Samaj

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राम नरेश राम
समाज की ही तरह साहित्य भी गतिशील होता है| साहित्य समाज में हो रहे परिवर्तन का साक्षी होता है| हमारा देश जितना विविधधर्मी है उसी के अनुरूप दलित साहित्य में भी विविधता है| दलित साहित्य की विकास यात्रा को एक नयी ऊँचाई मिल रही है| इसके ऐतिहासिक विकासक्रम पर अगर हम ध्यान केंद्रित करें तो पता चलेगा कि…
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दीपक सिंह
हिन्दी में दलित विमर्श की शुरुआत मोटे तौर पर अस्सी के दशक से मानी जा सकती है| पिछले लगभग तीस-पैंतीस वर्षों में इसने एक ठोस यात्रा तय की है| परंपरागत सामाजिक और साहित्यिक मूल्यों के साथ इसकी टकराहट ने वैचारिकी के क्षेत्र में गंभीर उथल-पुथल मचाई है| हिन्दी में बहुतेरे साहित्यिक आंदोलन हुए लेकिन संत…
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