Pandvani is one of the most celebrated performative genres from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.
The parv presented in this video is the Adi Parv. The prasangs contained in this parv are Utpatti, Kaurav Pandav Balcharita, Gandhaari Kunti Shivpujan, Bheem Sen Paataal Vijay, Laakshagrah, Hidimba, Bakasur, Draupadi swayamvar, Arjun vangaman, Subhadra haran, Khandav vandahan, Arjun hanuman milan.
प्रभा (Chhattisgarhi) |
बोल बिन्दा बन बिहारी लाल की – जय। |
प्रभा (Hindi) |
बोल वृन्दावन बिहारी लाल की – जय।
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कोरस |
जय। |
रागी |
जय।
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ये एक दन्त कुंजर वदन, ये मोर रामा सिव सुत उमा के कुमार जी ये मोर रामा सिव सुत उमा के कुमार जी ये हम प्रारम्भेक हरि कथा, ये मोर रामा तुम निवार्हन हार जी ये हम प्रारम्भेक हरि कथा, ये मोर रामा तुम निवार्हन हार जी जगदीश्वर को धन्य जिन, ये मोर रामा उपजायो संसार जी ये मोर रामा उपजायो संसार जी क्षिति जल नभ पावक पवन, ये मोर रामा करै न कोऊ विस्तार जी क्षिति जल नभ पावक पवन, ये मोर रामा करै न कोऊ विस्तार जी बुद्धि हीन तनु जान के ये मोर रामा सुमिरंव पवन कुमार जी ये मोर रामा सुमिरंव पवन कुमार जी बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, ये मोर रामा हरहु कलेश विकार जी ये मोर रामा हरहु कलेश विकार जी गणपति जग वंदन, गणपति जग वंदन गाइये ग, गाइये हो जी गणपति जग वंदन गाइये ग, गाइये हो जी गणपति जग वंदन सिद्धि सदन गज बदन विनायक, सिद्धि सदन गज बदन विनायक कृपा सिंधु सुंदर सब लायक, गणपति जग वंदन, गणपति जग वंदन गाइये ग, गाइये हो जी गणपति जग वंदन गाइये ग, गाइये हो जी गणपति जग वंदन मोदक प्रिय मुद मंगल दाता, मुद मंगल दाता मोदक प्रिय मुद मंगल दाता, मुद मंगल दाता जी विद्या वारिधि बुद्धि विधाता गाइये ग जी, गाइये हो जी गणपति जग वंदन गाइये ग, गाइये हो जी गणपति जग वंदन मांगत तुलसी दास कर जोरे जी, दास कर जोरे जी मांगत तुलसी दास कर जोरे जी, दास कर जोरे जी मांगत तुलसी दास कर जोरे जी, दास कर जोरे जी बसहु राम सीय मानस मोरे गाइये ग, गाइये हो जी गणपति जग वंदन गाइये ग, गाइये हो जी गणपति जग वंदन |
प्रभा |
हे एक दांत और हाथी जैसे शरीर वाले (गणेश जी) हे मेरे राम शिव के पुत्र और उमा के लाल गणेश जी हे मेरे राम शिव के पुत्र और उमा के लाल गणेश जी ये हमने हरि का प्रारंभ की है हे मेरे राम इसका निर्वहन आप करें ये हमने हरि का प्रारंभ की है हे मेरे राम इसका निर्वहन आप करें उस जगत के ईश्वर को धन्य है जिन्होंने सारा संसार उत्पन्न किया है हे मेरे राम जिन्होंने सारा संसार उत्पन्न किया है धरती जल आकाश अग्नि और वायु हे मेरे राम इसका विस्तार किसने किया हे पवन कुमार मैं आपको सुमिरण करता हूं हे मेरे राम आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है हे मेरे राम मैं आपको सुमिरण करता हूं मुझे शारिरिक बल सुबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए हे मेरे राम और मेरे दुखों और दोषों का नाश कर दीजिए हे मेरे राम मेरे दुखों और दोषों का नाश कर दीजिए गणपति (भगवान गणेश) की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है सिद्धि जिनके यहां निवास करती है जिनका एक सुंदर हाथी का चेहरा है सिद्धि जिनके यहां निवास करती है जिनका एक सुंदर हाथी का चेहरा है बुद्धि के दाता है कौशल और ज्ञान का एक महासागर है गणपति (भगवान गणेश) की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति (भगवान गणेश) की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है जिनको मोदक प्रिय है, जो मंगलदाता है जो मंगलदाता है जो बुद्धि देने वाले है और बुद्धि के विधाता है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है तुलसी दास दोनों हाथ जोड़कर उनसे विनती करता है कि उनकी कृपा से श्री राम भगवान सीता माता सदैव मेरे मस्तिष्क में वास करे ं गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है तुलसी दास दोनों हाथ जोड़कर उनसे विनती करता है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है गणपति की प्रशंसा गाओ जो पूरे विश्व के प्रशंसनीय है
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प्रभा |
बोलिये बृन्दा वन बिहारी लाल की जय। |
प्रभा |
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
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रागी |
जय। |
रागी |
जय।
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प्रभा |
गुरूदेव भगवान की जय। |
प्रभा |
गुरूदेव भगवान की जय।
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रागी |
जय। |
रागी |
जय।
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प्रभा |
अरे भईया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसम पायम जी कथे राजा जन्मेजय द्वापर के युग में कौरव बर पांडव जनम लेथे और कौरव अउ पांडव बर जनम लेके नाना प्रकार के चरित्र करथे रागी भईया ये महाभारत के चरित्र ये अइसन चरित्र ये जेला सुन जीव आवागमन से रहित हो जाथे। |
प्रभा |
अरे भैय्या, राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसम पायम जी कह रहें हैं कि राजा जन्मेजय द्वापर के युग में कौरवों के लिए पांडव जन्म लेते हैं और कौरव, पांडवों के लिए जन्म लेके नाना प्रकार के षडयंत्र करते हैं रागी भैय्या ये महाभारत के ऐसे चरित्र हैं जिन्हें सुनकर हर जीव आवागमन से मुक्त हो जाता है।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
ये महाभारत के चरित्र कैसे है तो बोले अपार है। |
प्रभा |
ये महाभारत के चरित्र कैसे हैं, तो कहते हैं अपार है।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
वैसम पायम मुनि जी राजा जन्मेजय ल ये महाभारत के पावन पवित्र कथा ल बतावत हे कहिस के राजन ये महाभारत के कथा अइसे हे... ‘अरे महाभारत यह चरित अपारा’ बोले कैसे है तो बोले अपार है भईया रागी हस्तिनापुर नाम के नगर के शान्तनु नाम के राजा राज्य करत रथे, राजा शान्तनु के स्त्री के नाव रहे अगा अधमा नाव तब राहन लागे भाई.. पतिव्रता अधमा राजा शान्तनु पुत्र के समान प्रजा के पालन करत रथे भईया बताथे अधमा के रूप देखे रति जी लज्जित हो जात रहीस के भइया ‘अइसन सुन्दर नारी दिखन लागे भइया, हां राजा तब काहन लागे ग ए भाई’ रागी भइया अधमा के सतीत्व ल भंग करे के खातिर भगवान ब्रम्हा राजा शांतनु के रूप धरे अउ धर के जाके अधमा के सतीत्व ल डिगा देथे अधमा के सतीत्व भंग हो जाथे, महारानी अधमा गंगा म डूब के अपन प्राण ल त्याग देथे राजा शांतनु हस्तिना नगर में ‘बिना रानी के राहन लागे रे भइया, बिना रानी के राहन लागे जी। |
प्रभा |
मुनि वैसम पायम जी राजा जन्मेजय को इस महाभारत के पावन पवित्र की कथा बता रहे हैं, वे कहते हैं कि राजन ये महाभारत की कथा इस प्रकार है... महाभारत की यह चरित्र अपरा है कहा कैसा है तो उन्होने कहा अपार है भईया रागी हस्तिनापुर नामक नगर के शान्तनु नाम के राजा राज्य करते थे, राजा शान्तनु की स्त्री का नाम अधमा था। अधमा पतिव्रता स्त्री थी और राजा शान्तनु अपने पुत्र के समान प्रजा का पालन कया करते थे। भैय्या बताते है कि अधमा का रूप देखकर रति भी लज्जित हो जाती थी, भैय्या अधमा इतनी सुन्दर और रूपवान नारी थी ‘’ हां राजा तब कहने लगे जी भाई’ रागी भैय्या अधमा का सतीत्व भंग करने के लिए भगवान ब्रम्हा ने राजा शांतनु का रूप धारण किया और रूप धर के जाकर अधमा के सतीत्व को डिगा दिया, अधमा का सतीत्व भंग हो जाता है, महारानी अधमा गंगा में डूब के अपने प्राण त्याग देती है। ‘’राजा शांतनु हस्तिनापुर नगर में ‘रानी के बिना ही रह रहे थे जी, बिना रानी के रहने लगे थे जी।‘’
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रागी |
‘बिना रानी के राहन लागे जी बिना रानी के दिन बितन लागे जी’। |
रागी |
बिना रानी के रहने लगे जी बिना रानी के दिन बितने लगे जी।
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प्रभा |
बिना रानी के ही राज्य चलात हे समय बितत हे रागी भाई बतात हे, एक दिन के बात ए आठो झन देवता मन ह अपन अपन पत्नी ल ले के ‘अ ग जंगल म ले के घूमन लागे भाई, ओमन जंगल म जाके घूमन लागे भाई, रानी मन कहन लागे भाई, रानी मन देखन लागे भाई, रानी कहन लागे भाई’ आठो देवता जंगल म घूमे बर निकले रथे आठो देवता जंगल म घूमे बर निकले रथे वशिष्ठ महराज के कामधेनू गईया ह कुटिया म बंधाय रथे आठो झन रानी देखथे अउ देख के कथे महराज ए गाय ल हमन चोरी करके लेग जतेन। |
प्रभा |
बिना रानी के ही राज्य चला रहे हैं, समय बीत रहा है रागी भाई बताते हैं, एक दिन की बात है सभी आठ देवता अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर ‘’अ जी जंगल मे ले के घूमने लगे जी भाई, वे लोग जंगल में जाके घूमने लगे भाई, सभी रानियां कहने लगीं भाई, सभी रानियां देखने लगे भाई, रानियां कहने लगी भाई’ आठों देवता जंगल म घूमने के लिए निकले हैं, वशिष्ठ महराज की कामधेनु गाय कुटिया में बंधी थी, आठों रानियां देखती है, और देख के कहती है, महराज इस गाय को हम चुराकर ले जाएंगें।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
स्त्री के बात ल मान के आठो झन देवता मन गाय ल चोरा के ले आथे ‘श्याम सुख दाई ग, मोर हलधर के भाई ग, भजन बिना मुक्त्िा नई होय भइया ग, भजन बिना मुक्ति नई होवय न’ |
प्रभा |
स्त्रियों की बात मानकर सभी आठों देवता गाय चुराकर ले जाते हैं, ‘श्याम सुख दाई जी, मेरे हलधर के भाई जी, भजन बिना मुक्त्िा नहीं होती भैया जी, भजन बिना मुक्ति नहीं होती है’।
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रागी |
‘भजन बिना मुक्त्िा नई होय भइया ग, भजन बिना मुक्ति नई होवय न’। |
रागी |
‘’भजन बिना मुक्त्िा नहीं होती भैया जी, भजन बिना मुक्ति नहीं होती है’।
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प्रभा |
जय मुधुसुदन कुंज बिहारी ग भजन बिना मुक्त्िा नई होय भइया ग, भजन बिना मुक्ति नई होवय न। |
प्रभा |
जय मुधुसुदन कुंज बिहारी जी, भजन बिना मुक्त्िा नहीं होती भैया, भजन बिना मुक्ति नहीं मिलती है।
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रागी |
भजन बिना मुक्त्िा नई होय भइया ग, भजन बिना मुक्ति नई होवय न। |
रागी |
भजन बिना मुक्त्िा नहीं होती भैया, भजन बिना मुक्ति नहीं मिलती है।
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प्रभा |
जय जय गोवर्धन धारी ग भजन बिना मुक्ति नई होवय न। |
प्रभा |
जय जय गोवर्धन धारी जी भजन बिना मुक्ति नहीं मिलती है।
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रागी |
भजन बिना मुक्त्िा नई होय भइया ग, भजन बिना मुक्ति नई होवय न। |
रागी |
भजन बिना मुक्त्िा नहीं होती भैया, भजन बिना मुक्ति नहीं मिलती है।
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प्रभा |
हो ये दे श्याम सुख दाई मोर हलधर के भाई ग भजन बिना मुक्त्िा नई होय भइया ग, भजन बिना मुक्ति नई होवय न। |
प्रभा |
हां ये तो श्याम सुख दाई मेरे हलधर के भाई जी भजन बिना मुक्त्िा नहीं होती भैया जी, भजन बिना मुक्ति नहीं मिलती है।
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रागी |
श्याम सुख दाई मोर हलधर के भाई ग भजन बिना मुक्त्िा नई होय भइया ग, भजन बिना मुक्ति नई होवय न। |
रागी |
श्याम सुख दाई मेरे हलधर के भाई जी भजन बिना मुक्त्िा नहीं होती भैया जी, भजन बिना मुक्ति नहीं मिलती है।
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प्रभा |
अरे भइया गुरू वशिष्ठ जानथे कि मोर कामधेनु गईया ल आठो झन देवता मन चोराके ले गे हे। |
प्रभा |
अरे भैया गुरू वशिष्ठ जान जाते है कि मेरी गाय कामधेनु को आठों देवता चुराकर ले गए हैं।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
रागी ऋषि ल क्रोध आ जथे। |
प्रभा |
रागी ऋषि को क्रोध आ जाता है।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
बोले देवताओं आकर मनुष्य योनि के रूप में आए हो फेर गाय के गाय ल चोरा के ले गेव हमला ये दुनिया म जनम देके हमला ये पाप ले उद्धार दे मृत लोक में जाके तुम जनम लेवव देवता मन जान डरथे रागी भइया हमला वशिष्ठ महराज श्राप देवत हे कहिके आठो देवता जाके वशिष्ठ ल पूछथे महराज ये मृत लोक ले हमर उद्धार कईसे होही तो वशिष्ठ महराज बताथे देवताओं अगर कहिं गंगा ह, तुंहर मां बने बर स्वीकार कर लेही त गंगा ह तुमन ल ये जनम देके ‘अ ग तुम ल वो हा गजब तारी देवय भाई’ अगर कहीं गंगा मां बने बर तईयार हो जही। |
प्रभा |
ऋषि ने श्राप दिया बोले देवताओं देवता होकर मनुष्य योनि की भांति आकर मेरी गाय चुराकर ले गए, मैं तुम्हे श्राप देता हूं देवताओं ने क्षमा याचना की, बोले ऋषिवर हमारा इस श्राप से मुक्ति और इस मृत्यु लोक से हमारा उद्धार कैसे होगा तो वशिष्ठ महराज ने कहा देवताओं यदि मां गंगा ने तुम्हारी मां बनना स्वीकार किया क्योंकि गंगा ही तुमको जन्म देकर इस मृत्युलोक से तुम्हारा उद्धार कर सकती है। ‘’अ जी तुमको सुन्दर तार देगी भाई’’ अगर कहीं गंगा मां बनना स्वीकार कर लेगी’’।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
‘भइया गंगा के तीर जब चलन लागे भाई, हां देवता मन मां गंगा ल देखन लागे भाई’ देवता मन मां गंगा ल पारथना करथे मां तंय हमर महतारी बन जा। |
प्रभा |
‘भैया गंगा के किनारे जब चलने लगे भाई, हां देवता लोग मां गंगा को देखने लगे भाई’ देवता लोग मां गंगा से प्रार्थना करते है कि मां तुम हमारी माता बन जाओ।
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रागी |
हां जी। |
रागी |
हां जी।
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प्रभा |
महतारी बन के हमला ये दुनिया में जनम देके हमला ये पाप ले उद्धार कर दे माते गंगा स्त्री के रूप लेथे महराज शांतनु आखेट म आथे, दूनो झन के मिलना होथे अउ राजा से विवाह करके हस्तिना नगर चल देथे। |
प्रभा |
माता बन बनके हमे इस दुनिया में जन्म देकर हमारा इस पाप से उद्धार कर दो, माता गंगा स्त्री का रूप धारण करती है उसी समय महराज शांतनु आखेट में आते हैं, दोनों का मिलन होता है और राजा से विवाह करके हस्तिनापुर नगर चली जाती है।
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रागी |
हव। |
रागी |
हव।
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प्रभा |
समय बितत हे रानी गंगा ह पहिली गर्भवती रथे रागी भाई। |
प्रभा |
समय बीत रहा है रानी गंगा को पहला गर्भ ठहरता है रागी भाई।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
‘’नौ महीना अउ दस दिन बीते के बाद माता गंगा के गर्भ ले ‘सुन्दर बेटा ग जनम लेवय ग भाई’। |
प्रभा |
‘’नौ महीने और दस दिन बीतने के बाद माता गंगा के गर्भ से ‘सुन्दर बेटा जी जन्म लेने लगा भाई’।
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रागी |
‘सुन्दर बेटा ग जनम लेवय ग भाई’। |
रागी |
‘सुन्दर बेटा जी जन्म लेने लगा भाई’।
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प्रभा |
‘हां राजा शांतनु सुनन लागे भईया, राजा शांतनु ग सुनन लागे भाई’ पहिली बेटा ल जनम देथे राजा शांतनु जो सभा में बईठे हे सुनथे कि महारानी गंगा ह पहिली बेटा ल जनम दे हावय, राजा खुशी के मारे झूम जथे रागी भइया, पर रानी गंगा लईका ल जनम देथे अउ थारी म धर लेथे अउ थारी म धर के पहिली बेटा ल लेके गंगा के धार में ‘अरे भई गंगा के धार में बोहावन जब लागे, मन मन भूपति मन भूपति खोजन जब लागे,, खोजन जब लागे’ राजा ल सुन के दुख होथे सोचथे ये कतेक पापनिन स्त्री हे रागी। |
प्रभा |
‘हां राजा शांतनु सुनने लगे भैया, राजा शांतनु जी सुनने लगे भाई’ पहिले बेटे को जन्म दिया राजा शांतनु जो सभा में बैठे है सुनते है कि महारानी गंगा ने पहिले बेटे को जन्म दिया है, राजा खुशी के मारे झूम जाते है रागी भैया, पर रानी गंगा बच्चे को जन्म देने के बाद उसे थाली में रखकर अपने पहले बेटे को गंगा के धार में ‘अरे भाई गंगा के धार में बहाने जब लगी, मन ही मन में भूपति ढूंढने जब लगे, ढूंढने जब लगे, राजा को सुनकर दुख होता है कि ये कितनी पापिनी स्त्री है रागी।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
अपन के लईका अउ अपन लईका ल लेके जल म बोहा दिस। |
प्रभा |
अपना ही बच्चा और अपने ही बच्चे को लेकर जाकर जल में बहा दिया।
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रागी |
या या। |
रागी |
या या।
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प्रभा |
रागी भइया लगातार सात झन बेटा ल जनम देथे अउ गंगा में लेगके बोहा देथे, आठवां बेटा के जनम होथे, राजा सुनथे कि रानी आठवां बेटा ल जनम देहे राजा सभा में बईठे रहीस हे ते उठ के दउड़त जाथे, रानी गंगा थारी म धर के लईका ल निकलत राहय, आगे राजा दूनो ठन हाथ ल जोर के कथे गंगा शांतनु कथे हे गंगा। |
प्रभा |
रागी भैया एक के बाद एक सात बेटों को जन्म दिया और गंगा में ले जाकर बहा दिया, आठवें पुत्र का जन्म होता है, राजा सुनते हैं कि रानी ने आठवें पुत्र को जन्म दिया है, राजा सभा में बैठे हैं तुन्त उठकर दौड़ते हुए जाते हैं, रानी गंगा बच्चे को थाली में रखकर निकल रही है, राजा गंगा के आगे अपने दोनों हाथ जोड़कर कहते हैं गंगा, शांतनु कहते हैं गंगा।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
मय लईका ल झोली पसार के भीख मांगत हवं तंय ये लईका ल मोला दे देते गंगा। |
प्रभा |
मैं बच्चे के लिए झोली पसारकर भीख मांगता हूं तुम इस बच्चे को मुझे दे दो गंगा।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
राजा कथे गंगा एला मोला भीख म दे दे, राजा के अतका बात ल सुनके गंगा हांस के कथे महराज आज से तयं ये लईका के प्रेम में विवश होगे, कहे महराज आज से तोर मोर स्त्री पुरूष के जो नाता रहीस वो टूटगे, काबर जे दिन मय बिहाव करके आयेंव वो दिन मय कहे रेहेंव, मय कहीं भी काम करहूं तेमा तंय विध्न मन डालबे, |
प्रभा |
राजा कहते हैं गंगा इसे मुझे भीख में दे दो, राजा के इतने बात को सुनकर गंगा हंसकर कहती है महराज आज से आप इस बच्चे के प्रेम में विवश हो गए, आगे कहती है महराज आज से आपका और मेरा जो पति- पत्नी का संबंध था वह टूट गया, क्योकिं जिस दिन मैं शादी करके आई थी उस दिन मैनें आपसे वचन लिया था कि मैं कहीं भी आऊं जाऊं चाहे कोई भी करूं उसमें आप विध्न नहीं डालेगें।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
दाई गंगा लईका ल धर के देवता लोक म जाथे रागी। |
प्रभा |
मां गंगा बच्चे को लेकर देव लोक में जाती है रागी।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां
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प्रभा |
लगे हे देवताओं के सभा और देवराज इन्द्र जब गंगा ल आवत देखथे त ‘अ ग तुरते सिंहासन ल छोड़न लागे भाई’ देवराज इन्द्र हाथ जोड़ के मां गंगा ल कहिस कि मां गंगा ये देवताओं के सभा म स्वागत हे। |
प्रभा |
देवताओं की सभा लगी हुई है और देवराज इन्द्र ने जब गंगा को आते हुए देखा, ‘अजी तुरंत सिंहासन से उठने लगे भाई’ देवराज इन्द्र हाथ जोड़कर मां गंगा से कहते है कि आईए मां गंगा देवताओं की सभा में आपका स्वागत है।
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रागी |
हव, ‘या तुरते सिंहसन ल छोड़न लागे भाई, देवराज कहन लागे ग ये द भाई, देवराज कहन लागे ग ये द भाई’। |
रागी |
हां, ‘वो तुरंत सिंहसन से उठने लगे भाई, देवराज ये कहने लगे जी भाई, देवराज कहने लगे जी भाई’।
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प्रभा |
गंगा ल आसन म बैठार के देवराज इंद्र कथे मां मय तोर काय सेवा करंव ? |
प्रभा |
गंगा को आसन मे बिठाकर देवराज इंद्र ने कहा मां मैं आपकी क्या सेवा करूं ?
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
मां गंगा बोले देवताओं जतेक देवता बईठे हव सब कान खोल के सुन लव, कहे देवताओं ये समय में जे मोर गोद म लईका हे ये मोर बेटा ए |
प्रभा |
मां गंगा ने कहा देवताओं जितने भी देवता यहां बैठे हुए हो वे सभी ध्यान से सुन लें, और कहा देवताओं इस समय मेरी गोद में जो शिशु है ये मेरा पुत्र है।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
जतका देवता बईठे हो सब मिल के एला आसीरबाद दे दव, देवता मन कहिस कि मां तोर बेटा महान ज्ञानी अउ महान बलवान होही |
प्रभा |
जितने भी देवता यहां बैठे हैं वे सब मिलकर इसे आर्शीवाद दें, देवताओं ने कहा कि मां गंगा आपका ये पुत्र महा बलवान और महान ज्ञानी होगा।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
हम सब देवता मिल के एला ईच्छा मृत्यु के वरदान देवत हन दाई। |
प्रभा |
हम सब देवता मिलकर इसे ईच्छा मृत्यु का वरदान देते हैं मां।
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रागी |
या या। |
रागी |
या या।
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प्रभा |
जब ये मर जांव कहि तभे मृत्यु लोक ल छोड़ही अउ जब तक ये नई चाहही अपन शरीर ल नई त्याग सके रागी भइया उही दिन वो लईका के नाव देवव्रत पड़ीस, मां गंगा वापिस होथे अउ राजा ल कहिथे, दूसर बिहाव झन करबे अउ कहूं तोर बिहाव करे के मन होही त एक ठन कंगन ल निकाल के देथे अउ देके कथे महराज ‘अ जी माया मेाहनी ग मन मोहत हे जगत ल माया मोहनी, माया मेाहनी ग मन मोहत हे जगत ल माया मोहनी’। |
प्रभा |
जब ये कहेगा कि मैं मर जांऊ तभी इस मृत्यु लोक को छोड़ेगा और जब तक ये नहीं चाहेगा तब तक अपना शरीर नहीं त्याग सकेगा, रागी भैया उसी दिन से उस बच्चे का नाम देवव्रत पड़ा, मां गंगा वापस आती है और राजा से कहती है, दूसरा विवाह मत करना यदि आपके मन दूसरे विवाह की इच्छा होगी तो ये कंगन रख ले और एक कंगन निकालकर राजा को देती है, और कहती है महराज ‘अ जी माया मेाहनी जी मन मोह लेती है जगत को माया मोहनी, माया मोहनी जी मन मोह लेती है जगत को माया मोहनी’।
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रागी |
‘माया मेाहनी ग मन मोहत हे जगत ल माया मोहनी, माया मेाहनी ग मन मोहत हे जगत ल माया मोहनी’। |
रागी |
‘अ जी माया मेाहनी जी मन मोह लेती है जगत को माया मोहनी, माया मोहनी जी मन मोह लेती है जगत को माया मोहनी’।
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प्रभा |
‘माया मेाहनी ग भइया मन मोहत हे जगत ल माया मोहनी, माया मेाहनी ग दीदी वो मन मोहत हे जगत ल माया मोहनी’। |
प्रभा |
माया मेाहनी जी मन मोह लेती है जगत को माया मोहनी, माया मोहनी दीदी मन मोह लेती है जगत को माया मोहनी’।
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रागी |
माया मेाहनी ग दीदी वो मन मोहत हे जगत ल माया मोहनी’। |
रागी |
माया मोहनी दीदी मन मोह लेती है जगत को माया मोहनी’।
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प्रभा |
रागी भइया वो समय बीतत हे शांतनु बिना रानी के फिर से राज चलात हे फिर से हस्तिनापुर के राज चलात हे समय बीते अउ कुछ दिन बीते के बात ए रागी भाई, एक सरूप देश में रूपश्यचर्य राजा राज्य करथे। |
प्रभा |
रागी भैया वो समय भी बीत रहा है राजा शांतनु फिर से बिना रानी के हस्तिनापुर राज्य चला रहे हैं समय बीतरहा है और कुछ दिन बीतने के बाद एक समय की बात है रागी भाई, एक सरूप देश में राजा रूपश्यचर्य राज्य करते थे।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां
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प्रभा |
रूपश्यचर्य राजा के रानी के नाव गिरकर हे। |
प्रभा |
राजा रूपश्यचर्य की रानी का नाम गिरकर है।
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रागी |
गिरकर है, जय हो। |
रागी |
गिरकर है, जय हो ।
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प्रभा |
बताय हे रूपश्यचर्य महराज ह जंगल में शिकार खेले बर गे रीहीस हे, अउ शिकार खेलत खेलत जब वोला प्यास लागिस त पानी पिए के खातिर सरोवर म गे हे, सरोवर म पानी पीथे अउ पेड़ के छांव में रूपश्चर्य महराज बइठे हे बगल म घोड़ा बंधाय हे। |
प्रभा |
बताया गया है महराज रूपश्यचर्य जंगल में शिकार खेलने के लिए गए थे, और शिकार खेलते खेलते जब उन्हें प्यास लगी तो वे पानी पीने के लिए सरोवर में गए, सरोवर मे पानी पिया और पेड़ की छांव में महराज रूपश्चर्य बैठे हैं और बगल में उनका घोड़ा बंधा हुआ है।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
भइया सरोवर म लाल कमल के फूल खिले हे। |
प्रभा |
भैया सरोवर में लाल कमल के फूल खिले हुए हैं।
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रागी |
या या। |
रागी |
या या।
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प्रभा |
अउ कमल के फूल में काला भंवरा अउ भंवरी गुंजार करत हे रागी। |
प्रभा |
और उन कमल के फूलों में काले भंवरा और भंवरी गुंजन कर रहे हैं रागी।
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रागी |
जय हो, जय हो। |
रागी |
जय हो, जय हो।
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प्रभा |
रूपश्चर्य महराज बईठे हे झाड़ के नीचे भंवरा अउ भंवरी गुंजार करत हे लाल कमल के फूल के तीर में, भंवरा अउ भंवरी ल गुंजार करत देखीस त महराज रूपश्चर्य के मन ह विचलित हो जथे, और वीर्य उत्पन्न हो जथे राजा ल दुख हो जथे अगर ये वीर्य ल छोड़ देहूं त चांटी मांछी खा दिही त ये वीर्य ह बेकार हो जाही रागी भाई, राजा तीर तखार ल नजर लमा के देखथे त उही तीर म एक ठन सुआ बईठे राहय सुवा नाम के पक्षी बईठे हे राजा के नजर परिस त वो सुवा ल आवाज देथे, सुवा ‘अरे आतो आतो भइया आवव न आवव भइया, जी आतो आतो आवव न ए भैया, आतो आतो आतो भइया, आवव न आवव भाई, आवव भइया बइठ तो कहन लागे जी’ ए भइया पेड़ म बइठे राहय सुवा उड़ावत आथे, पूछथे का सेवा करंव, महराज पान के दोना बना के वीर्य ल रख के राजा कथे एला मोर रानी गिरकर ला देके आबे, सुवा चोंच म दबाथे पान के दोना ल अउ उड़ावत उड़ावत जात राहय रागी भइया, भयानक जंगल के बीच म एक ठन बड़े जान नदिया राहय नदिया में धार बोहात राहय अउ सुवा नदिया के उप्पर से उड़ात चले जात हे रागी, नदिया के तीर अउ पेड़ राहय अउ वोमा अब्बड़ अकन सुवा बइठे राहय, ओ सुवा मन के नजर पड़थे अउ काहय ‘का चीज ए ह लेगत हावय भाई’ दूसर सुवा के नजर परिस त वो कहत हे ‘भइया का चीज लेगत हावय भइया, काय चीज ये लेगत हावय भाई, दूसरा सुवा देखन लागे भाई’ दूसर सूवा मन देखथे अउ ये कहीं खाय के चीज लेगत हे पेड़ के सुवा मन जाथे अउ टप ले दोना ल पकड़ लेथे, रागी भइया दोना बर छीना झपटी होथे अउ दोना ह चिरागे अउ दोना में जो वीर्य हे दो बूंद पानी में गिर गे अउ पानी में एक ठन मछरी राहय ते ह ओला खा डरीस अउ सुआ मन ह उड़ागे समय बीते मछली गर्भवती होथे तासा राम नाम के धीवर मछली मारे बर आथे जाल फेंकथे जाल में वो मछली फंस जाथे अउ मछली ल लेग के मारथे त ओकर पेट ले दू झन जनम लेथे दो बच्चा एक झन लड़की अउ एक झन लड़का, रागी उहां के राजा के संतान नी राहय त तासा राम कथे बेटा ल राजा ल दे देथंव अउ बेटी ल में राख लेथंव, मछली के गर्भ में जनम ले राहय तेकर सेतरी ओ लड़की के नाम मछोन्दरी रख देथे, समय बीते उही मछोन्दरी तासा राम संग नदिया म डोंगा चलाय बर आय सात बरस के उमर राहय एक दिन के बात ए नदिया के तीर म पाराशर ऋषि के आगमन होथे पाराशर महराज ओ लड़की ल कहत हे कन्या मोला ये नदिया ल पार होना हे सात बरस के लइका पाराशर ल डोंगा बईठार के डोंगा ल खोवत हे। |
प्रभा |
महराज रूपश्चर्य पेड़ के नीचे बैठे हैं भंवरा और भंवरी लाल कमल के फूल के आसपास गुंजन कर रहे हैं, भंवरा और भंवरी को गुंजन करते देखकर महराज रूपश्चर्य का मन विचलित हो उठता है, और वीर्य स्खलित हो जाता है, राजा को दुख होने लगता है कि यदि मैंने इस वीर्य को ऐसे ही छोड़ दिया तो चीटीं मक्खी खा जाएंगी तो ये वीर्य व्यर्थ हो जाएगा, रागी भाई, राजा ने आसपास नजर घुमाकर देखा तो वहां पास ही में एक तोता बैठा हुआ था तोता नामक पक्षी बैठा है, राजा की दृष्टि तोते पर पड़ी तो उसने तोते को आवाज लगाई तोता ‘अरे आवो तो आओ भैया आओ आओ न भैया, आओ आओ न भैया, आवो तो आओ भैया आओ आओ न भैया, आओ आओ न भैया, आओ भैया बैठो तो कहन लगे जी’ भैया पेड़ में बैठा हुआ तोता उड़ते हुए आता है, आकर पूछता है मैं आपकी क्या सेवा करूं, महराज पत्ते का दोना बनाकर राजा ने वीर्य को रखा और राजा तोते से कहता है इसे मेरी रानी गिरकर को देके आना, तोता अपनी चोंच में पत्ते की दोना दबाकर उड़ते उड़ते जा रहा था रागी भैया, भयानक जंगल के बीच में एक बड़ी सी नदी थी नदी की तेज धाराएं बह रही थी और तोता नदी के ऊपर से उड़ता हुआ जा रहा था, रागी नदी के पास ही एक पेड़ था जिसमें बहुत सारे तोते बैठै हुए थे, उनकी नजरइस पर पड़ गयी, और कहने लगे ‘‘ ये क्या चीज लेके जा रहा है भाई’’ और दूसरे तोते की नजर पड़ी तो वो कहने लगा ‘’भैया क्या चीज ले जा रहा है भाई , क्या चीज ले जा रहा है भाई, दूसरे तोते देखने लगे भाई’ दूसरे तोते सारे देखथे हैं और कहतें हैं ये कोई खाने की चीज ले जा रहा है, तो उस पेड़ के सारे तोते उड़कर जाते है और झट से दोने को पकड़ लेते हैं, रागी भैया दोने के लिए छीना झपटी कर रहे हैं, उतने में दोना फट जाता है दोने में जो वीर्य है वो दो बूंद पानी में गिर जाता है, नीचे पानी में एक मछली थी उसने उसे खा लिया, और सारे तोते उड़ गए, समय बीतने पर मछली गर्भवती होती है, तासाराम नामक एक धीवर मछली पकड़ने के लिए आता है और जाल फेंकता है, जाल में वो मछली फंस जाती है और मछली को ले जाकर काटता है तो उसके पेट से दो बच्चे जन्म लेते है, एक लड़की और एक लड़का, रागी वहां राजा के संतान नहीं थी तासाराम ने कहा कथे राजा को बेटा दे देता हूं और बेटी मैं रख लेता हूं, मछली के गर्भ से जन्म लेने के कारण उस लड़की का नाम मछोन्दरी रख दिया, समय बीत रहा है वही मछोन्दरी तासाराम के साथ नहीं में नाव चलाने जाती थी, सात वर्ष की उम्र थी, एक दिन की बात है नदी के किनारे पाराशर ऋषि का आगमन होता है, पाराशर महाराज उस लड़की से कहते हैं कन्या मुझे ये नदी पार करनी हैं सात वर्ष की लड़की ऋषि पाराशर को नाव में बिठाकर नाव चला रही है।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
नदिया म जब डोंगा ह जाथे रागी पाराशर ऋषि नजर उठाके वो कन्या के मस्तक ल देखथे अभी कईसे ये शुभमुहुर्त गुजरत हे जे लड़की के गर्भ ले महान ज्ञानी बेटा पैदा लीही, पारासर सात साल के लईका ल काहत हे कन्या तंय मोर चंचल बुद्धि रोक देस। |
प्रभा |
नदी में जब नाव जाती है रागी, पाराशर ऋषि नजर उठाके उस कन्या के मस्तक को देखने लगे और कहते हैं अभी ये कितना शुभमुहुर्त चल रहा है इस कन्या के गर्भ से एक महान ज्ञानी पुत्र उत्पन्न होगा, पारासर सात वर्ष की लड़की से कह रहे हैं कन्या तुमने मेरी चंचल बुद्धि रोक दिया।
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रागी |
या या। |
रागी |
या या।
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प्रभा |
लड़की कथे महराज सात बरस के मोर उमर हे तुम तो महान तपस्वी हो महराज मैं तोर बेटी असन हंव महराज पाराशर महराज तपोबल के बल से फेर लड़की के उमर बारा बरस के कर देथे, लड़की कथे दिन के समय हे तो माया द्वारा अंधकार कर देखे, जल में काई छा जथे, रागी भइया नदिया के उप्पर में मिलन होथे अउ जैसे ही डोंगा ह नदिया के पार पहुंचथे पाराशर ऋषि डोंगा ले उतर के रेंगथे अउ लड़की के गर्भ ले ‘सुन्दर बेटा के जनम लेवत हे भइया, सुन्दर लइका जनम लेवय भाई, सुन्दर लड़की ग देखन लागे ग भैया, सुन्दर लड़की ग देखन लागे भाई’ सुन्दर नार फूल समेत लईका जनम लेथे अउ पृथ्वी म जनम लेते ही वो लईका खड़े होगे ‘’अरे नारे फूले लपेटन लागे भाई, नारे अउ फूले लपेटन लागे भैया’’ नार फूल ल कनिहा म लपेटथे अउ वो लईका जंगल की ओर भागथे ‘वो ह नारे फूल ल लपेटन लागे भाई, कन्या जब देखन लागे भाई, कन्या अब कहन लागे ग कन्या अब कहन लागे भाई’’ रागी भाई लड़की हाथ ल धरके कथे बेटा तोरे कारण मय दुनिया में बदनाम होगेंव, कहे कुवांरी म महतारी बन गेंव मोर मां बाप के बदनाम होगे, त लईका कथे मां मंय तो विष्णु माया से जनम ले हंव। |
प्रभा |
लड़की कहती महराज सात मेरी उम्र तो मात्र सात वर्ष है और आप तो महान तपस्वी हैं महराज, मैं आपकी पुत्री समान हूं, महराज पाराशर ने फिर तपोबल से उस लड़की की उम्र बारह वर्ष कर दी, लड़की कहने लगी यह तो दिन का समय है तो माया द्वारा ऋषि ने अंधकार कर दिया , जल में काई जम गई, रागी भैया नदी के ऊप्पर मिलन होता है और जैसे ही नाव नदी के उस पार पहुंचती है, पाराशर ऋषि नाव से उतर के चल देते हैं, और लड़की के गर्भ लसे ‘सुन्दर पुत्र जन्म लेने लगा भैया, सुन्दर पुत्र जन्म ले रहा है भाई, सुन्दर लड़की देखने लगी जी भैया, सुन्दर लड़की देखने लगी जी भाई’ सुन्दर नाल फूल के साथ बच्चा जन्म लेता है और जन्म लेते ही वह बच्चा पृथ्वी में खड़ा हो गया ‘’अ जी नाल फूल को लपेटने लगा भाई, नाज और फूल को लपेटने लगा भैया’’ नाल फूल को कमर में लपेटता है और वो बच्चा जंगल की ओर भागने लगा ‘वो ह नाल फूल को लपेटने लगा भाई, कन्यालड़ जब देखने लगी भाई, कन्या अब कहने लगी जी कन्या अब कहने लगी भाई’’ रागी भाई लड़की बच्चे का हाथ पकड़ के कहती है बेटा तुम्हारे कारण मैं दुनिया में बदनाम हो गई, कहती है कुवांरी मां बन गई मेरे मां बाप बदनाम हो गए, तो बच्चा कहता है कि मां मेरा जन्म तो विष्णु माया से हुआ है।
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रागी |
हां भई। |
रागी |
हां भई।
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प्रभा |
कोनो दिन कोनो समय कहीं तोर उपर मुसीबत आही कहे ते मोला बलाबे त मय तोर रक्षा करहूं रागी भइया उही लईका के नाव व्यास नारायण परथे। |
प्रभा |
किसी दिन किसी समय यदि तुम्हारे ऊपर कोई भी मुसीबत आयेगी तो मुझे बुला लेना तब मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा रागी भैया उसी बच्चे का नाम व्यास नारायण होता है।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
भगवान वेद व्यास जंगल म जाथे समय बीतत जाथे कुछ दिन बीते के बाद राजा शांतनु के फिर से आगमन होथे, वो नदिया के घाट म अउ तासा राम धीवर के बेटी मछोन्दरी खड़े रथे सोला साल के उमर हो जथे राजा के नजर परथे अउ जाके कन्या ल पूछथे कहे कन्या कहां के तंय रहवईया आस, काय तोर नाव हे, मां बाप के काय नाव हे, अउ कंगन ल निकाल के राजा देथे कहे एला पहिर के देखा जे गंगा के दिए कंगन लड़की के हाथ म लग जथे, अउ लड़की कथे का बतांव महराज ‘’अ ग वही दे वही दे मछरी मारत हावय भाई‘’ राजा पूछथे तोर दाई ददा कोन ए त लड़की उंगली उठा के बताथे महराज ओदे मछरी मारत हे मोर पिता जी ‘’वही दे वही दे मछरी मारत हावय भाई, राजा ल कहन लागे ग मोर भाई,, राजा ल कहन लागे ग मोर भाई’’ ओदे नदिया म मछरी मारत हे तेने मोर बाप ए, शांतनु महराज ह तासा राम ल कथे तासा रात तोर बेटी ल दे दे मोला काबर कि मय एला हस्तिना नगर के रानी बनाहूं, तासा राम कहिस महराज मोर से भाग्यशाली पुरूष ये द्वापर म कोनो पैदा नी होय हे। |
प्रभा |
भगवान वेद व्यास जंगल में जाते हैं समय बीत रहा है और कुछ दिन बीतने के बाद राजा शांतनु का फिर से आगमन होता है, उसी नदी की घाट पर तासाराम धीवर और उसकी बेटी मछोन्दरी खड़े रहते हैं, लड़की अब सोलह साल की उम्र में है राजा की नजर उस पर पड़ती है और जाकर वह कन्या से पूछता है कहता है कन्या तुम कहां की रहने वाली हो, तुम्हरा नाम क्या है, तुम्हारे माता पिता का नाम क्या है, और कंगन निकालकर राजा उसे देता है और कहता है इसे पहन कर दिखा, वहीं कंगन जो गंगा ने दिए थे, कंगन का नाप उस लड़की के हाथ में आ जाता है, और लड़की क्या बतांऊ महराज ‘’अ जी वहां पर जो मछली पकड़ रहे हैं भाई‘’ राजा पूछा है तुम्हारे माता पिता कौन हे लड़की ऊंगली से ईशारा करके बताती है वो मछली पकड़ रहें हैं मेरे पिताजी जी ‘’वो देखो वो देखो मछली पकड़ रहे हैं भाई, राजा को कहने लगी जी भाई, राजा से कहने लगे जी मोर भाई’’ उधर नदी में मछली पकड़ रहे हैं वही मेरे पिता जी है, शांतनु महराज तासाराम से कहते हैं कि तासाराम तुम्हारी बेटी मुझे दे दो क्योकिं मैं इससे विवाह करके हस्तिना नगर की रानी बनाऊंगा, तासा राम कहता है कि महाराज मुझसे भाग्यशाली पुरूष इस द्वापर में कोई भी पैदा नहीं हुआ है।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
पर मोर एक विचार हे। |
प्रभा |
पर मेरा एक विचार है।
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रागी |
का विचार हे ? |
रागी |
क्या विचार है ?
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प्रभा |
कहे महराज तोर घर कहूं मोर बेटी जाही त मोर बेटी के कोख ले जेन बेटा जनम लेही वो राजा नई बने काबर राजा नई बने काबर तोर पहिली ले एक झन बेटा हे, देवव्रत के राहत ले तंय छोटे ल राजा नई बनास, महराज अउ मैं मोर बेटी ल ओकर घर म भेजहूं जेन मोर बेटी के बेटा ल राजा बनाही, राजा वापिस हो जथे मन म दुख होथे एक दिन देवव्रत के नजर परिस, कहिे पिता महराज चिंतित हे, मंत्री ल बुला के पूछिस त मंत्री कारण ल बताईस कि महराज ओ नदिया के तीर के तासा राम धीवर के बेटी संग महराज बिहाव करना चाहत हे, देवव्रत रथ तैयार करिस तासा राम के तीर म जाके तासा राम ल कथे तासा राम तंय तोर बेटी ल दे दे त तासा राम कथे महराज मय नहीं कहिके कब कहे हंव मोर बेटी ल ओकरे घर भेजिहंव जेकर घर मोर बेटी के बेटा राजा बनही। |
प्रभा |
कहता कि महाराज तुम्हारे घर कहीं मेरी बेटी जाएगी तो मेरी बेटी के कोख लसे जो बेटा जन्म लेगा वो राजा नहीं बनेगा क्यों राजा नहीं बनेगा क्योकिं तुम्हारा पहले से ही एक बेटा है, और देवव्रत के रहते तुम छोटे पुत्र को राजा नहीं बनाओगे, और महाराज मैं अपनी बेटी को उसी घर में भेजूंगा जिस घर में मेरी बेटी का बेटा राजा बनेगा, राजा वापस लौट जाता है मन में दुख होता है एक दिन देवव्रत की नजर पड़ी, कि पिता महाराज चिंतित हैं, मंत्री को बुलाकर पूछा तो मंत्री ने कारण बताया कि महाराज नदी किनारे तासाराम धीवर की बेटी के साथ महाराज विवाह करना चाहते हैं, देवव्रत रथ तैयार करके तासाराम के पास जाकर कहता है कि तासाराम तुम अपनी बेटी दे दो तो तासाराम कहता है मैंने ना करके कब कहा मैंने तो बस इतना कहा कि मेरी बेटी उसी घर में जाएगी जिसके घर मेरी बेटी का बेटा ही राजा बनेगा।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
अउ तोर राहत ले मोर बेटी के बेटा राजा नई बनय । |
प्रभा |
और तुम्हारे रहते मेरी बेटी का बेटा राजा नहीं बन सकेगा।
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रागी |
नई होवय। |
रागी |
नहीं होगा।
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प्रभा |
देवव्रत कथे मय मां गंगा के सौगन्ध खा के कथंव देवव्रत हाथ में गंगा जल लेके प्रण करथे, तासा राम ‘अरे ब्याह करंव नहीं अउ न राज्य चलावव’ देवव्रत कथे तोर बेटी ल दे दे मय राजा नी बनव तोरे बेटी के बेटा राजा बनही त तासा राम कथे महराज तंय राजा नी बनबे तंय शादी करबे अउ तयं शादी करबे तहांन ले तोर पुत्र उत्पन्न होही भैया सियान मन केहे हे ‘डोमी के डोमी होथे डोढि़या नई होवय’। |
प्रभा |
देवव्रत कहते हैं मैं मां गंगा की सौगन्ध खा के कहता हूं देवव्रत हाथ में गंगा जल लेकर प्रण करते हैं, तासाराम ‘अरे ब्याह नहीं करूंगा और न ही राज्य चलाऊंगा’ देवव्रत कहते हैं तुम्हारी बेटी को दे दो मैं राजा नहीं बनूंगा तुम्हारी बेटी का बेटा ही राजा बनेगा, तो तासाराम कहता है महाराज आप राजा नहीं बनोगे लेकिन तुम शादी करोगे तो तुम्हारा पुत्र उत्पन्न होगा बड़े बुजुर्ग कह गए हैं भैया ‘डोमी के डोमी होथे डोढि़या नई होवय’ (बड़े सांप से बड़ा सांप ही उत्पन्न हुआ है छोटा नहीं)।
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रागी |
नई होवय। |
रागी |
नही हुआ है।
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प्रभा |
बांस के भीरहा म बांस जागथे, तंय बीर हस तोर लईका घला बीर होही, तब देवव्रत कहिस तासा राम ना मय राज चलावंव ना मय बिहाव करंव ‘अरे ब्याह करंव नहीं अउ मोर भाई ना तो राज चलावंव मातु गंगा शपथ खांवव’ मय मां गंगा के सौगन्ध खात हंव ओतका ल सुनिस त देवता लोग ‘’अ ग फूले के बरसा करन लागे ग मोर भाई, ’अ ग फूले के बरसा करन लागे ग मोर भाई’’ फूल के बरसा होथे |
प्रभा |
बांस की जड़ में बांस जगता है, तुम वीर हो तुम्हारा पुत्र भी वीर होगा, तब देवव्रत कहते हैं, तासाराम ना मैं राज्य चलाऊंगा और ना ही मैं विवाह करूंगा ‘अरे ब्याह करूंगा और न हीं मैं राज्य चलाऊंगा मेरे भाई, ये मैं माता गंगा की शपथ मैं खाता हूं, इतना सुनकर देवतागण ‘’अ जी फूलों की वर्षा करने लगे मेरे भाई, ’अ जी फूलों की वर्षा करने लगे मेरे भाई’’ फूलों की वर्षा होती है।
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रागी |
जय हो जय हो। |
रागी |
जय हो जय हो।
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प्रभा |
फेर भीष्म प्रतीज्ञा करिस देवव्रत ह ते दिन ले ओकर नाव भीष्म परगे ‘’भइया सुमन के बरसा होवन लागे ग मोर भाई जय जय करन लागे ग मोर भाई’’। |
प्रभा |
फिर देवव्रत ने भीष्म प्रतिज्ञा की उस दिन देवव्रत का नाम भीष्म पड़ गया ‘’भैया फूलों की वर्षा होने लगी मेरे भाई, मेरे भाई जय जयकार करने लगे जी मेरे भाई’’।
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रागी |
जय जय करन लागे ग मोर भाई। |
रागी |
जय जय करने लगे जी मेरे भाई।
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प्रभा |
ओ दिन ले ओ लईका के नाव भीष्म परगे, लान के लड़की के विवाह ल राजा शान्तनु संग म करथे सबल सिंह महराज बताय हे रागी भाई ओ तासा राम के बेटी जोन मछोन्दरी रीहीस हे तेन ह राजा शांतनु ल सत्य घटना बताईस की महराज मैं जब सात साल के रेहेंव त पाराशर महराज के आगमन होईस हम दोनों के मिलन होईस अउ मिलन के बाद पाराशर महराज के द्वारा मोर कोख ले एक झन अउ बेटा जन्म लीस, राजा शान्तनु कहिस मछोन्दरी तंय सत्य बोले हस ओकर कारण आज तो तोर नाम ह सत्यवती होगे। |
प्रभा |
उस दिन से उस बालक का नाम भीष्म पड़ा, लड़की को लाकर राजा शान्तनु के साथ विवाह करवाता है, सबल सिंह महाराज ने बताया है रागी भाई, उस तासा राम की बेटी जो मछोन्दरी थी उसने राजा शांतनु को सत्य घटना बताई कि महाराज मैं जब सात वर्ष की थी तो ऋषि पाराशर महाराज का आगमन हुआ था, हम दोनों का मिलन हुआ था और उस मिलन के बाद पाराशर महाराज के द्वारा मेरी कोख से एक पुत्र का जन्म हुआ था, राजा शान्तनु कहते हैं मछोन्दरी तुमने सत्य कहा इस कारण आज से तुम्हारा नाम सत्यवती होगा।
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रागी |
जय हो जय हो। |
रागी |
जय हो जय हो।
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प्रभा |
रागी भइया लड़की के तीन ठन नाव पड़थे पहले मछोन्दरी और दूसर पाराशर महराज के साथ में जब मिलन होथे तब लड़की केहे रहीस महराज मोर शरीर ले मछली के दुर्गंध आथे बदबू आथे, पाराशर महाराज तपोबल के बल से ओकर शरीर म चंदन के खूशबू भर दे रहीस हे बताय हे एक एक योजन तक लड़की के शरीर ले खूशबू आय, ओ दिन ओकर नाव योजन गांधारी रीहीस, ‘’अरे भई सिया रामा सिया रामा कहिके बीते ना उमरिया, तोर माया के गठरिया कचलोईया काया के तोर का ठिाकाना हे, कचलोईया काया के तोर का ठिाकाना हे’’। |
प्रभा |
रागी भैया उस लड़की का तीन नाम पड़ता है, पहला मछोन्दरी और दूसरा पाराशर महाराज के साथ में जब मिलन होता तब लड़की ने कहा था कि महाराज मेरे शरीर की मछली की दुर्गंध आती है बदबू आती है, पाराशर महाराज ने तपोबल से उसके शरीर में चंदन की खूशबू भर दी थी, बताया जाता है एक एक योजन तक लड़की के शरीर से खूशबू आती थी, उस दिन उस लडकी नाम योजन गांधारी पड़ा, ‘’अरे भाई सिया रामा सिया रामा कहकर बीते ना उमरिया, तेरी माया की गठरिया कच्ची मिट्टी की काया वाले तेरा क्या ठिकाना है, कच्ची मिट्टी की काया वाले तेरा क्या ठिकाना है’’।
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रागी |
‘’सिया रामा सिया रामा कहिके बीते ना उमरिया, तोर माया के गठरिया कचलोईया काया के तोर का ठिकाना हे’’। |
रागी |
‘’सिया रामा सिया रामा कहकर बीते ना उमरिया, तेरी माया की गठरिया कच्ची मिट्टी की काया तेरा क्या ठिकाना है, कच्ची मिट्टी की काया वाले तेरा क्या ठिकाना है’’।
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प्रभा |
‘’पढ़ ले रामायण अउ सुन ले न गीता, पढ़ ले रामायण अउ सुन ले न गीता, हरि के भजन बिना तोर जिनगी हे बिरथा, प्रभु के भजन बिना तोर जिनगी हे बिरथा’‘ अरे भई मन में बसई ले मन म बसई ले तंय गा ले हरि के गुन ल ओर माया के गठरिया कचलोईया काया के तोर का ठिकाना हे’’। |
प्रभा |
‘’पढ़ लो रामायण और सुन लेना गीता, ’पढ़ लो रामायण और सुन लेना गीता, हरि के भजन बिना तेरी जिन्दगी व्यर्थ है, प्रभु के भजन बिना तेरी जिन्दगी व्यर्थ है’‘ अरे भाई मन में बसा ले मन में बसा ले तु गा ले हरि के गुण और माया की गठरिया कच्ची मिट्टी की काया वाले तेरा क्या ठिकाना है’’।
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रागी |
तंय गा ले हरि के भजन बिना तोर जिनगी हे बिरथा, प्रभु के भजन बिना तोर जिनगी हे बिरथा’‘ माया के गठरिया कचलोईया काया के तोर का ठिकाना हे’’ |
रागी |
तुम गा लो हरि के भजन बिना तेरी जिन्दगी व्यर्थ है, प्रभु के भजन बिना तेरी जिन्दगी व्यर्थ है’‘ माया की गठरिया कच्ची मिट्टी की काया वाले तेरा क्या ठिकाना है’’।
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प्रभा |
बोल बिन्दा बन बिहारी लाल की जय। |
प्रभा |
बोल बिन्दा बन बिहारी लाल की जय।
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रागी |
जय। |
रागी |
जय।
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प्रभा |
‘’ये बाजार ये ग भइया, दुनिया मड़ई मेला बाजार ये, ये बाजार ये ग भइया, दुनिया मड़ई मेला बाजार हे राम नाम दुनिया के सार हे ना भैया राम नाम दुनिया के सार हे ना भैया दुनिया मड़ई मेला बाजार हे जही मेर कचरा तही मेर हीरा, जही मेर माया वही मेर पीरा, दुनिया में सौदा हजार हे ग भइया दुनिया मड़ई मेला बाजार हे दुनिया में सौदा हजार हे ग भइया दुनिया मड़ई मेला बाजार हे’’ |
प्रभा |
‘’ये बाजार है जी भैया, दुनिया मड़ई मेला बाजार है, ’ये बाजार है जी भैया, दुनिया मड़ई मेला बाजार है राम नाम दुनिया का सार है ना भैया राम नाम दुनिया का सार है ना भैया दुनिया मड़ई मेला बाजार है जहां पर कचरा वहीं पर हीरा, जहां पर माया वहीं पर पीरा, दुनिया में सौदा हजार है जी भैया दुनिया मड़ई मेला बाजार है दुनिया में सौदा हजार है जी भैया दुनिया मड़ई मेला बाजार है’’
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रागी |
‘’ये बाजार ये ग भइया, दुनिया मड़ई मेला बाजार ये, ये बाजार ये ग भइया, दुनिया मड़ई मेला बाजार हे’’ |
रागी |
‘’ये बाजार है जी भैया, दुनिया मड़ई मेला बाजार है, ’ये बाजार है जी भैया, दुनिया मड़ई मेला बाजार है
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प्रभा |
अरे भइया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम जी महराज कथे जन्मेजय माता सत्यवती के विवाह ह राजा शान्तनु में संग म होईस कुछ दिन बिते के बाद रानी सत्यवती गर्भवती रहिथे और नौ महीना दस दिन बीते के बाद में ‘’सुन्दर बेटा जनम लेवन लागे रे भाई, ’सुन्दर बेटा जनम लेवन लागे रे भाई’’ दू झन सुन्दर बेटा जनम लेथे रागी भइया बड़े बेटा के नाव चित्रांगद पड़थे अउ छोटे के नाव विचित्रवीर रथे समय बीतथे लईका मन पढ़े बर जाथे अठारह बरस के उंखर उमर होगे रागी भाई धीरे धीरे लईका मन के उमर ह बाढ़त जाथे। |
प्रभा |
अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम जी महाराज कहते हैं, कि जन्मेजय, माता सत्यवती का विवाह राजा शान्तनु के साथ हुआ कुछ समय बीतने के बाद रानी सत्यवती गर्भवती होती है और नौ महीने दस दिन बीतने के बाद में ‘’सुन्दर बेटा जन्म लेने लगा जी भाई, ’सुन्दर बेटा जन्म लेने लगे जी भाई’’ दू सुन्दर बेटों ने जन्म लिया रागी भैया बड़े बेटे का नाम चित्रांगद रखा और छोटे का नाम विचित्रवीर रखते हैं, समय बीतता है बच्चे पढ़ने के लिए जाते हैं, उनकी आयु अट्ठारह वर्ष की होने लगी रागी भाई धीरे धीरे दोनों बच्चों की उम्र बढ़ती जाती है।
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रागी |
अच्छा। |
रागी |
अच्छा।
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प्रभा |
बताय हे कुछ दिन बिते के बाद महराज शान्तनु के स्वर्गवास हो जथे, सबल सिंह चौहान ह लिखे हे ‘’अठारह बरस उमर म रानी विधवा होवन लागे रे भाई, अठारह बरस उमर म रानी विधवा होवन लागे रे भाई, दोनो लईका मन बढ़न लागे भाई, भाई, दोनो लईका मन बढ़न लागे भाई’’ दोनों लईका योग्य हो जथे अठारह बरस के उमर होथे, रानी सत्यवती भीष्म ल कथे भीष्म दोनों भाई बिहाव करे के लाईक होगे हे कोनो देश म लईका देख के आते अउ आके तोर दूनो भाई के बिहाव ल कर देते, भीष्म कथे दाई कोनो देश के राजा अपन बेटी के स्वयंबर करही ओ स्वयंबर म मय लड़की ढूंढ के लाहू, समय बीतते कुछ समय बीते के बाद कुछ दिन के बाद काशी नरेश राजा अपन तीन झन बेटी के स्वयंबर रखथे अम्बा अम्बिके अम्बालिका बड़े बड़े राजा महराजा ओकर स्वयंबर म पहुंचथे, भीष्म भी लगाय हे किरीट कुंडल, बसन भूषण अउ तीनो लड़की के स्वयंबर म जाथे अउ जब स्वयंबर म जाथे तीनो लड़की हाथ म वरमाला लेके सभा के मध्य घूमथे अउ अपन मन के लायक वर तलाश करथे, तीनो लड़की जयमाला लेके भीष्म के आगू पूछथे भीष्म जेन सिंहासन म बईठे हे ते झपट के जाथे अउ तीनो लड़की ल रथ म बईठाथे अउ तीनो लड़की ल रथ म बईठाथे अउ भगाथे अपनो रथ म ‘’अ ग रथ ल भगान लागे भाई’’ तीनो लड़की ल जीत लाथे अम्बिका अउ अम्बालिका ल लाथे अपन दू भाई बर शादी करथे मझली लड़की के बिहाव अपन मझला भाई संग अउ अपन छोटे लड़की के शादी ल छोट भाई संग करथे बच जाथे वो अम्बा नाम के लड़की जो दूनो बहन में बड़े हे अम्बा सोचथे शायद मोला भीष्म स्वीकार करही समय बीते के बाद में अम्बा कथे महराज तंय मोला कब बिहाव करबे त भीष्म काहत हे अम्बा मय ‘ब्याह करांवा, ना राज चलावां, मातु गंगा शपथ हम खांवा’ |
प्रभा |
बताया गया है कुछ दिन बीतने के बाद महाराज शान्तनु का स्वर्गवास हो जाता है, सबल सिंह चौहान ने लिखा है ‘’अट्ठारह वर्ष की उम्र में रानी विधवा हो गई जी भाई, ’अट्ठारह वर्ष की उम्र में रानी विधवा हो गई जी भाई, दोनों बच्चे बढ़ने लगे भाई, दोनों बच्चे बढ़ने लगे भाई, दोनो’’ दोनों बच्चे योग्य हो जाते हैं, अट्ठारह वर्ष के उम्र होती हैं, तो रानी सत्यवती भीष्म से कहती कि हैं भीष्म दोनों भाई विवाह योग्य हो गए हैं, किसी देश में लड़की देख आते और आकर तुम्हारे दोनों भाईयों का विवाह करवा देते, भीष्म कहते हैं माते किसी देश का राजा अपनी बेटी का स्वयंवर करेगा उस स्वयंवर से मैं लड़की ढूंढकर लाऊंगा, समय बीतता है और कुछ समय कुछ दिन बीतने के बाद काशी के नरेश अपनी तीन बेटियों का स्वयंवर रखथे हैं, अम्बा अम्बिका और अम्बालिका, बड़े बड़े राजा और महाराजा उनके स्वयंवर में पहुंचते हैं, भीष्म भी वस्त्राभूषण किरीट कुंडल, आदि धारण किए हुए हैं, और तीनो लड़कियों के स्वयंवर में जाते हैं , और जब स्वयंवर में जाते हैं , तीनो लड़कियां हाथ में वरमाला लिए सभा के मध्य घूमती है और अपने मन के लायक वर तलाश करती है, तीनो लड़कियां जयमाला लेकर भीष्म के आगे पूछती हैं भीष्म जो सिंहासन में बैठे थे वे झट से उठ जाते हैं और तीनों लड़कियों को रथ में बिठाकर खुद भी बैठते हैं, और रथ को तेजी से भगाते हैं ‘’अ जी रथ वो भगाने लगे भाई’’ तीनों लड़कियों को जीत कर लाते हैं, अम्बिका और अम्बालिका को लेकर अपने दोनों भाईयों के साथ शादी करते हैं मंझली लड़की का विवाह अपने मंझले भाई के साथ और छोटी लड़की का विवाह छोटे भाई संग करवाते हैं, बच जाती वो अम्बा नाम की लड़की जो दोनों बहनों में बड़ी है अम्बा सोचती कि शायद मुझे भीष्म स्वीकार करेंगे समय बीतने के बाद अम्बा कहती है महाराज आप मुझसे कब विवाह करेंगे, तो भीष्म कहते है अम्बा मैं ‘ब्याह करूंगा, ना राज चलाऊंगा, माता गंगा की मैंने शपथ खाई’।
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रागी |
जय हो जय हो। |
रागी |
जय हो जय हो।
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प्रभा |
लड़की हाथ जोड़ के कथे तंय मोला वो स्वयंबर ले जीत के लाने हस मोर जीवन ल बरबाद झन कर मय तोर कारण जल के मर जांव, कहे मोर जिनगी बरबाद हो जही भीष्म नई मानिस आखिर म लड़की शिकायत लेके महेन्द्रपुर पर्वत पहुचिस जहां भगवान परशुराम जी हे रागी, अम्बा ल विश्वास रीहीसे कि तयं काकरो बात ल नी मानबे त झन मानबे पर भगवान परशुराम जी तोर गुरूजी हे ओकर बात ल तो जरूर मानबे भगवान परशुराम कथे अम्बा चल मय तोर बिहाव ल भीष्म संग करा देहू बेटी परशु राम आके समझाथे एक लडकी के जीवन ल बरबाद मत कर फेर भीष्म ह न मानिस आखिर म परशुराम शर्त रखते कि भीष्म तोला मोर से युद्ध करे बर परही लड़ाई म जीत जाबे त लड़की संग बिहाव झन करबे अउ हारबे त बिहाव करे लगही भीष्म कहीस महराज जइसन तुंहर आदेश गुरू अउ शिष्य में लगातार चौबीस दिन युद्ध होथे, सबल सिंह महराज बताय हे परशु राम अउ भीष्म बड़े बड़े बाण छोड़थे चौबीस दिन तक लड़थे अउ आखिर म शिष्य के आगे गुरू हार जाथे अम्बा नाम के लड़की चिता तैयार करथे अउ चिता म आग लगा देथे अउ प्रतिज्ञा करथे कहे भीष्म कान खेल के सुन ले कहे तोर करण मय चिता म जल के मरत हंव मोर जीवन बरबाद होगे पर याद रखबे भीष्म एक दिन मय जनम लेके तोर बाद म बदला नई ले लूंहूं त काशी नरेश के बेटी अम्बा कहलाना छोड़ देहूं ‘’ये तोरे तो नाव हे ग, मोहन हरियर ग मन हे ए ग हरियर तोर तन हे, ‘’ये तोरे तो नाव हे ग, मोहन हरियर ग मन हे ए ग हरियर तोर तन हे, रथ के खिचईया तोर पईंया परव ग मोहन हरियर ग पईंया लगंव ग, ये भक्तन के हित बर जनम धरे ग मोहन, माता गउवा के चरईया तोर पईंया लगंव ग मोहन कन्हैया’’ रागी भाई लड़की ह चिता म जल के मर जाथे समय ह बीतथे मणिपुर में हस्तिनापुर के राजा महराज चित्रागंद बने हे, एक दिन के बात ए जंगल में शिकार खेले बर गे रथे गंधर्व के संग वादविवाद हो जथे चित्रागंद के मृत्यु हो जथे लड़ाई में गंधर्व महराज चित्रांगद ल मार देथे तेकर पाछू हस्तिनापुर के राजा विचित्रपुर ल बनाय जाथे |
प्रभा |
लड़की हाथ जोड़कर कहती है कि आप मुझे स्वयंवर से जीतकर लाये हैं, मेरा जीवन बर्बाद मत करिये मैं आपके कारण जलकर मर जाऊंगी, कहती है मेरी जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी, भीष्म है कि मानता ही नहीं, आखिर में लड़की शिकायत लेकर महेन्द्रपुर पर्वत पहुचती है, जहां भगवान परशुराम जी हैं रागी, अम्बा को विश्वास था कि तुम किसी की बात भले ही ना मानो परन्तु भगवान परशुराम जी तुम्हारे गुरूजी हैं उनकी बात तो जरूर मानोगे, भगवान परशुराम कहते हैं अम्बा चलो मैं तुम्हार विवाह भीष्म के साथ करवा दूंगा बेटी, परशुराम आकर समझाते हैं एक लडकी का जीवन बर्बाद मत करो किन्तु भीष्म नहीं मानते आखिर में परशुराम शर्त रखते हैं कि भीष्म तुम्हे मुझसे युद्ध करना पड़ेगा लड़ाई में यदि तुम जीत जाआगे तो लड़की से विवाह मत करना और हार जाआगे तो तुमको विवाह करना पड़ेगा भीष्म ने कहा महराज जैसी आपकी आज्ञा, गुरू और शिष्य में लगातार चौबीस दिन युद्ध होता है, सबल सिंह महाराज ने बताया है परशुराम और भीष्म बड़े बड़े बाण छोड़ते हैं, चौबीस दिन तक लड़ते हैं और अंत में शिष्य के आगे गुरू हार जाते हैं, अम्बा नामक लड़की चिता तैयार करती है और चिता में आग लगाकर प्रतिज्ञा करती है कि भीष्म मेरी बात कान खोलके सुन लो कि तुम्हारे ही कारण मैं चिता में जलकर मर रही हूं मेरा जीवन बरबाद हो गया परन्तु याद रखना भीष्म एक दिन मैं जन्म लेकर तुमसे इस बात का बदला नहीं ले लूंगी तो काशी नरेश की बेटी अम्बा कहलाना छोड़ दूंगी ‘’ये आपका नाम है जी, मोहन हरिहर जी मन है जी हरिहर तेरा तन है, ‘’ये आपका नाम है जी, मोहन हरिहर जी मन है जी हरिहर तेरा तन है, रथ को खिचने वाले तुम्हारे पईंया पड़ू मोहन हरिहर जी पईंया लगूं जी, हे भक्तों के हित के लिए जन्म वाले मोहन, गौ माता के चराने वाले तेरे पईंया लगुं जी मोहन कन्हैया’’ रागी भाई लड़की चिता में जल के मर जाती है समय बीतता है मणिपुर में हस्तिनापुर के राजा महाराज चित्रागंद है, एक दिन की बात है जंगल में शिकार खेलने के लिए गए थे वहां गंधर्व से वादविवाद हो जाता है और लड़ाई में चित्रागंद की मृत्यु हो जाती है, लड़ाई में गंधर्व महाराज चित्रांगद को मार देते हैं उसके बाद हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर को बनाया जाता है।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
राजा विचित्रवीर हस्तिना के राजा बने हे बताय हे सबल सिंह महराज ह रागी बेटा अउ पति के मरना ल देख के रानी सत्यवती ह ब्याकुल हो जथे। |
प्रभा |
राजा विचित्रवीर हस्तिना के राजा बने हैं, सबल सिंह महराज ने बताया है रागी पुत्र और पति की मृत्यु रानी सत्यवती व्याकुल हो जाती है।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
भीष्म हर रोज माता सत्यवती के महल म जाके उपदेश देथे जेला देख के राजा विचित्र के मन म पाप अमागे, |
प्रभा |
भीष्म हर रोज माता सत्यवती के महल में जाके उपदेश दिया करते थे जिसे देखकर राजा विचित्र के मन में पाप समा गया।
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रागी |
अच्छा। |
रागी |
अच्छा।
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प्रभा |
राजा ल सोच होगे कि मां सत्यवती के मंदिर म भैया ह रोज के जाथे एक दिन के बात ए हाथ म तलवार लेके दरवाजा म खड़े हे। |
प्रभा |
राजा को शंका हो गई कि मां सत्यवती के मंदिर में भैया हर रोज जाते हैं एक दिन की बात है हाथ में तलवार लेकर वो दरवाजे पर खड़ा है।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
बोले देखना चाहिए वाकई में भैया ह मां के मंदिर म जाथे काबर बताय हे जब भीष्म महराज मां के महल म प्रवेश करथे माता सत्यवती सोना के पलंग म बईठे हे भीष्म जाके अलग आसन म बइठथे, अउ सत्यवती ल कथे दाई भीष्म काहत हे मां तंय काबर बर शोक करत हस ये तो मृत्यु लोक ए अउ एक दिन ‘मरन सब कर होई, तब दुनिया में अमर रहे नहीं कोई, कहे रोगी मरे अउ बैद मर जाई, तब स्त्री पुरूष और पानी बिम्ब जादू सब सारा आवत जावत लागत ही बारा जइसे पथिक मार्ग म चलही’ कहे मां ये तो मृत्यु लोक हे तंय काबर चिंता काबर करत हस सत्यवती सुनत रहय रागी आंखी मुंदागे दाई ल नींद आगे अउ दाई के नींद ह परिस त खांध म आंचल राहय ते खसकगे भीष्म के नजर परगे आंखी म पट्टी बांधथे अउ आंखी म पट्टी बांध के दांत म चाब के दाई के आंचल ल जब चघाथे ये दृश्य ल देखथे त राजा विचित्रवीर ह व्याकुल हो जाथे कहे इतना बड़े ज्ञानी इतना बड़े त्याग और कहे देवता तुल्य भैया के ऊपर मोर मन म पाप होगे रागी भैया अब ये पाप अब कटही कहां जगह जगह जाके ओकर ईलाज खोजे पर कोई नी बताय एक दिन दोनों भाई बईठे हे एक दिन राजा भीष्म ल विचित्रवीर सहज भाव से पूछत हे भैया दुनिया में का का पाप होथे भरीष्म कहिस कतको पाप हे चोरी करबे तेनो पाप ए लबारी मारबे तेनो पाप ए गउ हत्या करबे बाल हत्या करबे सब पाप ए पर सब पाप से बड़े एक ठन अउ पाप हे, बोले का ? मनसा नाम के पाप हे मनसा महापाप हे राजा ल समय मिलगे विचित्रवीर ह पूछिस वो पाप कामा कटथे रागी |
प्रभा |
कहा देखना चाहिए कि वाकई में भैया मां के मंदिर में जाते क्यों है ? क्योकिं बताया है जब भीष्म महाराज मां के महल में प्रवेश करते हैं तो माता सत्यवती स्वर्ण के पलंग में बैठी थी, भीष्म जाके अलग आसन में बैठते, और सत्यवती से कहते हैं माते, भीष्म कहते है कि मां आप किसके लिए शोक करती हैं, ये तो मृत्यु लोक है और एक दिन ‘मरना सबको है , और तब दुनिया में कोई भी अमर नहीं है, कोई कहता है, रोगी मरता और वैद्य भी मर जाता है, और स्त्री पुरूष भी मरते हैं, और ये सारा जगत पानी के बुलबुले जैसा है और पानी में जैसे प्रतिबिम्ब पड़ता है वैसा ही जादू जैसा है, आना जाना तो लगा रहता है, जैसे रास्ते पर राहगीर आते जाते रहते हैं‘’ कहते मां ये तो मृत्यु लोक है आप क्यों चिंता करती हैं, सत्यवती सुन रही थी और आंख लग गई नींद आ गई, माता की नींद पड़ गई और नींद पड़ते ही कंधे से आंचल फिसल गया, भीष्म की नजर पड़ गई आंख में पट्टी बांधी और आंख में पट्टी बांधकर दांत में दबाकर माता का आंचल चढ़ाता है यह दृश्य देखकर राजा विचित्रवीर व्याकुल हो जाता है और कहता है इतना बड़ा ज्ञानी इतना बड़ा त्याग और ऐसे देवता तुल्य भैया पर मैंने संदेह करने पाप किया रागी भैया अब यह पाप कहां धुलेगा, जगह जगह जाकर इसका निवारण ढूंढा पर किसी ने नहीं बताया, एक दिन दोनों भाई बैठे थे राजा भीष्म को विचित्रवीर ने सहज भाव से पूछा भैया दुनिया में कौन कौन से पाप होते हैं ? भीष्म कहते है कितने ही पाप है, चोरी करो वो भी पाप है झूठ बोलो वो भी पाप है गौ हत्या करो बाल हत्या करो ये सब पाप है, परन्तु सब पापों से बड़ा एक पाप है, पूछा क्या ? मनसा नाम का पाप है मनसा महापाप है, राजा को समय मिल गया, विचित्रवीर पूछता वो पाप कैसे कटेगा रागी
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रागी |
हव |
रागी |
हव
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प्रभा |
है ना फिर भीष्म कहिस कतको ईलाज हे ग कोनो कते गड़रिया घर जाके भेड़ी चराथे नईते ससुराल म जाके घरजियां रईथे है ना ? |
प्रभा |
है ना फिर भीष्म कहिस कतको ईलाज हे ग कोनो कते गड़रिया घर जाके भेड़ी चराथे नईते ससुराल म जाके घरजियां रईथे है ना ?
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
लेकिन एक सरल अउ सस्ता उपाय कहे का ? |
प्रभा |
लेकिन एक सरल और सस्ता उपाय पूछो क्या ?
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रागी |
का ? |
रागी |
क्या ?
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प्रभा |
काशी म जाके पीपर के खोह म आगी जलाके प्राण जो त्याग देथे ओमा ये मनसा पाप कटथे, राजा विचित्रवीर ह काशी म जाके पीपर के खोह म जाके आगी जलाके अपन प्राण ल त्याग देथे, अउ सत्यवती सुनिस त कहिस हाय.. बेटा हस्तिना के राजगद्दी सुन्ना होगे। |
प्रभा |
काशी में जाके पीपल की खोह में आग जलाकर जो अपने प्राण त्याग देते हैं उसमें ये मनसा पाप कटती है, राजा विचित्रवीर काशी में जाकर पीपल की खोह में जाकर आग जलाकर अपने प्राण त्याग देते हैं, और सत्यवती ने सुना तो कहा हाय.. बेटा हस्तिना की राजगद्दी सुनी हो गई।
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रागी |
जय हो जय हो। |
रागी |
जय हो जय हो।
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प्रभा |
अउ सत्यवती कहिस भीष्म तंय राजा बन जा त भीष्म कहिस दाई तोर राज ह धुर्रा म मिल जाही तब ले मंय हस्तिना के राजा नई बनव मोर एक झन अउ बेटा हे ओला मय बला लेंव का कहे कुंवारी कोख ले जनम लेहे तेला व्यास नरायण के नाम से जानथे भीष्म कहे मां बला ले। |
प्रभा |
और सत्यवती ने कहा भीष्म राजा बन जाओ तो भीष्म ने कहा माता आपका राज्य यदि धुल में भी मिल जाए तो भी मैं हस्तिना का राजा नहीं बनूंगा, रानी ने कहा मेरा एक और पुत्र है क्या उसे मैं बुला लूं, कहा उसने कुंवारी कोख से जन्म लिया है, जिसे व्यास नरायण के नाम से जानते है भीष्म ने कहा मां बुला लो।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
सत्यवती अंगना म बईठ के ‘’व्यास के यादे ग करन लागे भाई’’ सत्यवती काहत हे व्यास कहे आओ मां के पुकार ल सुनिस व्यासे नारायण ह पहुंचन लागय सत्यवती कहिस आव दोनो हांथ ल जोड़ के मां के चरण ल प्रणाम करत हे व्यास पूछथे हे दाई ‘’काए सेवा करंव ओ मईया कहे भईया, सत्यवती कहत हे व्यास एक झन बेटा ए ग मोर भाई, हस्तिना के राज सुना हे ये द व्यास देव ह कहन लागे भाई, व्यास देव ह कहन लागे भाई, सत्यवती ह सुनन लागे भाई’’ कहे मां अगर हस्तिना के राजा के योग्य बेटा चाही त दूनो बहू में से एक झन बहू ल मोर सामने भेज अउ निरवस्त्र वही मोर सामने में आ आही अउ मय दिव्य दृष्टि देख दूंहू त तोर बहू गर्भवती हो जही, जाके रानी सत्यवती मंझली लड़की ल काहत हे अम्बिका ल नोनी, मोर बेटा आय हवे मोर बेटा के सामने म जा दिव्य दृष्टि देखही त पुत्रवती हो जबे बेटी, अम्बिका नाम के बेटी वस्त्र आभूषण उतारथे अउ व्यास देव के आगू म जाथे अउ व्यास जब नजर उठाके देखथे त व्यास नारायण के आंख में दीप प्रज्वलित होथे, रानी व्यास नारायण के आगू म आंखी ल मूंद देथे रागी भइया व्यास आसीरबाद देथे जा पुत्रवती हो जा, सत्यवती पूछथे बेटा पुत्रदेव व्यास बोले हां मां पुत्रदेव सत्य काहत हंव पर वो लईका राज्य के अधिकारी नई होवय काबर ओ लईका आंखी के अंधरा होही दाई |
प्रभा |
सत्यवती आंगन में बैठकर ‘’व्यास नारायण को याद करने लगी भाई’’ सत्यवती कहती है हे व्यास आओ, मां की पुकार सुनकर व्यास नारायण पहुंचने लगे, सत्यवती ने कहा आओ दोनों हाथ जोड़कर मां के चरणों में प्रणाम करते हैं, व्यास पूछते है मां ‘’क्या सेवा करूं ओ मईया कहा भैया, सत्यवती कहती है व्यास मेरा एक बेटा है जी मेरे भाई, हस्तिना का राज सुना हो गया है, ऐसा व्यास देव जी कहने लगे भाई, व्यास देव कहने लगे भाई, सत्यवती सुनने लगी भाई’’ कहा मां अगर हस्तिना के राजा के योग्य बेटा चाहिए तो दोनों बहुओं में से एक बहू को मेरे सामने निर्वस्त्र भेजो मैं उसे दिव्य दृष्टि से देख लूंगा तो तुम्हारी बहू गर्भवती हो जाएगी, जाकर रानी सत्यवती मंझली लड़की से कहती है, अम्बिका मेरा बेटा आया हुआ है उसके सामने निर्वस्त्र जाओ वह दिव्य दृष्टि से देखेगा तो तुम पुत्रवती हो जाओगी बेटी, अम्बिका नाम की लड़की वस्त्र आभूषण उतारकर और व्यास देव के सामने जाती है और जब व्यास नजर उठाके देखते है तो व्यास नारायण की आंखों में दीप प्रज्वलित होते हैं, रानी व्यास नारायण के सामने आंखी मूंद लेती है, रागी भैया व्यास आशीर्वाद देते हैं जा पुत्रवती हो जा, सत्यवती पूछती है बेटा पुत्र दिया, व्यास बोले हां मां पुत्र दिया परन्तु सत्य कहता हूं वो बच्चा राज्य का अधिकारी नहीं होगा क्योकिं वो बच्चा आंखों से अंधा होगा।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
काबर ओकर दाई जब मोर सामने आईस त अपन दोनों ठन आंखी ल मूंद दे रीहीस हे सत्यवती कहे मोर दोनों बहू ह दूसर बहू ल भेजत हंव छोटी रानी ल भेजथे जेकर नाम अम्बालिका हे अम्बालिका नाम के लड़की लज्जा के वश हाथ गोड़ म ‘’अ ग पीला रंग ल चुपड़न लागे रे भाई, ये जेला पीवरी छूही कथे लड़की पीला रंग के लेप लगाथे हाथ म पांव वोहा व्यासे के आगू म जावन लागे रे भाई जा पुत्रवती हो जा पर बेटी जो तोर कोख से जनम लेही वोहा पांडू रंग के होही सत्यवती पूछिस हां मां पुत्रदेव पर वो लईका पीला रंग के होही पांडू रंग के होही सत्यवती काहय एक झन अउ बेटा दे देतेस। |
प्रभा |
क्योकिं उसकी मां जब मेरे सामने आई तो अपनी दोनों आंखें मूंद ली थी, सत्यवती ने कहा मेरी दो बहुएं है दूसरी बहू को भेजत हूं, छोटी रानी को भेजती है जिसका नाम अम्बालिका है, अम्बालिका नाम क लड़की लज्जा के कारण अपनी हाथों और पैरों ‘’अ जी पीला रंग का लेप लगाने जी भाई’’ वो जिसे पीला मिट्टी कहते हैं लड़की पीले रंग का लेप लगाती है हाथों और पैरों में, ‘’वह व्यास के समाने जाने लगी जी भाई’’ जा पुत्रवती हो जा परन्तु बेटी जो तुम्हारी कोख से जन्म लेगा वह पांडू रंग का होगा, सत्यवती के पूछने पर कहा हां मां मैंने पुत्र दिया पर वह बच्चा पीले रंग का होगा, पांडू रंग का होगा होही, सत्यवती ने कहा एक और पुत्र दे दो।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
जाके अपन बड़े बहू ल कथे जा बेटी एक घंव अउ तेंहा अम्बिका ल कहि दिस पर लाज के बश म सुदरा नाम के दासी ल भेज दिस सुदरा राम के दासी निर्लज अउ निरवस्त्र होके जब व्यास के सामने जा के खड़े होथे तब व्यास नारायण गदगद होके आसीरवाद देथे जा तंय पुत्रवती हो जा कहे सुदरा तोर कोख ले भगवान के महाभक्त अउ महाज्ञानी बेटा पैदा होही, समय बीतते हस्तिना के गली में तीन झन बेटा जनम होथे हस्तिना के राज महल म तीन झन बेटा होथे जउन आंखी के अंधरा होथे तेकर नाम धृतराष्ट्र परीस, पांडू रंग के लईका होईस तेकर नाव पांडू परीस अउ सब ले छोटे लईका के नाम विदुर परगे। |
प्रभा |
जाकर अपनी बड़ी बहू से कहती जाओ बेटी तुम एक और बार अम्बिका से यह कह दिया परन्तु लाज के कारण उसने सुद्रा नाम की दासी को भेज दिया, सुद्रा नामक दासी निर्लज ओर निर्वस्त्र होकर जब व्यास के सामने जाकर खड़ी होती है तब व्यास नारायण गदगद होकर आर्शीवाद देते हैं, जाओ तुम पुत्रवती हो जाओ और कहते हैं सुद्रा तुम्हारी कोख से भगवान का महाभक्त और महाज्ञानी पुत्र पैदा होगा, समय बीतता है हस्तिना की गलियों में तीन बालकों का जन्म होता है हस्तिना के राजमहल में तीन पुत्र होते हैं जो आंख से अंधा होता है उसका नाम धृतराष्ट्र पड़ा, पांडू रंग के बालक का नाम पांडू हुआ और सबसे छोटे बालक का नाम का विदुर पड़ा।
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रागी |
जय हो जय हो। |
रागी |
जय हो जय हो।
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प्रभा |
समय बीतत हे धीरे धीरे तीनो झन के उमर ह बीतत हे जब तीनो झन लईका मन ह पांच सात के होईस तब पढ़े बर भेजिस। |
प्रभा |
समय बीतता है धीरे धीरे बच्चे की उम्र बढ़ रही है जब तीनों बच्चे पांच सात वर्ष के हुए तो उन्हे पढ़ने के लिए भेजा।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
अउ जब शादी योग्य होईस त तीनो झन के बिहाव कर दिस रागी भइया, गांधार देश के राजा गजेन्द्र ह गांधारी के स्वयंबर करथे ओ गांधारी ल स्वयंबर म जीत हे लान के धृतराष्ट्र संग शादी करथे राजा भोज कुन्ती के स्वयंबर करथे तेकर बिहाव ल राजा पांडू संग करथे अउ माध्र प्रदेश के माधरी के स्वयंबर होथे माधरी ल ला के राजा पांडु संग बिहाव कर देथे पांडू के दू झन रानी बड़े रानी के नाव कुंती अउ छोटे के नाव माधरी समय बीतथे देवत नाम के राजा पाराशरी के स्वयंबर करथे जेला लाके विदुर के संग म बिहाव करथे। |
प्रभा |
और जब वे विवाह के योग्य हुए तो तीनों के विवाह करा दिए गए रागी भैया, गांधार देश के राजा गजेन्द्र ने गांधारी का स्वयंवर किया उस गांधारी को स्वयंवर से जीतकर लाके धृतराष्ट्र के साथ विवाह कराया गया, राजा भोज ने कुन्ती का स्वयंवर किया उसका विवाह राज पांडू के साथ किया गया, और माध्र प्रदेश की माधरी का स्वयंवर हुआ माधरी को लाकर राजा पांडु के साथ विवाह करवाया गया, पांडू की दो रानियां होती है, बड़ी रानी का नाम कुंती और छोटी रानी का नाम माधरी, समय बीतता है देवत नामक राजा ने पाराशरी का स्वयंवर किया जिसे लाकर विदुर के साथ विवाह कराया।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
समय ह बीतत हे तीनो झन लईका मन के अउ भीष्म पितामह ह गदगद होगे भगवान ल काहत हे द्वारका नाथ ‘’मदन मन मोहना ए भइया ग भइया ए ग मदन मन मोहना ए ग, मदन मन मोहना ए भइया ग भइया ए ग मदन मन मोहना ए ग, ये बंशी मोर मन ल भावे मदन मोहना ए ग, ये बंशी मोर मन ल भावे मदन मोहना ए ग, जब जब होई धरम कर हानि मदन मन मोहना ए जी, बाढ़े असुर अधम अभिमानी मदन मन मोहना ए जी तब तब लीन्ह मनुज अवतार मदन मन मोहना ए जी’’ तीनो राजकुमार के विवाह होथे पांडू महराज जंगल म शिकार खेले बर जाथे, जंगल म राजा पांडू ल मृगा के रूप में जब ऋषि अउ ऋषि के पत्नी के मिलन होत रईथे रागी भइया पांडू जब निकाल के बाण मारथे तो ऋषि ह ओला श्राप देथे अरे राजा जउने अवस्था म तंय मोला मारे हस उही अवस्था म तोर मृत्यु होही राजा जंगल म निवास करथे। |
प्रभा |
समय बीत रहा है तीनो बालकों के साथ भीष्म पितामह गदगद हो गये, ओर भगवान से कह रहे हैं, हे द्वारिका नाथ ‘’मदन मन मोहना है भैया जी भैया है जी, मदन मन मोहना है जी, मदन मन मोहना है भैया जी भैया है जी मदन मन मोहना है जी, ये बंशी मेरे मन को भाती है मदन मोहना है जी, ये बंशी मेरे मन को भाती है, मदन मोहना है जी, जब जब होती है धर्म की हानि मदन मन मोहना है जी, बढ़े असुर अधम अभिमानी मदन मन मोहना है जी, तब तब लिया मनुष्य अवतार मदन मन मोहना है जी’’ तीनो राजकुमारों का विवाह होता है पांडू महाराज जंगल में शिकार खेलने के लिए जाते हैं, जंगल में राजा पांडू को मृग के रूप में जब ऋषि दिखाई देते हैं जो अपनी पत्नी के साथ प्रेम मिलन में रत रहते हैं रागी भैया, और उसी समय पांडू ने बाण निकाल कर ऋषि को मार दिया तब ऋषि ने उसे श्राप दिया और कहा अरे राजा जिस अवस्था में तुने मुझे मारा है उसी अवस्था में तुम्हारी भी मृत्यु होगी राजा जंगल में निवास कर रहे थे।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
राजा के सेवा म महारानी अउ रानी कुंती जाथे राजा ल दुख होथे मोर पुत्र नईए और कुंती दुवार्शा ऋषि के माला मंत्र द्वारा ‘’अगर चार बेटा जनम देवन लागे भाई, माला मंत्र के द्वारा धर्मराज के द्वारा युधिष्ठिर, पवन द्वारा भीमसेन और देवराज इंद्र के वरदान दिस तब अर्जुन जनम लेथे, ‘’भइया तीन बेटा जनम लेवन लागे भाई राजा जब देखन लागय ग भाई’’ |
प्रभा |
राजा की सेवा में रानी माधरी और रानी कुंती गए थे, राजा को दुख होता है कि मेरे पुत्र नहीं है और ऋषि दुवार्शा की दी हुई मंत्रों की माला द्वारा कुंती ‘’अ जी चार बेटों को जन्म देने लगी भाई, मंत्रों की माला द्वारा धर्मराज के आशीर्वाद से युधिष्ठिर, पवन देव की कृपा द्वारा भीमसेन और देवराज इंद्र ने वरदान दिया तब अर्जुन का जन्म हुआ, ‘’भैया तीन पुत्र जन्म लेने लगे भाई, राजा जब ये देखने लगे भाई’’
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रागी |
‘’भइया तीन बेटा जनम लेवन लागे भाई राजा जब देखन लागय ग भाई’’ |
रागी |
‘’भैया तीन पुत्र जन्म लेने लगे भाई, राजा जब ये देखने लगे जी भाई’’
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प्रभा |
माधरी कथे दीदी कहूं वो माला ल मोला देते त एकाद झन बेटा महू पैदा कर लेतेंव, महारानी माधरी अश्वनी कुमार के याद करथे अउ अश्वनी कुमार के याद करके नकुल के जनम होथे अउ सबले छोटे पांडूनंदन सहदेव ल जनम देके बाद माता माधरी ह अपन शरीर ल त्याग देथे अउ पति के संग म सती हो जथे, एति जंगल म पांच झन बेटा जनम लेथे ओती हस्तिना म महारानी गांधारी के कोख ले मांस के पिंड जनम लेथे बारा बरस गर्भवती रेहे के बाद जब मांस के पिंड जनम लेथे तब महारानी ल क्रोध आ जथे, महादेव ल कथे भोलानाथ मय बारा बरस ले तोर पूजा करे हंव अउ बारा साल पूजा करके वरदान में सौ बेटा मांगे रेहेंव एक सौ बेटा तो बेटा तंय मोला एक झन बेटा नई दे हस व्यास नारायण कथे गांधारी भगवान के वानी गलत नई होय बेटी एक सौ घी से भरे घड़ा मंगाथे अउ मांस के पिंड ल सौ टुकड़ा म कटाथे सौभाग्य से वो मांस के पिंड ह एक सौ एक टुकड़ा हो जथे एक एक ठन घड़ा म एक एक ठन टुकड़ा ल डालथे एक टुकड़ा ल पहला घड़ा म डाल देथे समय आय के बाद घड़ा ल खोलथे, प्रत्येक घड़ा में से एक एक राजकुमार निकलथे जेमा दू ठन डाले रथे तेमा दू झन जनम लेथे एक लड़की अउ एक लड़का, लड़का के नाम दुर्याधन अउ लड़की के नाम दुशाला पड़थे, कौरव अउ पांडव जनम लेथे रागी नाना प्रकार के चरित्तर होथे भी भीष्म ल पता चलथे राजा पांडू संतानहीन नईए जंगल म पांच झन बेटा हे रथ लेके भीष्म जंगल में जाथे अउ पांडव ल हस्तिनापुर म लाथे, कुलगुरू कृपाचार्य घर पढ़े बर जाथे समय बीतत हे भीष्म द्रोणाचार्य के सुरता करथे कहूं द्रोण ह आ जतीस त एक सौ पांच झन लईका ल धनुरविद्या सीखातीस एक दिन के बात ए कौरव अउ पांडव जंगल म खेले बर जात रहीस, गेंद खेलत राहय त कुंआ म गेंद गिर जाथे अउ कौरव अउ पांडव बिचार करत हे ‘’सिया राम भजन कर ग प्राणी तोर दो दिन के जिनगानी सिया राम भजन कर ग प्राणी‘’ |
प्रभा |
माधरी कहती है दीदी यदि तुम वो माला मुझे भी दे देती तो एक दो पुत्रों को मैं भी जन्म दे देती, महारानी माधरी अश्वनी कुमार का स्मरण करती है और स्मरण करके नकुल को जन्म देती है और सबसे छोटे पांडूनंदन सहदेव को जन्म देने के बाद माता माधरी अपना शरीर त्याग देती है और पति के साथ सती हो जाती है, इधर जंगल में पांच पुत्रों का जन्म होता है उधर हस्तिना में महारानी गांधारी की कोख से मांस के पिंड का जन्म होता है, बारह वर्ष गर्भवती रहने के बाद जब मांस के पिंड जन्म होता है तब महारानी को क्रोध आ जाता है, महादेव से कहती है कि हे भोलेनाथ मैंने बारह वर्ष आपकी पूजा की और बारह वर्ष पूजा करके मैंने आपसे वरदान में सौ पुत्र मांगे थे आपने सौ पुत्र तो दूर एक भी पुत्र नहीं दिया व्यास नारायण कहते हैं गांधारी भगवान की वाणी कभी गलत नहीं होती बेटी एक सौ घी से भरे घड़े मंगवाए और मांस के पिंड को सौ टुकड़ों में कटवाया सौभाग्य से उस मांस के पिंड के एक सौ एक टुकड़े हो जाते हैं एक एक टुकड़ों को एक एक घड़े में डाला गया, और एक घड़े में दो टुकड़े डाले गए, समय आने के बाद प्रत्येक घड़ों में से एक एक राजकुमार निकलते हैं जिस घड़े में दो टुकड़े डाले गएट थे उसमे से दो बच्चे निकलते हैं एक लड़की और एक लड़का, लड़के का नाम दुर्याधन और लड़की का नाम दुशाला पड़ा, कौरव और पांडव जन्म लेते हैं रागी, नाना प्रकार की लीलाएं होती है, भीष्म को पता चलता है कि राजा पांडू संतानहीन नहीं है जंगल में उनके पांच पुत्र है रथ लेकर भीष्म जंगल में जाते हैं और पांडव को हस्तिनापुर लेकर आते हैं, कुलगुरू कृपाचार्य के घर पढ़ने जाते हैं, समय बीत रहा है भीष्म द्रोणाचार्य की याद आती है कहते हैं कहिं द्रोण आ जाते तो इन एक सौ पांच बच्चों को धर्नुविद्या सीखाते एक दिन की बात है कि कौरव और पांडव जंगल में खेलने के लिए जा रहे थे, गेंद खेल रहे थे और गेंद कुंआ में गिर जाती है कौरव और पांडव बिचार करते है ‘’सिया राम भजन कर तू प्राणी तेरी दो दिन के जिन्दगानी सिया राम भजन कर तू प्राणी‘’
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रागी |
‘’सिया राम भजन कर ग प्राणी तोर दो दिन के जिनगानी सिया राम भजन कर ग प्राणी‘’ |
रागी |
‘’सिया राम भजन कर तू प्राणी तेरी दो दिन के जिन्दगानी सिया राम भजन कर तू प्राणी‘’
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प्रभा |
समय बीते एक दिन बात ए द्रोणाचार्य महराज के आगमन होथे, कौरव अउ पांडव कुंआ के तीर म बईठे हे द्रोण ह तीर म जाके कहिथे बेटा तुमने काबर उदास हो ? दुर्योधन कहिथे महराज हमर गेंद ह कुंआ म गिर गेहे हमन गेंद ल निकालना चाहत हन, ‘’द्रोणाचार्य ह कचना के बाण बनाके मारन लागे भाई, गेंद ह उपर आवन लागे भाई’’ गेंद ह ऊपर आथे कौरव अउ पांडव ह द्रोणाचार्य लेके हस्तिनापुर आथे रागी भइया कौरव अउ पांडव धनुरविद्या सीखत रीहीस हे, ओ समय करण के आगमन होथे करण ल शूद्र पुत्र हरे कहिके करण ल बाण विद्या सीखाय बर मना कर देथे एकलव्य ल कहिथे तंय नीच जाति के हस कहिथे भील पुत्र आचार्य के मुर्ति के नीचे बाण विद्या सीखीस भैया एक दिन के बात ए गांव के महारानी कुंती अउ गांधारी भगवान महादेव के मंदिर म पूजा करत हे भइया एक दिन बात ए गांव के बाहिर महादेव मंदिर हे दाई कुंती अउ गांधारी रोज के मंदिर म पूजा करे बर जाय, कुंती पूजा करके आय रागी तेला गांधारी नई जानय अउ गांधारी पूजा करके आय तेला कुंती नई जानय, कुंती सोचय ए भगवान के पूजा ल मय करथंव, गांधारी सोचय ए भगवान के पूजा ल मय करथंव एक दिन के बात ए महारानी कुंती ह मंदिर ले निकलय पूजा करके गांधारी आंखी के अंधरी रीहीस हे, जब ले अंधा पति पाय रीहीस आंख म पट्टी बांध लिस, जब मोर स्वामी ए दुनिया नी देखे त मय ए दुनिया ल का देंखव, एक झन दासी ल संग म ले के जात हे पूजा करे बर अउ कुंती के मंदिर के निकलती ए अउ गांधारी के अमरती ए, गांधारी पूछत हे कस वो दासी ? |
प्रभा |
समय बीत रहा है एक दिन बात है द्रोणाचार्य महाराज का आगमन होता है, कौरव और पांडव कुंआ के किनारे में बैठे और द्रोण उनके पास जाकर कहते हैं बेटा तुम सब कयों उदास हो ? दुर्योधन कहते हैं महाराज हमारी गेंद कुंए में गिर गयी है हम गेंद को निकालना चाहते हैं, ‘’द्रोणाचार्य ने कुश की बाण बनाते हैं और मारने लगते हैं भाई, गेंद ऊपर आने लगती है भाई’’ गेंद ऊपर आता है कौरव और पांडव द्रोणाचार्य को लेकर हस्तिनापुर तो हैं रागी भैया, कौरव और पांडव दोनों धर्नुविद्या सीख रहे हैं, उस समय कर्ण का आगमन होता है कर्ण को शूद्र पुत्र हो कहकर कर्ण को बाण विद्या सीखाने के लिए मना कर दिया और एकलव्य को कहते हैं कि तुम नीच जाति के हो कहते हैं भील पुत्र आचार्य की मुर्ति बनाकर उसके सामने बाण विद्या सीखता है भैया एक दिन की बात है इस गांव की महारानी कुंती और गांधारी भगवान महादेव के मंदिर में पूजा करती है, भइया एक दिन की बात है गांव की बाहर महादेव का मंदिर है, माता कुंती और गांधारी रोज मंदिर में पूजा करने के लिए जाती थी, कुंती पूजा करके आती है रागी वह गांधारी को पता नहीं चलता था और गांधारी पूजा करके आ जाती थी यह कुंती नहीं जानती थी, कुंती सोचती ये भगवान की पूजा मैं करती हूं, और गांधारी सोचती कि ये भगवान की पूजा मैं करती हूं, एक दिन की बात है, महारानी कुंती पूजा करके मंदिर से निकल रही थी, गांधारी आंख की अंधी थी, जब से अंधा पति पाई थी तब से आंखों में पट्टी बांध ली थी, जब मेरे स्वामी इस दुनिया को नहीं देख सकते तो मैं इस दुनिया को देखकर क्या करूंगी, पूजा करने के लिए एक दासी को साथ में लेकर जा रही थी और उसी समय कुंती मंदिर से निकलती है, और गांधारी का आगमन होता है गांधारी पूछती क्यों री दासी ?
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
पहिली पांव के आवाज मोर ए अउ दूसर पांव के आवाज तोर ए अउ ये तीसरा पांव के आवाज काकर ए ? ओ दासी कथे दीदी पांडव के दाई कुंती ह भगवान के पूजा करके जात हे, पांडव के जननी सुने त गांधारी कहे सुन ए कुंती, कुंती हाथ जोड़ के गांधारी के आगू खड़े होगे कहे का बात ए ? |
प्रभा |
पहले पांव की आवाज मेरी है और दूसरे पांव की आवाज तुम्हारी है परन्तु ये तीसरे पांव की आवाज किसकी है ? वह दासी कहती है दीदी पांडव की माता कुंती है जो भगवान की पूजा करके जा रही है, पांडव की जननी सुनते ही गांधारी कहती है सुन ए कुंती, कुंती हाथ जोड़कर गांधारी के सामने खड़ी हो गई और कहा क्या बात है ?
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
गांधारी कहे कस वो कुंती ए मोर बेटा के राज ए मोर राजपाठ ए मोर धन दौलत ए ये राजपाठ, धन दौलत ह मोर ए त ए भगवान घला मोर ए। |
प्रभा |
गांधारी कहती है क्यों री कुंती ये मेरे बेटे का राज्य है मेरा राजपाठ है, मेरी धन दौलत है ये राजपाठ, धन दौलत सब मेरे है और ये भगवान भी मेरे हैं।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
आज ते आय ते आय काली ले झन आबे पूजा करे बर, तब कुंती कथे दीदी तोर ले पहिली मय ह हस्तिनापुर के रानी रेहेंव अउ तोर बेटा ले पहिली मोर बेटा बसे हे काबर मोर पति ल संतानहीन समझ के उत्तराधिकारी बनाईस अउ तंय कहूं काहत होबे कुंती आजे पूजा करे बर आय हे त ये तोर भूल ए ‘’अउ ये वो जब तो पूजत नाहीं मय तब ये राज हमार, अब जे तंय पूजती पूजीहव अरे भई जानत सब संसार, ये जानत सब संसार ए भईया जानत सब संसार ये जानत सब संसार ए भईया जानत सब संसार ये जानत सब संसार ए भईया जानत सब संसार ये जानत सब संसार ए भईया जानत सब संसार सिया रामचंद्र के भजन करव रे भाई मानुस तन बारम्बार नहीं आवय। |
प्रभा |
आज तुम आई तो आई कल से तुम पूजा करने मत आना, तब कुंती कहती दीदी आप से मैं हस्तिनापुर की रानी थी और मेरा बेटा पहले से बसा है क्योकिं मेरे पति को संतानहीन समझ के तुम्हारे बेटे को उत्तराधिकारी बनाया गया और आप कही सोच रही होंगी कि कुंती आज ही पूजा करने आई है तो यह आपकी भूल है ‘जब तुम आई नहीं थी तब से ये राज्य मेरा है, और तुम से भी पहले से मैं पूजा कर रही हूं ये सारा संसार जान रहा है, ये सारा संसार जान रहा है भैया ये सारा संसार जान रहा है ये सारा संसार जान रहा है भैया ये सारा संसार जान रहा है ये सारा संसार जान रहा है भैया ये सारा संसार जान रहा है ये सारा संसार जान रहा है भैया ये सारा संसार जान रहा है सिया रामचंद्र का भजन करो रे भाई मनुष्य तन बारम्बार नहीं मिलता।
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रागी |
सिया रामचंद्र के भजन करव रे भाई मानुस तन बारम्बार नहीं आवय। |
रागी |
सिया रामचंद्र का भजन करो रे भाई। मनुष्य तन बारम्बार नहीं मिलता।
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प्रभा |
दोनों के झगड़ा हो जथे आखिर म भगवान महादेव ह प्रगट हो जथे, अउ भगवान प्रगट होकर के कथे गांधारी अउ कुंती ल कथे काली जउन मोर सिर म एक हजार पारिजातक के फूल चघाही ओकरे बेटा राजा बनही। |
प्रभा |
दोनों में झगड़ा हो जाता है आखिर में भगवान महादेव प्रकट हो जाते हैं, और भगवान प्रकट होकर गांधारी और कुंती से कहते हैं कि कल जो मेरे सिर में एक हजार पारिजात के फूल चढ़ाएगा उसी का बेटा राजा बनेगा।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
भगवान कहिस जउन मोर सिर म एक हजार पारिजातक के फूल लान के चघा दिही ओकर बेटा राजा बनही, रागी भइया गांधारी हांसत जाथे अउ महारानी कुंती ह रोवत आथे, कुंती काहत हे द्वारकानाथ मय ओतका ओतका फूल ल कहां ले पाहूं काबर कि मोर दीदी नाप के चाउर देथे रांधे बर कुंती रोवत हे पाठशाला ले पढ़ के आथे पांडव आते ही भीम कथे मोला भूख लागत हे, राजा युधिष्ठिर कथे जा दाई जघा मांग के भोजन कर ले भीम आ के कथे मां मय पढ़ के आ गेंव मोला भूख लागत हे भोजन बने हे या नई बने हे कुंती जवाब नई देवत हे अचानक भीम के नजर ह पड़गे कहे या.. ‘’यहा काबर कुंती दाई ह रोवत हाबे भाई’’ भीम के नजर परगे ‘’भैया दाई कुंती काबर रोवत हावय भाई, हां भीम ह देखन लागे भाई’’ भीम जाके बताईस राजा युधिष्ठिर ल कोन जनी भइया भोजन बने हे या नई बने हे, पर दाई कुंती रोवत बईठे हावय और भीम कहे मोला भूख लागत हे ‘’जो तुम्हरे अनुशासन होवय तब जाई भोजन कर मही आऊं’’ कहे जंगल म जाके कांदा कुशा खाहूं येला सुन के राजा युधिष्ठिर अर्जुन ल भेजथे, महावीर अर्जुन कुंती ल दूरिहा कहिथे दाई ‘’अउ क्षुधावंत अहु भोजन देहू माई’’ अर्जुन कहते हैं मां भूख लागत हे कुंती उठाय नजर अर्जुन के मुंह ल देखे त कुंती के आंखी ले आंसू बोहागे, अर्जुन देख के कहे मां कोन गाली दिस कोन झगड़ा करीस अउ कहे कोन तोला ऊंगली बताईस हे बोले मां का चीज के कमी परही त पूरा नई कर देंव त अर्जुन कहना छोड़ देहूं ‘’हां अर्जुन कहना छोड़ देहूं भैया, |
प्रभा |
भगवान ने कहा जो मेरे सिर में एक हजार पारिजात के फूल लाके चढ़ाएगा उसी का बेटा राज बनेगा, रागी भैया गांधारी हंसते हुए जाती है और रोते हुए आती , है कुंती कहती है हे द्वारिकानाथ मैं इतने सारे फूल कहां से प्राप्त करूं, क्योंकि मेरी दीदी मुझे खाना बनाने के लिए नापकर चावल देती है, कुंती रो रही है, पाठशाला से पढ़कर पांडव आते हैं, और आते ही भीम कहते है मुझे भूख लगी है, राजा युधिष्ठिर कहते हैं जाओ मां से मांगकर भोजन कर लो, भीम आकर मां से कहते हैं, मैं पढ़कर आ गया मुझे भूख लग रही है, भोजन बना है नहीं कुंती कोई जवाब नहीं दे रही है, अचानक भीम की नजर पड़ गई कहते है अरे.. ‘’ये क्यों माता कुंती रो रही है भाई’’ भीम की नजर पड़ गई, ‘’भैया माता कुंती क्यों रो रही है भाई, हां भीम देखने लगे भाई’’ भीम ने जाकर राजा युधिष्ठिर को बमताया कि पता नहीं भैया भोजन बना है या नहीं बना है परन्तु माता कुंती बैठकर रो रही है, और भीम कहते मुझे भूख लग रही है, ‘’जो तुम्हारी आज्ञा हो तो जाकर मैं भोजन कर आऊं’’ कहा जंगल में जाकर कंद मूल खा लूंगा ऐसा सुनकर राजा युधिष्ठिर अर्जुन को भेजते हैं, महावीर अर्जुन कुंती को दूर से कहते हैं माते ‘’ हम भूखे हैं हमें भोजन दे दो मां’’ अर्जुन कहते हैं मां भूख लग रही है, कुंती नजर उठाकर अर्जुन की ओर देखती है तो कुंती की आंखों से आंसू बहने लगे, अर्जुन देखकर कहते है कि मां क्या किसी ने तुम्हे किसी ने गाली दी किसी ने झगड़ा किया किसने तुम पर ऊंगली उठाई, कहा मां किस चीज की कमी है तुम्हे बता दो अगर उसे मैंने पूरा ना कर दिया तो अर्जुन मेरा नाम नहीं हां ‘’हां अर्जुन मेरा नाम नहीं भैया।
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रागी |
अर्जुन कहना छोड़ देहूं ए ग भाई। |
रागी |
अर्जुन मेरा नाम नहीं भाई।
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प्रभा |
अर्जुन कहना छोड़ देहूं अतका ल सुनिस कुंती त लकर धकर धुर्रा ल झर्रईस अउ जा के भोजन बनाईस पांचो भाई ल खवाईस पांचो भाई ल खिलाके एके ठन पलंग म सुताईस ‘’अरे एक ही सेज म सोवई सब भाई, पांचो झन एके ठन पलंग म सुते हे अन्न के ओख लगिस रागी चार झन ल नींद आगे अर्जुन ल नींद नई आईस। |
प्रभा |
अर्जुन कहलाना छोड़ दूंगा इतना सुनकार कुंती जल्दी जल्दी और धूल झड़ाकर जल्दी से भोजन बनाया और पांचो भाईयों को खिलाया और पांचो भाईयों को खिलाकार एक पलंग में सुलाया ‘’अजी एक ही सेज में सो गए सब भाई, पांचो भाई एक ही पलंग में सोए हुए हैं अन्न की ओख लगी तो चार भाईयों को झट से नींद आ गई लेकिन अर्जुन को नींद नहीं आई।
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रागी |
नई आवय। |
रागी |
नहीं आई।
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प्रभा |
कहे मां काबर रोवत रहे कुंती कथे बेटा भगवान के मंदिर में आज तोर बड़े दाई गांधारी संग म झगड़ा होगे कथे भगवान कहे जउन मोर सिर में एक हजार पारिजातक के फूल चढ़ाही तेकर बेटा राजा होही अर्जुन काहय ओकरेच बर तंय रोवत रेहे वो। |
प्रभा |
कहा मां तुम क्यों रो रही थी कुंती कहती है बेटा भगवान के मंदिर में आज तुम्हारी बड़ी मां गांधारी के साथ झगड़ा हो गया, और भगवान ने कहा है जो मेरे जो मेरे में सिर में एक हजार पारिजात के फूल चढ़ाएगा उसका ही बेटा राजा बनेगा, अर्जुन ने कहा बस इतनी सी बात के लिए तुम रो रही थी।
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रागी |
हव भाई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
कहे मां ओकरे आह बड़ बड़ के आंखी म आंसू भर के धार ल गली भरी बोहावत हस |
प्रभा |
कहते है मां इसी बात के लिए तुम बड़ी बड़ी आंखों में आंसू भरकर आंसू की धार गली में बहार रही हो।
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रागी |
हव भई रायपुर ले मुक्तांगन तक पूरा बोहागे धार ह। |
रागी |
हां भाई रायपुर से मुक्तांगन तक पूरा बह गया धार।
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प्रभा |
कहे दाई काली पूजा करे बर जाबे त पहिली मोला जगा देबे, अउ पूजा करे के पहिली मय तोर बर फूल लान देहूं, प्रात:काल चार बजे के बेरा कुंती जगाथे अर्जुन ल अर्जुन हाथ में धनुष ले के नगर के बाहर जाथे अउ नगर के बाहर जाकर के एक बार त्रुंड ले बाण निकाल के धनुष म जोड़ के ‘’अउ उत्तर दिशा म ग मारन लागे भाई, उत्तर दिशा म ग मारन लागे भाई, अर्जुन के बाण जावन लागे ग भाई, अर्जुन के बाण ह जावन लागे ग भाई’’ सबल सिंह महराज बताया हे कि रागी वहां पे एक हजार फूल तो का वहां तो कई हजार पा गे। |
प्रभा |
कहते हैं मां कल पूजा करने जाने से पहले मुझे जगा देना, और तुम्हारे पूजा करने से पहले मैं तुम्हारे लिए फूल ला दूंगा, प्रात:काल चार बजे के समय कुंती अर्जुन को जगाती है, और अर्जुन हाथ में धनुष लेके नगर के बाहर जाते हैं और नगर के बाहर जाकर तरकश से एक बाण निकालकर के धनुष में जोड़कर ‘’और उत्तर दिशा में जी मारने लगते हैं भाई, उत्तर दिशा में जी मारने लगे भाई, अर्जुन की बाण जाने लगी जी भाई, अर्जुन की बाण जाने लगी जी भाई’’ सबल सिंह महाराज ने बताया है कि रागी वहां पर एक हजार फूल तो क्या वहां पर कई हजार फूल पा गए।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
अर्जुन जब आथे, खाली खाली देख के कुंती कहिथे ठेलहाच ठेलहाच कईसे आते हस कथे अर्जुन फूल कहां हे त अर्जुन कथे जा जतका फूल चघाना हे ओतका अकन फूल चघा दे, त महारानी कुंती भगवान के सिर म एक हजार फूल चघाथे कहे मांग कुंती मांग ‘’तुम्हरी पूजा प्रसन्न मोहि किन्हा, तब मांगु मांगु वर तुमको दीन्हा’’ कहे कुंती मांग त कुंती कथे काली तंय कहे रेहे जेन मोर सिर म एक हजार फूल चघाही तेकर बेटा राजा बनही, भगवान वरदान दिस कुंती जा तोरे बेटा ही राजा बनही, समय बीतत हे रागी भइया कौरव अउ पांडव के नाना प्रकार बाल चरित होवत हे राजा दुर्योधन भीमसेन ल मारे के खातिर जहर खिलाथे अउ हाथ पांव ल बांधके ‘’ यमुना के धार धार बोहावन लागे रे ए दे भाई, यमुना धार जब बोहावन लागे धीरे धीरे जल जब बोहावन लागे’’ भीमसेन पाताल लोक पहुंचथे पाताल लोक में शेषनाग के बेटी महीष्मती रोज भगवान के पूजा करे त भगवान त ककहे ते जब देबे मृतलोक के भीमसेन पति देबे। |
प्रभा |
अर्जुन जब आते हैं तो खाली हाथ देखकर कुंती कहती है खाली खाली कैसे आ रहे हो पूछती है अर्जुन फूल कहां है ? तो अर्जुन कहते हैं जाओ जितना फूल चढ़ाना है उतना फूल चढ़ाओ, तो महारानी कुंती भगवान के सिर पर एक हजार फूल चढ़ाती है, भगवान कहते है मांगो कुंती मांगो ‘’तुम्हारी पूजा ने मुझे प्रसन्न किया है, और मैं तुमको मुंह मांगा वर दूंगा’’ कुंती कहती है आपने कल कहा था कि जो मेरे सिर में एक हजार फूल चढ़ाएगा उसी का बेटा राजा बनेगा, तब भगवान ने वरदान दिया कि जा कुंती तेरा बेटा ही राजा बनेगा, समय बीत रहा है रागी भैया कौरव और पांडव के नाना प्रकार बाल चरित्र हो रहे हैं, राजा दुर्योधन भीमसेन को मारने के लिए जहर खिला देते हैं और हाथ पांव बंधवाकर ‘’ यमुना की धार में बहाने लगे रे जी भाई, यमुना की धार जब बहने लगी, धीरे धीरे जल में जब बहने लगे’’ भीमसेन पाताल लोक पहुंच जाते हैं, पाताल लोक में शेषनाग की बेटी अहीरमती रोज भगवान की पूजा करती तो भगवान से कहती कि मुझे जब पति दोगे तो मृत्यु लोक का भीमसेन पति ही देना।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
बारह बरस बीतगे एक दिन के बात दासी मन फूल ल वो भुईंया में पहिली दिन के बासी फूल ह माड़े हे पहिली दिन के फूल के वो बासी फूल ल भगवान में नई चढ़ावत हे और शेषकन्या काहत हे भोलानाथ जब देबे भीम पति देबे भगवान मन ही मन अहीरमति आत मोर सिर म बासी फूल चढाए हस तेकर सेती तोला बासी पति मिलही बारह बरस बीतथे पूजा करत आखिर में अहीरमति जब मंदिर पहुंचथे एक लोटा गंगा जल लेगे हे भगवान ल स्नान करावत हे पान फूल धोवत हे पानी ह सिरागे अउ लोटा ल ले के फेर गंगा म गिस सिढ़ीया ल उतरिस अउ सिढ़ीया ले उतर के लोटा ल डुबाईस अउ लोटा ल जब डूबा के अहीरमति खड़ा होईस तो स्वाभाविक दूसरा किनारे में अहीरमति के नजर परीस का देखथे अहीरमति भीमसेन ह गंगा के तीर ऊफले राहय दूरिहा ले अईसे दिखत राहय कोनो राजकुमार ह गंगा में तैरत तेला मांगिहव अहीरमति जाथे मंदिर म जा के पूजा करथे, भगवान प्रसन्न होके कथे मांग, रागी भाई |
प्रभा |
बारह वर्ष बीत गए एक दिन की बात है दासियां फूल जो एक दिन पहले का जमीन में पड़ा हुआ बासी फूल है कहकर भगवान में नहीं चढ़ा रही है, और शेषकन्या कह रही है भोलेनाथ जब देना भीम पति ही देना भगवान मन ही मन कह रहे हैं अहीरमति आज मेरे सिर में बासी फूल चढ़ाई हो इसलिए तुम्हे बासी पति मिलेगा, बारह वर्ष बीतत है पूजा करते आखिर में अहीरमति जब मंदिर पहुंचती है एक लोटा गंगा जल ले गई है और भगवान को स्नान करवा रही है, पान फूल धो रही है पानी खत्म हो गया, और लोटा लेकर फिर गंगा में गई सीढ़ी उतर रही थी और उतरते हुए लोटा को जल में डुबाती है और डूबाकर जब अहीरमति खड़ी हुई तो स्वाभाविक रूप से दूसरे किनारे में अहीरमति की नजर पड़ती है, नजर पड़ी तो अहीरमति देखती है भीमसेन का मृत शरीर गंगा के किनारें पानी तैर रहा है दूर से ऐसे दिख रहा है मानो जैसे कोई राजकुमार गंगा में तैर रहा है अहीरमति कहती है जो ये गंगा में तैर रहा है पति के रूप में इसे ही मांगूगी, मंदिर में वापस आकर पूजा करती है तब भगवान प्रसन्न होके कहते हैं मांग, रागी भाई।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
सबल सिंह महराज लिखे हे शिव समान दानी भगवान महादेव जईसे दानी कोई है नहीं भगवान काहत हे मांग अहीरमति, अहीरमति कथे वो गंगा म तैरत हे तेला दे मोला पति के रूप में भगवान कहे तथास्तु। |
प्रभा |
सबल सिंह महाराज ने लिखा है शिव के समान दानी भगवान महादेव जैसे दानी कोई नहीं है, भगवान कहते हैं मांग अहीरमति, अहीरमति कहती है कि वो गंगा में जो तैर रहा है उसे मुझे पति के रूप में दे दो, भगवान कहते है तथास्तु।
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रागी |
अच्छा। |
रागी |
अच्छा।
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प्रभा |
अहीरमति थारी ल धर के आईस अउ दूरिहा ले चिल्लाईस बोले ए परदेशी ए परदेशी बाबू ए परदेशी बाबू अहीरमति कहे ‘’परदेशिया सुनो तो हो परिदेशिया तुम बिन लागे नहीं, सुनो तो हो परिदेशिया तुम बिन लागे नहीं जिया, तोरी छिन छिन याद सतावय रतिया, परिदेशिया तुम बिन लागे नहीं जिया। |
प्रभा |
अहीरमति थाली लेकर आई अैर दूर से चिल्लाई और कहा ओ परदेशी ओ परदेशी बाबू ओ परदेशी बाबू अहीरमति कहती है ‘’परदेशिया सुनो तो जी परिदेशिया तुम बिन लगे नहीं, सुनो तो जी परिदेशिया तुम बिन लगे नहीं जिया, तुम्हारी क्षण क्षण याद सताती है रतिया, परिदेशिया तुम बिन लगे नहीं जिया।
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रागी |
परिदेशिया तुम बिन लागे नहीं जिया। |
रागी |
परिदेशिया तुम बिन लगे नहीं जिया।
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प्रभा |
रागी भइया आखिर म देवादि देव महादेव भीमसेन ल जिंदा करथे दोनों में घोर संग्राम होथे भीमसेन युद्ध में भगवान ल विजय पाथे रागी भाई भगवान महादेव नाग विकोदर भुजा म साठ हजार हाथी के बल देथे । |
प्रभा |
रागी भैया आखिर में देवाधि देव महादेव भीमसेन को जीवित कर देते है और दोनों में घोर संग्राम होने लगता है भीमसेन युद्ध में भगवान से जीत जाते हैं, रागी भाई भगवान महादेव भीमसेन को नाम देते हैं वृकोदर और भुजा में साठ हजार हाथियों का बल देते हैं।
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रागी |
हव। |
रागी |
हां।
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प्रभा |
भीम जब भगवान ल युद्ध में जब जीतथे तब नाग विकोदर भुजा म साठ हजार हाथी के बल साठ मड़मड़ी के गदा तेकर बाद राजा दुर्योधन लाख के घर बनाथे फिर ‘’लाख भवन कुरू नाथ बनावा, तब जलत पांडव कृष्ण बचावा’’ |
प्रभा |
भीम जब भगवान से युद्ध में जीत जाते है तब नाम वृकोदर और में भुजा में साठ हजार हाथियों के बल और मणि जडि़त गदा प्राप्त करते हैं उसके बाद राजा दुर्योधन लाख का महल बनाते हैं फिर ‘’लाख भवन कौरव नाथ ने बनाया, और जलते हुए पांडव को कृष्ण ने बचाया’’
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रागी |
जय हो |
रागी |
जय हो
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प्रभा |
पांडव लाख के बनाय भवन म रहिथे अउ विदुर के बनाय सुरंग म उतर जथे और जंगल म जाके मार हिडम्ब हिडम्बनी से ब्याही, भीमसेन हिडम्ब दानव ल मारथे अउ हिडम्बनी संग बिहाव करथे |
प्रभा |
पांडव लाख से बनाये हुए महल में रहते हैा और विदुर द्वारा बनाई सुरंग के माध्यम से जंगल में पहुंच जाते है और जंगल में जाकर भीमसेन हिडम्ब दानव को युद्ध में मार डालते हैं और हिडम्बनी के साथ विवाह कर लेते हैं।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
रागी भइया जेकर आगू में द्रौपद के राजकुमारी द्रौपदी के स्वयंबर बर चलथे ये चकनगर में जाके बकासुर के वध करथे अउ बकासुर दानव के वध करे बाद में देवी द्रौपदी के स्वयंबर देखे बर ‘’अ ग पांचाल नगर में पहुचंन लागे भाई ओमन पांचाल नगर पहुचंन लागे भाई, राजा मन तब काहन लागे भाई’’ देश देश के राजा महराजा आए हे नब्बे सहस्त्र भूपति तब हुए केवल राजा के गिनती नब्बे हजार हे रागी भइया यदुवंशी के समाज ल लेके कृष्ण बईठे हे, बड़े बड़े वीर, दानवीर कर्ण पितामह भीष्म, दोणाचार्य महराज जब मछली के नेत्र ल मच्छभेदन नहीं कर सकीस राजा द्रुपद के प्रण रहीस ये खंभा के ऊपर चक्र हे चक्र के ऊपर सोना के मछली हे अउ सोना के मछली के हीरा के नेत्र हे अउ नीचे में भरे खौलते हुए घी से भरे कढ़ाह हे, नीचे के मछली के परछाई ल देख के ऊपर जो मछली के नेत्र ल मच्छभेदन करके तपत कढ़ाह में गिरा दीही ओकरे संग शादी मय देवाहूं भैया अउ ‘’ओकरे संग शादी देवाहूं भैया ओला ओकरे संग शादी देवाहूं ओला भाई, राजा द्रुपद काहन लागे भैया जी राजा द्रुपद काहन लागे जी’’ बड़े बड़े राजा महराजा मछली के नेत्र भेदन नई कर पाईस आखिरी में राजा द्रपुद कहते हैं, बोले जाव ‘मेरे बीर विहीने आज हमु जाना’ बोले बीरों अपने आप को बीर कहलाना छोड़ देना हम जान गए हैं कि धर्म धरा में ये पृथ्वी में अब कोई बीर नहीं है, अर्जुन के नेत्र लाल होगे |
प्रभा |
रागी भैया जिसके बाद द्रौपद की राजकुमारी द्रौपदी के स्वयंवर के लिए चकनगर में जाते हैं और बकासुर का वध करते हैं और बकासुर दानव का वध करने के बाद में देवी द्रौपदी का स्वयंवर देखने के लिए ‘’अ जी पांचाल नगर में पहुचंने लगे भाई वे लोग पांचाल नगर पहुचंने लगे भाई, राजा लोग तब कहने लगे भाई’’ देश देश के राजा महराजा आए हुए हैं, नब्बे हजार भूपति आए हुए है केवल राजाओं की गिनती नब्बे हजार है रागी भैया यदुवशियों का समाज लेकर कृष्ण बैठे है, बड़े बड़े वीर, दानवीर कर्ण, पितामह भीष्म, दोणाचार्य महाराज जब इतने बड़े बड़े वीरों मेंसे किसी ने भी मछली का नेत्र भेदन नहीं कर सका, तो राजा द्रुपद का प्रण था कि इस स्तंभ के ऊपर जो चक्र हे चक्र के ऊपर सोने के मछली है और सोने की मछली के हीरे का नेत्र है और नीचे में खौलते हुए घी से भरा कढ़ाह है, नीचे मछली की परछाई को देखकर ऊपर की मछली का नेत्र भेदकर तपती कढ़ाह में जिसने भी गिरा दिया उसी के साथ दौपदी की शादी करूंगा, ‘’उसी के साथ शादी करवाऊंगा भैया उसी के साथ शादी करवाऊंगा भाई, राजा द्रुपद कहने लगे भैया जी राजा द्रुपद कहने लगे भैया जी’’ बड़े बड़े राजा महाराजा मछली का नेत्र भेदन नहीं कर पाए आखिर में राजा द्रपुद कहते हैं, बोले जाओ ‘आज मैंने जाना कि अब इस धरती में कोई वीर नहीं है’ कहा बीरों अपने आप को वीर कहना छोड़ दो हम जान गए हैं कि अब इस पृथ्वी में कोई भी वीर नहीं है, अर्जुन का नेत्र क्रोध से लाल हो गए।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
उठा के नजर राजा युधिष्ठिर ल देख के कहिस कि भैया धरती दाई के कोरा में क्षत्रीय मन के अपमान होवत हे मोला ईजाजत दे मय एक बार मछली के नेत्र ल भेदन नई करेंव त अर्जुन कहना छोड़ दूहूं, महराज मन के बीच म बईठे राहय रागी विप्र रूप में अर्जुन जब बीड़ा लेके खातिर अर्जुन जब खड़ा होवय तीर तखार के ब्राम्हण बईठे राहय ते मन कहे, देख एला ओतका बड़ बड़ बीर मन नई जीतन सकिस तोर असन टेटकू बैसाखू मन जीत जही, अर्जुन के हाथ ल तीरे अउ तीर तीर के बईठा देवे, राजा धरमराज बिचार करय ये उठई अउ बईठई म जतका जोशियाय हे ते तो जुड़ा जही कहे जावन दव भैया, मरईया मरही हमला काय करे बर हे, |
प्रभा |
नजर उठा के राजा युधिष्ठिर को देखा और कहा भैया धरती मां की गोद में हम क्षत्रियों का अपमान हो रहा है मुझे ईजाजत दीजिए मैं एक बार मछली के नेत्र नहीं भेद दूं तो त अर्जुन कहलाना छोड़ दूंगा, महाराज लोगों के बीच में बैठे थे रागी विप्र रूप में अर्जुन जब ये बीड़ा उठाने खड़े हो रहे थे आसपास के में बैठे सारे ब्राम्हण कहने लगे देख लो इसे इतने बड़े बड़े वीर नही जीत सके तो इसके जैसे टेटकू बैसाखू जीत जायेंगे क्या, अर्जुन का हाथ पकड़कर खीच खीचकर बैठा देते थे, राजा धर्मराज सोचने लगे कि ये उठाने और बिठाने में जीतने जोश में आया है वह सब ठंडा पड़ जाएगा तो उनसे कहने लगे भैया जाने दो इसको मरने वाले को मरने दो हमे क्या करना है।
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रागी |
हव जी। |
रागी |
हां जी।
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प्रभा |
अर्जुन विप्र रूप में मछली के नेत्र ल भेदन करे बर चलते हैं, एक पांव उठाय अर्जुन खड़े होके क्षत्रीय के समाज ल देखत हे अउ दूसरा पांव ल उठा के ब्राम्हण समाज ल देखत हे तीर म करण बिराजमान हे अर्जुन ल देखिस त ताली ठठा के करण हंसथे, अरे ब्राम्हण मन लालची होथे रे, एक दरिद्र ब्राम्हण द्रौपदी ल जीते बर जात हे अर्जुन के कान म आवाज जाय रागी चलत राहय खड़ा हो जाय अउ उठा के नजर जब देखे करण ल त करण के पसीना छूट जाय |
प्रभा |
अर्जुन विप्र रूप में मछली का नेत्र भेदन करने के लिए चलते हैं, एक पांव उठाकर अर्जुन खड़े होकर क्षत्रीय समाज को देखते है और दूसरा पांव उठाकर ब्राम्हण समाज को देखते है पास में ही कर्ण बिराजमान है अर्जुन को देखकर ताली बजाकर हंसता है, और कहता है अरे ब्राम्हण लोग लालची होते है, एक दरिद्र ब्राम्हण द्रौपदी को जीतने जा रहा है, अर्जुन क कानों मे आवाज आई रागी चलते चलते खड़े होकर नजर उठा के जब कर्ण को देखा तो कर्ण के पसीने छूट गएा।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
अर्जुन महराज कढ़ाह के नजदीक पहुचंथे घी से भरे कढ़ाह खौलत नजदीक म एक ठन धनुष माढ़े हे धनुष ल देखथे अर्जुन, धनुष राखय हे अर्जुन दोनेां हाथ जोड़ के धनुष के प्रणाम करथे धनुष के प्रणाम करके हाथ में फेर उठाथे रागी भैया धनुष ल उठाय अउ अर्जुन सबले पहिली पृथ्वी ल प्रणाम करथे प्रणाम करके कहिस कि हे मां धर्म धरा धरती में तोरे अपमान होवत हे कहे हे दाई जन्मभूमि कहे हे माता वसुन्धरा मय तोर शत शत नमन करत हंव, कहे मोर लाज ल बचा लेबे दाई मां तंय मोर लाज ल बचा लेबे ओकर बाद जितने भी बीर बैठें है ब्राम्हण शूद्र क्षत्रीय वैश्य अर्जुन सबके मन ही मन प्रणाम करत है ‘’अजी सियाराम तंय मय सब जब जानी करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी’’ अर्जुन सबके मन ही मन सबके प्रणाम करते हे तेकर पाछू नजर उठाके भगवान ल देखथे मंद मंद मुस्कात हे भगवान मोर मुकुट बांधे हे पिताम्बर पहिरे हे हाथ म बंशी ले के बलराम अउ भगवान एक ही आसन म बईठे हे, |
प्रभा |
अर्जुन महराज कढ़ाह के नजदीक पहुचंते हैं, घी से भरे खौलते हुए कढ़ाह नजदीक में एक धनुष रखा है, अर्जुन धनुष को देखते है, धनुष रखा है अर्जुन दोनों हाथ जोड़कर धनुष को प्रणाम करते है और धनुष को प्रणाम करके हाथ में उठाते हैं, रागी भैया धनुष को उठाये और अर्जुन सबसे पहले पृथ्वी को प्रणाम करते हैं, प्रणाम करके कहते हैं कि हे मां धर्म धरा धरती में तुम्हारा ही अपमान हो रहा है कहते है मां जन्मभूमि हे माता वसुन्धरा मैं आपको शत शत नमन करता हूं कहा मेरी लाज बचा लो मां तुम मेरी लाज बचा लो उसके बाद जितने भी वीर बैठै है ब्राम्हण शूद्र क्षत्रीय वैश्य अर्जुन सबको मन ही मन प्रणाम करते हैं ‘’अजी पूरे संसार में श्री राम का निवास है सबमें भगवान है और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए’’ अर्जुन सबको मन ही मन प्रणाम करते है उसके बाद नजर उठाकर भगवान को देखते हैं और भगवान मंद मंद मुस्कुरा रहे है, मोर मुकुट बांधे हैं पिताम्बर पहने हैं हाथ में बंशी लेके बलराम और भगवान एक ही आसन में बैठे हैं।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
अर्जुन कथे द्वारकानाथ तोर भरोसा म मय अतका बड़ा बल करे हंव आज तोरे बल म मय ईहां तक आय हंव, ‘’मुरारी मुरारी मुरारी हो रखिहव लाज हमारी मुरारी रखिहव लाज हमारी’’ |
प्रभा |
अर्जुन कहते हैं द्वारिकानाथ आपके भरोसे मैंने इतना बड़ा साहस किया आज आपके ही बल के कारण मैं यहां तक आया हूं ‘’मुरारी मुरारी मुरारी जी रखना लाज हमारी मुरारी रखना लाज हमारी’’।
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रागी |
‘’मुरारी मुरारी मुरारी हो रखिहव लाज हमारी मुरारी रखिहव लाज हमारी’’। |
रागी |
‘‘’मुरारी मुरारी मुरारी जी रखना लाज हमारी मुरारी रखना लाज हमारी’’।
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प्रभा |
‘’गज अउ ग्राह ल तंय जल भीतर लड़त लड़त गज हारी हो, मुरारी मुरारी मुरारी हो रखिहव लाज हमारी मुरारी रखिहव लाज हमारी’’ |
प्रभा |
‘’ गज और ग्राह (हाथी और घडि़याल) पानी के भीतर लड़े थे तब गजराज ने प्रभु का स्मरण किया, मुरारी मुरारी मुरारी रखना लाज हमारी मुरारी रचखना लाज हमारी’’
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रागी |
‘’गज अउ ग्राह ल तंय जल भीतर लड़त लड़त गज हारी हो, मुरारी मुरारी मुरारी हो रखिहव लाज हमारी मुरारी रखिहव लाज हमारी’’ |
रागी |
‘’गज और ग्राह (हाथी और घडि़याल) पानी के भीतर लड़े थे तब गजराज ने प्रभु का स्मरण किया, मुरारी मुरारी मुरारी रखना लाज हमारी मुरारी रचखना लाज हमारी’’
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प्रभा |
गज के टेर सुने रघुनंदन, गज के टेर सुने रघुनंदन, गरूड़ छोड़ पग धारी हो, मुरारी हो रखिहव लाज हमारी मुरारी रखिहव लाज हमारी’’ |
प्रभा |
गज की पुकार सुनकर रघुनंदन, गज की पुकार सुनकर रघुनंदन, गरूड़ को छोड़कर पैदल आ गए, मुरारी जी रखना लाज हमारी मुरारी रखना लाज हमारी’’
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रागी |
मुरारी हो रखिहव लाज हमारी मुरारी रखिहव लाज हमारी’’ |
रागी |
मुरारी जी रखना लाज हमारी मुरारी रखना लाज हमारी’’
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प्रभा |
अर्जुन मन ही मन भगवान बांके बिहारी के स्तुति करथे कि निकालथे त्रुंड से बाण धनुष ल जोड़थे अउ नीचे तपते हुए कढ़ाह ल देखत हे अउ नीचे कढ़ाह ल देख के ‘’अ ग ऊपर निशाना ल देवन लागे रे भाई’’ नीचे कढ़ाह जल देखत हे नीचे कढ़ाह ल देख के ऊपर निशाना ‘’या ऊपर निशाना साधन लागे रे भाई, हां बाणे ल फेर छोड़न लागे रे भाई, हां बाणे ल फेर छोड़न लागे रे भाई’’ मंत्र पढ़के अर्जुन बाण छोड़थे, बाण छोड़थे मछली के नेत्र में मच्छभेदन करके तपत कढ़ाह में गिरा देथे चारो दिशा से आवाज आथे ब्राम्हण की जय हो, ब्राम्हण की जय हो। |
प्रभा |
अर्जुन मन ही मन भगवान बांके बिहारी की स्तुति करते हैं और निकालते हैं तरकश से बाण और धनुष में जोड़ते है और नीचे तपते हुए कढ़ाह को देखते है और नीचे कढ़ाह को देखकर ‘’अ जी ऊपर निशाना देने लगे जी भाई’’ नीचे कढ़ाह को देखते हैं नीचे कढ़ाह को देखकर ऊपर निशाना ‘’अरे ऊपर निशाना साधने लगे जी भाई, हां बाण को फिर छोड़ने लगे जी भाई, हां बाण को फिर छोड़ने लगे जी भाई,’’ मंत्र पढ़कर अर्जुन बाण छोड़ते हैं, बाण छोड़ते हैं मछली का नेत्र भेदकर तपती कढ़ाह में गिरा देते हैं, और चारो दिशाओं से आवाज आने लगी ब्राम्हण की जय हो, ब्राम्हण की जय हो।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
‘’रामे रामे भैया मोर रामे रामे जी मोर रामे रामे रामे भैया मोर रामे रामे जी, राजा जन्मेजय उठन लागे भइया व्यास नारायण राजा कहन लागे भाई’’ अरे भैया महावीर अर्जुन द्रुपद कुमारी द्रौपदी ल जीत करके पांच भैया पांडव जब वहां से चलत हे रागी भाई संझा के बेरा होगे हे। |
प्रभा |
‘’रामे रामे भैया मोर रामे रामे जी मोर रामे रामे रामे भैया मोर रामे रामे जी, राजा जन्मेजय उठने लगे भैया व्यास नारायण राजा से कहने लगे भाई’’ अरे भैया महावीर अर्जुन द्रुपद कुमारी द्रौपदी को जीतकर पांचों भैया पांडव जब वहां से चलते है रागी भाई संध्या का समय हो गया है।
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रागी |
हव भाई। |
रागी |
हव भाई।
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प्रभा |
दिन बुढ़त हे मुधिंयार होवत हे कुम्हार के घर के खपरा खदराही छानी, दाई कुंती आगी बारे हे धुआ म घर भर गेहे अर्जुन आथे अउ आके दरवाजा म चिल्लाथे कहे मां अए मां कुंती अर्जुन के आवाज ल सुने कुंती दउड़त आथे अउ कुंती बाहर से नहीं देख सुनती काहत हे काबर चिल्लात हस अर्जुन कहे मय भीख में आज अइसन सुन्दर चीज लाने हंव आज तक कोनो नई लाने हे होही, कुंती बोले का सुन्दर चीज लाने हस अउ ओला आपस म बराबर बांट के खा लव |
प्रभा |
दिन डूब रहा है संध्या हो रही है कुम्हार के घर का खपरैल छप्पर छानी, माता कुंती ने आग जलाई है धुंए से सारा घर भर गया है, अर्जुन आते हैं और आकर दरवाजे पर चिल्लाते है कहते हैं मां ओ मां, कुंती अर्जुन की आवाज ल सुनकर कुंती दौड़ती हुई आती है, और अर्जुन को बिना देखे ही कुंती कहती है क्या है क्यों चिल्ला रहे हो ? कहते है मैंने आज भीख में इतनी सुन्दर चीज लाई है कि आज तक ऐसी चीज किसी ने नहीं लाई होगी, कुंती कहती है क्या सुन्दर चीज लाए हो पांचों भाई आपस में बराबर बांटकर खा लो।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई।
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प्रभा |
अर्जुन कथे मां ये खाय के चीज नोहे एती निकल के तो देख कुंती निकल के देखथे तो साक्षात मां जगदम्बा द्रौपदी खड़े हे, |
प्रभा |
अर्जुन कहते हैं मां यह खाने की चीज नहीं है बाहर निकलकर तो देखो कुंती निकलकर देखी है तो साक्षात मां जगदम्बा द्रौपदी खड़ी है।
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रागी |
जय हो जय हो। |
रागी |
जय हो जय हो।
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प्रभा |
रागी भइया द्रौपदी के रूप देखे रति ल सोच हो जथे सबल सिंह महराज बताय हे द्रौपदी कोन ए ? त साक्षात मां दुर्गा के अवतार ए अउ पांडव कोन ए त साक्षात महादेव के अवतार ए कुंती अउ द्रौपदी जब आमने सामने होथे त कुंती अउ द्रौपदी एक दुसर ल देखथे देखके हांस देथे कुंती हांस के काहत हे मईया ‘’मया पिरीत के डोरी म दाई अउ मोला बांध ले तोर चरण में सेवक बना के राख ले राखे मया पिरीत के डोरी मे दाई तोर सेवा बजावत रईहूं, मोर जिनगी पहावत रहिहंव तोर सेवा बजावत रहिहंव‘’ |
प्रभा |
रागी भैया द्रौपदी का रूप देखकर रति सोच में पड़ जाती थी, सबल सिंह महाराज बताया है कि द्रौपदी कौन है ? तो साक्षात मां दुर्गा की अवतार है और वे पांडव कौन है तो साक्षात महादेव के अवतार है, कुंती और द्रौपदी जब आमने सामने आती है तो कुंती और द्रौपदी एक दूसरे को देखती है और देखकर हंस देती है कुंती हंस के कहती है मईया ‘’प्रेम प्रीत की डोर में मां और मुझे बांध लो, तुम्हारे चरणों में दासी बना के रख लो, रखो प्रेम प्रीत की डोर में मां मैं तुम्हारी सेवा करती रहूंगी, मेरी जिन्दगी बिताती रहूंगी आपकी सेवा करती रहूंगी‘’।
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रागी |
‘’मया पिरीत के डोरी म दाई अउ मोला बांध ले तोर चरण में सेवक बना के राख ले राखे मया पिरीत के डोरी मे दाई तोर सेवा बजावत रईहूं, मोर जिनगी पहावत रहिहंव तोर सेवा बजावत रहिहंव‘’। |
रागी |
‘’प्रेम प्रीत की डोर में मां और मुझे बांध लो, तुम्हारे चरणों में दासी बना के रख लो, रखो प्रेम प्रीत की डोर में मां मैं तुम्हारी सेवा करती रहूंगी, मेरी जिन्दगी बिताती रहूंगी आपकी सेवा करती रहूंगी‘’
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प्रभा |
तोरे परसादे पाएंव मानुस तन चोला वो, |
प्रभा |
आपकी कृपा से मैंने मनुष्य का चोला पाया है
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रागी |
तोरे परसादे पाएंव मानुस तन चोला वो, |
रागी |
आपकी कृपा से मैंने मनुष्य का चोला पाया है
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प्रभा |
ये मोर जिनगानी अर्पण हे तोला वो |
प्रभा |
ये मेरी जिन्दगी आपको ही अर्पण है
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रागी |
ये मोर जिनगानी अर्पण हे तोला वो |
रागी |
ये मेरी जिन्दगी आपको ही अर्पण है।
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प्रभा |
‘’महूं तोर भगत अंव दाई मोला पहचान वो, तोर चरण म पोसईया दाई मोला बांध ले तोर चरण म सेवक बनाके राख ले’’ रागी भइया कुंती अउ द्रौपदी आपस म मिलथे पांचो भैया पांडव आखिर में हस्तिनापुर नगर में राजा दुर्योधन हे बलावत हे, पच्चीस ठन गांव ल लेके पांचो भैया पांडव इंद्रप्रस्थ में निवास करथे पांडव के सुयश तीनों लोक चौदह भुवन म फैले हे, द्वापर के युग में देवी द्रौपदी पांच पति के साथ रहते हुए द्रौपदी पतिव्रता रहीस। |
प्रभा |
‘’ मैं भी तुम्हारी भक्त हूं मां पहचान लो, अपने चरणों में पालने वाली मां मुझे दासी बनाकर अपने चरणों में बांध’’ रागी भैया कुंती और द्रौपदी आपस में मिलते हैं पांचो भैया पांडव को आखिर में हस्तिनापुर नगर के राजा दुर्योधन ने बुलवाया है, पच्चीस गांव लेकर पांचो भैया पांडव इंद्रप्रस्थ में निवास करते हैं, और पांडवों का सुयश तीनों लोकों और चौदह भुवनों तक फैला हुआ है, द्वापर के युग में देवी द्रौपदी पांच पतियों के साथ रहते हुए भी द्रौपदी पतिव्रता थी।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
भैया काबर पतिव्रता काहत रहीस द्रौपदी ल काबर कि द्रौपदी ‘आहुति ले प्रकट भई अउ भई द्रौपदी नाम’ माता द्रौपदी अग्नि से प्रकट होईस हे बताथे देवर्षि नारद नियम बांधे रथे एक एक भाई के सेवा दो दो महीना बारा बारा दिन याने द्रौपदी युधिष्ठिर के सेवा बहत्तर दिन करय बीच में पांच दिन के एक्स्ट्रा समय रहिसे खाली समय राजा के सेवा करे ओकर बाद अपन शरीर ल अग्नि म जला के शरीर ल भष्म कर देवय अउ भष्म करके दूसर शरीर धारण करके ओहा ‘’भीम के सेवा ल करन लागे भाई भैया भीम सेवा करन लागे भाई हां जगदम्बा काहन लागे ग मोर भाई, हां जगदम्बा काहन लागे ग मोर भाई’’ पांच पति रहते हुए भी पतिव्रता राहय द्रौपदी, एक दिन अर्जुन देवर्षि नारद के नियम ल उल्लघंन कर दिस काबर कि गांव में एक ब्राम्हण राहय रागी ब्राम्हण घर चोरहा अमागे राहय रागी और ब्राम्हण के धन के रक्षा करे के खातिर अर्जुन ह नारद के नियम के उल्लघंन कर दिस, महावीर अर्जुन ल बारा बरस वनवास हो जथे रागी भाई पाताल लोक म जाके शेषनाग के बेटी उलोपि संग बिहाव कर लेथे अउ उलोपि संग बिहाव करे बाद मणिपुर म जाके चित्रसेन के बेटी चित्रांगदा के संग म बिहाव करथे ओकर बाद द्वारका म जाके भगवान कृष्ण के बहिनी सुभद्रा ल बिहाव कर लेथे देवी सुभद्रा ल बिहाव कर के लाने के बाद में खांडव बंधन होथे अउ खांडव बंधन करे के बाद एक दिन बात ए देवर्षि नारद भगवान घर पहुचं जाथे भगवान ह घर म नई हे रागी, भगवान के आठो झन रानी मन घर म हे नारद ल आय देखिस आठो झन रानी मन पूजा के सामान लेके पूजा करथे देवर्षि नारद पारिजातक के फूल धरे हे रूखमणी पूजा करत हे नारद ह फूल ल निकाल के दिखावत हे रूखमणी के नजर पड़ गेहे नारद ह ओ फूल ल लुकावत हे माता रूखमणी काहत हे ये काय चोरहा असन धरत हे रागी |
प्रभा |
भैया दौपदी को क्यों पतिव्रता कहते थे क्योंकि द्रौपदी ‘आहुति से प्रकट हुई थी और द्रौपदी नाम’ माता द्रौपदी पड़ा था ? अग्नि से प्रकट हुई थी बताते हैं, देवर्षि नारद ने नियम बांध रखा था एक एक भाई की सेवा दो दो महीने बारह बारह दिन यानि द्रौपदी युधिष्ठिर की सेवा बहत्तर दिन करती थी, इस बीच पांच दिन का अतिरिक्त समय रहता था उस खाली समय राजा की सेवा करने के बाद अपना शरीर अग्नि में जलाकर अपना शरीर भष्म कर देती थी और भष्म करके दूसरा शरीर धारण करती थी, फिर वह ‘’भीम की सेवा करने लगती थी भाई, भैया भीम सेवा करने लगी भाई, हां जगदम्बा कहने लगे जी मेरे भाई, हां जगदम्बा कहने लगी जी मेरे भाई’’ पांच पतियों के रहते हुए भी पतिव्रता थी द्रौपदी, एक दिन अर्जुन ने देवर्षि नारद के नियमों का उल्लघंन कर दिया क्योंकि गांव में एक ब्राम्हण था रागी, ब्राम्हण के घर चोर घुस गए थे रागी और ब्राम्हण के धन की रक्षा करने के लिए अर्जुन ने नारद के नियम का उल्लघंन कर दिया, महावीर अर्जुन को बारह वर्ष का वनवास हो जाता है, रागी भाई पाताल लोक में जाके शेषनाग की बेटी उलोपि के साथ विवाह कर लेते हैं, और उलोपि के साथ विवाह करने बाद मणिपुर में जाक चित्रसेन की बेटी चित्रांगदा के साथ विवाह करते हैं उसके बाद बाद द्वारिका में जाकर भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा से विवाह करते हैं, देवी सुभद्रा को विवाह करके लाने के बाद खांडव बंधन (खांडव बंधन से अभिप्राय खांडव वन को जलाने के बाद अर्जुन का अंहकार तोड़ने के लिए श्री कृष्ण द्वारा रची गई लीला) खांडव वन को जलाने के बाद एक दिन की बात है देवर्षि नारद भगवान के घर पहुचं जाते हैं, भगवान घर पर नहीं थे रागी, भगवान की आठो रानियां घर पर थी नारद को आया देख आठों रानियां पूजा सामग्री लाकर पूजा करती है, देवर्षि नारद पारिजात के फूल रखे हैं रूखमणी पूजा कर रही है इतने में नारद फूल को निकालकर दिखा रहे हैं रूखमणी की नजर फूल पर पड़ गई, नारद उस फूल को छुपा रहे हैं माता रूखमणी कहती है ये क्या चोरों की तरह रख रहे हैं।
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रागी |
हहो, फेर निकालथे फेर लुकाथे |
रागी |
हां जी, फिर दिखाते हैं और फिर छुपाते हैं
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प्रभा |
माता रूखमणी बोले मोर अतका बड़ उमर होगे हे नारद अइसन सुन्दर चीज नई देखे हंव |
प्रभा |
माता रूखमणी बोली मेरी इतनी बड़ी उम्र हो गई है नारद किन्तु मैंने इतनी सुन्दर चीज कभी नहीं देखी है।
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रागी |
नई देखे हंव। |
रागी |
नहीं देखा है।
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प्रभा |
कहे काय चीज ए नारद ह कथे दाई एहा रोज के तोर भगवान के मुड़ उपर चघथे देवर्षि नारद फूल ल देके अर्न्तध्यान हो जथे |
प्रभा |
पूछा क्या चीज है नारद कहते हैं कि माते यह हर रोज तुम्हारे भगवान के सिर पर चढ़ता है, देवर्षि नारद फूल को देकर अर्न्तध्यान हो जाते हैं।
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रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो।
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प्रभा |
आज रूखमणी भगवान ल कथे अइसने फूल लान के हार गूथे के आठो रानी ल पहिना भगवान लिख के पत्रिका हस्तिनापुर भेजथे अउ अर्जुन वो पत्रिका ल पढ़ के द्वारका आथे भगवान कहत हे अर्जुन मय तोला पारिजातक के फूल लाय के खातिर बलाय हंव, अर्जुन हाथ म गांडीव लेके ‘’अरे उत्तर दिशा चलन लागे रे भाई, पारिजातक के फूल खोजन लागे रे भाई’’ पहुंच गए कुबेर के फूलवारी में जहां महावीर हनुमान रखवार हे, रागी बेंदरा के रूप धरे अउ बेंदरा के रूप धरे ‘’अ ग बीर हनुमान ह बईठे राहय ग भाई’’ भाई उत्तर दिशा में हनुमान बईठे हे अर्जुन फूलवारी म जाके ‘’ओ ह सुन्दर सुन्दर फूल ल टोरन लागे भाई, हां माली मन हनुमान ल बतावन लागे माली मन जाके बतावन लागे भाई’’ अर्जुन ह जाके फूलवारी म जाके सुन्दर सुन्दर फूल टोरत हे फूलवारी के रखवार हनुमान जी हे रागी भइया माली मन जाके हुनमान ल बताथे महराज एक झन बीर आय हे, अउ आके ओहा पारिजातक फूल तोड़ के ले जाना चाहत हे सुनिस त हनुमान के नेत्र लाल होगे हनुमान फूलवारी म जाके कहिस जाय अउ जा के कहिस अरे क्षत्रीय बिना ईजाजत के आय हउ ईंहा आ करके फूल ल तोड़ ले जात हस हनुमान कथे कस रे क्षत्रीय तोला पता नईए रे मय ईंहा के रखवार अंव, काबर कि ये फूल ह मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम के सिर के ऊपर म चढ़थे, बोले पेड़ से उतर एला सुनिस त अर्जुन के नेत्र लाल हो जथे अरे बानर खामोश |
प्रभा |
आज रूखमणी भगवान से कहती है ऐसा ही फुल लाकर इसका हार गूथकर हम आठो रानियों को पहनाओ भगवान पत्रिका लिखकर हस्तिनापुर भिजवाते हैं और अर्जुन वह पत्रिका पढ़कर द्वारिका आते है भगवान कहते हैं अर्जुन मैंने तुम्हें पारिजात के फूल लाने के लिए बुलवाया है , अर्जुन हाथों में गांडीव लेकर ‘’अरे उत्तर दिशा चलने लगे रे भाई, पारिजात का फूल खोजने लगे रे भाई’’ पहुंच गए कुबेर की फुलवारी में जहां के महावीर हनुमान रखवाले है, रागी बंदर का रूप धरकर और बंदर का रूप धरे हुए ‘’अ जी वीर बैठै थे जी हनुमान जी भाई’’ भाई उत्तर दिशा में हनुमान बैठे है अर्जुन फुलवारी में जाके ‘’ वह सुन्दर सुन्दर फूल तोड़ने लगे भाई, हां सारे माली हनुमान जी को जाकर बताने लगे, सारे माली जाकर बताने लगे भाई’’ अर्जुन जाकर फुलवारी में जाकर सुन्दर सुन्दर फूल तोड़ रहे हैं फुलवारी के रक्षक हनुमान जी है रागी भैया सारे माली जाकर हनुमान को बताने लगे, महाराज एक वीर आये है, और आकर वे पारिजात के फूल तोड़कर ले जाना चाहते हैं सुना तो हनुमानजी का नेत्र लाल हो गय, हनुमान फुलवारी में जाकर कहते हैं, अरे ओ क्षत्रीय बिना ईजाजत के आये हो और यहां आकर फूल तोड़कर ले जा रहे हो हनुमान कहते हैं, क्यों रे क्षत्रीय तुम्हे पता नहीं है रे मै यहां का रखवाला हूं, क्योंकि ये फूल मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम के सिर के ऊपर में चढ़ते हैं, कहा पेड़ से उतरो यह सुना तो अर्जुन के नेत्र लाल हो जाते हैं कहा, अरे वानर खामोश
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रागी |
हव क्या समझते हो। |
रागी |
हां क्या समझते हो।
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प्रभा |
अर्जुन कहे अरे बेंदरा का मय छोटे मोटे व्यक्ति के आदेश से आय हंव। |
प्रभा |
अर्जुन कहते हैं अरे बंदर क्या मैं छोटे मोटे व्यक्ति के आदेश से आया हूं।
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रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भई।
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प्रभा |
जउन ह जगत के स्वामी हे जउन ह अखिल ब्रम्हांण्ड के नायक हे जेकर ईशारा म सारी दुनिया नाचत हे। |
प्रभा |
जो जगत के स्वामी है जो अखिल ब्रम्हांण्ड के नायक है जिनके ईशारों में सारी दुनिया नाचती है
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रागी |
नाचत हे। |
रागी |
नाचती है।
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प्रभा |
द्वारकाधीश के मय भगवान के आदेश से आय हंव, फूल कहां लेगहूं त मय द्वारका नगर लेगहूं सबल सिंह बताय हे रागी अर्जुन ह कृष्ण के भक्त हे और हनुमान ह श्री राम के भक्त हे अउ दूनो महान वीर हे दोनों बीर अपन अपन भगवान के बड़ाई करत हे अर्जुन काहत हे मय भगवान कृष्ण बर लेगहूं ये फूल ल, हनुमान काहत हे तंय पेड़ ले उतर तो |
प्रभा |
मैं भगवान द्वारिकाधीश के आदेश से यहां आया हूं, फूल कहां ले जाऊंगा तो मैं द्वारका नगर लेकर जाऊंगा सबल सिंह बताये हैं रागी अर्जुन जो है वो कृष्ण के भक्त हैं और हनुमान जी श्री राम के भक्त हैं और दोनों ही महान वीर हैं, दोनों वीर अपने अपने भगवान की बड़ाई करते हैं अर्जुन कहते हैं मैं भगवान कृष्ण के लिए जाऊंगा इस फूल को, हनुमान कहते हैं पहले पेड़ से उतरो तो
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रागी |
चढ़े हस बिना कोनो ल पूछे गउछे |
रागी |
हां चढ़ गए बिना किसी स पूछे ताछे
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प्रभा |
कहे एक राउत एक गहिरा काली कमली के ओढ़ईया जंगल जंगल म गउ चरईया स्त्रियों के साथ लीला करने वाला कहे ओ ग्वाल बर मय फूल नई देवंव ये रूख ले उतर तंय हा, अर्जुन काहय कस रे बेंदरा तंय मोर भगवान ल राउत कईथस रे तोर राम के कतेक बढि़या हे ओकरो चाल ल महू जानत हवं |
प्रभा |
कहते हैं कि एक राउत एक गहिरा काली कमली के ओढ़ने वाले, जंगल जंगल में गायों को चराने वाले और स्त्रियों के साथ लीलाएं करने वाले उस ग्वाले के लिए मैं फूल नहीं दूंगा, इस पेड़ से तुम उतरो तो, अर्जुन कहते हैं क्यों रे बंदर तुम मेरे भगवान को राउत कहते हो रे, और तुम्हारे राम का चाल चलन कितना बढि़या है मैं भी जानता हूं
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रागी |
का जानत हस ? |
रागी |
क्या जानते हो ?
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प्रभा |
त हनुमान काहत हे तंय का जानत हस मोर राम तो रावण ल मार के महराज विभीषण ल लंका के राजा बनाईस अर्जुन काहत हे तोर राम के चाल ल उही दिन जानेव जे दिन सेतु बांध रामेश्वर के समुद्र ल तोर राम बांधे ल नई सकिस तुम सब बेंदरा समुद्र ल बांधेव तब राम ह लंका म चढ़ाई करिस जाके रावण ल मार के विभीषण ल लंका के राजा बनाईस तोर राम ह समुद्र ल नई बांध सकिस हनुमान काहय वईसन बात नोहय भईया राम रामेश्वर जरूर समुद्र बांधतिस समुद्र ल जरूर बांधतिस फेर हम बेंदरा के जात अन नाचत कूदत जात हन कहिके वो समुद्र ल हमन बांधे हन अर्जुन चिल्लाकर के बोले अरे ओ बानर तोला कोन पूछे एक बाण में सेतु बांध के रामेश्वर ल नई बांधेव अउ बांध के समुद्र बांध के कहे पृथ्वी ल अठारह बार नई उतारव त ‘’अर्जुन कहना मय छोड़ दूंहू ग भाई अर्जुन कहना मय छोड़ दूंहू ग भाई’’ अर्जुन नी काहवंव |
प्रभा |
तो हनुमान कहते है तुम क्या जानते हो मेरे राम ने तो रावण को मारकर महाराज विभीषण को लंका क राजा बनाया है अर्जुन कहते हैं तुम्हारे राम का चाल मैं उसी दिन जान गया था जिस दिन रामेश्वर समुद्र में सेतु बांध नहीं बांध सके तुम साररे बंदरो ने समुद्र को बांधा है तब राम ने लंका में चढ़ाई की और जाकर रावण को मारकर विभीषण को लंका का राजा बनाया तुम्हारे राम ने, समुद्र को नहीं बांध सके, हनुमान कहते हैं वैसी बात नहीं भैया राम रामेश्वर जरूर समुद्र बांध लेते समुद्र को जरूर बांधते लेकिन हम बंदर की जात है हम नाचते कूदते जा रहे हैं एक कहकर समुद्र को हमने बांध दिया, अर्जुन चिल्लाकर बोले अरे ओ वानर तुम्हे कौन पूछे एक बाण में सेतु बांध का रामेश्वर को नहीं बांध दिया तो और समुद्र बांध को बांधकर पृथ्वी को अट्ठारह बार नई उतारा तो ‘’अर्जुन कहलाना मैं छोड़ दूंगा जी भाई अर्जुन कहलाना मैं छोड़ दूंगा जी भाई’’ अर्जुन नहीं कहलाऊंगा।
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रागी |
अर्जुन कहना मय छोड़ दूंहू |
रागी |
अर्जुन कहलाना मैं छोड़ दूंगा।
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प्रभा |
अर्जुन कहना मय छोड़ दूंहू दोनों झन झगड़ा होत होत समुद्र म चल दिन समुद्र म जाय के बाद वाकई अर्जुन खीचथे त्रूंड से बाण गांडीव म जोड़थे अउ गांडीव म जोड़ के जब मंत्र पढ़थे और छोड़थे रागी भाई तो एक ही बाण में ‘’अरे सौ योजन का पुल बनावा’’ सौ योजन के भयानक चार सौ कोस के पुल तैयार हनुमान जी देखिस कहिस वाह बहुत बढि़या हनुमान जी कहत हे ईही मेर रेहे रा थोकुन ओदे जघा ले आत हंव कुछ ही दूर म जाय हनुमान बताय हे एक बार जो लंका म चढ़ाई करे रीहीस हनुमान जी वही रूप फिर से धरिस रोम रोम एक एक पहाड़ी अर्जुन केवल सौ योजन के पुल बनाय रहीस रागी भाई हनुमान जी सहस्त्र योजन |
प्रभा |
अर्जुन कहलाना मैं छोड़ दूंगा दोनों आपस में झगड़ने लग जाते हैं, झगड़ते झगड़ते समुद्र में चले जाते हैं, समुद्र मे जाने के बाद वाकई अर्जुन तरकश से बाण खीचकर गांडीव मे जोड़ते है और गांडीव मे जोड़कर जब मंत्र पढ़ते हैं और बाण छोड़ते है रागी भाई तो एक ही बाण में ‘’अरे सौ योजन का पुल बना डालते हैं’’ सौ योजन का भयानक चार सौ कोस का पुल तैयार हनुमान जी देखते है और कहते हैं और कहते हैं वाह बहुत बढि़या, हनुमान जी कहते है तुम यही पर रहो मैं थोड़ा वहां से आ रहा हूं कुछ ही दूर मे जाकर हनुमान जी बताया है जिस प्रकार एक बार लंका में जिस रूप में चढ़ाई किया था वही रूप हनुमान जी ने फिर से धारण किया रोम रोम एक एक पहाड़ की तरह अर्जुन ने केवल सौ योजन का पुल बनाया था रागी भाई हनुमान जी सहस्त्र योजन
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रागी |
भयानक रूप |
रागी |
भयानक रूप
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प्रभा |
अर्जुन के नजर पड़गे काहय या.. ‘’ये तो बेन्दरा नोहे तईसन लागत हावय भाई, ये तो बेन्दरा नोहे तईसन लागत हावय भाई, ये अर्जुन ह ओला देखन लागे रे भाई, अर्जुन ह ओला देखन लागे रे भाई’’ अर्जुन देखिस कहे रागी भइया ये ह बेंदरा नोहे तईसन लागत हे महावीर अर्जुन भगवान ल कहे तंय काकर जघा मोला सपड़ा दिए अर्जुन के डोर ह भगवान डाहर लम गे काहय ते काकर जघा सपड़ा दे ये मोला घाघर चिरई कस चपक दिही भैया, अर्जुन मन ही मन काहत हे द्वारकानाथ ‘’जय मधुसुदन कुंज बिहारी जब जय जय जय गोर्वधनधारी’’ अर्जुन भगवान ल चिल्लावत हे हे द्वारकानाथ ‘’खुले हे समाधि मोहन अउ बांसुरी बजा दे पईंया परत हंव लाज बचा दे, खुले हे समाधि मोहन अउ बांसुरी बजा दे पईंया परत हंव लाज बचा दे, खुले हे समाधि मोहन अउ बांसुरी बजा दे पईंया परत हंव लाज बचा दे, खुले हे समाधि मोहन अउ बांसुरी बजा दे पईंया परत हंव लाज बचा दे’’ अर्जुन चिल्लावत हे बचाव बचाव भगवान द्वारकानाथ, द्वारका से दउड़थे रागी भैया समुद्र के तीर म जा के अर्जुन ल दर्शन देथे, अउ अर्जुन ल दर्शन देके भगवान फिर कछुवा के रूप ले लेथे कछवा के रूप लेके पूल के नीचे में घूसत हे हनुमान जी पूछे क्षत्रीय पार हो जा अर्जुन बोले बानर पार हो जा हनुमान जी अर्जुन के बात सुने उठावय पांव अउ पांव उठा के पुल के ऊपर म रखत हे रागी भइया जहां जहां हनुमान पांव ल रखत हे ओकर नीचे में भगवान पीठ कर देवत हे, ‘’अरे जहां जहां पदे धरे हनुमाना अरे तहां तहां पीठ धरे भगवाना’’ जहां जहां हनुमान पांव रखते है उसके नीचे भगवान अपन पीठ ल देवत हे हनुमान के भार ल भगवान नई सह पात हे अउ भगवान के मुख से रूधिर के धार बोहात हे सारी जल खूनाखून हो जात हे हनुमान झट पांव ल वापस करथे अउ पार म खड़े होके दोनो हाथ ल जोड़ के काहत हे द्वारकानाथ जय मधुसुदन कुंजबिहारी तब जय जय गोवर्धनधारी तब भगत है सुखदायी पईंया पड़व गोसाई, लाज राखहु मोर भाई जय जगबंदन जय रघुनंदन जय जय जय दुष्ट निकंदन अजी जाकर कृष्ण करै ताको तब करै विनय पवन सुत’’ आगे हनुमान जी दोनों हाथ जोड़ के हनुमान जी फिर भगवान के स्तुति करथे और भगवान दोनों के बीच म प्रकट होथे अउ प्रकट होके काहत हे भैया अरे ‘’अरे भई सांवरे से मिलने का सत्संग का बहाना है, दुनिया वाले क्या जाने किस्सा पुराना है, गोकुल में ढूंढा तुझे और मथुरा में पाया है, अरे भई वृन्दावन की गलियों में श्याम का ठिकाना है’’ |
प्रभा |
अर्जुन की नजर पड़ती है तो कहा अरे.. ‘’ये तो बन्दर नहीं है जैसा लग रहा है भाई, यह बंदर नहीं है ऐसा लगता है भाई, ये अर्जुन उनको देखने लगते हैं जी भाई, अर्जुन उनको देखने लगते हैं जी भाई’’ अर्जुन देखा और कहा रागी भैया ये तो बंदर नहीं हैं ऐसा लगता है महावीर अर्जुन भगवान से कहते हैं आपने ये किस जगह फंसा दिया भगवान, अर्जुन की डोर भगवान की तरफ बढ़ती है कहते हैं कहां लाकर मुझे फंसा दिया यह तो मुझे घाघर चिढि़या जैसे मसल देगा भैया, अर्जुन मन ही मन कहते हैं हे द्वारिकानाथ ‘’जय मधुसुदन कुंज बिहारी जब जय जय जय गोर्वधनधारी’’ अर्जुन भगवान को पुकारते हैं, हे द्वारिकानाथ ‘’खोल दे समाधि मोहन और बांसुरी बजा दे, पांव पड़ता हूं लाज बचा दे, ’खोल दे समाधि मोहन और बांसुरी बजा दे, पांव पड़ता हूं लाज बचा दे, ’खोल दे समाधि मोहन और बांसुरी बजा दे, पांव पड़ता हूं लाज बचा दे, ’खोल दे समाधि मोहन और बांसुरी बजा दे, पांव पड़ता हूं लाज बचा दे’’ अर्जुन पुकारते हैं बचाओ बचाओ भगवान द्वारिकानाथ, द्वारिका से दौड़ते हैं रागी भैया समुद्र के किनारे में आकर अर्जुन को दर्शन देते हैं, और अर्जुन को दर्शन देकर फिर भगवान कछुआ का रूप धारण कर लेते हैं कछुआ का रूप लेकर पूल के नीचे में घुस जाते हैं हनुमान जी कहते हैं क्षत्रीय पार हो जा, अर्जुन बोले वानर तुम पार हो जाओ, हनुमान जी अर्जुन की बात सुनकर उठाते है और पांव उठाकर पुल के ऊपर रखते हैं रागी भैया जहां जहां हनुमान पांव ल रखते हैं उसके नीचे में भगवान अपनी पीठ रख देते हैं, ‘’अरे जहां जहां पदे धरे हनुमाना अरे तहां तहां पीठ धरे भगवाना’’ जहां जहां हनुमान पांव रखते है उसके नीचे भगवान अपनी पीठ रखते हैं, हनुमान के भार को भगवान सह नहीं पा रहे हैं और भगवान के मुख से खून की धार बह रही है, सारा जल खूनाखून हो जाता है हनुमान झट से पांव को हटा लेते हैं, और किनार पर खड़े होकर दोनो हाथ जोड़कर कहते हैं हे द्वारिकानाथ ‘’जय मधुसुदन कुंजबिहारी तब जय जय गोवर्धनधारी तब भगत है सुखदायी पईंया पड़व गोसाई, लाज राखहु मोर भाई जय जगबंदन जय रघुनंदन जय जय जय दुष्ट निकंदन अजी जाकर कृष्ण करै ताको तब करै विनय पवन सुत’’ आगे हनुमान जी दोनों हाथ जोड़कर भगवान की स्तुति करते हैं और भगवान दोनों के बीच में प्रकट होते है और प्रकट होकर कहते हैं भैया अरे ‘’अरे भई सांवरे से मिलने का सत्संग का बहाना है, दुनिया वाले क्या जाने किस्सा पुराना है, गोकुल में ढूंढा तुझे और मथुरा में पाया है, अरे भई वृन्दावन की गलियों में श्याम का ठिकाना है’’
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रागी |
‘’अरे भई सांवरे से मिलने का सत्संग का बहाना है, दुनिया वाले क्या जाने किस्सा पुराना है, गोकुल में ढूंढा तुझे और मथुरा में पाया है, अरे भई वृन्दावन की गलियों में श्याम का ठिकाना है’’ |
रागी |
‘’अरे भई सांवरे से मिलने का सत्संग का बहाना है, दुनिया वाले क्या जाने किस्सा पुराना है, गोकुल में ढूंढा तुझे और मथुरा में पाया है, अरे भई वृन्दावन की गलियों में श्याम का ठिकाना है’’
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प्रभा |
भगवान काहत हे अर्जुन अउ हनुमान त्रेता के युग में हनुमान जैसे भक्त अउ द्वापर में अ जैसे भक्त कोई नहीं है |
प्रभा |
भगवान कहते हैं अर्जुन और हनुमान त्रेता के युग में हनुमान जैसा भक्त अउ द्वापर में अर्जुन जैसा भक्त कोई नहीं हैं
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रागी |
नई ह भैया |
रागी |
नहीं है भैया
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प्रभा |
मोर भक्त अउ दोनो झन बीर हो रागी भाई हनुमान जी अर्जुन ल काहत हे त अर्जुन काहत हे मोर जघा एक नंदी घोष नाम के एक ठन रथ हे मोर रथ के ऊपर म लाल रंग के पताका हे जब जब मय लड़े बर जाहूं तब तब वो रथ के ऊपर पताका म बईठ जाबे हनुमान काहत हे अर्जुन मय तोर बर मांग कहेंव लेकिन तंय तो अपन बर कहां मांगे हस तंय तो मोरे बर मांगे हस ‘’अजी आगे हरि ऊपर हनुमाना और सुभद्र बलवाना कहे अर्जुन रोज के नर नारायण के दर्शन करहूं, अरे ’जनम जनम मुनि जतन कराई अंत राम मुख वत नाहीं’ अरे भैया हजारों वर्षे तपस्या करथे मुनि मन अंत में मुंह में राम नाम नई आय वो भगवान ल मैं साक्षात दर्शन करिहंव कहे एला तो तंय तोर बर मांगे हस, ‘’अरे सरसो सागर बांध के जीत लिहौ हनुमान अजी सुरपुर नरपुर नागपुर तब कहिं पारत सम्मान’’ रागी भइया अर्जुन फिर फूल लाथे अउ लाके बांके बिहारी ल देथे भगवान हार गूथथे अउ आठो रानी ल पहिराथे अउ महावीर अर्जुन फिर हस्तिनापुर आथे वईसम पायम जी महराज जन्मेजय ल काहत हे राजन आदि पर्व के जो कथा है जो प्रसंग है ओ सम्पन्न हो जथे अब आगे हम सभा पर्व में जाबोन यज्ञ कथा ल बताबोन औरी द्रौपदी चीरहरण प्रसंग ल बताबोन बोलिए बृन्दावन बिहारी लाल की जय कौशिल्या माता की जय । |
प्रभा |
मेरे भक्त और दोनों ही वीर हो रागी भाई हनुमान जी अर्जुन से कहते हैं तो अर्जुन कहते हैं मेरे पास एक नंदी घोष नामक एक ठन रथ है मेरे रथ के ऊपर में लाल रंग का पताका है जब जब मैं लड़ने जाऊं तब तब आप उस रथ के ऊपर पताका में बैठ जाईएगा, हनुमान कहते हैं अर्जुन मैंने तो तुम्हारे लिए मांगने को कहा था लेकिन अपने लिए कहां मांगा तुमने तो मेरे लिए ही मांगा ‘’अजी आगे हरि ऊपर हनुमाना और सुभद्र बलवाना’’ कहा अर्जुन रोज ही नर और नारायण के दर्शन करूंगा, अरे ’’जनम जनम मुनि जतन कराई अंत राम मुख वत नाहीं’’ अर्थात मुनि जन जन्म जन्म तक तपस्या करते हैं फिर अंत में मुख में राम नाम नहीं आता उन भगवान के मैं साक्षात दर्शन करूंगा, कहा तुमने तो इसे मेरे लिए मांगा है, ‘’अरे सुरसा सागर बांधकर हनुमान को जीत लिया और सुरपुर नरपुर नागपुर तीनों लोकों में सम्मान पा लिया’’ रागी भैया फिर अर्जुन फूल लेकर आते हैं और लोकर भगवान बांके बिहारी को दे देते हैं भगवान हार गूथकर और आठों रानी को पहनाते है और महावीर अर्जुन फिर हस्तिनापुर वापस आते हैं, वैसम पायम जी महाराज जन्मेजय से कहते हैं राजन आदि पर्व की जो कथा है जो प्रसंग है वह सम्पन्न हो जाती है अब आगे हम सभा पर्व में जायेंगे यज्ञ कथा को बतायेंगे और द्रौपदी चीरहरण प्रसंग को बताएंगे बोलिए बृन्दावन बिहारी लाल की जय कौशल्या माता की जय ।
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This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.