Pandvani is one of the most celebrated performative genres from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.
The parv presented in this video is the Van Parv. The prasangs contained in this parv are Pandav Van Gaman, Draupadi Prasang, Vyas Narayan ka Agaman, shiv Aur Arjun ka Yuddh, Arjun ka Divyastr Prapt Karna, Bheemsen Hanuman Milan, Duryodhan Apmaan, Jayadrath Apmaan.
Transcript
प्रभा (Chhattisgrahi) |
बोलिए बृन्दावन बिहारी लाल की जय। |
प्रभा (Hindi) |
बोलिए वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
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रागी |
जय। |
रागी |
जय। |
प्रभा |
‘’रामे रामे रामे रामे रामे भाई, रामे रामे ग भैया जी रामे रामे भैया रामे रामे रामे जी भाई, जन्मेजय पूछन लागे ग मोर ए दे भाई, जन्मेजय पूछन लागे ग मोर ए दे भाई’’ अरे भैया पांचो भैया पांडव इन्द्रपस्थ के राजलक्ष्मी ल जुंआ म हारथे अउ जुंआ म हारे के बाद राजा दुर्योधन पांडव ल तेरह साल के वनवास देथे रागी भाई वन पर्व के कथा वैसमपायम मुनि जी राजा जन्मेजय ल बतावत हे पांवडव इंद्रप्रस्थ के राज ल जुआ म हारथे अउ साधु के रूप धरथे ‘’अरे तेरह साल के वनवास जाए भैया जी तेरह साल के वनवास जावय ना, काम्यक वन म पहुंचन लागे ना, काम्यक वन म पहुंचन लागे ना’’ पांचो भाई पांडव काम्यक वन म पहुंचथे भीमसेन के बेटा घटोत्कछ उहां ले जा के उतारथे भाई आखिरी में रागी भाई जैसे ही पांडव काम्यक वन में पहुंचथे मनुष्य के खुशबू पाके कामी नाम के दैत्य फिर पहुचंथे कामी दैत्य चिल्ला करके बोलथे भैया हिडम्ब दानव ल जो भीमसेन मारे रीहीस हे वही भीमसेन जंगल म आय हे ये बात सुनीस त भीमसेन अउ कामी नाम के दैत्य दोनों में युद्ध ‘’अरे भई दोनों में युद्ध जब होवन लागे भाई, कुंती नंदन कुंती नंदन कहन जब लागे’’ भीमसेन कामी नाम के दैत्य के वध करथे पांचो भैया पांडव जंगल के रास्ता पकड़थे रागी भैया हस्तिना के प्रजा पांडव के संग म चलथे ब्राम्हण क्षत्रीय वैश्य शूद्र आके कहिथे महाराज जैसे तुमन जंगल में कांदा कुशा खाके जीवन बिताहू वईसने हमू रही जाबो पर वापस राजा दुर्योधन के राज में नई जावन महाराज, राजा युधिष्ठिर कथे भैया अब कहां दर दर के ठोकर खाहू तुमन तेरह बरस कतका दिन हे तेरह दिन के बात ए रागी भैया, राजा युधिष्ठिर काहत हे अरे तेरह साल अरे तेरह दिन तो आय हस्तिना में निवास करव मय तेरह साल वनवास ल बिता के आवत हंव ब्राम्हण क्षत्रीय वैश्य शूद्र चार गेहे रागी ओमा ब्राम्हण जाति वापस नी होत हो कहे महराज कांदा कुशा खा के जी जबो महराज पर राजा दुर्योधन के राज म वापस लौट के नई जावन। |
प्रभा |
‘’रामे रामे रामे रामे रामे भाई, रामे रामे जी भैया जी रामे रामे भैया रामे रामे रामे जी भाई, जन्मेजय पूछने लगे जी मेरे भाई, जन्मेजय पूछने लगे जी मेरे भाई’’ अरे भैया पांचो भैया पांडव इन्द्रपस्थ की राजलक्ष्मी को जुए में हारते है और जुए में हारने के बाद राजा दुर्योधन पांडव को तेरह साल का वनवास देते हैं, रागी भाई वन पर्व की कथा वैसमपायम मुनि जी राजा जन्मेजय को बताते हैं, पांवडव इंद्रप्रस्थ का राज जुए में हार जाते हैं और साधु क रूप धरते हैं ‘’अरे तेरह साल का वनवास जा रहें हैं भैया, जी तेरह साल का वनवास जा रहें हैं, काम्यक वन में पहुंचन लगे, काम्यक वन में पहुंचने लगे’’ पांचो भाई पांडव काम्यक वन में पहुंचते हैं, भीमसेन का बेटा घटोत्कछ वहां ले जाकर के उतारता है भाई, आखिरी में रागी भाई जैसे ही पांडव काम्यक वन में पहुंचते हैं मनुष्य की खुशबू पाकर कामी नाम का दैत्य पहुचं जाता है कामी दैत्य चिल्लाकर के बोलता है, भैया हिडम्ब दानव को जिस भीमसेन ने मारा था वही भीमसेन जंगल में आया है ये बात सुनी तो भीमसेन और कामी नाम के दैत्य दोनों में युद्ध शुरू हो जाता है ‘’अरे भाई दोनों में युद्ध जब होने लगा भाई, कुंती नंदन कुंती नंदन कहने जब लगा’’ भीमसेन कामी नाम के दैत्य का वध करते हैं पांचो भैया पांडव जंगल का रास्ता पकड़ते हैं रागी भैया हस्तिना की प्रजा पांडव के साथ चलती है, ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र आकर कहते हैं महाराज जैसे आप लोग जंगल में कंद मूल खाकर जीवन बिताएगें वैसे ही हम भी जीवन बिताएगें पर वापस राजा दुर्योधन के राज्य में नहीं जाएगें महाराज, राजा युधिष्ठिर कहते हैं भैया अब आप लोग कहां दर दर की ठोकर खाएगें तेरह वर्ष कितने दिन हैं तेरह दिन की बात है, रागी भैया राजा युधिष्ठिर कहते हैं अरे तेरह साल महज तेरह दिन ही तो है, हस्तिना में निवास करिए मैं तेरह साल वनवास को बिताकर आता हूं, ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र चारों गए थे रागी उसमें से ब्राम्हण जाति वापस नहीं होती, कहते हैं महराज कंद मूल खाकर के जी लेगें महाराज पर राजा दुर्योधन के राज्य में वापस लौटकर नहीं जाएगें। |
रागी |
नी जावन। |
रागी |
नहीं जाएगें। |
प्रभा |
पांचो भैया पांडव फिर सघन वन की ओर प्रस्थान करत हे साथ में मां जगत जननी मां द्रौपदी के लंबा लंबा केश बिखरे हे रागी भाई पांचो भाई पांडव के सिर में जटा मस्तक में अर्धपूर्ण चंद्र खापे हे बन के कपड़ा पहिने हे भयानक जंगल में पहुंचथे पांडव के भूख के मारे व्याकुल होगे हे विचार करथे रागी कुछू खाय के प्रबंध करबो जंगल के बीच में पहुंचथे त रागी का देखथे एक ठन आमा के पेड़ हे अउ आमा के पेड़ में ‘’अ ग छह ठन फल ग लगे राहय ग भाई अग छह ठन फल तब लगे राहय ना भाई’’ आमा में छह ठन फल लगे हे पांडव आपस में कहे भैया हम भूख से व्याकुल हन ‘’वहीदे छह ठन फल लगे हावय ग भाई पांडव मन देखन लागे ग ए दे भाई, पांडव मन देखन लागे ग ए दे भाई पांडव पेड़ म चढ़के छयो ठन फल ल तोड़ देथे फल तोड़ के एक एक ठन फल ल आपस म बांट लेथे एक ठन ल द्रौपदी ल दे दिस एक एक ठन पांचो ल अपन मन ले लिस फल ल खाय के तैयारी करथे द्वारका म भगवान बांके बिहारी विचार करथे ये फल तवस्वी के फल आय अउ बिना मालिक के इजाजत के बगैर पांडव तोड़ के खात हे अगर कहीं ऋषि जान डरही त पांडव ल ब्रम्ह श्राप म जला के राख कर दिही भगवान ना द्वारिका में चप्पल खोजत हे ना गरूड़ खोजत हे ना रथ खोजत हे भगवान जंगल में पहुंचगे दूरिहा ले आवाज देवत हे भगवान चिल्लाय बोले ए पांडव भगवान के आवाज पांडव के कान म पड़गे काहय या.. ‘’ये तो केशव सही मोला लागत हावय भाई, भैया मोहन सही मोला लागत हावय ग भाई पांडव मन देखन लागे ग भाई, पांडव मन देखन लागे ग भाई, पांडव आवाज के दिशा मे देखथे त भगवान बांके बिहारी आत हे भगवान ल देथथे पांडव मन भगवान ल देख के गदगद होगे, दउड़ के जाथे अउ बांके बिहारी के दण्डवत प्रणाम करथे, अउ भगवान के प्रणाम करके पांडव काहत हे द्वारिकानाथ ‘’अ जी पांव पैजनिया कमर करधनिया गले में मोहर माला श्याम कोहिनूर के’’। |
प्रभा |
पांचों भैया पांडव फिर सघन वन की ओर प्रस्थान करते हैं, साथ में मां जगत जननी मां द्रौपदी के लंबे लंबे केश बिखरे हैं रागी भाई पांचों भाई पांडव के सिर में जटा मस्तक में अर्धपूर्ण चंद्र छपे हैं वन के कपड़े पहने हैं, भयानक जंगल में पहुंचते हैं पांडव के भूख के मारे व्याकुल हो गए हैं विचार करते हैं रागी कुछ खाने का प्रबंध करते हैं जंगल के बीच में पहुंचते हैं तो रागी क्या देखते हैं एक ही आमा का पेड़ है और आम के पेड़ में ‘’अ जी छ: ही फल लगे थे जी भाई, अ जी छ: ही फल तब लगे थे ना भाई’’ आम के छ: ही फल लगे हैं, पांडव आपस में कहते हैं भैया हम भूख से व्याकुल हैं ‘’वहां पर छ: फल लगे हैं जी भाई, पांडव लोग देखने लगे जी भाई, पांडव लोग देखने लगे जी भाई, पांडव पेड़ में चढ़कर सारे छ: फल को तोड़ लेते हैं, फल तोड़कर एक एक फल को आपस में बांट लेते हैं एक फल द्रौपदी को दे दिया एक एक फल पांचो जनो ने आपस में बांट लिया और बस फल को खाने को तैयार ही थे इतने में द्वारिका में भगवान बांके बिहारी विचार करते हैं ये फल तवस्वी के फल हैं, और बिना मालिक की इजाजत के पांडव इसे तोड़कर खा रहें हैं अगर कहीं ऋषि जान जाएगें तो पांडव को ब्रम्ह श्राप से जलाकर राख कर देगें द्वारिका में भगवान ना तो चप्पल खोज रहें हैं हे ना ही गरूड़ खोज रहें हैं और ना ही रथ खोज हैं, भगवान जंगल में पहुंच गए दूर से आवाज देते हैं, भगवान चिल्लाये बोले ए पांडव भगवान की आवाज पांडव के कानों में पड़ गई कहा अरे! ‘’ये तो केशव जैसे लग रहें है भाई, भैया मोहन जैसे मुझे लग रहें हैं जी भाई, पांडव लोग देखने लगे जी भाई, पांडव लोग देखने लगे जी भाई, पांडव आवाज की दिशा में देखते हैं तो भगवान बांके बिहारी आ रहे हैं भगवान को देखते हैं पांडव लोग भगवान को देखकर गदगद हो गए, दौड़कर जाते हैं और बांके बिहारी को दण्डवत प्रणाम करते हैं, और भगवान को प्रणाम करके पांडव कहते हैं द्वारिकानाथ ‘’अ जी पांव में पैजनिया, कमर कर्धन, गले में मोहरों की माला श्याम कोहिनूर के’’। |
रागी |
‘’अ जी पांव पैजनिया कमर करधनिया गले में मोहर माला श्याम कोहिनूर के’’। |
रागी |
‘’अ जी पांव में पैजनिया, कमर कर्धन, गले में मोहरों की माला श्याम कोहिनूर के’’। |
प्रभा |
‘’जय मधुसुदन कुंज बिहारी गले में मोहर माला जय जय जय गोवर्धनधारी गले में मोहर माला श्याम कोहिनूर के, पांव पैजनिया कमर करधनिया गले में मोहर माला कोहिनूर के’’। |
प्रभा |
‘’जय मधुसुदन कुंज बिहारी गले में मोहर माला जय जय जय गोवर्धनधारी गले में मोहरों की माला श्याम कोहिनूर के, पांव में पैजनिया कमर कर्धन गले में मोहरों माला कोहिनूर के’’। |
रागी |
‘’गले में मोहर माला श्याम कोहिनूर के, पांव पैजनिया कमर करधनिया गले में मोहर माला कोहिनूर के’’। |
रागी |
‘’गले में मोहरों की माला श्याम कोहिनूर के, पांव में पैजनिया कमर कर्धन गले में मोहरों की माला कोहिनूर के’’। |
प्रभा |
रागी भैया पांडव मन भगवान के प्रणाम करथे भगवान कथे जोन हाथ में फल राखे हो बिना इजाजत के तपस्वी के फल हे जेला तुमन बिना आडर लिए खात हव पांडव बोले केशव गलती होगे। |
प्रभा |
रागी भैया पांडव लोग भगवान को प्रणाम करते हैं भगवान कहते हैं हाथ में जो फल रखे हो वह बिना इजाजत की तपस्वी के फल हैं जिसे तुम लोग बिना अनुमति लिए खा रहे हो, पांडव बोले केशव गलती हो गई। |
रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई। |
प्रभा |
पांडव काहत हे द्वारिकानाथ हमर से गलती तो होगे फिर ये गलती के सुधार करे के कोई उपाय हे तब भगवान कहे एके ठन उपाय हे कहे का जे फल ल ते फल ल जिंहा ले तोड़े हव तेमर फिर से लगा दो, तेन वृक्ष में लगा दव फल जहां से तोड़े हव वहीं वापस फिर से लगा दव, पांडव कहे द्वारिकानाथ पेड़ से फल ल तोड़ लेन ते फेर कईसे लगही रागी टूटे हुए फल का वृक्ष में जाके लग सकही। |
प्रभा |
पांडव कहते हैं द्वारिकानाथ हमसे गलती तो हो गई अब इस गलती को सुधारने का कोई उपाय है ? तब भगवान कहते हैं एक ही उपाय है, पांडव पूछते है क्या ? फल को जहां से तोड़े हो वहीं वापस लगा दो, उसी वृक्ष में लगा दो जहां से फल तोड़े हो वहीं वापस फिर से लगा दो, पांडव कहते हैं द्वारिकानाथ पेड़ से फल को तोड़ लेने पर फिर से कैसे पेड़ पर लगेगा, रागी टूटा हुआ फल क्या वृक्ष में जाकर वापस लग सकेगा। |
रागी |
नई लग सकय भई। |
रागी |
नहीं लग सकता भाई। |
प्रभा |
पांडव कहिस प्रभु ये कईसे पेड़ म जाके लगही भगवान कहे भैया काबर नई लगही फेंक के देखव पांडव फेंक के देखथे वाकई पांडव के फल जहां जहां से तोड़े थे वहां वहां जाके लग गए, भवगान काहथे द्रौपदी अब तोर हाथ के फल ल फेंक माता द्रौपदी काहथे मय नारी के जात अंव ना जाने मोर से का गलती होगे भगवान कहे पांचाली तंय काबर चिंता करत हस द्रौपदी फल फेंकत हे पेड़ म फल नई लगे जमीन म फल गिर जथे रागी भाई द्रौपदी देखते राहय मोर हाथ के फल ह रूख ऊपर लगही अचानक जमीन म गिर गे द्रौपदी के नजर पड़गे अई हाय.. ‘’यहा काबर फल ह तो नई लागे भाई भैया कईसे फल ह तो नई लगय भाई हां जगदम्बा देखन लागे ग मोर भाई’’ फल ह भिंया म गिर गे देखिस त माता द्रौपदी ल दुख होगे भगवान पूछिस पांचाली तोर हाथ के फेंके फल ह रूख म काबर नई लगत हे मां जगदम्बा बोलिस का जानव भगवान सुरता कर जीवन में कोनो समय कोनो ल कुछू केहे रेहे द्रौपदी ल याद आथे द्वारिकानाथ जे दिन बड़े बड़े सम्राट मन मोर स्वयंवर म आय रीहीस हे दान वीर कर्ण बीड़ा लेके खड़ा होईस श्वेत कुंडल लगाय बसन भूषण लगाय वो समय में कर्ण के रूप ल देख के मय सोचे रेहेंव कि पृथ्वी में ऐसा कौन सा लड़की जनम ले होही भाई जेन ल कर्ण जईसे पति मिलही अतकेच सोचेंव एकर से आगे कहीं नई सोचेंव अतके मोर से गलती होगे मां द्रौपदी क्षमा याचना करथे। |
प्रभा |
पांडव कहते हैं प्रभु ये कैसे पेड़ में जाकर लगेगा, भगवान कहते भैया क्यों नहीं लगेगा फेंक के तो देखतो, पांडव फेंककर देखते हैं वाकई पांडव के फल जहां जहां से तोड़े थे वहां वहां पर जाकर लग गए, भगवान कहते हैं द्रौपदी अब तुम्हारे हाथ के फल को फेंको माता द्रौपदी कहती है, मै नारी की जात हूं ना जाने मुझसे क्या गलती हो गई, भगवान कहते हैं पांचाली तुम क्यों चिंता करती हो, द्रौपदी फल को फेंकती है पेड़ में फल नहीं लगा फल जमीन में गिर जाता है, रागी भाई द्रौपदी देख रही थी मेरे हाथ का फल पेड़ पर लगेगा, फल अचानक जमीन पर गिर गया द्रौपदी की नजर पड़ गई कहा अरे हाय.. ! ‘’ये फल क्यों नहीं लग रहा है भाई, भैया कैसे फल नहीं लग रहा है भाई, हां जगदम्बा देखने लगी जी मेरे भाई’’ फल जमीन पर गिर गया देखा तो माता द्रौपदी को दुख दुख हो गया, भगवान पूछते हैं पांचाली तुम्हारे हाथ का फल पेड़ पर क्यो नहीं लग रहा है मां जगदम्बा ने कहा क्या जानूं मैं भगवान, भगवान बोले याद करो जीवन में कभी किसी समय किसी को कुछ कहा था क्या ? द्रौपदी को याद आता है द्वारिकानाथ जिस दिन बड़े बड़े सम्राट लोग मेरे स्वयंवर में आए थे दानवीर कर्ण चुनौती स्वीकार करके खड़े हुए श्वेत कुंडल धारण किए वस्त्र आभूषण पहने उस समय में कर्ण के रूप को देखकर मैंने सोचा था कि पृथ्वी में ऐसी कौन सी लड़की ने जन्म लिया होगा जिसे कर्ण जैसा पति मिलेगा बस इतना ही सोचा था इससे आगे कुछ और नहीं सोचा था इतनी ही मुझसे गलती हो गई मां द्रौपदी क्षमा याचना करती है। |
रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो। |
प्रभा |
भगवान ह पांडव ल छोड़ देथे रागी भाई अउ भगवान ह अर्न्तध्यान हो जथे राजा युधिष्ठिर ल दुख होगे हम छै झन रतेन त कोनो जंगल म जाके कांदा कुशा खाके रहि जतेन हम छै रतेन रागी भाई कोनो भी जघा हम जी खा लेतेन पर हमर समाज में ब्राम्हण के समाज हे। |
प्रभा |
भगवान पांडव को छोड़ दिया रागी भाई और भगवान अर्न्तध्यान हो गए ,राजा युधिष्ठिर को दुख होने लगा कि हम छ: जन रहते तो कहीं भी जंगल में जाकर कंद मूल खाकर रह जाते, हम छ: लोग रहते रागी भाई तो किसी भी जगह हम जी खा लेते पर हमारे साथ में ब्राम्हणों का समाज है। |
रागी |
हव बिलकुल लगे हे। |
रागी |
हां बिल्कुल लगे हैं। |
प्रभा |
मैं तो अपन पेट ल नई भर सकंव त फेर ब्राम्हण मन ल कहां से भोजन करांहू राजा युधिष्ठिर विचार करथे मोर अकल बतईया भगवान व्यास नारायण हे मय व्यास नारायाण ल पूछ लेथव कि का करना चाहिए पांडव बैठ के व्यास देव के स्तुति करते हैं भगवान व्यास नारायण फिर दर्शन देते हैं अउ पूछत हे पांडव तुमन मोला काबर बुलाय हव, राजा धर्मराज कथे महराज इंखर बर कुछू भोजन के प्रबंध कर देतेव बोले कुछू प्रबंध कर देते त व्यास नारायण काहत हे राजन अगर कहीं अपन तपस्या में भगवान सूर्य ल प्रसन्न कर लेबे तो वो भोजन के व्यवस्था कर दिही पांडव बैठ के भगवान रवि ल पुकारत हे भगवान रवि साक्षात दर्शन देत हे बोले मांग ‘’अ जी तुम्हरी पूजा प्रसन्न मोहि किन्हा तब मांगु मांगु वर तुमको दिन्हा’’ कहे मांग त राजा युधिष्ठिर कहे कहीं नहीं महराज ब्राम्हण के समाज हे संग में इंखर बर कुछू भोजन के व्यवस्था कर दो सूर्य निकाले अक्षय बटवा देके काहय येला अंगना म मड़ा देबे गाय के गोबर म अंगना ल लिप के मड़ा देबे दोनों ठन हाथ ल जोड़ के कबे महराज जो चीज के जरूरत हे जो चीज ते मांगबे जतके मांगबे ओतके चीज मिलही, मोला ए दे चीज के जरूरत हे ऐ दे चीज दे जो चीज के नाम लेबे पर एक बात याद रखना युधिष्ठिर द्रौपदी के खाय के पहिली जोन मांगबे वो मिलही द्रौपदी कोनो खा डरही तहाने पांच रूपिया मांगबे त तोला पांच टिकली नई मिलय। |
प्रभा |
मैं तो अपना ही पेट नहीं भर सकता हूं तो फिर इन ब्राम्हणों को कहां से भोजन कराऊंगा राजा युधिष्ठिर विचार करते हैं मुझे रास्ता दिखाने वाले भगवान व्यास नारायण हैं व्यास नारायाण से पूछ लेता हूं कि क्या करना चाहिए पांडव बैठकर व्यास देव की स्तुति करते हैं, फिर भगवान व्यास नारायण दर्शन देते हैं और पांडव से पूछते हैं आप लोगों ने मुझे क्यों बुलाया है, राजा धर्मराज कहते हैं महाराज इनके लिए भोजन का कुछ प्रबंध कर देते तो व्यास नारायण कहते हैं राजन अगर कहीं आपने अपनी तपस्या से भगवान सूर्य को प्रसन्न कर लिया तो वे भोजन की व्यवस्था कर देंगे पांडव बैठकर भगवान रवि को पुकारते हैं भगवान रवि साक्षात दर्शन देते हैं बोले मांग ‘’अ जी तुम्हारी पूजा ने मुझे प्रसन्न किया है और मांगो मैं तुम्हे वर देना चाहता हूं’’ कहा मांगो तो राजा युधिष्ठिर कहते हैं, कुछ नहीं महाराज हमारे साथ ब्राम्हणों का समाज है इनके लिए आप भोजन की कोई व्यवस्था कर दो, सूर्य निकालते हैं अक्षय पात्र और देकर कहते हैं इसे आंगन में रख देना गाय के गोबर से आंगन लीपना और आंगन लीपकर इसे रखकर दोनों हाथों को जोड़कर कहना महाराज इस चीज की जरूरत है जो चीज तुम मांगोगे जितना मांगोगे उतना चीज मिलेगी, मुझे इस चीज की जरूरत है यह चीज दे दो जिस चीज का नाम लोगे, पर एक बात याद रखना युधिष्ठिर द्रौपदी के खाने के पहले जो मांगोगे वो मिलगा अगर द्रौपदी खा लेगी तो पांच रूपिया मांगोगे तो तुम्हे पांच टिकली भी नहीं मिलेगी। |
रागी |
नई मिलय। |
रागी |
नहीं मिलेगी। |
प्रभा |
द्रौपदी के भोजन के पहले ते जोन मांगबे वो चीज मिलही अक्षय बटवा ल लेके सुख पूर्वक जंगल म निवास करत हे पांडव ल किसी प्रकार के दुख नईए साधु संत के संगत करत हे भगवान के भजन करत हे अउ राजा दुर्योधन के दूत जघा जघा घूम के पांडव के हर संदेश दूर्योधन ल बतात हे पांडव सुख पात हे पांडव दुख पात हे कोन जंगल म हे भोजन खात हे रहन सहन का हे हर संदेश राजा ल बतात हे। |
प्रभा |
द्रौपदी के भोजन के पहले तुम जो मांगोगे वो चीज मिलेगी अक्षय पात्र को लेकर सुख पूर्वक जंगल में निवास करते हैं पांडव को किसी प्रकार का दुख नहीं है साधु संतों की संगत करते हैं भगवान का भजन करते है और राजा दुर्योधन के दूत जगह जगह घूमकर पांडव के हर संदेश दूर्योधन को बताते हैं पांडव सुख पा रहे हैं पांडव दुख पा रहे हैं किस जंगल में हैं भोजन खाते हैं उनका रहन सहन कैसा है हर संदेश राजा को बताते हैं। |
रागी |
सब लगे हे खूफिया। |
रागी |
सारे खूफिया लगे हैं। |
प्रभा |
राजा दुर्योधन के दूत जाके दुर्योधन ल बतात हे महराज पांडव ल अभी अभी दुख नईए दुर्योधन पूछे कईसे त दूत मन बतावत हे महाराज अरे ‘’उहां भंडारा खुले ग हावय जी भाई, बड़े साधु भोजन करे ग भाई’’ ओ तो जंगल में भंडारा खोले हे महराज तपस्वी हजारों ब्राम्हण उहां भोजन करत हे राजा सोचिस मय तो पांडव ल दुख पाही कहि के वनवास दे हंव रागी भाई अउ वो जंगल म सुख पूर्वक निवास करत हे बताय हे सबल सिहं महराज राजा दुर्योधन कूटनीति में ज्यादा प्रवीण राहय राजा दुर्योधन विचार करय मैं पांडव ल ब्रम्ह श्राप में नाश कर दीही विचार करथे वहां हजारों तपस्वी भोजन करते हैं सियान मन के कहावत हे रागी सौ ठन पीकरी तो एक ठन डूमरी दुर्योधन काहत हे कहूं मैं अपन स्तुति म दुर्वासा ऋषि ल प्रसन्न करहूं त वो दुर्वासा के द्वारा मैं पांडव ल नाश कर दूहूं राजा दुर्योधन दुर्वासा के तपस्या करथे दुर्वासा प्रसन्न होके जथे अउ कहे मांग दुर्योधन मांग त दुर्योधन कथे उही मांगथे महराज पांडव मन जंगल म हे ब्राम्हण समाज भोजन करही पांडव भोजन करही अउ भोजन करे के बाद में शिष्य ले के जाके तंय भोजन मांगबे पांडव तोला खाय बर नई दिही त पांडव ल श्राप दे देबे पांडव ह भुंजा के मर जाही दुर्वासा काहत हे दुर्योधन तंय पांडव घर जाय बर काहत हस ना ये वरदान ल छोड़ दे अउ कोई दूसर मांग राजा, देहूं तेला देहूं का नई देंव तेला नई देंव का, नई देंव ना कहि देना महराज दुर्वासा बोले दुर्योधन पांडव के मरईया ये द्वापर युग म जनम नई ले हे पांडव के रक्षा करईया कौन है ? तो भगवान बांके बिहारी हैं, अरे जा पर कृपा राम की होई कहे दुर्योधन ता पर कृपा करे सब कोई कह पांडव ल कोन मारही पर मय जांहू कहेंव तेकर सेती जात हंव भोजन ब्राम्हण समाज करत हे राजा युधिष्ठिर भोजन करथे लगे हे पांडव के समाज धौम्य पुरोहित उपदेश देवत हे राजा धर्मराज बैठकर उपदेश सुनत हे ब्राम्हण के समाज बईठे हे नकुल सहदेव राजा युधिष्ठिर के पांव दबावत हे एक कोती हाथ म गांडीव ले के अर्जुन रक्षा करे बर खड़े हे अउ डाहर हाथ म गदा धरे ‘’अ ग खड़े खड़े देखन लागे ग भाई’’ दोनों भाई रक्षा करे बर खड़े हे नकुल सहदेव पांव ल दबावत हे बड़े भैया के अउ राजा युधिष्ठिर बैठ के उपदेश सुनत हे भैया ‘’खड़े खड़े भीम ह देखन लागे ग भाई, राजा जब कहने लागे ग मोर भाई, हां राजा जब कहने लागे ग मोर भाई’’ ओ सभा ओ अतका सुंदर दिखत हे रागी भैया बताया हे देवराज इंद्र के सभा लजा जाय वो सभा ल देख के इतना सुंदर कुटिया म बईठ के माता द्रौपदी भोजन करथे अउ बर्तन ल साफ करके मड़ाथे साठ हजार शिष्य लेके महर्षि दुर्वासा पृथ्वी म पैदल चलथे तो गगन पथ में धुल उड़त हे आकाश म धुर्रा उड़त हे भीम खड़े खड़े देखत हे अउ वो धुर्रा ल देख के विचार करत हे कोनो देश के राजा महराजा कोनो देश में लड़े बर जात हे का रागी। |
प्रभा |
राजा दुर्योधन के दूत जाकर दुर्योधन को बतते हैं महराज पांडव को अभी भी कोई दुख नहीं हैं दुर्योधन पूछता है कैसे तो दूत लोग बताते है महाराज अरे ‘’उहां भंडारा खुला है जी भाई, बड़े बड़े साधु भोजन करते हैं जी भाई’’ वो तो जंगल में भंडारा खोले हैं महराज हजारों तपस्वी, ब्राम्हण वहां भोजन करते हैं राजा सोचता है मैंने तो पांडव को दुख पाएगें ऐसा सोचकर वनवास दिया था रागी भाई और वो जंगल में सुख पूर्वक निवास कर रहे हैं बताया है सबल सिंह महाराज राजा दुर्योधन कूटनीति में ज्यादा प्रवीण थे राजा दुर्योधन विचार करते हैं मैं पांडव को ब्रम्ह श्राप से नाश कर दूंगा विचार करते हैं, वहां हजारों तपस्वी भोजन करते हैं बड़े बूढ़ों की कहावत है रागी, सौ पीपल तो एक डूमर दुर्योधन कहते हैं अगर कहीं मैंने अपनी स्तुति में दुर्वासा ऋषि को प्रसन्न कर दिया तो दुर्वासा के द्वारा मैं पांडव को नाश कर दूंगा, राजा दुर्योधन दुर्वासा का तपस्या करते हैं, दुर्वासा प्रसन्न होकर आते हैं और कहते हैं मांग दुर्योधन मांग तो दुर्योधन कहते हैं वही मांगते हैं महाराज पांडव लोग जंगल में हैं ब्राम्हण समाज भोजन करेंगे, पांडव भोजन करेंगे और भोजन करने के बाद आप आने शिष्यों को ले जाकर भोजन मांगिएगा पांडव आपको खाने को नहीं देंगे तो पांडव को आप श्राप दे देना पांडव जलकर मर जाएंगे, दुर्वासा कहते हैं दुर्योधन तुम पांडव के घर जाने को कह रहो हो ना इस वरदान को छोड़कर और कोई दूसरा वर मांग लो, राजा कहते हैं देना है तो दूंगा कहो महाराज नहीं देना है तो नहीं दूंगा कहो, दुर्वासा बोले दुर्योधन पांडव को मारने वाला इस द्वापर युग में जन्म नहीं लिया है पांडव की रक्षा करने वाला कौन है ? तो स्वयं भगवान बांके बिहारी हैं, अरे ‘जिस पर राम की कृपा होगी कहते हैं दुर्योधन उस पर सब कोई कृपा करते हैं कहते है पांडव को कौन मार सकता है पर मैं जाऊंगा, कह दिया हूं इसलिए जा रहा हूं, ब्राम्हण समाज भोजन करते हैं, राजा युधिष्ठिर भोजन करते हैं, पांडवों की सभा लगी है धौम्य पुरोहित उपदेश दे रहे हैं राजा धर्मराज बैठकर उपदेश सुन रहे हैं, ब्राम्हणों का समाज बैठा है, नकुल सहदेव राजा युधिष्ठिर के पांव दबा रहे हैं एक तरफ हाथ में गांडीव लेकर अर्जुन रक्षा करने के लिए खड़े हैं और एक तरफ हाथ में गदा लिए ‘’अ जी दोनों भाई खड़े खड़े देखने लगे जी भाई’’ दोनों भाई रक्षा करने के लिए खड़े हैं नकुल सहदेव पांव दबा रहे हैं बड़े भैया के और राजा युधिष्ठिर बैठकर उपदेश सुन रहे हैं भैया ‘’खड़े खड़े भीम देखने लगे जी भाई, राजा जब कहने लगे जी मेरे भाई, हां राजा जब कहने लगे जी मेरे भाई’’वह सभा इतनी सुंदर दिख रही है रागी भैया बताया है देवराज इंद्र की सभा भी शरमा जाए उस सभा को देखके इतने सुंदर कुटिया में बैठ के माता द्रौपदी भोजन करती है और बर्तन को साफ करके रखती है, साठ हजार शिष्य लेकर महर्षि दुर्वासा पृथ्वी में पैदल चलते हैं तो गगन पथ में धुल उड़ रही है आकाश में धुल उड़ रही है तो भीम खड़े खड़े देखते हैं और वो धुल देखकर विचार करते हैं किसी देश का राजा महराजा किसी में देश में लड़ने के लिए जा रहा है क्या रागी ? |
रागी |
हां भई वईसने लागत हे। |
रागी |
हां भई वैसा ही लगता है। |
प्रभा |
वो धुर्रा ल देखके भीम अनुमान लगात हे जरूर कोई राजा वो देश मे लड़े के खातिर जात हे साठ हजार शिष्य लेके दुर्वासा जी पहुंचगे पांडव सिंहासन छोड़ के खड़े हो जात हे सारी ब्राम्हण के समाज खड़े हो जात हे राजा युधिष्ठिर दुर्वासा ल लान के आसन म बईठाथे दोनों हाथ जोड़ के राजा युधिष्ठिर पूछत हे का सेवा करंव महराजा त दुर्वासा काहत हे धर्मराज मोर संग ये सारे शिष्य भुखाय हे भोजन के व्यवस्था कर दे राजा युधिष्ठिर भीम ल कथे जा तो पूछ के आबे राजा धर्मराज काहत हे महराज हमर घर अब्बड़ झन पहुना आय हे घर में दार चाउर हाबय कि नईए जा तो पता करबे बोले जा भीमसेन कुटिया म जा के द्रौपदी ल काहत हे अब्बड़ झन सगा आ गे हे द्रौपदी, द्रौपदी कथे खा के बर्तन मांज धो के बईठत हंव महराज अभीच्चे खाय हंव महाराज ए दे मांज धो के बईठत हवं भीम जाके राजा युधिष्ठिर ल काहत हे भैया भोजन के व्यवस्था नी हो पात हे काबर कि द्रौपदी भोजना कर चुके हे ये बात ल सुनिस त राजा ल दुख होगे राजा भैया कहे मय कोन मुंह में एला जा कहूं काबर ये भोजन के आस लेके आय हे दूसर ऋषि रतिस त दूसर बात रीहीस हे ये तो दुर्वासा ए रागी भोजन के व्यवस्था नई हे कबो तो श्राप दे के हमला नाश कर दिही अउ विचार करत हे का उपाय करना चाही द्रौपदी कुटिया म सोचे अब्बड़ झन सगा आय हे घर में दार चाउर नईए रहा तो पांडव मन कोनेा व्यवस्था म लगे हे का द्रौपदी निकल के देखिस त पांडव मन मुड़ी ल गडि़याय राहय सिर झुका के बईठे राहय रानी कथे पांडव के वीरता ल तो देख मैं वीर आंव मैं बलवान आंव मैं क्षत्रीय आंव कथे रागी इंखर वीरता ल तो देख पुरूषार्थ ल तो देख अतिथि आय हे तेकरे आगू म थोथना उतारे बईठे हे पांचाल कुमारी दुर्वासा ऋषि ल कथे जाव मंजन करे बर महराज जाव महराज नदिया म स्नान करके आहू अउ तुंहर स्नान करत ले मय भोजन बना के राखत हंव दुर्वासा ऋषि स्नान करे बर जावत हे पांडव कुटिया म बईठे हे कुटिया म बईठ के भगवान द्वारिकानाथ ल पुकारत हे ‘’ये तोर तो नाम मोहन हरिया ग, ये तोरे तो नाम मोहन हरिया ग, हरियर तोर तन हरियर तोर मन ये तोरे तो नाम हे मोहन हरिया ग’’। |
प्रभा |
उस धुल को देखकर भीम अनुमान लगाते हैं जरूर कोई राजा लड़ने के लिए किसी देश में जा रहा है, और साठ हजार शिष्य लेकर ऋषि दुर्वासा जी पहुंचते हैं पांडव सिंहासन छोड़ के खड़े हो जाते हैं सारे ब्राम्हण समाज खड़े हो जाते हैं राजा युधिष्ठिर दुर्वासा को लाकर आसन में बिठाते हैं दोनों हाथ जोड़कर राजा युधिष्ठिर पूछते है क्या सेवा करूं महाराज तो दुर्वासा कहते हे धर्मराज मेरे साथ ये सारे शिष्य भुखे हैं भोजन की व्यवस्था कर दें ,राजा युधिष्ठिर भीम से कहते हैं जाओ तो द्रौपदी से पूछकर आना राजा धर्मराज कहते हैं कहना कि हमारे घर बहत सारे मेहमान आए हैं घर में दार चावल है कि नहीं जाओ तो पता करके आना भीमसेन कुटिया में जाकर द्रौपदी से कहते हैं बहुत सारे मेहमान आ गए हैं द्रौपदी, द्रौपदी कहती खाकर बर्तन साफ करके बैठ रही हूं, महाराज अभी ही मैंने खाया है महाराज देखिए बर्तन मांजकर बैठ रही हूं भीम जाकर राजा युधिष्ठिर से कहते हैं भैया भोजन की व्यवस्था नहीं हो पा रही है क्योंकि द्रौपदी भोजन कर लिया है इस बात सुनते है तो राजा को दुख होता है रागी भैया राजा कहते हैं में किस मुंह से इन्हें जाकर मना करूं क्योंकि ये भोजन की आस लेकर आए हैं और कोई दूसरा ऋषि होता तो अलगत बात थी ये तो ऋषि दुर्वासा हैं रागी, भोजन की व्यवस्था नहीं है कहेंगे तो श्राप देकर हमारा नाश कर देंगे और विचार करते हैं कि क्या उपाय करना चाहिए द्रौपदी कुटिया में सोचती है बहुत सारे मेहमान आएं है घर में घर में दार चावल नहीं है शायद पांडव किसी व्यवस्था में लगे हैं क्या, द्रौपदी निकलकर देखती है तो पांडव अपने सिर को झुकाए बैठे थे रानी कहती है पांडव की वीरता को तो देखो मैं वीर हूं, मैं बलवान हूं, मैं क्षत्रीय हूं कहते हैं रागी, इनकी वीरता को तो देखो पुरूषार्थ को तो देखो अतिथि आए हैं उनके ही सामने में सिर झुकाए बैठे है, पांचाल कुमारी दुर्वासा ऋषि से कहती है जाईए महाराज मंजन करने के लिए नदी में स्नान कर आईए और आपके स्नान करके आते तक मैं भोजन बनाकर रखती हूं, दुर्वासा ऋषि स्नान करने के लिए जा रहे हैं पांडव कुटिया में बैठे हैं और कुटिया में बैठकर भगवान द्वारिकानाथ को पुकारते हैं ‘’ये आपका नाम है मोहन हरिया जी, ये आपका तो नाम मोहन हरिया जी, हरा तन है हरा मन है आपका नाम तो है मोहन हरिया जी’’। |
रागी |
‘’ये तोर तो नाम मोहन हरिया ग, ये तोरे तो नाम मोहन हरिया ग, हरियर तोर तन हरियर तोर मन ये तोरे तो नाम हे मोहन हरिया ग’’। |
रागी |
‘‘’ये आपका नाम है मोहन हरिया जी, ये आपका तो नाम मोहन हरिया जी, हरा तन है हरा मन है आपका नाम तो है मोहन हरिया जी’’। |
प्रभा |
कृष्ण नाथ नथैया तोर पंईया परंव ग कन्हैया पांडव हित बर जनम धरे ग केशव नाना प्रकार के दुख ल हरे ग, केशव नाना प्रकार के दुख ल हरे ग, ये रथ के खेदईया तोर पईंया लगंव ग मोहन कृष्ण कन्हैया, ये रथ के खेदईया तोर पईंया लगंव ग मोहन कृष्ण कन्हैया, बंशी के बजईया तोर पंईया परंव ग कन्हैया’’ पांडव चिल्लात हे बचाव बचाव द्वारिकानाथ बचाव रागी भैया द्वारिका नगर में भगवान भोजन करे बर बईठे हे माता रखमणी भोजन परोसे हे भगवान सोना के पीड़हा में बईठे हे भोजन करे बर देवी रूखमणी दूर में बईठ के भगवान ल हव देवत हे अउ भगवान खाना खाय के खातिर कौंरा ल उठाय हे मुंह म नई लेगे हे पांडव पुकारत हे बचाव बचाव भगवान थाली ल सरका देथे अउ थाली ल सरका के द्वारिकानगर ले दउड़ जथे भयानक जंगल म पहुंचगे कुटिया दूरिहा म राहय भगवान दूरिहा ले चिल्लावत हे ऐ द्रौपदी बोले बहिनी मोला भूख लागत हे मोला भोजन दे दूरिहा ले चिल्लावत हे मोला भूख लागत हे द्रौपदी मोला भोजन दे ओतका सुनिस तहान पांडव मन काहय येहा जरे म नून डारत हे हमर घर ओतका ओतका सगा आय हे रागी भाई फिर हमर ओतका ओतका सगा आय हे हमर घर दार चाउर नईए उपराहा म अपनो खाय बर मांगत हे भगवान कथे मय खाय बर बईठे रेहेंव भगवान काहत हे मय खाय बर बईठे रेहेंव मार माई पिल्ला चिल्लाय हावव मय सोचेंव पांडव घर झारा नेवता परे होही अरे भई राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम कथे राजा जन्मेजय ‘भारत कथा पुनीत अजी भारत कथा पुनीत, सुनते ही मिलास अजी श्रवण प्राण के करत ही छूटै यम के त्रास’ महाभारत के पतित पावनी वन पर्व के प्रसंग ल राजा जन्मेजय ल वैसमपायम जी महराज बतावत हे रागी भैया द्रौपदी कहिथे बचाव और बांके बिहारी पहुंचथे कुटिया में अउ दूरिहा ले चिल्ला के काहत हे मोला भूख लागत हे पांडव कथे हमर घर ओतका ओतका सगा आय हे रागी भैया अउ इही ल खाय ल दिही करके बलावत हन त अपने ह खाय बर मांगत हे देवी द्रौपदी बोले प्रभु हमर घर एकोकन चाउर दार नईए कहे भगवान भोजन के व्यवस्था नई हो सके भगवान कथे खाय बर बईठे रेहेंव माई पिल्ला चिल्लाय हव तुमन मय सोचेंव तुमने चिल्लाय हव त पांडव घर झारा नेवता परे होही पांचो भैया बलावत हावय, भगवान कथे द्रौपदी जा बर्तन ल देख के आबे द्रौपदी मांज धो के मड़ाय राहय घूमा के देख डरिस कहिस नईए द्वारिकानाथ काबर कि मय बर्तन ल मांज धो के मड़ा दे हंव भगवान कहे लान तो ओला देवी द्रौपदी बर्तन ल देखावत हे कहे देख लव केशव भगवान बर्तन ल घूमा के देखथे बताय हे ओ दिन द्रौपदी भाजी बनाय हे बर्तन ल साफ करे हे तबले भाजी के एक ठन कण चटके हे भगवान द्वारिकानाथ भाजी के कण ल निकाले अउ खाय अउ खा के जब ढकार मारथे त तीनो लोक अउ चौदह भुवन में सबके उदर भर जात हे तीनों लोक अउ चौदह भुवन में सबके उदर भरत हे रागी भैया दुर्वासा समेत ओकर शिष्य मन नदिया म मंजन करे बर गे हे स्नान करे बर गेहे अउ ओमन मन में विचार करे हे आज मय पांडव के घर भोजन करे बर आय हंव त आज मैं भात दार खांव नहीं रागी। |
प्रभा |
कृष्ण नाथ नथैया आपको प्रणाम करता हूं, कन्हैया पांडव हित के लिए जन्म लिए जी, केशव जी हर दुख का हरण कर लिए जी, केशव जी हर दुख का हरण कर लिए जी, ये रथ के हांकने वाले सारथी मोहन कृष्ण कन्हैया आपको प्रणाम करता हूं, ये रथ के हांकने वाले सारथी मोहन कृष्ण कन्हैया आपको प्रणाम करता हूं, बंशी बजाने वाले कन्हैया आपको प्रणाम करता हूं’’ पांडव चिल्लाते हैं बचाओ बचाओ द्वारिकानाथ बचाओ रागी भैया द्वारिका नगर में भगवान भोजन करने के लिए बैठे हैं माता रखमणी ने भोजन परोसा है, भगवान सोने के पाटे में बैठे हैं भोजन करने के लिए देवी रूखमणी थोड़ी दूर में बैठकर भगवान को हवा दे रही है और भगवान खाना खाने के लिए पहला निवाला उठाए हैं निवाला मुंह में नहीं गया है पांडव पुकारते हैं बचाओ बचाओ भगवान थाली को सरका देते और थाली को सरकाकर द्वारिकानगर से दौड़ते हैं जाते हैं भयानक जंगल में पहुंच गए कुटिया दूर में भी भगवान दूर से ही चिल्लाते हैं द्रौपदी.. कहा बहन मुझे भूख लग रही है मुझे भोजन दो दूर से ही चिल्लाते हैं मुझे भूख लग रही है मुझे भोजन दो, द्रौपदी मुझे भोजन दो इतना सुना तो पांडव लोग कहने लगें ये तो जले में नमक छिड़क रहे हैं, हमारे घर इतने सारे मेहमान आए हैं रागी भाई हमारे घर में इतने सारे मेहमान आए हुए हैं और हमारे घर दाल चावल नहीं है ऊपर से ये खुद भी आ गए खाना मांगने के लिए भगवान कहते हैं मैं खाना खाने ही बैठा था भगवान कहते हैं मैं खाना खाने बैठा था तुम लोग सब के सब माई पिला चिल्ला रहे थे मैंने सोचा पांडव के घर सहपरिवार निमंत्रण है भाई, राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम कहते हैं राजा जन्मेजय ‘भारत कथा पवित्र है अजी भारत कथा पवित्र है, जिसे सुनने मात्र से ही यम की त्रासदी से मुक्ति मिल जाती है’ महाभारत का पतित पावन वन पर्व के प्रसंग को राजा जन्मेजय को वैसमपायम जी महाराज बता रहे हैं रागी भैया द्रौपदी कहती है बचाओ और बांके बिहारी पहुंचते हैं कुटिया में, और दूर से चिल्ला के कहते हैं मुझे भूख लग रही है तो पांडव कहते हैं हमारे घर इतने सारे मेहमान आए हैं रागी भैया और इन्हे ही खाने देंगे करके बुलाया है तो खुद ही खाने के लिए मांग रहे हैं, देवी द्रौपदी बोली प्रभु हमारे घर थोड़ा सा भी चावल दाल नहीं है कहती है भगवान भोजन की व्यवस्था नहीं हो सकेगी, तो भगवान कहते हैं मैं खाना खाने बैठा था और तुम सब माई पिला चिल्लाये हो मैंने सोचा कि पांडव के घर सहपरिवार खाने के लिए निमंत्रण दे रहे हैं पांचो भैया बुला रहे हैं, भगवान कहते हैं द्रौपदी जाओ बर्तन को देखकर आओ, द्रौपदी ने बर्तन को साफ करके रखी थी, बर्तनों को घूमा घूमा कर देख लिया फिर कहती है नहीं है द्वारिकानाथ क्योंकि मैंने बर्तन मांज धो के रख दिया है तो भगवान कहते हैं बर्तन को लेकर आओ देवी द्रौपदी बर्तन को दिखा रही है और कहती है देख लो केशव, भगवान बर्तन को घूमाकर देखते है, बताया है उस दिन द्रौपदी ने भाजी बनाई थी बर्तन को साफ की थी फिर भाजी का एक कण चिपका था भगवान द्वारिकानाथ भाजी का वह कण निकालकर जब खाते हैं डकार लेते हैं तो तीनों लोक और चौदह भवनों में सबके पेट भर जाते हैं तीनों लोक और चौदह भवनों में सबके उदर भरते हैं रागी भैया दुर्वासा समेत उनके सारे शिष्य नदी में मंजन करने और स्नान करने गए हैं और वे मन में विचार कर रहे हैं आज मैं पांडव के घर में भोजन करने आया हूं तो आज मैं भात दाल नहीं खाउंगा रागी। |
रागी |
नई खांव हाथ में साने ल लागथे। |
रागी |
नहीं खाउंगा क्योंकि हाथ से मिलाना पड़ता है। |
प्रभा |
आज मय मेवा मिष्ठान्न खाहूं अ ओला मेवा मिष्ठान्न के ढकार आथे रागी जे जो चीज के लालसा करे हे जो जो मन म सोचे हे ओला उही चीज के ढकार आत हे कतको तो नदिया भीतरी खड़े हे अउ हाथ म पानी धर के ‘’ओ मन पेट म पानी लगावन लागे रे भाई’’ कतको झन पेट म उत्ता धुर्रा पेट म पानी चुपरत हे ‘’कतको पेट म पानी लगावन लागे रे भाई कतको पेट ल दबावन लागे रे भाई’’ कतको उत्ता धुर्रा पेट म पानी ल चुपरत राहय त कतको झन अपन पेट ल चपके खड़े राहय रागी भैया कतको ह पार म निकलगे राहय अउ कोनो ह कोनो ल पूछत राहय। |
प्रभा |
आज मैं मेवा मिष्ठान्न खाउंगा उसको मेवा मिष्ठान्न क डकार आता है रागी, जिसने जिस चीज की लालसा की थी जिसने जो भी खाने को सोचा था उसे उसी चीज की डकार आती है कितने ही नदी के भीतर खड़े हैं और कितने ही हाथ में पानी लेकर ‘’वे लोग अपने पेट में पानी लगाने लगे जी भाई’’ कितने लोग पेट में जल्दी जल्दी पेट में पानी लगा रहे हैं ‘’ कई लोग अपने पेट को दबाने लगे जी भाई’’ कई लोग जल्दी जल्दी पेट में पानी मल रहे थे तो कई लोग अपने पेट को दबाए खड़े रागी भैया कई लोग किनारे निकल गए कई लोग आपस में एक दूसरे को पूछ रहे थे। |
रागी |
हव कोनो जादू टोना करे हे तईसे। |
रागी |
हां किसी ने जादू टोना किया हो जैसे। |
प्रभा |
पेट पीरा के बिमारी धर लिस रागी भाई भगवान काहत हे भीम जा अउ जा के दुर्वासा ल बला के ले आ हाथ में गदा ले के भीम चलते हैं जाके दुर्वासा ल काहत हे महराज जेवन ह जुड़ावत हे भोजन ठंडा होवत हे महाराज रानी द्रौपदी इंतजार करत हे चलो भोजन करिहव चलो भेाजन करहू महराज ओतका ल दुर्वासा सुने त दुर्वासा कहे भीमसेन हमन नई बांचबो तईसे लागत हे काबर अचानक के बिमारी धर ले हे जेकर रखवार भगवान हे ओला कोन मारे ल सकही भाई बोले भीम हमर से गलती होगे हमर गलती ल माफ कर दे भीमसेन वापस आथे अउ भगवान के दण्डवत प्रणाम करथे अउ भगवान ल काहत हे द्वारिकानाथ ‘’ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया, ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया, भारत भूंईया तोला कहिथे सोन के चिरईया, भारत भूंईया तोला कहिथे सोन के चिरईया’’। |
प्रभा |
पेट दर्द की बिमारी ने जकड़ लिया रागी भाई भगवान कहते हे भीम जाओ और जाकर दुर्वासा को बुलाकर ले आओ, भीम हाथ में गदा लेकर चलते हैं और जाकर दुर्वासा से कहते महराज जेवन ठंडा हो रहा है, भोजन ठंडा हो रहा है महाराज, रानी द्रौपदी इंतजार कर रही है चलिए भोजन कर लीजिए महराज, इतना सुनकर दुर्वासा कहते हैं भीमसेन हम नहीं बचेंगे ऐसा लग रहा है क्योंकि अचानक की बिमारी ने जकड़ लिया है जिसके रखवाले भगवान हैं उसे भला कौन मार सकता है भाई, बोले भीम हमसे गलती हो गई हमार गलती को माफ कर दो, भीमसेन वापस आते और भगवान को दण्डवत प्रणाम करते और भगवान से कहते हैं द्वारिकानाथ ‘’इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया, इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया, भारत भूमि तुझे कहते हैं सोने की चिडि़या, भारत भूमि तुझे कहते हैं सोने की चिडि़या ’’। |
रागी |
‘’ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया, ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया, भारत भूंईया तोला कहिथे सोन के चिरईया, भारत भूंईया तोला कहिथे सोन के चिरईया’’। |
रागी |
’इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया, इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया, भारत भूमि तुझे कहते हैं सोने की चिडि़या, भारत भूमि तुझे कहते हैं सोने की चिडि़या ’’। । |
प्रभा |
ये भूंईया म गीता लिखीस चक्र सुदर्शन धारी। |
प्रभा |
इस भूमि में गीता लिखा चक्र सुदर्शन धारी ने। |
रागी |
ये भूंईया म गीता लिखीस चक्र सुदर्शन धारी। |
रागी |
इस भूमि में गीता लिखा चक्र सुदर्शन धारी ने। |
प्रभा |
चक्र सुदर्शन धारी भैया चक्र सुदर्शन धारी, ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया। |
प्रभा |
चक्र सुदर्शन धारी ने भैया चक्र सुदर्शन धारी ने, ’इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया। |
रागी |
ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया। |
रागी |
’इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया । |
प्रभा |
कौरव ल मारिस हे पांडव ल तारिस हे राधा के बनवारी ह। |
प्रभा |
कौरव को मारा है पांडव को तारा है राधा के बनवारी ने । |
रागी |
राधा के बनवारी ह भाई राधा के बनवारी ह, ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया, ये भूंईया म जनम धरिन राम लखन चारो भैया, भारत भूंईया तोला कहिथे सोन के चिरईया, भारत भूंईया तोला कहिथे सोन के चिरईया’’। |
रागी |
कौरव को मारा है पांडव को तारा है राधा के बनवारी ने, ’इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया, इस भूमि में जन्म लिया राम लखन चारो भैया, भारत भूमि तुझे कहते हैं सोने की चिडि़या, भारत भूमि तुझे कहते हैं सोने की चिडि़या’’। |
प्रभा |
भगवान द्वारिकानाथ पांडव ल छोड़थे रागी भैया अर्न्तध्यान हो जथे पांडव के समय बितत चले जात हे कुछ दिन बीते के बाद एक दिन व्यास नारायण के आगमन होथे आकर के युधिष्ठिर ल एक महामंत्र बताथे फेर राजा धर्मराज वो मंत्र ल फेर अर्जुन ल बताथे महावीर अर्जुन फिर वो महामंत्र के द्वारा शिव ल प्रसन्न करे के खातिर फिर राजा युधिष्ठिर से विदा लेथे और युधिष्ठिर से विदा ले के बाद कैलाश के रास्ता पकड़थे, जंगल म जाके अर्जुन शिव के तपस्या में बईठगे कुछ दिन तपस्या करथे भगवान ह अर्जुन ल दर्शन नी देवत हे जब भगवान दर्शन नई दिस रागी अर्जुन फल फूल खाना छोड़ दिस जल पी पी के तपस्या करिस भवगान उहू में प्रसन्न नही होईस अर्जुन जल पीना भी छोड़ दिस निराहार होके एक पांव म खड़े हे दोनों हाथ ऊपर किए हे एक ठन पांव के ऊपर खड़े हे अर्जुन महराज के हाथ के धनुष पृथ्वी म माड़े हे अउ कंधा में त्रूंड बंधे हुए हे दोनों हाथ ऊपर किए हुए हे अउ भगवान महादेव के तपस्या म लीन हे अर्जुन के घोर तपस्या म चारो ओर घोर अंधकार होए ल धर लिस पर भगवान दर्शन नई देत हे बड़े साधु सन्यासी जाके कथे तंय ओला दर्शन काबर नई देत हस, कथे महाराज अर्जुन घोर तपस्या करत हे अर्जुन के तपस्या पर अंधकार होवत हे महाराज अउ ओला तंय दर्शन काबर नई देत हस भगवान हांस के कथे भैया आज मय अर्जुन के मनोकामना ल पूर्ण कर दूंहू साधु संत महात्मा जो भी वापिस आत हे भगवान महादेव अर्जुन के परीक्षा के खातिर ‘’व्याध के रूप ग धरण लागे ग भाई’’ मां भवानी भगवान ल काहत हे चलो न भगवान अर्जुन के परीक्षा ले के खातिर भगवान व्याध के रूप अउ माता भवानी शिकरनीन के रूप में आगे ‘’मन मन भोंला हांसन लागे ग भाई’’ सारी दल किरात अउ किरतनीन के भेष म कितना भी भूत प्रेत योगिनी हे एक मूक नाम के दानव ‘’सूकर के रूप ग धरन लागे भाई’’ मूक दानव सूकर के रूप। |
प्रभा |
भगवान द्वारिकानाथ पांडव को छोड़थे हैं रागी भैया अर्न्तध्यान हो जाते हैं पांडवों का समय बीतता चला जाता है कुछ दिन बीतने के बाद एक दिन व्यास नारायण का आगमन होता है वे आकर युधिष्ठिर को एक महामंत्र बताते हैं फिर राजा धर्मराज उस मंत्र को अर्जुन को बताते हैं, महावीर अर्जुन फिर उस महामंत्र के द्वारा शिव को प्रसन्न करने के लिए फिर राजा युधिष्ठिर से विदा लेते हैं और युधिष्ठिर से विदा लेने के बाद कैलाश का रास्ता पकड़ते हैं, जंगल में जाकर अर्जुन शिव की तपस्या में बैठ गए कुछ दिन तपस्या करते हैं, भगवान अर्जुन को दर्शन नहीं देते हैा जब भगवान दर्शन नहीं दिए तो रागी, अर्जुन ने फल फूल खाना छोड़ दिया जल पी पीकर तपस्या करने लगा भगवान उसमें भी प्रसन्न नहीं हुए, तो अर्जुन जल पीना भी छोड़ दिया निराहार होकर एक पांव में खड़े होकर दोनों हाथ ऊपर किए हैं एक पांव के ऊपर खड़े हैं अर्जुन महाराज के हाथों का धनुष पृथ्वी में रखा है और कंधे में तरकश बंधा हुआ है, दोनों हाथों को ऊपर किए हुए हैं और भगवान महादेव की तपस्या में लीन हैं, अर्जुन की घोर तपस्या से चारो ओर घोर अंधकार छाने लग गया पर भगवान दर्शन नहीं दे रहे हैं बड़े बड़े साधु सन्यासी जाकर कहते हैं आप उसे दर्शन क्यों नहीं देते हैं, कहते हैं महाराज अर्जुन घोर तपस्या कर रहें हैं अर्जुन की तपस्या से अंधकार हो गया है महाराज और आप उसे दर्शन क्यों नहीं दे रहे हैं तो भगवान हंस के कहते हैं भैया आज मैं अर्जुन की मनोकामना को पूर्ण कर दूंगा साधु संत महात्मा सारे वापस आते है, भगवान महादेव अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए ‘’शिकारी का रूप जी धरने लगे जी भाई’’ मां भवानी भगवान से कहती है चलो न भगवान अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिकारी के रूप और माता भवानी शिकारन के रूप में आते हैं ‘’मन ही मन भोले हंसने लगे जी भाई’’ सारा दल किरात और किरातीन (हिमालय की एक जंगली जाति) के भेष धारण किया हैं जितने भी भूत प्रेत योगिनी थे वे सब एक मूक नाम के दानव ने ‘’सूकर का रूप जी धरने लगा भाई’’ मूक दानव सूकर का रूप। |
रागी |
अच्छा। |
रागी |
अच्छा। |
प्रभा |
भगवान धनुष तोड़े हे ‘’पीछे पीछे भोला ग दउड़न लागे जी भैया, भोला ग दउड़न लागे भाई, मन मन भवानी ग खोजन लागे भाई, अर्जुन वीर ल देखन लागे भाई’’ भगवान शिकारी के भेष म पार्वती शिकारनी के रूप में जितना भूत प्रेत योगिनी हे सब शिकार अउ शिकारनी के रूप में एक भयानक दानव सूकर के रूप बनाय हे अउ हाथ म धनुष लेके भगवान पीछा करत हे रागी भैया भयानक बड़े चौक हे चौक म आय अर्जुन एक पांव म ऊपर म खड़े हे, मूक दानव अर्जुन ल देखथे त शेर के समान गरजे हे सूकर के गरजना ल सुनके अर्जुन के तपस्या भंग हो जाथे, रागी भैया मारे क्रोध में अर्जुन के नेत्र लाल हो जथे अर्जुन कहे अरे सूकर मय भगवान के घोर तपस्या करें अउ भवागन मोला दर्शन नई देत हे अउ आज तंय आके मोर तपस्या ल भंग कर देस एक बाण म नई मार दूहूं त अर्जुन कहना छोड़ दूहूं अर्जुन खड़े राहय पृथ्वी म धनुष माड़े राहय अर्जुन निहर के धुनष ल उठाईस अउ खिचीस त्रूंड से बाण अउ जब धनुष म जोड़े ल धरिस त बनीस शिकारी के रूप में भगवान दूरिहा ले चिल्लावत हे ऐ क्षत्रीय, क्षत्रीय ओ शिकार ल मत मारबे काबर कि ओ शिकार के पीछो ल मय बहुत दूर से करत हंव। |
प्रभा |
भगवान ने धनुष तोड़ा है ‘’ पीछे पीछे भोले जी दौड़ने लगे जी भैया, भोले जी दौड़ने लागे भाई, मन ही मन भवानी जी खोजने लगी भाई, अर्जुन वीर को देखने लगे भाई’’ भगवान शिकारी के भेष में पार्वती शिकारन के रूप में जितने भूत प्रेत योगिनी थे वे सब शिकारी और शिकारन के रूप में थे एक भयानक दानव सूकर का रूप बनाए हुए था और हाथ में धनुष लेकर भगवान पीछा करते हैं, रागी भैया भयानक बड़ा चौक हे चौक में आए वहां अर्जुन एक पांव पर खड़े हैं, मूक दानव अर्जुन को देखते हैं तो शेर के समान गर्जना करता है सूकर की गर्जना को सुनकर अर्जुन की तपस्या भंग हो जाती है, रागी भैया मारे क्रोध के अर्जुन के नेत्र लाल हो जाते हैा अर्जुन कहते हैं अरे सूकर मैं भगवान की घोर तपस्या कर रहा हूं और भगवान मुझे दर्शन नहीं दे रहें हैं और आज तुम आकर मेरी तपस्या को भंग कर दिए मैंने तुम्हे एक बाण में नहीं मार दिया तो अर्जुन कहना छोड़ दूंगा अर्जुन खड़े हैं पृथ्वी में धनुष रखा हुआ है अर्जुन झुककर धुनष उठाते और खीचते हैं तरकस से बाण और जब धनुष में जोड़ने लगते हैं तो शिकारी के रूप में भगवान दूर से चिल्लाते हैं ऐ क्षत्रीय, क्षत्रीय उस शिकार को मत मारना क्योंकि उस शिकार का पीछा मैं बहुत दूर से करता आ रहा हूं। |
रागी |
रागी दउड़त आवत हंव। |
रागी |
रागी दौड़ते हुए आ रहा हूं। |
प्रभा |
ओ शिकार के ऊपर मोर अधिकार हे भगवान के बात म ध्यान नई दे अर्जुन बाण ल छोड़ देथे, बाण जाके सूकर ल लग जथे शेर जईसे गर्जना करके सूकर पृथ्वी म गिर के अपन प्राण त त्याग देथे शिकारी पहुंच जथे जाके कहे क्षत्रीय तंय नई जानस ये शिकार के ऊपर मोर अधिकार हे अर्जुन कथे कस रे शिकारी मंय भवान देवाधिदेव महादेव के घोर तपस्या करत हंव, भगवान ह प्रसन्न नी होय हे अउ आके ये मोर तपस्या ल भंग कर दिस, भगवान महादेव बोले ए क्षत्रीय तंय दूसरा के धोखा छोड़ दे ओतका ल सुने त अर्जुन काहय कस रे शिकारी तंय मोला नई जानस रे ‘’अजी सरसो सागर बांध के जीत लियो हनुमान सिरपुर नरपुर नागपुर अजी नहीं पारथ समान’’ कहे कुंती पुत्र मय कुंती के बेटा अउ कुंती सुवन अर्जुन मम नाम रागी भैया शिकरी अउ अर्जुन दोनों लड़े बर तैयार हो जथे, बाणों के वर्षा होवत हे, सावन सघन बूंद धरि आई मानो सावन भर सावन सघन बूंद झरि लाई जैसे सावन भादो के महीना म पानी गिरथे रागी भैया वईसने बाण के वर्षा होवत हे, लगाय हे सुर सबल सिंह महाराज हे अरे ‘त्रूंड से काढ़ही एक शर त गुणी धर दस होय अउ छोड़त बाण शत शत भयु तब चलत सहस्त्र सब होय’ अर्जुन ऐसे बाण छोड़ते हैं ‘सौ ते सहस सहस ते लाखा’ अर्जुन के जोश ल देखिस रागी मां भवानी मंद मंद मुंसकाथे भगवान महादेव अउ अर्जुन लड़त हे भगवान मन में विचार करिस ए ह जादा जोशियावत हे, अर्जुन के जोश ल देखिन न रागी। |
प्रभा |
उस शिकार पर मेरा अधिकार है भगवान की बातों में ध्यान नहीं देते और अर्जुन बाण छोड़ देते हैं, बाण जाकर सूकर को लग जाती है शेर जैसी गर्जना करके सूकर पृथ्वी में गिरकर अपने प्राण त्याग देता है, शिकारी पहुंच जाते हैं जाकर कहता है क्षत्रीय तुमने नहीं जानते इस शिकार के ऊपर मेरा अधिकार है, अर्जुन कहते हैं क्यों रे शिकारी मैं भगवान देवाधिदेव महादेव की घोर तपस्या कर रहा हूं, भगवान प्रसन्न नहीं हुए हैं और इसने आकर मेरी तपस्या को भंग कर दिया, भगवान महादेव बोले ए क्षत्रीय तुम दूसरों का भरोसा छोड़ दो इतना सुनते ही अर्जुन कहते हैं क्यों रे शिकारी तुम मुझे नहीं जानते हो ‘’अजी सुरसा सागर बांधकर मैंने हनुमान जी को जीत लिया है, सिरपुर नरपुर नागपुर तीनों लोको में मेरी प्रशंसा हो रही है’’ कहते हैं कुंती पुत्र मैं कुंती का बेटा और कुंती सुवन अर्जुन मेरा नाम रागी भैया शिकरी और अर्जुन दोनों लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं, बाणों की वर्षा होती है, सावन की सघन बूंदों जैसा माहौल हो गया जैसे सावन भर घनघोर बूंदो की झड़ी लगती है जैसे सावन भादो के महीनों में पानी गिरता है रागी भैया वैसे बाणों की वर्षा हो रही है, लगाए हैं सुर सबल सिंह महाराज जी अरे ‘तरकस एक तीर जोड़ा तो वह दस गुणा हो गया और जब सौ सौ बाण छोड़ते हैं वह हजार बाण हो जाते हैं’ अर्जुन ऐसे बाण छोड़ते हैं ‘सौ के हजार और हजार के लाख’ अर्जुन का जोश देखकर रागी, मां भवानी मंद मंद मुस्काती है भगवान महादेव और अर्जुन लड़ रहे हैं भगवान मन में विचार करते हैं ये बहुत ज्यादा जोश में आ रहा है, अर्जुन के जोश को देखा ना रागी। |
रागी |
या या। |
रागी |
या या। |
प्रभा |
सियान म एक ठन कहिथे जवानी के जोश अउ बुढ़ापा के होश। |
प्रभा |
बड़े बूढ़े कहते हैं ना जवानी का जोश और बुढ़ापे का होश। |
रागी |
हव जी। |
रागी |
हां जी। |
प्रभा |
महादेव ह बुढ़वा राहय सियान राहय, अर्जुन ह जवान राहय अर्जुन ल जब जोशियावत देखिस त भगवान कहे कुछ छल करना चाहिए भगवान महादेव छल करके अर्जुन के हाथ के गांडीव ल छीन लेथे जब धनुष ल छीनीस तब अर्जुन ल जादा जोश आगे भगवान शंकर में अउ अर्जुन में जब मल्ल युद्ध होथे रागी भगवान महादेव उठाय मुस्तिका अउ जब अर्जुन के पीठ मारथे तब भगवान हे एके मूटका मारथे अर्जुन ल, अउ अर्जुन जब मारे भगवान ल त दनादन चार पांच मूटका मार देथे। |
प्रभा |
महादेव जी बूढ़े थे बुजुर्ग थे, अर्जुन जवान था और अर्जुन को जब जोश में आते देखा तो भगवान कहते हैं कुछ छल करना चाहिए, भगवान महादेव छल करके अर्जुन के हाथ की गांडीव को छीन लेते हैं और जब धनुष को छीना तब अर्जुन को और ज्यादा जोश आ गया भगवान शंकर में और अर्जुन में जब मल्ल युद्ध होता है रागी भगवान महादेव उठाकर मुस्तिका और जब अर्जुन की पीठ पर मारते हैं तब भगवान एक मुक्का मारते हैं अर्जुन को, और अर्जुन जब मारते हैं भगवान को तो दनादन चार पांच मुक्के मार देते हैं। |
रागी |
दे दनादन। |
रागी |
दे दनादन। |
प्रभा |
मां भवानी दूरिहा ले देखे त काहय ये मोर डोकरा ल मार डरही तईसे लागत हे। |
प्रभा |
मां भवानी दूर से देख कर कह रही है ये मेरे बूढ़े पति को मार डालेगा ऐसा लग रहा है। |
रागी |
हव भई नी बांचही तईसे लागत हे। |
रागी |
हां भई नहीं बचेगा जैसा लग रहा है। |
प्रभा |
क्योंकि जवानी के जोश हे अर्जुन के भगवान महादेव ईशारा करे गिरिजा देखे नी जांव केहेंव त चल चल कहिके जोजियाय हस। |
प्रभा |
क्योंकि जवानी का जोश है अर्जुन को भगवान महादेव ईशारा करके गिरिजा से कहते हैं देखा नहीं जाऊंगा कहा था तो चल चल कहके जबर्दस्ती ले आई। |
रागी |
हव लान के चभरा दिस। |
रागी |
हां लाकर के फंसा दिया। |
प्रभा |
भगवान महोदव निकाल के नाग पाश छोड़थे रागी अर्जुन के चारो हाथ गोड़ ल बांध देथे तब अर्जुन भगवान ल काहत हे भोलेनाथ मय तोर घोर तपस्या करेंव आज ये शिकारी ह मोला बांध देहे अर्जुन भगवान महादेव ल काहत हे ‘’ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा, ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा, ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा’’। |
प्रभा |
भगवान महोदव नाग पाश निकालकर छोड़ते हैं रागी, अर्जुन के चारो हाथों और पैरों को बांध देते हैं तो अर्जुन भगवान से कहते हैं भोलेनाथ मैंने आपकी घोर तपस्या की और आज इस शिकारी ने मुझे बांध दिया, अर्जुन भगवान महादेव से कहते हैं ‘’अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी, अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी, अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी’’। |
रागी |
ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा। |
रागी |
अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी। |
प्रभा |
‘’ये दे ग भंगे म माते हे भोलानाथ, ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा, ये तुम्हरी पूजा प्रथम कोई कीन्हा ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा, ये मांगहु मांगहु वर तुम दीन्हा ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा ये, ग माते हावय बबा भोलानाथ, ये धतूरा गांजा अउ भंग पिएगा’’ अर्जुन मन ही मन भगवान भोलेनाथ के स्तुति करथे साक्षात भगवान दर्शन देत हे भगवान कहे मांग अर्जुन मांग महादेव काहत हे मोरे असन वीर हस तंय कहे अर्जुन आज अपन आप ल हार मान गेंव तंय मोर ले जीत गेस मय तोर से हार गेंव त अर्जुन कहे कइसे पतियाहूं त भगवान काहय कईसे म विसवास करबे त अर्जुन बोले बकायदा प्रमाण पत्र मिलना चाही सर्टिफिकट मिलना चाहिए कि अर्जुन ये लड़ाई में भगवान महादेव हार गे काहय कोन दिही त भवानी लिख दिही। |
प्रभा |
‘’अरे भोलेनाथ भांग पीकर मदमस्त हैं, अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी, अ जी आपकी पूजा पहले सबने की, अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी, ये मैं मांग रहा हूं मांग रहा हूं आप वरदान दे दो, अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी, अरे मदमस्त है बाबा भोलेनाथ, अरे धतुरा गांजा और भांग पिए जी’’ अर्जुन मन ही मन भगवान भोलेनाथ की स्तुति करते हैं साक्षात भगवान दर्शन देते हैं भगवान कहते हैं मांग अर्जुन मांग महादेव कहते हैं मेरे ही समान वीर हो तुम कहते हैं अर्जुन आज अपने आप को मैं हार मान गया हूं तुम मुझसे जीत गए, मैं तुमसे हार गया तो अर्जुन कहते हैं मैं कैसे यकीन करूं तो भगवान कहते हैं कैसे में यकीन करोगे तो अर्जुन बोले बकायदा प्रमाण पत्र मिलना चाहिए, सर्टिफिकेट मिलना चाहिए कि अर्जुन ने इस लड़ाई में भगवान महादेव को हरा दिया, कहते हैं कौन देगा तो वानी लिखकर देगी। |
रागी |
साइन करके दिही। |
रागी |
हस्ताक्षर करके देगी। |
प्रभा |
मां जगदम्बा लिख के देथे लड़ाई में महादेव अर्जुन संग हारगे, रागी भैया वहीं समय देवता लोक से मातुली नाम के सारथी रथ लेके आथे अउ महावीर अर्जुन भगवान के आशीर्वाद लेथे अउ पासुपत नाम के बाण देथे अउ पासुपत नाम के बाण लेकर के अर्जुन फिर विमान में बैठते हैं फिर देवलोक पहुचंते हैं सुरराज देवताओं के राजा देवराज इंद्र जतेक देवता हे तैंतीस कोटि देवता ल बोले देवताओं जितने भी देवता हो सब कान खोलकर के सुन लो, अर्जुन मृत लोक से आएं हैं कुंती का बेटा है सब देवता मिलके अर्जुन ल रोज एक एक बाण सीखाही रागी मालिक के आदेश ल कोन नी मानही सब देवता अर्जुन ल एक एक बाण देथे देवता लोक में अर्जुन सुखपूर्वक निवास करत हे रागी भैया समय बीतत हे अर्जुन जब सोवय त दरवाजा म दू ठन वीर रखवार खड़े राहय रागी भाई एक दिन के बात हे देवता मन के समाज लगे हे देवराज इंद्र आसन में विराजमान हे सब देवता आसन में बईठे हे ओ दिन बताय हे सबल सिंह महराज अर्जुन लगाय हे किरीट कुंडल वसन भूषण अउ देवराज इंद्र के सभा में बैंठे हैं, ओ सभा ओ दिन अईसे सुंदर दिखत हे रागी भैया जेमा भगवान महादेव ह गणेश ल गोद म लेके इतना सुंदर, मेनका नाम के अप्सरा के पारी हे नृत्य दिखाय के। |
प्रभा |
मां जगदम्बा लिख के देगी लड़ाई में अर्जुन से महादेव हार गए, रागी भैया उसी समय देवता लोक से मातुली नाम का सारथी रथ लेकर आता है और महावीर अर्जुन भगवान से आशीर्वाद लेते हैं और भगवान उन्हें पासुपत नाम का बाण देते हैं और पासुपत नाम का बाण लेकर अर्जुन फिर विमान में बैठते हैं फिर देव लोक पहुचंते हैं सुरराज देवताओं के राजा देवराज इंद्र और जितने भी देवता हैं तैंतीस कोटि देवताओं को बोले देवताओं जितने भी देवता हो सब कान खोलकर सुन लो, अर्जुन मृत लोक से आएं हैं कुंती का पुत्र है,सब देवता मिलकर अर्जुन को रोज एक एक बाण विद्या सिखाएंगे रागी मालिक का आदेश कौन नहीं मानता सारे देवता अर्जुन को एक एक बाण देते हैं देवता लोक में अर्जुन सुखपूर्वक निवास करते हैं रागी भैया समय बीतता है अर्जुन जब सोते थे तो दरवाजे पर दो वीर रखवाली में खड़े रहते थे, रागी भाई एक दिन की बात है, देवताओं का समाज लगा हुआ है देवराज इंद्र आसन में विराजमान हैं, सब देवता आसन में बैठे हैं उस दिन बताए हैं सबल सिंह महराज अर्जुन किरीट कुंडल वस्त्र आभूषण धारण किए हैं और देवराज इंद्र की सभा में बैंठे हैं, उस दिन वह इतनी सुंदर दिख रही है रागी भैया जैसे भगवान महादेव गणेश को गोद में लेकर बैठे हैं इतना सुंदर, उस दिन नृत्य दिखाने की बारी मेनका नाम की अप्सरा की है। |
रागी |
जय हो जय हो। |
रागी |
जय हो जय हो। |
प्रभा |
मेनका अप्सरा सोलह श्रृंगार करती है दिव्य सुंदरी अउ सोलह श्रृंगार करके जब देवराज इंद्र के आगे ओ दिन अतका सुंदर नृत्य करथे रागी भाई ओ देखते ही देवराज इंद्र प्रसन्न हो जाथे सब देवता के मुंह से निकलथे वाह वाह क्या बढ़िया देवराज इंद्र बोले मेनका आज मय तोर उपर प्रसन्न हंव का चीज मांगना हे तंय मांग ले इंद्र बोले मांग, मेनका खड़े सोचे मय स्वर्ग में हंव मोला कोई चीज के कमी नई हे हर चीज मिलथे पर इंद्र काहत हे मांग अतका दिन होंय रीहीस पर मोर उपर प्रसन्न नी होय रीहीस हे ना जाने जीवन में और कभी प्रसन्न होही कि नी होही रागी भाई समय ल काबर गंवाव। |
प्रभा |
दिव्य सुंदरी मेनका अप्सरा सोलह श्रृंगार करती है और सोलह श्रृंगार करके जब देवराज इंद्र के सामने उस दिन इतना सुंदर नृत्य करती है रागी भाई उसे देखकर देवराज इंद्र प्रसन्न हो जाते हैं सभी देवताओं के मुंह से वाह वाह निकलता है, बहुत बढ़िया, देवराज इंद्र बोले मेनका आज मैं तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूं जो चीज मांगनी हैं तुम मांग लो इंद्र बोले मांगों, मेनका खड़ी सोचती है मैं तो स्वर्ग में हूं मुझे किसी चीज की कमी नहीं है हर चीज मिलती है पर इंद्र कह रहे हैं मांग लो इतने हो गए मेरे ऊपर प्रसन्न नहीं हुए थे और ना जाने जीवन में और कभी प्रसन्न होंगे कि नहीं रागी भाई समय को क्यों गंवाऊं। |
रागी |
या या। |
रागी |
या या। |
प्रभा |
मेनका सोचिस अउ सोच के इंद्र कहिस काय देबे महराज आपसे जा मांगहूं वो चीज इंद्र बोले हां मेनका दुहूं मांग ले मेनका बोले सोच लो पीछे पछताय बर मत पड़े महराज कहे नहीं नहीं मेनका, मेनका काहत हे देवराज ए समय में तोर गोद में एक पुरूष बईठे हे कहे अगर चाहत हस त ओ पुरूष ल मोला दे दे, सुनिस त इंद्र के पसीना छूट गे रागी भाई। |
प्रभा |
मेनका सोचती और सोचकर इंद्र कहती है महाराज जो मैं मांगूगी क्या आप मुझे वो देंगे इंद्र बोले हां मेनका दूंगा मांग लो मेनका बोली सोच लो पीछे पछताना ना पड़े महराज कहते हैं नहीं नहीं मेनका, मेनका कहती है देवराज इस समय आपकी गोद में एक पुरूष बैठा है आप अगर चाहें तो उस पुरूष को मुझे दे दें, इंद्र ने सुना तो उसके पसीने छूट गए रागी भाई। |
रागी |
हव जी। |
रागी |
हां जी। |
प्रभा |
अर्जुन पिता के गोद ले उतरिस अउ उतर के चलथे फिर अंदर, रात के समय अर्जुन दरवाजा बंद करके सोय हे, दरवाजा में दू झन रक्षक खड़े हे मेनका नाम के अप्सरा विचार करथे, अर्जुन ल वरदान म पाय हंव चल के देखना चाहिए जेने स्वरूप इंद्र ल नृत्य देखाय बर गे हे मेनका सोलह श्रृंगार करत हे ‘’अ जी मायामोहनी ग मन मोहत हे जगत ल ग मायामोहनी, अ जी मायामोहनी ग मन मोहत हे जगत ल ग मायामोहनी, अ जी मायामोहनी ग मन मोहत हे जगत ल ग मायामोहनी, अ जी मायामोहनी ग मन मोहत हे जगत ल ग मायामोहनी’’। |
प्रभा |
अर्जुन पिता के गोद से उतरते हैं और उतरकर के अंदर चले जाते हैं, रात के समय अर्जुन दरवाजा बंद करके सोए हैं, दरवाजे पर दो रक्षक खड़े हैं मेनका नाम की अप्सरा विचार करती है, मैंने अर्जुन को वरदान में पाया है चल के देखना चाहिए जिस स्वरूप इंद्र को नृत्य दिखाने गई थी मेनका सोलह श्रृंगार करती है ‘’अ जी मायामोहनी जी मन मोहती है जगत को जी मायामोहनी, अ जी मायामोहनी जी मन मोहती है जगत को जी मायामोहनी, अ जी मायामोहनी जी मन मोहती है जगत को जी मायामोहनी, अ जी मायामोहनी जी मन मोहती है जगत को जी मायामोहनी’’। |
रागी |
‘’मायामोहनी ग मन मोहत हे जगत ल ग मायामोहनी’’। |
रागी |
‘’मायामोहनी जी मन मोहती है जगत को जी मायामोहनी’’। |
प्रभा |
रतिहा के बेरा अप्सरा पहुचंगे दरवाजा में जो रक्षक खड़े हे वो रक्षक मन ल बोलत हे ऐ वीरों देवराज इंद्र के इजाजत लेके आंय हंव मय ये भवन में प्रवेश करना चाहत हंव मोला रास्ता देव, दोनों वीर खड़े राहय रास्ता ल छोड़ देथे दरवाजा म जाके अप्सरा अर्जुन ल पुकारत हे अर्जुन ए अर्जुन, अर्जुन दरवाजा बंद करके सोए हे मेनका के आवाज ल सुनके अंदर ले ही काहत हे मेनका रतिहा के बेरा तंय मोर भवन में कईसे आय हस मेनका ए मेनका, मेनका बोले अर्जुन मय तोर पिताजी से तोला वरदान म पाय हंव तंय दरवाजा ल खोल मय ये भवन में आना चाहत हंव दरवाजा ल खोल मैं इंद्र से तोला वरदान म पाय हंव तो अर्जुन अंदर से ही काहत हे मेनका एक महतारी होके बेटा के आगू म अइसन बात ल करत हस कहिस तोला लाज नई लागय अर्जुन काहत हे तय मोर पिताजी के साथ में हमेशा रहिथस जईसे माता कुंती ल मानथंव जईसन माता माधरी ल मानथंव जईसे मां गांधारी ल मानथंव जईसे मां इंद्राणी के ईज्जत करथंव मेनका इंद्राणी के जईसे तहूं ल मानथंव बोले तंय यहां से लौट जा मेनका नाम के अप्सरा आखिर म अर्जुन ल कहिथे मोर मन में एक आस हे अर्जुन अंदर ले पूछत हे आस हे तो मेनका काहत हे मोर गोदी म तोर असन बेटा खेलतिस अईसन आसरा मोर गोद म तोर असन बेटा होना चाहिए तो अर्जुन मेनका ल कथे मूही ल बेटा मान ले ना, अर्जुन काहत हे मेनका तंय मूंही ल बेटा मान ले ना, ये बात ल सुनिस त मेनका कांप जथे अउ क्रोध म भर के अर्जुन ल श्राप देथे बोले जाव तुम नपुंसक हो जाओगे, होत प्रात:काल अर्जुन इंद्र ल बताईस पिताजी मेनका मोला श्राप दे देहे इंद्र कहिस मेनका मय तोर प्रतिपालन करेंव अउ आज तंय अर्जुन ल श्राप दे दे हस मेनका कहे महराज मय अर्जुन ल क्रोध करके श्राप नई दे हंव मय एला प्रेम से श्राप दे हंव ये श्राप नोहे आगे चलके अर्जुन बर वरदान सिद्ध होही महराज ये नपुंसक के भेष म अर्जुन सब दिन नई राहय केवल एक साल तक कुछ दिन बांचे हे बारह साल पूरा होय बर जईसे ही बारा साल बितही एक साल अज्ञातवास बिताय बर अर्जुन ह जहां कहीं भी जाही वो इही वृहन्नला के रूप ले के जाही तभे ओकर अज्ञातवास ह पूरा होही रागी भैया महावीर अर्जुन ह देवतालोक में निवास करत हे अउ पांचों भैया पांडव जंगल जंगल में भ्रमण करत हे समय बीतत जात हे अउ कुछ दिन बीते के बात ए मन ही मन राजा युधिष्ठिर ह बिचार करत हे अब का करना चाही एक दिन ए लोमश ऋषि के आगमन होथे लोमश ऋषि काहत हे पांडव ए जंगल में बहुत दिन होगे राहत राहत अब तुमन तीर्थ स्थल भ्रमण करव पांचो भैया पांडव नाना प्रकार के तीर्थ स्थल के फेर भ्रमण करना चाहत हे ‘’तोर माटी रंग काया रे ढेला कस घुर जाही, ये जिनगी के नईए ठिकाना ढेला कस घुर जाही‘’। |
प्रभा |
रात के समय अप्सरा दरवाजे पर पहुंच गई, वहां पर जो रक्षक खड़े हैं उनसे कह रही है ऐ वीरों देवराज इंद्र की इजाजत लेकर आई हूं मैं इस भवन में प्रवेश करना चाहती हूं मुझे रास्ता दो, दोनों वीर खड़े थे वे रास्ता छोड़ देते हैं दरवाजे पर जाके अप्सरा अर्जुन को पुकारती है, अर्जुन ए अर्जुन, अर्जुन दरवाजा बंद करके सोए हैं मेनका की आवाज को सुनके अंदर से ही कहते हैं मेनका रात के समय तुम मेरे भवन में कैसे आई हो मेनका ओ मेनका, मेनका बोली अर्जुन मैंने तुम्हारे पिताजी से तुम्हे वरदान में पाया है तुम दरवाजे को खोलो मैं इस भवन में आना चाहती हूं दरवाजा खोलो मैंने इंद्र से तुम्हे वरदान में पाया है तो अर्जुन अंदर से ही कहते हैं मेनका एक मां होकर बेटे के सामने ऐसी बातें करती हो तुम्हे शर्म नही आती अर्जुन कहते हैं तुम मेरे पिताजी के साथ में हमेशा रहती हो जैसे माता कुंती को मानता हूं जैसे माता माधरी को मानता हूं जैसे मां गांधारी को मानता हूं जैसे मां इंद्राणी की ईज्जत करता हूं मेनका इंद्राणी के जैसे ही तुम्हे भी मानता हूं बोले तुम यहां से लौट जाओ मेनका नाम की अप्सरा आखिर में अर्जुन से कहती है मेरे मन में एक आस है अर्जुन अंदर ले पूछते हैं क्या आस है ? तो मेनका कहती है मेरी गोदी में तुम्हारे जैसा बेटा खेलता ऐसी मेरी आस है, मेरी गोद में तुम्हारे जैसा बेटा होना चाहिए तो अर्जुन मेनका से कहते हैं मुझे ही बेटा मान लो ना, अर्जुन कहते हैं मेनका तुम मुझे ही बेटा मान लो ना, इस बात को सुनकर मेनका कांप जाती है और क्रोध से भर के अर्जुन को श्राप देती है बोलती है जाओ तुम नपुंसक हो जाओगे, होते प्रात:काल अर्जुन इंद्र को बताते हैं पिताजी मेनका ने मुझे श्राप दे दिया है, इंद्र कहते हैं मेनका मैंने तुम्हार पालन किया है और आज तुमने अर्जुन को श्राप दे दिया, मेनका कहती है महाराज मैंने अर्जुन को क्रोध करके श्राप नहीं दिया है मैंने इसे प्रेम से श्राप दिया है ये श्राप नहीं है आगे चलकर अर्जुन के लिए ये वरदान सिद्ध होगा महाराज ये नपुंसक के भेष में अर्जुन सदा दिन नहीं रहेगा केवल एक साल के लिए है और कुछ दिन ही बचे हैं बारह साल पूरे होने में जैसे ही बारह साल बितेंगे एक साल अज्ञातवास बिताने के लिए अर्जुन कहीं भी जाएगा वो इसी वृहन्नला का रूप लेकर जाएगा तभी उकस अज्ञातवास पूरा होगा रागी भैया महावीर अर्जुन देवता लोक में निवास करते हैं और पांचों भैया पांडव जंगल जंगल में भ्रमण करते हैं समय बीतता जाता है और कुछ दिन बीतने के बाद एक दिन की बात है, मन ही मन राजा युधिष्ठिर बिचार करते हैं अब क्या करना चाहिए एक दिन लोमश ऋषि का आगमन होता है लोमश ऋषि कहते हैं पांडव इस जंगल में बहुत दिन हो गए रहते रहते अब तुम लोग तीर्थ स्थलों का भ्रमण करो पांचो भैया पांडव नाना प्रकार के तीर्थ स्थलों का भ्रमण करना चाहते हैं ‘’तुम्हारी मिट्टी रंग जैसी काया है ढेले की तरह घुल जाएगी, इस जिन्दगी का कोई ठिकाना नहीं है ढेले की तरह घुल जाएगी ‘’। |
रागी |
‘’तोर माटी रंग काया रे ढेला कस घुर जाही’’। |
रागी |
‘’तुम्हारी मिट्टी रंग जैसी काया है ढेले की तरह घुल जाएगी’’। |
प्रभा |
ये जिनगी के नईए ठिकाना कुकुर कउंवा नई तो खाही, ये जिनगी के नईए ठिकाना कुकुर कउंवा नई तो खाही, माटी के ओढ़ना माटी के जटोना माटी म लगे ठिकाना, माटी के ओढ़ना माटी के जटोना माटी म लगे ठिकाना, माटी म तंय उपजे बाढ़े, माटी म तंय उपजे बाढ़े, एक दिन माटी में जाना, ’तोर माटी रंग काया रे ढेला कस घुर जाही। |
प्रभा |
इस जिन्दगी का कोई ठिकाना नहीं कुत्ते कौंए भी नहीं खाएंगे, इस जिन्दगी का कोई ठिकाना नहीं कुत्ते कौंए भी नहीं खाएंगे, मिट्टी का ओढ़ना है मिट्टी का बिछौना है मिट्टी में ही मिलना है, मिट्टी का ओढ़ना है मिट्टी का बिछौना है मिट्टी में ही मिलना है, मिट्टी में तुम उपजे बढ़े, मिट्टी में तुम उपजे बढ़े, एक दिन मिट्टी में ही जाना है, ’तुम्हारी मिट्टी रंग जैसी काया है ढेले की तरह घुल जाएगी’। |
रागी |
’तोर माटी रंग काया रे ढेला कस घुर जाही, ‘’तोर माटी रंग काया रे ढेला कस घुर जाही, ये जिनगी के नईए ठिकाना ढेला कस घुर जाही। |
रागी |
’’तुम्हारी मिट्टी रंग जैसी काया है ढेले की तरह घुल जाएगी, ‘’ ’तुम्हारी मिट्टी रंग जैसी काया है ढेले की तरह घुल जाएगी, इस जिन्दगी का कोई ठिकाना नहीं है ढेले की तरह घुल जाएगी’’। |
प्रभा |
पांचों भैया पांडव नाना प्रकार के तीर्थ स्थल के भ्रमण करत हे आखिर म बद्रिका आश्रम में पांडव मन पहुचंथे रागी बद्रिका आश्रम गंगा के तीर म हे गंगा तीर में एक पेड़ हे अउ पेड़ के छांव में चारो भाई अउ महारानी द्रौपदी जाके बईठे हे, रागी भैया कोन जनी गंगा के तीर म गीस त द्रौपदी के मन में का होईस माता द्रौपदी मन म विचार करथे रागी मय कतेक पापनीन हंव आज मोरे कारण मोर पति दर दर के ठोकर खावत हे पांडव वनवास काबर आय हे मोर कारण दुर्योधन मोर चीर ल खीचवाईस अउ पांडव मोरे कारण वनवास आय हे एला सोचिस तहान द्रौपदी के आंखी में आंसू आगे रोय ल लगिस द्रौपदी ह अउ द्रौपदी रोवत बईठे हे रागी अचानक युधिष्ठिर के नजर परगे अरे कहे द्रौपदी रोवत हे द्रौपदी ल रोवत देख के व्याकुल होगे राजा जाके रोय ल धर लिस, अब रानी अउ राजा दूनों झन रोवत हे रागी देवी द्रौपदी ल रोवत देख राजा धर्मराज घलो रोय ल धर लिस अचानक भीम के नजर परगे कहे या ‘’यहा काबर भैया ग मोर रोवन लागे भाई, रहा तो आरो लेवत हे भैया काबर ग मोर भाई रोवत हावे भाई, भीमे ह काहन लागे ग मोर भाई, भीमे ह काहन लागे ग मोर भाई’’ द्रौपदी अउ धर्मराज ल रोवत देखिस रागी त भीम रोय ल धर लिस, भीम ल रोवत देखिस तहान नकुल सहदेव ह रोय ल धर लिस बताय हे पांचो के पांचो रोवय, द्रौपदी ल देखे धर्मराज रोवय अउ धर्मराज ल रोवत देख के द्रौपदी रोवय ये पांचों के पांचों रावत राहय पर रोवत राहय जरूर रागी पर ये मन जानत नई राहय कि हमन काबर रोवत हन, अउ ये रोय कारण काय लेकिन कोनो नई जानत हे अरे कुछ तो मालूम होना चाही कि हमन रोवत काबर हन एक दूसर ल देख के माई पिला रोत हे उही समय सुर सरि के धार में एक ठन फूल बोहावत आवत हे रागी मां भगवती गंगा के धार में एक ठन सुंदर फूल आवत हे द्रौपदी आंसू ल पोछ के देखिस कि फूल बोहावत आवत हे रानी द्रौपदी भीमसेन ल कथे प्राणनाथ वहीदे गंगा धार म एक ठन सुंदर फूल बोहावत आवत हे तुंहर से बन सकतीस त ओ फूल ल निकाल के लान देतेव, फूल लान देते, भीम सोचे ये काबर रोवत हे अउ ये फूल ल लाने कबर कथे निकाल के लान दूंहू रागी भाई तए कर मन ह संतोष हो जही, ये सोच के भीम छलांग लगा दिस गंगा में कूद के तैरत तैरत गिस फूल धरिस अउ लान के द्रौपदी ल दे दिस, द्रौपदी देखिस फूल ल कथे महराज अईसने फूल लान के हार गूथ के मोला पहिरा दे। |
प्रभा |
पांचों भैया पांडव नाना प्रकार के तीर्थ स्थलों के भ्रमण करते हैं आखिर में बद्रिका आश्रम में पांडव लोग पहुचते हैं, रागी बद्रिका आश्रम गंगा के पास में हैं गंगा के पास में ही एक पेड़ है और पेड़ की छांव में चारो भाई और महारानी द्रौपदी जाके बैठे हैं, रागी भैया क्या पता गंगा के पास गई तो द्रौपदी के मन में क्या हुआ कि माता द्रौपदी मन में विचार करती है, रागी मैं कितनी पापीन हूं आज मेरे कारण मेरे पति दर दर की ठोकर खा रहे हैं पांडव वनवास क्यों आएं हैं मेरे कारण दुर्योधन ने मेरे चीर खीचवाए और पांडव मेरे कारण वनवास आए हैं यह सोचा तो द्रौपदी की आंखों में आंसू आ गए रागी और द्रौपदी रोने लगी द्रौपदी बैठकर रो रही है रागी अचानक युधिष्ठिर की नजर पड़ गई कहते हैं अरे द्रौपदी क्यों रो रही है द्रौपदी को रोते देख के व्याकुल हो गए राजा जाकर रोने लग गए, अब रानी और राजा दोनों रो रहे हैं रागी, देवी द्रौपदी को रोते देख राजा धर्मराज भी रोने लगे अचानक भीम की नजर पड़ गई कहते हैं अरे ‘’ये क्यों भैया जी मेरे रोने लगे भाई, रूको जरा देखता हूं भैया जी मेरे क्यों रो रहें हैं भाई, भीम कहने लगे जी मेरे भाई, भीम कहने लगे जी मेरे भाई’’ द्रौपदी और धर्मराज को रोते देखा रागी तो भीम रोने लग गए, भीम को रोते देखा तो नकुल और सहदेव भी रोने लग गए बताया है पांचों के पांचों रो रहे हैं, द्रौपदी को देखा धर्मराज रोने लगे और धर्मराज को रोते देख के भीम रोते हैं ये पांचों के पांचों रो रहे थे लेकिन रो जरूर रहे थे रागी पर ये लोग नहीं जान रहे थे कि हम क्यों रो रहे हैं, और इस रोने का कारण क्या कोई नहीं जान रहा है अरे कुछ तो मालूम होना चाहिए कि हम रो क्यों रहे हैं एक दूसर को देख के माई पिला रोते हैं उसी समय गंगा नदी की धार में एक फूल बहते आ रहा था रागी, मां भगवती गंगा की धार में एक सुंदर फूल आ रहा है द्रौपदी आंसू को पोछकर देखती है कि फूल बहते आ रहा है, रानी द्रौपदी भीमसेन से कहती है प्राणनाथ वो देखो गंगा धार में एक सुंदर फूल बहते आ रहा है आप से बन सकता है तो उस फूल को निकालकर ला देते, फूल ला देते, भीम सोचे ये क्यों रो रही है और ये फूल लाने क्यों कह रही है भीम कहते हैं निकाल के ला दूंगा रागी भाई तो इसके मन में संतोष हो जाएगा, ये सोच के भीम छलांग लगा देते हैं गंगा में कूद के तैरते तैरते जाते हैा गए और फूल को पकड़ लिया और लाकर द्रौपदी को दे दिया, द्रौपदी फूल को देखकर कहती है महाराज ऐसे ही फूल लाकर हार गूथ के मुझे पहना दो। |
रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो। |
प्रभा |
भीम ह सोचिस ये फूल के पेड़ ह गंगा तीर म होही त फूल ह गिर गिस होही त ये गंगा म बेहावत आवत हे भीम बिना सोचे विचारे काहत हे ऐ द्रौपदी ऐसा फूल लाके हार गूथ के नई पहिनाहूं त भीम कहलाना छोड़ दूहूं, हाथ में मणि के गदा लेके भीम ओ फूल के तलाश में चलते हैं जंगल जंगल घूमत हे फूल नई मिलत हे वो फूल तो नंदन वन के फूल ए रागी जहां कुबेर के फुलवारि हे नंदन वन के फूल हे जिंहा कुबेर के फुलवारि हे जिंहा के रखवार हनुमान जी हे, जब फूल नई मिले नहीं रागी तब मारे क्रोध के भीम के नेत्र लाल होगे भयानक जंगल में जब काल के समान गर्जना किए भीम गर्जना ल सुने त जंगल के जानवर मन काहय अरे भागो रे भागो रे ‘’अरे कुंती के बघवा ढिलाय हावय भैया, अरे कुंती के बघवा ढिलाय हावय भैया, भागो भागो सब झन काहन लागे भाई’’ जंगल के जीव जन्तु मन कहे भागो रे कुंती के बघवा ढिलाय हे भीम शेर के समान गर्जना करत हे एक भयानक गंधमादन नाम के पर्वत हे वो गंधमादन के शिखर के ऊपर मा जाके जब भीम गरजथे ‘’अजी काल समान गरजेउ बलवाना’’ जब ऐसे गरजते है तो आवाज हनुमान जी के कान में पहुचंते हैं रागी फुलवारि के रखवार हनुमान विचार करे कोनो वीर आय हे तईसे लागथे गर्जना सुनके हनुमान कहे कोई आय हे चल के देखना चाहिए हनुमान जी बईठे हे ते उठ के रेंगथे कुछ दूर म जाके देखथे त हाथ में मणि के गदा लिए हुए भीम मतवाला गजेन्द्र के चाल में झूमते हुए चले जात हे हनुमान जी देखे त काहय, ओह.. । |
प्रभा |
भीम ने सोचा इस फूल का पेड़ गंगा के पास में होगा तो फूल गिर गया होगा और ये गंगा मे बहते आ रहा है, भीम बिना सोच विचार किए कहते हैं ऐ द्रौपदी ऐसा ही फूल लाकर हार गूथ के नहीं पहना दूं तो भीम कहलाना छोड़ दूंगा, हाथ में मणि का गदा लेकर भीम उस फूल की तलाश में चलते हैं, जंगल जंगल घूमते हैं फूल नहीं मिलता है वो फूल तो नंदन वन का फूल है रागी जहां कुबेर की फुलवारि है नंदन वन का फूल है, जहां कुबेर की फुलवारि है, जहां के रखवाले हनुमान जी हैं, जब फूल नहीं मिलता है रागी तब मारे क्रोध के भीम के नेत्र लाल हो गए भयानक जंगल में जब काल के समान भीम गर्जना किए भीम की गर्जना को सुनकर जंगल के सारे जानवर कहने अरे भागो रे भागो रे ‘’अरे कुंती का शेर आ गया है भैया, अरे कुंती का शेर आ गया है भैया, भागो भागो सब ये कहने लगे भाई’’ जंगल के सारे जीव जन्तु कहने लगे भागो रे कुंती का शेर आ गया है, भीम शेर के समान गर्जना करते हैं, एक भयानक गंधमादन नाम का पर्वत है वो गंधमादन की शिखर के ऊपर में जाके जब भीम गरजते हैं ‘’अजी काल के समान वह बलवान गरजता है’’ जब ऐसे गरजते है तो आवाज हनुमान जी के कानों में पहुचंती है रागी फुलवारि के रखवाले हनुमान जी विचार करते हैं कोई वीर आया है ऐसा ग रहा है, गर्जना सुनकर हनुमान कहते हैं कोई आया हे चल के देखना चाहिए, हनुमान जी बैठे हैं तो उठकर चलते हैं कुछ दूर में जाके देखते हैं तो हाथ में मणि का गदा लिए हुए भीम मदमस्त हाथी की चाल में झूमते हुए चले आ रहे हैं हनुमान जी देखते हैं तो कहते हैं, ओह.. । |
रागी |
हव। |
रागी |
हां। |
प्रभा |
रागी भैया भीम ल आवत देखिस हनुमान त झट रूप ल बदल दिस अउ बुढ़वा बेन्दरा के रूप धर लिस रस्ता तीर म पेड़ हे पेड़ म ओध के बईठत हे बुढ़वा बेन्दरा के रूप वो रस्ता तीर म पेड़ हे ओ पेड़ म ओध के बईठत हे। |
प्रभा |
रागी भैया भीम को आते देखकर हनुमान झट से रूप बदल लेते हैं और बूढ़े बन्दर का रूप धर लेते हैं रास्ते में पेड़ हैं पेड़ में टिककर बैठते हैं बूढ़े बन्दर के रूप वो रास्ते के पास पेड़ है वो पेड़ में टिककर बैठते हैं। |
रागी |
बईठत हे। |
रागी |
बैठते हैं। |
प्रभा |
पूछी ल रस्ता म आड़ी आड़ा लमा देथे पूंछ ह रस्ता म लमे हे पेड़ म ओधे हे अउ केला ल छील छील के हनुमान जी खावत हे रागी। |
प्रभा |
अपनी पूंछ को रास्तें में आड़ा तिरछा फैला देते हैं पूंछ रास्ते में फैला है पेड़ में टिककर बैठे हैं आर हनुमान जी केले को छील छीलकर खा रहे हैं। |
रागी |
अच्छा। |
रागी |
अच्छा। |
प्रभा |
हाथ म गदा लेके भीम जब आईस रस्ता म हनुमान जी के पूंछ ल देखिस त क्रोध म परगे भीम बोलिस ए वानर कहे अरे बेन्दरा। |
प्रभा |
हाथ में गदा लेकर भीम जब आते हैं रास्ते में हनुमान जी की पूंछ को देखते हैं तो क्रोध से भर जाते हैं भीम बोलते हैं ए वानर कहते हैं अरे बन्दर। |
रागी |
हव जी। |
रागी |
हां जी। |
प्रभा |
मय यहां से गुजरना चाहत हंव तंय अपन पूंछ ल जल्दी सकेल ले अरे बेन्दरा। |
प्रभा |
मैं यहां से गुजरना चाहता हूं तुम अपनी पूंछ को जल्दी समेट लो अरे बन्दर। |
रागी |
हव वो। |
रागी |
हां जी। |
प्रभा |
मय यहां से जाना चाहत हंव ये पूछी ल सकेल। |
प्रभा |
मैं यहां से जाना चाहत हूं इस पूंछ को समेट। |
रागी |
हव ब्रेकर लगाय हस तेला। |
रागी |
हां ब्रेकर लगाए हो इसको। |
प्रभा |
पूंछ ल सकेले के ताकत नईए महराज, ये पूंछ ल सकेले के शक्ति नईए महराज त भीम ह कथे दूरिहा म जाके नई बईठते रस्ता म काबर बईठे हस। |
प्रभा |
पूंछ को समटने की ताकत नहीं है महाराज, इस पूंछ को समेटेने की शक्ति नहीं महाराज तो भीम कहते हैं तो थेड़ी दूर में जाके नहीं बैठते रास्तें में क्यों बैठे हो। |
रागी |
बने रोड के किनारे बईठते। |
रागी |
बढि़या सड़क के किनारे बैठते। |
प्रभा |
हनुमान जी कथे मय अब्बड़ दूरिहा ले आवत हंव थकगे हंव महराज कहे महराज तंय काबर नाराज होवत हस पूछी ल सरका दे अउ तंय ह नाहक जा, एमा नाराज होय के काय बात हे महराज, मय बईठे हंव पूछी ल सरका दे अउ तंय न नाहक जा एक हाथ में मणि के गदा लिए हे भीमसेन अउ एक हाथ म जब हनुमान जी के पूछी ल जब उठाय के प्रयास करत हे रागी तब पूछी वजन जनाईस गरू असन लागिस भीमसेन मणि के गदा ल मढ़ाईस अउ मणि के गदा ल मड़ा के जब दोनों हाथ म उठाय के प्रयास करथे तभो ले कुछू नई उठत हे भीमसेन मन म विचार करथे ‘’येहा बेन्दरा नोहे तईसे लागत हावय भाई, हां भीमे येहा सोचन लागे ग मोर भाई’’। |
प्रभा |
हनुमान जी कहते हैं मैं बहुत दूर से आया हूं थक गया हूं महाराज, कहा महराज आप क्यों नाराज होते हैं पूंछ को सरका दो और आप पार हो जाओ, इसमें नाराज होने की क्या बात है महराज, मै बैठा हूं आप पूंछ को सरका दो और आप पार हो जाओ एक हाथ में मणि की गदा लिए हैं भीमसेन और एक हाथ से जब हनुमान जी की पूंछ को जब उठाने का प्रयास करते हैं रागी, तब पूंछ वजन लगती है, भारी जैसी लगी, भीमसेन मणि की गदा को रख देते हैं और मणि के गदा को रखकर जब जब दोनों हाथों से उठाने का प्रयास करते हैं तब भी नहीं उठता है भीमसेन मन में विचार करते हैं ‘’ये तो बन्दर नहीं है ऐसा लग रहा है भाई, हां भीम यह सोचने लगा जी मेरे भाई’’। |
रागी |
’येहा बेन्दरा नोह तईसे लागत हावय भाई, हां भीमे येहा सोचन लागे ग मोर भाई’’। |
रागी |
‘’ये तो बन्दर नहीं है ऐसा लग रहा है भाई, हां भीम यह सोचने लगा जी मेरे भाई’’। |
प्रभा |
भीम ह गरू असन जनावत देखिस नहीं रागी दोनों हाथ म जब हनुमान जी के पूंछ ल जब उठाय के प्रयास करथे त बताय हे पूंछ उठाना तो दूर के बात हे भीम वो पूंछ ल हिला नी पात हे पसीना चूह गे हनुमान हांस दिस भीम के मुंहू ल देख के काहय ए दे केला माड़े हे केला खा ले थोकन जादा ताकत आही। |
प्रभा |
भीम को जब भारी लगता दिखा ना रागी तो दोनों हाथों से जब हनुमान जी की पूंछ को जब उठाने का प्रयास करते हैं तो बताया है कि पूंछ उठाना तो दूर की बात है भीम पूंछ को हिला भी नहीं पाए, पसीना बह गया तो हनुमान हंस दिए भीम का चेहरा देखकर कहते हैं ये लो केला रखा है केले खा लो थोड़ी ज्यादा ताकत आएगी। |
रागी |
ताकत आही। |
रागी |
ताकत आएगी। |
प्रभा |
भीम ह लजा जथे रागी भैया भगवान ल कथे तंय मोला काकर जघा सपड़ा दे हस, भीमसेन भगवान ल काहत हे तंय मोला काकर जघा सपड़ा दे हस, ये बेंदरा नोहे तईसे लागथे तंय आके मोर लाज ल बचा दे भीम भगवान ल काहत हे तंय काकर जघा मोला भेंटा दे हस, ये बेन्दरा नोहे तईसे लागथे भीम ल व्याकुल देख के हनुमान जी कथे चिंता काबर करत हस भीम हनुमान जी कहते हैं भीम तंय चिंता मत कर हम दोनों भाई आन तहूं पवन के पुत्र आस महू पवन के पुत्र आंव, जब जब तंय कुंती दाई के गर्भ मं जाथस तब तब मय मां अंजनि के गर्भ में आथंव जब तंय मां अंजनी के गर्भ म जाथस तब मय दाई कुंती के गर्भ म आथंव हम दोनों छोटे बड़े भाई अन, तंय चिंता मत कर मय तोर ऊपर प्रसन्न हंव कुछ मांग ले भीम मय कुछ देना चाहत हंव बोले मांग भीमसेन कहते हैं महराज जब जब मय दुश्मन के दल में युद्ध करे बर जाहूं अउ जब शेर के समान गर्जना करहूं त मोर मुहूं ले आपके आवाज निकले, ओ आवाज जोन ल सुनके दुश्मन के दिल दहल जाय शत्रु के दिल दहल जाय, हनुमान जी कहते हैं तथास्तु। |
प्रभा |
भीम शर्मा जाते हैं रागी भैया भगवान से कहते आपन मुझे कहां फंसा दिया है, भीमसेन भगवान से कहते हैं आपने मुझे किसके पास फंसा दिया, यह बंदर नहीं है ऐसा लगता है आप आकर मेरी लाज लो भीम भगवान से कहते हैं आपने मुझे किससे मिलवा दिया, ये बन्दर नहीं ऐसा लगतर है, भीम को व्याकुल देख के हनुमान जी कहते हैं चिंता क्यों करते हो भीम हनुमान जी कहते हैं भीम तुम चिंता मत करो हम दोनों भाई हैं तुम भी पवन के पुत्र हो मैं भी पवन का पुत्र हूं, जब जब तुम माता कुंती के गर्भ में जाते हो तब तब मैं मां अंजनि के गर्भ में आता हूं जब तुम मां अंजनी के गर्भ में जाते हो तब मैं माता कुंती के गर्भ में आता हूं हम दोनों छोटे बड़े भाई हैं, तुम चिंता मत करो मैा तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूं कुछ मांग लो भीम मैं कुछ देना चाहता हूं, बोले मांग भीमसेन, भीमसेन कहते हैं महराज जब जब मैं दुश्मन के दल में युद्ध करने जाऊंगा और जब शेर के समान गर्जना करूंगा तब मेरे मुंह से आपकी आवाज निकले, वो आवाज जिसे सुनकर दुश्मन के दिल दहल जांए, शत्रु के दिल दहल जांए, हनुमान जी कहते हैं तथास्तु। |
रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो। |
प्रभा |
हनुमान पूछत हे कईसे आय रेहे। |
प्रभा |
हनुमान पूछते हैं कैसे आए थे। |
रागी |
हां भई। |
रागी |
हां भाई। |
प्रभा |
त भीम कथे ए ए ए दे महराज अईसने फूल लेगे बर आय हंव, हनुमान कथे कुबेर के बाड़ी म मिलही जा तोड़ ले भीमसने कुबेर के बाड़ी म फूल तोड़े ल जात हे ओतके बेर कुबेर के आगमन हो जथे फुलवारि के जउन मालिक हे, ओ कुबेर के आगमन हो जथे ‘’आठो पहर ले ले हरि नाम मानुस चोला आठो पहर ले ले हरि नाम, आठो पहर ले ले हरि नाम मानुस चोला आठो पहर ले ले हरि नाम, जिनगी के रस्ता म कांटा अउ खुंटी हे, जिनगी के रस्ता म कांटा अउ खुंटी हे, रख ले बचा के तोर पांव पांव पांव, आठो पहर ले ले हरि नाम मानुस चोला आठो पहर ले ले हरि नाम, कोनो तोला भोला कहिथे कोनो रघुराई ग, कोनो तोला भोला कहिथे कोनो कन्हाई ग, ले स्वरूप हरि नाव नाव नाव, आठो पहर ले ले हरि नाम मानुस चोला आठो पहर ले ले हरि नाम’’ रागी भैया कुबेर महराज फिर भीमसेन से लड़े बर तैयार हो जथे कुबेर ह नई जान सकिस कि यही ह भीम हे रागी, एक तरफ कुबेर खड़े हे एक तरफ भीमसेन महराज खड़े हे, भईगे भीम ह लड़े बर दउड़तिस वईसने एती राजा युधिष्ठिर द्रौपदी ल पूछथे पांचाली ये अड़बड़ बेरा होगे भीम नई दिखत हे। |
प्रभा |
तब भीम कहते हैं ए ए ए ऐसा महाराज ऐसा ही फूल ले जाने के लिए आया हूं, हनुमान कहते हैं ये तो कुबेर की बाड़ी में मिलेगा जा तोड़ ले, भीमसने कुबेर की बाड़ी में फूल तोड़ने को जाते हैं उसी समय कुबेर का आगमन होता है फुलवारि के जो मालिक हैं, उस कुबेर का आगमन होता है ‘’आठो पहर ले लो हरि का नाम मानुस चोला आठो पहर ले लो हरि का नाम, आठो पहर ले लो हरि का नाम मानुस चोला आठो पहर ले लो हरि का नाम, जिन्दगी के रास्ते में कांटें और कीलें हैं खुंटी हे, जिन्दगी के रास्ते में कांटें और कीलें हैं खुंटी हे, रख लो बचाकर अपने पांव पांव पांव, आठो पहर ले लो हरि का नाम मानुस चोला आठो पहर ले लो हरि का नाम, कोई तुम्हे भोला कहते हैं और कोई कहते रघुराई जी, कोई तुम्हे भोला कहते हैं और कोई कहते कन्हाई जी, लो स्वरूप हरि का नाम नाम नाम, आठो पहर ले लो हरि का नाम मानुस चोला आठो पहर ले लो हरि का नाम’’ रागी भैया फिर कुबेर महाराज भीमसेन से लड़ने को तैयार हो जाते हैं कुबेर नहीं जान पाया कि यही भीम हैं रागी, एक तरफ कुबेर खड़े हैं और एक तरफ भीमसेन महाराज खड़े हैं, बस जैसे ही भीम लड़ने को दौड़ते वैसे ही इधर राजा युधिष्ठिर द्रौपदी को पूछते हैं पांचाली बहुत देर हो गई भीम नहीं दिख रहा है। |
रागी |
हव पता नईए भई। |
रागी |
हां पता नहीं है भाई। |
प्रभा |
रानी द्रौपदी बताईस हे महराज वो नदिया म फूल बोहावत आईस हे वईसने फूल लाने कबर भीमसेन महराज ह गे हे फूल बर गेहे महराज, राजा जान डरिस वो तो कुबेर के बाड़ी म मिलथे पारिजातक के फूल ए। |
प्रभा |
रानी द्रौपदी ने बताया कि महाराज जो नदी में फूल बहता आया था वैसा ही फूल लेने के भीमसेन महाराज गए हैं महराज, राजा जान जाते हैं कि वो तो कुबेर की बाड़ी में मिलता है, पारिजात का फूल है। |
रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो। |
प्रभा |
रागी भाई राजा युधिष्ठिर भीमसेन के बेटा घटोत्कछ ल याद करथे तत्काल घटोत्कछ पहुंचथे अउ आकर के प्रणाम करके पूछे पिताजी का सेवा करंव, त राजा कहिथे कि हमला जल्दी नंदन वन ले जा तीनों भाई ली खांध म बईठाथे मां द्रौपदी के हाथ ल पकड़थे अउ हाथ ल पकड़ के घटोत्कछ नाम के वीर उड़ जथे, घटोत्कछ अड़ जथे भईगे अबक तबक भीम ह लड़े बर दउड़तिस वईसने ठीक दूनों के बीच म लेग के उतार देथे, कुबेर देखिस पहिली ये अकेल्ला रीहीस रागी अब वोहा पांच झन होगे रागी। |
प्रभा |
रागी भाई राजा युधिष्ठिर भीमसेन के बेटा घटोत्कछ ल याद करथे तत्काल घटोत्कछ पहुंचथे अउ आकर के प्रणाम करके पूछे पिताजी का सेवा करंव, त राजा कहिथे कि हमला जल्दी नंदन वन ले जा तीनों भाई ल खांध म बईठाथे मां द्रौपदी के हाथ ल पकड़थे अउ हाथ ल पकड़ के घटोत्कछ नाम के वीर उड़ जथे, घटोत्कछ अड़ जथे भईगे अबक तबक भीम ह लड़े बर दउड़तिस वईसने ठीक दूनों के बीच म लेग के उतार देथे, कुबेर देखिस पहिली ये अकेल्ला रीहीस रागी अब वोहा पांच झन होगे रागी। |
प्रभा |
रागी भाई राजा युधिष्ठिर भीमसेन के बेटे घटोत्कछ को याद करते हैं तत्काल घटोत्कछ पहुंच जाता है और आकर प्रणाम करके पूछता है पिताजी क्या सेवा करूं, तो राजा कहते हैं कि हमको जल्दी से नंदन वन ले चलो तीनों भाईयों को कंधे में बिठाया और मां द्रौपदी के हाथ को पकड़ता है और हाथ पकड़कर घटोत्कछ नामक वीर उड़ जाता है, घटोत्कछ उड़ जाता है बस अब तब भीम लड़ने के लिए दौड़ने ही वाले थे वैसे ही ठीक दोनों के बीच में लाकर उतार देता है, कुबेर ने देखा पहले ये अकेला था रागी, अब वो पांच लोग हो गए हैं रागी। |
रागी |
है ना। |
रागी |
है ना। |
प्रभा |
कुबेर तर्क लगावत हे पहिली अकेल्ला अब पांच झन हे कुबेर सोचतेच हे ठीक ओतका बेर देवता लोक से दिव्यास्त्र प्राप्त करथे रथ म बईठ के के ‘’अ ग वीर अर्जुन आवन लागय भाई कुबेर कहे वाह। |
प्रभा |
कुबेर तर्क लगाते हैं पहले अकेला अब पांच लोग हो गए, कुबेर सोचते ही है कि ठीक उसी समय देवता लोक से दिव्यास्त्र प्राप्त करके रथ में बैठकर ‘’अ जी वीर अर्जुन आने लगे जी भाई’’ कुबेर ने कहा वाह। |
रागी |
वाह भई वाह। |
रागी |
वाह भाई वाह। |
प्रभा |
‘’भैया वीर अर्जुन जब आवन लागे भाई, हां मन मन वोहा सोचन लागे ग ए दे भाई’’ कुबेर देखे पहिली एक ओकर पांच बाद अब छह के संख्या म होगे आखिर में कुबेर ल पूछे ल पड़गे महराज कहां के रहवईया आव कहे तुमन कोन आव ? का नाम हे महराज राजा युधिष्ठिर बताय हे भैया हम राजा पांडु के पुत्र आन पांचो भाई पांडव आन कहे पांडव आन ये बात ल सुनिस कुबेर दोनों हाथ जोड़ के बोले मोर से गलती होगे महराज कुबेर कहे मय नही जानत रेहेंव महराज तुंही मन पांडव ओ कहिके मोर से गलती होगे मोर गलती ल क्षमा कर दव, पांचों भैया पांडव अउ देवी द्रौपदी ल लेके घटोत्कछ नाम के वीर फिर दैत्य नाम के वन म आवत हे कहे महाराज बारा साल वनवास ह कुछ ही दिन बाकी हे, चाहे ये बाकी के समय ल मोर जंगल म बिता लव, पांडव सरोवर के पार म कुटि बनाकर के निवास करत हे रागी राजा दुर्योधन ल पता चलिस पांडव दैत्य वन में निवास करत हे रागी भैया चतुरंगी सेना लिए अउ चतुरंगी सेना लेकर के दुर्योधन फेर पांडव ल मारे के खातिर वो दैत्य नाम के वन म पहुंचत हे, पांडव के कुटि बने हे सरोवर के पार में वहीं नजदीक में दुर्योधन भी कूटि बनाथे, गंधर्व मन राजा ल समझाथे बोले देख महराज ये जो सरोवर हे ये गंधर्व के सरोवर ए राजा चित्रसेन के सरोवर ए यहां शिविर नई बना कुछ दूर जाके शिविर बनाओ ये बात ल दुर्योधन उल्टा समझगे, सोचिस ये गंधर्व मन ही पांडव के सहयोग करत हे तब पांडव ल तकलीफ नई हे जिद म आके दुर्योधन शिविर बना देथे कौरव अउ गंधर्व के बीच म विवाद हो जथे और वो विवाद यहां तक बढ़थे कि दोनों में घमासान युद्ध हो जथे गंधर्वों के बीच कौरव के दल नई ठीक सकय प्राण ल धर के भगा जथे और गंधर्वों के राजा चित्रसेन निकालथे नाग पाश अउ नाग पाश में राजा दुर्योधन के हाथ गोड़ ल बांध देते, फिर अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम जी कथे राजा जन्मेजय गंधर्वों और कौरव दल के बीच में घमासान युद्ध छिड़े हे दोनों में मारो मारो के आवाज आत हे बड़े बड़े बाण के वर्षा होवत हे रागी भाई गंधर्व के आगे कौरव के दल नी टिक सकीस कौरव प्राण ल धर के भागथे राजा चित्रसेन नागपाश में राजा दुर्योधन ल बांध दिस नागपाश म बांध के गगन पंथ में उड़त हे अर्जुन अउ भीमसेन दूनो कुटी के दरवाजा म बैठ के देखत हे जब दुर्योधन ल बांध के लेगिस खिचत त अर्जुन अउ भीम दूनों भाई ‘’अ ग ताली बजा के हांसन ,लागे ग मोर भाई, हां राजा ओला काहन लागे ग ए दे भाई, ताली बजा के हांसन ,लागे ग मोर भाई, हां राजा ओला काहन लागे ग ए दे भाई’’। |
प्रभा |
‘’भैया वीर अर्जुन जब आने लगे भाई, हां मन ही मन वो सोचने लगे जी ए जी भाई’’ कुबेर ने देखा पहले उसके बाद पांच अब छह की संख्या में हो गए आखिर में कुबेर को पूछना पड़ गया महाराज कहां के रहने वाले वाले आप लोग कौन हो ? क्या नाम है महाराज राजा युधिष्ठिर बताते हैं भैया हम राजा पांडु के पुत्र हैं पांचो भाई पांडव हैं कहते हैं पांडव हैं, यह बात सुना तो कुबेर ने दोनों हाथ जोड़ के बोले मुझसे गलती हो गई महाराज कुबेर कहते हैं मैं नहीं जान रहा था महाराज कि आप लोग ही पांडव हैं करके, मुझसे गलती हो गई मेरी गलती को क्षमा कर दो, पांचों भैया पांडव और देवी द्रौपदी को लेकर घटोत्कछ नाम का वीर फिर दैत्य नाम के वन में आता है कहते हैं महाराज बारह साल वनवास के कुछ ही दिन बाकी हैं, चाहें तो ये बाकी का समय मेरे जंगल में बिता लीजिए, पांडव सरोवर के किनारे कुटि बनाकर निवास करते हैं रागी, राजा दुर्योधन को पता चला कि पांडव दैत्य वन में निवास कर रहे हैं रागी भैया, तो चतुरंगी सेना लिया और चतुरंगी सेना लेकर दुर्योधन फिर पांडव को मारने के लिए उस दैत्य नाम के वन में पहुंचता है, पांडव की कुटि बनी है सरोवर के किनारे में वहीं नजदीक में दुर्योधन भी कूटि बनाता है, गंधर्व लोग राजा को समझाते हैं बोले देखिए महाराज ये जो सरोवर है ये गंधर्व का सरोवर है, राजा चित्रसेन का सरोवर है यहां पर शिविर ना बनाएं कुछ दूर जाके शिविर बनाओ इस बात को दुर्योधन ने उल्टा समझ लिया, सोचा ये गंधर्व लोग ही पांडव का सहयोग करते हैं, तब पांडव को तकलीफ नहीं है जिद में आके दुर्योधन शिविर बना लेता है, कौरव और गंधर्व के बीच में विवाद हो जाता है और वो विवाद यहां तक बढ़ता कि दोनों में घमासान युद्ध हो जाता है, गंधर्वों के बीच कौरव का दल नहीं टिक पाता प्राण बचाकर भाग जाते हैं और गंधर्वों के राजा चित्रसेन निकालते हैं नाग पाश और नाग पाश से राजा दुर्योधन के हाथ पैर को बांध देते हैं, फिर अरे भैया राजा जन्मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम जी कहते हैं राजा जन्मेजय गंधर्वो और कौरव दल के बीच में घमासान युद्ध छिड़ा है दोनों में मारो मारो की आवाज आती है बड़े बड़े बाणों की वर्षा होती है, रागी भाई गंधर्व के सामने कौरव का दल टिक नहीं पाता है और कौरव प्राण बचाकर भागते हैं राजा चित्रसेन ने नागपाश में राजा दुर्योधन को बांध दिया, नागपाश में बांधकर गगन पंथ में उड़ते हैं अर्जुन और भीमसेन दोनों कुटी के दरवाजे में बैठे हैं देखते हैं जब दुर्योधन को बांधकर खीचते ले जाते तो अर्जुन और भीम दोनों भाई ‘’अ जी ताली बजाकर हंसने लगे जी मेरे भाई, हां राजा उनको कहने लगे जी ए जी भाई, ताली बजा के हंसने लगे जी मेरे भाई, हां राजा उनको कहने लगे जी ए जी भाई’’। |
रागी |
‘’ताली बजा के हांसन ,लागे ग मोर भाई, हां राजा ओला काहन लागे ग ए दे भाई, ताली बजा के हांसन ,लागे ग मोर भाई, हां राजा ओला काहन लागे ग ए दे भाई’’। |
रागी |
‘’ताली बजाकर हंसने लगे जी मेरे भाई, हां राजा उनको कहने लगे जी ए जी भाई, ताली बजा के हंसने लगे जी मेरे भाई, हां राजा उनको कहने लगे जी ए जी भाई’’। |
प्रभा |
दोनों ताली पीट के हंसते है राजा युधिष्ठिर दोनों झन ताली पीटत देख के दोनों झन ल पूछत हे कस भैया तुमन काबर तिहार मानत हव, याहा तुमन काबर हांसत हव अर्जुन चिटोपोट नई करिस भीम उंगली उठा के देखाथे ओ देख राजा दुर्योधन हमला मारे बर आय रीहीस अउ ओला चित्रसेन बांध के लेगत हे बोले गगन पंथ में ले जात हे राजा युधिष्ठिर देखिस राजा दुर्योधन नागपाश म बंधाय हे रागी भैया युधिष्ठिर महराज के दिल तो देख जब दुर्योधन ल बंधाय देखथे तब राजा युधिष्ठिर ह काहत हे अर्जुन बोले दूर्योधन हमर भाई ए दुर्योधन हमर ए हमन दूर्योधन के आन युधिष्ठिर के दिल तो देख राजा काहत हे दूर्योधन हमर भाई ए अउ हमर सामने में हमर भाई अपमान होवत हे बोले अर्जुन हमन तेरह साल के बनवास आय हन ओमा दुर्योधन दोष नईए तंय सोचत होबे राजा हमला वनवास देय हे त ये तोर भूल ए बोले अर्जुन बंधन से मुक्त कर दे, बड़े भैया के आदेश अर्जुन खीचिस त्रूंड से मोर बाण अउ मोर बाण निकाल के धनुष म जोड़ के ‘’वीर अर्जुन ग छोड़न लागे ग भैया, रामे रामे भैया कहन लागे जी’’ नागपाश बंधाय हे अउ मोर बाण गिस अउ जाके नागपाश ल काट दिस, नागपाश कटाइस तहान दोनों भाई फेर हांसे युधिष्ठिर काहय अउ का होगे तुमन ल त भीमसेन काहय त भीमसेन काहय कस महाराज बंधन से मुक्त कर देहे केहे बंधना ल छोड़ दिस अेतका ऊपर ले ओह भूंईया म गिरही त ओ मरही त बांचही कोहड़ा छरियाय कस छरिया जही राजा युधिष्ठिर बोले बाण के सीढ़िया बना त अर्जुन लघु बाण छोड़थे अउ बाण की सीढ़िया बनाथे सीढ़िया के द्वारा राजा दुर्योधन नीचे आवत हे सबल सिंह बताय हे राजा दुर्योधन पांडव के आगे लज्जित हो जथे ओ दिन दुर्योधन ल कहे ल पड़गे अर्जुन मांग फिर राजा दुर्योधन काहत हे अर्जुन मांग आज आधा राज मांगबे राज दे दूंहूं पच्चीस गांव मांगबे पच्चीस गांव दे दूंहूं महावीर अर्जुन बोले भाई तोर आशीर्वाद ल मोला कोई कमी नईए, अर्जुन ह हाथ जोड़ के काहत हे भैया मोर पास हर चीज हे कोई चीज के कमी नईए। |
प्रभा |
दोनों ताली पीटकर हंसते हैं राजा युधिष्ठिर दोनों को ताली पीटते देख के दोनों को पूछते हैं क्यों भैया तुम दोनों क्यों त्यौहार मना रहे हो ? ये तुम लोग क्यों हंस रहे हो अर्जुन कुछ नहीं बोल पा रहे थे और भीम ऊंगली उठाकर कहते हैं देखो राजा दुर्योधन हमको मारने के लिए आए थे उसे चित्रसेन बांधकर ले जा रहे हैं बोले गगन पंथ में ले जा रहे हैं, राजा युधिष्ठिर देखते हैं कि राजा दुर्योधन नागपाश में बंधा है, रागी भैया युधिष्ठिर महाराज का दिल तो देखो जब दुर्योधन को बंधा हुआ देखते हैं तब राजा युधिष्ठिर कहते हैं अर्जुन, दूर्योधन हमारा भाई है दुर्योधन हमारा है हम दूर्योधन के हैं, युधिष्ठिर का दिल तो देखो राजा कहते हैं दूर्योधन हमारा भाई है और हमारे सामने में हमारे भाई अपमान हो रहा है बोले अर्जुन हम तेरह साल के लिए बनवास आए हैं उसमें दुर्योधन का दोष नहीं है तुम सोच रहे होगे राजा ने हमें वनवास दिया है तो ये तुम्हारी भूल है बोले अर्जुन बंधन से मुक्त कर दे, बड़े भैया के आदेश अर्जुन ने तरकस से मोर बाण खीचा और मोर बाण निकालकर के धनुष में जोड़ के ‘’वीर अर्जुन जी छोड़ने लगे जी भैया, रामे रामे भैया कहने लगे जी भाई’’ नागपाश से बंधा है और मोर बाण जाता है और जाकर नागपाश को काट देता है, नागपाश कट गया तो दोनों भाई फिर हंसने लगे, युधिष्ठिर कहते हैं और क्या हो गया तुम लोगों को तो भीमसेन कहते हैं क्यों महाराज बंधन से मुक्त करने बोले थे तो बंधन को काट दिया अब उतने ऊपर से नीचे भूमि में गिरेगा मरेगा कि बचेगा कद्दू के जैसे बिखर जाएगा, राजा युधिष्ठिर बोले बाणों की सीढ़ियां बनाओं तो अर्जुन लघु बाण छोड़ते हैं और बाणों की सीढ़ियां बन जाती है सीढ़ियों द्वारा राजा दुर्योधन नीचे आते हैं सबल सिंह बताएं हैं राजा दुर्योधन पांडव के सामने लज्जित हो जाता है उस दिन दुर्योधन को कहना ल पड़ गया मांग अर्जुन मांग फिर राजा दुर्योधन कहते हैं अर्जुन मांग, आज आधा राज्य भी मांगोगे तो राज्य दे दूंगा, पच्चीस गांव मांगोगे तो पच्चीस गांव दे दूंगा महावीर अर्जुन बोले भाई तुम्हारे आशीर्वाद से मुझे कोई कमी नहीं हैं, अर्जुन हाथ जोड़कर कहते हैं भैया मेरे पास हर चीज है किसी चीज की कमी नहीं है। |
रागी |
नईए। |
रागी |
नहीं है। |
प्रभा |
पर तंय मोला कुछू देना चाहत हस त वो चीज ल धरोहर के रूप म राहन देना त अर्जुन काहत हे ना जाने मोला कोन दिन का जिनीस के जरूरत पड़ जाही ओ दिन आंहू अउ तोर से मांग के ले जाहूं राजा दूर्योधन वापस आवत हे समय बीतत हे पांडव के बस कुछ ही दिन बांचे हे बारा बरस बीते के सिंधु देश के राजा जयद्रथ जो दुर्योधन के बहनोई हे दुशीला के पति महराज जयद्रथ विचार करय अब्बड़ दिन होगे हस्तिनापुर नई गे हंव ससुराल घूम के आना चाहिए चतुरंगी सेना लेके जयद्रथ ह जाथे रागी बीच म पड़ीस दैत्य जंगल जहां पांडव के निवास हे। |
प्रभा |
पर तुम मुझे कुछ देना ही चाहते हो उस उस चीज को धरोहर के रूप में रहने दो तो अर्जुन कहते हैं पता नहीं मुझे किस दिन किस चीज की जरूरत पड़ जाए उस दिन आऊंगा और तुमसे मांगकर ले जाऊंगा, राजा दूर्योधन वापस आता है, समय बीतता है पांडव के बस कुछ ही दिन बचे हैं बारह वर्ष बीतने को, सिंधु देश के राजा जयद्रथ जो दुर्योधन का बहनोई है, दुशीला के पति, महराज जयद्रथ विचार करता है बहुत दिन हो गए हस्तिनापुर नहीं गया हूं, ससुराल घूम के आना चाहिए चतुरंगी सेना लेकर जयद्रथ जाता है रागी बीच में पड़ता में पड़ता है दैत्य जंगल जहां पांडव का निवास है। |
रागी |
निवास करत हे। |
रागी |
निवास करते हैं। |
प्रभा |
एक ठन कुटिया म बईठ के धौम्य पुरोहित पूजा करत हे एक ठन कुटिया म बईठ के द्रौपदी ह भोजन बनात हे पांडव मन कांदा कुशा लाने बर गेहे जयद्रथ के सेना पहुचंथे वीर मन कथे अभी तो हस्तिना अब्बड़ दूरिहा हे महराज यही दे काकर कुटिया हे अउ यही दे सरोवर हे पानी के व्यवस्था हे महराज यही मेर हमू मन शिविर बना लेथन। |
प्रभा |
एक कुटिया में बैठकर धौम्य पुरोहित पूजा कर रहे हैं और एक कुटिया में बैठकर द्रौपदी भोजन बना रही है, पांडव लोग कंद मूल लेने के लिए गए हैं, जयद्रथ की सेना पहुचंती है, वीर लोग कहते हैं अभी तो हस्तिना बहुत दूर है महराज वो दखिए किसी की कुटिया है औरर पर सरोवर भी है पानी की व्यवस्था है महराज यहीं पर हम भी शिविर बना लेते हैं। |
रागी |
विश्राम कर लेथन। |
रागी |
विश्राम कर लेते हैं। |
प्रभा |
शिविर बना डरथे अउ जयद्रथ महाराज आसन म आसीन हो जथे जयद्रथ बईठे हे द्रौपदी कुटी म बईठे हे अब कुटिच के भीतरी म थोड़े बईठे रहितिस रागी अचानक द्रौपदी कुटी ले बाहिर आईस पूर्णिमा के चंद्रमा के समान साक्षात मां जगदम्बा है अचानक एक झन वीर के नजर पड़ गे जयद्रथ ल बतात हे महराज एक झन दिव्य कन्या खड़े हे जंगल में जयद्रथ कथे जातो ओला पूछ के आबे कोन ए, वीर जा के पूछत हे कन्या कोन आस तंय हा रानी द्रौपदी बताथे मय पांडव के धर्मपत्नी आंव मोर द्रौपदी नाम हे। |
प्रभा |
शिविर बना लेते हैं और जयद्रथ महाराज आसन में आसीन हो जाते हैं, जयद्रथ बैठे हैं, द्रौपदी कुटिया में बैठी है अब कुटिया के भीतर ही थोड़े बैठे रहती रागी अचानक द्रौपदी कुटी से बाहर आती है पूर्णिमा की चांद के समान साक्षात मां जगदम्बा है अचानक एक वीर की नजर पड़ गई जयद्रथ को बताता है महराज एक दिव्य कन्या खड़ी है जंगल में जयद्रथ कहता है जाओ उसे पूछकर आना वह कौन है, वीर जा के पूछता है कन्या कौन हो तो रानी द्रौपदी कहती है मैं पांडव की धर्मपत्नी हूं और मेरा नाम द्रौपदी है। |
रागी |
हरे हरे। |
रागी |
हरे हरे। |
प्रभा |
दौड़ के जाके वीर बताथे महराज वो तो महारानी द्रौपदी हे सुनिस जयद्रथ आसन में बईठे हे उठ के पैदल चलते हैं देवी द्रौपदी देखिस कि द्रौपदी ओला पहिचानत रीहीसे दौड़त गिस कुटी के भीतरी म अउ लोटा म पानी धर के निकलत हे पानी लान के डेहरी म मड़ात हे अउ मड़ा के काहत हे जयद्रथ बड़ दिन म आवत हस, अब्बड़ दिन बाद आय भैया प्रेम से देवी द्रौपदी काहत हावय आव जयद्रथ लोटा म पानी देके काहत हे हाथ गोड़ धो चल भोजन करबे आना भैया जब पानी के लोटा ल मड़ावत हे द्रौपदी, तो जयद्रथ सीना तान के खड़े होकर कहे द्रौपदी शायद तंय मोला नई पहचानत हस, जयद्रथ कहते हैं मय सिंधु के राजा आंव राजा सूरथ के बेटा आंव मोर जयद्रथ नाम हे द्रौपदी अउ आज मय तोला सिंधु देश ले जाकर के कहिं सिंधु देश के महारानी नई बना देहूं तो जयद्रथ कहलाना छोड़ देहूं द्रौपदी कथे तंय मोला मोर आदत ल जानत हस जागत जागत सपनेंहु आन पुरूष नहीं जानी मैं दूसर संग बात नई करंव लोटा म पानी हे हाथ गोड़ ल धो चल भोजन करबे। |
प्रभा |
दौड़कर जाके वीर बताता है महाराज वो तो महारानी द्रौपदी है सुनते ही जयद्रथ आसन में बैठा है वह उठकर पैदल चलता है, देवी द्रौपदी ने उसको देखकर पहचान लिया और द्रौपदी दौड़कर कुटी के अंदर जाती है और लोटें में पानी लेकर आती है पानी लाकर डेहरी में रखती है और रखकर कहती है जयद्रथ बड़े दिनों में आ रहे हो, बहुत दिन बाद आए भैया प्रेम से देवी द्रौपदी कहती है आओ जयद्रथ, लोटे में पानी देके कहती है हाथ पैर धो लो चलो भोजन कर लो आओ ना भैया, जब पानी का लोटा रखती है द्रौपदी, तो जयद्रथ सीना तानकर खड़ा होकर कहता है द्रौपदी शायद तुम मुझे नहीं पहचानती हो, जयद्रथ कहता हैं मैं सिंधु का राजा हूं राजा सुरथ के बेटा हूं मेरा जयद्रथ नाम है द्रौपदी और आज मैं तुझे सिंधु देश ले जाकर कहिं सिंधु देश की महारानी नहीं बना दूंगा तो जयद्रथ कहलाना छोड़ दूंगा द्रौपदी कहती है तुम मेरी आदत जानते हो जागते जागते दूर सपनें में भी पर पुरूष को देखती मैं दूसरों से बात नहीं करती लोटे में पानी है हाथ पैर धो चलो भोजन कर लो। |
रागी |
चल खाना खा ले। |
रागी |
चलो खाना खा लो। |
प्रभा |
तो जयद्रथ काहत हे द्रौपदी ‘’अरे भई बेईरादा नजर म पांचाली खड़े हे, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई। |
प्रभा |
तो जयद्रथ कहता है द्रौपदी ‘’अरे भाई बेईरादा’’ नजर में पांचाली बसी है, ‘’अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई। |
रागी |
अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, |
रागी |
अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, |
प्रभा |
अरे भई रूप से परदा हटा तो चांद शरमा गई, अरे भई रूप से परदा हटा तो चांद शरमा गई बाल बिखरी थी काली घटा छा गई, बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई। |
प्रभा |
अरे भई रूप से परदा हटा तो चांद शरमा गई, अरे भई रूप से परदा हटा तो चांद शरमा गई बाल बिखरी थी काली घटा छा गई, बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई। |
रागी |
बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई। |
रागी |
बेईरादा नजर उनसे टकरा गई, अरे बेईरादा नजर उनसे टकरा गई। |
प्रभा |
जयद्रथ कहे सिंधु ले जा के कहिं पटरानी ना बनाव तो जयद्रथ कहलाना छोड़ देहूं द्रौपदी समझाथे जयद्रथ नी माने आखिर म दउड़ के जाय अउ झपट के जब द्रौपदी के आंचल ल पकड़थे, जयद्रथ ल मां द्रौपदी उठाय झापड़ अउ मारिस, हाथ ले आंचल छूटगे पृथ्वी म गिर गे जयद्रथ ह, अउ पृथ्वी म फिर से खड़े होकर झपट के देवी दौपदी ल पकड़थे रथ म बईठाथे अउ रथ म बैठा के ‘’वह अपन रथे ल खीचन लागे भाई, भगईस रथ ल द्रौपदी चिल्लाय बचाव बचाव पांडव भैया देवी द्रौपदी ल देखन लागे भाई, मन म ओहा सोचन लागे ग ए दे भाई, मन म ओहा सोचन लागे ग ए दे भाई’’ द्रौपदी चिल्लात हे बचाव बचाव बचाव द्रौपदी के पुकार ल सुनिस धौम्य पुरोहित कुटिया म पूजा करत राहय तेन हा लकर धकर निकलीस अउ रथ के पीछू भागत हे अउ रथ के पीछू दउड़त धौम्य पुरूष पांडव ल पुकारत हे बचाव पांडव बचाव आवाज ल पहिचानगे राजा युधिष्ठिर भीमसेन ल इजाजत देथे भीम जाओ और जाकर कुटिया में पता लगाओ, कि धौम्य ऋषि काबर चिल्लात हे भीम आथे अउ आके कुटिया म देखथे धौम्य पुरोहित जी नईए देवी द्रौपदी नईए छीना झपटी होय हे वो चिनहा दिखत हे भीम समझगे द्रौपदी के हरण होय हे, भीम जाके राजा ल बताथे देवी द्रौपदी के हरण होगे हे फिर से द्रौपदी के हरण होगे हे जाओ जाके पांचाली के रक्षा करव अर्जुन अउ भीम जब दउड़थे रागी भाई अउ जंगल म जब पहुचंथे जयद्रथ के सेना भागत हे आगू आगू जयद्रथ ह पीछू पीछू, सेना हे हे बड़े बड़े वीर के आगू जाके भीम रास्ता रोक के बोले कस रे काकर दल के आव रे। |
प्रभा |
जयद्रथ कहता है सिंधु ले जा के कहिं पटरानी ना बना लूं तो जयद्रथ कहलाना छोड़ दूंगा, द्रौपदी समझाती है, जयद्रथ नहीं मानता है आखिर में दौड़ के जाता है और झपटकर और द्रौपदी का आंचल पकड़ लेता है, जयद्रथ को मां द्रौपदी उठाकर थप्पड़ मारती है, तो उसके हाथ से आंचल छूट जाता है और जयद्रथ पृथ्वी में गिर जाता है, और पृथ्वी में फिर से खड़े होके झपटकर देवी द्रौपदी को पकड़कर रथ में बिठाता है और रथ में बिठा के ‘’वह अपने रथ को खीचने लगा भाई, भगाया रथ को तो द्रौपदी चिल्लाती है बचाओ बचाओ पांडव, भैया देवी द्रौपदी देखने लगे भाई, मन में वह सोचने लगी जी ए जी भाई, मन में वह सोचने लगी जी ए जी भाई’’ द्रौपदी चिल्लाती हैं बचाओ बचाओ बचाओ द्रौपदी की पुकार को सुना धौम्य पुरोहित जो कुटिया में पूजा कर रहे थे वे जल्दी जल्दी निकलकर रथ के पीछे भागते हैं और रथ के पीछे दौड़ते धौम्य पुरूष पांडव को पुकारते हैं बचाओ पांडव बचाओ आवाज को पहचान गए राजा युधिष्ठिर भीमसेन को आज्ञा देते हैं भीम जाओ और जाकर कुटिया में पता लगाओ, कि धौम्य ऋषि क्यों चिल्ला रहें हैं भीम आते हैं और आकर कुटिया में देखते हैं धौम्य पुरोहित जी नहीं है देवी द्रौपदी भी नहीं है छीना झपटी हुई है उसके निशान दिख रहें हैं तो भीम समझ गए द्रौपदी का हरण हुआ है, भीम जाके राजा को बताते हैं कि देवी द्रौपदी का हरण हो गया है फिर से द्रौपदी का हरण हो गया है जाओ जाकर पांचाली की रक्षा करो अर्जुन और भीम जब दौड़ते हैं रागी भाई और जंगल में जब पहुचंते हैं जयद्रथ की सेना भाग रही है तो आगे आगे जयद्रथ हैं पीछे पीछे सेना है बड़े बड़े वीर के सामने जाकर भीम रास्ता रोककर बोले क्यों रे किसके दल के हो रे ? |
रागी |
हव भई हमन प्रभा दल के आन। |
रागी |
हां भाई हम प्रभा के दल के हैं। |
प्रभा |
रागी भैया कदेकर दल के आव त ओमन बताथे महराज हमन जयद्रथ के दल के आन, भीमसेन कथे कस रे पांडव के भुजा म ताकत नईए का पांडव के भुजा में बल नईए रे। |
प्रभा |
रागी भैया किसके दल के हो तो वो लोग बताते है महराज हम लोग के जयद्रथ के दल के हैं, भीमसेन कहते हैं क्यों रे पांडव के भुजाओं में ताकत नहीं है क्या पांडव की भुजा में बल नहीं क्या रे। |
रागी |
नईए। |
रागी |
नहीं है। |
प्रभा |
भीम कोई ल चटकन म मारत हे कोनो ल मुटका म मारत म हे आवाज ल सुने जयद्रथ रथ ल रोके के प्रयास करत हे भागत राहय तेन ह रथ ल रोकत देखिस तहान द्रौपदी हांसय द्रौपदी काहत हे चल ना जयद्रथ काबर रथ ल रोकत हस पांडव के भुजा म बल नईए पांडव मन भीखमंगा ए रथ ल झन खड़ाकर मय सिंधु म जाहूं तहान तोर रानी बनहूं है ना। |
प्रभा |
भीम किसी को थप्पड़ से मारते हैं किसी को मुक्के से मारते हैं आवाज को सुनकर जयद्रथ रथ को रोकने का प्रयास करता है भाग रहा था जो वह रथ रोकके देखा तो द्रौपदी हंसकर कहती है चलो ना जयद्रथ क्यो रूक गए हो पांडव की भुजा में बल नहीं है पांडव लोग भिखारी है रथ को खड़ा मत करो मैं सिंधु में जाऊंगी और तुम्हारी रानी बनूंगी है ना। |
रागी |
हव भई। |
रागी |
हां भाई। |
प्रभा |
जयद्रथ नी मानिस रथ ल रोकिस द्रौपदी ल उतार दिस अपन ह भगागे भीम द्रौपदी ल देखिस कहिस अपन माल ह मिल गे दूसर में काय करे बर हे राजा युधिष्ठिर के आगू म लाके खड़ा कर दिस, तब द्रौपदी भीमसेन ल कहिस, द्रौपदी कहे मैं वीर अंव कहिथस मैं बलवान आंव कहिथस मैं ताकत वाला अंव कथस पर आज मैं तोर पुरूषार्थ ल जान गेंव तोला लाज नई लागय ये बात ल सुने त भीम के तन मन म आगी लग गे, भीमसेन बोले खामोश आज का बात के कमी केहे वो काम पूरा ना कर दंव त पवन नंदन भीम कहना छोड़ देहूं। |
प्रभा |
जयद्रथ नहीं मानता है रथ को रोककर द्रौपदी को उतार देता है और खुद भाग जाता है भीम द्रौपदी को देखता है और कहता है अपना माल मिल गया तो दूसरों से क्या करना हैं, राजा युधिष्ठिर के सामने में लाकर खड़ा कर देते हैं, तब द्रौपदी भीमसेन से कहती है, द्रौपदी कहती है मैं वीर हूं कहते हो मैं बलवान हूं कहते हो मैं ताकतवर हूं कहते हो पर आज मैं तुम्हारे पुरूषार्थ को जान गई तुम्हे शर्म नहीं आती है इस बात को सुनकर भीम के तन मन में आग लग गई, भीमसेन बोले खामोश.. आज किस बात की कमी हैं कहो उस काम को पूरा ना किया तो पवन नंदन भीम कहना छोड़ दूंगा। |
रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो। |
प्रभा |
रानी द्रौपदी कहे दोनों हाथ जोड़ के काहय जा अउ जा के जयद्रथ के दोनों ठन नेत्र ल निकाल के ले आ, राजा धरमराज ह हाथ जोड़ के कहिथे वईसने झन कह राजा काहत हे वईसन झन कह काबर दुशाला मोर एक झन बहिनी ए केवल दुर्योधन के बहिनी नोहे मोरो बहिनी ए अउ जयद्रथ कोन ए दुशाला के पति ए जयद्रथ मर जही मोर बहिनी विधवा हो जही द्रौपदी, भीम मारबे पीटबे झन भैया जा ओला जियत पकड़ के लाबे, मय ओला समझाहूं अर्जुन भीम दोनों भाई फिर दउडि़स जयद्रथ के रथ सड़के सड़क जात हे रागी अर्जुन भीम दोनों चर्चा करिस भैया ये सड़क ल धरबो त पिछवा जबो। |
प्रभा |
रानी द्रौपदी दोनों हाथ जोड़कर कहती है कि जाओ और जाकर जयद्रथ के दोनों नेत्र निकालकर ले आओ, राजा धर्मराज हाथ जोड़कर कहते हैं ऐसा मत कहो राजा कहते हैं वैसा मत कहो क्योंकि दुशाला मेरी एक ही बहन हैं वो केवल दुर्योधन की बहन नहीं मेरी भी बहन है और जयद्रथ कौन है ? दुशाला का पति है , जयद्रथ मर जाएगा तो मेरी बहन विधवा हो जाएगी द्रौपदी, भीम मारना पीटना नहीं भैया जाओ उसको जीवित पकड़ के लाओ, मैं उसे समझाऊंगा, अर्जुन भीम दोनों भाई फिर दौड़ते हैं जयद्रथ का रथ सड़क सड़क जा रहा है, रागी अर्जुन भीम दोनों चर्चा करते हैं भैया इस सड़क को पकड़ेंगे तो पिछड़ जाएंगे। |
रागी |
नी पावन। |
रागी |
नहीं पाएंगे। |
प्रभा |
त हमन ह अरकट्टा जाबो जयद्रथ गेहे सड़के सड़क जयद्रथ रथ सड़के सड़क गेहे त अर्जुन भीम अरकट्टा गेहे गाड़ी रावण म अर्जुन खड़े हे अउ एक ठन गाड़ी रावण म भीम खड़े हे जयद्रथ के रथ भागत हे घोड़ा सड़के सड़क भागत हे एक हाथ म घोड़ा के रास अउ दूसरा में चाबुक घोड़ा भागत हे पीछू कोती ल जयद्रथ लहुट के देखथे काहत हे पांडव मन आवत हे का, पीछू डहर देखत हे आगू म अर्जुन भीम खड़े हे अचानक रथ खड़े होगे अउ वो पीछू ल देखत राहय तेहा आगू ल देखिस ग अउ अचानक देखिस जयद्रथ के नजर पड़गे कहे या। |
प्रभा |
तो हम पगडंडी से जाएंगे जयद्रथ गए हैं सड़क सड़क, जयद्रथ की रथ सड़क सड़क गई है तो अर्जुन और भीम पगडंडी से गए हैं गाड़ी रावण (खेत के बीच का रास्ता) में अर्जुन खड़े हैं और एक गाड़ी रावण में भीम खड़े हैं जयद्रथ का रथ भाग रहा है घोड़ा सड़क ही सड़क भागता है एक हाथ म घोड़ा की रास और दूसरे हाथ में चाबुक घोड़ा भागता है जयद्रथ पीछे पलटकर देखता है और कहता है पांडव लोग आ रहे हैं क्या, पीछे की ओर देख रहा है सामने में अर्जुन भीम खड़े हैं अचानक रथ खड़ा हो गया और वो जो पीछे देख रहा था उसने सामने देखा और अचानक जयद्रथ की नजर पड़ गई कहता अरे..। |
रागी |
या या। |
रागी |
या या। |
प्रभा |
‘’ये मन कोन डहर ले अगवा गे ग भाई, जयद्रथ ह काहन लागे ग रथ खड़े होगे ना लहुटावत बनिस ना बढ़ावत बनिस बस रथ खड़े हे भीमसेन कहत हे अर्जुन ते रथ के आगू म खड़े रा तंय रथ के धूरा ल थाम त अर्जुन पूछत हे तंय कहां जाथस त भीम काहत हे मय ओला जाके बतावत हंव अपन रथ ऊपर गे जाके रथ ऊपर जयद्रथ ल पूछत हे कस रे हमन भीख मंगा आन रे हमर भुजा म बल नईए द्रौपदी ल लेग के सिंधु देश के रानी बनाबे ओतका पूछे भीम जब मारिस जयद्रथ ल झापड़। |
प्रभा |
‘’ये लोग किस रास्ते से आगे निकल आ गए जी भाई, जयद्रथ कहने लगे जी भाई, रथ खड़ा हो गया ना वापस होते बन रहा था ना आगे बढ़ते बन रहा था, बस रथ खड़ा हो गया भीमसेन कहते हैं अर्जुन तुम रथ के आगे में जाकर खड़े रहो रथ की धूरा थामकर, तो अर्जुन पूछते हैं तुम कहां जा रहे हो तो भीम कहते हैं मैं उसको जाके बताता हूं रथ के ऊपर गए जाके रथ ऊपर जयद्रथ को पूछते हैं क्यों रे हम भिखारी हैं रे हमारी भुजाओं में बल नहीं हैं द्रौपदी को ले जा के सिंधु देश की रानी बनाआगे इतना पूछा और भीम ने जब जयद्रथ को थप्पड़ मारा। |
रागी |
देख भई महू ल डर लागथे। |
रागी |
देखो भाई मुझे भी डर लगता है। |
प्रभा |
डोरी टूटगे जयद्रथ भूंईया म पट ले गिर गे ओला भीम विचार करिस ओला मारबे पीटबे झन जियत लाबे मारना नईए ओतका दूरिहा आय हंव मोर बनी नई परत हे रागी एला मुटका चटकन में नी मारहू ते नही मारहू फेर एला धर के मसल दूंहू भीम जयद्रथ के छाती में सीना तान के बैठते है अउ छाती म बैठ के अपनो मूछे ल चढ़ावन लागे रे भाई वीर अर्जुन ग काहन लागे रे भाई वीर अर्जुन ग काहन लागे रे भाई, भीम मूंछ में ताव देवत हे अबक तबक जयद्रथ के जीव छूट जाय रतिस अर्जुन कहे भैया ओला जियत मंगाय हे। |
प्रभा |
रस्सी टूट गई और जयद्रथ भूंमि में फट से गिर गया भीम याद आता है ‘’उसे मारना पीटना मत जीवित लाना’’ मारना नहीं पर इतनी दूर आया हूं मेरी मजदूरी नहीं बन रही है इसको मुक्के और थप्पड़ से नहीं मारूंगा तो नहीं मारूंगा लेकिन इसको मसल दूंगा, भीम जयद्रथ की छाती में सीना तान के बैठते है और छाती में बैठ के ‘’अपनी मूंछो को चढ़ाने लगे रे भाई, वीर अर्जुन जी कहने लगे रे भाई, वीर अर्जुन जी काहन लगे रे भाई, भीम मूंछों में ताव देते हैं अब तब जयद्रथ के प्राण छूट ही जाय रहते अर्जुन कहते हैं भैया ने उसे जीवित मंगाया है। |
रागी |
अउ तंय मसलत हस ओला। |
रागी |
और तुम उसे मसल रहे हो। |
प्रभा |
फिर झट सीना ले उतरिस जईसे तईसे लान के राजा के आगू म खड़ा दिस राजा जईसे बनिस तईसे समझाईस अउ समझाय के बाद फेर काहत हे अब्बड़ दूरिहा हे एकर राज ह एक झन जाव रे एकर राज जाय के देश जाय के रस्ता ल बता दिहव तहान अपन धीरे धीरे चल दीही। |
प्रभा |
फिर झट से सीने से उतर गए जैसे तैसे लाकर राजा के सामने में खड़ा कर दिया राजा ने जैसे बना वैसे समझाया और समझाने के बाद फिर कहते हैं बहुत दूर है इसका राज्य कोई एक जन जाओ इसके साथ जाओ इसके देश जाने का रास्ता बता दो तो ये अपने से धीरे धीरे चला जाएगा। |
रागी |
हहो। |
रागी |
हां हां। |
प्रभा |
तीन भाई चिटपोट नई करत हे अउ भीम काहत हे हव भैया मय पहुचांवत हंव ओतका ल सुनिस जयद्रथ काहय ओतक बेरा अर्जुन संग म रीहीस त बचाईस। |
प्रभा |
तीन भाई कुछ भी नहीं बोल रहें हैं और भीम कह रहे हैं हां भैया मैं पहुचां देता हूं इतना सुनते ही जयद्रथ कहता है उस समय तो अर्जुन साथ में था तो बचा लिया। |
रागी |
बांच गेव। |
रागी |
बच गया। |
प्रभा |
अभी एक अकेल्ला जाही त मय नी बांचहूं तईसे लागथे नी जांव कहिके काहत नी बने डर के मारे चल दिस चलते चलते भयानक जंगल के चौक म पहुचंते है रागी बताय हे एक रास्ता सीधा हस्तिना गेहे एक रास्ता सीधा सिंधु देश गेहे जययद्रथ के राज्य अउ एक रास्ता सीधा कैलाश तीन ठो रास्ता भईगे तीनों रास्ता के बीच बईठार दिस भीम ह जयद्रथ ल। |
प्रभा |
अभी एक अकेला जाएगा तब तो मैं नहीं बचूंगा ऐसा लगता है, नहीं जाउंगा कहते नहीं बन रहा है डर के मारे चल तो दिया चलते चलते भयानक जंगल के चौक में पहुचंते हैं रागी बताएं हैं एक रास्ता सीधा हस्तिना गया है और एक रास्ता सीधा सिंधु देश गया है जयद्रथ के राज्य, और एक रास्ता सीधा कैलाश, तीन रास्ते हैं बस तीनों रास्तों के बीच बिठा दिया जयद्रथ को भीम ने । |
रागी |
तिगड्डा मे। |
रागी |
तिराहा मे। |
प्रभा |
अउ खीचीस कमर से तलवार धर के रागी भैया नाऊ ठाकुर मन दाढ़ी बनाथे ना। |
प्रभा |
और खीचा कमर से तलवार और पकड़ के रागी भैया नाई ठाकुर जैसे दाढ़ी बनाते है ना। |
रागी |
त साबुन वाबुन लगाथे किरीम विरीम लगाथे पानी वानी डारथे ना। |
रागी |
तो साबुन वाबुन लगाते हैं किरीम विरीम लगाते हैं पानी वानी डालते हैं ना। |
प्रभा |
फेर जयद्रथ ल बिठारिस तिगडडा में निकालिस कमर से तलवार ‘’उल्टा छूरा ग मूड़न लागे भाई, उल्टा छूरा ग मूड़न लागे भाई, नागपाश म बांधन लागे भार्इ फिर उल्टा छूरा मूड़ दिस अउ बांधिस जयद्रथ के हाथ अउ गोड़ ल अउ उठा के भीमसेन फेंक देथे रागी जय द्रथ कैलाश में जाके गिर जथे भगवान जान डरिस महादेव के परम भक्त ए जयद्रथ कैलाश म जब गिरथे भगवान उठ के जाके देखथे जयद्रथ बेहोश पड़े हे हाथ ल जयद्रथ के उपर म रेंगाथे त जयद्रथ खड़े हो जथे अउ भगवान जानत रीहस हे फेर रहा तो बताते क नहीं कहिके पूछत हे भगवान कथे जयद्रथ तोर ये हालत कोन करे हे ददा, जय द्रथ लाज के मारे भगवान ल नी बतावत हे रागी आत आत विचार करते हैं जयद्रथ अगर कहीं इही रूप लेके अगर मैं अपन घर जात हंव त मोर पिताजी कहि अरे तोला तो पांडव के हाथों मर जाना रीहीस हे धिक्कार ते तोर जीवन ल जो अपमानित होके आय हस इही रूप ल लेके ससुराल जात हंव त रागी तोर महतारी बाप मर गेहे हमला नेवता तक नी दे हस मूड़ मूड़ाय हे दुर्योधन कही दाई ददा मर गे त हमला नेवता तक नी दे हस, मूड़ मुड़ाय हे दूर्योधन कहि दाई ददा मरगे हमला नेवता नी दे हस ना हस्तिना जांव ना सिंधु जांव मैं भगवान के तपस्या करहूं सिंधु नरेश जयद्रथ एक बार फिर भगवान के तपस्या म लीन हो जथे महादेव फिर से प्रकट होथे कहे मांग कहे जयद्रथ मांग ‘’अजी तुम्हरी पूजा प्रसन्न मोही किन्हा तब मांगु मांगु वर तुमको दीन्हा’’ तो जयद्रथ कहते हैं सब जानत हव तुम अर्न्तयामी जयद्रथ कथे भगवान तंय सबला ल जानत हस नई नई मांग जयद्रथ तो जययद्रथ काहत हे देबे, त भगवान काहत हे देहूं त भगवान ल काहय सोच ले काबर तंय सोचत विचारत नहीं मांग मांग कहि देथस पाछू तुही ल भागे ल परथे अरे ‘’भस्मासुर ने करी तपस्या वर दीन्हे त्रिपुरारी, जिसके सिर में हाथ लगावे भस्म हुए संसारी, अरे शिव के सर पे हाथ धरन को दुष्ट विचारी अउ भागे फिरत चहुं दिशि शंकर तब लगा दैत्य कर बारि, अरे गिरिजा रूप धरे हरि बोले बात असुर से प्यारी, जो तुम मुझको नाच दिखावे, तब होहऊं नारी तुम्हारी, नृत्य करत अपने सिर मतंम मयम मतवारी, अरे ब्रम्हानंद देश गुण मांगेय अजी शिव भक्तन हितकारी’’। |
प्रभा |
फिर जयद्रथ को बिठाए तिराहे में और निकाले कमर से तलवार ‘’उल्टी छूरी जी मूंडने लगे भाई, उल्टी छूरी जी मूंडने लगे भाई, नागपाश में बांधने लगे भार्इ’’ फिर उल्टी छूरी से मूंड दिया और जयद्रथ के हाथ पैर बांध के उठाकर भीमसेन नै फेंक दिए रागी, जयद्रथ जाके कैलाश में गिरता है, भगवान जान गए महादेव के परम भक्त था जयद्रथ कैलाश में जब गिरा भगवान उठकर जाके देखते हैं जयद्रथ बेहोश पड़ा है, हाथों को जयद्रथ के ऊपर फेरते हैं तो जयद्रथ खड़े हो जाता है और भगवान जान रहे थे फिर भी देखूं तो बताता है कि नहीं करके पूछते हैं भगवान कहते है जयद्रथ तुम्हारी ये हालत किसने कर दी दादा, जयद्रथ शर्म के मारे भगवान को नहीं बता रहा है रागी, जयद्रथ आते आते विचार करता है कि अगर कहीं में इसी रूप मैं अपने घर जाता हूं तो मेरे पिताजी कहेंगे अरे तुझे तो पांडव के हाथों मर जाना चाहिए था धिक्कार है तुम्हारी जीवन को जो अपमानित होकर आए हो इसी रूप को लेके ससुराल जाता हूं तो रागी दुर्योधन कहेगा तेरे मां बाप मर गए हैं और हमको निमंत्रण तक नहीं दिया, सिर मुड़ाया है दुर्योधन कहेंगे मां बाप मर गए है तो हमको निमंत्रण भी नहीं दिया, ना हस्तिना जांऊंगा ना सिंधु ही जाऊंगा मैं भगवान की तपस्या करूंगा सिंधु नरेश जयद्रथ एक बार फिर भगवान की तपस्या में लीन हो जाता है, महादेव फिर से प्रकट होते है कहते हैं मांग जयद्रथ मांग कहे जयद्रथ मांग ‘’अजी तुम्हरी पूजा ने प्रसन्न मुझे किया है मांगो मांगो मैं तुमको वर दूंगा’’ तो जयद्रथ कहते हैं सब जानते हो तुम अर्न्तयामी हो जयद्रथ कहते हैं भगवान आप सब जानते हो, भगवान कहे नहीं नहीं मांग मांग जयद्रथ, तो जययद्रथ पूछता है दोगे, तो भगवान कहतें हैं दूंगा तो भगवान को कहता सोच लो क्योंकि तुम सोचते विचारते नहीं हो, मांग मांग कह देते हो बाद तुमको ही भागना पड़ता है अरे ‘’भस्मासुर ने की तपस्या वर दिए त्रिपुरारी, जिसके सिर में हाथ लगाए भस्म हुए संसारी, अरे शिव के सर पे हाथ धरने के लिए दुष्ट ने किया विचार और शंकर भागे फिरते चारो ओर और दैत्य पीछे भागने लगा, तब गिरिजा का रूप लिया हरि ने और प्रेम से कहा असुर से तो तुम मुझको नाच दिखाओगे तो मैं बन जाऊंगी तुम्हारी नारी, नृत्य करतक अपने सिर को नृत्य के मद में अपने सिर को हाथ लगाया और जितने शिव भक्त थे वह ब्रम्हा नंद में लीन हो गए’’। |
रागी |
जय हो। |
रागी |
जय हो। |
प्रभा |
बोले सोच लव भागे ल झन परे जयद्रथ के बात ल सुनके काहय नी परे ग मांग तो जयद्रथ कहे मोला उही वरदान दे भगवान मय लड़ाई म पांचों भाई पांडव ल जीत लंव, भगवान महादेव बोले नहीं जयद्रथ ये वरदान ल छोड़ दे दूसरा मांग, त जयद्रथ काहय ओकरे सेती त कहें रेहेंव तोला सोच ले कहिके भगवान महादेव कथे मय तो लड़ाई अर्जुन से हार गेंव त तोला कईसे कहूं तंय अर्जुन ल जीत लेबे पर जीतबे जयद्रथ चार भाई ल पर वो सब दिन नई एक दिन केवल एक दिन के भगवान महादेव वरदान देथे अउ अर्न्तध्यान हो जथे, सिंधु नरेश जयद्रथ सिंधु आथे पांचों भैया पांडव के बारह साल वनवास यही जघा से सम्पन्न होथे वनपर्व के प्रसंग भी सम्पन्न होथे वैसमपायम जी कहते हैं जन्मेजय पांडव के बारह बरस वनवास पूरा होगे अब एक साल अज्ञातवास बाकी हे यहीं से विराट पर्व के प्रसंग में हम जाबो फिर यही से प्रसंग के विश्राम होथे बोलिए बृन्दावन बिहारी लाल की जय। |
प्रभा |
बोले सोच लो तुमको भागना ना पड़े जयद्रथ की बात को सुनकर भगवान कहते हैं नहीं पड़ेगा जी मांगो जयद्रथ कहता है मुझे वो वरदान दो भगवान कि लड़ाई में पांचों भाई पांडव को जीत लूं, भगवान महादेव बोले नहीं जयद्रथ ये वरदान को छोड़कर कोई दूसरा वरदान मांगो, तो जयद्रथ कहता है इसिलिए तो कहा था कि सोच लो कहकर भगवान महादेव कहते हैं मैं तो खुद ही लड़ाई में अर्जुन से हार गया हूं तो तुम्हे कैसे कह दूं जीत लो पर जयद्रथ जीतोगे चार भाईयों को पर वो भी सब दिन के लिए नहीं केवल एक दिन के लिए, भगवान महादेव वरदान देते हैं और अर्न्तध्यान हो जाते हैं, सिंधु नरेश जयद्रथ सिंधु आता है, पांचों भैया पांडव के बारह साल वनवास के इसी जगह से सम्पन्न होता है वनपर्व का प्रसंग भी यहीं सम्पन्न होता है वैसमपायम जी कहते हैं जन्मेजय पांडव के बारह वर्ष वनवास के पूरे हो गए अब एक साल अज्ञातवास बाकी है यहीं से विराट पर्व के प्रसंग में हम जाएंगे फिर यही से प्रसंग का विश्राम होता है। बोलिए वृन्दावन बिहारी लाल की जय। |
रागी |
जय। |
रागी |
जय। |
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