करमा पर्व, मध्यवर्ती भारत की जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला सर्वाधिक प्रिय लोकपर्व है। यह पर्व भाद्रपद षुक्ल पक्ष की एकादषी को मनाया जाता है। वर्तमान समय में ,इस अवसर पर कथावाचन एवं नृत्य-गीतों का आयोजन होता है। इस पर्व के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य, करमा नृत्य एवं गीत करमा गीत कहलाते हैं। वस्तुतः यहाँ पर्व जनजातीय समाज में वृक्षों और मानव जीवन के संबंधों की अंतरंगता को दर्शाता है।
इस मॉड्यूल में छत्तीसगढ़ी करमा उत्सव, इस अवसर पर किये जाने वाले नृत्य-गीतों के विभिन्न प्रकारों और रूपों की पारम्परिक एवं समकालीन विविधताओं को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
करम स्तुति
अतेक दिना करम राजा डांड़े टिकुरे हो
आएज करम अखरा में ठाड़।
अतेक दिना करम राजा लिंगोटी सिंगोटी हो
आएज करम घूँठी ले धोती।
अतेक दिना करम राजा पानी के अहार हो
आएज करम दूध के अहार।
अनुवाद-
करम राजा तू तो अन्य दिनों में तो जंगल में रहता है
तथा आज तो आँगन में खड़ा है।
करम राजा तू बाक़ी दिनों में तो लंगोटी में रहता है
आज तो धोती बाँध ली है
हे करम राजा तू तो प्रति दिन पानी का आहार करता है
किन्तु आज दूध का आहार कर रहा है।
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.