अफ़रोज़ आलम साहिल ने बिहार सरकार के स्टेट प्लानिंग बोर्ड के पूर्व सदस्य व सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी सैय्यद गुलरेज़ होदा से अप्रैल 2020 में बातचीत की। 

बौद्ध धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है चम्पारण - आई.ए.एस. गुलरेज़ होदा

in Interview
Published on: 23 September 2020

अफ़रोज़ आलम साहिल (Afroz Alam Sahil)

अफ़रोज़ आलम साहिल एक स्वतंत्र पत्रकार व शोधकर्त्ता हैं. वह बीबीसी, इंडिया टाईम्स, नवजीवन, टीसीएन और कई अन्य मीडिया प्लेटफार्मों के लिए लिखते हैं। उन्होंने पांच किताबें लिखी हैं और एक का अनुवाद किया है। वर्तमान में वह Beyond Headlines के संपादक हैं। एक पत्रकार के रूप में उनके काम को राष्ट्रीय पहचान मिली है और उन्हें पिछले आठ सालों में 20 से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

बिहार में स्थित चम्पारण की धरती पूरे विश्व में फैले बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए हमेशा से ख़ास रही है।

सम्राट अशोक और महात्मा बुद्ध की याद में इतराती रही है। बावजूद इसके बौद्ध सांस्कृतिक विरासत के संबंध में चम्पारण का इतिहास एक ऐसी चीज़ हैजिसे बहुत अधिक नहीं देखा गया है। ऐतिहासिक धरोहरों का क्या महत्व हैअंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कैसे पर्यटकों को चम्पारण आने के लिए आकर्षित किया जा सकता हैसरकार को क्या करना चाहिएइन्हीं सवालों को लेकर अफ़रोज़ आलम साहिल ने बिहार सरकार के स्टेट प्लानिंग बोर्ड के पूर्व सदस्य व सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी सैय्यद गुलरेज़ होदा से अप्रैल 2020 में बातचीत की। 

1977 असम बैच के आई..एसअधिकारी गुलरेज़ होदा ने साल 2018 में बिहार स्टेट प्लानिंग बोर्ड से इस्तीफ़ा देकर बिहार सरकार में पूर्व मंत्री पूर्णमासी राम के साथ मिलकर अपनी पार्टी जन संघर्ष दल बनाई है। इस पार्टी का ख़ास मक़सद चम्पारण से बेरोज़गारी दूर करने के साथ-साथ यहाँ की ऐतिहासिक धरोहरों को ख़ास पहचान दिलाना है। गुलरेज़ होदा इससे पहले इंटरनेशनल फाईनेंस कॉरपोरेशन के साथ वर्ल्ड बैंक के एक्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर के सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं। इससे पहले भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ फाईनेंस में 22 साल अपनी सेवाएं दी हैं। पेश है इस साक्षात्कार के संपादित अंश…    

 

अफ़रोज़ आलम साहिल (अ.सा.): चम्पारण का जो बौद्ध इतिहास हैउसको आप कैसे देखते हैं?

सैय्यद गुलरेज़ होदा (गु.हो.): महात्मा बुद्ध की पूरी कहानी चम्पारण से शुरू होती है। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि गौतम बुद्ध जब कपिलवस्तु से निकले थे तो चम्पारण के रमपुरवा में आकर ही उन्होंने अपनी शाही ज़िन्दगी को त्याग कर भिक्षु का भेस धारण किया। यहीं पर उनके केश का मुंडन हुआ। उनके सारथीचन्दक से जो उनकी बातें हुईं थीवो बौद्ध साहित्य में बहुत महत्व रखती है। चन्दक उनसे कह रहा था कि आप राज की ज़िम्मेदारियों से बचकर यूँ नहीं जा सकते हैं तो इस पर उनका जो जवाब आता हैवही बौद्ध साहित्य में Great Renunciation कहलाता है। तो ये भी यहीं की बात है। चम्पारण से ही वो सत्य की खोज में निकलते हैं। शुरू के दिनों में चम्पारण में रहकर ही यहाँ के अलग-अलग आश्रमों में गए। फिर अरेराज होते हुए वैशाली और वहाँ से राजगीर की तरफ़ चले गए। चम्पारणभगवान बुद्ध बल्कि यूँ कहें कि बौद्ध धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है। चम्पारण बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा है।

इसके अलावा मैं यह भी कहना चाहूंगा कि अभी भी यहाँ बहुत कुछ हैजो फिलहाल ज़मीन पर नज़र नहीं आता। सब ज़मीन के अंदर है। अगर लौरिया नंदनगढ़ के आस-पास खुदाई हो तो बहुत कुछ निकलेगा। रमपुरवा के नज़दीक हरगौड़ा नदी है। इतिहास में उसका एक अलग महत्व है। उसी नदी के रास्ते महात्मा बुद्ध चम्पारण में आए थे। यानी चम्पारण में बौद्ध इतिहास से जुड़ा बहुत कुछ है। लेकिन सरकार का ध्यान अभी इस ओर नहीं गया है। 

 

अ.सा.: चम्पारण में बौद्ध धर्म से जुड़ी जो ऐतिहासिक धरोहर हैंआज के दौर में उनके महत्व को कैसे देखते हैं?

गु.हो.: जो पुरातत्व से जुड़ी यहाँ ऐतिहासिक धरोहर हैंउनकी अहमियत को फिर से उजागर करने की ज़रूरत है। लोग अभी बौद्ध धर्म में चम्पारण की अहमियत को नहीं जानते हैं। बाहर की दुनिया की बात कौन कहेख़ुद चम्पारण के लोग इससे अनजान हैं। महात्मा बुद्ध से मुहब्बत करने वाले बोधगयाराजगीर तक पहुंच जाते हैं। नालंदा भी चले जाते हैं। कुछ लोग तो अब वैशाली भी आने लगे हैं। पर चम्पारण जो बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा हैउसके बारे में दुनिया को कोई ख़ास जानकारी नहीं है। इसकी अहमियत को लोगों तक पहुंचाने की सख्त ज़रूरत है।

 

अ.सा.: इन धरोहरों की जो वर्तमान हालत हैउसको लेकर आप क्या सोचते हैं?

गु.हो.: इन धरोहरों पर बहुत काम करने की ज़रूरत है। क्योंकि फिलहाल तो यहाँ पर्यटकों के लिए कुछ भी नहीं है। न यहाँ शौचालय की सुविधा है और न ही पार्किंग की। न यहाँ कोई किसी को गाईड करने वाला है। गाईड भी तब करे जब किसी को इसका सही इतिहास पता हो। इसके लिए यहाँ हर पर्यटन स्थल पर एक इंफ़ॉर्मेशन सेन्टर होना चाहिए ताकि जो लोग भी इसे देखने आएंउन्हें इसका सही इतिहास और इसकी अहमियत बताई जा सके। इसके लिए यहाँ शिक्षित गाइड की सख्त ज़रूरत है। 

 

अ.सा.: सरकार को क्या काम करना चाहिए?

गु.हो.: मैं इस पूरे काम को तीन हिस्सों में बांट कर देखता हूँ। 

— पहला काम तो ये होना चाहिए कि यहाँ जो ऐतिहासिक धरोहर हैंउनके देखभाल व रख-रखाव के साथ-साथ इनके फिज़िकल इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना चाहिए। 

— दूसरा कामइसके बारे में लिखित इतिहास को संकलित करके लोगों के सामने लाया जाए। इसके लिए एक संग्रह हो कि कैसे यह सब कुछ महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ा हुआ है।

तीसरा कामआज के नई पीढ़ी के लोगों को बताने के लिए इन धरोहरों को पर्यटन से जोड़ना बहुत ज़रूरी है। और पर्यटन के लिए जो भी ज़रूरी चीज़ें हैंउन सबका इंतज़ाम सरकार को करना चाहिए। 

 

अ.सा.: सरकार ने कुछ सालों पहले बौद्ध सर्किट बनाने की बात की थी। चम्पारण भी इस सर्किट में शामिल थातो फिर इसे अब तक नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा हैक्यों सरकार ने इन धरोहरों के रख-रखाव के लिए कुछ भी नहीं कर रही है?

गु.हो.: सरकार ने चम्पारण को बौद्ध सर्किट से जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं किया है। सच तो यह है कि न आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को वक़्त है और न बिहार व केन्द्र सरकार के पास ही इसके बारे में सोचने का समय है। जबकि इस पर दोनों को ध्यान देने की ज़रूरत है। आप समझिए कि ये एक ख़ज़ाना है। और वैसे भी यह तमाम धरोहर हमारी विरासत हैं। इसका देखभाल करना और इसे सही स्तर पर लाने का काम सरकार का है। ये काम हम और आप नहीं कर सकते। मुझे लगता है कि कम से कम चम्पारण के जन-प्रतिनिधियों को सरकार के समक्ष आवाज़ उठाना चाहिए। सरकार को भी समझने की ज़रूरत है कि इसके विकास से उसे आर्थिक फ़ायदे बहुत होंगे। यहाँ जो बेरोज़गारी का मसला हैइसके पर्यटन स्थल बन जाने से काफ़ी हद तक दूर किया जा सकता है। बेरोज़गार नौजवान जो ग़लत दिशा में जा रहे हैंवो रोज़गार मिलते ही देश की तरक़्क़ी में अपना योगदान देने लगेंगे। 

 

अ.सा.: इन धरोहरों का अंतर्राष्ट्रीय महत्व क्या है?

गु.हो.: एक बार मेरी मुलाक़ात श्रीलंका के राजदूत से हुई थी। वो चम्पारण के इन धरोहरों के महत्व को बख़ूबी जानते थे। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की वहाँ जाने में बहुत दिलचस्पी है और वो रमपुरवा के बारे में जानते हैं। लेकिन वहाँ तक पहुंचने की कोई ख़ास सुविधा नहीं है। मतलब साफ़ है कि बौद्ध धर्म के ज़्यादातर मानने वाले चम्पारण के महत्व को जानते हैंआना भी चाहते हैंलेकिन केसरिया से ही उन्हें लौटना पड़ता है। क्योंकि रमपुरवा तक आने के लिए कोई ख़ास सुविधा नहीं है। सही सड़कें नहीं हैं। रहने के लिए होटल नहीं हैं। यहाँ कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। अगर ये तमाम सुविधाएं उपलब्ध हो जाएं तो यक़ीनन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भी ज़रूर आएंगे।    

 

अ.सा.: आपने खुद बिहार सरकार के साथ उसके योजना बोर्ड में काम किया है। क्या आपने इस संबंध में सरकार तक बात पहुंचाने की कभी कोई कोशिश की है?

गु.हो.: औपचारिक रूप से नहीं। लेकिन अनौपचारिक रूप से मैंने सरकार के कई लोगों से बातचीत की। बिहार हेरिटेज के अधिकारियों को भी इसके महत्व से आगाह किया। यहाँ क्या करने की ज़रूरत हैइस संबंध में उन्हें एक पेपर भी दिया। लेकिन अभी तक हुआ कुछ नहीं। दरअसलइसमें राजनीतिक इच्छा-शक्ति की भी कमी है। चम्पारण की जनता अगर आवाज़ उठाए तो सरकार इस पर ध्यान ज़रूर देगी। 

 

अ.सा.: आप सरकार को क्या सुझाव देना चाहेंगे?

गु.हो.: सरकार को मेरा यही सुझाव है कि बिहार को अगर पर्यटन के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है तो चम्पारण की तरफ़ ध्यान देना होगा। इन ऐतिहासिक महत्व की धरोहरों पर काम करना होगा। इसको लेकर आप योजना बनाइए। उसके तहत इंवेस्टमेंट कीजिए। और याद रहे कि बुद्धिज़्म टूरिज़्म का अपना एक अलग मॉडल है। इसमें अलग-अलग देशों से पर्यटक आते हैं। उनकी ज़रूरतों को भी समझना होगा। ऐसे में यहाँ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।