‘शैलाश्रय’ (rock shelter) शब्द सुनते ही किसी पहाड़ी गुफा का चित्र मस्तिष्क में उभरता है। पर यह गौर करने वाली बात है कि सभी शैलाश्रय, पहाड़ी गुफा ही होते हैं, लेकिन सब पहाड़ी गुफाएँ या कन्दरायें शैलाश्रय नहीं होतीं। दोनों में एक बात सामान्य है कि दोनों ही प्राकृतिक हैं, मतलब उन्हें (गुफा या शैलाश्रय को) बनाने में मानव का कोई हाथ नहीं रहा। हाँ, जिन प्राकृतिक गुफाओं में मानव के रहने, बसने के चिह्न या उसके किसी गतिविधि, क्रियाकलाप के अवशेष या प्रमाण मिलते हैं, केवल उसे ही शैलाश्रय स्वीकार किया जाता है, बाकि सब प्राकृतिक गुफा मात्र ही हैं। गुफा जिसका उपयोग मनुष्य ने अधिवास हेतु किया हो, वही है- ‘शैलाश्रय’।
![जोगड़ा देव, गोटीटोला का चित्रित शैलाश्रय](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/12_6.jpg?itok=8HARDeyo)
जोगड़ा देव, गोटीटोला का चित्रित शैलाश्रय. Courtesy: Rohit Rajak
उरकुड़ा, चारामा का चित्रित शैलाश्रय. Courtesy: Rohit Rajak
उसमें इतनी समझ आ गई थी, कि उत्तरजीविता के लिए कौन सी जगह और परिस्थितियाँ उसके अनुकूल हैं। यही कारण है कि उसने जलस्रोतों के निकट, ऐसी पहाड़ी गुफाओं का चयन किया, जो उसकी सुरक्षा के लिहाज से उपयुक्त तो हों ही, आसपास के जंगलों में उसके भोजन के लिए फल, कंद-मूल और शिकार के लिये पक्षी और जानवर भी उपलब्ध हों।
![उषाकोठी, करमागढ़ का चित्रित शैलाश्रय](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/9_1.jpg?itok=ic-tYvAZ)
उषाकोठी, करमागढ़ का चित्रित शैलाश्रय. Courtesy: Rohit Rajak
शैलाश्रयी मानव के बारे में जानने का कोई लिखित विवरण नहीं है और तब के भाषा-लिपि का स्वरूप ज्ञात नहीं। ऐसी परिस्थिति में उनके पर्यावास की भौगोलिक, जलवायविक और जैविक दशाएँ, आस-पास उपलब्ध जीव-वनस्पति, उनके द्वारा प्रयुक्त पत्थर के विभिन्न औजार, बनाये गये चित्र, उकेरी गई आकृतियाँ आदि ही तत्कालीन मानव सभ्यता एवं संस्कृति को जानने का स्रोत बनती हैं।
छत्तीसगढ़ में प्राचीन से अर्वाचीन समृद्ध सभ्यता और संस्कृति के परिचायक मूर्त एवं अमूर्त धरोहरों में यहाँ के चित्रित शैलाश्रयों का प्रथम स्थान है। ये सभ्यता के प्रारंभिक चरण में तत्कालीन मानव के अवचेतन मन में पनप रहे प्रदर्शनकारी कलाओं की न केवल अभिव्यक्ति वरन् उसके भौतिक एवं सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानने का प्रमुख आधार भी हैं।
1910 में सी.डब्ल्यू. एण्डरसन द्वारा सिंघनपुर के चित्रित शैलाश्रय की खोज के साथ ही छत्तीसगढ़ में इस दिशा में अन्वेषण, अध्ययन की शुरूआत हुई। विगत एक शताब्दी में अमरनाथ दत्ता, पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय, डॉ. जी.एल. बादाम, श्री जी.एल. रायकवार, श्री एस.एस. यादव, डॉ. भारती श्रोती, श्री राहुल कुमार सिंह, श्री जे.आर. भगत, डॉ. जॉन क्लॉट्स, डॉ. मीनाक्षी दूबे पाठक आदि अध्येताओं ने प्रदेश के चित्रित शैलाश्रयों से संबंधित जानकारी को समृद्ध किया, जिसके फलस्वरूप छत्तीसगढ़ के उत्तर में सरगुजा से लेकर दक्षिण में बस्तर तक चित्रित शैलाश्रय प्रतिवेदित हैं। उनके वितरण को अधोलिखित तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है-
छत्तीसगढ़ के चित्रित शैलाश्रय
संभाग |
जिला |
तहसील |
निकटस्थ गाँव |
चित्रित शैलाश्रय |
बस्तर |
कांकेर |
कांकेर |
कंकेर |
मनकेसरी |
मेहपुर |
पतई डोंगरी |
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कुलगाँव |
सिंगार पाथर |
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चरामा |
उरकुडा |
जोगी गुफा |
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ठाकुरपारा |
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गोटीटोला |
जोगड़ा देव |
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चंदेली |
शीतला माँ |
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गाड़ागौरी |
शीतला माँ |
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खैरखेड़ा |
बालेराव |
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भानुप्रतापपुर |
तेतापारा |
लिखा पाथर |
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कोण्डागाँव |
केशकाल |
बडे डोंगर |
आलोर |
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बावनीमारी |
लिमदरहा |
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मुत्तेखड़का |
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कोड़ाखड़का |
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सिंगारहूर |
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विश्रामपुरी |
लहूहाथा, माँ झिनगढ़ |
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बिलासपुर |
रायगढ़ |
रायगढ़ |
भैंसगढ़ी |
बेनीपाट |
भोजपल्ली |
कबरा पहाड |
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खैरपुर |
टीपाखोल |
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करमागढ़ |
उषाकोठी |
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सिंघनपुर |
सिंघनपुर |
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घरघोड़ा |
नवागढ़ी |
नवागढ़ी |
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सारंगढ़ |
गोमर्ड़ा |
उषाकोठी |
||
सिरौली डोंगरी |
सिरौली |
चिकन पाथर |
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अँगनई |
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देव पाथर |
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धरमजयगढ़ |
पोटिया |
रबकोह |
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जमुना |
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अर्पित |
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ओंगना |
लेखामाड़ा |
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सोखामुड़ा |
हांथा |
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खरसिया |
बोतल्दा |
लेखापोड़ा |
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बसनाझर |
बम्हनदाई |
|||
गिधा |
गिधा पाथर |
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सोनबरसा |
अमर गुफा |
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सोंटीघाट, सोंटी |
भालूमाड़ा |
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भंवरखोल |
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कोरबा |
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रैनखोल |
सुवरपाट |
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सीता चैकी |
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सरगुजा |
कोरिया |
सोनहत |
बदरा |
घोड़सार |
सीता लेखनी |
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बड़े फोटोछट्टन |
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छोटे फोटोछट्टन |
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अमलीमाड़ा |
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जनकपुर |
भांवरखोह |
कोहबउर |
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अम्बिकापुर |
मैनपाट |
ढ़ोढे़गाँव |
लिखा पखना |
|
सूरजपुर |
ओड़गी |
बलनारे |
सीता लेखनी, लक्ष्मण पंजा |
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कुदरगढ़ |
कुदरगढ़ |
|||
जशपुर |
बगीचा |
रेंगले |
लिखा पाथर |
|
लैलूंगा |
सागरपाली |
लिखामाड़ा |
||
मनोरा |
टीलटांगर |
लिखाआरा |
||
दुर्ग |
बालोद |
गुण्डरदेही |
बोईरडीह |
चितवा डोंगरी |
कबीरधाम |
बोड़ला |
छुही |
छुही |
उपलब्ध प्रमाणों से इस अँचल में काल एवं क्षेत्र विस्तार के सापेक्ष, विविध विषयाधारित शैलचित्र कला के समृद्ध होने के साथ ही अनेक परम्पराओं की अर्वाचीन काल तक निरंतरता की जानकारी प्राप्त होती है।
बस्तर संभाग के चित्रित शैलाश्रय
इस क्षेत्र के कांकेर और कोण्डागाँव जिले में चित्रित शैलाश्रयों के प्रमाण मिले हैं। कांकेर, बस्तर का प्रवेशद्वार है, जहाँ शिवनाथ-महानदी और उनकी सहायक नदियों से सिंचित समतल मैदानी भाग के दक्षिणी छोर पर मेकल की पर्वत श्रृंखलाएँ कभी प्रागैतिहासिक मानव का आश्रय स्थल रहा। कांकेर जिले के ज्ञात शैलाश्रयों में प्राप्त चित्रांकन की जानकारी इस प्रकार है-
मनकेसरी (कांकेर) |
हथेली (पंचांगुल) एवं धूमिल मानव आकृतियाँ |
पतई डोंगरी (मोहपुर) |
हथेली और अस्पष्ट रेखाकृतियाँ |
सिंगार पाथर (कुलगाँव) |
पशु, कछुआ, मछली, दण्डाकार लघु मानवाकृतियाँ |
जोगी गुफा (उरकुड़ा) |
जोड़ा हिरन, जटिल रेखांकन, स्त्रियों का समूह |
ठाकुरपारा (उरकुड़ा) |
पशु, हथेली (स्टेंसिल) और परिधान युक्त मानव आकृतियाँ |
जोगड़ा देव (गोटीटोला) |
पक्षी, हथेली और पग चिह्न |
शीतला माँ (चंदेली) |
पीले एवं लाल रंग निर्मित मानवाकृतियाँ, धनुषधारी और विशिष्ट सिरोभूषा युक्त त्रिशूलधारी मानव का अँकन |
गढशीतला (गाड़ागौरी) |
विशेष सिरोभूषा वाली मानव आकृतियाँ |
नौकर गुड़रा, बालेराव और |
ऊद्बिलाव सदृश पशु आकृतियाँ एवं ‘कप मार्क्स[1]’ |
चांद पखरा (खैरखेड़ा) |
तीर-धनुष पकड़े ‘शिकारी मानव’, हथेली और पग चिह्न, चंद्राकृति, पंख फैलाए पक्षियों अँकन |
![तेतापारा, भानुप्रतापपुर का चित्रित शैलाश्रय](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/3_11.jpg?itok=xSncUwB8)
तेतापारा, भानुप्रतापपुर का चित्रित शैलाश्रय. Courtesy: Rohit Rajak
मनकेसरी, कांकेर के शैलचित्र. हाँथ का छाप . Courtesy: Rohit Rajak
जोगड़ा देव, गोटीटोला के शैलचित्र. Courtesy: Rohit Rajak
कोण्डागाँव जिले के केशकाल क्षेत्र से ज्ञात चित्रित शैलाश्रयों में नृत्य करते मानव समूह, शिकार के दृश्य, हथेली, अँगुली के निशान, पशुओं की छोटी आकृति, जटिल रेखांकन, हिरण, बारहसिंगा आदि का चित्रांकन प्राप्त होता है। बस्तर संभाग के चित्रित शैलाश्रयों का कालखण्ड मध्यपाषाण काल से ऐतिहासिक काल तक माना गया है।
बिलासपुर संभाग के चित्रित शैलाश्रय
इस क्षेत्र के रायगढ़ और कोरबा जिले से चित्रित शैलाश्रय ज्ञात हैं। इनमें सबसे समृद्ध क्षेत्र रायगढ़ जिला है, जहाँ से सर्वाधिक चित्रित शैलाश्रय स्थल प्रतिवेदित हैं। हसदो-महानदी और उनकी सहायक नदियों से आप्लावित अँचल में पुटका-देवपहरी पर्वत श्रृँखलाएँ उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में विस्तारित हैं। मध्यम ऊँचाई की ये बलुकाष्म पहाड़ियाँ प्रागैतिहासिक काल के मानव के लिए आदर्श आश्रय स्थल रहीं। रायगढ़ जिले के ज्ञात शैलाश्रयों में प्राप्त चित्रांकन की जानकारी इस प्रकार हैं-
![बालेराव, खैरखेड़ा के शैलचित्र](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/13_0.jpg?itok=62LzYcdk)
हाँथ का छाप. Courtesy: Rohit Rajak
बेनीपाट (भैंसगढ़ी) |
धूमिल जटिल अलंकरण और हाल ही में दर्शनार्थियों द्वारा बनाये त्रिशूल, स्वास्तिक, ताराकृति, हथेली आदि चित्र |
कबरा पहाड़ (भोजपल्ली) |
लकड़बग्घा, हिरण, गोह, मोर, बारहसिंगा, कछुआ, तितली, मकड़ी, नाचते मानव समूह और जटिल रेखांकन |
उषाकोठी (करमागढ़) |
विविध रंग-रूप के जटिल सघन रेखांकन, हाथ उठाये मानवाकृतियाँ, गोह, वृक्ष, कमल व अन्य फूल, धान-गेहूँ के तने व पत्तियाँ, हाथी, बारहसिंगा, सांप, कछुवा, मछली, मेंढक, मोरनी आदि के लाल, सफेद और पीले रंग से बने चित्र प्राप्त हुए हैं। |
सिंघनपुर (सिंघनपुर) |
मानवाकृतियाँ, भालू, हिरण और जटिल रेखांकन |
नवागढ़ी (नवागढ़ी) |
हथेली, कुछ अस्पष्ट मानव या पशु आकृतियाँ, दोहरे वृत्त के भीतर एक-दूसरे को समकोण पर काटती खड़ी और आड़ी रेखाओं के चित्र |
उषाकोठी (शिवपुर, गोमर्ड़ा) |
लाल-भूरे रंग से एक पंक्ति में बने पग चिह्न (इनमें से कुछ में केवल चार जबकि एक में छः अँगुलियाँ हैं) और हाथ-पैर फैलाये कुछ मानव चित्र |
चिकन पाथर, अँगनई और |
शिशु और व्यस्क का पग चिह्न, हथेली, हिरण, दण्डाकार मानवाकृति, कछुआ, स्वास्तिक एवं जटिल रेखांकन आदि चित्र |
देव पाथर (सिरौली डोंगरी) |
हथेली, शिकारी मानव, नाचते हुये मानव, सांड, हिरन आदि के चित्र |
रबकोह, जमुना और |
हथेली, विशिष्ट सिरोभूषा वाले मानव (कुछ नाचते हुये), तंतु वाद्य बजाते, मशाल लिये मानव, गर्भवती स्त्री और जटिल रेखाकृतियों के चित्र |
अर्पित (पोटिया) |
केवल विभिन्न आकार की हथेलियाँ- छाप और स्टैंसिल |
लेखामाड़ा (ओंगना) |
तलवारधारी घुड़सवार, ढ़ोल और मुख वाद्य बजाते पुरूष तथा नाचती हुई स्त्रियाँ, बाघ, बारहसिंगा, पक्षी और रेखानुकृतियाँ |
हांथा (सोखामुड़ा) |
छोटी-छोटी पशु और मानवाकृतियाँ, धनुष धारी, दौड़ते हुये हिरण, बारहसिंगा, भालू, मोर, गोह और जटिल रेखांकन |
लेखापोड़ा (बोतल्दा) |
जंगली सुअर, हाथी और हाथ उठाये कुछ मानवाकृतियाँ |
बम्हनदाई (बसनाझर) |
मानव और पशु का रेखांकन, वनभैंसा, धनुष-बाण पकड़े शिकार करते मानव, हाथ पकड़ नाचता मानव पंक्ति तथा जटिल रेखांकन |
![. उषाकोठी, करमागढ़ के शैलचित्र](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/7_0.jpg?itok=JOuLxl_j)
उषाकोठी, करमागढ़ के शैलचित्र. Courtesy: Rohit Rajak
लेखामाड़ा, ओंगना के शैलचित्र. मानव . Courtesy: Rohit Rajak
![बम्हनदाई, बसनाझर के शैलचित्र](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/4_9.jpg?itok=3m12W_zc)
बम्हनदाई, बसनाझर के शैलचित्र. बैल, जंगली सुअर, गेंडा, हिरण. Courtesy: Rohit Rajak
कोरबा जिले से दो चित्रित शैलाश्रय ज्ञात हैं। इनमें मानव समूह, भालू, हाथ उठाये स्त्री पुरूष, ज्यामितीय रेखांकन आदि और सतह पर कप मार्क्स का अँकन प्राप्त होता है। बस्तर संभाग के चित्रित शैलाश्रयों का कालखण्ड उत्तर पुरापाषाण काल से ऐतिहासिक काल तक माना गया है।
सरगुजा संभाग के चित्रित शैलाश्रय
छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र में कोरिया, अम्बिकापुर, जशपुर और सूरजपुर जिले से चित्रित शैलाश्रय प्रतिवेदित हैं, जो छोटा नागपुर पठार के अभिन्न अँग हैं। इनमें सबसे अधिक शैलाश्रय कोरिया जिले के सोनहत तहसील में बदरा की पहाड़ियों में हैं। सरगुजा संभाग के ज्ञात शैलाश्रयों में प्राप्त चित्रांकन की जानकारी इस प्रकार है-
![घोड़सार, बदरा के शैलचित्र](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/8_1.jpg?itok=0ShCGL9G)
घोड़सार, बदरा के शैलचित्र. नाचते मानव. Courtesy: Rohit Rajak
घोड़सार, सीता लेखनी, बड़े फोटोछट्टन, छोटे फोटोछट्टन और अमलीमाड़ा (बदरा) |
लाल और सफेद रंग निर्मित सिंग आकृति (सिरोभूषा), वनभैंसा, हाथी, हिरण, हाथ फैलाये मानवाकृति, बिन्दुओं से निर्मित मानव पंक्ति, वृत्त, हथेली, बारहसिंगा, सांड, खरगोश, मानव मुखाकृति, बन्दर, भालू, जंगली सुअर, आदि तथा सतह पर कप मार्क्स |
कोहबउर (भांवरखोह, मुरेलगढ़) |
लाल और पीले रंग से निर्मित हथेली, मानव की उल्टी आकृति, अनुष्ठान करते मानव समूह, सांड और जटिल रेखाकृतियाँ |
लिखा पखना (ढ़ोढे़गांव) |
छोटे-छोटे जटिल रेखांकन, डमरू सदृश आकृति, पैर फैलाये और हाथ उठाये मानवाकृतियाँ, सिर के बल खड़ा मानव, अस्पष्ट पशु आकृतियाँ, स्वास्तिक चिह्न आदि |
कुदरगढ, सीता लेखनी, लक्ष्मण पंजा |
लाल और सफेद रंग से निर्मित बाघ, भालू, खड़ी रेखाएँ, सांड, नाचते हुये मानव समूह, दण्डाकार मानव आकृति, हिरण आदि |
![कोहबउर, मुरेलगढ़ के शैलचित्र](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/9_2.jpg?itok=OUP_4_VV)
कोहबउर, मुरेलगढ़ के शैलचित्र. रंग बिरंगा कछुआ . Courtesy: Rohit Rajak
हाल ही में जशपुर जिले के बगीचा, लैलूंगा और मनोरा तहसील से भी चित्रित शैलाश्रय प्रकाश में आए हैं, जिनमें मुख्यतः ज्यामितीय आकृतियों की प्रधानता है।
दुर्ग संभाग के चित्रित शैलाश्रय
इस क्षेत्र के बालोद और कबीरधाम जिले से एक-एक स्थल अभी तक ज्ञात हैं। चितवा डोंगरी में दो छोटे-छोटे शैलाश्रय हैं, जिनमें बड़े आकार में मानव चित्र के साथ ही रश्मियुक्त सूर्य तथा एक स्त्री आकृति को आग से उत्पन्न होते अँकित किया गया है। वहीं छुही से ज्ञात शैलाश्रय में धूमिल रेखांकन ही शेष हैं।
![चितवा डोंगरी, बालोद का शैलचित्र](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/10_0.jpg?itok=B9Fe4Bpw)
चितवा डोंगरी, बालोद का शैलचित्र. मानव . courtesy: Rohit Rajak
हजारों साल पुरानी शैलाश्रयों में मिलने वाले चित्रों के कुछ परिवर्तित, परिमार्जित और अभिकल्पित रूप छत्तीसगढ़ के वनांचलों में वर्तमान ग्राम्य संस्कृति में विभिन्न पर्वोत्सवों पर घर की दीवारों पर बनाये जाने वाले भित्तिचित्र-अल्पनाओं में देखे जा सकते हैं। शैलचित्र कला कालान्तर में पर्वतीय गुफाओं से निकलकर, तलहटी और मैदानी क्षेत्रों की ग्रामीण संस्कृति में भित्तिचित्रों और माँगलिक प्रतीकों के रूप में परिष्कृत एवं संवर्धित हुई।
![वर्तमान काल का भित्तिचित्र](https://www.sahapedia.org/sites/default/files/styles/sp_inline_images/public/inline-images/11_4.jpg?itok=K8Rl6bK7)
वर्तमान काल का भित्तिचित्र. Courtesy: Rohit Rajak
संदर्भः
- इण्डियन आर्कियोलॉजी ए रिव्यू. 1977-78.
- इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, खण्ड-13.
- खरे, एम.डी. 1981. पेन्टेड रॉक-शेल्टर्स. भोपाल.
- गुप्त, जगदीश. 1965. प्रागैतिहासिक भारतीय चित्रकला.
- जर्नल ऑफ बिहार एण्ड ओरिसा रिसर्च सोसायटी. 1918. पटना.
- दत्ता, अमरनाथ. 1931. अ प्रीहिस्टॉरिक रेलिक्स एण्ड द रॉक पेंटिंग्स आॉफ सिंघनपुर.
- पाण्डेय, पं. लोचन प्रसाद. ‘प्राच्या प्रतिभा’, महाकोसल हिस्टारिकल सोसायटी पेपर्स. अँक 9-10.
- ब्राउन, पर्सी. 1917. इण्डियन पेंटिंग्स, हेरिटेज ऑफ इण्डिया सीरीज.
- मसीह, पूर्णिमा. 1996. मध्यप्रदेश की प्रागैतिहासिक चित्रकला. भोपाल.
- मेमायर्स ऑफ दि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया. भाग-24.
- शर्मा, आर.के. 2010. मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के पुरातत्व का संदर्भ ग्रंथ, द्वितीय संस्करण. भोपाल: मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी.
- साइंस एण्ड कल्चर. भाग-5, अँक-3.
[1] एक प्रकार का प्रागैतिहासिक कलारूप जिसमें पत्थर पर वृत्ताकार आकृतियाँ गुदी होती हैं
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.