रामप्रसाद वासुदेव द्वारा श्रवण कुमार  कथा  गायन | Ramprasad Vasudeva Performing the tale of Shravan Kumar
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रामप्रसाद वासुदेव द्वारा श्रवण कुमार कथा गायन | Ramprasad Vasudeva Performing the tale of Shravan Kumar

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Published on: 07 February 2019

Ramprasad Vasudeva

Ramprasad Vasudeva is a traditional and occupational storyteller from Katghari, Janjgir, Chhattisgarh. He belongs to the Vasudeva community.

 

 

Performance of the tale of Shravan Kumar by Ramprasad Vasudeva in Chhattisgarh, followed by his commentory on the tale. यहाँ रामप्रसाद वासुदेवा द्वारा श्रवणकुमार कथा गायन एवं बाद में कथासार प्रस्तुत किया गया है। पहले कथा का छत्तीसगढ़ी रूप दिया गया है तदुप

                                                   

 

 (छत्तीसगढ़ी)  - पहिली सरवन के भजन गाथौं मैं, अंवतारी माने के गांहू ओकर

ये चंद बासुदेव गोबिंद नरहरि वृंदावन बिहारी बोलो भगवान राधा कृष्‍णचंद की जय

रामचंद्र जी ल ये भगवान धर्मराज के बेला ये भाई जय गंगान

जेने कान कथा श्रवन के सुनावं कउन कथा हरिसचंद मोरे राजा ये जय गंगान

भाई कउन कथा कर्णे के बतावं सात दिने के सुने बतावं जय गंगान

जेला नौ दिने के भागवत कथा ये देवकी बसुदेव के कथा ये जी जय गंगान

भाई एक बरोबर होवय भक्‍त ग कहां तक करौ बरनन ला भाई जय गंगान

जवानी पन ल मोर अंधरी दाई नइ पावै बेटी बेटा के सुख वो दाई जय गंगान

भाई द्वार-बाट कांटा बगरावय भरे सगा ल दै फोरवावय जय गंगान

जब सगा ल कटववावय ब्राम्‍हन साधु चंदन पोंछवाय जय गंगान

जब जउन दोस अंधरी ल लगै जउन दोस अंधवा मोर राजा जय गंगान

भाई कहां पावय बेटा बरदाने एक दिन अंधरी ग अंधवा ल कहय जय गंगान

जब सब घर खेलै बाल-गोपाल अंधरी के कोरवा सून्‍ना तकावय जय गंगान

जब आधा उमर म सुरता करय अउ कहां पावय बेटा बरदाने जय गंगान

भाई सोन मोटरिया रानी धरय गा चांदी म उतारय गा राजा जय गंगान

जे दिन चल जाये गा गंगा जमुना के ढाबा फोरवाए राजा जय गंगान

भाई लख साधु ल ग भोजन करावय भाई लख साधू के धुनि चतरावय जय गंगान

 

(हिंदी)- पहले मै श्रवण का भजन गा रहा हूं, अर्थात उनका अवतारी भजन गाउंगा।

कृष्‍ण चंद वासुदेव गोविंद नरहरि वृंदावन बिहारी बोलो भगवान राधा कृष्‍णचंद की जय

रामचंद्र जी भगवान धर्मराज के समय में भाई जय गा रहा हूं

जिस कान से कथा का श्रवन कर रहे हैं वही हरिश्‍चंद्र की कथा सुना रहा हूं जय गा रहा हूं

भाई कौन सी कथा कर्ण का बताउं सात दिन इसे सुनने के लिए लगेगा उसे बताउंगा जय गा रहा हूं

जो नौ दिन के भागवत कथा मे है और यह देवकी वासुदेव की कथा है जय गा रहा हूं

भाई भक्‍त एक जैसे होते हैं मैं उनका कहां तक वर्णन करूं भाई जय गा रहा हूं

अंधी मॉं कहती है कि जवानी में बेटी-बेटा के सुख को नहीं जान पाई जय गा रहा हूं

भाई दरवाजे और रास्‍ते में कांटा फैला डालती है और अपनो से उसकी लड़ाई हो जाती है जय गा रहा हूं

जब संबंधियों झगड़ती है, ब्राम्‍हन साधु जो चंदन लगाते थे उसे मिटवा देती थी जय गा रहा हूं

इसी का दोष अंधी और अंधा राजा को लग गया जय गा रहा हूं

भाई एक दिन अंधी, अंधा को बोल रही है कि उसे वरदान में बेटा कहां मिलेगा जय गा रहा हूं

सब घर खेल रहे हैं बाल-गोपाल जबकि अंधी की गोदी सूनी दिख रही है जय गा रहा हूं

जब आधी उम्र मे याद कर रही है कि वरदान में बेटा कहां से पांउ जय गा रहा हूं

भाई सोन की गठरी रानी पकड़ती है और चांदी राजा उठाता है जय गा रहा हूं

घर के रक्षित अन्‍न भंडार को फोड़कर उससे अन्‍न प्राप्‍त कर उस दिन गंगा जमुना की ओर जा रहे हैं जय गा रहा हूं

भाई लाखों साधुओं को वे भोजन करा रहे हैं भाई लाखों साधू का वहां धुनि रम रहा है जय गा रहा हूं

 

(छत्तीसगढ़ी) - सरवन कुमार के भजन गा रहा हूं मैं भई

रामचंद्र जी ल भगवान धर्मराज एक बेला रे भाई जय गंगान

जेन ला धान दीसे अंधवा के नामे चंद्रकला अंधरी मोर दाई जय गंगान   

जवानी पन म दाई अंधरी मोर भाई डहर बाट कांटा बगरावय जय गंगान

भाई भरे सगा ल दै फोरवावय मोर सगा ल दै कटवावय जय गंगान

जब जउन दोस अंधरी ल लगै जउन दोस अंधवा मोर राजा जय गंगान

भई कहां पावय बेटा बरदाने एक दिन अंधरी अंधवा ल कहय जय गंगान

जब सुन लव स्‍वामी बचन हमारा सब घर खेलय बाल गोपाले जय गंगान

अंधरी के ग कोरा सुन्‍ना तकावय आधा उमर म सुरता करय अउ जय गंगान

जे दिन कहां पावय बेटा बरदाने एक दिन अंधरी ग अंधवा ल कहय जय गंगान

जब सुन लव हो स्‍वामी बचन हमार अउ सोन मोटरिया अंधरी धरय जय गंगान

जब चांदी मोटरी ग अंधवा ग राजा गा चले जावय ग डगर के राज जय गंगान

भाई गंगा राज गढ़ भोजन करावय लख साधु ल ग भोजन करावय जय गंगान

जे लख साधु के धुनी चतरावय भईया गंगा मई या ल बोलय जय गंगान

मोला एक बंस दे दे गंगा माई एक बंस म जहां जीव जुड़ाय जय गंगान

जइसे नइ तो गंगा म डूब मरिजहंव रे मोर अंधरी ल कोन लय भारे जय गंगान

भाई मोर अंधवा के कोन लय भारे ग गंगा माई बोलत है बात जय गंगान

जब मनुस तन बदन ले बने अउ कहां पावंव बेटा बरदाने जय गंगान

भाई बड़ा गंगा माई सोंच म परय जहय कहंव धरम रहि जाए जय गंगान

जेन ल नहीं कहंव पाप होई जावय पांव फरे इंद्ररोली मंगवावय जय गंगान

भाई एक फल अकास ल देवय एक फल पताल ल देवय जय गंगान

जे दिन एक फल ल शंकर म चढ़ावय एक फल ल गंगा माई ल देवय जय गंगान

जब एक फल ल जे बने त ले ले अंधरी ला देवे भाई जय गंगान

भाई अंचरा लमा के अंधरी झोंकय अउ एक फल ल दोई फोली बनावय जय गंगान

भाई ब्राम्‍हन साधु ल बांट के खावय उई फल ल खाए ले अंधरी गए जय गंगान

भाई दिन दिन अंधरी के देहें गरूवाए कुछ दिने के बीते ले भाई जय गंगान

जब सुन्‍दर बालक जब अवतारे कासी  जी के पंडित बुलवावय जय गंगान

जब पांचाग देखावय नाम धरावय सरवन कुमार जय गंगान

भाई सब दछना बांटय अंधरी ग भाई सब दछना अंधरा ग राजा जय गंगान

जेला टमर टमर गा तेल चुपरावय टमर टमर गा हाफू खेलावय जय गंगान

भाई छोटे पूत्र ल बड़े बनावय पोंस पाल मोर करय जवान जय गंगान

जब एक दिन अंधरी अंधवा ल कहय सुन लव स्‍वामी बचन हमार जय गंगान

जइसे हमर बेटा हो गए सग्‍यान कोई राज म समधी बना लेन जय गंगान

जइसे जगा जगा टीका बगरावय कोई राजा टीका नइ झोंकय जय गंगान

भाई कंचन पुर शहर एक बस्‍ती जहां के राजा केसी सिंग जय गंगान

भाई जेकर बेटी बिद्याबती कइना अउ कोई कथे श्‍यामबती जय गंगान

जे दिन मांघ महीना में मगनी ल मांगय भर फागुन म रचय बिहाव जय गंगान

भाई चइत मास बहु के गउने के बहु रे काजर पोंछावय जय गंगान

जेला नाग कइना के बंधवा बंधवावय पिंयर चलय जय गंगान

भाई जेकर संग सरवन गोहरावय धौंरा बइला म धौरा समान जय गंगान

भाई अरन बरन सोना मोर लादयं अउ कोट चघावय जय गंगान

भाई रेसम बंध पागा ल बांधय लेजय कोस पचासे गा जय गंगान

महाल चघ के कईना मोर देखय आवय सरवन मोर जोड़ी रे जय गंगान

मैं तो अंधरी अंधरा के देखंव गा चाले मैके धरके झांपी निकालय जय गंगान

जब गंगा जमुना के झांपी निकालय मइके तरु के लुगडा ल पहिनाय जय गंगान

भाई कइना जब पहिनै लहर बटोरे अंचरा म लगे चंदा सुरूज अंचरा म लगे जय गंगान

भाई काठा दूई रूपिया ल धरंय गिंजरयं काठा दूई जय गंगान

जब दंउड दंउड कुम्‍हारा के दुकाने जाके कुम्‍हरा ल नता निकालैं जय गंगान

भाई तोला कहत हे कुम्‍हरा गा मोर भईया के मितनहा ल जय गंगान

तैं तो काठा दुई रूपिया ला ले गा दूई रूपिया ल लेले जय गंगान

मोर बर एक ठन खोला बना दे एक म रांधव (अस्‍पष्‍ट) जय गंगान

जेला जमा एक म रांधय निर्मल खीरे ल कुंडरी म भरयं जवाब जय गंगान

जब लक बटलोही वो कैना वो महल म माटी के बरतन का आही काम जय गंगान

जइसे जान सुन जाही सरवन राजा अपन देश ले देही निकाल जय गंगान

भाई बात फोर मोला दिही पिटवाही अइसन सरवन बोलत हे बात जय गंगान

जब बेड़ा कुम्‍हरिन जड़ावय गा हडि़या न जइबे कुम्‍हरा जय गंगान

जइसे गा अपन मइके म महू भाड़ा बनवाहूं वइसे हडिया म अपन लइका जगाहूं जय गंगान

भाई जइसे कुम्‍हरा ल बोलत हें बात ब ड़ा सोंच परे हे कुम्‍हरा ल आज जय गंगान

जब बिंदाबन ले चाक मंगवावय अन धन माटी चघवावय जय गंगान

भईया पहिली चाख ग कुम्‍हरा ह फेंकय गा शिव शंकर के ग मुरती बनावय जय गंगान

जब दूसरी चाख मोर ग कुम्‍हरा ह फेंकय गा एक खंडि दुई खोली बनावय जय गंगान

जब तिसरा चाख मोर कुम्‍हरा फेंकय गा मात पिता के परथी करय जय गंगान

भाई हीरा-मोती के झूला लगावय जा के कदना ल पता देवाए जय गंगान

जब झमन-झमन गा महले गा कइना हडिया देख आनंद है कैना जय गंगान

भाई हंडिया लेके जो कइना जब जावय भूरी भंइंस के गोरस दुहावय जय गंगान

भाई अपन बर रांधय निरमल खीरे अंधरी अंधरा ल अंधना देवय जय गंगान

जेमा सात दिन के बासी मही ल मिलावय अउ देवय जय गंगान

भाई मूठा दुई गोंटी ल मिलावय तरी म भूसा उपर म भूसा जय गंगान

जब देई केला के फोरन देवय झन पूछ जेवन जब करय तइयार जय गंगान

जब आवव सासे वो खा लेवव खीरे आवा ससुर गा खा लेवव खीरे जय गंगान

भाई खोंट-खांट धरती म गिरावय पहिली कंउरा मोर अंधरी खावय जय गंगान

भाई बांगा ल लेके भीतर म जावय वोला खाय नहीं जावय जय गंगान

जब बुढ़ती दांत नहीं रहि जावय कलप कलप अंधरी गा रोवय जय गंगान

जब होए ल बेटा मर जाते गा ये दुख ल नइ पातेंव गा सरवन जय गंगान

भाई यहां के बात ल यहां छोड़व गा सरवन गए हे बंजारा राज गा जय गंगान

जेकर खावत कलेवा जमीन म ग गिरय सरवन ल बड़ा सोंच परे गा जय गंगान

भाई का माता मोर मर हर गे गा का पिता मोर मर हर गे गा जय गंगान

भईया पाछू ले पछवा आगे आघू ले सरवन अघुवा गे जय गंगान

भाई सरवन ल आवन लागे बदन ल अंधवा के देखन लागे जय गंगान

जब मोती महल म अंधरी ल देखय कहां माता पिता मोर जय गंगान

जब तोर संग तोर माता चले गए तोर संग तोर पिता गा राजा जय गंगान

भाई तरवा धर के सरवन गा बईठे गोड़ बंधा गे जय गंगान

जेन हर अंधरी अंधवा ल (अस्‍पष्‍ट) पानी तिपवाय जय गंगान

अंधरी अंधवा ल (अस्‍पष्‍ट) गा आगे (अस्‍पष्‍ट) जावय जय गंगान

भाई ओ बहु के एैब नइ जाये सात दिनो के बासी मही ल जय गंगान

जब अंधी अंधवा ल अंधन ल देवय अपन बर रांधय निर्मल खीर गा जय गंगान

भाई भूरी भंइंस के गोरस दुहावय कपुर मिला के रांधय खीर जय गंगान

जेमा आवव सास वो खा लेवव खीरे ओ आवव ससुर गा खा लेवव खीरे जय गंगान

जब आवव स्‍वामी हो खा लव खीरे तीन ठन थारी म खाना ल हेरय जय गंगान

जब अपन थारी के खाना ल सरवन अंधी अंधवा ल बांट देवय जय गंगान

भाई उई मेर अंधरी बोलत हे बात भाई छै महिना म बेटा खवाए खीर जय गंगान

भाई जइसे रे भाई भरय जवाप बरना रे बात जय गंगान

बोले राधा कृष्‍ण भगवान की जय

 

 (हिंदी) - श्रवण कुमार का भजन गा रहा हूं मैं भाई

रामचंद्र जी को भगवान धर्मराज एक समय बोले रे भाई जय गा रहा हूं

जिसे धान दिये अंधा के नाम चंद्रकला अंधी मेरी मां जय गा रहा हूं   

जवानी अवस्‍था मे अंधी मां रास्‍ते में कांटा फैलाती थी जय गा रहा हूं

भाई सगे संबंधियों में लड़ाई करवा देती हैं और संबंधियों में लडाई करवा देती हैं जय गा रहा हूं

इसी कारण अंधी को दोष लग गया और यही दोष अंधे राजा को भी लग गया जय गा रहा हूं

एक दिन अंधी अंधे को कह रही है कि मुझे वरदान में बेटा कहां मिलेगा जय गा रहा हूं

वह कहती है कि मेरे स्‍वामी मेरी बात सुनिये सब के घरों में बाल गोपाल खेल रहे हैं मेरी गोदी सूनी है जय गा रहा हूं

अंधी की गोदी सूनी है उसे यह आधी उम्र में याद आती है जय गा रहा हूं

जिस दिन अंधी ऐसा अंधे को कहती है जय गा रहा हूं

ऐसा कहती है और अंधी सोन की पोटली पकड़ कर जय गा रहा हूं

अंधा राजा चांदी की पोटली पकड़ कर अन्‍य राज्‍य की ओर जा रहा है जय गा रहा हूं

गंगा राज्‍य में आकर वे सब को भोजन करा रहे हैं जहां लाखों साधुओं को भोजन करा रहे हैं जय गा रहा हूं

वे लाखों साधुओं की धुनी लगवा रहे हैं भईया और गंगा माई को बोल रहे हैं जय गा रहा हूं

मुझे एक वंश दे दे गंगा माई मुझे बस एक बंस दे दो जिससे मेरे हृदय में ठंडक हो जय गा रहा हूं

नहीं तो मै गंगा मे डूब कर मर जाउंगा तब मेरी अंधी का भार कौन लेगा जय गा रहा हूं

भाई मेरे अंधे का भार कौन उठाएगा, गंगा माई बोल रही है जय गा रहा हूं

जब मनुष्‍य तन मिला है तो मुझे बेटा बरदान मे मिलना चाहिए जय गा रहा हूं

भाई गंगा माई बहुत सोंच मे पड़ गई वह सोचती है कि मेरा धर्म रहना चाहिए जय गा रहा हूं

यदि नहीं कहती हूं तो पाप होगा इसलिए इंद्ररोली नाम के फल को मंगवाती हैं जय गा रहा हूं

भाई एक फल आकाया को देती हैं और एक फल पाताल को देती हैं जय गा रहा हूं

जिस दिन एक फल को शंकर मे चढ़ा रही है एक फल को गंगा माई को दे रही है जय गा रहा हूं

जब एक फल को जो अच्‍छा था उसे अंधी को दे रहे हैं भाई जय गा रहा हूं

भाई आंचल को फैला कर अंधी ले रही हैं और एक फल को दो तुकड़ा कर रही है जय गा रहा हूं

भाई ब्राम्‍हण व साधुओं को बांट कर खिला रही है उसी फल को खाने से अंधी गर्भवती हो गई जय गा रहा हूं

भाई दिनों दिन अंधी का शरीर भर रहा है और कुछ दिन बीतने के बाद भाई जय गा रहा हूं

सुन्‍दर बालक का जब जन्‍म होता है तब कांसी के पंडित को बुलवाते हैं जय गा रहा हूं

तब पंचाग दिखा कर बच्‍चे का नाम श्रवण कुमार रखा जाता है जय गा रहा हूं

भाई अंधी सभी को दक्षिणा बांट रही है और अंधा राजा भी सभी को दक्षिणा बांइ रहा है जय गा रहा हूं

बच्‍चे के हर अंग में तेल लगा रही है और अंगों को छू-छू कर हाफू (बच्‍चे को गुदगुदी करना) खेल रही है जय गा रहा हूं

भाई ऐसा करते हुए अंधी के घर में छोटा बच्‍चा बड़ा होता है उसे पाल कर जवान करती है जय गा रहा हूं

एक दिन अंधी अंधे को कहती है मरे वचन को सुनिये स्‍वामी जय गा रहा हूं

जेसे हमार बेटा सग्‍यान हो गया है तो किसी राज्‍य मे समधी बना लेते हैं (इसका विवाह कर देते हैं) जय गा रहा हूं

जैसे ही विभिन्‍न स्‍थानों पर उसके विवाह करने के लिए संदेश दिया जाता है तो कोई भी राजा उसके विवाह के आग्रह को स्‍वीकार नहीं करते हैं जय गा रहा हूं

भाई कंचन पुर शहर नाम के एक बस्‍ती में जहां के राजा केसी सिंग थे जय गा रहा हूं

भाई जिसकी बेटी का नाम बिद्याबती कन्‍या था जिसे कुछ लोग श्‍यामबती भी कहते थे जय गा रहा हूं

मांघ महीने में उससे मगनी मांगते हैं और फागुन के मध्‍य में विवाह रचते हैं जय गा रहा हूं

भाई चैत्र मास में बहु का गौना कराते हैं और बहु के काजर पोंछाने का रश्‍म करते हैं जय गा रहा हूं

जिसके लिये नाग कन्‍या का श्रृंगार किया जाता है और पीली साड़ी पहना कर लाया जाता है जय गा रहा हूं

भाई जिसके साथ श्रवण धौंरा बइला (मटमैला बैल) और धौरा समान (विभिन्‍न प्रकार के समान) के साथ आता है जय गा रहा हूं

भाई कई प्रकार से आभूषण पहन कर और कोट पहन कर जय गा रहा हूं

भाई रेशमी पगड़ी बांध कर पचास कोस से आता है जय गा रहा हूं

महल में चढ़ कर कन्‍या देख रही है मेरा जोड़ी श्रवण आ रहा है जय गा रहा हूं

मैं तो अंधी अंधा के खल को देख रहा हूं मायके के झांपी (बांस की बनी टोकरी जिसमें नव विवाहिता एवं वर के लिए विवाह में उपहार भेजा जाता है) को निकाल रहे हैं जय गा रहा हूं

जब गंगा जमुना के झांपी को निकाल रहे हैं मायके की ओर से आए साड़ी को पहना रहे हैं जय गा रहा हूं

भाई कन्‍या जब पहन रही है जिसके छितराए आंचल में चंद्रमा और सूर्य बना है जय गा रहा हूं

भाई काठा (अन्‍न मापने का लकड़ी से बना पात्र) भर अन्‍न और दो रूपया को पकड़ कर घूम रही है जय गा रहा हूं

जब दौंड दौंड कर कुम्‍हार के दुकान में जा रही है जाकर कुत्म्‍हार से अपनी रिश्‍तेदारी निकाल रही है जय गा रहा हूं

कहती है कुम्‍हार भाई तुम मेरे भाई के मित्र हो जय गा रहा हूं

तुम काठा दुई रूपिया ले लो जय गा रहा हूं

कहती है मेरे लिए एक खोला (खाना बनाने का मिट्टी का पात्र) बना दो उसमें मैं भोजन बनाउंगी जय गा रहा हूं

जिसमें एक में निर्मल खीर बनाउंगी और कुंडरी में जवाब भरती है जय गा रहा हूं

वह कहता है कि महल में बटलोही (चांवल बनाने का कांस का बर्तन) में खाना बनता है वहां मिट्टी का बरतन काम नहीं आता जय गा रहा हूं

यदि श्रवण राजा जान जायेंगें कि मैंनें मिट्टी का बरतन दिया है तो अपने देश से निकाल देंगे जय गा रहा हूं

भाई श्रवण इस बात का पता लगाकर मुझे दंड देंगें ऐसी बात बोल रहा है जय गा रहा हूं

कुम्‍हार कहता है कि जब मेरी पत्‍नी आवा लगायेगी तब हंडी ले जाना जय गा रहा हूं

जैसे अपने मायके मे मै भोजन बनाती हूं उसी प्रकार मिट्टी के बर्तन में मै अपने बच्‍चे को पालूंगी जय गा रहा हूं

भाई इस प्रकार कुम्‍हार को बोल रही है तब आज कुम्‍हार बड़ा सोंच में पड़ गया है जय गा रहा हूं

तब वृंदावन से चाक मंगाता है अन्‍न और धन रूपी मिट्टी को उसमें चढाता है जय गा रहा हूं

भईया पहिली चाक कुम्‍हर जब फेंकता है तो शिव शंकर की मूर्ति बनाता है जय गा रहा हूं

जब दूसरा चाक कुम्‍हार चढ़ाता है तो एक कमरे को विभाजित कर दो कमरा बनाता है जय गा रहा हूं

जब तीसरा चाक कुम्‍हार फेंकता है तो माता पिता को प्रणाम करता है जय गा रहा हूं

भाई हीरा-मोती जड़ा झूला लगाता है जा कर कन्‍या को बताता है जय गा रहा हूं

जब झूमते-झूमते महल में कन्‍या हंडिया को देख कर आनंद है जय गा रहा हूं

भाई हंडिया को लेकर कन्‍या जब जाती है भूरी भैंस का दूध दुहाती है जय गा रहा हूं

भाई अपने लिए निर्मल खीर बनाती है अंधी अंधा को अंधन (चांवल पकाने के लिए गरम किया गया पानी) देती है जय गा रहा हूं

जिसमें सात दिन के बासी मट्ठे को मिलाती है और उन्‍हें देती है जय गा रहा हूं

भाई उसमें दो मुट्ठी कंकड़ को मिला देती है और नीचे में भूसा उपर मे भूसा जय गा रहा हूं

जब केला को बधार देती है तो मत पूछिये भोजन जब तैयार करती है जय गा रहा हूं

आइये सास खीर खा लीजिये आइये ससुर खीर खा लीजिये जय गा रहा हूं

भाई हाथ को चारो तरु घुमा घुमा कर उसे धरती मे गिराती है और पहिला कौर अंधी खाती है जय गा रहा हूं

भाई बर्तन को लेकर भीतर की ओर जाती है उसे भोजन अच्‍छा नहीं लगता वह खा नहीं पाती जय गा रहा हूं

जब बूढ़ी उम्र में दांत नहीं है वह हाय-हाय कह कर रो रही है जय गा रहा हूं

इससे अच्‍छा तो होते ही मेरा बेटा श्रवण मर जाता तो ऐसा दुख तो नही पाती जय गा रहा हूं

भाई यहां की बात को यहां ही छोड़ो श्रवण गया है बंजारा राज जय गा रहा हूं

जिसके खाते हुए कलेवा जमीन मे गिर गया श्रवण बड़ा सोंच में पड़ गया जय गा रहा हूं

भाई क्‍या मेरी माता मर गई क्‍या मेरे पिता मर गए जय गा रहा हूं

भईया जल्‍दी से जल्‍दी श्रवण आता है जय गा रहा हूं

भाई श्रवण आता है और अपने अंधे पिता के शरीर को देखता है जय गा रहा हूं

जब मोती महल मे अंधी माता को खोजता है और कहता है कहां माता पिता मेरे जय गा रहा हूं

तुम्‍हरे साथ ही तुम्‍हारी माता चली गई तुम्‍हारे साथ ही तुम्‍हारे पिता चले गए राजा जय गा रहा हूं

भाई श्रवण सिर पकड़ कर बैठ गया पैर बंध गया जय गा रहा हूं

जो अंधी अंधे का बढि़या सेवा करता था जय गा रहा हूं

अंधी अंधा को दुख हो रहा है किन्‍तु कन्‍या वही काम कर रही है जय गा रहा हूं

भाई उस वघु का एैब जा ही नहीं रहा है सात दिनो के बासी मट्ठे को दे रही है जय गा रहा हूं

जब अंधी अंधे को अंधन को दे रही है और अपने लिये निर्मल खीर पका रही है जय गा रहा हूं

भाई भूरी भैंस के दूध को दुहवा कर कपुर मिला कर खीर पका रही है जय गा रहा हूं

उसके बाद आवो सास खीर खा लो आवो ससुर खीर खा लो जय गा रहा हूं

जब आवो स्‍वामी खा लो खीर तीन थाली मे खाना निकाल रही है जय गा रहा हूं

जब अपने थाली का खाना श्रवण अंधी अंधा को बांट कर दे रहा है जय गा रहा हूं

भाई वहीं अंधी बोल रही है छ: माह मे बेटा खीर खिला रहे हो जय गा रहा हूं

भाई जैसे ही बात पता चलता है वह पूछता है जय गा रहा हूं

बोले राधा कृष्‍ण भगवान की जय

 

 (छत्तीसगढ़ी) - फेर वो कईना ह बोलही के चल सरवन तै मोर मइके जाबो कइके (अस्‍पष्‍ट) करवाही भेलवा कउडी नाक म गूंथही सूपा ठठरा ल धरवा के फेर असासून जंगल म निकालही। फेर ओ मेर निकाल के फेर कइही जा झूलबे बर पीपर डाल अउ उल्‍टा मुख देखबे संसार। तो आज काल बर चमर गिदली बने हे। सरवन राजा के स्‍त्री ह वोती ले फिर फिरही फेर कांवर गंथाही ताम बढ़ई घर सरवन जा के अउ कांवर गंथा के फेर सरवन राजा फेर अंधी-अंधा ल तीर्थ घुमाही।

 (हिंदी) -  किन्‍तु वह कन्‍या बोलेगी कि चलो श्रवण तुम मेरे मायके जायेंगें कह कर सजेगी नाक में नथनी पहनेगी, सूपा आदि को पकड़ कर घने जंगल मे निकलेगी। फिर उस जगह वह कहेगी जावो झूलो बड़ पीपल के डंगाल और उल्‍टा मुख देखोगे संसार। तो आज जो चमगादड़ है वो वही है। श्रवण राजा की स्‍त्री फिर उधर से वापस होगी फिर कांवर ताम बढ़ाई के घर जाकर श्रवण कांवर बनवायेगा फिर श्रवण राजा अंधी-अंधा को तीर्थ घुमायेगा। 

      

 

 (छत्तीसगढ़ी) - रामचंद्र बेला भगवान धर्मराज कै बेला रे भाई जय गंगान

जब छै महीना म खवाए खीर ग जइसे अंधरी गा बोलय गा बात जय गंगान

जब वो थारी के ग खाना ल सरवन राजा गा खावन लागय जय गंगान

जब वोइ मेर कइना हर बोलत हे बात चल कइना तोर मइके वो जाबो जय गंगान

भाई सात ले जावय भेलवा के कउड़ी ल नाक म गूंथय जय गंगान

टूटहा खरहारा ल धरवा के रे भाई खोरे ल बहरवावय जय गंगान

जब अइसा सुन्‍दर जंगल के बीचे वोइ मेर सरवन बोलत हे बात जय गंगान

वो बोलय जा झुलबे बर पीपर वो उलटा मुख देखबे संसार जय गंगान

भाई आज काल के चमर गिधली बने हे भाई सरवन राज के स्‍त्री ये जय गंगान

जब यहां के बात ल यहां छोड़व गा कहां तक ला बरनव मोर भाई जय गंगान

जब चंदन लकड़ी ल सरवन कटवावय साम बढ़ई मेर सरवन जावय जय गंगान

जेला सुन ले भाई बढ़ई के जात गा सरवन जय गंगान

बीच-बीच रखउ कमल कर फूले थारा माता ल बइठारंव ग जय गंगान

जेला एक बार पिता अंधवा ल माता ल चारो धाम दरसन म घुमाव जय गंगान

भाई कांवर गंथा के सरवन जावय जी एक पार माता ल बइठाए जय गंगान

जब एक पार पिता अंधवा ल चारो धाम पाताल घुमावय जय गंगान

जब एरनाबांधा जंगल के बीचे अंधरी माता बोलय गा बात जय गंगान

भाइ कहय पिता अंधरा सरवन सुन ले बेटा मोर बात जय गंगान

जब बड़ा प्‍यास अंधरी ल मोर लागत हे बड़ा प्‍यास राजा अंधवा ल मोर जय गंगान

जब चलके सरवन जल ल पियाबे अइसे अंधरी तब बोलत हे बात जय गंगान

राजा सरवन मोर किला बंधावय तुमड़ी ल पकड़ के हाथ जावय जय गंगान

भाई जल ल खोजे बर राजा सरवन कुमार सरजू नदी के तिर म जावय जय गंगान

जिहां राजा दसरथ ठीया बनावय छै महिना के गड्ठा कोडे जय गंगान

भाई दाबा मार मोरे दसरथ बईठे दोनो नयना म टोपा लगाए जय गंगान

भाई जोड़ा बांध दसरथ बइठे सगरी बांध सरवन पहुचे जय गंगान

अरे ना जावय गा मनेसे घाट हरिना के घाट मोरे जल ल भरय जय गंगान

भाई माड़ी भर जल म पेलय बोरंय तुमड़ी ल जय गंगान

भाई बुड बुड गा तुमड़ी मोर बाजय सबद आ गे दसरथ के काने जय गंगान

सब्‍दभेदी बान दसरत मारैं का तो सरवन मोर गिरे जावंय जय गंगान

भाई राम सब्‍द जब दसरत सुनै दूनों नैना के टोपा ल खोलय जय गंगान

दूरिहा ले देखन लागय लकठा ले देखय भांचा ये सरवन कुमार जय गंगान

भाई भर गोदी म गलइया गा लगावय गिरे सरवन बोले गा बात जय गंगान

जेन हात हत्‍यारा रे पापी ममा रे मोर जीवे ले लेस जय गंगान

जा माता पिता मोर मरथे गा पियास पाछू बान ल हेरबे गा ममा जय गंगान

तै तो एई तुमड़ी म ले जाके ममा ले जा जल ल पिया दे जय गंगान

वोतका बात ल सरवन सुनय वोतका बात ल दसरत सुनय जय गंगान

जब वो तुमड़ी म ग जल ल लेके खोजत खोजत दसरत जावय जय गंगान

भाई चुपे जल ल अंधरी ल पिलाबै चुपे जल ल मोर अंधवा गा राजा जय गंगान

जइसे नहीं जल ल मोर अंधरी नइ पीयै वैसे जल ल अंधरा नइ मोर पीवै जय गंगान

जइसे लहुटत घरी बोलत हे बात कउन हो बाबू तुम हो जय गंगान

भाई कउन लाग मोर सरवन बेटा चुपे जल ल अंधरी ला पिलात हस जय गंगान

जब चुपे जल ल अंधवा मोरे राजा तोरे नाम ल देबे बताय जय गंगान

जब अंधरी तोरे जल ल पियय नहीं अंधरा तोरे जल ल पियय नहीं जय गंगान

भाई बड़ा सोंच मोर दरसथ ल परे हाथ जोड़ मोर बोलत हे बात जय गंगान

जब भाई राजा दसरथ गा दीदी मिरगा धोखा म बान चलायेंव जय गंगान

भाई सरवन गिरे हे सागर के करारे वो अतका बात ल अंधरी सुने वो जय गंगान

जब ओतका बात ल अंधवा गा राजा कलप कलप अंधरी गा रोवय जय गंगान

जब कलप कलप दुख गा अंधवा राजा ये एक ठन आंखी एक ठन कांन जय गंगान

मैं तो कामा अंधरी गा राखंव गा प्रान जेला दसरथ बान चलाये जय गंगान

भाई जउन जगा तै बान लगाये वोई जगा चल लेचल रे भाई जय गंगान

जब राजा दसरथ ठिहा बनावय कांवर ल दसरथ बोहि के लेजय जय गंगान

भाई सागर पार मोर कांवर उतारय जउन जगा मोर बान लगाय जय गंगान

जब वोई जगा लेगन लागय टमर टमर के बान खोजन लागय जय गंगान

ये टमर टमर के करय बिलाप सरवन बिना हम का जीबो जय गंगान

भाई सरवन बिना गा राजा राम बहुते दुख पावय गा जय गंगान

जे दिन चउदा बरस राम बन जाही सुन्‍ना म दसरथ छोड़बे परान जय गंगान

भाई जइसे अंधरी गा दिये सराप जइसे अंधरा दिये सराप जय गंगान

जब चंदन लकड़ी ल जब कटवावय सरव न राजा बर चिता बनावय जय गंगान

भाई कई गा घड़ा घिवे ल रिकोवय आगी लगावय राजा अंधरा गा जय गंगान

जब ओई मेर अंधरी संकलप होवय ओई मेर अंधरा संकलप होवय जय गंगान

जब सहस धार राजा दसरथ गा गंगा माई रोवय जय गंगान

जेकर कहां तक अवरदा रे भाई कहां तक सुनावंव जय गंगान

बोल राधा कृष्‍ण भगवान की जय

 

 

(हिंदी) - रामचंद्र के समय में भगवान धर्मराज के समय में रे भाई जय गा रहा हूं

जब छ: महीने बाद खीर खिलाये हो यह बात अंधी बोल रही है जय गा रहा हूं

जब वह थाली के भोजन को श्रवण राजा खाने लगता है जय गा रहा हूं

तब वहीं पर कन्‍या बोल रही है चलो कन्‍या तुम्‍हारे मायके जायेंगें जय गा रहा हूं

भाई साथ में ले जा रहे हैं भेलवा के कउड़ी को नाक में गूंथ रही है जय गा रहा हूं

टूटे हुए झाड़ू को पकड़ा कर गली का झाड़ू लगवा रहा है जय गा रहा हूं

जब इतना सुन्‍दर जंगल के बीच पहुच कर वहीं पर श्रवण बोलता है जय गा रहा हूं

वह बोल रहा है जावो झूलो बरगद पीपल में उलटा मुख करके संसार को देखो जय गा रहा हूं

भाई आज जो चमगादड़ है वह श्रवण राज की स्‍त्री है जय गा रहा हूं

जब यहां की बात को यहीं छोड़ो कहां तक वर्णन करूं मेरे भाई जय गा रहा हूं

जब श्रवण चंदन की लकड़ी कटवा कर साम बढ़ाई के पास जाता है जय गा रहा हूं

उसे कहता है कि सुनो भाई बढ़ाई जय गा रहा हूं

बीच-बीच में कमल का फूल बनाना मेरी माता को जिसमें बैठाउंगा जय गा रहा हूं

जिसमें एक बार अंधे पिता और अंधी माता को चारो धाम दर्शन कराउंगा जय गा रहा हूं

भाई कांवर बनवाकर श्रवण एक तरफ माता को बैठा कर जा रहा है जय गा रहा हूं

एक तरफ अंधे पिता को बैठाकर चारो धाम घमाने निकला है जय गा रहा हूं

जब एरनाबांधा जंगल के बीच अंधी माता बोलती है बात जय गा रहा हूं

अंधा पिता कहता है मेरी बात सुनो बेटा श्रवण जय गा रहा हूं

अंधी मां को बहुत प्‍यास लगी है और अंधे पिता को भी बहुत प्‍यास लगी है जय गा रहा हूं

श्रवण हमें जल पिला दो ऐसा अंधी बोलती है जय गा रहा हूं

राजा श्रवण किला बंधा कर तुमड़ी (लौकी फल के सूख जाने के बाद अंदर से उसके गूदे को साफ कर उसे पानी रखने के लिए बनाया गया पात्र) को हाथ में पकड़ जाता है जय गा रहा हूं

पीने लायक जल खोजने के लिए राजा श्रवण कुमार सरयु नदी के किनारे जाता है जय गा रहा हूं

जहां राजा दसरथ शिकार करने के लिए छ: माह से गड्ठा खुदवा कर ठीया बनाये हैं जय गा रहा हूं

भाई छुपकर दसरथ बैठे हैं और दोनों आंख में पट्टी बांध लिये हैं जय गा रहा हूं

भाई दसरथ पूरी तैयारी से वहां मचान में छुप कर बैठे हैं तभी श्रवण पहुंचता है जय गा रहा हूं

वह मनुष्‍य लोगों के घाट में नहीं जाता वह हिरण के घाट में जाकर जल भरने लगता है जय गा रहा हूं

भाई घुटने भर पानी में घुसकर तुमड़ी में पानी भरने के लिए जब पानी में डुबोता है जय गा रहा हूं

भाई तुमड़ी से बुड बुड की आवाज आती है जो दसरथ के कानों में पड़ती है जय गा रहा हूं

दशरथ सब्‍दभेदी बाण मारता है जो श्रवण को लगती है और वह गिर जाता है जय गा रहा हूं

वह गिरते हुए राम कहता है, जब दशरथ यह सुनता है तो दोनों आंख की पट्टी खोलता है जय गा रहा हूं

दूर से देखता है फिर पास आता है, देखता है  यह तो मेरा भांजा श्रवण कुमार है जय गा रहा हूं

भाई उसे गोदी में उठा कर गले से लगाता है श्रवण बोलता है जय गा रहा हूं

हाय हत्‍यारा पापी मेरे मामा तुमने मेरा प्राण हर लिया जय गा रहा हूं

मेरे मां पिता प्‍यास मर रहे हैं उन्‍हें पानी पिला उसके बाद मेरे छाती से बाण निकालना जय गा रहा हूं

मामा तुम इसी तुमड़ी मे ले जाकर जल पिया दो जय गा रहा हूं

उस बात को श्रवण कहता है उसी बात को दशरथ सुनते हैं जय गा रहा हूं

जब उस तुमड़ी मे जल लेकर खोजते खोजते दशरथ जाता है जय गा रहा हूं

वह जल को चुप अंधी को ल पिलाने का प्रयास करता है अंधे को भी प्रयास करता है जय गा रहा हूं

अंधी जिस प्रकार जल नहीं पीती उसी प्रकार अंधा भी जल नहीं पीता जय गा रहा हूं

वापस लौटने समय वो बोल रहे हैं तुम कौन हो बाबू जय गा रहा हूं

भाई तुम मेर बेटे श्रवण के कौन हो जो चुप होकर अंधी को जल पिला रहे हो जय गा रहा हूं

ऐसे ही चुप होकर मेरे अंधे राजा को जल पिला रहे हो तुम अपना नाम बता दो जय गा रहा हूं

ना अंधी तुम्‍हारे जल को पीयेगी ना ही अंधा तुम्‍हारे जल को पीयेगा जय गा रहा हूं

भाई दशरथ बड़ी सोंच में पड़ गया हाथ जोड़ कर बोल रहे हैं  जय गा रहा हूं

बहन मैं राजा दसरथ हूं गृग के धोखे में बाण चलाया हूं जय गा रहा हूं

श्रवण सागर के किनारे गिर गया, इतना सुनते ही अंधी जय गा रहा हूं

इतना सुनते ही अंधा राजा और अंधी विलाप करके रोने लगे जय गा रहा हूं

जब विलाप करके दुखी हो रहे हैं अंधा राजा कि श्रवण हमारा एक आंख एक कान था जय गा रहा हूं

मैं अंधी कैसे अपने प्राणों को बचाउं दसरथ नें मेरे बेटे पर बान चला दिया है जय गा रहा हूं

भाई जहां तुमने बाण लगाये हो उसी जगह पर हमें ले चलो भाई जय गा रहा हूं

जब राजा दशरथ ठिहा बना ता है और कांवर उठा कर उन्‍हें ले जाता है जय गा रहा हूं

भाई सागर के किनारे कांवर को उतारता है जहां बाण लगा है जय गा रहा हूं

जब उसी जगह पर लेजाता है हाथ में टटोल-टटोल कर बाण को खोजने लगते हैं जय गा रहा हूं

ये टटोल-टटोल कर विलाप कर रहे हैं श्रवण के बिना हम क्‍या जीयेंगें जय गा रहा हूं

भाई बिना श्रवण हम जैसे दुख पा रहे हैं तुम भी बिना राम के बहुत दुख पाओगे जय गा रहा हूं

जब चौदह बरस के लिए राम वन जायेगा उसके दुख में दशरथ तुम प्राण छोड़ दोगे जय गा रहा हूं

भाई जिस प्रकार अंधी ने श्राप दिया उसी तरह अंधे नें श्राप दिया जय गा रहा हूं

जब चंदन लकड़ी को कटवा कर राजा श्रवण के लिए चिता बनाते हैं जय गा रहा हूं

भाई कई घड़ा घी उसमें डालते हैं और अंधा राजा अग्नि संस्‍कार करते हैं जय गा रहा हूं

तब वहीं पर अंधी और अंधा अपना प्राण त्‍याग देते हैं जय गा रहा हूं

तब सहत्र धार से गंगा मां रोती है और राजा दसरथ भी रोता है जय गा रहा हूं

जिसकी उम्र कहां रे भाई कहां तक इस कथा को सुनाउं जय गा रहा हूं

बोल राधा कृष्‍ण भगवान की जय

 

यहाँ रामप्रसाद वासुदेवा से साक्षात्कार प्रस्तुत किया गया है। -

प्रश्न  - -आप ये श्रवण कुमार की कथा कब सुनाते हैं किनको सुनाते हैं इसे सुनाने से लोगों को कोई लाभ होता है ?

राम प्रसाद वासुदेव ये श्रवण गीता की कहानी है। सब लोग सुनते हैं। राखी का समय जब आता है तब राखी के समय ज्ञवण कुमार की गाथा बहुत सुनी जाती है।

प्रश्न  -  कौन से त्‍यौहारों पर लोग इसे ज्‍यादा सुनते हैं या आप बिना त्‍यौहारों के ऐसेई सुनाते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव – हां, भाई जो भजन को सुने रहते हैं वे ध्‍यान लगा कर सुनते हैं। आप लोगों से तो झूठ नहीं मारूंगा मैं। मैं इसी प्रकार भजन गाते हमेशा घूमता हूं। मेरे आस पड़ोस मेरे मां बाप हैं अपने बस्‍ती मोहल्‍ले मे जाता हूं और भगवान का भजन गाता हूं। कंवरी कमंडल (बांस की बनी कमंडल जैसी टोकरी) लेकर भजन करता हूं और वे अपने अनुसार से दान दक्षिणा देते है। ऐसा नहीं है कि गाय बछिया (मादा गया का बच्‍चा/सदघ्‍प्रसूता गाय) या सोना, चांदी, कांस, पीतलख्‍ छाकड़ा-बस्‍ता (अन्‍य सम्‍पत्ति) देवें हां सूपा (चावंल साफ करने का बांस से बना पात्र) भर धान देते हैं सूपा भर चांवल देते हैं उसके उपर मे जो भी दान देते हैं उसे स्‍वीकार करते हैं।

    

प्रश्न  - ये जब कोई त्‍यौहार आता है जैसे राम नवमी आता है?

राम प्रसाद वासुदेव हम तीन महीना ज्‍यादा सक्रिय रहते हैं। अगहन, कार्तिक से शुरू होता है, कार्तिक, अगहन, पौस और मांघ। चार महीना हम लोगों का भजन ज्‍यादा चलता है।

 

प्रश्न  - कौन जाति के लोग ज्‍यादा सुनते हैं?

राम प्रसाद वासुदेव – सब जाति के लोग सुनते हैं।

 

प्रश्न  - कोई भजन कोई जाति सुनती हो ऐसा?

राम प्रसाद वासुदेव –  नहीं, सब जाति के लोग सुनते हैं।

 

सहपीडिया - ये क्‍या कथा है थोड़ा बतायें ?

राम प्रसाद वासुदेव – यह श्रवण की कथा है, भागवत में जो श्रवण का कथा निकलता है वही है। कर्ण का भी गाते हैं, जो देवी भागवत में है। हरिश्‍चंद्र का गाते हैं जो देवी भागवत की बात है। कृष्‍ण अवतारी गाते हैं वह भी भागवत मे आता है।

  

प्रश्न  - क्‍या ये कहानियां किसी किताब में से पढ़ कर याद की हैं या .. ?

राम प्रसाद वासुदेव –  पुरखों से वाचिक परंम्‍परा से आया है। जिनको कला में रूचि रही उन्‍होंनें इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया आज कल के बच्‍चों को इसमें रूचि कम है अब यह लगभग विलुप्ति के करगार में है।

 

प्रश्न  - किसी किताब में से इसे नहीं देखा है ?

राम प्रसाद वासुदेव – मैंनें इसे किसी किताब में नहीं पढ़ा है, हम पारंपरिक रूप से भजन कीर्तन करते आ रहे हैं।

 

प्रश्न  - आपने किनसे सीखा, पिताजी से सीखा ? 

राम प्रसाद वासुदेव – हॉं, हॉं। पिताजी और भईया से सीखा हूं। हमारे भईया की अभी कुछ दिन पहले ही मृत्‍यु हुई।

 

प्रश्न  - तो आपके मतलब वंश में शुरू से यही कहानी कहते हैं

राम प्रसाद वासुदेव –  हां यही कहानी कथा गाते आ रहे हैं।

 

प्रश्न  -   मतलब आपके पिताजी उनके पिताजी..

राम प्रसाद वासुदेव हॉं, हॉं पुरखों से पारंपरिक रूप से आया है।

 

प्रश्न  -   तो यहां पे छत्‍तीसगढ़ में जो बसदेवा हैं वे कहां-कहां रहते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव यहां बसदेवा तो बहुत जगह हैं, यहां आस-पास में भी हैं। यहां नावातारा, लिमतरी, रायगढ़,  गाडापाली, बांधाखार, नुनेरा, काठाकोनी, चौरेंगा, चौरेंगा-बछेरा,  दुधिया नवांगांव, रायपुर, भाठापारा, महासमुंद, पिथौरा  आदि स्‍थानों में फैले हैं।

 

प्रश्न  - तो ये एक ही होते हैं या वासुदेव में सब अलग अलग होते हैं

राम प्रसाद वासुदेव – हॉं, एक ही होते हैं। छत्‍तीसगढ़ में रहने वाले सभी बसदेवा एक ही जाति के है।

 

प्रश्न  - सारे एक ही होते हैं इनमें कोई अलग-अलग नहीं होता ?

राम प्रसाद वासुदेव छत्‍तीसगढ़ में रहने वाले सभी बसदेवा एक ही जाति के है।

 

प्रश्न  - और सब यही काम करते हैं

राम प्रसाद वासुदेव हॉं, ज्‍यादातर यही काम करते हैं और जिन्‍हें यह काम पसंद नहीं आता तो वे अन्‍य काम भी कर लेते हैं।

 

प्रश्न  - इस कटघरी गांव में कितने वसुदेवा हैं

राम प्रसाद वासुदेव – यहां तो हम चार-पांच घर के हैं।

 

प्रश्न  - और वो चारो-पांचों घर यही काम करते हैं

राम प्रसाद वासुदेव – हां सभी यही काम करते हैं, अभी वे सभी काम के लिए बाहर निकल गए हैं।

 

प्रश्न  - कितने दूर-दूर तक चले जाते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव –  रायपुर की ओर या मल्‍हार की ओर इतने ही आस-पास में जाते हैं।

 

प्रश्न  - एक दिन में ही लौट के आ जाते हैं या कई कई दिन रहते हैं?

राम प्रसाद वासुदेव –  मैंनें पहले ही आपको बताया है कि हम चार महीने के लिये निकलते हैं। हम कातिक, अगहन, पौस, मांघ। मांघ तक रहते हैं फिर होली त्‍यौहार मनाने फागुन मे घर आते हैं।

 

प्रश्न  - अकेले जाते हैं या कोई मंडली बना कर जाते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव पूरे परिवार सहित निकलते हैं, क्‍योंकि हमारे साथ भोजन पकाने वाला भी तो चाहिये।

 

प्रश्न  - जहां जाते हो आप लोग वो निश्चित जगहें होती है या.. ?

राम प्रसाद वासुदेव  हॉं, जान-पहचान के स्‍थान में ही जाते हैं। हमारे पुरखे जिन गावों में जा रहे हैं वहीं जाते हैं।

 

प्रश्न  - अच्‍छा तो आपके पुरखों से जा रहे हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव –  हॉं, पुरखों से जा रहे हैं।

 

प्रश्न  - दो अलग-अलग लोग हैं वे अपने-अपने गांव में जाते हैं?

राम प्रसाद वासुदेव नहीं, एक गांव में सभी लोग जाते हैं। गांव में जाकर अलग-अलग लोग अलग-अलग घरों में घूमते हैं।

 

प्रश्न  - अच्‍छा गांव वही है लेकिन घर अलग-अलग हैं?

राम प्रसाद वासुदेव  हॉं, ऐसा कोई बंधन नहीं होता एकी घर में दूसरा भी चला जाता है। क्‍योंकि सभी जानते हैं कि हमारे पुरखे इसी प्रकार भजन करने आते हें। जैसे मेरा पुत्र भी जाता है, उसका पुत्र भी जायेगा। बच्‍चे जब घरों को देखे रहेंगें तभी वे आगे उस जगह पर जा सकेंगें। इस प्रकार से हम पुरखों से इस परम्‍परा का निर्वहन करजे आ रहे हैं।

   

प्रश्न  - आप लोगों के कई पीढि़यों से ऐसे कर रहे हैं तो आप लोगों के ऐसे जजमान टाईप बन जाते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव  हां।

 

प्रश्न  - उनकी भी कई पीढियां.. ?

राम प्रसाद वासुदेव  हॉं, मानते आये हैं, हॉं।

 

प्रश्न  - आप कभी उन पीढि़यों के बारे में भी कुछ गाते हो या केवल भजन ही गाते हो ?

राम प्रसाद वासुदेव  बस भजन ही गाते हैं, भजन ही गा रहे हैं रामजी।

 

प्रश्न  - उनके वंश के बारे में.. ? 

राम प्रसाद वासुदेव – उनके वंश के संबंध मे तो नहीं गाते,  हमें उनके वंश से कोई लेना-देना नहीं है।

 

प्रश्न  - तो आप लोग जाते हो जब शादी-वादी या ऐसे ही कुछ होता है तब बुलाते हैं क्‍या वे लोग.. ?

राम प्रसाद वासुदेव –  नहीं, नहीं। साधारण दिन मे भी जाते हैं, शादी हुई हो तब भी जाते हैं और किसी की मृत्‍यु हुई है तब भी जाते हैं, छट्ठी हो तब भी जाते हैं। हॉं।

 

प्रश्न  - यानी आप उन लोगों के मरनी-छठी में जाते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव –  हम उसी समय में नहीं जाते जब कार्यक्रम हो जाता है उसके बाद जाते हैं।

 

प्रश्न  - तो वो लोग कुछ दान-दक्षिणा देते हैं?

राम प्रसाद वासुदेव –  हां दान दक्षिणा देते हैं।

 

प्रश्न  - कौन- कौन सी कथायें गाते हैं आप लोग?

राम प्रसाद वासुदेव – अभी ये जो श्रवण का भजन गाया हूं, कर्ण का भजन गाता हूं,  हरिश्‍चंद्र का,  कृष्‍ण अवतारी गाते हैं। इसी प्रकार के भजन हम लोग गाते हैं।

 

प्रश्न  - बस यही गाते हैं? 

राम प्रसाद वासुदेव हां यही भजन ज्‍यादा गाते हैं बाबूजी, जो भागवत से जुड़ा हो ऐसा धार्मिक भजन।

 

प्रश्न  - आप लोग कौन जाति में आते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव –  वासुदेव।

 

प्रश्न  - ये वासुदेव किसमें आते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव –  वसुदेव। भगवान जन्‍म लिये भगवान देवकी के कोंख से नंद बाबा के घर पलना झूले हैं, चरित किये हैं।

 

प्रश्न  - उन्‍हीं के वंशज हो आप लोग?

राम प्रसाद वासुदेव –  हां उन्‍हीं के वंश हैं।

 

प्रश्न  - आपका कोई तीर्थस्‍थल है, आप लोगों के पूर्वजों का कोई स्‍थल है जहां आप जाते हैं?

राम प्रसाद वासुदेव  हम लोगों का पूर्व स्‍थल तो वही वृंदावन-मथुरा ही है। हमारे पुरखों का जन्‍म उसी वृंदावन-मथुरा में हुआ था।

 

प्रश्न  - उधर कभी गए हो आप?

राम प्रसाद वासुदेव –  मैं तो घूम चुका हूं।

 

प्रश्न  - कोई ऐसा भी तीर्थ है जहां कि हर बसदेवा को जाना पड़ेगा साल में एक बार या कभी.. ?

राम प्रसाद वासुदेव –  नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है बाबूजी। नियम नहीं है और सभी भक्त नहीं होते बाबूजी। सभी भक्त नहीं होते क्‍योंकि सौ मे एक सती और कुल मे एक भागीरथी होता है जिसके दम पे आज गंगा प्रगट है। इसी तरह  सभी के पास कला नहीं होता।

 

प्रश्न  - आप लोग क्‍या कृष्‍ण जी की भक्ति करते हो ?

राम प्रसाद वासुदेव – भक्ति तो हम कृष्‍ण देव का करते हैं बाबूजी, कृष्‍ण ही हमारे इष्‍ट देव हैं। नंद बाबा और जो ग्‍वाला हैं उनके भी इष्‍ट देव कृष्‍ण हैं और हम बासुदेव लोगों के इष्‍ट देव भी कृष्‍ण हैं। .. और देवों से भी सबसे बड़े महादेव हैं।

 

प्रश्न  - जो ये यादव लोग हैं जो गाय चराते हैं तो उनके साथ भी कोई आपका वो रहता है ?

राम प्रसाद वासुदेव –  भगवान कृष्‍ण, वसुदेव-देवकी के गर्भ में जन्‍म लिये हैं और जो चरित किये वह गोकुल में किए हैं।

 

प्रश्न  - तो क्‍या आपके छोटे भाई मानते हो अहीर को ?

राम प्रसाद वासुदेव  मौसी-बड़ी के भाई हैं हम उनके।

 

प्रश्न  - आप बड़ी के हैं और वे मौसी के बेटे हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव –  हॉं।

 

प्रश्न  - तो उनके यहां भी जाते हो ?

राम प्रसाद वासुदेव –  हॉं, वे हमें और ज्‍यादा मानते हैं।

 

प्रश्न  - उनका कोई त्‍यौहार होता है तब जाना पड़ता है आपको ?

राम प्रसाद वासुदेव – नहीं हम अपने सीजन में ही निकलते हैं बाबूजी। हम चार महीना बाहर निकलते हैं उसके बाद भी यदि रोजी-रोटी की समस्‍या आई तो आस-पास भी घूमते हैं।

 

प्रश्न  - रायपुर के आस-पास के जो केवट लोग होते हैं वे घरों में चित्र बनाते हैं उन लोगों से आपका कोई संबंध है ? 

राम प्रसाद वासुदेव नहीं, संबंध तो नहीं है। वे जो केवट लोग चित्र बनाते हैं वे केवट नहीं भाट हैं। वे भाट हैं ये पास के ही गांव देगांव हिर्री के हैं। सब जाति के भाट मिलते हैं बाबूजी।

 

प्रश्न  - वो भाट ही चित्र बनाता है जाकर ?

राम प्रसाद वासुदेव हॉं, भाट लोग बनाते हैं,  केंवटों के घर जाकर जो कृष्‍ण-राम का चित्र बनाते हैं। अधर देगांव, हिर्री, मस्‍तूरी ब्‍लॉक मे रहते हैं।

 

प्रश्न  - वो चित्र बनाने से दान लेते हैं या भजन गाने से दान लेते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव – नहीं,  मेरे ख्‍याल से वे भजन नहीं गाते हैं लेकिन उनका कोई बाना (कोई सामाजिक उद्देश्‍य) होता है जैसे अभी कोई भाट आया था उसका बाना था।

 

प्रश्न  - अच्‍छा वो भी बाना पे गाता है ?

राम प्रसाद वासुदेव –   हां।

 

 

(छत्तीसगढ़ी) -

श्रीचंद नरहरी बोलो राधाकृष्‍ण भगवान की जै

रामचंद्र बेला भगवान धर्मराज इक बेला रे जय गंगान

सात दिन मोर सुने सताई नौ दिनो के मोर भगवत पोथी जय गंगान

जेन सुन्‍दर बदन तैं ह हासत करलेबे दाने जय गंगान

भाई लेत देत तैं भाई कहां तक ले बररन किया जय गंगान

भाई सत्‍य धर्म के खातिर राजा एक नगर म बेचाए जय गंगान

जेन ल हरिसचंद गा राजा रहय तारावती ग रानी कहाय जय गंगान

भाई सत्‍य धर्म के कारन गा कासी नगर म गए हे बेंचाय जय गंगान

भाई हरिसचंद गा राजा रहय तारावती ग रानी रहाय जय गंगान

जेने तोरे कस गा भाई का चांदी का सोने के भंडार रहाय जय गंगान

जेने गाय भंइस के सब सेवा बजावय अन धन भरे रहाय जय गंगान

प्रेम लगा के कर लेबे दाने पुन्‍य मले अउ पुरखा तर जाए जय गंगान

दया धरम के आवय काम कहां तक ल बरनव जय गंगान

जेने सत्‍य धर्म ल तन म बसावय गा धर्म ल मानय जय गंगान

मोरे कउन कथा करने के बतांवव कउंने कथा हरिसचंदे जय गंगान

 

 (हिंदी) - श्रीचंद नरहरी बोलो राधाकृष्‍ण भगवान की जै

रामचंद्र बेला भगवान धर्मराज इक बेला रे जय गा रहा हूं

सात दिन तक सताई सुने नौ दिनो तक भागवत पोथी सुने जय गा रहा हूं

जो तुम सुन्‍दर हंसते हुए दान कर लोगे जय गा रहा हूं

भाई लेते देते रहो तुम भाई मैं कहां तक वर्णन करूं जय गा रहा हूं

भाई सत्‍य धर्म के कारण राजा एक नगर मे बिकते हैं जय गा रहा हूं

जिनका नाम राजा हरिश्‍चंद्र और तारावती रानी था जय गा रहा हूं

भाई सत्‍य धर्म के कारण कांसी नगर मे बिक गए हैं जय गा रहा हूं

भाई हरिश्चंद्र राजा रहता था तारावती रानी रहती थी जय गा रहा हूं

जिनके पास तुम्‍हारे जैसे सोने चांदी का भंडार था जय गा रहा हूं

जो गाय-भैंस की सेवा बजाते थे और जिनके घर मे अन्‍न-धन का भंडार था जय गा रहा हूं

प्रेम लगा कर दान करो भाई ताकि तुम्‍हें पुण्‍य मिले और पुरखा तरे जय गा रहा हूं

दया-धर्म ही काम आता है कहां तक मैं वर्णन करूं जय गा रहा हूं

जिन्‍होंनें सत्‍य धर्म को अपने तन मे बसाया है, मानते हैं जय गा रहा हूं

कौन कथा कर्ण का बतांउं कौन कथा हरिश्‍चंद्र का जय गा रहा हूं)

 

प्रश्न  - कब से आप ये फेरी पे गाना कर रहे हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव मुझे तीस साल से उपर हो गए हैं बाबूजी, ऐसा लगता है रामजी।

 

प्रश्न  - कैसे करते हैं, सबेरे कितना समय उठते हैं ?

राम प्रसाद वासुदेव – सबेरे से उठते हें बाबूजी, पहले तो रात को ही मांगने जाते थे राम जी, रात को चार बजे घूमते  थे और अल-सुबह बंद कर देते थे। अब जमाने के अनुसार देख सुन कर सुबह निकलते हैं।

  

प्रश्न  - तो क्या पिताजी जल्‍दी उठ के आपको उठाते थे ?

राम प्रसाद वासुदेव हॉं, चार बजे रात को उठते थे और चार बजे रात को भगवान को ले कर निकलते थे और भजन करते, उस समय एक व्‍यक्ति के लिए चार-चार लोगों का दरवाजा खुल जाता था। अब जमाना अलग आ गया है, इस कारण से सुबह जाते हैं।

 

प्रश्न  - शुरू -शुरू में तो जैसे पिताजी जाते होंगें तो आप उनके पीछे-पीछे ?

राम प्रसाद वासुदेव –  हॉं, और जैसे वे गाते थे तो उनके भजन की अगली कड़ी को हम लोग पकड़ कर गाते थे। इसीलिये हमें इन सब भजनों की जानकारी है।

 

प्रश्न  - तो क्‍या आपके भाई के साथ क्‍या ज्‍यादा जुड़ाव था ?

राम प्रसाद वासुदेव – हॉं, भईया छुट्टन प्रसाद जी। ये शंख मे जो लिखा है, अभी हाल मे ही जिनकी मृत्‍यु हुई है। पोला त्‍यौहार के दिन खत्‍म हुए थे। तीन साल से उन्‍हें पक्षाघात हुआ था। इसी कारण वृत्ति-उत्‍ती नहीं चल पा रही थी। मैं भी ज्‍यादा निकल नहीं पाता हूं।

 

प्रश्न  - तब तो आपको बड़ा विचित्र लगता होगा ?

राम प्रसाद वासुदेव – क्‍या करें, जाना तो सबको है। आये हैं उसे एकदिन जाना है सबको जाना है। वे चले गए तब भी मैं भजन करने जाता हूं वृत्ति तो है। 

 

प्रश्न  - तो आपके बच्‍चे लोग आपके साथ नहीं जाते ?

राम प्रसाद वासुदेव –  नहीं जाते।

 

प्रश्न  - ज्‍यादातर बच्‍चे क्‍या छोड़ रहे हैं ये काम ?

राम प्रसाद वासुदेव – हॉं अब बच्‍चे लोग छोड़ रहे हैं इस काम को। क्‍या है अब हम लोगों का जमाना है वह गुजर गया। अब के लोग सब असान समझते हैं,  दान-पुण्‍य नहीं करना चाहते। उंनका मन ही नहीं होता दान देने का। अब पढ़ लिख रहे हैं तो चार के द्वार में हम मांगने नहीं जायेंगें ऐसा कहते हैं। सुदामा महाराज जैसे किस्‍सा, जो सात घर मांगते थे सुदामा महराज उसी प्रकार से। पहले के लोग थे अब के बच्‍चे जाना नहीं चाहते। अब के बच्‍चे घूमना-फिरना नहीं चाहते,  न वे भाव भजन कर सकते। जो पहले का धर्मिक गीत भजन है उसे नहीं गाते वे आज के ददरिया जोंगवा गीत गाते हैं। आज के सिनेमा के गीत गाते हैं। वे कहां इस परम्‍परा को आगे बढ़ा पायेंगें।

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.

 

 

Author Details

Ramprasad Vasudeva

Ramprasad is a traditional and occupational storyteller from Katghari village, Janjgir district, Chhattisgarh, from the Vasudeva community, who recites oral epics and tales. He represents possibly the last generation still practicing this art.

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