Sushila Takbhore
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समाज की ही तरह साहित्य भी गतिशील होता है| साहित्य समाज में हो रहे परिवर्तन का साक्षी होता है| हमारा देश जितना विविधधर्मी है उसी के अनुरूप दलित साहित्य में भी विविधता है| दलित साहित्य की विकास यात्रा को एक नयी ऊँचाई मिल रही है| इसके ऐतिहासिक विकासक्रम पर अगर हम ध्यान केंद्रित करें तो पता चलेगा कि…
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