कंठी ठेठवार की प्रस्तुति , भुजबल यादव एवं मालिक राम यादव द्वारा | Kanthi Thetwar Performed by Bhujbal Yadav and Malik Ram Yadav
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कंठी ठेठवार की प्रस्तुति , भुजबल यादव एवं मालिक राम यादव द्वारा | Kanthi Thetwar Performed by Bhujbal Yadav and Malik Ram Yadav

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Published on: 06 February 2019

Bhujbal Yadav

This story tells the tale of the Thetwar (Ahir) community. A  prized  buffalo belonging to Kanthi Thetwar is stuck in the middle of the Kaali Sagar lake. Many animals are sacrifised to release the animal to no avail. Kanthi Thetwar's wife is worried about him and tells his sister Bismat, to feed her brother lunch. Kanthi Thetwar tells his sister to go and fetch him clean water from the middle of the Kaali Sagar lake. As she proceeds further and further into the lake on her brothers bidding, Bismat drowns, but her brother's lost buffallo emerges through her  sacrifise. Bismat transforms into a beautiful lone lotus flower at that spot.

In the meanwhile, Bismat's groom and his family arrive to take her home.  Upon seeing the lotus flower all are moved to claim it and wade into the lake. The lotus flower however, evades all but the groom. Every night the lotus flower transforms into Bismat who diligently finishes all the household chores. Her husband accosts her one night and learns of her true identity. He is told to dip the lotus flower into boiling ghee in order to restore her to her true form. He does so and is united with Bismat. 

Performance of Kanthi Thetwar by Bhujbal Yadav and Malik Ram Yadav

   यहाँ भुजबल यादव, मालिक राम यादव एवं उनकी मण्डली द्वारा बांसगीत शैली में प्रस्तुत कंठी ठेठवार कथागीत  का सार पहले छत्तीसगढ़ी में तदुपरांत हिंदी में दिया गया है। 

                                                                                              

 

 

सारांश              (In Chhattisgarhi, hereafter, C)

एक ठन कुतिया रीहीस भुलिन नाम के वो सगरी के पार म रहाय दुलहिन ल लेगे बर जाथे न जब भुलिन कुतिया ह दुलहन डउका के संगे संग जाथे, उही गांव के कालीसागर म कमल के फूल रथे जेला जम्‍मो बरतिया मन कूद जथे कमल ह काकरो हाथ नी लगे, दुलहा डउका कूदथे ना त कमल के फूल राहय ते ओकर तीर म जथे, त दुलहा डउका कमल के फूल तोड़ के अपन झांपी म रख देथे, अउ घर आय म जब सुत जही तब वोहा पानी भरही गोबर कचरा करही रांध गढ़गे पूरा तैयार करके वोहा फेर खोली म खुसर जथे, उही लड़की जे कमल के फूल बन जाय रथे सब सुतके उठथे त गोबर कचरा ल कोन करे हे, अइसे झाड़ू बाहरी ल कोन करे हे, अतेक झन देरान जेठान अउ ननद मन रईथे जेमन एक दूसर ले पूछत रईथे ओ कथे में नी जानव, अउ कोन रांधिस गड़ीस तेला अइसने करत बहुत दिन बित जाथे, त कोन करथे तेला पकड़े बर कहिके सब जगवारी राखथे, जइसने रात होय सब झन सुत जतिस बहुत अच्‍छा सज धज के लड़की निकले सोला सिंगार गहना पहिन के, तेला कोनो नई देखे ओला देखथे ओकर गोसईया भर, देखिस त ओला हड़काइस ते कोन हरस ? त लड़की कथे मय तोर घरवाली अंव, त दुलहा कथे त मय तोला कईसे म पाहूं त वो लड़की ओला बताथे चउदा कढ़ाही घी ल डबकाबे त डबकते रही त उही म ए कमल के फूल ल डाल देबे, तब मैं सोला सिंगार करे अइसने निकल जहूं तब तंय मोला पाबे, ए बात ल दुलहा अपन पिता जी ल बताथे त ओमन वईसने करथे, चउदा कढ़ाही घी ल डबकाथे अउ ओ कमल के फूल ल उही म डार देथे, त सुन्‍दर गहना गुथा पहिने सोला सिंगार करे ओ कमल के फूल लड़की के रूप म निकलथे जेकर नाव हे बिसमत।         

सारांश (In Hindi, hereafter, H)

एक गांव में सगरी के पार एक कुतिया थी उसका नाम भूलिन था । एक बार गांव में गौना  रस्म के लिए दुल्हन को लिवाने कुछ लोग जा रहे थे।  दुल्हन नहीं मिली, और बारात वैसे ही वापस हो गई । असल में जिस लड़की को लिवाने गए वह तालाब में डूब जाती है,  तो उसी तालाब में बड़ा और सुन्‍दर एक कमल का फूल खिला हुआ था, सब उस कमल को  तोड़ने की होड़ में उस तालाब में कूद पड़ते हैं। लेकिन कमल किसी के हाथ नहीं लगता है सिवाय दूल्‍हे के फिर दूल्‍हे ने कमल के फूल को तोड़कर झांपी में रख लिया, फिर सब लोग अपने गांव लौट आते हैं। इधर दूल्‍हे ने कमल रखा हुआ झांपी अपने कमरे में रख दिया। जब रात होती तो सबके सोने के बाद कमल का फूल सोलह श्रृंगार किए हुए लड़की का रूप धारण कर प्रकट होकर घर के पूरे कामकाज जिसमें चुल्‍हा-चौंका साफ-सफाई, बर्तन मांज-धोकर रसोई बनाकार वापिस कमल बनकर वापिस झांपी के अंदर चली जाती थी। जब सुबह सब सोकर उठते तो आश्‍चर्य से देखते और एक दूसरे से पूछथे कि ये सारे काम किसने किए, कई दिन बितने पर भी किसी को पता नहीं चला कि ये सारे काम कौन कर जाता है ।  एक दिन सबने  मिलकर इस राज को जानने की योजना बनाई कि रात में जागकर पहरा देंगें कि आखिर वह कौन है जो यह काम कर जाते है। जब रात गहराती है तो  अचानक दूल्‍हे की नजर पड़ती है कि एक लड़की सोलह श्रृंगार की हुई सारे काम पूरे करके दूल्‍हे के कमरे की तरफ ही जा रही है । तो अचानक दूल्‍हे ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया और पूछने लगा कि तुम कौन हो ? मैं तुमको कैसे पा सकता हूं ? इतने में लड़की कहती है, मैं तुम्‍हारी घरवाली हूं, घर का काम मैं नहीं करूंगी तो और कौन करेगा। तुम मुझे आसानी से नहीं पा सकोगे मुझे पाने के लिए जब मैं  कमल का रूप में रहूं तो चौदह कढ़ाई उबलते घी में कमल के फूल को  डाल देना तब मैं इसी तरह सोलह श्रृंगार किए वहां से निकल आउंगी । इस तरह  तुम्‍हारा और मेरा मिलन हो जाएगा। ये सारी बातें दूल्‍हे ने अपने पिता को  बताई । और सभी वैसा ही करने लगे  खौलते हुए घी में कमल के फूल को लड़की का पति डाल देता है और जैसे ही कमल का फूल कढ़ाई में गया वहां से सुंदर कपड़ों में सजी हुई सोलह श्रृंगार गहनों से सजी हुई लड़की बाहर आती है, जिसका नाम बिसमत है।

 

गीत (C)

देवता बखानव कईथंव जेन दिन सिरपुर ग

भाई शिव के लगे हे दरबार

देतवा बखानव कईथंव जेन दिन सिरपुर ग

भाई शिव के लगे हे दरबार हो...

गीत (H)

सिरपुर के देवता को सुमिरण करता हूं

भाई जहां शिव का दरबार लगा है

सिरपुर के देवता को सुमिरण करता हूं

भाई जहां शिव का दरबार लगा है

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो जय हो बंसकहार ।

रागी (H)

हरे हरे जय हो जय हो बांसगाथा गायक की।  

 

गीत (C)

जर गे बराही जी नइते जर गे बराही

जर गे बराही जी जर गे पीथमपुर गांव हो

हाथी अउ घोड़वा ल सेरिया ह लीले नईते

लीले बियालिस ठन गांव हो

गीत (H)

जल गया हां जी जल गया

जल गया जल गया पीथमपुर गांव जल गया   

हाथी और घोड़े को शेर निगल गया  

बयालिस गांव को निगल गया  

 

रागी (C)

राम हरि राम हरि जय हो जय हो बंसकहार हरे हरे हरे।     

रागी (H)

राम हरि राम हरि जय हो जय हो बांसगाथा गायक  हरे हरे हरे।     

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये भईया मोर तरी हरी नाहा ना ए ना

ये तरी हरी नाना ये भईया मोर तरी हरी नाहा ना ए ना

बारह पाली गउरा ए गंगा मोर कंठी ठेठवार ह ना

सुन्‍दर नगर म ए गंगा मोर काली ए डाहर ए हो

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये भईया मोर तरी हरी नाहा ना ए ना

ये तरी हरी नाना ये भईया मोर तरी हरी नाहा ना ए ना

बारह पाली गउरा है गंगा मेरे कंठी ठेठवार जो है

सुन्‍दर नगर में है गंगा मेरे काली सागर है  

 

रागी (C)

हरे हरे हरे जय हो।

रागी (H)

हरे हरे हरे जय हो।  

 

गीत (C)

जबना न ए बेरा ए दे बदना ल बदत हे

दावन करा दावन ए बैरी मोर बोकरा ल बदत हे मोर

दंवरी करा दंवरी अहीर जेन ठन बदना ए मोर

बोरा रे बोरा नरियर बैरी मोर कंठी ठेठवार हो...

गीत (H)

जब एक समय की बात है बलि देकर मन्‍नत मांग रहें हैं

देव स्‍थल में बकरे की बलि देने कह का वादा कर रहें है

अहीर कई बकरे की बलि देकर मन्‍नत मांग रहें हैं

बोरे भर-भर कर नारियल चढ़ाने कंठी ठेठवार तैयार है  

   

कथाकार (C)

आज कंठी ठेठवार रहे तेन हा दाई बिसकर्मा ल काली डहन लेगत हे बिसकर्मा हे तेहा काली डहन जाय ते डूबे राहय, नी निकले निकाले ले भईंस निकले नहीं बावन बोकरा बदे रीहीस, दउरी के दउरी कुकरी बदीस, अउ बोरा बोरा नारियल बद डरिस फेर काली डहर के भईंस निकलत नई हे फेर का करत हे तेला बंसकहार बताही

कथाकार (H)

आज कंठी ठेठवार जो है वो ‘दाई बिसकर्मा’ (भैंस का नाम) को काली सागर की ले जा रहा है, बिसकर्मा काली सागर में डूबी हुई भैंस को  ढूंढने-निकालने का प्रयास कर रहे थे, बावन बकरे कई कई मुर्गी की बलि चढ़ाने की मन्‍नत करने पर भैंस नहीं निकल रही थी, आगे क्‍या हो रहा है उसे बांसगाथा गायक बता रहें हैं।    

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो।

रागी (H)

हरे हरे जय हो।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये भईया रे तरी हरी नाहाना ए ना

बदना ए बदेंव बैरी मोर भईंसी नईतो निकलत हे ना

जेन दिन धन ए अहिरिन बोलना जब लागे हो...

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये भईया रे तरी हरी नाहाना ए ना

मन्‍नत मांगने पर भी भैंस नहीं निकल रहें हैं

एक दिन अहीर की पत्‍नी बोलने लगी हो...

 

 

रागी (C)

सच हे।

रागी (H)

सत्‍य है। 

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर मजा के माता देवन्‍तीन राहय तेहा अत्‍तीस आलन बत्‍तीस भोजन ला धर के कहे त काली डहर के पार म पहुंचे राहय कहिस स्‍वामी नाथ खाना खा लव भई कुछ तो खा लव, भईंस तो निकलत नईए अतना बदना बद डरत हव कुछ तो कहे खाना खा लेवव अईसन माता देवन्‍तीन हे तेन ह कंठी ठेठवार ल काली डहन किनारे म समझावत हे।  

कथाकार (H)

आज माता देवन्‍तीन जो थी वो कई प्रकार के स्‍वादिष्‍ट भोजन लिए काली सागर के पार में पहुंच चुकी है, और अपने पति से कह रही है नाथ आप खाना खा लीजिए, इतनी मन्‍नत कर रहें हैं फिर भैंस तो निकल नहीं रही है, आप खाना खा लीजिए ऐसा माता देवन्‍तीन अपने पति कंठी ठेठवार से काली के किनारे समझा रही है। 

 

रागी (C)

समझावत हे जय हो जय जय हो बंसकहार। 

रागी (H)

समझा रही है, जय हो जय हो बांसगाथा गायक  ।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये राउत तरी हरी नाहाना ए ना

कैसा देवन्‍तीन भाई मोर काली डहन में

ए दे बेटी ल कईसन गोई मोर डहन म भेजव हो...

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये राउत तरी हरी नाहाना ए ना

कैसे देवन्‍तीन को भाई मेरे काली सागर में   

ये बेटी को काली सागर में भेज रहें हैं 

 

रागी (C)

हरे हरे। 

रागी (H)

हरे हरे।

 

कथाकार (C)

आज माता देवन्‍तीन हे तेहा बिसमत ल काहत हे कहे त ननद आज तोर पारी हे, जा तो भात धर के तोर भईया बर मेहा अन्‍ते जावत हंव, भूख म करला जही तेकर ले तुमने जलदी जावव, अउ बिसमत ल कहे तेन अत्‍तीस आलन बत्‍तीस भोजन धर के आज कइसे भेजत हे

कथाकार (H)

देवन्तिन अपने ननद बिसमत से कह रही है आज तुम्हारी बारी है जाओ और अपने भैया को खाना खिलाओ मैं कहीं और जा रही हूं, वो भूख से परेशान हो रहे होंगे जल्दी जाओ,  इधर अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन लेकर बिसमत काली   सागर की ओर जा रही है।

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो जय हो।

रागी (H)

हरे हरे जय हो जय हो ।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये राम राम तरी हरी नाहाना ए ना

सोला रे सिंगारे ए मोर कईसे पहिने हे मोर गौना ए ना

सोला रे सिंगारे भाई मोर कसे हे गहना हो.... 

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये राम राम तरी हरी नाहाना ए ना

सोलह रे श्रृंगार कैसे पहनकर गौना के वेशभूषा में

सोलह श्रृंगार कर गहने पहनकर हो.... 

 

रागी (C)

हरे हरे वइसनेच हे।

रागी (H)

हरे हरे वैसा ही है।

 

कथाकार (C)

आज सोला सिंगार गहना कसे हे अत्‍तीस आलन बत्‍तीस भोजन धरे हे अउ धर के सुन्‍दर मजा के हे त नदी किनारे पहुंचे रे भाई, वही समय में पहुंच के फेर का बोलत हे ? 

कथाकार (H)

आज बिसमत सुन्‍दर जोड़ा पहने सोलह श्रृंगार की हुई अनेक प्रकार के स्‍वादिष्‍ट भोजन लेकर सागर किनारे पहुंच कर क्‍या बोल रही है ?

 

रागी (C)

का बोलत हे ? जय हो जय हो हरे हरे।

रागी (H)

क्‍या बोल रही है ? जय हो जय हो हरे हरे।  

 

गीत (C)

खाना ल खा लेवा भईया तुमन खाना ल खा लव भाई

तुमन खाना ल खा लेव ना

अईसे वो भैया मारे बिसमत बोलन लागे ना

खाना ल खा लव भैया तुमन खाना ल लव हो.....

गीत (H)

खाना को खा लो भैया तुम खाना को खा लो भाई

तुम खाना को खा लो ना

इस प्रकार वो भैया को बिसमत बोलने लगी

खाना को खा लो भैया तुम खाना को खा लो भाई हो...

 

कथाकार (C)

आज सुन्‍दर मजा के अत्‍तीस आलन बत्‍तीस भोजन धर के बिसमत राहय तेन ह सुन्दर कहे त काली डहन किनारे म पहुंच के कहिथे, भैया खाना खा लव रे भाई, अइसन प्रकार के कहे त सुन्दर खाना निकले अत्‍तीस आलन बत्‍तीस भोजन निकाल के सुन्‍दर ओला खाना बर बईठार के कहे बहिनी तेंहा जा पानी लानबे, अइसे पानी बर कइसे भेजत हे।    

कथाकार (H)

आज बिसमत अनेक प्रकार के स्‍वादिष्‍ट भोजन लेकर सागर किनारे   पहुंच कर कहती है भैया खाना खा लो और इस प्रकार से सुन्‍दर ढंग से वह भोजन परोसती है उसके भैया बैठे और भोजन करने लगे और कहा बहन तुम जाओ पानी लेकर आओ इस तरह वह पानी लाने के लिए भेजता है।

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो बंसकहार।

रागी (H)

हरे हरे जय हो बांसगाथा गायक  ।

 

गीत (C)

अरे वही रे आवय बेरा मोला मोर पानी बर कैना जावन लागे ना

माड़ी भर जाके बिसमत मोर पानी आनत हे ना 

महकत हे बहिनी तंय दूरिहा ले लानव हो.... 

गीत (H)

अरे उसी समय की बात है कन्‍या पानी लाने के लिए जा रही है

घुटने तक जाके बिसमत पानी लेकर आ रही   

दुर्गंध है बहन तुम दूर से लेकर आओ

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर पानी बर गिस माड़ी भर के पानी ल धर के गीस हे त भईया कहिथे बहिनी ये पानी ह अलकरहा महकत हे थोकन गड्ढा ले जा लानबे कनिहा भर म जाके गिस लानिस ले भैया कइथे, त बहिनी ये त लदयईन लागत हे थोकन गउ गड्ढा ले लानबे जा अईसे ओहा गड्ढा भर कईसे भेजत हे।  

कथाकार (H)

बिसमत घुटने भर पानी में जाकर पानी लाती है और अपने भैया को देती है उसका भैया कहता है इस पानी से बदबू आ रही है थोड़ी और दूर गड्ढे से पानी ले आओ, तो वह कमर तक पानी में जाती है फिर उसके भैया कहते है ये कीचड़ से भरा मैला दिख रहा है थोड़ी और दूर से ले आओ।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये राउत मोर तरी हरी नाहा ना ए ना

घट भर झन जाबे दीदी मोर पेट भर लाबे ना

सुन्‍दर जब पानी जब जेने भर लाना हो....  

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये राउत मोर तरी हरी नाहा ना ए ना

घुटने तक नहीं नहीं दीदी पेट भर जाकर लाना ना   

सुन्‍दर जब जाकर वह पानी लाने गई 

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर छाती भर पानी म जाके लानिस त बहिनी ये त काई-काई लागत हे कथे।

कथाकार (H)

वह सागर में सीने भर तक अंदर जाकर पानी लेकर आती है, तो उसका भाई कहता है कि बहन इसका तो स्‍वाद काई जैसा लग रहा है।

 

रागी (C)

लागत हे कथे।

रागी (H)

लग रहा है कह रहा है।

 

कथाकार (C)

जब माड़ी भर पानी के लानेव तेला महकत हे कहे, त कनिहा भर में गेंव तेला लदि्दयाइन लागत केहे हस तब अउ अतका दूरीहा ले लाने हंव तेला काई काई लागत हे काहत हस, अब ये दरी कउहा मुहू मत कर जांथव तहां ले लानहूं अइसे कहिके लड़की राहय ते सुन्‍दर मजा के बिसमत हे तेहा मूड़ भर पानी म जात हे।   

कथाकार (H)

फिर वह छाती तक पानी में जाती है और पानी लेकर आती है उसके भैया कहते हैं इसमें तो काई है, तब कहती है भैया जब मैं घुटने भर गड्ढे  से पानी लेकर आई तो  आपने कहा की बदबू आती है, कमर तक गड्ढे से पानी लेकर आई तो कीचड़ जैसा लग रहा है कहा अब और दूर गई तो काई जैसा स्‍वाद लग रहा है कह रहे हो चलो ठीक है,  अब मुंह मत बनाओ मैं सिर तक गड्ढे तक जाकर पानी लेकर आती हूं ऐसा कहकर वह और सिर तक गड्ढे  में चली गई।

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो बन्सकहार ।

रागी (H)

हरे हरे जय हो बांसगाथा गायक ।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये राउत मोर तरी हरी नाहाना ए ना

बिसमत मोर कईसे ये बूड़े ना

कइसे ये गंगा मोर खल खल ले निकले ना

भाखे ल लेले भाई मोर काली डहर हो.... 

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये राउत मोर तरी हरी नाहाना ए ना

बिसमत मेरे कैसे ये डूबने लगी

कैसे ये गंगा मेरे बाहर निकलने लगी ना

बलि ले ली भाई मेरे काली सागर ने

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो बंसकहार।

रागी (H)

हरे हरे जय हो बांसगाथा गायक।

 

कथाकार (C)

आज मुहूं उगला म गीस ओती भक ले लीस भर भर के कहे त काली डहर ले भईंस निकलगे।

कथाकार (H)

बिसमत सिर तक पानी में चली गई और जैसे ही अंदर गई वह डूब गई और काली सागर से भैंस निकलकर बाहर आ गई।  

 

रागी (C)

निकल गे।

रागी (H)

निकल गई।

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर निकलगे कहिथे जब लहुट के देखथे त उहां कांहीच नई हे।

कथाकार (H)

भैंस के निकल आने पर उसके भाई ने पलट कर देखा तो वहां कोई नहीं था।  

 

रागी (C)

कांही नईए भैया।

रागी (H)

कुछ भी नहीं है भैया।

 

कथाकार (C)

बहिनी हे ते त अंदर चल दिस, सुन्‍दर भईंस ल धरिस कंठी ठेठवार राहय तेहा भैया, ते अपन घर गउरा के रस्‍ता धरे हे अउ ऐती केहे त बिसमत रहाय तेन हा काली डहर सुन्‍दर मजा के उंहा डूबे हे काहत हे।

कथाकार (H)

भैया कहते हैं बहन तो अंदर चली गई और वह भैंस को लेकर अपने घर गउरा के रास्ते चला गया उसकी बहन बिसमत सागर में डूब गई।

 

रागी (C)

जय हो हरे हरे सच हे सच हे।

रागी (H)

जय हो हरे हरे सच है सच है।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये गंगा मोर तरी हरी नाहाना ए ना

ठांसत हे बराती मोर गंगा मोर देश रे पनागर ले ना 

यही जब रद्दा म राउत ग काली मोर डाहरे हो....

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये गंगा मोर तरी हरी नाहाना ए ना

ठंस रहें हैं बाराती मेरे गंगा मेरे देश रे पनागर में ना 

और इसी रास्‍ते में राउत काली सागर में

 

कथाकार (C)

अउ सुन्‍दर मजा के देश पनागर में आज सुन्‍दर बराती ठांसत हावे अउ बराती ठांस के भैया आदतन तैयार होय हे, अउ एती केहे काली डहर में सुन्‍दर वो कहे त कमल फूल के सुन्‍दर डूहरू धर के निकल गेहे । 

कथाकार (H)

इधर पनागर देश में आज बारात आई है लोग नाचते झूमते तैयार और इधर बिसमत काली में डूबी हुई है और घर पर बारात आ रही है बिसमत पानी में डूबकर सुंदर कमल के फूल में बदल चुकी है

 

रागी (C)

निकल गेहे हरे हरे ।

रागी (H)

निकल गई, हरे हरे।

 

गीत (C)

अरे वही आवय रे मोर गंगा कमल कर फूले हे

राम राम मोर डूहरू धरे हे ना

कैसा ऐ दे मोर भाई बराती आवय ना

सुन्‍दर फूले मोर कमल कर फूले हो.... 

गीत (H)

वहीं पर आ रहें हैं मेरे गंगा कमल फूल के पास

राम राम मेरे  कली निकली हुई है ना

कैसे ये मेरे भाई बाराती आने लगी ना  

सुन्‍दर फूल मेरे कमल के फूले पास

 

कथाकार (C)

बालकपन म सुवा पोसेंव भाई अउ राखेंव हिरदय ले लगाय

उड़ गे सुवा महल म बईठ गे त पिंजरा म आगी लगाय

काहत हे... 

कथाकार (H)

बालपन में सीने से लगाकार तोता पाल रखा था  

उड़कर तोता महल में बैठ गया तो पिंजरे को आग लगा दी

 

रागी (C)

जय हो जय हो।

रागी (H)

जय हो जय हो।

 

कथाकार (C)

बराती रहे तेन ह गंगा किनारे म खड़े होगे, काली डहर के अतका बड़ सागर में कहीं कहे त एकेच ठन कमल के फूल निकले हे गजब सुन्‍दर हे, ये फूल ह जेला टोरे बर अपन अपन ले कहे त कमल के फूल ल टोरे बर भड़भड़ा के काली डहर म कूदत हे, फेर आगे का होवत हे बांसकी बतात हे।  

कथाकार (H)

इधर जो बाराती थे वह गंगा के किनारे आकर खड़े हुए हैं और देख रहे हैं कि काली जो इतना बड़ा सागर है उसमें सिर्फ एक ही कमल का फूल है यह देखकर सभी आश्चर्य से उसे देखने जा रहे हैं सारे बाराती उस अद्भुत कमल को तोड़ने की चाह में एक के बाद एक छलांग लगा रहे हैं।

 

रागी (C)

जय हो जय हो।          

रागी (H)

जय हो जय हो।

 

गीत (C)

अरे तरी हरी नाना ये गंगा तरी हरी नाहाना

ए राउत मोर एके हे फूल ए ना

कमल का फूल ए मोर भाई काली डहर ए ना

देखे रे बराती मोर बैरी बड़ सुन्‍दर हे हो.... 

गीत (H)

अरे तरी हरी नाना ये गंगा तरी हरी नाहाना

ए राउत मेरे एक ही फूल है ना

कमल का फूल है मेरे भाई काली सागर है ना

देख रहें बराती मेरे बैरी बहुत फूल सुन्‍दर है

 

कथाकर (C)

कमल के फूल तीर म राहय ते तीर के अउ दूरीहा जावय ओतका अमरे बराती काकरो तीर नई अमरावय, तहान वो फूल ल देख के दुलहा डउका राहय तेन ह सुन्‍दर मजा के कईसे जझरंग ले कूदत हे।

कथाकार (H)

जब नदी में कमल के फूल को तोड़ने की इच्छा से पानी में कूद गए जैसे ही कमल को पकड़ते कमल दूर होता जाता है हर कोई प्रयास करके थक चुका था और असफल ही रहा, फिर दुल्‍हे न छलांग लगा दी।  

 

रागी (C)

काय काहत हे बांसकी जय हो जय हो हरे हरे।

रागी (H)

क्‍या कह रहें हैं बांसकी, जय जय हो हरे हरे।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये राउत मोर तरी हरी नाहाना

गंगा ए दे मोर काली डहर ए ना

सुन्‍दर ए दे भाई मोर कूदन लागे ना

तीरे के फूले बैरी मोर दूरीहा जावय हो.... 

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये राउत मोर तरी हरी नाहाना

गंगा है यह मेरे काली सागर है ना

सुन्‍दर है भाई मेरे वो कूदने लगे ना

पास की फूल बैरी मेरे दूर जाने लगी हो.... 

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर काली डहर मे दुलहा डउका कूद दिस, दूरीहा म राहय फूल ह ते दुलहा के तीर म आ गिस सुन्‍दर तीर म जब आईस कमल के फूल ह त ओला टोरीस अउ निकल के सुन्‍दर अपन झांपी म ओला डार दिस 

कथाकार (H)

जब दूल्हे ने छलांग लगाई तो दूर कमल फूल दुल्‍हे के करीब आ गया, और दुल्‍हे ने उसे तोड़ लिया और अपनी झांपी में रख लिया।  

 

रागी (C)

डार दिस।

रागी (H)

डाल दिया।

 

कथाकार (C)

अउ झपोली म डार के कहे त चलो रे बराती अइसे करके भैया सुन्‍दर कहे त आज कईसे मजा के बारा पाली गउरा करा पधारे हे।

कथाकार (H)

और दुल्‍हे ने कमल को झांपी में रख दिया और बारातियों से कहा कि चलो अब चलते हैं और सारे बाराती बारापाली गौरा के पास पधारें हैं।

 

रागी (C)

जय हो हरे हरे।

रागी (H)

जय हो हरे हरे।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये राम राम तरी हरी नाहाना  ए ना

जही ए समय म गंगा मोर दुलहा कूदन लागे ना

काली डहर मोर राम राम रे कूदन लागे हो.... 

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये राम राम तरी हरी नाहाना  ए ना

उसी समय में गंगा मेरे दुल्‍हा कूदने लगा  

काली सागर में मेरे राम राम रे कूदने लगे हो.... 

 

कथाकर (C)

अरसी फूले रिगबिग रिगबिग भाई, मूनगा फूले सफेद

बालक पन में केंवरा बदेव, जवानी म होगे भेंट

काहथे

कथाकार (H)

(अलसी बढि़या लहलहा रही है बचपने में केंवरा बधा (मित्र बनाया) था और जाकर जवानी में मिला)

 

रागी (C)

सच हे सच हे बंसकहार जय हो जय हो। 

रागी (H)

सच है सच है बांसगाथा गायक जय हो जय हो  

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये गंगा मोर तरी हरी नाहाना ए ना

यही बेरा म राम राम ठासे बराती ए मोर ना

अरे बारा पाली गउरा म गंगा सुन्‍दर मोला लागे हो...

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये गंगा मोर तरी हरी नाहाना ए ना

इसी समय में राम राम बाराती भी आने लगे

अरे बारा पाली गउरा में गंगा सुन्‍दर मुझे लगने लगा...

 

कथाकार (C)

हे सच कहे भाई चंदा जावय सूरज जावय अउ जावय कहे पानी

अउ कहत हे कबीर सुन भई साधु नाम रही तोर निसानी 

कथाकार (H)

सच कहा चंदा जाए भैया सूरज जाए और पानी भी जाएगा

कबीर कहते सुनो भाई साधु केवल नाम ही रह जाएगा

 

रागी (C)

निसानी, जय हो जय हो।

रागी (H)

निशानी, जय हो जय हो।

 

गीत (C)

काला बतावंव मय गंगा मोर मय काला समझावंव कुटुम

मय काला बतावंव ना मुड़ीनवागे ये दे य गंगा मोर ये दे होगे हे ना

आपस लहुटावव कुटुम तुंहर ये दे बराती ल हो

गीत (H)

क्‍या बताऊं मैं गंगा मेरे, मैं क्‍या समझाऊंगा कुटुम्‍ब  

मैं क्‍या बताऊं मैं शीश झुक गया गंगा मेरे अब ऐसा तो हो गया  वापस लौटा दो जाओ मेरे  कुटुम्‍ब, तुम्‍हारे इस बाराती को  

 

रागी (C)

जय हो जय हो।

रागी (H)

जय हो जय हो।

 

कथाकार (C)

आज कंठी राउत हे तेन कहिथे, का बतावंव का तोला कहिहंव का तोला समझावंव मेहा, आज मोर लड़की राहय तेन ह काली डहर में डूब गिस  बरात धर के आय हस तंय कुटुम तंय वापस चले जा अइसे करके भईया सुन्‍दर बराती ते वापस चले आगे, कंठी राउत रहे तेन मुड़ी ल गढ़ियाय आज कहे त भईया बारा पाली गउरा म बईठे हे।   

कथाकार (H)

कंठी राउत बारातियों से कह रहा है मैं क्या बताऊं कैसे बताऊं कैसे समझाऊं मैं आज मेरी बहन काली नदी में डूब गई है और आप कुटुम्‍ब बारात लेकर आए हैं आप बारात वापस ले जाइए इस तरह बारात वापस चली गई और कंठी  राउत सिर झुकाए बारापाली गौरा में बैठा है।   

 

रागी (C)

बईठे हे सच हे सच हे बंसकहार।

रागी (H)

बैठा है सच है सच है बांसगाथा गायक ।

 

गीत (C)

यही बेरा जब येदे रे बोलन भला लागे ना

सुन्‍दर नगर गंगा मोर रेंगन ल लागे ना

कैसा बराती भाई देश रे पनागर हो.....

गीत (H)

इसी समय में जब यह बोलने में भला लगे ना  

सुन्‍दर नगर गंगा मेरे सब चलने लगे ना

कैसे बराती भाई देश रे पनागर में हो.....

 

कथाकार (C)

आज देश पनागर में पहुंच के बराती ह कहे भक लेलीस काली डहर गे रेहेन बराती कहे वापस लहुट के आगे, अईसे कहिके कमल के फूल राहय तेहा झपोली म धराय राहय तेला दुलहा डउका भीतरी म घरे म लेग गे, सुन्‍दर कहे टांगे राहय अब काय करे भईया आधी रात कमल जब होईस वही समय म का होथे जी।

कथाकार (H)

इधर बाराती अपने घर देश पनागर में पहुंच गई है और बता रहें है कि काली तालाब ने लड़की की बलि ले ली है इसलिए बारात वापस लौट आई और जो कमल का फूल था वह झांपी में रखा हुआ है जिसे लोग दूल्हे के कमरे में रख देते हैं आधी रात जब सब सो गए तो, उसके बाद क्‍या होता है जी।

 

रागी (C)

का होवत हे बांसकी बतावत हे, हरे हरे ।

रागी (H)

क्‍या होता है बांसकी बता रहा है हरे हरे।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना गंगा ए ना

आधी रात के कमल ए गंगा कैसे झपोली ले ना

वही जब फूले रे भाई मोर कमल कर फूल ए हो....   

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना गंगा ए ना

आधी रात के कमल ए गंगा कैसा झपोली ले ना

वही जब फूले रे भाई मोर कमल कर फूल ए हो.... 

 

कथाकार (C)

आज कमल के फूल हे जउन तेहा झपोली ले निकलके आधी रात के समय जब सब रात गढ़ाय सूते राहय ते सन्‍नाय राहय वही समय सुन्‍दर कहे त सुन्‍दर सोला सिंगार गहना कसे बने झम्‍मक झम्‍मक रेंगत हे सुन्‍दर कहे त गोबर कचना पानी कांजी रंधना कूटना सब जतन तईयार करके सुन्‍दर जाके फेर झपोली म समागे।

कथाकार (H)

कमल का फूल लड़की के रूप में बदल गया और सुंदर वस्त्र पहने सोलह श्रृंगार किए लड़की रात के सन्नाटे में  आंगन झाड़ बुहार कर,  लीपकर, पानी बर्तन कर रसोई का सुंदर भोजन पकाती है और सुबह होने के पहले ही लड़की  वापस में झांपी में चली जाती है ।

 

रागी (C)

समागे।

रागी (H)

समा गई।

 

कथाकार (C)

अब समाके भैया अईसे रंधना गढ़ना पकाय हे गोबर कचरा पानी कांजी सब होगे हे ऐती होत बिहनिया सब उठथे अपन अपन ले फेर का करत हे।

कथाकार (H)

वह तो समा गई और इधर खाना बन चुका है गोबर कचरे की सफाई हो चुकी है, सारा काम हो चुका है और इधर सब सुबह उठते हैं, फिर  आगे क्‍या करते है।

 

रागी (C)

का करत हे बंसकहार ? जय हो जय हो हरे हरे। 

रागी (H)

क्‍या कर रहें हैं बांसगाथा गायक ? जय हो जय हो हरे हरे।

 

गीत (C)

वही जब बेरा ए दे सब बोलन लागत हे रे

ये दे जब गोई वो मोर गोबर ए दे कचरा ए ना 

पानी ए दे कांजी जेमा ये दे रे बड़ा जल्‍दी करे हव ना

अउ अगी घलो ए दे गोई कोन झन बारे हव हो.... 

गीत (H)

और उसी सब बोल रहे हैं

सब काम गोबर कचरे की सफाई किसने किया   

इतनी जल्‍दी पानी किसने भर दिया  

और बहन आग भी किसने जलाई है    

 

रागी (C)

जय हो।

रागी (H)

जय हो।

 

कथाकार (C)

अईसे कंठी ठेठवार हे तेन ह सब ल ननद भौजाई देरान जेठान कहे त सब ल पूछत हे घर के मन ल आज कहे त कोन करे हे आज गोबर कचरा पानी कांजी, चुलहा घलो भात साग घलो चुर गेहे त कोन रांधे हव, ओ कथे मय नई जानव, ओ कथे मय नई जानव, कोनो के कोनो नई जानव त फेंर रांधिस गढ़िस कोन ह, नई जानन बाबू जी हमन, अपन अपन ले नई जानन कहिस, त हमर घर म रात भर में आईस त आईस कोन ?    

कथाकार (H)

कंठी ठेठवार जो है वह घर की सारी औरतों को पूछ रहा है और वे सब भी एक दूसरे से पूछ-पूछ कर हैरान हो रही है ननंद भोजाई देवरानी-जेठानी आपस में चर्चा कर रही है, एक पूछ कहती है ये सारे काम किसने किए दूसरी कहती है  मैंने नहीं किया,  मैंने नहीं किया ससुर जी भी कह रहें हैं ये गोबर कचरा साफ हो गया है पानी भर चुका है चुल्‍हे पर खाना पक चुका है और किसी ने बनाया नहीं फिर किसने ये सारे काम किए हैं औरतें कह रही है बाबू जी हम नहीं जानते, आखिर हमारे घर में आया तो आया कौन हैं ? 

 

रागी (C)

हव ग।

रागी (H)

हां जी।

 

कथाकार (C)

अईसे प्रकार के भईया फेर सुन्‍दर उहां का होत हे।

कथाकार (H)

इस प्रकार भैया वहां क्‍या होता है ?

 

रागी (C)

का होत हे बंसकहार बताही, जय हो जय हो।

रागी (H)

क्‍या हो रहा है बांसगाथा गायक बता रहा है, जय हो जय हो।

 

गीत (C)

अरे एक दिन गुजरे दुई दिन गुजरे भाई मोर दुई दिन गुजरे ना

अउ तीसर करा बोली बैरी रे जेला जब देखव ना 

अइसे जब ये दे गंगा मोर देखन भला लागे हो...

गीत (H)

एक दिन गुजर गए दूसरे दिन गुजर गए भाई मेरे दूसरे दिन गुजर गए 

और तीसरे दिन भी बैरी देख लिए ना   

ऐसे जब ये दे गंगा मेरे देखने भला लग रहा है...

 

कथाकार (C)

अईसे करत एक दिन गुजरगे दू दिन गुजरगे तीन दिन गुजरगे, अइसे करत कई दिन गुजरगे, त करथे त करथे कोन ये बुता काम ल अईसे करके नहीं त जागे ल लगही पहरा दे बर लगही कहे त थोकन जाके सुते हन काहव अउ जाग के देखत राहव कोन आत हे कोन नी आय। 

कथाकार (H)

और हर रोज इसी तरह से होता आ रहा था एक दिन गुजरे दो  दिन गुजरे करते-करते कई दिन गुजर गए फिर इन्होंने सोचा कि कौन है जो यह सारे काम करता है आखिर कौन बाहर से आकर सारे काम करके चला जाता है मिलकर सोचा कि रात को जागकर, छुपकर देखेंगे कि कौन है जो यह सब काम करता है।  

 

रागी (C)

पता चल जाही। 

रागी (H)

पता चल जाएगा।

 

कथाकार (C)

अईसे प्रकार के भैया सुन्‍दर मजा के सब झन ल चेताय दिस अउ दुलहा डउका राहय तेहा सचेती राहय, रहा त मोरे खोली ले निकलथे कईथे काबर लिपे राहय ते पांव ह मोरे खोली डहन खुसरे राहय चिनहा ह दिखय त उही समय में का कहाथे ? 

कथाकार (H)

इस प्रकार से सभी को चेताया गया था इधर दूल्हा भी सचेत था उसने  लोगों से सुना था कि पैरों के निशान उसके ही कमरे पर जाकर खत्म होते हैं तो वह सोच रहा था कि आखिर कौन है जो मेरे ही कमरे से निकलकर सारे काम कर कर चला जाता है।

 

रागी (C)

का कहाथे बंसकहार ?

रागी (H)

क्‍या कह रहा है बांसगाथा गायक।

 

गीत (C)

मन मन गुनय गंगा मोर दिल म बिचारे ना

जही दिन ए दे जब दुलहा देखन लागे हो

गीत (H)

मन मन गुनने लगी, दिल में विचार करने लगा

उसी दिन यही जब दुल्‍हा  देखने लगी हो

 

कथाकार (C)

सुते हे कहिके देखत राहय ग सुन्‍दर कमल के फूल हे तेहा झपोली ले निकलिस अउ निकल के सुन्‍दर सोला सिगार गहना कसिस अउ गहना ल कस के गोबर पानी रंधना कूटना घर बटकी जतका कहे त घर के जम्‍मो बुता राहय ततका ल करके तैयार होके ओ झपोली डहर सुन्‍दर मजा के चलत हे काहत हे।    

कथाकार (H)

सब सोए हुए ऐसा जानकार कमल का फूल झांपी से निकलकर सोलह श्रृंगार किए गहनों से सजी लड़की के रूप में आकर गोबर कचरा पानी बर्तन मांज धोकर भोजन तैयार कर घर के सारे काम करके झांपी की ओर जाने लगी।   

 

रागी (C)

चलत हे, जय हो जय हो बंसकहार। 

रागी (H)

जा रही है, जय हो जय हो बांसगाथा गायक। 

 

गीत (C)

वही जब बेरी गंगा मोर देखन लागय देखन लागय ना

दउड़ करा भैया मोर मड़वा ल धरन लागे ना

तही जघा ए दे गोई ओ कोन झन आए वो 

गीत (H)

वही जब समय गंगा मेरे देखने लगे देखने लगे ना

दौड़कर भैया मेरे मंडप को पकड़ने लगे ना

उसी जगह में और कौन आया है   

 

कथाकार (C)

कोन अस तेहा किहिस त दउड़ के मड़वा ल धरे कोन अस तंय हा जलदी बता कहिथे त कथे मिही त तोर घरवाली अंव, जलदी बता कोन अस तंय हा, अउ कोन करही घर के बुता ल मिही हर आंव तोर घरवाली, त दुलहा कहिथे तोला कईसे मय पाहूं तंय मोला अईसे म नी पावस तंय अभी छोड़ मोला, चौदह कढ़ाही घी ल डबकाबे अउ डबकत रही ना त उही में जब मय कमल के फूल के रूप म रहूं त वो फूल ल डबकत घी में डाल देबे तभे तंय मोला पा सकत हस अइसे प्रकार के लड़की ह दुलहा डउका ल सुन्‍दर बोलिस हे ते आगे का बतावत हे।   

कथाकार (H)

और जैसे ही वह सारे काम खत्म करके वापस कमरे की ओर जाने लगी ही थी  कि  अचानक दूल्हे ने उसे पकड़ लिया और पूछने लगा तू कौन है ? जल्दी बता, लड़की कहने लगी मैं तो तुम्हारी घर वाली हूं और दूसरा कौन करेगा तुम्हारे घर का काम तो लड़का कैसा है फिर मैं तुम्हें कैसे पा सकता हूं ? तो लड़की कहती है ऐसे तो नहीं पा सकते अभी मुझे छोड़ो चौदह कढ़ाई घी लेकर उसे खौलाना और उसके खौलते हुए में घी में जब मैं कमल के फूल रूप में रहूं तब कमल को तुम उस में डाल देना तभी तो मुझे पा सकोगे नहीं तो नहीं पा सकते।

 

रागी (C)

चल बंसकहार, हरे हरे।

रागी (H)

चलो बांसगाथा गायक हरे हरे।

 

गीत (C)

उही जब बेरा म मोला बोलन भला लागे ना

सुन लेबे ददा मोर बोली अउ बचन ल ना

अउ कंठी जब राउत ल बताए देवे हो.... 

गीत (H)

उस समय जब मुझे बोलने में भला लगे  

सुन लो दादा मेरे बोली और वचन को  

और कंठी राउत तब बताने लगे    

 

कथाकार (C)

आज दुलहा डउका ह कंठी राउत ल बतावत हे कहे पिता जी ए घर के जतका बुता करत रीहीस हे वो झपोली के कमल फूल ह रात के लड़की के रूप धरे अउ करत रीहीस हे त कहे तोला कईसे म मिलही वो कथे चौदह कढ़ाही के घी ल डबकाबे अउ डबकत घी में फूल ल डारबे तब कहे तंय मोला पाबे नई त नी पावस, अइसे प्रकार के बताय हे ओकर पिताजी कंठी राउत राहय तेन ह सुन्‍दर कहे त कईसे डबकात हे।   

कथाकार (H)

और इधर दुल्‍हा सारी घटना अपने पिता को बता रहा है कि ये घर के सारे काम रात में झांपी से निकलकर कमल का फूल लड़की का रूप धारण कर जाती है उसके पिता ने कहा तब वह तुझे कैसे मिलेगी आगे वह कहता है कि चौदह कढ़ाही घी जब खौलने लगेगा तब उस कमल को खैलते घी में डाल देना इस प्रकार तुम मुझे पा सकोगे ऐसा उसने  कहा है, पिता कंठी राउत ने कहा हां हम वैसा ही करेंगे, और घी खौला रहें हैं।

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो। 

रागी (H)

हरे हरे जय हो।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना गंगा ए ना

कमल कर फूल ल बालक धरी करी ना

भए हे तैयारे देवता मोर भए हे तैयारे हो... 

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना गंगा ए ना

कमल के फूल को बालक हाथ में पकड़े हैं  

पूरी तरह तैयारी में देवता तैयारी में है   

 

कथाकार (C)

अउ डबकत राहय घी ह वही समय में कमल के फूल ल झपोली के ल निकाल के सुन्‍दर कहे त ओकर पति ह ओ कढ़ाही म डालिस त सुन्‍दर सोला सिंगार गहना कसे कहे त सुन्‍दर बिसमत कन्‍या निकलिस फेर निकल के का काहत हे तेला बतात हे। 

कथाकार (H)

खौलते हुए घी में कमल के फूल को लड़की का पति डाल देता है जैसे ही कमल का फूल कढ़ाई में गया वहां से सुंदर कपड़ों में सजी हुई सोलह श्रृंगार गहनों से सजी हुई लड़की बाहर आती है, उसे बता रहा है।

 

रागी (C)

का काहत हे बता दे जी।

रागी (H)

क्‍या कह रहा है बता दो जी।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना गंगा ए ना

कटारी म ये दे पिता मोर तंय भांवर पराए ना

जेमे मोर ए दे कन्‍या गोई जब ये दे आए हे ना

इही हरे ददा मोर कमल कर फूल हो

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना गंगा ए ना

कटार में मेरे पिता मेरे आपने अग्‍नि फेरे करवाए हैं  

जिसमें मेरे ये कन्‍या जब इस घर में में आए हैं  

यही है दादा मेरे वो कमल का फूल

 

रागी (C)

हरे हरे।

रागी (H)

हरे हरे।

 

कथाकार (C)

आज कटारी मोर बिहाव करे रेहे आज केहे त मय बारा पाली गउरा में इही लड़की हरे काली डहर में डूबे रीहीस हे उही कमल के फूल ल सब टोरे बर कूदिस फेर काकरो दरी नई अमराईस, मिलिस त दउड़ के कूदे हंव त दूरिहा के मोरे करा हाथ म आगे, इही ह सरी काम ल हमर घर के करत रीहीस इही मोर बिहई हरे, अईसे अपन पिता जी ल सुन्‍दर आंगन द्वार में कहे त कईसे बतावत हे। 

कथाकार (H)

आपने जिस लड़की से मेरा ब्‍याह करवाया था और लड़की बारा पाली गउरा के काली सागर में डूब गई थी उसी सागर में जो कमल का फूल था जिसे सबने तोड़ना चाहा लेकिन वह केवल मुझे मिला कमल जो दूर था वह मेरे पास आ गया, यह लड़की वही है जो हमारे घर के सारे काम कर रही थी, और यह वही लड़की है जिससे मेरा ब्‍याह हुआ था। ऐसा दुल्‍हा अपने पिता को बता रहा है।

 

रागी (C)

हरे हरे सच हे सच हे बंसकहार। 

रागी (H)

हरे हरे सच है सच है बांसगाथा गायक।

 

गीत (C)

धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे तंय गाड़ी रेंगा ले हो

ए गाड़ी वाले तंय धीरे गाड़ील धीरे रेंगा ले

धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे तंय गाड़ी रेंगा ले हो

ए गाड़ी वाले तंय धीरे गाड़ील धीरे रेंगा ले हो

करिया हे घोड़ा भैया कोर्रा के झन देखाबे कोर्रा के दौं झन देखाबे

अन्‍ते तन्‍ते पेलाही रे बैरी जाके रे भड़का म बोजाबे

जाके रे भड़का म बोजाबे

धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे तंय गाड़ी रेंगा ले हो

ए गाड़ी वाले तंय धीरे गाड़ील धीरे रेंगा ले 

गीत (H)

धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे तुम गाड़ी चलाओ जी  

ये गाड़ी वाले तुम धीरे गाड़ी को धीरे चलाओ  

धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे तुम गाड़ी चलाओ जी  

ये गाड़ी वाले तुम धीरे गाड़ी को धीरे चलाओ  

काला है घोड़ा भैया कोड़े को मत दिखाना कोड़े मत लगाना  

इधर-उधर गड्ढे में गिर-धंस जाएगा   

गड्ढे में गिर-धंस जाएगा   

धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे तुम गाड़ी चलाओ जी  

ये गाड़ी वाले तुम धीरे गाड़ी को धीरे चलाओ  

 

रागी (C)

सही बात हे मोर भाई छत्‍तीसगढ़ के गाड़ी नोहे, सच हे सच हे। 

रागी (H)

सही बात है मेरे भाई छत्‍तीसगढ़ की गाड़ी नहीं है, सच है सच है ।

 

गीत (C)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना भुलिन ए ना

ये दे गोई मोर भुलिन, भुलिन कुतिया ना

रोवत रोवत का ग मोर खोजत ढूंढत हे ना

गली रे पाले मोर गउरा पाली के गउरा के ना

धरे रे डहर रे मोर धरे रे डहर हो... 

गीत (H)

ये तरी हरी नाना ये मोर गंगा तरी हरी नाहाना भुलिन जो है

ये जो मेरे भुलिन, भुलिन कुतिया है  

रोते-रोते मेरे वो खोज ढूंढ रही है

गली में पाले मेरे गउरा पाली के गउरा की है  

रास्‍ते में चल रही मेरे रास्‍ते में चल रही

 

रागी (C)

राम हरि राम हरि

रागी (H)

राम हरि राम हरि।

 

कथाकार (C)

आज भूलिन कुतिया रहे तेन ह सुन्‍दर दीदी वो दीदी काहत पुकारत ओला खोजत ढूंढत आज कहे त भईया सुन्‍दर मजा के त बारा पाली ले देश पनागर के रद्दा सुन्‍दर धरे हे ग।

कथाकार (H)

और इधर जो भूलिन कुतिया थी वह उस बिसमत को ढूंढते-ढूंढते निकली है और यहां वहां उसे उसका नाम लेकर पुकार रही है और वह बारहपाली से देश पनागर के रास्ते में आ गई है।

 

रागी (C)

धरे हे ग फेर आगे का होवत हे बंसकहार बताही, जय हो जय हो। 

रागी (H)

रास्‍ते में है फिर आगे क्‍या होता है बांसगाथा गायक  बता रहा है, जय हो जय हो।

 

गीत (C)

यहू जब बेरा ये दे रे नोनी येदे बिसमत ए ना

अत्‍तीस अलन बत्‍तीस करा भोजन ए ना

धरी करा आवा गंगा मोर यही जब समय ए हो

गीत (H)

इसी समय जब बिसमत नाम की लड़की जो है

कई प्रकार की स्‍वादिष्‍ट भोजन है  

लेकर आ रही है यही जब समय में

 

कथाकार (C)

आज कहे ते बिसमत हे तेन ह अत्‍तीस आलन बत्‍तीस भोजन धर के आवत राहय।

कथाकार (H)

इधर बिसमत सुंदर नाना प्रकार के भोजन लेकर आ रही है

 

रागी (C)

हां जी हां जी हव जी।

रागी (H)

हां जी हां जी हां जी।

 

कथाकार (C)

जेला भुलिन कुतिया राहय तेन ह देख डरिस सुन्‍दर दीदी दीदी काहत भूलिन कुतिया ह कइसे दउड़त चले आवत हे जी। 

कथाकार (H)

जिसे भुलिन कुतिया ने देखा और पहचान लिया और दीदी दीदी कहकर दौड़ते हुए उसकी तरफ जा रही है

 

रागी (C)

चले आवत हे, जय हो जय हो। 

रागी (H)

चली आ रही है जय हो जय हो।

 

गीत (C)

यहू जब ए दे रे भुलिन अउ कुतिया ए ना

सुन्‍दर जब बिसमत गोई वो आवय आवय ए दे  ना

अउ बहुत दिन म बहिनी भेंटे जेमा ए दे होवत हे हो

गीत (H)

यहां भी जब ये जो भुलिन कुतिया है   

सुन्‍दर जब बिसमत उसके पास आने लगी  

और बहुत दिन बाद में बहन से भेंट करने लगी   

 

कथाकार (C)

सुन्‍दर बिसमत राहय ते बलाईस आ रे बहिनी भुलिन कहे त बहुत दिन म भेंट होईस अईसे करके सुन्‍दर बलाय हे, भुलिन राहय तेन हा दउड़त जाके भईया दीदी कहिके सुन्‍दर कहे हाथ धरे हे, हाथ धर के भईया सुन्‍दर मजा के ओ करा बईठार के कइसे होवत हे।   

कथाकार (H)

बिसमत ने भी उसे देखा और अपने पास बुलाया और कहा आओ बहन बहुत दिन हो गए हमें मिले हुए भुलिन कु‍तिया भी दौड़कर उसके पास गई और दीदी दीदी कह कर हाथ बढ़ा कर बैठ गई, अब आगे क्‍या हो रहा है ?

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो बंसकहार जय हो जी।

रागी (H)

हरे हरे जय हो बांसगाथा गायक जय हो जी।

 

गीत (C)

तरी हरी नाना ए भैया मोर नाहा नारी नाना ए ना 

सुन्‍दर जब ए दे रे बिसमत भुलिन ल ए दे पूछत हे ना

दुख ए दे पाएंव बहिनी खाना ए दे पीना के ना

अईसे  दे कहे बिसमत बोलन लागे हो...

गीत (H)

तरी हरी नाना ए भैया मोर नाहा नारी नाना ए ना 

सुन्‍दर जब बिसमत भुलिन को पूछने लगी   

दुख पाई हूं बहन खाने पीने के लिए  

इस तरह से बिसमत बोलने लगी  

 

रागी (C)

हरे हरे। 

रागी (H)

हरे हरे।

 

कथाकार (C)

का बतांव बहिनी आज ते खा कहे त काली डहर में कूदे त उही जघा ले त तोर गठान छूट गे तोर रूप रंग ल देख के मोर दूरिहा ले नजर परिस त दीदी काहत दउड़त मय आय हंव बारा पाली गउरा ले आज कहे त देश पनागर के रद्दा म आय हंव, गप्‍प ले तोला भेंट डरेंव, अइसे प्रकार के भूलिन कुतिया हे तेन ह आज बिसमत ल सुन्‍दर ओहा बतावत हे।  

कथाकार (H)

दोनों बहने बैठकर आपस में बातें कर रही है बिसमत कहती है क्या बताऊं बहन मैं तो काली में डूब गई थी, और वहीं से हम दोनों का साथ छूट गया था आज ऐसा अवसर आया है कि हम दोनों बहने मिली है, भुलिन कहती है मैं भी तुम्हारे रंग रूप को देखकर तुम्हें पहचान सकी हूं और बारापाली से देश पनागर के रास्ते आई हूं और देखो हम दोनों मिल गए।

 

रागी (C)

जय हो जय हो बतावत हे बतावत हे हरे हरे।

रागी (H)

जय हो जय हो बता रहा है बता रहा है हरे हरे।

 

गीत (C)

वही जब बेरा ए गंगा मोर भला बोलन लागे ना

अउ सुन्‍दर ए दे भाई मोर बईठक देवय ना    

बईठ बईठ वो मोर बहिनी मोर बईठक लेवय हो...

गीत (H)

उसी समय की बात है गंगा मेरे भला बोलने लगे

और सुन्‍दर ए दे भाई मेरे बिठाए हुए है      

बैठ बैठ ओ मेरे बहन, कहकर बिठाई हुई है

 

रागी (C)

हरे हरे जय हो जय हो बंसकहार।

रागी (H)

हरे हरे जय हो जय हो बांसगाथा गायक।

 

कथाकार (C)

आज सुन्‍दर मजा ले बईठ लेहे भुलिन कुतिया ल सुन्‍दर बिसमत हे ते बईठारे हे, बईठार के सुन्‍दर कहे त अपन पति ल अउ भु‍लिन कुतिया ल सुन्‍दर ओकर कहे त गंगा किनारे कईसे मजा के खाना देवत हे।

कथाकार (H)

आज मजे से बिसमत अपने पति और भुलिन  कुत्तिया को सुन्‍दर ढंग से गंगा किनारे बिठाकर भोजन करवा रही है।

 

रागी (C)

हरे हरे, बोल दे राधा कृष्‍ण भगवान की - जय।

रागी (H)

बोलो राधा कृष्ण भगवान की – जय 

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.

 

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Bhujbal Yadav

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