इस वीडियो में छत्तीसगढ़ के रामप्रसाद वासुदेव द्वारा दानी राजा कर्ण की कहानी का गायन किया गया है। वह छत्तीसगढ़ के वासुदेव समुदाय के पारम्परिक कथा एवं भजन गायक हैं ।
This video is a recitation of the tale of Daani Raja Karna by Ramprasad Vasudeva from Chhattisgarh followed by a summary of the story.
यहाँ पहले कथा का छत्तीसगढ़ी रूप दिया गया है तदुपरांत उसका हिंदी अनुवाद दिया गया है -
(छत्तीसगढ़ी) - रामचंद्र बेला भगवान धर्मराज इक बेला रे जय गंगान
सात दिन मोर सुने सताई नौ दिनो के मोर भगवत पोथी जय गंगान
भाई एक रथे भगवत के कथा रे एक बरोबर होवय जय गंगान
जब राजा करन गा सूरूज के बंसज कुन्ती के गरभ म जनम लेवंय जय गंगान
भाई कान तरफ ले पैदा गा लेवय नाम धरावय करने महराज जय गंगान
जेन ल भाई करने दान करय अउ सौ भार सोना ल दान म देवय जय गंगान
भाई सवा भार चांदी ल मिलावय भाई हीरा जवाहरात मिला के जय गंगान
भाई लाली बछिया के पूंछ पकड़य अउ सो उठ करन दान करय जय गंगान
वो जइसे करने जमीन पे पग धरय वो समें करने दय दान जय गंगान
भाई राम नाम दुनिया म छिपावय छोटे लेवय करन के नाम जय गंगान
जब बड़े लेवय करने के नाम गा मान गउन बिस्नु के नाम जय गंगान
जब नाम राम बगरावय बेत के सोंटा हाथ पकरय जय गंगान
भाई मृगछाला बगल म जी दाबय करने शहर बस्ती बर रेंगय जय गंगान
जिहां लइका ग खेलत रहय दुवारे उहां तो पहुचय जय गंगान
मै तो तोला देहं रे परसादे तै तो मोला करने के दुवार बता दे जय गंगान
जब लहुट के लड़का बोलत हे बात करन करन के बस्ती ये जय गंगान
भाई कोन करने कर काम हे भाई राजा करने ल दानी बताथें जय गंगान
राजा करने के लेतेव परिक्षा भाई भगतन मन ल देथे जवाब जय गंगान
जब प्रात काल के बेरा म जावय राम शब्द का करने ल सुनावय जय गंगान
जइसे कउन देस के तपसी ग ब्राम्हन ग राम शब्द करने ल सुनाय जय गंगान
भाई लहुट के बिसनू भरय जवाप सुन ले करन गा बचन हमार जय गंगान
जब उत्तर दिसा म जनम हमारो पूरब दिसा बर जाथंव करन महाराज जय गंगान
भाई तीन दिवस के भूखे पियासे मोला भोजन करा दे करन महराजे जय गंगान
जब हाथ जोड मोर करने बोलय कइसे भोजन होथे महराज जय गंगान
जब बिनजोतवन के चांउर मांगय बिन भर्री के ग दार मोर मांगय जय गंगान
जेन बिन बंधना के लकड़ी गा मांगय बिन सिकून के पतरी ग मांगय जय गंगान
भाई बिन सगर के जल ल ग मांगय बिन सिकोन के पतरी ग मांगय जय गंगान
जब बिन सींगे के बोकरा जब मांगय वोतका बात ल सुनय मोरे करन जय गंगान
जब मूरछा खाए के धरती गिर जावय ओकर कइना बड़ा अज्ञानी जय गंगान
अंगार मोती कइना के हे नाम सबो दान ल कर दिहा स्वामी जय गंगान
लेकिन एक दान नइ पावव मोर राजा एक दान हवय बितरन लाला जय गंगान
जब बोकरा जात मोर मांगत हे दाने बता मोर बाते जय गंगान
जब जइसे करन ल भरय जवाप कहां तक ल बरनंव रे भाई जय गंगान
जेला बिन जोतवन के चांउर मांगे हे पसहर चाउंर ल लै मंगवाए जय गंगान
भाई बिन भर्री के दार मांगे है मुंगेसर दार ल लै मंगवाए जय गंगान
जब बिन बंधना के लकड़ी गा मांगे है बिनवा छेना ल लै मंगवाए जय गंगान
जेल बिन सिकून के पतरी मांगे है पुरइन पत्ता ल लै मंगवाए जय गंगान
भाई बिन सगर के जल ग मांगे है निथर पानी ग लेवय झोंकवाए जय गंगान
जब बिन सिंगे के बोकरा ग मांगे हे बीच धरन कर मांगवाए जय गंगान
जब ले लव गुरू दछिना हमारा जइसे करन मुख भरय जवाब जय गंगान
लहुट के भिक्षा ग बोलत हे सुन ले करन ग बचन हमार जय गंगान
भाई तोरे हाथ म पका के देदे बड़ा सोंच करन ल परे जय गंगान
नंगी तलवार ल निकाल के करन ग गला म लगावय जय गंगान
भाई करन महराज के हाथे नइ छूटे कहत बिसेसर बोलत हे बात जय गंगान
जन ल सुन लो माता पिता के पास पूत नहीं खावय जय गंगान
आज मोर साकछात साधु मोर बैकुंठ जाहंव मोर जय गंगान
अउ ओतका बात ल सुनथे करन अउ ओतका ल काट लेथे जय गंगान
भइया जइसे बेटा ल लेथे काटे तइसे वोला लेथे बनाय जय गंगान
जब जइसे बेटा ल लेथे सोन के घड़ा म रंधवावय बेटवा ल जय गंगान
जब रांध कूथ करे हे तइयारी आवव गुरू मोर भेजन कर लव जय गंगान
जब तुहंरो भोजन हो जही जुड़ाई अइसे करन जब भरय जवाप जय गंगान
मैं तो अइसे भोजन नइ तो करंव करन गा सात पुस्त ल भेरा लगांव जय गंगान
भाई सात दोना म पानी निकालबे अउ सात दोना म भात जय गंगान
जमा सात दोना म सागे निकालबे जेन पुत्र ल मारे हे करन महराज जय गंगान
जब सात पुत्र ल हूंत कराबे तब पंडित ह भोजन करिहंय जय गंगान
भाई नहीं पंडित निरास ल करिहंव बडे सोंच करने ल परे हे जय गंगान
मैं तो जउन पुत्र ल मारे हंव स्वामी तउन पुत्र ल कहां से पांव जय गंगान
जब ओतका बात ल सुनय बिसनू झोली धर के निकलन लागै जय गंगान
भाई ओतका देख के करन ह भाई जाके डंडा सरन चरने म गिरय जय गंगान
भाई जउन पुत्र ल मारे हंव स्वामी जउन पुत्र ल हूंत करावं जय गंगान
भाई सात पुस्त परदा ल लगावय सात दोना म पानी निकालय जय गंगान
जब सात दोना म भात ग निकालय सात दोना म साग निकालय जय गंगान
जब पहिली डंका जब हूंत करावय जतका मांस सब जकठा हो जावय जय गंगान
जब दूसर डंका मोर हूंत करावय जतका मांस बइठात बनावय जय गंगान
जब तिसर डंका मोर हूंत करावय गली कोति ले मोर दंउडत आवय जय गंगान
जइसे अपन माता पिता के गोड परे होत बिसेसर बोलत हे बाते जय गंगान
जेन ल सुन लव माता पिता ये नो हय संत ना बूत जय गंगान
अउ येकर चरन ल ध लेहू माता ऐकर चरन ल धरे लेहू पिता जय गंगान
भाई छाकछात बैकुंठ ग जाबो चरन धरे ग मोरे जावय करन महराज जय गंगान
भाई आधा सरग ले बोलय बिसनू सुन ले करन ग बचन हमार जय गंगान
भाई सबे दान ल कर देबे दाने करन पुत्र मार झन भोजन खिलाबे जय गंगान
जइसे जगा म तै जाबे ठगाबे चारो लोक के मालिक तैं करन जय गंगान
मैं तो सत देखे बर आये हंव करन अइसन बचन बोले ग जाय जय गंगान
कोई अदमी मरे म जाथे कोई जियत जियत तरे बर लेगय जय गंगान
जेन ल भोगे रथ ल लै मंगवावय तीनो लोक ल लै बइठारय जय गंगान
जब तीनो लोक ल लेई बइठारय गंगा माई के रस्ता पकड़ाय जय गंगान
भाई सवा हाथ ग गंगा बाई बांचे करन राजा ल होगे घमंड जय गंगान
भाई मैं तो तरेंव त तरें ग कर्ण गा चउदा पुरखा मोर नरका परे हे जय गंगान
जब चउदा पुरखा मोर नरके तर गे ओई मेर थन ल फेर लेवय फिरोवय जय गंगान
अब मोर हाथे नइ तरय करन ह अटठारह दिनन कै महाभारत मा जय गंगान
जे दिन कुरूक्षेत्र म होही लड़ाई अर्जुन के बान म तरबे करन अउ जय गंगान
भाई जइसे करन ल भरे जवाप कहां तक ल भाई बरनव बात जय गंगान
बोलो राधा कृष्ण भगवान की जय
(हिंदी) - कर्ण कथा -
रामचंद्र बेला भगवान धर्मराज इक बेला रे जय गा रहा हूं
सात दिन आपने सताई सुना नौ दिनो का भगवत पोथी सुना जय गा रहा हूं
भाई भागवत कथा रे भाई एक जैसा ही होता है जय गा रहा हूं
जब सूर्य का वंशज राजा कर्ण, कुन्ती के गर्भ से जन्म लेता है जय गा रहा हूं
भाई कान की ओर से जन्म लेता है जिसका नाम महराज कर्ण है जय गा रहा हूं
जो कर्ण भाई दान करता है और सौ भार सोना दान में देता है जय गा रहा हूं
भाई सवा भार चांदी को मिलाता है भाई हीरा जवाहरात मिलाता है जय गा रहा हूं
भाई लाली बछिया (गाय का छोटा बच्च/सद्धप्रसूता गाय ) का पूंछ पकड़ता है और सो उठ कर दान करता है जय गा रहा हूं
जैसे ही कर्ण जमीन पे पांव रखता है उसी समय दान करता है जय गा रहा हूं
भाई राम के नाम को दुनिया में छिपाता था, छोटे लोग कर्ण का नाम लेते थे जय गा रहा हूं
बड़े लोग कर्ण का नाम लेते थे, परिवार जन बिष्णु का नाम जय गा रहा हूं
जब राम नाम गाते हुए बेत की लाठी हाथ में पकड़े हैं जय गा रहा हूं
भाई मृगछाला बगल में दबा कर कर्ण के शहर की ओर जाते हैं जय गा रहा हूं
जहां द्वार पर बच्चे खेलत रहे हैं वहां पहुचते हैं जय गा रहा हूं
मै तो तुमको प्रसाद दूंगा तुम मुझे कर्ण का द्वार बता दो जय गा रहा हूं
जब लौट कर लड़का बोलता है कर्ण की बस्ती यही है जय गा रहा हूं
भाई कर्ण के पास क्या काम है भाई राजा कर्ण को दानी बताते हैं जय गा रहा हूं
राजा कर्ण की परीक्षा लेता भाई भक्तों को जवाब देता जय गा रहा हूं
जब प्रात काल जाते हैं राम शब्द का कर्ण को सुनाई देती है जय गा रहा हूं
जैसे ही कर्ण के कानों में यह शब्द सुनाई देती है, किस देस का तपस्वी ब्राम्हन है जय गा रहा हूं
भाई लौट कर विष्णु जवाब देते हैं सुन लो कर्ण हमारे वचन को जय गा रहा हूं
उत्तर दिसा में हमारा जन्म पूर्व दिसा के लिए जा रहे हैं कर्ण महाराज जय गा रहा हूं
भाई तीन दिन के भूखे प्यासे है मुझे भोजन करा दो कर्ण महराज जय गा रहा हूं
हाथ जोड कर कर्ण पूछ रहा है महाराज कैसा भोजन बनवाऊं महराज जय गा रहा हूं
बिना जोत के खेत का चावल मांगते हैं, बिना रवि फसल के खेत का दाल मांगते हैं जय गा रहा हूं
बिना बंधन की लकड़ी मांगते हैं, बिना सिकून (पत्तल सिलने के लिए उपयोग किया जाने वाला कड़े घांस का तुकड़ा/ सींक) का पत्तल मांगते हैं जय गा रहा हूं
भाई बिना सागर का जल मांगते हैं बिना सिकोन का पत्तल मांगते हैं जय गा रहा हूं
बिना सींग का बकरा मांगते हैं इतने बात को कर्ण सुनता है जय गा रहा हूं
तब मूर्छित होकर धरती में गिर जाता है उसकी पत्नी बड़ी ज्ञानी है जय गा रहा हूं
उसकी पत्नी का नाम अंगार मोती है वह कहती है कि सभी दान मैं दे दूंगी स्वामी जय गा रहा हूं
लेकिन एक दान नहीं दे पाऊंगी, मेरे राजा एक दान नहीं दे पाऊंगी जय गा रहा हूं
जब बकरा दान में मांग रहे हैं बताओ जय गा रहा हूं
जब जैसे कर्ण को जवाब दे रही है, कहां तक इसका वर्णन करूँ रे भाई जय गा रहा हूं
बिना जोत के खेत का चावल जो मांगे हैं तो पसहर चाउंर (खेत के आसपास अपने आप उगने वाले धान का चांवल) को मंगवाती है जय गा रहा हूं
भाई बिना रवि फसल के खेत का दाल मांगे हैं तो मुंगेसर दाल (खेत के मेढ़ में अपने आप उगने वाले दाल प्रजाति के बेल समान पौधे का डाल) को मंगवाई है जय गा रहा हूं
जब बिना बंधन की लकड़ी मांगे है तो बिनवा छेना (खुले जगह में गाय के गोबर के सूख जाने पर उसे बिनवा कर लाया गया ईंधन) को मंगवावाती है जय गा रहा हूं
बिन सिकून का पत्तल मांगे है तो कमल के पत्ते को मंगवाती है जय गा रहा हूं
भाई बिना सागर का जल मांगे है तो निथर पानी (सोते से बूद-बूद झरता हूआ पानी) को इकठ्ठा करवाती है जय गा रहा हूं
जब बिना सींग के बकरा की मांग किये हैं तो धरन (जिस लकड़ी में सिर रखकर बलि देते हैं) मंगवाते हैं जय गा रहा हूं
ले लो गुरू दक्षिण हमारा ऐसा कर्ण के मुख से जवाब निकलता है जय गा रहा हूं
वापस लौट कर बोलता है सुन लो कर्ण हमारी बात को जय गा रहा हूं
भाई तुम अपने हाथ मे पका कर दो, कर्ण को बड़ा सोंच पड़ गया जय गा रहा हूं
नंगी तलवार को निकाल कर कर्ण गले मे लगाता है जय गा रहा हूं
भाई कर्ण महाराज का हाथ छूटता नहीं है, तक दसका पुत्र बिसेसर कहता है जय गा रहा हूं
माता पिता और जनता सुन लो मेरी बात को पूत्र नहीं खा जायेगा जय गा रहा हूं
आज मेरा साक्षात साधु से भेट हुई है, मैं बैकुंठ जाउंगा जय गा रहा हूं
और इस बात को सुन कर कर्ण उसके गले को काट देता है जय गा रहा हूं
भइया जैसे बेटा को काटता है वैसे ही उसे सब्जी बना देता है जय गा रहा हूं
सोने के घड़े को मंगा कर उसमें बेटे को पकाता है जय गा रहा हूं
जब पकाकर तैयारी करता है फिर आइये गुरू भोजन कर लो जय गा रहा हूं
जब आपका भोजन ठंडा हो जायेगा ऐसा कर्ण जब कहता है जय गा रहा हूं
मैं तो ऐसा भोजन नहीं करूंगा कर्ण सात तह का घेरा लगावो जय गा रहा हूं
भाई सात दोने में पानी निकालो और सात दोने मे भात जय गा रहा हूं
जिसमें सात दोने मे सब्जी निकालो जिस पुत्र को मारे हो कर्ण महराज जय गा रहा हूं
जब सात पुत्र को आवाज दोगे तब पंडित भोजन करेगा जय गा रहा हूं
भाई नहीं पंडित हमें निराश ना करें बडे सोंच में कर्ण पड़ गए जय गा रहा हूं
मैं तो जिस पुत्र को मार डाला हूं स्वामी उस पुत्र को कैसे बुलाउंगा जय गा रहा हूं
जब इस बात को विष्णु सुनते हैं झोली पकड़ कर निकलने लगते हैं जय गा रहा हूं
भाई इसे देख कर कर्ण जाकर दंडवत चरन मे गिरता है जय गा रहा हूं
भाई जिस पुत्र को मार डाला हूं स्वामी उस पुत्र को कैसे बुलाउं जय गा रहा हूं
भाई सात परत का परदा लगावाता है सात दोने मे पानी निकालता है जय गा रहा हूं
जब सात दोने मे भात निकालता है सात दोने मे सब्जी निकालता है जय गा रहा हूं
जब पहिली बार आवाज देता है तो जितना मांस है वह सब इकट्ठा हो जाता है जय गा रहा हूं
जब दूसरी बार आवाज देता है तो जितना मांस इकट्ठा हुआ है वह बैठ जाता है जय गा रहा हूं
जब तीसरी बार आवाज देता है तो गली की ओर से बालक दौंडते हुए आता है जय गा रहा हूं
आते ही अपने माता पिता को प्रणाम कर बिसेसर बोलता है जय गा रहा हूं
सुन लो माता पिता यी संत हैं ना भूत है जय गा रहा हूं
और इनके चरण को पकड़ लो माता इनके चरन को पकड़ लो पिता जय गा रहा हूं
भाई इनके चरण को पकड़ने से हम साक्षात बैकुंठ में जायेंगें कर्ण महाराज जय गा रहा हूं
भाई आधे स्वर्ग से विष्णु बोलते हैं कर्ण हमारी बात सुन लो जय गा रहा हूं
भाई सब दान कर लेना किन्तु पुत्र मार कर भोजन मत खिलाना कर्ण जय गा रहा हूं
जिस जगह मे तुम जावोगे ठगे जाओगे चारो लोक के मालिक हो तुम कर्ण जय गा रहा हूं
मैं तो तुम्हारी परीक्षा लेने आया था ऐसा बोलने लगे जय गा रहा हूं
कोई मनुष्य मरने के बाद जाता है कोई जीते जी ले जाते हैं जय गा रहा हूं
स्वर्ग से रथ को मंगवाते हैं तीनो लोक को बैठाते हैं जय गा रहा हूं
जब तीनो लोक को बैठाते हैं गंगा माई के रस्ते को पकड़ाते हैं जय गा रहा हूं
भाई सवा हाथ में गंगा माई बची है राजा कर्ण को घमंड हो जाता है जय गा रहा हूं
भाई मैं तो तर गया कर्ण किन्तु मेरा चौदह पुरखे नर्क में पड़े हैं जय गा रहा हूं
जब चौदह पुरखे मेरे नर्क से तर गये उसी को फिर वापस करवाते हैं जय गा रहा हूं
अब मेरे हाथ में नहीं तरोगे कर्ण अट्ठारह दिन के महाभारत मे जय गा रहा हूं
जिस दिन कुरूक्षेत्र मे लड़ाई होगी उस दिन अर्जुन के बाण मे तरोगे जय गा रहा हूं
भाई जैसे कर्ण को जवाब देते हैं भाई कहां तक के बात का वर्णन करूं जय गा रहा हूं
बोलो राधा कृष्ण भगवान की जय
इस कथा सार -
(छत्तीसगढ़ी) - ओकर जगा म गेह ना त ओकर पुत्र, करन ह जइसे दानी प्रतापी राज ये, दानी राजा ये, त दान के नाम से ओकर जगा म दान करय वो सो उठ करन ह।सौ भार सोना अउ सवा भार चांदी मिलवावय। हीरा जवाहर करन मिला के, लाली बछिया नई तो धौंरी बछिया पकड़ लय तेकर बाद मीन पग ग लेवय। दान कर लय त जमीन म पग लै। त ओकर नाम से मने कि करन राजा की जय हो कहय, त जइसे करन के नाम ह जादा होगे। त भगवान आगमान गुस्सा होके साधू रूप धारन धर के ओकर जगा म फेर गेहे करन के द्वार म। अउ दान मांगे हे वोला तव, करन तैं दान दे मोला अइसे कई के। त मांग महराज कहे हे त वो मांगे हे। त बिन जोतहन के चांवल मांगे हे, बिन भर्री के दार, अर बिन बंधना के लकड़ी, बिना सिकून के पतरी अउ बिना सगर के जल अउ बिना सिंग के बोकरा। ओतके बेर वोकर कईना ह, वो करन ह मूरछा खाके धरती म गिर जथे। समझ म नइ आत हे वोकर सरीर म त करन ह मूरछा खा के गिर जथे। त फेर वोकर कइना हे जउन इतरी हे जउन, वोकर कईना हे इस्तरी अंगार मोती कईना वो कईना के नाम हे वो कथे के स्वामी सबे दान ल मैं कर दिहं, लेकिन एक ठी दान ल नइ पांवव, कोन ल? त बिना सिंग के बोकरा ल नई पांवव।
काबर के एक ठन मोर पुत्र हे, एक ठन पुत्र हे, जउन ल माने दान मांगत हे, देबो नहीं तेला बता कहे हे। त कर्ण दानी प्रतापी हे ओकर मने के जबान नई कटय। त फेर वोई ल दान करे हे वो ह। तो बिन जोतवन के चांवल मांगे हे त पसहर चांवल ल मंगाए हे। बिन भर्री के दार मांगे हे त मुंगेसर दार मंगाए हे। बिन बंधना के लकड़ी मांगे हे त बिनवा छेना ल मंगाए हे अउ बिना सिकून के पतरी कहे हे त पुरइन पत्त ल लाए हे। अउ बिना सगर के पानी मांगे हे त सितहर पानी, मने सित गिरथे पाला वोला घड़ा म झोंकाए हे। अउ बिना सिंग के बोकरा कहे हे त अपन पुत्र ल जब बीच धरन म, बीच म रख के ले महराज तोर दान कई के वोला दिए हे। दिए हे त भगवान बिसनू छल करे गए हे वोला, दान लेहे थोरे गए हे वोकर शक्ति डूबाए के लिए गए हे, छल करे गए हे। वोकर नाम से कहे तो बिसनू भगवान कहत हे तोर हाथ मोला पका के भोजन दे। करन ल फंसावत हे वो ह, हां के तोर हाथ ले मोला भेजन बना के दे। त करन राजा ह नंगी तलवार हेर के बिसेसर लाला के गला म लगाए हे। त हाथ नई छूटय, पिता ये पुत्र के मारे बर कहां हाथ छूटय। त वोई मेर भगवान, फेर बिसेसर लाला कहे हे के सुनव माता पिता के जात हो येक मांस ल कुत्ता नइ खावय, आज मोर मांस ल साहू ह खाही। त मैं साकछात बैकुंठ तर जहूं। अइसे क हे तब भगवान ओई समे में करन ह ओकर सिर ल फांके जइसे बोकरा ल फांकथे तइसने अउ जइसे बोकरा ल बनाथे तइसे वोला भेजी बनाए हे। बना के फेर सोन के घड़ा म रांधे हे, अउ सोन के घड़ा म रांध के जब तियार करे हे, कि आवव गुरू भोजन कर लव, चुरे भानस मने जुड़ा जही। त कथे अइसे भोजन नइ करव करन मैं ह, सात पुरूत के परदा घेराबे, सात दोना म पानी निकालबे अउर सात दोना म भात। सात दोना म साग निकालबे अउ जउन पुत्र ल मारे हस कर्ण तउन पुत्र ल हूंत कराबे तब पंडित मैं भोजन करिहंव नइ तो निरास चले जाहू कईथे। वोई मेर लहुट के फेर करन ह कइथे के जब जउन पुत्र ल मारे हंव मैं स्वामी तउन पुत्र कहां से पाहूं मैं। त ओतके बात ल सुनथे त भगवान बिसनू फेर झोली धर के तब निकले ल होथे। के अब मैं भोजन नइ करवं कइके। त जाके करन डंडासरन करन गिर के करन ह मंना के लाए हे। त सात पुरूत के परदा घेराए हे, सात दोना म पानी निकाले हे, सात दोना म भात, सात दोना म साग निकाले हे, अउ पहिली डंका जब हूंत कराए हे, नाम लेके वोकर पहिली डंका हूंत कराए हे त जतका मांस हे फेर ततका ह अकट्ठा हो जथे। दूसर डंका जब हूंत कराए हे त जतका मांस रथे तउन ठाठ बन जथे, अउ तिसर जब अवाज दिये हे त वो गली कोति ले दंउड़त आके अपन माता पिता के गोद म बइठ जथे। वोई मेर फेर बिसेसर फेर का कहे हे, के सुनव माता पिता के जात हो, ये ह नोहय संत नोहय भुतहा, येकर चरन ल हम धर लिन माता पिता हम बैकुंठ तर जबो कथे। त चरन धरे भगवान के जाथे न करन ह त वो आधा सरग म उड़ जाथे, त फेर आधा सरग ले उड़ के फेर वो ह करन ह, आधा सरग म वो उड़थे भगवान बिसनू, वोई करा मने वोई करा बिसनू भगवान के त सुन करन कहाथे, सबो दान ल करबे करन लेकिन पुत्र मारके भोजन झन खिलाबे। काबर के दगा म ठगा जबे मैं चारो लोक के मालिक अंव तोर सत देखे बर आए रेहेंव अउ कहात हे। त वोई मेर फेर सत देखे बर आए रहेंव कईके वोई करा कहे हे तेकर बाद म, भगीरथ ल बला के तीनो नल ल बला के फेर गंगा माई के रस्ता पकड़ाए हे। सवा हाथ गंगा मईया बंचे रथे त करन राजा ल घमंड हो जथे, के मैं तो तरेंव तो तरेंव मोर चउदा पुरख नरक ले सब उबर गे कथे।
अब वोई मरे ले भगवान फेर रथ ल फिरो देथे, अब मोर हाथ नई तरस करन कई के घमंड होगे तेकर नाम से। के अब जे दिन अट्ठारा दिन के महाभारत म कुरूक्षेत्र म लड़ाई होही ना जे दिन अर्जुन के बान म तरबे के ओई बेरा ओला सराप गति देहे हे।
इस कथा सार -
(हिंदी) - कर्ण दानी और प्रतापी राज थे, दानी राजा थे, तो दान के नाम से उसका नाम प्रसिद्ध था। वह सो उठ कर सौ भार सोना और सवा भार चांदी मिलवाता था, हीरा जवाहर मिला कर, लाली बछिया नहीं तो धौंरी बछिया पकड़ दान देता था फिर धरती में पैर रखता था। इसलिये कर्ण राजा की प्रसिद्धि दानवीर के रूप में चारो ओर फैली थी। जब दानी कर्ण का नाम इतना फैल गया तो भगवान विष्णु गुस्सा होकर साधू रूप धारण कर उसके पास जाते हैं। कर्ण के द्वार में जाते हैं और दान मांगते हैं। कर्ण तुम मुझे दान दे दो ऐसा कहते हैं। तो कर्ण जब कहता है कि मांगों महाराज तब वे मांगे हैं। बिना जुताई वाले खेत का चांवल मांगे हैं, बिन रवि फसल वाले खेत के दाल और बिना बंधन की लकड़ी, बिना सिलाई/जोड़ का पत्तल और बिना सागर का जल और बिना सींग का बकरा। उसी समय कर्ण मूर्छा खा कर धरती मे गिर जोते हैं। उसे समझ मे नहीं आता तब कर्ण मूर्छित हो जाता है। कर्ण की पत्नी अंगार मोती कहती है कि स्वामी मैं सब दान को दे दूंगी किन्तु एक दान नहीं दे पाउंगी। किसे? तो कहती है बिना सींग के बकरे को नहीं दे पाउंगी।
क्योंकि मेरा एक ही पुत्र है, एक पुत्र है, जिसे दान मांग रहे हैं, देगें कि नहीं बताओ। तब कर्ण दानी प्रतापी है उसका जबान नहीं कटता। तो फिर वही दान करते हैं। बिन हल चले खेत का चांवल मांगे हैं तो पसहर चांवल को मंगाते हैं। बिन रवि फसल के खेत के दाल मांगे हैं तो मुंगेसर दार मंगाते हैं। बिन बंधन की लकड़ी मांगे हैं तो बिनवा छेना को मंगाते हैं और बिना जोड़/सिलाई का पत्तल कहें हैं तो कमल के पत्ते को लाते हैं। बिना सागर के पानी मांगे हैं तो पाला पड़े पानी, यानी ओस गिरे पानी को घड़ा मे इकत्रित कर मंगवाते हैं। बिना सींग के बकरा कहें हैं तो अपने पुत्र की बलि देकर कहते हैं, ये लो महराज आपका दान, देते हैं। जब देते हैं तब भगवान विष्णु छल किये हैं उसके साथ, वे दान लेने थोड़ी आए रहते हैं वे तो उसकी शक्ति को डूबाने के लिए गए रहते हैं, छल करने गए रहते हैं। उनके नाम से कहें तो विष्णु भगवान कहते हैं तुम्हारे हाथ से भोजन पका दो। कर्ण को फंसा रहे हैं, हां कि तुम्हारे हाथ से मेरे लिए भोजन बना दो। तब कर्ण राजा नंगी तलवार निकाल कर बिसेसर लाला के गला मे लगाते हैं। तो हाथ नहीं छूटता, पिता हैं, पुत्र को मारने के लिउ हाथ कैसे छूटेगा। तब वहीं पर भगवान, फिर बिसेसर लाला कहता है कि सुनो माता पिता जिसके मांस को कुत्ता नहीं खाता, आज मेरे मांस को साधू खायेगा तो मैं साक्षात बैकुंठ तर जाउंगा। ऐसा कहता है तब उसी समय कर्ण उसका सिर काटता है, जैसे बकरे को फांकते हैं उसी प्रकार और जैसे बकरे का भोजन बनाते हैं उसी प्रकार उसका भोजन बनाते हैं। उसे सोने के घड़े मे पकाते हैं और सोने के घड़े मे पका कर तैयार करते हैं, फिर कहते हैं कि आइये गुरू भोजन कर लें, तैयार भोजन ठंडा हो जायेगा। तो कहते हैं मैं इस तरह भोजन नहीं करूंगा कर्ण, सात तह का परदा लगाओ, सात दोने मे पानी निकालो और सात दोने मे भात। सात दोने मे बटजी निकालो और जिस पुत्र को मारे हो कर्ण उस पुत्र को बलाओगे तब मैं पंडित भोजन करूंगा नहीं तो निराश चले जाउंगा। वहीं पर लौट कर फिर कर्ण कहता है कि जिस पुत्र को मैं मार डाला हूं स्वामी उस पुत्र को कहां से पाउंगा। तो इस बात को भगवान विष्णु सुनते हैं तो झोली पकड़ कर निकलने लगते हैं। अब मैं भोजन नहीं करूंगा। तब जाकर कर्ण दंडवत उनके पैरों में गिरता है और कर्ण उन्हें मना कर लाते हैं। सात तह का परदा घेरवाते हैं हे, सात दोने मे पानी निकालते हैं, सात दोने मे भात, सात दोने मे सब्जी निकालते हैं और पहिली बार जब नाम लेकर पुकारते हैं तब जितना मांस है वह इकट्ठा हो जाता है। दूसरे पुकार में जितना मांस है वह कड़ा हो जाता है और तीसरी बार जब आवाज देते हैं तब वह गली की ओर से दौड़ते हुए आकर अपने माता पिता की गोदी मे बैठ जाता है। वहीं पर फिर बिसेसर कहता है कि सुनो माता पिता कि ये संत हैं ना कोई चमत्कारी है, इनके चरण को हम पकड़ लेंगें माता पिता तो हम बैकुंठ तर जायेंगें। तो भगवान के चरन को पकड़ने कर्ण जाता है तब वे आधा स्वर्ग मे उड़ जाते हैं, फिर आधा स्वर्ग में उड़ कर भगवान विष्णु, उसी जगह कहते हैं कि सुनो कर्ण सभी दान करना लेकिन पुत्र मार कर भोजन मत खिलाना। क्यों कि दगा मे ठगा जाओगे। जब मैं चारो लोक का मालिक हूं तुम्हारी परीक्षा लेने आया था। वहीं पर फिर भगीरथ को बुला कर तीनो नल को बुला कर फिर गंगा माई का रस्ता पकड़ाए हैं। सवा हाथ गंगा मईया बचती हैं तो कर्ण राजा को घमंड हो जाता है, कि मैं तो तर ही गया मेरा चौदह पुस्त नरक से सब उबर गये।
अब वही से भगवान फिर रथ को वापस कर देते हैं, अब मेरे हाथ से नहीं तरोगे कर्ण। तुम्हें अपने नाम का घमंड हो गया है अब जब अट्ठारह दिन का महाभारत कुरूक्षेत्र मे होगा उस दिन अर्जुन के बाण मे तुम तरोगे। उसी समय उसे श्राप गति दिये हैं।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.