भोपाली उर्दू

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Published on: 31 August 2019

विमलेश घोडेस्वार (Vimalesh Ghodeswar)

विमलेश घोडेस्वार, शायर, लेखक है| सत्यजित रे फिल्म संस्थान से फिल्म मेकिंग में डिप्लोमा के बाद मुंबई में रह कर पटकथा लेखन और फिल्म निर्देशन का कार्य कर रहे है|

यह मॉड्यूल भोपाल में बोली जाने वाली भोपाली उर्दू पर केन्द्रित है| इसमें ख़ासतौर पर भोपाली उर्दू क्या है, वो कैसे बोली जाती है और कैसे तामीर हुई (बनी), इन सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश की गयी है| इस ज़बान में कौन-कौन सी भाषा शामिल होती चली गयी और अब उनके लफ़्ज़ किस अंदाज़ और मायनों में इस्तेमाल किये जाते हैं, इसका भी विस्तार से ज़िक्र किया गया है| 

भोपाली पहली नज़र में सुनने वालों को एक मसालेदार और एक मज़ाहिया लहजा लिए हुई दिखाई दे सकती है, ये ज़ाहिर है कि आम बोल-चाल की ये ज़बान ग़ैर संजीदा है, पर ये अंदाज़े बयानी का फर्क है जो संजीदगी को भी मज़ाक का एक जामा पहना कर पेश कर देती है, और गहरी से गहरी बात लुत्फ़ो-अंदाज़ से कह देती है।

जहाँ तक ज़बान का ताल्लुक़ है भोपाली अपने आप में कोई पूरी ज़बान नहीं, ये उर्दू की तरह ही है बस इसे बोलने का फ़र्क़ इस ज़बान को मुख़्तलिफ़ मेयार पर खड़ा करता है। बहुत से लफ्ज़ों में जो बोलने का तरीक़ा है वो बुन्देली और मालवी से आया हैभोपाली ज़बान में दूसरी ज़बानों के लफ्जों का इस्तमालभी बख़ूबी हुआ है। उसमें ख़ास तौर पर अरबीमराठीहिंदीपश्तोबिल्लोची और फ़ारसी के लफ़्ज़ हैं