उधमपुर जनपद की बावलियाँ और उनकी मूर्तिकला के वर्ण्य विषय

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Published on: 01 June 2021

डा. नरेन्द्र भारती

डा. नरेन्द्र भारती, कश्मीर शैव दर्शन में पी.एच.डी.। मुख्यतः पाण्डुलिपि विज्ञान एवं पाण्डुलिपि संरक्षण, लिपिशास्त्र, कश्मीर की तन्त्रागमीय परम्परा व जम्मू–कश्मीर का इतिहास आदि विषयों पर शोध, लेखन एवं अध्यापन। अनुवाद कार्यों के सन्दर्भ में राष्ट्रीय अनुवाद मिशन से सम्बद्ध हैं।

प्रस्तुत चित्र निबंध उधमपुर जनपद की बावलियों में उकेरी गई मूर्तियों और उनके विभिन्न विषयों पर आधारित है। ये बावलियाँ जो अधिकतर चौकोर होती थीं और बीच में जलाशय उल्टे पिरामिड के आकार का बनाया जाता था। इन बावलियों के इर्द गिर्द पत्थर की वीथिका बनाई जाती थी जिसमें पत्थर को ही तराश कर विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ बनाई जाती थीं। इनमें से कुछेक मूर्तियाँ बाली बनवाने वाले व्यक्ति के निर्देशानुसार होती थीं और कुछ मूर्तियाँ मूर्तिकार अपनी रूचि के अनुसार स्वेच्छा से भी बना देते थे। साथ ही साथ समय समय पर इन बावलियों का जीर्णोद्धार भी करवाया जाता था जिससे कुछेक प्राचीन मूर्तियों के साथ नूतन मूर्तियों को भी स्थान मिलता था जो कि अपने आप में एक दिलचस्प बात है। इस चित्र निबंध में विशेष रुप से मूर्तियों में दर्शाए गए विषय वैविध्य पर प्रकाश डाला गया है। इन मूर्तियों में धार्मिक विषयों से लेकर तत्कालीन रोजमर्रा के जीवन तक को विषय के रूप में लिया गया है। जिन के अध्ययन से प्राचीन समाज की एक सजीव झाँकी देखने को मिलती है। धार्मिक मूर्तियों में भी इतना वैविध्य और कलात्मकता है कि देखने वाले दंग रह जाएँ। उस समय की धार्मिक अभिरुचियों का भी ज्ञान इन मूर्तियों के अध्ययन से प्राप्त होता है। यह भी पता चलता है कि सनातन हिंदू देवी देवताओं के साथ-साथ स्थानीय देवी देवताओं का भी तत्कालीन समाज में यथेष्ट सम्मान था जो कि आज भी इस प्रदेश में परंपरा से चलता आ रहा है। सांस्कृतिक अथवा लौकिक विषयों पर आधारित मूर्तियों में भी अत्यंत रोचक विषय देखने को मिलते हैं जो कि तत्कालीन इतिहास पर और सामाजिक जीवन पर रोशनी डालते हैं। इस चित्र निबंध का मुख्य उद्देश्य उधमपुर जनपद इसी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को सामने लाने का एक प्रयास है जो कि समय के साथ विलुप्त होती जा रही है।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के विशाल जनपद उधमपुर का अधिकांश भूखंड शिवालिक पर्वत श्रृंखला में परिसीमित है। उधमपुर जनपद अपनी बावलियों के कारण पूरे प्रदेश में विख्यात है। प्रशासनिक दृष्टि से उधमपुर जनपद आठ तहसीलों में विभाजित है, जिनके नाम इस प्रकार हैं- उधमपुर,रामनगर, चनैनी, मझालता, बसंतगढ़, लाटी, पंचैरी और मोंगरी।[1]

एक सर्वेक्षण के अनुसार उधमपुर जनपद में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की 205 बावलियाँ हैं इनमें 45 बावलियाँ उधमपुर शहर और आसपास केक्षेत्र में, 64 बावलियाँ चनैनी क्षेत्र में, 28 बावलियाँ घोरडी क्षेत्र में, 32 बावलियाँ रामनगर और मझालता क्षेत्र में और 36 बावलियाँ मोंगरी पंचैरी क्षेत्र में हैं[2]। यह बावलियाँ इस जनपद की उन्नत प्रस्तर तक्षण कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इन बावलियों की मूर्तियों के वर्ण्य विषय का वर्गीकरण मोटे तौर पर हम दो विभागों में कर सकते हैंपहला विभाग है धार्मिक मूर्तियाँ और दूसरा तत्कालीन सांस्कृतिक अथवा सामाजिक मूर्तियाँ।

इनके अध्ययन से न केवल उस जमाने के धार्मिक विश्वासों परंपराओं का पता चलता है बल्कि तत्कालीन सांस्कृतिक परिवेश और सामाजिक जीवन का भी बोध होता है। यह भी आश्चर्य होता है कि जिन गाँव देहातों को आज के जम्मू कश्मीर में पिछड़ा क्षेत्र माना जाता है और जिसके बाशिन्दों के लिए प्रशासन की ओर से आरक्षण की व्यवस्था कल्पित है। कैसे इन सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में कला की इतनी सुंदर और मनोहारी अभिव्यक्ति तत्कालीन समाज द्वारा की गई, इतने सुंदर और भव्य निर्माण इन दुर्गम क्षेत्रों में किन लोगों ने किए होंगे इनसे उनकी दिनचर्या का भी ज्ञान होता है जैसे स्नान के बाद पूजा अर्चना इत्यादि। न तो आज इनको बनाने वालेपूजने वाले बचे हैंऔर न तो कोई नहाने या पानी भरने आता है और पूजा के लिए भी घरों में अब विभिन्न तरह के धार्मिक चित्र बाज़ार से ही खरीद कर लगा लिए जाते हैं।

मूर्तियों का जो मोटे तौर पर दो तरह से वर्गीकरण किया गया था उनमें जो पहला वर्गीकरण है धार्मिक मूर्तियाँ। धार्मिक मूर्तियों में शैव मूर्तियाँशाक्तमूर्तियाँवैष्णव मूर्तियाँतांत्रिक मूर्तियाँअन्य देवी देवताओं की मूर्तियाँनाग मूर्तियाँ स्थानीय देवताओं की मूर्तियाँपौराणिक पात्रों की मूर्तियाँ इत्यादिमिलती हैं।

द्वितीय श्रेणी में जो मूर्तियों का वर्गीकरण है उसमें तत्कालीन सांस्कृतिक अथवा सामाजिक मूर्तियाँ, इसमें सामंतों की मूर्तियाँ, मल्लयुद्ध इत्यादि की मूर्तियाँ, ऊट सवारों की मूर्तियाँ, बंदूकों के साथ सिपाहियों की मूर्तियाँ, घुड़सवार लोकनायकों की मूर्तियाँ, पालकी में जाती हुई नववधू की मूर्तियाँ इत्यादि प्राप्त होती है

 

धार्मिक मूर्तियाँ-

उधमपुर जनपद जम्मू संभाग का अंग है और जम्मू संभाग में बोली जाने वाली डोगरी भाषा के कारण इसे डुग्गर प्रदेश भी कहा जाता है। डुग्गर प्रदेश में इष्ट देवता के रूप में भगवान शिव की अत्यन्त मान्यता है। इसलिए बावलियों की मूर्तिकला में शिव मूर्तियाँ प्रचुर मात्रा में मिलती हैं।

 

[1] प्रोशिव निर्मोही जी की अप्रकाशित पाण्डुलिपि।

[2] वही