Pandvani is one of the most celebrated performative genres from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.
The parv presented in this video is the Bhishm Parv. The prasangs contained in this parv are Shankh Vadh, Bhishm aur Arjun ka Yuddh and Bhishm ka Mahakaal Vaan.
Transcript
Chhattisgarhi: बोलिये बृंदाबन बिहरी लाल की जय।
भइया रामे रामे रामे रामे भाई, भइया रामे रामे रामे रामे भाई।
जनमेजय पुछन लागे गा भाई, जनमेजय पुछन लागे गा भाई।
अरे भइया राजा जनमेजय के प्रति महामुनी वैसमपायन जी कहते है राजा जनमेजय कहे मै तोर वंसज के कथा कहत हवं।
रागी- हव भई।
जरा धियान लगा के सुनले जनमेजय श्रोता के आगे वैसमपायन जी बतावत हे। कौरव के दल में गियारह यक्षोणी सेना पांडव दल मे सात यक्षोणी सेना दोनो मिला करके अटठारह यक्षोणी सेना। कौरव के दल कुरूक्षेत्र में पूर्व के दिशा के बाहर म सिविर बनावत हे।
रागी- हव।
पांडव के दल पश्चिम दिशा मे सिविर बनावत हे। काबर के दिन भर महाभारत लड़ना हे अउ रात के समय अपन सिविर म जाके विश्राम करना हे। रागी भइया कौरव दल के सेना नायक भीष्म पितामह जी ल बनाये गे हे।
रागी- हव।
Hindi: (बोलिये वृंदावन बिहरी लाल की जय।
राम (भगवान राम)राम राम भैया, राम राम भाई जी।
जनमेजय पूछने लगे, जनमेजय पूछने लगे भाई।
राजा जनमेजय के प्रति महामुनि वैश्मपायन जी महाराज कहते है। राजा जनमेजय तुम्हारी वंशजों की कथा कह रहा हूं।
रागी- हां भई।
जरा ध्यान लगा कर सुनना जनमेजय श्रोताओं के आगे वैश्मपायन जी बता रहे हैं। कौरव के दल में ग्यारह यक्षिणी सेना, पांडव के दल में सात यक्षिणी सेना दोनो मिलकर अट्ठारह यक्षिणी सेना। कौरव दल कुरूक्षेत्र में पूर्व दिशा के बाहर शिविर बना रहे है।
रागी- हां जी।
पांडव दल पश्चिम दिशा में शिविर बना रहे है क्योकि महाभारत दिन में लड़ना है और रात के समय शिविर में जाकर विश्राम करना है। रागी भैया कौरव दल का सेना नायक पितामह भीष्म को बनाया गया है।
रागी- हां जी।)
कौरव दल के सेना पति भीष्म महराज बनते है और पांडव दल के सेना नायक अर्जुन महराज बने है। होत प्रात:काल दोनो दल ह तइयार होथे रागी भइया।
रागी- हव।
हाथी वाले हाथी, रथ वाले रथ, घोड़ा वाले घोड़ा, पैदल वाले पैदल सजत हाबे। महावीर अर्जुन बर नंदीघोस नाम के रथ भगवान अपन हाथ ले सजावत हे। भगवान अपन हाथ मे अर्जुन के सजावत है चार ठन सफेद रंग के घोड़ा फांदत हे अउ रथ में बैठ के भगवान ह।
अगा घोड़ा के रासे ग खिचन लागे ग भाई, भइया घोड़ा के रासे ग खिचन लागे भाई।
हा भगवान काहन लागे गा भाई, हा भगवाने काहन लागे गा भाई।
पांचो भइया पांडव बर रथ सजत हे। पवननंदन भीमसेन बर लोहा के रथ तइयार हावे भइया। बताये भीमसेन महराज अरे लोहा के छत्र हरि निरमाये, जा पर चड़ भीम सोभा पाये। सबसे छोटे भइया सहदेव। सोना के रथ मे बैठ करके के।
कुरू क्षेत्र मे चलन लागे भाइया जी, कुरू क्षेत्र में जावन लागे भइया।
दोनो दला पहुंचन लागे भाई, दोनो के दल गा पहुचन लागे भाई।
कौरव के दल पांडव के दल तइयार होथे रागी भाई। अउ लड़े के खातिर कुरू क्षेत्र म चले के तइयारी करथे। महरानी द्रोपती मां कुंती आरती के थाली सजाके अरती उतरके बिदा करथे। राजा दुर्योधन के धर्म पत्नि महारानी भानुमति राजा दुर्योधन के आरती उतार करके कौरव के दल ल बिदा करत हे।
रागी- जय हो।
(कौरव दल का सेनापति भीष्म महाराज बनते है और पांडव दल का सेनानायक अर्जुन महाराज बने हैं। प्रात:काल होते ही दोनो दल तैयार होते है।
रागी- हां जी।
हाथी वाले हाथी, रथ वाले रथ, घोड़ा वाले घोड़ा, पैदल वाले पैदल तैयार हो रहे है। महावीर अर्जुन के लिए भगवान नंदीघोष नाम का रथ अपने हाथ से तैयार कर रहे है। नंदीघोष में चार सफेद घोड़ा जुते हुए है। भगवान रथ में सवार होकर घोड़े का रास खींचते है।
पांच भाई पांडव के रथ सज रहे है। पवन नंदन भीमसेन के लिए लोहे का रथ तैयार हो रहा है। बताये है रागी भैया कि- अरे लोहा के छत्र हरि निरमाये, जा पर चड़ भीम शोभा पाये। भीम के लिऐ लोहा रथ बनाया गया है जिसमें वही सुशोभित होते है। सबसे छोटे भाई सहदेव सोने के रथ में बैठते है। कौरव और पांडव दल तैयार होकर लड़ाई के लिए कुरूक्षेत्र के मैदान में पहुंचते है।
पांडव को महारानी द्रोपदी मां कुंती आरती की थाल सजाकर आरती उतार कर विदा किये है। राजा दुर्योधन को उनकी धर्म पत्नी भानुमति आरती उतार कर विदा करती है।
रागी- जय हो।)
कुरूक्षेत्र के मैदान मे कौरव दल पूर्व दिशा मे खड़े हे अउ पांडव पश्चिम दिशा म खड़े हे। कौरव के दल उत्ती दिशा में अउ पांडव बुड़ती दिशा मे खड़े हे। रागी भइया राजा धरमराज सफेद हाथी मे बैठ करके आहे लड़े बर।
रागी- अच्छा।
हाथी के उपर ले राजा देखथे के कौरव दल पितामह भीष्म आये हे। भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, कुलगुरू कृपाचार्य जी आये है। राजा युधिष्ठिर हाथी ले उतर के कौरव के दल बर पैदल चलत हे। अर्जुन अउ भीम देख के काहय या।
यहा कहा भइया हर जावत हावय भाई, रागी कहा भइया हर जावत है हावयभाई
हा अर्जुन ह सोचन लागे भाई, अर्जुन ह सोचन लागे भाई।
राजा ल कौरव दल के ओर जावत देखे त अर्जुन अउ भीम दोना भाई गोठियावात हे कस भइया ये लड़े आए हावे अउ कौरव दल म अउ काबर जावथे।
रागी- हव जी।
काबर जे दिन जुआ खेलिस ओ दिन हमन ला एक मुंह नइ पुछिस दोनो भाई काहत हे। अरे जुआ खेलिस तेने दिन नइ पुछिस। आज अउ फेर कौरव दल म काबर जावत हे। भगवान कथे चिंता झन करव राजा धरम राज अपन धरम न नइ छोड़य। बोले जाने दो। गंगासन भीष्म पितामह के नजर परगे राजा युधिष्ठिर आवत हे। राजा ल पैदल आवत देखे भीष्म दंग रह जावे। भीष्म पितामह दोनो भुजा पसार करके बोले युधिष्ठिर आवो। राजा धरमराज दउड़ के जाये अउ सास्टांग प्रणाम करे।
(कुरूक्षेत्र के मैदान में कौरव दल पूर्व दिशा में खड़े है और पांडव पश्चिम दिशा में खड़े है। रागी भैया राजा धर्मराज सफेद हाथी में बैठकर लड़ने आए है।
रागी- अच्छा।
हाथी के ऊपर से देखते की कौरव दल में भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, कुलगुरू कृपाचार्य जी आये है। राजा युधिष्ठिर हाथी से उतर के कौरव के दल की ओर पैदल चलते है। जिसे देखकर भीम और अर्जुन सोचते है आखिर भैया कहां जा रहे है। लड़ने आए है और पैदल कौरव दल की ओर जा रहे है।
रागी- हां जी।
सोचते है कि जिस दिन जुआ खेले उस दिन भी नहीं पुछे और आज भी नहीं पूछ रहे है। भगवान कहते है चिंता मत करो राजा धर्मराज अपना धर्म नहीं छोड़ेगे। गंगापुत्र भीष्म देखते है कि राजा धर्मराज आ रहा है तो पितामह दोनो बांह फैलाकर बुलाते है आओ धर्मराज। राजा धर्मराज दौड़ कर जाते है और सास्टांग प्रणाम करते है।
रागी- हां जी।)
भुजा उठाके भीष्म आसिरवाद देवथे जा बेटा तै महाभारत म विजय पाबे। युधिष्ठिर मोर आसिरवाद हे ये महाभारत के युद्ध मे तोर विजय होही। तन भले ही कौरव पक्ष म हे पर मन तो तोर पक्ष म हे। गुरू द्रोणाचार्य के प्रणाम करथे, द्रोण भी आसीरवाद देथे धमराज जा ये लड़ाई ल तै जीत बे। कुलगुरू कृपाचार्य आसीरवाद देते जा ये लड़ाई ल तै जीत बे।
रागी- हव भई।
काबर की भीष्म जानत रिहिसे।
अरे जहा धर्म तहा कृष्ण बिराजे, रागी भइया। और जहा कृष्ण है वहां जयति छाजये।
जहां धर्म हे वही कृष्ण है अउ जहां कृष्ण हे वही विजय हे। जहा धर्म तहा कृष्ण अउ जहां कृष्ण तहां जयति छाजये। बोले युधिष्ठिर तुम्हारा विजय होगा। तीनो ये असीरवाद लेके राजा वापिस आवथे।
रागी- हव भई।
अउ दोनो दल बीच फेर खड़े हो जाथे अउ और खड़े होकर के बोले बीरो पांडव दल मे सात यक्षोणी सेना हे कान खोल के सुन लो और कौरव दल में ग्यारह यक्षोणी सेना। केवल सेना तइयार हे लड़ाई सुरू नइ होहे। अगर पांडव दल में अइसे कोई योद्ध होही जो पांडव के साथ देबर आये हे अउ इहां आये के बाद कहू ओकर मन चाहत होही के मै कौरव के साथ देतेव। तो पांडव दल ल छोड़के वो कौरव दल में जा सकथे। काबर के लड़ाई अभी सुरू नइ होय हे केवल सेना तइयार हे।
रागी- हव।
(हाथ उठाकर भीष्म आशीर्वाद देते है कि बेटा महाभारत तुम ही जीतोगे। युधिष्ठिर मेरा आर्शीवाद है तुम्हारे साथ, तन भले ही कौरव के साथ है किन्तु मन तुम्हारे पक्ष में है। गुरू द्रोणाचार्य को प्रणाम करते है, द्रोण भी आर्शीवाद देते है कि ये लड़ाई तुम ही जीतोगे। कुलगुरू कृपाचार्य आर्शीवाद देते है जाआ ये लड़ाई तुम ही जीतोगे।
रागी- हां भई।
क्योकि भीष्म जानते थे कि जहां कृष्ण विराजे है वहां विजय है और जहां धर्म है वहां कृष्ण है। तीनों का आशीर्वाद लेकर राजा वापस आता है।
रागी- हां भई।
अब दोनो दल के बीच के खड़े होकर बोलते है वीरों पांडव दल के सात यक्षिणी सेना और कौरव दल के ग्यारह यक्षिणी सेना कान खोलकर सुन लो अभी केवल सेना तैयार है लड़ाई शुरू नहीं हुई है। अगर पांडव दल में ऐसा कोई योद्धा है जो कौरव का साथ देना चाहते है वे कौरव दल में चले जाए और कौरव दल में ऐसा कोई योद्धा है जो पांडव दल में जाना चाहते है वे पांडव दल में जा सकते है। क्योकि अभी लड़ाई शुरू नहीं हुई है।
रागी- हां जी।)
अउ कौरव के दल में कोनो बीर होही जो पांडव पक्ष में आना चाहत हे कृष्ण के सरन मे आना चाहत हे तो भगवान बांके बिहारी के सरन म आ सकथे।
रागी- जय हो।
पांडव दल के बीर तो कोनो नइ गिन रागी। पर कौरव दल म एक युयुत्स नाम के वीर आये हे, जो दस हजार सेना लेके। वो युयत्स नाम के वीर कौरव के दल तियाग के पांडव के दल म आ जथे। भगवान के सरन म आथे येला जब राजा दुर्योधन देखथे रथ के उपर से तो नेत्र लाल हो गये। दुर्योधन सोचत हे अभी लड़ाई सुरू नइ होय हे।
रागी- हव जी।
एमा ये स्थिति हे। कोन जनी बड़े भइया अइस, बबा ल काये काये किहिस ताहन दस हजार बीर ल भेज दिस। लड़ाई सुरू हो जाही त न जाने का स्थिति हो जही रागी। राजा दुर्योधन भीष्म ल जाकर कर के किथे दादा बाबा कोन जनी अइस राजा युधिष्ठिर का किहिस ताहन तै दस हजार बीर ल तै पांडव दल म देदेस। भीष्म कथे अरे दुर्योधन धरमराज सेना मांगे बर नइ आये रिहिसे। दुर्योधन युधिष्ठिर तो आसिरवाद ले बर आये रिहिसे मै ओला आसीरवाद देहवं के लड़ाई ल तै जीत जा। पर दुर्योधन तै चिंता झन कर मै दस दिन तक से ये कुरूक्षेत्र के मैदान म तोर रक्षा करे के जुमेदारी लेथवं। दस दिन तक कुरूक्षेत्र म लड़हू है, दस दिन तक मै तोर रक्षा करहू। दूर्योधन अउ दिन भर लड़हू कुरूक्षेत्र में अउ दिन भर लड़त लड़त पांडव के कतका बीर मारहू ओकर कोई मिनती नइये। लेकिन दिन डूबे के समय घर जाये के बेरा एक ही बान में रोज के दस दस हजार महारथी नइ मारो तो मै गंगा के बेटा भीष्म कहना छोड़ दिहव।
रागी- जय हो।
( कौरव के दल में कोई ऐसा योद्धा है जो पांडव की ओर भगवान कृष्ण के शरण में आना चाहते है वे आ सकते है।
रागी- जय हो।
पांडव दल से कोई वीर नहीं गया किन्तु कौरव दल में युयुत्स नाम का वीर आया है दस हजार सेना लेकर वह कौरव का दल छोड़कर पांडव के दल में आ जाता है। भगवान के शरण में जाते देखकर दुर्योधन का नेत्र लाल हो जाता है। सोचता है अभी तो लड़ाई शुरू भी नहीं हुई है।
रागी- हां जी।
और ये स्थिति। पता नहीं बड़े भैया आए और पितामह से न जाने क्या कहा दस हजार वीर भेज दिये। लड़ाई शुरू होने के बाद न जाने और क्या-क्या होगा। राजा दुर्योधन भीष्म के पास जाकर बोले राजा युधिष्ठिर क्या बोले कि तुमने दस हजार वीर पांडव को दे दिये। भीष्म कहते है दुर्योधन धर्मराज सेना मांगने नहीं आशीर्वाद मांगने आया था मैने उसे आशीर्वाद दिया की लड़ाई में तुम्हारा विजय होगा। परंतु दुर्योधन तुम चिंता मत करो दस दिन तक मैं कुरूक्षेत्र के मैदान में तुम्हारी रक्षा करने का जिम्मेदारी लेता हूं। दस दिन कुरूक्षेत्र में लड़ूंगा और तुम्हारी रक्षा करूंगा। दुर्योधन दिन भर लड़कर जो वीर मारूंगा वो अलग और रोज संध्या घर जाने के समय मैं एक ही बान से दस हजार महारथी न मारू तो मैं गंगा का बेटा भीष्म कहलाना छोड़ दूंगा।
रागी- जय हो।)
भीष्म कहना छोड़ दूहू। बात सून करके राजा दूर्योधन रथ मे आरूड़ हो जाथे। ओकर बाद अर्जुन भगवान ल काहत हे द्वारिका नाथ मोर रथ ल दोनो दल के बीच मे लेग के खड़ा कर दे देखन दे कौरव दल म कोन आये हे।
रागी- अच्छा।
लड़े बर कोन कोन आये। भगवान रथ ल आगे करथे अउ दोनो दल के बीच म खड़ा कर देथे। अर्जुन देखत हे कौरव के दल म पितामह भीष्म, गुरूद्रोणाचार्य, दानवीर करन, मेघवर्ण, भुरीसरवा, अस्वासथामा, अलंग, कलिंग, बाहुलिक, भगदंत, सोम दत्त गंगाधर, एक से एक योद्धा। कोनो ह बाप ये कोनो ह बेटा ये कोई चाचा ये कोनो भतिजा ये। अर्जुन सामने ल देखे तो सब परिवार ये। येमन ल मार के मोला का सुख मिलही रागी।
रागी-हव।
अरे येमन ल मार के मोला का सुख मिलही मै सुन्ना म का राज्य चलाहूं। ओकर ले जियत भर जंगल म घूम के कांदाकूसा खा के रई जहू पर मै ह लड़ाई नइ गा करवं।
मै ह लड़ाई गा नइ करवं भाई,
बीरे अर्जुन गा सोचन लागे भाई, बीर अर्जुन गा सोचन लगे भाई।
(भीष्म कहलाना छोड़ दूंगा। सुनकर राजा दुर्योधन रथ में आरूड़ हो जाते है। अब अर्जुन भगवान द्वारिकानाथ से कहते है भगवान मेरा रथ दोनो दल के बीच ले चलो मैं देखना चाहता हूं कि कौरव दल में कौन-कौन आए है।
रागी- अच्छा।
कौन-कौन लड़ने आए है। भगवान रथ आगे ले जाकर दोनो दलो के बीच खड़ा कर देते है। अर्जुन देखता है कौरव दल में पितामह भीष्म, गुरू द्रोणाचार्य, दानवीर कर्ण, मेघवर्ण, भूरिश्रवा, अश्वात्थामा, अलंग, कलिंग, बाहुलिक, भगदंत, सोम दत्त गंगाधर, एक से बड़कर एक योद्धा। कोई बाप है कोई बेटा, सभी परिवार है। इनको मार कर मुझे क्या सुख मिलगा।
रागी-हां जी।
इनको मार मुझे क्या सुख मिलेगा मैं क्या विरान राज्य चलाऊंगा। इससे भला तो मैं जीवन भर जंगल में घुमकर कंदमूल खाकर बीता लूंगा पर लड़ाई नहीं करूंगा।
वीर अर्जुन मन में विचार करते है कि मैं लड़ाई नहीं करूंगा।
मै युद्ध नइ करवं अर्जुन गांडिव ल मड़ा दिस। अउ रथ के पिछ़वाड़ा मे मुड़ी ल गडि़या के बइठ गे। भगवान घोड़ा के रास खींच हे और कौरव की ओर मंद मंद मुस्काते हुये बोले। अबड़ बेरा होगे अर्जुन के आरो नइ मिलत रागी। भगवान काहय ये पीछू कोति बइठे बइठे का करथे जी।
रागी- को जनी देखना का करथे ते।
राहतो अर्जुन का बुता करथ हे किके भगवान देखथे। तब अर्जुन मुड़ी ल गडि़या बइठे हे। भगवान किथे ते कइसे अर्जुन ढेरियाए बइठे हस।
रागी- हव। थोथन उतार के बइठे हस।
अर्जुन करथे द्वारिकानाथ मै ये महाभारत ल नइ लड़वं। भगवान कथे काबर, कथे ये जतका लड़े बर खड़े हे मोर परिवार हे येला मारके मोला का सुख मिलही। जीवन भर जंगल म घुम के मै कांदाकूसा के खाके रइ लेहू पर ये महाभारत ल नई लड़वं। ये बात ल सुनिस ताहन भगवान काहय य अर्जुन येला तै का करबे।
रागी- हव जी।
(मैं युद्ध नहीं करूंगा कहते हुए अर्जुन अपना गांडिव रख देते है और रथ के पीछे जाकर सिर झुकाये बैठ गया। भगवान घोड़े का रास खींचे और मंद-मंद मुस्काते हुये बोले कहां है अर्जुन कही नजर नहीं आ रहा है।
रागी- पता नहीं कहा है।
भगवान देखते है कि अर्जुन रथ के पीछे सिर झुकाए बैठा है। भगवान कहते है कैसे उदास हो।
रागी- हां जी, सिर झुकाए बैठे हो।
अर्जुन कहते है द्वारिकानाथ मैं यह महाभारत नहीं लड़ूंगा। भगवान कहते है क्यों तो अर्जुन कहता है ये जितने भी वीर खड़े है सब मेरे अपने है, मेरा परिवार है इनको मार कर भला मुझे क्या सुख मिलेगा। इससे तो अच्छा मैं जंगल में घुम कर कंदमूल खा कर रह लूंगा पर महाभारत नहीं लड़ूंगा। अर्जुन की बात सुनकर भगवान कहते है अर्जुन इसमें तुम क्या कर सकते हो।
रागी- हव जी।)
भगवान बाके बिहारी लड़ाई के मैदान मे अर्जुन ल फिर गीता के उपदेश देथे। ओए अर्जुन जतका भी होथे मोर मरजी से होथे। जो भी करथवं मै करथवं। महाबीर अर्जुन ल भगवान द्वारिकानाथ बतावत हे कहे। कहे अर्जुन नदिया में गंगा जो हे गंगा मिही हरवं। बोल कहे वृक्ष में पीपल जो है वो पीपल जो मिही हरवं। घोड़ा म उचे स्रवा घोड़ा मै हवं। हाथी में ऐरावत नाम के हाथी मिही हरवं। स्त्री में रंभा मै हवं अर्जुन। भगवान बाके बिहारी रागी भइया कुरूक्षेत्र के मैदान मे दोनो दल के बीच में।
गीता उपदेसे का देवन लागे भाई, भगवान बाके बिहारी अर्जुन ल गीता के गियान देते।
अर्जुन दोनो हाथ ल जोर के बइठ के।
सुंदर उपदेस गा सुनन लागे भाई। उपदेस दे रहे भगवान अउ अर्जुन सुनत हे। भगवान कहे अर्जुन तै मोला नइ देख सकस। दिव्य दृष्टि देथे भगवान अउ दिव्य दृष्टि लेकर करके अर्जुन विराट रूप ग दिखावन लागे ग भइया, विराट रूप के दर्शन कराथे। अर्जुन देखत रहे है सारी सेना जुझ गये है। लड़ाई के मैदान में मांस माटी के पहचान नइये।
खून कर धर गा बहन लागे भइया जी।
बीर अर्जुन ग काहन लागे भाई, हा केशव केशव केशव करन लागे भाई।
बीर अर्जुन ग काहन लागे भाई, हा केशव केशव केशव करन लागे भाई।
(भगवान बांके बिहारी लड़ाई के मैदान में अर्जुन को फिर गीता का उपदेश देते है। अर्जुन यहां जो भी हो रहा है सब मेरी मर्जी से हो रहा है। तुम जो भी करते हो वो मैं करता हूं। अर्जुन नदिया में गंगा जो है वह मैं ही हूं। वृक्ष में पीपल जो है वो पीपल मैं ही हूं। घोड़ा में ऊंचा अश्व मैं ही हूं। हाथी में ऐरावत नाम का हाथी मैं ही हूं। स्त्री में रंभा मैं ही हूं अर्जुन। भगवान बांके बिहारी रागी भैया कुरूक्षेत्र के मैदान में दोनो दल के बीच में गीता का उपदेश दे रहे है। अर्जुन दोनो हाथ जोड़कर बैठे है। भगवान सुना रहे है और अर्जुन सुन रहा है। भगवान अर्जुन को दिव्य दृष्टि देते है जिससे अर्जुन भगवान के विराट रूप का दर्शन करता है। अर्जुन देखता है कि सारी सेना जूझ गये है लड़ाई के मैदान में और मांस माटी की कोई पहचान नहीं है। खून की धार बह रही है।)
भगवान अर्जुन ल गीता के उपदेस देथे। विराट रूप के दर्शन कराथे अउ विराट रूप के दर्शन ल पाथे तो मोह दूर हो जाथे। अर्जुन देखते है सारी सेना जुझ गये है। कथे येला ते का मारबे अर्जुन। अर्जुन के मोह दूर हो जथे। महाबीर अर्जुन कहे द्वारिका नाथ तै रथ ल आगे बड़ा, भगवान बाके बिहारी फिर अर्जुन के रथ आगे बड़ाथे लड़ाई के मैदान मे नान प्रकार के जुझाउ बाजा बाजत हे बड़े बड़े बीर मन निकाल निकाल के अपन शंख ल फूकत हे। अपन शंख ल फूक के।
अगा मारो मोरा कहान लागे भाई, रथी रथी के साथ, महारथी महारथी के साथ।
भइया मारो मोरो काहन लागे ग भाई।
हां अर्जुन ह अब लड़न लागे ग भाई, हां अर्जुन ह अब लड़न लागे ग भाई।
मारो कुरूक्षेत्र के मैदान मे भगवान बाके बिहारी विचारथे। रागी भइया बताये हे अर्जुन के नजर कहु ये तरफ लड़त राहय अउ ये तरफ लड़त लड़त येती ल देखय जो सोचय मन मे सोचय कहि मोर रथ येदो कोति लेगतिस त मै ये डहर लड़तेवं। केवल अर्जुन मन के सोचय के भगवान कही मोर रथ ल ये तरफ लेगतिस ल ये तरफ ले लड़वं। अर्जुन ह मन म सोचय अउ भगवान ह अर्जुन के रथ ल उही कोति ले जए। अजि केशव रथ खेदत है बाटा, तब मानहू कुम्हार के चाका। महावीर मन ले बड़े बड़े बान के बरसा बरत हावे भइया। लड़ाई मैदान मे पानी के सामन बान के बरसा होवथे।
रागी- हव।
(भगवान अर्जुन को गीता का उपदेश देते है। विराट रूप का दर्शन करते ही अर्जुन का मोह दूर हो जाता है। महावीर अर्जुन से कहते है द्वारिकानाथ रथ आगे बड़ाव। भगवान बांके बिहारी फिर अर्जुन का रथ आगे बड़ाते है। लड़ाई के मैदान में नाना प्रकार का जुझाऊ बाजा बज रहा है बड़े बड़े वीर निकाल निकालकर शंख फूक रहे है। मारो-मारो कहते हुए रथी रथी के साथ, महारथी महारथी के साथ लड़ाई कर रहे है।
अर्जुन भी लड़ई के मैदान में लड़ रहा है। लड़ाई के मैदान में लड़ते-लड़ते अर्जुन सोचता कि यदि मेरा रथ उधर घुम जाये जो उधर लड़ता। केवल अर्जुन सोचता है और रथ घुम जाता है।
अजि केशव रथ खेदत है बाटा, तब मानहू कुम्हार के चाका। केशव रथ को ऐसे चला रहे है जैसे कि कुम्हार का चाक चलता है।
महावीर बड़े-बड़े बाणों की वर्षा कर रहे है। लड़ाई के मैदान में पानी के समान बाणों की वर्षा हो रही है।
रागी- हां जी।)
अर्जुन के बान कुरूक्षेत्र के मैदान म जाके।
बिलग बिलग अरे भई बिलग बिलग बने जब चले जब, अरे छातिन को कहे छातिन को बाने गा लगी बाने ग लगी जाये।
घोर संग्राम भीष्म पितमह अउ महाबीर अर्जुन लड़त हे। नकुल अउ कृत वर्मा लड़त हे, सकुनी अउ सहदेव लड़त हे। अपन अपन योग्य देख देख के बड़े बड़े वीर म युद्ध होवथे। होवत प्रात:काल से सांझ तक पश्चिम दिश मे भगवान सूर्य हे तेन अस्त होय बर जावथे। भीम कौरव के दल में लड़त हे। लड़ते लड़ते भीम दोनो हाथ उठा करके काल समान गरजेव बलवाना, भीम जब गरजथे, गर्जना अर्जुन के कान मे आथे। अर्जुन थोरकन छिरचा नजर देखते भइया गरजत काबर हे। भीष्म ल समय मिल जाथे निकालथे तुंड से एक ठन बान और एक बान निकाल करके धनुष म जोड़थे। धनुष म जोड़ करके पांडव दल के दस हजारे गा बीरे ल मारे भइया, दसे हजारे बीरे ल मारे भइया।
विजय संखे गा फूकन लागे भाई, विजय संखे गा फूकन लागे भाई।
दस हजार बीर मारथे, विजय शंख ल भीष्म फूकत हे त अर्जुन भगवान पूछथे कस केशव ये काबर शंख ल फूकत हे। भगवान कहते अर्जुन भीष्म दिन भर तीर मारही तोर दल म ते अलग ये। येकर प्रतिज्ञा हे रोज घर जाये के बेर एक ही बान म दस दस हजार बीर मारही। आज भीष्म के प्रतिज्ञा ह पूरा होगे हे। कौरव दल के विजय होगे अउ हमन ह हार गेन। आज कौरव के विजय होय हे।
रागी- हव।
(अर्जुन के बाण कुरूक्षेत्र के मैदान में जाकर बिलख-बिलख कर सीना चीर रहा है। घोर संग्राम, भीष्म पितामह और महावीर अर्जुन लड़ रहे है। नकुल और कृत वर्मा लड़ रहे है। सकुनी और सहदेव लड़ रहे है। अपने-अपने योग्य देखकर बड़े-बड़े वीर लड़ रहे है। सुबह से शाम होने वाली है। भीम कौरव दल में दोनो हाथ उठाकर काल समान गरजते हुए लड़ रहे है। अर्जुन जैसे ही भीम की ओर नजर करते है भीष्म तुंड से निकालकर एक बाण मारते है और एक ही बाण से दस हजार वीर मार कर विजय शंख फूक देता है।
अर्जुन भगवान से पूछते है केशव ये शंख क्यों फूक रहे है। तो भगवान बताते है अर्जुन भीष्म दिन भर में तुम्हारे कितनों ही वीर मारते हो ये अलग है और घर जाने के समय एक ही बाण से दस हजार वीर मारने का उसने ने प्रण लिया है। आज भीष्म का प्रतिज्ञा पूरा हो गया है कौरव दल हा विजय हो गया और हम हार गये।
रागी- हां जी।)
संझा के बेरा ये कौरव अपन सिविर म जाथे पांडव अपन सिविर म आथे। माता द्रोपती अपन हाथ मे भोजन बनाये हे। सिविर के दरवाजा म खड़े होकर कर के पांचो पति के रसता देखत हे। पांडव कृत कुडल, बसंत भूसन उतारथे अउ भगवान संग म लेके देवी द्रोपती के मंदिर मे भोजन करे बर चलत हे।
अजि पांच कौर नीज श्याम शरीरा, पांचों के गोरा रंग हे भगवान के श्यामला रंग हे। देवी द्रोपती के मंदिर मे भोजन करे बर बइठे हे। मां द्रोपती छै ठो चटाई बिछाये हे। एक तरफ भीमसेन बइठे हे, भीमसेन के सामने ही राजा युधिष्ठिर जी बइठे हे। एक तरफ नकुल महराज बइठे हे नकुल के आगे ही सहदेव बइठे हे। अउ ओकर बीच में एक डहर भगवान बइठे हे अउ येक डहर अर्जुन बइठे हे। भगवान के मुंह ल अर्जुन देखय अउ अर्जुन के मुंह ल भगवान देखय।
रागी- हव।
मंद मंद मुस्कावथे। रागी भइया धन्य हो वो पांडव के भाग ल जेकर घर बइठके भगवान नरायन ह भोजन करत हे अउ जउन ह जगत के महातारी तउन ह भोजन परोसत हे। पांडव भोजन करके उठथे देवी द्रोपती बीड़ा बनाके देथे पान बनाके देथे। भगवान ल द्रोपती पुछत हे भइया आज के लड़ई कइसे होइये। आज के लड़ाई ल कोन हारिस हे अउ कोन जीतिस हे।
रागी- हव जी।
भगवान कथे पांचाली आज कौरव के विजय होय हे बहिनी। कौरव जीते हे द्रोपती अउ हम हार गेहन। राजा धरम कथे केशव मोला अइसे लागथे महाभारत ल हमन नइ जीतन। भगवान कहे काबर। काबर के हमन पहिलिच दिन के युद्ध में हम हार गेन। अउ पहले दिन के ही युद्ध में भीष्म के विजय होगे।
रागी- विजय होगे।
( शाम के समय कौरव अपने शिविर में और पांडव अपने शिविर में आते है। माता द्रोपदी अपने हाथ से भोजन बनाई, शिविर के दरवाजे पर खड़ी होकर पांचो पति की प्रतिक्षा कर रही है। पांडव कृत कुंडल, बसंत भूषण उतार कर देवी द्रोपदी की मंदिर में भोजन करने पहुंचे है।
अजि पांच कौर नीज श्याम शरीरा, पांचों का गोरा रंग और भगवान का श्यामला रंग है। देवी द्रोपदी के मंदिर में भोजन करने बैठे है, मां द्रोपदी छ: चटाई बिछाई है। एक तरफ भीमसेन, भीमसेन के सामने राजा युधिष्ठिर जी बैठे है। एक तरफ नकुल महाराज बैठे है, नकुल के आगे ही सहदेव बैठे है और उनके बीच में एक तरफ भगवान और एक तरफ अर्जुन बैठे है। भगवान का मुंह अर्जुन देखते है और अर्जुन का मुंह भगवान देखते है।
रागी- हां जी।
मंद-मंद मुस्काते हुए कन्हैया। रागी भैया धन्य है पांडव का भाग्य जो भगवान के साथ बैठ कर भोजन कर रहे है। पांडव भोजन करके उठते है और देवी द्रोपदी पान का बीड़ा बनाकर देती है। द्रोपती भगवान से पुछती है भैया आज के लड़ाई में कौन हारे है और कौन जीते है।
रागी- हां जी।
भगवान कहते है पांचाली आज कौरव का विजय हुआ है बहन। कौरव जीत गए और हम हार गये। राजा धर्मराज कहते है केशव मुझे तो ऐसा लगता है शायद हम महाभारत नहीं जीत पायेंगे। क्योकि पहले ही दिन के युद्ध में हम हार गये और पहले ही दिन के युद्ध में भीष्म विजयी हुए।
रागी- विजयी हुए।)
भगवान बोले चिंता मत कर पांडव दल के काली के सेना नायक पांडव दल के राजा बिराट के बड़े बेटा संख ल बना दे। दूसरइया दिन के सेनापित संख ल बना दिये जाथे। राजकुमार संख प्रतिज्ञा करथे भगवान, काली के लड़ई कृष्ण के अजि सामान सारथी पाववं तब छन में कौरव मार गिराववं।
कहे केशव मोला तोर असन सारथी चाहिए। भगवान विचाथे मोर असन सारथी, रागी भइया मोर असन रथ कोन चलाथे तो कहे सातकी नाम के योद्ध हे। साथकी नाम योद्ध ल बोले भइया आज तै लड़बे भिड़बे जान।
रागी- हव जी।
बोले लड़ई नी करना हे। आज सारथी बनके तोला रथ चलाना हे। सातकी राजकुमार संख के रथ चलावथे सेनापति के मुकुट बंधाहे। अउ आगे आगे संख के रथ चलत हे अउ संख के पीछे पीछे।
नंदीघोसे गा अउ चलन लागे भाई जी, नंदीघोसे गा चलन लागे गा।
कौरव दले गा देखन लागे भाई, कौरव एक टक गा देखन लागे।
आगे आगे राजकुमार संख चलत हे पीछे मे अर्जुन के रथ चलत हे। ओकर पीछे सारी सेना। जब कुरूक्षेत्र के मैदान म पहुंचथे त रागी भाई। संख ल जब सेनापति देखथे तव कौरव के दल ल अचरज हो जाथे।
रागी- हव।
(भगवान बोले चिंता मत करो कल की लड़ाई में पांडव दल का सेना नायक राजा विराट का बड़ा बेटा शंख को बना दो। दूसरे दिन का सेनापित शंख को बना दिया जाता है। राजकुमार शंख प्रतिज्ञा करता है कि यदि भगवान जैसे समान रथ चलाने वाला सारथी मिल जाये तो क्षण में ही कौरव का मार गिराऊंगा। भगवान सोचे मेरे जैसा रथ कौन चलाता है तो सातकी नाम का योद्धा है। साथकी को कहते है आज तुम्हे लड़ना नहीं है।
रागी- हां जी।
बोले क्यो नहीं लड़ना है तो कहते है कि आज तुम्हे सारथी बनकर राजकुमार शंख का रथ चलाना है। राजकुमार शंख के सिर पर सेनापति का मुकुट बंधा है आगे-आगे रथ चल रहा है, शंख के पीछे अर्जुन का नंदीघोष रथ। कौरव भी एक टक देखने लगते है। जब कुरूक्षेत्र के मैदान में पहुंचते है रागी भाई तो शंख को सेनापति देखकर कौरव के दल को अचरज हो जाता है।
रागी- हां।)
एक राजकुमार ल सेनापति बनाके भेजे हे। भीष्म पितामह बोले संख ये लड़ाई के मैदान ले लुट जा कहे तोर दाई ददा ल दुख झन धरा। भीष्म कहते है वापिस हो जा। कहा हे भगवान अउ अर्जुन बोले जाव हरि अर्जुन को भेज, संख नाम के कुमार दोनो हाथ जोड़ कर बोला कहे बबा। अजि क्षत्रिय कुल हम जनम हम लिन्हा, राजकुमार हस के काहत हे महराज मै क्षत्रिय हवं। भले लड़ई म मर जहू पर पीठ नइ दिखाववं काबर की भगवान द्वारिकानाथ ह अपन हाथ ले मोर सिर म सेनापति के मुकुट बांधे हे।
रागी- अच्छा।
संख निकाल के फूक देथे रागी भइया मारो मारो आवज होथे। संख और भीष्म पितामह लड़त हे। वो दिन अर्जुन ह कौरव दल के बीच म गेहे अउ चीन चीन के, पहचान पहचान के, खोज खोज के अउ छांट छांट के बड़े बड़े बीर मारन लागे ग भाई, बड़े बड़े बीर गा मारन लागे ग भाई
वहां भागो के आवाज कहान लागे भाई, रागी भागो भागो काहन लागे भाई।
अरे अर्जुन वोला देखन लागे ग भाई, अर्जुन वोला देखन लागे ग भाई।
जेति अर्जुन जाय कौरव के दल काहय अरे भागो। रागी भाई हा हाकार मचगे। देखिस राजा दुर्योधन के अर्जुन कौरव दल के नास करत हे। अर्जुन ल रोके खातिर फेर राजा दुर्योधन ह आथे।
रागी- हव भई।
(एक राजकुमार को सेनापति बनाकर भेजे है। भीष्म पितामह बोले शंख इस लड़ाई के मैदान से लौट जाओ शोक मत दो अपने माता-पिता को। कहां है अर्जुन और भीम भेजो उनको इतना सुन शंख बोले महाराज मैं क्षत्रिय हूं लडा़ई के मैदान में भले ही मैं मर जाऊंगा लेकिन पीठ दिखा कर नहीं लौटूंगा। भगवान द्वारिकानाथ ने स्वयं मेरे सिर पर सेनापति का मुकुट बांधा है।
रागी- अच्छा।
शंख निकाल कर फूक देथे है रागी भैया और फिर मारो-मारो की आवाज कुरूक्षेत्र से आने लगती है। शंख और भीष्म पितामह लड़ रहे है उस दिन अर्जुन कौरव दल के बीच है और चुन चुनकर, पहचान कर, छॉट-छॉट कर मार रहे है। अर्जुन जिस तरफ जाता था कौरव भागो-भागो करते थे। हा हाकार मच गया था। राजा दुर्योधन देखते है अर्जुन कौरव दल का नाश कर रहे तो रोकने कि लिए राजा दुर्योधन आते है।
रागी- हां भई।)
दुर्योधन अउ अर्जुन में युद्ध होवथे भइया रागी। अर्जुन एक महान धनुसधर है। लड़ते लड़ते भीष्म पितामह देखिस की दुर्योधन अउ अर्जुन लड़त हे। रागी मै दस दिन तक दुर्योधन के रक्षा करे के जुमेदारी ले हवं। लड़त लड़त भीष्म पितामह आस पास ल नजर लमावत हे। आस पास ल नजर लमावत हे कुछ ही दूर मे द्रोणाचार्य जी युद्ध करत हे। भीष्म फिर इसारा किये द्रोणाचार्य ल। कहे द्रोण आके तै ये संख ल संभाल अउ मेहा अर्जुन जगा जावत हवं।
रागी- अच्छा।
इसारा ल समझ गये द्रोणाचार्य रागी भइया। जइसे अपन शिकार के उपर म झपट के चील गिद्ध आ जथे वही भांति द्रोणाचार्य संख के आगे पहुंच जथे अउ भीष्म पितामह अर्जुन के आगे पहुंच जथे। द्रोणाचार्य अउ संख म फिर घमासान युद्ध होवथे। निकाल करके संख ऐसे बान मारथे। गुरू द्रोणाचार्य के रथ सारथी मार देथे। द्रोणाचार्य के नेत्र लाल हो गये। द्रोणाचार्य कहे अरे संख कही एक बान म कहि जलाके राख न कर दू तो भरतद्वाज रिसी के पुत्र द्रोणाचार्य कहाना छोड़ दू।
रागी- हव।
गुरू द्रोणाचार्य जी निकाल करके बान अपन धनुस म चघाथे। अउ ब्रम्हात्र निकाल करके।
गुरू द्रोण गा अउ छोड़न लागे भइया जा, गुरू द्रोणे गा बाने छोड़न लागे।
तीनो लोके ग देखन लागे भाई, तीनो लोके गा देखन लागे भाई।
द्रोणाचार्य जब ब्रम्हात्र के प्रयोग करते है तीनो लोक अउ चौदह भुवन कांप जाथे।
रागी- अच्छा।
(दुर्योधन और अर्जुन में युद्ध हो रहा है। अर्जुन एक महान धनुर्धर है। लड़ते-लड़ते भीष्म पितामह देखते है की दुर्योधन और अर्जुन लड़ रहे है। रागी सोचते है कि मैं दस दिन तक दुर्योधन का रक्षा करने का जिम्मेदारी लिया हूं। लड़ते-लड़ते भीष्म पितामह आस-पास नजर दौड़ाते है पास में ही द्रोणाचार्य जी युद्ध कर रहे है। भीष्म इशारे से द्रोणाचार्य को कहते है कि तुम शंख को संभालो मैं अर्जुन के पास जाता हूं।
रागी- अच्छा।
इशारा समझ कर जैसे चील, गिद्ध अपने शिकार पर झपटते है उसी प्रकार द्रोणाचार्य शंख और भीष्म अर्जुन के पास पहुंचते है। द्रोणाचार्य और शंख में फिर घमासान युद्ध होता है। शंख निकाल कर बाण द्रोणाचार्य के सारथी को मार देता है। द्रोणाचार्य के नेत्र लाल हो गये। द्रोणाचार्य कहे अरे शंख एक बान में कहिं जलाकर राख न कर दूं तो भारद्वाज ऋषि का पुत्र द्रोणाचार्य कहलाना छोड़ दूंगा।
रागी- हां जी।
गुरू द्रोणाचार्य जी निकाल करके बाण अपने धनुष में चड़ाते है और गुरू द्रोण जब ब्रह्मास्त्र निकाल कर छोड़ते तो तीनो लोक और चौदह भुवन कांप जाता है।
रागी- अच्छा।)
देवता मन विमान म बइठके महाभारत के लड़ाई देखत राहय रागी। देवता लोक म हा हाकार मचगे। ब्रह्मास्त्र जब प्रकाश करत राजकुमार संख ल जलाये खातिर दउड़त हे ओ समय वो सातकी नाम के जो बीर है सारथी ओ समय सातकी पलट के राजकुमार ल देख के काहत हे संख समय हे ते मोला इजाजत दे मै तोर रथ हरि अर्जुन के पीछू म लेग जथवं। आडर दे, तो संख बोले सातकी मै क्षत्रिय अवं। पर हित के खातिर मै मर जाहू पर लड़ाई भाग के लइ जाववं। सातकी रथ आगे बड़ा। सातकी रथ आगे बड़ाथे पर बान के प्रकाश ल देखिस नही रागी ताहन सातकी अपन मर्जी से रथ जबरदस्ती फेरथे। संख देखिस के रथ वापिस होथे। संख देखिस के सातकी रथ ल लहुटावत हे ता संख हाथ म धुनस ल धरके। अउ हाथ म धुनस ल धरके।
अगा पृथ्वी मे कुवर कुदन लागे भाई, भइया पृथ्वी म कुवर ह कुदन लागे भाई।
हां खड़ खड़ वोहा चलन लागे ग भाई, खड़ खड़ वोहा चलन लागे ग भाई।
(देवता अपने विमान में बैठकर महाभारत की लड़ाई देख रहे थे। देव लोक में भी हा हाकार मच गया। ब्रह्मास्त्र जब प्रकाश करते हुए जा है राजकुमार शंख को जलाने तो उस समय सातकी नाम का सारथी कहता है राजकुमार अभी समय है मुझे आप आज्ञा दो मैं तुम्हारे रथ को हरि के रथ के पीछे खड़ा कर देता हूं। शंख बोले सातकी मैं क्षत्रिय हूं पर हित के लिए मैं मर जाऊंगा पर लड़ाई से भाग कर नहीं जाऊंगा। सातकी आगे बढ़ा रथ। सातकी रथ आगे बड़ाने की कोशिश करता है किन्तु बाण का प्रकाश देखकर रथ लौटा देता है। शंख जब देखता है कि सातकी रथ लौटा रहा है तो स्वयं रथ से हाथ में धनुष लेकर कूद जाता है। और खड़े-खड़े ही जलने लगता है।)
पृथ्वी मे कुद गये संख ह द्रोणाचार्य ब्रह्मास्त्र बान आये अउ आ करके राजकुमार संख ल जला देथे। संख ल जला के बान वापिस द्रोण के तुंड मे समा जथे। ये बान के आवाज ह अर्जुन के कान म परथे भइया रागी। महाबीर अर्जुन ह अतेक कोलाहल काबर होवथे कहिके पांडव के दल न नजर लमाथे। भीष्म समय पाथे एक बान निकाल करके पांडव दल मे दस हजार सैनिक मार के विजय संख फुकव देथे। लगातार दो दिन तक कौरव के विजय होय। बताये हे भइया रागी ओ दिन कौरव के दल ह हांसत जाथे। पांडव दल ह रोवत आवत हे रागी।
रागी- या या।
महारानी सुदेसना सुनिस के आज के लड़ाई में संख ह जूझगे।
रानी सुदेसान बेटा के सोक म व्याकुल हो जथे रागी भइया।
रागी- हव भई।
रानी सुनिस आज संख जुझगे। सुदेसना मस्तक ल पीट के चिल्ला के किहिस संख।
गाना- अरे दस मास जठर राखी, अउ सत्य कहिथव संकर साखी रे
अरे दस मास जठर राखी, अउ सत्य कहिथव संकर साखी रे, सत्य कहिथव संकर साखी रे।
ये कोन मोर दुख ल निवराय हो कउने ह मोर सोक हरय न
अरे बेटा मोर ये गोदी ल सुन्ना कर देस।
रानी रो पड़े संख अरे बेटा लगाथे कलेजवा म पिरा
अरे बेटा लगाथे कलेजवा म पिरा, अरे बेटा लागथे कलेजवा म पिरा।
मां चिल्लाके रो पडि़स। रागी भइया कौरव दल भोजन करके विश्राम करथे। पांडव दल विश्राम करथे अउ होत प्रात:काल फिर दोनो दल ह तइयार होथे।
रागी- अच्छा।
(पृथ्वी में कूद गया शंख द्रोणाचार्य का ब्रह्मास्त्र बाण आकर जला देता है। शंख को जलाकर द्रोण का बाण तुंड में वापस हो जाता है। बाण की आवाज सुनकर अर्जुन देखता है इतना कोलाहल कहा हो रहा है और जैसे ही अर्जुन नजर पांडव की ओर घुमाता है भीष्म समय पाकर एक बाण निकाल कर पांडव के दस हजार वीर मार कर शंख फूक देता है। लगातार दो दिन तक कौरव का विजय हो रहा है। बताये है रागी भैया उस दिन कौरव का दल हॅसता हुआ जा रहा है और पांडव रोते हुए आ रहे है।
रागी- या या।
महारानी सुदेसना जब सुनती है कि उनका बेटा लड़ाई के मैदान में जूझ गया तो रानी व्याकुल हो जाती है।
रागी- हां भई।
सुदेसना मस्तक पीट कर चिल्लाते हुई विलाप करती है।
गाना- अरे दस माह तक कोख में पाली थी, मेरी गोद सुना कर गया बेटा, कौन मेरी इस शोक को हरण करेगा। मां का कलेजा फट गया बेटे की मौत से।
मां चिल्ला कर रो पड़ी। कौरव दल भोजन करके विश्राम करते है। पांडव दल भी रात्रि विश्राम करते है और प्रात:काल फिर दोनो दल तैयार होकर आते है।
रागी- अच्छा।)
तीसरा दिन के लड़ाई मे कुरूक्षेत्र म जाथे। होत बिहनिया ले दिन के बुड़त ले दोनो दल ह लड़थे। संध्या के बेला प्रतिज्ञा के मुताबिक में रागी भाई। निकाल करके एक बान भीष्म पितामह मारथे, पांडव दल मे दस हजार महारथी माराथे। अउ विजय संख फूक करके लहुट जथे। रात भर विश्राम करथे।
रागी- हव भई।
चौथा दिवस के लड़ाई म फेर घोर संग्राम होथे। रथी रथी से, महारथी महारथी से, हाथी वाले हाथी वाले से, घोड़ा वाले घोड़ा वाले संग अउ पैदल वाले पैदल वाले संग। अपन अपन योग्य, अपन अपन लायक। अपन अपन जहुरिया देख के लड़े। कोनो पीछे नइ हटत ये रागी भाई। कौरव अउ पांडव के हित के खातिर सारी सेना मर मिटे बर तइयार हे। बताये हे चौथा दिन के लड़ाई में कौरव के दल म एक भगदंत नाम के बीर आये हे। रागी भइया राजा भगदंत एक भयानक ऊंचा हाथी म बइठ के लड़े बर आये हे। बताये बीर भगदंत योजन एक, एक योजन के उंचा हाथी के उपर म चघे हे। चार कोस ऊंचा म हे।
रागी- हव।
(तीसरे दिन की लड़ाई के लिए कुरूक्षेत्र में आते है। सुबह से शाम तक लड़ते है और संध्या बेला में शर्त के अनुसार एक बाण भीष्म पितामह मारते है जिससे पांडव दल में दस हजार सैनिक वीर गति को प्राप्त हो जाते है। भीष्म विजय संख फूक कर लौट आते है और रात्रि विश्राम करते है।
रागी- हां भई।
चौथा दिवस की लड़ाई में फिर घोर संग्राम होता है। रथी रथी से, महारथी महारथी से, हाथी वाले हाथी वाले से, घोड़ा वाले घोड़ा वाले के साथ और पैदल वाले पैदल वाले के साथ अपने-अपने योग्य देखकर लड़ रहे है। कोई पीछे नहीं हट रहे है कौरव और पांडव के हित के लिए सारी सेना मर मिटने को तैयार है। बताये है चौथा दिन के लड़ाई में कौरव के दल में एक भगदंत नाम का वीर आया है। राजा भगदंत एक भयानक ऊंचा हाथी में बैठकर लड़ाई कर रहा है। भगदंत एक योजन (लंबाई माप) ऊंचा हाथी के ऊपर में बैठा है।
रागी- हां जी।)
रागी भइया जब भगदंत बान मारे तो नीचे तनि म मारय, काबर के ओ चार कोस उपर म हे। अउ पांडव के दल ह जब भगदंत ल मारय त।
अगा उपर कोति बान मारन लागय ग भाई, रागी उपर कोति बान मारन लगाय भाई।
हा मारो मारो लागय भाई, मारो मारो कहान लागे ग भाई।
मारो। रागी भगदंत ह पांडव दल म बीर मारय तेन ह अलग ए। अउ ओ चार कोस के ऊंचा हाथी ह कतकोन बीर ह अपन गोड़ म चपक दय तेन अलग ए। कतको ल सोड़ म लपेटय अउ।
गगनपंथ म फेकन लागे, गगनपंथ फेकन लागे।
मारो मारो गा होवन लागे, मारो मारो गा काहन लागे।
मारो।
चौथा दिन भगदंत नाम के वीर कौरव अउ पांडव के बीच म तहलका मचा देथे।
रागी- हव भई।
रागी भाई ये दृश्य ल देख करके महाबीर अर्जुन एक बान निकाथे अउ निकला करके वो हाथी के मस्तक में मार देथे। हाथी चिघाड़ करके गर्जना करके प्राण तियाग देथे। लेकिन रागी भइया चार कोस के ऊंचा हाथी मर गेहे। लेकिन ओ भगदंत के भुजा म ओ समार्थ हे, वो शक्ति हे चार कोस के हाथी मरगे राहय तेनो ल अपन जंघा म चपक के दबाके खड़ा कर देथे। मरे हुये हाथी भी खड़े हे। अर्जुन देखे अउ देखकरके भगवान ल काहय केशव।
यहा हाथी के मरना होई गा जावय भाई, अर्जुन भगवान ल पुछत हे। हाथी नइ मरिस का।
रागी- हव भई खड़े हे।
(रागी भैया जब भगदंत बाण मारते थे तो नीचे की और और पांडव ऊपर की ओर मारते थे मगदंत चार कोस (दूरी माप) ऊपर है।
मारो-मारो की आवाज आने लगती है। भगदंत पांडव दल के वीर मारते थे वो अलग, उस हाथी में दब करते थे वो अलग। कितनो को सूंड में उठा उठाकर ऊपर फेक देता था। चौथा दिन भगदंत नाम का वीर कौरव और पांडव के बीच तहलका मचा देता है।
रागी- हां भई।
रागी भाई इस दृश्य को देख करके महावीर अर्जुन एक बान निकालते है और हाथी के मस्तक पर मार देते है। हाथी चिघाड़ कर गरजना करता है और प्राण त्याग देता है। किन्तु भगदंत की भुजाओं में इतना सामर्थ था कि भयानक हाथी को जांघ में दबाकर खड़ा था। हाथी मर चुका है फिर भी खड़ा है। अर्जुन देखकर कहते है केशव मरा है की जिंदा है।
रागी- हां भई खड़ा है।)
भगवान कथे। तोला भोरहा होवथे।
रागी- हव देखतो बने।
भइया हाथी के मरना होय गा जाये भाई, भगवाने काहन लागे ग भाई।
भगवाने काहन लागे ग भाई।
भगवान कहते है अर्जुन हाथी मर गेहे। अर्जुन दो मत के बात नइये। हाथी म मर गेहे फेर ओ हाथी के उपर सवारी कइया ह अतेक ताकतवर हे, मरे हुये हाथी ल जंघा म दबा कर खड़ा करके रख देहे। ये बात सुने तो अर्जुन के नेत्र फेर लाल हो जाथे है। फिर से तुंड पर बान निकला करके अर्जुन मारिस भगदंत के छाति में। रागी जब भगदंत ह अपन प्राण ल तियागीस तब हाथी समेत भगदंत कुरूक्षेत्र म गिरिस। चार कोस के हाथी जब कुरूक्षेत्र म गिरथे नहीं रागी।
रागी- हव भई।
तब जतका दुरिहा ले हाथी गिराथे ओतका दुरिहा ले फिर सेना मन ओकर चपेट म आथे।
रागी- हव भाई।
संध्या के बेला तक दूनो मे युद्ध होथे। अउ चौथा दिन के लड़ाई मे पितामह भीष्म दस हजार बीर मारथे। देवी द्रोपती भगवान पुछत हे कोन जीते हे। त भगवान ह कथे बहिनी कौरव मन जीते हे।
रागी- हव।
(भगवान कहते है तुम्हे धोखा हो रहा है।
रागी- हां ठीक से देखो।
भगवान कहते है हाथी मर चुका है अर्जुन कोई दो मत नहीं है। लेकिन उसके उपर का सवारी इतना ताकतवर है कि मरे हुये हाथी को जांघ में दबाकर खड़ा कर रखा है। यह सुनकर अर्जुन क्रोध से लाल होकर निकालता है तुंड से बाण और भगदंत की सीने में मार देता है। भगदंत मरा तब जाकर हाथी गिरता है। जब चार कोस हाथी गिरता है तब।
रागी- हां भई।
जितना दूर हाथी गिरता है उतना दूर तक का सेना हाथी की चपेट में आ जाता है।
रागी- हां भाई।
संध्या बेला तक दोनो दल युद्ध करते है और चौथा दिन के लड़ाई में फिर पितामह भीष्म दस हजार वीर मार कर चले जाते है। देवी द्रोपदी भगवान पुछती है कौन जीते है। तो भगवान कहते है बहन आज कौरव जीते है।
रागी- हां जी।)
ऐसे करते करते पांच दिन तक लड़ाई होथे पांच दिन तक भीष्म के विजय होथे। पांचवा दिन के लड़ाई ले आथे त राजा धरमराज भगवान काहत हे केशव, ये लड़ाई ल हम नइ जितबो तइसे लागत हे।
रागी- हव भर्इ।
राजा युधिष्ठिर कथे ये महाभारत ल हम नइ जितन तइसे लागथे। काबर अरे पांच दिवस हम करेउ लड़ाई, आज पांच दिन होगे लड़त। अउ पांच दिन म बबा भीसम कोन जनी कतका बीर मारथे तेन अलग ए। घर जाये के बेरा दस दस हजार महारथी ल मारके जाथे। माता द्रोपती बोलो प्राण नाथ चिंता मत कर सब दिन भगवान तोर रक्षा करिस हे आजो रक्षा करही। द्रोपती दोनो हाथ जोड़ करके भगवान बाके बिहारी के सरन म गिर जथे। येती राजा दुर्योधन भीष्म ल काहत हे बबा। अरे पांच दिवस तुम करेव लड़ाई, अउ पांडव कुशल गहवे निज धामहि। दुर्योधन कहते है बबा।
रागी-हव।
पांच दिन लड़ डरे पांडव कुशलपूर्वक अपन घर चल देथे। बोले अइसे लगथे ये महाभारत ल हमन नइ जीतबो का। भीष्म कहे दूर्योधन पांच के दिन के लड़ाई संपन्न होय हे। अभी पांच दिन के लड़ाई अउ बांचे हे।
रागी- हव भाई।
(ऐसा करते-करते पांच दिन तक लड़ाई संपन्न हो जाता है पांच दिन तक भीष्म विजयी होता है। पांचवे दिन की लड़ाई से आकर राजा धर्मराज भगवान से कहते है केशव, ये लड़ाई हम जीतेंगे या नहीं शंका है।
रागी- हां भर्इ।
राजा युधिष्ठिर कहते है हम नहीं जीत पायेंगे ऐसा लग रहा है। क्योकि पांच दिन हम लड़ चुके है और एक भी नहीं जीते है। भीष्म पता नहीं दिनभर में कितना वीर मारते है वो अलग है और हर दिन शाम को दस हजार वीर मार रहे है। द्रोपदी कहती है प्राणनाथ चिंता मत करो भगवान रक्षा कर रहे है आगे भी रक्षा करेंगे। इधर राजा दुर्योधन भीष्म से कहते है पितामह पांच दिन से तुम लड़ रहे हो अब तक पांडव कुशल घर लौट रहे है।
रागी-हां जी।
पांच दिन की लड़ाई लड़ लिए है और पांडव कुशलता पूर्वक अपना घर चले जा रहे है। ऐसा लगता है हम ये महाभारत नहीं जीत पायेंगे। भीष्म कहते है अभी पांच दिन की लड़़ाई हुई है पांच दिन और बाकी है।
रागी- हां भाई।)
क्योकि मै दस दिन महाभारत युद्ध करहूं। काली के लड़ई मै ऐसे अदभूत लड़हू जउन ला इतिहास ह याद करही। बोले जउन ल इतिहास याद करही। बोले कैसे, तो काली एक ऐसे सस्त्र के प्रहार करिहवं पांडव के दल में। कल के लड़ाई में मै भगवान ल हाथ म अस्त्र नइ धरावं तो गंगा के बेटा कहना कहना छोड़ दवं।
रागी भाई।
रागी-हव।
कौरव अउ पांडव रातभर विश्राम कराथे अउ होत प्रात:काल फिर दोनो दल तइयार होथे। भगवान बांके बिहारी जब अर्जुन के रथ ल चलाथे तब महाबीर अर्जुन ह काहत हे द्वारिकानाथ।
गांव- पांव पैजनिय अउ कमर करधनिया हो गले मे मोहन माला हो श्याम सुदंर के।
गले मे मोहन माला श्याम सुंदर के।
पांव पैजनिय अउ कमर करधनिया हो गले मे मोहन माला हो श्याम सुदंर के,
गले मे मोहन माला हो श्याम सुंदर के।
जय यदुनंदन हो मुनी जग बंदन, गले मे मोहन माला हो श्याम सुंदर के।
हा गले मे मोहन माला हो श्याम सुंदर के।
जय जय जय जय यदं नंदल के हो गले मे मोहन माला श्याम सुंदर जी
पांव पैजनिय अउ कमर करधनिया हो गले मे मोहन माला हो श्याम सुदंर के।
गले मे मोहन माला हो श्याम सुदंर के।
पांव पैजनिय अउ कमर करधनिया हो गले मे मोहन माला हो श्याम सुदंर के।
गले मे मोहन माला हो श्याम सुदंर के।
पांव पैजनिय अउ कमर करधनिया हो गले मे मोहन माला हो श्याम सुदंर के।
दोनो ही दल तइयार होते है। दोनो दल तइयार हो करके कुरूक्षेत्र के मैदान म आवत हे। नाना प्रकार जुझाउ बाबा बाजत हे।
रागी-अच्छा।
रागी भइया निकाल करके दोनो दल अपन अपन संख ल फूकत हे। भीष्म पितामह और अर्जुन दोनो एक दूसर के सामने आकर के घमासान युद्ध करत हे। नकुल अउ कृत वर्मा लड़त हे सकुनी अउ सहदेव लड़त हे। भीमसेन अउ दुसासन लड़त हे। कौरव अउ पांडव के दल मे मारो अउ मारो के आवाज आवत हे।
रागी-हव।
(क्योकि मैं दस दिन तक महाभारत का युद्ध करूंगा। कल की लड़ाई मैं ऐसा अद्भूत लड़ूंगा की इतिहास याद रखेगा। कैसे, तो बोले कल पांडवों पर ऐसा अस्त्र का प्रहार करने वाला हूं जिससे भगवान को अस्त्र अपने हाथ में न लेना पड़े तो गंगा का बेटा कहलाना छोड़ दूंगा रागी भाई।
रागी-हां।
कौरव और पांडव रातभर विश्राम करते है और प्रात:काल फिर से दोनो दल तैयार होते है। भगवान बांके बिहारी जब अर्जुन का रथ चला रहे तब महावीर अर्जुन कहता है द्वारिकानाथ।
गांव- पॉव में पैजन, कमर में करधन और गले में मोहन माला हो श्याम सुंदर
गले में मोहन माला श्याम सुंदर के।
पॉव में पैजन, कमर में करधन और गले में मोहन माला हो श्याम सुंदर
गले में मोहन माला श्याम सुंदर के।
जय यदुनंदन हो मुनि जग बंदन, गले में मोहन माला हो श्याम सुंदर के।
हां गले में मोहन माला हो श्याम सुंदर के।
दोनो दल तैयार हो करके कुरूक्षेत्र के मैदान में आते है। नाना प्रकार का जुझाऊ बाबा बज रहा है।
रागी-अच्छा।
रागी भैया दोनो दल अपना-अपना शंख फूकते है। भीष्म पितामह और अर्जुन दोनो एक दूसरे के सामने आकर घमासान युद्ध करते है। नकुल और कृत वर्मा लड़ रहे है, सकुनी और सहदेव लड़ते है। भीमसेन और दुशासन लड़ रहे है। कौरव और पांडव दल से मारो-मारो की आवाज आने लगती है।
रागी- हां जी।)
रागी एक दूसर के हित के खातिर सारी सेना मर मिटे बर तइयार हे। काबर के ओ सेना जानत रिहिसे। अरे पर हित सही धरम नहीं भाई, अउ पर पीड़ा सही अधमाई। पर के हित के खातिर सेना मन मर मिटे बर तइयार हे। पर पीछे पांव नइ देते। लड़ते लड़ते आखिर म गंगासेन भीष्म निकालिस, अउ तुंड से निकाल करके। नारायण नाम के बान खिजथे अपन तुंड से। नारायण नाम के बान निकाल करके भीष्म धनुस मे जोड़ अउ जोड़ करके मंत्र पढ़के छोड़थे। नारायण बान काल के समान दउड़ते है पांडव की दल की ओर। अर्जुन के नजर परगे बान ल देख करके अर्जुन विचार करथे भीष्म का बान छोड़े हे। बड़े बड़े बान छोड़त हे अर्जुन फेर नारायण बान नइ कटत ए रागी।
रागी- हव भई।
नारायण नाम के बान अर्जुन के ओर दौड़ते है। जब महाबीर अर्जुन देखे के नारायण बान आथे पांडव दल नाश होथे बचाव बचाव के आवाज आथे। भगवान बाके बिहारी भाव के भूखा हे रागी।
रागी- हव भई।
(रागी एक दूसरे के हित के लिए सारी सेना मर मिटने को तैयार है। क्योकि सैनिक जानते है पर हित के समान धर्म नहीं और पर पीड़ा सही अधमाई। पर हित के लिए मर मिटेंगे पर पीछे नहीं हटेंगे। लड़ते-लड़ते अंत में गंगापुत्र भीष्म तुंड से निकालकर नारायण नाम का बाण छोड़ देते है। काल के समान नारायण बाण पांडव की ओर दौड़ने लगी। अर्जुन की नजर भीष्म के बाण पर पड़ता अर्जुन भी बाण छोड़ता है किन्तु भीष्म के बाण को काट नहीं सका।
रागी- हां भई।
नारायण नाम का बाण अर्जुन की ओर दौड़ता है जब महावीर अर्जुन की ओर बाण आने लगे तो पांडव दल से बचाव-बचाव की आवाज आने लगी। भगवान बांके बिहारी तो भाव के भूखे है।
रागी- हां भई।)
भक्त वस में फिरत भगवाना, भगवान बाके बिहारी देखिस के भीष्म के बान द्वारा पांडव दल के नाश होवथे। आखिर म भगवान रथ चलाये बर रथ बइठे रइथे तेन ह रथ ले कुद जथे। अउ पृथ्वी म उतर के भगवान ह।
अगा उंगली म चक्र घुमावन लागे भाई, येती नारायण बान आवथे। अउ भगवान नारायण देखिस।
वोहा उंगली म चक्र घुमावन लागे भाई,
हा भगवाने काहन लागे ग भाई, हा भगवाने काहन लागे ग भाई।
उंगली मे चक्र घुमावाथे। जब कुरूक्षेत्र मे भीष्म की ओर चक्र घुमाते हुये दउड़त हे हवा पितांबर उड़त हे। पसीना के बुद झिलमिलावथे भगवान के चेहरा में। भीष्म पितामह देखिस। भगवान ह अपन प्रतिज्ञा ल तोड़ के आज मोर प्रतिज्ञा ल पूरा कर दिस। आज भगवान हाथ म अस्त्र लेके दउड़त हे।
रागी-हव भई।
भीष्म पितामह रथ के उपर ले उतरगे दोनो हाथ जोड़ दिस। और दोनो हाथ जोड़ करके भीष्म पितामह भगवान ल काहत हे केशव।
अजि जय मधुसुदन कुंज बिहारी, तब जय जय गोबरधन धारी।
भीष्म पितामह नाना प्रकार के स्तुति करत हे। द्वारिकानाथ तै धन्य हस जोन अपन प्रतिज्ञा ल तोड़ के मोर प्रतिज्ञा ल पूरा कर देस। रागी भइया नारायण बान जो चले आवत वो नारायण बान ल भगवान अपन छाती म छोकत हे। नारायण जा करके भगवान के छाती म लगथे। तो महाबीर अर्जुन नंदीघोस रथ ल उतरथे अउ उतर करके दउड़त जा करके।
हाथे ल धरन लागे गा भाई, हाथे ल धरन लागे ग भाई
ओला बीरे अर्जुन ह काहन लागे भाई, भइया वीरे अर्जुन ह काहन लागे ग भाई
हा भगवाने पुछन लागे ग भाई, भगवाने पुछन लागे ग भाई।
अर्जुन दउड़ के जाथे, भगवान के ल हाथ धरथे, तिरत लान के रथ म बइठारथे। अउ बइठार के काहय तै बइहा गे हावस का।
रागी-हव भई।
(भगवान बांके बिहारी देखते है कि भीष्म का बाण पांडव का नाश कर रहा है तो अंत में भगवान रथ से कूद कर ऊंगली में चक्र घुमाने लगते है, चक्र घुमाते हुए भगवान जब कुरूक्षेत्र के मैदान में भीष्म की ओर दौड़ते है तो हवा में भगवान का पितांबर उड़ने लगता है। पसीने की बुंद झिलमिलाता हुआ चेहरे पर। भीष्म पितामह देखते है कि आज भगवान अपनी प्रतिज्ञा तोड़ कर मेरी प्रतिज्ञा पूरा कर दिये। आज अस्त्र लेकर दौड़े है।
रागी-हां भई।
भीष्म पितामह रथ के ऊपर से उतरकर दोनो हाथ जोड़ दिए और भगवान से कहते है।
गाना- अजि जय मधुसुदन कुंज बिहारी, तब जय जय गोबरधन धारी।
भीष्म पितामह नाना प्रकार से स्तुति कर रहे है। द्वारिकानाथ तुम धन्य हो जो अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर मेरी प्रतिज्ञा पूरी किये। रागी भैया जो नारायण बाण आ रहा था भगवान उसे अपने सीने में ले लेते है। नारायाण बाण जाकर भगवान के छाती में लग जाता है। इतने में महावीर अर्जुन नंदीघोष से उतर कर भगवान का हाथ पकड़ लाते है और भगवान से पूछते है ये क्या कर रहे थे, पागल हो गये हो क्या।
रागी-हां भई।)
अर्जुन कथे प्रभु तै प्रतिज्ञा करे हस। कि महाभारत के लड़ाई म हाथ अस्त्र नइ धरव। अउ आज तै बबा ल मारे बर उंगली म चक्र घुमावत दउड़ हावस। रागी भइया हरि अर्जुन वापिस रथ में आ करके बइठथे। घोर संग्रम होथे संध्या के बेला प्रतिज्ञा के मुताबिक भीष्म निकाल करके बान छोड़थे, फिर से पांडव के दल के दस हजार महारथी मारथे। संध्या के बेला जब सिविर मे वापिस जाथे पांडव। मां जगत जननी पांडव समेत भगवान भोजन कराये हे। रोज के द्रोपती के आदत राहय। पांडव ल भगवान ल भोजन खिला लय। बिड़ा बनाके दय, जब ओमन पान खावत बइठय ताहन अपन पति ल पुछय।
रागी- हव भई।
आज के लड़ई कइसे होइसे, आज कोन काकर संग लड़ीसे। कोन ह मरिसे अउ कोन ह जी हे। रानी द्रोपती भगवान ल पुछथे भइया आज के लड़ई म कोन जीतिसे। काकर विजय होहे केशव। भगवान कथे बहिनी आज हमन ह हार गेहन। भगवान काहत हे आज हमन हार गेहन द्रोपती। आजो भीष्म के विजय होय हे। ओतका ल सुनिस अर्जुन कथे द्रोपती आज तो ये कुरूक्षेत्र के मैदान म मोर ये अपमान कर देहे। रानी द्रोपती सुनिस हे अपमान कर देहे।
रागी- हव भई।
(अर्जुन कहते है प्रभु आपने प्रण किया है कि महाभारत की लड़ाई में अस्त्र-शस्त्र नहीं उठायेंगे फिर आज कैसे पितामह के लिए चक्र घुमाते दौड़ पड़े। रागी भैया अर्जुन भगवान को वापस रथ में बिठाते है और फिर घोर संग्राम होता है। संध्या बेला में फिर प्रतिज्ञा के अनुसार भीष्म एक ही बाण से दस हजार वीर मारके अपने शिविर में लौट आते है। मां जगत जननी पांडव सहित भगवान को भोजन कराती है। रोज का द्रोपदी की आदत है पांडव और भगवान को भोजन कराने के बाद पान का बीड़ा बनाकर देती और लड़ई के बारे में पुछती है।
रागी- हां भई।
आज की लड़ाई में क्या हुआ कौन किसके साथ लड़ा, कौन हारा और कौन जीता है। भगवान कहते है बहन आज हम लोग हार गये है। आज भी भीष्म का विजय हुआ है। इतना सुनकर अर्जुन कहते है द्रोपदी आज इसने कुरूक्षेत्र के मैदान में मेरा अपमान करा दिए। रानी द्रोपदी कहती है अपमान।
रागी- हां भई।)
कहे कइसे। तो कहे आज ये हाथ म चक्र लेके भीष्म ल मारे बर दउड़त रिहिसे। से बात सुनके द्रोपती काहत हे प्राणनाथ येमा मान अउ अपमान के का बात हे। भक्त के हित के खातिर भगवान के जनम होय हे रागी। वो तो अपन भक्त के प्रतिज्ञा ल पूरा करे खातिर भगवान ह दउड़े हे।
गाना- कथा राम के सुनइया कांटा झन गड़य ग तुहर पांव म।
कथा राम के सुनइया कांटा झन गड़य ग तुहर पांव म।
राम कहानी अमरित बानी, राम कहानी अमरित बानी अउ कथा के गावं म।
कथा राम के सुनइया कांटा झन गड़य ग तुहर पांव म।
इही कथा ल भोलेनाथ ह पारबती ल सुनाइसे, पारबती ल सुनाइसे, पारबती ल सुनाइसे।
इही कथा ल व्यासदेव ह गजानंद ल बताइसे, गजानंद ल बताइसे, गजानंद ल बताइसे।
राम कहानी अमरित बानी, राम कहानी
राम कहानी अमरित बानी, राम कहानी अमरित बानी अउ कथा के गावं म
कथा राम के सुनइया कांटा झन गड़य ग तुहर पांव म।
(कैसा अपमान। भगवान आज हाथ में चक्र लेकर भीष्म को मारने दौड़े थे। इतना सुनकर द्रोपदी कहती है प्राणनाथ इसमें अपमान कैसा भक्त के हित के लिए ही तो भगवान का जन्म हुआ है। वे तो अपने भक्त की प्रतिज्ञा पूरी कराने दौड़ रहे थे।
गाना- रामकथा सुनने वालों के पॉव में कांटा न चुभे।
राम कहानी अमृतवाणी और कथा के गांव में।
रामकथा सुनने वालों के पॉव में कांटा न चुभे।
इसी कथा को भोलेनाथ मां पार्वती को सुनाये थे।
इसी कथा को व्यासदेव जी गजानंद को बताये थे।
राम कहानी अमृतवाणी और कथा के गांव में।
रामकथा सुनने वालों के पॉव में कांटा न चुभे।)
रात भर विश्राम करथे। सातवां दिन के युद्ध बर दोनो दल जाथे। सातवां दिन के लड़ाई में भी कौरव अउ पांडव म घमासान युद्ध होथे। और सातवां दिन के लड़ाई मे भी प्रतिज्ञा के मुताबिक गंगा के बेटा भीष्म म एक बान म पांडव के दल में दस हजार महारथी मारथे।
रागी- हव भई।
रागी भाई जब सातवां दिन के लड़ाई सिराथे। फिर द्रोपती किथे भइया कोन जीतिसे। भगवान कहिस बहिनी आज भी कौरव के विजय होय हे। भगवान पुछथे भइया सहदेव तै सबला जानथस। कल आठवा दिन के युद्ध हे काली भीष्म ह कोन प्रकार के युद्ध करही। तब सहदेव महराज बतावथे, द्वारिकानाथ काली कुरूक्षेत्र के मैदान में पांडव के अतिम दिवस के लड़ाई होही। काली आठवा दिन के लड़ाई ए अउ काली के लडाई में पांडव के अंतिम दिन हे। काली पांडव के नाश हो जाही। भीष्म पितामह पांडव ल मार दिही। ये बात ल सुनिस ताहन भगवान हांस दिस रागी। सहदेव ल पुछे कइसे। तो सहदेव बताव हावय, केशव काली आठवा दिन मे लड़ाई दादा भीष्म एक महाकाल नाम के बान रखे हे। ओ महाकाल बान ल काली पांडव ल मारे बर छोड़ही।
रागी- जय हो।
(रात भर विश्राम करते है। सातवां दिन के युद्ध के लिए दोनो दल आते है, फिर कौरव और पांडव के बीच घमासान युद्ध होता है। सातवां दिन की लड़ाई में भी भीष्म प्रतिज्ञा के अनुसार एक बाण से दस हजार वीर मार देते है।
रागी- हां भई।
रागी भाई जब सातवां दिन का युद्ध संपन्न होता है तब फिर द्रोपदी भगवान से पुछती है आज कौन जीते है। भगवान कहते है बहन आज भी कौरव का विजय हुआ है। भगवान सहदेव से पुछते है सहदेव तुम तो सब जानते हो बताओं तो कल भीष्म किस प्रकार युद्ध करेंगे। सहदेव बताते है कि कल आठवे दिन की लड़ाई पांडव के लिए अंतिम दिन की लड़ाई है। कल पांडव का नाश हो जायेगा। भीष्म पितामह पांडव को मार देंगे। भगवान सहदेव से पुछते है कैसे तो सहदेव बताता है कि भीष्म एक महाकाल नाम का बाण रखे है जिसे कल छोड़ने वाले है।
रागी- जय हो।)
और कल युद्ध के मैदान में पांडव के अंत हो जाही, भगवान सुनिस कहे ऐसा। भगवान काहत हे अर्जुन समय आ गेहे बोले जाव अउ राजा दुर्योधन से कुछ मांग लो। याद दिलाथे भगवान ह जब तुमन तेरह साल बनवास गे रेहेव, दूर्योधन तुमन मारत गे रिहिसे। चित्रसेन बांद के लेगत रिहिसे ओला बंधन से मुक्त करे रेहे। त राजा दूर्योधन किहिस अर्जुन मांग। वो दिन केहे भइया मोर तिर सब चीज हे कोई चीज के जरूरत नइये पर कोनो दिन कोनो समय कोई चीज के जरूरत परही तव आहू अउ आके मांग के लगहूं। वोलो अर्जुन धरोहर के रूप म आज तक दूर्योधन जगा कुछ नइ मांगे हस। आज समय आगे।
रागी- हव।
बोल जाव अउ जाके मांग लो दूर्योधन से।
रागी- हव भई।
अर्जुन पुछे कहे का, तो भगवान कथे अर्जुन जा अउ जा करके राजा दूर्योधन के सर के मुकुट मांग। अउ दूर्योधन के मकुट बांध करके जा अउ भीष्म ले छल करके ओकर महाकाल बान ल मांग के ले आ। रतिहा के बेरा ए अर्जुन कौरव के सिविर मे पहुंचत हे। लगे हे कौरव के समाज।
रागी- हव भई।
(पांडव का अंत सुनकर भगवान कहते है ऐसा, तो अर्जुन अब समय आ गया जाओ और राजा दुर्योधन से कुछ मांग लो। भगवान याद दिलाते है कि जब तुम तेरह वर्ष का वनवास जा रहे तब दुर्योधन मारने आया था जिसे चित्रसेन बंधी बना कर ले जा रहा था उस समय तुमने बंधन से मुक्त कराया था। तब राजा दुर्योधन ने कहा था कि अर्जुन मांग लो क्या चाहिए तुम्हे। उस दिन तुमने कहा था मेरे पास सब है और क्या मांगू, पर जिस दिन जरूरत पड़ी मै आकर मांग लूंगा। अर्जुन आज समय आ गया है।
रागी- हां।
बोल जाओ और जाकर मांग लो दुर्योधन से।
रागी- हां भई।
अर्जुन पुछते है क्या मांगना है तब भगवान कहते है राजा दुर्योधन से उनके सिर का मुकुट मांगना। उसके बाद दुर्योधन का मुकुट बांधे भीष्म के पास जाकर छल से महाकाल बाण मांग लेना। रात्रि के समय अर्जुन कौरव के शिविर में पहुंचते है। सभा में है कौरव।
रागी- हां भई।)
बैठे है दुर्योधन आसन मे। दरवाजा में द्वारपाल खड़े हे। अर्जुन द्वारपाल ल जाके काहत हे भइया द्वारपाल जाके के भइया ल बतादे, दुर्योधन ल कइदे अर्जुन आहे। द्वारपाल जाके कथे महराज अर्जुन आए हे। अगर कहू आप इजाजत देहू तो आके मिलना चाहत हे। राजा दुर्योधन बोले द्वारपाल आवन दे। महाबीर अर्जुन जाथे राजा दोनो ठन भुजा ल पसार देथे। दुर्योधन भुजा पसार के काहत हे अर्जुन आव। अर्जुन दंडवत प्रणाम करथे राजा दुर्योधान के। सिहासन बइठार के दुर्योधन पुछत हे भइया अर्जुन अरे सातवां दिन के लड़ाई ले आये हस तैहा अउ विश्राम करे ल छोड़ देस अउ तै मोर सिविर म कइसे आये हस।
रागी- हव भई।
का सेवा करव भइया। अर्जुन कहे मैं मन म एक आस लेके आए हवं। कहे तै क्षत्रिय अस अउ अपन तै जो वादा करे हस वोला जरूर पूरा करबे। बन पर्व म हम जब बारा बरस बनवास गे रेहेन भइया वो दिन तै मारे ल गे रेहे। तोला चित्रसेन बांध के लेगत रिहिसे। मै तोला बंधन से मुक्त करे रेहेव। सुरता हे।
रागी- हव भई बने सुरता कर।
(दुर्योधन आसन में बैठे है। दरवाजे पर द्वारपाल खड़े है। अर्जुन द्वारपाल से जाकर कहते है भैया द्वारपाल जाकर दुर्योधन से कह दो कि अर्जुन आया है। द्वारपाल जाकर कहते है महाराज अर्जुन आए है, यदि आज्ञा होतो मिलना चाहते है। राजा दुर्योधन बोले आने दो। अर्जुन पहुंचते है तो बांह फैलाकर दुर्योधन कहता है आओ अर्जुन। अर्जुन दंडवत प्रणाम करता है। सिहासन में बिठाकर दुर्योधन पुछते है अर्जुन सातवे दिन की लड़ाई से थके हो शिविर में आराम करना छोड़कर यहां कैसे आए।
रागी- हां भई।
क्या सेवा करू भैया। अर्जुन कहते है मन में एक आशा लेकर आया हूं। यदि तुम क्षत्रिय हो तो अपना वादा पूरा करो। वन पर्व में जब हम वनवास गये थे तब चित्रसेन ने तुम्हे बंधक बना लिया था और मैने मुक्त कराया था याद है।
रागी- हां भाई ठीक से याद करो।)
दुर्योधन बोले हव सुरता हे। अर्जुन कहे ओ दिन मोला कुछ देनो चाहत रेहेव। दुर्योधन बोले हा भइया देनो चाहत रेहेव। आज तक धरोहर के स्वरूप म माड़े हे वोहा। अर्जुन कथे आज वो चीज के मोला जरूरत पर गेहे।
रागी-हव।
अउ मै मन मे आसरा लेके आये हवं जो मै मांगहू वो चीज मोला देबे। राजा दुर्योधन कहते है मांग। अर्जुन कथे देबे। दुर्योधन कथे हा मांग। अर्जुन के कथे ए समय तोर सिर मे जो मुकुट बंधाये हे वोला मोर सिर म बांध दे। तोर सिर के मुकुट मोर सिर म बांध। दुर्योधन निकालथे अपन सिर के मुकुट अउ अर्जुन के सिर म बांधत हे। सबलसिंह जी बजाये हे रागी भाई अर्जुन अउ ये दुर्योधन के स्परूप ह एक रिहिसे। बताथे जब अर्जुन दुर्योधन के मुकुट ल बांधिस नही तब अर्जुन राजा दुर्योधन सही दिखत राहय। रतिहा के बेरा अर्जुन पहुंचगे भीष्म के सिविर में। दुवारी मे द्वारपाल खड़े हे तेन ल काहत हे। द्वारपाल जाके बबा भीष्म म बतादे राजा दुर्योधन ह आये हे।
रागी- जय हो।
द्वारपाल जाके भीष्म ल काहत हे बबा राजा दुर्योधन जी आये हे अउ दरवाजा म खड़े हे। गंगास्वन कहे आवन दे। अर्जुन इजाजत पाके सिविर मे जाथे, जाके प्रणाम करथे। भीष्म बिठाथे अउ बिठाके अर्जुन ल पुछत हे कइसे आये हस। कइसे आये हस दुर्योधन। काबर अर्जुन ह दुर्योधन के मकुट न बांधे हे अउ दूर्योधन जैसे दिखत हे। भीष्म कथे कइसे आये हस।
रागी- जय हो।
(दुर्योधन कहते है याद है। अर्जुन कहते है उस समय आप मुझे कुछ देना चाहते थे। दुर्योधन कहते है हां आज भी वह धरोहर के रूप में है। अर्जुन कहते है आज मुझे जरूरत है।
रागी-हां।
मैं मन में आशा लेकर आया हूं कि जो मांगू वो मिलेगा। राजा दुर्योधन कहते है मांगों मिलेगा। अर्जुन कहते है इस समय जो आपके सिर पर मुकुट है उसे मेरे सिर पर बांध दीजिए। दुर्योधन अपने सिर मुकुट निकालकर अर्जुन के सिर पर बांध देता है। सबलसिंह जी बताए है रागी भैया की अर्जुन और दुर्योधन का रूप एक ही था। बताते है अर्जुन दुर्योधन का मुकुट बांधकर हूबहू दुर्योधन लग रहा था। रात के समय ही अर्जुन भीष्म के शिविर में पहुंच जाते है। दरवाजे पर द्वारपाल खड़ा है जिसे कहते है जाओ और जाकर पितामह से कहना दुर्योधन आया है।
रागी- जय हो।
द्वारपाल जाकर बताते है कि राजा दुर्योधन आए है। गंगापुत्र कहते है आने दो। इजाजत पाकर अर्जुन शिशिर में जाते है। भीष्म बिठाकर पुछते है कैसे आये हो दुर्योधन। अर्जुन को भीष्म भी दुर्योधन ही समझ रहे है। पुछते है कैसे आना हुआ।
रागी- जय हो।)
अर्जुन कथे बबा काली आठवा दिन के लड़ाई ये। काली एक महाकाल नाम के एक बान रहे हस जेन ल तै लड़ाई के मैदान म छोड़बे। न जाने कल तै ओ बान ल छोड़बे या न छोड़बे। हो सकथे लड़ाई के मैदान म जाके तै मोह वस ओ बान ल प्रहार नइ करबे। ओ बान ल तै मोला देदे बबा मै अपन हाथ मे स्वयं पांडव के वध करना चाहत हवं। महाकाल बान मोला मोला दे मै पांडव ल मारहू। रागी।
रागी- हव भाई।
भीष्म पितामह नइ जान सकीय ये अर्जुन ए अउ महाकाल ल निकाल के अर्जुन ल देवन लागय ग भाई, ये अर्जुन ल देवन लागय ग भाई।
भइया बीरे अर्जुन तब आवन लागय ग भाई, भइया बीरे अर्जुन तब चलन लागय ग भाई।
हा भगवाने काहन लागय भाई, हा भगवाने काहन लागे ग भाई।
रागी भइया। हरि अर्जुन नर नारायण भगवान महाकाल बान ल बाबा भीष्म से छन करके लाथे। पांडव के दल म खुसी के लहर छागे। पांडव दल गदगद हो जाते है अरे। महाकाल बान ल ले आनेन। हव बिहनिया कौरव दल म बता चलगे। कि महाबीर अर्जुन छल करके महाकाल बान ल मांग के लेगे।
रागी- अच्छा।
(अर्जुन कहते पितामह कल आठवां दिन की लड़ाई है और कल आप एक महाकाल नाम का बाण छोड़ने वाले है। न जाने वो बाण आप छोड़ पायेंगे या नहीं। हो सकता है लडा़ई के मैदान में जाने के बाद मोह वस प्रहार न कर पाये तो। वह बाण आप मुझे दे दीजिए मैं अपने हाथों से पांडव का वध करना चाहता हूं। महाकाल बाण मुझे दीजिए मैं पांडव को मारूंगा।
रागी- हां भाई।
भीष्म पितामह जान नहीं पाये कि जो महाकाल बाण मांगने आया है वह दुर्योधन नहीं बल्कि अर्जुन है। अर्जुन को महाकाल बाण दे देते है। जिसे लेकर अर्जुन अपने शिविर में लौट आता है।
रागी भैया हरि अर्जुन नर नारायण भगवान भीष्म से महाकाल बाण छल से लेकर आ जाते है पांडव दल में खुशी की लहर छा जाती है। सुबह होते ही कौरव दल को इस बात की जानकारी होती है पांडव छल से महाकाल बाण ले लिये है।
रागी- अच्छा।)
मारे क्रोध मे भीष्म पितामह के नेत्र लाल होगे। रागी भइया आठव दिन के लड़ाई मे जब कौरव अउ पांडव कुरूक्षेत्र के मैदान मे जाथे। तो घारे संग्राम होथे भीष्म पितामह मोर क्रोध में नेत्र लाल हो जथे। काबर आज छल करके अर्जुन महाकाल बान ल मांग के लेगे। निकालथे महाबीर अर्जुन एक बान अउ एक बान निकाल के जब भीष्म के रथ ल मारथे तो भीष्म के रथ ह तीन सहस्त्र पांव।
पीछू कोति ह घुचन लागे ग भइया, पीछे तरफ ग घुचन लागे ग भाई।
अइसे बान मारथे अर्जुन के भीष्म के रथ तीन सहस्त्र पांव पीछू कोति खसक जथे। निकाल करके भीष्म पितामह नंदीघोस रथ मारथे। तो अर्जुन के रथ तीन पांव पाछू कोति घुच जाथे रागी। अर्जुन जब भीष्म के रथ ल मारे तब तीन सहस्त्र पांव पीछे कोति घुचथे, भीष्म जब अर्जुन के रथ नंदीघोस ल मारत हे केवल तीन पांव घुचत हे अउ जइसे तीन पांव पीछे तरफ घुमथे रागी।
रागी- हव भाई।
(क्रोध से भीष्म के नेत्रलाल हो गये। रागी भैया आठवां दिन जब पांडव और कौरव कुरूक्षेत्र के मैदान में पहुंचते है तो घोर संग्राम होता है। भीष्म क्रोध से लाल है। अर्जुन निकाल कर तुंड से बाण भीष्म के रथ को मारते है रथ तीन सहस्त्र पांव पीछे हट जाता है। और जब भीष्म बाण मारते है नंदीघोष रथ को तो सिर्फ तीन पांव पीछे हटता है। अर्जुन जब भीष्म के रथ को मारता है तो तीन सहस्त्र पांव पीछे जाता है और जब भीष्म अर्जुन के रथ को मारता है तो केवल तीन सहस्त्र पांव पीछे हटता है।
रागी- हां भाई।)
भगवान गदगद हो जाथे दोनो भुजा उठा के कथे भीष्म तोर जइसे भारत बीर ये द्वापर के युग मे पैदा नइ लेये। भगवान कहते है धन्य है भीष्म तोर मां ल बाप धन्य हे। जे ये भारत बीर अइसे पैदा करे हे। कहे भीष्म तोर जइसे योद्धा ये द्वापर मे कोई नइये।
रागी- हव जी।
सुनिस नही रागी तो अर्जुन के तन बदन म आगी ललगे।
रागी- वाह।
अर्जुन भगवान ल कथे द्वारिकानाथ अभी भीष्म के रथ ल जब मै बान मारेव तीन सहस्त्र पांव पीछु कोति घुचगे। ये मुह ते नइ केहे वाह अर्जुन क्या बाते। अउ मोर रथ ल बाबा तीन पांव पीछू कोति घुचा दिन तब तै कइथस के तोर जइसे द्वापर युग म कोई बीर नइय हे।
रागी- हव ओकर बड़ाई करते हो।
भगवान कथे अर्जुन जो रथ मे नर नारायण बिराजमान हे। अखिल ब्रम्हांड नायक भगवान बाके बिहारी रथ मे आसिन हे। जेमा नरनारायण बइठे हे। रथ के पताका म पवनुपत्र हनुमान जी बइठे हे जेकर भार ल कोनो नइ साहय। अरे हनुमान के भार तो मै नइ सा पवत अवं। वो हनुमान बिराजमान हे। वोइसन रथ ल भीष्म ह बान के द्वारा तीन पांव सरका दिस। बोले धन्य हे अर्जुन भीष्म के वीरता ल। ओतका ल किथे भगवान रथ आगू कोति घुचाथे, भीष्म ह समय पाथे निकालथे तुंड से एक बान पांडव दल मे दस हजार महारथी मारथे अउ।
विजय संखेय अरे भाई विजय संख फूकन जब लागय, फूकन जब लागय।
कौरव पांडव अरे भाई कौरव पांडव वापस जब चले जावय, वापस चलन जब लागय।
आठवा दिन भी बबा भीष्म के विजय होगे दस हजार महारथी मार के आगे।
रागी- हव भाई।
(भगवान गदगद हो जाते है और दोनो भुजा उठाकर भीष्म से कहते है तुम्हारी जय हो भीष्म, द्वापर में तुम्हारे जैसा योद्धा कोई पैदा नहीं लिया है। भगवान कहते है धन्य है भीष्म तुम्हारे माता-पिता जो ऐसे योद्धा को जन्म दिये है।
रागी- हां जी।
यह बात सुनकर अर्जुन के मन जलन की भावना पैदा हो जाती है।
रागी- वाह।
अर्जुन भगवान से कहते है द्वारिकानाथ मै जब भीष्म के रथ को बाण मार कर तीन सहस्त्र पांव पीछे धकेला दिया था तब तो तुमने कुछ नहीं कहा और जब पितामह मेरे रथ को मार कर केवल तीन पांव पीछे किये है जिस पर वाह वाह करते हुए कह रहे हो तुम्हारे जैसा वीर द्वापर में कोई पैदा नहीं लिया है।
रागी- हां उनकी बड़ाई करते हो।
भगवान कहते है अर्जुन जिस रथ में स्वयं नर नारायण विराजमान है, अखिल ब्रम्हांड नायक भगवान बाके बिहारी रथ में है और रथ के पताका में पवनुपत्र हनुमान जी बैठे है जिनका भार कोई नहीं सह सकता। अरे हनुमान का भार तो मैं भी नहीं सह पाता हूं। ऐसे रथ को भीष्म तीन पांव पीछे कर देता है धन्य है अर्जुन ऐसे वीर की विरता को। इतना कहकर भगवान रथ आगे बड़ाते है और भीष्म समय पाकर एक बाण से दस हजार पांडव दल के वीर मारकर विजय शंख फूक देते है। आठवा दिन भी भीष्म दस हजार महारथी मार कर वापस लौटते है।
रागी- हां भाई।)
रात्रि होइस भोजन पान करके विश्राम करिन नौवा दिन के लड़ाई मे फेर दोनो दल गिन। होत प्रात:काल से दिन डुबते तक लड़ीन अउ संध्या के बेला गंगा के बेटा भीष्म पितामह एक बान म दस हजार महारथी मारथे। लगातार नौ दिन तक कौरव के विजय अउ लगातार नौ दिन तक पांडव के हार। दोनो दल अपन अपन सिविर मे जाथे बैठ के भोजन पान करत हे। विश्राम करत हे।
रागी-हव।
अब राजा युधिष्ठिर ल चिंता होगे प्रभु ये नौ दिन म एको दिन भीष्म नइ जीतेन त का ठिकाना हे काली हम जीत जबो। अरे नौ दिन म एको दिन नइ जीतेन। तो कोई जरूरी नइये के लड़ाई मे दसवा दिन हम जीत जबो। मोला अइसे लगथे ये लड़ाई ल नइ जीतन सकन तइसे लगथे। भगवान कथे भइया। चल ना हम जाके उही ल पूछ लेथन। भगवान काहत हे युधिष्ठिर चल जाके हम भीष्म ले ही पूछ लेथन। कि काली हमर विजय कइसे होही। अउ वो कइसे हारही। रागी भइया कोनो अपन हार ल बताही गा।
रागी- नइ बतावे भाई।
फेर भगवान काहत हे धरमराज बताये या न बताये पर भीष्म जरूर बताही के काली तोर विजय कइसे होही तेला। हरि अर्जुन भगवान नर नारायण मे से रागी भइया पहुचथे राजा युधिष्ठिर भगवान बाके बिहारी गंगास्वन भीष्म के सिविर मे, गंगा के बेटा भगवान ल आवत देख के गदगद हो जथे। आसन से खड़ा हो करके सास्टांग प्रणाम करके भीष्म भगवान ल बइठार के विधिवत पूजा करथे।
रागी- हव भाई।
(रात में भोजन कर अपने-अपने शिविर में आराम करते है सुबह नौवा दिन की लड़ाई में सुबह से शाम तक लड़ते है और संध्या बेला में भीष्म फिर से एक बाण से दस हजार पांडव दल के वीर योद्धा मार देते है। लगातार नौ दिन तक कौरव का विजय और लगातार नौ दिन तक पांडव की हार। दोनो दल अपने-अपने शिविर में आकर विश्राम करते है।
रागी-हां।
अब राजा युधिष्ठिर को चिंता होने लगी प्रभु नौ दिन की लड़ाई में हम भीष्म को एक भी दिन नहीं जीत पाए। और कभी जीत भी पायेंगे या नहीं। ये भी कोई जरूरी नहीं है कि हम दसवां दिन जीतेंगे। मुझे तो लगता है हम महाभारत की लड़ाई नहीं जीत पायेंगे। भगवान कहते है चलो भीष्म से ही पुछते है कि हम ये कैसे जीतेंगे और वे कैसे हारेंगे। रागी भैया कोई अपना हार कैसे बतायेंगे।
रागी- नहीं बतायेंगे।
भगवान धर्मराज से कहते है कोई बताये या न बताये लेकिन भीष्म जरूर बतायेंगे तुम्हारा विजय कैसे होगा। राजा युधिष्ठिर भगवान बांके बिहारी गंगापुत्र भीष्म के शिविर में पहुंचते है भीष्म भगवान को अपने शिविर में देख कर गदगद हो जाते है। आसन से खड़ा हो करके सास्टांग प्रणाम करके भीष्म भगवान को बैठाकर विधिवत पूजा करता है।
रागी- हां भाई।)
कलशा म पानी लान के भगवान के पांव ल धोवत हे। भीष्म काहत हे द्वारिकानाथ मोर जइसे भाग्यशाली पुरूष द्वापर मे पैदा नइये। काली आखरी दिन के लड़ाई आज मोला आके दर्शन देवत हस। राजा युधिष्ठिर भीष्म के चरन मे प्रणाम करत हे भीष्म काहत हे धरमराज जावो तुम्हारा ही विजय होगा। ये महाभारत ल तै जीतबे। तब युधिष्ठिर कथे बबा आसिरवाद तो देथस मोला लड़ाई के जीते के नौ दिन होगे तोला लड़त, नौ दिन म तोला एको दिन नइ जीतन सकेन। विजय होय के आसिरवाद देथेस।
रागी-हव भई।
नौ दिन होगे तोला लड़त नौ दिन म एको दिन नइ जिते अन काली आखरी दिन के लड़ाई ए। काली के लड़ाई मे हमर विजय कइसे होही बता देते। राजा युधिष्ठिर पुछत हे कल मोर विजय कइसे होही। भीष्म पितामह हांस के काहय धरमराज। काली के लड़ाई म राजा द्रुपद के छोटे बेटा श्रीखंडी ल कही मोर समाने म ला देबे युधिष्ठिर त कल के लड़ाई म तोर विजय हो जही। वापिस आथे धरमराज रात भर विश्राम करथे।
अउ दसवा दिवस के लड़ाई बर फेर।
दोनो दल का चलन लागे ग भइया जी, दूनो दले गा चलन लागे गा।
मारो मारो के आवाजे आवो भाई, मारो मारो के आवाजे आवे भाई।
मारो मारो। रागी भइया।
रागी-हव।
(कलश में पानी लाकर भगवान के पांव धोते है और भीष्म कहते है द्वारिकानाथ मेरे जैसा भाग्यशाली पुरूष द्वापर में कोई पैदा नहीं लिया है। कल आखरी दिन की लड़ाई है आज भगवान मुझे दर्शन देने आए है। राजा युधिष्ठिर भीष्म के चरण को प्रणाम करते है भीष्म आशीर्वाद देते है जाओ तुम्हारा विजय होगा। तब युधिष्ठिर कहते है पितामह विजय होने का आशीर्वाद तो देते हो किन्तु नौ दिन लड़ चुके और एक भी दिन विजयी नहीं हुए है।
रागी-हां भई।
नौ दिन हो गया है लड़ते-लड़ते कल आखरी दिन है कृपा करके बताइये कि कल हमारी विजय कैसे होगी। भीष्म पितामह हस कर कहते है कल की लड़ाई में राजा द्रुपद का बेटा श्रीखंडी को तुम मेरे सामने ला देना कल की लड़ाई तुम जीत जाओगे। राजा धर्मराज वापस आते है दसवें दिन की लिए फिर दोनो दल चलने लगते है। मैदान से मारो-मोरा की आवाज आने लगती है। रागी भैया।
रागी-हां जी।)
भीष्म पितामह अउ अर्जुन दोनो कोई छांट छांटके बान मारत हावे रागी। भीष्म खिचे तुंड से आगी बान, निकाल के धनुस म जोड़ अउ जोड़ करके मंत्र पढ़के छोड़े। भीष्म के आगी बान म पांडव के दल जले लगिस। सेना पुकारे बचाव, अर्जुन बचाव। पांडव के दल जलत देखथे अर्जुन वरूण बान छोड़थे। वरूण बान छूटिस पानी के बरसा होवथे। अतका अकन पानी गिरिस भीष्म के आगी बान भूतागे। लड़ाई के मैदान लबालब होगे कुरूक्षेत्र के मैदान म बड़े बड़े बीर डुबे लग गिन। रागी कुरूक्षेत्र के मैदान म बीर मन ह अगा मछरी बरोबर तउरन लागे गा।
कौरव के सेना तउरे के सुरू होगे, वोमन मछरी बरोबर तउरन लागे भाई।
हां गंगा पुत देखन लागे गा भाई, हा गंगा पुत देखन लागे ग भाई।
कौरव के दल डुबना सुरू होगे। कौरव के दल म पुकार परथे बचाव।
रागी- हव भाई।
तब भीष्म पवन बान छोड़थे। पवन बान मे बतेक आंधी तुफान चलथे रागी। सब जल ह सूख जाथे, सब जल ह सुखिस ताहन पांडव दल के बड़े बड़े बीर मन ह गगन पंथ म उड़ना सुरू होगे। अर्जुन नाग बान छोड़थे हजारो हजार फड़ वाले। साप ह पवन पीथे। साप के काम होथे पवन पीना, साप सारी जहरिला पवन पी दिस मुंह रिता होगे। कौरव दल पर हजारो हजार फड़ वाले साप दउड़ना सुरू होगे। ऐला देखिस तो भीष्म पितामह मोर बान छोड़थे। मोर बान छ़ोड़थे तव गगन पंथ म गरूड़ उड़थे। साप के बइरी गरूड़। गरूड़ मन लड़ाई के मैदान म साप मन धर धर के खावथे।
रागी- अच्छा।
(भीष्म पितामह और अर्जुन दोनो छांट-छांटकर बाण छोड़ रहे है। भीष्म खींचे तुंड से अग्नि बाण और मंत्र पड़कर जब छोड़े तो पांडव दल आग से जलने लगे। सेना पुकारने लगते है बचाव बचाव बचाव। पांडव दल को जलता देखकर अर्जुन वरूण बाण छोड़ते है। वरूण बाण से पानी की वर्षा होने लगी, इतना पानी गिरा की कुरूक्षेत्र के मैदान में वीर डूबने लगे। मैदान में बड़े-बड़े वीर मछली के समान तैरने लगे। कौरव दल पानी में डूबने लगते है और पुकारते है बचाव बचाव बचाव।
रागी- हां भाई।
तब भीष्म पवन बाण छोड़ते है। पवन बाण से आंधी तूफान चलने लगी और सब जल सुख गया। पांडव के दल के वीर पवन बाण से आकाश में उड़ने लगे। इधर अर्जुन सर्प बाण छोड़ता है जो हवा को पी कर हजारो फन से कौरव दल को दौड़ाना शुरू कर देता है। भीष्म इसे देखकर गरूड़ बाण छोड़ देते है। साप का दुश्मन है गरूड़, मैदान से सर्प को उठा उठाकर खाने लगे।
रागी- अच्छा।)
ओला देख के अर्जुन अंधियार बान छोड़थे लड़ाई ह अंधियार हो जथे। भीष्म रवि बान छोड़थे लड़ाई के मैदान मे प्रकाश हो जथे। अर्जुन ह पर्वत बान छोड़थे। एक से बड़कर एक। लड़ाई मे न भीष्म पीछे हटते है न अर्जुन पीछे हटे। देवता लोक मे हा हाहाकार मचगे। आकाश म देवता मन ह महाभारत के लड़ाई देखत हे। लड़ते लड़ते अचानक महाबीर अर्जुन रथ के आगे राजा द्रुपत के कुमार श्रीखंडी ल आगे कर देथे रागी भइया।
रागी- जय हो।
राजा द्रुपद के कुमार श्रीखंडी नामके कृत कुंडल बंसत भूसन लगाये हे। रथ मे आसीन हे श्रीखंडी नाम के राजकुमार जब भीष्म पितामह के रथ के आगे जाथे भीष्म के नजर पड़गे श्रीखंडी के उपर भीष्म जी लज्जीत हो जाथे। भीष्म के बान निष्फल हो जाथे श्रीखंडी के आड़ लेके अर्जुन खीचथे तुंड ले बान अउ गांडिव म बोन जोड़के।
अगा बीरे अर्जुन जब छोड़न लागे भाई, रागी बीरे अर्जुन ग छोड़न लागे भाई।
हा बाने ल छोड़न लागे भाई, बाने हर जावन लागे भाइ।
श्रीखंडी के आड़ लेके अर्जुन जब मारथे बान तो जा करके पितामह के भीष्म के छाती म लगत हे। अइसे बान मारिस।
रागी- हव भाई।
(अर्जुन अंधकार बाण छोड़ देते है जिससे लड़ाई के मैदान में अंधेरा होने लगा। भीष्म रवि बाण छोड़कर लड़ाई के मैदान में प्रकाश कर देता है। अर्जुन पर्वत बाण छोड़ देते है। एक से बड़कर एक बाण। लड़ाई में न भीष्म पीछे हटते है और न ही अर्जुन। देव लोक में हा हाकार मच गया। आकाश से देवता महाभारत की लड़ाई देख रहे है। लड़ते-लड़ते अचानक महावीर अर्जुन रथ के आगे राजा द्रुपद के बेटे कुमार श्रीखंडी को आगे कर देथे रागी भैया।
रागी- जय हो।
राजा द्रुपद का बेटा श्रीखंडी नामक जो कृत कुंडल बंसत भूषण लगाये है। रथ में आसीन होकर जैसे ही श्रीखंडी नाम का राजकुमार भीष्म पितामह के रथ के आगे आते है भीष्म की नजर पड़ते ही वह लज्जीत हो गया। भीष्म के बाण निष्फल होते गये और श्रीखंडी का आड़ लेकर अर्जुन खीचते है तुंड से बाण और गांडिव में जोड़कर छोड़ते है बाण जाकर भीष्म के सीने में लगती है।
रागी- हां भाई।)
अइसे बान छोडि़स अर्जुन।रागी बताये हे भीष्म के शरीर चन्नी बरोबर छेद छेद होगे। सरी सरीर म बान लगत हे। ओ समे दृश्य जब भीष्म ल बान लगत हे रागी भइया। सर के बाल सफेद होगे हे, सिर सफेद मुकुट, पोसाक भी सफेद, हाथ म धनुस धरे हे धनुस के रंग भी सफेद हे, कंधा मे हे तुंड के रंग भी सफेद हे, कमर में संख रखे हे, ओ संख के रंग भी सफेद हे।
रागी- जय हो।
अर्जुन के बान लगथे भीष्म रथ के उपर म कांपना सुरू हो जथे। जब बान लगथे भीष्म के सरीर झांझर पर जथे। कांपना सुरू हो जथे। संबलसिंह महराज लिखे हे ओ समे रागी जे समय मा गइया ह बछला जनम देथे ओ समय के प्रसव के पीड़ा के व्याकुल हो जाथे अउ गइया ह कांप जथे। अर्जुन के बान लगथे रथ के उपर म भीष्म ह कांपना सुरू कर देथे रागी भइया।
रागी- हव भई।
हाथ के धनुस छुट जाथे भीष्म के हाथ ले, धुनस छुट जाथे।
रागी- हव भाई।
गंगा के बेटा भीष्म पृथ्वी मे गिर जाथे। सिर के मुकुठ गिर जाथे हाथ के धनुष छुट जाथे। सरी सरीर बाने बान म सोये हे। सुई के अग्र रखे के खातिर जगा नइ बांचे हे। कौरव अउ पांडव के दल मे संध्या के समय ए हा हाकार मचगे। अपन अपन वाहन ले उतर के सब दौड़ पड़थे। राजा दुर्योधन, राजा धरमराज, द्रोणाचार्य दौड़ के जाये अउ भीष्म ल घेर के खड़े होगे। सरी सरीर बान के सइया म सोय हे भीष्म जी के। सिर नीचे हे नीचे के ओर सिर लटकत हे रागी।
रागी- जय हव।
आंख बदं हे भीष्म के।
रागी- हव भई।
( ऐसा बाण मारा अर्जुन की भीष्म का पूरा शरीर छलनी के समान छेद-छेद हो गया। शरीर भर बाण लगा है। उस समय का दृश्य ऐसा था रागी भैया कि भीष्म के सिर के बाल सफेद, मुकुट भी सफेद, पोषाक भी सफेद हाथ का धुनष भी सफेद, कंधे में लगे तुंड का रंग भी सफेद, कमर के शंख का रंग भी सफेद था।
रागी- जय हो।
अर्जुन का बाण जैसे ही भीष्म को लगता है रथ के ऊपर ही कांपना शुरू हो गया। बाण से भीष्म का शरीर छलनी हो गया है। संबलसिंह महाराज लिखे है उस समय की पीड़ा ऐसी थी जैसे गाय बछड़े को जन्म देते समय प्रसव पीड़ा से व्याकुल होकर कांपने लगती है। ठीक वैसे ही भीष्म कांपना शुरू कर देते है।
रागी- हां भई।
हाथ से धनुष छुट गया।
रागी- हां भाई।
गंगापुत्र भीष्म रथ से नीचे पृथ्वी में गिर जाता है, मुकुट गिर गया, धनुष छुट गया। पूरा शरीर बाणों की शैया में सोया है। सुई की नोक रखने की भी जगह नहीं है शरीर में। कौरव और पांडव दल में संध्या के समय हा हाकार मच गया। अपने-अपने रथ से उतर कर सब दौड़ पड़े। राजा दुर्योधन, राजा धर्मराज, द्रोणाचार्य दौड़ कर आये और भीष्म को घेर कर खड़े हो गये। शरीर बाण शैया पर सोया है सिर नीचे की ओर लटक रहा है।
रागी- जय हां।
भीष्म की आंखे बंद है।
रागी- हां भई।)
ये दृश्य देखिस त धरमराज रो पडि़स। राजा युधिष्ठिर चिल्ला के रोइस। बोले बबा मोर जइसे पापी ये दुनिया म कोई नइये। आज राज्य के लालच मे तोला मै बान के सइया म सोवा देव। राजा युधिष्ठिर काहत हे बबा जे दिन मोर पिता जी के मौत होगे। बाप नइ रइगे ओ दिन तै मोला उंगली पकड़के चले बर सिखाये रेहेस। राजा युधिष्ठिर काहत हे तै मोला अंगरी धर के रेंगे बर सिखाये। जे थाली म खवास वो थाली म बइठार के खवावत रेहे। मै धुर्रा म खेल के आववं मोर सरी बदन धुर्रा म भरे राहय। तै रेशमी के पोसाक पहिल के बइठे राहस। मोला चुम के गोदी म बइठार लेवस।
रागी- जयय हो।
आज मै जे थानी म खाये ओला मै छेद कर दियेवं।
रागी- हव भाई।
रो पड़े युधिष्ठिर व्याकुल होगे। भीष्म बान के सइया म पड़े पड़े, राजा युधिष्ठिर ल काहत हे धरमराज तै तो अपन कर्तव्य पूरा करे हस। यही तो क्षत्रिय के धर्म ए युधिष्ठिर। युद्ध के मैदान म कोई योद्ध लड़े बर तइयार होथे। वो समय न वो बाप ए न वो बेटा ये न घर ए न परिवार ए। क्षत्रिय केवल एक ही धर्म होथे।
रागी- हव भाई।
युद्ध करना अउ युद्ध मे विजय पाना या युद्ध मे प्राण गवाना। तै तो अपन कर्तव्य ल पूरा कर डरेस। वो दिन भी भीष्म पितमह दुर्योधन ल समझावत हे। दुयोधन मै भले बान के सइया म सो गेव। अभी भी विनास ल तै रोक सकथस। रोक लो अभी भी ये महाभारत ल रोक ले। पांडव के राज ल देदे। दुर्योधन कथे बबा जइसन पांडव अपन धर्म न नइ तियागिस। वो दिन भी दुर्योधन काहत हे जइसे पांडव अपन धर्म ल नइ तियागिस, मै अपन जिद न नइ तियागवं, तै लड़़के तै बान के सइया म सोये हस। मै भले ही लड़ाई मैदान जुझ जाहू। पर बिना लड़ाई के पांडव ल राज नइ देववं बबा। भीष्म कहे दुर्योधन।
रागी- हव भई।
(यह दृश्य देखकर धर्मराज रो पड़े। बोले पितामह मेरे जैसा पापी इस दुनिया में कोई नहीं है आज राज्य के लालच में मैने तुम्हे बाणों की शैया में सुला दिया। राजा युधिष्ठिर कहते है पितामह जिस दिन मेरे पिता की मौत हुई उस दिन से मुझे ऊंगली पकड़कर चलना सीखाये। जिस थाली में खाते थे उसमें बैठाकर भोजन कराये। मेरा बदन धुल से भरा रहता था तुम रेशमी कपड़े से उसे साफ करते थे। मुझे चुमकर गोद में बैठाते थे।
रागी- जय हो।
आज मैंने जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया।
रागी- हां भाई।
रो पड़े युधिष्ठिर, व्याकुल हो गये। भीष्म बाण की शैया पर सोये-सोये राजा युधिष्ठिर से कहते है धर्मराज तुमने अपना कर्तव्य निभाया, यही तो क्षत्रिय का धर्म है युधिष्ठिर। युद्ध के मैदान में जब कोई योद्ध लड़ने के लिए तैयार होता है उस समय न वो बाप है न वो बेटा, न घर न परिवार। वह केवल एक क्षत्रिय धर्म होता है।
रागी- हां भाई।
युद्ध करना, युद्ध में विजय पाना या युद्ध में प्राण गवांना। तुमने अपना कर्तव्य पूरा किया। उस दिन भीष्म पितामह दुर्योधन को समझा रहे है कि दुयोधन मैं बाण की शैया में सोया हूं। अभी भी तुम विनाश को रोक सकते हो। रोक लो महाभारत। दुर्योधन कहते है पितामह जैसे पांडव अपना धर्म निभा रहे है वैसे ही मैं भी अपना धर्म निभाऊंगा। मैं अपना जिद नहीं छोड़ूगा, भले ही तुम बाण की शैया में सोये हो और मैं भले ही लड़ाई के मैदान में जूझ जाऊं पर बिना लड़े पांडव को राज्य नहीं दूंगा।
रागी- हां भई।)
मै इच्छा मृत्यु के वरदान पाये हवं। जब तब नइ चाहहू ये सरीर ल नइ तियागवं। मै तो पूरा अटठारह दिन महाभारत के लड़ाई देखहू दुर्योधन।
रागी- अच्छा।
भीष्म कथे अर्जुन ये लड़ाई के मैदान म तै सरीर ल बान के सइया म सोलाये हस। सरी बदन बान म सोये हे सिर नीचे की ओर लटकत हे भीष्म पितमह पहले दुर्योधन ल कहात हे सिर नीचे कि ओर लटकत हे तकलीफ होवथे मोला। हो सकतिस सिराना लान के देतेस। दुर्योधन राज महल म जाके तकिया लाके जब भीष्म ल देथे जो भीष्म कथे बेटा मोला ये सिरानी के जरूरत नइये दुर्योधन। ये तकिया नइ चाहिए।
रागी- हव भाई।
अर्जुन ल इशारा करत हे भीष्म ह। अर्जुन मोला तकलीफ होवथे सिराना के जरूरत हे तकिया के जरूरत हे। अर्जुन खीचें तुंड से तीन बान अउ तीन बान निकाल के गांडिव म जोड़ के।
अरे बीरे अर्जुन गा मारन लागे भाई, अरे बीरे अर्जुन गा मारन लागे भाई।
अरे बीरे अर्जुन गा मारन लागे भाई, अरे बीरे अर्जुन गा मारन लागे भाई।
तीन बान मारथे।
रागी-हव।
(भीष्म कहते है दुर्योधन मैंने इच्छा मृत्यु का वरदान पाया है। जब तब नहीं चाहूंगा ये शरीर नहीं त्याग सकता, मैं तो पूरा अट्ठारह दिन महाभारत की लड़ाई देखूंगा।
रागी- अच्छा।
भीष्म कहते है अर्जुन इस लडा़ई के मैदान में तुमने मुझे बाणों की शैया में सुला दिया, सिर नीचे लटक रहा है। भीष्म पितामह दुर्योधन से कहते है हो सके तो एक तकिया ला दो तकलीफ हो रही है सिर नीचे लटक रहा है। दुर्योधन राज महल जाकर तकिया लाकर देते है भीष्म को भीष्म कहते है मुझे ये तकिया नहीं चाहिए दुर्योधन।
रागी- हां भाई।
अर्जुन की ओर इशारा करते हुऐ कहते है भीष्म अर्जुन मुझे तकलीफ हो रही है तकिये की जरूरत है। अर्जुन खीचें तुंड से तीन बाण और गांडिव में जोड़कर मारते है।
रागी-हां।)
भीष्म महराज ल सिराना मिलथे। भीष्म कहे मोर मुंह सुखत जात हे दुर्योधन, प्यास लगत हे। पानी पिये व्सवस्था कर। दुर्योधन जाके सोना के कलश म पानी लाथे। भीष्म कहिस अर्जुन पानी पिला देते बेटा। निकाल करके अर्जुन मारथे बान पृथ्वी ल तो पृथ्वी से मां भगवती गंगा फेर प्रकट होथे। गंगा प्रकट होके भीष्म के मुह म गिरथे। रागी भइया भीष्म कहे दुर्योधन इहां छइया बनवा दे। मै पुरा महाभारत के युद्ध देखहू। संध्या के बेला ये रागी भइया। कुरूक्षेत्र के मैदान म भीष्म के खातिर छाया के बेवस्था कर देथे। दिन बुड़े के बेला ए, कौरव के दल रोवत रोवत जावथे अउ वो दिन पांडव के दल हांसत हांसत आवत हे।
रागी- हव भई।
कौरव के दल रोवत गिन, पांडव के दल हांसत अइन। कृत कुडल बसंत भूसन ल उतारिन पांडव अउ द्रोपती के मंदिर म भोजन करे बर गिन। मां जगदंबा भोजन खिलाइस अउ भगवान पुछथे द्वारिकानाथ आज के महाभारत ल विजय कोन पाये हे। भगवान कथे पांचाली आज हमन ह जीते हन। भगवान काहत द्रोपती आज के लड़ाइ म हमर विजय होय हे अउ कौरव मन हा हारे हे। कौरव अउ पांडव फिर अपन अपन सेवर म विश्राम करत हे। राजा दुयोधन काहत हे दस दिन लड़ाई संपन्न होगे। आठ दिन के लड़ाई बांचे हे।
अरे काको सिर सेनापति विजय, पर जाके बल भारत अस मिलय।
अब मंत्रणा करते है दुर्योधन काकर सर म सेनापति के मुकुट बांधबो। त महाभारत ल जीत जाबो। रागी भइया।
रागी-हव।
(भीष्म महाराज को तकिया मिल गया। भीष्म कहते है मेरा मुंह सुख रहा है दुर्योधन प्यास लग रही है। पानी की व्यवस्था करो। दुर्योधन जाकर मटका भर पानी लाता है। भीष्म कहते है अर्जुन पानी पिला दो। अर्जुन निकाल कर बाण धरती में मारते है धरती से मां भगवती गंगा प्रकट होती है और धरती से निकलकर भीष्म के मुंह में गिरती है। रागी भैया भीष्म दुर्योधन से कहते है यहां मेरे लिए छाया की व्यवस्था कर देना मैं पूरा महाभारत देखूंगा। कुरूक्षेत्र के मैदान में भीष्म के लिए छाया की व्यवस्था कर दी जाती है। संध्या का समय है कौरव दल रोते हुए जा रहे है और पांडव दल हसते हुए आ रहे है।
रागी- हां भई।
कौरव दल रोता हुआ गया और पांडव हसते हुए आये। कृत कुंडल बसंत भूषण उतार कर द्रोपदी के मंदिर में भोजन करने पहुंचे है। मां जगदंबा भोजन खिलाकर भगवान से पुछती है द्वारिकानाथ आज महाभारत में कौन विजयी हुये है। भगवान कहते है पांचाली आज हम जीते है। आज हम जीते है और कौरव हार गए। कौरव पांडव अपने-अपने शिविर में विश्राम करते है। राजा दुर्योधन कहते है दस दिन की लड़ाई संपन्न हो चुकी है। आठ दिन की लड़ाई और बची है। दुर्योधन मंत्रणा करते है कि अब किसके सिर पर सेनापति का मुकुट बांधेंगे तब यह महाभरत जीतेंगे।
रागी-हव।)
ओ समय दानवीर कर्ण काहत हे दुर्योधन ल।
अरे सेनापति तुम मोहे दिन्हा, जब अर्जुन संग कृष्ण वध किन्हा।
कहे मोला सेनापति बनादे। कौरव के दल अउ पांडव के दल इही विचार करत हे के अब कौरव दल के सेनापति कोन बनही।
यही जगा से रागी भाई ये भीष्म पर्व के जो प्रसंग हे तो कथा हे वो संपूर्ण हो जाथे वैसमपायन जी महराज राजा जनमेजय ल बातवथे किथे कहे बेटा अब मै आगे द्रोण पर्व के प्रसंग आप ल बताहवं।
बोलिये बृंदाबन बिहारी लाल की जय।
कोसिलया मैया की जय।
(उस समय दानवीर कर्ण कहते है दुर्योधन मुझे बना दीजिए कौरव दल का सेनापति मैं अर्जुन कृष्ण सहित सबका वध कर दूंगा। कौरव दल और पांडव दल में यही विचार हो रहा है कि कौरव दल का सेनापित कौन होगा।
यहा से रागी भाई यह भीष्म पर्व का जो प्रसंग है वह कथा संपूर्ण हो जाता है। वैश्मपायन जी महाराज राजा जनमेजय को कहते है बेटा आगे मैं द्रोण पर्व का प्रसंग बताऊंगा।
बोलिये वृंदावन बिहारी लाल की जय।
कौशिल्या मैया की जय।)
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बोलिये बृंदाबन बिहारी लाल की जय।
अजि व्यासदेव जी की पदकमल, अरे भाई बारंबार मनाव, अजि गुन गावहू भगवान के श्री हनुमत होहू सहाय।
ये हनुमत होहू सहाई मोरे रामा, हनुमत होहू सहाई।
ये हनुमत होहू सहाई मोरे रामा, हनुमत होहू सहाई।
या चले झुंठ के झुंठ हरि कुंजन मे रखिहै लाज हमारी जी
ये कुंजन बीच रखिव लाज हमारी, ये कुंजन बीच रखिव लाज हमारी।
अरे भइया राजा जनमेजय के प्रति महामुनी वैसपायन जी कथे राजा जनमेजय भीष्म पितामह बान सइया म सो जाथे। कौरव के दल मे राजा दुर्योघन पुछत हे। बोले बीरो दस दिन महाभारत लडा़ई संपन्न होगे।
रागी- हव भई।
आठ दिन महाभारत के युद्ध और है। अरे काकर को सिर अब सेना दिजै, बोले बीरे कौरव के कटक मे ऐसे कोन से बीर हे जेकर सिर म सेनापति के मुकुट बांधबो त ये महाभारत के लड़ाई म विजय पाबो। कौरव दल मे दानवीर करन बोला राजन चिंता मत कर। करन चिल्ला करके कहे राजन मोर सिर म सेनापति के मुकुट बांध दे पांडव समेत सारी सेना मार के। हस्तिना के एकक्षत्र राज्य कही मै तोला नइ देहू त करन कहना मै छोड़ देहू, भइया करन कहना मै छोड़ देहव।
हा राजा ल काहनन लागय जी, हा राजा ल काहन लागे जी।
(बोलिये वृंदावन बिहारी लाल की जय।
व्यास देव जी की पद कमल को बारंबार मनाते हुए भगवान का गुणगान कर रहा हूं, हे हनुमान जी सहायता करना। बीच सभा में हमारी लाज रखना।
राजा जनमेजय के प्रति महामुनि वैश्मपायन जी महाराज कहते है भीष्म पितामह बाण शैया में सो जाते है। कौरव दल में राजा दुर्योधन पुछते है कि वीरो दस दिन महाभारत की लड़ाई संपन्न हो गई है।
रागी- हां भई।
आठ दिन का महाभारत युद्ध और है। हे वीरो कौरव के दल में ऐसा कौन वीर है जिसके सिर पर सेनापति का मुकुट बांध कर महाभारत का लडा़ई जीतेंगे। दानवीर कर्ण कहते है राजन चिंता मत करो मेरे सिर पर सेनापति का मुकुट बांध दो मैं पांडव सहित सारी सेना को मार कर हस्तिना का एकक्षत्र राज्य कही तुम्हे न दूं तो कर्ण कहलाना छोड़ दूंगा।)
करन काहत हे मित्र दुर्योधन मोला सेनापति बनादे मै पांडव ल मारके तोला हस्तिनापुर के एकक्षत्र राज तोला देहवं। ये बात ल सुन के अस्वस्थाम नाम बीर कहे करन अभी कौरव के दल म सेनापति बनाये के लायक है तो भरतद्वाज रिसी के बेटा द्रोणा। गुरू द्रोणाचार्य के राहत ले कौरव ल कोई माई लाल नइये जेन कौरव दल के सेनापति बने सकय। राजा दुर्योधन द्रोणाचार्य ल कथ महराज तोरे भरोसा म ये महाभारत के लड़ाई होवथे। दस दिन लड़के बबा भीष्म बान के सइया म सोवत हे।
रागी- हव भई।
आठ दिन के लड़ाई अभी और बाकी हे। द्रोणाचार्य कहिस दूर्योधन चिंता मत कर। अरे पांच दिवस हम करही लड़ाई, द्रोणाचार्य किथे दुयोधन मै पांच दिन लड़़हू। अउ पांच दिन लड़के तोर रक्षा करे के जिम्मेदारी लेवथवं।
रागी-अच्छा।
रागी भइया द्रोणाचार्य के सिर मे सेनापति के मुकुट बांध दिये जाथे। कौरव के दल अउ पांडव के दल रातभर विश्राम करथे। होत प्रात:काल अर्जुन भगवान द्वारिकानाथ ल कहात हे भगवान द्वारिकानाथ।
गाना- यशोदा मइया अउ तोर ललना ह वो यशोदा मइया तोर ललना हा।
यशोदा मइया अउ तोर ललना ह वो यशोदा मइया तोर ललना हा।
हा जुमना म खेलय डबुकइया वो यशोदा मइया अउ तोर ललना ह।
ये जय यदुनंदन मुनी जग बंदन यशोदा मइया तोर ललना ह।
ये जय यदुनंदन मुनी जग बंदन यशोदा मइया तोर ललना ह।
हा यमुना म खेलय डुबइया वो यशोदा मइया तोर ललना ह।
यमुना म खेलय डुबइया वो यशोदा मइया तोर ललना ह।
यमुना म खेलय डुबइया वो यशोदा मइया तोर ललना ह।
(कर्ण कहते है मित्र दुर्योधन मुझे सेनापति बनादो। यह बात सुनकर अश्वात्थामा नाम का वीर कहता है अभी कौरव के दल में सेनापति बनने लायक कोई है वह तो भारद्वाज ऋषि का बेटा द्रोण। गुरू द्रोणाचार्य के रहते कोई माई का लाल नहीं है कौरव दल में सेनापति बनने लायक। राजा दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहते है महाराज अब तुम्हारे ही भरोसे लड़ाई होगी। दस दिन लड़कर पितामह भीष्म बाण शैया पर सोये है।
रागी- हां भई।
आठ दिन की लड़ाई अभी और बाकी है। द्रोणाचार्य कहते है दुर्योधन चिंता मत करो मैं पांच दिन लड़ूंगा और पांच दिन तक तुम्हारी रक्षा करने का जिम्मेदारी लेता हूं।
रागी-अच्छा।
रागी भैया द्रोणाचार्य के सिर में सेनापति का मुकुट बांध दिया जाता है। कौरव दल और पांडव दल रातभर विश्राम करते है। प्रात:काल भगवान द्वारिकानाथ से कहते है।
गाना- यशोदा मैया तेरा लल्ला, यशोदा मैया तेरा लल्ला। यमुना में जल क्रीड़ा कर रहा है।
जय हो यदुनंदन जग के मुनि कर रहे है वंदना।)
कौरव दल के सेना नायक द्रोणाचार्य जी बने हे। पर रागी भइया द्रोणाचार्य जी प्रतिज्ञा करथे। दुर्योधन अगर कल के लड़ाई म कोई अर्जुन ल ले बाहर युद्ध करे बर तो राजा धरमराज ल बांध के काली तोर चरण म कहि नइ गिरादवं तो।
अगा द्रोणा कहना छोड़ दवं, बोले राजा मैहा द्रोणा कहना छोड़ देवव भाई।
हा राजा ल काहन लागे भाई, हा राजा ल काहन लागे भाई।
कल के युद्ध मे कहि अर्जुन ल कोई बाहर ले जाय, राजा युधिष्ठिर ल बांध के कहि तोर सरन न गिरा दवं तो द्रोणाचार्य कहना छोड़ दवं। भइया कौरव दल म अइसे कोई माई के लाल है जो युद्ध करही।
रागी- हव भई।
क्योकि अर्जुन के जितने वाला कोई नइये। रागी भाई कौरव दल म एक सुसरमा नाम के बीर हे। श्रीघर्त नरेश सुसरमा नाम के योद्धा। सुसरवा कहिस के राजन ल मोला इजाजत कर दे। काली के लड़ाई म मै अर्जुन बाहिर ले जाहू युद्ध करे बर। राजा दुर्योधन इजाजत दे देथे रागी भइया। सुसरमा नाम के बीर पांडव के सिविर मे जाथे अउ जा करके काहत हे महराज काली के लड़ाई मोला तोर संग लड़े बर हे।
रागी- हवं।
(कौरव दल का सेना नायक द्रोणाचार्य जी बने है गुरू द्रोणाचार्य जी प्रतिज्ञा करते है कि दुर्योधन अगर कल के लड़ाई में कोई अर्जुन को बाहर युद्ध करने के लिए ले जाए तो राजा धर्मराज को बांध कर तुम्हारे चरणों मे न डाल दूं तो मैं द्रोण कहलाना छोड़ दूंगा। कौरव दल में है कोई ऐसा योद्धा जो अर्जुन के साथ लडा़ई कर सकता है।
रागी- हां भई।
क्योकि अर्जुन को जीतने वाला कोई नहीं है। रागी भैया कौरव दल में एक सुशर्वा नाम का योद्धा है। श्रीघर्त नरेश सुशर्वा कहते है राजन मुझे इजाजत दीजिए कल की लड़ाई में मैं अर्जुन को युद्ध के लिये बाहर लेकर जाऊंगा। राजा दुर्योधन इजाजत दे देते है।
सुशर्मा नाम का वीर पांडव शिविर में जाकर कहता है महाराज कल की लड़ाई तुम्हे मेरे साथ लड़ना होगा।
रागी- हां जी।)
अर्जुन कथे अरे सुसरमा कल के लड़ाई लड़के कहू तोला नइ मारे तो अर्जुन कहना छोड़ देहवं। होते प्रात:काल अर्जुन ह नंदीघोस रथ ल साजावथे। पवन से भी तेज चलने वाला चार घोड़ा फांदे हे। भगवान अपन हाथ मे अर्जुन ल पोसाक पहिनावथे। और पोसाक पहिना के बोले भगवान चल भइया रथ तइयार हे। भगवान सारथी के रूप ले के घांड़ा के रास खिंचे हे। हाथ में गांडिव ले करके अर्जुन महराज आसिन होते है।
रागी- अच्छा।
अजि आगे हरि अउ उपर हनुमाना। नंदीघोस रथ के उपर म लाल रंग के पताका लगे हे रागी। आगे म भगवान रथ चलाये बर बइठे अउ उपर म हनुमान जी महराज विराजमान हे।
अजि आगे हरि उपर हनुमाना, तब जिनकर मध्य सोहत बलवाना।।
हाथ मे गांडिव ले करके अर्जुन जी बइठे हे।
रागी-हव।
श्रीघर्त नरेश सुसरमा से लड़े बर महाबीर अर्जुन दक्षिण दिशा में जाथे। कुरूक्षेत्र के मैदान मे गुरूद्रोण अउ कृष्ण अर्जुन म घमासन युद्ध होवथे। मारो मारो के आवाज आथे कुरूक्षेत्र के मैदान म।
अजि बिलग बिलग, अरे बिलग बिलग चलन जब लागे,
कही छाती को कही छाती को बाने ग लगी जावय।
रागी भइया वो दिन के लड़ाई म अर्जुन नइये दक्षिण दिशा म सुसरमा से लड़े बर गेहे। राजा द्रूपद के बड़े बेटा दृश्यदुम्न और गुरू द्रोणाचार्य के बीच घमासान युद्ध छिड़े हे। ना दृश्यदुम्न पीछे हटत हे ना द्रोणाचार्य महराज पीछे हटत हे। लड़ाई के मैदान म कोन मांस ये अउ कोन माटी ये।
मासं माटी पहचान न आई, अउ लोथ लोथ धरनी म पट जाई।
रागी भइया
रागी- हव भई।
(अर्जुन कहते है अरे सुशर्मा कल की लड़ाई में कहीं मैं तुम्हे न मारू तो अर्जुन कहलाना छोड़ दूंगा। प्रात:काल होते ही अर्जुन नंदीघोष में सवार होकर पवन से भी तेज चलने वाले घोड़ है जिसमें। भगवान अपने हाथ से अर्जुन को पोषाक पहनाते है। भगवान सारथी के रूप में घोड़े का रास खींचते है, महाराज अर्जुन हाथ में गांडिव लिये रथ पर आसिन होते है।
रागी- अच्छा।
सामने हरि और ऊपर हनुमान। नंदीघोष रथ के ऊपर लाल रंग के पताका में हनुमान जी महाराज विराजमान है। भगवान स्वयं रथ चला रहे है और अर्जुन हाथ में गांडिव लेकर बैठा है।
रागी-हव।
श्रीघर्त नरेश सुशर्मा से लड़ने महावीर अर्जुन दक्षिण दिशा में जाते है। कुरूक्षेत्र के मैदान में गुरूद्रोण और कृष्ण अर्जुन में घमासन युद्ध हो रहा है मारो-मारो की आवाज कुरूक्षेत्र के मैदान में गुंजने लगी। बिलखता हुआ बाण छाती में लग रहा है। रागी भैया अर्जुन उस दिन लड़ाई के मैदान में नहीं था दक्षिण दिशा में सुशर्मा से लड़ने गया था। राजा द्रुपद का बड़ा बेटा दृश्यदुम्न और गुरू द्रोणाचार्य के बीच घमासान युद्ध हो रहा है। न दृश्यदुम्न पीछे हटता है और न ही द्रोणाचार्य महाराज पीछे हटते है। लड़ाई के मैदान में मांस और मिट्टी पहचान नहीं आ रही है धरती पर कतरा-कतरा पड़ा है रागी भैया।
रागी- हां भई।)
कोन ह मांस अउ कोन माटी ए कोन ह अपन ए अउ कोन ह पराये ए। मारो मोरा के आवाज आथे कुरूक्षेत्र के मैदान में। घोर संग्राम होवथे। आखिर मे प्रतिज्ञा के मुताबिक गुरू द्रोणाचार्य खिचिते हे तुंड से नांगफास बान। अउ नागंफास निकाल के धनुस मे जोड़के मंत्र पढ़ के जब छोड़ के प्रयास करथे द्रोण तो दक्षिण दिशा मे अर्जुन के रथ ल चलावत भगवान ह जानगे। भगवान जानगे गुरू द्रोणचार्य राजा युधिष्ठिर ल बंदी बनाना चाहत हे। बांधना चाहत हे। अर्जुन के रथ चलावत चलावत भगवान पलट के देखत हे। भगवान पीछे की ओर पलटते है। अर्जुन भगवान के देख के पुछत हे का बात ए द्वारिकानाथ। भगवान कहते है अर्जुन राजा युधिष्ठिर के रक्षा करना हे। राजा युधिष्ठिर के रक्षा कर।
रागी- हव भई।
अर्जुन कथे द्वारिकानाथ भइया के उपर म अइसे कोन से मुसिबत आगे हे केशव। अर्जुन पुछत हे द्वरिकानाथ मोर भइया के उपर म अइसे कोन से मुसिबत आगे हे।
रागी- हव भई।
भगवान कथे द्रोणाचार्य राजा युधिष्ठिर ल बंदी बनाना चाहत हे। बांधना चाहत हे बंधन से मुक्त कर दे अर्जुन। दक्षिण दिशा से अर्जुन निकाल करके मोर बान छोड़थे। गरजते हुए मोर बान आ करके नांगफास बान ल काट देथे। द्रोणाचार्य ह नांगफास बान छोड़ हे अउ दक्षिण दिसा ले मोर बान आथे अउ द्रोण के नागफास बान ल काट देथे। द्रोणाचार्य देखे कहे या।
अरे बीरे अर्जुने आइ गये भाई। द्रोण कहे अर्जुन आहे।
रागी- हव भई।
(कौन सा मांस है और कौन सा माटी, कौन अपना और कौन पराया कोई पहचान नहीं है। कुरूक्षेत्र के मैदान से मारो-मारो की आवाज में घोर संग्राम हो रहा है। अंत में गुरू द्रोणाचार्य खीचते है तुंड से नांगफॉस बाण और धनुष में लगाकर मंत्र पढ़कर छोड़ते है। भगवान जान गये कि द्रोणाचार्य राजा युधिष्ठिर को बांधना चाहते है। अर्जुन भगवान को देखकर पुछते है क्या बात है द्वारिकानाथ तो भगवान कहते है कि अर्जुन राजा युधिष्ठिर का रक्षा करना है।
रागी- हां भई।
अर्जुन कहते है द्वारिकानाथ भैया के उपर कौन सा मुसीबत आने वाला है।
रागी- हां भई।
भगवान कहते है द्रोणाचार्य राजा युधिष्ठिर को बंदी बनाना चाहता है। बांधना चाहते है बंधन से मुक्त कर दो अर्जुन। दक्षिण दिशा से अर्जुन निकाल करके मोर बाण छोड़ देते है। गरजते हुए मोर बाण आ करके नांगफास बाण को काट देता है। द्रोणाचार्य के नांगफास बाण को अर्जुन का मोर बाण आकर काट देता है द्रोण समझ गये कि वीर अर्जुन आ गया है।
रागी- हां भई।)
रागी बीर अर्जुन ह आयेग गये हे भाई। गुरूद्रोण काहन लागे ग भाई, गुरूद्रोण काहन लागे ग भाई।
जब हाथ के बान कट जथे तब द्रोणाचार्य ल अहसास होथे कि शायद अर्जुन ह युद्ध के मैदान म आगे। रागी भइया साम के समय तक दोनो दल मे युद्ध होथे। आखिर मे पहला दिवस के लड़ाई ल बंद करके दोनो दल वापिस होथे। संध्या के बेला कौरव के दल अउ पांडव के दल वापिस होथे। राजा दुर्योधन द्रोणाचार्य ल काहत हे गुरूदेव आज ते प्रतिज्ञा करे रेहे राजा युधिष्ठिर ल बांध के तोर चरण म डाल दूहू कइके बंदी बना लूहू कइके। अइसे का कारन होइस जेमा तै राजा युधिष्ठिर न बांध नइ सके। काबर नइ बांधे।
रागी- हव भई।
द्रोणाचार्य कहते है दुर्योधन दक्षिण दिशा ल अर्जुन के बान ल काटके गिरा दिस पर तै चिंता मत कर दुर्योधन अभी मोर प्रथम दिवस के युद्ध होय हे। चार के दिन लड़ाई अउ बाचे हे दुर्योधन मै चार दिन तक तोर रक्षा करे के जिम्मेदारी ले हवं। पर कल मै ऐसे युद्ध करहवं कुरूक्षेत्र के मैदान म जउन इतिहास ह हमेशा इतिहास ह याद रखही, हमेशा हमेशा इतिहास याद रखही मोला पूर्ण विसवास हे कल पांडव दल म कोई न कोई योद्धा के मौत होके रही। दुर्योधन पुछे कल अइसे कोन से युद्ध करबे जेमा तोला पुरा विसवास के पांडव दल कोनो न कोनो योद्धा मरही।
रागी- हव भई।
द्रोणाचार्य कथे काली मै चक्रव्यूह के रचना रचिहवं। चक्रव्यूह के लडा़ई मे पांडव दल के कोनो न कोनो मरही। चक्रव्यहू के निरमान करहू अउ वो चक्रव्यूह म जरूर कोनो मरही काबर ये चक्रव्यहू के लड़ाई ल केवल हमन तीने झन जानथन। तीन व्यक्ति जानथे अउ चौथा ल येकर बारे म मालूम नइये।
रागी- नी जाने।
(रागी भैया जब द्रोण के हाथ का बाण कट जाता है तो ऐसा अहसास होता है कि अर्जुन युद्ध के मैदान में आ गया हो। शाम का समय है दोनो दल अंत में पहला दिन का युद्ध रोक कर अपने-अपने शिविर में वापस आते है। राजा दुर्योधन द्रोणाचार्य से कहते है हे गुरूदेव आज तो आप प्रतिज्ञा किये थे कि राजा युधिष्ठिर को बांध कर तुम्हारे चरणों में डाल दूंगा। ऐसा क्या हुआ की तुम राजा युधिष्ठिर को बांध नही सके।
रागी- हां भई।
द्रोणाचार्य कहते है दुर्योधन दक्षिण दिशा से अर्जुन का बाण आकर मेरे बाण को काट दिया पर तुम चिंता मत करो अभी पहला दिन का युद्ध हुआ है। चार दिन की लड़ाई बाकी है मैं पांच दिन तक युद्ध में तुम्हारा रक्षा करुंगा।
और कल मैं ऐसा युद्ध करूंगा कुरूक्षेत्र के मैदान में जिसे इतिहास हमेशा हमेशा याद रखेगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कल पांडव दल का कोई न कोई योद्धा मारा जायेगा। दुर्योधन कहते है ऐसा कौन सा युद्ध करने जा रहे हो जिसमें पूरा विश्वास है कि कल कोई पांडव दल का योद्धा मरेगा।
रागी- हां भई।
द्रोणाचार्य कहते है कल मैं चक्रव्यूह की रचना करूंगा। चक्रव्यूह के लडा़ई में पांडव दल का कोई न कोई मरेगा। क्योकि इस चक्रव्यूह के बारे में तीन ही लोग जानते है और चौथा कोई नहीं जानता है।
रागी- नहीं जानता।)
दुर्योधन पुछते कोन कोन जानथे। पहला मे मै जानथवं अउ दूसरा मे भगवान के बेटा प्रदुम्न जानथे अउ तीसरा मे महाबीर अर्जुन ह जानत हे। पांडव दल मे केवल एक है अर्जुन। पर ये समय अर्जुन नइये, अर्जुन नइये भइया रागी। पांडव दल म कोई न कोई योद्धा के मरही। कुरूक्षेत्र के मैदान म सात किला के चक्रव्यूह बनथे। पहला दरवाजा म सिंधु नरेश जयद्रथ ल खड़ा करथे। चक्रव्यहू के निमार्ण होवथे द्रोणाचार्य स्वयं अपन हाथे ले चक्रव्यूह बनावत हे। तो पहला दरवाजा म रक्षा कोन करही, तो पहला दरवाजा म सिधू देस के राजा के बेटा राजा जयद्रथ करही। दूसरा में स्वयं द्रोणाचार्य महराज।
रागी- हव भई।
तीसरा में दानवीर करन, चौथा म कृपाचार्य अउ पाचवां अस्वस्थामा, छटवां दरवजा म भूरिस्रवा नाम के बीर खड़ा होही। अउ सातवां दरवाजा म राजा दुर्योधन स्वयं हे। ये सात किला के व्यूह के निर्माण होत हे। द्रोण कहिस पांडव जगा खबर भेज दे।
रागी- हव भई।
(दुर्योधन पुछते है कौन-कौन जानते हो महाराज। द्रोण बोले पहला मैं और दूसरा भगवान का बेटा प्रदुम्न और महावीर अर्जुन जानते है। पांडव दल में केवल एक है अर्जुन पर वह भी इस समय यहां नहीं है। पांडव दल का कोई न कोई योद्धा मरेगा ही। कुरूक्षेत्र के मैदान में सात किला का चक्रव्यूह बनाते है। द्रोणाचार्य स्वयं अपने हाथ से चक्रव्यूह बना रहे है। पहला दरवाजा में सिंधु नरेश जयद्रथ को खड़ा करते है। दूसरा में स्वयं द्रोणाचार्य महाराज।
रागी- हां भई।
तीसरा में दानवीर कर्ण, चौथा में कृपाचार्य और पाचवां में अश्वात्थामा, छटवां दरवाजा में भूरिश्रवा नाम का वीर खड़ा है। और सातवां दरवाजा में राजा दुर्योधन स्वयं है। इस प्रकार सात किला के व्यूह का निर्माण होते ही द्रोण कहते है पांडव को खबर भेज दो।
रागी- हां भई।)
दूत ल भेज दे, दूत के हाथ म पतरिका भेज दे। राजा युधिष्ठिर ल लिख दे तै चक्रव्यूह के लड़ाई करे बर जानत हस त आ जी। अउ नइ जानस त लड़ाई ल छोड़ दे। दूत पतरिका लिखिस राजा युधिष्ठिर पतरिका ल पढि़स चक्रव्यहू काला किथे जागत ते जागत मै सपना म नइ सुने अव। राजा कथे मै सपना म घलो नइ जानय येला। पर मै नइ जानत हवं अर्जुन जानत होही। पर अर्जुन ये समय नइये, मोर तीन झन भाई मन जानत होही ओमन ल पुछ लेथवं। भीम, नकुल, सहदेव, राजा युधिष्ठिर पुछथे भइया तुम चक्रव्यूह के लड़ाई जानथव। कहे नहीं भइया।
रागी-हव।
राजा किथे जब हम ये लड़ाई ल नइ जानन तो कुरूक्षेत्र प्रण गवाये ल नइ जावन। जब लड़ाई नइ जानन तो वहा जाके का करबो। लड़ाई ल तोड़ के फिर से तेरह बरस के बनवास जाना हे हमन ला। ये बात ल सुनिस त पांडव के दल म सोक के लहर छागे। दूख हो जाथे सरी सेना सिर झुका बैठे हे रागी भइया। बताये हे ओ समय महबीर अर्जुन के एक पुत्र हे जे देवी सुभ्रदा के गर्भ से जनम लिये हे। जेकर नाम ह अभिमन्यु हे। खेलत खेलत अभिमन्यु नाम के कुमार ह सभा म जाथे। सोला साल के उम्र, अभिमन्यु जब सभा के मध्य पहुंचथे तो देखे तो सारी समाज उदास हे।
रागी-हव।
(दूत के हाथ पत्र भेजते है कि राजा युधिष्ठिर यदि तुम चक्रव्यूह की लड़ाई जानते हो तो लड़ने आ जाओ और नहीं जानते तो फिर लड़ाई छोड़ दो। पत्र पढ़कर राजा युधिष्ठिर सोचते है चक्रव्यूह किसे कहते है मैं तो सपने में भी नहीं देखा हूं। मैं नहीं जानता हूं अर्जुन जानते होंगे पर वो इस समय नहीं है। मेरे और तीन भाई जानते होंगे उनसे पूछ लेता हूं ऐसा सोच कर भीम, नकुल, सहदेव से राजा युधिष्ठिर पुछथे भैया तुम लोग चक्रव्यूह की लड़ाई जानते हो। तीनो कहे नहीं जानते भैया।
रागी-हां।
राजा कहते है हम ये लड़ाई नहीं जानते है तो कुरूक्षेत्र के मैदान में प्राण गवांने क्यो जायेंगे। लड़ाई रोक कर फिर से तेरह वर्ष का वनवास चले जायेंगे। पांडव दल में शोक का लहर है। सारी सेना सिर झुकाये बैठे है।
बताये है रागी भैया महावीर अर्जुन का एक पुत्र है जो देवी सुभद्रा के गर्भ से जन्म लिया है जिनका नाम अभिमन्यु है वह खेलते-खेलते साभा में आता है। सोलह साल का कुमार अभिमन्यु जब सभा में पहुंचता है तो देखता है कि सारा समाज उदास है।
रागी-हव।)
राजा युधिष्ठिर सिर झुका के बइठे हे। अभिमन्यु का चीज के तुहला दुख सतावत हे से सभा काबर उदास बइठे हे का बात ये। अभिमन्यु दोनो हाथ जोड़ के पुछत हे पिता जी ये सभा उदस काबर कइसे हे। जेकर सभा ल देख के इंद्र के सभा लजा जाए आज वो सभा उदास हे। राजा युधिष्ठिर किथे अभिमन्यु तै रथ ला सजा हे। तोर मां सुभद्रा म रथ मे बइठा के तोर मामा कृष्ण के घर मे जा। द्वारिका जा, अभिमन्यु पुछिस काबर। तो कहे मै तेरह साल बनवास जाथवं। अभिमन्यु कहे पिताजी ये महाभारत के लड़ाई ल तोड़ के तोला बनवास जाय ल परत हे अइसे का कारन हे। राजा युधिष्ठिर कथे गुरू द्रोणाचार्य चक्रव्यूह के निर्माण करे हे।
रागी-हव।
तोर पिता जी जानत होही ऐ समे ओ हा नइये। ऐ सभा मे जितने भी बीर बइठे कोनो नइ जाने। लड़ाई ल नइ जानन। तब मरे बर नइ जावन बेटा। ये बात सुन अभिमन्यु खलखला के हंस देथे। ताली पीट के हंसिस कहे हहहहहह। अभिमन्यु कइथे महराज इही बात ल लेके आसू के धर बोहावत हस।
रागी- हव भई।
अभिमन्यु भुजा उठा के कहे पिताजी ये कौरव के दल ल कोन पुछथे तीनोलोक अउ चौदह भुवन के देवता कहु कौरव दल के रक्षा करही तब ले।
मैहा अरे छै किला ल तोड़ी लेहवं, छै किला ल तोड़ी लेहवं भाई।
बीरे ग अभिमन्यु काहन लागे भाई, बीरे गा अभिमन्यु काहन लागे भाई।
अरे ये कौरव के दल ल कोन कहे तीनो लोक अउ चौदह भुवन के देवता लड़ही लभो मै छै ठन किला ल तोड़ा सकथव।
रागी- हव भई पुरवं अउ बांचव।
(राजा युधिष्ठिर सिर झुकाकर बैठे है पुछते है ऐसा कौन सा दुख सता रहा है कि पिता जी यह सभा उदास है। अभिमन्यु दोनो हाथ जोड़कर कहता है जिस सभा को देखकर इंद्रा का सभा शरमा जाता है वो सभा आज उदास है। राजा युधिष्ठिर कहते है अभिमन्यु तुम रथ सजा लो और अपनी मां सुभद्रा को लेकर अपने मामा कृष्ण के घर चले जाओ। अभिमन्यु पुछते है क्यो तो राजा कहते है हम लोग तेरह वर्ष का वनवास जा रहे है। अभिमन्यु कहते है पिताजी इस महाभारत की लड़ाई को तोड़कर वनवास जाना पड़ रहा है ऐसा कौन सा कारण है। राजा युधिष्ठिर कहते है गुरू द्रोणाचार्य चक्रव्यूह का निर्माण किये है।
रागी-हां।
तुम्हारे पिता जानते होंगे पर वो इस समय नहीं है। लेकिन इस सभा में जितने भी वीर बैठे है कोई नहीं जानता है। लड़ाई नहीं जानते है तो मरने के लिए नहीं जायेंगे। बात सुनकर अभिमन्यु हंस देता है ताली पीटकर और कहता है बस इतनी ही बात में आंसू कह धार बहा रहे हो।
रागी- हां भई।
अभिमन्यु भुजा उठाकर कहते है पिताजी ये कौरव को कौन पूछता है तीनो लोक और चौदह भुवन के देवता भी अब उनकी रक्षा नहीं कर सकेंगे। मैं छ: किला को तो तोड़ ही दूंगा।
रागी- हां भई।)
पर सातवा के मोला गियान नइये सातवा नइ जा सकवं। बिदा दे बांध दे मोर सिर म सेनापति के मुकुट। मै जाहू लड़ाई करे बर। राजा धरमराज कहे अभिमन्यु चक्रव्यूह के नाम ल मै सपना म नइ सुने हवं। एक बात नइ जानय। ओकर बेटा तै कइसे जानथस। अभिमन्यु बोले पिताजी जब मै मां सुभद्रा के गर्भ म रेहेवं। प्रसव के पीड़ा म व्याकुल हो जथे बताये हे अभिमन्यु महाराज जब महारानी सुभद्रा प्रसव म व्याकूल हो जाथे तब महारानी सुभ्रदा ल।
अगा अर्जुन चक्रव्यूह ल बतावन लागे भाई, महारानी सुभद्रा ल चक्रव्यूह ल बतावन लागे भाई।
महारानी सुभद्रा ल चक्रव्यूह के कथा बताये हे अउ गर्भ के अंदर ले
सुंदर बालक ओला सुनन लागे भाई।
हा अभिमन्यु काहन लागे ग भाई, ए अभिमन्यु काहन लागे ग भाई।
अर्जुन चक्रव्यूह के कथा के बताये हे अभिमन्यु महराज गर्भ के अंदर ले वो प्रसंग ल सुनत हे।
रागी- जय हो।
छै किला तक कथा सुनथे सातवा के नाम लेथे अभिमन्यु के जनम हो जथे।
रागी- या या। परिवार सोहर मंगल गाथे।
रागी- हव भई।
अभिमन्यु सातवा किला के कथा नइ सुन पाये। बोले पिता जी तीनो लोक चौदह भुवन के देवता घलो कौरव के रक्षा करही तभो ले मै छै किला तोड़ देहवं मोला आदेश दे। भीम मन म तर्क लगाइस रागी जब छै कीला ल अभिमन्यु ऐक झन तोड़हू काहत हे तो सातवा किला ह हम सब मिलके नइ तोड़बो।
रागी- हव भई।
भीमसेन कहते है एक किला के भार मेरे उपर। छै किला कही अभिमन्यु तोड़ते है तो सातवा किला के जिम्मेदारी मै लेता हू।
रागी- वाह भई वाह।
( लेकिन सातवां किला तोड़ने का ज्ञान मुझे नहीं है। बांध दो मेरे सिर पर सेनापति का मुकुट मैं जाऊंगा लड़ाई करने। राजा धर्मराज बोले अभिमन्यु चक्रव्यूह का नाम हम सपने में नहीं सुने है और तुम कैसे जानते हो। अभिमन्यु बोले पिताजी जब मैं मां सुभद्रा के गर्भ में था। मां प्रसव पीड़ा में व्याकुल हो रही थी उस समय अर्जुन चक्रव्यूह का भेद महारानी सुभद्रा को बता रहे थे तब मैं गर्भ के अंदर सुन रहा था।
रागी- जय हो।
छ: किला तक का कथा सुना और सातवां में अभिमन्यु का जन्म हो गया।
रागी- या या। परिवार सोहर मंगल गाने लगे।
रागी- हां भई।
अभिमन्यु सातवां किला का भेद नहीं सुन पाया। बोले पिता जी तीनों लोक चौदह भुवन के देवता भी कौरव का रक्षा करेंगे तब भी मैं छ: किला तोड़ दूंगा मुझे आज्ञा दीजिए। भीम मन में तर्क लगाते है कि यदि अभिमन्यु छ: किला तोड़ सकता है तो हम सभी मिलकर सातवां किला तो तोड़ ही सकते है।
रागी- हां भई।
भीमसेन कहते है एक किला का भार मेरे उपर। छ: किला कही अभिमन्यु तोड़ते है तो सातवां किला तोड़ने का जिम्मा मैं लेता हूं।
रागी- वाह भई वाह।)
राजा युधिष्ठिर से हठ बस करके अभिमन्यु विदा लेथे। सोला साल के उमर हे सर मे सेनापति के मुकुट बंधाये हे। कृत कुडल बसंत भूसन लगाये ह रागी भइया। मां सुभ्रदा से विदा लेथे अउ मा सुभद्रा से विदा ले करके देवी उत्तरा कुमारी से विदा लेथे। उत्तरा कुमारी अभिमन्यु के आरती उतार के हाथ जोड़ के काहत हे प्राणनाथ। मै आप से बरदान मांगत हवं। कुरूक्षेत्र के मैदान लड़ाई मे मत जा अगर कही ते लड़ाई मे जावत हस। लड़ाई म तै भले मर जबे फेर पीठ दिखाके मत आगे। विराट कुमारी उत्तरा कुमारी काहत हे महराज तै भले जुझ जबे फेर लड़ाई से पीठ दिखाके मत आबे।
रागी- जय हो।
महारानी सुभद्रा अभिमन्यु ल बिदा करत हे रागी भइया। पांडव के सेना ले करके अभिमन्यु आगे आगे चलत हे अउ अभिमन्यु के रथ के पीछ पीछे काल समान भीमसेन चलते है। भीम के पीछे सारी सेना। कुरूक्षेत्र के मैदान मे जब पहुंचे अभिमन्यु सात किला के चक्रव्यूह के निर्माण हे। कइसे चक्रव्यूह बनाये द्रोणचार्य महराज। पहला दरवाजा म चार प्रकार के चतुरंगी सेना ले करके जयद्रथ खड़े हे। जयद्रथ जब अभिमन्यु ल देखथे। रागी भइया लड़े के खातिर अभिमन्यु चले आवथे।
रागी- हव भई।
मां सुभद्रा पुत्र के रक्षा करे के खातिर प्रेम मे विवश होगे पुत्र के गला म विजय माला डाल के विदा करे हे। अभिमन्यु मै तोर विजय नाम माला डाले हवं जब तोर गला म ये विजय माला रइही तोला काल विजय नइ पाये। रागी भगवान ल चिंता हो जथे।
रागी- हव भई।
(राजा युधिष्ठिर से हठ करके अभिमन्यु विदा लेते है। सोलह साल का उम्र है और सिर पर सेनापति का मुकुट। कृत कुंडल बसंत भूषण लगाये रागी भैया मां सुभ्रदा से विदा लेकर देवी उत्तरा कुमारी से विदा लेता है। उत्तरा कुमारी अभिमन्यु का आरती उतार कर हाथ जोड़ के कहते है हे प्राणनाथ मैं आप से वरदान मांगती रही हूं। कुरूक्षेत्र के मैदान में लड़ाई करने मत जाओ, और लड़ाई करने जाओगे ही तो भले मर जाना किन्तु पीठ दिखाकर मत आना।
रागी- जय हो।
महारानी सुभद्रा अभिमन्यु को विदा करती है। पांडव सेना लेकर अभिमन्यु कुमार आगे-आगे चल रहे है पीछे में भीमसेन और भीमसेन के पीछे सारी सेना। कुरूक्षेत्र के मैदान में जब पहुंचे अभिमन्यु तो सात किला का चक्रव्यूह बना है। पहले दरवाजे पर चार प्रकार की चतुरंगी सेना लेकर जयद्रथ खड़े है। जयद्रथ अभिमन्यु को देखकर लड़ने चला आ रहा है।
रागी- हां भई।
मां सुभद्रा पुत्र की रक्षा के लिए प्रेम में विवश होकर पुत्र के गले में विजय माला डाल कर विदा की है। अभिमन्यु मैं तुम्हारे गले में विजय माला डाल रही हूं जब तक यह तुम्हारे गले में है काल भी विजय नहीं पा सकेगा। रागी भगवान को चिंता होने लगी।
रागी- हां भई।)
दक्षिण दिसा म अर्जुन के रथ चलात भगवान सोचथे आज अभिमन्यु के सोला साल पूर्ण होगे हे। आज सोला साल बित गेहे। कोनो भी स्थिति हाल मा आज अभिमन्यु ल वापिस जाना हे अगर कहि अभिमन्यु वापिस नइ जाही तव शंकर के बानी गलत हो जाही रागी। देव आदिदेव भगवान के वाणी मिथ्या हो जाही। भगवान फिर माया के विप्र बनाथे जेने रस्ता म अभिमन्यु लड़े बर जावत हे उही रस्ता म ब्राम्हण आवत हे। रस्ता म मुलाकात होथे अभिमन्यु ब्राम्हण के प्रणाम करथे। ब्रम्हण कथे अभिमन्यु मै एक दरिद्र ब्रम्हण हवं। गरीब ब्रम्हण अव मै सुनेव की अभिमन्यु पहिली सेनापति बने हे। मै मन मे आसरा लेके आत रेहेव तोर से कुछ मांगहू कइके। फेर तोर मोर भेट तो बीच म होवत हे तै लड़े बर जावत हस। अभिमन्यु कहे नहीं महाराज।
रागी- हव भई।
जो तोर मन म लालसा हे ओला मांग ले। तै जो मांगबे वो मै दिहवं। ब्रम्हण पुछत हे देबे अभिमन्यु बोले हा महाराज दिहव। तो ब्रम्हण तीन बचन हराके कहते है अगर अभिमन्यु ते देना चाहत हस त तोर सुभद्रा जेन विजय माला देहे।
अगा विजय माला, मोला देदे भाई, भइया विजय माला मोला देदे भाई।
हा विजय माला देना काहन लागे ग भाई, हा देदे काहन लागे भाई।
तोर मां जो विजय माला ल देहे वोला मोला दे। अभिमन्यु निकालथे विजय माला अउ निकाल करके वो ब्रम्हण देवता ल दे देथे। ब्रम्हण देवता लेथे अउ कुछ दूर जाये के बाद अंतर ध्यान हो जथे।
गाना- अजि माया मोहनी ग मोहत हे जगत ल अति माया मोहनी।
अजि माया मोहनी ग मोहत हे जगत ल अति माया मोहनी।
ये माया मोहनी गा भइया, ये माया मोहनी वो दीदी माया मोहनी।
ये माया मोहनी गा भइया, ये माया मोहनी वो दीदी माया मोहनी।
ये माया मोहनी गा मन मोहथे जगत ल माया मोहनी।
रागी भइया।
रागी- हव।
(दक्षिण दिशा में अर्जुन का रथ चलाते हुए भगवान सोचते है आज अभिमन्यु का सोलह साल पूर्ण हो गया है और किसी भी स्थिति में आज अभिमन्यु को वापस जाना है। यदि अभिमन्यु वापस नहीं जाता है तो भगवान शंकर की वाणी झुठी हो जायेगी। देव आदिदेव भगवान की वाणी मिथ्या हो जायेगी। भगवान फिर माया का विप्र बनाते है। जिस रास्ते से अभिमन्यु जा रहा है उसी रास्ते में ब्राह्मण आ रहा है। रास्ते में मुलाकात होती है अभिमन्यु ब्राह्मण को प्रणाम करते है। ब्राह्मण कहते है मैं दरिद्र ब्राह्मण हूं सुना हूं कि अभिमन्यु पहली सेनापति बने है तो कुछ मांग लूंगा। किन्तु बीच रास्ते में ही भेट हो गई। अभिमन्यु कहे नहीं महाराज।
रागी- हां भई।
जो तुम्हारे मन में लालसा है मांग लो। अभिमन्यु कहते है क्या चाहिए। ब्राह्मण तीन वचन हराकर कहते है यदि अभिमन्यु देना ही चाहते हो तो तुम्हारी मां सुभद्रा ने जो विजय माला दिए है उसे दे दो। अभिमन्यु निकाल कर विजय माला ब्राह्मण देवता को दे देता है। ब्राह्मण कुछ दूर जाने के बाद अंतर ध्यान हो जाते है।
गाना- अजि माया मोहनी मोह रही है जगत को।
ये माया मोहनी भैया माया मोहनी
ये माया मोहनी दीदी माया मोहनी
मोह रही है जगत को। रागी भैया।
रागी- हव।)
ब्रम्हण देवता विजय माला ल लेथे कुछ दूर जाके अंतर ध्यान होवथे। और अभिमन्यु पांडव के साथ सारी सेना ले करके कुरूक्षेत्र के मैदान म चक्रव्यूह तोड़ खातिर पहुंचथे।
ये प्रसंग वैसमपायन जी महराज जनमेजय ल बतावत हे कहिस कि राजन द्रोणपर्व के प्रसंग हे कहिस के अइसे पतित पावनी प्रसंग हे, रागी भइया जनमेजय के प्रति वैसमपायन जी कथे अब अभिमन्यु चक्रव्यूह तोड़े बर गेहे। आगे अब चक्रव्यूह के प्रसंग, अभिमन्यु वध के प्रसंग हे यही से फिर ये प्रसंग विश्राम दे जाथे भइया।
बोलिये श्री बृंदाबन बिहारी लाल की जय।
(ब्राह्मण देवता विजय माला लेकर कुछ जाकर अंतर ध्यान हो जाते है और अभिमन्यु पांडव के साथ सारी सेना लेकर कुरूक्षेत्र के मैदान में चक्रव्यूह तोड़ने पहुंचते है।
यह प्रसंग वैश्मपायन जी महाराज जनमेजय को बता रहे है कि राजन यह द्रोणपर्व प्रसंग पतित पावनी प्रसंग है रागी भैया जनमेजय के प्रति वैश्मपायन जी कहते है अभिमन्यु चक्रव्यूह तोड़ने गये है और अब आगे चक्रव्यूह के प्रसंग, अभिमन्यु वध का प्रसंग है और इस प्रसंग को यही विराम देते है।
बोलिये श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय।)
लिप्यंतरण: जयंत साहू
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.