इतिहास हमें कई सबक़ सिखाता है जो इसकी परतों को खोलकर खोजे जाते हैं। यह भविष्य की बेहतरी में मदद करता है। बौद्ध सांस्कृतिक विरासत के संबंध में चम्पारण का इतिहास एक ऐसी चीज़ है, जिस पर और अधिक लिखे जाने की ज़रुरत है। ये वही चम्पारण है, जो एक तरफ़ महात्मा गांधी की कर्मभूमि रही है। वहीं ये धरती भगवान बुद्ध के इतिहास के साथ भी जुड़ी है। आज भी चम्पारण के कई स्थानों पर बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध की ज़िन्दगी से जुड़े होने के सबूत हैं। यहाँ के कई स्तूप व स्तंभ बौद्ध धर्म के अपने सभी रहस्यों को छिपाकर ख़ामोश पड़े हैं। अशोक द्वारा निर्मित कई स्तंभ आज भी ज़िले के कई हिस्सों में देखे जा सकते हैं। इससे प्रतीत होता है कि एक समय में बौद्ध धर्म अनुनायियों का यहाँ बहुत प्रभाव रहा है।
यह मॉड्यूल बिहार राज्य के चम्पारण ज़िले में मौजूद उन्हीं बौद्ध विरासत एवं धरोहरों के विभिन्न पहलुओं की खोज पर केन्द्रित है। इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है। पहला भाग परिचयात्मक लेख है, जिसमें ख़ास तौर पर चम्पारण में बौद्ध विरासत के इतिहास पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। दूसरा भाग चम्पारण में मौजूद बौद्ध धर्म से जुड़ी इन ऐतिहासिक धरोहरों की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण है, जिसके लिए शोधकर्त्ता ने दिल्ली से चम्पारण जाकर उन तमाम धरोहरों की वर्तमान हालत को अपनी आंखों से देखा, और चम्पारण में स्थानीय लोगों, इतिहासकारों और विद्वानों से बातचीत भी की। उसी के आधार पर इस दूसरे भाग को लिखा गया है। और तीसरा भाग चम्पारण में रहने वाले 1977 असम बैच के आई.ए.एस. गुलरेज़ होदा से इन धरोहरों से जुड़े सवालों पर साक्षात्कार है। गुलरेज़ होदा बिहार स्टेट प्लानिंग बोर्ड और इससे पहले इंटरनेशनल फाईनेंस कॉरपोरेशन के साथ-साथ वर्ल्ड बैंक के एक्ज़िक्युटिव डायरेक्टर के सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं। इससे पहले भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ़ फ़ाईनेंस में बाईस साल अपनी सेवाएं दी हैं। इस साक्षात्कार में इन धरोहरों के ऐतिहासिक व अंतर्राष्ट्रीय महत्व के साथ-साथ इसकी सुरक्षा और रख-रखाव में सरकार की भूमिका पर भी चर्चा की गई है।
उम्मीद है कि यह शोध चम्पारण की इन खोई हुई व धुंधली पड़ती अंतर्राष्ट्रीय धरोहरों को सहेजने का काम करेगा। साथ ही, इस शोध के द्वारा चम्पारण के इन ऐतिहासिक धरोहरों पर लोगों का ध्यान जाएगा।