Pandvani: Aisik Parv, Sauptik Parv & Stree Parv- Prabha Yadav & Mandali
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Pandvani: Aisik Parv, Sauptik Parv & Stree Parv- Prabha Yadav & Mandali

in Video
Published on: 11 May 2019
Raipur, Chhattisgarh, 2018

Pandvani is one of the most celebrated forms of folklore from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.

 

The parv presented in this video are the Aisik, Sauptik and Stree. The prasangs contained in these parv are Dhritarashtra dwara lohe ki Bheem pratima ka todna, Gandhari dwara Shri Krishn ko shraap, Raja Yudhishthir ka Rajyabhishek, Mrit kshatriyon ka kriyakarm.

 

Transcript

 

Chhattisgarhi: बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।

अजी ब्यास देव जी के पद कमल, अरे भई बार ही बार मनाऊ।

अजी गुन गावहु भगवान के, श्री हनुमत होहु सहाय।।

अरे रामे रोम भैया रामे गा रामे भाई

रामे रामे रामे, रामे गा रामे भाई

राजा जन्मेजय पूछन लगे भैया

वैसम्पायन गा कहन लगे भाई।।

अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायन जी कथे राजा जन्मेजय।

 

Hindi: बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।

अजी व्‍यास देव जी के पद कमल को मैं बारंबार मना रही हूँ। भगवान का गुण गा रही हूँ, श्री हनुमत मेरी सहायता करें। राम, राम, राम ही राम है भाई। राजा जन्‍मेजय पूछने लगे भाई, वैषम्‍पायन कहने लगे भाई।

राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैषम्‍पायन मुनि महाराज कहते हैं, राजा जन्मेजय !

 

 

अश्‍वस्थामा नाम के बीर। द्रोपदी के पांचो कुमार के सिर ल काट के लेग जथे। राजा दूर्योधन हाथ में दबा के देखथे अउ कहिथे अश्‍वस्थामा आज तैं मोर कुल के नाश कर दिये कहे ये तो द्रोपदी के पांचो कुमार ये राजा दूर्योधन सरोवर के पार में प्राण ल त्याग देथे अऊ अश्‍वस्थामा ह -

अगा प्राणे ल धरके ये भागन लगे भाई

वो प्राण ल धरके भागन लगे भाईं

ह मन मे वो ह सोंचन लगे गा ये भाई

मन मे वो हर सोंचन लगे गा ये भाई।।

 

अश्वत्‍थामा नाम का वीर। द्रौपदी के पांचो कुमार के सिर को काट कर ले जाता है। राजा दुर्योधन हाथ में दबा के देखते हैं और कहते हैं अश्वत्‍थामा आज तुमने मेरे कुल को नाश कर दिया। कहता है यह तो द्रौपदी के पांचो कुमार हैं, राजा दुर्योधन सरोवर के किनारे में प्राण त्याग देता है और अश्वत्‍थामा -

अजी प्राण बचा कर भागने लगा भाई, वह प्राण बचा कर भागने लगा भाईं। मन में वह सोचने लगता है भाई, वह मन में सोचने लगता है भाई।

 

 

भागे अश्‍वस्थामा। पांचो भाई पांडव भगवान द्वारिका नाथ जब होत प्रातः काल रनिवास म पहुंचथे। जाके देखथे रनिवास के स्थिति। पांचो राजकुमार के सिर कटगे हे। देवी द्रोपदी विलाप करथे रागी भैया। बताये हे अश्‍वस्थामा आके, द्रोपादी के पांचो कुमार के सिर काटके लेगे हे। ये बात सुनके अर्जुन कहे द्वारिका नाथ -

मोर रथे ल आगे ल लेगौ भैया

मोर रथे ल आगे ल लेगौ भाई।

श्याम सुन्दर ल काहन लगे भैया

श्याम सुन्दर ल काहन लगे भाई।।

 

भागता है अश्वत्‍थामा। पांचो भाई पाण्‍डव और भगवान द्वारिकानाथ प्रातः काल होते ही जब रनिवास मे पहुंचते हैं। जाकर रनिवास की स्थिति देखते हैं । पांचो राजकुमार का सिर कट गया है। देवी द्रौपदी विलाप कर रही हैं रागी भैया। बताया गया है द्रौपदी के पांचो कुमार का सिर अश्वत्‍थामा आकर, काट कर ले गया है। यह बात सुन कर अर्जुन कहता है द्वारिकानाथ !

मेरे रथे को आगे ले जाओ भैया, मेरे रथ को आगे ले जाओ भाई। श्याम सुन्दर को अर्जुन कहने लगे भैया, श्याम सुन्दर को अर्जुन कहने लगे भाई।

 

 

द्वारिका नाथ। आगे आगे अश्‍वस्थामा भागथे, गर-गर रेस घोस रथ जब चलिस अश्‍वस्थामा लहुट के देखिस। भगवान अऊ अर्जुन आवथे। कहे भैया अब मोर प्राण ह नइ बाचय। अपन हित के खातिर अपन रक्षा करे के खातिर। अश्‍वस्थामा बोले अरे अर्जुन मैं तोर बंस ल नइ उबार सकौ तोर एक बंस नइ बांचै। अतका कहिके खीचिस तुणीर से श्रृंगी बाण अऊ श्रृंगी बाण निकाल करके -

वोह अपन धनुष ले छोड़न लगे भाई

भैया अश्‍वस्थामा जब छोड़न लगे भाई

बाणे हर जावन लगे गा मोर भाई

वो हर अश्‍वस्थामा हर छोड़न लगे भाई

बाणे हर जावन लगे गा मोर भाई।।

 

द्वारिकानाथ! आगे-आगे अश्वत्‍थामा भाग रहा है, तेजी से अर्जुन का रथ जब चला अश्वत्‍थामा पीछे पलट कर देखता हैं। भगवान और अर्जुन आ रहे हैं। कहता है, भैया अब मेरा प्राण नहीं बचेगा। अपने हित के खातिर अपनी रक्षा करने के खातिर अश्वत्‍थामा बोला अरे अर्जुन! मै तुम्‍हारे वंश को नहीं बचा सकता, तुम्‍हारा एक वंश नहीं बचेगा। इतना कह कर खीचता है तुणीर से श्रृंगी बाण और श्रृंगी बाण निकाल कर

वह अपने धनुष से छोड़ने लगा भाई, भैया अश्वत्‍थामा जब बाण छोड़ने लगा भाई, बाण जाने लगा मेरे भाई, वह अश्वत्‍थामा बाण छोड़ने लगा भाई, बाण जाने लगा मेरे भाई।

 

 

श्रृंगी बाण, अर्जुन निकाल के बड़े-बड़े बाण छोड़थे। पर वो श्रृंगी नाम के बान ल काट नई पात हे। अर्जुन भगवान ल पूछथे, द्वारिका नाथ ! ये आथे तेन ह का बाण ये। भगवान कथे अर्जुन द्रोणाचार्य ह तोला ये बान के बारे म नइ बताय ये। तैं नइ जानस। ये तो पुत्र के प्रेम में विवस होके अश्‍वस्थामा ल बताये। रागी भाई। श्रृंगी बाण जब उत्तरा कुमारी के गर्भ की ओर। जात हे। भगवान बांके बिहारी चक्र सुदर्शन ल छोड़ देथे। चक्र ह जाके उत्तरा के गर्भ के रक्षा करथे। ये देख के अर्जुन कहथे हे द्वारिका नाथ -

अजी श्याम सुखदाई मोर हलधर के भाई गा

भजन बिना मुक्ति नइ होवय भैया गा

भजन बिना मुक्ति नइ होवय भैया गा

अरे श्याम सुखदाई मोर हलधर के भाई गा

जय जय जय गोवर्धन धारी गा

भजन बिना मुक्ति नइ होवय भैया गा।।

 

श्रृंगी बाण, अर्जुन बड़ा-बड़ा बाण निकाल कर छोड़ रहा है, किन्‍तु वह श्रृंगी नाम के बाण को काट नहीं पा रहा है। अर्जुन भगवान से पूछता है, द्वारिकानाथ ! यह आ रहा है वह कौन सा बाण है? भगवान कहते हैं अर्जुन द्रोणाचार्य नें तुम्‍हें इस बाण के संबंध मे नहीं बताया है। तुम नहीं जानते। यह तो पुत्र के प्रेम में विवश होकर अश्वत्‍थामा को बताये हैं। रागी भाई। श्रृंगी बाण जब उत्तरा कुमारी के गर्भ की ओर जा रहा है। भगवान बांके बिहारी चक्र सुदर्शन को छोड़ते हैं। चक्र जाकर उत्तरा की गर्भ की रक्षा करता हैं। यह देख कर अर्जुन कहते हैं, हे द्वारिकानाथ..

अजी श्याम सुखमाता मेरे हलधर के भाई, भजन के बिना मुक्ति नहीं होगा भैया। भजन के बिना मुक्ति नहीं होगा भैया। अरे श्याम सुखमाता मेरे हलधर के भाई, जय जय जय गोवर्धन धारी, भजन के बिना मुक्ति नहीं होगा भैया।

 

 

निकाल करके अर्जुन नाग फांस छोड़ देथे। अश्‍वस्थामा के हाथ अऊ पॉंव ल बांध के लाथे। लाकर के देवी द्रोपदी के आगे खड़ा कर दे जाथे। निकालथे भीमसेन कमर से तरवार और हाथ में तरवार लेके अश्‍वस्थामा के सिर काटे बर तैयार हो जथे। लेकिन पांचाल कुमारी द्रोपदी मन मे विचार करथे। रागी भाई मोर पांचो पुत्र ह मृत्यु को प्राप्त होगे। मोर पांचो झन लइका मन स्वर्गवास होगे। ये अश्‍वस्थामा ल मार दिही। तभो ले मोर लइकामन जी के नइ आवै भैया। द्रोपदी सोचथे, अश्‍वस्थामा ल कहुँ मार दिही तभो मोर लइका मन वापिस नइ आवय। ये तो ब्राम्हण ये, ये तो ब्रम्ह ये, येला मार दिही त हमला पाप होही। महारानी द्रोपदी दूनो हाथ जोड़के खड़े होगे। पाण्डव ल कहते हे - प्राणनाथ। मैं तुंहर से प्रार्थना करत हौं तुम अश्‍वस्थामा ल जीवनदान दे दौ। छोड़ दो। ये बात सुनिस त भगवान कहिस कि वाह। द्रोपदी। तोर असन महतारी ये दुनिया में कोनो नइहे बहिनी। भगवान काहथे द्रोपदी, तोर जैसे माँ ये द्वापर मे कोई नइहे। धन्य हस जेन अपन बेटा के हत्यारा ल माफ करत हस बहिनी। बोले - धन्य हस द्रोपदी। बताये हे रागी भैया अश्‍वस्थामा के मस्तक में मणि हे। पाण्डव ह अश्‍वस्थामा के मणि ल निकालथे और अश्‍वस्थामा ल जीवन दान दे देथे। 18 दिन के महाभारत लड़ाई ल पांडव विजय पाये हे। आखिर मे भगवान कहिथे - युधिष्ठिर। आज तुम महाभारत जीत के आये हौ। बोले जाके अपन दाई ददा से आषीरवाद ले लौ, माँ बाप के अषीरवाद ले लौ। ये बात ल सुनके पांचो भैया। धृतराष्ट्र के आगे जाथे अऊ हाथ जोड़ के कहत हे पिताजी मैं राजा युधिष्ठिर औं अतका कहिके -

जइ चरण तब

ओ भई जई चरण तब गिरन लगे

हंस आसीस तब

हंस आसीस तब देवन लगे।।

 

निकाल कर अर्जुन नाग फांस छोड़ देता है। नाग फांस अश्वस्थामा का हाथ और पांव बांध कर लाता है। लाकर देवी द्रौपदी के आगे खड़ा कर दिया जाता हैं। भीमसेन कमर से तरवार निकालता है और हाथ मे तलवार लेकर अश्वत्‍थामा का सिर काटने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन पांचाल कुमारी द्रौपदी मन मे विचार करती हैं। रागी भाई, मेरे पांचो पुत्र तो मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं। मेरे पांचो बच्‍चों का स्वर्गवास हो गया है। इस अश्वत्‍थामा को मार देंगें तब भी मेरे बच्‍चे जीवित होकर नहीं आयेंगें भैया। द्रौपदी सोचती हैं, अश्वत्‍थामा को कहीं मार देंगें तब भी मेरे बच्‍चे वापस नहीं आ पावेंगें। यह तो ब्राम्हण है, यह तो ब्रम्ह है, इसे मार देंगें तो हमे पाप लगेगा। महारानी द्रौपदी दोनो हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई। पाण्डवों को कहती हैं -प्राणनाथ। मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ आप अश्वत्‍थामा को जीवनदान दे दो, छोड़ दो। इस बात को भगवान सुनते हैं तो कहते हैं वाह, द्रौपदी ! तुम्‍हारे जैसी माता इस दुनिया में कोई नहीं है, बहन ! भगवान कहते हैं द्रौपदी ! तुम जैसी माँ इस द्वापर मे कोई नहीं है। धन्य हो जो अपने बेटों के हत्यारे को माफ कर रही हो बहन ! बोले - धन्य हो द्रौपदी ! बताया गया है रागी भैया, अश्वत्‍थामा के मस्तक में मणि है। पाण्डव अश्वत्‍थामा के मणि को निकालते हैं और अश्वत्‍थामा को जीवन दान दे देते हैं। अट्ठारह दिन के महाभारत की लड़ाई में पाण्‍डव विजय पाते हैं। अंत मे भगवान कहते हैं - युधिष्ठिर। आज तुम महाभारत जीत कर आये हो। बोलते हैं जाकर अपने मॉं-पिता से आर्शिवाद लो, माँ-बाप से आशीष प्राप्‍त करो। इस बात को सुन कर पांचो भैया, धृतराष्ट्र के सम्‍मुख जाते हैं और हाथ जोड़ कर कहते हैं पिताजी मैं राजा युधिष्ठिर हूँ, इतना कह कर..

तब जाकर चरण में गिरने लगते हैं, हंसते हुए तब धृतराष्ट्र आशीष देने लगे।

 

 

राजा युधिष्ठिर रानी अऊर राजा के दण्डवत प्रणाम करथे। राजा धृतराष्ट धर्मराज ल पूछथे - धर्मराज। कहे अऊ भीमसेन कहां हे बेटा। राजा काहत हावय भीम ल मैं छाती म लगा के मिलना चाहत हौं। भीमसेन राजा धृतराष्ट के प्रणाम करे बर चलत हे। भगवान द्वारिका नाथ भीम के हाथ ल पकड़त हावय रागी। बोले रूक जाओ अभी। भीमसेन के हाथ पकड़ के रोकथे और भगवान माया के द्वारा फिर लोहा के भीमसेन बनाये। अऊर लोहा के भीम बनाके राजा के आगे में खड़ा कर देथे। राजा धृतराष्ट दोनो भुजा पसार के मिलत हे रागी। अऊ लोहा के भीम ल जब छाती मे लगइस ता -

अरे चूरन भीमे गा होवन लागे भाई

चूरन भीमे गा होवन लागे भाई

पाण्डव भैया गा काहन लागे भाई

पाण्डव भैया गा काहन लागे भाई।।

 

राजा युधिष्ठिर रानी और राजा का दण्डवत प्रणाम करता है। राजा धृतराष्ट धर्मराज को पूछते हैं - धर्मराज। वे कहते हैं, भीमसेन कहां है बेटा ? राजा कह रहे हैं भीम को मैं छाती मे लगा कर मिलना चाहता हूँ। भीमसेन राजा धृतराष्ट को प्रणाम करने के लिए जाता है। भगवान द्वारिकानाथ भीम के हाथ को पकड़ रहे हैं रागी। बोले, रूक जाओ अभी। भीमसेन के हाथ को पकड़ कर रोकते हैं और भगवान, माया के द्वारा दूसरा लोहे का भीमसेन बनाते हैं। लोहे का भीम बनाकर राजा के आगे में खड़ा कर देते हैं। राजा धृतराष्ट दोनो भुजा खोल कर मिलते हैं रागी, और लोहा के भीम को जब छाती मे लगाते हैं..

अरे भीम चूर्ण होने लगा भाई, भीम चूर्ण होने लगा। पाण्डव भैया कहने लगे भाई, पाण्डव भैया कहने लगे भाई।

राजा धृतराष्ट जब भीम ल छाती म दबइस। तो बताए हे चूरन हो जाथे। हाहाकार मचगे, पाण्डव डर के मारे काँप गे। रागी भैया और राजा धृतराष्ट मिथ्या फिर रोना शुरू कर दिस, अपन भाषा म रोवथे -बेटा भीम! आज मैं तोला मार डरेंव। अऊ ओतका ल सुनिस ताहने -

भगवाने हाँसन लागे गा मोर भाई

भगवाने हाँसन लागे गा एगा भाई

ओला श्यामे सुन्दर काहन लागे गा

भैया श्यामे सुन्दर काहन लागे गा

गजब सुन्दर लागे गा मोर भाई।।

 

राजा धृतराष्ट जब भीम को छाती मे दबाये हैं तो बताया गया है, लोहे का भीम चूर्ण हो गया। हाहाकार मच गया, पाण्डव डर से काँप गये। रागी भैया, राजा धृतराष्ट फिर मिथ्या रोना शुरू कर दिये, अपनी भाषा मे रो रहे हैं -बेटा भीम! आज मैं तुम्‍हें मार डाला और इतना सुनकर कृष्‍ण ..

भगवान हँसने लगे मेरे भाई, भगवान हँसने लगे। श्याम सुन्दर उन्‍हें कहने लगे, भैया श्याम सुन्दर कहने लगे, बहुत अच्‍छा लगा मेरे भाई।

 

 

राजा मिथ्या रोथे, भगवान कथे भैया। ये तो घर ये। धृतराष्ट तैं काबर चिंता करथस। कहे भीम के मौत नइ होये हे, कहय ये दे भीम ह खड़े हे। रागी इशारा करते हैं जाओ भीमसेन अपने पिताजी से आषीरवाद ले लो। भीम ह डर्रावय, भगवान काहय अब चिंता के बात नइहे। भीमसेन जाके राजा के साष्टांग प्रणाम करथे। माँ गांधारी के प्रणाम करथे। अर्जुन नकुल सहदेव प्रणाम करथे। भागवान जाके रानी गांधारी के दोनो हाथ जोड़के प्रणाम करथे। तब रानी गांधारी भगवान ल कथे - द्वारिका नाथ ! वो समे गंधारी कहिथे, के कहथे। आज तैं कुरूक्षेत्र के मैदान में मोर एक सौ बेटा समेत सारी सेना के नास करवा देस। गंधारी काहत हे। तै चाहते त ये लड़ाई ल रोक सकते। पर अइसे नइ करेस। बोले द्वारिका नाथ, मैं गंधारी आज तोला श्राप देवत हौं। आज जइसने मोर एक सौ बेटा के नास करवा देस। 18 अक्षौणी सेना के नास होगे। जइसन कौरव नास होइस हे, वइसने मोर श्राप हे एक दिन वोइसने यादव वंस के भी संहार हो जही। भगवान बांके बिहारी हंस के दाई गंधारी के श्राप ल स्वीकार कर लेथे। भगवान स्वीकार कर लेथे रागी भाई। पांचो भैया पाण्डव फिर वापिस आथे। और वापिस आये के बाद फिर दूसरा दिन पांचो भाई पाण्डव जब स्नान ध्यान करथे। राजा युधिष्टिर स्नान करके तैयार होथे, तब हाथ जोड़कर काहत हावय - द्वारका नाथ!

अजी नर तन जनम गवाये भजन बिना

नर तन जनम गवाये भजन बिना

मया डोरी में लपटाये भजन बिना

मया डोरी में लपटाये भजन बिना

ये जिनगी जस पानी के ढेला

ये जिनगी जस पानी के ढेला

अऊ हवा परत धुर जाये भजन बिना

नर तन जनम गवाये भजन बिना

नर तन जनम गवाये भजन बिना।।

 

राजा मिथ्या रोते हैं, भगवान कहते हैं भैया। यह तो घर है धृतराष्ट, तुम क्‍यों चिंता कर रहे हो। कहते हैं भीम की मौत नहीं हुई है, कहते हैं यह देखो भीम खड़ा है। रागी इशारा करते हैं जाओ भीमसेन अपने पिताजी से आर्शिवाद ले लो। भीम डर रहा है, भगवान कहते हैं अब चिंता की बात नहीं है। भीमसेन जाकर राजा का साष्टांग प्रणाम करता है। माँ गांधारी का प्रणाम करता है। अर्जुन, नकुल, सहदेव प्रणाम करते हैं। भगवान जाकर रानी गांधारी को दोनो हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हैं। तब रानी गांधारी भगवान को कहती हैं - द्वारिकानाथ ! उस समय गांधारी कहती है, आज तुम कुरूक्षेत्र के मैदान में मेरे एक सौ बेटा सहित समस्‍त सेना का नास करवा दिये। गांधारी कह रही है। तुम चाहते तो इस लड़ाई को रोक सकते थे, किन्‍तु ऐसा नहीं किये। बोली द्वारिकानाथ, मैं गांधारी आज तुम्‍हें श्राप देती हूँ, आज जैसे मेरे एक सौ बेटों का तुमने नास करवाया है, अट्ठारह अक्षौणी सेना का नास हुआ है। जैसे कौरवों का नास हुआ है, वैसे ही ! मेरा श्राप है ! एक दिन उसी तरह यादव वंश का भी संहार हो जायेगा। भगवान बांके बिहारी हंस कर माता गांधारी के श्राप को स्वीकार कर लेते हैं। भगवान स्वीकार कर लेते हैं रागी भाई। पांचो भैया पाण्डव फिर वापस आते हैं और वापस आने के बाद फिर दूसरे दिन पांचो भाई पाण्डव जब स्नान ध्यान करते हैं। राजा युधिष्टिर स्नान कर तैयार होते हैं, तब हाथ जोड़कर कह रहे हैं - द्वारकानाथ!

अजी भजन के बिना नर तन जनम गंवाये, भजन के बिना नर तन जनम गंवाये। माया की डोरी में फंसकर भजन के बिना। यह जिन्‍दगी जैसे पानी का ढेला है जो हवा पड़ते ही धुल जाता है भजन के बिना, नर तन जनम गंवाये भजन के बिना, नर तन जनम गंवाये भजन के बिना।

 

 

रागी भैया। और हस्तिना नगर में महराज युधिष्टिर महारानी द्रोपदी स्नान करथे, सौम्य नाम के दूनो आसन में सिंहासन में बैठाथे, सिंहासन में बैठा के राजा युधिष्ठिर के राज्याभिषेक होते है। पाण्डव हस्तिना के सम्राट बनगे रागी भाई। हस्तिना के प्रजा गदगद हे। बड़े भाग से कौरव नास होइस हे। अऊ आज हस्तिना में महाराज युधिष्ठिर ह राजा होइस हे। रागी भैया पर वहां के स्त्रीमन सब विधवा होगे हे। कोनो रानी बेटा कहिके रोवय। त कोनो ह हाय प्राणनाथ कहिके रोवत हावय। सबके क्रियाकर्म करना हे। तिलांजलि देना है। पांचो भाई पाण्डव सब नारी के समाज ल ले के -

अगा कुरूक्षेत्र बर जावन लगे भाई

भैया कुरूक्षेत्र बर जावन लगे भाई

भगवाने देखन लगे गा एगा भाई

भगवाने काहन लगे गा एगा भाई।।

 

रागी भैया, हस्तिना नगर में महाराज युधिष्टिर, महारानी द्रौपदी स्नान करते हैं, दोनो सौम्य नाम के सिंहासन में बैठते हैं, सिंहासन में बैठा कर राजा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक किया जाता है। पाण्डव हस्तिना के सम्राट बन जाते है रागी भाई। हस्तिना की प्रजा गदगद है। बड़े भाग्‍य से कौरवों का नाश हुआ है और आज हस्तिना में महाराज युधिष्ठिर राजा बने हैं। रागी भैया किन्‍तु वहां की स्त्रियॉं सब विधवा हो गयी हैं। कोई रानी बेटा कह कर रो रही हैं तो कोई हाय प्राणनाथ कह कर रो रही हैं। सबका क्रियाकर्म करना है, तिलांजलि देना है। पांचो भाई पाण्डव सब नारी समाज को लेकर..

कुरूक्षेत्र के लिए जाने लगे भाई, भैया कुरूक्षेत्र के लिए जाने लगे भाई। भगवान देखने लगे भाई, भगवान कहने लगे भाई।

 

 

सब रानी मन ल लेके दूर्योधन के समाज ले के कुरूक्षेत्र के मैदान म जाथे। कुरूक्षेत्र के मैदान में जाके राजा दूर्योधन के सबसे पहिली तिलांजलि दे जाथे। सबसे पहले 100 भाई कौरव के नाम लेकर के क्रियाकर्म होथे। तिलांजलि दे जाथे। रागी भैया गुरू द्रोणाचार्य के तिथि होथे। बड़े बड़े बीर बड़े बड़े राजा बड़े बड़े महराजा के नाम ले ले के तिलांजलि देथे। वो समय महारानी कुंती राजा युधिष्ठिर ल काहथे। राजा धरमराज ल काहथे - धरमराज। बोले करन के भी अंत्येष्टि कर, करन ल भी तिलांजलि दे दे बेटा। बोले करन के तिलांजलि दे। करन के क्रियाकर्म कर। वो समय राजा युधिष्ठिर पूछथे - माँ। तैं करन के क्रियाकर्म बर तैं अतना जोर काबर देवत हस। महारानी कुंती कथे - बेटा! करन ह तोर बड़े भाई ये। करन तोर बड़े भाई ये। धरमराज जब मैं कुंवारी रेहेंव, ऋषि दुर्वासा के माला के परीक्षा लेवत रेहेंव। बात सही ये गलत ये मैं भगवान सूर्य देव के याद करेंव। भगवान सूर्य नारायण साक्षात मोला दर्शन दिस हे। धर्मराज। अउर भगवान रवि मोला पुत्रवती होय के वरदान दिस। बोले करन ह तोर बड़े भाई ये बेटा। ये बात सुनिस तो राजा युधिष्ठिर व्याकुल होगे। राजा युधिष्ठिर काहथे - माँ। आज जे बात ल तैं मोला बतावत हस, कहे वोला पहिली ले काबर नइ बताये। राजा युधिष्ठिर काहथे माँ। एक भाई के हाथ एक भाई के हत्या करा देस अऊ आज तैं काहत हस के करन ह तोर भाई ये। जाओ आज से मैं सकल त्रिया जाति ल श्राप दवथौं, सकल त्रिया जाति ल श्राप देवथौं। राजा युधिष्ठिर कहिस के माँ आज से मैं नारी जाति को श्राप देता हूँ। कोनो भी गुप्त बात कोई कितनों जरूरी बात होही रागी। कितनों भी गुप्त बात होही नारी जाति पचाकर रख नही पाय। एक न एक के पास जरूर बताही वोह। राजा युधिष्ठिर के श्राप हे। नारी जाति ल, कितनों भी गुप्त बात रही भैया एक न एक ल जरूर बताही। सबके क्रियाकर्म करथे। अऊ सबके क्रियाकर्म करे के बाद में फेर पांचो भाई पाण्डव वापस आथे। चारों भैया सेवक बनके सेवा करत हे, समय बीतत हे। अऊर कुछ दिन बीते के बात ये -

काया माया के नइये ठिकाना

अहो काया माया के नइये ठिकाना

थोरेच दिन तोरे मोरे

तन ले कुछु नहीं जाना - काया माया के नइये ठिकाना

काया माया के ठिकाना, काया माया के ठिकाना।

अहो काया माया के ठिकाना, अहो काया माया के ठिकाना।

चारेच दिन के सुन्दर काया

चारेच दिन के माया, चारेच दिन के माया।

चारेच दिन के नता रिस्ता, चारेच दिन के नता रिस्ता।

छोड़ सबो ल जाना

अहो काया माया के नइये ठिकाना

काया माया के नइये ठिकाना, काया माया के नइये ठिकाना।

अहो काया माया के नइये ठिकाना, अहो काया माया के नइये ठिकाना।

 

सब रानियों को लेकर दुर्योधन का समाज कुरूक्षेत्र के मैदान मे जाते हैं। कुरूक्षेत्र के मैदान में जाने के बाद राजा दुर्योधन का पहले तिलांजलि दिया जाता है। सबसे पहले सौ भाई कौरवों का नाम लेकर क्रियाकर्म होता है। तिलांजलि दी जाती है। रागी भैया गुरू द्रोणाचार्य की तिथि होती है। बड़े-बड़े वीर बड़े-बड़े राजा बड़े-बड़े महराजा का नाम ले-लेकर तिलांजलि देते हैं। उस समय महारानी कुंती राजा युधिष्ठिर को कहती हैं। राजा धर्मराज को कहती हैं - धर्मराज। बोलती हैं, कर्ण का भी अंत्येष्टि करो, कर्ण को भी तिलांजलि दे दो बेटा। बोलती हैं कर्ण को तिलांजलि दे दो। कर्ण का क्रियाकर्म करो। उस समय राजा युधिष्ठिर पूछते हैं - माँ। तुम कर्ण के क्रियाकर्म के लिए इतना जोर क्‍यों दे रही हो। महारानी कुंती कहती हैं - बेटा! कर्ण तुम्‍हारा बड़ा भाई है, कर्ण तुम्‍हारा बड़ा भाई है। धर्मराज, जब मैं कुंवारी थी, ऋषि दुर्वासा के माला की परीक्षा ले रही थी कि इस हार के संबंध में कही गई बात सही है या गलत, मैंने भगवान सूर्य देव को याद किया। भगवान सूर्यनारायण साक्षात मुझे दर्शन दिये। धर्मराज, भगवान रवि मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिये। कुन्‍ती नें कहा कर्ण तुम्‍हारा बड़ा भाई है बेटा। यह बात सुनते ही राजा युधिष्ठिर व्याकुल हो गए। राजा युधिष्ठिर कहते हैं - माँ। आज इस बात को तुम मुझे बता रही हो मॉं, वे कहते हैं यह बात मुझे पहले से क्‍यों नहीं बताई। राजा युधिष्ठिर कहते हैं माँ। एक भाई के हाथ से एक भाई की हत्या करा दिया तुमने और आज तुम कह रही हो कि कर्ण तुम्‍हारा भाई है। जाओ आज से मैं समस्‍त त्रिया जाति को श्राप देता हूँ समस्‍त त्रिया जाति को श्राप देता हूँ, राजा युधिष्ठिर कहते हैं कि माँ आज से मैं नारी जाति को श्राप देता हूँ। कोई भी गुप्त बात कोई कितनी भी जरूरी बात होगी रागी। कितनी भी गुप्त बात होगी नारी जाति पचाकर रख नही पायेगी। एक न एक के पास वह जरूर बतायेगी। राजा युधिष्ठिर का श्राप है। नारी जाति को, कितनी भी गुप्त बात होगी भैया एक न एक को वह जरूर बतायेगी। सबका क्रियाकर्म करते हैं और सबके क्रियाकर्म करने के बाद में फिर पांचो भाई पाण्डव वापस आते हैं। चारों भैया सेवक बन कर सेवा कर रहे हैं, समय बीत रहा है। और कुछ दिन बीतने के बाद यह ..

काया रूपी माया का ठिकाना नही है, अहो काया रूपी माया का ठिकाना नही है। थोड़े दिन तक मेरा तुम्‍हारा, तन से कुछ नहीं जाना, काया रूपी माया का ठिकाना नही है। चार दिन ही ये काया सुन्दर है और चार दिन ही ये माया है। चार दिन का ही नाता रिश्‍ता है। सबको छोड़ के जाना है, अहो काया रूपी माया का ठिकाना नही है।

 

 

कुन्ती नंदन महराज युधिष्ठिर। हस्तिना के सम्राट है। रागी भैया एक दिन के बात ये - भगवान ब्यास नारायण जी के फिर आगमन होथे हस्तिनापुर में। राजा धरमराज आसन ले उठ के वेद ब्यास जी के दण्डवत प्रणाम करथे। लान के आसन में बइठारथे अऊ आसन में बइठार के पूजा करथे। भैया राजा धरमराज शोक में ब्याकुल रइथे। कहे द्वारका नाथ। ये राज के लालच में मैं गुरूल मार डरेंव, पिता ल मार डरेंव, भाई बंधु ल मार डरेंव, सकल सगा सहोदर ल मार डरेंव। सारी परिवार के हत्या कर देंव। कहे मोर मन ल संतोष नइ होवथे शांत नइ मिलत हे। रागी भैया। भगवान कथे कि अभी भी भीष्म पितामह बान के सैया म पड़े हे। कुछ ज्ञान के बात सुने बर हे तोर फिर कुरूक्षेत्र में चलथन। रागी भाई। ये ऐसिक पर्व के कथा समाप्त हो करके शांति पर्व की ओर जाथन हम।

कुन्ती नंदन महाराज युधिष्ठिर हस्तिना के सम्राट हैं। रागी भैया एक दिन की बात है - भगवान व्‍यास नारायण जी का हस्तिनापुर में आगमन होता है। राजा धर्मराज आसन से उठ कर वेद व्‍यास जी का दण्डवत प्रणाम करते हैं। लाकर आसन में बैठाते हैं और आसन में बैठा कर पूजा करते हैं। भैया राजा धर्मराज शोक में ब्याकुल रहते हैं। कहते हैं द्वारकानाथ। इस राज्‍य के लालच में मैं गुरू को मार डाला, पिता को मार डाला, भाई को मार डाला, समस्‍त सगे-सहोदर को मार डाला। सभी परिवार जन की हत्या कर दिया। वे कहते हैं मेरे मन को संतोष नहीं हो रहा है, शांति नहीं मिल रही हैं, रागी भैया। भगवान कहते हैं कि अभी भी भीष्म पितामह बाणों की शैया मे पड़े हैं। कुछ ज्ञान की बात सुनने के लिए कुरूक्षेत्र में चलते हैं। रागी भाई, यहॉं से ऐसिक पर्व समाप्त हुआ अब हम शांति पर्व की ओर जा रहे हैं।

 

 

गायिका – प्रभा यादव

छत्तीसगढ़ी श्रुतलेखन एवं हिन्दी  लिप्यांतरण: संजीव तिवारी

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.