गंगा है, वृक्षों मे तुलसी है। कहते हैं तुलसी जैसा वृक्ष तुम्‍हें मिला है युधिष्ठिर। रागी भाई जिसके घर के आंगन मे तुलसी का पेड़ है, चौंरा मे और तुलसी चौंरा के नीचे मे कहीं तुलसी के नीचे मे सालिक राम भगवान है। भैया वो घर को तीर्थ के समान मानो तुम। उसे तीर्थ जाने की आवश्‍यकता नहीं पड़ती। हजारों तीर्थ उसके सामने फीका हैं। जहां भगवान साक्षात विष्णु का निवास है। कोई जीव मरता है तो उस भगवान सालिगराम को स्‍नान करा कर उस जीव को पिला दो तो जीव आवागमन से रहित हो जाता है। इसी प्रकार से नाना प्रकार के ज्ञान की बात सुना रहे हैं राजा युधिष्ठिर को। कहते हैं धर्मराज। व्रत में एकादशी, एकादशी जैसे तो व्रत ही नहीं है। कोई भी व्यक्ति कोई भी इंसान चाहे कोई भी व्रत करे या न करे लेकिन एकादशी व्रत जरूर करे। राजा पूछते हैं महाराज यह एकादशी व्रत कैसे होता है, इसे करने से क्‍या फल मिलता है, क्‍या पुण्य होता है। तो कहते हैं कि बेटा एकादशी  व्रत करने से भगवान के लोक में वास होता है। कहते हैं एक  मंगल नाम का राजा था रागी भैया। शांति पर्व में भीष्म जी बताते हैं। एक मंगल नाम का राजा था। जिसकी रानी का नाम संध्यावती था। वह रानी और राजा का एक  बेटा था। राजा मंगल और रानी संध्यावती एकादशी का व्रत करते थे। गांव के नर नारी एकादशी का व्रत करते थे रागी भैया। जहां तक बताया गया है राजा मंगल के राज्‍य में पशु पक्षी जितने भी एकादशी व्रत करते थे, दशमी में एक दिन 12 बजे भोजन करते थे, दशमी के दिन। रात के समय भोजन नहीं करते थे फिर एकादशी के दिन उपवास रहने लगे और द्वादसी के दिन दान कर परायण करते थे। इस प्रकार से भीष्म जी बता रहे हैं। एक दिन की बात है रागी। एक कौतुक हुआ। बताते हैं कि राजा मंगल के राज्‍य मे एक चाण्डाल था और उस चाण्डाल की मृत्यु हो गई। वह पापी जीव था। चाण्डाल जब मरा तो उस जीव को ले जाने के लिए यम के दूत आये। कुछ समय बीत जाने के बाद में भगवान विष्णु जी के दूत पहुंच गए। यमराज के दूत को मार पीट कर भगा दिये और उस चाण्डाल के जीव को पकड़ कर ..

अजी विष्णु लोक के लिए जाने लगे भाई, भैया स्वर्ग में उसे ले जाने लगे भाई। यमराज कहने लगे मेरे भाई।

 

 

यम के दूत ल मारपीट के भगइन। अऊ वो पापी जीव चण्डाल के जीव ल भगवान के लोक मे लेगे। दूत मन प्रान ल धरके भागिन। जाके यमराज ल बताइन के महराज हमन चण्डाल के जीव ल लानत रेहेन। पर भगवान विष्णु जी के दूत अइस अऊ हमन ल मारपीट के भगा दिस अऊ वो जीव ल विष्णु लोक लेगे। ये बात ल सुनिस त यमराज ह नराज होगे। कहे - अरे वो पापी जीव ये चण्डाल ये। भई। वो जीव के ऊपर मोर अधिकार रिहिस। रागी आज ले मैं ये काम ल नइ करौं कहे। मैं इस्तीफा दे देहौं। यमराज पहुंचगे भगवान ब्रम्हा के पास। बोले ये काम मोर से नइ सम्हलै। ऐला कोनो ल अऊ थमा दे कहिस। भगवान ब्रम्हा कहिस - काबर ? कहे वो पापी जीव ऊपर मोर हक रहिस हे। भगवान ब्रम्हा कहे तैं चिंता झन कर।

(लम्‍बा ब्रेक ..........)  

 

बोलदे वृंदावन बिहारी लाल की - जय

मुरलिया के धुन सुन के गा,

मुरलिया के धुन सुन के

मुरलिया के धुन सुन के।

एको घड़ी रही नही जाइ रे मुरलिया के धुन सुन के

एको घड़ी रही नही जाइ रे मुरलिया के धुन सुन के।

छिन भर रही नहीं जाइ रे मुरिलिया के धुन सुन के

राजा छोड़ दिए राज करन को गा राज करन को।

राजा छोड़ दिए राज करन को गा राज करन को।

रानी छोड़े रनवासा हे मुरलिया के धुन सुन के

छिन भर रही नहीं जाये रे मुरलिया के धुन सुन के।

छिन भर रही नहीं जाये रे मुरलिया के धुन सुन के।

 

यम के दूत को मारपीट कर भगा दिये और उस पापी जीव चाण्डाल के जीव को भगवान के लोक मे ले गए। यम के दूत प्राण बचा कर भागे। यमराज को जाकर बताये कि महाराज हम चाण्डाल के जीव को ला रहे थे किन्‍तु भगवान विष्णु जी के दूत आए और हमें मारपीट कर भगा दिए और उस जीव को विष्णु लोक ले गए। यह बात सुनते ही यमराज नाराज हो गए। कहते हैं - अरे वो चाण्डाल पापी जीव है, भाई। उस जीव के ऊपर मेरा अधिकार था। रागी आज से मैं यह काम नहीं करूंगा, कहते हैं इस्तीफा दे दूंगा। यमराज भगवान ब्रम्हा के पास पहुंच गए। बोले यह काम मेरे से नहीं सम्हलता देव। इसे किसी और को थमा दो। भगवान ब्रम्हा कहते हैं - क्‍यूं ? यमराज कहता है वो पापी जीव के ऊपर मेरा अधिकार था। भगवान ब्रम्हा कहते हैं तुम चिंता मत करो।

बोल दो वृंदावन बिहारी लाल की - जय

मुरलिया की धुन सुन के, मुरलिया की धुन सुन के। एक पल भी रहा नहीं जाता रे, मुरलिया की धुन सुन कर। क्षण भर रहा नहीं जाता रे मुरिलिया की धुन सुन कर। राजा छोड़ दिए राज्‍य करने को, राज्‍य करने को। रानी रनिवास छोड़ दी है मुरलिया की धुन को सुन कर, पल भर रहा नहीं जाता रे मुरलिया की धुन सुन कर।

 

 

रागी भैया। भगवान ब्रम्हा के जो नेत्र हे वो नम हो जाथे। अऊ जइसे ही भगवान के नेत्र नम होइस रागी भैया। ऐक झन दिव्य कन्या प्रकट होगे। हाथ जोड़के बोले महराज मैं तोर का सेवा करौं। तब भगवान ब्रम्हा कहिस - बेटी मैं तोला जा मोहिनी नाम देवत हौं। बोले जा मोहनी नाम हे तोर। राजा मंगल के राज म जा अऊ जाके राजा मंगल के संग .. सत ..ल भंग करे के कोशिश कर तैं। आदेश ल पाके वो मोहनी नाम के लड़की पहुंच जथे। रागी भैया मंगल राज के फुलवारी में आके मोहनी घूमत हे। दिव्य सुन्दरी। एक दिन के बात ये राजा मंगल शिकार खेले के खातिर आये हे। अचानक राजा के नजर पड़गे। कहै - कन्या। यहाँ -

अड़बड़ सुन्दर नारी आये गा हावय भाई

राजा मंगल के नजर पड़गे कहय

भइया अड़बड़ सुन्दर नारी आये गा हावय भाई

राजा हर देखन लागे गा एगा भाई

राजा हर देखन लागे गा एगा भाई।

 

रागी भैया। भगवान ब्रम्हा का जो नेत्र है वह नम हो जाता है और जैसे ही भगवान का नेत्र नम हुआ रागी भैया। एक दिव्य कन्या प्रकट हो गई। हाथ जोड़ कर बोली महाराज मैं तुम्‍हारी क्‍या सेवा करूं। तब भगवान ब्रम्हा कहते हैं - बेटी मैं तुम्‍हें मोहिनी नाम दे रहा हूँ। बोलते हैं जाओ मोहनी नाम है तुम्‍हारा। तुम राजा मंगल के राज में जाओ और जाकर राजा मंगल के सत को भंग करने की कोशिश करो। आदेश को पाकर वह मोहनी नाम की लड़की पहुंच जाती हैं। रागी भैया मंगल राज के फुलवारी में आकर मोहनी घूम रही है। दिव्य सुन्दरी। एक दिन की बात है राजा मंगल शिकार खेलने के लिए आये है। अचानक राजा की नजर पड़ती है। कहते हैं – कन्या, यहाँ!

बहुत सुन्दर नारी आई है भाई, राजा मंगल की नजर पड़ती है तो कहते हैं, भईया बहुत सुन्दर नारी आई है भाई। राजा देखने लगे ए जी भाई।

 

 

देख डरिस सुन्दरी ल, राजा देखिस। मोहनी के सुंदरता ल। जाके पूछत हे। ए देवी। तैं देव कन्या अस। नाग कन्या अस, उर्वशी अस, रम्भा अस या कोनो राजा के बेटी अस तैंह - (लम्‍बा ब्रेक ..........)

 

मुरलिया के धुन सुनके गा बंसुरिया के धुन सुन के

छिन भर रही नहीं जाइ रे मुरिलिया के धुन सुन के

राजा छोड़ दिए राज करन को गा राज करन को

राजा छोड़ दिए राज करन को गा राज करन को ।

रानी छोड़े रनवासा हे मुरलिया के धुन सुन के

छिन भर रही नहीं जाये रे मुरलिया के धुन सुन के

छिन भर रही नहीं जाये रे मुरलिया के धुन सुन के।

 

देख डाले सुन्दरी को, राजा देखते हैं। मोहनी की सुंदरता को। जाकर पूछते हैं। एै देवी ! तुम देव कन्या हो। नाग कन्या हो, उर्वशी हो, रम्भा हो या कोई राजा की बेटी हो तुम -

मुरलिया की धुन सुनकर जी, बंसुरिया की धुन सुन कर, पल भर रहा नहीं जा रहा है रे, मुरलिया की धुन को सुन कर। राजा राज करना छोड़ दिए, रानी रनिवास छोड़ दी मुरलिया की धुन को सुन कर के। पल भर रहा नहीं जा रहा है रे मुरलिया की धुन को सुन करके।

 

 

राजा मंगल मोहनी ल देख के पूछै - कन्या कोन अस ? लड़की कथे महराज, मोर मोहिनी नाम हे। अऊ आज तक मोर ब्याह नइ होय हे, बिहाव नइ होये, अऊ मैं ये जंगल मे घूमत हौं। जऊन ह मोर शर्त ल स्वीकार कर लेही ओकरे संग मैं विवाह कर लेहूँ। ये बात ल सुनिस। राजा मंगल किहिस - तोर का शर्त हे। तो मोहनी कथे महराज मैं कोनो भी दिन कोनो भी समय। तोर से जो चीज मांगहू या जो काम करेल कहिहूँ वोला तोला करेल पड़ही। मांगहूँ वोला देल पड़ही। ये मोर सर्त ल कहूँ तैं स्वीकार कर लेबे। तो तोर सन बिहाव करके मैं तोर घर मे चल दिहूँ। रागी भैया। राजा मोहिनी ल रथ म बइठार के ले आये। विवाह करके निवास करत हे। समय बीतत हे। एक दिन के बात ये भाई एकादशी के समय आथे। दशमी के दिन दोपहर के समय रानी और राजा भोजन करते हैं। नगर के सारी समाज स्त्री पुरूष, नर-नारी बाल बृद्ध, पशु-पक्षी सब एक साथ एकादशी के उपास हे। एकादशी के दिन मोहिनी नाव के लड़की पान बनाये। पान बनाके राजा ल देवथे। कहे राजा ये दे पान ल खाले तैं। तो राजा मंगल काहथे मोहिनी। आज मैं ये पान ल नइ खा सकौं। काबर कि -

एकादशी के उपवासे हावंव भैया

एकादशी के उपवासे हावंव भाई

मंगल राजा गा कहन लगे भैया

सुन्दर राजा काहन लागे एगा भाई।।

 

राजा मंगल मोहनी को देख कर पूछते हैं - कन्या तुम कौन हो ? लड़की कहती हैं महाराज, मेरा नाम मोहिनी है और आज तक मेरा विवाह नहीं हुआ है, विवाह नहीं हुआ है और मैं इस जंगल मे घूम रही हूँ। जो मेरे शर्त को स्वीकार कर लेगा उसी के साथ मैं विवाह करूंगी। इस बात को राजा सुनते है। राजा मंगल कहते हैं - तुम्‍हारा शर्त क्‍या है ? तो मोहनी कहती हैं महाराज मैं किसी भी दिन किसी भी समय तुमसे जो मांगूं या जो काम करने को कहूँ वह आपको करना पड़ेगा। मांगूंगी उसे देना होगा। मेरे इस शर्त को कहीं आप स्वीकार कर लोगे तो आपके साथ मैं विवाह कर आपके घर चली जाउंगी। रागी भैया, राजा मोहिनी को रथ में बैठा कर ले आते हैं। उससे विवाह करके निवास करते हैं, समय बीतता है। एक दिन की बात है भाई, एकादशी का समय आता है। दशमी के दिन दोपहर के समय रानी और राजा भोजन करते हैं। नगर के सभी लोग, स्त्री पुरूष, नर-नारी बाल बृद्ध, पशु-पक्षी सब एक साथ एकादशी का उपास रहते हैं। एकादशी के दिन मोहिनी नाम की लड़की पान बनाई है। पान बनाकर राजा को दे रही है। वह कहती हैं राजा इस पान को तुम खा लो तो राजा मंगल कहते हैं मोहिनी ! आज मैं इस पान को नहीं खा सकता, क्‍योंकि -

मै एकादशी का उपवास हूँ, एकादशी का उपवास हूँ भाई। मंगल राजा कहने लगे भैया, सुन्दर राजा कहने लगे भाई।

 

 

आज मैं एकादशी हौं। राजा काहथे। ये मोहिनी, कहे तहूँ एकादशी व्रत रख। मोहनी नाम के लड़की क्रोधित हो जाये रागी। मोहनी काहत हे - राजा। ये पान ल खा। अऊर पान ल नई खावस। तब तोर पांच सात साल के जो लड़का हे ओकर सिर ल काट के मोला दे। ये बात ल सुन के राज मे नगर मे हाहाकार मच जथे। रागी भैया। सात साल के लड़का स्नान करथे तुलसी के दल ल मुख म लेथे। अऊ मुँह म लेके भगवान बांके बिहारी के याद करत हे। अरे जय मधुसुदन कुंज बिहारी तब जय जय जय गोवर्धन धारी। रागी भैया। रानी और राजा हाथ मे तलवार लेके -

अगा राजा के सिर पर राख लागे भाई

रानी राजा लइका के सिर काटे बर तैयार हे हाहाकार मच जथे

भैया सिरे काटे बर तैयार होगे भाई

हॉ भगवाने देखन लागे गा ये गा भाई

हॉ भगवाने देखन लागे गा ये गा भाई।।

 

आज मैं एकादशी हूँ, राजा कहते हैं एै मोहिनी, कहते हैं तुम भी एकादशी व्रत रखो। मोहनी नाम की लड़की क्रोधित हो जाती है रागी। मोहनी कह रही है – राजा, इस पान को खाओ और पान को यदि नहीं खावोगे  तब तुम्‍हारा पांच-सात साल का जो पुत्र है उसके सिर को काट कर मुझे दो। इस बात को सुन कर राज्‍य मे, नगर मे हाहाकार मच जाता है। रागी भैया, सात साल का पुत्र स्नान कर रहा है, तुलसी के दल को मुख मे लेता है और मुँह मे लेकर भगवान बांके बिहारी को याद करता है। अरे जय मधुसुदन कुंज बिहारी तब जय जय जय गोवर्धन धारी। रागी भैया, रानी और राजा हाथ मे तलवार लेकर -

अजी राजा (राजकुमार) के सिर पर रखने लगे भाई, रानी राजा बच्‍चे का सिर काटने के लिए तैयार हैं, हाहाकार मच जाता है। भैया सिर काटने के लिए तैयार हो गए भाई। भगवान देखने लगे, अजी भाई भगवान देखने लगे भाई।

 

 

ये दृष्य ल देखथे तो भगवान क्रोधित हो जथे। भुजा उठा के मोहनी ल श्राप देथे। कहे - मोहनी मोर भक्त ल तैं सतावत हस। बोले जाओ। नरक गामी हो जाव। ये सुनथे मोहनी दोनो हाथ जोड़के राजा के चरण मे गिर जथे। बोले महराज मोर से गलती होगे। मोर गलती ल क्षमा कर दौ महराज। येला देखके राजा मंगल भगवान विष्णु से क्षमा याचना करथे - प्रभु मोहनी ल। माफ कर दौ। भैया भगवान ह मोहनील माफ कर देथे। मोहनी नाम के लड़की एकादशी के व्रत शुरू कर देथे रागी। आखिर में मोहनी परमगति जाथे सत्गति प्राप्त होथे, भगवान के लोक जाथे। ये कथा ल भीष्म बान के शैया मे पड़े पड़े राजा धरमराज ल बतावथे। कहे आज वो भगवान मोर संग हमेषा हे कहे। वोला का बात के दुख हे। नाना प्रकार के शास्त्र के ज्ञान, नाना प्रकार के उपदेश। भीष्म जी बतावत हे राजा युधिष्ठिर ल। कहे धरमराज जेकर घर में तुलसी हे कहे तेकर जइसे भाग्यषाली कोनो नइयैं वृंदा के प्रसंग बतावत हे। एक समय के बात ये जालंधर राक्षस के धर्मपत्नी के नाम ह वृन्दा रिहिसे। वो वृन्दा के सतीत्व के बल से जालंधर ह तीनो लोक अऊ चारो भुवन ल जीते रिहिस हे। रागी भाई। भगवान विष्णु जालंधर के रूप लेके जाके वृन्दा देवी के सतीत्व ल भंग कर देथे। देवादिदेव भगवान महादेव जालंधर ल युद्ध म मारथे। वो वृन्दा ल जब पता चलथे कि भगवान विष्णु जालंधर के रूप लेके आके मोर सतीत्व ल भंग करे हे। रानी वृन्दा श्राप देथे - जगत के पिता होकर के आज तैं मोर से छल करे हस। बोले जाओ पाहन हो जाओ। पत्थर हो जाओ। कहे। भगवान कथे वृन्दा - तैं तुलसी के रूप लेबे अऊ मैं सालिगराम के रूप ले लिहौं। बोले हमेषा तैं मोर सिर के ऊपर मे चढ़बे कहे वृन्दा। रागी भाई ये प्रसंग ल भगवान कृष्ण के आगे भीष्म पितामह राजा ल बतावथे रागी। कहे वो भगवान ह साक्षात तोर आगे मे खड़े हे तो तोला का बात के डर हे। अरे बंदऊ प्रथम भरत केइ चरना

भजन बिना बेड़ा पार नइ होवय भइया

भजन बिना बेड़ा पार कइसे होही

कलयुग केवल नाम अधारा

हाय राम भजन बिना बेड़ा पार नइ होवय

सुमिरि सुमरि नर पावहिं पारा

हाय राम भजन बिना बेड़ा पार नइ होवय

हाय राम भजन बिना बेड़ा पार नइ होवय

 

इस दृश्य को देखते हैं तो भगवान क्रोधित हो जाते हैं। भुजा उठा कर मोहनी को श्राप देते हैं। कहते हैं - मोहनी मेरे भक्त को तुम सता रही हो। बोलते हैं, जाओ, नरक गामी हो जावो। यह सुनती है मोहनी, दोनो हाथ जोड़ कर राजा के चरण मे गिर जाती है। बोलती है महाराज मुझसे गलती हो गई। मेरे गलती को क्षमा कर दें महाराज। इसे देख कर राजा मंगल भगवान विष्णु से क्षमा याचना करते हैं - प्रभु मोहनी को माफ कर दें। भैया भगवान मोहनी को माफ कर देते हैं। मोहनी नाम की लड़की एकादशी का व्रत शुरू कर देती हैं रागी। अंत में मोहनी परमगति को जाती हैं, उसे सत्गति प्राप्त होती है, भगवान के लोक में जाती हैं। इस कथा को भीष्म बाण की शैया मे पड़े पड़े राजा धर्मराज को बता रहे हैं। कहते हैं आज वही भगवान मेरे साथ हमेशा हैं, कहते हैं, उसे किस बात का दुख है। नाना प्रकार के शास्त्र का ज्ञान, नाना प्रकार का उपदेश। भीष्म जी राजा युधिष्ठिर को बता रहे हैं। कहते हैं धर्मराज जिसके घर में तुलसी है कहते हैं उसके जैसा भाग्यशाली कोई नहीं है। उसे  वृंदा का प्रसाद बता रहे हैं। एक समय की बात है जालंधर राक्षस की धर्मपत्नी का नाम वृन्दा था। उस वृन्दा के सतीत्व के बल से जालंधर तीनो लोक और चारो भुवन को जीत लिया था। रागी भाई, भगवान विष्णु जालंधर का रूप लेकर वृन्दा देवी की सतीत्व को भंग कर देते हैं। देवादिदेव भगवान महादेव जालंधर को युद्ध मे मारते हैं। उस वृन्दा को जब पता चलता है कि भगवान विष्णु जालंधर का रूप बनाकर मेरे सतीत्व को भंग कर दिए हैं। तो रानी वृन्दा श्राप देती हैं - जगत के पिता होकर भी आज तुम मेरे से छल किए हो। बोलती है जाओ पाहन (पत्‍थर) हो जाओ। पत्थर हो जाओ कहती हैं। भगवान कहते हैं वृन्दा - तुम तुलसी का रूप लो और मैं सालिगराम का रूप ले लेता हूँ। बोलते हैं वृन्दा , तुम सदैव मेरे सिर के ऊपर मे चढ़ोगी। रागी भाई यह प्रसंग को भगवान कृष्ण के सम्‍मुख भीष्म पितामह राजा को बता रहे हैं रागी। वे कहते हैं यह भगवान तो साक्षात तुम्‍हारे सामने खड़े हैं तो तुम्‍हें किस बात का डर है। पहले भरत के चरणों का बंदना करती हूं

भजन के बिना बेड़ा पार नहीं होगा भइया, भजन बिना बेड़ा पार कैसे होगा ? कलयुग में केवल नाम ही आधारा है, राम भजन के बिना बेड़ा पार नहीं होगा। सुमर सुमर के मनुष्‍य इससे पार होता है। हाय राम भजन के बिना बेड़ा पार नहीं होगा।

 

 

अरे भैया गंगा के बेटा भीष्म पितामह नाना प्रकार के उपदेश देवत हे रागी भैया। आखिर म भीष्म जी कहते हैं नदी मे श्रेष्ठ गंगा है। गंगा जैसे नदिया नइये रागी भाई। जऊन ह पतित पावनी हे दुनिया के पाप ल धोए के खातिर स्वर्ग से मृत लोक मे आये हे। रागी भैया राजा सगर के सारी परिवार जल करके राख होगे हे। वो सगर के परिवार के उद्धार करे बर -

अगा माता गंगा ल लावन लगे भाई

भैया माता गंगा ल लावन लगे भाई

राजा ल काहन लागे गा एगा भाई

राजा ल काहन लागे गा एगा भाई।

 

अरे भैया गंगा पुत्र भीष्म पितामह नाना प्रकार का उपदेश दे रहे हैं रागी भैया। अंत मे भीष्म जी कहते हैं नदी मे श्रेष्ठ गंगा है, गंगा जैसी नदी नहीं है रागी भाई। जो पतित पावनी है, दुनिया के पाप को धोने के लिए स्वर्ग से मृत्‍यु लोक मे आई हैं। रागी भैया राजा सागर के समस्‍त परिवार जल कर राख हो गया है। वह सागर के परिवार का उद्धार करने के लिए -

अजी माता गंगा को लाने लगे भाई, भैया माता गंगा को लाने लगे भाई। राजा पूछने लगे ए जी भाई।

 

 

गंगा। कहें गंगा ह कोन ए ? कहां हे ? तो कहे भैया वो तो ब्रम्ह देव के कमण्डल मे हे। जे समय वामन रूप ले करके भगवान ह राजा बलि ल छले हे। एक पांव पृथ्वी एक पांव आकाश म जाये। भगवान ब्रम्हा के पांव ल धोके कमण्डल मे राखे हे। वो ब्रम्हा। रागी भैया आज कहे वो गंगा ल लये बके खातिर राजा भगीरथ ह जाये। अऊ अपन पूर्वज ला तारे के खातिर कुल के उद्धार करे के खातिर। राजा सगर के बेटा अंशुमान नाम हे। असमंजु अऊ सौरभ सुमारत करके ओकर लइका हवे भागरती। असमंजस नाम के बेटा हे राजा सगर के । असमंजस जाके तपस्या करथे। गंगा ल लाये बर तो आकासवाणी होथे। कहिस - के राजन तोर द्वारा तोर पुरखा के उद्धार नइये। बोल - तोर नाजी जनम लिही तेन हॉ तोर पुरखा ल तारही। असमंजस राजा के पुत्र के नाम होथे अंशुमान। अऊ अंशुमान के बेटा के नाम होथे - भागरती। राजा भागीरती ल पता चलथे कि मोर द्वारा मोर पुरखा के उद्धार हे। माता गंगा ल लाये के खातिर जाके जंगल में घोर तपस्या करथे। भगवान ल बरदान हो जथे। राजा ल बरदान देथे कि जाओ तोर मनोकामना ह पूर्ण होही। राजा भगीरत स्वर्ग में जाये। रागी भैया ब्रम्हा के कमण्डल में समाए हे माँ गंगा। रागी जब गंगा ल लाये राजा भागीरत ह। आकाश से सहस्त्र धारा जब गंगा के गिरथे तो भगवान महादेव तीनो ठन जटा ल फैला के -

अरे गंगा के धारे ल झोकन लगे भाई

वोह गंगा के धारे ल झोकन लगे भाई

राजा वोला देखन लगे गा ए गा भाई

हॉ राजा वोला देखन लगे गा ए गा भाई।।

 

कहते हैं कि गंगा कौन है? कहां है ? तो कहते हैं भैया वह तो ब्रम्ह देव के कमण्डल मे है। जिस समय वामन रूप धर कर भगवान राजा बलि के साथ छल किए हैं। एक पांव पृथ्वी एक पांव आकाश मे गया। भगवान ब्रम्हा का पांव धोकर कमण्डल मे रखे हैं। वह ब्रम्हा, रागी भैया आज कहते हैं वही गंगा को लाने के लिए राजा भगीरथ जाते हैं और अपने पूर्वजों को तारने के लिए कुल का उद्धार करने के लिए  राजा सागर का बेटा अंशुमान जिसका नाम है, असमंजु और सौरभ सुमारत जिसका बेटा है भागीरथी। असमंजस नाम का बेटा है राजा सागर का। असमंजस जाकर तपस्या करते हैं। गंगा को लाने के लिए तब आकाशवाणी होता है। कहते हैं - कि राजन तुम्‍हारे द्वारा तुम्‍हारे पुरखा का उद्धार नहीं होगा। बोलते हैं - तुम्‍हारा नाती जन्‍म लेगा वह तुम्‍हारे पुरखों को तारेगा। असमंजस राजा के पुत्र का नाम है अंशुमान। और अंशुमान के बेटे का नाम है - भागीरथी। राजा भागीरथी को जब पता चलता है कि मेरे द्वारा मेरे पुरखों का उद्धार है। तब माता गंगा को लाने के लिए वह जंगल में जाकर घोर तपस्या करता है। भगवान का वरदान मिलता हैं। राजा को भगवान वरदान देते हैं कि जाओ तुम्‍हारी मनोकामना पूर्ण हो। राजा भागीरथी स्वर्ग में जाता है। रागी भैया ब्रम्हा के कमण्डल में समाई हैं माँ गंगा। रागी जब गंगा को लाते हैं राजा भागीरथ, आकाश से सहस्त्र धारा जब गंगा गिरती है तो भगवान महादेव तीनो जटा को फैला कर ..

अरे गंगा की धार को सम्‍हालने लगे भाई, वे गंगा की धार को सम्‍हालने लगे भाई। राजा उसे देखने लगे भाई, हॉं राजा उसे देखने लगे भाई।

 

 

सहस्त्र धारा के रूप मे जब सुरासरि गंगन के पंथ से जब गिरत हे। तो तीनो जटा पसार के भगवान महादेव फिर जटा मे सम्हालथे । राजा भागीरत जब भगवान महादेव के घोर तपस्या करथे। कहे तोला तो औघड़ दानी कहिथे। तोला कृपा सिंधु कहिथे। भोलानाथ। मैं अपन पुरखा ल तारे बर ये गंगा ला लाये हवंव। मोर ऊपर दया कर। ए गंगा ला छोड़ दे। भगवान महादेव जब गंगा के धार ल छोड़थे रागी। आगे आगे राजा रेगथे। पीछे पीछे माँ गंगा के धार चलत हे। भयानक जंगल झाड़ी पर्वत ल पार करत आवत हे। एक भयंकर हेम गिरद नाम के पर्वत मे आइस। अऊ वो हेमगिर पर्वत मे आइस ताहेन गंगा ह वो पर्वत नाहकन नइ सकिस रागी भैया। पर्वत ल लांघ नइ सकिस। राजा भागीरत ल चिंता होगे। कहे मैं अपन पुरखा ल कइसे तारिहौं ? गंगा ल कथे - माँ! अब मैं का उपाय करौं ? तब गंगा बतावत हे कहे भागीरत चिंता मत कर। तैं देवता लोक मे जा अऊ देवराज इंद्र के पास एक ऐरावत हाथी हे। सुरलोक जाकर के देवराज इंद्रराज से ऐरावत हाथी ल मांग के ला। वो ऐरावत हाथी मोर बर हेमगिरि पर्वत में रस्ता बना दिही। अऊ मै ह ए पहाड़ ल नहाक के चल दिहौं। जब राजा भगीरत गिस स्वर्ग में। इंद्र ल किहिस महराज मोला एरावत के जरूरत हे। तो देवराज इंद्र कहिस के भैया तैं जाके उही ल पूछ ले। वो तोर साथ में जाही के नइ जा सकय। राजा भगीरत आके एरावत ल कहिस महराज तैं मोर ऊपर दया कर। कहे - हेमगिर पर्वत में माँ गंगा ह खड़े हे। नाहकन नई सकत हे। ओला रस्ता बनाना हे। वो समय अपन बल के घमंड हो गै एरावत ल। हाथी मद में चूरत हे। रागी भैया। गयंद काहथे - जा गंगा ल पूछ के आबे। अगर कहीं गंगा मोला रति दे बर तैयार होही त मैं रस्ता बना दिहौं। रागी भाई, राजा भगीरत जाके हाथी के शर्त ल गंगा ल बताये - दाई वो तो शर्त रखत हे। गंगा कहते हैं। जाओ भगीरत। अऊर जाके ऐरावत ल बोल देबे के अगर कहीं मोर तीन लहरा ल वो सही जही। त हाथी के शर्त ल मैं स्वीकार कर लिहूँ। ऐरावत कहे शर्त मंजूर हे। मद में चूर हे ऐरावत। रागी भैया जब पहुंचिस तो माँ गंगा राहय तेन ह -

पहिली लहरा गा लेवन लगे भैया

पहिली लहरा गा लेवन लगे भाई।

जाके हाथी ल मारन लगे भैया

जाके हाथी ल मारन लगे भाई।।

 

सहस्त्र धार के रूप मे जब सुरसरि गगन के पंथ से जब गिरती हैं तो तीनो जटा खोल कर भगवान महादेव उसे अपनी जटा मे सम्हालते हैं। राजा भगीरथ जब भगवान महादेव की घोर तपस्या करते हैं। वे कहते हैं तुम्‍हें तो औघड़ दानी कहते हैं, तुम्‍हें कृपासिंधु कहते हैं। भोलानाथ ! मैं अपने पुरखे का उद्धार करने के लिए इस गंगा को लाया हूँ। मेरे ऊपर दया करो, इस गंगा को छोड़ दो। भगवान महादेव जब गंगा की धारा को छोड़ते हैं रागी। आगे आगे राजा चलते हैं, पीछे पीछे माँ गंगा की धारा चल रही है। भयानक जंगल झाड़ी पर्वत को पार करते आ रहे हैं। एक भयंकर हेमगर्द नाम के पर्वत मे आते हैं और उस हेमगिर्द पर्वत मे आकर गंगा उस पर्वत को पार नहीं कर सकती रागी भैया। पर्वत को लांघ नहीं सकी। राजा भगीरथ चिंतित हो जाता है। कहता है मैं अपने पुरखों को कैसे तार पाउंगा? गंगा को कहता है - माँ! अब मैं क्‍या उपाय करूं? तब गंगा बताती है, कहती हैं भगीरथ चिंता मत करो। तुम देव लोक मे जाओ और देवराज इंद्र के पास एक ऐरावत हाथी है, सुरलोक जाकर देवराज इंद्रराज से ऐरावत हाथी को मांग कर लाओ। वह ऐरावत हाथी मेरे लिए हेमगिरि पर्वत मे रास्ता बना देगा और मै इस पहाड़ को पार कर चली जाउंगी। जब राजा भगीरत स्वर्ग में गया। इंद्र को कहता है महाराज मुझे एरावत की आवश्‍यकता है। तो देवराज इंद्र कहते हैं कि भैया तुम जाकर उसी को पूछ लो। वह तुम्‍हारे साथ मे जायेगा कि नहीं जायेगा। राजा भगीरत आकर एरावत को कहता हैं महाराज तुम मेरे ऊपर दया करो। कहता हैं - हेमगिरि पर्वत में माँ गंगा खड़ी है। पर्वत को पार नहीं कर पा रही हैं उनके लिए रस्ता बनाना है। उस समय एरावत को अपने शक्ति का घमंड आ गया। हाथी मद में चूर है। रागी भैया, गयंद कहता है - जाकर गंगा को पूछ कर आओ, कहीं गंगा मुझे रति देने के लिए तैयार होगी तो मैं रस्ता बना दूंगा। रागी भाई, राजा भगीरत जाकर हाथी के शर्त को गंगा को बताता है – माता वह तो शर्त रखता है। गंगा कहती है, जाओ भगीरत और जाकर ऐरावत को बोल दो कि कहीं मेरे तीन लहरे को वो सह लेगा तो हाथी की शर्त को मैं स्वीकार कर लूंगी। ऐरावत कहता है शर्त मंजूर है, मद में चूर है ऐरावत। रागी भैया माँ गंगा जब पहुंची -

(माता गंगा) पहली लहर को लेने लगी भैया, पहली लहर को लेने लगी भाई। (लहर) जाकर हाथी को मारने लगी भैया,

जाकर हाथी को मारने लगी भाई।

 

 

ये बार गंगा के लहरा उठिस। और ऐरावत हाथी ल मारिस। व्याकुल होगे ऐरावत। माता गंगा जब दूसरा लहर मारथे रागी भाई। हाथी के नाक कान डूबे लगिस। पानी भरगे, व्याकुल होगे। अब छूटै प्राण तब छूटै प्राण कहे। काल के समान माँ गंगा जब तीसरा लहर लेथे। लहरा जब शुरू होइस। तब हाथी दोनो ठन हाथ ल जोड़के -

चरण मे गिरन लागे गा एगा भाई।

चरण मे गिरन लागे गा एगा भाई।

दाई मोरे गलती ल क्षमा गा कर भाई

मैंया मोरे गलती ल क्षमा गा कर भाई

हॉ ये ऐरावत काहन लागे गा ए भाई।

हॉ ये ऐरावत काहन लागे गा ए भाई।

 

इस समय गंगा की तेज लहर उठी और ऐरावत हाथी से टकराई, ऐरावत व्याकुल हो गया। माता गंगा जब दूसरा लहरा मारती हैं रागी भाई। हाथी के नाक कान डूबने लगा। पानी भर गया, वह व्याकुल हो गया। अब छूटे प्राण तब छूटे प्राण हो गया। काल के समान माँ गंगा जब तीसरा लहरा लेती हैं। लहरा जब शुरू हुआ तब हाथी दोनो हाथ को जोड़कर -

चरण मे गिरने लगा भाई, माता मेरी गलती को क्षमा करो। मैंया मेरी गलती को क्षमा करो, ऐरावत यह कहने लगा भाई।

 

 

ऐरावत। जाके माँ भगवती के चरण में दण्डवत प्रणाम करथे। कहिथे - दाई मोर से गलती होगे मोर गलती ल माफ करदे। हेमगिर्द पर्वत में ऐरावत हाथी रस्ता बना देथे। अऊ राजा भगीरती माँ गंगा ल धरके मृत्यु लोक ले आथे। रागी भाई। मृत्यु लोक आके भागीरत माँ ल बतावये। महतारी ल - माँ मैं स्वर्ग से गंगा ल लेके आवथौं। बताए हे वही समय एक झन गहिरा राहै रागी। एक झन राऊत राहय। तेकर घर मे एक ठन गाय राहय जेकर नाव वो ह गंगा धरे राहय। अपन गाय ल वो बलावत रहय, अहिर पुकारत हे - गंगा। ए गंगा। आवाज ल सुनिस। गंगा गंगा के। तो सहस्त्र धारा रूपी गंगा ह -

अरे सुन्दर ऊँहा गा बहन लगे भैया

गहिरा के तीर गा जावन लागै भाई

राजा भगीरती देखन लगे भैया

सुन्दर राजा ए गा देखन लगे भाई।

 

ऐरावत जाकर माँ भगवती के चरण में दण्डवत प्रणाम करता है। कहता है - माता मुझसे गलती हो गई, मेरी गलती को माफ कर दो। हेमगिरि पर्वत में ऐरावत हाथी रास्ता बना देता है और राजा भगीरती माँ गंगा को लेकर मृत्यु लोक में आती है। रागी भाई, मृत्यु लोक आ कर भगीरथ माँ को बताते हैं, माता को - माँ मैं स्वर्ग से गंगा को लेकर आ रहा हूँ। बताया गया है उसी समय में एक अहीर (ग्‍वाला) रहता था रागी, एक रावत रहता था। उसके घर मे एक गाय थी जिसका नाम वो गंगा रखा रहता है। वह अहीर अपने गाय को बुला रहा है, पुकार रहा है - गंगा ! ए गंगा! गंगा गंगा की आवाज को सुनती हैं मॉं गंगा तो सहस्त्र रूपी गंगा

अरे सुन्दर वहां बहने लगी भैया, गहिरा के पास जाने लगी भाई। राजा भगीरथ देखन लगे भैया, सुन्दर राजा देखने लगे भाई।

 

 

वो ग्‍वाल के पीछे सहस्त्र धारा बहना शुरू होगे। राजा कथे दाई मैं तो तोला मोर पुरखा ल तारे बर लाने हौं। गंगा कथे - भागीरती। मैं पहिली ले तोर पुरखा ल तारहूं। तेकर पाछू ए संसार के मोला उद्धार करे बर हे बेटा। रागी भैया, पाताल लोक ले गंगा के धार जावत हे। बताए ऐ पाताल लोक मे महा तपस्वी जहने नाम के तपस्वी तपस्या करत रथे। गंगा के धार ल अपन मुंह में भर लेथे रागी। राजा दोनो हाथ जोड़के ऋषि ले प्रार्थना करथे महराज। मैं एला अपन पुरखा ल तारे बर लाये हौं। जहनु नाम के ऋषि सोचे अगर मैं मुंह से ये गंगा ल निकालहूँ तो जूठा हो जही। रागी भैया, मलमूत्र के द्वारा त्यागहूं तो अषुद्ध हो जाही। जहनु नाम के मुनि जांघ ल चीरथे। अऊ जांघ ल चीरके फेर वो गंगा ल बाहिर निकालथे। वो दिन से माँ गंगा के दूसरा नाम - जान्हवी भी पड़थे कहे। रागी भैया, राजा सगर के पुरखा ल तार देथे। और पुरखा ल तारे के बाद में फेर सुरसरि के नाव से बोहाथे। जहां हजारों पापी अपन पाप ल दूर करथे। रागी भैया, राजा धरमराज ह भगवान ल कहत हे द्वारका नाथ ।

कथा राम के सुनैया कांटा झन गड़ै गा तोर पांव म

कथा राम के सुनैया कांटा झन गड़ै गा तोर पांव म

राम कहानी अमर जबानी, राम कहानी ऽ ऽ ऽ

राम कहानी अमर जबानी, अऊ कथा के ठॉव म

कथा राम के सुनैया कांटा झन गड़ै गा तोर पांव म

कथा राम के सुनैया कांटा झन गड़ै गा तोर पांव म।।

इही कथा ल भोले नाथ ह पारबती ल बताइस हे

इही कथा ल भोले नाथ ह पारबती ल बताइस हे

इसी कथा ल वेदव्यास ह गजानंद ल सुनाइस हे

गजानंद ल सुनाइस हे

गजानंद ल सुनाइस हे

राम कहानी अमर जबानी, अऊ कथा के ठॉव म

कथा राम के सुनैया कांटा झन गड़ै गा तोर पांव म

कथा राम के सुनैया कांटा झन गड़ै गा तोर पांव म।।

 

उस ग्‍वाले के पीछे सहस्त्र धार बहना शुरू हो गया। राजा कहते हैं माता मैं तो तुम्‍हें मेरे पुरखों को तारने के लिए लाया हूँ। गंगा कहती है - भागीरथी ! मैं पहले तुम्‍हारे पुरखों को तारूंगी उसके बाद मुझे इस संसार का उद्धार करना है बेटा। रागी भैया, पाताल लोक से गंगा की धार जा रही है। बताया गया है पाताल लोक मे महा तपस्वी जहने नाम का तपस्वी तपस्या कर रहे हैं। गंगा की धार को अपने मुंह में भर लेते हैं रागी। राजा दोनो हाथ जोड़ कर ऋषि से प्रार्थना करते हैं महाराज। मैं इसे अपने पुरखों को तारने के लिए लाया हूँ। जहनु नाम का ऋषि सोचते हैं कहीं मैं मुंह से इस गंगा को निकालूंगा तो यह जूठा हो जायेगी। रागी भैया, मलमूत्र के द्वारा त्यागूंगा तो अशुद्ध हो जायेगी। जहनु नाम का मुनि अपने जांघ को चीरते हैं और जांघ को चीर कर गंगा को बाहर निकालते हैं। उस दिन से माँ गंगा का दूसरा नाम - जान्हवी पड़ा है। रागी भैया, मॉं गंगा राजा सागर के पुरखों को तार देती हैं और पुरखों को तारने के बाद सुरसरि के नाम से बहती हैं। जहां हजारों पापी अपने पाप को दूर करते हैं। रागी भैया, राजा धर्मराज भगवान को कहते हैं द्वारिका नाथ..

राम कथा को सुनने वाले तुम्‍हारे पांव मे कांटा मत गड़े, राम कथा को सुनने वाले तुम्‍हारे पांव मे कांटा मत गड़े। राम की कहानी अमर जुबानी है, राम की कहानी, कथा के स्‍थान मे राम कथा को सुनने वाले तुम्‍हारे पांव मे कांटा मत गड़े। इसी कथा को भोले नाथ जी पार्वती को बताये हैं और इसी कथा को वेदव्यास जी गजानंद को सुनाये हैं, गजानंद को सुनाये हैं। राम की कहानी अमर जुबानी है, राम की कहानी, कथा के स्‍थान मे राम कथा को सुनने वाले तुम्‍हारे पांव मे कांटा मत गड़े।

 

 

रागी भैया ये गंगा महात्तम भीष्म पितामह ह बान के सैया म सोए सोए सुनावत हे। नाना प्रकार धर्म, नीति उपदेश, नाना प्रकार के ज्ञान के बात सुनावत हे। आखिर में पितामह भीष्म कहिस कि राजा धरमराज जौन ह शिव जी व्रत करथे। काबर एला सब जानथे - अरे शिव समान दानी नहीं कोई। भगवान। महादेव जैसे तो दानी कोई हई नइ हे। रागी कोनो व्यक्ति कहीं में जाके प्राण गंवाथे वो सीधा भगवान महादेव के लोक मे बास करथे। बताए एक चरक नाम के ब्याध राहय। वो ब्याध जंगल में शिकार खेलै अऊर शिकार खेलके परिवार के पालन करै। एक दिन के बात ये चरक ब्याध ह जंगल में शिकार खेले ल गे हे। शिकार के तलाश में घूमत हे रागी। दिन भर बीत गे राहय। शिकार नइ मिलिस दिन है बूड़गे। जंगल म अंधियार होगे। शिकारी वापिस कुटिया मे नइ गिस। सोचे मोर लइका मन भूखा प्यासा मोर इंतजार करत हे। आज शिकार नइ मिलिस। रागी भैया, कोन मुंह मे बताहूँ बेटा आज मैं तुंहर बर भोजन नइ लाये हौं। रतिहा के बेरा ये। शिकारी पेंड़ के ऊपर म चढ़गे। शिकारी वो दिन चघे राहय कोन सा पेंड़ त वोला बताए हे तो बोले बेल के पेंड़ म चढ़े राहय। रात के समय 12 बजे के बेरा भगवान महादेव साक्षात प्रगट होगे। रागी भैया भूत प्रेत योगिनी जतका भगवान के दल हे सब प्रगट होगे। जब भगवान महादेव प्रगट होइस तो जंगल मे उजियारा छागे। जेने पेड़ के ऊपर में चघे हे वो पेंड़ के नीचे में आ करके भगवान आसीन होथे। संग में मां जगदम्बा भवानी बइठे हे रागी। शिकारी रूख ऊपर चघे हे। भूख से व्याकुल हे। शिकारी जब रोवय रागी आँसू बोहावय शिकारी के। अऊ आँसू बोहावय तेन चूहय वो बेल के पान म गिरत राहय। अइसे भगवान के माया होथे हवा चलथे वो पान ह टूट जाथे। अऊ पान ह टूट के ऊपर ले -

अगा भोला के सिर मे चढ़न लागे भाई

भैया शिव के सिरे मे ये गिरन लागे भाई

भगवाने काहन लागे गा ए गा भाई

भगवाने काहन लागे गा ए गा भाई।

 

रागी भैया इस गंगा महात्तम को भीष्म पितामह बाण की शैया मे सोये सोये सुना रहे हैं। नाना प्रकार धर्म, नीति उपदेश, नाना प्रकार के ज्ञान की बात सुना रहे हैं। अंत में पितामह भीष्म कहते हैं कि राजा धर्मराज जो शिव जी का व्रत करते हैं, इसे सब जानते हैं - अरे शिव के समान दानी कोई नहीं। भगवान, महादेव जैसे दानी कोई है ही नहीं। जो शिव का व्रत करते हैं रागी, उस व्यक्ति की मृत्‍यु कहीं भी हो वह सीधा भगवान महादेव के लोक मे वास करता है। बताया गया है एक चरक नाम का ब्याध रहता है। वह ब्याध जंगल में शिकार करता था और शिकार करके अपने परिवार का पालन करता था। एक दिन की बात है, चरक ब्याध जंगल में शिकार करने के लिए गया है। शिकार की तलाश मे घूम रहा है रागी। दिन बीत गया था, शिकार नहीं मिला था, दिन डूब गया। जंगल मे अंधेरा हो गया। शिकारी वापस कुटिया मे नहीं गया। सोचने लगा मेरे बच्‍चे भूखे प्यासे मेरा इंतजार कर रहे हैं। आज शिकार नहीं मिला। रागी भैया, किस मुंह मे बताउंगा बेटा आज मैं तुम्‍हारे लिए भोजन नहीं लाया हँ। रात का समय है, शिकारी पेड़ के ऊपर मे चढ़ गया। शिकारी उस दिन जिस पेड़ पर चढ़ा था उसके संबंध मे बताया गया है कि वह  बेल का पेड़ था। रात का समय 12 बजे के लगभग भगवान महादेव साक्षात प्रगट हो गये। रागी भैया भूत प्रेत योगिनी जितने भगवान के दल हैं सब प्रगट हो गये। जब भगवान महादेव प्रगट हुए तो जंगल मे उजियारा छा गया। जिस पेड़ के ऊपर मे वह शिकारी चढ़ा है उसी पेड़ के नीचे में आ कर भगवान आसीन हो जाते हैं। साथ में मॉं जगदम्बा भवानी बैठी हैं रागी। शिकारी वृक्ष के ऊपर में चढ़ा है, भूख से व्याकुल है। शिकारी जब रोता है रागी, तब शिकारी का आँसू बहकर बेल के पत्‍ते में गिर रहा था। भगवान की माया ऐसे होती है कि हवा चलता है वह पत्‍ता टूटता है और ऊपर से ..

भोला के सिर मे चढ़ने लगता है भाई, शिव के सिर मे वह गिरने लगता है भाई। भगवान कहने लगे भाई, भगवान कहने लगे।

 

 

आँसू म फीले राहय। तेन पान ह भगवान के मुंड़ी म गिरगे। भगवान प्रसन्न होगे। भगवान कहे मांग। कहे कोन अस जो मोर सिर मे आज बेल पत्ता चघाए हस आजा अऊ आके तैं बरदान लेले। मांग। ऐसे है औघड़ दानी। चरक नाम के ब्याध ह रूख ले उतरथे अऊ भगवान के दण्डवत प्रणाम करथे। अऊर भगवान के प्रणाम करके वो ब्याध दोनो ठन हाथ ल जोड़ के कहत हे - महराज।

बइला म चढ़ के आना भोला

ए भोला नाथ।

बइला म चढ़ के आना भोला मनावौं तोला

बइला म चढ़ के आना भोला मनावौं तोला।।

जे जटा म तोरे गंगा बहत है

जे जटा म तोरे गंगा बहत है

माथा म तोर चंद्र सोहत हे

माथा म तोर चंद्र सोहत हे

ये गांजा ल पीये तोला, तोला मनावौ तोला

बइला म चढ़के

बइला म चढ़ के आना भोला मनावौं तोला।।

बइला म चढ़ के आना भोला मनावौं तोला।।

बइला म चढ़के

 

आँसू में भींगा पत्‍ता भगवान के सिर मे गिर गया। भगवान प्रसन्न हो गये। भगवान कहते हैं मांग ! कहते हैं कौन है जो मेरे सिर मे आज बेल पत्ता चढ़ाया है, सामने आओ और आकर वरदान ले लो। मांग ! ऐसे हैं औघड़ दानी। चरक नाम का ब्याध वृक्ष से उतरता है और भगवान को दण्डवत प्रणाम करता है। भगवान का प्रणाम करके वह ब्याध दोनो हाथ को जोड़ कर कहता है - महाराज !

बैल मे चढ़ कर आना भोला, ए भोला नाथ ! बैल मे चढ़ कर आना भोला मैं तुम्‍हें मना रहा हूँ। बैल मे चढ़ के आना भोला मैं तुम्‍हारी पूजा करता हूँ। जिस जटा मे तुम्‍हारे गंगा बह रही है, माथे में तुम्‍हारे चंद्रमा शोभा पा रहे हैं। गांजा को पीने वाले तुम्‍हें, तुम्‍हें मैं मना रहा हूँ, बैल मे चढ़ कर आना भोला, ए भोला नाथ ! बैल मे चढ़ कर आना भोला मैं तुम्‍हें मना रहा हूँ। बैल मे चढ़ के आना भोला मैं तुम्‍हारी पूजा करता हूँ।

 

 

मांग। चरक नाम के ब्याध ह पेंड़ ले उतरथे। भगवान के प्रणाम करथे। भगवान महादेव धन धान्य से परिपूर्ण करथे रागी भैया। अऊ कहिथे - जा तोर आज मैं आसीरवाद देथौं। आखिर में जब तैं मृत्यु होही त तैं मोर लोक में आबे। ये कथा ल भीष्म ह राजा धरमराज ल बतइस हे। नाना प्रकार ज्ञान अऊ उपदेश होवत रागी। धीरे-धीरे सूर्य नारायण के उतरायन होवथे। उत्तर दिशा मे। सूर्य के उत्तरायन में राजा युधिष्ठिर ल भीष्म काहथे - धरमराज। मैं इच्छा मृत्यु के वरदान पाये रहेंव। सूर्य के उत्तरायन होवथे। अड़बड़ दिन होगे मोला ये बान के सैया में पड़े। त ये मोला बहुत तकलीफ हे। मोर दर्द में व्याकुल हौं मैं। कहे अब मैं ये शरीर ला त्यागना चाहत हौं। आखिर मे भीष्म पितामह। भगवान द्वारिका नाथ के ओर नजर किये और कहे - प्रभु।

अजी जय मधुसूदन तब कुंज बिहारी

द्वारिका नाथ

तब जय जय गोवर्धनधारी

 

मांग ! चरक नाम के ब्याध पेंड़ से उतरता है। भगवान का प्रणाम करता है। भगवान महादेव धन धान्य से परिपूर्ण करते हैं रागी भैया। और कहते हैं - जा तुम्‍हे आज मैं आर्शिवाद दे रहा हूँ। अंत में जब तुम्‍हारी मृत्यु होगी तो तुम मेरे लोक में आवोगे। इस कथा को भीष्म राजा धर्मराज को बताते हैं। नाना प्रकार ज्ञान और उपदेश हो रहा है रागी। धीरे-धीरे सूर्य नारायण का उत्‍तरायण हो रहा है, उत्तर दिशा मे। सूर्य के उत्तरायण में राजा युधिष्ठिर को भीष्म कहते हैं - धर्मराज ! मैं इच्छा मृत्यु का वरदान पाया हूँ। सूर्य उत्तरायण हो रहा है। मुझे इस बाण की सैया में पड़े बहुत दिन हो गये हैं। यह मेरे लिए बहुत कष्‍टदायी है। दर्द से मै व्याकुल हूँ। वे कहते हैं अब मै इस शरीर को त्यागना चाहता हूँ। अंत मे भीष्म पितामह। भगवान द्वारिका नाथ की ओर नजर करते हैं और कहते हैं  प्रभु !

जय मधुसूदन कुंज बिहारी, द्वारिका नाथ! जय जय गोवर्धनधारी!

 

 

दोनो हाथ जोड़के भीष्म। भगवान के चरण मे ध्यान लगाते हैं। सूर्य के उत्तरायण में भगवान बांके बिहारी के चरण में स्तुति करत हे द्वारका नाथ। अब मैं संसाररूपी से अपन शरीर के त्याग करत हौं।

अरे खुले हे समाधि मोहन

अऊ खुले हे समाधि मोहन

बांसुरी बजा दे

पैंया परत हौं प्रभु जी पार लगा दे

अऊ खुले हे समाधि मोहन

बांसुरी बजा दे

पैंया परत हौं प्रभु जी पार लगा दे।।

 

सूर्य के उत्तरायन में भगवान के आगे भीष्म पितामह अपन शरीर ल त्याग देथे। रागी भैया। देवता लोक से विमान आथे वो विमान में बइठ के भीष्म पितामह ह -

अगा सुन्दर स्वर्गे तब जावन लागे भाई

भैया सुन्दर स्वर्गे तब जावन लागे भाई।

धर्में ह काहन लागे गा एगा भाई

धर्में ह काहन लागे गा एगा भाई।।

भीष्म पितामह। सीधा स्वर्ग की ओर प्रस्थान करथे। राजा युधिष्ठिर आथे। गंगा पुत्र भीष्म के क्रिया कर्म करथे। रागी भाई यही से शांति पर्व के प्रसंग सम्‍पन्‍न हो जाथे।

 

दोनो हाथ जोड़ कर भीष्म भगवान की चरणों मे ध्यान लगाते हैं। भीष्‍म सूर्य के उत्तरायण में भगवान बांके बिहारी के चरण में स्तुति कर रहे हैं द्वारकानाथ! अब मैं संसार रूपी अपने इस शरीर का त्याग कर रहा हूँ।

समाधि का द्वार खुला है मोहन,  समाधि का द्वारा खुला है, तुम बांसुरी बजा दो। मैं प्रणाम करता हूँ प्रभु जी मुझे इस भवसागर से पार लगा दो। समाधि का द्वार खुला है मोहन, समाधि का द्वारा खुला है, तुम बांसुरी बजा दो।

सूर्य के उत्तरायण में भगवान के सामने भीष्म पितामह अपने शरीर को त्याग देते हैं। रागी भैया, देव लोक से विमान आता है, उस विमान मे बैठ कर भीष्म पितामह

अजी सुन्दर स्वर्ग तब जाने लगे भाई, भैया सुन्दर स्वर्ग तब जाने लगे भाई। धर्मराज कहने लगे भाई, धर्मराज कहने लगे भाई।

भीष्म पितामह, सीधा स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं। राजा युधिष्ठिर आते हैं। वे गंगा पुत्र भीष्म की क्रिया कर्म करते हैं। रागी भाई यही से शांति पर्व का पंसंग सम्‍पन्‍न हो जाता है।

 

गायिका – प्रभा यादव

छत्तीसगढ़ी श्रुतलेखन एवं हिन्दी  लिप्यांतरण: संजीव तिवारी

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.