कबरा पहाड़ का चित्रित शैलाश्रय/Painted Rock Shelter at Kabara Pahad

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Published on: 17 June 2019

प्रभात कुमार सिंह

प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व में स्नातकोत्तर.
पुरातत्व, इतिहास एवं साहित्य में रूचि एवं अनेक लेख और पुस्तके प्रकाशित.

‘कबरा’ छत्तीसगढ़ी शब्द है, जिसका मतलब होता है- धब्बेदार (spotted)। यह मझोले और छोटे ऊँचाई के सघन वृक्षों और झाड़ियों से ढंका बलुआ पत्थरों का विस्तृत पहाड़ है, जहाँ वनस्पतियों के हरे-भरे कनवास में जगह-जगह उघड़े बलुआ चट्टानों की वजह से पूरा पहाड़ दूर से धब्बेदार दिखाई देता है। पहाड़ का यह नाम इसी वजह से है, लेकिन इसका मूल नाम स्थानीय लोग ‘गजमार पहाड़’ बतलाते हैं।

 

कबरा पहाड़, जिला-रायगढ़, छत्तीसगढ़

कबरा पहाड़, जिला-रायगढ़, छत्तीसगढ़. Courtesy: Rohit Rajak

 

कबरा पहाड़ उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में धनुषाकार में फैला हुआ है। इसका उत्तर-पश्चिमी छोर रायगढ़ से ही आरंभ हो जाता है, जहाँ पहाड़ मंदिर (हनुमान मंदिर) नगर का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। वहीं, दक्षिण-पूर्वी हिस्सा प्रसिद्ध हीराकुंड बाँध के मुहाने पर बसे घुनघुटापाली (ओडिशा अंतर्गत) में समाप्त होता है, जहाँ कदमघाट में घण्टेश्वरी देवी का मंदिर भी एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है।

प्रदेश की राजधानी रायपुर के उत्तर-पूर्व में लगभग 270 किमी. दूर, जिला मुख्यालय रायगढ़ नगर के पूरब में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक- 217 के 13वें किमी पर और समीपवर्ती राज्य ओडिशा की सीमा से मात्र आठ किमी पहले ग्राम पंचायत लोइंग के पश्चिम में दो किमी पर उसका आश्रित ग्राम है- भोजपल्ली। उल्लेखनीय है कि 1972 के पहले इस गाँव का नाम भेजरापाली हुआ करता था। छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्य के सीमा से लगा होने के कारण इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़ी और उड़िया दोनों भाषाओं का मिला-जुला प्रभाव है, और लोगों के संवाद का माध्यम उक्त दोनों भाषाओं के सहअस्तित्व वाली ‘लरिया’ बोली है।

 

आमा तालाब के पीछे कबरा पहाड़

आमा तालाब के पीछे कबरा पहाड़. Courtesy: Rohit Rajak

 

गाँव के पश्चिम में आमा तालाब है और उसके पीछे चित्रित शैलाश्रय वाला कबरा पहाड़। आमा तालाब के अंतिम छोर पर जंगली बेल, झुरमुटों और कंटीली झाड़ियों से होकर गुज़रती पथरीली पगडंडी पर चलते हुए लगभग 2000 फुट की ऊँचाई पर चित्रित शैलाश्रय (21050‘42‘‘ उत्तर, 83027‘41‘‘ पूर्व) पहुँचा जा सकता है। खड़ी चढ़ाई और दुर्गम पैदल पथ बच्चों और बुजुर्गों के अनुकूल नहीं है।

लगभग 100 मीटर चौड़े और 5-10 मी गहरे इस शैलाश्रय की ऊँचाई उसकी चौड़ाई की लगभग आधी होगी, बाहर की ओर झुकी दीवार 70 डिग्री का कोण बनाती है, जिससे इसमें छत होने का आभास ही नहीं होता और बिना किसी कृत्रिम प्रकाश के शैलाश्रय के चित्रों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

 

आमा तालाब के पीछे कबरा पहाड़

आमा तालाब के पीछे कबरा पहाड़. Courtesy: Rohit Rajak

 

शैलाश्रय की दीवार पर 25-30 फुट की ऊँचाई तक चित्रों का अंकन देखा जा सकता है। ऊँचाई पर बने चित्रों को देखकर उन्हें बनाने वाले की कठोर श्रमसाध्यता का केवल अनुमान ही किया जा सकता है। इतनी ऊँचाई पर निर्मित चित्रों के आस-पास ऐसा कोई चट्टानी आधार भी नहीं है, संभव है कि तत्कालीन मानव ने ऊँचाई पर चित्रकारी के लिए सीढ़ी का उपयोग किया हो।

 

पहिया, गोह, मोर, कछुआ और साथ में जटिल रेखांकन

पहिया, गोह, मोर, कछुआ और साथ में जटिल रेखांकन. Courtesy: Rohit Rajak

 

इस शैलाश्रय में जंगली जीव, जलीय जीव, सरीसृप और कीट-पतंगों के साथ ही भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार की रेखाकृतियों का अंकन है। यहाँ के चित्रों में जटिल रेखांकन जैसे सर्पिल ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज रेखाएं, त्रिकोण आकृति, 36 आरियों वाले पहिये (जो अनुष्ठानिक भी हो सकता है), के अलावा जंगली पशु जैसे लकड़बग्घा, हिरण (गर्भिणी भी), साही, नीलगाय और बारहसिंगा; जलीय जीव जैसे कछुवा, मछली, केंचुवा; पक्षी जैसे मोर; सरीसृप जैसे गोह अथवा छिपकली; कीट जैसे तितली और मकड़ी एवं नाचते हुए मानवपंक्ति तथा ताड़ वृक्ष का अंकन उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में यहाँ के पहाड़ी जंगल में भालू, जंगली शूकर, लोमड़ी, लकड़बग्घा, जंगली मुर्गा, गोह, सर्प आदि विचरते हैं। हिरण, बारहसिंघा और मोर के अनुकूल पर्यावास अब नहीं रहा। पास के आमा तालाब में मछली और कछुए पाये जाते हैं।

 

हिरण, शूकर, बारहसिंगा आदि के चित्र

हिरण, शूकर, बारहसिंगा आदि के चित्र. Courtesy: Rohit Rajak

 

हाथ पकड़ नाचते मानव

हाथ पकड़ नाचते मानव. Courtesy: Rohit Rajak

 

अधिकांश चित्र लाल और कुछेक भूरे रंग के हैं। लाल रंग के चित्र पूरी तरह से भरे हुए हैं, जबकि भूरे रंग वाले चित्रों में रेखांकन की प्रधानता देखी जा सकती है। विविध आकार-प्रकार एवं विषयों के चित्रण के साथ ही यहाँ भिन्न-भिन्न कालों में निर्मित चित्र भी हैं। इन चित्रों के आकार, प्रारूपिकी, संयोजन एवं बनाने की कला के आधार पर विद्वान इस स्थान पर मध्यपाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक मानवीय गतिविधियों के प्रमाण स्वीकार करते हैं। कई स्थानों पर पूर्ववर्ती काल के चित्रों पर ही परवर्ती काल के चित्र आरोपित (superimposed) अथवा अतिव्यापित (overlapped) हैं। कुछ नासमझ लोगों के द्वारा शैलचित्रों पर नाम लिख दिये जाने से इस प्राचीन धरोहर स्थल का मौलिक स्वरूप बुरी तरह प्रभावित हुआ है, और शैलचित्रों की संख्या का केवल अनुमान ही बताया जा सकता है, जो 150 के आस-पास हो सकती है।    

 

हिरण, कछुआ, पहिया और साथ में जटिल रेखांकन

हिरण, कछुआ, पहिया और साथ में जटिल रेखांकन. Courtesy: Rohit Rajak

 

स्थानीय लोगों में कबरा पहाड़ शैलाश्रय और उसमें बने चित्रों को लेकर कई रोचक बातें प्रचलित हैं। गाँव के बुजुर्ग श्री चन्द्रिका प्रसाद भोई (75 वर्ष) बतलाते हैं कि कबरा पहाड़ के चित्रों को गाँव वाले देवताहा (देवस्थान) मानते हैं और प्रतिवर्ष फाल्गुन पूर्णिमा (होली) तिथि को वहाँ रात भर विविध अनुष्ठान जैसे पूजा, भागवत कथा एवं नामयज्ञ (हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।।) का निरन्तर गान होता है, जिसमें आस-पास के चार गाँव (लोइंग, जुर्ड़ा, विश्वनाथपाली, कोतरापाली) के लोग भी शामिल होते हैं। पूजा-अनुष्ठान में महिला-पुरूष समान रूप से भाग लेते हैं लेकिन महिलाओं को वहाँ चढ़ाये प्रसाद खाने की मनाही है। होली के अलावा नवरात्रि और महाशिवरात्रि के अवसर पर भी लोग वहाँ जाकर पूजा करते हैं। दूसरी जनश्रुति यह है कि यहाँ उनके पूर्वजों का धन (खजाना) गड़ा हुआ है, इतना कि उससे पूरे संसार को ढाई दिन तक खाना खिलाया जा सकता है। पूर्वजों के बनाये इन चित्रों और खजाने की रक्षा करती हैं, शैलाश्रय के दीवार की ऊँचाईयों पर अनेक छत्तों में मौजूद मधुमक्खियों की फौज। तीसरी, कहा जाता है कि गाँव वालों को कभी-कभी रात में शैलाश्रय स्थल पर अचानक प्रकाश और चमक दिखती है। चौथी बात, गाँव के लोगों की कोई कीमती वस्तु या पशुधन खो जाता है, तो वे कबरापाट देवता से मन्नत (विनती) करते हैं, जिससे खोई हुई वस्तु मिल जाती है, और फिर पूजा कर प्रसाद चढ़ा दिया जाता है।

कबरा पहाड़ के शैलाश्रय को लेकर गाँव में कुछ नियम कायदे भी हैं। बताया गया कि उस स्थान पर नशा करके जाना, धूम्रपान करना, जूते-चप्पल पहनकर जाना, रजस्वला स्त्री का जाना और अशुद्धि (जन्म और मृत्यु के दौरान) में जाने की सख्त मनाही है और जो नहीं मानकर, अपवित्र होकर वहाँ चला जाता है, तो मधुमक्खियाँ उसे भगा देती हैं तथा उसके साथ अनिष्ट होता है।  

रायगढ़ नगर के नजदीक और राजमार्ग से लगा हुआ होने के कारण यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या दिनों दिन बढ़ने लगी है। ग्रामीणों के अनुसार कई बार विदेशी पर्यटकों का भी आना हुआ है। पर, कुछ लोगों ने शैलचित्रों पर पेंट, कोयला आदि से नाम लिखकर निंदनीय कार्य किया है, प्राचीन धरोहर को वो क्षति पहुँचाई है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। बताया गया कि वन विभाग के जिम्मेदार अफसरों ने स्थल को सुरक्षित करने  के लिए बाड़ (fence) लगवाई थी, ताकि आने वाले पर्यटक दूर से ही अवलोकन करें और उन्हें हाथ न लगा सकें। लेकिन कुछ दिन बाद ही कुछ लोग उसे भी उखाड़ कर चुरा ले गये।

 

पर्यटक बर्बरता के कारण हो रहा नुकसान

पर्यटक बर्बरता के कारण हो रहा नुकसान. Courtesy: Rohit Rajak

 

कबरा पहाड़ से जुड़ी उपरोक्त मान्यताओं के साथ ही शैलाश्रय के बीचों-बीच हाल ही में बने एक चबूतरे पर रखे पत्थर को गाँव वालों द्वारा शिवलिंग के रूप में पूजा जाना, यह इंगित करता है कि भले ही यह शैलाश्रय अब अनुपयोगी (मानव के आश्रय स्थल के रूप में) हो चुका है और आज का आदमी उस आदिम चित्रकारी को भी भूल चुका है, लेकिन सदियों और पीढ़ियों से वह उस चित्रित शैलाश्रय से आधिदैविक और आधिबौद्धिक स्तर पर जुड़ा रहा है। यही कारण है कि विभिन्न पर्व-त्यौहारों, विवाह आदि के अवसर पर अपने वर्तमान निवास की भित्तियों को भी विविध अभिकल्पों, चित्रों से सजाया जाता है।

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.