Gopichanda performed by Dani Ram Banjare and Janaki Bai Banjare
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Gopichanda performed by Dani Ram Banjare and Janaki Bai Banjare

in Video
Published on: 08 November 2018
The Epic of Gopichanda as performed by Dani Ram Banjare and Janki Bai Banjare in Chhattisgarh

दानी राम बंजारे और जानकी बाई बंजारे द्वारा प्रस्तुत  गोपी चंदा गाथा
छत्‍तीसगढ़ी श्रुतलेखन एवं हिन्‍दी लिप्‍यांतरण: संजीव तिवारी

 

Chhattisgarhi (Hereafter C): बंसी के बजइया मनमोहना ये वो गइया के चरइया मनमोहना ये ना

Hindi Translation (Hereafter H): वंशी बजाने वाला मनमोहन है, गाय को चराने वाले मनमोहन है।

 

C: बोल बृन्दावन बिहारी लाल की जय

नमो नमो बिन्देस्‍वरी नमो नमो जगदम्ब

नमा नमो गुरू आपना नमो नमो सत्संग

सरस्वती की वन्दना वन्दत हौं कर जोर

विद्या आसन बइठिये मा वंदना जो कहंव मोर

गुरू मिलन को चाहिए अरू तज माया अभिमान

ज्‍यों ज्‍यों पग आगे बढ़े त्‍यो त्‍यों आए सम्‍मान

उमा पति पारबती अरू सरस्वती अरू पण्डित जन आधार

हम बालक सब मंदमति किरपा करिहव किरपाल

बोलिये दुर्गा माता की जय

H: बोलिए वृन्दावन के बिहारी लाल की जय। नमो नमो बिन्देश्‍वरी नमो नमो जगदम्बा। नमो नमो अपने गुरू को नमो नमो सत्संग। सरस्वती की वन्दना कर रहे हैं दोनों हाथों को जोड़कर। माया और अभिमान को छोड़ कर गुरू से मिलना चाहिए। जैसे जैसे पग आगे बढ़ते हैं वैसे वैसे सम्‍मान भी प्राप्‍त होते जाता है। उमा पति पावर्ती सरस्वती और पण्डित जन के आधार हैं। हम बालक सब मंदमति हैं हे कृपालु आप कृपा कीजियेगा। बोलिये दुर्गा माता की जय।

C: बल गरजेंव भारी ऽ ऽ ऽ भवानी तोर भरोसा

तोर गुन गावौं तोर जस गावौं

अरू सब झन होहु सहाई वो दाई तोर भरोसा

डबरा ले निकले महिसासुर होके भईंसा सवारी

पंड़रा घोड़ा म ठाकुर देवता बस्‍ती में देवय दुहाई वो

दुखिया के तैं दुख हरैया भक्‍तों के लाज रखैया दाई तोर भरोसा

सरस्वती मैया बीना बजैया मंजूर सवारी में आ जा वो

हाथ में करतार धरके कण्ठ में आके समा जा वो

जानकी बाई बंजारे कहत हौं सत के जोत जगाहूं दाई तोर भरोसा

बल गरजेंव भारी वो भवानी तोर भरोसा

H: हे माता भवानी तुम्‍हारी कृपा से मैं अपने बल पर भारी गरज रहा हूं। तुम्‍हारे गुण को गा रहा हूं तुम्‍हारे जस को गा रहा हूं। सभी देव मुझ पर सहाई होवे माता। गड्ढे से महिसासुर भैंसे में सवार होकर निकल रहा है। सफेद घोड़े पर ठाकुर देवता बस्‍ती को बधाई दे रहा है (रक्षा करते हुए)। तुम दुखी लोगों का दुख दूर करती हो। तुम भक्‍तों की लाज रखती हो। वीणा बजाने वाली सरस्वती माता तुम मयूर की सवारी में आ जावो ना। हाथ में करताल पकड़ के मेरे कंठ में विराजमान हो जावो ना। मैं जानकी बाई बंजारे कह रही हूं सत्‍य की ज्‍योति जलाउंगी माता तुम्‍हारे भरोसे। हे माता भवानी तुम्‍हारी कृपा से मैं अपने बल पर भारी गरज रही हूं।

C: आज देख तो गा सौभग्य के बात हे। इन्द्रसेन के राजा गंधर्वसेन, गंधर्वसेन के राजा विक्रमादित्य जेकर भाई राजा भरथरी जेकर बहन मैनावती ये गा। देस बंगाला के रहैया त्रिलोकी के इंहाँ सुन्दर सादी हो करके आये हवे। भैया कुछ ही समय बाद सुनदर समय बीतत हे। अरू राजा महाराजा मन सोचथे भैया हम तीर, कमान, आखेट खेले बर जातेन भाई।

H: आज देखे तो सौभाग्य की बात है। इन्द्रसेन के राजा गंधर्वसेन, गंधर्वसेन के राजा विक्रमादित्य जिसका भाई राजा भरथरी जिसकी बहन मैनावती रहती है। देश बंगाल का रहने वाला त्रिलोकी यहाँ सुन्दर विवाह करके आया है। भैया कुछ ही समय बाद सुन्‍दर समय बीत रहा हे। और राजा महाराजा लोग सोचते हैं भैया आखेट खेलने के लिये जाना चाहिए।

C: लगाये दरबार में सुन्दर आज तीर कमान खेले बर 9 लाख सेना लेके गेवरा गेवरा नदी बर राजा चलथे ऐ पार गेवरा नदी हे ओपार कौरव नगर हे।

H: लगे दरबार में शिकार खेलने जाने की तैयारी हो जाती है। 9 लाख सेना लेके गेवरा नदी के किनारे किनारे राजा चल रहे हैं। इस पार गेवरा नदी है उस पार कौरव नगर है।

C: सेना सजा के - चलन लागे गा

ए पार गेरवा नदी पार राजा त्रिलोकी के सेना

ए पार कौरव नगर हे।

H: सेना सजा का - चलन लागे ये वाले पार गेरवा नदी पार राजा त्रिलोकी का सेनाव ये वाले पार कौरव नगर है।

C: जहां कौरव नगर के सब बहिनी खुंटी बैरेठिन गांया गुवालिन नैन जोगी ये वहां कौरव नगर के जदुवहीन हे। भैया वहां दोनो राजा अरू जदुहाईन में झगड़ा के तैयारी हो जथे। अरे राजा तो लड़ाई संग में सकतीस गा उहां तो जादू के राज हे। भैया भाठा ल पारी पारी भाठा साग के तुतारी कहय रागी।

H: जहां कौरव नगर का सब बहन खुंटी बैरेठिन गांया गुवालिन नैन जोगी ये वहां कौरव नगर की जादुगरनी है। भैया वहां दोनो, राजा और जादुगरनी में झगड़े की तैयारी हो जाती है। अरे राजा तो युद्ध का सामर्थ्‍य रखता है किन्‍तु यहां तो जादू का राज है। भैया भाठा को पारी पारी, भंटा सब्‍जी की तुतारी कहते हैं

C: मनुश्य ल बइला बनाके हल चलाये रागी भाई। जेकर पास में जाकर राजा त्रिलोकी वहां झगड़ा ठोंक के तियार खड़े हे। भैया राजा त्रिलोकी उहां 9 लाख सेना लेके गे हे, उहां सब ल जादू मार के पत्थर बना देथे। वो समय रागी भाई राजा त्रिलोकी हे तेन कहे रिहिस हे रानी मैनावती ल मैं आखेट खेले बर जाथौं। ये जोत जलाए हौं तुलसी मैया के नीचे हे। जब ए तुलसी के झाड़ साबूत हे तब तक मोला कोई फरक नइ पड़य। मैं सांति से गुजरत हौं। जेन दिन मोर उपर म विपत परही ये जलत जोत हे तेन समाप्त हो जही वो मैना। तुलसी के झाड़ हे तेन सुख जही।

H: मनुष्‍य को बैल बनाके हल चलाते हैं रागी। जिसके साथ में जाके राजा त्रिलोकी वहां झगड़ा खड़ा करके तैयार खड़े है। भैया राजा त्रिलोकी वहां 9 लाख सेना लेके गए है, (जादूगरनीयां) वहां सब को जादू मार कर पत्थर बना देती हैं। उस समय रागी, भाई राजा त्रिलोकी रहता है वह कहा रहता है रानी मैनावती को कि मैं शिकार खेलने के लिये जा रहा हूं। यह जोत जलाया हूं तुलसी मैया के नीचे है। जब तक ये तुलसी साबूत है तब तक मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मैं शांति से गुजारा कर रहा हूं। जिस दिन मेरे उपर विपत्ति आयेगी यह जलता हुआ जोत है वह सबुझ जायेगा वह मैना। तुलसी का झाड़ है वह सूख जायेगा।

C: हे भगवान! आज ये तुलसी के झाड़ कैसे सुखगे। जलत दीया कइसे बुझागे। भगवान। आज मोर पति हे तउन नौ लाख सेना लेके आखेट खेले बर गहे। आज बीच जंगल मे मोर पति ल कोन से दुख घेर लिस। आज कोन से संकट परगे।

वो ह रोना गा रोवत हे गा मोर रोना रोवत हे जी

H: हे भगवान! आज यह तुलसी का झाड़ कैसे सूख गया। जलता हुआ दीपक कैसे बुझ गया। भगवान। आज मेरे पति है वे नौ लाख सेना लेके शिकार खेलने के लिये गए हैं। आज बीच जंगल मे मेरे पति को कौन सा दुख घेर लिया।

आज कौन सा संकट पड़ गया। वो रोना  रो रही है भाई मेरे वो रो रही है जी

C: हाय!हाय!!हाय!! हाय पति हाय!! देखतो भगवान। आज देखतो मोर पति ल कोन से संकट परगे का बिपत घेरलिसं आज तुलसी के झाड़ कइसे सुखगे। जलाये हुए जोत कइसे बूझगे। हे भगवान। कारण का हे। आकाषवाणी होने लगे। पत्थर बनगे कौरू नगर में।

H: हाय! हाय!! हाय!! हाय पति हाय!! देखो तो भगवान। आज देखो तो मेरे पति को कौन सा संकट पड़ गया  क्या विपत्ति घेर लिया आज तुलसी का झाड़ कैसे सूख गया। जलता जोत कैसे बूझ गया। हे भगवान। कारण क्या है। आकाशवाणी होने लगा। पत्थर बन गए कौरू नगर में।

C: पति के बिना घर गा सुन्ना सुन्ना लागत हे

राजा के बिना घर हा सुन्ना सुन्ना लागत हे

कइसे समझावौं मन ल

धुकुर धुकुर लागत हे

हाथ कर चुरी मोर मांग कर सेंदूर दाई

आज मोर पति बीच जंगत में जाके पखरा लहुटगे। पति के बिना मोर जग अंधियार हे। अब जिनगी ल मैं का करहूँ। महू ल तोर तो संग में स्वामी साथ ले कइसे कर के दिन ल मैं आज मैं बिताहूँ राजा कइसे समुझावौं मन ल धुकुर धुकुर लागत हे। ये जीवन ल धिक्कार हे भैया। पति के बिना जीवन धिक्कार हे

H: पति के बिना घर सूना सूना लगता है। राजा के बिना घर सूना सूना लगता है। मन को कैसे समझाउं! धक धक लगता है। हाथों की चूड़ी मेरी मांग का सिंदूर मां। आज मेरे पति बीच जंगत में जाके पत्‍थर हो गए। पति के बिना मेरा जग अंधकार है। अब इस जिन्‍दगी का मैं क्या कहूँ। मुझे भी स्‍वामी अपने साथ में ले लो, कैसे करके दिन काटूंगी राजा कैसे समझाउं मन में धक धक लग रहा है। इस जीवन को धिक्कार है भैया। पति के बिना जीवन धिक्कार है

C: कर्म प्रधान विश्‍व रचि राखा जो जस करहिं तासु फल चाखा

H: विश्‍व में कर्म ही प्रधान है और जो जैसा करता है वैसा ही फल पाता है।

C: एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा।

पति जइसे पति जइसे सिंगार पति जइसे सोहाग आज मैं कहाँ पाहूँ। ये राजा ल सुन्दर रख ले।

H: पति जैसे पति जैसे श्रृंगार पति जैसे सुहाग मैं आज कहाँ पाउंगी। ये राजा को सुन्दर रख लेना।

C: देख तो माता राजा तो कौरू नगर में जाके पत्थर होगे।

H: देखो तो माता राजा कौरू नगर जाकर पत्थर हो गए।

C: हाथी रोवय हाथी सार म घोड़ा रोवय घोड़सार

रानी रोवय रंगमहल में

राजा रोवय दबबार में

भैया रानी रोवय रंगमहल में भैया एदे भाई

H: हाथी रोता है जहां हाथी बंधने का स्‍थान है और घोड़ा रो रहा है अस्‍तबल में। रानी रो रही है रंगमहल में। राजा दरबार में रो रहा है। भैया रानी रो रही है रंगमहल में भैया अभी।

C: अब पति ल तै वापस लाहूं कबे तो नई आवय, वो ह पत्‍थर होगे। ये माता ये राजपाट ल आज तैंह संभाल दाई राजा के नांव ल सुन्दर जगा ले। राजा के नाम जगाहूँ ? हाँ ? मैं कइसे जगाहूँ ? प्रजा ल संभाले ल लगही। मैना माता ल आज दासी समझा दिस। रानी मैना अपन प्रजा ल संभालिस। माता मैना हे तेन सुन्दर गर्भवती हे। गर्भवती रेहे के बाद एक बालक जनम लेकर के निकलथे। जेकर नाव हे गोपीचंदा। आज बालक गोपीचंदा के सुग्घर सोहर मनाथे। अइसे तइसे 7 साल बीत जथे। बालक गोपीचंदा साथ जहुंरिया लेकर सुन्दर गली खेले बर जाथे। भैया सात जहुंरिया गली खेल के आथे। माता मैना बड़ा आनन्द मनावै। उही समय में बेटा गोपीचंदा हे तोन माता मैना के पास जाकर पूछथे - और माता मैना ल आखिर बताये बर पर जाथे। के देख तो बेटा तोर पिता हे तौन कौरू नगर में जाके पत्थर होगे हे। उही दिन ले भैया जो बालक हे तौन अपन प्रण कर लेथे रागी भाई –

H: हे माता यह राजपाट को आज तुम सम्‍हालो मां, राजा के नाम को सुन्दर जगाना। राजा का नाम जगाउंगी ? हाँ ? मैं कैसे जगाउंगी ? प्रजा को सम्‍हालना पड़ेगा। मैना माता को आज दासी नें समझा दिया। रानी मैना अपनी प्रजा को सम्‍हाल रही है। माता मैना रहती है वह सुन्दर गर्भवती है। गर्भवती रहने के बाद  एक बालक जन्‍म लेता है। जिसका नाम गोपीचंदा है। आज बालक गोपीचंदा का सुन्‍दर सोहर मनाया जाता है। ऐसे तैसे सात वर्ष बीत जाते हैं। बालक गोपीचंदा अपने हमउम्र मित्रों को साथ लेकर सुन्दर गली में खेलने के लिये गया है। भैया मित्रों के साथ गली में खेलने के लिए आते हैं। माता मैना बहुत आनन्द मनाती है। उसी समय में बेटा गोपीचंदा है वह माता मैना के पास जाकर पूछता है- और माता मैना को आखिर बताना पड़ जाता है। देखो तो बेटा तुम्‍हारा पिता है वे कौरू नगर में जाके पत्थर हो गए है। उसी दिन से भैया जो बालक है वह प्रण कर लेता है रागी भाई

C: गोपीचंदा खेलत खेलत सात भुवन सतखंडा महल के अंगना म ना पहुंचे हे

भूखे के मारे दाई ओ प्राण तो ह छूटय वो

सुन्दर तैं हँ मोला येदे भोजन खवा दे दाई

तोला भूख लागत हे बेटा, तोला भोजन देवंव, हव भोजन दे। देहूं जरूर देहूं बेटा, आज सुन्‍दर भोजन बनाये हंव।

जल्दी देदे भोजन दाई मोला खवादे वो

आजा तोला मैं बेटा मोर भोजन देवथौं रे हो

सुन्दर बेटा भोजन मैं बनाए हावंव गा

भोजन खाले बेटा तैं ह भोजन खा ले ना

H: भूख के कारण मां मेरा प्राण छूट रहा है मुझे तुम सुन्दर भोजन खिला दो ना मां

तुम्‍हें भूख लगी है बेटा, तुम्‍हें भोजन दूं, हां भोजन दो। दूंगी जरूर दूंगी बेटा, आज सुन्‍दर भोजन बनाई हूं। भोजन खा ले बेटा तुम भोजन खा लो ना।

तुरंत मुझे भोजन दो मां मुझे खिला दो। आवो बेटा तुम्‍हें मैं भोजन दे रही हूं रे। बेटा मैंनें सुन्दर भोजन बनाया है।

C: कस बेटा तैं लइका मन संग बने खेलथस बेटा ? मैं का बतावौं दाई मैं जब से होस संभालेंव मैं सुन्दर खेलत हौं दाई। लेकिन एक बात हे दाई। माता माता मैं सदा कहेंव फेर पिता कहे बर मैं नई जानेव दाई। आज मोर पिता कहां हे तेला बता देते दाई। रानी मैनावती सोचे लागथे - ये दे रद्दा ल भूलागे तइसे लागथे ददा।  आज ऐला पिता ल बता देथंव ताहेन फेर भइगे। ये बेटा गोपी ---

H: कैसे बेटा तुम बच्‍चों के साथ अच्‍छा खेल रहे हो बेटा ? मैं क्या बताउं मां मैं जब से होश सम्‍भाला हूं मैं सुन्दर खेल रहा हूं मां। लेकिन एक बात है मां। मां मां मैं हमेश कहता हूं परंतु पिता कहना मैं नहीं जाना मां। आज मेरे पिता कहां है ये बता दो मां। रानी मैनामती सोचने लगती है - यह रास्ते को भूल गया ऐसा लगता है दादा।  आज इसे पिता के संबंध में बता देती हूं तो हो गया । ये बेटा गोपी ---

 C: मोर सुन लेबे बेटा गोपी मोर कहना ल मान ले बेटा

तैं पिता-पिता रोथस रे बेटा

तोर पिता नइ तो बेटा मोर बात ल मान रे

तोर पिता न बेटा ये दुनिया ले चले गे।

ये दुनिया ले चले गे ?

हाँ।

H: मेरी बात सुन ले बेटा गोपी मेरे कहना को मान ले बेटा। तुम पिता-पिता कहते हुए रो रहे हो रे बेटा। तुम्‍हारे पिता नहीं हैं बेटा मेरी बात को मान रे। तुम्‍हारे पिता बेटा इस दुनिया से जा चुके हैं। इस दुनिया से जा चुके हैं ? हाँ।

C: देखतो दाई। आज तैं मोर पिता ल दुनिया ले चल गै कहिथस। लेकिन मोर पिता जी हे तोन स्वर्गवास नई होय हे। काहे के मोर संग के खेलइया संगवारी मन बताये हे। संगवारी-संगवारी म खेलते खेलत झगरा हो जथन ओ। झगरा होथन त संगवारी मन कहिथे कुछु बात बर मारके होवय हमन ल रोवा देथस - असली बाप के बेटा होते त अपन बाप ल जाके उबार लेतेस। जाके वोह पखरा होगे हे कहिथे। ये काय बात ये तेला बताये ल लगही माँ। ये दे देखे। ये बिसरे बात ल सूरता देवादेस बेटा गोपी। तोला बार-बार समझावौं तैं मानस बेटा। तें सही बोलथस। तोर पिता ल बार-बार समझायेंव नई मानिस बेटा अऊ बीच जंगल म जाके पत्थर होगे बेटा। कौरू नगर में। गोपी - कौरू नगर में जाके पत्थर होगे। मैना - हौ। गोपी - देखतो भगवान आज मैं माता-माता कहे ल सदा जानेव लेकिन पिता कहे ल नइ जानेव न। सुख के भोजन करथौं। लेकिन पिता बिन जग अंधकार हे। मोर जइसे बालक ल। मैं आज से कसम खाथौ। जब तक अपन पिता ल नई उबारहूं। ए घर म वापिस नई आवंव। मैना - वही देखे न इहीच बात ल डर्रावत रेहेंव। तिहिच बात हॅ होगे।

H: देखो तो मां। आज तुम मेरे पिता को दुनिया से जा चुकें हैं कह रही हो। लेकिन मेरे पिता जी का स्वर्गवास तो नहीं हुआ है। क्‍योंकि मेरे साथ खेलने वाले मित्रों नें बताया है। मित्र-मित्र में खेलते खेलत लड़ाई हो जाती है। लड़ाई होती है तब मित्र लोग कहते हैं कुछ भी बात के लिये हमें मार के हमे रूला देते हो - असल बाप का बेटा होते तो अपने बाप को जाके उबार लेते। वो जाकर पत्‍थर हो गए हैं कहते हैं। ये क्‍या बात है इसे बताना पड़ेगा माँ। ये देखो। वो भूले बात को याद करा रहे हो बेटा गोपी। तुम्‍हें बार-बार समझा रही हूं तुम मानों बेटा। तुम सहीं कह रहे हो। तुम्‍हारे पिता को बार-बार समझाई वे नहीं माने बेटा और बीच जंगल में जाके पत्थर हो गए बेटा। कौरू नगर में।

गोपी - कौरू नगर में जाके पत्थर होगे। मैना - हौ। गोपी - देखो तो भगवान आज मैं माता-माता कहना ही जाना लेकिन पिता कहना नहीं जाना। सुख से भोजन करता हूं। लेकिन पिता बिना जग अंधकार है। मेरे जैसे बालक को। मैं आज ये कसम खा रहा हूं। जब  तक अपने पिता को उबार ना लूं। ये घर वापिस नहीं आउंगा। मैना - ओह देखो मैं इसी को डर रही थी। वही बात हो गया।

C: रामा रामा

मत जाबे रे बेटा मर तो जाबे

मोर कहना ला मान ले ना रे

का तोला खबर बताहूं रे

H: रामा रामा.. । मत जावो रे बेटे, मत तो जावो रे बेटा। मेरे कहना को मानो बेटा मत जाना रे। मैं क्‍या खबर बताउंगी बेटा।

C: तोर बिना मैं जिंदा नई रेहे सकौं बेटा। पति के दुख ल तोला देखेके भूलाये हौं। गोपी। तोर आज फूफू दीदी हॅ अतेक दिन सुंदर काजर आंजे। उही ल खबर बताहूँ। अब मानगेस बेटा। मानगेस न ?

मैं हॅ ? हाँ।

H: तुम्‍हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकुंगी  बेटा। पति का दुख तो तुम्‍हें देखे के भूलाई हूं। गोपी। आज तुम्‍हारी बुआ और बहन नें इतना सुंदर काजल लगाई है। उन्‍ही को खबर बताती हूँ। अब मान गए बेटा। मान गए ना ? मैं हॅ ? हाँ।

C: गोपीचंदा सोंचथे कहूं आज माया मोह म भुला जहंव त मोर बाप ल उबार नइ पाहंव। सही बात ये दाई। काबर पिता जाके पत्थर होगे तो होगे ओकर संग में हमन काबर दूख पाबो वो।

काबर दुख पाबो बेटा। मैंना के बेटा गोपीचंदा। आज मैं सुनदर भोजन बनाये हावंव बेटा झन खाबे बेटा तैंह झन खाबे न तोर बर खीर बनाये हावंव ये बेटा तैं उही बासी काबर मांगथस बेटा। मैं तोर सुन्दर खीर पूड़ी बनाये हौं बेटा। ये बेटा तैं खीर पूड़ी नइ खावस गा ? देख माँ मैं न आज समोसा खाव न खीर पूड़ी खांव।

दही दे दे बासी माता मोला बासी दे देना

भूख के मारे मोरे प्राने छूटे वो

दही बासी हे ते दाई तैं मोला जल्दी से दही बासी देदे वो।  

दही बासी खाबे ? हौं। इहीच करा रहा मैं दही बासी लाथौं। जल्दी से दही बासी लेके आबे। सात खण्ड के महल, बारह खूंट के अंगना हे। भवन में चले अउ जाके गेपी - ये माता भोजन नइ लावत हे तइसे मोला लागत हे। आवत हौं बेटा।  

मोल थाली में भोजन आगे रे बेटा मोर गोपी-गोपी।

मोर भोजन लेके आगे भैया। मोर गोपी ल खोजत हे ये दे गा।

हाय हाय बेटा हाय। हाय हाय बेटा हाय।

H: गोपीचंदा सोंचता है कहीं आज मैं माया मोह म भूल गया तो मेरे पिता को उबार नहीं पाउंगा। सही बात है मां। क्यों पिता जाके पत्थर हो गए तो होगें उनके साथ हम क्यों दुख पा रहे हैं।

क्यों दुख पायेंगें बेटा। मैं ना क्‍या बेटा गोपीचंदा। आज मैं सुन्‍दर भोजन बनाई हूं बेटा मत खाना बेटा तुम मत खाना तुम्‍हारे लिये खीर बनाई हूं। बेटा तुम उसी बासी को क्यों मांग रहे हो बेटा। मैं तुम्‍हारे लिए सुन्दर खीर पूड़ी बनाई हूं बेटा। बेटा तुम खीर पूड़ी नहीं खा पावोगे? देखो माँ मैं आज ना समोसा खाउंगा ना खीर पूड़ी खाउंगा। दही दे दो मुझे माता मुझे बासी दे दो ना भूख के कारण मेरा प्राण छूट रहा है दही बासी है तो मां तुम मुझे तुरंत दही बासी दे दो। 

दही बासी खावोगे? हां। यहीं रूको मैं दही बासी ला रही हूं। तुरंत वह दही बासी लेके आवो। सात खण्ड का महल, बारह खूंट का आंगन है। भवन में गया और जाके गोपी - मां भोजन नहीं ला रही है मुझे ऐसा लगता है। आ रही हूं बेटा। मेरे थाली में भोजन आ गया रे बेटा मेरा गोपी-गोपी।

भोजन लेके आ गई भैया। मेरे गोपी को खोजने जा रही है। हाय हाय बेटा हाय। हाय हाय बेटा हाय।

C: आज कवच कुण्डल माड़े हे दाई। मोला दही बासी मांग लिस। मोर बेटा कहाँ गै दाई। मोर बेटा कहाँ गै। आज इही लाला ल देख के दिन बितावत रहेव भगवान। आज यहू बेटा हे तौन मोर माहल ल छोड़ के निकलगे तइसे लागथे। देख ले एकर चाल ल रागी। देख तो भगवान आज गोपीचंदा जइसे समय खोजत रिहिस वोला उही मौका मिलगे। काबर सतखडा भवन ये हे जौन मैना माता दही बासी लाये बर चल दिस। बेटा गोपीचंदा कहीथे। ए समय ले समय मोला नइ मिलै। गोपीचंदा पांव में पदुम लेकर के जनम ले हवे। बीच अंगना मे गोपीचंदा उही पांव के पदुम माथ के कुण्डल और छाती के कवच उतार के चल देहे।

H: आज कवच कुण्डल रखा है मां। मुझसे दही बासी मांग रहा था। मेरा बेटा कहाँ चला गया मां। मेरा बेटा कहाँ गया। आज इसी लाला को देख कर दिन बिता रही थी भगवान। आज यह बेटा भी मेरे महल को छोड़ कर निकल गया ऐसे लगता है। देख लो इसकी चाल को रागी। देखो तो भगवान आज गोपीचंदा जैसे समय खोज रहा था उसे वही मौका मिल गया। क्यों सतखंडा भवन है यह जिस समय मैना माता दही बासी लाने के लिये गई। बेटा गोपीचंदा कहता है। ऐसा समय मुझे फिर नहीं मिलेगा। गोपीचंदा पांव में पदुम लेके जन्‍म लिया है। बीच आंगना मे गोपीचंदा उसी पांव के पदुम माथ का कुण्डल और छाती का कवच उतार कर चल दिया।

C: मैना के बेटा गोपी चंदा ये जी

कईसे ये कमाल करे ना

ये दे तरिया के पारे म बेटा बइठे हावय जी

मैना के बेटा येदे चंदा ये न

महल मे एती मैना देखत हावय जी

सुखाये तुलसी कि झाड़े हावय न।

तुलसी के सेवा मैं कर लेतेंव वो

ये ताबा के लोटा लेके गोपी चंदा जी

कइसे तरिया में नहावत हावय न

ये गइया के चरइया मन मोहना ए न ।

बंसी के बजइया मन मोहना ए न ।

H: मैना का बेटा गोपी चंदा है जी। देखो कैसा कमाल कर रहा है। वह तालाब के किनारे पर बेटा बैठा है जी। मैना का बेटा ये चंदा है। महल मे इधर मैना देख रही है जी। सुखी तुलसी का झाड़ है। तुलसी के चौंरे पर। तुलसी की सेवा मैं कर लेता ना। यह तांबा का लोटा लेके गोपी चंदा कैसे तालाब में नहा रहा है। गाय को चराने वाले मन मोहना है। बंसी बजाने वाला मन मोहना है।

C: हे भगवान ये तांबा के लोटा लेकर के बेटा गोपीचंदा हावय तेन तरिया में नहावै और नहा करके सुन्दर तुलसी माता में जल डारे। जे पौधा सुखाए हे ओमा गोपी चंदा जल डारत हे। ए बेटा गोपी। ए बेटा गोपी। एती गोपीचंदा निकलगे। एती माता हे जोन बेटा-बेटा कहिके बिलाप करथे। कहै का अऊ मांगिस का ? अउ गिस कहाँ ? हे भगवान –

H: हे भगवान यह तांबा का लोटा लेके बेटा गोपीचंदा रहय वह तालाब में नहा रहा है और नहा करके सुन्दर तुलसी माता में जल डालता है। जो पौधा सूखा है उसमें गोपी चंदा जल डाल रहा है। ये बेटा गोपी। ये बेटा गोपी। इधर गोपीचंदा निकल जाता है। इधर माता है वह बेटा-बेटा कह कर विलाप कर रही है। कहा क्या और मांगा  क्या ? और गया  कहाँ ? हे भगवान –

C: बासी के खवैया बेटा कहाँ गये रे।

हे भगवान मोला बासी मांगलिस अउ कहांगे रे

दुख के मोटरा बेटा बोहा गये रे

बासी के खवैया बेटा कहाँ गये रे।

आंखी के तारा बेटा प्राण के अधारा बेटा

पशु और पक्षी ल पूछन लागे मैना दाई

दही के खवैया बेटा कहाँ गये रे।

मोर गोदी ल गइसे सुन्ना कर दिय रे बेटा

बासी के खवैया बेटा कहाँ गये रे।

तोला देख के बेटा दुख ल भुलावंव लाला

बासी के खवैया बेटा कहाँ गये रे।

दुख के मोटरा बेटा बोहा गये रे।।

H: बासी खाने वाला मेरा बेटा कहाँ गया रे। हे भगवान मुझसे बासी मांगा और कहां चला गया  रे। दुख का सहारा बेटा बह गया रे। बासी खाने वाला बेटा कहाँ गया रे। आंखों का तारा बेटा प्राण का आधारा बेटा। पशु और पक्षी को माता मैना पूछने लगी। दही खाने वाला बेटा कहाँ गया रे। मेरी गोद को कैसे सूना कर दिया रे बेटा। बासी खाने वाला बेटा कहाँ गया रे। तुम्‍हें देख कर बेटा दुख को भुलाती थी लाला। बासी खाने वाला बेटा कहाँ गया रे। दुख का सहारा बेटा बह गया रे।

C: देख तो भगवान आज मैना हे तोन कतेक बिलाप करत हे। दासी हे तोन सुन्दर मैना ल समझावथे। समझा के ओला रखथे। अउ ए तरफ गोपीचंदा हे तेन कहिथे - मैं माता तुलसी के सुंदर सेवा कर लेतेंव। नहा धोकर के सुन्दर जल डाले हे। तुलसी के पेंड़ मे। जइसे गोपीचंदा माता तुलसी में जल डालेहे। माता तुलसी हे तेन सुन्दर हरा भरा हो जाथे। अउ बेटा गोपीचंदा हे तौन सुन्दर हाथ जोड़ करके प्रणाम करथे।

तुलसी के पेंड़ कहिथे -हाय! हे भगवान! आज मोर सोये नींद ल कोन जगादिस। अतका दिन के मैं सोये रेहेंव। आज मोर सोये नींद ल कोन जगा दिस। रागी भाई सुन्दर ध्यान लगाके। हाथ जोड़ के। तुलसी के चैरा के नीचे में कोन बइठे हे। एक बेटा ए बालक। देख तो भगवान आज तुलसी माता हॅ आवाज देवत हे। बेटा उठ। पूछथे - कइसे तैं कोन गांव के रहइया ? कइसे सेवा करत हवस ? बेटा

गोपीचंदा माता के चरण में

H: देखो तो भगवान आज मैना है वह कितना विलाप कर रही हे। दासी है वह मैना को समझा रही है। समझा कर उसे रखती है। और इधर गोपीचंदा है वह कहता है - मैं माता तुलसी का सुंदर सेवा कर लेता हूं। नहा धोकर सुन्दर जल डाला है। तुलसी के पेंड़ मे। जैसे गोपीचंदा माता तुलसी में जल डाला है। माता तुलसी है वह सुन्दर हरा भरा हो गई। और बेटा गोपीचंदा है वह सुन्दर हाथ जोड़ करके प्रणाम करता है। तुलसी कहती है -हाय! हे भगवान! आज मुझे सोये नींद से कौन जगा दिया। इतना दिन क्‍या मैं सोयी रही। आज मुझे सोये नींद से कौन जगा दिया। रागी भाई सुन्दर ध्यान लगा कर। हाथों को जोड़ कर। तुलसी के बिरवे के नीचे में कौन बैठा है।  एक बेटा ये बालक। देखो तो भगवान आज तुलसी माता आवाज दे रही है। बेटा उठो। पूछ रही है - कैसे, तुम किस गांव के रहने वाले हो?  कैसे मेरी सेवा की क्‍या हुआ ? बेटा गोपीचंदा माता के चरण में

C: तैं मोर बिनती सुन ले वो दाई

मोर बिनती तैं सुन ले वो दाई

पिता ल उबारे बर दाई

कौरू नगर में जावत हावौं दाई

कौरू नगर में तो जावत हावौं दाई

H: तुम मेरी विनती सुन लेना मां। मेरी विनती तुम सुन लेना मां। पिता को उबारने के लिये मां। कौरू नगर में जा रहा हूं मां। मैं कौरू नगर जा रहा हूं मां।

C: तुलसी सोचे। देखत हस ए ढेबर्रा मुड़ के ल। सात साल के लइका पिता उबारे ल जात हे।

झन जाबे बेटा मोर रे कौरू नगर झन जाबे। गेपी - आज मैं हॅ तोर सेवा करे हौं माँ। देस बंगाला के राजा त्रिलोकी के बेटा, मैनावती के बेटा तोर सेवा करे हौं। पिता उबारे बर जावत हौं दाई। गोपीचंदा अस बेटा।

H: तुलसी सोचती है। देख रहे हो ये बड़े सिर वाले को। सात वर्ष का बच्‍चा पिता को उबारने जा रहा है। मत जा बेटा मेरे,  कौरू नगर मत जा। गोपी - आज मैं तुम्‍हारा सेवा किया हूं माँ। देस बंगाला का राजा त्रिलोकी का बेटा, मैनामती का बेटा तुम्‍हारी सेवा किया हूं। पिता उबारने के लिये जा रहा हूं मां। गोपीचंदा हो बेटा।

C: मोर बिनती सुनले दाई दसो अंगुंरी दाई पैंया लागौ।

H: मेरी विनती सुनलो मां दसो उंगली से मां तुम्‍हें प्रणाम कर रहा हूं।

C: ये बेटा गोपी बड़े आनंद के बात हे बेटा। राजा के घर में संतान होगे। दीपक जलाने वाला तो जन्म ले लिस। मगर एक बात हे बेटा तैं कौरू नगर में जाहुं कहिथस। पिता ला उबार के लाहू कहिथस। बालकपन के तोर उमर हे बेटा। अउ तें पिता उबारे बर जाहू कहिथस। कौरू नगर जाहूं कहिथस। नहीं, झन जा। काबर ? तैं मोर बात मान जा बेटा। तें छोटे हस बेटा ओतेक उमन नइहे। शक्ति नइ हे तोर बेटा। मोर बात मान ले। देख दाई मैना माता के मैं प्रण करे हौं, चरण के कसम खा के निकले हौ। जब तक मैं पिता उबार के नइ लानहू तब तक मैं ह वापस घर नइ आवंव।

H: बेटा गोपी बड़े आनंद की बात है बेटा। राजा के घर में संतान हुआ। दीपक जलाने वाला तो जन्म लेना था। मगर एक बात है बेटा तुम कौरू नगर में जाउंगा कहते हो। पिता को उबार के लाउंगा कहते हो। तुम्‍हारा उम्र अभी कच्‍चा है बेटा। और तुम पिता उबारने के लिये जाउंगा कहते हो। कौरू नगर जाउंगा कहते हो। नहीं, मत जा। क्यों ? मेरी बात को मान लो बेटा। तुम बहुत छोटे हो बेटा उतना बल नहीं है बेटा। शक्ति नहीं है तुम्‍हारी बेटा। मेरी बात मान लो। देख मां मैना माता से मैं प्रणाम किया हूं, उनके चरण की कसम खाया हूं। जब तक मैं पिता को उबार नहीं लाता हूं तब तक मैं वापस घर नहीं जाउंगा।

C: ऐ गोपी, मत जाना ।

मत जाना रे बालक बेटा कौरू नगर मत जाना

मत जाना रे गोपी चंदा कौरू नगर मत जाना

कौरू नगर के अटपट हे जादू कोई पारे नइ पाया

बड़े-बड़े राज हॅ पथरा गा होगे ।

वापस कोनो नहीं आया रे बालक

देखे करम ला छाड़ दीस कथंव

मत जाना रे बेटा कौरू नगर मत जा। मत जा बेटा।

H: ऐ गोपी, मत जाना । मत जाना रे बालक बेटा कौरू नगर मत जाना। मत जाना रे गोपी चंदा कौरू नगर मत जाना। कौरू नगर का जादू अटपट है कोई पार नहीं पाता। बड़े-बड़े राजा वहां  पत्‍थर हो गए । वापस कोई नहीं आया रे बालक। देखो कर्म को छोड़ दिया कहती हूं। मत जा बेटा कौरू नगर मत जा। मत जा बेटा।

C: गोपी - देख तो दाई आज मोला तैंह कौरू नगर मत जा कहिथस। सुन्दर तोर राज हे। तैं राज कर ले बेटा। माता तुलसी हे तेन समझाथे। वोह जादू के राज ये बेटा। कतको राजा मन जा के उहां पथरा होगे कोनो वापस नइ आये हे। काबर, ओ समय माता तुलसी हे तोन गोपीचंदा ला गुरूमंत्र ल बताये। का गुरूमंत्र ल बतावथे -

H: गोपी - देखो तो मां आज मुझे तुम कौरू नगर मत जा कह रही हो। सुन्दर तुम्‍हारा राज है। तुम राज कर लेना बेटा। माता तुलसी उसे समझा रही है। वहां जादू का राज है बेटा। कितने राजा लोग जाके वहां पत्‍थर हो गए कोई वापस नहीं आये हैं। उसी समय माता तुलसी हैं वह गोपीचंदा को गुरूमंत्र बताती है। क्या गुरूमंत्र बताती है –

C: गुरू सत गुरू सत गुरू नहीं गुरू साये संकर लक्ष्मी,

गुरू सो रहे त का फल पाये।

गुरू सते गुरू मति।

आके बिदया दे सरसती।

बढ़ के जादू मारे दाई वो। बढ़ के जादू मारे।

ये गुरूमंत्र ये कौरू नगर के।

H: गुरू सत गुरू सत गुरू नहीं गुरू साये शंकर लक्ष्मी, गुरू सो रहे तो क्या फल पाये। गुरू सत्‍य है गुरू ही मन है। हे सरस्‍वती मांता आकर विद्या दो। बढ़ कर जादू मारा है मां। बढ़ कर जादू मारा है। ये गुरूमंत्र है कौरू नगर का।

C: ये तो वोकर मन के ये अउ उंखर बता, ये जदुवहिन मन के

सात सखी मिल मंगल गायन बिखहर जहर भराइन

लीमें के पत्ता म सेंदूर बूंके जल में बिच्छी बनाइन

जल में बिच्छी बनाइन दाई वो जल में बिच्छी बनाइन

ये सातो बहिनी जदुवहीन मन के मंत्र ये वो, ढाई इक्‍छर के रहिथे, परान ले लेथे। हम नोहन गा।

H: ये तो उन लोगों का मंत्र हो गया और उंनका बताओ, ये जादुगरनियों का

सात सखी मिलके मंगल गायन कर रही है विष भर रही हैं। नीम के पत्ते पर सिंदूर पोत कर जल में बिच्छू बना रही हैं माता। जल में बिच्छू बना रही हैं। यह सातो जादुगरनी बहनों का मंत्र है। ढाई अक्षर का रहता है, प्राण ले लेता है, हम नहीं है भई।

C: ये रागी भईया, ये भजनहिन ह गांव में मंत्र सिखाथे तहां ये मुक्‍तांगन म आके, नहीं गा हम गोपीचंदा गाए बर आए हन। 

सुन लेबे दाई ये दे सुन लेबे वो

बेटा के विनती माता सुन लेबे वो

गोपी के विनती माता सुन लेबे वो

माता के चरण में बेटा गिरे हावय न

देखा देबे तैं मोला रस्ता ल वो

जल्दी कन मोला बता देना वो

चंदा ल रस्ता बता देना वो

गइया के चरइया मन मोहना वो

बंसी के बजइया मन मोहना वो।

H: ये रागी भईया, ये भजनहिन है वह गांव में मंत्र सिखाती है और ये मुक्‍तांगन मे आके, नहीं जी हम गोपीचंदा गाने आए हैं।

सुन लेना मां ये सुन लेना ना। बेटे की विनती माता सुन लेना। गोपी की विनती माता सुन लेना। माता के चरणों में बेटा गिर गया है ना। तुम मुझे रास्‍ता बताना ना माता। मुझे जल्‍दी रास्‍ता बता देना ना। चंदा को रास्‍ता बता देना माता। गाय को चराने वाले मन मोहना हैं ना। बंसी बजाने वाले मन मोहना है ना।

C: ये बेटा अतेक परन कर डारेस न तो मोरो से आसीरवाद लेले। काबर ए तुलसी जेन सुन्दर पत्ता फेंके हे न। एमा के तीन पत्ता तैं उठा ले। तीन पत्ता टोर ले बेटा अउ एला तें ---

H: बेटा इतना प्रण कर चुके हो तो मेरा भी आर्शिवाद ले लो। ये तुलसी से जो सुन्दर नया पत्ता उगा है ना। उसमें से तीन पत्ता तुम तोड़ लो। तीन पत्ता तोड़ लेना बेटा और इसे तुम ---

C: जंगल झाड़ी में जाबे बेटा पहाड़ पर्वत जाबे नहीं नाला म जाबे कोनो जगा तोला भोजन मिलही तोला कोनो जगा तोला पानी मिलही। भूख पियास मरबे बेटा तेकर ले ये पावन पत्ता ल अर्पन कर ले। एकर ले तोला भूख पियास नइ लागय। अउ एक बात अउ हे अइसन रूप में जाबे ना तो पिता ल नइ उबार सकस। ये रूप मे।

H: जंगल झाड़ी में जावोगे बेटा पहाड़ पर्वत जावोगे, नहीं नाला पर जावोगे कोई भी स्‍थान पर तुम्‍हें भोजन मिलेगी तुम्‍हें किसी भी स्‍थान पर तुम्‍हें पानी मिलेगा। भूख प्‍यास लगेगी बेटा इसलिए इस पावन पत्ते को अर्पन कर लेना। इससे तुम्‍हें भूख प्‍यास नहीं लगेगी। एक बात और है ऐसे रूप में जावोगे ना तो पिता को नहीं उबार सकते। इस रूप मे।

C: गोपी - तो कोन रूप में जाहूँ।

जोगी के रूप बना ले बेटा। भगवा के रंग के कपड़ा पहिन लेबे।

गोपी - मैं कहां के जोगी के भेश पाहूँ ?

H: गोपी - तो कौन रूप में जाउं।

जोगी का रूप बना लेना बेटा। भगवा रंग का कपड़ा पहन लेना।

गोपी - मैं कहां से जोगी का वेश पाउंगा ?

C: बेटा कपड़ा सफेद के रही तेन ल रंगा लेबे। भगवा रंग के कपड़ा रंगा लेबे। अउ सुनदर बगल में --- रख लेबे। बेटा गोपी नौ रंग के सुन्दर टोपी बना लेबे। हाथ में करताल लिए हुए। एक हाथ में बीना धरबे। ऐ दे बीना तोला देवत हव बेटा। एक हाथ म बीना बजाबे अउ दूसर में करताल बजाबे। जाके तैं अपन पिता ल उबार के लाबे मोर आसिरवाद हे बेटा।  लेकिन एक बात अउ उहे बेटा जब तक तैं अपन माता से आसिरवाद नइ लेबे, ओकर से भिक्षा नइ लेबे तब तक तैं अपन पिता ल नइ उबार सकस बेटा। पहिली तैं अपन माता के भवन में चले जा बेटा ओकर से भिक्षा मांग लेबे। देख तो भगवान आज माता जी हे तोन बड़ा प्रसन्न होकर के बेटा गोपीचंदा ल सुन्दर वरदान देहे।

H: बेटा सफेद कपड़ा रहेगा उसे रंगा लेना। भगवा रंग में कपड़े को रंग लेना। और सुन्‍दर बाजू में रख लेना। बेटा गोपी नौ रंगों का सुन्दर टोपी बना लेना। हाथों में करताल लिए हुए। एक हाथों में वीणा पकड़ लेना। ऐ वीणा तुम्‍हें दे रही हूं बेटा। एक हाथ में वीणा बजाना और दूसरे में करताल बजाना। जाके तुम अपने पिता को उबार के लावोगो मेरा आर्शिवाद है बेटा। लेकिन एक बात और है बेटा जब तक तुम अपनी माता से आर्शिवाद नहीं लोगों, उससे भिक्षा नहीं लोगे तब तक तुम अपने पिता को नहीं उबार सकोगे बेटा। पहले तुम अपनी माता के भवन में जावो बेटा उनसे भिक्षा मांग लेना। देखो तो भगवान आज माता जी जो हैं वो बड़ा प्रसन्न होके बेटा गोपीचंदा को सुन्दर वरदान दे रही हैं।

C: साधू के भेश, बीना करताल हे। बेटा जंगल झाड़ी, पहाड़ पर्वत जाबे। राजघराने का बेटा। भूख पियास मरबे तेकर ले तुलसी के तीन पत्ता ल ग्रहण करले कहिके सुन्दर आसिवाद देहे। माता तुलसी हॅ। अउ कहे के जब तक तैं अपन माता ले भिक्षा नइ लेबे तब तक तैं अपन पिता ल नइ उबार सकस। आसिरवाद नइ लेबे तब तक मोर मनोकामना पूरा नइ होवय। देख तो जब राजा भरथरी गुरू गोरखनाथ ल गुरू बनाइस।

H: साधू के वेश, बीना करताल है। बेटा जंगल झाड़ी, पहाड़ पर्वत जावोगे। राजघराने का बेटा भूख प्‍यास लगेगी इसलिए तुलसी के तीन पत्ते को ग्रहण कर लो कह कर सुन्दर आर्शिवाद देती है, माता तुलसी। और कहती हैं जब तक तुम अपनी माता से भिक्षा नहीं ले लेते तब तक तुम अपने पिता को उबार नहीं सकते। आर्शिवाद नहीं लोगों तब तक मेरी मनोकामना पूरा नहीं होगी। देखो तो जब राजा भरथरी गुरू गोरखनाथ को गुरू बनाया।

C: तब उहु ल कहे रिहिस कि तैं सामबाई करा जा के भिक्षा लेबे तभे तोर मनोकामना पूर्ण होही। जब तक माता के हाथ भिक्षा नइ मिलही तब तक जोगी के जोग अमर नइ होवय। जेकर बेटा गोपीचंदा ला आज अपन माता ले भिक्षा लेबर परत हे।

H: तब उसे भी कहा गया था कि तुम सामबाई के पास जाके भिक्षा लोगे तभी तुम्‍हारा मनोकामना पूर्ण होगा। जब तक माता के हाथों से भिक्षा नहीं मिलेगी तब तक जोगी का जोग अमर नहीं होगा। जिसके बेटे गोपीचंदा को आज अपनी माता से भिक्षा लेना पड़ रहा है।

C: राजा भरथरी कोन ए, सामबाई कोन ए अउ ये गोपीचंदा कोन ए ? (ममा भांचा ए)

साधु के वेश बनाके जी देखो अलीन गलीन म ये तो चलत हे

अरे ए संगवारी ए संगवारी देखतो भाई देखतो आज तक हमर देष बंगाला में अतेक सुग्घर साधु नई आये रिहीसे। कितना सुन्‍दर बालक साधू के वेश में।  ओकर टोपी ल तो देख। अरे नौ रंग के टोपी हे गा। अउ वो बालक गोपीचंदा है आज माता मैना के भवन बर चलत हे। तो ओ समय में ------

H: राजा भरथरी कौन हैं, सामबाई कौन है और यह गोपीचंदा कौन है ? (मामा भांजा हैं)

साधु के वेश बनाके देखो गली मुहल्‍ले में चल रहा है। ओ ऐ मित्र एै मित्र देखो तो जी, देखो तो भाई देखो तो आज तक हमारे देश बंगाल में इतना सुन्‍दर साधु नहीं आया था। कितना सुन्‍दर बालक साधू के वेश में। उसके टोपी को तो देखो। अरे नौ रंगों का टोपी है। और वह बालक गोपीचंदा है आज माता मैना के भवन के लिये जा रहा है। तो उसी समय में ------

C: चउकिन नांव के मोर दासी ए जी सुन्दर मजा के मोर देखत हे न।

घेरी भेरी ये नजर देखे वो

बालक जोगी बड़ा सुन्दर हे वो

बालक जोगी गोपीचंदा ये जी

बीच दरवाजा में गुनथे न

H: चउकिन नाम की दासी सुन्दर मजे से देख रही है ना। वह बारंबार वह नजरों से देख रही है। बालक जोगी बड़ा सुन्दर है। यह बालक जोगी गोपीचंदा है जी। बीच दरवाजा में चिंतन करने लगी।

C: अइसन रंग के साधु हम कभु नइ देखे हन

साधु के भेश ये बनाके जी

गली गलीच कइसे चलये

जोगी कर भेशे ये दे लेके जी

एदे चलन लागे भाई

H: ऐसे ढंग का साधु हम कभी नहीं देखे थे। वह साधु का वेश बनाके जी। गली गली में कैसे चल रहा है। जोगी के वेश में यह देखो जी चलने लगा।

C: देख तो सुन्दर से 12 भांवर के आंगन में अतेक सुन्दर बीना बजाते हुए साधु खड़े हे। अइसन सुन्दर बानी हे, रानी करा जाके खबर बनावथे। हमर महल में साधु आये हे कहिके। देख तो दाई आज तोर अंगना में बड़ा सुन्दर बालक साधु आये हावय। बालक साधु आये हावय ? हौ। जाकर के तैं सुन्दर भिक्षा देदे। कहिके। माता ल तैं कइ देते के मोला भिक्षा देकर के बिदा कर देतिस।

H: देखो तो सुन्दर 12 चक्‍कर के आंगन में इतना सुन्दर वीणा बजाते हुए साधु खड़ा है। ऐसा सुन्दर वाणी है, रानी के पास जाके खबर बताती है। हमारे महल में साधु आये हैं कहती है। देखो तो मां आज तुम्‍हारे आंगन में बड़ा सुन्दर बालक साधु आश है। बालक साधु आया है ? हां। जाकर के तुम सुन्दर भिक्षा दे दो कहती है। माता को तुम कह दो मुझे भिक्षा देकर का बिदा कर दे।

C: जाके दासी हे तेन कहिथे रानी माँ। ये रानी माँ। तोर आंगन में एक झन छोटे से साधु आये हे। कोन आये हे ? साधु आये हे साधु। हमर अंगना म साधु आये हे। हौं। अतेक दिन होगे रिहिस दाई हमर अंगना म कोई साधु नइ आये हे। आज सुन्दर साधु बैरागी आये हे तो हमर ये घर मे कोई चीज के कमी नइहे। दान दक्षिणा देके सुन्दर वो साधु ल तैं बिदा कर दे दाई। आज सुन्दर थाली में मोहर लेके, दाल चावल लेके साधु के पास पहुंचे रागी। अउ जाके कहे साधु महराज ये दे मैं भिक्षा लेके आये हौं। भिक्षा लेके आये हस ? हौ। वो समय बेटा गोपीचंदा कहिथे - अगर ये दासिन हाथ के मैं भिक्षा ले लेहूं तो आज मोला ये जोगी के जोग अमर नइ होवय दाई। तुलसी माता कहे हे के तैं मैना माता के हाथ से भिक्षा लबे।

H: जाके दासी रहती है वह कहती है रानी माँ। ओ रानी माँ। तुम्‍हारे आंगन में एक छोटा सा साधु आया है। कौन आया है ? साधु आया है साधु। हमारे आंगना में साधु आया है। हां। बहुत दिन हो गए थे मां हमारे आंगना में कोई साधु नहीं आये हैं। आज सुन्दर साधु बैरागी आये हैं तो हमारे इस घर मे कोई चीज की कमी नहीं है। दान दक्षिणा देके सुन्दर उस साधु को तुम बिदा कर दो मां। आज सुन्दर थाली में मोहर लेके, दाल चावल लेके साधु के पास पहुंच गई रागी। और जाके कहती है साधु महराज ये मैं भिक्षा लेके आई हूं। भिक्षा लेके आई हो ? हां। वही समय बेटा गोपीचंदा कहता है - अगर यह दासी के हाथों से भिक्षा ले लूंगा हूं तो आज मुझे यह जोगी का जोग अमर नहीं होगा मां। तुलसी माता नें कहा है के तुम मैना माता के हाथों से भिक्षा लेना।

C: सुन ले ले दाई अउ सुन ले लेले वो

यहां के राजा ये दे रानी आवस या

मै रानी नोहव बेटा मै दासी हरव गा

वही ये दे दाई मैं ह बिनती करव वो

राजा के ये रानी ल ते लाई लेबे दाई

राजरानी माता ल जाके संदेस कहिबे

मोर हाथ ले नई लेवस ?

H: सुन लेना मां सुन लेना। यहां का राजा की रानी हो ना। मै रानी नहीं हूं बेटा मै दासी हूं। वही मां मैं विनती करता हूं वो राजा की रानी को तु ले आवो मां। राजरानी माता को जाके संदेश दे दो। मेरे हाथों से नहीं लोगे ?

C: धन हे मोर जनम। धन हे मोर करम। ये दासी के हाथ से मैं भिक्षा नइ ले सकंव। हे भगवान।

H: धन है मेरा जन्‍म। धन है मेरा कर्म। दासी के हाथों से मैं भिक्षा नहीं ले सकंता हूं। हे भगवान।

C: मोर मालिक का तोर करेंव मैं बिगाड़।

सुख दुख म बितत हे दिन सारी रात गा

अइसन मोल दासी के जनम नइ लेना रिहिस। अइसन बड़ साधु आज अंगना में आहे हे एला मैं भिक्षा नइ दे सकेंव। मोर हाथ ले भिक्षा नई ले पात हे। धिक्कार हे मोर जिनगी ल।

H: मेरे स्वामी मैनें तुम्‍हारा क्या बिगाड़ की हूं। सुख दुख में बीत रहा है दिन रात। ऐसा मुझे दासी का जन्‍म नहीं लेना था। ऐसा बड़ा साधु आज आंगना में आये हैं उसे मैं भिक्षा नहीं दे सकी। मेरे हाथों से वह भिक्षा नहीं ले रहे है। धिक्कार है मेरी जिन्‍दगी को।

C: रोवत ----- चलन जब लगे वो

मोर मालिक ---------- ।

आज ये साधु ल

मोर मालिक ---------- ।

H: रोती ----- चलने लगी। मेरे स्वामी ---------- । आज यह साधु को । मेरे स्वामी ---------- ।

C: उलटा लहुट अंगना चले जाथे दासी हॅ। मोर मालिक ---2 दुख दुख म बीतत हाव दिन भारी रात गा। का करौं भगवान आज मैं दासी के जनम ले हौं। रानी के सेवा करत हौ। बरतन साफ करत हौं। घर के पोंछा लगावत हौं।

ए रानी दाई साधु मोर हाथ के भिक्षा नइ लिस माँ।

H: दासी वापस लौट कर आंगना से चली गई। मेरे स्वामी दुख दुख में बीत रहा है दिन भारी हो गए हैं रात। क्या करूं भगवान आज मैं दासी के रूप में जन्‍म ली हूं। रानी की सेवा कर रही हूं। बर्तन साफ कर रही हूं। घर का पोंछा लगा रही हूं।

ओ रानी मां साधु मेरे हाथों से भिक्षा नहीं लिया माँ।

C: तोर हाथ से भिक्षा नइ लिस ? नई। अइसे। कहिथे - रानी के हाथ ले मैं भिक्षा लेहूँ। दासी के हाथ से मैं भिक्षा नइ लेंवव। देख तो दासी धन्य हे वो बालक ल जेन मोर हाथ से भिक्षा लेना चाहत हे। जो वो बालक ल बलाके ले आबे।

बलाके लाव दाई ?

जरूर! मैं अपन हाथ से वोला भिक्षा देहूँ।

H: तुम्‍हारा हाथों से भिक्षा नहीं लिये ? नहीं। ऐसा। कहते हैं - रानी के हाथों से भिक्षा लूंगा। दासी के हाथों से भिक्षा नहीं लूंगा। देखो तो दासी धन्य है वह बालक जो मेरे हाथों से भिक्षा लेना चाहता है। उस बालक को बुला के ले आना।  बुलाके लाउं मां ? जरूर! मैं अपने हाथों से उसे भिक्षा दूंगी।

C: चलत हे दासी मोर चलत हे जी

सोने के पलंग में रानी बइठे हे न

रोवत कल्पत ये चेहरा हे जी

बेटा के खातिर मोर रोवय गा

नैना में नीर बहावय रानी ओ

बेटा के खातिर मोर रोवय गा

हाथ ल जोड़ के उहां दासी चलय गा

रानी के चरन म ओह गिरथे न

गइया के चरइया मन मोहना वो

बंसी के बजइया मन मोहना गा।

H: दासी जाने लगी। रानी सोने के पलंग में बैठी है। राता बिलखता चेहरा है। बेटे के खातिर रोती है। रानी नैना में नीर बहाती है। बेटे के खातिर रोती है। हाथों को जोड़ कर वहां दासी चलती है। रानी के चरण में वह गिरती है। गाय को चराने वाला मन मोहना है ना। बंसी को बजाने वाला मन मोहना है ना।

C: ये साधु चल तोला राजमहल में बलाए हे रानी हॅ।

राजभवन में बलाये हे।

हां राजभवन में बलाए हे।

धन्य हे मोर भाग दाई। आज माता के मोला माता के दरसन होही। मैं माता मैंना से सुन्दर आसिरवाद पा लेहूं। आज मैं माता मैना के हाल चाल घला जान लेहूँ। अइसे कहिके गोपीचंदा सज धज के सत खण्डा महल में 12 भांवर के अंगना में गोपीचंदा खड़े हे –

H: ओ साधु चलो तुम्‍हें राजमहल में रानी बुलाई है।

राजभवन में बुलाई है।

हां राजभवन में बुलाई है।

धन्य है मेरा भाग मां। आज माता का मुझे माता का दरसन होगा। में माता मेंना से सुन्दर आर्शिवाद पाउंगा। आज मैं माता मैना का हाल चाल भी जान लूंगा। ऐसा कहकर गोपीचंदा सज धज कर सत खण्डा महल में 12चक्‍कर के आंगना में गोपीचंदा खड़े हैं –

C: हरि गुन गावै दाई बीना बजावै का गा

चलथे मैना कर महल में वो

----

तोर दरसन खातिर नैना तरसथे दाई

आज दरसन करि लेतेंव वो

मोर मैना दाई आजे दरसन तैं मोला देदे वो।

H: वीणा बजाते हुए हरि गुण गा रहा है। वह मैना के महल में जा रहा है। ---- । तुम्‍हारे दर्शन के लिए मेरे नैन तरस रहे हैं मां। आज दर्शन कर लेता। मेरी मैना मां आज तुम मुझे दर्शन दे देना।

C: आज सुन्दर मजा से देखो बेटा गोपीचंदा हे तेन माता मैना के दरसन बर गे हावे। जेन ल माता मैना कहिथे - हाय कतेक सुन्दर लइका ये दाई। धन हे एकर माता अउ पिता ल धन हे ये बालक ल। अतेक सुन्दर लइका देख तो साधु हो गे हे। साधु बनके निकल गे हे। धन हे बेटा। ये बालक कतेक सुन्दर तोर बोली लागथे । ओकर दाई ददा रोवत होही कल्पत होही। आत्मा रोवत होही।

H: देखो आज सुन्दर आनंद से बेटा गोपीचंदा है वह माता मैना का दर्शन के लिये गया है। जिसे माता मैना कहते हैं - हाय कितना सुन्दर बालक है यह मां। धन्‍य हैं इसके माता और पिता को धन्‍य है इस बालक को। इतना सुन्दर बालक देखो तो साधु हो गया है। साधु बनके निकल गया है। धन्‍य है बेटा। ओ बालक कितनी सुन्दर तुम्‍हारी बोली लग रही है। उसके मां बाप रो रहे होंगें तड़फ रहे होंगें। आत्मा रो रही होगी।

C: बालक सोचथे। हे भगवान माता मैंना के दरसन करे बर जाथौ। माता तुलसी कहे रिहिस के देख बेटा तैं माता मैना के आसिरवाद लेबर जाथस फेर माता मैना तोला नइ चिन्हय। हे भगवान आज मैं कौरव नगर जाथौ। उहां ले बांच के आहूँ के नई आवंव तेकर का भरोसा हे।

ये जिनगी के का भरोसा हे - वोह भैया जादू के राज ये भाठा ल पानी, पानी ल भाठा बनाथे। का मैं उहा ले उबर के आ जहौं। का उहां जाके मैं पथरा हो जाहूं। भगवान आज मोर माता के मोला दरसन करना हे। बेटा गोपीचंदा अपन भाग ल सहिराथे –

H: बालक सोच ता है। हे भगवान माता मेंना का दर्शन करने के लिये जा रहा हूं। माता तुलसी ने हहा था कि देख बेटा तुम माता मैना का आर्शिवाद लेने के लिए जा रहे हो परंतु माता मैना तुम्‍हें नहीं पहचानती। हे भगवान आज में कौरू नगर जा रहा हूं। वहां लेना बच के आउंगा कि नहीं आउंगा उसका क्या भरोसा है।

इस जिन्‍दगी का क्या भरोसा है - वहां भैया जादू का राज है सूखी भूमि को पानी, पानी को सूखी भूमि बना दिया जाता है। क्या मैं वहां से उबर कर आ पाउंगा। क्या वहां जाके मैं (भी) पत्‍थर हो जाउंगा। भगवान आज मुझे अपनी माता का दर्शन करना है। बेटा गोपीचंदा अपने भाग्‍या पे इतराया

C: माटी के संगी, माटी हे न, ए तन हॅ मोर माटी हे न।

दाई ददा तोर भाई अउ बहिनी।

माटी के संगी, माटी हे न, ए तन हॅ मोर माटी हे न।

दाई ददा कुटुम्ब कबीला जीयत भर के साथी हे न।।

H: माटी के साथी, माटी है ना, ये तन मोटी है ना। मां पिता तुम्‍हारे भाई बहन। मां पिता परिवार समाज जीवन रहने तक के साथी हैं।

C: ये माटी रूपी सरीर ककरो काम नई आय। आज मैं बैरी के देस म जाथौ। तेकर सेती माता के दरसन करे जाथौं। अइसे सोच के बेटा गोपी हे तेन 12 भांवर के अंगना में खड़े हे। मैना माता हे तेन उहां से का बोलत हे। ए बेटा देख तो तोर बोली कतेक सुन्दर लागिस बेटा। धन हे बेटा हे --

H: यह माटी रूपी शरीर किसी के काम नहीं आता। आज मैं दुश्‍मन के देश में जा रहा हूं। इसलिए माता के दर्शन के लिए जा रहा हूं। ऐसा सोच कर बेटा गोपी है वह 12 चक्‍कर के आंगना में खड़ा है। मैना माता है वह वहां से क्या बोलती है। ये बेटा देखो तो तुम्‍हारी बोली बहुत सुन्दर लगा बेटा। धन्‍य है बेटा –

C: सुरत देख बेटा दया मोला लागत हे।

बोली बचन तोर गजब सुहावत हे।।

H: सूरत देख के बेटा मुझे दया आ रही है। बोली बचन तुम्‍हारी बहुत अच्‍छी लग रही है।

C: सब के लिए तैं साधु हस। मोर लिए तैं बेटा के समान हस। वो समय गोपीचंदा ल देखके मैना बड़ा गदगद हो जाथे। अइसन साधु मोर अंगना मे नइ आये रिहिस। बेटा तोला आज का भिक्षा देहूँ। सुन्दर मोर हाथ से तोला भोजन कराहूं। अइसे बेटा गोपी ल बोले हे मैना माता हॅ। त गोपीचंदा का काहत हे -

H: सब के लिए तुम साधु हो। मेरे लिए तुम बेटा के समान हो। उस समय गोपीचंदा को देख कर मैना बड़ा गदगद हो गई। ऐसा साधु मेरे आंगना मे नहीं आया था। बेटा तुम्‍हें आज क्या भिक्षा दूंगी। मेरे हाथों से सुन्दर तुम्‍हें भोजन कराउंगी। ऐसा बेटा गोपी को बोलती है मैना माता। तो गोपीचंदा क्या कहता है –

C: सच बात कहे दाई भूख मोला लागत हे।

तीन दिन के खाये नइ हौं जीवरा धुक-धुक लागत हे।।

H: सही कह रही हो माता मुझे भूख लगी है। तीन दिन से खाया नहीं हूं जी धक-धक लग रहा है।

C: सही बात ल कहे दाई मोला अबड़ भूख लागत हे। मैं तीन दिन के खाये नइ हौं। लेकिन दाई एक बात हे साधु महराज मन हंसते हुए भोजन करथे माँ। रोवत भोजन नइ करय। अगर रोवत भोजन करही तो जोगी के जोग हे तेन अमल नइ होवय। आज मोला तैं हंसत भोजन कराबे।

अइसे बात हे साधु बेटा। जब ए बात हे तो मोरो एक ठन प्रण हे सुन -

H: सही कह रही हो माता मुझे बहुत भूख लगी है। मैं तीन दिन से खाया नहीं हूं। लेकिन माता एक बात है साधु महराज लोग हंसते हुए भोजन करते है माता। रोते हुए भोजन नहीं करते। कहीं रोते हुए भोजन करेंगे तो जोगी का जोग है वह फलीभूत नहीं होगा। आज मुझे तुम हंसते हुए भोजन कराओगी।

ऐसी बात है साधु बेटा। जब ऐसी बात है तो मेरी भी एक प्रण है सुनो –

C: कहां तोर आना जाना कोन तोर गांव हे ?

कोन तोर दाई ददा का तोर नांव हे ?

एला बताबे तभे तोला भोजन कराहूं बेटा।

अब गोपीचंदा सोंचे लगथे देखतो भगवान कहां तोर आना जाना हे कहिथे, कोन तोर नाव कहिथे। तोर माता पिता कोन ए कहिथे मैं काला बतावंव भगवान। बेटा गोपीचंदा कहिथे देख तो माता आज मोर दाई ददा के नाव ल पूछे। लेकिन ये साधू बैरागी के गांव -घर ला का पूछेस माँ।

H: कहां तुम्‍हारा आना जाना है तुम्‍हारे गांव का क्‍या नाम है ? तुम्‍हारे माता पिता कौन है तुम्‍हारा नाम क्‍या है ? इसे बताओगे तभी तुम्‍हें भोजन कराउंगी बेटा। अब गोपीचंदा सोचने लगता है देखो तो भगवान कहां तुम्‍हारा आना जाना है कह रहीं  हैं, तुम्‍हारा नाम क्‍या है पूछ रही है। तुम्‍हारे माता पिता कौन ये पूछ रही हैं मैं कैसे बताउं भगवान। बेटा गोपीचंदा कहता है देखो माता आज मेरे मां पिता का नाम को पूछ रही हो। किन्‍तु यह साधू संत के गांव -घर को क्या पूछे रही हो माँ।

C: यहीं मोर आना जाना यहीं मोर गांव ये।  

जेहर मोला बेटा कहिथे वही माता पिता ये।

H: यहीं मेरा आना जाना यही मेरा गांव है। जो मुझे बेटा कहता है वही मेरे माता पिता हैं।

C: देख तो दाई तैं मोर घर के नाम ल पूछत हस। तैं मोर नांव ल पूछत हस। माता रमता जोगी बहता पानी अउ जिंहां ओकर राज हो जाथे वहीं ओकर गांव हो जाथे। जेन मोला बेटा कहिथे वहीं मोर माता-पिता हो जथे। मोला तैं जल्दी से बिदा कर दे। जल्दी से भोजन देदे। सुन्दर मैं भोजन बनाए हौं बेटा तैं खाले। मैं भोजन लेके आवत हौं। आज मैना माता हे तेन सुन्दर जैसे गोपीचंदा ल गोदी म रख के खवावै ओइसने वो सुन्दर साधु ल बइठार के खवावत हे। आज मैना माता ह जइसे गोपीचंदा ल गोदी म बइठार के सुन्दर भोजन खवावै ओइसने जोगी ल बइठारे हे। अउ बइठार के सुन्दर भोजन करावत हे।

H: देखो मां तुम मेरे घर का नाम पूछ रही हो। तुम मेरा नाम पूछ रही हो। माता रमता जोगी बहता पानी और जहां उसका राज हो जाता है वही उसका गांव हो जाता है। जो मुझे बेटा कहता है वहीं मेरे माता-पिता हो जाते हैं। मुझे तुम शीघ्र बिदा कर दो। जल्‍दी से भोजन दे दे। मैं सुन्‍दर भोजन बनाई हूं बेटा तुम खा लो। मैं भोजन लेके आती हूं। आज जैसे मैना माता सुन्दर गोपीचंदा को गोदी में बैठा के खिलाती थी वैसे ही बैठा के खिला रही है। आज जैसे मैना माता सुन्दर गोपीचंदा को गोदी में बैठा के खिलाती थी वैसे ही जोगी को बैठाई है। और बैठा कर सुन्दर भोजन करा रही है।

C: रामे रामे रामे ये गा रामे

सुन्दर थाली म भोजन कर लेबे गा

सुन लेबे बेटा

ये सुन्दर भोजन खवावै वो मैना माता हॅ संगवारी

मांगे म ये दिन मिलै नई नई मिलय राजा

H: राम राम राम यह गा राम। सुन्दर थाली में भोजन कर लेना। सुन लो बेटा, सुन्दर भोजन खिला रही है मैना माता। मित्र यह दिन मांगने पर भी नहीं मिलता

C: भोजन खिलावत हंव बेटा बड़ा प्रेम के साथ भोजन खाले गोपी। देख तो मैना माता हॅ प्रेम से मोला बड़ा सुन्दर भोजन कराये हे। ओकर मन में का लागत हे ? अइसे लगत हे। लेकिन एक बात हे दाई मै तोला सुन्दर हंसत भोजन खवाबे कहे रेहेंव दोई लेकिन ये रोए के कारण का हे दाई जेमा तैं मोला रोवत भोजन खवावत हस। एकर कारण ल तैं बतादे कहै रागी।

H: भोजन खिला रही हूं बेटा बड़े प्रेम से भोजन खाले गोपी। देखो तो मैना माता मुझे प्रेम से बहुत  सुन्दर भोजन करा रही है। उसके मन में क्या लगता है ? ऐसा लगता है। लेकिन एक बात है माता मै तुम्‍हें सुन्दर हंसते हुए भोजन कराने को कहा था किन्‍तु तुम्‍हारे रोने का कारण क्या है मां जिसमें  तुम मुझे रोते हुए भोजन खिला रही हो। इसका कारण तुम बताओ कहता है रागी।

C: ले बेटा गोपी सुन्दर भोलन खाले काहत हौं तेकर मतलब समझत हस ? एकर आत्मा बोलत हे आत्मा हॅ। काबर के दही बासी मांगे रिहिसे। त खवाये नइ रिहिसे। माँ के ममता। रागी जब तक महतारी हॅ पांच कौरा भोजन अपन हांथ से नइ खवावय न तब तक बालक के पेट हॅ नइ भरय। उही प्रकार अपन हाथ में भोजन खिलाये बर नित्य प्रति मैना तरसत राहय। उही दिन मैना ल बात याद आगे। कहे बेटा ! ये ले भोजन मोर हाथ ले खिलावत हौं। मोला अइसे लागत हे के मैं अपन गोपीच ल भोजन खिलावत हौं। गोपीचंदा ला अपन मैं भोजन खवावत हौं कहिके आज मोर आंखी ले नीर बहे हे। आज बेटा साधु तोल मैं रोवत भोजन नइ खवावत हौं तोला हांसत भोजन खवाहू। आनन्द के भोजन खवाहूं बेटा। मोर बेटा रिहस हे एक झन गोपीचंदा नाम के। वो ह बिल्कुल तोर कस रिहिस हे। गोपी - अच्छा मोरेच कस तोर बेटा गोपी रिहिसे। जइसे मोला भोजन करावत रहे वइसनेहे ओला भोजन करावत रहे। हौं।

H: लो ना बेटा गोपी सुन्दर भोजन खाले कह रही हूं उसका अर्थ समझ रहा है ? उसका आत्मा बोल रहा है आत्मा। क्योंकि दही बासी मांगा था। तो खिलाई नहीं थी। माँ की ममता। रागी, जब तक मां पांच कौर भोजन अपने हांथ से नहीं खिाला लेती ना तब तक बालक का पेट नहीं भरता। उसी प्रकार अपने हाथों से भोजन खिलाने के लिये नित्य प्रति मैना तरसती रहती है। उसी दिन मैना को बात याद आ गई। कहती है बेटा! ये देखो मैं ये भोजन अपने हाथों से खिला रही हूं ना। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं अपने गोपीचंदा को भोजन खिला रही हूं। गोपीचंदा को मैं भोजन खिला रही हूं सोंच कर आज मेरे आंखी से नीर बह रहे है। आज बेटा साधु तुमको मैं रोते हुए भोजन नहीं खिला रही हूं तुम्‍हें हंसते हुए भोजन खिलाउंगी। आनन्द से भोजन खिलाउंगी बेटा। मेरा बेटा था एक गोपीचंदा नाम का। वो बिल्कुल तुम्‍हारे जैसा था। गोपी - अक्छा मेरे ही जैसा तुम्‍हारा बेटा गोपी था। जैसे मुझे भोजन करा रही हो उसी तरह उसे भी भोजन कराती थी। हां।

C: ठीक हे लेकिन मोला तैं आसीरवाद दे दे दाई। मोला आगे के रद्दा जाना हे। जा बेटा तोर जोग पूरा होही। गोपी देख तो भगवना आज मैना माता हॅ मोला सुन्दर आसीरवाद दे हवे। लेकिन माता मोरो ये साधु बालक के आसीरवाद हवे। जेन दिन तोर बेटा गोपीचंदा हॅ घर आही वो दिन ए बालक साधु बैरागी हॅ तोर घर जरूरी आही। तैं आबे ? हां! ये बात के जरूर सुरता रखे रहिबे। मोर बेटा आही त आबे। हौ जरूर मैं तोर अंगना में एक बार आहूँ।

H: ठीक है लेकिन मुझे तुम आर्शिवाद दे दो माता। मुझे आगे रास्ते पर जाना है। जा बेटा तुम्‍हारा जोग पूरा हुआ है। गोपी देखो तो भगवान आज मैना माता मुझे सुन्दर आर्शिवाद दी है। लेकिन माता मेरी  इस साधु बालक का भी आर्शिवाद है। जिस दिन तुम्‍हारा बेटा गोपीचंदा घर आयेगा उस दिन ये बालक साधु बैरागी भी तुम्‍हारे घर जरूर आयेगा। तुम आना ? हां! इस बात को जरूर याद रखना। मेरा बेटा आयेगा तब आना। हां जरूर मैं तुम्‍हारे आंगना में एक बार आउंगा।

C: मोर गोपीचंदा आगे गा आगे बर बढै़ जी

मान मनौती बेटा चलत हे गोपीचंदा

मनगी नगर के मारग त पकड़े हे जी

जंगल के मारग हे ये बेटा

घना ये घोर येदे जंगल में बेटा पहुंचे

H: मेरा गोपीचंदा आगे के लिये बढ रहा है जी। मान दान लेकर बेटा गोपीचंदा जा रहा है। मनगी नगर के मार्ग को पकड़ा है जी। जंगल का मार्ग है यह बेटा। ये घन घोर जंगल में बेटा पहुंच गया।

C: माता अस्‍टंगी वहां बइठे हे। बरगद के झाड़ के नीचे म उहां गोपीचंदा पहुंचगे। मोर गोपीचंदा या या या माता अब देखथेजी। आज देख तो भगवान मंजिल दर मंजिल पार करते हुए बेटा गोपीचंदा हे तौन बीच जंगल में पहुंच करके देखै बड़ा बरगद के झाड़ क नीचे में बेटा गोपीचंदा बइठगे आज वही बरगद झाड़ के नीचे में सुन्दर देवी देवता मन के बइठे रहय। माता अश्टंगी हे तौन आज माता के रूप धारण करके खप्पर खरहरा धरे पतोर ल बटोरत हे। नजर म का परगे गा ?

H: माता अष्‍टांगी वहां बैठी है। वहां बरगद के झाड़ के नीचे गोपीचंदा पहुंच गया। मेरा गोपीचंदा ओ ओ ओह माता अब देखती है जी। आज देखो तो भगवान मंजिल दर मंजिल पार करते हुए बेटा गोपीचंदा रहता है वह बीच जंगल में पहुंच करके देखो बड़ा सा बरगद के झाड़ क़े नीचे में बेटा गोपीचंदा बैठ गया आज वही बरगद झाड़ के नीचे में सुन्दर देवी देवता लोग भी बैठे हैं। माता अष्‍टांगी है वह आज माता का रूप धारण करके खप्पर झाडू पकड़े पतोर को बटोर रही है। नजर में क्या पड़ गया जी ?

C: नजर पड़े हे ये दे जोगी उपर गा

बड़ा सुन्दर बालक जोगी दिखत हे न

देखते रहय अष्‍टंगी माता गोपी निहार के

कहां कर आये ये दे साधु बइठे गा

नींद पड़े हे गोपीचंदा के न

जाग गे गा माता मोर बोलत हावे जी

उठ न गा बेटा तैं उठ न गा तोर

उठो बेटा आज कहां के रहैया आस

ये गइया के चरइया मन मोहना गा

बंसी के बजइया मन मोहना ना।

H: जोगी के उपर नजर पड़ा है। बड़ा सुन्दर बालक जोगी दिख रहा है। अष्‍टांगी माता गोपी को निहार कर देखते ही रहती है। कहां से आयस है यह साधु जो बैठा है। गोपीचंदा की नींद पड़ी है। माता जब बोलती है तब वह जाग जाता है। उठो ना बेटा तुम उठ जावो ना। उठो बेटा तुम कहां के रहने वाले हो। ये गाया को चराने वाले मन मोहना हैं। बंसी को बजाने वाले मन मोहना हैं।

C: हे भगवान। मैं तो ये बरगद के झाड़ के नीचे म खरेरा करे बर आये हौं। पत्ता बटोरे बर आये हौ। मगर कहां से ये बालक आये हवय। ये बालक कोन ये। ये ला पता लगाना हे। एला पूछना हे। ए बालक, ए बालक। देख तो भगवान आज मोर नींद परे हे। अउ कोन माता आ करके मोला आवाज देवत हे। पलक खोलकर के गोपीचंदा देखे भैया आज खरेरा पकड़े माता के रूप में अश्टंगी माता आज दरसन देवथे। चरण म गिरे माता के। आज मोरे सोये नींद ल जगाये दाई। धन्य के बाद माता धन्य के बाद हे। ए बालक सुनत हस बेटा।

H: है भगवान। मैं तो इस बरगद के झाड़ के नीचे पर झाडू लगाने के लिये आई हूं। पत्ता बटोरने के लिये आई हूं। किन्‍तु ये बालक कहां से आया है। यह बालक कौन है। इसे पता लगाना है। इसे पूछना है। एै बालक, एै बालक। देखो तो भगवान आज मेरी नींद पड़ गई है। और कौन माता आ के मुझे आवाज दे रही है। पलक खोलकर के गोपीचंदा देखने लगा आज झाड़ू पकड़े माता के रूप में अष्‍टांगी माता आज दर्शन दे रही है। चरण में गिर गया माता के। आज मुझे सोये हुए नींद से जगाये माता। धन्यवाद माता धन्यवाद है। ऐ बालक सुन रहा है बेटा। हां।

C: ऽ     गीत

सुन लेबे बेटा मोरे कहना मानो जी

कहां के बेटा तैं रहैया आवस गा

घोर जंगल में बेटा काबर आये रे।

साधु तो आवस ये तैं साधु आवस गा

यहां तरा संकट तोला परे गा

कहां के तैं संकट येदे पेर गा।

H: सुन लेना बेटा मेरी बात मान। कहां के रहने वाले हो तुम बेटा। इस घोर जंगल में बेटा क्यों आये हो। साधु तो हो तुम साधु तो हो। तुम्‍हें इस तरह संकट पड़ा है। तुम्‍हें कहां का संकट पड़ा है।

C: काकर संकट में परके साधु भेश धरलेस। साधु के भेश धरके घोर जंगल में आये हस बेटा।

मोला कोई संकट परे हे न मोला कुछु परे हे माता आज मैं पिता उबारे के नाम से साधु भेश धरे हौं। मोर पिताजी हे तेन कौरू नगर में जाके पथरा होगे हे। देस बंगाला के रहैया राजा त्रिलोकी औ महारानी मैनावती के बेटा मैं गोपीचंदा हौ। पिता उबारे बर जाथौं माँ। तैं पिता उबारे जाथस बेटा ?

हां .... हां।

H: किसके संकट में पड़के तुम साधु वेश को धर लिए। साधु का वेश धर के घोर जंगल में तुम आये हो बेटा। मुझे कोई संकट पड़ा है ना मुझे कुछ भी पड़ा है माता आज मैं पिता उबारने के लिए साधु वेश धरा हूं। मेरे पिताजी है वे कौरू नगर में जाके पत्‍थर हो गए है। देश बंगाला के रहने वाले राजा त्रिलोकी और महारानी मैनामती का बेटा मैं गोपीचंदा हूं। पिता उबारने के लिये जा रहा हूं माता। तुम पिता को उबारने जा रहे हो बेटा ? हां .... हां।

C: पिता उबारे बर मत जा बेटा।

तैं पिता उबारे बर मत जा।

माता मैं तो मैना माता के चरण के कसम खाके निकले हौं दाई मैं पिता जब तक नइ उबारहूं तब तक मैं घर वापस नइ आवौं।  नइच मानस न  ? हौ। नइ मानव। तो एक बात हे बेटा। जे जगहा में तोला संकट हो जाही, जे जगा में तोला विपत पर जाही ओ जगा में मोला सुमर लेबे बेटा। बेटा मोर नाव लेके पुकार लेबे। चले जा बेटा। बेटा गोपीचंदा हे तोन देख तो आज माता अष्‍टंगी के प्रणाम करके मंजिल कर मंजिल आज चले जाथे। माता अष्‍टंगी हॅ घलो ओला आसीरवाद दे देथे। बेटा गोपीचंदा कहां चलथे - देख तो भगवान ओ समय में घनघोर जंगल में चलत हे बेटा गोपीचंदा हॅ। घनघोर जंगल में बीच में सुन्दर भगवान संकर अउ माता पार्वती के मंदिर हे। माता पार्वती कहिथे के भोलेनाथ। देख तो जेन दुनिया में नाम चलाही करके ए बालक ला जनम देके भेजे हस, आज अपन आत्मा ल गंवाये बर कौरू नगर जादू के राज में जात हवे। आज ओकर तैं कइसे रक्षा कर सकबे। जादू के राज में जाही तो वापस कइसे आही। वहू जादूवइन मन ल तहीं वरदान दे हवस। संकर भगवान माता पार्वती के बात सुनके कहिथे - देख आज ये बालक जाये बर जाथे लेकिन एकर परीक्षा लेना हे।

परीक्षा लेना हे।

परीक्षा लेना हे।

बेटा गोपीचंदा हे तेन जंगल के पार चलथे -

H: पिता उबारने के लिये मत जावो बेटा। तुम पिता उबारने के लिये मत जावो। माता मैं तो मैना माता के चरण की कसम खाके निकला हूं माता में जब तक पिता को उबार नहीं लेता तब तक मैं घर वापस नहीं आउंगा। नहीं मानोगे ना ? हां। नहीं मानुंगा। तो एक बात है बेटा। जिस जगह में तुम्‍हें संकट होगी, जिस जगह में तुम्‍हें विपत्ति आयेगी वहां मुझे सुमिरण कर लेना बेटा। बेटा मेरे नाम लेकर पुकार लेना। जा बेटा। बेटा गोपीचंदा रहता है वह देखो तो आज माता अष्‍टांगी को प्रणाम करके मंजिल की ओर चलने को होता है। माता अष्‍टांगी है उसे आर्शिवाद देती है। बेटा गोपीचंदा कहां जा रहा है - देखो तो भगवान उस समय में घनघोर जंगल में चल रहा है बेटा गोपीचंदा। घनघोर जंगल में बीच में सुन्दर भगवान शंकर और माता पार्वती का मंदिर है। माता पार्वती कहती है क्‍या भोलो नाथ। देखो तो जिस दुनिया में नाम चलाएगा करके इस बालक को जन्‍म देके आपने भेजा है, आज अपनी आत्मा को गंवाने के लिये कौरू नगर के जादू राज में जा रहा है। आज उसका तुम कैसे रक्षा कोगे। जादू के राज में जा रहा है तो वापस कैसे आयेगा। वो भी जादूगरनी लोगों को आप ने ही वरदान दिया है। शंकर भगवान माता पार्वती की बात सुनके कहते हैं - देख आज यह बालक जाने के लिये जा तो रहा है किन्‍तु आज इसकी परीक्षा लेना है।

परीक्षा लेना है।

परीक्षा लेना है।

बेटा गोपीचंदा है वह जंगल के उस पार चलता है -

C: अरे काबर घूमथौ बन बन में गा साधु बालक

काबर घूमथौ बन बन में

आज के बालक ये दे चलत हावै गोपी गा। काबर घूमथौ..........

आज के संकर भोला कइसे जब देखथे। काबर घूमथौ..............

तोर हिरदय म बसे भगवान हो बैरागी बालक

काबर घूमथौ बन बन में

H: अरे क्यों घूम रहा है वन वन में साधु बालक। क्यों घूम रहा है वन वन में। आज का बालक यह चल रहा है गोपी। क्यों घूम रहा है..........। आज का शंकर भोला कैसे जब देखते हैं। क्यों घूम रहे हो .............। तुम्‍हारा हृदय में भगवान बसा है बैरागी बालक। क्यों घूम रहे हो वन वन में

C: आज बेटा गोपीचंदा हे तोन सुंदर मंजिल दर मंजिल पार करते हुए पहुंचथे। वो समय में शंकर भगवान पार्वती ल कहिथे - देख ऐला माया मोह में फंसा देबो ताहेन ये सुन्दर घर वापस चले जाही। अउ वहां बढ़िया राज करे लगही। माता पार्वती कथे - दूनिया म नाम चलाये बर तैंह जनम ल दे हस। एला घर भेज देबे त एकर नाम कहां होही ? ये दूनिया में कहां नाम जगा सकही ?

संकर भगवान कहिथे - सही बात हे पार्वती। वो समय में -

H: आज बेटा गोपीचंदा है वह सुंदर मंजिल दर मंजिल पार करते हुए पहुंचता है। उसी समय में शंकर भगवान पार्वती को कहते हैं - देख इसे माया मोह में फंसा देंगे तब यह सुन्दर घर वापस चला जायेगा। और वहां बढ़िया राज करने लगेगा। माता पार्वती कहती है - दुनिया में नाम चलाये के लिये आप जन्‍म को दिए हो। इसे घर भेज दोगे तब इसका नाम कहां होगा? ये दूनिया में नाम कहां जगा सकेंगा? शंकर भगवान कहते हैं - सहीं बात है पार्वती। उसी समय में -

C: मोर माया कर कन्या ए भैया

मोर धरन लागै भैया (अरे दिव्य रूप)

कन्या वो समय जंगल में का भगवान हे तेन

मोर माया कन्या भाई

H: माया की कन्या है भैया। रूप धरने लागे भैया (अरे दिव्य रूप)। कन्या उस समय जंगल में क्या भगवान है वह। माया की कन्या है भाई

C: गोपीचंदा हे तोन भगवान के नाम लेते हुए जात रहे। वो समय गोपीचंदा के नजर पड़ जथ। गोपीचंदा सोचथे - यहा जंगल में मोर एक अकेली रे मैया मोर कन्या ह दिखथे जी।

मोर मन ये मन भैया ये सोचन लागे जी

संकर के मंदिर में सुन्दर कन्या, सुन्दरी, रूपवती संकर भोला के पूजा में लगे हे रागी। भोले भगवान के चरन में देख तो झूके हे भैया,बेल के पाती, नरियर, अगरबत्ती हाथ में लेके भगवान के चरण में चढ़ाये हे - अउ काहत का हे रागी -

H: गोपीचंदा रहता है वह भगवान का नाम लेते हुए जाता रहता है। उसी समय गोपीचंदा की नजर पड़ जाती है। गोपीचंदा सोचता है - इस जंगल में मेरी मइया एक अकेली कन्या दिख रही है।

मन ही मन में भैया वह सोचने लागता है जी

शंकर के मंदिर में सुन्दर कन्या, सुन्दरी, रूपवती शंकर भोला के पूजा में लगी है रागी। भोले भगवान के चरण में देखो तो झूकी है भैया, बेल की पत्‍ती, नारियल, अगरबत्ती हाथों में लेके भगवान के चरणों में चढ़ा रही है - और क्या कहती है रागी –

C: तोरे चरणों में है नाथ भोले ।

सर हमारा झुका ही रहेगा।

ये हमारा सर जो झुका है न ये उठने वाला नहीं क्योंकि -

जब तलक तुम और नहीं दोगे दर्सन सर हमारा झुका ही रहेगा।

H: तुम्‍हारे चरणों में हे भोले नाथ। सिर हमारा झुका ही रहेगा। ये हमारा सर जो झुका है ना यह उठने वाला नहीं है क्योंकि - जब तलक तुम दर्शन नहीं दोगे हमारा सर झुका ही रहेगा।

C: भोले भगवान जब तक से दर्सन नइ देहू तब तक के ये सर झुके रही। देख तो भगवान आज ये माया रूपी कन्या। आज सुन्दर मजा के ये जंगल में हाथ में आरती, बेलपाती लेके जंगलमें संकर भगवान के सुंदर सेवा में लगे हे। बेटा गोपीचंदा हे तोन आकर के सुंदर खड़ा होगे। खड़ा होकर के देखते के हे भगवान ए कन्या कतेक सुन्दर सेवा करथे। आज महूँ ये संकर भगवान के सेवा करहूँ और सेवा करके आसीरवाद लेके मोरो पिता ल मैं उबार लेतेंव जाके। बेटा गोपीचंदा सोचथे। वो समय में कन्या हे बड़ा सुन्दर मजा के सेवा देख के माता पार्वती भगवान संकर खुस होकर के प्रकट होगे। अउ प्रकट होके कहे के बेटी तोर सेवा से मैं प्ररसन्न हौं। आज तें का काहत हस ?

H: भोले भगवान जब तक से दर्शन नहीं दोगे तब तक यह सिर झुका ही रहेगा। देखो तो भगवान आज यह माया रूपी कन्या। आज सुन्दर आनंद के इस जंगल में हाथों में आरती, बेलपाती लेके जंगल में शंकर भगवान का सुंदर सेवा में लगी है। बेटा गोपीचंदा रहता है वह आकर सुंदर खड़ा हो गया। खड़ा होकर देखता है कि हे भगवान ये कन्या कितना सुन्दर सेवा कर रही है। आज मैं भी इस शंकर भगवान का सेवा करूंगा और सेवा करके आर्शिवाद लेके मेरे पिता को जाकर मैं उबार लेता। बेटा गोपीचंदा सोच रहा है। उस समय में कन्या को बड़ा सुन्दर मजा से सेवा करते देख कर माता पार्वती भगवान शंकर खुश होके प्रकट हो जाते हैं। और प्रकट होकर कहते हैं कि बेटी हम तुम्‍हारी सेवा से प्रसन्न हैं। आज तुम क्या कहती हो ?

C: दुनिया के मालिक आज मैं तोर से का मागौं ? अइसे मोला तैं दुनिया में जनम देके भेजे हस ओकर युक्ति अनुसार मोला तैं बरदान देदे। ओहो - भोलेनाथ पार्वती हे तेन सुन्दर प्रकट होके कहे बेटी अइसे आज सुन्दर मजा के आज मैं तोला जनम देकर के भेजे हौं एक साधु के रूप में एक बालक रूप में मैं तोला पति बरदान में देवत हौं। जेकर नांव रही गोपीचंदा आज वही ल तैं पति स्वीकार कर लेबे कन्या। गोपीचंदा सोचथे भगवान येहू संकर भगवान ल देखत हस –

H: दुनिया के स्वामी आज मैं तुमसे क्या मागूं ? जैसे मुझे आप दुनिया में जन्‍म देके भेजे हो उसी युक्ति के अनुसार मुझे बरदान दे दो। ओहो - भोले नाथ पार्वती है वह सुन्दर प्रकट होके कहते हैं बेटी ऐसा आज सुन्दर आंनंद से आज मैं तुम्‍हें जन्‍म देकर भेजा हूं एक साधु के रूप में एक बालक रूप में तुम्‍हें पति बरदान में दे रहा हूं। जिसका नाम होगा गोपीचंदा आज उसी को तुम पति स्वीकार्य कर लेना कन्या। गोपीचंदा सोचती है भगवान ये शंकर भगवान को देख रहे हो –

C: आज मैं एकर सेवा कर लेहू कहिके मैं आये हौं लेकिन मोरे नाम के एला पति देवत हे। खैर कोई बात नइ हे। दुनिया में एक से एक गोपीचंदा नाम के बालक होही। मैं एक अकेला नइ हौं जइसे कन्या हे जोन निकल गे मंदिर से अउ उही समय गोपीचंदा हे -

H: आज मैं इसकी सेवा कर लूंगी सोंचके आइ हूं किन्‍तु मेरे नाम का इसे पति दे रहे हैं। खैर कोई बात नहीं है। दुनिया में एक से एक गोपीचंदा नाम का बालक हैं। में एक अकेला नहीं हूं। कन्या रहती है वह मंदिर से निकली और उही समय गोपीचंदा -

C: चलत हवय गोपीचंदा येदे चलत हवय गोपीचंदा

मंदिर के मारग येदे चलत

कन्या भय आगे येदे

H: चलता है गोपीचंदा ये चल रहा है गोपीचंदा। मंदिर के मार्ग में ये चल रहा है। कन्या आ गई

C: देख तो आज गोपीचंदा भगवान संकर के मंदिर ये पंहुचे हे। कन्या जइसे ही सेवा करके निकलथे वो समय में कन्या कथे - हे भगवान जइसने मोला संकर भगवान हॅ बरदान देहे ओइसने आज मोला दिखत हावे। लेकिन ये कोन बालक ये ? कहां के रहैया ए ? इहां कइसे आये तेन ला महूँ जान लेतेंव कहिके मंदिर के आड़ लेके कन्या हे तेन सुन्दर मजा से लगे गोपीचंदा हर कथे - संकर भगवान हॅ तो बड़ा दीनदयाल ए गा। पांव म पदूम लेकर के बेटा गोपीचंदा जनम ले हवे। जब सेवा करे तो बड़े-बड़े देवी देवता ल घलो ओह बड़ा आनन्द हो जाथे। पहिली से ओला बरदान देबर तैयार हो जाथे। अइसन बालक गोपीचंदा ये। तबलीन होकर के आज भगवान संकर के चरण में ध्यान लगा करके गोपीचंदा हाथ जोड़ करके बइठे हे। संकर भगवान माँ पार्वती हे तौन प्रकट होगे - कहै कि बेटा साधु आज धन्य हे तोर जइसे बालक ल। आज तैं मोर सेवा करे हस। कहां के रहैया। कइसे के रहैया आज का खातिर बर सेवा करे हस जल्दी बता दे। बेटा गोपीचंदा हे तोन हाथ जोर के कथे के भोला तैं दुनिया के स्वामी अंतर्यामी कथे आज तोर चरण में आये हौं मैं। गोपीचंदा औं। देस बंगाला के राजा त्रिलोकी रानी मैनावती के बेटा मैं गोपीचंदा औं। आज पिता उबारे बर कौरू नगर जात हौं। संकर भगवान कहै बेटा तैं कहां के नाम ल लेथस गा, कहां के नाम ल लेथस तैं हॅ, वहां के नाम ल भूला जा। काबर ? भैया जादू के राज ए। भाठा ल पानी, पानी ल भाठा। सांप के तुतारी, बिच्छी की अराई, उहां मनखे ल बनाके उहां बईला हल चलाथे जहां तैं राज में जाबे बेटा त तैं उहां ले उबरके नइ आवस। बड़े बड़े राजा महराजा मन जाके उहां पथरा लहुट गे हे। मोर कहना ल तैं मान जा। आज तोर माता मैना हे तोन कलप कलप के तोर बिना रोदन करत होही। आज सुन्दर राज ल तैं चला लेथे। गोपीचंदा। गोपी चंदा कथे के भोलेनाथ, ए दुनिया में माटी के शरीर जैसे मैं जन्म ले हंव।

H: देखो तो आज गोपीचंदा भगवान शंकर के मंदिर में पंहुचा है। कन्या जैसे ही सेवा करके निकलती है उसी समय में कन्या कहती है- हे भगवान जैसे मुझे शंकर भगवान नें वरदान दिया है वैसे ही आज मुझे दिख रहा है। किन्‍तु यह बालक कौन है? कहां का रहने वाला है ? यहां कैसे आया इसे मैं भी जान लेती सोंचकर  मंदिर का आड़ लेके कन्या है वह सुन्दर आनंद से (खड़ी हो जाती है) गोपीचंदा कहता है – शंकर भगवान तो बड़ा दीनदयाल हैं। पांव में पद्म लेके बेटा गोपीचंदा जन्‍म लिया है। जब वह सेवा करता है तब बड़े-बड़े देवी देवता को भी ओह बड़ा आनन्द आता है। पहले से उसे वरदान देने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसा बालक गोपीचंदा है। तल्‍लीन होकर आज भगवान शंकर के चरणों में ध्यान लगा करके गोपीचंदा हाथ जोड़ के बैठा है। शंकर भगवान माँ पार्वती रहते हैं वे प्रकट हो गए – कहते हैं कि बेटा साधु आज धन्य है तुम्‍हारे जैसे बालक को। आज तुम मेरी सेवा किए हो। कहां के रहने वाले हो। कहां के रहने वाले हो आज क्यों सेवा किए हो जल्‍दी बताओ। बेटा गोपीचंदा रहता है वह हाथों को जोड़ कर कहता है क्‍या भोला आपको दुनिया का स्वामी अंतर्यामी कहते हैं आज मैं तुम्‍हारे चरणों में आया हूं। गोपीचंदा हूं। देश बंगाला का राजा त्रिलोकी रानी मैनामती का बेटा में गोपीचंदा हूं। आज पिता उबारने के लिये कौरू नगर जा रहा हूं। शंकर भगवान कहते हैं बेटा तुम कहां का नाम ले रहे हो, कहां का नाम ले रहे हो तुम, वहां के नाम को भूल जावो। क्यों ? भैया जादू का राज है वहां। यूखी भूमि को पानी, पानी को सूखी भूमि। सांप की तुतारी, बिच्छू की अरई, आदमी को बैल बनाकर हल चलाते हैं जहां तुम जाना चाहते हो बेटा तुम वहां से उबर के नहीं आ सकते हो। बड़े बड़े राजा महराजा लोग वहां जाके पत्‍थर बन चुके है। मेरे कहने को तुम मान जावो। आज तुम्‍हारी माता मैना है वह तड़फ तड़फ कर तुम्‍हारे बिना रो रही है। आज सुन्दर राज को तुम चला लेते। गोपीचंदा। गोपी चंदा कहता है क्‍या भोलो नाथ, ये दुनिया में मिट्टी के शरीर जैसे मैं जन्म लिया हूं ना।

C: जइसे तैं जनम दे हस तो माटी म मोला मिलाना हे। माटी में मिलाा मोला जरूरी हे। ए दुनिया धन दौलत मोर कोई काम के नइ हे। आज मोर पिता जी हे तौन कौरू नगर म जाके पथरा होगे। 9 लाख सेना पथरा होगे। अउ मैं चैन के बांसरी कइसे बजाहूं। मोला ये षोभा नइ देवय। भोलेनाथ। जइसे मैं तोर सेवा करे हौ वैसे तैं हॅ मोला आगे के रस्ता बतादे।

H: जैसे आप जन्‍म दिए हो वैसे ही मुझे माटी में मिल जाना है। माटी में मिलना मुझे जरूरी है। ये दुनिया धन दौलत मेरे कोई काम के नहीं हैं। आज मेरे पिता जी है वे कौरू नगर में जाके पत्‍थर हो गए हैं। 9 लाख सेना पत्‍थर हो गया। और मैं चैन की बांसुरी कैसे बजा सकता हूं। मुझे यह शोभा नहीं देता। भोलो नाथ। जैसे मैं तुम्‍हारी सेवा किया हूं वैसे ही आप मुझे आगे का रास्‍ता बता दो।

C: सुनत बचन येदे बोलय जी

येदे बोलन लागे भैया

आगे येदे बालक मोरे बोलै गा

वो हर बोलन लागे भैया

सुन्दर बानी वो हॅ बोलै गा

येदे बोलन लागे भैया

वही समय कर बेरा वो

मोर कहन लगे भैया

H: वचन सुन कर बोल रहे हैं। बोलने लगे भैया। आगे बालक बोल रहा है। वह बोलने लगा भैया। सुन्दर वाणी वह बोल रहा है। ये बोलने लगा भैया। उसी समय में वह कहने लगा भैया।

C: ये गोपीचंदा आज तोला मैं सुन्दर मजा के तोला एक ठन बरदान देवत हौं बेटा। जाये बर जाबे पिता उबारे बर लेकिन। वो समय में कन्या हे जेन मंदिर के आड़ लेके सुनत हे देस बंगाला के रहैया राजा त्रिलोकी के बेटा मैनावती के बेटा गोपीचंदा औं। आज मैं पिता उबारे बर जाथौं। लेकिन यही भोले नाथ मोला आसीरवाद दे देदे। वरदान में देहे मोला ए बालक ल पति स्वीकार करना हे। कन्या हे तेन उही समय में संकर भगवान के मंदिर में सामन आ जथे। अउ जाकर का बोलथे। फूल के माला मंदिर में कतका सुंदर चढ़े रहिथे। वही फूल के जयमाला ल उठा करके आये अउ साधु के गला में डाल देथे। काबर एला एला गोपीचंदा केहे अउ मोला गोपीचंदा तोर पति होही केहे।

H: एै गोपीचंदा आज तुम्‍हें मैं सुन्दर आनंद वाला एक वरदान दे रहा हूं बेटा। जाने के लिये पिता उबारने जावोगे किन्‍तु। उस समय में कन्या है वह मंदिर के आड़ में सुन रही है देश बंगाला के रहने वाले राजा त्रिलोकी का बेटा मैनामती का बेटा गोपीचंदा हूं। आज मैं पिता उबारने के लिये जा रहा हूं। किन्‍तु यही भोले नाथ मुझे आर्शिवाद दे दो। वरदान में दिए मुझे ये बालक को पति स्वीकार्य करना है। कन्या है वह उसी समय में शंकर भगवान के मंदिर के सामने आ जाती हैं। और जाकर क्या बोलती है। फूल का माला मंदिर में कितना सुंदर चढ़ा है। उसी फूल का जयमाला को उठा करके आई और साधु के गले में डाल देती है। क्यों इसे, इसे, गोपीचंदा बोला और मुझे गोपीचंदा तुम्‍हारा पति है कहे हो।

C: एला काबर छोड़ौं। हो सकथे कहूं एही होही। तेकर कारण मैं इही ल पति स्वीकार कर लेथौं। संकर के मंदिर के जयमाला ल गला म पहिरा के हाथ जोड़ के सुन्दर कन्या कथे साधु महराज मैं तोर नारी औं तैं मोर पति आस। मोला तैं सादी कर ले अपन अंग लगा ले । अउ का कहिथे -

H: इसे क्यों छोड़ूं। हो सकता है कहीं यही होगा। इसलिए मैं इही को पति स्वीकार्य कर लेती हूं। शंकर के मंदिर के जयमाला को गला में पहना के हाथ जोड़ कर सुन्दर कन्या कहती है साधु महराज मैं तुम्‍हारी नारी और तुम मेरे पति हो। मुझे तुम विवाह कर लो अपने अंग लगा लो। और क्या कहती है –

C: छोड़ दे जोगड़िया मोर मन नई तो भावय गा

ये मोला देखन नइ भावत हे ये साधु के भेश ल ये साधु

ये साधु के भेश हॅ मोला एक नइ सुहावत हे।

अइसे ? त एला मैं कइसे करंव।

फेंक एला मंदिर म चढ़ा दे।

ले देखत हस। एकर बात ल तो देख। मैं हर मोर मारे मरत हंव पिता ल उबारू हौ कहिके अउ एहॅ मोला क मन ल सब ल हटा कहिके काहत हे। ले बा। अइसने बनही।

H: जोग को छोड़ दो ना जोगिया यह मेरे मन को नहीं भाता। यह देखना मुझे भाता नहीं है। यह साधु का वेश यह साधु साधु का वेश मुझे  एक भी पसंद नहीं है। ऐसा ? तो इसे मैं क्‍या करूं। फेंक दो इसे मंदिर में चढ़ा दो।

लो ना देख रहे हो। इसकी बात को तो देखो। मैं अपने कारण मर रहा हूं पिता को उबाररूंगा सोंचता हूं और ये मुझे मेरे मन से सब को हटा कहती है। लो ना बा। अइसने बनेगा।

C: छोड़ दे जोगड़िया मोर मन नई तो भावय गा।

सौत सही लागे जोगड़िया ये साधु।

सौत सही लागे जोगड़िया ये साधु

सुनत बचन लागे गोपीचंदा सोचे गा

सौत सही लागे जोगड़िया रे साधु सौत सही लागे जोगड़िया

कहां कर कन्या मोला पति येदे माने हे

सौत सही लागे जोगड़िया ये साधु ..............

छोड़ दे जोगड़िया मोर मन नई तो भावय गा।

H: छोड़ दो जोगी मुझे भा नहीं रहा। यह साधु वेश मुझे सौत जैसी लागती है जोगिया। बात को सुन कर गोपीचंदा सोचता है। ये कन्‍या कहां मुझे पति मान बैठी है। यह साधु वेश मुझे सौत जैसी लागती है जोगिया। छोड़ दो जोगी मुझे भा नहीं रहा।

C: ए कन्या ? काए। आज तैं कहिथस ये साधु के भेस ल छोड़ दे अउ माया मे तै लपट जा कहिथस। अइसन मैं नइ लपटा सकौ। देख तो भगवान आज कन्या हे तौन भगवान के गला से हार निकाले हे आज पति स्वीकार कर लिस गोपीचंदा ल। लेकिन गोपीचंदा ल तो देख।
H: एै कन्या ? क्‍या है। आज तुम कहती हो यह साधु का वेश को छोड़ दूं और माया मे तुम लिपट जावो कहती हो। ऐसे मैं नहीं लिपटा सकता। देखो तो भगवान आज कन्या है वह भगवान के गले से हार निकाली है आज गोपीचंदा को पति स्वीकार्य कर ली है। लेकिन गोपीचंदा को तो देखो।

C: माया के कन्या ए। माया के कन्या ये। देख आज तैं ये शंकर भगवान के सामने मे तैं बरदान म मोला पाये हस। आज मैं पिता उबारे बर जात हौं। कौरू नगर। उहां ले अगर मैं उबर के आ जहूँ तो तोला मैं ले जाके सुंदर अपन राज में तोर से सादी करहूँ। आज से यही संकर भगवान के मंदिर में नित्य प्रतिदिन दिया जला करके सुंदर तैं सेवा में रहिथे। और गोपीचंदा हे तेन -

H: माया की कन्या है। माया की कन्या। देखो आज तुम यह शंकर भगवान के सामने मे तुम वरदान में मुझे पाई हो। आज मैं पिता उबारने के लिये जा रहा हूं। कौरू नगर। वहां से कहीं मैं बंच के आ जाउंगा तो मैं तुम्‍हें ले जाके सुंदर अपने राज में तुमसे से विवाह करूंगा। आज से यही शंकर भगवान के मंदिर में नित्य प्रतिदिन दीपक जला करके सुंदर सेवा में रहना। और गोपीचंदा है वह -

C: -आगे के मारग ये दे चलथे हे

मोर चलन लागे भाई

आगे येदे सुन्दर चलत हे। येदे चलन लागे भाई

जंगल जंगल येदे चलय गा। मोर चलत हावे भाई

एक कोस दुई कोस वो मोर चलत हावे भाई।।

H: आगे के मार्ग में जा रहा है। चलने लगा भाई। आगे ए सुन्दर चलत रहा है। ये चलने लगा भाई। जंगल जंगल ये चलने लगा। चल रहा है भाई। एक कोस दो कोस वह चलता है भाई।।

C: आज संकर भगवान के आसीरवाद लेकर गोपीचंदा हे तेन मंजिल दर मंजिल पार करके आज हरदीनगर के तालाब के पार में जाके बइठे हे। जहां लाखो पनिहारिन मन के वहां रेलमपेल लगे हे। गोपी चंदा कथे भगवान ये कोन सहर होही, ये ला मैं जरूर जाकर के पूछ लेथौं।

H: आज शंकर भगवान से आर्शिवाद लेकर गोपीचंदा है वह मंजिल दर मंजिल पार करके आज हरदीनगर के तालाब के किनारे में जाकर बैठा है। जहां लाखो पनिहारिन लोगों का वहां रेलमपेल लगा है। गोपी चंदा कहता है भगवान यह कौन सा शहर है, इसे मैं जाकर जरूर पूछ लेता हूं।

C: अइसे कहिके गोपीचंदा हे तौन सुंदर आज तरिया के पार म बइठे हे। लाखो पनिहारिन उहां आज उही साधु के सेवा कर लेबो कहिके बालक के पास पहुंचगे हे। ये बालक। साधु महराज तुमन कहां रहिथौ। ये जंगल पार करके ए तालाब के पास कइसे बइठे हौ। देख तो माता ये कोन नगर ये कोने सहर येला हम नइ जानन। आज मै पिता उबारे बर कौरू नगर जावत हौं। देस बंगाला के राजा त्रिलोकी के बटा रानी मैनावती के बेटा गोपीचंदा औ। ये कोन सहर मैं नइ जानव लेकिन तालाब के पार म आके बइठे हौ। ये हरदी नगर ये।
H: ऐसा कहकर गोपीचंदा है वह सुंदर आज तालाब के किनारे में बैठा है। लाखो पनिहारिन वहां आज उसी साधु का सेवा कर लेगें कह कर बालक के पास पहुंच गई हैं। ऐ बालक। साधु महाराज आप कहां रहते हैं। इस को जंगल पार करके ये तालाब के पास कैसे बैठे हौ। देखो माता यह कौन नगर है यह कौन शहर है हम नहीं जानते। आज मै पिता उबारने के लिये कौरू नगर जा रहा हूं। देश बंगाला का राजा त्रिलोकी का बटा रानी मैनामती का बेटा गोपीचंदा हूं। यह कौन सा शहर है मैं नहीं जानता किन्‍तु तालाब के किनारे में आके बैठा हूं। यह हरदी नगर है।

C: हरदीनगर। हरदीनगर ए ? हौ। देखतो भगवान हरदीनगर ये कहिथे। मोर माता हे तौन पा करके बताए रहिस हे। आज वो हरदीनगर मे मोर फूफू दीदी चैपाला रहिथे। आज मैं मोर दीदी चैपाला के सहर म हौं तइसे मोला लागत हे। मैं ए बात ल ए पनिहारिन ल पूछ लेथौ। कस ओ दीदी ? काए बेटा। ए कोन नगर ए ? हरदीनगर ये। हरदीनगर ए ? यहां मोर फूफुदीदी जेकर  चैपाला नांव हे तेन रहिथे का ? हां आये तो हे राजा घर। तो भैया वो समय में आज सुंदर मजा के लाखो पनिहारिन के बीच में चैपाला के जो दासी हे तोन पहुंचे राहय। ओकर टीकावन म ओकर सेवा करे बर भेजे रहिस हे। ओहू पानी भरे बर आये रिहिस हे। वो सुनथे त कहिथे देख तो मोर दीदी चैपाला हॅ मोर ------

H: हरदीनगर। ये हरदीनगर है ? हां। देखो तो भगवान हरदीनगर है कह रहे है। मेरे माता हैं वे गोदी में ले के बताए थे। इस हरदीनगर मे मेरी बुआ दीदी चैपाला रहती है। आज मैं अपनी दीदी चैपाला के शहर में हूं ऐसा मुझे लगता है। मैं इस बात को ए पनिहारिनों को पूछ लेता हूं। कैसे दीदी ? क्‍या बेटा। ये कौन नगर है ? हरदीनगर है। हरदीनगर ये ? यहां मेरी बुआ दीदी जिसका नाम चैपाला है वह रहती है क्या ? हां आई तो है राजा के घर। तो भैया उसी समय में आज सुंदर आनंद से लाखो पनिहारिन के बीच में चैपाला की जो दासी है वे पहुंची रहती हैं। उसके टीके दहेत पर उसका सेवा करने के लिये भेजा गया था। वो भी पानी भरने के लिये आयी है। वे सुनती हैं तो कहती हैं देखो तो मेरी दीदी चैपाला है मेरे ------

C: हां महू तो गे रेहेंव। तब का होइस हे। वहां आंखी आंजिस चुरी पहिनाइस हे अपन भतीजा ल। तब एक काम करते। जाके मोर दीदी ल तैं संदेसा कहि देते। तोर दीदी ल ? हां। तोर भतीजा गोपीचंदा हॅ तरिया के पार म आके बइठे हावय कहिके। सुन्दर मोला बाजा-गाजा के साथ परघा के लेग जतिस। अइसे। हौ। मैं जल्दी जाथौं। साधु रहय तौन चले -

H: हां मैं भी तो गई थी। तब क्या हुआ। वहां आंखों में काजल लगाई चूड़ी पहनाई है अपने भतीजे को। तब एक काम करते हैं। जाके मेरी दीदी को तुम संदेशा कह दो। तुम्‍हारा दीदी को ? हां। तुम्‍हारा भतीजा गोपीचंदा है तालाब के किनारे आके बैठा है कह दो। सुन्दर मुझे बाजे-गाजे के साथ स्‍वागत करके ले जाती। ऐसा। हां। मैं तुरंत जा रही हूं। साधु रहता है वह चलता है -

C: देखत मन हरसावै

बालक साधु एदे आवय

तालाब के पारे ऐदे बइठेगा

चैपाला आज मोर चलै वो

रानी ----

H: देखते हुए मन हरसित हो रहा है। बालक साधु देखो आया है। तालाब के किनारे बैठा है। चैपाला चलती है। रानी ----

C: ए रानी दाई! हां। तोर भतीजा आये हे माँ। तोर भतीजा आये हे। मोर भतीजा गोपीचंदा, कहां आये हे। तरिया के पार में बइठे हे। तोर दिमाक खराब होगे हे। कांही खा पी तो नइ ले होबे। नहीं सही कहत हौं। आये हे आये हे। काहत लागे मोर भतीजा गोपीचंदा राजा त्रिलोकी के बेटा। ओकर का के कमी हे। ओ जंगल ले कहां आही। वो हॅ आही त सजधज करके सेना ले के आही मोर भतीजा हॅ। अकेला आये हे अकेला आये हे कहिथस। अकेला तो आये हे। साधु हे साधु। साधु के रूप में हे। ए  दासी देख तो मैं सबके अपमान ल सहिहौं फेर भाई भतीजा के अपमान ल नइ सहे सकौं। धन ओ का नसीब मोर वो भाई हे तेन आज उहां जाके पत्थर होगे हावे। जाकर ओकर एकझन ओकर बेटा गोपीचंदा हे वोहू हॅ हवय फेर नानपन के मोर नैन तरसत हे फेर काजर आंजे बर गे रेहेंव तब के दरसन करे हौं। अउ ते कथस के तोर भतीजा आये हे कहिके। मैं कइसे बिस्‍वास करंव। सहीं आये हे।

H: ये रानी मां! हां। तुम्‍हारा भतीजा आया है माँ। तुम्‍हारा भतीजा आया है। मेरा भतीजा गोपीचंदा, कहां आया है। तालाब के किनारे में बैठा है। तुम्‍हारा दिमाग खराब हो गया है। कुछ खा पी तो नहीं ली है ना। नहीं सही कह रही हूं। आये हैं आये हैं। मेरे भतीजे गोपीचंदा राजा त्रिलोकी का बेटा, नाम ही काफी है। उसको क्या कमी है। इस जंगल वो कहां आयेगा। वो आयेगा तो सजधज के सेना लेके आयेगा मेरा भतीजा है। अकेला आया है अकेला आया है कह रही हो। अकेला तो आया है। साधु है साधु। साधु के रूप में है। ये दासी देखो मैं सबका अपमान सह सकती हूं परंतु भाई भतीजे का अपमान नहीं सह सकती। उसका भी क्या नसीब मेरा वह भाई है वह आज वहां जाकर पत्थर हो गया है। उसका एक बेटा गोपीचंदा है वो है बहुत छोटा मेरे नैन तरस रहे है काजल लगाने के समय गई थी तब से देखी हूं। और तुम कहती हो तुम्‍हारा भतीजा आया है कहती हो। मैं कैसे बिश्‍वास करूं। सहीं आये हैं।

C: सुन लेबे दाई ये सुन ले वो कहना मानौ मैया

तोरे भतीजा ओ आये हे

तरिया के पार म ये दे वो मोर बइठे हे न

मोला परघा के लेगय कहिथे

सुन के गा रानी संग में वो मोर

सुन ले वो दासी मोर महल ले निकल गा।

मोर महल ले तैं निकल जा। तोर सकल देखना मोला पाप हे।

ये सदा तरोई फूलय नहीं सदा सावन वो।

सदा जवानी रहै नहीं संगवारी सदा जीवन भर।।2।।

H: सुन लो ना मां ये सुन लो ना कहना मानौ मैया। तुम्‍हारा भतीजा आया है। तालाब के किनारे में वह बैठा है। मुझे स्‍वागत करके ले जावो कहता है। सुनने पर रानी के साथ में वह। सुन लो ना वह दासी के साथ महल से निकल रही है। मेरे महल से तुम निकल जावो। तुम्‍हारा शक्‍ल देखना जाना मुझे पाप है। ऐ हमेशा तरोई फूलता नहीं सदा सावन रहता नहीं। जीवन भर सदा जवानी रहती नहीं मित्र।

C: ये दासी यहां से चले जा अउ वो कोन साधु हॅ जेन आके मोर भतीजा के अपमान करत हे वोला देस से निकाल दे। ये राज ले निकल के चले जाय। भतीजा के अपमान करइया के लिए मोर राज में ठौर नइ हे। आज रानी दासी के मन में बड़ा क्रोध उत्पन्न कर देथे। नैना में नीर बहाथे। दीदी चैपालन कथे कि भगवान आज मोर भाई भतीजा के अपमान करत हे। ये दुस्टिन हे जीवन भर मोर नमक खाइस हे। आज वो नमक ल भुलागे। आज भतीजा अउ भाई के अपमान करत हे। दासिन ल कथे कि वो साधु ल तैं हॅ मोर राज ले भगा दे।

H: एै दासी यहां से चली जा और वो कौन साधु है जो आकर मेरे भतीजे का अपमान कर रहा है उसे देश से निकाल दो। इस राज्‍य से निकल कर चला जाए। भतीजे का अपमान करने वाले के लिए मेरे राज्‍य में कोई स्‍थान नहीं है। आज रानी दासी के मन में बड़ा क्रोध पैदा कर देती है। आंखों में आंसू बहा रही है। दीदी चैपालन कहती है कि भगवान आज मेरे भाई भतीजा का अपमान कर रही है। यह दुष्‍ट है जीवन भर मेरा नमक खाई है। आज वह नमक को भूल गई। आज भतीजा और भाई का अपमान किया जा रहा है। दासियों को कहती है कि उस साधु को तुम मेरे राज्‍य से भगा दो।

C: रानी के आदेस होगे। दासीन सोचथे कि ये भगवान। नैनो मे नीर बहाते हुए वोह साधु के पास पहुचे हे। बेटा साधु। आज तोर दीदी हॅ तोला नइ पहिचानिस। आज तोर दीदी फूफु तोला नइ पहिचानिस। ते इहां ले चले जा। वो कथे कि कोनो भीखमंगा ये। भीख मांगने वाला हॅ कइसे मोर भतीजा हो जही। कथे। सही बात ये दाई। सही बात आज मोर दीदी चैपालन हॅ काहत हे तेन सही बात ये। मै राजघराना के बालक औ। अउ अइसे मैं साधु बैरागी के भेश म मैं आहूँ। सही बात बोलत हे। लेकिन ये जोगी के भेश ल बनाए के कारण ल मोर दीदी चैपालन नइ जानय। एकर सेती बेटा गोपीचंदा हे -

H: रानी का आदेश हो गया। दासियां सोचती हैं कि हे भगवान। नैनो मे नीर बहाते हुए वे साधु के पास पहुंचती है। बेटा साधु। आज तुम्‍हारी दीदी है वह तुम्‍हें पहचान नहीं रही है। आज तुम्‍हारी बुआ दीदी पहचान नहीं रही है। तुम यहां से चले जावो। वो कहती है कि कोई भीख मांगने वाला है। भीख मांगने वाला कैसे मेरा भतीजा हो सकता है। कहती है। सही बात है माता। सही बात आज मेरी दीदी चैपालन कह रही है वह सही बात है। मै राजघराने का बालक हूं। और ऐसा मैं साधु संत के वेश में आउंगां। सही बात बोल रही है। किन्‍तु यह जोगी का वेश को बनाने के कारण को मेरी दीदी चैपालन नहीं जान रही है। इसका कारण बेटा गोपीचंदा है –

C: धीरे-धीरे बेटा ये दे चलत हावय जी

हे भगवान आज मोला दीदी के दर्सन नइ हो पाइस

आगे के ये मारग मोर चलत हावय भैया।

दीदी येदे सोने कर झूला में झूलय जी

जहां येदे गोपीचंदा -----

जादू ये नगर बर चलन लगै भइया।।

H: बेटा धीरे-धीरे जाने लगता है। हे भगवान आज मुझे दीदी का दर्शन नहीं हो पाया। वह आगे के मार्ग मे जाने लगा भैया। दीदी सोने के झूले में झूल रही है जी। यहां ये गोपीचंदा -----। जादू नगर के लिये जाने लगा भैया।

C: हे भगवान मोर दीदी सुंदर सोन के पलंग में बइठे हे। आज दौड़ते हुए बालक गोपीचंदा हे साधु के भेश में जाके दीदी के गोड़ में जाके गिर जथे। एच्च! तै कहां के रहइया। एक साधु बैरागी फकीर के भेश में हवस। आज तैं मोर भतीजा गोपीचंदा के अपमान करत हस।

H: हे भगवान मेरी दीदी सुंदर सोने के पलंग में बैठी है। आज दौड़ते हुए बालक गोपीचंदा है वह साधु के वेश में जाके दीदी के पैर में जाके गिर जाता हैं। ओह! तुम कहां के रहने वाले हो। एक साधु संत फकीर के वेश में हो। आज तुम मेरे भतीजा गोपीचंदा का अपमान कर रहे हो।

C: आज मोर भतीजा के घर में का कमी हे। जौन आज तोर जइसे रूप बनाके आही। नहीं नहीं माता। आज ये बालक के तैं कहना ल सुनले बिनती ल सुन ले दाई। ये साधु नोहय आज तोर भतीजा गोपीचंदा ये। आज ये कौरू नगर जिहां मोर पिता हे तेन 9 लाख सेना लेकर के पथरा होगे माता। जेकर उबारे खातिर बर आज तुलसी माता के आसीरवाद से ये जोगी के भेश ल मैं पाये हौं। आज वही भेश ल लेकर के तोर दर्षन करे बर अये हौ दाई। मोला तैं सुंदर दर्षन देदे माता। फिर भी भैया ओ समय में दीदी चैपालन हे तेन हॅ नइ मानय। जौंरा - भौंरा नाम के कुकुर ल कथे ये दुष्मन ल तैं मोर महल ले निकाल दे। ये मोर भतीजा नोहय। मोला कोई गवाही नइ देवय। आज वो सोंच करके -

H: आज मेरे भतीजे के घर में क्या कमी है। जो आज तुम्‍हारे जैसा रूप बनाके आयेगा। नहीं नहीं माता। आज तुम इस बालक की बात को सुन लो विनती को सुन लो ना मां। यह साधु नहीं है आज यह तुम्‍हारा भतीजा गोपीचंदा है। आज उस कौरू नगर जहां मेरे पिता है वे 9 लाख सेना को लेकर पत्‍थर हो गए हैं माता। जिन्‍हें उबारने के लिये आज तुलसी माता की आर्शिवाद से इस जोगी के वेश को मैं पाया हूं। आज वही वेश को लेके तुम्‍हारा दर्शन करने के लिये आया हूं माता। मुझे तुम सुंदर दर्शन दे दो माता। फिर भी भैया उस समय दीदी चैपालन है वह नहीं मानती। जौंरा - भौंरा नाम के कुत्‍तों को कहती है इस दुश्‍मन को तुम मेरे महल से निकाल दो। यह मेरा भतीजा नहीं है। मुझे कोई गवाही नहीं देता। आज वह सोंच करके –

C: अरे जौरा-भौरा ये दे कुकुर मोर ढिले दीदी

बेटा ये दिखय गोपीचंदा गा मोर सुन तो दाई

मोर तै प्राण बचाले वो

आज तोर बचाले दाई कलप कलप गोपी रोवे वो

सुन ले मोर बात पिता उबारे बर जावत हौं।

जान रख दे दाई

बारा बजेके दाई

ये दे प्राण ल मोर बचाले वो ये बचाले वो भाई ये दे जी

H: अरे जौरा-भौरा कुत्‍ते को दीदी छोड़ देती है। बेटा ये दिखता है गोपीचंदा मेरी सुनो तो मां। तुम मेरा प्राण बचालो। आज तुम मुझे बचालो माता तड़फ तड़फ के गोपी रो रहा है। सुन लो ना मेरी बात पिता उबारने के लिये जा रहा हूं। जान बचा दो माता। बारह बजे से भाग रहा हूं मां मेरे प्राण को बचा दो।

C: देखतो रागी। येदे हाथ जोड़-जोड़ के, तड़प-तड़प के बेटा गोपीचंदा ------ मोर प्राण ल बचा दे दीदी। मै तोर भतीजा गोपीचंदा औ

H: देख रहे हो रागी। ये हाथ जोड़-जोड़ कर, तड़फ-तड़फ कर बेटा गोपीचंदा ------ मेरे प्राण को बचाओ दीदी। मै तुम्‍हारा भतीजा गोपीचंदा हूं

C: मोर कलपत बेटा ये गोपी

मोर माहल ले निकलथे जी

दीदी आज तैं मोला नइ पहिचाने लेकिन मैं पिता उबारे बर कौरू नगर जादू के राज में जाथौं। आज मैं वहां ले उबर के आ जहूं त तोर

अंगना में एक आर अउ आहूं दीदी

मैं वचन देवथे ओ मोर बोलन लागत हे भाई

दीदी के महल ले निकले मोर नैना में नीर लिए जी

H: मेरा तड़फता बेटा गोपी। महल से निकल रहा है जी। दीदी आज तुम मुझे नहीं पहचानी लेकिन मैं पिता उबारने के लिये कौरू नगर जादू के राज में जा रहा हूं। मैं वहां से उबर कर आउंगा तो तुम्‍हारे आंगना में एक बार और आउंगा दीदी। मैं वचन देता हूं वो बोल रहा है भाई। दीदी के महल से निकल रहा है नैना में नीर लिए जी।

C: ये रागी। हां रानी हे तोन देखे। नौकर नौकर द्वार वोह तो औंरा-जौंरा कुकुर ल तो ढील दिस। चारो तरफ दरवाजा बंद कर दिस। खिड़की बंद कर दिस। रानी है तौन जल्दी से खींचते हुए जल्दी से आंगन के बाहर निकालो कहि दिस। रागी पैर पटक के गोपी हे तोन वहां से जब चले लगिस। आंख में आंसू आगे। तब खिड़की खोल के थोड़ा से एक कनिक रहा तो साधू गे के नहीं गे हे नजर लमा के देखे। छीनी अंगुरी में मुंदरी गा जे दिन जन्म ले रिहिसे उही दिन जाके हाथ में मुंदरी पहिराए रिहिस हे रागी। वहीं मुंदरी हे तौन सुन्दर रानी के नेत्र में झलक गे। आज सचमुच कइथे। इही मोर भतीजा ए। करके हाय मोर भतीजा के प्राण देवत हे। दौड़ते हुए आंगन में चले मोर भतीजा ये करके। एला पा लेहूं कहिके। आंगन में जाके हाय बेटा। हाय बेटा।

H: एै रागी। हां रानी है वह देखा। औंरा-जौंरा कुत्‍ते को छोड़ दिया है उसके पीछे। चारो ओर दरवाजा बंद कर दिया है। खिड़की बंद कर दिया है। रानी है वह कहती है कि जल्‍दी से खींच कर जल्‍दी से आंगन में बाहर निकालो। रागी पैर पटक कर गोपी है वह वहां से जब चलने लगा। आंख में आंसू आ गया। तब खिड़की खोल के थोड़ा सा एक झलक रूको तो साधू गया है कि नहीं नजर में दूर को देखने लगी। छीनी उंगली में छल्‍ला जो जन्म के समय में जो छल्‍ला पहनाई थी रागी। वही छल्‍ला है वह सुन्दर रानी के आंखों में झलक गई। आज सच कइ रहे हैं। यही मेरा भतीजा है। करके हाय मेरा भतीजा प्राण दे रहा है। दौड़ते हुए आंगन में चली मेरा भतीजा है कहके। इसे पा जाउंगी कह कर। आंगन में जाके हाय बेटा। हाय बेटा।

C: मोर धरती में गिरत हे न

मोर धरती में गिरत हे जी

मोर गोपी ये दी स्वासी गा।

H: मेरे धरती में गिरता है ना। मेरे धरती में गिर रहा है जी। मेरा गोपी है दी स्वासी गा।

C: हाय बेटा हाय। हे भगवान। आज मोर दीदी चैपालन मोला नइ पहिचान सकिस। आज मैं हॅ सुंदर मजा के उहां ले उबर जहूं नहीं तो मर जहूं। उहां ले उबर जहूं तो इहां मैं एक बार आहूं। अउ दीदी के मैं ह दर्शन कर लेहूं। आज बेटा गोपीचंदा हे आज सतखण्डा भवन से निकल करके जंगल के मारगा धरे हे। गोपीचंदा हे तेन आगे के मारग चले गै। लेकिन वो समय में दीदी चैपालन हे तेन हाय बेटा, हाय बेटा कहिके भैया उहां प्राण त्यागत हे। भाई लेकिन सत्य कभी नइ झुक सकय। बचपन में डुड़ी अंगठी में ओला छल्ला पहिरवाए रिहिसे।

H: हाय बेआ हाय। हे भगवान। आज मेरी दीदी चैपालन मुझे नहीं पहिचान पा रही है। आज मैं सुंदर आनंद से वहां से उबर जाउंगा या तो मर जाउंगा। वहां से उबर जाउंगा तो यहां एक बार जरूर आउंगा। और दीदी को देखूंगा। आज बेटा गोपीचंदा है आज सतखण्डा भवन से निकल कर जंगल का मार्ग पकड़ा है। गोपीचंदा है वह आगे का मार्ग चलने लगा। किन्‍तु उसी समय में दीदी चैपालन है वह हाय बेटा, हाय बेटा कहते हुए भैया वहां प्राण त्याग रही है। भाई लेकिन सत्य कभी नहीं झुक सकता। बचपन में छोटी उंगली में उसे उसने छल्ला पहनाया था।

C: उही छल्ला ल बेटा गोपीचंदा पहिने हे। छल्ला हे तेन नैन मे चमक उठथे। अउ बेटा गोपीचंदा के पांव मे पदूम हॅ 5 ठन गिरे हे। गोपीचंदा के पांव म पदूम रहय उही ल दीदी चैपालन कहिथे। जीते जीयत मोर आंखी फूटगे बेटा गोपीचंदा तोल नइ पहिचानव रे। आज मैं तोला औंरा-जौरा कुकुर ल लुहायेंव गोपीचंदा। माता मैना के बेटा गोपीचंदा ते आगे चलत है। दीदी चैपालन रहय तोन उहां प्राण ल तियाग देथे।
H: उसी छल्ले को बेटा गोपीचंदा पहना है। छल्ला है वह आंखों मे चमक उठता है। और बेटा गोपीचंदा के पांव मे पांच पद्म है। गोपीचंदा का पांव में पद्म है उही को दीदी चैपालन कहती है। जीते जीते मेरी आंखी फूट गई बेटा गोपीचंदा तुमको पहचान नहीं पाई रे। आज में तुम्‍हारे पीछे औंरा-जौरा कुत्‍ते को लगा दी गोपीचंदा। माता मैना का बेटा गोपीचंदा तुम आगे जा रहे हो। दीदी चैपालन रहती है वह वहां प्राण त्‍याग देती है।

C: रो रो करके। उही समय में गोपीचंदा हे तोन जइसे पलट के देखथे हल्ला उठथे कि दीदी चैपालन हे तौन स्वर्गवासी होगे। बेटा गांपीचंदा कहिथे के हे भगवना मैं पिता बर उबारे जाथौं। आज मोर दीदी चैपालन प्राण तियाग दिस। आज ये बेटा के दर्षन के नाम लेकर गे रिहिसे तेन ल नइ पहिचानिस, मोर दीदी हॅ। लेकिन मोला जानी जरूरी हे। बेटा गोपीचंदा हे तोन सुन्दर मजा के लौटते हुए आज दीदी के पास आगे। ओ समय में बेटा गोपीचंदा कहिथे कि दीदी! टाज तैं मोला नइ पहिचाने तैं दाई ओ। आज तें रोते हुए प्राण तियागे हस लेकिन वो समय में गोपीचंदा रहय तेन आज माता धरती के ध्यान लगावै। आज वही देवता अउ उही माता मन के ध्यान लगावत हे भगवान आज मैं विपत म परे हंव दाई ये समय में तैं एक रक्षा कर दे। धरती माता कहिथे कि बेटा समय में तोर नइ सुनहूं तो आज मैं काकर सुनहूं।

H: रो रो करके। उसी समय में गोपीचंदा ने जैसे ही पलट कर देखा हल्ला हो उठा कि दीदी चैपालन  जो है वो  स्वर्गवासी होगयी हैं। बेटा गांपीचंदा कहता है क्या है  भगवान मैं पिता को उबारने जा रहा हूं। आज मेरी दीदी चैपालन ने प्राण त्याग दिया हैं। आज जिस बेटे को देखने  का नाम लेकर गयी थी  उसे भी नहीं पहचाना,मेरी दीदी ने । लेकिन मेरा जाना महत्वपूर्ण है । बेटा गोपीचंदा तुरंत ही लौट कर दीदी के पास आजाता हैं। उसी समय बेटा गोपीचंदा कहता है कि दीदी! आज  तुम मुझे नहीं पहचान पायी मेरी माँ आज तुमने रोते हुए प्राण त्यागे है लेकिन यह वही गोपीचंदा है जो आज माता धरती का ध्यान लगाता रहा हैं। आज वही सारे देवी देवताओ का ध्यान लगा रहा है कि हे  भगवान आज मै विपदाओ से घिरा हुआ हु  माँ इस समय में तुम मेरी रक्षा करना  धरती माता कहती  है कि बेटा इस बुरे समय में तुम्हारे मै तुम्हारी सहायता कैसे नहीं करुँगी

C: दूनिया में नाम जगाए बर आज तैं ह जनम ले हस। दू भाग धरती होगे। कहिथे कि अपन दीदी चोपालन सुन्दर मजा के अपन गोदी म उठाए हे। माँ धरती एला तैं जतन के रख लेबे दाई जे दिन मैं पिता उबार के वापस आहूं वो दिन जरूर मैं ए दीदी ल सुन्दर मजा के आज मैं जिन्दा करहूं। आज दीदी चैपालन ल धरती माता ल सौंपके गोपीचंदा अब आगे के मारग चलत हे।

H: दूनिया में नाम जगाने के लिये तुमने जन्‍म लिया है। धरती फट गई। कहता है कि अपनी दीदी चोपालन सुन्दर आनंद से अपनी गोदी में उठाई है। माता धरती इसे तुम यत्‍न करके रख लेना माता जिस दिन मैं पिता को उबार कर वापस आउंगा उस दिन जरूर मैं दीदी को सुन्दर आनंद से जिन्दा करूंगा। आज दीदी चैपालन को धरती माता को सौंपके गोपीचंदा अब आगे के मार्ग में बढ़ता है।

C: बार-बार नइ मिले मानुस के अवतार संगी

सुमिरन करि ले

बीती जाहि उमर येदे सुमिरन करले

आगे के मारग बेटा गोपीचंदा चलथे गा

आज बड़े बड़े महात्मा मुनि मन धुनि रमाए बइठे हे, जेने ल आज बेटा गोपीचंदा देखै

H: बार-बार मनुष्‍य का अवतार नहीं मिलता। सुमिरन कर लो। उम्र बीत जायेगी सुमिरन करले। आगे के मार्ग में बेटा गोपीचंदा जा रहा है

आज बड़े बड़े महात्मा मुनि लोग धूनी रमाए बैठे हैं, जिन्‍हें आज बेटा गोपीचंदा देख रहा है

C: रागी आज बड़े-बड़े ऋषि महात्मा मन ध्यान लगाए हे। गोरखनाथ गेहे तोन उहू गोरखनाथ 88 हजार चेला के साथ समाधि लगाए हे। तब कइसन ? कइसन - त्रिशूल के नोक में सब समाधि लगाए-लगाए हे। अरे ददा रे। त्रिशूल के नोक में। कोनो हॅ तलवार में।

H: रागी आज बड़े-बड़े ऋषि महात्मा लोग ध्यान लगाए हैं। गोरखनाथ गये हैं वे गोरखनाथ भी 88 हजार चेला के साथ समाधि लगाये हैं। तब कैसे ? कैसे - त्रिशूल के नोक में सब समाधि लगाए-लगाए हैं। अरे ददा रे। त्रिशुल के नोक में। कोई तलवार के नोक में।

C: इमान से। अरे जान दे। हमर तबला मास्टर एक दिन लगाहूं कहिके जात रहय वो डर के मारे भागत आगे। तब ये सोचिस होही त्रिषुल म बइठहूँ तो सीधा बेधा जाहूं कहिके। तुरंत डर के मारे लहुट गे। वो समय में बेटा गोपीचंदा रहिथे तेन कहिथे। दाई देख तो यहां बड़े-बड़े साधू महात्मा हे तेन इकर मैं सेवा कर लेथौं कहिथे। अरे गोरखनाथ जी के सेवा करिस वोहू आज परगट होगे। काबर भैया। बालक गोपीचंदा वो जनम लेकर आये हे। पांव म पदूम लेके जनम लेय हे। कइसनों निठूर जीव ल वोहू पिघला दै। अइसन बेटा गोपीचंदा हे तौन माता के गर्भ से जन्म ले हे। सभी धन्य हे। वो माता ल। धन्य हे ओ माता ल दाई। हौ गा। आज गोरखनाथ गुरू कहिथे कि बेटा! तैं काबर सेवा करे हस ? कइसे आये हस, कहां जाथस ? बालक गोपीचंदा बताये मैं मैनावती माता के बेटा गोपीचंदा औं। पिता उबारे बर जाथौं। राजा त्रिलोकी के बेटा गोपीचंदा औं। गोरखनाथ पूछे - या कस जी तैं राजा भरथरी के भांचा गोपीचंदा अस का ? हॉं। सही बात बोले। आज मैनावती के बेटा गोपीचंदा बोले - मोर माँ कहे रिहिस के तोर मामा भरथरी हावय। आज वोहू हे तेन ह सन्यास ले ले हे। ये बात ल मोला बताए रिहिसे। आज ओकरे मैं भांचा गोपीचंदा औं। कौरू नगर जाथों। पिता उबारे बर। भैया रागी वो समय में गोपीचंदा हे तौन ओकर सेवा करिस। गोरखनाथ गुरू रहिथे तेन कहिथे बेटा तै कौरू नगर जाथस ? उहां के कन्या मन हे तेन एक दिव्य रूप में हे।

H: इमान से। अरे जाने दो। हमारे तबला मास्टर एक दिन लगाउंगा कह कर गया था वह डर के मारे भागता आ गया। ये सोचा होगा कि त्रिशूल पर बैठूंगा तो सीधा छिद जाउंगा। तुरंत डर के मारे वापस आ गया। उसी समय में बेटा गोपीचंदा रहता है वह कहता है। मां देखो तो यहां बड़े-बड़े साधू महात्मा हैं वह इंनकी मैं सेवा कर लेता हूं कहता है। अरे गोरखनाथ जी की सेवा कर लिया, वो आज प्रगट हो गये। क्यों भैया। बालक गोपीचंदा जन्‍म लेके आये हैं। पांव पर पद्म लेके जन्‍म लिये है। कैसेट भी निष्‍ठुर जीव को वो पिघला देता है। ऐसे बेटा गोपीचंदा है वह माता के गर्भ से जन्म लिया है। सभी धन्य है। वह माता को। धन्य है उस माता को माता। हां जी। आज गोरखनाथ गुरू कहते हैं कि बेटा! तुम क्यों सेवा कर रहे हो? कैसे आये हो, कहां जा रहे हो ? बालक गोपीचंदा बताता है मैं मैनामाता का बेटा गोपीचंदा हूं। पिता उबारने के लिये जा रहा हूं। राजा त्रिलोकी का बेटा गोपीचंदा हूं। गोरखनाथ पूछते हैं - ऐ कैसे जी तुम राजा भरथरी के भांजे गोपीचंदा हो क्या ? हॉं। सच बात बोले। आज मैनामती का बेटा गोपीचंदा बोला - मेरी माँ नें कहा था कि तुम्‍हारे मामा भरथरी हैं। आज वो भी तो सन्यास ले लिए हैं ना। इस बात को मुझे बताया गया था। आज उसका भांजा गोपीचंदा हूं। कौरू नगर जा रहा हूं। पिता उबारने के लिये। भैया रागी, उसी समय में गोपीचंदा है वह उसकी सेवा करने लगा। गोरखनाथ गुरू रहते हैं वे कहते हैं बेटा तुम कौरू नगर जा रहे हो ? वहां की कन्यायें हैं वे दिव्य रूप में है।

C: मन्तर से अइसे दिव्य रूप के कन्या बनही तो बड़े-बड़े साधू महात्मा मन के आत्मा घला पिघल जाथे। अइसन जघा मे तैं जाथस। उहां जाबे बेटा त तैं माया मोह में फंस जाबे। तोर से बनथे त तैं वापस आ। नहीं ? नहीं? गुरूदेव। मैं ह वो आदमी नो हॅव। मैं ओ बालक नोहंव जो माया मोह म फंस जहूँ। आज मै पिता उबारे बर जन्म लेहौं। अउ पिता उबारहूँ। धिक्कार हे मोर जइसे बालक ल काबर -  

H: मंत्र से ऐसे दिव्य रूप की कन्या बनेगी तो बड़े-बड़े साधू महात्माओं का आत्मा भी पिघल जाता है। ऐसे स्‍थान मे तुम जा रहे हो। वहां जावोगे बेटा तो तुम माया मोह में फंस जावोगे। तुमसे बनता है तो तुम वापस चले जावो। नहीं ? नहीं? गुरूदेव। मैं वो आदमी नहीं हूं। मैं वो बालक नहीं हूं जो माया मोह में फंस जाउंगा। आज मै पिता उबारने के लिये जन्म लिया हूं। और पिता उबार कर ही रहूंगा। धिक्कार है मेरे जैसे बालक को क्यों –

C: मोर गोपीचंदा गा ये प्रण करै भाई

गुरू के तो आसिरवाद लेवय न

बड़े बड़े साधूमन के सेवा करै भाई

अखण्ड तपस्वी जोगी मन के सेवा जी

करत हावय बेटा गोपीचंदा गा भाई

करे वो सेवा ल बेटा गोपीचंदा गा भाई

करे वो तपस्या वहां साधू गा भाई

H: मेरा गोपीचंदा यह प्रण करता है भाई। गुरू का आर्शिवाद लेता है। बड़े बड़े साधूओं का सेवा करता है भाई। अखण्ड तपस्वी जोगियों की सेवा। सेवा कर रहा है बेटा गोपीचंदा भाई। वह वहां तपस्या करता है भाई

C: मैं कहां तक बतावंव रागी। गुरू गोरखनाथ गुरू, सुन्दर गुरू, मछन्दर गुरू, आज बड़े-बड़े साधू महात्मा मन के सेवा करिस गा। जइसे सेवा करत जात हे वइसे आगे के रास्ता बताय। बस उही बात ल काहय बेटा मान जा। कौरू नगर मत जा। रागी मत जा। जादू के राज ये। ताकत में होतिस तो तोर पिता हॅ उहां नइ पथरा होतिस गा। जादू के राज में तोर ताकत हॅ का काम आही। लेकिन नहीं नहीं आज बेटा गोपीचंदा हे तोन प्रण करे हे। कथे - के बेटा जब तोला पिता उबारे बर हे तब -

H: में कहां तक बताउं रागी। गुरू गोरखनाथ गुरू, सुन्दर गुरू, मछन्दर गुरू, आज बड़े-बड़े साधू महात्माओं की सेवा किया। जैसे जैसे सेवा करता है वैसे वैसे आगे का रास्‍ता साधुओं द्वारा  बता इिया जाता है। सब वही बात कहते रहे बेटा मान जा, कौरू नगर मत जा। रागी मत जा। जादू का राज है वहां। ताकत में होता तो तुम्‍हारे पिता वहां पत्‍थर नहीं होते। जादू के राज में तुम्‍हारा ताकत क्या काम आयेगा। किन्‍तु नहीं नहीं आज बेटा गोपीचंदा है वह प्रण लिया है। कहता है- बेटा जब तुम्‍हें पिता उबारे के लिये है तब –

C: मोर गुरू ये जलन्धर भैया जहां लगे हे समाधि में जी

मोर बड़े बड़े साधू न (भैया मोर बादे म आये जी)

मोर जेकर सेवा तें लाला ----

H: मेरे गुरू जलन्धर भैया का जहां समाधि लगा है वहां बड़े बड़े साधू। भैया मेरे बाद आये हो। जिनकी सेवा लाला कर रहा है----

C: आज गुरू जलन्धर हे तौन सुन्दर समाधि लगाए बइठे हे। बेटा गोपीचंदा कहिथे भगवान इहां तो अबड़ अकन दिखथे। रागी - साधुच साधु।

इहू डाहन साधू उहू डाहन साधू। आहीं-बाहीं भयंकर साधू दिखथे। एती-ओती चारो मुड़ा साधूच साधू हे। रागी - हॉं। मार पेटला पेटला। चारो तरफ साधू। लेकिन भैया साधु साधू में भेद हे। साधू म फरक हे। गुरू जलन्धर हॅ वो समय मं समाधि लगा करके बइठे हे।

H: आज गुरू जलन्धर है तौन सुन्दर समाधि लगाए बैठे है। बेटा गोपीचंदा कहता है भगवान यहां तो बहुत लोग दिख रहे हैं। रागी – साधु ही साधु। इधर भी साधू उधर भी साधू। अगल-बगल भयंकर साधू दिख रहे हैं। इधर-उधर चारो तरु साधू ही साधू हैं। रागी - हॉं। मारो पेटला पेटला। चारो ओर साधू। लेकिन भैया साधु साधू में भेद है। साधू में फर्क है। गुरू जलन्धर है वह इस समय में समाधि लगाके बैठे हैं।

C: बारा-बारा के ये दे फेर लेके भैया

जटा ये दे जूट येदे फइले हावय जी

ओही येदे गुरू सही लगथे ये दे भाई जी

मोर चरण धोवै न उही गुरू के सेवा करै गा भाई

(बज्र इही गुरू आय तइसे मोला लगथे)

मोर गोपीचंदा भैया आजे गा ये दे मोर सेवा करे गा

मोर बोले ये देवी आज तपस्या ये दे करत हावे जी।।

H: -किनारे से फरा लेते हुए जहां जटा जूट फैला है जी वही सही में गुरू जैसे लग रहे हैं। भाई जी उसका चरण धोता है उसी गुरू की सेवा करता है (सत्‍य में यही गुरू है उेसा मुझे लग रहा है) मेरा गोपीचंदा भैया आ गया मेरा सेवा कर रहा है। देवी बोल रही है आज तपस्या कर रहा है।

C: ये रागी! ये देख तो बड़ा सुन्दर मजा के गुरू जलन्धर के पास पहुंचे हे और गुरू जलन्धर के पास में पहुंचे हे तो वहां 12 बइला के फेर ले जटा-जूट फइले हे। रागी - का ? जटा हॅ। 12 बइला के फेर ले बगरे हे। जइसे आज काल नहीं बर के नार फइले रहिथे न ओइसने गुरू जलन्धर के जटा मन फइले रहिथे। उही दिन के वो हॅ । उही जगह में बेटा गोपीचंदा गे हे। कहिथे - यही मोला लागथे दाई के इही हॅ गुरू जलन्धर हे जइसे कहिके। भैया सुन्दर वो हे तोन साधू के जटा में दीमक लगे हे। ओकर उपर में दीमक लगे हे बहुत। काला कहिथे ?

H: रागी! ये देखो तो बड़ा सुन्दर आनंद से गुरू जलन्धर के पास पहुंचा है और गुरू जलन्धर के पास में पहुंचा है तो वहां 12 बैल की चौड़ाई में जटा-जूट फैला है। रागी - क्या ? जटा। 12 बैल के की चौड़ाई से फैला है। जैसे आज कल बट वृक्ष का जड़ फैले रहता है उसी तरह गुरू जलन्धर का जटा फैला है। उसी दिन से वह, उसी जगह में बेटा गोपीचंदा गया है। कहता है - मुझे लग रहा है माता कि यही गुरू जलन्धर हैं। भैया सुन्दर साधू की जटा में दीमक लगा है। उसके उपर में बहुत दीमक लगे है। किसको कहते है ?

C: दीमक याने दिंयार याने भोंड़ू। नइ जानस वो।

अई हम कहां पढ़े लिखे हन। का जानबो ददा।

H: दीमक याने दिंयार याने भोंड़ू (दीमक की बांबी)। नहीं जानता। उई हम कहां पढ़े लिखे हैं। क्या जाने दादा।

C: हमर भारत सरकार हॅ कथे। कतकौ सुधर लौ हमर दाई दीदी भइया मन ल कहिन लेकिन आज तक नइ सुधरिस। आधा सुधरिस आधा बोहाइच गे हे वो। मै तो बोहाइच गे हौं ददा। तोरे जइसे मन धियान नइ दै तइसने मन बोहागे हावॅव। ले त ये भजन गवइ ले कहां मिलही ? ये भजनहीन ? --- का ए ?

H: हमारा भारत सरकार कहता है। कितना ही सुधारने के लिए हमारी मां दीदी भइया लोगों को कहा गया लेकिन आज तक नहीं सुधरे। आधा सुधरे तो आधा बह गए। मै तो बह ही गई हूं दादा। तुम्‍हारे जैसे लोग ध्‍यान नहीं देते वही लोग बह जाते हैं। लो ना तो ये भजन गाने से समय कहां मिलेगा? ऐ भजन गानेवाली ? --- क्या है ?

C: सत्य हे तेन कभू नई छूपै वो। आज गुरू जलन्धर के जटा हे तेन म दीमक लगे हे लेकिन ओकर उपर म जटा हे तेन हवा में कइसे लहलहावत हे। बेटा गोपीचंदा रहय तेन कहिथे ददा येला गुरू जलन्धर काहंव के भोंड़ू इहां तो। जब दीमक झर्राय हे न तो बड़ा भयंकर ओहू हो...हो..दो। 12 बइला के फेर ले आज जटा फइले हे। रागी - पूरा दीमक झर्रा दिस का ?

H: सत्य है वह कभी छुपता नहीं है। आज गुरू जलन्धर के जटा पर दीमक लगा है किन्‍तु उसका उपर में जो जटा है वह हवा में कैसे लहरा रहा है। बेटा गोपीचंदा रहता है वह कहता है इन्‍हें  गुरू जलन्धर कहूं कि दीमक की बांबी, यहां तो। जब दीमक को झटकारता है तब ओ.. हो .. बड़ा भयंकर। 12 बैल की चौड़ाई में उसकी जटा फैली है। रागी - पूरा दीमक को झटक दिया क्‍या?

C: एके दिन ये सेवा गा दूने दिन गै गा

तीन दिन सेवा करे गा संगवारी भाई

जटा के दीमक झर्रावय वो गोपीचंदा बेटा

जइसे डम्मर ये दे बाल हे

जेकर चंदा ये झर्रावय वो

ध्यान लगे हे मोर गुरू के

हाथ जोड़े मोर गोपी गा गुरूजी का धियान म लगे हे लाला हॅ

मोर जेकर गा सेवा ल करे गा संगवारी भाई

मोर गुरू ये वो बड़ा खुशी के मानावय न संगवारी भाई

मोर गुरू के गा बेटा ये सेवा बजाए हे संगवारी भाई।।

H: एक ही दिन सेवा करे, दूसरे दिन सेवा करे, तीन दिन सेवा किया। जटा से दीमक को हटाता है गोपीचंदा बेटा। डम्मर जैसा बाल है जिसको चंदा झटकार रहा है। गुरू का ध्यान लगा है। गुरू को हाथ जोड़कर गोपी धियान पर लगा है लाला। जिसके सेवा करने से गुरू बहुत खुशी मानाते हैं। गुरू का बेटा सेवा बजा रहा है भाई।

C: ये रागी -देख तो बड़ा सुन्दर मजा के गुरूजी के सेवा ल करक ध्यान लगाए। जब ध्यान लगाए गोपीचंदा, गुरू जलन्धर कहिथे कि भगवान अतका सेवा अउ मै अतेक अकन चेला लेके बइठे हंव। बड़े बड़े साधू चेला लेके बइठे हव लेकिन अइसन भक्त मोला नइ मिले रिहिसे। अइसन सेवा करैया नइ मिले रिहिसे। कइसन भक्त हरे ये हॅ। तो कहे बेटा। तें कोई जीव-जंतु होबे, साधू-बैरगी होबे मोर सामने ल तैं घूच जबे बेटा। आज मैं पलक खोलकर के देख देहूं त अरे 12 बइला के फेर ले अग्नि के दांवा ढिला जाही बेटा। जल के ओमा तैं भस्म हो जबे, आज मोर सामने ले तैं हट जा बेटा। रागी – हट गा बेटा। भैया गुरू के कहना गुरू के भाखा - ज्यों ज्यों ढोंके त्यों त्यों जागे।

H: रागी -देख तो बड़ा सुन्दर आनंद से गुरूजी का सेवा करके ध्यान लगाया। जब ध्यान लगाया गोपीचंदा, गुरू जलन्धर कहते है कि भगवान इतना सेवा और मै इतना चेला लेके बैठा हूं। बड़े बड़े साधू चेला लेके बैठे हो किन्‍तु ऐसा भक्त मुझे नहीं मिला था। ऐसा सेवा करने वाला नहीं मिला था। कैसा भक्त है यह। कहे बेटा। तुम कोई जीव-जंतु होवोगे, साधू-बैरगी होवोगे तो मेरे सामने को हट जाना बेटा। आज मैं पलक खोलके कहीं देख दूंगा तो 12 बैल की चौड़ाई के क्षेत्र दावा नल अग्नि फैल जावेगा बेटा। उसमें जल कर तुम भस्म हो जाओगे, आज मेरे सामने से तुम हट जावो बेटा। रागी - हटो बेटा। भैया गुरू का कहना गुरू की भाषा - ज्यों ज्यों ढंके त्यों त्यों जागे।

C: ये गुरू शब्द हे तेन अग्नि के समान होथे। बेटा गोपीचंदा हे तोन सुंदर दूनो हाथ जोड़ करके पीछे हटे हावय। अउ गुरू हे तोन पलक ल उघार करके, पलक ल खोल करके देख हे भैया 12 बइला के फेर ल पूरा अगिन के दांवा ढिलाय। आज बेटा गोपीचंदा कहिथे कि भगवान आज मोला बड़ा सुन्दर आज गुरू के दर्शन के मौका लगे हे। आज इही गुरूमन मोला आगे के रस्ता बताही। ये मुक्ति के मोला रस्ता बताही। अइसन गुरू के मोला सेवा करे के मोला मौका मिलिस हे। ये सोच करके गोपीचंदा रहय तेन बड़ा धन्य मनाथे। जइसे गुरू के अवाजो अग्नि के दावं लगे हे जइसे शांत होथे वो समय में बेटा गोपीचंदा ल कहिथे कि लाला तैं कोन जीव जंतु अस तेन कोन अस तेला मोला बता। ते सुन्दर मजा से मोर सामने में आजा। आहू कइसन होथे तें जानथस। का जानबो ददा। वोहू मछन्दर गुरू कभू नइ सपड़े रिहिस हे वो। अई। ओइसने ढंग के भक्त मेर आज मैं सपड़ गेंव। काबर ? अरे बीना करताल ले, बगल में गठरी दबाए हे बेटा गोपीचंदा साधू के भेश में।

H: यह गुरू के शब्द हैं वे अग्नि के समान होते हैं। बेटा गोपीचंदा है वह सुंदर दोनो हाथों को जोड़ के पीछे हट जाता है। और गुरू है वह पलक को खोल करके देखते हैं भैया 12 बैल की चौड़ाई के क्षेत्र में अग्नि फैल जाता है। आज बेटा गोपीचंदा कहता है कि भगवान आज मुझे बड़ा सुन्दर गुरू का दर्शन का मौका लगा है। आज इन्‍ही गुरू लोग मुझे आगे का पथ बतायेंगें। ये मुझे मुक्ति का पथ बतायेंगें। ऐसे गुरूओं का मुझे सेवा करने का मौका मिला है। यह सोच करके गोपीचंदा अपने आप को बड़ा धन्य मनता है। गुरू के अवाज से अग्नि का जो दावं लगा रहता है वह जैसे शांत होता है उसी समय में बेटा गोपीचंदा को कहते है कि लाला तुम कौन जीव जंतु हो और कौन हो उसे मुझे बताओ। अब तुम सुन्दर आनंद से मेरे सामने में आवो। आहू कैसे होता है तुम जानती हो। क्या जानेंगें दादा। ये मछन्दर गुरू से कभी मुलाकात नहीं हुई ह। उई। उसी प्रकार के भक्त से आज मेरी मुलाकात हो गई। क्यों ? अरे वीणा करताल लेकर, बगल में गठरी दबाए बेटा गोपीचंदा साधू के वेश में।

C: रागी - हम जानथन।

तैं जानथस। हौ। कइसे वो।

मन को नहीं रंगाया हो साधू तन को नहीं रंगाया है ।

अरे मन को नहीं रंगाया हो साधू

अरे तन को नहीं रंगाया है

H: रागी - हम जानते हैं। तुम जानते हो। हां। कैसे। मन को नहीं रंगाया है साधू तन को नहीं रंगाया है। अरे मन को नहीं रंगाया है साधू अरे तन को नहीं रंगाया है

C: अरे बेटा अरे चंदन लगाए म थोड़े साधु होथे। यहां रंग के पोषाक पहिने में थोड़े साधु होथे। ये साधु। तेरा कपड़ा रंग रंगीला रे बालक मन को नहीं रंगाया। जलन्धर मन मे कहत हावय, राह तो देखलौ एला ये सहीच में साधू हरे के का ए। ये रागी देख तो बड़ा सुन्दर मजा के आज बालक रहय तेन पहुंचे हे। पलक खोलकर के देखे। आज वो समय में सुन्दर मजा के देखथे। वहां तो साधू के रूप में छोटे से बालक जोगी के रूप में हे।

H: अरे बेटा चंदन लगाने से कोई साधु होजाता है। रंग-रंगों का परिधान पहन लेने पहिने में कोई साधु नहीं होता। ऐ साधु। तेरा कपड़ा रंग रंगीला है रे बालक तुमने मन को नहीं रंगाया है। जलन्धर मन मे कहता है, रूको तो देखूं इसे यह सही में साधू है क्या। रागी देख तो बड़ा सुन्दर आनंद में आज बालक वहां पहुंचा है। पलक खोलकर देखते हैं। आज उस समय में सुन्दर आनंद से देखते हैं। वहां तो साधू के रूप में छोटा सा बालक जोगी के रूप में है।

C: बेटा आज तक मोला समाधि म होगे लेकिन तोर जइसे साधू के भेश मे कोनो नइ आये हे। ये साधू के भेश बनाये के कारण का हे बेटा।  येकर कारण न ते बता देते। हाथ जोड़ करके कथे के गुरूदेव! आज अइसन के साधू के भेश नोहय ये बीना करताल अइसन अलवा जलवा नोहय। ये माता तुलसी दे सिंगार हरे। ये माता के दिए हुए बीना करताल ये। आज आकरे आसिरवाद लेकर सबके सेवा करत चलत तोर चरण में आए हौ देवता।

H: बेटा आज इतना दिन मुझे समाधि में हो गया किन्‍तु तुम्‍हारे जैसे साधू के वेश मे कोई नहीं आया है। ये साधू का वेश बनाने का कारण क्या है बेटा। इसके कारण को तुम बता देते। हाथ जोड़ के कहता है क्‍या गुरूदेव! आज ऐसे ही साधू का वेश नहीं है यह वीणा करताल ऐसे ही सामान्‍य नहीं है। यह माता तुलसी नें श्रृंगार किया है। यह माता का दिए हुए वीणा करताल है। आज उसी के आर्शिवाद को लेकर सबकी सेवा करता हुआ आगे बढ़ता आपके चरण में आया हूं देवता।

C: वोहू सोचे ल हागे गो। सही बात ए। तुलसी माता एला बरदान दे हे। तो ये बालक में है न काई न कोई बात हे षक्ति। जब गुरूजी अपन नजर षक्ति से देखे बड़ा प्रतापी बालक ए पांव म पदूम लेकर जनम ले हावे। दूनिया में नाम चलाए बर जन्म ले करके आये हे। बेटा जोगी आज ते का खातिर बर सेवा बजाये हवस, अतका तोर का काम पड़े हे काकर तैं सेवा में जाथस तेला मोला बतादे। हाथ जोड़ करके बेटा गोपीचंदा कहिथे मैं देष बंगाला के रानी मैनावती के बेटा राजा त्रिलोकी के बेटा मैं गोपीचंदा औं। मैं पिता उबारे बर कौरू नगर जात हावंव। ओतका बात ल सुनिस भजनहीन। हौ। गुरू रहय तेन जोर से एक दम क्रोध होगे। अरे ! कहां के नाम ल लेथस बेटा आज बड़े बड़े राजा मन हॅ जाकर पत्थर होगे। बड़े बड़े क्षत्रीय मन उहां पथरा पड़े बइठे हे। अउ आज तैं पिता उबारे बर जाहूं कहिथस। नौ लाख सेना हे तेन ल लेके तोर पिता हॅ घलो गये रिहिस हे। ओहू हॅ जाकर के पथरा होगे बेटा। एक अकेला तैं का करबे। अड़बड़ समझाइस। लेकिन आज गुरू के कहना ल नइ माने नइ माने। प्रण कर दिस प्रण कर दिस। जब तैं प्रण कर दिये तो बालक आज तोला यहू गुरू छोटे मोटे के गुरू जलन्धर गुरू नोहय। आज मोला तोर परीक्षा देय ल परही। काबर के गुरूमन हॅ बिना परीक्षा लेय पास नइ करय। तो वो बालक गोपीचंदा राहय तेन कइसे पास हो जाय।

H: वो सोचता है। सही है ये बात। तुलसी माता इसे बरदान दी है। तो इस बालक में है कोई बात, कोई शक्ति भी है। जब गुरूजी अपने नजरों की शक्ति से देखते हैं बड़ा प्रतापी बालक है यह पांव में पद्म लेकर जन्‍म लिया है। दूनिया में नाम चलाने के लिये जन्म लेकर आया है। बेटा जोगी आज तुम किसलिये सेवा बजा रहे हो, इतना तुम्‍हारा क्या काम पड़ा है, तुम किसकी सेवा में जा रहे हो उसे मुझे बताओ। हाथ जोड़ करके बेटा गोपीचंदा कहता है मैं देश बंगाला की रानी मैनामती का बेटा राजा त्रिलोकी का बेटा मैं गोपीचंदा हूं। मैं पिता उबारने के लिये कौरू नगर जा रहा हूं। इतना बात को सुने भजनहीन। हां। गुरू हैं वे जोर से एक दम क्रोधित हो गए। अरे ! कहां का नाम ले रहे हो बेटा आज बड़े बड़े राजा लोग वहां जाकर पत्थर हो गए हैं। बड़े बड़े क्षत्रीय लोग वहां पत्‍थर पड़े बैठे हैं। और आज तुम पिता उबारने के लिये जाउंगा कहते हो। नौ लाख सेना है उसे लेके तुम्‍हारे पिता भी गये थे। वो भी जाकर वहां पत्‍थर हो गए बेटा। एक अकेले तुम क्या करोगे। बहुत समझाये। किन्‍तु आज गुरू के कहना को नहीं माना नहीं माना। प्रण कर लिया है प्रण कर दिया। जब तुम प्रण कर लिये हो बालक तो आज तुम्‍हें यह गुरू छोटे मोटे गुरू जलन्धर गुरू नहीं हैं। आज मुझे तुम्‍हारा परीक्षा लेना पड़ेगा। क्यों का गुरू लोग बिना परीक्षा लिए पास नहीं करते। तो वह बालक गोपीचंदा रहता है वह कैसे पास हो जाएगा।

C: रागी - का परीक्षा, एकलव्य अपन होके पढ़िस तभो ओकर अंगठा ल मांग लिस ले का कहिबे, उहू एकठन गुरूच ये। त वो कोन गुरू ए। अउ कोन चेला ए। कर्णवीर दानी ए। देख तो ओ समय में गुरू जलन्धर कहिथे बेटा तोला परीक्षा देय ल परही। हौ। गोपीचंदा कहिथे हौ जइसे भी परीक्षा लेबे मैं तैयार हौं। अगर ये प्राण चले जाही गुरूदेव तभो पिता के नाम से मैं आत्मा ल अर्पण कर देहूँ। गुरू जब बालक के बात ल सुने तो थर्रागे। अब मोला मजबूरी वश एकर परीक्षा ले बर परही।

H: रागी - क्या परीक्षा, एकलव्य अपने स्‍वयं से पढ़ा तब भी उसके अंगूठे को मांग लिए लो ना क्या कहें, वो भी एक गुरू ही थे। तो वे कौन गुरू हैं और कौन चेला हैं। कर्णवीर दानी हैं। तो उस समय में गुरू जलन्धर कहते हैं बेटा तुम्‍हें परीक्षा देना पड़ेगा। हौ। गोपीचंदा कहता है हां जैसे भी परीक्षा लोगे मैं तैयार हूं। अगर यह प्राण भी चला जाएगा गुरूदेव तब भी पिता के नाम पर मैं ये आत्मा को अर्पण कर दूंगा। गुरू जब बालक की बातों को सुने तो धबरा गए। अब मुझे मजबूरी वश इसकी परीक्षा लेनी पड़ेगी।

C: माया कर कन्या एदे सुन्दर येदे कइसे मोर सोचन लागे।

(हे भगवान आज वो दिव्य रूपी कन्या कौरूनगर के माया म भुला जही तो ये गुरू के जबान मिथ्या चले जाही आज। ये जबान नइ रही जाही।
ए बालक आज हठ छोड़बे नइ करत हे। कइस करंव।)

माया कर कन्या एदे सुन्दर येदे वोह हरे छोरे हबे

(ओहू ल देखे ल परही अउ बालक के परीक्षा ले ल परही)

माया के कराही येदे लगत हे तैयारी के चलन लगे

माया के कराही में गा तेले येदे डबकत हाबे

गुरू जलन्धर ये दे चलन लगै।

H: माया की सुन्दर कन्या को सोचने लगे। हे भगवान आज वह दिव्य रूपी कन्या कौरू नगर के माया में भूल जायेगा तो इस गुरू का जबान मिथ्या चला जायेगा। ये जबान नहीं रह जायेगा। ये बालक आज हठ छोड़ ही नहीं रहा है। कैस करूं। माया की सुन्‍दर कन्या वो छोड़ा हैं उसे भी देखना पड़ेगा और इस बालक की परीक्षा लेना पड़ेगा। माया की कराही चढ़ाने की तैयारी चल रही है। माया की कड़ाही में तेल खैल रहा है, गुरू जलन्धर चलने लगे।

C: ये रागी उहां गुरू जलन्धर उहां माया रूपी कराही तैयार करे हे तेला देखत हावे। हौ गा। माया रूपी कराही तैयार कर दिस। माया के तेल प्रवेष कर माया के ही वहां अग्नि तैयार होगे। भैया वहां तेल डबके कहै गुरूजी आज देख तो आज बालक गोपीचंदा ल कहिथे बेटा आज तोला अगर पिता उबारे के षौक होही। तो आज ये कराही के खौलत तेल में कूद के अपन प्राण ल तियागबे तब मै तोला जानहूं।

रागी - तब जानौं। तब उबर सकबे तैं। बेटा गोपीचंदा सोचथे देख तो भगवान। आज मैं अपन आत्मा ल तो अर्पण करि देंव आकर उपर डाल देहंव। अगर मैं इहां ले वापस चले जाहौं डर में तो मोर दूनिया म बदनामी होही देख तो छत्रपति राजा त्रिलोकी के बेटा हॅ डर के मारे वापस आगे कहिके। एकरे सेती ये समय ले समय हे। गढरी ल धरे हे। तमूरा धरे हे। बीना करताल ल धरे हे। रागी - सबो ल धरे हे। अउ उहां भैया सुन्दर सिंगार उहां बगल में रख देथे। अउ का कहिथे - गुरूदेव

H: रागी वहां गुरू जलन्धर वहां माया रूपी कराही तैयार किए है उसे देखरहे है। हौ गा। माया रूपी कड़ाही तैयार कर दिया। माया का तेल प्रवेश कर माया का ही वहां अग्नि तैयार हो गया। भैया वहां तेल खौल रहा है। गुरूजी आज देखो तो बालक गोपीचंदा को कहते हैं बेटा आज तुम्‍हें कहीं  पिता उबारने का शौक है तो आज इस कड़ाही के खौलते तेल में कूद का अपने प्राण को त्‍यागोगे तब मै तुम्‍हें मानूंगा। रागी - तब जानूं। तब उबर सकोगे तुम। बेटा गोपीचंदा सोचता है देखो तो भगवान। आज में अपनी आत्मा को तो अर्पण कर ही डाला हूं उसके उपर डाल दिया हूं। कहीं  मैं यहां से डरके वापस चला जाता हूं तो दुनिया में बदनामी होगी  देखो तो छत्रपति राजा त्रिलोकी का बेटा डर से वापस आ गया कहेंगें। इस लिए यही समय है। गठरी को पकड़ा है। तमूरा पकड़ा है। वीणा करताल को पकड़ा है। रागी - सभी को पकड़ा है। और वहां भैया सुन्दर सिंगार वहां बाजू में रख देता है और क्या कहता है - गुरूदेव

C: मोर कूदथे कराही में मोर भैया

मोर येदे कूदे है जी

मोर डबकत कराही में भाई

रागी न बालक गोपीचंदा हॅ उहां डबकत हे। भोजन के समान चुर गे गुरू जलन्धर हॅ कहिथे।

गुरू ए जलन्धर हॅ भाई मोर मने मन सोचत हे जी

बड़ पता के बालक दीदी मोर बालक आये हे जी।।

H: कूदता है कड़ाही में, भैया ये कूद दिया है जी, खैलते कड़ाही में भाई रागी ना बालक गोपीचंदा है वहां खौल रहा है। भोजन के समान पक गया। गुरू जलन्धर कहता है। गुरू जलन्धर भाई मन ही मन सोचते हैं कि बहुत पते से यह बालक आया है जी।।

C: ये रागी डबकत कराही में बेटा गोपीचंदा राहय तेन कूदगे अउ बालक तेल में पकके अब अलग-अलग हड्डी अउ मांस होगे। गुरू जलन्धर उहू थर्रागे वो। जइसे सब्जी मं मांस हड्डी पकथे ओइसने वोहू होगे। अरे अतका चेला लेकर के मै तपस्या म लीन बइठे हंव लेकिन अइसन चेला मोला नइ मिले रिहिस हे।

H: रागी खौलते कड़ाही में बेटा गोपीचंदा रहता है वह कूद देता है और बालक तेल में पक गया हड्डी और मांस अलग-अलग हो गया। गुरू जलन्धर भी घबराना गए। जैसे सब्जी मे मांस और हड्डी पकता है उसी तरह वो भी पक गया। अरे इतना चेला लेके मै तपस्या में लीन बैठा हूं किन्‍तु ऐसा चेला मुझे नहीं मिला था।

C: गुरू गुर्रात एक चंद्रमा अउ सेवक नैन चकोर अवर पहर निरखत रहूं गुरूच ही की ओर गुरू जलन्धर ओ ते। कथे बेटा जब तैंह प्रण कर देस तो ये कराही में कूद जा अउ तब मै जानहूं के तै हा पिता उबार लेबे कहिके। वो समय गोपीचंदा हे ते कहिथे। भगवान आज गुरू ल परीक्षा तो मोला देयेच ल परही। बिना गुरू के ज्ञान नइ मिलय भगवान। आज वो बीना करताल अउ गठरी ल लेकर आज वो बगल मे रखे हे। अउ बेटा गोपीचंदा हे तौन हॅ उबाटामार करके आज वो कराही-कराही में कूदगे। रागी - माया के अग्नि माया के कराही में कूदगे। माया के अग्नि माया के कराही में कूदगे। हौ।

H: गुरू गुर्रात एक चंद्रमा और सेवक नैन चकोर अवर पहर निरखत रहूं गुरूच ही की ओर। गुरू जलन्धर उस समय कहते हैं बेटा जब तुम प्रण कर लिये हो तो कड़ाही में कूद जा और तब मै जानूंगा कि तुम पिता को उबार लोगे। उसी समय गोपीचंदा है वह कहता है। भगवान आज गुरू की परीक्षा तो मुझे देना ही पड़ेगा। बिना गुरू का ज्ञान नहीं मिलता है भगवान। आज वह वीणा करताल और गठरी को लेकर आज वह बगल मे रखा है। और बेटा गोपीचंदा है वह उबाटा मार करके कड़ाही में कूद गया। रागी - माया के अग्नि माया की कराही में कूद गया। माया की अग्नि माया की कराही में कूद गया। हां।

C: मैंह का बतावौ दाई तोर सुरता आवथे मोर

भोजन बने मोर गोपीचंदा के जहां देखथे भैया

ओदे परे हे दाई जेला देख भाई

जौने समय मे माता अष्‍टांगी हे तोन ओ समय में ध्यान करत हे बेटा गोपीचंदा के

कोरस - मन म गुनथे रागी तोर

H: मैं क्या बताउं मां तुम्‍हारी याद आ रही है भोजन बनने के बाद अपने गोपीचंदा को देख रही है भैया। वहां पड़ा है मां जिसे देखो भाई उसी समय मे माता अष्‍टांगी है वह उस समय में ध्यान लगा रही है बेटा गोपीचंदा का। कोरस - मन ही मन गुन रहा है रागी।

C: मोर गुरू जलन्धर मोर 21 बहिनी मोर माता ए मन के मोर ध्यान लगावे। मोर गुरू हॅ जी आज मैना के बेटा गोपीचंदा हॅ भोजन बनके तैयार हे रागी। ओ समय मे आज सुन्दर मजा के गुरू जलन्धर कहिथे हे भगवान। आज वो माता अश्टंगी हे तोन बचन देहे के अगर बेटा तोला बिपत परही तो वो दिन में मोला याद कर लेबे, बेटा गोपीचंदा। रागी - मोला पुकार लेबे।

आज वो माता के आसन आसन डोले भैया। कहिथे शक्ति से मोर बेटा ल बिपत परगे तइसे लागत हे। जइसे ए तरफ सोचत हे अउ वो तरफ गुरू जलन्धर हे तौन का बोलत हे -

H: गुरू जलन्धर 21 बहन माता को ध्यान लगाते हैं। आज मैना का बेटा गोपीचंदा का भोजन बनके तैयार है रागी। उसी समय मे आज सुन्दर आनंद से गुरू जलन्धर कहता है। आज माता अष्‍टंगी रहती है वह वचन दी हैं कहं बेटा तुम्‍हें विपत्ति पड़ेगा तो मुझे याद कर लेना, बेटा गोपीचंदा। रागी - मुझे पुकार लेना।

आज उस माता का आसन डोल जाता है भैया। कहती है शक्ति से मेरे बेटे के उपर कोई विपत्ति पड़ी है ऐसा लगता है। जैसे उधर वो सोचती हैं इधर गुरू जलन्धर है वह क्या बोलते है –

C: मंत्र के आहावन एदे करय वा

मोर एके बिनती दाई सुन ले वो

मोर कहन लागे भाई

कोरस - तउने समये में मोर जलन्धर गा

ओला सुमिरन लागे भाई

हौ 21 बहिनी मन ल लाबे वो

मोर बोलत हाबे भाई

सुन्दर आजे वो बुलावय गा

मोर बुलावत हावे जी।

H: मंत्र का आहवान करते हैं। मेरी एक ही विनती सुन लो मां। वह कहने लगा भाई। कोरस - उसी समय में जलन्धर उन्‍हें सुमिरन करने लगते हैं। 21 बहनियों को लेके आना माता। बोलते हैं भाई सुन्दर आज बुलाये है जी।

C: ये भजनहीन। देख तो गुरू जलन्धर हे तेन ओ समें में एक्कीसों बहिनी माता मन के सेवा करे, हे माता अष्‍टंगी के काबर माता हे तेन एक दिव्य शक्ति हरे। माता के पास में जो शक्ति हे वो किसी के पास में नइ हे। वही माता ल मैं पुकार करौ जौन ये बालक ल तैयार कर सके। गुरू जलन्धर हे तौन बड़ा ज्ञानी गुरू हे। आज एक्कीसों बहिनी माता मनल सुन्दर निमंत्रण भेजे हे। अउ निमंत्रण देहे तो वो समय में एक्कीसों बहिनी माता मन हे आज यहां बालक के भोजन बर आये हे। उहां प्रकट होगे वो। त गुरू जलन्धर कहिथे - भगवान!

H: ए भजनहीन। देख तो गुरू जलन्धर है वह उसी समय में एक्कीसों बहनों की सेवा किया है, माता अष्‍टंगी माता है वह एक दिव्य शक्ति है। माता का पास में जो शक्ति है वह किसी के पास में नहीं है। उसी माता को मैं पुकार रहा हूं जो इस बालक को तैयार कर सके। गुरू जलन्धर है वह बड़ा ज्ञानी गुरू है। आज एक्कीसों बहन माता को सुन्दर निमंत्रण भेजता है। और निमंत्रण देनें के समय में एक्कीसों बहनी माता आज यहां बालक के भोजन के लिये आये है। वहां प्रकट हो गईं। तब गुरू जलन्धर कहते है - भगवान!

C: ये माता मन आए हावे। सुन्दर भोजन लगाये हौं। आज इही भोजन ओला कर लेही कहिके। अउ एकर का भोजन करही। ये बालक के प्राण बच जाही कहिके बलाए हौं। अइसे गुरू जलन्धर रहै तेन मन म सोचत हे लेकिन आरती लेकर के गुरू जलन्धर हे तेन सुन्दर बेल के पाती लेकर के नारियल लेकर के माता के पास में पहुंचत हे। त काय कथे जानथस -

H: ये माता आई हैं। सुन्दर भोजन लगाया हूं। आज इसी भोजन को कर लो कहते हैं। इसका क्या भोजन करोगी। इस बालक का प्राण बच जाये इसलिए आप लोगों को बुलाया हूं। गुरू जलन्धर रहते हैं वे आरती लेकर सुन्दर बेल की पत्‍ती लेके नारियल लेकर माता के पास में पहुंचता है। तो क्‍या कहते हैं जानते हो –

C: आरती उतारौ दाई चरण पखारौं माता।

दण्डासरण पैंया लागौ ओ माया मोर।

तन लगे दियना दाई मन लगे बाती माता।

श्रद्धा के जोत जले सारी राती।

श्रद्धा के जोत जले दिन राजी।

आरती उतारौ दाई चरण पखारौं माता।

दण्डासरण पैंया लागौ ओ माया मोर।

H: आरती उतारूं माता चरण पखारूं माता। दण्डाशरण पांव पड़ रहा हूं माता मेरे। तन में दीपक लगा है मां मन बाती है माता। श्रद्धा की ज्‍योति संपूर्ण रात जलती है। श्रद्धा की ज्‍योति दिन रात जलती है। आरती उतारूं मांता चरण पखार रहा हूं माता। दण्डाशरण पांव पड़ रहा हूं माता।

C: रागी - यहा ददा यहा दे चढ़गे। ये नवरात्रि महीना ए। जादा गाबे त देवता चढ़ही तेला नरियर देबर अभी नरियर हॅ नइहे। बाना लेवइया बर बाना नइहे। एकर सेती गुरू जलन्धर कहिथे कि माता आज मैं तुमन ल सुन्दर मजा के आज मैं निमंत्रण बुलाए हौं। दाई आज अतेक दिन होगे हे तुमन ल भोजन नइ खवाये हौं। आज माता सुन्दर भोजन बने माड़े हवे। आज माता मन ल आज सुन्दर आदेष देवै दाई के जाकर तुम मन हॅ सुन्दर प्रेम से भोजन करौ। माता अश्टंगी हे भैया जहां बालक के भोजन बने हे, वहां जाकर के माता हे तौन देखथे वो हॅ तो भैया सुन्दर मजा के कराही में गोपीचंदा हे तोन पके हे। भैया बगल में गठरी, बीना, करताल साधू के भेश में गोपीचंदा हे। भगवान आज तैं गुरू जलन्धर!

H: रागी - यहा ददा यहा देने चढ़गे। ये नवरात्रि का महीना है। जादा गाओगे तो देवता चढ़ जायेंगें उसे नारियल देना पड़ेगा, अभी नारियल नहीं है। बाना लेने वालों के लिए बाना नहीं है। इस लिए गुरू जलन्धर कहते है कि माता आज मैं आप लोगों को सुन्दर आनंद से आज निमंत्रण में बुलाया हूं। मां बहुत दिन हो गया है आप लोगों को भोजन नहीं खिलाया हूं। आज माता सुन्दर भोजन बना हुआ है। माता लोगों को आज सुन्दर आदेश दो माता जाकर आप लोग सुन्दर प्रेम से भोजन कीजिए। माता अष्‍टंगी है भैया जहां बालक का भोजन बना है, वहां जाकर के माता देखती हैं तो भैया सुन्दर कड़ाही में गोपीचंदा है वह पका है। भैया बगल में गठरी, बीना, करताल साधू के वेश में गोपीचंदा है। भगवान आज तुम गुरू जलन्धर!

C: आज ये भक्त ल मैं आज बचन दे रेहेंव के तोला बिपत परही त मोर सुमिरन कर लेबे बेटा तोर काम आहूं। काम आहूं कहिके। आज वही मौका तैं मोला लान देय। गुरू जलन्धर कथे कि माँ ये बालक ल मै बार बार समझायेंव। कौरू नगर जाहूं कहिथे पिता उबारे बर। बड़े बड़े पथरा होगे उहां भांठा ल पानी, पानी ल भांठा, सांप के तुतारी, बिच्छी के अरई बनाथे, आज वोह जादू के राज म जाहूं कहिथे। प्रण ले हवय। आज बेटा गोपीचंदा कराही में जिहां भोजन बने परे हे। एक्कीसों बहिनी वहां पहुंचे हुए हे। माता मन कहिथे आज बेटा गोपीचंदा ल जिंदा करना हवे। माता मन रहिथे तोन ओ समय अचरा बिछा करके अरे कराही में जतेक हड्डी राहय तेन सुन्दर अचरा में रखे हे रागी।

H: आज इस भक्त को मैं वचन दिया था कि तुम्‍हें विपत्ति पड़ेगी त मेरा सुमिरन कर लेना बेटा तुम्‍हारे काम आउंगी। कामव आउंगी कहके। आज वही मौका तुम मुझे ला दिए। गुरू जलन्धर कहता है कि माँ इस बालक को मै बार बार समझाया हूं। कौरू नगर जाउंगा कहता है पिता उबारने के लिये। बड़े बड़े पत्‍थर हो गए वहां सूखे को पानी, पानी को सूखा, सांप की तुतारी, बिच्छू की अरई बनाया जाता है, आज उसी जादू के राज में जाउंगा कहता है। प्रण लिया है। आज बेटा गोपीचंदा कड़ाही में भोजन बना पड़ा है। एक्कीसों बहन वहां पहुंच गई हैं। मातायें कहती है आज बेटा गोपीचंदा को जिंदा करना है। मातायें रहती है वे उस समय आंचल बिछा करके कड़ाही में जितना हड्डी रहता है उसे सुन्दर आंचल में रखती हैं रागी।

C: तो गुरू जलन्धर हाथ जोड़ करके कथे - दाई एकर जी ल तो तैं तैयार कर दे। आज इक्कीसों बहिनी जब तक एकर खून नइ छोड़हू तब तक ये ठाढ़ तैयार नई होवय। आज इक्कीसों बहिनी माता मन मिल करके आज हड्डी म खून चुहोवत हे। गुरू जलन्धर रहे तोन मंत्र पढ़े हे। मंत्र पढ़िस तो ओमा बालक गोपीचंदा के ठाढ़ तैयार होगे। वो समय में कैलाश पर्वत में भगवान षंकर माता पार्वती के आसन डोलथे कि तोर भक्त ल विपत परे हे। आज उहां भगवान षंकर अउ माता पार्वती हे तेन कैलाष ले चले हावय। आज षंकर भगवान माता पार्वती हे तेन बइला में बइठ करके आज वहीं जगहा में पहुंचे जहां गोपीचंदा के ठाढ़ तैयार हे। शंकर भगवान माता पार्वती कहिथे - कि बेटा आज तोर भक्तीन हे तेन आज मोर सेवा में लगे हे। आज तोर गुरू जलन्धर के परीक्षा में तोर ठाढ़ तैयार होवत खड़े हे। आज मोला तोला जिंदा करे बर पड़ही कहिके षंकर भगवान हे तेन सुन्दर अमृत चुहाए हावय अउ चुहाके ओ समय में तोन सुंदर अमृत पिलाए हे। बेटा गोपीचंदा हावय तेन सुंदर पलक खोल करके देखत भैया उहां खड़ा होगे। इक्कीसों बहिनी माता आज गुरू जलन्धर आज बड़े बड़े देवी  देवता मन हे तोन प्रकट हे। सब देवता के चरण में षीष नवाय अउ देवता मन कहिथे बेटा तोर कस आज तक भक्त नइ मिलिस हमर देवता मन के आसिरवाद हवय हमर माता मन के आसिरवाद हवय। सुन्दर बेटा गोपीचंदा ल आज आसिरवाद देकर अपन अपन स्थान चले जाथे। आज जइसे सुंदर माता मन जाथे गुरू जलन्धर कथे कि बेटा तैं परीक्षा तो पास होगे हस। परीक्षा के बाद तोर आत्मा आज अमर होगे। काय हॅ अमर होगे। आज सुन्दर मजा के बेटा जइसे तोर परीक्षा ले हंव वइसे मोरो बानी ल तें सुन ले, बेटा गोपीचंदा! ये काली-पीली के चांवल रख ले कौरू नगर में जाबे बेटा वहां तोला खटिया देही तेमा तैं मत बइठबे। वहां तैं जाबे त तोला गोड़ धोये बर पानी देही त पानी म हाथ-गोड़ मत धोबे, तोल भोजन खाले कही त तैं भोजन मत खाबे। जादा जिद करही बेटा अरे मंत्र आवाहन करे ये पथरा के चावल हे ओकर तैं परीक्षा ले लेबे गोपी। गुरू जलन्धर हे तोन पथरा के चावल मंत्र बनाकर के गोपीचंदा ला देहे। अउ वहां से आसिरवाद लेकर कथे। बेटा तैं आज इहां ले तो जाये बर तो जावत हस लेकिन कौरू नगर में जाबे उहां बड़े बड़े अढ़ई अक्षर के होथे। मंत्र  अढ़ई अक्षर होथे, लेकिन अढ़ई अक्षर हे तोन हॅ बड़े बड़े ल हिला देथे। वो ढाई अक्षर के पार नइ पाय। वो मंत्र वो जदुहिन मन के हरे।
H: तो गुरू जलन्धर हाथ जोड़ करके कहता है - मां इसके प्राण को तो तुम तैयार कर दो। आज इक्कीसों बहने जब तक इसके लिए खून नहीं छोड़ोगी तब तक यह खड़ा नहीं हो पायेगा। आज इक्कीसों बहने मातायें मिल करके हड्डी पर खून गिरा रही हैं। गुरू जलन्धर रहते हैं वे मंत्र पढ़ रहे है। मंत्र पढ़े तो उसमें से बालक गोपीचंदा बनकर खड़ा हो गया। उसी समय में कैलाश पर्वत में भगवान शंकर माता पार्वती का आसन डोलता है कि तुम्‍हारे भक्त पर विपत्ति पड़ी है। आज वहां भगवान शंकर और माता पार्वती हैं वे कैलाश से निकलते हैं। आज शंकर भगवान माता पार्वती नंदी में बैठ करके उसी जगह में पहुंचते हैं जहां गोपीचंदा का खड़ा किया गया है। शंकर भगवान माता पार्वती से कहते हैं - कि आज तुम्‍हारा भक्त है वह मेरी सेवा में लगा है। आज तुम्‍हारे गुरू जलन्धर के परीक्षा में तुम तैयार होकर खड़े हो। आज मुझे तुम्‍हें जिंदा करना पड़ेगा कहकर शंकर भगवान है वे सुन्दर अमृत टपकाते हैं और टपका के उस समय में सुंदर अमृत पिलाते है। बेटा गोपीचंदा रहता है वह सुंदर पलक खोल करके देखते हुए वहां खड़ा हो जाता है। इक्कीसों बहन माता गुरू जलन्धर आज बड़े बड़े देवी देवता है वे प्रकट हैं। सब देवताओं के चरण में शीश नवाता है। देवता लोग कहते है बेटा तुम्‍हारे जैसा भक्त आज तक नहीं मिला। हम देवताओं का आर्शिवाद है माताओं का आर्शिवाद है। सुन्दर बेटा गोपीचंदा को आज आर्शिवाद देकर अपने अपने स्थान चलने लगे। आज गुरू जलन्धर कहते हैं कि बेटा तुम परीक्षा तो पास हो गए। परीक्षा के बाद तुम्‍हारा आत्मा आज अमर हो गया। क्‍या अमर हो गया। आज सुन्दर आनंद करो बेटा जैसे तुम्‍हारी परीक्षा लिया ना वैसे ही मेरी वाणी को तुम सुन लो, बेटा गोपीचंदा! यह काली-पीली चांवल रख लो, कौरू नगर में जावोगे बेटा वहां तुम्‍हें कोई खाट देगा उसमें तुम मत बैठना। वहां तुम जावोगे तो तुम्‍हें पैर धोने के लिये पानी देंगें तो उस पानी से हाथ-पैर मत धोना, तुमको कोई भोजन खाने को कहे तो तुम भोजन मत करना। ज्‍यादा कोई जिद करे तो मंत्र आवाहन किया हुआ इस पत्‍थर के चावल से तुम उसकी परीक्षा ले लेना गोपी। गुरू जलन्धर है वे पत्‍थर का चावल मंत्र बनाकर गोपीचंदा को देते हैं। और वहां से आर्शिवाद लेकर कहते हैं। बेटा तुम आज इहां से जाने के लिये तो जा रहे हो लेकिन कौरू नगर में जावोगे तो वहां बड़े बड़े अढ़ई अक्षर के मंत्र होते हैं। मंत्र अढ़ाई अक्षर के होते ही हैं, लेकिन अढ़ाई अक्षर है वह बड़ों बड़ों को हिला देता है। वह ढाई अक्षर का पार नहीं पाया जा सकता। वह मंत्र वही है जो जादूग‍रनियों के पास है।

C: लोहकट्टी, लोहारिन, नवइन, चंदखुरिन, चमारिन, नैन ओगानिन, नैन जोगनिन ये सातों बहिनी हरे बेटा। गांव गुवालीन उहां हावे ये सबले बड़े बहिनी ये। आज ये जदुवहिन मन हे तेमन तोला उहां जाबे त मिलही। जेन समय में तोला विपत आही त ओ समय मे मंत्र वाहन से मैं तोला देखत रहीहौ। बेटा तोला का बनाही। सांप बनाही भेड़ा बनाहीं के बकरी बनाही नाना प्रकार के चीज बनाही तोला बेटा गोपीचंदा त उकरो मन के महिमा हे। जब ओतका मंत्र पागे हावे तो ओहू मन ल तो पूरा करे ल लगही। अगर मोरे ल चलाहू त उकर मन के कौरू नगर के नाम सदा के लिए डूब जाही। अतका बात ल गोपीचंदा तैं ध्यान में रखबे। भैया गोपीचंदा हे तोन बड़ा आसिरवाद लेकर के चले  होथे ओतके मे गुरू कथे के बेटा एक बात अउ हवय आज बेटा कौरू नगर के आज तो एक गुरू अम्मरनाथ हे तोन नदी किनारे आज तपस्या में बइठे हे समाधि लगाए। आज वो गुरू हे तोन अमरनाथ गुरू ए। जेन ओकर मास के भोजन करही ओकर काया अमर हो जथे। आज ओ गुरू के तैं सेवा कर लेबे बेटा गोपीचंदा। अउ सेवा करके तैं आगे चले जावे। गोपी चंदा हे तोन सुन्दर मजा के -

H: लोहकट्टी, लोहारिन, नवइन, चंदखुरिन, चमारिन, नैन ओगानिन, नैन जोगनिन ये सातों बहन हैं बेटा। गांव गुवालीन वहां है यह सबसे बड़ी बहन है। आज जब तुम वहां जाओगे तो ये जादूगरनियां तुम्‍हें मिलेंगी। जिस समय में तुम्‍हें विपत्ति आयेगा तो उस समय मे मंत्र आवाहन से में तुम्‍हें देखता रहूंगा। बेटा तुम्‍हें क्या बनायेंगें। सांप बनायेंगें, भेड़ बनायेंगें, बकरी बनायेंगें नाना प्रकार की चीज तुम्‍हें बना देंगें बेटा गोपीचंदा तो उन लोगों की भी महिमा है। जब उतना मंत्र पाये हैं तो उनको भी तो संतुष्‍ट करना पड़ेगा। कहीं मेरा ही चलेगा तो उनका कौरू नगर का नाम सदा के लिए डूब जावेगा। इतना बात को गोपीचंदा, तुम ध्यान में रखना। भैया गोपीचंदा है वह बड़ा आर्शिवाद लेकर चलने को होता है उतने में ही गुरू कहते हैं बेटा एक बात और है आज बेटा कौरू नगर का तो एक गुरू अम्मरनाथ है वह नदी किनारे आज तपस्या में बैठे हैं समाधि लगाए हैं। आज वह गुरू है वे अमरनाथ गुरू। जो उसके मास का भोजन करेगा उसका काया अमर हो जाता हैं। उस गुरू का तुम सेवा कर लेना बेटा गोपीचंदा। और सेवा करके तुम आगे चले जाना। गोपी चंदा है वह सुन्दर आनंद से–

C: चलत हवय बेटा गोपीचंदा

चलत हवय बेटा गोपीचंदा हॅ जी

जहां गुरू ए बइठे हवय न

नदी किनारे गुरू बइठे जी

जहां गा राक्षस मन पहुंचे न

जंगल के मारग गोपी चलै जी

अमर गुरू के सेवा करै न

गैया चरैया मनमोहना ए न

बंसी के बजैया ल बंदत हौ न।।

H: चल रहा है, बेटा गोपीचंदा चल रहा है। बेटा गोपीचंदा जी जहां गुरू बैठे हैं। नदी किनारे गुरू बैठे हैं। जहां राक्षस लोग पहुंचे हैं, जंगल के मार्ग में गोपी चल रहा है। अमर गुरू का सेवा करने जा रहा है। गाय को चराने वाला मनमोहना है वंशी को बजाने वाले की वंदना करता हूं।

C: आज देखतो गोपीचंदा हे तोन आज उही जंगल के मारग पकड़े हे। अउ ओ तरफ गुरू अमरनाथ के सेवा करे बर राक्षस मन भिड़े हे। एक तरफ तो गोपीचंदा जावत हे। अममरनाथ गुरू के सेवा में। राक्षस मन हॅ उहां लगे हे। काबर लगे हे ? काबर? भैया हो ये हमर राक्षस योनि हे। अरे मांस खाये के योनि ये। अगर हमर ये अमरनाथ गुरू के सेवा कर लेगो सेवा करके ओकर आत्मा ल जीत लेबो अउ सुन्दर ओकर काया ल इही नदी के किनारे भोजन बनाके खाबो तहाने हमर ये राक्षस कुल चोला हॅ हमर ये राक्षस योनि हॅ अमर हो जही। ये सोचकर के आज राक्षस मन हे तोन सुंदर वहां वोला सेवा में जीत लिस अउ जीते के बाद सुंदर मजा के ओला सुन्दर बचन ल धरा लिस वचनबद्ध होगे। बचन वोह दे दिस मतलब अपन शरीर ल राक्षस मन ल अर्पन कर दिस। राक्षस मन सोचथे भगवान अइसन नई बनै। त कइसन बनही ? संगवारी हो एकर सुंदर भोजन बना लेथन। ये नदी हे अउ अमरनाथ गुरू के भोजन बनाके एकर जो ये नदी में स्‍नान करके ए काया ल पावन कर लेबो न तो बड़ मजेदार स्वादिष्‍ट हो जाही। राक्षस मन के सोच अलग होथे। सुंदर भोजन भोजन बनाए हे दाई। आज वो समय में आज गुरू अमरनाथ के भोजन बनाए हे। उपर से देवता मन देखथे भगवान इहां राक्षन मन काय उदीम करत हावय अउ काय यहा अलकरहा जगा में फंस गे हावे। यहू अमरनाथ गुरू के भोजन करही तो एकर काया अमर हो जाही तो हमन देवता मन हॅ नइ मार सकन। हम देवता मन नइ मार सकन अगर इंकर काया अमर हो जाही ते। त वो समय में गंगा माता के सुमिरन करत हावे और ? देवता मन हॅ - देवता मन हॅ सुमिरन करत हवे गंगा माता के - कि माता तोर गोद म भोजन बने हे अमरनाथ गुरू के ओता तोला बोहवाना जरूर हे। त कइसे सुमिरन करे हे ? कइसे सुमिरन करे हे मैं बतावत हौं -

H: आज देखो तो गोपीचंदा है वह आज उसी जंगल का मार्ग पकड़े है। और उस ओर गुरू अमरनाथ की सेवा के किए राक्षस लोग भिड़े हैं। एक ओर तो गोपीचंदा जाता है। अममरनाथ गुरू की सेवा में। राक्षस लोग वहां लगे हैं। क्यों लगे है ? क्‍यों? भैया हो यह हमारी राक्षस योनि है। अरे मांस खाने वाली योनि है यह। अगर हम इस अमरनाथ गुरू की सेवा कर लेंगें और सेवा करके उनका आत्मा को जीत लेंगें तो सुन्दर उसकी काया को इसी नदी के किनारे भोजन बनाके खायेंगें फिर हमारी यह राक्षस कुल चोला है हमारी यह राक्षस योनि है अमर हो जायेगी। यह सोच करके आज राक्षस लोग है वे सुंदर वहां उसे सेवा में जीत लेते हैं और जीतने के बाद सुंदर आनंद से उसे सुन्दर बचन से वचनबद्ध कर लिया। वे वचन दे देते हैं कि मैं अपना शरीर राक्षसों को अर्पण करता हूं। राक्षस लोग सोचते हैं भगवान ऐसे नहीं बनेगा। तो कैसे बनेगा ? मित्रों इसका सुंदर भोजन बना लेते हैं। यह नदी है और अमरनाथ गुरू का भोजन बनाके इसे नदी में स्नान कराके इस काया को पावन कर लेगें तो बड़ा मजेदार स्वादिष्‍ट होगा। राक्षस लोगों का सोच पृथक ही होता है। सुंदर भोजन बनाते है माता। आज उसी समय में गुरू अमरनाथ का भोजन बनाए है। उपर से देवता देख रहे हैं भगवान यहां राक्षन लोग क्‍या कर रहे हैं और कहां इस खतरनाक स्‍थान में फंस गए। ये अमरनाथ गुरू का भोजन करेंगे तो इनका काया अमर हो जायेगा तो हम देवता लोग इन्‍हें मार नहीं सकेंगें। हम देवता लोग मार नहीं सकेंगें कहीं इनका काया अमर हो जायेगा तो। मो उसी समय में गंगा माता का सुमिरन करते है, और ? देवता लोग - देवता लोग सुमिरन कर रहे हैं गंगा माता का - कि माता तुम्‍हारे गोद पर भोजन बना है अमरनाथ गुरू का उसे तुम्‍हें बहाना है। तो कैसे सुमिरन किए है ? कैसे सुमिरन किए है मैं बताता हूं –

C: दाई तोला गंगा वो कहिथे

माता तोला गंगा वो कहिथे

दाई तोला गंगा वो कहिथे

माता तोला गंगा वो कहिथे ।

भीष्‍म पितामह के माता वो जगत जननी

दाई तोला गंगा वो कहिथे

माता तोला गंगा वो कहिथे।

H: मां तुम्‍हें गंगा कहते है। माता तुम्‍हें गंगा कहते है। मां तुम्‍हें गंगा कहते हैं। माता तुम्‍हें गंगा कहते हैं। भीष्‍म पितामह की माता जगत जननी मां, तुम्‍हें गंगा कहते हैं, माता तुम्‍हें गंगा कहते है।

C: आज वो समय में देवता मन हे तोन गंगा माता के सुमिरन करत हवे संतो भाई। गंगा माता हे तोन बड़ा सुंदर देवता मन के आज ध्यान लगाये हे। आज सुंदर ओकर मन के आवाज ल सुन हे। बानी ल सुने हे। बेटा ए का बात ये। ओ समय में देवता मन कथे कि माता आज वही अममरनाथ गुरू हे तोन तोर गोद में सुंदर भोजन बने तैयार हे दाई आज राक्षस मन अगर भोजन कर लेही ओकर तो आज काया अमर हो जही। फेर उकर मारने वाला कोई नह हे माता। रागी - कोइ मारने वाला नइहे, का बतावंव संगवारी। आसमान पूरा होथे।
गंगामाता हे तोनआज सुंदर देवता मन के बानी ल सुन करके उम्हगे। अरे उम्हगे का भैया! राक्षस मन वो डाहर नहाय ल गे हे, ये तरफ भोजन बने माड़े हे सब ल -

H: आज उसी समय में देवता लोग हैं वे गंगा माता का सुमिरन करते हैं, संतो भाई। गंगा माता है उसकी बहुत सुंदर देवता लोग आज ध्यान लगाये हैं। आज सुंदर उनके मन की आवाज को सुनी हैं। वचन को सुनी हैं। बेटा ये क्या बात है। उसी समय में देवता लोग कहते हैं कि माता आज वही अममरनाथ गुरू हैं जो तुम्‍हारे गोद में सुंदर भोजन बनने के लिए तैयार है मां, आज राक्षस लोग कहीं भोजन कर लेंगें तो उनकी काया आज अमर हो जायेगी। किंतु उन्‍हें मारने वाला कोई नहीं है माता। रागी - कोइ मारने वाला नहीं हैं, क्या बताउं मित्र। आसमान पूरा हो रहा है। गंगामाता है वह आज सुंदर देवताओं की बातों को सुन करके उमड़ पड़ी। अरे उमड़ पड़ी, क्या भैया! राक्षस लोग उधर नहा चुके है, और भोजन बना रखा है सब को –

C: मोर नदी में बहावत हे भाई

मोर नदी में बहावत हे भाई

मोर कहां गए राक्षस भइया

मोर कहां गए भोजन ए भाई

मोर नदी हॅ भोजन ए भाई

एदे बहावन लागे ए भाई

मोर गुरू के बने हे भोजन

गुरू अमरनाथ के ए भाई

H: नदी में बह रहा है भाई। नदी में बह रहा है भाई। कहां गया राक्षस भइया। कहां गया भोजन। ये भाई मेरे नदी भोजन को ये बहाने लागी भाई। गुरू का भोजन बना है। गुरू अमरनाथ का है भाई।

C: ये रागी देखतो बड़ा सुन्दर मजा के। देख ले उहां अमरनाथ गुरू के भोजन बनाये हें आज राक्षस मन ओहू बोहगे। अउ ए तरफ गोपीचंदा हे तेन चले हे। चल तो भगवान गुरू अमरनाथ के सेवा कर लेथौं कहि करके सुंदर भगवान के सेवा ल गाकर चले हे। करताल बजाते मोर नदी के किनारे म पहुंचे हे। त ओ समय में भैया

H: रागी देखो तो बड़ा सुन्दर आनंद से। देख लो ना वहां अमरनाथ गुरू का भोजन राक्षस लोग बनाये हैं वो बह गया। और इधर गोपीचंदा है वह चल रहा है। चलो भगवान गुरू अमरनाथ की सेवा कर लेता हूं सोंचकर सुंदर भगवान की सेवा को गाते हुए चल रहा है। करताल बजाते नदी के किनारे पर पहुंचे हैं। त उसी समय में भैया

C: मार गोपी ग चंदा मोर बीना ये रे मोर पहुंचन लागे

मोर माता ये रे मोर प्रकट भये आज

गोपीचंदा मोर साधू के रे भेशे म चले गा।

ये जउने समय कर भेश म गा मोर

वही समय में

H: गोपी चंदा वीणा बजाते हुए पहुंचने लगा है। माता यहां प्रकट होती है। गोपीचंदा साधू के वेशे में चलने लगा। उसी समय में के वेश में उसी समय में

C: ये रागी आज सुन्दर मजा के गंगा माता हे तौन सुंदर बात करके सुंदर सियान दाई के रूप में खड़े हे अउ ये डाहर गोपीचंदा जावत हे। बड़ा सुन्दर भजन गाते। कथे कि माँ! माता सोचथे ये कोन बालक कइसे आवथे। अचानन भाई इहां। गोपीचंदा हे तोन ओकर करा पहुच जथे। माता के पास गोपीचंदा पहुचगे। माता आज देखतो आज ये गंगा में कोई साधू महात्मा समाधि लगाए बइठे हे तै मोला बता देते। दाई। कस बेटा साधू। आज ये नदी के किनारे में कोई देवी देवता नइ हे गा। कोइ नइ बइठे हे गा साधू संत। एक झन बइठे रहिस हे। जेला कहिथे अमरनाथ गुरू। राक्षस मन ओला भोजन बना के खाये के तैयारी म रिहिसे। वोला तैं नइ पाये बेटा। वो तो बोहागे गा। रागी अब गोपीचंदा सोचथे के भगवान! कोन जगा ओकर भोजन बने हे। एही जगा में बेटा, गुरू अमरनाथ के भोजन बने हे। आइसने समय में साधू बालक हे तौन -

H: रागी आज सुन्दर आनंद से गंगा माता है वह सुंदर बात करके सुंदर सयानी मां के रूप में खड़ी है और इधर गोपीचंदा जा रहा है। बहुत सुन्दर भजन गाते। कहता है कि माँ!, माता सोचती है यह कौन बालक है, कैसे आ रहा है। अचानन भाई गोपीचंदा है वह उसी जगह पहुंच जाता हैं। माता के पास गोपीचंदा पहुंच गया। माता आज देखो तो यह गंगा में कोई साधू महात्मा समाधि लगाया बैठा है क्‍या तुम मुझे बता देती मां। कैसे बेटा साधू। आज ये नदी के किनारे में कोई देवी देवता नहीं हैं। कोइ साधू संत नहीं बैठा है। एक बैठे थे। जिसे अमरनाथ गुरू कहते हैं। राक्षस लोग उसे भोजन बना के खाने की तैयारी कर रहे थे। उसे तुम नहीं पाये बेटा। वे तो बह गए। रागी, अब गोपीचंदा सोचता है क्‍या भगवान! किस स्‍थान पर उसका भोजन बना है। इसी स्‍थान में बेटा, गुरू अमरनाथ का भोजन बना है। एैसे ही समय में साधू बालक है वह –

C: अखण्ड समाधि लगाये हवे भैया

साधू ये बालक येदे बोलन लगे भाई

हे गुरूदेव आज मै जब तक तोर सेवा नई करहू तब तक मैं आगे नइ बढ़ सकंव ए गुरू के वचन हे

गोपी येदे चंदा मोर वचन गा कस लगे गा

मोर गोपीचंदा न

अखण्ड ध्यान ये लगाये हवय न

एला गुनत हवे वो

एला सोचत हावे ना

गोपी ये चंदा धियान लगाए हवे भाई।

H: अखण्ड समाधि लगाया है भैया। यह साधू बालक बोलने लगा भाई। हे गुरूदेव आज मै जब तक तुम्‍हारी सेवा नहीं कर लूं तब तक मैं आगे नहीं बढ़ सकता, ये गुरू का वचन है। गोपी चंदा वचन जैसे लगा। गोपीचंदा अखण्ड ध्यान लगाया है। इसे गुन रहा है। वह सोच रहा है, गोपी चंदा ध्‍यान लगाये हैं भाई।

C: ये रागी बेटा गोपीचंदा हे तोन हॅ उहा ध्यान लगा देथे। फेर आकासवानी होथे के बेटा मोला तै नइ पावस। काबर ? आत्मा हे वो अमर हे लेकिन काया हे तोन ह मिट्टी हे। वो माटी मे माटी जाके मिलगे। ये काया हे तोन हॅ गये। वहां से वाणी हे तउन ह बोलत हौं। बेटा आज तोर सेवा मोला स्वीकार हे। आज बेटा तैं जो मनोकामना लेकर के जावत हस वोमा मै जरूर तोर साथ देहूं। जा तैं अपन मनोकामना ल पूर्ण कर ले। ये गुरू अमरनाथ हे तोन अइसे आसिरवाद देथे। अउर आसिरवाद दे के बाद में उही गुरू के पथरा के चांवल काली पीली लेकर के बेटा गोपीचंदा हे-

H: रागी, बेटा गोपीचंदा है वह वहां ध्यान लगा लेते हैं। फिर आकाशवाणी होता है, बेटा तुम मुझे नहीं पाओगे। क्यों ? आत्मा है वह अमर है किन्‍तु काया है वह मिट्टी है। वह माटी मे माटी जाकर मिल गया। यह काया है वह गया। वहां से वाणी है वह बोल रहा है। बेटा आज तुम्‍हारी सेवा मुझे स्वीकार्य है। आज बेटा तुम जो मनोकामना लेके जा रहे हो उसमें मै तुम्‍हारा साथ जरूर दूंगा। जावो तुम अपनी मनोकामना को पूर्ण कर लो। यह गुरू अमरनाथ है वह ऐसा आर्शिवाद देता है। तथा आर्शिवाद देने के बाद में वही गुरू के पत्‍थर के काली पीली चांवल लेकर बेटा गोपीचंदा है –

C: चलत हवे बेटा कइसे चलत हावे गा

येदे चलन लागे

कौरूनगर के येदे मारग में गा

कइसे चलन लागे

भैया साथ येदे साथ मोर चलत हावें गा

जौन समय कर बेटा गोपी ये चलन लगे

कौरू नगर के गोपीचंदा ये पहुंचन लागे।

H: चल रहा है बेटा कैसे चल रहा है, ये चलने लगा। कौरू नगर के मार्ग में कैसे चलने लगा भैया। संग में चल रहा है, उसी समय में बेटा गोपी चलने लगा, गोपीचंदा कौरू नगर पहुंचन लगा।

C: ये भजनहीन! काए ? देख तो देख तो। कौरू नगर में जेन गोपीचंदा हे तोन साधू के भेश में पहुंचगे। बड़ा घुंघरालू-घुंघरालू बाल। फुण्डा-फुण्डा गाल गोपीचंदा के गोरा गोरा गाल हावें बड़ा सुंदर बीना करताल लेकर के जब कौरू नगर मे पहुंचे हे। वही आज दू झन एवल-देवल दूनो बहिनी कथे कि चल बहिनी पानी लेबर जाबो। चल पानी नइहे घर में। गोपीचंदा हे तोन कौरू नगर के देश के पहुंचती में एवल-देवल दूनो बहिनी हे तोन सुंदर हौली लेकर पहुंचत हे। पानी बर। अरे भैया ओ समय एवल-देवल दूना हौला धरे हे। अरे नजर पड़गे।

H: ए भजनहीन! क्‍या है ? देखो तो, देखो तो। कौरू नगर में जो गोपीचंदा है वह साधू के वेश में पहुंच गया। घुंघरालू-घुंघरालू बड़े बाल, फूला-फूला गाल, गोपीचंदा का गोरा गोरा गाल हैं। बहुत सुंदर वीणा करताल लेकर जब कौरू नगर मे पहुंचता है। वही आज दो एवल-देवल नाम की दो बहने कहती हैं कि चल बहन पानी लेने के लिए जायेंगें। चल घर में पानी नहीं है। गोपीचंदा है वह कौरू नगर देश के पहुंचते ही एवल-देवल दोनो बहनी है वे सुंदर गगरी लेकर पहुंचती हैं। पानी के लिये। अरे भैया उसी समय एवल-देवल दोना गगरी पकड़ी हैं। अरे नजर पड़ गई।

C: जोगी के उपर मं दाई देखत देखत मोर आंखी टकटकी होगे हावय। न वो वोकर से बोलै न वोकर से बोलै। सूरता आ जथे। कस या हमन पानी भरे बर आये हन के साधू ल देखे बर आये हन वो। अई पानी भरे तो आये हन। का बताऔ बहिनी जतका बेर ले वो साधू ल देखे हौं नहीं। उही जो साधू भेश में जो बइठे हावे। वइसने लइका आज ले हमर राज में नइ आये हे।

H: जोगी के उपर मे देखते देखते मेरी आंखों में टकटकी लग गई। ना वो उससे बोले ना वो उससे बोले। याद आता हैं। कैसे हम तो पानी भरने के लिये आई हैं कि साधू को देखने के लिये आये हैं। अरी पानी भरने तो आये हैं। क्या बताउं बहन जितने समय से ना उस साधू को देखी हूं। वही जो साधू वेश में जो बैठा है। वैसा बालक आज तक हमारे राज में नहीं आया है।

C: रागी - आज ले एको बार नइ आये हे वो। जतका आये हे हमर दाईमन हॅ सब ल जादू मार-मार के उमन ल पथरा कर देहे दीदी। आज उही मौका ले मौका हे अइसन साधू बालक आज हमर राज सुन्दर पति के समान जोगी के समान भेश में आये हे। आज मोला बस सुंदर मजा के आज वोला पति स्वीकार कर लेतेन। एवल-देवल दोनो बहिनी हे तोन सोचे गोठियाये लगे -

H: रागी - आज तक एक भी बार नहीं आया है। जितना आये हैं हमारी मांयें सब को जादू मार-मार के उन्‍हें पत्‍थर कर दी हैं दीदी। आज वही मौका से मौका है, ऐसा साधू बालक आज हमारे राज में सुन्दर पति के समान जोगी के वेश में आया है। आज मुझे बस सुंदर आनंद है आज उसे पति स्वीकार कर लेते। एवल-देवल दोनो बहन हैं वे सोचने बात करने लगीं –

C: हौंला ल रखे दोनो बहिनी ए तोर

चलत हावय दाई जोगी करा मोर

जोगी करा लाला वो हे चलत हे तोर

विधारूप एदे मन्दर के जी

एवल-देवल दूनो बहिनी ए तोर

कैसे ये कन्या तैयार होवय न

दूनो ये बहिनी जोगी करा जी

सुंदर रूप बनाकर न

बड़ा ये सुंदर विराजे हवय गा

चल न गा भैया महल म कहे न

ये गइया के चरैया मनमोहना ए जी

बंसी के बजईया मनमोहना ए न।।

H: गगरी को रखे दोनो बहन, जोगी के पास जाने लगीं। जोगी के पास लाला वो जा रही हैं, विधारूप मन्दर के एवल-देवल दोनो बहन, ये कन्या तैयार होके दोनो बहन जोगी के पास सुंदर रूप बनाके, बहुत सुंदर विराजे हैं, चलो ना भैया महल में कह रही हैं। गाय को चराने वाले मनमोहना हैं वंशी को बजाने वाले मनमोहना हैं।

C: ये रागी देख आज सुंदर मजा से एवल देवल दोनो बहिनी हे तोर आज वो साधू ल सुंदर महल मे लेगे हवय लेकिन बेटा गोपीचंदा रहय तोन ध्यान लगावथे गुरू जलन्धर के, बेटा उहां जाबे त मोर ध्यान लगा लेबे कहिके भेजे हवय तो वो दिन के बेटा ख्याल करत हे ध्यान लगाथे। कइथे कि भैया साधू एदे सुंदर मजा के लोटा में पानी हवय अउ सुंदर तैं ये पानी में गोड़ धो करके आजा। गोपीचंदा कहिथे -भगवान! दुनिया के माता मन हॅ पानी ल देथे ल भुइंया म माड़थे। आज वो पानी देवत हावय तेन सवा हाथ उपर माड़े हे ददा। ये तो अभी ले आदू मारे के तैयारी कर देहे। तेकर का ठिकाना हे। लेकिन गोपीचंदा हे तेन वो लोटा ल उठाथे अउ बारी डाहर जाथे अर गोड़ ल नइ धोवय। गोड़ ल नइ धोकरके बारी में वो पानी ल फेंक करके आ जथे। अरे का बतावौं वो भजनहीन। अइसने हमार पेटी मास्टर एकझन अउ रहिस हे नहीं वोह अइसने जब कौरू नगर पहुंचिस न त अरे वोला रातकुन नही वोला रातकुन पति बनाके ओला साथ में रखे अउ दिन म ओला माछि बनाके खोपा म रखे अउ जब जरूरत पड़य ओला न बइला बनाके नांगर फांदे बर लेगय वो। वोकर पीछू ल एको दिन देखे देहे ओकर पीछू म अतका कउद परे रिहिस हे।

H: रागी, देख आज सुंदर आनंद से एवल देवल दोनो बहन हैं आज वे साधू को सुंदर महल मे ले गईं किन्‍तु बेटा गोपीचंदा रहा वह ध्यान लगा रहा है गुरू जलन्धर का, बेटा वहां जावोगे तो मेरा ध्यान लगा लेना कहकर भेजे हैं तो वह उस दिन को याद करके ध्यान लगा रहा है। कहती हैं कि भैया साधू ये सुंदर आनंद से लोटे में पानी है और सुंदर तुम इस पानी में पैर धो करके आजाओ। गोपीचंदा कहता है -भगवान! दुनिया की मातायें पानी देती हैं तो जमीन पर रखा रहता है। आज ये पानी दे रही हैं वो सवा हाथ उपर हवा में रख है दादा। ये तो अभी से आदू मारने की तैयारी कर रही हैं। इनका क्या ठिकाना है। गोपीचंदा है वह लोटा को उठाता है और बाड़ी तरु जाता है और पैर को नहीं धोता। पैर को नहीं धोता और बाड़ी में वह पानी को फेंक करके आ जाता हैं। अरे क्या बताउं भजनहीन। इसी तरह हमारे एक और पेटी मास्टर थे वे अभी नहीं है वे जब कौरू नगर पहुंचा तो उसे वहां की जादुगरनियां रात को पति बनाके साथ में रखती और दिन में उसे मक्‍खी बनाके जूड़े में रखती और जब जरूरत पड़ता उसे बैल बनाके हल में जोतने के लिये खेत ले जातीं। उसके पीछे में किसी दिन देखना, उसके पीछे इतना कउद पड़ा है।

C: रागी - मैं कहां देखे रेहेंव। ए दरी आही त देखे रहीबे। अरे का बताऔ संगवारी का बतावौ। आज सुंदर मजा के गोड़ धोए बर जोन पानी दे रिहिसे वोला बारी में फेंक दे हवय। अउ सुंदर कहिथे के भैया साधू बइठ अइसे कहिके सुंदर मजा के खटिया 3 खूरा के निकाले हे। खूरा वोहू ह सवा हाथ उपर हावय। कहिके के भगवान अब का करौं एहु सवा हाथ उपर हे। देख तो नोनी अर साधू बैरागी मन हॅ पलंग म नइ बइठै। नइ बइठै। नइ बइठै। रागी - साधूमन खटिया म नइ बइठय। कहिथे के - साधू महात्मा मन खटिया म नइ बइठन नोनी। हमन बनथे न त अपन साफी ल इही मेर बिछा लेथन अउ सुंदर उही म बइठ जथन। बेटा गोपीचंदा रहय तोन सुंदर मजा के कहिथे के इहां भैया साधू मन खटिया म नइ बइठे लेकिन हमर घर के सुंदर वाह भोजन ल तो कर लेथे। अउ भोजन करले काहत हे त ओ समे कथे देख तो नोनी मन यहां साधू संत महात्मा बालक औं मैं हॅ। काखरों घर में भोजन नइ करौं न मैं पानी पियौं। मैं अपन चांवल ल सुंदर पका करके भोजन करथौं।

H: रागी - मैं कहां देखूंगी। इस समय आयेगा तो देख लेना। अरे क्या बताउं मित्र क्या बताउं। आज सुंदर आनंद से पावं धोने के लिये जो पानी दिया गया था उसे बाड़ी में फेंक दिया। बहनें सुंदर कहती हैं भैया साधू बैठ, खाट के 3 पाया निकला है। खाट का पाया जमीन से सवा हाथ उपर है। क्‍या भगवान अब ये भी सवा हाथ उपर है। गोपीचंदा कहता है देखो कन्‍या साधू बैरागी लोग पलंग में नहीं बैठते। नहीं बैठते। नहीं बैठते। रागी – साधू लोग खाट पर नहीं बैठते। कहते हैं हां - साधू महात्मा लोग खाट पर नहीं बैठते कन्‍या। बनता है ना तो अपने पंछे को यहीं बिछा लेते हैं और सुंदर उसी में बैठ जाते हैं। वहां सुंदर आनंद से कन्‍या कहती है क्‍या यहां साधू लोग खाट पर नहीं बैठते किन्‍तु हमारे घर का सुंदर भोजन तो कर लेते हैं। और भोजन कर लो कह रही हैं उसी समय कहते हैं देखो कन्‍या साधू संत महात्मा बालक हूं मैं। किसी भी के घर में भोजन नहीं करता ना पानी पीता हूं। में अपना चांवल को सुंदर पका के भोजन करता हूं।

C: रागी - काकरो घर के चावल ल नइ खावौं मैं हॅ। त कइसे तोरे सहिन इहां आय अउ सुरू कर दै खाय के। इहां के बात थोरे ये। एह तो कौरू नगर के बात ए। अच्छा कौरू नगर के बात। ये समय में देखतो बालक गोपीचंदा हे तेन आज कहिथे के दाई तुमन अगर मोला भोजन खवाये के इच्छा होही त एले चावल। भैया उही गुरू जलन्धर हे तेन मंत्र हवन करे पथरा के चांवल देहे रहय तेन ल देके कहिथे - एले। इही चांवल ल पका के देबे लो मैं खा लेहूं। वोकर तो माता 7 बहिनी लोहकट्टी, लोहारिन, धोबनिन, ठूठी बरेठीन, गाय ग्वालिन, नैन नोगानिन, नैन जोगनीन, एवल-देवल के वो माता।
H: रागी – किसी भी के घर के चावल को मैं नहीं खाता। तो कैसे तुम्‍हारे जैसे यहां आये और खाना शुरू कर दे। यहां की बात नहीं है। यह तो कौरू नगर की बात है। अक्छा कौरू नगर की बात है। इसी समय में देखो तो बालक गोपीचंदा है वह आज कहता है कि माता तुम लोग कहीं मुझे भोजन कराने की इच्छा रखती हो तो ये लो चावल। भैया उसी गुरू जलन्धर है वह मंत्र आहवान करके जो पत्‍थर का चांवल दिये थे उसी को देके कहता है - येलो। इसी चांवल को पका कर दोगी तो मैं खा लूंगा। उसकी तो माता सात बहन लोहकट्टी, लोहारिन, धोबनिन, ठूठी बरेठीन, गाय ग्वालिन, नैन नोगानिन, नैन जोगनीन एवल-देवल की माता हैं।

C: एवल-देवल कहिथे के हमर दाई मत जानय। हम एला सुंदर पति बनाके रखबो कहिके लाने हन बहिनी। त वोह का जानै के साधू ह मोर परीक्षा लेवत हे कहिके। पथरा के चांवल ल देवत मार यहा मोटा-मोटा। लकड़ी ल चूल्हा म जोरय। कतको-कतको बड़े खरही मन सिरागे लेकिन रोगहा पथरा के चावल नइ चूरय। छूछू के देखथे दीदी। मोला तो ये साधू जइसे नइ लागत हे। काबर -

H: एवल-देवल कहती है हमारी मांतायें मत जाने। हम इसे सुंदर पति बनाके रखेंगी कहकर लाई हैं बहन। त वे क्या जाने कि साधू उनकी परीक्षा ले रहा है करके। पत्‍थर के चांवल को दिया था मोटा-मोटा। लकड़ी को चूल्हे पर डाले। कितना-कितना बड़ा बड़ा खरही (गोबर छेने का ढेर) खत्‍म हो गया लेकिन पत्‍थर का चावल पक नहीं रहा। छू छूकर देखती हैं। बहन मुझे तो यह साधू जैसे नहीं लगता है। क्यों –

C: साधू नोहय, साधू नोहय, साधू नोहय वो।

साधू के बरोबर नइ तो लागत हावय दाई

तब एदे दीदी येदे सोचन लागे वो।

H: साधू नहीं है, साधू नहीं है, साधू नहीं है। साधू जैसा नहीं लगता है मां, तब वे सोचने लगीं।

C: आज वो समय में बेटा गोपीचंदा हे तोन कहिथे के भगवान आज पथरा के चांवल दे हावौ नोनी हो कइसनो पकावव लेकिन नइ पकय। काबर ? के येह गुरू के मंत्र आवाहन वाला चावल ए। दोनो बहिनी कहिथे कि दीदी ये ह साधू नोहय। ये बड़ा असाधू जैसे मोला लागत हे। एला छोटे मोटै तैं साधू मत समझबे। बहिनी। यहां बड़े बड़े लकड़ी सिरागे। कतको बड़े खरही सिरागे। फेर चावल नइ पकिस। अगर हमन माता जानही तो का कहिही। ये समय ले समय हे दीदी अपन माता मन बुलाए बर जाना जरूरी हे कहिके बोलन लागे। सातो बहिनी रहय तेन भ्रमण में निकले हे जंगल के। सातो बहिनी भ्रमण में निकले हे। अउ ए तरफ एवल-देवल दूनो बहिनी राहय तेन दोनो के दोनो ये डाहर ले जाये अउ वो तरफ ले ओकर माता सातो बहिनी मन आवत रहय। बीच मुलाकात हो जथे। वो समय में सातो बहिनी मन कथे कि नानो हो तुमन कहां जाथो। सातो बहिनी रायय तेन उल्टा खटोला म बइठे राहय।

H: आज उस समय में बेटा गोपीचंदा है वह कहता है क्‍या भगवान आज पत्‍थर का चांवल दिया हूं कन्‍याओं को कैसेट भी पकाओ लेकिन नहीं पकेगा। क्यों ? क्‍योंकि यह गुरू के मंत्र आवाहन वाला चावल है। दोनो बहन कहती हैं कि दीदी यह साधू नहीं है। यह बड़ा असाधू जैसा मुझे लग रहा है। इसे छोटा मोटा साधू तुम मत समझना, बहन। यहां बड़ा बड़ा लकड़ी खत्‍म हो गया। कितना ही बड़ा खरही खत्‍म हो गया। परंतु चावल नहीं पका। कहीं हमारी मातायें जानेंगी तो क्‍या कहेंगीं। यही समय से समय है दीदी, अपनी माताओं को बुलाना जरूरी है, कहकर बोलने लगीं। सातो बहन रहती हैं वे जंगल के भ्रमण में निकली हैं। सातो बहन भ्रमण में निकली है और इधर एवल-देवल दोनो बहन रहती हैं वे दोनो इधर से निकलीं और उधर से उनकी माता सातो बहन आ रही हैं। बीच में मुलाकात हो जाती हैं। वही समय में सातो बहन कहती हैं कि बन्‍याओं तुम कहां जा रही हो। सातो बहन रहती हैं वे उल्टा खटोला में बैठी रहती हैं।

C: रागी - उमन जे खटोला म बइठे राहय वो उल्टा राहय। हौ। उल्टा राहय। ओमन जाय त सीधा खटोला म जाय। मन्तर वाले मन हॅ सब उल्टा करथे। करानो वाले घुघवामन हॅ बरेण्डी म बइठथे। आदमी सहीन गोठियावे ओमन। काय साग ये बहिनी। का खाये हस वो।

H: रागी - वे जिस खटोले पर बैठी हैं वह उल्टा था। हां। उल्टा था। वे जाती हैं तो सीधा खटोले पर जाती हैं। मंत्र वाले लोग सब उल्टा करते हैं। जादू वाले उल्‍लू मुंडेंर पर बैठते हैं। आदमी जैसे बात करते हैं। क्‍या सब्‍जी लायी हो बहन। क्या खाई हो।

C: अभी भी कुछु होथे त तीन खूरा के खटिया में बनाके ठुआ करथे। देखे हस। का बतावौं संगवानी। आज बेटा गोपीचंदा हे आज वो अंगना में बइठे हे। एवल-देवल दोनो बहिनी अपन माता ल बुलाए बर जंगल निकले हे। उन दूनो बहिनी एवल-देवल हे तोन जाके अपन दाई मन ल जइसन जइसन घटना घटे रिहिस हे तेन ल बता दिस। बेटा गोपीचंदा राहय तेन बीच अंगना में मौन बइठे राहय। आज बइठे बइठे गोपीचंदा ह सोचत हवे आज मैं पिता उबारे बर आए हौं, जइसे करना हे करलौ दाई आज बालक गोपीचंदा जोगी के भेश म आये हौं। तब ये समय में सातो बहिनी कहिथे - लोहकट्टी, लोहारिन, नता धेबनीन, सुखड़ी चमारिन, ठूठी बरेठीन, गाय ग्वालिन, नैन नोगनी, नैन जोगनीन। नोनी हो येला तुमन साधू मत समझौ ये साधू नोहय ये असाधू ये।

H: अभी भी कुछ होता है तो तीन पाये के खाट में बैठाके टोटका करती हैं। देखी हो। क्या बताउं मित्र। आज बेटा गोपीचंदा है आज वह अंगना में बैठा है। एवल-देवल दोनो बहन अपनी माता को बुलाने के लिये जंगल निकले है। वे दोनो बहन एवल-देवल है वे जाके अपनी मां को जैसी जैसी घटना घटा है उसे बता दी हैं। बेटा गोपीचंदा रहता है वह बीच अंगना में मौन बैठा है। आज बैठे बैठे गोपीचंदा सोच रहा है आज मैं पिता उबारने के लिये आया हूं, जैसे करना है कर लो माता आज बालक गोपीचंदा जोगी के वेश में आया हूं। तब इसी समय में सातो बहन कहती हैं - लोहकट्टी, लोहारिन, नता धेबनीन, सुखड़ी चमारिन, ठूठी बरेठीन, गाय ग्वालिन, नैन नोगनी, नैन जोगनीन। कन्‍याओं इसे तुम साधू मत समझो यह साधू नहीं यह असाधू है।

C: ये नोनी येला तुमन साधू काहत हौ ए हॅ तो साधू नोहय ए तो बड़ा भारी मंत्र वाहन करते हुए सिद्धी करते हुए हमर मेर पहुंचे हवय। लेकिन का करे बर पहुंचे हवय तेला पूछे ल लगही। बेटा साधू आज तैं कइसे आए हस। तें का करत हस? अतेक बड़े बड़े लकड़ी सिरागे छेना सिरागे। ये कोन से चावल ये जोन ल तैं दे हवस वो चावल नइ पके ये। का बतावौं दाई ये नोनी एवल-देवल तोन खाना खाए बर मोला जिद करिस। लेकिन मैं सही जान करके मैं चावल दे हावौं। उमन ल दे मोर चावल नइ पकत हे तेला मै का करौं। गाय ग्वालिन सबसे बड़े बहिनी हे तेन कहथे ये तो गुरू जलन्धर के मंत्रवाहन करे हुए चावल हरे। जेन हमला परीक्षा लेबर भेजे हे। गाय ग्वालिन कथे भगवान आज तक के अइसन ढंग ले साधू बालक अउ सेवा करैया हमर कौरू नगर में नइ आये हावय। आज ये बालक ल भैया वो सातो बहिनी  जदूवहीन मिलके -

H: बेटी इसे तुम साधू कहती हो ये साधू नहीं है यह तो बड़ा भारी मंत्र आवाहन करते हुए सिद्धि करते हुए हमारे पास पहुंचा है। लेकिन किस लिये पहुंचा है उसे पूछना पड़ेगा। बेटा साधू आज तुम कैसे आए हो। तुम क्या कर रहे हो?  बड़ा बड़ा लकड़ी समाप्‍त हो गया, छेना समाप्‍त हो गया। ये कौन सा चावल है जो तुम दिए हो वो चावल पकता ही नहीं। क्या बताउं मां ये कन्‍या एवल-देवल हैं वे खाना खाने के लिये मुझे जिद कर रही थीं। लेकिन मैं सही जान करके चावल दिया हूं। उनसे मेरा चावल नहीं पकता है तो मै क्या करूं। गाय ग्वालिन सबसे बड़ी बहन है वह कहती है यह तो गुरू जलन्धर का मंत्र आवाहन किया हुआ चावल है। जो हमारी परीक्षा लेने के लिए भेजा है। गाय ग्वालिन कहती है भगवान आज तक ऐसा साधू बालक और सेवा करने वाला हमारे कौरू नगर में नहीं आया है। आज इस बालक को भैया ये सातो जादूगरनी बहन मिलके –

C: अमली के झाड़ ये बनावत हवय जी ।

मोर अमली के झाड़ गा

ये दे बने हावय गोपी मोर

येमेर ये 12 भवन के गा

12 के तोर

ये दे गोपी येदे चंदा गा

गोपी ये तोर

मोर एवल-देवल बहिनी वो

देवल ए तोर

ये मोर पाव पति हॅ गवागे मोर बहिनी

जैस समय के बेरा में ए दिन तोर

H: इमली का झाड़ बना रहे हैं। इमली का झाड़ बन गया गोपी। यहां बारह भवन है 12 है तुम्‍हारा। ये गोपी चंदा, एवल-देवल बहन हैं वे हमारे पति गुम गये कह कर खोज रही हैं। उसी समय में

C: आज बेटा गोपीचंदा हे अमली झाड़ बनकर के अंगना में खड़े हवे रागी भाई। अमली के झाड़ बने हे। ओ समय में लोहकट्टी, लोहारिन, नता धेबनीन, सुखड़ी चमारिन, ठूठी बरेठीन, नैन नोगनी, नैन जोगनीन अउ ये समय में गाय ग्वालिन सबले बड़े बहिनी राहय तेन कहिथे। अइसन नइ बनय। जब जब हम बालक उपर मंतर मातथन सब फेल हो जाथे। ये बालक हॅ उल्टा बालक बन जथे। ये तो सिद्धि करे हुए बालक ए। अगरये बालक के सहारा नइ बनबो अउ एकर सहायता नइ करबो तो आज ये कौरू नगर के नाम दूनिया म सदा दिन के लिए डूब जही। डुब जही। डूब जही। ए बालक ल मोला विद्या सिखाए बर परही कहिके। ओकर बिहान दिन कहिथे कि बहिनी चल भ्रमण में जाबो। भ्रमण में जाबो सातो बहिनी। गाय ग्वालिन कथे के मोर तबियत खराब हे या। बनथे तो दीदी तुमन जाव भ्रमण में मैं घर में अराम करहूं। ले ठीक हे का होही। भैया रागी आज देख तो छैयो बहिनी हे तोन आज जंगल में भ्रमण करत हावे। गाय ग्वालिन कहे बेटा गोपीचंदा आज लाला रे तैं अमली के झाड़ बने हस। बहुत सिद्धि करके तैं आये हस आज तोरे जैसे बालक ये राज ल बचा लेही।

H: आज बेटा गोपीचंदा है वह इमली झाड़ बनकर आंगना में खड़ा है रागी भाई। इमली का झाड़ बना है। उसी समय में लोहकट्टी, लोहारिन, नता धेबनीन, सुखड़ी चमारिन, ठूठी बरेठीन, नैन नोगनी, नैन जोगनीन और उसी समय में गाय ग्वालिन जो सबसे बड़ी बहन रहती है वह कहती है। ऐसे नहीं बनेगा। जब भी हम बालक के उपर मंत्र मारती हैं सब नि:प्रभावी हो जाता है। यह फिर बालक बन जाता हैं। यह तो सिद्धि प्राप्‍त बालक है। अगर इस बालक को सहारा नहीं देंगें और इसकी सहायता नहीं करेंगें तो आज इस कौरू नगर का नाम दूनिया में सदा के लिए डुब जायेगा। डुब जायेगा। डूब जायेगा। इस बालक को मुझे विद्या सिखाना पड़ेगा कहते हुए दूसरे दिन कहती है कि बहन चलो भ्रमण में जायेंगें। भ्रमण में जायेंगें सातो बहन। गाय ग्वालिन कहती है कि मेरी तबियत खराब है। दीदी तुम लोग जावो भ्रमण में, मैं घर में अराम करूंगी। लो ठीक है क्या हुआ। भैया रागी, आज देख तो छै बहन है वो आज जंगल में भ्रमण करने निकली हैं। गाय ग्वालिन कहती है बेटा गोपीचंदा आजा लाला रे तुम इमली का झाड़ बने हो। अत्यंत सिद्धि करके तुम आये हो आज तुम्‍हारे जैसा बालक इस राज को बचायेगा।

C: जतेक साधू, संत, बड़े-बड़े राजा महराजा मन आइन सब ल जादू मार के पथरा बनाये हवे लेकिन बेटा मैं तोर जरूर रक्षा करहूं। भैया मंत्र आवाहन करे हावय। जादू मंतर मारे उहां अमली झाड़ बने राहय गोपीचंदा हे तोन गोपीचंदा बनगे। अउर वो समय में मंत्र आवाहन करके सुंदर वो बालक ल माछी बनाए हवे साधू भाई। अउ माछी बनाकरके सुंदर खोपा में रखे हे। अउ रख करके-

H: जितना साधू, संत, बड़े-बड़े राजा महराजा लोग आए सब को जादू मार कर पत्‍थर बनाये हैं किन्‍तु बेटा मैं तुम्‍हारी जरूर रक्षा करूंगी। भैया मंत्र आवाहन करती हैं। जादू मंत्र मारने पर इमली झाड़ बना गोपीचंदा है वह गोपीचंदा बन जाता है। उसी समय में मंत्र आवाहन करके सुंदर उस बालक को मक्‍खी बनाती है साधू भाई। और मक्‍खी बना करके सुंदर जूड़े में रखती है। और रख करके –

C: चल हवे दीदी अउ चलत हावे वो

अपन भूवन बर ये दे मैया चलै न।

चले ये खटिया ये दे सोवन लागे जी

खोपा के माछी ल ये बेटा बनावै भाई।

H: चल रही है दीदी और चल रही है। अपने भवन के लिये मैया चल रही है। जाके खाट में सोने लगती है। जूड़े के मक्‍खी को वह बेटा बना ली है भाई।

C: हॉं तो संतो आज बेटा गोपीचंदा ल गाय ग्वालिन ले गे हे। वोला एक चेला बनाकर के कौरू नगर में ओला नाना प्रकार के विद्या सिखाही। खोपा मे ओला छिपा करके रखही। माछी बनाके। अउर ये छैयो बहिनी ला ये पता नइ चलय। जब वो मंत्र सिद्धि करही त फेर ओकर मन के साथ लड़ाई करे बर वोला गोपीचंदा बनाके सातो बहिनी के सातो गली में ओला तैयार करही और अलग-अलग गली में गड़ियाही, जइसे ही पुतरी ल खुंदही सातो बहिनी जल के भष्म हो जथे अउ ओकर बाद में फिर बेटा गोपीचंदा हे तेन पिता उबारथे।

H: हॉं तो संतो आज बेटा गोपीचंदा को गाय ग्वालिन ले गई है। उसे एक शिष्‍य बनाकर कौरू नगर में उसे नाना प्रकार के विद्या को सिखाती है। जूड़े मे उसे छिपा करके रखती है। मक्‍खी बनाके। तथा ये छै बहनों को पता नहीं चलने देती। जब वह मंत्र सिद्धि कराती है तो उनके साथ लड़ाई करने के लिये उसे गोपीचंदा बनाके सातो बहन के सातो गली में उसे तैयार करती है और अलग-अलग गली में पुतरी (मिट्टी की अभिमंत्रित गुडिया) को दबायेगी, जैसे ही पुतरी सातो बहन के पांव के नीचे आयेगी वे सब जल कर भष्म हो जायेंगें और उसके बाद फिर बेटा गोपीचंदा है वह पिता उबार लेंगें।

बोलो सियाबर रामचंद्र की जय

 

छत्‍तीसगढ़ी श्रुतलेखन एवं हिन्‍दी लिप्‍यांतरण: संजीव तिवारी

 

For more on Epics of Chhattisgarh see, Epic of Bharthari 

                                                                https://bit.ly/2J8D39W