Lore of the Ahirs: Son Sagar / Kubiya Kathait | अहीर गाथा : सोन सागर/ कुबिया कठैत
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Lore of the Ahirs: Son Sagar / Kubiya Kathait | अहीर गाथा : सोन सागर/ कुबिया कठैत

in Video
Published on: 05 February 2019

Bhujbal Yadav and group

Audio recording of the tale of Sonsagar / Kubiya Kathait by Bhujbal Yadav and Malik Ram Yadav

Summary 

The lore of Kubiya Kathait is about the Ahir king Sonsagar, his sister Khoilan and three Ahir brothers.  King Sonsagar  has recurrent dreams that his buffalo gives birth to a golden calf. He tries very hard to find the golden calf but fails and  announces a reward for anyone who is able to do so. Several people try their luck, but fail  and are sent to jail.  Finally,  Kubiya and his two Ahir brothers  succeed. By hiding at night they uncover the mystery of the missing golden calf- the King's sister Khoilan is the abductor. As promised, the king marries his sister Khoilan to the second Ahir brother Kubiya.  Lorik, the hero of the popular oral epic Lorik Chanda is the son of Khoilan and Kubiya, establishing a link between these two Ahir tales in Chhattisgarh.  

 

  Transcription-

  (सभी गीत के बाद बांस वादन है)

   

गीत (In Chhattisgarhi, hereafter C)

तरी हरी नाना भाई तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना  

यहि कर बोलन भला लागे हो

सपना संजोए राजा देखन लागे नईते

सपना संजोए राजा देखन लागे नईते

भाई जागे म काहे जूछ हो

गीत (In Hindi, hereafter, H)

तरी हरी नाना भाई तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,  

यहां पर बोलने में भला लगे हो,

राजा सोए में सपना देख रहा है,   

राजा सोए में सपना देख रहा है,   

भाई जागने पर क्या होता है बताओ,

भाई जागने पर क्‍यों गायब है    

 

कथाकार (C)

राजा जो सपना संजो के गुण बिचार के कथे लगे कछेरी राजा के, जहा बईठे पांड़े पंडित दीवान परधान रेंगत किसान कटकटवात राहय बईठे हे ते राजा कथे काशीपुरी ले पंडित बुला के लानव अईसे धावन वहां कहां कईसे दउड़ावत हे।

कथाकार (H)

राजा ने सपना देखा और विचार कर दरबार लगाया जहां पांडे पंडित, दीवान, प्रधान, किसान सभी बैठे हैं, इतने में राजा ने कहा कांशीपुर से पंडित को बुलाने चर को दौड़ा रहें हैं (भेज रहें हैं)।

 

रागी (C)

हरे हरे सच हे बांसकी सच हे।

रागी (H)

हरे हरे सच है बांसगीत गायक  सच है ।

 

गीत (C)

अउ रेंगन लागे गंगा मोर जब काशीपुरी म पहुंचन लागे ना

कईसे सुन्‍दर ओला पंडितिन लोटा म पानी देवय ना

कईसे सुन्‍दर मजा के गंगा नहाय बर हो...

गीत (H)

और चलने लगे गंगा मेरे जब काशीपुरी में पहुंचने लगे हैं,

कैसे सुन्‍दर उसे पंडितिन लोटा में पानी दे रहें हैं,

कैसे सुन्‍दर मजे से गंगा नहाने जा रहें हैं  

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर जब कहे कांशीपुरी म पहुंचे पंडितिन रहे ते लोटा म पानी लेके धावन ल कहे त आसन गरहण करव कहाथे सुन्‍दर मजा के ओला बईठक देवत हे ग अउ सुन्‍दर मजा के गंगा नहाय बर कइसे गे हे जी।   

कथाकार (H)

और यहां कांशीपुरी में जब चर पहुंचे, तो पंडिताईन लोटे में पानी लेकर कह रही है, आप आसन ग्रहण कीजिए, और उन्‍हें बैठने को आसन दे रही है। और कैसे गंगा नहाने गए हुए हैं।  

 

रागी (C)

हरे हरे सच हे राम हरि राम हरि

रागी (H)

हरे हरे सच है राम हरि राम हरि।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना गंगा मोर तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना  

जावव जावव जब गंगा मोर ए दे

गीत (H)

तरी हरी नाना गंगा मोर तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,  

जाओ जाओ ये मेरी गंगा 

 

कथाकार (C)

गंगा असनान करके आई जब पंडित कहे वेद पुरान ल धर लव तुंहर झोला झंगड़ी में, चंदन चोवा लगा लव, पूजा पाठ ल मय कर लेहूं एक तो बहुत दिन बाद राजा ह अपन घर बुलउवा आय हे। जलदी कहे त तुमन जावव अईसे करके भईया पंडितिन हे तउन पंडित ल बोलत हे।  

कथाकार (H)

जब पंडित जी गंगा स्‍नान करके आए तो पंडिताईन ने कहा, आज थैले में वेद पुराण आदि रखकर माथे पर तिलक चंदन लगा लेंवे, पूजा पाठ मैं कर लूंगी बहुत दिनों बाद राजा के घर से बुलावा आया है, आप जल्‍दी करें ऐसा पंडिताईन पंडित से कह रही है।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना गंगा मोर तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना  

गीत (H)

तरी हरी नाना गंगा मोर तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना  

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर मजा के कहे त कछेरी लगे राजा के दरबार म जहा बईठे पांड़े पंडित दीवान परधान सब बईठे हे यही समय म पंडित धावन पहुंचे हे सुन्‍दर मजा के कहे राजा काबर बलाय हस पंडित रहे ते पूछत हे राजा सोनसागर ल, राजा सोनसागर रह ते पंडित ल का बोलत हे।

कथाकार (H)

राजा ने सपना देखा और विचार कर दरबार लगाया, जहां पांडे पंडित, दीवान, प्रधान, किसान सभी बैठे हैं, फिर राजा सोनसागर है जो पंडित जी से पूछ रहा है, अब क्‍या पूछ रहा है...  

 

गीत (C)

तरी हरी नाना राजा मोर तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना

सोन कर पड़रू ब्राम्‍हन ग रोज दिन देखथंव ना  

अउ जागत बेरा पंडित मोर जुच्‍छा के जुच्‍छा ना

यहि कर ब्राम्‍हन मोर तोला रे बलाएंव हो....

गीत (H)

तरी हरी नाना राजा मोर तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,

सोने का बछड़ा ब्राम्‍हन जी प्रति दिन देखता हूं,

और जागते समय पंडित मेरे सब खाली का खाली,

इस कारण ब्राम्‍हन मेरे आपको बुलाया है  

 

कथाकार (C)

ओकरे कारण कहे त मय तोला बलाय हंव सपना के संजोग म रोज के सोन के पंड़रू देखथंव जागे म जुच्‍छा के जुच्‍छा हो जथे, सही ए कि लबारी ए जेकर कारण ब्राम्‍हन मय तोला बुलाय हंव, तो वेद पुरान ल खोल के देख पंडित ल काहत हे सुन्‍दर तंय खोल के देखा दे महराज सही ए कि लबारी तेला अउ ब्राम्‍हन देवता हे तेन कइसे वेद पुरान ल खोलत हे।  

कथाकार (H)

राजा पंडित से कह रहा है कि मैं रोज सपने में सोने का भैंस का बछड़ा देखता हूं, और जागते ही सब रीता हो जाता है, और संजोग है सच है या झूठ इस कारण ब्राम्‍हण आपका बुलाया है, आप अपने वेद पुराण खोलकर देंखे महराज, इतने में पंडित अपने वेद पुराण खोल रहें हैं।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना राजा मोर तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना

घर उजरी करे राजा मोर कथा ए कहानी ए ना

ए शुकवारी के मलिका ल रोज मोर खिचरी खवाबे ना

तभे ये दे जब राजा मोर सोन कर पड़रू हो.....

गीत (H)

तरी हरी नाना राजा मोर तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,

घर पवित्र करो राजा मेरे कथा है कहानी है,

इस शुक्रवार को कन्‍या भोज करवाना,

तभी ये सब राजा साने का बछड़ा होगा    

 

कथाकार (C)

ब्राम्‍हण देवता राहत ते कथे देख राजा तंय तोर घर ल उजरी नी करे हस अंय कुंवारी कन्‍या ल भोजन कराय ल परही, जब तक तोर घर उजरी नई होही कथा कहानी नी कउहाबे तक तंय सोन के पड़रू तोर नजर म नई दिखय, राजा के काहत तोर बात ए ग काहत देर लगे न करत देर लगे कथा कहानी अउ घर ल उजरी करवावत है सुन्‍दर कुंवारी इक्‍कईस झन कन्‍या ल कईसे सुन्‍दर भोजन करावत हे।  

कथाकार (H)

ब्राम्‍हण देव कहते हैं कि देखिए राजा आपने अपना घर पवित्र नहीं करवाया है, आपको कुंवारी कन्‍या भोज कराना पड़ेगा, और ज‍ब तक आपने घर पवित्र नहीं करवाया अब तक आपको सोने का बछड़ा नहीं दिखेगा, राजा के घर कहते देर लगे ना करते देर लगे, राजा ने इधर इक्‍कीस कुंवारी कन्‍याओं को भोजन करवा रहें हैं।

 

गीत (C)

ये दे वहि कर बेरा म राजा मोर भादो के महिना ना

मोर भादो के महिना ना घपटी अंधियारी रात ए ना
बैरी मोर बिजली मारत हे ना

पानी तुफाने ए राजा जहि समय राजा मोर पड़य हो...

गीत (H)

अब सही समय आ गया राजा मेरे भादो का महीना,

मेरे भादो के महीने में घुप्‍प अंधेरी रात है,

बैरी मेरे बिजली चमक रही है,

पानी तुफान राजा उसी समय राजा मेरे आ रहा है,

 

कथाकार (C)

पंडित देवता राहय तोन राजा सोन सागर ल बतावत हे सावन भादो के महीना घपटे अंधेरी के रात बिजली गरजना पानी तुफान कहे त हाथ धरे आदमी नी दिखे वही समय में बारा बजे रात के भईंसी सोनसागर के देवी के मंदिर में सोन के पड़रू बियाही। अईसे राजा ल आडर दे दिस, राजा राहय तेन ह भईया उजरी करवाय के कुंवारी कन्‍या ल भोजन करवाय हे,  अउ पंडित सोन के पड़रू कोन दिन तिथि म जमनही भादो के तेला बताय हे।

कथाकार (H)

पंडित देव ने राजा सोनसागर को बुलाकर कहा सावन भादो के महीने में घुप अंधेरी रात में, गरजते बादल बिजली, पानी और तुफान में हाथ पकड़ा बगल का आदमी भी ना दिखे, रात को बारह बजे भैंस देवी के मंदिर में सोने का बछड़ा जनेगी, इस तरह पंडित ने राजा को आज्ञा दी, और राजा ने घर पवित्र करवा कर कुंवारी कन्‍या को भोजन करवाया, और किस तिथि में सोने का बछड़ा मिलेगा ऐसा पंडित ने बताया।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना राजा मोर तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना

राजा सोनसागर गंगा मोर चौदा टेन भईंसी ए ना

जे सोने भईंसी देखाही माता खोईलन ल बिहाही हो...  

गीत (H)

तरी हरी नाना राजा मोर तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,

राजा सोनसागर गंगा मेरे चौदह टेन (समूह) भैंसे हैं,   

जो सोने की भैंस दिखाएगा माता खोईलन की शादी उससे होगी,   

 

कथाकार (C)

राजा सोनसागर राहय ते पूरा देश में पतरिका फेंक दिस मोर चौदा टेन भईंसी होथे सात टेन भईंसी सात टेन गाय के बरदी चौदा टेन होथे टेने के टेन होथे सोनसागर के भईंसी अउ टेन गाड़ी अउ टेन के सियनही ए जेन सोन के पड़रू बियाथे जेन सोन के पड़रू देखा दिही वो माता खोईलन ल कहे त शादी करके लेग जाही, अउ सोन के अउ सोन के पड़रू नई देखाही ओकर हाथ में हथकड़ी पांव म जंजीर, मूड़ मूड़ा के कहे त नाक में भेलवा कौड़ी गुथा के जेल म बंद हो जाही अईसे कहिके राजा देश में पतरिका कईसे फेंके हे   

कथाकार (H)

राजा सोनसागर के पास चौदह गाय-भैंसों का अलग अलग समूह है, जिसमें सात समूह भैंस का, और सात समूह गायों का है, इस तरह उसके पास चौदह टेन यानि गाय-भैंसो का समूह है, जिसका वो मुखिया है, राजा पूरे देश में पर्ची फिंकवाता है, कि जिसने भी सोने का भैंस का बछड़ा दिखा दिया, वो उससे मैं अपनी बहन खोईलन की शादी करवा दूंगा, और नहीं दिखा सका उसका सिर मुड़वाकर हाथ में हथकड़ी, पैर में जंजीर, नाक में भेलवा कौड़ी गूथकर जेल में बंद कर दिया जाएगा, इस प्रकार राजा ने पर्ची में लिखवा फेंका है।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना राउत तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना

मन मन गुनय राउत कईसे दिल म बिचारय हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना राउत तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,

मन ही मन गुनने लगे राउत कैसे दिल में विचारने लगे  

 

कथाकार (C)

कइसे राजा सुन्‍दर पतरिका फेंके हे त आज वही समय में छै आगर छै कोरी अहिरा केहे त कते जवान कते बुढ़वा कोई ठिकाना नईए सबो पागा बांधे लाठी धरे आज देश कलिंगा बर पहुंचे हे, छै आगर छै कोरी अहिरा सुन्‍दर मजा से पहुंचत हे।      

कथाकार (H)

इस प्रकार राजा के पर्ची फिंकवाते ही छै आगर छै कोरी (126 लोग) अहीर (चरवाहे) क्‍या जवान क्‍या बूढ़े सारे के सारे सिर पर पागा बांधकार, लाठी लिए देश कलिंगा के लिए पहुंच रहें हैं।

 

रागी (C)

हरे हरे कहां पहुंचत तेला बन्सकहार बताही।  

रागी (H)

हरे हरे कहां पहुंच रहे उसे बांसगाथा गायक बता रहा है।

 

गीत (C)

अरे वही बेरा ए राउत मोर रेंगन लागे ना  

मोर गंगा छै आगर छै कोरी अहिरा ए ना

देश कलिंगा मोर गंगा सब रेंगन लागे ना

तीनो मुड़ा ले मोर हबरन लागे हो....

गीत (H)

अरे उसी समय में राउत मेरे चलने लगे,

मेरी गंगा छै आगर छै कोरी अहिर है,

देश कलिंगा की ओर सब चल रहें हैं,

तीनो ओर से जुड़ने लगे,  

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर कहे त देश कलिंगा बर मोर गंगा छै आगर छै कोरी अहिरा कइसे मजा कर चले आत हे, तीनो मुड़ा ल ले सब पहुंचत हे।

कथाकार (H)

देश कलिंगा में छै आगर छै कोरी (126 लोग) अहीर (चरवाहे) चारो ओर खुशी खुशी चले आ रहें हैं।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना राउत तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना

अरे लपटी जोहारे गंगा मोर घुची करा बईठत हे ना

अरे वही जब करा बेरा मोर राजा सोनसागर हो....  

गीत (H)

तरी हरी नाना राउत तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,

सब आपस में घुलमिल कर गंगा मेरे हटकर बैठ रहें हैं,

और उसी जगह मेरे राजा सोनसागर....  

 

कथाकार (C)

छै आगर छै कोरी राउत हे तेन देश कलिंगा पहुंचे हे त लपट करे जोहरे घुच कर बईठे हे अउ बईठ के सुन्‍दर जोहार भेट करके बइठे हे वही समय राजा सोनसागर जउन हे कछेरी अंदर आज छै आगर छै कोरी अहिरा ल का बतावत हे   

कथाकार (H)

छै आगर छै कोरी राउत देश कलिंगा में पहुंचे है, और गले मिलकर स्‍वागत-सत्‍कार भेंट कर बैठ रहें हैं, और राजा सोनसागर दरबार में उन्‍हें बता रहें हैं...

 

रागी (C)

का बतावत हे ?  

रागी (H)

क्‍या बता रहें हैं ?

 

गीत (C)

अरे वही जब बेरा ए भैया ग रेंगना रेंगाय गंगा मोर  रेंगना रेंगाय

सोन कर पड़रू भादो कर महीना ए ना

घपटे अंधियारी ए राउत मोर जेन दिन बियाथे ना  

जेन देखाबे माता मोर खोईलन हो.....  

गीत (H)

और उसी समय में भैया जी चलने लगे, गंगा मेरे चलने लगे

सोने का बछड़ा भादो का महीना है,

घुप्‍प अंधेरी रात राउत मेरे जिस दिन जनती है,  

जो दिखाया मेरी माता खोईलन.....  

 

कथाकार (C)

राजा सोनसागर ह कथे देख राउत चौदा टेन हे भईंसी, सोनसागर ह कहे भादो कर महीना घपटे अंधियारी, बिजली गरजना, आंधी पानी तूफान के कोई भरोसा नईए वहीं समय भईंसी बियाही अगर सोन के पड़रू देखा देबे त माता खोईलन मोर बहिनी ल बिहा के लेग जाबे अउ अगर सोन के पड़रू नई देखाबे त हाथ में हथकड़ी पांव म जंजीर, मूड़ मूड़ा के कहे त नाक में भेलवा कौड़ी गुथा के जेल म बंद हो जाबे, अइसे प्रकार के भैया राजा सोनसागर ह छै आगर छै कोरी अहिरा ल कईसे सुनावत हे।  

कथाकार (H)

राजा सोनसागर सारे लोगों से कह रहा है, भादो के महीने जब घुप्‍प अंधेरी रात जब आंधी तुफान पानी और बिजली गरज चमक रही होगी, उसी समय भैंस सोने का बछड़ा जनेगी, और जिसने वह सोने का बछड़ा मुझे दिखा दिया, वही मेरी बहन खोईलन को ब्‍याह कर ले जा सकेगा, और नहीं दिखा सका तो उसका सिर मुड़वाकर हाथ में हथकड़ी, पैर में जंजीर, नाक में भेलवा कौड़ी गूथकर जेल में बंद कर दिया जाएगा, राजा सोनसागर इस प्रकार छै आगर छै कोरी अहीर लोगों से कह रहा है।

 

रागी (C)

हरे हरे।  

रागी (H) 

हरे हरे।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए गंगा तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना

अरे पारे नई त पावय देखो राम राम

आज छै आगर छै कोरी अहिरा हो....

गीत (H)

तरी हरी नाना ए गंगा तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,

अरे कोई पार नहीं पा रहा है देखो राम राम,

आज छै आगर छै कोरी अहिर है....

 

कथाकार (C)

आज छै आगर छै कोरी अहिरा कहे तो सोन के पड़रू देखा नई सकिस हाथ में हथकड़ी पांव म जंजीर, मूड़ मूड़ा के कहे त नाक में भेलवा कौड़ी गुथा के सब जेल म बंद होगे,  वही समय में कुबिया, कठैत अउ सेलहन तीनो भाई तेन आज सुन्‍दर मजा करत वही राज में बारापाली गउरा ले देश कलिंगा की ओर कहे त कइसे चले आत हे।

कथाकार (H)

आज छै आगर छै कोरी अहीर में किसी ने भी सोने का बछड़ा नहीं दिखा सका, तो उनके सिर मुड़वाकर हाथ में हथकड़ी, पैर में जंजीर, नाक में भेलवा कौड़ी गूथकर जेल में बंद कर दिया, उसी समय कुबिया कठैत और सेहलन तीनों भाई भी बारापाली गउरा से देश कलिंगा की ओर चले आ रहें हैं।

 

गीत (C)

कहां के रइवईया ए गंगा कहां चले जाथव ना

चोंगी त ए माखुर कुटूम ये बईठ कर पी लव ना

ए दुख कर सुख कर गंगा गोठ ल गोठियावत हे हो...

गीत (H)

कहां के रहने वाले गंगा कहां चले जा रहें हैं,  

चोंगा और तम्‍बाकू कुटुम्‍ब बैठकर पी लो ना,

सुख दुख की बातें गंगा बातें कह रहें हैं,

 

कथाकार (C)

एती ले अहिरा बामहन जात राहय ओती ले कुबिया कठैता आत रहाय, कहे कहां के रहईया अस कुटुम कहां चल जात हस बईठ के चोंगी माखुर त पी ले दुख अउ सुख गोठ ल गोठिया ले, अइसे प्रकार के अहिरा बामहन हे ते कुबिया कठैत ल काहत हे, त कईथे हमू मन सुनेन ग सोन के भईंसी कहे त सोन के पड़रू बियाथे कईथे इही ल सुन के हमू मन जात हन तीनो भाई, जब छै आगर छै कोरी राउत पार नई पाईस त तुम तीनो भाई का पार पाहू, अइसे प्रकार के कुबिया कठैत कथे अरे देख तो लेबो नजर में  पार पाबो ते नई पाबोन अईसे प्रकार से तीनो भाई चलन लागे।

कथाकार (H)

उधर से कुबिया कठैत आ रहे थे और इधर से अहीर ब्राम्‍हण जा रहें हैं, आपस में मिलने पर पूछ रहें हैं, अहीर ब्राम्‍हण कुबिया कठैत से कह रहा है, कहां के रहने वाले हो कहां जा रहे हों, आओ थोड़ी देर बैठकर बीड़ी-तम्‍बाकू पी लो, सुख-दुख की बातें कर लो, कुबिया कठैत कहते हैं, हमने भी सुन रखा है, भैंस सोने का बछड़ा जनेगी करके यही सुनकर हम तीनों भी जा रहें हैं, अहीर ब्राम्‍हण कहता है, जब छै आगर छै कोरी राउत कुछ नहीं कर पाए तब तुम तीनों भाई क्‍या कर लोगे, तो कुबिया कठैत कहते हैं एक बार कोशिश करके देख लेने में क्‍या हर्ज है, सफल नहीं पाए तो भी कोई बात नहीं, इस प्रकार तीनों चलने लगते हैं।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए रात तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना

रेंगना ल रेंगन लागे मोर भाई कुबिया कठैता ए ना

राजा के कछेरी रे बैरी मोर धवन दरबारे ए हो...  

गीत (H)

तरी हरी नाना ए रात तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर तरी हरी ना,

चलना शुरू कर रहें हैं मेरे भाई कुबिया कठैता,

राजा की कचहरी में बैरी मेरे लगी है दरबार,  

 

कथाकार (C)

आज राजा के कहे कछेरी धवन लगे दरबार जहा बईठे पांड़े परधान पंडित दीवान परधान रेंगत किसान कटकटवात राहय वही समय म कुबिया कठेत सेलहन पहुंचे हे अउ पहुंच के भैया उहां कहे त फेर का करत हे बन्सकहार  ?

कथाकार (H)

आज राजा का दरबार लगा हुआ है, जहां पांडे पंडित, दीवान, प्रधान, किसान सभी बैठे हैं, उसी समय कुबिया, कठैत, सेलहन पहुंचे हैं, और पहुंचकर क्‍या कर रहें हैं, उसे बांसगाथा गायक बता रहा है।

 

रागी (C)

का करत हे, हरे हरे।  

रागी (H)

क्‍या कर रहा है, हरे हरे।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए राउत मोर तरी हरी नाना जी

तरी हरी नाहना मोर लपटी जोहारे ना

घुची करा ए दे मोर गंगा बईठक लेवय ना

अरे वही जब करा बेरा मोर राजा सोनसागर हो....  

गीत (H)

तरी हरी नाना ए राउत मोर तरी हरी नाना जी,

तरी हरी नाहना मोर लिपट कर मिल रहें हैं,  

हट कर मेरी गंगा बैठ रहें हैं,   

और उसी जगह उस समय राजा मेरे सोनसागर....  

 

कथाकार (C)

आज कुबिया कठैता सेलहन लपट के जोहार घुच के बईठे हे , वही समय राजा सोनसगर देख कहे चौदा टेन हे गाय भईंसी ह जेन सोन के पड़रू देखा दिही वो मोर माता खोईलन जेन मोर बहिनी ल शादी करके लेग जही जेन सोन के पड़रू नई देखाही वो हाथ हथकड़ी गोड़ म जंजीर लग जाही अइसे कहिस त  भैया सेलहन छोटे भाई राहय त राजा सोनसागर ल कहय आडर छटका दे अब आडर ल बारा लाख तोर महीना के गनती गना के दे दे, सुन्‍दर वोहा गनती कइसे गनवावत हे।

कथाकार (H)

आज कुबिया, कठैता, सेलहन से गले मिलकर स्‍वागत- सत्‍कार कर राजा सोनसागर कह रहा है, चौदह टेन (समूह) गाय-भैंस है, जो सोने का बछड़ा दिया वही मेरी बहन खोईलन को शादी करके ले जा सकता है, और नहीं तो हाथ में हथकड़ी, पांव में जंजीर, लगा के जेल में जाना पड़ेगा, तभी छोटा भाई सेहलन ने राजा सोनसागर से कहा, जब आपने ये कह ही दिया तो अब बारह लाख बारह महीने के हिसाब से गिनती करके दे दो।

 

रागी (C)

दे दे हरे हरे।

रागी (H)

दे दे हरे हरे।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए राउत देखो तरी हरी नाना जी

कइसा ए गनती ए राउत मोर गनती गना दे ना

धरसा धरावय भाई धरसा धरावय हो....  

गीत (H)

तरी हरी नाना ए राउत देखो तरी हरी नाना जी,

कैसी ये गिनती राउत मेरे गिनती गिना दो,

रास्‍ते दिखा रहें हैं मेरे भाई रास्‍ता दिखा रहें हैं,

 

कथाकार (C)

आज सुन्‍दर मजा के धरसा धराय हे तीनो भाई, परना के डहर धराय हे, त सुनता बढ़ावत चले जात हे तीनो भाई, देखो रे भाई बारा महीना के लिए झोंक डरे हन, त एक भाई जागबोन त दू भाई सुतबोन दू भाई जागबो त एक भाई सुतबो, अइसे सुनता बंधा के परना के डहर बढ़ावत हे  

कथाकार (H)

आज तीनों भाई एक रास्‍ते पर चल पड़े है, और परना (जगह का नाम) की ओर निकल पड़े है, और में एकमत होकर कह रहें हैं, देखो भाईयों बारह महीने के लिए खर्च ले लिए हैं, तो एक भाई जागेगा दो भाई सोएंगे, दो भाई जागेंगे तो एक भाई सोएगा, इस प्रकार एक मत होकर वे परना की ओर बढ़ रहें हैं।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए भैया मोर नाहना नारी नाना ए जी

सुन्‍दर जब धरसा ए राउत ग परना के ए दे ना

रेंगना रेंगावय भैया मोर रेंगना रेंगावय हो...   

गीत (H)

तरी हरी नाना ए भैया मोर नाहना नारी नाना ए जी,

सुन्‍दर रास्‍ता दिखा के राउत मेरे ओ परना की,

चलने लगे भैया मेरे चलने लगे  

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर परना के डहर धराय राहय, सुन्‍दर धरा के काहय देखो रे भाई दू भाई जागबोन त एक भाई सुतबोन अउ दू भाई सुतबोन त एक भाई जागबोन, अइसे सुनता बना के दांडी म माचा बनाय हे, सुन्‍दर कहे त अलग अलग म तीनो भाई बैठक लेहे, दाई बिसकर्मा हे तेन आज कहे त  परना म कइसे राज करत हे।

कथाकार (H)

मजे साथ परना की बढ़ रहे हैं और कह रहें हैं, एक भाई जागेगा दो भाई सोएंगे, दो भाई जागेंगे तो एक भाई सोएगा, इस तरह एकमत से दांडी में रहने के‍ लिए मचान बनाया है, और तीनों भाई बैठे हुए हैं, और दाई बिसकर्मा है वह परना में राज कर रही है।

 

गीत (C)

अरे वही ए बेरा ए राउत मोर भादो के महीना ए ना

घपटे अंधेरी रे बैरी मोर आंधी पानी तुफान ए ना

जही ए बेरा राउत मोर बोलन लागे हो....  

गीत (H)

अरे उसी समय में राउत मेरे भादो के महीना है ना,  

घुप्‍प अंधेरा है बैरी मेरे आंधी पानी तुफान भी है,  

उसी समय राउत मेरे बोलने लगे....  

 

कथाकार (C)

आज सुन्‍दर मजा के कुबिया कठैता हे तेन ल सेलहन छोटे भाई ह कहिथे भैया अइसना म नई बने नींद ताय नींद पर जही त ठगा जाबोन तेकर ले मय कांशी लुए बर जात हंव काहत हे, कांशी लुए हे खद्दर तेकरो बनईस बरहा के डोर अउ भईंसी के गला म बांध दिस अउ अपन कनिहा म बांध के कहिसे कहे त परना म नींद भांजत हे।  

कथाकार (H)

छोटा भाई सेलहन अपने दोनों बड़े भाईयों कुबिया कठैत से कह रहा है, देखो भाईयों ऐसे में नहीं बनेगा, नींद का क्‍या भरोसा आ ही जाएगी, ऐसे में हम ठगे रह जाएंगे, मैं काशी काटने जा रहा हूं, जिसको गुथकर डोर बनाऊंगा, और वह काशी की डोर बनाकर, उसकी एक छोर भैंस के गले में और दूसरी छोर अपनी कमर में बांध ली, और बांधकर नींद ले रहा है।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए मोर राउत ग नाहना नारी नाना ए जी

गजब परगे भाई रे तीनो बैरी रे ए दे परना में ना

परना ले उठे दाई वो टेपरा झकोरा हो...  

गीत (H)

तरी हरी नाना ए मोर राउत ग नाहना नारी नाना ए जी,

गजब हो गया तीनों भाई बैरी परना में हैं,   

परना से उठ के दाई ओ टेपरा बजा रही...  

 

कथाकार (C)

नींद परगे तीनो भाई के, भईंसी के जब टईम टेबुल जब अईस त कहे टेपरा हे त झन्‍नाय हे बजाय हे बजाय के बेरा कहे त वही समे म भैया बीच डोरी ल काट दिस, अउ काट के वही घपटे अंधियारी रात भादो के महीना, बिजली गरजना पानी तूफान के ठिकाना नईए देवी के मंदिर म रात्रि के समय कइसे चले जात हे   

कथाकार (H)

इधर तीनों भाईयों की नींद पड़ी वैसे ही भैंस के जापे (जनने) का समय हो गया, तो उससे गले का टेपरा (लकड़ी की खोल से बनी घंटी)  बजने लगा, तो उसी समय उसने रस्‍सी बीच से काट दी, और भादो के महीने में अंधेरी रात, आंधी तुफान, गरजती चमकती, बिजली रात के समय देवी के मंदिर में चली जा रही है।

 

रागी (C)

हरे हरे।  

रागी (H)

हरे हरे।

 

गीत (C)

वही कर बेरा ए गंगा रेंगन भला लागे ना

देवी के मंदिर म चंडालिन मोर जावन लागे ना

सोन कर पड़रू मोर देवी के मंदिर में हो....  

गीत (H)

उसी समय में गंगा चलने में भला लगे ना,

देवी के मंदिर में चंडालिनी मेरी चलने लगी,  

सोने का बछड़ा मेरी देवी के मंदिर में....  

 

कथाकार (C)

आज जो भईंसी राहय वो देवी के मंदिर म सोन के पड़रू बिया दिस अउ बियाय के बाद उही पांव लहुट के परना म आय के टपेरा झकोरे हे त झकना के तीनो भाई के नींद ह खुलगे त छोटे कहे भईंसी के पेट ह खलखल ले दिखत हे कोनो कर बिया दिस तइसे लागथे, त बांधे रेंहेंव कनिहा म रस्‍सी तेला त काट के निकलगे त काय करय भैया केंवट ल बला शोंखी, फांदा ल परना म कईसे गिरावत हे।    

कथाकार (H)

और भैंस ने बछड़े को जन्‍म दिया और उल्‍टे पांव वापस परना में आकर टेपरा बजाने लगी, टेपरा की आवाज से तीनों भाई हड़बड़ा कर उठ गए, तभी भाई ने कहा भैंस का सपाट दिख रहा है, लगता है कहीं पर इसने बछड़े को जन्‍म दे दिया, लेकिन मैंने इसके गले में रस्‍सी बांधी थी, वह काटकर निकल गई होगी, भैया तुम केंवट को बुलाकर आओ शोखी फांदा (मछली पकड़ने की जाल) फैलाओ।      

 

रागी (C)

हरे हरे।

रागी (H)

हरे हरे।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए भैया मोर नाहना नारी नाना ए जी

मन ए मन म गुनय दिल म बिचारत हे ना

शोंखी अउ फांदा ल तुमन परना म गिरावव हो...   

गीत (H)

तरी हरी नाना ए भैया मोर नाहना नारी नाना ए जी,

मन ही मन में गुन रहा है दिल में विचार कर रहा है,  

शोंखी और फांदा (मछली की जाल) को तुम परना में बिछा दो ...   

 

कथाकार (C)

दूनो बड़े बड़े भाई ल कठैता ल भैया हो तुमन केंवट ल बला के शोंखी फांदा ल परना म तुमन खोजव मय पता लगावत हंव ए कोनो तीर तखार म होही त, भईंस उइदे आय उइदे जाय राहय ग बिजली गरजना पानी तुफान रिमझिम पानी गिरत राहय त पानी मतलहा खुर म राहय त पैर ल बिजली के परकास म राउत राहय तेना ‍ खोजत राहय फेर बिजली बंद होय लड़बड़ा जाय अइसे परकार ले पैर के निसान ले खोजते खोजते चलत राहय।    

कथाकार (H)

दोनो बड़े भाईयों से कह रहा है आप लोग केंवट बुला के शोखी फांदा लेकर परना में खोजो, और मैं इधर आस पास ढूंढता हूं, क्‍योंकि भैंस से इधर से उधर कहीं गई रही होगी, क्‍योंकि पानी गिर रहा है तो कीचड़ उसके खुर में लगा होगा, और वह बिजली के उजाले में में उसके पांव के निशान ढूंढता जा रहा था, बिजली चमकनी बंद होती तो वह हड़बड़ा जाता था, इस प्रकार वह पैरों के निशान ढूंढता हुआ जा रहा था।     

 

गीत (C)

अरे वहि बेरा म राउत मोर मन ए मन गुनय गंगा

भला दिल म बिचारय ना

पैर ल देखत बालक  भादो कर महीना ए ना

घपटे अंधेली राते मोर राउत कइसे चलन लागे हो  

गीत (H)

उसी समय में राउत मेरे मन ही मन गुन रहा है गंगा,

दिल में विचार कर रहा है,

बालक  पैर देख रहा है भादो का महीना है,  

घुप्‍प अंधेरी रात में मेरे राउत कैसे चल रहा है,   

 

कथाकार (C)

पैर ल देखते देखते जात राहय मन मन गुनय दिल म बिचारय घपटे अंधेरी रात अउ बिजली गरजना के ठिकाना नई राहय, बिजली के परकास म दउड़े अउ बिजली बंद होय त फेर लड़बड़ा जाय, अईसे करते करते नंदी के किनारे जब पहुंचिस तब रात्रि ए ग त वही मेर खड़े होके गंगा माई के परनाम कइसे करत हे    

कथाकार (H)

पैरों को देखता हुआ मन में विचारता हुआ वह बिजली के उजाले में देखता और बिजली बंद होते ही हड़बड़ा जाता, ऐसा करते वह नदी के किनारे पहुंच गया, और नदी गंगा माई को प्रणाम कर रहा है।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए राम राम मोर नाहना नारी नाना ए जी

दसो अंगोड़ी के बालक मोर गंगा माई ए के ना

अरे पैंया टेकय ग जी पैंया टेकय हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना ए राम राम मोर नाहना नारी नाना ए जी,

दोनों हाथ जोड़कर बालक गंगा मैया से प्रार्थना कर रहा,

पैर भी छू रहा है पैर भी छू रहा है,

 

कथाकर (C)

आज गंगा किनारे म जा के कहे त जी सेलहन ह दसो अंगरी जोर कहे दाई आज तोरे हाथ म मोर जीव हे अगर तंय तारत त बोरत अइसे दंडा सरन करत गंगा माई के परनाम करत हे त गंगा माई ह का बोलत हे  

कथाकार (H)

और गंगा किनारे में सेहलन अपने दोनों हाथ जोड़कर गंगा मैया से कह रहा है, आज सब तुम्‍हारे हाथ में है, चाहे मारो या उबारो कहकर दण्‍डवत प्रणाम कर रहा है, गंगा मैया क्‍या बोल रही है...

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए बालक रे मोर गंगा में कूदे हे ना

सुन्‍दर मोर जब लेगय दाई वो गंगा मोर माई हे ना  

देवी के मंदिर बर ए दे धन लेगय हो....  

गीत (H)

तरी हरी नाना ए बालक मेरे गंगा कूद गया,

सुन्‍दर मेरे जब गंगा मैया ल के जा रही है,

देवी के मंदिर के लिए ले जा रहें हैं  

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर बालक राहय तेन गंगा माई म कूदे राहय धारे धारे गंगा माई ओला लेगत राहय देबी माई के मंदिर ह नदी के टाप म राहय, मार सलाफा मंदिर के किनारे म बईठा दिस, आज सेलहन हे तेन मंदिर के किनारे म बईठ घला लिस, गंगा माई त अपन धार बोहात चले जात हे, मंदिर ल देखथे त दरवाजा खुल्‍ला राहय रात्रि के समय रात्रि के समय कइसे खुल्‍ला हे भगवान के मंदिर ह अइसे करके दिया बाती जलत राहय त ओला देखके कथे बगल म बालक कईसे खड़े हे।   

कथाकार (H)

और लड़के (सेहलन) ने गंगा भैया में छलांग लगा दी और गंगा माई की धार में वह लहरों के साथ वह आगे बढ़ रहा है, देवी का मंदिर नदी के ऊंचे तट पर था लहरों ने उसे मंदिर के किनारे पहुंचा दिया, फिर गंगा माई अपने लहर में चली जा रही है, और रात के समय मंदिर का दरवाजा खुला है और दिया भी जल रहा है, और लड़का बगल में खड़ा हो जाता है।

 

रागी (C)

हरे हरे।

रागी (H)

हरे हरे।

 

गीत (C)

अरे वहि कर बेरा ए गंगा मोर माता खोईलन ना

मोर देवी के पुजारी ए ना  

सुन्‍दर पूजा करी करा मोर बैरी सोन के पड़रू मोर ओली म धरय हो

गीत (H)

और उसी समय गंगा मेरी माता खोईलन,

मेरी देवी की पुजारन है,  

सुन्‍दर पूजा करके बैरी मेरे सोने का बछड़ा आंचल में रखी है

 

कथाकार (C)

आज माता खोईलन राहय तेन देवी के पूजा करके तन तैयार होके, ओली म सोन के पड़रू ल धरी अउ धर के तारा खईरपा ल लगावत सुन्‍दर  निकलत राहय बगल में बालक खड़े राहय त वही समय ताला खईरपा लगा के दूए कदम रईंगे हे, त फेर आ जघा का होथे....

कथाकार (H)

आज माता खोईलन जो थी वह देवी की पूजा करके आंचल में सोने का बछड़ा रखी हुई है, ताला लगाकर निकल रही है, लड़का (सेहलन) बगल में खड़ा था। माता खोईलन दो ही कदम चली थी, फिर उस जगह क्‍या होता है...  

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए राउत मोर नाहना नारी नाना ए जी

दूए रे फरलंग मोर खोइलन रेंगना ल रेंगे हे ना

दउड़ कर सेलहन ओली कर झीकत हे हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना ए राउत मोर नाहना नारी नाना ए जी,

दो ही कदम मेरी खोइलन चली होगी,  

दौड़ कर सेलहन आंचल को खीच रहा है,  

 

कथाकार (C)

सेलहन राहय त दउड़ के ओली ल खीच दिस, ओली ल खीच दिस ल सोन के पड़रू नीचे गिरगे, गप ले ओकर मरवा ल धर लिस कहे चंडालिन अईसने कहि के आज छै आगर छै कोरी राउत ल जेल म सरोवत हस, आज थोरको महूं पछवाय रतेंव त हाथ म हथकड़ी अउ पांव म जंजीर  लग जाय रतीस, असली चोट्टी तहीं हरस, अइसे कहिके भैया सोन के पड़रू के मरवा ल धरीस अउ रात्रि के समय खीचत परना के डहर कईसे चले जात हे।

कथाकार (H)

तो सेलहन ने उसके आंचल को खींच लिया, खींचते ही सोने का बछड़ा नीचे गिर गया, और उसने झट से उसके बाल को पकड़ लिया, और कहा कि चंडालन तुने ऐसा ही करके छै आगर छै कोरी राउत लोगों को जेल सड़ा रही हो, आज मैं भी यही भुगत रहा होता मुझे हाथ में हथकड़ी और पांव में जंजीर लग जाती, असल चोर तो तुम हो ऐसा कहकर उसके खीचते हुए परना की ओर ले जा रहा है।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए राउत मोर नाहना नारी नाना ए ना

अरे मुड़वा ल धरे राउत खीचत मोर ल लेगय ना  

परना म ए दे राउत मोर माता खोईलन हो....

गीत (H)

तरी हरी नाना ए राउत मोर नाहना नारी नाना ए ना,

अरे बाल पकड़कर राउत खीचकर ले जा रहा है,  

परना में राउत मेरे माता खोईलन है....

 

कथाकार (C)

राजा के परना म लेगिस तैंतीस शोंखी फांदा गिराय राहय ग उहां रही जमने रही त तो पाही, चाल चले राहय भैंस ह राजा सोनसागर राहय तेहा काहय बहिनी अतका बेर ले आबे देवी के मंदिर ले पूजा करके आज तीन बजगे रात ह पताच नईए, ओला छटपटी धरे राहय बहिनी नई कहिके फेर बहिनी त पकड़ाय राहय त कहां ले परना ले जाही एती ल तहान उल्‍टा धावन कइसे भेजत हे राउत....     

कथाकार (H)

इधर परना में तैंतीस शोंखी फंदा फैलाया गया है, वहां भैंस जनी होती तो मिलती, और इधर राजा सोनसागर अपनी बहन के लिए है चिन्तित है, कि वह रात तीन बजे गए और वह पूजा करके अब तक लौटी नहीं है, राजा की बहन तो पकड़ा चुकी है, राजा की बहन को राउत ने पकड़ रखा है, और उल्‍टा संदेशा राजा के पास कैसे राउत भेज रहा है...    

 

गीत (C)

ये दे वही बेरा राउत मोर उल्‍टा धावन बैरी मोर परना ले ना

भेजन लागे गंगा मोर राजा के दरबार में ना

उल्‍टा कछेरी राजा तोर परना में लेगय हो....

गीत (H)

और उसी समय राउत मेरे उल्‍टा संदेश परना से,

भेजने लगा गंगा मेरी राजा के दरबार में,

उल्‍टी कचहरी राजा की परना में लगी है....

 

कथाकार (C)

धावन भेज दिस उल्‍टा संदेशिया राजा सोनसागर कहे तोर कछेरी उसल के   परना म मंगाय हे राउत ह अइसे कहिके बारह साल के बारह ठन पड़रू राजा सोनसागर के सब भईंसी के पड़रू ल धर के उहां परना म बुलाय अइसे प्रकार के भईया राजा सोनसागर राहय तेन ह सब पड़रू ल धर के कछेरी ल धर के परना में कईसे लानत हे...    

कथाकार (H)

राजा को संदेशा भेजा गया कि तुम्‍हारे दरबार से अब परना में राउत ने बारह साल के लिए बारह बछड़े मंगवाए हैं, और इस प्रकार राजा सोनसागर बछड़े लेकर दरबार से परना की ओर कैसे जा रहें हैं...  

 

गीत (C)

वही कर बेरा राउत मोर रेंगना ल रेंगत हावय ना

अरे मन मन गुनत हे बैरी दिल म बिचारत हे ना

अरे राजा मोर गंगा ये दे कइसे बोलव हो...  

गीत (H)

उसी समय राउत मेरे चल रहें हैं,  

अरे मन ही मन गुन रहें हैं बैरी दिल में विचार रहें हैं,  

अरे राजा मेरे गंगा ये कैसे बोल रहें हैं...  

 

रागी (C)

हरे हरे।

रागी (H)

हरे हरे।

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर मजा के कहे त कछेरी ल परना म लानिस और कहे त ग्‍यारा साल के ग्‍यारा ठन पड़रू एक ठन पड़रू ल अपन धर के आय हे बारह ठन पड़रू खड़े कराय हे कइसे राजा तंय अइसने धोखा दे दे के तंय हा छै आगर छै कोरी राउत ल जेल म धांधे हस, आज चोर ह कहे त पकड़ाईस हे, वही समय म भैया जेन हा सोन के पड़रू देखाही  वो माता खोइलन ल शादी करही कहे अइसे करके सुन्‍दर बखान करे हे।

कथाकार (H)

राजा दरबार से परना की ओर ग्‍यारह साल के ग्‍यारह बछड़े लेकर आ रहा है, क्‍योंकि एक बछड़े को उन्‍हानें पहले ही पकड़ रखा है, और कहा राजा आपने कैसे धोखा दे दिया, असली चोर आज पकड़ाया है, और आपने छै आगर छै कोरी राउत को जेल में बंद कर रखा है, और आपने कहा था कि जो सोने का बछड़ा दिखाएगा वह आपकी बहन खोईलन से शादी करेगा, ऐसा कह रहा है।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए गंगा मोर नाहना नारी नाना ए ना

छै आगर छै कोरी अहिरा जेल म बइठाए ना

जेला रे निकालय मोर भाई कुबिया कठैता ए हो....  

गीत (H)

तरी हरी नाना ए गंगा मोर नाहना नारी नाना ए ना,

छै आगर छै कोरी अहिर जेल में बिठाए गए हैं,  

जिन्‍हें निकाला मेरे भाई कुबिया कठैता ने ....  

 

कथाकार (C)

जतका धंधाय राहय ततका निकालिस अउ ओला अपन बराती बनई  सबे झन बर कहे नवा नवा कपड़ा लगई अउ सुन्‍दर ओ भईंसी सोनसागर कईथे  ओ जघा का करत हे फेर...

कथाकार (H)

जितने भी जेल में बंद थे उसे बाहर निकलवाए, और उसे अपने बाराती बनाए, सबको नए कपड़े और धोती पहनवाए, अब उस जगह क्‍या हो रहा है...  

 

गीत (C)

तरी हरी नाना मोर गंगा कैसा ए न नारी नाना ए ना हा
खिरसा कोदई मोर राउत कैसा खवावत हे ना  

छै आगर छै कोरी अहीरा जेला खिरसा कोदई ए हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना मोर गंगा कैसा ए न नारी नाना ए ना हा,
कोदो कुटकी मेरे राउत कैसे खिला रहें हैं,   

छै आगर छै कोरी अहीर कोदो कुटकी खा रहें हैं,

 

रागी (C)

हरे हरे।

रागी (H)

हरे हरे।

 

कथाकार (C)

आज छै आगर छै कोरी राउत ल छुड़वाय के लाने हे खिरसा कोदई ल खवावत हे खिरसा कोदई ल कबे त बहुत राउत नई बता सकय अउ वही समय म भैया भैंसी जमने जेला दूहे राहय सोनसागर के ओकरे कहे त कतरा बना छै आगर छै कोरी राउत ल सुन्‍दर मजा के परना म कहे त कइसे खवावत हे।  

कथाकार (H)

आज छै आगर छै कोरी राउत को छुड़ाकार वे उन्‍हें कोदो-कुटकी खिला रहे हैं, और जो भैंस जनी है उसके दूध का पेंवस सारे छै आगर छै कोरी राउत को खिला रहे हैं, और सारे खूब मजे से खा रहें हैं।  

 

गीत (C)

वही बेरा रे मोर छोटे भाई राउत मोला बोलन लागे रे

बड़े पागा ग गंगा तीरे कइसे बदले ला

ऐ दे सेहलन भाई गंगा मोर बोलन लागे हो

गीत (H)

उसी समय मेरे छोटे भाई राउत कहने लगा,  

बड़े भाई से पगड़ी गंगा के किनारे कैसे बदल ली,  

और सेहलन भाई गंगा मेरी कहने लगा  

 

कथाकार (C)

छोटे काहत मय जीते हंव फेर छोटे ह काहत हे बड़े के राहत मय पागा नई बांधव बड़े भईया कहे त खपल दिस कुबिया उपर बड़े कहे कुबिया के सुन्‍दर शादी करई, मरही खुरही ल भैया मड़वा म बांध दिस छै आगर छै कोरी जेला धर के भईया बारापाली गउरा के रद्दा कुबिया कठैता कइसे जात हे  

कथाकार (H)

छोटा भाई कह रहा है, जीता तो मैं हूं लेकिन बड़े भाईयों के रहते मैं सिर पर सेहरा नहीं बांधूगा, इस तरह उसने अपने बड़े भाई कुबिया की शादी करवाए, और कमजोर गाय-भैंस को वहीं मण्‍डप में बांध दिए, और छै आगर छै कोरी राउत के साथ बारापाली गउरा जाने के लिए निकल पड़े।    

 

गीत (C)

वही जब बेरा मोर राम राम मोर रेंगना ल रेंगय ना

कैसा ये दे मोर तीनो जब मू‍रति ए ना

दाई बिसकर्मा मोर डोंगरी डाहर हो...

गीत (H)

और समय में मेरे राम राम चलने लगे,

कैसे ये मेरे  तीनों जब मू‍र्ति है ना,

माता बिसकर्मा मेरे पहाड़ के रास्‍त में...

 

कथाकार (C) 

आज सुन्‍दर मजा के तीनो मूरति हे तउन ह बारापाली के रद्दा के धरे हे कुबिया हे तउन ह दाई बिसकर्मा छै आगर छै कोरी ल धर के डोंगरी के डहर धरे हे सुन्‍दर मजा डोंगरी के रद्दा धरे हे  

कथाकार (H)

और तीनों मजे साथ बारापाली रास्‍ते में चल रहें हैं, कुबिया दाई बिसकर्मा छै आगर छै कोरी राउत के साथ डोंगरी के रास्‍ते में चल रहे हैं।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना गंगा मोर नाहना नारी नाना डोंगरी म ए दे ना

जेकर मन लगाए ए दे कर पिया फंकाए ना

जेकर मन लगाए ए दे चुहरा पानी पियत हे ना

जेकर मन लगाए ए दे सापर माटी खवाए हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना गंगा मोर नाहना नारी नाना पहाड़ में है ना,

जिसका मन लगा कर पिया फांक रहें हैं,

जिसका मन किया चुहरा पानी पी रहें हैं,

जिसका मन लगा सापर माटी खा रहें हैं ...

 

कथाकार (C)

दाई हे तेन छीचे हे डोंगरी म जेकर जईसे मन लागय करपी फांकत हे जेकर मन लागय बदउर फांकत हे जेकर मन लागत हे अटाएन फांकत हे जेकर मन लागत हे चुहरा पानी पियत हे जेकर मन लागत हे सापर माटी खात हे, राउत हे तेहा सुन्‍दर कदम के छांव म सोए हे दाई बिसकर्मा हे तेहा छीच के बगरे हे  

कथाकार (H)

दाई जो थी वो डोंगरी में खाद्य सामग्री बिखेर दी थी, जिसका जो मन करे वह खा रहे हैं, कोई करपी फांक रहा है कोई बदउर फांक रहा है जिसका मन करे अटाएन फांक रहा है, कोई चुहरा पानी पी रहा है, कोई सापर माटी खा रहा है, इधर राउत है वह कदम के नीचे छांव में सोया हुआ है।

 

गीत (C)

ए दे जही ए बेरा ए राउत मोर हो आए कैसा ए बेरा ए ना

दाई बिसकर्मा मोर भाई धरसा धरत हे ना

कैसा ए मोर राउत मोर पाछू पाछू चलत हो

गीत (H)

और उसी समय में राउत मेरे कैसा ये समय है,  

माता बिसकर्मा मेरे भाई रास्‍ते में चलने लगे,  

कैसे मेरे राउत मेरे पीछे पीछे चलने लगे,   

 

कथाकार (C)

दाई बिसकर्मा जो हे टईम टेबुल होइस तहान एकट्ठा होके धरसा धरे राहय आज कुबिया राहय ते पाछू ल धरे धाप घर म गिस त सुन्‍दर बने दाई बिसकर्मा कईसे का थमावत हे जी   

कथाकार (H)

दाई बिसकर्मा के जब समय हुआ तो सब इकट्ठे फिर से एक रास्‍ते में हो गए, कुबिया ने उसे पीछे पीछे चलने लगे आगे, दाई बिसकर्मा क्‍या थमा रहें हैं...  

 

गीत (C)

अरे वही बेरा म मोर गंगा दाई बिसकर्मा भाई मोर
नारे फूले मोर बालक मोर धरसा म खेलत हे ना  

जेला देखे मोर दाई कैसा थमावय हो

गीत (H)

अरे उसी समय में मेरी गंगा माता बिसकर्मा,
नारे फूले मोर बालक मोर धरसा म खेलत हे ना,

नाल फूल मेरे बालक मेरे रास्‍ते में खेल रहा है,  

जिसे देख मेरी माता कैसे थमा रही है

 

कथाकार (C)

दाई बिसकर्मा राहय धरसा म थमाईस त कईथे का कमल छड़ माड़गे आज कुबिया राहय ते पाछू ल छोड़ के आगू म जाके देखथे ग नार फूल सुद्धा बालक धरसा म खेलत राहय सुन्‍दर मजा के नार फूल सुद्धा बालक खेलत राहय, त वही मेर कुबिया कठैता का करत हे जी    

कथाकार (H)

दाई बिसकर्मा के थमाने के बाद कुबिया पीछे रास्‍ते को छोड़कर आगे में चला जाता है, और देखता है तो नाल-फूल के साथ एक बच्‍चा रास्‍ते में बालक खेल रहा था, उसी समय कुबिया कठैत क्‍या करता है...  

 

गीत (C)

बारा रे महीना ए गोई तंय शिवपूजा करे ना

अरे तेरह अकोनी भाई मोर कैसा रे ये ए दे ना

तोर बरदानी ए खोईलन धरसा म मिले हो...   

गीत (H)

बारह महीना तुमने शिवपूजा की है,

और तरेह पुन्‍नी भाई मेरे कैसा है रे,

तेरे वरदान है खोईलन रास्‍ते में मिले,    

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर ओ मेर राउत राहय तेन कहिथे बारा महीना तेहर पुन्‍नी ले पूजा करे राहय त बरदानी दे रतीस माता ह वही समे में आज राउत हे ते दाई कहे ये बालक ल आगर कहे त एला गोरस पियाबे तभे तोला टेन के अगाड़ी अउ टेन सियनही जानिहा अइसे धामा कलोरिया ल आज कहे त कुबिया ललकारे हे काहत हे।    

कथाकार (H)

बारह महीना तक तेरह पूर्णिमा में पूजा करने से वरदान दिया होता, तो उसी समय राउत ने कहा दाई तुम इसे अपना दूध पिलाओगे तब मैं तुम्‍हे टेन अगाड़ी और टेन का मुखिया जानूंगा, ऐसा कहकर कुबिया ने धामा कलोरिया को ललकारा है।  

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए दाई देखो ना हरी गंगा

मोर नाहना नारी ना मोर कंचे कुंवारी ए ना

बालक ल ए दे दाई तंय गोरस पिया देबे ना

तभे अ जानव दाई मोर धमा ए कलोरिया हो  

गीत (H)

तरी हरी नाना ए दाई देखो ना हरी गंगा ,

मोर नाहना नारी ना मेरे कंज कुंवारी है ,

बालक को मैया तुम दूध पिला देना  ,

तब मैं तुमको धमा कलोरिया जानूंगा  

 

कथाकार (C)

तंय तो कंच कुंवारी अस अउ तीन के अगाड़ी अस आज ये बालक सात धार के गोरस पियाबे तभे मय तोला धामा कलोरिया अस मान के जानहव अईसे करके प्रण करिस त भैया धामा कलोरिया ए तउन दाउई गउत्री माता हे तेन सुन्‍दर कहे पनहा जब छूटत हे भईया बालक राहय तउन ह तरबतर गोरस ल कइसे पियत हे      

कथाकार (H)

तुम तो कुंवारी हो तीन के आगे हो आज इस बालक को सात धार दूध पिलाओगे, तब मैं तुमको धामा कलोरिया मान जाउंगा, ऐसे उसने प्रण किया, और तब गउत्री माता के दूध की धार बहने लगी, और बालक तरबतर होकर कैसे दूध पी रहा है।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना गंगा मोर नाहना नारी नाना ए ना

अरे पकरे अंगोती ल राउत मोर ओली रे बना के ना

बालक धरी लेवय मोर गंगा बालक धरी लेवय हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना गंगा मोर नाहना नारी नाना ए ना,

अपने पकड़े गमछे को राउत आंचल बना के,

बालक को रख लिया मेरे गंगा बालक को रख लिया,

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर ओली बनाईस अउ ओली बना के नार सुद्धा बालक ल धर के भईया बारापाली के रद्दा धरे राहय दाई बिसकर्मा राहय तेन कलमी म जाके ठोकागे, आज लारी राहय कुबिया राहय ते सुन्‍दर मजा के लारी के रद्दा कइसे धरे हे    

कथाकार (H)

और उसने सुन्‍दर आंचल बनाया और नाल सहित बालक को लेकर बारापाली का रास्‍ता लिया, दाई बिसकर्मा थी वो कलमी में जाके ठोका गई, और आज कुबिया ने से लारी का रास्‍ता ले लिया।

 

रागी (C)

हरे हरे

रागी (H)

हरे हरे।

 

गीत (C)

अरे वही बेरा म ए राउत मोर लोटा म पानी

देवन्‍तीन दाई कैसा खोईलन ल ना

गोड़ धोवव तुमन जोड़ी गोड़ धोवव ना

ये ऐसा ए दे भाई मोर लोटा म पानी देवय हो....  

गीत (H)

और उसी समय में राउत मेरे लोटा में पानी,

देवन्‍तीन माते कैसे खोईलन को,  

पैर धो लो तुम दोनों जोड़ी पैर धो लो,

ये इस प्रकार भाई मेरे लोटा में पानी दे रही है  

 

कथाकार (C)

लोटा म पानी देवत राहय गोड़ धो लेवव पतिदेव कहिके, तोर लोटा के पानी ल छोड़ दव बाई, पहिली त ए दे जरी चाब ले कहिेथे, सुन्‍दर धरसा म आज तोर बारा महीना तेरा पुन्‍नी के बरदानी मोला धरसा म मिले हे जरी ल तंय चाब ले सुन्‍दर मजा के माता खोईलन राहय ते भईया जरी चघले हे जरी चाबे ले सुन्‍दर पनहा कईसे छूटत हे     

कथाकार (H)

लोटे में पानी दे रही है हाथ पांव धो लो पतिदेव करके तुम्‍हारे लोटे का पानी छोड़ दो बाई और पहले ये जड़ी चबा लो, सुन्‍दर रास्‍ते में मुझे बारह महीना तेरह पूर्णिमा का वररदान मिला है, और माता खोईलन ने मजे से जड़ी चबा ली।

 

गीत (C)

अरे वही जब बेरा ए दे रे बालक पाली लेवा ए ना

माता मोर खोईलन ए भैया मोर बारापाली गउरा म ना

सुन्‍दर नगर म ए दे रे बालक फूल फलय हे हो...

गीत (H)

और उसी समय में इस बालक को पाल रहें हैं,

माता मेरी खोईलन भैया मेरे बारापाली गउरा में,

सुन्‍दर नगर में बालक फूल फल रहा है  

 

कथाकार (C)

भैया आज बारापाली गउरा में बालक राहय तेला जंगल म पाय राहय धरसा में, जेकर नाम करन धरे बर जाति भाई ल बारापाली गउरा म सुन्‍दर मजा करे कइसे सकेलत हे  

कथाकार (H)

और बारापाली गउरा में जो बालक है वह मुझे रास्‍ते मिला, जिसका नाम करण करने के लिए जाति भाईयों को बारापाली गउरा में इकट्ठा किया।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना गंगा मोर नाहना नारी नाना ए ना

बने म एला पाएं हव गंगा मोर नामे एकर करन ए ना

धरी तुमन एकर देवा कुटुम नामे एकार धराय हो...   

गीत (H)

तरी हरी नाना गंगा मोर नाहना नारी नाना ए ना,

बने म एला पाएं हव गंगा मोर नामे एकर करन ए ना,

सुन्‍दर इसे मैं पाया हूं गंगा मेरे इसके नामकरण,

तुम लोग कर दो कुटुम्‍ब इसका नामकरण कर दो  

 

कथाकार (C)

आज ये बालक ल बन म मय पाय हंव जेकर नाव धरे बर तुमन जाति भाई ल मोर अंगना म बलाय हंव, एकर नाम धर देवा किथे, सुन्‍दर मजा के कहे त बिचार करके कहे देख राउत तंय एला बन म पाय हस एकर नाव कथे भईया एकर नाव कथे गदी सांवर अउ माता खोईलन हे तेन बारा पाली गउरा में बालक ल सुन्‍दर रेंगावत हे   

कथाकार (H)

आज इस बालक को मैंने जंगल में पाया है जिसका नाम रखने आप जाति भाईयों को मैंने अपने आंगन में बुलाया है, इसका नाम रख दीजिए, सब ने सोच विचार कर उससे कहा राउत तुमने इसे जंगल मे पाया है इसका नाम गदी सांवर है, ऐसा कहते हैं, और माता खोईलन इधर बारापाली गउरा में सुन्‍दर ढंग से चला रही है ।

 

रागी (C)

हरे हरे।

रागी (H)

हरे हरे।

 

गीत (C)

माता मोर खोईलन ए भाई मोर बारापाली गउरा में ना

सुनी ले लेबे जोड़ी मोर बोल तोर बचन ला हो

गीत (H)

माता मेरी खोईलन है भाई मेरे बारापाली गउरा में,

सुन लेना मेरे साथी बोली वचन को   

 

कथाकार (C)

उसी बालक राहय तेन रनबन कहे बारापाली गउरा में रेंगत हे, एक महीना के खून ते जानत हे माता खोईलन ह अही समय म महीना ए भैया तेन घुचत चले जात हे, बारापाली गउरा में माता खोईलन हे ते का बोलत हे

कथाकार (H)

और वही बालक इधर-उधर बारापाली गउरा में चल रहा है, एक महीने का खून जान रही है, माता खोईलन को उसी समय महीना रूकता चला जा रहा है, बारापाली गउरा में माता खोईलन क्‍या बोल रही है।

 

कथाकार (C)

अइसे कहे त महीना घुचत चले जात राहय आठ दिन के अठोरिया, पन्‍दरा दिन के पाक तीस दिन महीना रे कोन चढ़े महोबा के रात काहत हे, अईसे प्रकार के भईया ओकर महीना ए तेन घुचत चले जात हे काहय जी  

कथाकार (H)

इस प्रकार से महीना बीतते आठ पन्‍द्रह तीस दिन करते महीने बीतते जा रहें हैं ।

 

गीत (C)

सागर बरोबर रामायन बने हे, दोहा बरोबर चौपाई भैया दोहा बरोबर चौपाई

सागर बरोबर रामायन बने हे, दोहा बरोबर चौपाई भैया दोहा बरोबर चौपाई

साबुन बराबर तोर काया बने हे...

साबुन बराबर तोर काया बने हे गंगा नहा ले भाई, तंय गंगा नहा ले भाई

जहि जब बेरा ए दे रे रेंगना ल रेंगाए ना  

सुन्दर जब ए दे भैया मोर महीना मोर घुचत हे ना

कि एसो किया तो बैरी रे किया खवाय हो....    

गीत (H)

सागर के समान रामायण बना है, दोहा के सामान चौपाई भैया दोहा के सामान चौपाई,

सागर के समान रामायण बना है, दोहा के सामान चौपाई भैया दोहा के सामान चौपाई,

साबुन के सामान तेरा शरीर बना है,  

साबुन के सामान तेरा शरीर बना है गंगा नहा लो भाई,

तुम गंगा नहा लो भाई,

और इसी समय में दिन बीतते चले जा रहें हैं,

सुन्दर जब ये भैया मेरे महीना बितता गया,

और इस तरह समय बीतता गया     

 

कथाकर (C)

अइसे माता खोईलन ल अंठवा के नवां के सईंहा लगे राहय  सुन्‍दर मजा के बारापारी के गउरा म दिन गुजरत चले जाथे   

कथाकार (H)

इस प्रकार माता खोईल आठवां-नौवा महीने की गर्भवती थी और बारापाली के गउरा में खुशहाल जीवन बीतते गया  ।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना मोर राउत देखे ना हरी नाहना ए ना

दसवां के सईंहा ग्‍वालिन मोर बारा बजे के राति ए ना

किया या ए दे गंगा मोर देहे जब उछलय हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना मोर राउत देखे ना हरी नाहना ए ना,

दसवां का छांव ग्‍वालिन मेरी बारह बजे की रात में,

कि ये गंगा मेरी जब प्रसव पीड़ा हो रही है,

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर मजा के बारा बजे के रात कहे त ओकर देह उसले राहय सुन्‍दर कहे बारापाली गउरा म लोरिक जनम लिस अउ जनम लेके भईया सुवईन बलाय बर कइसे चले आत हे।    

कथाकार (H)

रात्रि बारह बजे उनके कोख से बारापाली गउरा में लोरिक जन्‍म लिया और जन्‍म होने के बाद सुवाईन (प्रसव कराने और नवजात शिशु की नाल काटने वाले महिला) बुलाने भेज रहें हैं।

 

गीत (C)

अउ वही जब बेरा ए दे रे सुन्‍दर सुवाईन ना

नाउ ल बुलाके गोई वो नेरवा छिनवावत हे ना

अईसे जब ये दे भैया मोर बारापाली गउरा हो   

गीत (H)

और उसी समय में ये सुन्‍दर सुवाईन दाई है,  

नाई को बुलाकर नाल काट रहें हैं,   

इस तरह जब भैया मेरे बारापाली गउरा में    

 

रागी (C)

बोल दे राधे कृष्‍ण भगवान की - जय

रागी (H)

बोलो राधे कृष्‍ण भगवान की - जय ।

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.