Pandavani: Virat Parv- Prabha Yadav & Mandali
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Pandavani: Virat Parv- Prabha Yadav & Mandali

in Video
Published on: 11 May 2019
Raipur, Chhattisgarh, 2018

 

Pandvani is one of the most celebrated performative genres from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.

 

The parv presented in this video is the Virat Parv. The prasangs contained in this parv are Jimut Vadh, Keechak Vadh and Gau Haran.

 

Chhattisgarhi: बोलिए बृंदाबन बिहारी लाल की जय, गुरूदेव भगवान की जय।

गाना- रामे रामे भइया, रामे गा रामे गा भइया जी

रामे रामे भइया, रामे गा रामे गा भइया।

रामे रामे भइया, रामे गा रामे गा भइया।

राजा जनमेजय पुछन लागे भाई, वैसमपायन ल गा काहन लागे भाई।

अरे भइया राजा जनमेजय के प्रति महामुनि वैसमपायन जी कथे राजा जनमेजय।

रागी- हव।

ये महाभारत के चरित्र ऐसे चरित्र ए जेकर सुने ले मन ला सांति मिलथे।

रागी- हव भई।

ये जीव आवागमन से रहित हो जाथे ऐसे पतित पावनी कथा ल बतावथे। रागी भइया। वैसमपायन जी महराज बिराट पर्व के प्रसंग राजा जनमेजय के प्रति बताव हेवय।

रागी- हव।

 

Hindi: (बोलिए वृंदावन बिहारी लाल की जय, गुरूदेव भगवान की जय।

गाना- राम (भगवान राम) राम भैया, राम राम जी भैया

राम राम भैया, राम राम जी भैया

राम राम भैया, राम राम जी भैया

राजा जनमेजय पुछने लगे, वैशम्पायन जी कहते है।

अरे भैया राजा जनमेजय के प्रति महामुनि वैशम्पायन जी कहते है राजा जनमेजय।

रागी- हां।

ये महाभारत के चरित्र ऐसे चरित्र है जिनके सुनने मात्र से मन को शांति मिलती है।

रागी- हां भई।

ये जीव आवागमन से रहित हो जाते है। ऐसी पतित पावनी कथा को बताते है रागी भैया वैशम्पायन जी महाराज विराट पर्व के प्रसंग राजा जनमेजय के प्रति।

रागी- हां।)

 

 

पांचो भइया पांडव के बारा बरस बनवास ह पूरा हो जथे।

रागी- जय हो।

अउ एक साल अज्ञातवास बिताये के खातिर।

अगा पांचो भइया चलन लागे, भइया पांचो भइया चलन लागे।

जगदंबा देखन लागे गा भाई, जगदंबा काहन लागे गा भाई।

आज पांडव राजा बिराट के नगर मे नाव अउ रूप छिपा के अलग-अलग जाके नौकर लग गे। विराट के घर म अपन दिन ल बिताये हे। वो समय राजा युधिष्ठिर ल दुख होवथे।

रागी- हव भई।

के भइया बारा साल बनवास तो हम एक संग रहीके सबो झन बिता डरेन। पर एक साल के दिन ल अलग-अलग रहिके हमला बिताये ल परही।

रागी- या या।

राजा युधिष्ठिर कंठ रिसि के रूप में विप्र भेस बनाये अउ बिराट नगर में जाके राजा विराट ल काहत हे महराज।

मैं राजा युधिष्ठिर के संग म राहवं समय परे तव धर्म नीति उपदेश देववं।

रागी- हव।

मउका मिल जाय महराज तो मनोरंजन करे बर दूनो झन बइठ के पासा खेलन। आज पांडव तेरह साल बनवास चल देहे। बारा बरस तो संग म बिताये हन।

रागी- हव।

 

(पांच भाई पांडव का बारह वर्ष का वनवास पूरा हो जाता है।

रागी- जय हो।

और एव वर्ष का अज्ञातवास बिताने के लिए।  

पांचों भाई चलने लगे, पांचों भाई चलने लगे।

जगदम्‍बा देखने लगी, जगदम्‍बा कहने लगी भाई।

आज पांडव राजा विराट के नगर में नाम और रूप छिपाकर अलग-अलग जाते है और वहां नौकर लग जाते हैं। विराट के घर पर अपना दिन बिताते है। उस दिन राजा युधिष्ठिर को बहुत दुख होता है।

रागी- हां जी।

कि बारह वर्ष का वनवास हँसकर सभी एक साथ बिताये थे अब किन्‍तु एक वर्ष हम सभी को अलग-अलग रहकर बिताना पड़ेगा।

रागी- या या।

राजा युधिष्ठिर कंठ ऋषि के रूप में विप्र का भेष बनाया है और विराट नगर में जाकर राजा विराट से कहते है महाराज, मैं राजा युधिष्ठिर के साथ रहता था। समय मिलने पर मैं धर्म नीति का उपदेश देता था।

रागी- हां।

मौका मिलने पर हम दोनों मनोरंजन हेतु पासा खेलते थे। आज पांडव तेरह वर्ष के वनवास में है। बारह वर्ष हम साथ में बिताये है।

रागी- हां।)

 

 

पर एक साल बिताये बर कोन जनी पांडव मन कहां चल देहे भाई। बोले महाराज, महाराज युधिष्ठिर के आदेश पाके मैं आपके घर आये हवं। कहे मोला नौकर रख ले।

रागी- हव भई।

राजा विराट बिचार किया मोर जइसे भाग्‍यवान पुरूष द्वापर म पैदा नइये।

रागी- जय हो।

काबर की राजा युधिष्ठिर अपन घर के ब्राम्‍हण ल मोर घर मे भेजे हे। रागी भाई राजा युधिष्ठिर ल पुछत हे विराट ह महराज ए‍क साल बनी करबे तेकर मजदूरी का लेबे। तो युधिष्ठिर महराज ह काहत हे पेट भर खाना अउ अंग भर कपड़ा दे देबे। ओकर बाद पवन नंदन भीमसेन के पारी लगथे, भीम अपन नाम ल जयंत बताथे।

रागी- जय हो।

बने मै अपन हाथ ले पांडव बर भोजन बनावत रेहेवं मोर हाथ के बनाये भोजन ल पांडव अड़बड़ पसंद करत रिहिसे। मौका मिलते है महराज तो भीमसेन जैसे युद्ध करताओं को।

रागी-अच्‍छा।

 

(पर एक साल बिताने के लिए न जाने पांडव कहां चले गये है। कहते है महाराज, मैं महाराज युधिष्ठिर का आदेश पाकर आपके यहां आया हूं मुझे नौकर रख लीजिए।

रागी- हां भई।

राजा विराट विचार करते है कि मेरे जैसा भाग्‍यवान इस पुरूष द्वापर में पैदा नहीं हुआ है।

रागी- जय हो।

क्‍योकि राजा युधिष्ठिर अपने घर के ब्राह्मण को मेरे घर भेजे हैं। रागी भाई राजा युधिष्ठिर को महाराज विराट पुछते है एक साल काम करने का मजदूरी क्‍या लेंगे। महाराज युधिष्ठिर कहते है बस आप पेटभर खाना और कपड़ा दे देना। इसके बाद पवन नंदन भीमसेन की बारी आती है, भीम अपना नाम जयंत बताते हैं।

रागी- जय हो।

मैं अपने हाथ से पांडव के लिए भोजन बनाता था। मेरे हाथ का बना भोजन उनको पसंद था। महाराज मौका तो भीमसने जैसे युद्ध कर्ताओं को ही मिलता है।

रागी-अच्‍छा)

 

 

कहे भीम असन लड़े बर जानथवं। जे काम ल तोर गांव म कोनो नइ करही ओ काम ल मैं कर दिहवं। महावीर अर्जुन बृहन्नला के रूप में जाके किथे मै लइका मन ला शिक्षा देथवं। कहे ते बनी का लेबे। तो अर्जुन कथे महराज पेट भर खाये ल देबे अउ अंग भर कपड़ा देबे।

रागी- जय हो।

गाना- अजी श्‍याम सुखदायी मोर हलधर के भाई गा, भजन बिना मुक्ति नइ होय।

नइ होवे भाई रे भजन बिना मुक्ति नइ होवय।

श्‍याम सुखदायी मोर हलधर के भाई गा, भजन बिना मुक्ति नइ होय।

नइ होवे भाई रे भजन बिना मुक्ति नइ होवय।

व्‍यास नाम सुमरथ एक बार गा, भजन बिना मुक्ति नइ होवय।

नइ होवय भइया रे भजन बिना मुक्ति नइ होवय

तरही नर भव से अंधो पार हो, भजन बिना मुक्ति नइ होवय।

नइ होवय भइया गा भजन बिना मुक्ति नइ होवय

हा श्‍याम सुखदायी मोर हलधर के भाई गा, भजन बिना मुक्ति नइ होय।

रागी- श्‍याम सुखदायी मोर हलधर के भाई गा, भजन बिना मुक्ति नइ होय।

नइ होवय भइया हो, भजन बिना मुक्ति नइ होवय।

अर्जुन महराज जाके नौकर लगथे। रागी भाई नकुल ह अपन नाम ल सैनिक बताथे। घोड़ा साफ करइया के रूप में जाके कहत हे महराज कइसनो घोड़ा ह नइ रेगन सकही, छे महीना हो जए रही बइठे ठउर ले उंचे नइ रही। कहे मोर मेर अइसे गुन हे ओला सवारहू त सौ कोस ले दउड़ के आही। ग्‍वाल के रूप में सहदेव अपन नाम ल सैनिक बताके नौकर लग जथे रागी।

 

(मैं भीम जैसे लड़ना जानता हूं। जो आपके गांव में कोई नहीं करेगा वह काम मैं करूंगा। महावीर अर्जुन बृहन्नला के रूप में जाकर कहता है मैं बच्‍चों को शिक्षा देता हूं। राजा विराट कहते है मजदूरी क्‍या लेंगे। अर्जुन कहते है महाराज पेटभर खाना और शरीर के लिए कपड़ा दे देना बस।

रागी- जय हो।

गाना- अजी श्‍याम सुखदायी मेरे हलधर के भाई, भजन के बिना मुक्ति नहीं होती।

नहीं मिलती रे भाई भजन बिना मुक्ति।

अजी श्‍याम सुखदायी मेरे हलधर के भाई, भजन के बिना मुक्ति नहीं होती।

नहीं मिलती रे भाई भजन बिना मुक्ति।

व्यास नाम स्मरण करो एक बार जी, भजन बिना मुक्ति नहीं होती।

नहीं मिलती रे भाई भजन बिना मुक्ति।

भव से नर नहीं होगा पार जी, भजन बिना मुक्ति नहीं होती।

नहीं मिलती रे भाई भजन बिना मुक्ति।

अजी श्‍याम सुखदायी मेरे हलधर के भाई, भजन के बिना मुक्ति नहीं होती।

नहीं मिलती रे भाई भजन बिना मुक्ति।

रागी- अजी श्‍याम सुखदायी मेरे हलधर के भाई, भजन के बिना मुक्ति नहीं होती।

नहीं मिलती रे भाई भजन बिना मुक्ति।

महाराज अर्जुन जाकर नौकर ल जाते है। रागी भाई नकुल अपना नाम सैनिक बताते है और घोड़ा साफ करने वाला बनकर कहते है महाराज कैसा भी घोड़ा हो जो चल नहीं पाता हो, छ: माह से जो उठा न हो मैं उन्‍हे ऐस सवांर दूंगा कि घोड़ा सौ कोस (दूरी नापने का एक पैमाना) से दौड़ कर आयेगा। इसी प्रकार सहदेव भी ग्‍वाल के रूप में नौकरी करते है।)

 

 

रागी-हव।

तेकर पाछू देवी द्रोपती जउन जगत के जननी ये, जउन ह जगत के महतारी ये। रागी भइया राज मंदिर के रहइया ए, फूल सरी कोमल तकिया के सोवइये ए, दासी मन के संग में रेंगइया ए। ओ दिन रानी के संग म कोनो नइये एके झन विराट नगर मे पहुंचत हे।

रागी-अच्‍छा।

देवी सुदेसना के मंदिर में जब पहुंचथे, तो महारानी सुदेसना कथे सैलेन्‍द्री तै मोर घर म नौकर बन के रहि जते। लेकिन मोर मन म एक बात के संका हे। कहे का, तै बहुत सुंदर हस।

रागी- अच्‍छा।

न जोन तोर रूप ल देखे के महाराज मोहित न हो जाये। सुदेसना काहत हे नोनी तै अड़बड़ सुंदर हस।

रागी- हव वो।

सैलेन्‍द्री कहे दीदी। मोर मस्‍तक म पांच गंधर्व रक्षा करथे, कोनो भी आदमी कुपात्र भाव से देखही मोर पांचो गंधर्व रात मे खतम कर देही।

रागी- जय हो।

बोले सुदेसना ना मै काकरो जुठा खांव, ना किसे के प्रणाम करवं।

 

(रागी-हां।

उनके बाद देवी द्रोपदी जो कि जगत की जननी है, जगत की मां है। रागी भैया राज मंदिर में रहने वाली फूल सी कोमल तकिया में सोने वाली, दास-दासियों के साथ चलने वाली रानी के साथ अब कोई भी नहीं है वह अकेली विराट नगर में पहुंची है।

रागी-अच्‍छा।

देवी सुदेष्णा के मंदिर में जब शैलेंद्री पहुंचती है तो महारानी सुदेष्‍णा कहती है तुम मेरे घर पर नौकरानी बनकर रह तो सकती हो किन्‍तु मेरे मन में एक शंका है। तुम बहुत ही सुंदर हो।

रागी- अच्‍छा।

कहीं तुम्हारी खूबसूरती देखकर महाराज मोहित न हो जाए। सुदेष्‍णा कहती है देवी तुम बहुत ही सुंदर हो।

रागी- हां जी।

शैलेंद्री कहती है दीदी मेरे मस्‍तक में पांच गंधर्व है जो मेरी रक्षा करते है यदि कोई आदमी मुझे कुपात्र भाव से देखेगा तो मेरे पांच गंधर्व रातभर में ही उसे खत्‍म कर देंगे।

रागी- जय हो।

शैलेंद्र कहती है सुदेष्‍णा से न मैं किसी का जुठा खाऊंगी और न ही किसी को प्रणाम करुंगी।)

 

 

रागी- अच्‍छा।

बस मै तोर सिंगार करे के काम करहिवं अउ दूसरा काम नइ करे सकवं।

रागी- नी करवं।

सुदेसना कहत हे नोनी काबर काकरो पांव ल परबे तेहा अउ काबर काकरो जुठा ल खाबे। समय बितत हे। पांडव राजा बिराट के नगर म बनवास के समय ल बितावत हे। एक दिन के बाते भाई राजा विराट के सभा में।

अरे एके पहलवाने आवन लागे भाई, एक झन बीर गा आवन लागे भाई।

राजा विराटे देखन लागे भइया, राजा बिराट ह देखन लागे भाई।

ए‍क मल्‍ल के आगमन होथे पहलवान के आगमन होथे। बीर चिल्‍ला करके बोले ए बिराट।

अरे ग्‍यारह राज्‍य विजय हम पावा।

बोले मै ग्‍यारह ठन देश ल जीत के आवत हवं। मैं सुन हवं तोर राज म कोई योद्धा हे बीर हे। लड़ाई करइया हे। कहे ये सुन के आए हवं बोले कहां हे युद्ध करने वाला तइयार कर नइतो लिख के दे मै लड़ाई में तोर संग हार गेवं। राजा बिराट जयंत ल बुलावा भेजिस। काबर जे दिन जयंत आइस रागी ओ दिन केहे रिहिस महराज मै भीम असन लड़े बर घलो जानथवं। काबर के मै भीमसेन के साथ म रहे हवं।

 

(रागी- अच्‍छा

मैं बस आपका श्रृंगार करने का काम करूंगी और दूसरा कोई काम नहीं कर सकती।

रागी- नहीं कर सकती।

सुदेष्‍णा कहती है देवी क्‍यों किसी को प्रणाम करेगी और क्‍यों जुठा खायेगी। समय गुजर रहा है पांडव राजा विराट के नगर म वनवास काट रहे हैं। एक दिन की बात है राजा विराट की सभा में।

गाना- एक पहलवान आने लगे, अरे ए‍क वीर आने लगे।

राजा विराट देखने लगे भाई, राजा विराट लगे।

ए‍क मल्‍ल का आगमन होता है, पहलवान आते ही चिल्‍लाकर बोले ये विराट।

अरे ग्‍यारह राज्‍य विजय हम पावा।

बोले मैं ग्‍यारह देश को जीत कर आया हूं। सुना हूं तुम्‍हारे राज्‍य में कोई वीर योद्धा है लड़ाई करने वाला है। कहां है योद्धा युद्ध के लिए तैयार कर वर्ना लिख कर दो कि मैं लड़ाई में हार गया। राजा विराट जयंत को बुलावा भेजते है क्‍योकि जिस दिन वह आया था उसने कहा था कि भीम के साथ रहा हूं और भीम जैसा लड़ना जानता हूं।)

 

 

रागी-वाह।

राजा के बुलावा ल पाके भीमसेन सभा म पहुंच जथे। राजा बिराट बोले जयंत आज तोला जीविट के संग म लड़े बर हे। अतका ल सुनके जयंत पुछत हे कस महराज जे दिन नौकर लगेवं ते दिन कहे रेहेवं का तोर घर जीमुख नाम के पहलवान आही महराज अउ ओकर संग कोनो नी लड़ही ताहन में लड़हू केहे रेहेवं। है ना।

रागी- हव।

बिराट केहे अइसन नी रे हे भइया। जयंत राजा युधिष्ठिर के मुंह ल देखत हे कतका बेर भइया इजाजत देतिस, त कतका बेर मारतेवं। महराज युधिष्ठिर के ओर देखते ही कुंति नंदन महराजा युधिष्ठिर इसारा करिस। अरे जयंत मोरे आगू के भाव बियाना ए अब काबर ढ़ेरियावत हस। ओतका ल सुने तो जयंत खड़े होकर के।

गाना- अउ अपन कमर ल ग कसन अउ लागे भइया, शेर के समाने ग गर्जन लागे भइया।

ये अपनो कमर ल कसन लागे भइया, शेर के समाने ग गर्जन लागे भइया।

ये मल युद्ध ग होवन लागे भइया मोर, ये मल युद्ध ग होवन लागे।

ये मल युद्ध ग होवन लागे भइया मोर, ये मल युद्ध ग होवल लागे।

बताये हे रागी भइया जीमुख पहलवान उठाके मुष्टिका जब मारय तो भीमसेन ह।

अगा डेरी य अंगे ले देवन लागे भाई

 

(रागी-वाह।

राजा का बुलावा पाकर भीमसेन सभा में पहुंचते हैं। राजा विराट कहते है जयंत आज तुम्‍हे जीमुख पहलवान से लड़ना है। यह सुनकर जयंत कहते है क्‍या महाराज मैं जिस दिन नौकरी में आया था उस दिन ऐसा कहा था कि तुम्‍हारे घर जीमुख पहलवान आयेगा जिससे मैं लड़ूंगा।

रागी- हां।

विराट कहते है नहीं। जयंत राजा युधिष्ठिर का मुंह देखता है कि भैया जब इजाजत देंगे तब मारूंगा। महाराज युधिष्ठिर की ओर देखते ही इशारा करते हुए कहते है कि जयंत मेरे सामने कि ही सब बात है मारो अब क्‍यों संकोच कर रहे हो। इतना सुनकर जयंत खड़ा होकर।

अपना कमर कसने लगे, शेर के समान गरजने लगे।

मल्ल युद्ध होने लगा भैया, ये मल्‍ल युद्ध होने लगा।

बताये है रागी भैया जीमुख पहलवान उठाकर मुष्टिका जब मारने लगे तो भीमसेन बायां अंग आगे कर देता था।)

 

 

बायां अंग ल देके। पहलवान मारय जयंत ल, असर नइ परत हे। अइसे ताक के मारिस जीविट। जयंत डेरी अंग ल देके प्रयास करत हे सफल नइ होय पाइस।

रागी- हव भाई।

अचानक भीम के नाशिका ल पड़गे मुष्टिका ह।

भइया मूरछा जयंत गिरन लागे भाई

राजा मोर देखन लागे भाई,राजा मोर देखन लागे भाई।

उठा के मुष्टिका जीमुख पहलवान जब मारिस, जयंत लाख प्रयास करिस अपन आप ल बचाये के सफल नइ हो पाय। जीवित पहलवान के मुष्टिका जयंत के नाशिका ल। नकडेढ़ा ल परगे अउ जयंत बेहोश होके गिरगे।

रागी- जय हो।

कुंति महराज युधिष्ठिर जब देखिस। प्राण से भी प्‍यारा भइया बेहोश पड़े हे। मन ही मन भगवान ल कहे प्रभु भइया के रक्षा करे द्वारिकानाथ। आज मोर भाई पड़े हे मै कुछ नइ कर स‍कत अवं। रागी भाई।

रागी- हव।

 

(बायां अंग देखकर पहलवान जब जयंत को मारते है तो कोई फर्क नहीं पड़ता है। एक बर ऐसा निशाना साध कर जीमुख मारते है जयंत बायां अंग देने का प्रयास करते है किन्‍तु सफल नहीं हो पाता है।

रागी- हां भाई।

अचानक भीम के नाशिका को पड़ता है मुष्टिका और बेहोश होकर गिर जाता है।

भैया जयंत मूर्छा खाकर गिरने लगा, राजा देखेने लगा।

उठाकर मुष्टिका जीमुख पहलवान जब जयंत को मारता है तो लाख प्रयास करने के बावजूद जंयत अपने आप को बचा नहीं पाया। जीमुख पहलवान का मुष्टिका जंयत के नाक को पड़ता है जिससे वह बेहोश होकर गिर जाता है।

 रागी- जय हो।

कुंती नंदन महाराज युधिष्ठिर देखते है कि प्राणों से प्‍यारा भाई बेहोश पड़ा है तो मन ही मन भगवान से कहे कि हे प्रभु मेरे भाई की रक्षा करना द्वारिकानाथ। मेरा भाई मेरे सामने पड़ा है और मैं कुछ नहीं कर सकता रागी भाई।

रागी- हव।)

 

 

ठंडा-ठंडा हव चलथे जयंत के मूरछा दूर होथे। एक बार फेर दोनो मे घोर संग्राम होथे। आखिर म भीम उठाये जीवित पहलवान ल उठाके पृथ्‍वी म पटक देथे अउ उठा के मुष्टिका जब मारथे जीवित के पीठ ल तव मुख से रूधिर के धार निकलथे। गर्जना करके जीवित पहलवान के मौत हो जाथे।  

रागी- हव।

बड़े-बड़े राजा महाराजा वाह-वाह के शब्‍द निकालथे।

रागी- वाह भाई।

समय बितत हे पांडव के बिराट नगर में रागी। बताये हे राजा बिराट के धर्म पत्नी के नाम हे सुदेसना अउ महारानी सुदेसना के भाई के नाम हे कीचक।जो सौ भाई हे। ओमा जो सबसे बड़े हे ओकर नाम कीचक हे।

रागी-हव।

रागी भइया महाबली कीचक ह एक साल म सुदेसना के मंदिर म बइठे बर जावय। एक दिन के बाते। किचक ल देवी सुदेसना के मंदिर म बइठे बर जाये बर हे। जोर से आवाज देथे कहे दीदी। ए सुदेसना। आवाज ल सुनिस ताहन सुदेसना कहय अई।

ये तो भइया कीचक सही लागत हावय भाई

आवाज ल सुने के सुदेसना कहे, भइया आवत हे।

रागी भइया कीचक सही आवत हावय भाई।

हा राजा ह आवन लागे भाई। बोले आव।

हा राजा ह आवन लागे भाई।

 

(ठंडी हवा चलने से जयंत का मूर्छा दूर हो जाता है और एक बार फिर दोनो में घोर संग्राम होता है। आखिर में भीम जीमुख पहलवान को उठाकर पृथ्‍वी में पटक देते है और जैसे ही उठाकर मुष्टिाक मारते है जीमुख के पीठ पर तो उनके मुख से खून की धार बहने लगती है। गरजते हुए जीमुख पहलवान प्राण त्‍याग देता है। 

रागी- हां जी।

बड़े-बड़े राजा महाराजा वाह-वाह करते है।  

रागी- वाह भाई।

पांडवों का समय विराट नगर में बीत रहा है। रागी भैया बताये है कि राजा विराट की धर्मपत्‍नी का नाम था सुदेष्‍णा है और महारानी के भाई का नाम कीचक था जो सौ भाई थे। जिसमें कीचक सबसे बड़ा था।

रागी-हां जी।

रागी भैया महाबली कीचक साल में एक बार सुदेष्‍णा के मंदिर में बैठने जाया करता था। एक दिन की बात है जब कीचक महारानी सुदेष्‍णा के यहां जाता है और जोर से चिल्‍ला कर कहता है दीदी सुदेष्‍णा। आवाज सुनकर देवी सुदेष्‍णा कहती है अरे भैया।

ये तो कीचक भाई की आवाज है, आ रहे है ऐसा लगता है। रागी भैया कीचक को आते देखकर देवी सुदेष्‍णा कहती है आइये।)

 

 

सुदेसना दउड़ के निकलथे। सुवागत करके भाई ल लानके रानी मंदिर म बइठारत हे। रानीवास म बइठावत हे। भाइ बहिनी बइठे हे दोनो हॅस हॅस के बात करत हे। रागी भइया भाई बहिनी दोनो झन बइठे हे। हॅस हॅस के चरचा होवत हे। वही समय महाबली कीचक का देखथे, राज मंदिर म देवी द्रोपती कंचन के पात्र म भोजन करत बइठे हे। द्रोपती हालाकि दासी बनके रिहिस रागी पर सबलसिंह महराज बताये। द्रोपती कंचन के थारी म भोजन करय किके।

रागी- अच्‍छा।

सोनो के थारी म भोजन करत हे। लंबा केस बिखरे हे। पुरनिमा के चंद्रमा के समान रौब दिखत हे। अचानक कीचक के नजर परगे कहे, ओह। कहे इतनी सुंदर।

महाबीर कीचक सुदेसना ल पुछे दीदी तोर घर में कहा के पहुना आए हे। मन नइ माडि़स कीचक के। देवी द्रोपती के सुदंरता ल देख के सुदेसना ल पुछत हे कस दीदी घर मे कहुंक सगा आए हे का।

रागी- हव भाई।

 

( सुदेष्‍णा दौड़कर निकलती है और स्‍वागत करके भाई को रानी मंदिर में लाकर बैठाती है। भाई बहन बैठकर आपसे में हॅस-हॅस कर बातें कर रहे है तभी कीचक की नजर द्रोपदी पर पड़ती है जो कंचन पात्र में भोजन कर रही थी। हालाकि वह एक दासी थी किन्‍तु सबलसिंह जी बताये है कि देवी द्रोपदी कंचन की थाल में भोजन करती थी।

रागी- अच्‍छा।

सोने की थाल में भोजन कर रही है लंबा केश बिखरा है और पुर्णिमा के चांद के समान रौब दिख रहा है। कीचक अचानक देखकर कहता है ओह इंतनी सुंदर। महावीर कीचक सुदेष्‍णा से पुछते है दीदी कहां से मेहमान आए है। देवी द्रोपदी की सुदंरता देखकर से फिर पुछते है दीदी कहां की मेहमान है।

रागी- हां भाई।)

 

 

सुदेसना कथे भइया वो देवी द्रोपती के दासी ए जेकर नाव सालेन्‍द्री हे। एक साल बर हाये हे। साल ह बितही ताहन अपन घर वापस चल देही। कीचक कथे दीदी मै एक साल ले तोर मंदिर म बइठे ल आवथवं। जब जब बइठे बर आथवं तब तब तै मोला सोना के तोड़ा देके बिदा करथस। पर आज सोना के तोड़ा मत दे। तब सुदेसना काहय का मांगत हस। तव कीचक कहे दीदी वो सोन के तोड़ा के बदला।

इही दासी ल मोला वो देवा हो भाई, इही दासी ल मोला ग देवा भाई

रानी सुदेसना ग काहन लागे भाई, ऐ भइया सोना के तोड़ा के बदला मांगन लागे भाई।

सोना के तोड़ा के बदला आज ए दासी ल तै मोला दे। सुदेसना समझावत हे कीचक कइसन बात करत हस तै। दूसर के चीज कही सोना ह त अपन वो माटी ये। कहे दूसर के अधिकार नइ बने।

रागी- हव भई।

ए साल भर बर आहे हमर घर म साल भर बाद म वापिस हो जही। अउ जे दिन ये आइस वो दिन किहिय के मोर मस्‍तक म पांच गंधर्व रक्षा करत हे। समझाय के प्रयास करत हे कीचक ल समझ नइ आवथे रागी भाई।

रागी- या या।

 

(सुदेष्‍णा कहती है भैया वो देवी द्रोपदी की दासी शैलेंद्री है। एक साल के लिए आई है। साल बितने के बाद वापस चली जायेगी। कीचक कहते है दीदी मैं एक साल से तुम्‍हारे मंदिर में बैठने आ रहा हूं और जब-जब मैं आता हूं तुम मुझे सोने का तोड़ा (आभूषण) देकर विदा करती हो किन्‍तु मुझे आज सोने का तोड़ा मत देना। तब सुदेष्‍णा कहती है तो क्‍या चाहिए। कीचक कहता है मुझे ये दासी चाहिए।

इस दासी को मुझे देदो, ये दासी देदो।

रानी सुदेष्‍णा से कहने लगे सोने के तोड़ा के बदले में देदो।

कीचक सोने के तोड़ा के बदले दासी मांगता है तब सुदेष्‍णा समझाते हुए कहती है तुम कैसे बात कर रहो, दूसरा का सोना भी अपने लिये मिट्टी के समान है।

रागी- हा भई।

एक वर्ष के लिए आई है हमारे घर उसके बाद फिर चली जायेगी और जिस दिन आई थी उसी दिन ये बताई है कि इसके मस्‍तक में पांच गंधर्व रक्षा कर रहे है। इस प्रकार सुदेष्‍णा कीचक को समझाने का प्रयास कर रही पर कीचक को समझ नहीं रहा है।

रागी- या या।)

 

 

मारे क्रोध म कीचक कहते है सुदेसना कान खोल के सोन लो। कीचक काहत हे तै मोरे भरोसा म रानी बनके बइठे हस। कोनो देस के बीर चड़ाई करथे तव मै लड़े जाथवं अउ तोर राज्‍य के रक्षा करथवं। याद रखबे सुदेसना अगर कहू ये दासी ल तै मोला नइ देबे। तो तोर एक दिन मै धून म लै मिलादौ तो कीचक कहना नइ।

रागी- जय हो।

कीचक उठा के जाथे जब से रानी ल देखे हे, रात म निंद नइ आवत हे। न किचक ल रात के निंद आवे रानी, न दिन मे भूख लागे।

मन मन कीचक ग सोचन लागे भाई,

किचक बेचैन हो जाथे। सोचे रानीवास मे जितना भी रानी हे वो दासी के आगे सब फेल हे।

मन मन बीर ग बिचार करे भाई, सोचते है कीचक।

ए मने म बीरे ह आवन लागे भाई, राज मंदिर गा पहुंचन लागे भाई

आखिर कीचक ह जावन लागे भाई, राज मंदिर गा पहुंचन लागे भाई

 

(क्रोधित होकर कीचक कहता है ये सुदेष्‍णा कान खोल कर सुन लो तुम मेरे भरोसे ही रानी बनके बैठी हो। किसी अन्‍य देश का योद्धा चड़ाई करता है तब मैं तुम्‍हारे राज्‍य की रक्षा करता हूं। सुदेष्‍णा याद रखना यदि तुमने मुझे ये दासी नहीं दी तो एक दिन तेरे राज्‍य को धूल में न मिलाया तो मुझे कीचक न कहना।

रागी- जय हो।

कीचक उठकर चला जाता है। जब से उसने रानी को देखा है रात को निंद नहीं, दिन को भूख नहीं। मन ही मन कीचक सोचने लगे है, कीचक बेचैन हो जाता है। सोचे रानीवास में जितनी भी रानी है वो दासी के आगे सब फेल है। विचार करत हुये कीचक राज मंदिर में पहुंच जाते है।)

 

 

दासी के आगे सब फेल हे। एक दिन के बात रागी भइया महाबली कीचक मंदिर म जब पहुंचथे सुदेसना न पा करके हाथ बढ़ाके जब देवी द्रोपती के हाथ पकड़ते है। तो देवी द्रोपती काहत हे कीचक तै बड़ेजान राजा आस। बिना बिहाव करे मोला लेब जबे दुनिया म तोर बदनाम होही। कीचक मोर साथ विवा‍ह कर अउ विवाह करके मोला तै अपन घर म लेग। समय बितत हे रागी भइया देवारी के तिहार ह लकठा जाथे। दिवारी के तिहार आथे राज मंदिर की ओर से सबला भेट दे जाथे, दिवाली के उपहार देथे।

रागी- हव भइ।

रानी सुदेसना एक थाली तइयार करथे। थाली मे कुछ भेट के समान रखथे। और भेट के समान रखके काहत हे सालेंद्री। ये समान लेकर के तै मोर भइया कीचक ल दे आते। रानी बिचार करिस रागी भइया वहा जाना उचित नइये। द्रोपती विचार करत हे उहां जाना उचित नइये। लेकिन ये आदेस काकर ए सुदेसना के। कोई छोटे मोटे व्‍यक्ति के आदेस नइये।

रागी- हा भई।

 

(सोचता है उस दासी के आगे सब फेल है। एक दिन की बात है रागी भैया महाबली कीचक मंदिर में जब पहुंचते है तो वहा सुदेष्‍णा को न पाकर देवी द्रोपदी का हांथ पकड़ लेता है। तब देवी द्रोपदी कहती है तुम एक बहुत बड़े राजा हो और मुझे बिना विवाह किये ले जाओगे तो तुम्‍हारी बहुत बदनामी होगी। कीचक मेरे साथ पहले विवाह करना फिर अपने साथ अपने घर लेके जाना। समय बीत गया। दिपावली का त्‍योहार नजदीक है, दिपावली पर राज मंदिर में सबको भेट दी जा रही है

रागी- हां भई।

रानी सुदेष्‍णा एक थाल तैयार करती है और उसमें कुछ उपहार के सामान रख कर शैलेंद्री से कहती है। इस सामान को तुम मेरे भाई कीचक को दे आना। रानी द्रोपदी विचार करती है रागी भैया कि वहां जाना उचित नहीं है किन्‍तु रानी सुदेष्‍णा का आदेश है कोई अन्‍य व्‍यक्ति का नहीं।

रागी- हां भई।)

 

 

सालेन्‍द्री थारी ल हाथ म धरथे अउ धर करके कीचक के भवन मे प्रवेश करथे। कीचक पृथ्‍वी म पड़े हे मदहोश। सालेंद्री भेट के समान ल धरे हे हाथ म अउ धीरे-धीरे जाथे अउ जाके देखथे त एक ठान खाली टेबल म माढ़े हे। खाली टेबल म थारी ल मढ़ा देथे रागी भाई।

रागी- हव।

अउ थारी ल मढ़ाके सालेंद्री जब पलटथे तव आवाज होथे। आवाज कीचक के कान म पड़ते है तो मदहोश पृथ्‍वी मे पड़े हे।

अउ आवाज के दिशा मे पलट के वीर गा देखन लागे भाई, पलट के वीर ग देखन लागे भाई।

देवी द्रोपती जावन लागे भाई, देवी द्रोपती जावन लागे भाई।

पलट के देखिस। सालेंद्री थारी ल मड़ाके जावत राहय। झट के कीचक खड़े हो जाथे अउ दउड़ के जाके।

हाथे ल पकड़न लागे ग येदे भाई, ये हाथे ल पकड़न लागे ग भाई।

रानी द्रोपती काहन लागे भाई, भइया रानी द्रोपती काहन लागे भाई

मन मन वो सोचन लागे गा मोर भाई, मन मन गुनन लागे गा मोर भाई।

जइसे कीचक के हाथ सालेंद्री के हाथ पहुंचथे। देवी द्रोपती व्‍याकुल हो जाथे। भगवान ल कथे जे दिन भरे समाज म दुसासन मोर चीर ल खिंचिस। द्वारिकानाथ आके मोर लाज ल बचाये रेहे।

रागी- हव भई।

शायद उही मुसिबत मोर उपर अउ अवइया हे।

रागी- हव भई।

 

(शैलेंद्री हाथ में थाली लेकर कीचक के भवन में प्रवेश करती है। कीचक पृथ्‍वी में पड़े है मदहोश। शैलेंद्री धीरे-धीरे जाकर हाथ के सामान को पास रखे टेबल में रख देती है।

रागी- हां भई।

और थाली को रखकर शैलेंद्री पलटती है तो आवाज आती है, वह आवाज कीचक कानों में जैसे ही पड़ता है मदहोश पृथ्‍वी पर पड़ा कीचक पलट कर देखता है। द्रोपती जाने लगती है। कीच‍क पलटकर देखता है कि शैलेंद्री थाल रखकर जा रही तो झट से उठता है और दौड़कर जाता है और द्रोपदी की हाथ को पकड़ लेता है। जैसे ही कीचक द्रोपदी की हाथ पकड़ता है रानी द्रोपदी व्‍याकुल हो जाती है। मन ही मन विचार करने लगती है और भगवान से विनती करती है कि जिस दिन दुशासन भरी समाज में मेरा चीर खींच रहा था उस दिन द्वारिकानाथ आपने मेरी लाज बचाई।

रागी- हां भई।

शायद वही मुसिबत फिर मेरे उपर आने वाली है।

रागी- हां भई।)

 

 

सालेन्‍द्री कहे शक्ति दे मोला। देवी द्रोपती दासी के रूप मे किचक ल समझावाथे। देख कीचक तै एक महराज अस, राजा अस अउ मै एक तुच्‍छ दासी अवं।

अइसने लेग जब त दुनियां म तोर बदनाम हो जही। तै मोर बर सुंदर पोषाक बना अउ विवाह कर। बिहाव करके लेग जा दुनियां म तोर बदनाम नइ होही। मै उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में लक्ष्‍मी पूजा के दिन रात के समय आवत हवं।

रागी- हव।

सालेन्‍द्री वादा करथे।

रागी- हव जी।

उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में लक्ष्‍मी पूजा के दिन हम दूनो के विहाव हो जही ये वादा करके सालेन्‍द्री जाथे।

रागी- जय हो।

समय बितथे, रात के समय देवी द्रोपती ह फेर राजा युधिष्ठिर के भवन मे जाथे। विप्र रूप म बैठे है जो महराज। द्रोपती जाके बताइस महराज मै कीचक ले वादा करे हवं के लक्ष्‍मी पूजा के दिन मै उत्‍तरा कुमार के पाठशाला म आवत हवं। मोर लाज ल बचा ले।

रागी- हव भई।

राजा काहत हे द्रोपती अभी बनवास के समय बिते नइये। एक साल अज्ञात वास बिते म बस कुछ ही दिन बांचे हे, कुछ दिन अउ रर्इ जा। द्रोपती कथे मोर लाज ह जावथे।

रागी- हव भई।

अउ लाज के बाद कीचक ल मार के का जस कमाबे। अर्जुन नकूल सहदेव घलोक कई दिस भइया के आडर नइये। अउ ये बनवास के समय ह बिते घलोक नइये रागी।

रागी- नइये।

द्रोपती विचार किये अभी एक अउ बाकी हे।

रागी- अच्‍छा।

पुछना चाहिए।

रागी- हव जी।

बारा बजे रात के समय द्रोपती दुरिहा ले रोवत जाथे।

रागी- हव।

 

(शैलेंद्री कहती है मुझे शक्ति दो। दासी के भेष में देवी द्रोपदी कीचक को समझाती है कि आप एक महाराज हो और मैं तुच्‍छ दासी। ऐसे ही ले जाओगे तो दुनियां में आपकी बहुत बदनामी होगी। तुम मेरे लिए सुंदर पोषाक बनवाओ और विवाह कराके ले जाओ। मैं उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में लक्ष्‍मी पूजा के दिन रात के समय आऊंगी।

रागी- हां।

शैलेंद्री वादा करती है।

रागी- हां जी।

उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में लक्ष्‍मी पूजा के दिन हम दोनो का विवाह होगा यह वादा करके शैलेंद्री आ जाती है।

रागी- जय हो।

समय बितता है, रात के समय देवी द्रोपदी राजा युधिष्ठिर के भवन जाती है। जो महाराज विप्र के रूप में है। द्रोपदी जाकर बताती है कि मैं कीचक से वादा कर चुकी हूं कि लक्ष्‍मी पूजा के दिन उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में आऊंगी। मेरी लाज बचाइये महाराज।

रागी- हां भई।

राजा काहते है द्रोपदी अभी तो वनवास का समय बीता नही है। एक वर्ष के अज्ञातवास के अभी कुछ शेष है, कुछ दिन और रूक जाओ। द्रोपदी कहती है मेरी इज्‍जत जा रही है।

रागी- हां भई।

और इज्‍जत जाने के बाद कीचक को मार कर क्‍या नाम कमायेंगे। अर्जुन, नकुल, सहदेव भी यही कहते है कि अभी भैया का आदेश नहीं है, वनवास का समय नहीं बीता है।

रागी- नहीं बीता है।

द्रोपदी विचार करती है अभी एक और बाकी है।

रागी- अच्‍छा।

पुछना चाहिए।

रागी- हां जी।

बारह बजे रात्रि के समय द्रोपदी दूर से ही रोती हुई जा रही है।

रागी- हां।)

 

 

चिल्‍ला के रोत है द्रोपती। द्रोपती के आवाज जयंत के कान म पड़थे। मन ही मन जयंत महराज बिचार करत हे ऐसे कोन से दुखिया ल इतना बड़ा संकट पड़े हे रागी भाई जोन रात के समय रोवथे। दरवाजा खोल के भीमसेन बाहर नि‍कलथे।

रागी- हव।

सामने द्रोपती खड़े हे। लंबा केश बिखरे हे अउ द्रोपती के आंखी ले झर झर आंसू गिरत हे।

रागी- अच्‍छा।

भीम जब देखिस। द्रोपती के आंखी म आंसू तो तन मन म आग लगगे। भीमसेन कहते है ये पांचाली। बोले कोन उंगली देखाइसे। कोन गाली दिसे, का बात के कमी अगर ओ काम पूरा नइ करौ तो मै कुंती नंदन भीम कहना छोड़ दिहवं।

रागी- जय हो।

भीम कहना छोड़ दूंगा।

रागी- हव भई।

प्रतिज्ञा ल सुनिस ताहन रानी आंसू ल पोछ देथे। कथे महराज कीचक के हाथ ले मोर लाज ल बचा ले।

रागी- हव भई।

मै वादा करे हवं कीचक ल, के उत्‍तरा कुमार के पाठशाला म लक्ष्‍मी पूजा के दिन आवत हवं। भीम ह काहत हे द्रोपती अज्ञात वास ह अभी पूरा नइ होये। बड़े भइया के आडर नइये दू चार दिन अउ रइ जा।

रागी- अच्‍छा।

कुछ दिन अउ रइ जा। त द्रोपती काहत हे कस महराज अभिचेत काहत रेहेव का जेन काम ल पूरा नइ कर देहू त भीम कहना छोड़ दूहूं। अउ अभिचचे कइसे कइथस। ओतका ल सूने भीम तहान अरे,

याहा बड़े जान गलती अ होय हाबे भाई, मोर से बड़े जान गलतीग  होय हाबे भाई।

हा द्रोपती ल काहन लागे ग भाई, हा द्रोपती ल काहन लागे ग भाई।

भीमसेन कहते है द्रोपती चिन्‍ता झन कर लक्ष्‍मी पूजा के दिन कीचक के पास मै उत्‍तरा कुमार के पाठशाला म जरूर जाहूं। रागी भइया समय ह काकरो इंजतार नइ करे।

रागी- नइ करे।

धीरे-धीरे समय बितथे लक्ष्‍मी पूजा के दिन आथे।

रागी- हव।

 

(द्रोपदी चिल्‍लाकर रोती है। द्रोपदी की आवाज जयंत के कानों में पड़ता है। मन ही मन जयंत महाराज विचार करते है के ऐसी कौन सी दुखिया है जिसे इतना बड़ा संकट पड़ा है रात को इतना रो रही है। भीमसेन दरवाजा खोलकर बाहर देखते है।

रागी- हां।

सामने द्रोपदी खड़ी है। लम्‍बा केश बिखरा हुआ है और द्रोपदी की आंखों से आंसू गिर रहे है।

रागी- अच्‍छा।

भीम जब द्रोपदी की आंख में आंसू देखते है तो आग-बबूला हो जाता है और कहते है पांचाली किसने ऊंगली दिखाई है, किसने गाली दी है, क्‍या बात है बताओं अगर उनका काम पूरा न कर दूं तो कुंती नंदन भीम कहलाना छोड़ दूंगा।

रागी- जय हो।

भीम कहलाना छोड़ दूंगा।

रागी- हां भई।

यह प्रतिज्ञा सुनकर रानी आंसू पोछ लेती है और कहती है महाराज कीचक के हाथों से मेरी लाज बचा लीजिए।

रागी- हां भई।

मैं वादा कर चुकी हूं कीचक से कि उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में लक्ष्‍मी पूजा के दिन आऊंगी। भीम द्रोपदी की बात सुनकर कहता है द्रोपदी अज्ञात वास का समय अभी पूरा नहीं हुआ है। बड़े भैया का आदेश नहीं है कुछ दिन रूक जाओ।

रागी- अच्‍छा।

द्रोपदी कहती है कुछ दिन और रूक जाऊं, अभी-अभी तो कह रहे थे कि काम पूरा न कर दूं तो भीम कहलाना छोड़ दूंगा। इतना सुनकर भीम द्रोपदी से कहता है अरे बहुत बड़ी गलती हो गई। पर तुम चिंता मत करो मैं लक्ष्‍मी पूजा के दिन उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में जरूर जाऊंगा। रागी भैया समय किसी की प्रतिक्षा नहीं करता है।

रागी- नहीं करता।

धीरे-धीरे समय बितता है और लक्ष्‍मी पूजा का दिन भी आ गया।

रागी- हव।)

 

 

रतिहा के समय बारा बजे के बेरा भीमसेन महराज कीचक के भवन में चले के तियारी करथे। बताये देवी द्रोपती अपन जितना श्रृंगार करे हे, ओ श्रृंगार ल उतार के भीमसेन के श्रृंगार करत हे।

रागी- जय हो।

नारी के रूप में भीमसेन अतका सुदंर दिखत हे रागी। बताये हे भइया के रूप में भीम अतका दिखिस जोन ल देखके देवी द्रोपती लजागे। अतका सुंदर। कीच‍क के भवन जाथे देखथे एक खुर्सी मे कीचक बिराजमान हे। एक ठन खुर्सी म कीचक बइठे हे, एक ठक खुर्सी म भीम ह बइठगे। अउ हंस हंस नारी समान फिर दोनो म बात होइस। समय बितिस। कीचक कथे चल हम दोनो के विवाह हो जाए।

रागी- हव जी।

त भीम ह काहत हे महराज बारा बजे रात के हम दूनो के बिहाव होही। थोड़ कन दम धर रात ल बारा बजन दे। रात्रि के बारा बजथे रागी भइया कीचक फेर फूर्ती से खड़ा हो जथे अउ हाथ ल उठाये, अउ हाथ ल उठाके वोहा भीम के हाथ ल पकड़न लागे भाई, सालेन्‍द्री समझ के हाथ धर लेथे अउ बोले के चल अब दूनो के बिहाव संपन्‍न हो जाए। तो कीचक चौक जाथे।

 

(रात्रि के बारह बजे भीमसेन महाराज कीचक के भवन में जाने की तैयारी करते है। बताते है कि देवी द्रोपदी अपना सभी गहना जो पहनी थी उन सबको उतार कर भीमसेन का श्रृंगार करती है।

रागी- जय हो।

रागी भैया नारी के रूप में भीम बहुत ही सुंदर दिख रही थी। भीमसेन की सुंदरता देखकर स्‍वयं द्रोपदी भी शर्मा गई इतना सुंदर रूप था। कीच‍क के भवन में पहुंचता है और देखता है एक कुर्सी खाली है और एक में कीचक विराजमान है। खाली कुर्सी में बैठकर कीचक के साथ नारी के समान हॅस हॅस कर बातें कर रहा है। समय बीता कीचक कहता है चलो हम दोनों  का विवाह हो जाए।

रागी- हां जी।

तब भीम कहते है रात के बारह बजे विवाह होगा, थोड़ा इंतजार करो बारह बजने तो दो। जैसे ही रात बारह बजा कीचक फूर्ती के साथ पुन: खड़ा हो जाता है और भीम जो शैलेंद्री के रूप में है उनका हाथ पकड़कर कहता है चलो अब विवाह संपन्‍न कराई जाए। अचानक ही कीचक चौक जाता है।)

 

 

भइया मने मन कीचक ह सोचन लागे भाई। भीमे मोर काहन लागे म मोर भाई।

जइसे भीम के हाथ के उपर कीचक के हाथ परथे, कीचक चौक जाथे। कीचक मन म विचार करथे जब रानीवास म मै येकर हाथ पकड़ेव। रागी भइया फूल से जादा कोमल लगात रिहिसे। फूल से जादा कोमल हाथ रिहिस। अभी हाथ ल पकड़थव अड़बड़ कड़ा लगथे अरे खुर्सी के लकड़ी वकड़ी थोरे आगिस होही।

रागी- का होइस भई धोखा मे।

अरे खुर्सी ल थोरे पकड़ डरेव। कीचक जइसे दूसरा हाथ रखते है भीमसेन के हाथ में। भीमबली के गंधर्व रूप प्रकट हो जथे। और प्रकट होकर के बोले अरे कीचक समझ म नइ अइस तोला।

पर नारी मां के समान होथे कहे आज तै पर के स्‍त्री के उपर नजर डारेस।

बोल कीचक आज कहू मैं तोला नइ मारेव तो भीम कहना छोड़ू दोनो में घमासान होते है सीना में सीना, भुजा में भुजा, जंघा में जंघा अउ दोनो के गर्जना सुनते है तो राजा विराट के नींद टूट जाते है। विराट हाथ में तलवार लेके चलते है तो महारानी सुदेसना हाथ जोड़ के किथे रतिहा के बेरा हे महराज। सुदेसना कहे महराज रतिहा के बेरा हे तुमन ह कहां जाहा।

रागी- हव भई।

भीमसेन ओ दिन किचक ल अइसे मौत मारिस रागी भाई। बताहे सबलसिंह महराज कि किचक के एक बुंद भी खून पृथ्‍वी मे मत गिर पाये। अगर बुंद खून कहू ये पृथ्‍वी म गिर जातीस, तो एक कीचक ल कोन पूछे ये पृथ्‍वी म हजार कीचक के जनम हो जतिस। भीम ह एक झन कीचक ल मारतिस हजारो कीचक ल नइ मारतिस। बताहे भीमसेन गला दबाके कीचक ल मारत हे ताकि एक बुंद खून पृथ्‍वी मे मत गिरे।

अउ मांस के पिंड बनाके, उठा के खोहे फेकन लागे भाई,

उठा के खोहे मे फेक देथे अउ सौगंध लेथे अरे कीचक अगर कोनो तोर किरिया करम करे बर समसान घाट मे लेगही तव मोर सिवाय तै दूसर से झन उठबे। वापिस आगे भीम। होवत बिहनिया गांव म हा हाकार मचगे, कीचक ह मरगे।

रागी- मरगे।

 

(कीचक मन ही सोचने लगत है भीम की ओर देखकर। जैसे ही भीम के हाथ में हाथ रखते है चौक जाता है। मन में विचार करता है कि जब मैं रानीवास में इनका हाथ पकड़ा था तब तो फूल से भी ज्‍यादा कोमल थी और अभी हाथ पकड़ रहा हूं तो बहुत ही कठोर है, सोचता है कहीं कुर्सी का पाया तो नहीं पकड़ लिया।

रागी- क्‍या हुआ भाई धोखा में।

अरे कुर्सी को पकड़ लिए क्‍या। कीचक जैसे ही दूसरा हाथ भीमबली के हाथ में रखते है भीम गंधर्व के रूप में प्रकट हो जाता है और कीचक से कहते है अरे अब तक समझ नहीं आया तुम्‍हे। पर नारी मां के समान होती है और तुमने आज पर स्‍त्री के उपर बुरी नजर डाली। बोले कीचक आज मैं तुम्‍हे न मारू तो भीम कहलाना छोड़ दूंगा। भीम और कीचक के बीच घमसान युद्ध होता है सीना में सीना, भुजा में भुजा, जंघा में जंघा। दोनों की गरजना सुनकर राजा विराट की निंद टूट जाती है। विराट हाथ में तलवार लेकर निकलने लगते जिसे सुदेष्‍णा कहती है महाराज रात्रि की बेला है इतनी रात को कहां जायेंगे।

रागी- हां भई।

भीमसेन उस दिन कीचक को ऐसी मौत मारता है रागी भैया सबलसिंह जी महाराज बताये है कि कीचक का एक बुंद भी खून पृथ्‍वी पर गिरता तो एक बुंद से एक हजार कीचक का जन्‍म होता। भीम एक कीचक को मारते हजार को तो नहीं मार पाते। इसीलिये उनसे कीचक को गला दबा कर मारा ताकि पृथ्‍वी पर एक बुंद भी खून न गिरे।

कीचक के शरीर को मांस का पिंड बनाकर खोह में फेक देता है और सौगंध देता है कि कीचक अगर कोई तुम्‍हारा क्रियाकर्म करने के लिए शमशान ले जायेंगे तो मेरे अलावा किसी से मत उठना। भीम वापस आ जाता है। सुबह नगर में हा हाकर मच गया कि कीचक मर गया है।

रागी- मर गया।)

 

 

राजा बिराट ल दुख होगे रागी। कीचक के क्रिया करना हे रागी भइया ये नियम हे मुरदा पहिली चार व्‍यक्ति ही उठाथे। क्रिया करम करे बर लेगबो शमशान घाट चार झन उठाइस, कीचक टसमस नइ होइस। सोचिन ये बड़े जान बीर ये चार झन मे नइ उठत होही ग, आठ झन उठाइस। आठ के बाद म सोला अउ सोला के बाद म बत्‍तीस, अउ बत्‍तीस के बाद म चौसठ। आह गांव भर उठा डरिस। राजा युधिष्ठिर ह जानगे ये मारे बर मारबे करे हे बइमान ह सौगंध काबर दे देतिस। राजा जानगे बोले महराज कीचक के क्रिया करना जरूरी हे। आखिर म जयंत ल बुलावा देथे। जयंत महराज ऐसे उठाके कीचक ल पीठ म लादथे। बातहे कीचक के पांव ह पृथ्‍वी म घिरलत राहय। पृथ्‍वी से एक कनिक भी उपर हो जातिस न भाई वो वही कीचक फिर से जिंदा होके भीम के नाश कर देतिस। चिता तइयार करके कीचक ल चिता के उपर म रख देथे। चिता मे आग लगा दे जाथे। तब भीमसेन हाथे जोड़ के अगनी देवता ले काहत हे महराज।

अरे लाख भवन अजी कुरूनाथ बनावा, भीम आगी ल काहत हे महाराज एक दिन हमला मारे बर दुर्याधन लाख के महल बनाये रिहिस। बात ल भुलागे ओ दिन तै मोर पीछा करे। आपसे वादा करे हवं मोरे असन असन बीर गिन गिन के तीन सौ बीर देहू। पर तीन सौ बीर ल तीन किस्‍त करके देहूं। आज येदे मै अपन पहिली किस्‍त ल पटावत हवं हिसाब करके लेले। पहले किस्‍त होवथे महराज।

रागी- हव।

गंधर्व के रूप भीमसेन एक भाई ल डारय कीचक के कहे स्‍वाहा, दूसर भाई ल डारय कहे स्‍वाहा। अइसे करते करते सौ भाई कीचक ल आगी म डारथे भीमसेन। अउ वहा से फिर वापिस आथे।

 

(राजा विराट को दुख होता है। कीचक का क्रियाकर्म करना है तो नियम है चार लोग कांधा देते है। चार व्‍यक्ति से कीचक टस से मस नहीं हुआ, सोचे बहुत बड़ा वीर है तो आठ उठाते है। आठ के बाद सोलह और सोलह के बाद बत्‍तीस, बत्‍तीस के बाद चौसठ। ओह पुरा नगर उठाये पर टस से मस नही हुआ। राजा युधिष्ठिर कारण को जान गये कि भीम का ही काम है। राजा युधिष्ठिर बोले महाराज क्रियाकर्म करना जरूरी है और आखिर में जयंत को बुलावा देते है। जयंत ऐसे कीचक को उठाकर ले जाते है कि उनका पाव धरती में ही घसीटते हुए जा रहा था। बताते है कि यदि कीचक का पांव पृथ्‍वी से उपर उठ जाता तो वह फिर जीवित हो जाता और भीम को खत्‍म कर देता। चिता तैयार करके कीचक को उस पर लेटा कर आग लगा देते है। तब भीमसेन अग्नि देवता से हाथ जोड़कर कहते है कि दुर्योधन हमारे लिये लाख का भवन बनाये थे। उस दिन मैं आपसे वादा किया था कि गिन गिनकर तीन सौ वीर दूंगा पर तीन किस्‍त में। आज ये मेरी पहली किस्‍त है महाराज।

रागी- हां।

गंधर्व के रूप भीमसेन कीचक के एक भाई को चिता में डलकर कहता स्‍वाहा, दूसरा भाई स्‍वाहा, तीसरा भाई स्‍वाहा, ऐसे करते-करते कीचक के सौ भाई को आग में स्‍वाहा कर वहां से वापस आ जाते है।)

 

 

गाना- भाई सियाराम कहिदे, सियाराम कहिदे निकाल न उमरिया, छोड़ माया के गठरिया 

कचलोइहा काया के तोर का ठिकाना हे, कचलोइहा काया के तोर का ठिकाना हे,

सियाराम कहिदे, निकाल न उमरिया, छोड़ माया के गठरिया  

कचलोइहा काया के तोर का ठिकाना हे, कचलोइहा काया के तोर का ठिकाना हे,

पढ़ ले रामायण अउ सुन लेना गीता, पढ़ ले रामायण अउ सून लेना गीता,

प्रभु के भजन बिना तोर जिनगी हे अबिरथा, हरि के भजन बिना तोर जिनगी हे अबिरथा,

अरे भइ मन म बसईके, ह मन म बसइके तै गा ले हरि गुन ला छोड़ काया के गठरिया

कचलोइहा काया के तोर का ठिकाना हे, कचलोइहा काया के तोर का ठिकाना हे,

रागी भइया कीचक के वध होय के बाद देश देश म खबर जाथे कि महाबली कीचक के मौत होगे। महाबली कीचक मौत हागे। आखिर म इही खबर हस्तिना नगर म पहुंचगे। कीचक के मौत होगे।

रागी- हा भई।

राजा दुर्योधन ल सोचे बर परगे। कीचक मरिस कइसे।

रागी- मरगे।

कीचक के मारने वाला द्वापर म अइसे कोन से योद्धा हे। राजा दूर्योधन बबा भीष्‍म ल पुछत हे बबा। कहे दादा जी कीचक के मौत हो गये। अउ कीचक मरिस कइसे। गंगापुत्र भीष्‍म हॉस के काहय एक झन दूत ल भेज दे। ओ दूत पता लगा के आही के वाकई ये खबर सही आए या गलत। दूत जाके पुछिस, नगर के प्रजा बताइस हा भइया कीचक ह मरगे। अब वो दूत पुछत हे कस गा कइसे मरिस। त कहे कइसे मरिस तेला हमन नइ जानन।

रागी- नइ जानन भई।

 

(गाना- भाई सियाराम कह दो, ऐसे निकालो न उम्र, छोड़ दो माया की गठरी।

कच्‍ची शरीर का क्‍या भरोसा। कच्‍ची शरीर का क्‍या भरोसा।

सियाराम कह दो, ऐसे निकालो न उम्र, छोड़ दो माया की गठरी।

कच्‍ची शरीर का क्‍या भरोसा। कच्‍ची शरीर का क्‍या भरोसा।

पढ़ लो रामायण और सुन लो गीता, अजी पढ़ लो रामायण और सुन लो गीता।

प्रभु के भजन बिना तुम्‍हारी जिंदगी व्‍यर्थ है हरि के भजन बिना तुम्‍हारी जिंदगी व्‍यर्थ है।

अरे भाई मन में बसाके, हां मन में बसाके गा लो हरि गुण छोड़कर माया की गठरी।

कच्‍ची शरीर का क्‍या भरोसा। कच्‍ची शरीर का क्‍या भरोसा।

रागी भैया कीचक का वध होने के बाद देश-देश में यह खबर फैल गई की महाबली कीचक की मौत हो गई। आखिर में यह खबर हस्तिना नगर भी पहुंच गई।

रागी- हां भई।

राजा दुर्योधन सोच में पड़ गये आखिर कीचक मरा कैसे।

रागी- कैसे मरा।

कीचक को मारने वाला द्वापर में ऐसा कौन सा योद्धा है। राजा दुर्योधन पितामह भीष्‍म से पुछते है कि कीचक की मौत, आखिर कीचक मरा कैसे। गंगापुत्र भीष्‍म हॅस कर कहते है एक दूत भेज दो वह जाकर पता लगाएगा की खबर सही है या गलत। दूत जा करके पुछते है तो नगर के प्रजा बताते है कि हां कीचक मर गया है। अब वह दुत पुछता है कि कैसे मरा तो वे कहते है कैसे मरा येतो हम नहीं जानते।

रागी- नहीं जानते भाई।)

 

 

उत्‍तरा कुमार के पाठशाला म वो मरे परे रिहिस हावय। दूत आ करके बताता है महराज ये सत्‍य घटना है कीचक के मौत होगे हे। दूर्योधन सोचे कीचक मरगे कइसे। भीष्‍म ल प्रश्‍न करथे बबा कीचक मरिस कइसे। भीष्‍म हांस के काहय जेन बात के तोला संका हे। जउन बात के तोला संका लगत हे दुर्योधन अगर ओकर कही तोला पता लगाना हे त राजा विराट के नगर म जा करके तै गउ हरन कर। गउ के हरन कर, अगर कहू पांडव उहां छिपे होही तो चार भाई तो अपन आप ले रोक सकथे रागी भाई पर अर्जुन अपन आप ल नइ राके।

रागी- नइ रोके। काबर कि ये द्वापर के युग में पांडव के अवतार काबर होय हे गउ के अउ विप्र के हित के कारण।

अरे जब जब होई धरम की हानी, अउ बाड़ही असुर अधम अभिमानी। जब जब ये दुनिया मे पापी मन अतियाचार करथे त उकर नाश करे भगवान नाना प्रकार रूप लेके जनम लेथे।

रागी- जय हो।

दोहा- अजि विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

अउ निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार।

 

(दूत वापस आ करके बताता है के वाकई कीचक मर गया है उत्‍तरा कुमार के पाठशाला में वह मरा पड़ा था। दुर्योधन सोचते है हुये फिर वह भीष्‍म से प्रश्‍न करता है कि आखिर कीचक मरा कैसे। भीष्‍म हस करके कहते है दुर्योधन तुम्‍हे शंका का समाधान करना है तो राजा विराट के नगर में जा करके गऊ हरण करो। यदि पांडव वहां छिपे होंगे तो चार भाई तो अपने आप को रोक लेंगे किन्‍तु अर्जुन अपने आप को रोक नहीं पायेगा।

रागी- नहीं रोक पायेंगे।

इस द्वापर में पांडव का जन्‍म ही गऊ और विप्र के हित के लिये हुआ है।

अरे जब जब होई धरम की हानी, बाड़ही असुर अधम अभिमानी।

जब-जब इस दुनियां में पापियों ने अत्‍याचार किया है तब-तब उनका नाश करने के लिए भगवान अनेक रूप में अवतार जन्‍म लेते है।

रागी- जय हो।

दोहा- बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥ )

 

 

रागी भइया कहिस कि बात के पता लगाने हे त गउ हरन कर। चतुरंगी सेना लेकर द्रोण भीष्‍म पितामह कुलगुरू कृपाचार्य, अस्‍वतथामा, अलिग मलिंग बा‍हुलिक ये बड़े-बड़े बीर ल लेकर के राजा तब चलन लागे ग भाई, राजा तब चलन लागे ग भाई।

भइया जाके गउवा ल घेरन लागे ग भाई, वो मन जाके गउवा ल घरेन लागे भाई।

कौरव के दल जाथे अउ जा करके राजा विराट के राज में जितने भी ग्‍वाल गउवा चराये बर आये हे भइया रागी सबके गउ ल घरेना सुरू कर देथे।

रागी- अच्‍छा।

ग्‍वाल के रूप में सहदेव महराज खड़े हे। देखिन राजा दुर्योधन गउ हरन के लिये आये हे। सहदेव जान डरिस पांडव ल पता लगाये खातिर ये आज गउ हरन करत हे। आज सुख पूर्वक एक साल अज्ञात वास विराट म बितायेन हमला कोई प्रकार के दुख नइ मिले। अगर कोई उपाय नइ करहू तो सारी गउ न पीट के ले जाही दुर्योधन खड़े-खड़े सहदेव महराज फिर खुरहा मंत्र के आहवान करथे। सारी गउ खुरहा में अचल हो जथे, एक पांव नइ चल पावथे। रागी भइया कौरव के दल उठा उठा के डंडा मारत हे उहा दानवीर करन भी गये हे गउ हरन करे बर। करन नाम के वीर जब उठाके डंडा गउ के पीठ मे मारथे ओ गउ के बीच म एक मिथला नाम के गउ आए। मिथला खुराहा म एक पांव आगे नइ बड़ पाये। करन उठाके डंडा मारथे। मिथला गइया के नेत्र लाल हो जाथे। कहे करन अरे करन आज मै खुरहा के मारे एक नइ चल पावथवं मोर पीठ म उठा के डंडा मारे। जा मै तो स्राप देथवं। आज मै जइसने अचल हवं ओइसने अटठारह दिन बाद महाभारत के लड़ाई सुरू होही। कौरव पांडव म युद्ध सुरू होही, कौरव दल के सेना नायक बनके जाबे लड़े बर। लड़ाई के मैदान म तोर रथ अचल हो जही ये मोर स्राप हे।

अरे उही दिन मरना तोरे ग होवे भइया, उही दिन मरना तोरे ह होही भाई।

मिथला सरापे देवन लगे गा भाई, गइया सरापे गा देवन लागे भाई।

रागी भइया।

रागी- हव।

 

(रागी भैया भीष्‍म कहते है कि यदि बात का पता लगाना है तो गऊ हरण करो। चतुरंगी सेना लेकर गुरू द्रोणाचार्य, भीष्‍म पितामह, कुलगुरू कृपाचार्य, अश्वत्थामा, अलिंग मलिंग बा‍हुलिक जैसे बड़े-बड़े वीरों को लेकर राजा चलने लगते है। और जा करके गायों को घेर कर ले जाने लगते है। रागी भैया कौरव दल विराट नगर में जितने भी ग्‍वाल गाय चराने गये उनको घेरना शुरू कर देते है।

रागी- अच्‍छा।

ग्‍वाल के रूप में सहदेव महाराज खड़े है। देखते है कि राजा दुर्योधन गऊ हरण करने आये है। सहदेव जान गये कि ये पांडवों की जानकारी लेने के लिए गऊ हरण कर रहे है। आज सुख पूर्वक हम एक साल अज्ञात वास विराट में बिताये है किसी प्रकार का दुख नहीं हुआ। यदि कुछ उपाय नहीं करुंगा तो सभी गायों को पीट-पीट कर ले जायेगा दुर्योधन। सुखदेव महाराज खड़े-खड़े खुरहा मंत्र का आहृवान करते है, सभी गाय खुरहा रोग से अचल हो जाती है एक पाव भी नहीं चल पाती है।

रागी भैया कौरव दल उठा उठाकर डंडा मारते है। वहां दानवीर कर्ण भी गया है गऊ हरण करने के लिये। कर्ण जब मिथिला गाय को उठाकर डंडा मारते है तो मिथिला की नेत्र क्रोध से लाल हो जाती है और कर्ण को श्राप देती है कि मैं आज खुरहा के कारण एक पाव नहीं चल पा रही हूं उसी प्रकार जब अट्ठारह दिन का महाभारत युद्ध होगा और तुम कौरव दल का सेना नायक बन कर जाओंगे तब लड़ाई के मैदान में तुम्‍हारा रथ अचल हो जायेगा। उसी दिन तुम्‍हारी मौत होगी ऐसा मिथिला गाय कर्ण को श्राप दे रही है। रागी भैया।

रागी- हां।)

 

 

कौरव के दल ल देख सेना मन ह सब मारो-मारो काहत हे। ओला देखिस ताहने राजा विराट जोन लड़े ल आये राहय। छोटे बेटा उत्‍तरा कुमार कौरव के दल ल देख के डर के मारे भगा जथे। जाके रानीवास म काहत हे आज कही भगवान जइसे सारथी मिल जाये मोला।

अरे कृष्‍ण समान सारथी पावा, उत्‍तरा कुमार काहत हे का बतावं रागी भइया। आज मोला कहु भगवान असन रथ खेदइया मिल जतिस त। कौरव दल के नाश न कर दव तो उत्‍तरा कुमार कहना छोड़ दवं। दुरिहा म द्रोपती खड़े राहय। द्रोपती कथे ए ए ए येदेकर बड़ई ल तो देख। कौरव दल ल देख के भगा के येहा आये हे। आखिर म सालेन्‍द्री काहत हे, राजकुमार जो तोर गुरूदेव हे न ब्रिहनला ओ भगवान जैस रथ चलाथे। बोला ओला तै अपन सारथी काबर नइ बना लेवतस। बोले ओला सारथी बना ले।

सालेन्‍द्री उत्‍तरा कुमारी ल कहात हे नोनी जाके देख तोर गुरू देव कुर्सी म बइठे होही। जा अउ जाके गला ल पकड़ के रो। ओ कहिस के बेटी गला ल मोर छोड़ काबर रोवत हस। तो तै कइबे के मोर भइया के सारथी बनके रथ ल चलाबे। उत्‍तरा कुमारी जाके अर्जुन के गला ल पकड़ लेथे। नारी के रूप अर्जुन बैठे हे बोला उत्‍तरा तै मोर गला ल छोड़। अर्जुन काहत हे बेटी काबर रोवत हस। त उत्‍तरा कुमारी कहाय गुरू देव तै मोर भइया के सारथी बन। अउ सारथी बनके भइया के रथ ल चला। अर्जुन बोले उत्‍तरा आज तै मोला आज नाच के देखा कइबे नाच के देख सकथवं बेटी। मै नृत्‍य करके देख देहू तोला। पर मै रथ नइ चलाववं सालेन्‍द्री इशारा करे काहय लाज नइ लागय तोला। दिक्‍कार है अर्जुन तोर पुरूषार्थ ल काबर के आज तोर पता लगाये खातिर दुर्योधन गउ हरन कर बर आये हे। इशारा ल देख अर्जुन काहय उत्‍तरा मै तोर भइया के रथ ल जरूर चलाहू।

रागी- हव।

 

(कौरव के दल को देखकर सेना मारो मारो करते है विराट की सेना किन्‍तु जैसे ही पता चलता है कि कौरव का दल है तो राजा विराट का छोटा बेटा डरकर वापस आ जाता है और आ करके रानीवास के में जाकर कहता है यदि मुझे भी भगवान जैसा सारथी मिल जाए तो कौरव दल का नाश न कर दूं तो उत्‍तरा कुमार कहाना छोड़ दूंगा। पास ही खड़ी द्रोपती कहती है कौरव को देखकर भाग आया है और अब इसकी बड़ाई तो सुनो। अंत में शैलेंद्री राजकुमार से कहती है जो तुम्‍हारा गुरू है बृहन्‍नला उनको सारथी क्‍यों नहीं बनाते। शैलेंद्री उत्‍तरा कुमारी से कहती है जाओ और उनका गला पकड़ लो। उत्‍तरा कुमारी जा करके अर्जुन जो नारी के रूप में है गला पकड़कर रोने लगती है। अर्जुन बोले क्‍या हुआ बेटी क्‍यों रो रही हो। तब उत्‍तरा कुमारी कहती है गुरूदेव आप मेरे भाई का सारथी बन जाओ। अर्जुन बोले उत्‍तरा मैं नृत्‍य कर सकथव फेर रथ नइ चला सकवं। इतने में शैलेंद्री इशारा करती हुई कहती है धिक्‍कार है अर्जुन तुम्‍हारे पुरूषार्थ को आज तुम्‍हारा ही पता लगाने के लिए दुर्योधन गऊ हरण करने आये है। इस इशारे को समझकर अर्जुन उत्‍तरा से कहता है ठीक मैं तुम्‍हारे भाई का रथ चलाऊंगा।

रागी- हां जी।)

 

 

उत्‍तरा कुमारी कथे गुरूदेव करन के कुंडल अउ द्रोण के कपड़ा अउ राजा दुर्योधन के मटुक लान के देखा। अर्जुन महराज स्‍त्री के रूप म रथ सजावथे। अउ नारी के रूप रथ म बैठे, अउ रथ में बैठ करके

अरे घोड़ा के रासे अउ खिचन लागे भइया, घोड़ा के रासे गा खिचन लागे भइया

दूसरा मे चाबूक मारन लागे भइया, दूसरा मे चाबूक मान लागे भाई।

दूसरा मे चाबूक मारन लागे भइया, दूसरा मे चाबूक मान लागे भाई।

एक हाथ मे घोड़ा के रास अउ दूसरा में चाबुक ले हे अर्जुन रिभ कुडल भूषण लगाके करके उत्‍तरा कुमार जब रथ आसिन होथे। त चलिस कइसे, गर गर गर गर रथ जाथे रागी।

रागी- हव भाई।

कौरव दल काल के सामन दुरिहा ले दिखत हे। उत्‍तरा कुमार कौरव दल ल देखिस ताहन अर्जुन ल काहत हे महराज मोर रथ ल लहुटा।

रागी- हव भइ पीछे कर।

वापिस कर मै लड़े बर नइ जाव। अर्जुन कुमार के बात म धियान नइ दिस रथ ल बड़ावत लेगिस अउ उत्‍तरा कुमार धनुष ल धरिस अउ रथ ले कुद गे। रथ ले कुदिस अउ प्रणा ल धरके भागिस।

रागी- हव भई।

लहुटके देखे अर्जुन ह त उत्‍तरा भागत राहय। रथ ल खड़ा करके अर्जुन जाके काहत हे। उत्‍तरा तै बान ल नइ चलाबे त झन चलाबे ते ये रथ ल जरूर चलाबे। अर्जुन फिर अंधकूप पर्वत समी झाड़ के नीचे आथे रागी रथ ल उतर के बोले उत्‍तरा तोर धुनष वो मोर काम नी आ सकय। ये वृक्ष के उपर में पांडव के अस्‍त्र शस्‍त्र रखे हे ओला तै उतार के लान। उत्‍तरा कुमार अंधकूप पर्वत के समी वृक्ष में चड़थे रागी। पहिली मुदगर माड़े हे उत्‍तरा पुछथे ये मुदगर ल लाव महराज। नीचे ले अर्जुन कहत हे अउ ओकर उपर। ओकर उपर म तलवार, उत्‍तरा पुछे गुरूदेव ये तलवार ल लानव का। अर्जुन करे और आगे।

रागी- और आगे जाइये।

 

(उत्‍तरा कुमारी कहती है गुरूदेव कर्ण का कुंडल और द्रोण का कपड़ा और दुर्योधन का मुकुट लाना। अर्जुन महाराज स्‍त्री के भेष में रथ तैयार करते है और बैठ करके एक हाथ से घोड़ा का रास खींचकर दूसरे हाथ से चाबूक मारते है। उत्‍तरा कुमार कृत कुंडल बसंत भूषण लगाकर रथ में सवार है। रथ तीव्र वेग से दौड़ रहा है।

रागी- हाव भाई।

कौरव दल दूर से ही काल के समान दिख रहा है। उत्‍तरा कुमार कौरव दल को देखकर अर्जुन से कहता है मैं अब नहीं लड़ंगा तुम रथ लौटा लो।

रागी- हां भई पीछे कर।

रथ वापस करो मैं लड़ाई करने नहीं जाऊंगा। अर्जुन कुमार की बात नहीं सुना और रथ बड़ाने लगे तो उत्‍तरा कुमार रथ से धनुष लेकर कूद गये और प्राण बचाकर भागने लगे।

रागी- हां भई।

अर्जुन पलट कर देखता है कि उत्‍तरा कुमार भाग रहा है। अर्जुन रथ को रोक कर उत्‍तरा कुमार से कहते है यदि तुम्‍हे बाण नहीं चलाना है तो मत चलाना पर ये रथ जरूर चलाना। फिर उत्‍तरा कुमार के साथ अर्जुन अंधकूप पर्वत के समी झाड़ के नीचे आकर रथ रोकता है और कहता है उत्‍तरा ये तुम्‍हरा बाण मेरे काम नहीं आयेगा। इस पेड़ पर पांडव के अस्‍त्र शस्‍त्र रखे है उसे उतार कर लाओ। उत्‍तरा कुमार अंधकूप पर्वत के समी वृक्ष में चड़ते है और सबसे पहले मुदगर रखा था जिसे देखकर उत्‍तरा कुमार कहते है इसे लेकर आऊ। नीचे अर्जुन कहते है नहीं और ऊपर जाओ। उसके ऊपर तलवार है जिसे देखकर उत्‍तरा कुमार पुछता है इसे लेकर आऊ। अर्जुन कहते है और आगे।

रागी- और आगे जाइये।)

 

 

ओकर उपर म फरी, उत्‍तरा पुछे येला लावं त अर्जुन कथे अउ उपर जा। ओकर साठ मन मनी के पहाड़ जैसे गदा। उत्‍तरा कुमार पूछे महराज ये गदा ल लानव। नीचे अर्जुन कहय अउ आगे। सबले उपर गांडिव धनुष अठैय नाम त्रुंड, दवे दत्‍त नाम के शंख अर्जुन के कृत कुंडल बसंत भूषण। उत्‍तरा पुछत हे गुरू देव ये धुनष ल लानव। नीचे अर्जुन काहव हा उत्‍तरा वो धनुष ल लान। उत्‍तरा कुमार जब हाथ ल अइसे लमावय रागी तव धुनष ल उतारहू कइके त गांडिव नाम के धुनष ह।

सर्प बनके, अरे भई सर्प बनके दउड़न जब लागय। दउड़न जब लागय।

 

(उसके ऊपर फरी, उत्‍तरा पूछते है इसे लाऊं तब अर्जुन कहते है नहीं और ऊपर। उसके ऊपर साठ मन पहाड़ जैसा गदा रख रहता है जिसे देखकर उत्‍तरा कुमार पूछते है गदा लाऊं क्‍या, नीचे अर्जुन कहते है नहीं और आगे। सबसे ऊपर गांडिव धनुष, अठैया नाम का तरकश, दवे दत्‍त नाम का शंख, अर्जुन का कृत कुंडल बसंत भूषण। उत्‍तरा पूछते है गुरूदेव इसे लाऊं। नीचे से अर्जुन कहता है हां। उत्‍तरा कुमार जैसे ही हाथ बड़ाते हैं धनुष उठाने के लिये धनुष सर्प बनकर दौड़ने लगते है।)

 

--------------------------ब्रेक ----------------------------------

 

गाना- बोलिये बृंदाबन बिहारी लाल की जय।

मनवा भजले सीताराम, मनवा भजले सीताराम राधे मोहन घनश्‍याम,

भइया राधे मोहन घनश्‍याम, भइया राधे मोहन घनश्‍याम

मनवा भजले सीताराम, मनवा भजले सीताराम राधे मोहन घनश्‍याम,

ये जय यदुनंदन मुनि जग नंदन राधे मोहन घनश्‍याम

जय जय यदुनंदन मुनि जग नंदन राधे मोहन घनश्‍याम

मनवा भजले सीताराम मनवा भजले सीताराम राधे मोहन घनश्‍याम

मनवा भजले सीताराम मनवा भजले सीताराम भइया राधे मोहन घनश्‍याम,

मनवा भजले सीताराम मनवा भजले सीताराम राधे मोहन घनश्‍याम

जइसे ही उत्‍तरा कुमार ह हाथ बड़ाथे तो गांडिव नाम के धुनष ह सर्प बनके डसे बर दउड़त हे रागी। उत्‍तरा कुमार देख के काहय या।

एतो सापे बनके अजि दउड़त हावय भाई,

उत्‍तरा कुमार काहय गुरूदेव ये तो सर्प बनके काटे बर दउड़त हे। तव नीचे अर्जुन काहत हे उत्‍तरा कुमार तै राजा धर्म के सौगंध दे देदे भाई, हा अर्जुन काहन लागे भाई। हा अर्जुन काहन लागे भाई। महाराज युधिष्ठिर के सौगंध दे। उत्‍तर कुमार धर्म के सौगंध देथे कृत कुंडल बसंत भूषण उतार लाथे अउ अर्जुन ल सौप देथे। महाबीर अर्जुन उठाथे धुनष अउ उठा करके निकालकर के जब पृथ्‍वी बान जब मारथे रागी भइया पृथ्‍वी से फेर जल प्रकट हावेथे। अर्जुन सुंदर स्‍नान करथे। स्‍थान करके स्‍त्री के स्‍वरूप ल उतार के रख देथे अउ उतर के फिर मनी के मकुट ल बांधथे। कोरा रंग घुंघरालू केश मणी मय मकुट बांधे हे सर पे। कृत कुंडल बसंत भूषण लगाये हे रागी।

रागी- हव भई।

 

(बोलिये वृंदावन बिहारी लाल की जय।

मनवा भजले सीताराम, मनवा भजले सीताराम राधे मोहन घनश्‍याम,

भैया राधे मोहन घनश्‍याम, भैया राधे मोहन घनश्‍याम

मनवा भजले सीताराम, मनवा भजले सीताराम राधे मोहन घनश्‍याम,

ये जय यदुनंदन मुनि जग नंदन राधे मोहन घनश्याम

जय जय यदुनंदन मुनि जग नंदन राधे मोहन घनश्याम

मनवा भजले सीताराम मनवा भजले सीताराम राधे मोहन घनश्‍याम

मनवा भज ने सीताराम मनवा भज ले सीताराम भइया राधे मोहन घनश्‍याम,

जैसे ही उत्‍तरा कुमार हाथ धनुष की ओर बढ़ाता है गांडिव धनुष सर्प बनकर काटने के लिए दौड़ता है। उत्‍तरा कुमार देखकर कहता है गुरूदेव यह तो सर्प बनकर काटने को दौड़ रहा है।

तब नीचे से अर्जुन कहते है उत्‍तरा कुमार राजा धर्मराज का सौगंध देदो। उत्‍तरा कुमार महाराज युधिष्ठिर का सौगंध देकर कृत कुंडल बसंत भूषण उतार लाता है। महावीर अर्जुन निकाल करके धनुष जैसे ही पृथ्‍वी में मारते है जल प्रकट होता है। अर्जुन स्‍त्री का भेष उतार कर स्‍नान करते है। अर्जुन का गोरा रंग, घुंघराले केश जिस पर मणी मुकुट, कृत, कुंडल, बसंत, भूषण लगाये है रागी।

रागी- हां भई।)

 

 

हाथ में गांडिव लेकर के जब अर्जुन खड़े होथे तव उत्‍तरा कुमार अर्जुन के रूप ल देख के डर जाथे। दोनो हाथ जोड़ के उत्‍तरा कुमार अर्जुन ल पुछत हे महराज तेहा कोन अस। अर्जुन कथे उत्‍तरा मोला नइ जानस। उत्‍तरा कुमार कथे महराज मे तोला नइ जानव। अर्जुन बतावथे मिही ह अर्जुन अव उत्‍तरा। बोले अर्जुन अवं। उत्‍तरा कुमार कहे ते अर्जुन अस। महराज मै कइसे बिसवास कर लव के तै अर्जुन अस। काबर तुमन पांच भाई हव। बोले चार भाई कहां देवी दुरपती ह कहां हे। अर्जुन बतावथे तोर पिताजी के साथ में जो कंठ रिसि विप्र जी के रूप में वही बड़े भइया युधिष्ठिर आए। खाना बनाथे जयंत उही तोर मामा ल मारे हे उही भइया भीमसेन ए। अर्जुन कहाथे उत्‍तर घोड़ा साफ करइया जेन बाहुक हे वो भाई नकूल हे। जो गाय चरइया सैनिक हे वो सबसे छोटे भइया सहदेव हे। तोर मां के राजमंदिर म जोन दासी के काम करथे सालेन्‍द्री ओ देवी द्रोपती हे। उत्‍तरा कुमार काहत हे दुनिया म अर्जुन के दस ठन नाम कइथे। दस नाम बताबे महराज तभे मै जानहू तै अर्जुन हस। महावीर अर्जुन सिरियल से नाम बताथे कहाये पहिली नाम ह मोर अर्जुन ये दूसरा नाम पार्थ, किरिटी, कपिद्धज, सेतुबाज, सत्‍यभेदी, दिरनी, विजय, बीभत्सु और ब्रहन्‍ला। ये गिन के दस नाम बताथे। उत्‍तरा ल विसवास हो जथे रागी इही हा अर्जुन ए। आखिर म उत्‍तरा कुमार घोड़ा के रास खिजथे। महाबीर अर्जुन कुरू क्षेत्र ये कौरव के दल में पहुंचथे। भीष्‍म पितामह चिल्‍ला करके बोले बीरे अगर कहू तुम दूर्योधन ल अब बचाना चाहत हव तो अब कौरव के दल ल तीन भाग में बाट लव।

अरे तीन भाग में बाटी लेवव भाई, तीन भाग म बाटी लेवव भाई

चारो दिशा में भेजन लागे भाई, चारो दिशा मे भेजन लागे भाई

 

(जब हाथ में गांडिव लेकर अर्जुन खड़े होते है तब उत्‍तरा कुमार अर्जुन का रूप देखकर डर जाता है और दोनो हाथ जोड़कर पूछता है हे महाराज आप कौन है। अर्जुन करते है मुझे नहीं पहचानते है मैं ही तो अर्जुन हूं। उत्‍तरा कुमार कहते है तुम ही अर्जुन हो मैं कैसे मान लूं। क्‍योकि तुम लोग तो पांच भाई, बाकी चार और देवी द्रोपदी कहां है। अर्जुन बताते है तुम्‍हारे पिता जी के साथ जो कंठ ऋषि विप्र जी है वही बड़े भैया युधिष्ठिर है, खाना बनाने वाले जयंत जिसने तुम्‍हारे मामा का वध किया वो मंझले भैया भीम है। अस्‍तबल में जो घोड़ा साफ करते वह नकुल है और गाय चराने वाला सैनिक छोटा भाई सहदेव है। तुम्‍हारी मां के राजमंदिर में जो दासी का काम करती है शैलेंद्री वही देवी द्रोपदी है। तब उत्‍तरा कुमार कहते है दुनियां में अर्जुन के दस नाम है वो नाम बताओं तभी मैं मानूंगा कि तुम ही अर्जुन हो। महावीर अर्जुन लाइन से अपना दस नाम बताते है पहला नाम अर्जुन, दूसरा नाम पार्थ, किरिटी, कपिद्धज, सेतुबाज, सत्‍यभेदी, दिरनी, विजय, बीभत्सु और बृहन्नला ये मेरे दस नाम है। उत्‍तरा कुमार को विश्‍वास हो जाता है, रथ में सवार होकर घोड़े का रास खीचते है। दोनो कुरूक्षेत्र में कौरव दल के समीप पहुंचते है जिसे देखकर भीष्‍म पितामह चिल्‍लाकर कहते है यदि अब दुर्योधन को बचाना चाहते हो तो कौरव दल को तीन भाग में बांट लो। तीन भागों में बांटकर चारो दिशा में सेना भेजते है।)

 

 

अर्जुन पहुचते है भीष्‍म पितामह गुरूद्रोण और दानवीर कर्ण, वर्णभूरी प्रवाह एक-एक करके अर्जुन से लड़त हे रागी भइया अर्जुन सबला परास्‍त करत जा‍थे।

रागी- अच्‍छा।

सबलसिंह जी बताए हे अर्जुन कौरव में कैसे छोड़य तव बताए हे अर्जुन तुंड खीच के निकाले तो एक अउ जब गांडिव में जोड़ते है तो बान के संख्‍या दस बन जाथे। मंत्र पड़के जब छोडै तो सौ अउ जा करके जब कौरव के दल में लगै तो हजारो हजार।

दोहा- अजि तुंड से ताड़ एक ही गुनी के धरत दस होय,

अउ छोड़त बान सत सत भई चल चलत सहत सहत होई।

सहस्‍त्र सहस्‍त्र ले सहस्‍त्रे लाखन इतना बान। अरे सावन धार जइसे। सावन अउ भादो के महिना म पीनी गिरथे ओइसने बान के बारसा होवत हे।

रागी- जय हो।

अर्जुन के बान जाके राजा दुर्योधन के छाती ल लागत हे। बान जब लगये दूर्योधन के शरीर झंझार पर जथे। दर्द मे व्‍याकुल हो जथे। राजा के मुंह से निकल जाथे।

गाना- हाय कलेजवा म बान, वो कलेजवा म बान धोखा देके मारे रसिया कलेजवा म बान।

हाय कलेजवा म बान, वो कलेजवा म बान दगा देके मारे रसिया कलेजवा म बान।

तुंड के ताड़ एक जब गुन के धरत दस होई, तुंड के ताड़ एक जब गुन के धरत दस होई।  अरे छोड़त बान सत सत भयो अउ जब चलत सहस्‍त्र सर होई।

धोखा देके मारे रसिया कलेजवा म बान।

धोखा देके मारे रसिया कलेजवा म बान।

मारो।

रागी- हव।

 

(भीष्‍म पितामह गुरूद्रोण और दानवीर कर्ण वर्णभूरी प्रवाह एक-एक करके अर्जुन से लड़ते है रागी भैया अर्जुन उन सभी को परास्‍त कर देता है।

रागी- अच्‍छा।

सबलसिंह जी बताए है कि अर्जुन जब कौरव दल में बाण छोड़ता था तो तुंड से निकालता तो एक था किन्‍तु जब धनुष में जोड़ता था तो वह दस बन जाता था। और जब मंत्र पढ़कर छोड़ता था तब हजारों हजार बाण निकलता था।

दोहा- अजि तुंड से ताड़ एक ही गुनी के धरत दस होय,

छोड़त बान सत सत भई चल चलत सहस्‍त्र सहस्‍त्र होई।

हजारों लाखों बाण। श्रावण माह की बरसात की तरह बाणों की बारिश होने लगी।

रागी- जय हो।

अर्जुन का बाण जा करके राजा दुर्योधन के सीने में लगता है। जैसे ही बाण लगता है शरीर छलनी हो जाता है। दुर्योधन दर्द ये व्‍याकुल हो जाता है और मुख से निकलता है हाय।

गाना- हाय कलेजा में बाण धोखा देकर मारे रसिया।

हाय कलेजा में बाण धोखा देकर मारे रसिया।

तरकश से निकालता एक है धनुष पर लगाते ही दस और मंत्र पढ़कर छोड़ते ही हजार।

हाय कलेजा में बाण धोखा देकर मारे रसिया।

हाय कलेजा में बाण धोखा देकर मारे रसिया।

मारो।

रागी- हां।)

 

 

युद्ध के मैदान में मारो मारो के आवाज। आखिर म अर्जुन निकाल करके मोहन बान गांडिव म जोड़थे और भगवान बाके बिहारी के देय हुए। मोहन बान ह अहावन करके छोड़ देथे। मन ही मन भगवान कृष्‍ण के स्‍तुति करते है और मोहन बान जइसे ही अर्जुन छोड़ रागी भइया सेना मोहित हो जाथे। सब एक दूसर के मुंह देखत हे। लेकिन सबलसिंह बताये हे। सब मोहित हो जाए पर एक मोहित नइ होय। तो कोन गंगा के बेटा भीष्‍म। अर्जुन आदेस देथे उत्‍तरा जा करन के कुंडल, द्रोण के कपड़ा, दुर्योधन के मकुट ल लिकाल के ले आ। उत्‍तरा कुमार जाके करन कुंडल, द्रोणचार्य के कपड़ा, राजा दुर्योधन के मुकुट ले आथे। अर्जुन निकालथे वरूण बान। अउ वरूण बान छोड़थे तब रागी पानी गिरना सुरू हो जथे। अउ पानी गिरथे ताहन पृथ्‍वी म चिखला मात जथे। खुरहा मे चल आगे, सारी गउ चलत हे। पीछे पीछे अर्जुन महराज के रथ चलते है। दुर्योधन के मुरछा दूर होथे। चिल्‍ला करके बोले मारो। अर्जुन कौरव के दल से पीठ दिखाके भाग के जाथे। ये बात सुने तो भीष्‍म बोले लाज लगना चाहिए दुर्योधन। लाज नइ आये तोला अरे दुर्योधन एक बात हमेशा याद रखना पांडव युद्ध मे भले मर जाही। पर युद्ध से पीठ दिखा के नइ जावे।

रागी- नइ जावय।

राजा दुर्योधन बोले बबा पांडव के अज्ञातवास बिते नइये समय से पहले ही प्रगट होगे अर्जुन अब फिर से पांडव ल तेरह साल बनावास जाये ल लगही। भीष्‍म कथे दुर्योधन पांडव ह तोर अतेक मुर्ख नइये। तुम्‍हारे जैसे मुर्ख नहीं है जो बनवास बिते के पहले ही पांडव प्रगट होगे। वो दिन भीष्‍म कइथे तै पांडव से बैर झन कर दुर्योधन। समझाथे भीष्‍म महराज। दुर्योधन हस्तिना के राज काकर ए पांडव के। पांडव के पिता पांडू के राज आउ। पांडव के राज ल वापिस करदे आधा राज देदे। आधा राज नइ दस त पौन देदे।

 

(युद्ध के मैदान से मारो-मारो की आवाज आने लगती है। अंत में अर्जुन भगवान बांके बिहारी का दिया हुआ मोहन बाण निकालकर भगवान का स्‍मरण करते हुए छोड़ देता है। कौरव की सारी सेना मोहित हो जाता है, केवल एक व्‍यक्ति मोहित नहीं होता है। वह है गंगा पुत्र भीष्‍म। सब एक दूसरे का मुंह देखने लगते है। अर्जुन उत्‍तरा कुमार को आदेश देते है कि जाओ कर्ण का कुंडल, द्रोण का कपड़ा और दुर्योधन का मुकुट निकाल कर ले आओ। उत्‍तरा कुमार जाकर कण का कुंडल, द्रोणचार्य का कपड़ा और राजा दुर्योधन का मुकुट निकाल लेता है। अर्जुन निकाल कर अब वरूण बाण छोड़ता है। वरूण बाण से पानी गिरना शुरू हो जाता है, मैदान कीचड़ से भर जाता है। खुरहा (पशुओं के पैरों में होने वाला रोग) से अचल गाय चलने लगी। आगे-आगे गाय पीछे-पीछे अर्जुन। इधर दुर्योधन का मूर्छा टूटता है और मारो-मारो चिल्‍लाने लगे। कहते है अर्जुन पीठ दिखाकर भग रहा है। यह बात सुनकर भीष्‍म कहता है अरे दुर्योधन अर्जुन पीठ दिखाकर भागने वालो में नहीं है। एक बात हमेशा याद रखना पांडव भले युद्ध में मर जाएगा पर पीठ दिखा कर नहीं भागेगा।

रागी- नहीं भागेगा।

राजा दुर्योधन बोले पितामह पांडव अज्ञातवास बिताये बगैर ही अर्जुन प्रगट हो गये है अब फिर से पांडव को तेरह वर्ष का वनवास जाना पड़ेगा। भीष्‍म कहते है दुर्योधन पांडव इतना भी मूर्ख नहीं है। भीष्‍म दुर्योधन को समझाते हुए कहते है पांडव से इतना बैर मत करो और हस्तिना राज्‍य में आधा हिस्‍सा देदो। वापस कर दो पांडव का राज्‍य। यदि आधा नहीं तो पौन ही देदो।)

 

 

पांडव के रखवार जगत के स्‍वामी भगवान कृष्‍ण। रागी भइया कौरव दल वापिस होथे। महाबीर अर्जुन वापिस होथे विराट नगर म राजा विराट जानथे कि ये मन पांचो भइया पांडव ए। तो आखिर मे दोनो हाथे जोड़ के छमा याचना करथे विराट महराज। बोले महराज न जाने एक साल मोर घर म रेहेव। अनजाने म कहि मोर से गलती होगिस होही छमा करहूं महराज। अउ विराट प्रार्थना करथे अर्जुन ल ये अर्जुन जइसे तै मोर घर म एक साल बिताये हस वोइसने तै मोला अपन समान बना ले। अपन समान। तै समधी बना ले। तोर बेटा अभिमन्‍यु के संग में मोर बेटी उत्‍तरा के बिहाव कर दे। लिख के पतरिका अर्जुन भेजत हे द्वारिका नगर। भगवान मंद मंद मुस्‍काके पड़त हे पतरिका। अर्जुन प्रर्थना करे हे भगवान दिनानाथ।

गाना- ये तोर तो नामे हे मोहन हरिया गा तन तोर करिया हे

ये तोर तो नामे हे मोहन हरिया गा तन तोर करिया हे

दुख के हरइया तोर पइया लागव का गा, कन्‍हैया,

दुख के हरइया तोर पइया लगाव गा, कृष्‍ण कन्‍हैया

ये पांडव हित पर जनम धरे गा, मोहन नाना परकारे रूप ल धरे गा

ये पांडव हित पर जनम धरे गा, मोहन नाना परकारे रूप ल धरे गा

गउवा चरइया तोर पइया लागव, बंशी बजइया तोर पइया लागव गा

गउवा चरइया तोर पइया लागव, बंशी बजइया तोर पइया लागव गा

रागी भइया उत्‍तरा कुमारी अभिमन्‍यु महराज के विवाह संपन्‍न होथे।

रागी- हव।

विराट नगर में भगवान द्वारिकाधीस, बड़े भइया बलदाउ जी के साथ म विराट नगर म पहुंचथे। यही जगह ले विराट के ये पर्व के प्रसंग हे रागी भाई ये विराट पर्व के प्रसंग ह संपन्‍न हो जाथे।

अब राजा जनमेजय ल वैसमपान जी उद्योग पर्व के आगे प्रस्‍तुति देथे।

 

(पांडव के रक्षक है भगवान श्री कृष्‍ण। रागी भैया कौरव दल वापस लौटते है। अर्जुन भी विराट नगर लौट आता है। विराट नगर में जब राजा‍ विराट को यह जानकारी होती है कि ये पांच भाई पांडव है तो दोनो हाथ जोड़कर क्षमा याचना करते हुए कहते है बोले महाराज एक साल तक मेरे घर में रहे, जाने अनजाने गलती हुई हो तो क्षमा करना। अर्जुन से राजा विराट कहते है आप एक साल मेरे घर में बिताये है अब आप मुझे अपना बना लीजिए। समधी बना लो। अपने बेटे अभिमन्‍यु का विवाह मेरी बेटी उत्‍तरा से करा दीजिए। पत्रिका लिखकर अर्जुन द्वारिका नगर भेजते है। भगवान पत्रिका को पड़कर मुस्‍काने लगते है। अर्जुन भगवान से कहते है-

गाना- ये तुम्‍हारा तो नाम है मोहन हरि और तन है काला।

ये तुम्‍हारा तो नाम है मोहन हरि और तन है काला।

दुखहर्ता तुम्‍हे प्रणाम है कन्‍हैया, दुखहर्ता तुम्‍हे प्रणाम है कन्‍हैया।

ये पांडव हित के लिए जन्‍म लेकर अनेक रूप लिए।

ये पांडव हित के लिए जन्‍म लेकर अनेक रूप लिए।

गाय चरवाहा तुम्‍हे प्रणाम है, बंशी बजाने वाला तुम्‍हे प्रणाम है।

रागी भैया उत्‍तरा कुमारी और महराज अभिमन्‍यु का विवाह संपन्‍न हो जाता है।

रागी- हां जी।

विराट नगर में भगवान द्वारकाधीश बड़े भैया बलदाऊ के साथ पहुंचते है। यही से विराट पर्व कथा प्रसंग संपन्‍न हो जाता है। अब राजा जनमेजय को वैश्‍मपायन जी महाराज आगे उद्योग पर्व की कथा बताते है।)

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.