छत्तीसगढ़ी प्रस्तुति
लोरिक लोरिक हाथ म रखे तेन्दूसार के लउठी नौ हाथ के बांधे पागा, सेमर धरे, कमरा खुमरी ओढ़े अउ बाजार चलन लागे रे...।
रागी संगवारी....।
लोरिक अभी थोरे गरवा गाय ढिल देंथव त फेर जाहूं बाद में बाजार।
गीत–
लोरिक मोर चलत हे राउत।
रागी राउत ए ग तोर।
लोरिक कमरा खुमरी ओ।
रागी लेगय तोर।
लोरिक तेन्दूसारे के।
रागी जावय तोर।
लोरिक धरे हे लउठी।
रागी जावय तोर।
लोरिक हो रे हो रे।
रागी काहय तोर ये।
लोरिक लोरिक काहत हे।
रागी काहय तोर।
लोरिक खेदत हे गईया।
रागी खेदय तोर
लोरिक ये जेहि समय कर बेरिया म वो चलत लोरिक।
रागी जावय तोर।
लोरिक काला काहंव मय संगी।
रागी कहाय तोर।
लोरिक अउ जा दिन बोलय मोर चंदैनी मोर बरिगना ए ओ
लोरिक लोरिक के गरवा बगरे हावय, खुमरी ओढ़े हावय लोरिक हो... ह रे हां हां हां।
लोरिक चलव दस के ग्यारा बारा बजत हे, मोला जाय के हे बाजार हमर घर पहाटनिन दौनामांझर मोर रस्ता देखत होही, ये दईहान में गरवा गाय ल बगरा देथंव, फेर जा लेलेंव ए पहुंच गेंव घर, ए पहाटनिन ए दौनामांझर ,लोरिक के आरो सुन के भीतरी ले दौनामांझर कहे एकर भैया सही लागत हे
लोरिक ओकर भईया सहीं लागत हे।
रागी लागत हे वो।
लोरिक पहिरत हे लुगरा।
रागी लुगरा ए वो।
लोरिक काला कांहव मोर संगी।
रागी दौनामांझर दीदी ह वो।
लोरिक मोर पहिरत हे लुगरा।
रागी लुगरा ए तोर।
लोरिक काला कांहव मोर संगी।
रागी संगी ए वो।
लोरिक अई छायाच पहिरे बर भूला गेंव, देख तो ओदे देत पेटी मास्टर मोर छाया हे का ?
पेटीमास्टर लेन उपरे म पहिर ले।
लोरिक काहत हे बैरी।
रागी काहय तोर।
लोरिक दौनामांझर दीदी ए वो....।
रागी काहय ए वो।
लोरिक ए ओचिया-कोचिया के पहिरत हे लुगरा।
रागी दौनामांझर दीदी..... अउ जा दिन बोलय मोर चंदैनी मोर वरियना ओ।
लोरिक लड़की जात मन पढ़त लिखत रहिथे, शादी हो जथे, बिलकुल तरिया-नरवा म आही अतकाच ल बिलकुल बचाही ढोलक मास्टर।
ढोलक मास्टर का बर बचाथे ?
लोरिक तोला पूछही कहिके।
ढोलक मास्टर नी जानत हे त नई पूछही ?
लोरिक सात जहुरिंया बेटी बहू बनगे त बिलकुल मूड़ी ल ढांकही, भगवान के देन त आय साल दू साल म गुडडू-गुडडी आगे त, टार वो निपोरी मनखे मोला बने नई लागे.. ये... ह.. दे अउ बहुते के उं ।
दौनामांझर टार हमर ससुर आत होही नीते का कही पहाटनिन दौनामांझर का करत हे कही, वहा दे हमर ससुर सही लागथे।
दौनामांझर अई पांव परत हंव ससुर ।
ससुर खुसी रा बेटी खुसी रा वो... ए बहुरिया ?
दौनामांझर अई काय हे वो ?
ससुर बाबू आगे का वो बेटी ?
दौनामांझर हां हां वो राउत ल कथस ?
ससुर हां हां उही ल काहत रेहेंव वो।
दौनामांझर हां वो गरवा चराय ल जात हंव काहत रीहीस।
ससुर हां हां उही ल काहत रेहेंव वो।
दौनामांझर हां तूमन ह बाजार चल दूहू त वइसने ल लाहू।
ससुर हां फूंदरा वो ?
दौनामांझर अइसन कथंव त वइसन सुनथे... अइसन... अरे जा भोकवा अइसन।
ससुर ककवा ल काहत हस ?
दौनामांझर अब समझे भोकवा।
ससुर ले मंगा देहूं बेटी, ले अब जात हंव।
दौनामांझर हव हव।
ससुर अउ सुन तो एक काम करबे घर में मही माड़े हे एक बांगा ओकर बर एक दर्जन मंगा लेबे अंडा, अउ अंडा ल उसन डरबे अउ मार चर चर ले मही म रांध डरबे।
दौनामांझर अंडा ल मही म नई रांधय वो अंडा ल कढ़ाई म रांधथे।
ससुर मय मही म रांधत होही काहत रेंहेव।
दौनामांझर ल त मय जात हंव।
ससुर हव ले दई जा।
ससुर वा भगवान अतेक पारा-परोस मे आय हे बहू फेर मोर बहू सही कहूं नईए ददा धन रे तकदीर लकर-धकर अठोरिया पन्दरईया होय हे लेवा के लाने अउ मोला भोकवा काहत हे तेला देख।
व्यक्ति जा एक ठन दफड़ा धर लेबे अउ ओ पारा ले बजात आबे मोर बहू सही बहू नईए कहिके भड़-भड़ भड़-भड़ बजाबे।
ससुर ले एकर टेचराही गोठ ल सुनेव ग, मोर बहू मोला भोकवा काहत हे तेला गोठियात हंव त एक ठन दफड़ा धर अउ भड़-भड़ भड़-भड़ बजात आबे काहत हे।
व्यक्ति बड़ तो सोहरात रहे डोकरा मोर बहू सही कोनोच नईए, चाल चलन म बर अईच नईए, रंग रूप म हईच नईए।,
ससुर का कमती हे ?
व्यक्ति अभी पन्दरा दिन नई होय डोकरा तोर बहू ल आय अउ तैं भोकवा होगे।
ससुर ओ हो हो हो तैं बड़ा हुसियार होगे हमर बहू हमला भोकवा काहत हे तेला गोठियात हन, त तयंहा हमर नियाव करे बर आय हस हां.. कोन ह नी काहत होही कोन ह नी गोठियात होही अपन घर में, आ ले हस अउ पुटूर-पुटूर मारत हस।
व्यक्ति इहीच पाय के तोर बेटा बहू तोला नी भाय तेन।
ससुर हव हव सिरतोन आय बबा इही पाय के मोला मोर बेटा बहू ह नई भाय।
व्यक्ति हमी मन भावत हन डोकरा तब तोर गति हे।
ससुर हां नईते सतरा गति हो जतिस काबर के तोरेच भरोसा त जियत हन।
व्यक्ति देखबे त जरहा बीड़ी बर तरसथे तेकर गुन ल देख।
ससुर हव ददा मय जरहा बीड़ी बर तरसथंव तंय बिचारा कट्टा के कट्टा लान लान के देथस।
व्यक्ति ठाकुर मन घर के ल खात पियत तोर दिन निकल गेहे।
ससुर हव नई ते भुखेच मरत रेहेंव।
व्यक्ति कतको करबे फेर तोला नमक नई लगे।
ससुर थोकिन जादा डाले कर नमक त लगही कमती म नई लगे।
व्यक्ति बात म पानी परन दे डोकरा।
ससुर काबर पानी परन देबो ?
व्यक्ति तंय नाराज करत हस का बबा ?
ससुर त नी करबो का ?
व्यक्ति तंय बुढ़ा अस जी तोर संग मजाक नी करबो त काकर संग करबो ?
ससुर अच्छा त तुमन मजाक करत हव ये सियान मनखे ल भड़कान कुड़कान अइसे काहत हव ?
व्यक्ति तोर पहिनावा ल देखथव नीही बबा।
ससुर हां।
व्यक्ति त मोला गांधी बबा के याद आथे।
ससुर त मय उही जमाना के आदमी त आंव न।
व्यक्ति तें कइसे बांच गेस जी ?
ससुर अरे बनेच बांचे हन हम अपन अक्कल के परसादे बांच गेन, जब हम गांधी जी संग लडाई म गेन ओ समय अंगरेज मन के गोली छूटीस त हम आगू म रेहेन तेन पाछू होगेन।
व्यक्ति त काय काम के एहा।
ससुर अरे जब पीछू नई होतेन त जी कईसे बांचतीस, अगवा के ठोका जतेन।
व्यक्ति सबले बढ़िया तोर दाढ़ी दिखथे डोकरा।
ससुर अच्छा।
व्यक्ति तोर दाढ़ी अईसे दिखथे नीही।
ससुर कइसे दिखथे ददा ?
व्यक्ति गांव वाले मन ये बबा ल ठाकुर देव में बोकरा ढिले हे।
ससुर हां सही बात ए भाई गांव वाले मन मोला ठाकुर दिया म बोकरा ढिले हे काबर अड़बड़ खोजिन बोकरा, अउ खोजत खोजत थक गे, नी मिलीस त का करे हार खा के मोला ढिले हे, दूर्रे कहां के ननजतिया हो जइसने मुंह म आथे तईसने गोठियात रही चंडाल मन, चलव ददा जाय के बेरा होगे बेटा घलो खिसियात होही ददा अतिक बेरा ले नही आत हे कहिके, हंय अब का करहूं खिसीयाही तव दू बात कही त बेटा तो आय।
व्यक्ति ब ब बबा।
पिता जी अरे जाना बेटा बाजार के दिन आय संझकरेहा चल देते अउ आ जते तेहा ।
लोरिक ठीक हे ददा मय जात हंव बाजार ।
पिता जी हव।
लोरिक अउ हां सांझ हो जही त गरवा बछरू ल तहूं बांध देबे।
पिता जी हव बन जाही बेटा।
लोरिक हमर दूनो बाप-बेटा म सुनता राहय ददा।
पिता जी हव बेटा।
लोरिक त ये पेट के पानी नई डोलय।
पिता जी नई डोलय बेटा नई डोलय।
लोरिक त इही साल तोला पितर म मिला देहू रे ददा।
पिता जी हंय कोन ह जियत ल पितर म मिलाथे रे ?
लोरिक नई बनय का ग ?
पिता जी अलकरहा गोठियाथस।
लोरिक ले बाद म मिलाबो अब रेंग देबे त।
पिता जी अब ओ तो मिलाबेच करबे।
लोरिक हां चल ठीक हे।
पिता जी अउ देख भई चोंगी माखुर ल झन भुलाबे।
लोरिक हव हव।
पिजा जी अउ बनही त उहू ल ले आनबे।
लोरिक घुच दे ददा जात हे।
ढोलक मास्टर घुच दे रे ओकर ददा नई हमात हे।
लोरिक मोर चलत हे बैरी।
रागी जावय जी।
लोरिक का काहय राउत।
रागी काहय जी।
लोरिक धीरे धीरे बाजार के रद्दा।
रागी जावय जी।
लोरिक जावत हे राउत।
रागी जावय जी।
लोरिक ए जहि समय के बेरिया म मोर चलत हे लोरिक ।
रागी काला काहंव मय संगी... ए जहि समय के बेरिया म मोर चलत हे भईया... काला काहंव मय भईया।
लोरिक लगे हे बाजार बारापाली सहर के गौरा सहर के बाजार, लोरिक के आदत राहय माखुर खाय के, माखुर पिए के माखुर पसरा म जाए के पान खाय के चोंगी पिए के माखुर पसरा म जाके कहे ए भैया दुकानदार माखुर हावय का ?
दुकानदार हावय न जी।
लोरिक वो दे आत बजरहिन मन।
मुन्नी हाय एदे देखे यहादे बारा एक ह बजत हावय हमर घर दाई कथे जात रे बेटी बाजार साग पान कुछू कहीं ले के ला लेबे, अइसे केहे रीहीस हाबे बाजार जाय बर एकाद झन संगवारी होय कहिके कोन ल कहांव तईसे लगथे, तेकर ले ए रेखा के घर हावय रेखा ल एकन बला के देखंव जा के देख रेखा घर डाहर... रेखा अई ए रेखा नई अस का या ?
रेखा काय दीदी काय होगे ?
मुन्नी चल न बाजार जाबो या।
रेखा अई बाजार जाथस, महू ह त संगवारी मन ल केहे रेहेंव कोनो संग मिल जाही त कहिके।
मुन्नी चल अब होगे संगवारी चल जाबो चल आ।
रेखा हव चल।
मुन्नी ये रेखा मोर डाहन सुन तो या ?
रेखा काय दीदी काये या ?
मुन्नी मोला सातो ह तरिया म पहुंचाय रीहीस नहात रेहेंव ततका बेर, अउ काहत रीहीस बाजार जाबे त मोला बलाबे कहिके चल न ओकरे घर डाहर जातेन एक कनिक उही ल बलाबो त चल देबो।
रेखा हां चल न दीदी रद्दा म हावय ओकर घर।
मुन्नी अई वहा दे घर के दरवाजा त बंद हे या।
रेखा भीतरी म होही चल या।
मुन्नी हां भीतरी होही चल देखथन।
रेखा (जोर से आवाज लगाती) सातो...।
सातो अई काय बता तो ?
रेखा मोर डाहर आ तो।
सातो अई काय या।
मुन्नी बाजार जाबे का या ?
सातो हाय बाजार जात हव ?
मुन्नी हव।
सातो उही बाजार जाय बर महू संगवारी खोजत रेहेंव।
मुन्नी ले आ।
रेखा मुन्नी बताईस त तोला बलात हन।
मुन्नी मय तरिया म पहुंचाय रेहेंव त केहे रेहे, अई बाजार जाबे त मोला बला लेबे।
सातो अई बने करेव दीदी हांक पारेव त।
मुन्नी हां चल जाहूं कथे रेखा आव जाबो चल बहिनी जाबो चलो ।
सातो गउकिन ईमान से दीदी कतका सुन्दर अकन लागत हे सब झन जावत हन बाजार ते।
मुन्नी दीदी संगी संगवारी संग में बोलत गोठियात जाबे त रद्दा झप ले कट जाथे।
रेखा चलो रेंगत रेंगत गोठियात गोठियात जाबो चल आ य।
मुन्नी अब्बड़ बेर होगे दई।
राहगीर तुमन कोन हरव कहां जात हव वो ?
सातो अई बजरहिन त आन य बाजार तो जात हन ग।
राहगीर वईसने त झोला झांगड़ धर के जातेव त जुच्छा हाथ हलात जावत हव।
मुन्नी वईसन बात नोहे हमर करा तो नवा असन झोला रीहीस, त उही म टमाटर अउ भांटा ल रख देन, रोगहा मुसवा ओला चुन दिस त मय कथेंव चिरहाच ल बाजार लेगंहू दई, तेकर ले ओती बाजार जहूं त झोला लेके उही म साग ले आ जहूं अईसे कहिके मय जात हंव ग, ले चलो वो।
रेखा ए दे चूरी पहिरहूं काहत हे न या ?
राहगीर काकर नाम के पहिरबे ?
राहगीर का नाव हे तोर ?
रेखा तोर नाव पूछत हे।
सातो मोर नाव तो सातो हे भईया।
राहगीर बड़ अच्छा नाव हे सातो।
सातो अई काये भईया बता तो।
राहगीर बाजार जाथव त बने झोला धर के नी जातेव वो तुमन खाली जात हव।
सातो अई त सुने काला हस ग जुच्छा जुच्छा जात हव कथे मुसवा चुन दिस कथे त झोला ल मुसवा ह काट दिस त... निचट भैराच हवे तइसे लागथे या।
मुन्नी अरे हमन साग पान ले बर थोड़े जात हन ग ।
राहगीर त कार जात हव ?
रेखा हमन तो चूड़ी, चाकी, खिनवा, फूल्ली पहिरबो कहिके जावत हन।
राहगीर अच्छा तंय रउतईन अस का नोनी ?
रेखा अई हव मय रउतईन अंव ग।
राहगीर मय कईसे जान डरेंव ?
रेखा अई त ओला तंय जानबे कईसे जान डरे तेला ?
राहगीर तोर पहिरांव ल देखथंव नहीं तोर ब्लाउज एकदम चिटियाहा टाइप दिखत हे।
रेखा अई... हाय... का करबे ग रउतईन के जात अंव पानी कांजी भरत रईथंव गोबर कचरा फेंकत रईथंव त अइसन पोछन नी पांव भईया अइसे सरेर पारथंव।
राहगीर कतेक ल सरेर पारथस नोनी तंय ह वो ?
रेखा अई त कइसे करबोन ग पोंछत नई बने त।
राहगीर तोर नाव काहे वो ?
रेखा अई मोर नाव त रेखा हे ग।
राहगीर रेखा।
रेखा काय भईया ?
राहगीर इहां के मन कतिक कतिक बेर देखा ?
रेखा अई जतेक बेर के आय हंव ततेक बेर देखा... इसलिए मेरी नाम है रेखा।
राहगीर तोर नाव का हे ?
मुन्नी मोर नाव मुन्नी हे भईया ।
राहगीर अरे वाह नानुक मुन्नी।
मुन्नी अई लाज नई लागय नानुक मुन्नी कथे अतिक बड़ गे हंव त नानुक मुन्नी कथस ग, मुन्नी कथे वो चलो रे जाबो टार ओकर मुख ल टार चलो या चलो दुनिया भर ल गोठियावत हे।
रेखा बेलबेलहा बाजार डहर आबे तहान कईसे कईसे मनखे मिल जथे।
सातो अई हाय आज के बाजार ल तो देख मार सईमल सईमल करत हे या।
मुन्नी सही बात हे या अब्बड़ भीड़ हे दीदी।
सातो दीदी अतेक भीड़ मय कभू नई देखे रेहेंव दीदी ।
मुन्नी दीदी एक तो अब्बड़ दिन म आय हन बजार तेकर सेती अइसने लागत होही या भीड़ तो रथेच।
सातो सही बात हे या।
रेखा दीदी हमर घर ददा ह कथे।
मुन्नी काय कथे तोर ददा ह या ?
रेखा बेटी तेहा जावत हस बजार स सबले पहिली पान अउ माखुर ल ले लेबे ओकर पाछू कुछू कांही ल ले लेबे काहत रीहीसे, चल न बहिनी एक्कन माखुर पसरा म या तहान कांही कुछू ल लेतेन।
मुन्नी चल न रेखा सबले पहिली मनियारी दुकान जातेन, चूड़ी चाकी, खिनवा बाला, फूल्ली कुछू कांही पहिर लेतेन या तहान वो गली अइसे घूमत घूमत चल देतेन माखुर पसरा म या।
सातो सही बात हे रेखा।
रेखा कइसे सही बात हे या ?
सातो मय तरिया जात रेहेंव न मोर कान के खिनवा कते कर गंवागे या।
रेखा हाय गंवा तो गेहे।
सातो अउ हाथ म चूड़ी घलो कमती हे, चूड़ी चाकी पहिन लेतेन लहुटती खानी आतेन साग पान लेवत अउ तोर पान माखुर ल ले लेतेन।
मुन्नी हव या बने त काहत हे रेखा बिचारी ह चल जाबो।
रेखा दीदी एक रूपिया के पान अउ एक रूपिया के माखुर तेला छोड़ के वहा डाहर ले घूम के आबो त ले लेबो कथो य अई उही ल ले लेथन तहान अईसे घूमत घूमत चल देबो त नी बनही या ?
मुन्नी अई अई अई तोर सही संगई संगवारी होगे त दू झन के बात ल नी मानस अउ तोरेच बात ल चलाबे तेमा बन जही या ?
रेखा आज मोर ल चला लूहू त नी बन जाही या ?
मुन्नी चल आज भर तोरेच बात सही राहय आन बजार झन आबे दई हमर संग तंय हा।
रेखा अई त मत लेगहू दई हमला झगड़ा लड़त हो।
लोरिक कइसे मोला नसा जईसे लागत हे यार मोला।
सातो हाय वहादे बजार देख तो य वहादे वहादे या।
लोरिक सांझ होही त मोला जगा देहू यार मय थोड़ा इही करा बईठे हंव ।
दुकानदार देख न यार काला काला उलग देस सब पसरा खराब होगे तोर मारे।
लोरिक तंय अपन आदमी अस यार।
दुकानदार कते तोर आदमी ए भई।
लोरिक तंय हा।
दुकानदार अरे एला फेंक यार कहां कहां ले पी खा के ए करा मतवा मता देहे गड़ेला मरत ले पी लेहे बईठे ते करा ले उठे नी सकत हे अउ कथे हल्का से ले हंव यार कथे।
मुन्नी ओहा नसा के ओज में गोठियावत हवय ओहा माखुर पी के भकवा गे हवय।
सातो त या जईसना वो हे ओकर संगा संगवारी उही त आय पईसा के रहात ले पीन खईन हे अउ पईसा उरक गे त ओला फेंके ल काहत हे।
रेखा अई पीयईया खवईया के का सउर ।
मुन्नी अईसन तो संगी संगवारी होथे।
सातो त या।
रेखा दीदी कोन गांव के पहाटिया ए कोन जोड़ी के जांवर ए, ए त माखुर पीए भकवाय बईठे हे या गोठियात हे तेकर सुरता नईए नसा के मारे एती उन्डे ओती उन्डे परत हे कुछू के होस नईए बहिनी ।
सातो त ग जादा नसा होगे हे न तेकर सेती, दीदी मय पहाटिया ल देखथंव त माखुर के नशा म मार लाल लाल एकर आंखी दिखत हे।
मुन्नी अई दिखत तो हे सही बात हरे या।
सातो अईठे अईठे एकर भुजा अउ मार बरत असन एकर चेहरा दिखत हे दीदी।
रेखा बने बात ए या।
मुन्नी सिरतोन बात ए दीदी अब्बड़ सुन्दर दिखत हे वो।
सातो गउकीन जब ले देखे हंव तब ले का बतांव ।
मुन्नी का बता ए मोला बताबे।
सातो का बतांव ?
मुन्नी का बात ए तेला बताना वो ?
सातो टार दई हमर दाई ददा ल बता देहू हमला डर लागथे।
मुन्नी देख या संगा सहेली के बात ह जाके दाई ददा करा बताबो या नी बतान दीदी का बात ए तेला बता।
सातो अई नी बताव दीदी... दीदी मोला ए पहाटिया असन जोड़ी मिल जतीस न त मार बईठ के टुकुर टुकुर देखत रहितेंव बहिनी।
रेखा जतका बेर ले देखे हंव न ततिक बेर ले मोला कइसे लागत हे ?
मुन्नी अई अब तोला कईसे लागत हे या ?
रेखा मोला कोई अइसने असन जोड़ी मिल जतीस न ।
सातो पहाटिया असन।
रेखा अगर ए मोर जोड़ी होतिस त मय एकर आरती उतारतेंव दिन रात पूजा करत रतेंव तईसे लागथे या।
मुन्नी अई सच हे दीदी अतिक सुन्दर दिखत हे तेला कते जोड़ी जांवर हे जेहा बजार में भेजिस हे वो मोर जोड़ी होतिस न अईसे छईंहा म बैठार के ताते पानी ताते जेवन परोसतेंव या अउ घर के बाहर नी निकालतेंव तईसे जी लागत हे बहिनी।
सातो हां अतका सुन्दर अकन हे।
दुकानदार ए टूरी हो !
सभी अई काय ग काय ग ?
दुकानदार तुमन ल वईसन वईसन लागत हे वो।
सभी हव ग लागत तो हे।
दुकानदार वईसन न महू ल लागत हे।
मुन्नी अई तोला कइसे लागत हे ग ?
दुकानदार मोला कहूं अईसने जोड़ी मिलतिस न।
सभी पहाटिया सरीक ?
दुकानदार हां पहाटिया सरीक ता घाम के ल छईंहा म नी लातेंव।
सभी हव हव हव हव।
मुन्नी त गड़ेला घाम म बईठा के मार डरबे अलकरहा गोठियाथस तेंहा।
दुकानदार तुमन बाजार हाट मत आय करव वो।
सभी अई काबर ग ?
दुकानदार तुंहर आदत ठीक नईए।
सभी अई त का होगे तेमे ग ?
दुकानदार ए टूरा मन देखथव तहन मिटिर मिटिर करथव।
मुन्नी ले देखे या गड़ेला अपन ह मिटिर मिटिर करत हे अउ हमन मन ल कहात हे अपने अगवा अगवा के गोठियावत हे।
दुकानदार कहां के पिए खाय हे तेला पसंद करे हे ए दाई दीदी मन पूछ।
सातो काला पूछन ग भईया ?
दुकानदार एकर घर के ददा भईया मन पियक्कड़ हे न तेकर मारे इंखर घर धमाचौकड़ी माते हे।
मुन्नी सही बात ल गोठियात हे ग बढ़िया बात ल बतात हे बिचारा ह पियईया मन के मारे धमाचौकड़ी मातथेच।
रेखा हव सही बात हे माते रथे दई ।
दुकानदार हपता म तीन दिन ले परघौनी होथे ।
मुन्नी अई का परघौनी ए ग ?
दुकानदार अई तुमन कुछू नई जानव का ?
सातो नई जानन भईया बता न ग ?
दुकानदार ए दे दे दनादन ।
रेखा दनादन ? कस या वहा मारथे तेला परघौनी कथे का या ?
मुन्नी अई टार दई मय त वहा बिहाव परघौनी ल जानत हांवव या ।
सातो / रेखा टार दई उही ल हमू सुने रेहेन।
मुन्नी टार दई छोड़ो का ये दुनिया भर के परघौनी ल ।
दुकानदार कहां के मंदू उछरत बोकरत हे तेला पसंद कर डरे हस अरे तोला पसंद करेच बर हे त हमर जईसे मेछा वाले ल पसंद करव।
मुन्नी अई हाय कहां रेहे रे बिलवा बोटर्रा देखबे ओकर मेछा में कोई ठिकाना नईए कहां के आधा कच्चा आधा पक्का मेछा दाढ़ी हे अउ गड़ेला मेछा में ताव मारत हे तेला देख ले तोर रोना पारंव ।
सातो चल या हम जात हन, देखबे त गड़ेला भकमुड़वा मुंहू के दिखत हे मेंछा म सुमार नई हे त वहा मेछा म ताव मारत हे गड़ौना ह।
दुकानदार एला तो लेग जा ये हाड़ा गोड़ा ल।
सातो चल चल तोला ले के जाबो।
दुकानदार चल चल तोर ले नी जान एकदम गोबरहीन असन दिखत हस।
रेखा हव ग हमन तो गांव गंवई के रहवईया भईया, रउतईन के जात ग गोबरहीन असन दिखत हन भईया, अउ ते न ग वहा अनिल कपूर सही दिखत हस ग।
दुकानदार जा भगवान करे तोला मंदू पति मिले।
रेखा तोर केहे ले नई मिले ग ।
दुकानदार हपता म छै दिन ले परघौनी होही ।
रेखा तोला गड़याही गड़ौना नीतो।
सातो भईया तोर रूप रंग ल देख लेते ग त हमर सहेली मन ल जईसे नई तईसन कते।
दुकानदार वाह रे चुचरी।
सातो अई ले देखे या।
दुकानदार तोर ल देख।
सातो त कहीं आय हमर भउजी मन कथे त कथे त तहूं कहि देबे ग ?
दुकानदार चालीस साल के होगे हे कोनो आय नई हे देखे बर तेला ?
सातो अई आबेच करही कोनो जवान नईते तोर असन बूढ़वा ह।
दुकानदार वइसने मिलही मंदहा ह।
सातो कईसनो मिले मिलही तो... यहा काय दई बीच बजार मे हमन ल अईसन तईसन काहत हे इहीच कर खड़े होके महूं गोठियात हंव जल्दी घर डाहर जा ले लेंव, हमरो घर दाई ददा काहत होही देख तो टूरी सुबे कुन के बजार गेहे, अउ अतक बेर ले घर आय नईए बेलबेलहा मन संग नी लागंव दई जाथंव जल्दी जाहूं चल जांव वो ।
चंपी अई हाय ले देखे महू ह सहेली मन संग गोठियाय ल भीड़े हंव, चंदा दीदी केहे रीहीस हे बहिनी तंय जावत हस बजार त एक ठन बिगारी कर देबे पहाटिया के सरोखा भर लाबे कहिके, अउ पहाटिया ल देखथंव दाई त माखुर के नसा म मार माखुर पीए भकवाय बइठे हे इही बात जाके चंदा दीदी ल बताहूं बिगारी के बिगारी हो जही अउ ईनामी के ईनामी मिल जही चल जांव मय चंदा दीदी के घर।
चंपी चल दई आय बर तो आ गेंव कोन जनी चंदा दीदी ह अपन सतखंडा महल म हे के दउहर म हावे आरो करत हंव या त आगे चपरासी यहादे दरोगा मन बईठे हे काबर चिल्लाथस टूरी कहि तभो ले आरो करके देखहूं अई चंदा दीदी...अई चंदा दीदी....।
चंदा चंपी।
चंपी टार दई कहां रेहे तंय हा ?
चंदा अई मय त तोला बजार भेजे हंव।
चंपी हाय बजार के बात ल झन पूछ वो तोला काला बातवंव दीदी।
चंदा तें कहीं बात ल मत बता कहीं ल मत गोठिया पहाटिया लोरिक के का हालचाल हे तेला बता ?
चंपी टार गो जोर जोर से से गोठियाथस।
चंदा का होगे ?
चंपी मय काकरो पांच छै म नई राहंव दई यहादे चपरासी यहादे दरोगा मन बईठे हे।
चंदा हां हां हां।
चंपी गोठियाहूं त देख तो टूरी काला गोठियात हे कही।
चंदा त।
चंपी वहाकर जाके चुप्पे बताहूं।
चंदा त दूरिहा म जाके गोठियाहूं कथस या तेकर एक काम कर न कोनो झन सुने तईसे मोर कान तीर गोठिया।
चंपी अईसे।
चंदा ले बता।
चंपी (खुसर फुसर) गउकिन इमान से दीदी मे त उही कथंव दीदी।
चंदा कईसे ?
चंपी जे ये पहाटिया तोर गउना कराके लाईस हे इही मोर राजा इही मोर जोड़ी कहिके नहीं अइसन अपन मन मंदिर म बसा डरे हे।
चंदा हां सही बात हे चंपी।
चंपी खोइलन मन कथे बहिनी।
चंदा कईसे ?
चंपी फूटहा करम के फूटहा दोना... पेज गंवागे चारो कोना।
चंदा सही बात ए चंपी।
चंपी अईसन त तोर किसमत हे तोर किसमत हावय तईसन हावय फेर एमा सबले जादा गलती तोर दाई ददा के हावय या।
चंदा देख या तय मोला केहे त कहि डारे मोर किस्मत फूटहा हे तभे कहि डारे त ऐमे मोर दाई ददा के का गलती हावय चंपी ?
चंपी का गलती हे कही के मोला पूछथस एक झन बेटी कहिके नानचन में मार पुचुर पुचुर बर बिहाव ल कर दिस ओ।
चंदा हव ओ बात तो सिरतोन बात हरे या पर्रा म मोला पा पा के भांवर किंजारिस कथे चंपी अब ओतेक बात ल मे का जानहू तेला या।
चंपी ओकरे भुगतना ल अब तंय भुगतत हस, बने भुगत... बने भुगत।
चंदा कहिबे तभो भुगतत हंव नई कहिबे तभो भुगतत हंव ।
चंपी उहू हमर किस्मत ल देख।
चंदा का होगे ?
चंपी अई तीस-पैतींस साल होगे कोई कुकुर पूछईया नई आय हे या।
चंदा तंय वईसन मत सोच कोनो घला आही बूढ़वा सांगड़ा।
चंपी टार दीदी तहूं ठठ्ठा मारत हस।
चंदा त पैतींस साल बर कतका सुन्दर आही।
चंपी टार दीदी वो पहाटिया के बात ल पूछथस।
चंदा हां।
चंपी पहाटिया बारापाली बजार में जा के माखुर पसरा म मार माखुर पिए भकवाय बईठे हे।
चंदा अई पहाटिया माखुर ल पी के भकवागे हवय!
चंपी त या।
चंदा ले देखे।
चंपी गोठियात हे तेकर सुरता नईए नशा के मारे एती उन्डे परत हे ओती उन्डे परत हे कुछूच केहे के होस नईए वो।
चंदा अब्बड़ अकन ल पी डरीस या माखुर ल ते पाय के हरे।
चंपी हां दीदी मोला त आज अइसे लगथे...।
चंदा कईसे लागथे ?
चंपी तंय वो पहाटिया ल बजार ले बलवा के नी लानेस त पहाटिया बजार ले उबर के नी आय त तोर हाथ भी नी लगे या।
चंदा त काबर उबर के नई आय काबर मोर हाथ नई लगय।
चंपी दीदी बजार के जम्मो बजरहिन मन घेरे हे ऐती जावन नी देत हे वोती जावन नई देत हे तेकरी सेती वो।
चंदा सही बात हे चंपी, काबर पहाटिया लोरिक के चेहरा घलो लाखो म एक झन हावय, उहां गिस होही बारापाली सहर के बजार में आ दुखाई बजरहिन मन ह ओला घेर के ओला छेक के ओला बिल्लोल के ओला बिलमा के रखे होही या, पहुंचा पाहूं कोनो दुखाई मन ल नहीं त कोदई छरे असन नई छरेंव त मोर नाव चंदा नोहे।
चंपी त अइसने घर म बखानत रबे तहान पहाटिया बजार के ह दउड़त दउड़त आ जही या ?
चंदा सही बात तो हरे चंपी अगर जात हंव बारापाली सहर के बजार के एको झन बजरहिन बजरहा मन चिन परही मोला देख परही त मोला कही राजा महर के बेटी राजकुमारी चंदा काहत लागे अउ ये दुखाही ह पहाटिया ल बलाय बर बाजार म आय हे, अईसने जेने पाही तेने हिनमान करही तेने पाही तेने मोर फजित्ता करही।
चंपी अई त बदनाम हो जबे या।
चंदा अउ तोला कहूं त तय अभी बजार ले आत हस तोला त भेज नई सकंव चंपी त अच्छा बता वो पहाटिया ल कइसे करके बला के लाबो का उपाय करबो कोन ल खबर भेजबो ओला बलाय बर मोला कहीं अक्कल उपाय मोला बता या।
चंपी तंहू ह अलकरहा गोठियाथस ।
चंदा ऐमे का अलकरहा गोठियाय के बात हे ?
चंपी तंय ह राजा महर के बेटी हस पढ़े लिखे हावस बहिनी अउ मय कहां अनपढ़ गंवार तोला का अक्कल के उपाय बताहूं तोला मेहा या।
चंदा समझ समझ के बात होथे कभू कभू तो कतको जादा पढ़े लिखे रबे तभो ले समय देख के अक्क्ल ह पूरे ल नई धरे कभू कभू अंगूठा छाप रईथे न ओकरे मन के अक्कल बुध ह समय देख के पूर जथे त बने सोच के बता ना या ।
चंपी का उपाय बतांव ?
चंदा ले बता।
चंपी अई हां एक ठन बात हावय बहिनी मान जाबे त।
चंदा का बात ए काबर नई मानहू या ?
चंपी तरिया पार के मालिन दाई के घर ल देखे हस या ?
चंदा वहा तरिया पार डहन खदर छानी वाले हे तिही हरे का या ?
चंपी हव हव उही।
चंदा हव।
चंपी मालिन दाई घर जाबे अउ दाई ल कबे दाई एककनि बारापाली के बजार जाते अउ बजार ले पहाटिया ल बला के लान देबे।
चंदा हव हव।
चंपी नी जांव बेटी नी जांब कही नही त कबे दाई पहाटिया ल बला के लाबे त तोला पांच थारी मोहर दूंहू।
चंदा मालिन दाई ल।
चंपी मालिन दाई एक नंबर के ललचहिन हावय दउड़त जाही पहाटिया ल बलाय बर ।
चंदा अईसे का त मय अभीच जाथंव मालिन दाई करा।
चंपी महूं जाथंव घर।
चंदा हव ले जा चल दाई मोर सहेली चंपी ह बने सुन्दर अकन अक्कल उपाय बताईस हावय, अभी जांव मय मालिन दाई करा मालिन दाई ल कईसनो कर के मना बुझा के ओला बारापाली सहर बाजार भेजहूं, अउ डोकरी अईसे म नई मानही त ओ दुखाई ल पईसा देके मनाहूं, फेर कईसनो करके पहाटिया ल बलवा के लानहू तभे मोर मन ह माड़ही तभे मोर जी जुड़ाही चल देखंव मालिन दाई घर म हाबे के नई एकन पता करके देवंख वो ।
चंदा जउने समय कर बेरिया म ओ ए दे.......।
रागी जावय ए तोर।
चंदा मेहा जावंव ओ दीदी।
रागी जावय ए तोर।
चंदा बारापाली के सहर म।
रागी सहर में तोर।
चंदा मोर लोरिक चरवाहा
रागी लोरिक ए तोर।
चंदा माखुर पसरा म दीदी।
रागी राहय ए तोर।
चंदा माखुर पीए भकवा हे।
रागी राहय ए तोर।
चंदा जाके मल्लिन दाई ल।
रागी खबर भेजे।
चंदा एदे खबर बतावंव।
रागी बतावय ए तोर।
चंदा मन मन म चंदा गुनन लागे वो कहां देखंव तोला मल्लिन।
रागी चंदा ए तोर।
चंदा कहां देखंव तोला दाई।
रागी जावय ए तोर।
चंदा मने मन म गुनव।
रागी काहय ये तोर।
चंदा जउने समय कर बेरिया संगी।
रागी काला कांहव मेहा संगी... अउ जा दिन बोले मोर चंदैनी मोर बरिगना ए वो।
चंदा इही हरे मल्लिन दाई के घर हांक पार के देखंव अई मल्लिन दाई नई आस का या ये दुखाई डोकरी भैरी त आय या सुने नहीं झप ले।
चंदा ए मल्लिन दाई ।
मल्लिन दाई कोन अस वो ?
चंदा मय राजकुमारी चंदा हरंव वो ।
मल्लिन दाई चंदा।
चंदा हव दाई ।
मल्लिन दाई आ बईठ बेटी ।
चंदा दाई मय तोर घर बईठे बर नई आय हंव सियान, एक ठन बिगारी काम कर देबे अईसे कहिके आय हंव दाई।
मल्लिन दाई का बिगारी ए वो बेटी ?
चंदा दाई बारापाली सहर के बाजार जाते अउ पहाटिया ल उही डहन ले बला के लान लेते या।
मल्लिन दाई कहां जातेंव ?
चंदा बारापाली सहर के बाजार।
मल्लिन दाई अउ ओ बेटी अंजरहीन अकन के गाठियात हस वो।
चंदा काबर सियान ?
मल्लिन दाई मय तो गजब दिन होगे बेटी हाट बाजार नई जांव।
चंदा हव हव हूं हूं ।
मल्लिन दाई रेंगे ल नई सकंव मोर आंखी कान नई दिखे बेटी नी जांव बजार हाट दाई।
चंदा (स्वत) लकर धकर आत हंव एला मना बुझा के एला कईसनो करके बजार भेजहूं कहिके ए दुखाई डोकरी नई जाय नई माने तईसे लागत हे दाई कइसे करंव... अउ एक घांव मना के देखथंव, अई जाना सियान जाना वो अईसे मत कर एतेक झन कर।
मल्लिन दाई नई जांव बेटी एक तो आंखी काने दिख नही कोनो करके भढ़का खोदरा म गिर हपट जहूं झपा जंहू बोजा के बईठ जाहूं उही डहर ।
चंदा जा दई जा तोर पांव परत हंव।
मल्लिन दाई खुसी रा बेटी चर चर ले तोर चूरी फूटे वो खुसी रा ।
चंदा हाय वाह रे डोकरी अपन बुढ़ात हे त बुढ़ात हे फेर अक्कल घलो बुढ़ात हे तइसे लागथे कस सियान ?
मल्लिन दाई हैं....।
चंदा तंय बूढ़ा गेस त बूढ़ा गेस तोर अक्कल ह घलो बूढ़ावत हे।
मल्लिन दाई काबर वो ?
चंदा कस वो मोर चूरी चर चर ले फूट जही त तोर जी जूड़ा जही ।
मल्लिन दाई कइसे उंचा सुनथस का टूरी ?
चंदा कइसे ?
मल्लिन दाई चूड़ी अमर राहय कथंव त चूरी फूट कथस रे तोला गांड़व ।
चंदा वाह रे बिन पेंदी के लोटा एती के ला एती उलद दिस अतिक बड़ बस्ती म कोनो नईए बिगारी करईया, अईसे कहिके इही त आय कहिके बात ल सुन लेथंव दाई।
मल्लिन दाई हहो।
चंदा पहाटिया ल ते बाजार ले बला के लाने देबे न त मय तोर थकौनी बर नीही मय तोला पांच थारी मोहर दूंहू या।
मल्लिन दाई का देबे
चंदा पांच थारी मोहर।
मल्लिन दाई हाय पांच थारी मोहर वो !!!
चंदा हव दाई।
मल्लिन दाई हमर घर डोकरा घलो गजब खिसियाथे।
चंदा काबर ?
मल्लिन दाई रात दिन बईठे बईठे खाथस डोकरी।
चंदा अई।
मल्लिन दाई अईसे कहिके मोला कथे त मय पूछथो बेटी सबो ह तो बईठे बईठे खात होही कोनो खड़े खड़े तो नी खात होही का।
चंदा दाई काहीं नई होय वो सियान मनखे कहि दिस त कहि दिस ले सुनथे तेकर बनथे जेन सहिथे तेकर लहिथे।
मल्लिन दाई मय नई सुनव।
चंदा त कइसे करिहस ?
मल्लिन दाई सुनेव सुनत भर सहेंव सहत भर ले अब नई सुनव।
चंदा अई त नई सुनबे नई सहिबे त तंय कहां जाबे या ?
मल्लिन दाई कोनो दुनिया म जाहूं ।
चंदा एकर गुस्सा ल देथत हस तोला अभी कते राखही एक तही हरस बानी वाले सही।
मल्लिन दाई तरिया डबरी म डूब के मर जाबो कुंवा बावली म कूद के मर जाबो, सब भरे कुंवा म मरथे हम सुक्खा कुंवा म कूद जाबो।
चंदा अई तंस कईसे करथस मनाहूं काहत हंव त ते मरेच बर जाथस।
मल्लिन दाई काबर तोला गाड़व पागी पटका ल झीक दे रेहे।
चंदा भरे कुंवा म कूदबे न त कईसनो करके तउर तउरा के निकल जाबे तोर जीव ह बांच जही अउ सुक्खा कुंवा म कूदबे त तोर गोड़ हाथ ह टूट जही।
मल्लिन दाई उलटा के पुलटा गोठियाथस ।
चंदा कइसे ?
मल्लिन दाई भरे कुंवा म कूदबे त बोजा के बईठ जाबे सुक्खा कुंवा म कूदबे त हाथ गोड़ टूट जही त टूट जही फेर बांच जंहू।
चंदा ए मरईया सही लागत हे ले त दाई तंय मर हर झन सियान, पांच थारी मुंहर ल देखही त तुंहर घर बबा ह त वहू खुस हो जाही तंहू खुस हो जबे दून्नो के दून्नो मार बईठ बईठ खाहू या।
मल्लिन दाई त ले जात हंव बेटी धीरे बांधे बईठत उठत जाहूं कईसनो करके।
चंदा ले जा सियान हव दई ले जा.. अउ सुन तो सुन तो या।
मल्लिन दाई अब अउ का होगे ?
चंदा तंय हा बजार जाय बर तो जात हस तोला कोनो एकाद झन बजरहिन बजरहा मन पूछ दीही त मोर नाव भर झन लेबे।
मल्लिन दाई त तंय तो बलात हस न ?
चंदा ओला बाद म बतात हंव।
मल्लिन दाई कइसे ?
चंदा त ते अईसे कहिबे तोर बबा ह अन्ते के गाय अन्ते के बछरू ल लान डरे हे गाय ह नई लगत हे चल न एककन गाय ल लगा देबे, अइसे कहिबे ठग के बलाबे इंहा लान लेबे।
मल्लिन दाई हां त ले जात हंव बेटी, अउ एक काम कर ।
चंदा हां कइसे का काम ?
मल्लिन दाई ओ हमर बखरी कोती के कोठा ल देखे हस ?
चंदा ओ खदर छानी वाले न हां देखे हंव ।
मल्लिन दाई आगू छेरी ओईलात रेहेन।
चंदा हव हव छेरी ह अब्बड़ बस्साथे तको ।
मल्लिन दाई अब छेरी नईए न पटरू नईए गाय नईए न बछरू नईए ।
चंदा नईत हे सही ताय या ।
मल्लिन दाई कोठा निच्चट हे बेटी।
चंदा हव हव।
मल्लिन दाई मोर कोठा ह काबर जुच्छा राहय तेकर ले तंहू त एक ठन लछमी हरस।
चंदा लाज घलो नी लागय डोकरी तोला मोला कथस ।
मल्लिन दाई त माईलोगिन मन ल नी काहय घर के लछमी वो घर के लछमी तंही हरस तोला गाड़ंव।
चंदा अई हव दई कहे बर त सियान मन कथे घलो दई वईसने।
मल्लिन दाई हां हां त ये कोठा म जाके आईले रा ।
चंदा हव दई बन जही बन जही।
मल्लिन दाई अउ काले करवट कोनो डोकरा चल दीही कोठा डहन एक बात के बात आय बहुते बोझा कन पेरा माड़े हे उही पेरा तरी भूसा म खुसर जाबे ।
चंदा अई टार दई मय पेरा भूंसा म दंदिया के मर जांहू ।
मल्लिन दाई त तोला दंदियाही त टेटका बरोबर मूड़ी ल नी निकाल दे रबे ।
चंदा दाई तंय जा बजार वो तुंहर घर के डोकरा आही तेला मय बना लेंहू तंय बजार जा।
मल्लिन दाई उंहू त वईसन म नई जांव दाई नई जांव दाई ।
चंदा अभी तोला मय न गारी दे हंव न तोला बखाने नई हंव, तंय कार रिसा गे हस ।
मल्लिन दाई त तंय मोर डोकरा ल बनाय बर मोला बजार भेजत हस ?
चंदा काला ?
मल्लिन दाई हव मय जाहूं तंय डोकरा ल बनाके लेग जबे।
चंदा अरे तोर रोना ल पारंव कुबरी, अंजरहीन, रेचकी कहिं के तोर खटिया मुरदा निकले ।
मल्लिन दाई कइसे कहात हस तोला गाड़ंव ?
चंदा तुंहर घर के बबा कोठा डाहन आही न त मय बात ल बना लेंहू कईसनो करके लुका जंहू अइसे कथंव ।
मल्लिन दाई टार रे तोर जउंहर होतिस ते ।
चंदा हंव तो ।
मल्लिन दाई उही मय कईसे काहत हंव डोकरा ल ए बनाहूं कथे त मय कहां चुचरूंगपुर जांव ?
चंदा नहीं या बात ल केहेंव बना लूंहू कहिके।
मल्लिन दाई अईसे त ले मय जात हवं बेटी धीरे बांधे बईठत उठत कईसनो करके बजार।
चंदा हव सियान हां ले जा ले जा अब।
मल्लिन दाई चंदा जाय बर तो जात हंव बेटी ?
चंदा अउ का होगे ?
मल्लिन दाई जाय बर त जात हंव बेटी फेर पांच साल के लईका मन तक मोला चिनथे।
चंदा हव सबो जानथे वो छोटे बड़े सब जानथे मल्लिन दाई हरे कहिके।
मल्लिन दाई अई त का कहूं अमरा परही भेंट परही त कहां जात हस कहिके पूछही तब कइसे करिहंव ?
चंदा लईका मन सरीक गोठियाथस तंहू ह वो।
मल्लिन दाई कइसे ?
चंदा अई त बजार जात हंव नी कहे सकबे या।
मल्लिन दाई अंहा.. बजार जात हंव कहिहंव त जुच्छा जात हस कहिं ।
चंदा तुंहर घर झोला नईए त नहीं त अलवा जलवा टुकनीच ल धर ले।
मल्लिन दाई हव।
चंदा अउ देखईया मन का कहि कइसे करबो वो सियान मनखे टुकनी धर के जावत हे बजार कहि ।
मल्लिन दाई कोन पूछही ?
चंदा कोन पूछही ?
मल्लिन दाई है नीही अउ जे पूछही तेकरे आंखी नी दिखही ।
चंदा नहीं वो एकाद झन बेलबेलहा अइसन पूछीच देथे घलो।
मल्लिन दाई त रा वो माड़े हे बेटी टुकनी ल मय जावत हंव।
चंदा येदे दाई ले जा...(स्वत) देखे पांच थारी मुहर देंहू केहेंव तिंहा कईसनो करके मल्लिन दाई मोर बात ल राख लिस मोर बात ल त मान गिस हावय, अउ मय पहाटिया ल देखथंव दाई कईसन ओला संगत मिलगे कईसन ओला साथी मिलगे उहां जाके मार माखुर ल पीए भकवागे हावय।
मल्लिन दाई एदे म भर के लानथंव या।
चंदा साग भजी ल ?
मल्लिन दाई हव हव।
चंदा हव।
मल्लिन दाई डोकरा अउ डोकरी ल अठोरिया पूर जाथे ।
चंदा हव दाई हव।
मल्लिन दाई त ले मय जात हंव बजार डहन अउ तंय जा कोठा डहन।
चंद हव हव।
मल्लिन दाई का करिहंव वो घर में बईठे तो रईहंव तेकर ले पांच थारी मुंहर ह आ जही डोकरी अउ डोकरा के चार दिन पानी पसिया बर हो जही।
(वाद्य संगीत) मल्लिन दाई जाय बर तो जात हंव वो मार धूसूर धूसूर कहूं एकर बर ले जांहू एकर बर ले आ जही, एकर बर ले जांहू त एकर बर ले आ जही, काय अमराहूं के नी अमराहूं, तेकर ले ओ टूरा चंडाल मन ल नी पूछ लेथंव, पांव थके त थके मन काबर थके... अरे ए टेटकू हावस का रे ?
टेटकू काय डोकरी दाई ?
मल्लिन दाई मे हरंव बेटा मालिन डोकरी हरंव रे।
टेटकू त तंय कहां जात हस वो ?
मल्लिन दाई तोरेच कर आत रेहेंव बेटा तोरच करा रे ।
टेटकू काबर ?
मल्लिन दाई का करबे रे पईसा ल वो पहाटिया टूरा ल दे परे हंव तेन अतिक बेर ले बाजार ले आय हे बेटा न साग पान ल भेजे नई हे हमर घर तोर बबा मोल बखानत हे जेला नई तेला पईसा ल देथस कहिके तें कहूं अमराय रेहे भेंटे रेहे का ओला?
टेटकू मैं तो नी अमराय हंव डोकरी दाई।
मल्लिन दाई नी अमराय हस त कोन ला पूछव दई।
टेटकू अमराय रेहेंव डोकरी दाई ।
मल्लिन दाई दूर रे गड़ौना... पूछेंव त नी अमराय रेहेंव कहिथे वहा कर चल देंव त अमराय रेहेंव कथे कहां अमराय रेहे बेटा ?
टेटकू माखुर पसरा म बईठे रीहीसे डोकरी दाई।
मल्लिन दाई जा तभेच ए दाई माखुर ल पीस होही अउ नसा के मारे भकवा गे कोन का मंगाए हे का नही कहिके सुरता भुला गे, ले बईठ बेटा बईठ मय जात हंव धीरे बांधे बईठत उठत, कईसनो करके बला के लानहूं बेटा।
टेटकू डोकरी दाई ।
मल्लिन दाई काय ग ?
टेटकू टाटा ।
मल्लिन दाई बांय बांय ।
टेटकू टाटा ।
मल्लिन दाई तोला गाड़ंव रे गड़ौना डोकरी भड़कही कहिके टाटा करत हे हमला नी आही का टाटा।
मल्लिन दाई जा मे त यहा बजार के चौरस्ता म आगेंव दई, अउ बजार ईंहा ले गजब दूरिहा परथे, हैं.. तेकर ले इही करा एक कनी बईठ के देखंव आही त एकरे बर ले आही चंडाल ह काबर सबो डहर के चौरस्ता इही हरे रांड़ी के ह।
लोरिक (मंच के किनारे में बैठा लोरिक उठते) जय जोहार... जय श्री कृष्णा जी ओहो बहुत देर ले बईठगे रेहेंव तईसे लागथे जी, त ले मय जात हंव ।
लोरिक जा ए तो मल्लिन दाई ए तइसे लागथे, ए...मल्लिन दाई मल्लिन दाई ।
मल्लिन दाई अई कोने ए दाई मोला हांक पारत हे वो ?
लोरिक मय लोरिक आंव लोरिक।
मल्लिन दाई लोरिक।
लोरिक हां मल्लिन दाई।
मल्लिन दाई (रोती हुई) हं.. मोर लाज बचईया बेटा.. मोर लाज बचईया बेटा.. मय का करी डारंव लोरिक।
लोरिक खड़े हो खड़े हो।
मल्लिन दाई (रोती हुई) मय अईसन दुख ल नई जाने रईतेंव बेटा... तोर बबा अन्ते के गईया अन्ते के बछरू बेटा, बावन बाजार ले लाने हावय लोरिक... बछरू ह तीर म नई ओधय बेटा... मय का करी डारंव... मोर मति मय का करी डारंव मय तोला खोजत खोजत आय हंव बेटा, अतेक अतेक कलप कलप के रोथंव काबर चिटोपोट नई करस बेटा, काबर नी गोठियास लोरिक.. हत रे तोला गाड़ंव रोय के सुध म तोला मार पोटार के रोवत हंव दई लउठी अउ खुमरी ल धरा के कहां चल दिस, धन तो लटपटे अमराय रेहेंव कहां चल देस बेटा ।
लोरिक मल्लिन दाई।
मल्लिन दाई (रोती हुई) हां बेटा।
लोरिक ते बाजार हाट म रोत हस मोला अच्छा नी लागे।
मल्लिन दाई काबर?
लोरिक सब बजरहिन मन हांसत हे।
मल्लिन दाई हांसन दे।
लोरिक देख तो मल्लिन दाई लोरिक ल पोटार के रोवत हे अइसे कहिके।
मल्लिन दाई हांसन दे हंसईया के दांत दिखही बेटा।
लोरिक अइसे का दुख पड़ गे दाई ?
मल्लिन दाई हां।
लोरिक अगर तोर दुख ल नई हरेंव त लोरिक अपन मूंछ उखाड़ के रख दिही।
मल्लिन दाई हत रे चंडाल निच्चट चिक्कन कर डारे रे।
लोरिक चुप डोकरी टमरे ल नी आय अंगरी ल लेग के नाक के खोधरा म हुदर देस।
मल्लिन दाई त कइसे करंव कानी खोरी आंखी नई दिखे त।
लोरिक अईसे का काम पर गिस ते मोला बलाय बर आय हस।
मल्लिन दाई एदे आज बारापाली के बजार होईस हे न तोर बबा काहत हे देख तो डोकरी सब घर गांव भर में गाय गरूवा हे।
लोरिक हां हां हां ।
मल्लिन दाई घरो घर दूध मही होथे ।
लोरिक हं हं।
मल्लिन दाई अउ हम एक खोची दूध बर गली गली घूमत हन ।
लोरिक हव हव हव।
मल्लिन दाई पईसा धर के जाथन तब ले दूध नई मिलय ।
लोरिक नई मिले ।
मल्लिन दाई मय कथंव सही बात त आय डोकरा सही काहत हस तयं ह जा बारापाली के बाजार तहूं ले आन एक ठन अलवा जलवा मरही खुरही अउ नही त चाहा तरही अइसे केहेंव बेटा।
लोरिक हं।
मल्लिन दाई ते वो बारापाली के बाजार अन्ते के गईया अन्ते के बछरू ल लाने हे बेटा नानचुन लेवई हे चंडाल के ।
लोरिक बबा के।
मल्लिन दाई बबा के नही रे गाय के बछरू ल ढिलथंव त गाय के तीर म जाथे बैटा गाय मार कन्नखी कन्नखी देखथे बेटा, का करंव रे बताय ल केहे त बतात हंव बेटा।
लोरिक दाई तंय हाथ गोड़ ल मत छील।
मल्लिन दाई हं।
लोरिक तभो ले अतका बड़ बस्ती भर के राउत ल बलाय बर कोईच ल तो बलाय रेहे होबे ।
मल्लिन दाई अरे जम्मो भर के राउत ल बलाय रेहेंव बेटा कहूं के बूटी नई लागिस नी लागतिस ते झन लागतिस बछरू तक ह नी नरीयाय, चल बेटा एककनी मोला दुह देबे रे चल बेटा।
लोरिक जब गोठियाबे अन्ते के तन्ते गाय गरवा ल कतिस त मोला दुह देबे कथे, हंय.. चल जाय के देखंव।
मल्लिन दाई चल।
लोरिक कर्इसन गईया ए कईसन बछरू ए तेला।
मल्लिन दाई हव बेटा।
लोरिक अवईया तिहार के दिन दाई तोर घर म सोहई बांधे ल जांहू
मल्लिन दाई हव।
लोरिक दोहा पारत।
मल्लिन दाई हं हं ।
लोरिक मोर खांध म सुपर फाइन के धोती देबे।
मल्लिन दाई ओ तंय सुपर फाइन के धोती कथस बेटा तेलीन काट के धोती दूंहू रे।
लोरिक सुपा भर धान देबे।
मल्लिन दाई हव।
लोरिक दिया जलाय रबे।
मल्लिन दाई हव ।
लोरिक बीस रूपिया पईसा मढ़ाय रबे ।
मल्लिन दाई बीस रूपया म हो जही ?
लोरिक त ह ह ह ।
मल्लिन दाई चंडाल नई तो ले चल।
लोरिक अउ देख मलिन दाई झूठ लबारी बोलत होबे त ते जान।
मल्लिन दाई अरे बेटा में जिनगी भर सच नी बोले हंव ते मे झूठ बोलिहंव रे ।
लोरिक अईसन त मल्लिन दाई हरे जिनगी भर सच नई बोले हे.... (टोकरी की तरफ ईशारा करते हुए) टुकनी ल धरबे कईसे करबे ?
मल्लिन दाई चल चल।
लोरिक हां चल दाई चल ।
मल्लिन दाई चल चल।
लोरिक ते अगवाबे के मय अगवांव ?
मल्लिन दाई ते अगवा।
लोरिक गीत- तोर दुख ल हरन करंव मोर नाव हावे लोरिक।
रागी लोरिक ए वो...... अउ जा दिन बोले मोर चंदैनी मोर बरिगना ए वो
मल्लिन दाई अरे उठा मे गिर गेंव रे।
लोरिक उठ वो उठ ।
मल्लिन दाई (कराहते हुए) हाथ गोड़ ल टोर डरे हस मार डरबे?
लोरिक यहादे हाथ ।
मल्लिन दाई मार डरबे कनिहा कूबर ल धर धर आधा आधा।
लोरिक एदे आगेन मालिन दाई ।
मल्लिन दाई आ गेन बेटा।
लोरिक अच्छाच घर बनाय हस वो।
मल्लिन दाई त ग।
लोरिक चिनता से चतुराई घटे ।
मल्लिन दाई दुख से घटे सरीर ।
लोरिक पाप से लछमी घटे।
मल्लिन दाई कह गए दास कबीर।
लोरिक तोर गैया बछरू ल फूंकना हे ?
मल्लिन दाई हं बेटा।
लोरिक अउ फूंके बर भभूत... भभूत मिलही ?
मल्लिन दाई मिलही।
लोरिक नरियर ।
मल्लिन दाई मिलही।
लोरिक सुखबती ?
मल्लिन दाई उहीच ह कोन जनी ग होही कि नी होही पता लगाय लगही ।
लोरिक पता लगाना हे कोन ल ?
मल्लिन दाई सुखबती ल।
लोरिक कते सुखबती ल ?
मल्लिन दाई तंय कते सुखबती ल कथस ?
लोरिक अरे पूजा बरे के बेर जलाथे तेला।
मल्लिन दाई दूर्रे गड़ेला ओला सुखबती कथे रे ?
लोरिक त वो ?
मल्लिन दाई वोला उपबत्ती कथे रे।
लोरिक य ह ह ह मय उही ल सुखबती काहत रेहेंव ।
मल्लिन दाई हां मय लानत हंव।
लोरिक नरियर अउ बाकी सब ल ला ।
मल्लिन दाई हव
लोरिक एदे चूलहा म राख हे दाई।
मल्लिन दाई। हां एदे अगरबत्ती नई हे राख म फूंक ये मढ़ा बेटा येदे फिरयादी मढ़ाय हंव।
लोरिक तंहीच त मोला फूंके बर बलाय हस.... जय।
मल्लिन दाई जय।
लोरिक है।
मल्लिन दाई है।
लोरिक कोन ह ?
मल्लिन दाई तोर बबा ह पूछत हस त बतात हंव।
लोरिक चुप डोकरी।
मल्लिन दाई सवाल के जवाब देवत हंव।
लोरिक मजाक करत हस बला लेहस अउ ?
मल्लिन दाई मजाक नई दिल्लगी।
लोरिक हां अउ मे काहत रेहेंव दाई।
मल्लिन दाई कइसे काहत रेहे ते।
लोरिक हमन राउत ठेठवार के जात आन।
मल्लिन दाई हव।
लोरिक आज लोरिक के खाना ईहींचे रखथे दाई ।
मल्लिन दाई अइसे।
लोरिक तुंहर घर बईगा बन के आय हंव त।
मल्लिन दाई हां शुक्रिया अदा हे बेटा।
लोरिक जय जय जय काली काली महाकाली ।
मल्लिन दाई ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालनी दुर्गा छमा सिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।
लोरिक चुप रे।
मल्लिन दाई आंय मोला केहे ग।
लोरिक मंतर म केहेंव मंतर में ।
मल्लिन दाई अच्छा मंतर म केहे कोई बात नही ।
लोरिक अरे.... जय महा माई मोर महांवर तोर ।
मल्लिन दाई जय महामाई मोर मोहबा तोर ।
लोरिक मल्लिन दाई के आंखी ल फोर ।
मल्लिन दाई अहा त मोरे आंखी ल फोरे बर बलाय हंव रे ते दुसरा के आंखी ल ?
लोरिक नजर काकर से लगे हे ।
मल्लिन दाई अरे दूसरा के नजर लगे हे मोरे घर बर मिही लगाहूं रे ?
लोरिक त तोर नजर दुसरा घर बर लगथे ।
मल्लिन दाई बखत बेरा में।
लोरिक अइसे ह ह ह... ठीक हे वो।
लोरिक डूमर के दीदी परेतिन वो।
मल्लिन दाई डूमर के दीदी परेतिन वो।
लोरिक बोईर के बहिनी चुरैलिन तोर।
मल्लिन दाई बोईर के बहिनी चुरैलिन तोर।
लोरिक अरे संबलपुर समलाई वो।
मल्लिन दाई अरे संबलपुर समलाई वो।
लोरिक त हो तो गे।
मल्लिन दाई फूंक डरे ग।
लोरिक नहीं बांचे हे।
मल्लिन दाई टार रे चंडाल मोर वहा बिहाव याद आगे ।
लोरिक अच्छा वो जमाना म एकदम डान्सरे रेहे का वो ?
मल्लिन दाई मय डान्सर रेहेंव बेटा तोर बबा तबलची रीहीसे।
लोरिक हं.. ।
मल्लिन दाई अरे तोर ममा चिकारा रेते।
लोरिक ये आ गेन दई फूंकना हे ।
मल्लिन दाई हव बेटा
लोरिक आ.. आ.. आ.. हई ।
आ.. आ.. आ.. हई ।
मल्लिन दाई (मालिन दाई गाय की रंभाने की आवाज निकालती है)।
लोरिक तंय नरियात हस का डोकरी
मल्लिन दाई कहिंयाय मे नरियाहूं रे बछरू हरे बेटा भूखाय ह त नरियात हे।
लोरिक डोकरी भुखाय हे त नरियात हे कथे ।
मल्लिन दाई डोकरी नी भुखाय हे मय तो गोंहें गोंहें ल खाय हवं।
लोरिक आ आ हई ।
मल्लिन दाई (गाय की आवाज निकालती है )
लोरिक अब पता चलिस दाई
मल्लिन दाई हां चलिस न
लोरिक कि लोरिक ल काबर बला के लाथे तेहा जोन डोकरी ल फूंक दिस ।
मल्लिन दाई फूंक दिस।
लोरिक बरोबर नरियाय ल धर लेथे
मल्लिन दाई गाय ल फुंके ल कथंव कि बछरू ल फूंके ल कथंव कि डोकरी ल फूंके ल कथंव।
लोरिक अरे आ जा बेटा अरे आ आ आ।
मल्लिन दाई (फिर गाय की आवाज)।
लोरिक मोला तो अइसे लागत हे डोकरी पहिली पड़वा जनम धरत रहीस तइसे।
मल्लिन दाई अब मनखे जनम धर डरीस।
लोरिक त तिंही ह तो नरियात हस का वो ।
मल्लिन दाई कहिं आय मे नरियाहूं ? चंडाल बछरू हरे बेटा भुखाय हे त नरियात हे रे।
लोरिक हां सवा दू बज गे डोकरी भुखाय हे त नरियात हे काहत हे।
लोरिक (गीत) मोरे निदुरी के गईया...।
रागी गईया ए वो।
लोरिक एदे कहां हे बछुरिया...।
रागी बछुरिया ए वो।
लोरिक ये दे लोरिक राहय तोन...।
रागी राहय ए तोन
लोरिक काला काहंव मेहा संगी।
रागी काहय तोर।
लोरिक जउने समय कर बेरिया म कहां हावय मोर गईया...
रागी गईया ए तोर अउ जा दिन बोले मोर चंदैनी मोर बरिगना ए वो।
चंदा (ए दउड़त पठउहां ले ओदे निकलगे) मे कथंव माईलोगिन के जात एके झन का रही सकहूं दई अईसे कहिके महू जाके के देखंथव त ए दे महरतारी बेटा तुमन गोठियात खड़े हाबो अउ कोठा म गाय हे न बछरू।
मल्लिन दाई अउ तंय कतिक बेर के आय हस वो ?
चंदा मोला एक घंटा होगीस होही।
मल्लिन दाई कस रे तोला गाड़व मोर गाय बछरू ल कहां खेद देस वो ?
चंदा ये डोकरी के चल गेहे का वो अलकरहा गोठियाथे येहा ।
मल्लिन दाई (रोते हुए) मय अईसन दुख ल नई जाने रतेव बेटा मोर गाय बछरू ल देखे नई हंव।
चंदा ए कइसे होगे वो ये काबर रोवत हे।
मल्लिन दाई (रोते हुए) बेटा।
चंदा चुप दाई चुप मत रो खोइलन चुप चुप ।
मल्लिन दाई मोर गाय बछरू ल कहां खेद के मड़ा दे हस चंदा ?
चंदा अई मय नी खेदे हंव दाई तंय काबर रोवत हस या ?
मल्लिन दाई मय कहां कहां फंस गेव तोर फंदा ।
चंदा चल डोकरी मय तोला पहाटिया ल बलाय बर भेजे हंव कि अईसने रोय बर भेजे हंव।
मल्लिन दाई त मे रोवत हंव रे तोला गाड़ंव मय तोर ढाड़हर कूटत हंव।
चंदा हाय पहाटिया मत जाने कहिके त उही ल पहिली नी बताते ।
मल्लिन दाई हिसाब लगाके खेलबे पासा ल।
चंद हव दाई ।
मल्लिन दाई मोर नाम झन लेबे एक तो बड़ मुसकिल म लाने हंव ।
चंदा नई लेंव तंय फिकर झन कर ओकर बर ।
लोरिक कोन ल काला ?
मल्लिन दाई (रोते हुए) मय अइसन दुख ल नई जाने रहितेंव बेटा मय का करि डारंव लोरिक ।
लोरिक त अभी त फुसुर फुसुर गोठियात रेहे डोकरी।
मल्लिन दाई काला फुसुर फुसुर गोठियाहूं बेटा, मय मरत हंव अपन दुख के मारे तोला गाड़ंव अउ मोला कथस चुप रा दाई चुप रा।
लोरिक सही बात ए दाई पांच सेर मुहर डार के तंय गाय बछरू लाय रेहे, ए कोठा के राचर ल खोल दिस त भगागे।
मल्लिन दाई हव हव बेटा गाय बछरू भगागे।
लोरिक राजा के हाथी अउ रानी के कुकरी कथे दाई ।
मल्लिन दाई कुकरी कथे।
लोरिक हमर से अगर गलती होतिस त उही बड़े मन का करतिस ।
मल्लिन दाई अरे चार झन में बलातिस अउ हलाकान करतिस जतका के नी गंवाय हे गाय बछरू ततका के नुसकानी लेतिस ।
लोरिक दाई ए तोर पांव पकड़ के माफी मांगे ल लगही चंदा ल, अरे ए चंदा... ।
चंदा हां लोरिक।
लोरिक पांव पर मल्लिन दाई के माफी मांग ।
चंदा दाई मय तोर कोठा म आय रेहेंव गाय बछरू ह भागिस अउ नी भागिस तभो पांव पर के आसीरवाद मांगत हंव।
मल्लिन दाई हव तोर पांव परे ले मय अधरे अधर जाहूं वो ।
लोरिक पांव पर पांव पर।
चंदा टार तोर रोना ल पारंव रे कुबरी डोकरी मार डारंव तोर खटिया म तोर मुरदा निकालंव तेहा ।
लोरिक पांव परत ल लात नी मारे डोकरी, ल एती चल वो पांव पर।
चंदा एदे अईसने परे रतेंव त का होतिस ।
मल्लिन दाई ले खुसी रा।
लोरिक ला ओ गोड़ ल दे ।
मल्लिन दाई त ओ गोड़ ल छोड़।
लोरिक टांग न वो ।
मल्लिन दाई अई त ओला मड़ा ना रे ।
लोरिक हूंन्न्न्न... जानथे इही गाय बछरू अरे त ते काबर बलाय रेहे या ?
चंदा पहाटिया तंय बजार जाके माखुर ल पी के भकवागे रेहे हस।
लोरिक हूं हूं ।
चंदा तोला कहीं चेत सुरता नी रहीस हाबे बजरहिन मन आके मोला बताथे त मे कथंव मल्लिन दाई ल जा के देखे बर भेजे रेहेंव।
लोरिक मे ह तोला गाय होही कथंव रे बछिया ह ह ह ह कोठा म त तय लुकाय हस।
चंदा त मय ह बलाय हंव त नी लुकाहूं ?
लोरिक कम चालू हे ये, डोकरी।
चंदा तंय होबे चालू।
लोरिक त काबर बलाय हस त ?
चंदा ह त तोर हमर मुलाकात बड़ दिन म होईस हाबे नहीं दुखे सुखे गोठिया लेबो बता लेबो अईसे कहिके तोला बलाय हंव या।
लोरिक चंदा मोला गैया दूहे ल परही गोबर कचरा करे ल लगही मोर बहुत अकन काम हे या मय जात हंव।
चंदा ओ बात तो सही बात हरे चल आय हस त एक कनिक पासा पाली खेलबो तहान चल देबे या ।
लोरिक चंदा ये पासा पाली तो तोर असन बड़े आदमी के हरे हमर असन राउत ठेठवार के मन कहां वो।
चंदा अई त बताय से सबो जानथे या ।
लोरिक कइसे ?
चंदा। एमे एक से लेकर अट्ठारा तक नंबर रथे ।
लोरिक का का नंबर ?
चंदा एक दू तीन चार पांच छै सात आठ नौ दस ग्यारा कच्चे बारा पै बारा चौदा पन्दरा सोला सतरा अठारा।
लोरिक अईसे चल मड़ा तो।
चंदा चल।
लोरिक (गीत के साथ बीच बीच में संवाद) मोर खेलत हे पासा।
रागी खेलय वो।
चंदा ए तीन अउ तीन छै।
लोरिक लोरिक चंदा वो...
रागी राहय तोर।
लोरिक मल्लिन के घर में।
रागी राहय तोर।
लोरिक पासा खेलत हे।
रागी खेलय तोर।
लोरिक देखत हे मल्लिन।
रागी देखय तोर।
लोरिक बने होगे बेटा काहत हे बैरी।
चंदा ए कच्चे बारा।
रागी ए जही समय कर बेरिया म ग काला कांहव मैं संइया... मोर चलत हे पासा... काला काहंव मय संगी... ए जउने समय कर बेरिया म काला काहंव मय ह संगी।
चंदा पहाटिया ।
लोरिक हं ।
चंदा अभी हमन हंसी ठट्ठा म खेलत हवन पासा-पाली खेले बर घला परघौनी लागत हे या चल एक पाली दांव लगा के खेल लेतेन?
लोरिक का लगा के ?
चंदा दांव लगा के।
लोरिक चंदा दांव काला लगाबो बताबे तब तो ?
चंदा मे कहूं तेला दांव लगाबे ना पईसा कौड़ी घलो नी लागय या।
लोरिक कईसे ले बता।
चंदा अगर ए पासा पाली में तें कोनो जीत जाबे निही त बारा साल बर ए सहर ल छोड़ के तेंहा दूसरा सहर में मोला लेग, जाबे अउ मे जीत जाहूं त तोला लेग जाहूं।
लोरिक त एके त होईस का वो ?
चंदा कईसे एकेच हो जही ?
लोरिक ते जीते ते लेगे में जितेंव में लेगेंव त तिहीच।
चंदा बिचार अलग अलग हे।
लोरिक अगर ये पासा हन खेलत हमन ल हमर रउताईन दौनामांझर मही बेचत बेचत आ जही अउ तोर संग मोला पासा खेलत देख डरही तब का होही ?
चंदा अई हाय.. मोला डर हावय त तुंहर घर के पहाटनिन के त कहां खेलबो ?
लोरिक डोकरी घर के कोठा म एकर जठा पासा पाली ल.. ए मल्लिन दाई... ।
मल्लिन दाई हं बेटा।
लोरिक ते ए मोहाटी म बईठे रहा मुड़ी कोरे के ओखी, हमर रउतईन आही त नई जानो कहि देबे।
मल्लिन दाई तंय ओकर बर फिकर झन कर बेटा।
लोरिक अईसे ।
मल्लिन दाई मय बइठे हंव मोहाटी मे।
लोरिक ठीक हे दाई।
दौनामांझर अई ए देखे या हमर घर के पहाटिया ल देख ओ सुबे कुन के गे हे दस ग्यारा बजे के बजार गेहे दई, अउ याहा दे चार पांच ह बजगे ए देख अतेक बेर के आय नी तेला, उही बात ल पहाटिया ल कथंव त मोला एकक ठन मोला खिसियात रथस पहाटनिन अइसे कहिके मोला गारी देथे दई, अउ पहाटनिन घलो कईसे नी खिसियाबे ग काकर घर जाके बईठे होही दई बने बीड़ी माखुर पियत बईठ गे होही दई, घर मे साग पान बर ला दे रहीतिस, महू ल आय साल भर होगे आज तक काकरो घर गे नई हंव कदे गली अउ कदे खोर तेला बने असन जानव नही काकर घर बलाय ल जाहूं या।
मल्लिन दाई देखव रे बेटा बेटी हो दांव लगाके खेलहू पासा ल।
लोरिक ठीक हे दाई ।
दौनामांझर इही तीर म दीदी रथे भांठो बजार गे रीहीस होही कहिं त बताबेच करही दाई, जाथंव ओकरे घर... दीदी ए दीदी हावस का या ।
भांटो कोन ए वो ?
दौनामांझर अई रोगहा कुकुर ह मोहाटी म बईठे हे दई हबक दे अभी या।
कुकुर ल हांक पारत हस के तोर दीदी ल हांक पारत हस ?
दौनामांझर अई भांटो ते हस का ग ?
भांटो काये कईसे आय हस ?
दौनामांझर अई बजार हाट गे रेहे होबे त हमर घर के पहाटिया ल देखे होबे का कहिक
This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.
रामाधार साहू द्वारा नचा शैली में लोरिक चंदा की कथा प्रस्तुति
चंदैनी – प्रस्तुतिकरण
हिंदी अनुवाद
| लोरिक | लोरिक हाथ में तेन्दू की लाठी, नौ हाथ की पगड़ी बांधे, ‘सेमर धरे’ (सेमल की रूई और चकमक पत्थर लिए) कम्बल और ‘खुमरी’ (बांस और पत्तों से बनी टोपी जिसे चरवाहे पहनते हैं)। ओढ़े, बाजार की ओर चलने लगा। | 
| रागी | साथी....। | 
| लोरिक | अभी गाय-बैलों को छोड़ देता हूं, फिर जाऊंगा बाजार । (लोरिक के सारे गाय बैल सब इधर-उधर फैले हुए हैं) | 
| लोरिक | चल रहा है राउत। | 
| रागी | राउत है जी। | 
| लोरिक | कम्बल और खुमरी। | 
| रागी | लेकर जा रहा है। | 
| लोरिक | तेन्दू के लकड़ी की। | 
| रागी | जा रहा है। | 
| लोरिक | लाठी पकड़ के। | 
| रागी | जा रहा है। | 
| लोरिक | हो रे हो रे। | 
| रागी | कह रहा है। | 
| लोरिक | लोरिक कह रहा है। | 
| रागी | कह रहा है। | 
| लोरिक | गायें हांक रहा है। | 
| रागी | हांक रहा है। | 
| लोरिक | उस समय की बात है, जा रहा है लोरिक । | 
| रागी | जा रहा है। | 
| लोरिक | क्या बताऊं मैं साथी। | 
| रागी | कह रहा है। | 
| लोरिक | और उस समय चंदा का रूप, चांद की तरह चमक रहा है। | 
| लोरिक | लोरिक की गायें फैली हुई है, लोरिक खुमरी ओढ़ा हुआ है, गायों को हांक रह है, हां रे हं रे हां। | 
| (बांसुरी की एक लम्बी तान के बाद संवाद) | |
| लोरिक | चलो दस के ग्यारह-बारह बज गए हैं, अब मुझे जाना है बाजार... मेरी पत्नी ‘पहाटनिन’ (गाय बैलों की देखरेख करने वाले राउत की पत्नी) दौनामांझर मेरा इंतजार कर रही होगी, गाय बैल सब फैला देता हूं, फिर चला जाता हूं, ये पहुंच ही गया घर, अरे पहाटनिन... ओ दौनामांझर, लोरिक की आहट पाकर दौनामांझर घर के अंदर से कह रही है। | 
| गीत :– | |
| लोरिक | लग रहा है उसके भैया है़। | 
| रागी | लग रहें हैं। | 
| लोरिक | साड़ी पहन रही है। | 
| रागी | साड़ी है रे। | 
| लोरिक | क्या बताऊं मेरे साथी। | 
| रागी | दौनामांझर दीदी है जो। | 
| लोरिक | पहन रही है साड़ी। | 
| रागी | साड़ी है रे। | 
| लोरिक | क्या बताऊं मेरे साथी। | 
| रागी | साथी है रे। | 
| लोरिक | अरे पेटीकोट पहनना तो भूल ही गई, अरे पेटी मास्टर देखो मेरा पेटीकोट वहां पर है क्या ? | 
| पेटीमास्टर | लो ऊपर ही पहन लो। | 
| लोरिक | कह रहा है बैरी। | 
| रागी | कह रहा है। | 
| लोरिक | दौनामांझर दीदी है जो। | 
| लोरिक | कह रहा है जो। | 
| लोरिक | अरे लपेट-लपेट कर साड़ी पहन रही है । | 
| रागी | दौनामांझर दीदी... और उस समय चंदा का रूप चांद की तरह चमक रहा है। (गीत समाप्त) | 
| लोरिक | पढ़ने लिखने वाली लड़कियां जब नदी नाले में नहाने जाती है तो शरीर का केवल कुछ ही हिस्सा दिखता है समझे ढोलक मास्टर। | 
| ढोलक मास्टर | क्यों बचाती हैं ? | 
| लोरिक | तम पूछोगे कहकर। | 
| ढोलक मास्टर | नहीं जानते तो नहीं पूछेंगे ? | 
| लोरिक | और शादी के बाद जब ससुराल जाती है तो पूरा सिर ढंककर रहती है, भगवान की देन तो है, कहीं साल दो साल में बच्चे हो जाए तो उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगता... ये... ह.. दे अउ बहुत ही उं। | 
| दौनामांझर | मेरे ससुर जी आते होंगें, वो खांसने की आवाज उन्हीं की लगती है, अरे ये तो मेरे ससुर जैसे लग रहें हैं। | 
| (ससुर के खांसने की आवाज) | |
| दौनामांझर | अरे ससुर जी.. पाय लागी। | 
| ससुर | खुश रहो बेटी खुश रहो... बहू ? | 
| दौनामांझर | अरे क्या है जी ? | 
| ससुर | बाबू आ गया क्या बेटी ? | 
| दौनामांझर | हां हां वो राउत को पूछ रहे हो क्या ? | 
| ससुर | हां हां उसी को पूछ रहा हूं। | 
| दौनामांझर | गाय चराने जा रहा हूं कह रहे थे। | 
| ससुर | हां हां उसे ही पूछ रहा हूं1 | 
| दौना | आप बाजार जाएंगे तो वैसे ही लाना। | 
| ससुर | अच्छा परान्दा ? | 
| दौना | ऐसा बोलती हूं, तो वैसा सुनते हैं, जाओ आप भोन्दू हो (सिर पर कंघी चलाने जैसा अभिनय करती है ) ऐसा बोल रही हूं। | 
| ससुर | कंघी बोल रही हो ? | 
| दौनामांझर | हां अब समझे भोन्दू। | 
| ससुर | अच्छा हां मैं मंगा दूंगा बेटी लो मैं चलता हूं। | 
| दौना | हां हां। | 
| ससुर | और हां सुनो एक काम करना घर में मठा रखा है बड़े बर्तन में, उसके लिए एक दर्जन अंडा ले आना और बढ़िया खट्टा चटपटा बना देना। | 
| दौना | अरे अंडे को मट्ठे में नहीं बनाते अंडे को कढ़ाई में बनाते हैं। | 
| ससुर | मैं मट्ठे में बनाते होंगे सोच रहा था। | 
| दौनामांझर | चलो मैं जा रही हूं । | 
| ससुर | हां मेरी मां जा। | 
| (ससुर जी का मंच में एक चक्कर लगाने के बाद) | |
| ससुर | वाह भगवान मोहल्ले में इतनी बहुएं आई है लेकिन मेरी बहू जैसी कोई नहीं है बाबा वाह रे तकदीर अभी, आठ-पन्द्रह दिन ही हुए हैं इसे लिवा कर लाए और मुझे भोंदू कह रही हैं। | 
| व्यक्ति | जाओ एक दफड़ा (बड़ी डफली ) ले लो और यहां से वहां तक बजाते हुए आओ और कहो मेरी बहू जैसी किसी की बहू नहीं है। | 
| ससुर | देखा इसके तानों को तो सुनो लोंगों... मेरी बहू मुझे भोंदू बोलती है, उसको बता रहा हूं तो मुझे ताना मार रहा है। | 
| व्यक्ति | बहुत इतराते तो थे बुढ़उ मेरी बहू जैसी कोई नहीं है कोई नहीं है... चाल चलन में कोई नहीं है,रंग रूप में भी कोई नहीं, कोई है ही नहीं। | 
| ससुर | क्या कम है ? | 
| व्यक्ति | अभी पन्द्रह दिन भी नहीं हुए हैं बुढ़उ तुम्हारी बहू को आए हुए, और तुम भोंदू हो गए। | 
| ससुर | ओ हो हो... तुम बड़े होशियार हो गए मेरी बहू मुझे भोंदू कहती है बता रहा हूं तो फैसला करने आ गए... कौन नहीं बोलता होगा अपने घर के बारे में और तुम पटर –पटर बोल रहे हो। | 
| व्यक्ति | ऐसे में ही तो तुमको तुम्हारे बेटे-बहू पसंद नहीं करते। | 
| ससुर | हां हां सही बात है बाबा, यही तो बात है जो मुझे मेरे बेटे बहू पसंद नहीं करते। | 
| व्यक्ति | हम ही हैं जो तुम्हें पसंद करते हैं तब तुम्हारी गति है। | 
| ससुर | हां नहीं तो सत्रह गति हो जाती क्योंकि तुम्हारे भरोसे तो जी रहा हूं। | 
| व्यक्ति | देखो तो बुढ़उ को जली बीड़ी भी नसीब नहीं होती और देख लो इसके लक्षण। | 
| ससुर | हां मेरे बाप मैं तो जली बीड़ी को भी तरसता हूं तुम मुझे कट्टा का कट्टा लाकर देते हो। | 
| व्यक्ति | ठाकुर लोगों का खा खाकर तो तुम्हारे दिन निकल रहें हैं। | 
| ससुर | हां, नहीं तो मैं भूखा मर रहा था। | 
| व्यक्ति | कितना करने पर भी नमक नहीं लगा। | 
| ससुर | थोड़ा ज्यादा डाला करो नमक तब लगेगा नमक... नहीं तो नहीं लगेगा। | 
| व्यक्ति | चलो ये बात में पानी पड़ने दो बुढ़ऊ। | 
| ससुर | क्यों पानी पड़ने देंगे ? | 
| व्यक्ति | अरे तुम नाराज हो गए क्या बाबा ? | 
| ससुर | तो नहीं होऊंगा ? | 
| व्यक्ति | बड़े बूढ़े हो तो तुम्हारे साथ हंसी मजाक कर लेते हैं तुमसे नहीं करेंगे तो और किस से करेंगे ? | 
| ससुर | अच्छा तो तुम लोग मुझसे मजाक कर रहे हो मुझ बूढ़े को भड़का रहे हो ? | 
| व्यक्ति | तुम्हारे कपड़ो को देखता हूं ना बाबा। | 
| ससुर | हां। | 
| व्यक्ति | तो मुझे गांधी बाबा की याद आती है। | 
| ससुर | हां तो मैं उसी जमाने का आदमी तो हूं। | 
| व्यक्ति | तुम कैसे बच गए जी ? | 
| ससुर | अरे अच्छे ही बचे हम अपनी अक्ल के प्रताप से बच गए, जब हम गांधी जी के साथ लड़ाई में गए थे तब अंग्रेजों की गोलियां छूटी तो जो हम आगे थे तो फिर पीछे हो गए। | 
| व्यक्ति | तो क्या काम के हो। | 
| ससुर | अरे जो पीछे नहीं होता तो आज जान कैसे बचती आगे हो जाता तो अंग्रेज ठोक ना देते। | 
| व्यक्ति | और सबसे बढ़िया तुम्हारी दाढ़ी दिखती है बुढ़ऊ। | 
| ससुर | अच्छा। | 
| व्यक्ति | तुम्हारी दाढ़ी एैसी दिखती है कि। | 
| ससुर | कैसी दिखती है मेरे बाप ? | 
| व्यक्ति | जैसे गांव वाले आपको ठाकुर देव में बकरा जैसे छोड़ दिए हैं। | 
| ससुर | हां सही बात है भाई गांव वालों ने ऐसा ही किया है क्योंकि पूरे गांव में कोई बकरा मिला नहीं तो थक-हार कर मुझे ही ले गए, जो मुंह में आए बोलते हो चंडाल कहीं के, चलो अब जाने का समय हो गया बेटा भी बोलता होगा इतनी देर हो गई पिताजी अब तक नहीं आए, अब क्या करूं गुस्सा होगा तो भी दो बातें बोलेगा तो भी बेटा ही तो है। | 
| 
 | ( व्यक्ति चला जाता है, और लोरिक का मंच में प्रवेश) | 
| लोरिक | पिता जी। | 
| पिता जी | अरे बेटा जाओ ना बाजार का दिन है सुबह ही जाकर आ जाते। | 
| लोरिक | ठीक हे पिता जी मैं जा रहा हूं बाजार। | 
| पिता जी | हां। | 
| लोरिक | और हां शाम हो जाएगी तो आप गाय बछड़ों को बांध देना। | 
| पिता जी | हां हो जाएगा बेटा। | 
| लोरिक | हम दोनों बाप-बेटा में सामंजस्य रहेगा न पिता जी। | 
| पिता जी | हां बेटा। | 
| लोरिक | तो इस पेट का पानी हिलेगा नहीं। | 
| पिता जी | नहीं हिलेगा बेटा नहीं हिलेगा। | 
| लोरिक | इसी साल आपको पितर (पितृ-पक्ष) में मिला दूंगा पिताजी। | 
| पिता जी | कौन जीते जी पितर (पितृ–पक्ष) मिलाता है रे ? | 
| लोरिक | नहीं बनेगा क्या जी ? | 
| पिता जी | ऊटपटांग बोलते हो। | 
| लोरिक | तो चलो बाद में जब मरोगे तब मिला देंगे। | 
| पिता जी | हां वह तो मिलाओगे ही। | 
| लोरिक | हां चलो ठीक है। | 
| पिता जी | और देखो चोंगी तंबाकू मत भूल जाना। | 
| लोरिक | हां हां। | 
| पिता जी | और बनेगा तो वो भी लेते आना। | 
| लोरिक | हां हट जाओ पिताजी जा रहे हैं। | 
| ढोलक मास्टर | हट जाओ उसके पिताजी के लिए रास्ता छोटा पड़ रहा है। | 
| 
 | गीत | 
| लोरिक | चल रहा है बैरी। | 
| रागी | जा रहा है। | 
| लोरिक | क्या कह रहा है राउत। | 
| रागी | कह रहा है जी। | 
| लोरिक | धीरे धीरे के बाजार के रास्ते। | 
| रागी | जा रहा है। | 
| लोरिक | जा रहा है राउत। | 
| रागी | जा रहा है जी। | 
| लोरिक | उस समय की बात है चल रहा लोरिक। | 
| रागी | क्या बताऊं मैं साथी.. उस समय की बात है चल रहा भैया... क्या बताऊं मैं वो जा रहा है। (गीत समाप्त) | 
| लोरिक | बारापाली का बाजार लगा हुआ है, और गौरा शहर के बाजार में और लोरिक की जैसी आदत है तंबाकू चोंगा पीने की, पान खाने की, वह तंबाकू की दुकान में जाकर पूछने लगा कि भैया दुकान वाले तंबाकू है क्या ? | 
| दुकानदार | है ना जी। | 
| 
 | (अब लोरिक तंबाकू पीने लगा और इतना कि उसे बहुत नशा हो गया था, उससे बोलते-चलते भी नहीं बन रहा था तो वहीं बैठ गया उसी समय बारापाली बाजार की बाजार जाने वाली युवतियां आ रही है।) | 
| लोरिक | वो आ रही बाजार में युवतियां। | 
| मुन्नी | हाय देखो तो बारह एक बजने को है मां ने बाजार जाने को कहा था बाजार से सब्जी भाजी और जरूरत का सामान लाने को कहा था और देखो तो बाजार जाने को कोई साथी सहेली है भी या नहीं कोई नहीं दिख रही है किससे कहूं, देखूं तो रेखा के घर जाकर बोल कर देखती हूं, रेखा... ओ रेखा, हो कि नहीं ? | 
| रेखा | क्या है दीदी क्या हुआ ? | 
| मुन्नी | चल ना बाजार जाएंगे। | 
| रेखा | अरे बाजार जा रही हो, हां चलो मैं भी यही देख रही थी कि कोई साथ मिल जाए तो जाऊं | 
| मुन्नी | चल अब हम दोनों साथ हो गए हैं चल चलते हैं। | 
| रेखा | हां चलो। | 
| मुन्नी | ओ रेखा मेरी ओर सुन तो रे ? | 
| रेखा | क्या दीदी क्या है ? | 
| मुन्नी | मैं जब नहाने गई थी ना तालाब तो मुझे सातो ने कहा था बाजार जाओगी ना दीदी तो मुझे भी बताना मैं भी साथ चलूंगी उसके घर होते हुए चलते हैं थोड़ा उसे भी अपने साथ ले लेते। | 
| रेखा | हां चलो ना दीदी उसका घर तो रास्ते में ही है चलो। | 
| मुन्नी | अरे इसके घर का दरवाजा तो बंद है। | 
| रेखा | अंदर होगी चलो आओ। | 
| मुन्नी | हां अंदर होगी चल आ देखते हैं। | 
| रेखा | (जोर से आवाज लगाती ) सातो....। | 
| सातो | अरे क्या है बता तो ? | 
| रेखा | मेरी ओर आ तो। | 
| सातो | अरे क्या है ? | 
| मुन्नी | बाजार जाओगी क्या ? | 
| सातो | अरे बाजार जा रहे हो ? | 
| मुन्नी | हां। | 
| सातो | बाजार जाने के लिए मैं भी सहेली ढूंढ रही थी। | 
| मुन्नी | लो चलो। | 
| रेखा | मुन्नी बताई तो हम तुझे बुला रही हैं। | 
| मुन्नी | तू मुझे मिली थी ना तालाब में और तूने कहा था कि बाजार जाएंगे। | 
| सातो | हां बहुत अच्छा किया दीदी जो आवाज़ दी तो। | 
| मुन्नी | हां चलो जाऊंगी कह रही है रेखा चलो जायेंगे चलो बहनों चलो। | 
| 
 | (संगीत) | 
| सातो | कसम ईमान से दीदी कितना सुंदर लग रहा है सब मिल जुलकर बाजार जा रहे हैं तो। | 
| मुन्नी | बहनों जब सब ऐसे ही मिलजुल कर बातचीत करते कहीं भी आते-जाते हैं तो कितना भी दूर हो रास्ता चलते चलते रास्ते का पता ही नहीं चलता। | 
| रेखा | चलो चलते चलते बतियाते हुए जाऐंगे चलो। | 
| मुन्नी | बहुत देर हो गई माँ । | 
| राहगीर | तुम लोग कौन हो कहां जा रहे हो ? | 
| सातो | बाजार जाने वाले तो है जी बाजार करने जा रहें हैं ? | 
| राहगीर | तो क्या बाजार ऐसे ही जा रहे हो खाली हाथ हिलाते हुए , थैला-वैला कुछ भी नहीं है। | 
| मुन्नी | अरे वैसी बात नहीं है हमारे घर में नया थैला था उसमें टमाटर बैगन रखे थे तो चूहे ने थैले को कुतर दिया तो मैंने सोचा फटे थैले को बाजार ले जाने से अच्छा बाजार तो जा ही रही हूं, तो वहां से थैला भी खरीद लूंगी और उसमें सब्जी भी ले लूंगी चलो चलो। | 
| रेखा | ये चूड़ी पहनूंगी कह रही है है न ? | 
| राहगीर | किसके नाम की पहनोगी ? | 
| राहगीर | क्या नाम है तुम्हारा ? | 
| रेखा | तुम्हारा नाम पूछ रहा है। | 
| सातो | मेरा नाम तो सातो है भैया। | 
| राहगीर | बहुत अच्छा नाम है सातो। | 
| सातो | अरे क्या भैया बता तो। | 
| राहगीर | बाजार जा रही हो तो थैला लेकर जाते ना, तुम लोग खाली हाथ क्यों जा रही हो। | 
| सातो | अरे लगता है तुमने सुना नहीं है, खाली हाथ जा रहे हैं कह रहें हो थैले को चूहों ने कुतर दिया है बता रहे हैं... लगता है बहरा ही है। | 
| मुन्नी | अरे हम लोग सब्जी-भाजी लेने थोड़ी जा रहे हैं। | 
| राहगीर | तो क्यों जा रही हो ? | 
| रेखा | हम तो चूड़ी, कंगन, नथनी, झूमके पहनने जा रही हैं। | 
| राहगीर | अच्छा तुम रउतईन हो (राउत/यादव का स्त्रीलिंग) क्या नोनी ? | 
| रेखा | हां रउतईन हूं। | 
| राहगीर | मैं कैसे जान गया ? | 
| रेखा | अरे उसे तुम जानो कि तुम कैसे जान गए ? | 
| राहगीर | तुम्हारे पहनावे से क्योंकि तुम्हारा ब्लाउज एकदम मटमैला जैसा दिख रहा है। | 
| रेखा | हां क्या करूं भैया रउताईन की जात हूं पानी बर्तन, गोबर कचरा, फेंकना होता है तो पोछ नहीं पाती हूं तो इसी में ऐसे ही (हाथ से ब्लाउज को पोछते हुए) ही पोंछ लेती हूं। | 
| राहगीर | कितने ही ऐसे पोंछ डाली हो नोनी। | 
| रेखा | अरे तो कैसे करूंगी पोछते नहीं बनता तो। | 
| राहगीर | और तुम्हारा क्या नाम है ? | 
| रेखा | मेरा नाम रेखा है। | 
| राहगीर | रेखा। | 
| रेखा | क्या है भैया ? | 
| राहगीर | यहां के लोग कितने-कितने समय देखा ? | 
| रेखा | यहां जितने समय आई हूं उस समय से लोग देख रहें है... इसलिए मेरा नाम रेखा है। | 
| राहगीर | तुम्हारा नाम क्या है ? | 
| मुन्नी | मेरा नाम तो मुन्नी है भैया | 
| राहगीर | अरे वाह छोटी सी मुन्नी। | 
| मुन्नी | तुम्हें शर्म नहीं आती छोटी सी मुन्नी बोल रहे हो इतनी बड़ी दिखाई नहीं दे रही हूं, मुन्नी कह रहे हो हटाओ रे चलो इसको दुनिया भर की बातें कर रहा है। | 
| रेखा | मनचले कहीं के बाजार में आओ तो कैसे-कैसे लोग मिल जाते हैं । | 
| 
 | (वाद्य संगीत ) | 
| सातो | अरे हां आज के बाजार को तो देखो कितनी भीड़ भड़ाका है। | 
| मुन्नी | हां सही बात है बहुत भीड़ है दीदी। | 
| सातो | इतनी भीड़ मैंने कभी नहीं देखी थी दीदी। | 
| मुन्नी | एक तो इतने दिनों में आए हैं तो ऐसा लग रहा है बाजार में तो भीड़ होती ही है। | 
| सातो | हां सही बात है। | 
| रेखा | दीदी मेरे पिता जी कहते हैं । | 
| मुन्नी | क्या कहते हैं , तुम्हारे पिता जी ? | 
| रेखा | तुम बाजार जा रही हो तंबाकू पहले लेना, और कुछ लेना हो तो बाद में लेना चलो ना बहनों थोड़ा पहले तम्बाकू की दूकान , तंबाकू ले फिर कुछ और लेने चलेंगे। | 
| मुन्नी | चल न रेखा पहले मनिहारी की दुकान की ओर चलते हैं चूड़ी, झूमके, बालियां, नथनी वगैरह पहन लेते हैं फिर घूमते हुए उस गली से तंबाकू की दुकान में जाऐंगे रे। | 
| सातो | सही बात है रेखा। | 
| रेखा | कैसे सही बात है रे ? | 
| सातो | मैं तालाब गई थी ना तो मेरे कान की बाली कहीं गिर गई रे। | 
| रेखा | हां गुम तो गई है। | 
| सातो | हाथ की चूड़ी भी कम है तो चूड़ी झूमका नथनी पहन लेते फिर लौटते समय सब्जियां लेते हुए ले लेते तुम्हारा पान तम्बाकू। | 
| मुन्नी | हां रे रेखा बेचारी सही तो बोल रही है ,ये चल जाते हैं। | 
| रेखा | दीदी एक रूपये के पान और एक रूपये के तंबाकू के लिए इतनी दूर से घूम के आएंगे कह रही हो उससे अच्छा यही से लेकर चलते तो नहीं बनेगा क्या रे ? | 
| मुन्नी | अरे अरे अरे अच्छा तो तेरी जैसी कोई सहेली हो तो क्या पूछना दो लोग कह रहे हैं तो मान नहीं रही हो अपनी ही बात मनवाती हो तो बन जाएगा क्या रे ? | 
| रेखा | आज मेरी बात मान लोगे तो नहीं बनेगा रे ? | 
| मुन्नी | चल आज तो तेरी बात मान लेते हैं पर आईन्दा बाजार मत आना हमारे साथ। | 
| रेखा | हां तो मत लाना मुझसे झगड़ा कर रहे हो। | 
| 
 | (लोरिक मंच के कोने नशे में बैठे रहता है ) | 
| व्यक्ति 1 | जय श्री कृष्णा। | 
| व्यक्ति 2 | जय श्री कृष्णा। | 
| लोरिक | कैसे मुझे एकदम नशा जैसा लग रहा है यार। | 
| सातो | हाय वो बाजार में तो देखो वो वो देखो न रे। | 
| लोरिक | शाम होगी तो मुझे जगा देना यार मैं थोड़ी देर यहीं बैठा हूं। | 
| दुकानदार | देखो ना यार क्या क्या उगल रहे हो पूरी दुकान तुम्हारे कारण खराब हो गई। | 
| लोरिक | तुम तो अपने आदमी हो यार। | 
| दुकानदार | कौन है तुम्हारा आदमी है भला। | 
| लोरिक | तुम। | 
| दुकानदार | अरे यार देखो इसे उठाकर तालाब के उस पार फेंको कहां कहां से आ जाते हैं पी खाकर इतना पी लिया है कि उठ पा रहा है ना बैठ पा रहा है और कहता है थोड़ा सा ही लिया हूं यार । | 
| मुन्नी | वो नशे की वजह से बोल रहा है तम्बाकू पीकर मदहोश हो गया है। | 
| सातो | और नहीं तो क्या जैसे वह पीने वाला वैसे ही है उसके संगी-साथी, पैसे रहते तक साथ पीए खाए हैं, अब उसके पैसे खत्म हो गए तो उसे फेंकने को कह रहा है। | 
| रेखा | पीने वालों को होश कहां रहता है। | 
| मुन्नी | ऐसे तो संगी-साथी होते हैं। | 
| सातो | तो रे। | 
| रेखा | दीदी मैं सोचती हूं कि यह कौन से गांव का पहाटिया होगा और किस का जोड़ी होगा और यहां पी के मदहोश हो गया है, हां क्या बोल रहा है उसका होश नहीं है इधर उधर लुढ़क रहा है। | 
| सातो | हां ज्यादा नशा हो गया है ना लेकिन मैं इस पहाटिया को देखती हूं ना नशा के कारण इसकी आंखें लाल लाल दिखाई दे रही है | 
| मुन्नी | हां दिख तो रहा है सही बात है रे। | 
| सातो | और उसकी ऐंठी हुई हो भुंजाए और उसका चेहरा तो देखो कितना चमक रहा है। | 
| रेखा | ठीक बात है रे। | 
| मुन्नी | सही बात है यह तो बहुत सुन्दर दिख रहा है। | 
| सातो | सही में जब से इसे देखा है,तब से क्या बताऊं। | 
| मुन्नी | अरे क्या बात है बताना मुझे। | 
| सातो | क्या बताऊं ? | 
| मुन्नी | क्या बात है उसे बताना रे ? | 
| सातो | अरे छोड़ो तुम मेरे मां-बाप को बता दोगी मुझे डर लगता है। | 
| मुन्नी | कभी भी सहेलियां अपने आपस की बात अपने मां-बाप से नहीं बताती आपस की बात होती है नहीं बताएंगे बता ना रे। | 
| सातो | नहीं बताऊंगी दीदी ……. मुझे अगर कोई इस पहाटिया की तरह पति मिला मिलता तो मैं बैठकर उसको ही टुकुर-टुकुर देखती रहती। | 
| रेखा | इसको मैंने जब से देखा है तब से मुझे भी कैसा कैसा लग रहा है क्या बताऊं ? | 
| मुन्नी | अरे अब तुझे कैसा लग रहा है ? | 
| रेखा | मुझे एैसा ही कोई जोड़ी मिल जाता न। | 
| सातो | पहाटिया जैसा। | 
| रेखा | अगर यह मेरा जोड़ी होता तो मैं इस की आरती उतारती दिन-रात इसकी पूजा करती रहती रे। | 
| मुन्नी | सही बात है इतना सुंदर दिख रहा है इसकी कौन ऐसी जोड़ी होगी जिसने इसको ऐसे बाजार भेजा होगा, यदि यह मेरा पति होता तो मैं इसे छांव में बिठाकर गर्म पानी देती गर्म भोजन परोसती और घर से कहीं बाहर जाने नहीं देती ऐसा मेरा मन करता है बहन। | 
| सातो | हां इतना सुंदर जो है। | 
| दुकानदार | अरे लड़कियों ! | 
| सभी | क्या है जी क्या है ? | 
| दुकानदार | तुमको वैसा वैसा लग रहा है। | 
| सभी | हां जी लग तो रहा है। | 
| दुकानदार | ऐसा ही कुछ मुझे भी लग रहा है। | 
| मुन्नी | अरे तुम्हे कैसा लग रहा है ? | 
| दुकानदार | अगर मुझे अगर ऐसा कोई मिलता ना। | 
| सभी | पहाटिया जैसा ? | 
| दुकानदार | हां पहाटिया जैसा, तो धूप से छांव में नहीं लाता। | 
| सभी | हां हां हां हां। | 
| मुन्नी | हां गड़ेला (गिरे हुए आदमी) इसे धूप में बिठा कर मार डालते ऊटपटांग बोल रहे हो। | 
| दुकानदार | तुम लोग बाजार मत आया करो लड़कियों। | 
| सभी | अरे क्यों जी ? | 
| दुकानदार | तुम्हारी आदतें ठीक नहीं है। | 
| सभी | अरे तो क्या हो गया जी ? | 
| दुकानदार | इन लड़कों को देखकर मटकने लगती हो। | 
| मुन्नी | लो जी देख लो गिरे हुए आदमी को खुद ही मटक रहा है और हम लोगों से पहले पहले से बातें कर रहा है और हमको ही कह रहा है। | 
| दुकानदार | कहां के पीए खाए आदमी को पसंद करती हो यह दीदी अम्मा लोगों से पूछो। | 
| सातो | क्या पूछें भैया जी ? | 
| दुकानदार | इनके घर के बाप भाई कोई जो पीते हैं ना तो उसकी वजह से इनके घर धमा चौकड़ी मची है। | 
| मुन्नी | हां यह तो एकदम सही बात है भैया सच कहते हो पीने वालों के कारण धमा चौकड़ी मचती ही है। | 
| रेखा | हां सही है मचा ही रहता है। | 
| दुकानदार | हफ्ते में तीन दिन परघौनी (स्वागत) होती है। | 
| मुन्नी | ये परघौनी क्या होता है जी ? | 
| दुकानदार | तुम कुछ नहीं जानती हो क्या लड़कियों ? | 
| सातो | नहीं जानती है भैया बताओ ना ? | 
| दुकानदार | ये दे दना दन। | 
| रेखा | दनादन ? कैसे रे ये तो मारते हैं उसे परघौनी कह रहा है क्या रे ? | 
| मुन्नी | अरे हटा री मैं तो शादी वाली परघौनी जानती हूं। | 
| सातो / रेखा | हटाओ ,हां मैंने भी वही सुनी है। | 
| मुन्नी | छोड़ो ये क्या दुनिया भर की परघौनी को। | 
| दुकानदार | कहां के नशेड़ी को पसंद कर रखी हो जो पी के उल्टियां कर रहा है, पसंद ही करना है तो हमारे जैसे मूंछ वाले को पसंद करो। | 
| मुन्नी | धत तेरे कहां की काले कलूटे बटेर की तरह दिख रहा है, देखो तो मूंछ तो कोई ठिकाने का नहीं है, दाढ़ी मूंछ के बाल आधे पके हैं आंखें काले हैं और मूंछ पर ताव दे रहा है मर जा तुम्हारे मरने का रोना रोऊं। | 
| सातो 
 
 | चलो हम चलते हैं देखो तो गिरे हुए मंदबुद्धि जैसे दिख रहा है और दिखने में भी काला कलूटा और मूछों पर ताव दे रहा है ये गिरा हुआ आदमी। | 
| दुकानदार | अरे हाड़ मांस को तो ले चलो। | 
| सातो | (दुत्कारते हुए) अरे हट तुझे ले कर जाएंगे। | 
| दुकानदार | अरे चल चल तेरे साथ नहीं जाना है,तुम एकदम गोबर उठाने वाली जैसी दिखती हो। | 
| रेखा | हां जी हम तो गांव के रहने वाले हैं रौताईन हैं गोबर उठाने वाली जैसे दिखते हैं, और तुम तो अनिल कपूर जैसे दिख रहे हो। | 
| दुकानदार | जा भगवान करे तुझे शराबी पति मिले। | 
| रेखा | तेरे कहने से नहीं मिलेगा। | 
| दुकानदार | हफ्ते में छह दिन परघौनी होगा। | 
| रेखा | जा लोग तुझे गाड़ दे गिरे हुए इंसान। | 
| सातो | भैया पहले अपना रंग रूप देख लेते उसके बाद मेरी सहेलियों को जैसा मुंह में आता वैसा बोलते । | 
| दुकानदार | वाह रे चुचरी (बच्चों की तरह अंगूठा चूसने वाली)। | 
| सातो | अरे देखे रे। | 
| दुकानदार | तू अपना देख। | 
| सातो | तो कैसे हमारी भाभियां कहती हैं तो कहती है क्या तुम भी कह दोगे ? | 
| दुकानदार | चालीस साल की हो गई, कोई अब तक आया नहीं देखने,उसे ? | 
| सातो | आएगा कोई तो आएगा ही जवान या तुम्हारे जैसा बूढ़ा। | 
| दुकानदार | वैसा ही मिलेगा शराबी...। | 
| सातो | कैसा भी मिले मिलेगा ही... यह क्या है बीच बाजार में देखो हमें कैसे कैसे बोल रहा है अरे मैं यहीं खड़ी हूं जल्दी जाऊं घर मेरे मां पिता जी भी बोल रहे होंगे कि देखो तो लड़की को सुबह से निकली है और अभी तक घर नहीं आई है इन मनचलों के साथ मैं नहीं लगती जल्दी घर जाती हूं। | 
| 
 | (वाद्य – संगीत के बाद मंच पर चंपी का प्रवेश ) | 
| चंपी | अरे देखो तो मैं तो सहेलियों के साथ बातें करने में यह बात भूल गई कि मुझे तो चंदा दीदी ने कहा था कि बाजार जाओगी तो पहाटीया की खबर लेते आना, और पहाटिया को देखो तो वह तंबाकू पी के मदहोश बैठा है, जाकर बताती हूं चंदा दीदी को बेगारी का बेगारी हो जाएगा और इनाम का इनाम भी मिल जाएगा चलो जाती हूं चंदा दीदी के घर। | 
| 
 | (वाद्य संगीत ) | 
| चंपी | चलो आने को आ तो गई, क्या पता चंदा दीदी अपने सतखंडा महल में है या कहां है पता कर के देखती हूं थोड़ा तो आहट लेकर देखती हूं अगर कोई चपरासी या दरोगा आ गए तो मुझे बोलेंगे कैसे चिल्ला रही है फिर भी चलो देंखू आहट लेके... ओ चंदा दीदी... ओ चंदा दीदी...। | 
| 
 | (वाद्य संगीत ) | 
| चंदा | चंपी। | 
| चंपी | अरे भई कहां थी तुम ? | 
| चंदा | अरे तुमको तो मैंने बाजार भेजा था। | 
| चंपी | छोड़ो दीदी बाजार की बातें मत पूछो तुम्हे क्या बताऊं। | 
| चंदा | तुम कुछ बताओ या नहीं मुझे बस लोरिक पहाटिया का क्या हालचाल ये बताओ ? | 
| चंपी | अरे दीदी तुम तो बहुत जोर-जोर से बोलती हो। | 
| चंदा | क्या हुआ ? | 
| चंपी | मैं किसी के पांच-छह में नहीं रहती ये देखो दरोगा, चपरासी सारे बैठे हैं। | 
| चंदा | हां हां हां। | 
| चंपी | बताऊंगी तो बोलेंगे कि यह लड़की क्या बातें कर रही है। | 
| चंदा | तो। | 
| चंपी | उस तरफ चलो चुपके से बताऊंगी। | 
| चंदा | अच्छा तो तुम दूर में जाकर बताओगी कह रही हो, सुनो एक काम करो कोई न सुने ऐसे मेरे कान में ही बता दो। | 
| चंपी | ऐसा। | 
| चंदा | ले बता। | 
| चंपी | (खुसर फुसर) कसम से सच्ची में दीदी मैं तो वही कहती हूं दीदी। | 
| चंदा | कईसे ? | 
| चंदा | कैसे ? | 
| चंपी | ये जो पहाटिया तुमको जिस दिन से गौना कर के लाया है तुमने तो उसे यही मेरा जीवन साथी है कहकर अपने मन मंदिर में बसा लिया है। | 
| चंदा | हां सही बात है चंपी। | 
| चंपी | बड़े बूढ़े कहते हैं बहन। | 
| चंदा | क्या ? | 
| चंपी | फूटहा करम के फूटहा दोना... पेज गंवागे चारों कोना। (फूटे कर्म का फूटा दोना पेज यानि चावल का माड़ चारो ओर गिर जाना) | 
| चंदा | सही बात है चंपी। | 
| चंपी | अब एैसी तो तुम्हारी किस्मत है, किस्मत है तो है लेकिन इसमें सबसे ज्यादा गलती तुम्हारे मां-बाप की है। | 
| चंदा | देखो तुमने मुझे जो कहा सो कहा पर मेरी किस्मत खराब है तो इसमें मेरे मां-बाप की क्या गलती है ? | 
| चंपी | क्या गलती है करके मुझे पूछती हो एक ही बेटी करके उत्सुकता के कारण बचपन ही शादी कर दी। | 
| चंदा | हां वह तो सही बात है पर्रा (बांस से बना परात नुमा टोकरा) में बिठाकर, गोद में उठाकर मेरे फेरे करवाए थे उतना तो मैं भी तो नहीं जानती हूं चंपी। | 
| चंपी | इस बात की सजा तुम भुगत रही हो, भुगतो अच्छे से...भुगतो अच्छे से अच्छे से भुगतो। | 
| चंदा | बोलोगी तो और नहीं बोलोगी तो आखिर भुगत ही तो रही हूं। | 
| चंपी | उसमें मेरी किस्मत देखो। | 
| चंदा | क्या हुआ ? | 
| चंपी | तीस-पैतींस साल की हो गई हूं कोई कुत्ता भी पूछने नहीं आता। | 
| चंदा | अरे मत सोच कोई भी तो आएगा जवान नहीं तो बूढ़ा भी। | 
| चंपी | अरे छोड़ो दीदी तुम भी मजाक करती हो। | 
| चंदा | तो पैतींस साल के लिए कितना सुंदर आएगा। | 
| चंपी | छोड़ो दीदी वो पहाटिया की बात पूछ रही हो । | 
| चंदा | हां। | 
| चंदा | हां। | 
| चंपी | पहाटिया बारापाली के बाजार जाकर , और वहां तंबाकू पी के नशे में मदहोश बैठा है। | 
| चंदा | अरे तो पहाटिया तंबाकू के नशे मे मदहोश हो गया है! | 
| चंपी | हां तो। | 
| चंदा | लो देखो । | 
| चंपी | क्या बोल रहा है उसका भी उसे कोई होश नहीं है, इधर बैठ कर उधर लुढ़कता है उधर बैठकर इधर लुढ़कता है, कुछ कहने को होश नहीं है। | 
| चंदा | खूब सारा पी गया होगा तम्बाकू इसी वजह से है। | 
| चंपी | हां दीदी मुझे तो ऐसा लगता है...। | 
| चंदा | क्या लगता है ? | 
| चंपी | तुम ना पहाटिया को बाजार से बुलवा लो, नहीं तो वह तुम्हारे हाथ भी नहीं आएगा। | 
| चंदा | तो क्यों उबर कर नहीं आएगा और क्यों मेरे हाथ नहीं आएगा। | 
| चंपी | दीदी बाजार गई जितनी लड़कियां हैं वह सब पहाटिया को घेरे खड़ी है और ना इधर जाने दे रही है ना उधर जाने दे रही है, इसी वजह से । | 
| चंदा | सही बात है चंपी पहाटिया लोरिक का चेहरा तो लाखों में एक है, बारापाली बाजार की लड़कियां उसको घेर कर रिझा भरमा कर रखी होंगी अगर कोई उनमें से दुखदायी लड़कियां मेरे हाथ लग गयी तो कोदो की तरह की कूट न दिया तो मेरा भी नाम चंदा नहीं। | 
| चंपी | ऐसे ही घर में बोलती रहोगी तो क्या पहाटिया दौड़ते-दौड़ते आ जाएगा क्या ? | 
| चंदा | सही बात है चंपी, अगर बाजार जाती हूं तो बाजार के सारे आदमी औरत मुझे पहचान लेंगे और कहेंगे कि देखो तो कहने को राजा महर की लड़की है राजकुमारी चंदा वह दुखदाई, पहाटिया को बुलाने बाजार आई है, मेरा हंसी उड़ाएंगे मेरी बेईज्जती करेंगे। | 
| चंपी | अरे तब तो बदनाम हो जाओगी। | 
| चंदा | और तू तो अभी अभी बाजार से आई है फिर तुझे भेज भी नहीं सकती चंपी अच्छा बता चंपी पहाटिया को कौन सा उपाय करके बुलाए, किसे खबर करें उसे बुलाने किसे भेजे उसे बुलाने मुझे कुछ अक्ल उपाय बता रे। | 
| चंपी | तुम भी ऊटपटांग बोल रही हो। | 
| चंदा | इसमे ऊटपटांग बात क्या है ? | 
| चंपी | कहां तुम तो राजा महर की बेटी हो पढ़ी लिखी हो और कहां मैं अनपढ़ गंवार तुम्हें क्या अक्ल दूंगी क्या उपाय बताऊंगी । | 
| चंदा | समझ समझ की बात है कभी-कभी कितने भी पढ़े लिखे हो तो भी समय में अक्ल काम नहीं आती, और कभी-कभी अंगूठा छाप भी रहते हैं उनकी अक्ल उनकी बुद्धि भी समय पर काम आ जाती है, तो कुछ बढ़िया सोच कर बताओ न रे। | 
| चंपी | क्या उपाय बताऊं ? | 
| चंदा | ले बता। | 
| चंपी | हां एक उपाय है बहन मानोगी तो। | 
| चंदा | का बात हे क्यों नहीं मानूंगी ? | 
| चंपी | तालाब किनारे के मालिन दाई का घर देखी हो क्या ? | 
| चंदा | हां वह वो तालाब के किनारे घास-फूंस की छत वाला घर वही है ना ? | 
| चंपी | हां हां वही। | 
| चंदा | हां। | 
| चंपी | मालिन दाई के घर जाना और कहना कि बारापाली बाजार जाकर पहाटिया को बुलाकर ले आओ। | 
| चंदा | हां हां। | 
| चंपी | नहीं जाऊंगी बेटी नहीं जाऊंगी कहेगी तो कहना कि मैं तुम्हें पांच थाली मोहरे दूंगी। | 
| चंदा | मालिन दाई को। | 
| चंपी | हां मालिन दाई बहुत लालची है देखना दौड़ती हुई जाएगी पहाटिया को बुलाने। | 
| चंदा | ऐसा है तो मैं अभी जाती हूं मालिन दाई के घर। | 
| चंपी | मैं भी घर जा रही हूं। (कहकर अंदर चली जाती है मंच पर चंदा अकेली है) | 
| चंदा | हां जा... चलो भाई मेरी सहेली चम्पी ने मुझे बहुत ही अच्छा उपाय बताया है, जाती हूं मालिन दाई के घर कैसे भी करके उसे मनाऊंगी और उसे भेजूंगी बारापाली शहर के बाजार अगर वो बूढ़ीया ऐसे नहीं मानेगी तो उसे पैसे देकर मनाउँगी लेकिन कैसे भी करके पहाटिया को बुलवा लाऊंगी तभी मेरा मन हल्का होगा और मेरा कलेजा ठंडा होगा चलो देखती हूं मालिन दाई घर पर है या नहीं पता कर लूं जरा। | 
| 
 | गीत:- | 
| चंदा | उस समय की बात है। | 
| रागी | जा रही है। | 
| चंदा | मैं जा रही हूं दीदी। | 
| रागी | जा रही है। | 
| चंदा | बारापाली के शहर में। | 
| रागी | शहर में तेरे । | 
| चंदा | मेरे लोरिक चरवाहे। | 
| रागी | लोरिक है तेरा। | 
| चंदा । | तम्बाकू की दुकान में दीदी। | 
| रागी | रहता है तेरे । | 
| चंदा | तम्बाकू पी के मदहोश है । | 
| रागी | रहता है तेरा। | 
| चंदा | जाके मल्लिन दाई को। | 
| रागी | खबर भेजे। | 
| चंदा | ये खबर बताऊं। | 
| रागी | बता रही है। | 
| चंदा | मन मन में सोचने लगी कहां देंखू तुझे मल्लिन। | 
| रागी | चंदा है तेरी। | 
| चंदा | कहां देंखू तुझे दाई । | 
| रागी | जा रही है तेरी। | 
| चंदा | मन मन में सोचती। | 
| रागी | कह रही है तेरी । | 
| चंदा | उस समय की बात है साथी। | 
| रागी | क्या बताऊं मेरे साथी... और दिनों दिन चांद की रौशनी की तरह चंदा का रूप भी चमकता है। | 
| चंदा | यही है मालिन दाई का घर ओ... मालिन दाई ... ओ मालिन दाई ... घर पर हो या नहीं ये बुढ़िया बहरी भी तो है कभी-कभी सुनती भी नहीं जल्दी। | 
| 
 | (वाद्य संगीत) | 
| चंदा | ओ मालिन दाई । | 
| मालिन दाई | कौन हो लड़की ? | 
| चंदा | मैं राजकुमारी चंदा हूं। | 
| मालिन दाई | चंदा। | 
| चंदा | हां दाई । | 
| मालिन दाई | आओ बेटी बैठो। | 
| चंदा | दाई मैं तुम्हारे घर बैठने नहीं आई हूं एक बेगारी करवाने काम ले कर आई हूं । | 
| मालिन दाई | क्या बेगारी काम है बेटी ? | 
| चंदा | दाई बारापाली शहर के बाजार जाती और जरा पहाटिया को बुला लाती। | 
| मालिन दाई | कहां जाऊं ? | 
| चंदा | बारापाली शहर का बाजार। | 
| मालिन दाई | अंधों की तरह क्यों बोल रही हो बेटी। | 
| चंदा | क्यों दाई ? | 
| मालिन दाई | बहुत दिन हो गए बेटी में तो बाजार जा ही नहीं रही हूं। | 
| चंदा | हां हां हां। | 
| मालिन दाई | बूढ़ी हो गई हूं चल नहीं सकती, आंखों से दिखाई भी कम देता है, सुन भी नहीं सकती , नहीं जाती मेरी मां मैं बाजार। | 
| चंदा | (स्वत:) जल्दी-जल्दी आई हूं इसके पास कैसे भी करके इसे मनाकर बाजार भेजूंगी सोचकर और यह बुढ़िया मना कर रही है एक और बार मना के देखती हूं, जाओ न दाई ऐसे मत करो इतना मत करो। 
 | 
| मालिन दाई | नहीं जाऊंगी बेटी एक तो मुझे दिखता नहीं, कहीं गड्ढे में गिर पड़ गई तो वहीं बैठी रह जाऊंगी । | 
| चंदा | जाओ ना दाई मैं तुम्हारे पांव पड़ रही हूं। | 
| मालिन दाई | खुश रहो तुम्हारी चूड़ियां चढ़ चढ़ करती फूट जाए, खुश रहो। | 
| चंदा | कैसे बूढ़ीया शरीर में तो बुढ़ापा आ ही रहा है तुम्हारा दिमाग भी बूढ़ा हो रहा है ऐसा लग रहा है , क्यों सयानी ? | 
| मालिन दाई | हैं.....। | 
| चंदा | तुम बूढ़ी हो गई हो तो क्या तुम्हारी अक्ल भी बूढ़ी हो रही है। | 
| मालिन दाई | क्यूं री ? | 
| चंदा | कैसे मेरी चूड़ियां फूटेगी तो तुम्हारे कलेजे को ठंडक पड़ जाएगी। | 
| मालिन दाई | कैसे तुम ऊंचा सुनते हो क्या लड़की ? | 
| चंदा | कैसे ? | 
| मालिन दाई | तुम्हारी चूड़ियां अमर रहे कह रही हूं तो फूट जाए कह रही हो रे तुझे गाड़ दूं। | 
| चंदा | वाह रे बिन पेंदी का लोटा इधर की बात उधर लुढ़का गई, कोई बात नहीं बेगारी काम करवाने आई हूं तो दो बात सुन लेती हूं दाई । | 
| मालिन दाई | हां। | 
| चंदा | यदि पहाटिया को बाजार से तुम बुला दोगी ना तो मैं तुम्हारे थकने के मेंहनताना के लिए पांच थाली मोहरे दूंगी। | 
| मालिन दाई | का देबे ? | 
| चंदा | पांच थाली मोहरें। | 
| मालिन दाई | हाय पांच थाली मोहरें दोगी !!! | 
| चंदा | हां दाई । | 
| मालिन दाई | मेरे घर के बुढ़ऊ भी मुझ पर बहुत नाराज़ होते हैं। | 
| चंदा | क्यों ? | 
| मालिन दाई | रात दिन तुम बैठे-बैठे खाती हो बुढ़िया। | 
| चंदा | अरे। | 
| मालिन दाई | मुझे ऐसा कहते हैं तो मैं पूछती हूं कि सभी तो बैठ कर खाते हैं कौन खड़े होकर खाता होगा क्या । | 
| चंदा | दाई कुछ नहीं होता बूढ़े हैं ना कह दिए होंगे जो सुनता है उसका बनता है जो सहता है उसका रहता है। | 
| मालिन दाई | मैं नहीं सुनती। | 
| चंदा | तो क्या करोगी ? | 
| मालिन दाई | सुना सुनते तक सहन किया सहने तक लेकिन अब नहीं सुनूंगी | 
| चंदा | अरे तुम नहीं सुनोगी नहीं सहोगी तो तुम कहां जाओगी ? | 
| मालिन दाई | कहीं भी दुनिया में जाऊं। | 
| चंदा | इसके गुस्से को तो देखो तुमको अभी कौन रखेगा एक तुम ही हो जिसे बात लग जाती है। | 
| मालिन दाई | नदी तालाब में डूबकर मर जाऊंगी कुआं बावली में कूदकर मर जाऊंगी, सब भरे हुए कुएं में मरते हैं मैं सूखे कुएं में कूदकर मर जाऊंगी। | 
| चंदा | अरे तुम कैसे करती हो मनाऊंगी बोल रही हूं तो तुम मरने की बात कर रही हो। | 
| मालिन दाई | क्यों तुमको गाड़ू मेरी साड़ी खींच रही हो। | 
| चंदा | भरे हुए कुँए में कूदोगी तो कैसे भी तैर कर निकल जाओगी, तो जान बच जाएगी पर सूखे कुएं में कूदोगी तो तुम्हारे हाथ पैर टूट जाएंगे । | 
| मालिन दाई | उल्टी-सीधी बात करती हो । | 
| चंदा | कैसे ? | 
| मालिन दाई | भरे कुएं में कूद जाऊंगी तो डूब के मर जाऊंगी और सूखे कुएं में कूद जाऊंगी तो हाथ पैर टूट जाएगा पर बच तो जाऊंगी। | 
| चंदा | यह मरने वाली जैसी लग रही है वह दाई तुम वरो मत पांच थाली मुहर देख कर तुम्हारे घर बाबा भी खुश हो जाएंगे तुम भी खुश रहोगी दोनों बैठे-बैठे खाओगे। | 
| मालिन दाई | तो ले जा रही हूं बेटी धीरे-धीरे बैठते उठते कैसे भी करके जाऊँगी। | 
| चंदा | हां तो लो जाओ दाई जाओ लेकिन सुनो तो सुनो तो। | 
| मालिन दाई | अब और क्या हो गया ? | 
| चंदा | तुम बाजार जाने को जा तो रही हो पर बाजार के किसी एकाद आदमी औरत ने तुमको पूछा तो मेरा नाम मत लेना। | 
| मालिन दाई | तो तुम ही तो बुला रही हो ना ? | 
| चंदा | उसको बाद में बताऊंगी। | 
| मालिन दाई | कैसे ? | 
| चंदा | तो तुम ऐसे कहना कि तुम्हारे दादा जी दूसरी गाय और दूसरा बछड़ा ले आए हैं गाय दूध नहीं दे रही है, चलो गाय को एक बार दुह देना ऐसा झूठ बोलकर यहां ले आना। | 
| मालिन दाई | हां तो जा रही हूं और एक काम करना। | 
| चंदा | हां कैसे क्या काम ? | 
| मालिन दाई | ओ हमारी बाड़ी का गोठान देखी हो ? | 
| चंदा | हां वही घास फूंस वाला न देखी हूं। | 
| मालिन दाई | पहले बकरियों को रखते थे। | 
| चंदा | हा हा बकरियां तो बहुत दुर्गंध की देती हैं । | 
| मालिन दाई | अब बकरी है ना मेमना है गाय हैं ना बछड़ा है। | 
| चंदा | हां सही बात है नहीं तो है अब। | 
| मालिन दाई | गोठान खाली है बेटी। | 
| चंदा | हां हां। | 
| मालिन दाई | मेरा गोठान क्यों खाली रहेगा तू भी तो एक लक्ष्मी ही है। | 
| चंदा | शर्म नहीं आती तुझे, बुढ़िया मुझे बोल रही है। | 
| मालिन दाई | तो महिलाओं को घर की लक्ष्मी कहते हैं न तु भी तो अपने घर ही लक्ष्मी हुई न, तुझे गाड़ दूं। | 
| चंदा | हां कहने को तो बड़े बुजुर्ग वैसे ही कहते हैं दाई । | 
| मालिन दाई | हां हां तो तुम गोठान में जाकर बैठी रहो। | 
| चंदा | हां दाई ठीक है बन जाएगा, बन जाएगा। | 
| मालिन दाई | खुदा ना खास्ता अगर तुम्हारे दादा जी गोठान की तरफ आ गए तो, एक और बात की बात है , वहां बहुत सारा पुआल रखा है, तुम उंसी पुआल की ढेर में भूसे में घुस जाना। | 
| चंदा | अरे छोड़ो दाई मैं पुआल में घुसकर घुटन के कारण मर जाऊंगी। | 
| मालिन दाई | तो अगर तुमको घुटन लगेगी तो तुम गिरगिट की तरह सिर बाहर निकाल लेना। | 
| चंदा | दाई तुम बाजार जाओ मैं तुम्हारे घर दादा आएंगे तो उनको बना लूंगी, तुम बाज़ार जाओ । | 
| मालिन दाई | हां वेसा है तो मैं नहीं जाऊंगी नहीं जाऊंगी। | 
| चंदा | अभी मैंने तुम्हे गाली भी नहीं दी है और ना कुछ उलाहना दी है फिर क्यों गुस्सा हो रही हो। | 
| मालिन दाई | तो क्या तुम मेरे पति को बनाने के लिए मुझे बाजार भेज रही हो ? | 
| चंदा | किसको ? | 
| मालिन दाई | हां मैं बाजार जाऊंगी तो तू मेरे पति को बनाकर ले जाएगी। | 
| चंदा | अरे तेरे मरने का रोना रोऊं बुढ़िया, कुबड़ी, अंधी, टेढ़ी तेरी खाट मुर्दा निकले। | 
| मालिन दाई | कैसे बोल रही है तुझे गाड़ दूं ? | 
| चंदा | तुम्हारे घर दादा जब आएंगे तो मैं बात बना लूंगी और कहीं छुप जाऊंगी ऐसा कह रही हूं। | 
| मालिन दाई | अरे हटा रे तेरा काम बिगड़े। | 
| चंदा | हां तो। | 
| मालिन दाई | मैं वही कह रही थी कि यदि मेरे पति को ये बना लूंगी कह रही है तो मैं कहां चुचरूंगपुर जाऊ ? | 
| चंदा | नहीं जी बात को बना लूंगी कह रही थी | 
| मालिन दाई | हां ऐसा है तो लो मैं जा रही हूं बेटी धीरे-धीरे बैठते उठते कैसे भी करके बाजार। | 
| चंदा | हां दाई लो जाओ, लो जाओ अब। | 
| मालिन दाई | चंदा जाने को तो मैं जा रही हूं बेटी ? | 
| चंदा | और क्या हो गया ? | 
| मालिन दाई | जाने को तो जा रही हूं पर पांच साल के बच्चे भी मुझको पह्चानते हैं। | 
| चंदा | हां सब जानते हैं छोटे से लेकर बड़े तक मालिन दाई हो करके। | 
| मालिन दाई | अरे तो क्या कहूंगी मान लो कोई मिल गया, किसी ने पूछ लिया तो क्या करूंगी ? | 
| चंदा | तुम तो बच्चों जैसी बातें कर रही हो। | 
| मालिन दाई | कैसे ? | 
| चंदा | अरे तो बाजार जा रही हूं करके नहीं बोल सकोगी क्या। | 
| मालिन दाई | अच्छा बाजार जा रही हूं कहूंगी तो कहेंगे कि खाली हाथ जा रही हो। | 
| चंदा | तुम्हारे घर थैला नहीं है तो किसी भी तरह की आलतू फालतू टोकरी रख लो। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| चंदा | और देखने वाले क्या कहेंगे कि बुजुर्ग है इसलिए इसलिए टोकरी लेकर बाजार जा रही है। | 
| मालिन दाई | कौन पूछेगा ? | 
| चंदा | कौन पूछेगा ? | 
| मालिन दाई | और क्या जो पूछेगा उसकी आँख नहीं दिख रही होगी। | 
| चंदा | नहीं कोई एक जो मनचले रहते हैं वे पूछ ही देते हैं। | 
| मालिन दाई | तो रूको वो टोकरी रखी है लाओ मैं फिर जा रही हूं। | 
| चंदा | लो दाई जाओ.... (स्वत:) देखा.. पांच थाली मोहरें देने के बात बोली तब कैसे भी करके मालिन दाई ने मेरी बात रख ली, मेरी बात मान ली , और इस पहाटिया को देखती हूं कैसी उसकी संगति है, कैसे उसके संगी-साथी मिले हैं जो वह वहां जाके तम्बाकू पीकर मदहोश हुआ बैठा है। | 
| मालिन दाई | इस में भरकर लाती हूं। | 
| चंदा | सब्जी भाजी को ? | 
| मालिन दाई | हां हां। | 
| चंदा | हां। | 
| मालिन दाई | हम बूढ़े बुढ़िया के लिए आठ दिन के लिए सामान आ जाता है। | 
| चंदा | हां दाई हां। | 
| मालिन दाई | तो मैं जा रही हूं बाजार की और और तू जा गोठान के तरफ । | 
| चंदा | हां हां। | 
| मालिन दाई | क्या करूं घर में बैठे ही तो रहूंगी इससे अच्छा है पांच थाली मोहरे आ जाएगी तो हम दोनो बूढ़े बुढ़िया के लिए चार दिन के दाना पानी का जुगाड़ हो जाएगा । | 
| मालिन दाई | जाने के लिए तो जा रही हूं अगर मैं इधर से जाऊं तो कहीं वह उधर से आ जाएगा और अगर मैं इधर से जाऊं तो वह उधर से आ जाएगा, तो मैं उस तक पहुंच पाऊंगी कि नहीं, उससे अच्छा है मैं इन चांडाल लड़कों से ही पूछ लेती हूं पांव थके तो थके मन क्यों थके, अरे ओ... टेटकू घर में हो क्या ? | 
| टेटकू | क्या है बूढ़ी दाई ? | 
| मालिन दाई | मैं हूं बेटा मालिन बुढ़िया हूं रे। | 
| टेटकू | तो तुम कहां जा रही हो ? | 
| मालिन दाई | तुम्हारे ही पास आ रही थी बेटा तुम्हारे ही पास रे। | 
| टेटकू | क्यों ? | 
| मालिन दाई | क्या करूं बेटा मैं पहाटिया को पैसे दे चुकी हूं, और कितनी देर हो गई वह अब तक बाजार से आया है और ना ही सब्जी लाया है, हमारे यहां तुम्हारे दादा मुझे डांट रहे हैं जिसे चाहे उसे पैसे दे देती हो, कहीं तुमने उसे देखा है या उससे कहीं मिले हो क्या ? | 
| टेटकू | मैं तो उससे नहीं मिला था बूढ़ी दाई । | 
| मालिन दाई | नहीं मिले थे तो अब किसको पूछूं | 
| टेटकू | हां मिला था बूढ़ी दाई । | 
| मालिन दाई | धत रे गाड़ने लायक ... पहले पूछी तो कहा नहीं मिला था अब वहां तक चल दी हूं तो कह रहा है कि मिला था कहां मिला था बेटा ? | 
| टेटकू | तंबाकू की दुकान पर बैठा था बूढ़ी दाई । | 
| मालिन दाई | इसीलिए तंबाकू पीकर नशे में मदहोश हो गया होगा, कौन क्या मंगाया है क्या नहीं इसका होश भी नहीं होगा , भूल गया होगा, चलो तुम बैठो बेटा मैं धीरे-धीरे बैठते-उठते जाती हूं, कैसे भी करके बुला के लाऊंगी बेटा। | 
| टेटकू | बूढ़ी दाई । | 
| मालिन दाई | क्या है ? | 
| टेटकू | टाटा । | 
| मालिन दाई | बाय बाय। | 
| टेटकू | टाटा। | 
| मालिन दाई | तुमको गाड दू क्या रे गाड़ने लायक, बुढ़िया बिगड़ेगी करके टाटा बोल रहा है मुझे नहीं आता क्या टाटा बोलना। | 
| 
 | (संगीत) | 
| मालिन दाई | अरे मैं तो बाजार के चौरस्ते में आ गई और बाजार अभी बहुत दूर है उससे अच्छा मैं यहीं कहीं पर बैठ कर उसकी राह देखती हूं चंडाल आएगा तो इधर से ही, क्योंकि सारे रास्ते यहीं पर आकर मिलते हैं रांड़ी (विधवा) का। | 
| लोरिक | जय जोहार... जय श्री कृष्णा... अरे.. बहुत समय से बैठ था लग रहा है चलो अब मैं जाता हूं। (लोरिक बांसुरी बजाते हुए मंच का चक्कर लगाते हुए ) | 
| लोरिक | अरे यह तो मालिन दाई जैसे लग रही है मालिन दाई ओ मालिन दाई । | 
| मालिन दाई | अरे कौन है माँ जो मुझे आवाज़ दे रहा है ? | 
| लोरिक | मैं लोरिक हूं लोरिक। | 
| मालिन दाई | लोरिक। | 
| लोरिक | हां मालिन दाई | 
| मालिन दाई | (रोती हुई) हां... मेरी लाज बचाने वाला बेटा.. मेरी लाज बचाने वाला बेटा... मैंने क्या कर दिया लोरिक। | 
| लोरिक | खड़ी हो जाओ खड़ी हो जाओ | 
| मालिन दाई | (रोती हुई) मैं ऐसा दुख नहीं जान रही थी बेटा.. तुम्हारे दादा बावन बाजार से दूसरी गाय और दूसरा बछड़ा ले आए हैं वह गाय बछड़े को पास नहीं आने देती , मैंने ऐसा क्या कर दिया, इसलिए मैं तुमको ढूंढते हुए इतने देर से मैं विलाप कर रही हूं... पर तुम हां कर रहे हो ना कुछ और बोल रहे हो... रोने की धुन में कस के पकड़ कर रो रही हूं मुझे अपनी लाठी और खुमरी (बांस और पत्ते से बनी टोपी) थमा के कहां चल दिए हो... इतनी मुश्किल से तुम तक पहुंची थी और तुम फिर से कहां चले गए बेटा | 
| लोरिक | मालिन दाई । | 
| मालिन दाई | हां बेटा। | 
| लोरिक | तुम बाजार में रो रही हो मुझे अच्छा नहीं लगता। | 
| मालिन दाई | क्यों ? | 
| लोरिक | सब बाजार की युवतियां हंस रही है। | 
| मालिन दाई | हंसने दो। | 
| लोरिक | देखो तो मालिन दाई लोरिक को लिपटा कर रो रही है, ऐसा कह रहे हैं। | 
| मालिन दाई | हँसने दे,हंसने वाले के दांत दिखते हैं बेटा। | 
| लोरिक | ऐसा क्या दुख आ गया दाई ? | 
| मालिन दाई | हां। | 
| लोरिक | अगर तुम्हारे दुख को दूर नहीं कर पाया तो लोरिक अपनी मूंछे उखाड़ के रख देगा। | 
| मालिन दाई | धत रे चांडाल एकदम चिकना ही कर डाला। | 
| लोरिक | चुप बुढ़िया तुम्हे छूना भी नहीं आता ,अपनी उंगली मेरी नाक में घुसा दी। | 
| मालिन दाई | अरे तो कैसे करूं ,अंधी-लंगडी ,आंखों से दिखाई नहीं देता। | 
| लोरिक | ऐसा क्या काम पड़ गया है जो तुम मुझे बुलाने आई हो। | 
| मालिन दाई | आज बारापाली बाजार हुआ है ना तुम्हारे दादा कह रहे हैं कि देखो बुढ़िया गांव भर में सभी के घरों में गायें हैं। | 
| लोरिक | हां हां हां। | 
| मालिन दाई | सभी घरों में दूध छाछ होता है। | 
| लोरिक | हां हां। | 
| मालिन दाई | और हम एक चुल्लू दूध के लिए गली-गली घूमते हैं। | 
| लोरिक | हां हां हां। | 
| मालिन दाई | पैसे लेकर जाते हैं तब भी दूध नहीं मिलता। | 
| लोरिक | नहीं मिलता | 
| मालिन दाई | मैंने कहा सही बात है बुढ़उ तुम भी जाओ बारापाली के बाजार और कैसी भी एक काम चलाऊ गाय खरीद कर ले आओ , और कुछ नहीं तो हम दोनों चाय के लायक तो दूध तो हो ही जाएगा। | 
| लोरिक | हां। | 
| मालिन दाई | तो वह बारापाली बाजार से दूसरी गाय और दूसरा बछड़ा ले आए हैं बेटा वह बछड़ा इतना छोटा है कि दूध भी नहीं पी पा रहा है। | 
| लोरिक | दादा का। | 
| मालिन दाई | दादा का नहीं रे गाय का.. बछड़े की रस्सी छोडती हूँ तो गाय उसे अपने पास आने भी नहीं देती है और तिरछे तिरछे देखती है , क्या करूं तुम बताने को बोले तो बता रहीं हूं | 
| लोरिक | दाई तुम हाथ पैर मत छीलो। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| लोरिक | तब भी इतनी बड़ी बस्ती में किसी भी राउत को बुलाई तो होगी । | 
| मालिन दाई | अरे पूरे गांव भर के राउत को बुलाई थी किसी की भी जड़ी-बूटी नहीं लगी, नहीं लगी तो ना लगे बछड़ा भी थोड़ा बहुत मिमियाता भी नहीं, चलो ना थोड़ा मुझे दुह देना चलो ना बेटा। | 
| लोरिक | जब बात करोगी तब ऊट पटांग ही करोगी गाय को दुह देना कहती तो मुझे दुह देना कह रही है .. चलो जा कर देखता हूं। | 
| मालिन दाई | चल। | 
| लोरिक | कैसी गाय और कैसा बछड़ा है उसे। | 
| मालिन दाई | हां बेटा। | 
| लोरिक | आने वाले का त्यौहार के दिन सोहई (गोवर्धन पूजा के दिन गाय बैल के गले में पहनाया जाना वाला मयूर पंख से बना हार ) बांधने जाऊंगा। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| लोरिक | दोहा उच्चारते । | 
| मालिन दाई | हां हां। | 
| लोरिक | मेरे कंधे पर सुपर फाइन की धोती रखना। | 
| मालिन दाई | तुम सुपर फाइन की धोती बोल रहे हो बेटा मैं तुम्हे तेलीन काट(टेरीकाट) की धोती दूंगी। | 
| लोरिक | सुप भर के धान देना। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| लोरिक | दीया जलाकर रखना। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| लोरिक | बीस रूपया पैसा रखना । | 
| मालिन दाई | बीस रूपये में हो जाएगा ? | 
| लोरिक | तो हंसकर। | 
| मालिन दाई | चंडाल नहीं तो लो चलो। | 
| लोरिक | और देखो मालिन दाई अगर झूठ बोल रही होगी तो तुम जानो। | 
| मालिन दाई | अरे बेटा मैं जिंदगी में कभी सच नहीं बोली तो मैं झूठ बोलूंगी। | 
| लोरिक | ऐसी तो मालिन दाई है जिसने जीवन भर सच नहीं बोला है ... (टोकरी की तरफ ईशारा करते हुए) ये टोकरी रखोगी , कैसे करोगी।? | 
| मालिन दाई | चल चल। | 
| लोरिक | हां चलो दाई चलो | 
| मालिन दाई | चल चल। | 
| लोरिक | तुम आगे जाओगे या मैं आगे जाऊं ? | 
| मालिन दाई | तुम आगे जाओ। | 
| लोरिक | तेरे दुख का हरण करूं मेरा नाम है लोरिक। | 
| रागी | लोरिक है रे... और दिनों दिन चांद की रौशनी की तरह चंदा का रूप भी चमकता है। | 
| 
 | (मंच में तेज-तेज कदमों से दोनो चल रहें बीच बीच मालिन लोरिक को धीरे धीरे चलने कह रही है और अचानक मालिन दाई गिर पड़ती है) | 
| मालिन दाई | अरे उठाओ मैं गिर गई रे। | 
| लोरिक | उठो उठो। | 
| मालिन दाई | हाथ-पैर तोड़ डाला मार डालेगा क्या ? | 
| लोरिक | ये लो हाथ । | 
| मालिन दाई | मार डाला रे मेरे कमर-कूबड़ को आधा-आधा पकड़ो। | 
| लोरिक | अब पहुंच गए मालिन दाई । | 
| मालिन दाई | आ गए बेटा। | 
| लोरिक | बहुत अच्छा घर बना लिए हो। | 
| मालिन दाई | हां तो। | 
| लोरिक | चिंता से चतुराई घटे। | 
| मालिन दाई | दुख से घटे शरीर। | 
| लोरिक | पाप से लक्ष्मी घटे। | 
| मालिन दाई | कह गए दास कबीर। | 
| लोरिक | तुम्हारी गाय और बछड़े को झाड़ फूंक करना है ? | 
| मालिन दाई | हां बेटा। | 
| लोरिक | और झाड़ने फूंकने के लिए विभूति... विभूति मिलेगी ? | 
| मालिन दाई | मिलेगी। | 
| लोरिक | नारियल। | 
| मालिन दाई | मिलेगी। | 
| लोरिक | सुखवती ? | 
| मालिन दाई | वही मिलेगी या नहीं वही , पता मिलेगी या ,नहीं पता करना पड़ेगा। | 
| लोरिक | ढूंढना है... किसको ? | 
| मालिन दाई | सुखवती को। | 
| लोरिक | किस सुखवती को ? | 
| मालिन दाई | तुम किस सुखबती को बोल रहे हो ? | 
| लोरिक | पूजा करने के समय जिसे जलाते हैं वही। | 
| मालिन दाई | धत्त गाड़ने लायक ,उसे सुखवती बोलते हैं क्या ? | 
| लोरिक | तो क्या ? | 
| मालिन दाई | उसको अगरबत्ती कहते हैं रे । | 
| लोरिक | हां हां हां मैं उसी को सुखवती कह रहा था। | 
| मालिन दाई | हां मैं ला रही हूं।। | 
| लोरिक | नारियल और बाकी सब को भी ले आओ। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| लोरिक | इस चूल्हे में राख है दाई । | 
| मालिन दाई | हां अगरबत्ती नहीं है राख में फूंको, ये लो बेटा भेंट भी रख दी हूं । | 
| लोरिक | तुम ही तो मुझे फूंकने के लिए बुलाई हो.. जय। | 
| मालिन दाई | जय। | 
| लोरिक | है। | 
| मालिन दाई | है। | 
| लोरिक | कौन है ? | 
| मालिन दाई | तुम्हारे दादा पूछ रहे हो तो बता रही हूं | 
| लोरिक | चुप बुढ़िया । | 
| मालिन दाई | सवाल का जवाब दे रही हूं। | 
| लोरिक | बुला ली हो और मजाक कर रही हो ? | 
| मालिन दाई | मजाक नहीं दिल्लगी। | 
| लोरिक | हां मैं कह रहा था दाई । | 
| मालिन दाई | कैसे कह रहे थे तो। | 
| लोरिक | हम लोग राउत ठेठवार की जाति के है। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| लोरिक | आज लोरिक का खाना तुम्हारे घर पर ही रखना दाई । | 
| मालिन दाई | ऐसे। | 
| लोरिक | तुम्हारे घर में बैगा (वैद्य) बनकर आया हूं तो । | 
| मालिन दाई | हां शुक्रिया कर रही हूं बेटा। | 
| लोरिक | जय जय जय काली काली महाकाली। | 
| मालिन दाई | ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते। | 
| लोरिक | चुप रे । | 
| मालिन दाई | हां मुझे कहा क्या ? | 
| लोरिक | मंत्र में बोला मंत्र में। | 
| मालिन दाई | अच्छा मंत्र में बोले तो कोई बात नहीं। | 
| लोरिक | अरे.... जय महा माई मेरी महावर है तेरा | 
| मालिन दाई | जय महामाई मेरी मोहबा है तेरी | 
| लोरिक | मालिन दाई की आंखें फोड़। | 
| मालिन दाई | मेरी आंखे फोड़ने बुलाई हूं या दूसरों की आख को ? | 
| लोरिक | नजर किससे लगी है। | 
| मालिन दाई | अरे दूसरों की नजर लगी है रे मेरे घर मे मैं ही नजर लगाऊंगी क्या ? | 
| लोरिक | तो तुम्हारी नजर दूसरों के घर को लगती है। | 
| मालिन दाई | वक्त पड़ने पर। | 
| लोरिक | (हंसते हुए)ऐसा ठीक है... | 
| लोरिक | डूमर की दीदी प्रेतिन है। | 
| मालिन दाई | डूमर की दीदी प्रेतिन है। | 
| लोरिक | बेर की बहन चुड़ैल है तेरि । | 
| मालिन दाई | बेर की बहन चुड़ैल है तेरि । | 
| लोरिक | अरे संबलपुर की समलाई हो। | 
| मालिन दाई | अरे संबलपुर की समलाई हो। | 
| 
 | ( म्यूजिक) | 
| लोरिक | लो तो हो गया । | 
| मालिन दाई | फूंक लिए क्या। | 
| लोरिक | नहीं बचा है। | 
| मालिन दाई | हट रे चंडाल.. मुझे वो मेरी शादी याद आ गई । | 
| लोरिक | अच्छा तो उस जमाने में एकदम डांसर ही थी क्या तुम ? | 
| मालिन दाई | मैं डांसर थी बेटा तुम्हारे दादा तबलची थे। | 
| लोरिक | हां..। | 
| मालिन दाई | और तुम्हारे मामा चिकारा बजाते थे। | 
| लोरिक | लो आ गए दाई अब फूंकना है | 
| मालिन दाई | हां बेटा | 
| लोरिक | आ.. आ.. आ.. हई । | 
| मालिन दाई | (मालिन दाई गाय की रंभाने की आवाज निकालती है)। | 
| लोरिक | तुम रमभा रही है हो क्या बुढ़िया ? | 
| मालिन दाई | तुम को कुछ लगता है मैं रम्भाउन्गी बछड़ा है बेटा भूखी लगी है तो चिल्ला रहा है। | 
| लोरिक | बुढ़िया कह रही भूखा है इसलिए चिल्ला रहा है। | 
| मालिन दाई | बुढ़िया भूखी नहीं मैं तो पेट भर खाई हूं। | 
| लोरिक | आ आ हई । | 
| मालिन दाई | (गाय की आवाज निकालती है ) | 
| लोरिक | हां अब पता लग गया ना दाई | 
| मालिन दाई | हां लग गया ना | 
| लोरिक | कि लोरिक को क्यों बुला के लाते हैं जो बूढ़ीया को फूंक दिया। | 
| मालिन दाई | फूंक दिया। | 
| लोरिक | ठीक से नारियल को रख लो । | 
| मालिन दाई | गाय को फूंकने के लिए कह रही हूँ कि बछड़े को फूंकने के लिए कह रही हूँ कि बुधिया को फूकने के लिए कह रही हूँ। | 
| लोरिक | अरे जा बेटा अरे आ आ आ। | 
| मालिन दाई | (फिर गाय की आवाज) । | 
| लोरिक | मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे बूढ़ीया पहले भैंस के बच्चे का जन्म ले रही थी | 
| मालिन दाई | अब इंसान का जन्म पा गई। | 
| लोरिक | तो तुम्ही तो चिल्ला रही हो क्या ? | 
| मालिन दाई | कुछ लगता है क्या मैं चिल्लाऊंगी ? बछड़ा है बेटा भूखा है इसलिए चिल्ला रहा है। | 
| लोरिक | हां सवा दो बज गया बुढ़िया भूखी होगी इसलिए चिल्ला रही है कह रही है। | 
| लोरिक | मेरे निदुरी की गैया। | 
| लोरिक | गैया है जी। | 
| लोरिक | और कहां है बछड़ा । | 
| लोरिक | बछड़ा है जी। | 
| लोरिक | ये लोरिक है जो वो । | 
| लोरिक | है जो वो । | 
| लोरिक | किसको बताऊं मैं साथी। | 
| लोरिक | कहते हैं तेरे। | 
| लोरिक | जिस समय की बात है मेरी गैया कहां है। | 
| रागी | गैया है तेरी और दिन दिन बढ़ती जाए चंदा की चमक। | 
| चंदा | ( चंदा दौड़ते हुए छत के पटाव से निकल आई) मैं अकेली औरत की जात गोठान के अंधेरे में कितनी देर से हूं और यहां आकर देखती हूं तो तुम दोनों मां बेटे बातचीत कर रहे हो, वहां गोठान में न गाय हैं ना बछड़ा। | 
| मालिन दाई | और तुम कितनी देर से यहां आई हो ? | 
| चंदा | मुझे आए एक घंटे हुए होंगे। | 
| मालिन दाई | क्यों रे तुझे गाड़ू मेरे गाय और बछड़े को कहां भगा दिया ? | 
| चंदा | इस बुढ़िया का दिमाग फिर गया है क्या उल्टा-पुल्टा कह रही है ये। | 
| मालिन दाई | मैं इतने बड़े दुख को नहीं जानती थी बेटा मेरे गाय बछड़े कहां चले गए | 
| चंदा | अरे इसको क्या हो गया है ये क्यों रो रही है। | 
| मालिन दाई | (रोते हुए) बेटा। | 
| चंदा | चुप रहो दाई चुप रहो मत रोओ सयानी चुप रहो चुप रहो। | 
| मालिन दाई | (रोते हुए) मेरे गाय बछड़े कहां भगा दी चंदा ? | 
| चंदा | (रोते हुए) अरे मैंने नहीं भगाया है दाई तुम क्यों रो रही हो ? | 
| मालिन दाई | मैं कहा तुम्हारे जाल में फंस गई। | 
| चंदा | चल रे बुढ़िया मैं तुझे पहाटिया को बुलाने भेजी थी कि ऐसे रोने के लिए भेजी थी। | 
| मालिन दाई | तो मैं रो रही हूं ना तेरे लिए ही भूमिका बांध रही हूं। | 
| चंदा | हां अच्छा पहाटिया मत जाने करके इसलिए ना, तो उसी को पहले नहीं बताती। | 
| मालिन दाई | चौपड़ हिसाब लगाकर खेलना। | 
| चंदा | हां दाई । | 
| मालिन दाई | मेरा नाम मत लेना एक तो बड़ी मुश्किल से लाई हूं। | 
| चंदा | नहीं लूंगी तुम उसकी फिक्र मत करो। | 
| लोरिक | किसको क्या ? | 
| मालिन दाई | (रोते हुए) मैं ऐसे दुख को नहीं जानती बेटा मैं क्या कर डालूं लोरिक ? | 
| लोरिक | तो अभी तो तुम खुसर-पुसर बात कर रही थी बुढ़िया। | 
| मालिन दाई | क्या खुसर-पुसर बात कर रही थी बेटा, मैं अपने दुख के मारे मर रही हूं और तुम मुझे चुप रह चुप रह बोल रहे हो बेटा। | 
| लोरिक | हां सही बात है दाई पांच थाली मोंहरे डालकर तुम गाय बछड़ा लेकर आई हो और गोठान का दरवाजा खोल दी तो वे भाग गए। | 
| मालिन दाई | हां हां बेटा गाय और बछड़ा भाग गए। | 
| लोरिक | राजा का हाथी और रानी की मुर्गी कहते हैं दाई । | 
| मालिन दाई | मुर्गी बोलते हैं। | 
| लोरिक | अगर हमसे गलती होती तो यह बड़े लोग क्या करते। | 
| मालिन दाई | अरे चार लोगों को इकट्ठा करके परेशान कर डालते जितने की गाय और बछड़ा गुमे नहीं हे उतना नुकसान भरपाई ले लेते। | 
| लोरिक | चन्दा को तुम्हारे पैर पकड़ कर माफी मांगनी होगी, चंदा, ओ चंदा.... | 
| चंदा | हां लोरिक। | 
| लोरिक | मालिन दाई के पांव छूओ , माफी मांगो। | 
| चंदा | दाई मैं तुम्हारे गोठान में आई थी, तुम्हारे गाय बछड़े भागे या नहीं भागे,फिर भी मैं तुम्हारे पैर पड़ रही हूं आशीर्वाद मांग रही हूं | 
| मालिन दाई | हां जैसे तेरे पैर पड़ने से मैं ऊपर ऊपर ही उड़ूंगी । | 
| लोरिक | पैर पड़ पैर पड़ । | 
| चंदा | हटा रे तेरे मरने पर रोऊं कूबड़ी बुढ़िया, मर जा तू बुढ़िया तेरा जनाजा निकालूं। | 
| लोरिक | पैर पड़ रही है पैर पड़ने वाले को लात नहीं मारते लो इधर चलो पैर छुओ। | 
| चंदा | लो ऐसे ही पड़ी होती तो क्या होता। | 
| मालिन दाई | चलो खुश रहो। | 
| लोरिक | लाओ उस पैर को दो। | 
| मालिन दाई | तो मेरा वो पैर छोड़ दो। | 
| लोरिक | उठाओ न उसे। | 
| मालिन दाई | अरे पहले उसे तो रख दो। | 
| लोरिक | हांन्न्न... जानती है यही है तेरे गाय बछड़े तो तुम क्यों बुलाई थी ? | 
| चंदा | पहाटिया तुम बाजार में जा कर तंबाकू पी कर होश खो बैठे थे । | 
| लोरिक | हां हां। | 
| चंदा | तुम्हें कोई होश हवास नहीं था मुझे बाजार गई महिलाओं ने बताया तो मैंने मल्लिन दाई को भेजा तुम्हें बुला लाने। | 
| लोरिक | मैंने तुझे गाय समझ लिया था रे बछड़ी ह ह ह ह गोठान में तू छुपी हुई थी। | 
| मालिन दाई | अरे चार लोगों को इकट्ठा करके परेशान कर डालते जितने की गाय और बछड़ा गुमे नहीं हे उतना नुकसान भरपाई ले लेते। | 
| लोरिक | चन्दा को तुम्हारे पैर पकड़ कर माफी मांगनी होगी, चंदा, ओ चंदा.... | 
| चंदा | हां लोरिक। | 
| लोरिक | मालिन दाई के पांव छूओ , माफी मांगो। | 
| चंदा | दाई मैं तुम्हारे गोठान में आई थी, तुम्हारे गाय बछड़े भागे या नहीं भागे,फिर भी मैं तुम्हारे पैर पड़ रही हूं आशीर्वाद मांग रही हूं | 
| मालिन दाई | हां जैसे तेरे पैर पड़ने से मैं ऊपर ऊपर ही उड़ूंगी । | 
| लोरिक | पैर पड़ पैर पड़ । | 
| चंदा | हटा रे तेरे मरने पर रोऊं कूबड़ी बुढ़िया, मर जा तू बुढ़िया तेरा जनाजा निकालूं। | 
| लोरिक | पैर पड़ रही है पैर पड़ने वाले को लात नहीं मारते लो इधर चलो पैर छुओ। | 
| चंदा | लो ऐसे ही पड़ी होती तो क्या होता। | 
| मालिन दाई | चलो खुश रहो। | 
| लोरिक | लाओ उस पैर को दो। | 
| मालिन दाई | तो मेरा वो पैर छोड़ दो। | 
| लोरिक | उठाओ न उसे। | 
| मालिन दाई | अरे पहले उसे तो रख दो। | 
| लोरिक | हांन्न्न... जानती है यही है तेरे गाय बछड़े तो तुम क्यों बुलाई थी ? | 
| चंदा | पहाटिया तुम बाजार में जा कर तंबाकू पी कर होश खो बैठे थे । | 
| लोरिक | हां हां। | 
| चंदा | तुम्हें कोई होश हवास नहीं था मुझे बाजार गई महिलाओं ने बताया तो मैंने मल्लिन दाई को भेजा तुम्हें बुला लाने। | 
| लोरिक | मैंने तुझे गाय समझ लिया था रे बछड़ी ह ह ह ह गोठान में तू छुपी हुई थी। | 
| मालिन दाई | अरे चार लोगों को इकट्ठा करके परेशान कर डालते जितने की गाय और बछड़ा गुमे नहीं हे उतना नुकसान भरपाई ले लेते। | 
| लोरिक | चन्दा को तुम्हारे पैर पकड़ कर माफी मांगनी होगी, चंदा, ओ चंदा.... | 
| चंदा | हां लोरिक। | 
| लोरिक | मालिन दाई के पांव छूओ , माफी मांगो। | 
| चंदा | दाई मैं तुम्हारे गोठान में आई थी, तुम्हारे गाय बछड़े भागे या नहीं भागे,फिर भी मैं तुम्हारे पैर पड़ रही हूं आशीर्वाद मांग रही हूं | 
| मालिन दाई | हां जैसे तेरे पैर पड़ने से मैं ऊपर ऊपर ही उड़ूंगी । | 
| लोरिक | पैर पड़ पैर पड़ । | 
| चंदा | हटा रे तेरे मरने पर रोऊं कूबड़ी बुढ़िया, मर जा तू बुढ़िया तेरा जनाजा निकालूं। | 
| लोरिक | पैर पड़ रही है पैर पड़ने वाले को लात नहीं मारते लो इधर चलो पैर छुओ। | 
| चंदा | लो ऐसे ही पड़ी होती तो क्या होता। | 
| मालिन दाई | चलो खुश रहो। | 
| लोरिक | लाओ उस पैर को दो। | 
| मालिन दाई | तो मेरा वो पैर छोड़ दो। | 
| लोरिक | उठाओ न उसे। | 
| मालिन दाई | अरे पहले उसे तो रख दो। | 
| लोरिक | हांन्न्न... जानती है यही है तेरे गाय बछड़े तो तुम क्यों बुलाई थी ? | 
| चंदा | पहाटिया तुम बाजार में जा कर तंबाकू पी कर होश खो बैठे थे । | 
| लोरिक | हां हां। | 
| चंदा | तुम्हें कोई होश हवास नहीं था मुझे बाजार गई महिलाओं ने बताया तो मैंने मल्लिन दाई को भेजा तुम्हें बुला लाने। | 
| लोरिक | मैंने तुझे गाय समझ लिया था रे बछड़ी ह ह ह ह गोठान में तू छुपी हुई थी। | 
| मालिन दाई | मैं बैठी हूं चौखट पर। | 
| लोरिक | ठीक है दाई | 
| 
 | (संगीत) | 
| दौनामांझर | अरे देखो तो हमारे घर के पहाटिया को सुबह दस-ग्यारह बजे से बाजार के लिए निकला है और अभी चार-पांच बज गए, अब तक घर नहीं लौटा है इसी बात को पहाटिया से कहूंगी तो बोलेगा मुझे मुझसे झगड़ती हो तुम ही बताओ दाई कि ऐसे में कैसे नहीं झगड़ू, मुझे साल भर हो गए शादी करके यहां आए कौन सी गली कौन सा रास्ता मुझे ठीक से नहीं पता जाने किसके घर बीड़ी तम्बाकू पीते बैठ गया होगा, किसी को जानती भी नहीं, पता नहीं कहां जाकर किसके घर पर बैठा होगा मैं किसके घर उसे बुलाने जाऊं। | 
| मालिन दाई | देखो रे बेटी बेटी अच्छे से दाव लगाकर खेलो चौपड़। | 
| लोरिक | ठीक है दाई । | 
| दौनामांझर | यही पास में ही दीदी रहती है जीजा जी बाजार गए होंगे तो देखे होंगे जाती हूं उन्हीं के घर .... ओ दीदी घर में हो क्या। | 
| जीजा | कौन है ? | 
| दौनामांझर | अरे बीमार कुत्ता चौखट पर आकर बैठा है अभी काट लिया होता। | 
| जीजा | कुत्ते को आवाज दे रही हो या अपनी दीदी को आवाज़ से रही हो ? | 
| दौनामांझर | अरे जीजा जी तुम हो क्या ? | 
| जीजा | क्या है कैसे आना हुआ ? | 
| दौनामांझर | अरे आप बाजार गए होंगे तो मेरे पति पहाटिया को देखे होगे यह पूछने के लिए आई हूं। | 
| जीजा | हां तो बाजार गया है तो सब्जी भाजी लेकर आता ही होगा तुम क्यों इतनी हड़बड़ी कर रही हो। | 
| दौनामांझर | वैसी बात नहीं है जीजा जी। | 
| जीजा | तो क्या बात है ? | 
| दौनामांझर | हमारे घर के पहाटिया सुबह से दस ग्यारह के बजे गया हुआ है बाजार। | 
| जीजा | हां। | 
| दौनामांझर | और अब देखो चार पांच बज गए हैं इतनी देर हो गई है अब तक नहीं लौटे हैं तुम भी तो बाजार गए थे तो कहीं उनसे भेंट हुई होगी कहकर तुम्हें पूछ रही हूं। | 
| जीजा | हां चौपड़ खेल रहा है चौपड़। | 
| दौनामांझर | लासा (गोंद) निकाल रहा है ? | 
| जीजा | लासा नहीं बोल रहा हूं। | 
| दौनामांझर | कहां पर लासा देख लिया होगा ? | 
| जीजा | चौपड़ खेल रहा है चौपड़ । | 
| दौनामांझर | हां बतासे ले रहें हैं लो जीजाजी लाएंगे तो तुमको भी देंगे क्यों नहीं देंगे बता रहे हो तो। | 
| जीजा | ले लेना और दो-चार किलो और बैठकर खाना आठ-दस दिन तक। | 
| दौनामांझर | अरे तो पहाटिया तो ला रहे हैं क्या ? | 
| जीजा | अरे चौपड़ खेल रहा है बोल रहा हूं तो बतासा ले रहा है बोलती है। | 
| दौनामांझर | तो तुम ही तो कह रहे हो कि पहाटिया ला रहें हैं। | 
| जीजा | चौपड़ खेल रहा है पासा। | 
| दौनामांझर | चौपड़ खेल रहा है ? | 
| जीजा | हां। | 
| दौनामांझर | तो कौन-कौन खेल रहे हैं किसके साथ खेल रहा है बताओगे तब तो। | 
| जीजा | राजकुमारी चंदा के साथ। | 
| दौनामांझर | अरे वह दुखदाई राजकुमारी चंदा के साथ जो अपना ससुराल छोड़कर मायके में आ कर बैठी है उसके साथ ? | 
| जीजा | हां। | 
| दौनामांझर | कसम से जीजा जी वो दुखदाई अगर वह मुझे मिल गई तो मैं उसे नहीं छोडूंगी, और कोदो की तरह कूट ना दिया तो मेरा नाम भी दौनामांझर नहीं जीजा जी। | 
| जीजा | हां। | 
| दौनामांझर | वह उस दुखदाई के साथ चौपड़ खेल रहा है यह बात तुम मुझे बता रहे तब तो मैं जान गई। | 
| जीजा | हां। | 
| दौनामांझर | फिर किसके घर खेल रहा है यह तो बता देते तब तो । | 
| जीजा | अच्छा वो मालिन दाई का घर है ना तालाब के किनारे, घास-फूंस के छत वाला । | 
| दौनामांझर | हां हां वही कोने में । | 
| जीजा | कोने में उन्ही के घर खेल रहा हैं। | 
| दौनामांझर | लो देखो उस दुखदाई को मेरे हाथ तो लग जाए तब उसे बताती हूं। | 
| जीजा | ए लड़की। | 
| दौनामांझर | क्या है जीजा जी। | 
| जीजा | जाने के लिए तो जाओगी लेकिन कैसे जाओगी। | 
| दौनामांझर | अरे हां कैसे जाऊंगी यह तो मैंने सोचा ही नहीं। | 
| जीजा | एक काम करो तुम्हारी दही बची है ना । | 
| दौनामांझर | हां बचा है, बचा है। | 
| जीजा | उसका मट्ठा बना लो और मट्ठा बेचने के बहाने जाओ। | 
| दौनामांझर | हां जीजा जी ने बहुत अच्छा उपाय बताया है, तीन दिन हो गए दही जमाए उसे ही मठा बना लेती हूं और उसको बेचने के बहाने से जाती हूं, मट्ठे का मट्ठा बिक जाएगा और और उस दुखदाई को भी देख लूंगी, पहाटिया को भी बुला कर ले आऊंगी (मट्ठा मथने की ध्वनि) मेरे पहाटिया को तो देखो एकदम दूसरों की बुद्धि से चलता है, घर में पैसे की कमी नहीं है फिर भी क्या बताऊं, किसके घर जाकर बैठा है, अरे ले लो बुढ़ी दाई दो रूपये का लोगी तो एक कढ़ाई सब्जी बन जाएगी, तुम लोग तो हंसते भर हो, लेते नहीं हो कोई भी, ले लो ना बेटी तुम्हारी मां ने भी कहा था, चलो दाई बेचते बेचते जाऊंगी। | 
| 
 | म्यूजिक | 
| दौनामांझर | यह जो चौखट में बैठी है पैर हाथ फैलाए यही है मल्लिन दाई ऐसा लग रहां है। | 
| मालिन दाई | चल रे। | 
| दौनामांझर | चलो थोड़ा पता कर लेती हूं वही है या नहीं। | 
| मालिन दाई | आठ दिन हो गए अच्छे से बाल बनाएं हुए, खाली बैठी हूं उससे अच्छा है कि अच्छे से कंघी कर लेती हूं फिर अगर वो बुड्ढा आ गया तो कहेगा, यह काम नहीं हुआ है, वह काम नहीं हुआ है, अरे हाय इतना बाल निकल रहा है मुट्ठी भर भर के बाल झड़ रहें हैं थू थू। | 
| लोरिक | मालिन दाई कोई आया तो नहीं है ना ? | 
| मालिन दाई | कोई नहीं आया है बेटा मैं चौखट में ही बैठी हूं कंघी कर रही हूं ये बड़े बड़े....। | 
| लोरिक | तुम कंघी कर रही हो उससे अच्छा मुंडवा क्यों नहीं लेती। | 
| मालिन दाई | अभी तो तुम्हारे दादा जिंदा है रे। | 
| लोरिक | किसी नाई को बुलाकर मुंडन करवा लो बोल रहा हूं। | 
| मालिन दाई | हां बुड्ढा मर गया होता तो जरूर मुंडन करवा लेती ओ हो इतने बड़े-बड़े जुंए ही जुएं ही कैसे जल्दी-जल्दी चल रहा है रोगहा (रोगी) काट भी रहा है। | 
| लोरिक | तो तुम भी उसको काटो ना। | 
| मालिन दाई | हटाओ ओहो जुए को ही चाट डाली छी। | 
| दौनामांझर | यही है जैसे लग रही है मालिन दाई, मालिन दाई.... ओ मालिन दाई। | 
| मालिन दाई | कौन है जो पट से मर गया। | 
| दौनामांझर | मालिन दाई घर में हो क्या ? | 
| मालिन दाई | कौन हो तुम ? | 
| दौनामांझर | मैं हूं पहाटनिन दौनामांझर। | 
| मालिन दाई | (स्वत: - ये पहाटनिन तुझको गाड़ने आ रही है ) आओ बैठो। | 
| दौनामांझर | बैठने के लिए नहीं आई हूं दाई, मट्ठा बेचने आई हूं ले लो ना मट्ठा। | 
| मालिन दाई | कौन बोला है ? | 
| दौनामांझर | तुम्हारे घर के दादा जी मिले थे बाजार से आ रहे थे तो उन्होंने बोला था बहू भिंडी ले जा रहा हूं उसके लिए मट्ठा होगा तो भिजवा देना। | 
| मालिन दाई | हां हां। | 
| दौनामांझर | तो इधर बेचते बेचते आई हूं दाई । | 
| मालिन दाई | तुम तो सब जान रही हो , सब सुन रही हो बेटी। | 
| दौनामांझर | किसको ? | 
| मालिन दाई | तुम्हारे ढोलक वाले दादा जी खुजली रोग से ग्रस्त है। | 
| दादा | हां वह जन्मजात खुजली वाला रोगी तो है बेचारा। | 
| दौनामांझर | अरे तुम ही तो बोले थे दादा तभी तो आई हूं। | 
| दादा | मैं नहीं बोला था भाई बुढ़िया बोली थी। | 
| दौनामांझर | कैसे ? | 
| लोरिक | कैसे दादाजी बूढ़ीया बहुत खट्टा खा रही है कोई खुशखबरी है क्या ? | 
| मालिन दाई | धत् रे... गाड़ने लायक। | 
| दादा | मैं नहीं जानता बुढ़िया ही जाने। | 
| मालिन दाई | तरह तरह का बोलता रहता है नानजात, यहां मेरी अस्सी-पच्यासी की उम्र हो गई है और ऊपर से बोल रहे हो कुछ आ रहा है क्या ? | 
| दौनामांझर | दाई ले लो ना दो रूपए का नहीं लोगी तो एक ही रूपए का ले लो। | 
| मालिन दाई | नहीं एक रूपए का भी नहीं लूंगी। | 
| दौनामांझर | क्यों नहीं ले रही हो ले लो ना ? | 
| मालिन दाई | वह क्या है सयाना शरीर है मट्ठा-वट्ठा खा लें तो खांसी हो जाती है। | 
| दौनामांझर | हां जी। | 
| मल्लिन दाई | नहीं तो कान नाक बहना शुरू हो जाता है। | 
| दौनामांझर | अरे। | 
| मालिन दाई | जाओ उसी तरफ ले जाकर बेच डालो जा जा जा जा जा। | 
| दौनामांझर | मठा नहीं लेना है तो मत लो सयानी लेकिन मैं सुबह से मट्ठा बेचने निकली हूं तो कम से कम एक लोटा पानी तो दे दो दाई । | 
| मालिन दाई | हां तेरे लिए तो मैं शरबत घोलकर रखी हूं। | 
| दौनामांझर | अरे क्यों अकड़कर बोल रही हो। | 
| मालिन दाई | यहां साल भर हो गया हम ही पानी नहीं पी रहे हैं और इसे गाड़ दूं ये यहां पानी मांग रही है। | 
| दौनामांझर | ये देख लो इस बुढ़िया को, साल भर से पानी नहीं पी रही हूं कह रही है फिर भी जिंदा है जो पानी नहीं पीती तो क्या जिंदा रहती ? | 
| मालिन दाई | तो नहीं जिऐंगे रोज ही पानी जो गिर रहा है। | 
| दौनामांझर | हां नाती बहू मानते हो इसलिए हंसी-ठिठोली दिल्लगी कर रहे हो, मट्ठा भी नहीं लेते, पानी भी नहीं देते, तो क्या हो गया मेरे पहाटिया को कहीं देखे हो क्या ? | 
| मालिन दाई | क्या ? | 
| दौनामांझर | हमारे घर के पहाटिया को, तुम्हारे नाती को पूछ रही हूं दाई ? | 
| मालिन दाई | मैं घर से बाहर नहीं निकली हूं और कहां से हाथी देखूंगी तरह-तरह की बातें करती हो, क्या हाथी की पूजा करोगी ? | 
| दौनामांझर | यह बुढ़िया बहुत बहरी है कुछ पूछती हूं तो कुछ सुनती है ? | 
| मालिन दाई | क्या है ? | 
| दौनामांझर | मैं हाथी वाथी को नहीं पूछ रही हूं। | 
| मालिन दाई | तो किसको पूछ रही हो ? | 
| दौनामांझर | अरे हमारे घर के पहाटिया को आप के नाती को कही पर देखि हो क्या, पूछ रही हूं। | 
| मालिन दाई | अच्छा लोरिक को पूछ रही हो ? | 
| दौनामांझर | उसी को तो पूछ रही हूं । | 
| मालिन दाई | अरे अरे अरे अरे हफ्ता भर हो गए बेटी मैंने उसे देखा नहीं है। | 
| दौनामांझर | अरे हां। | 
| मल्लिन दाई | नहीं तो रास्ते में चलते फिरते दिख जाता था कभी-कभी चोंगी पीने के बहाने हमारे घर आकर एक घड़ी बैठ भी जाता फिर जाता घर। | 
| दौनामांझर | अरे। | 
| मालिन दाई | नहीं देखी हूं बेटी नहीं तो क्या बता नही देती उसी तरफ जाओ जाओ जाओ किसी से पूछ लेना जाओ। | 
| दौनामांझर | लो देख लो। | 
| मालिन दाई | तुझे गाड़ दूं तेरा चेहरा हटा यहां से। | 
| दौनामांझर | ये बुढ़िया बूढ़ी हो गई है पर झूठ बोलना नहीं छोड़ी, हफ्ता हो गए पहाटिया को नहीं देखी हूं कह रही है, कैसे सरासर झूठ बोल रही है देखो, और अंदर से पहाटिया के चौपड़ खेलने की आवाज आंगन तक आ रही है, ऐसे में किसकी आत्मा नहीं जलेगी, कैसे बुढ़िया ? | 
| मालिन दाई | क्या है रे ? | 
| दौनामांझर | पहाटिया को हफ्ता हो गए नहीं देखी हूं बोल रही हो, तो पहाटिया की खुमरी और लाठी तुम्हारे तुलसी-चौरा में कैसे रखी है ? | 
| मालिन दाई | कहां रे ? | 
| दौनामांझर | वह तो। | 
| मालिन दाई | (स्वत:) मर गई रे गाड़ने लायक अपनी खुमरी लाठी यहीं पर रख दिया। | 
| लोरिक | कौन आया है दाई ? | 
| मालिन दाई | कितने समय इसकी आंखें चमकने लग गई तुम्हारे घर की बहू आई है रे बहू बहू बहू। | 
| लोरिक | हां नहीं है बोल दो। | 
| मालिन दाई | अरे हां वह तो तुम्हारे दादा जी का है तुम कैसे अंधी जैसे बात कर रही हो , तुम्हारा पहाटिया भला मेरे घर की तुलसी चौरा में अपनी खुमरी लाठी क्यो रखेगा हां ये बात शोभा देती है क्या ? | 
| दौनामांझर | तो क्या अपने और पराए की चीजों को भी नहीं पहचानूंगी ? | 
| मालिन दाई | हां नहीं पहचान लेगी ठप्पा जो लगा है ? | 
| दौनामांझर | इस दुखदायी बुढ़िया को देखो बीच दरवाजे में हाथ पैर फैलाए बैठ गई है और टेढ़ी-मेढ़ी बातें कर रही है। | 
| मालिन दाई | अरे जबान संभाल के बात कर। | 
| दौनामांझर | लो देख लो तुम्हारे मरने का रोना रोऊं रे दुखदायी। | 
| मालिन दाई | तुम्हारा रोना पड़े। | 
| दौनामांझर | मैंने तुम्हें मजा नहीं चखाया तो मेरा नाम भी दौनामांझर नहीं, रिश्ता नाता बाद में मानूगीं। | 
| मालिन दाई | हां हां। | 
| दौनामांझर | तेरे खाट में तेरा लाश निकले (मालिन को दौनामांझर पीटती है ) | 
| मालिन दाई | हाय माँ मैं मर गई अब क्या करूं। | 
| बबा | ओ लोरिक। | 
| लोरिक | क्या है दाई ? | 
| दादा | अरे देख तो किसके राचर (खालिहान का दरवाजा) को सांड ने गिरा दिया। | 
| मालिन दाई | लो देखो गाड़ने लायक आदमी को ये औरत मेरे पैर पकड़कर घुमा-घुमा कर मुझे फेंक रही है और ये कह रहे हैं सांड ने राचर गिरा दिया। | 
| लोरिक | बुढ़िया को सांड जैसे पटक दिया और लड़ाई कर रही है। | 
| मालिन दाई | अरे मैंने भी कई बार पटकनी दी है, हाय कमर तोड़ दी दर्द भर गया। | 
| 
 | गीत :- | 
| रागी | कह रहा है लोरिक। | 
| लोरिक | लोरिक है जो। | 
| रागी | है जो । | 
| लोरिक | चंदा के साथ में। | 
| रागी | खेल रहा है। | 
| लोरिक | चौपड़ खेल रहा है। | 
| रागी | चौपड़ है तेरा। | 
| लोरिक | एक समय की बात है ये जो चौपड़ है तेरा। | 
| लोरिक | चौपड़ है तेरा। | 
| लोरिक | उस समय की बात है क्या बताऊं मैं साथी। | 
| रागी | मेरे लोरिक और चंदा चौपड़ खेल रहें हैं। (गीत समाप्त ) | 
| लोरिक | तीन और तीन छह चंदा। | 
| चंदा | जुआ खेलोगे पहाटिया ये पै बारह। | 
| लोरिक | ये कच्चे बारह | 
| दौनामांझर | तुम्हारे सत्रह अट्ठारह को तो मैं पूरा करती हूं रे दुखदायी , अरे निकल इस तरफ तू पहले। | 
| चंदा | कौन है क्या बोल रहा है ? | 
| लोरिक | वो मल्लिन दाई होगी धीरे से खेलना कह रही होगी। | 
| चंदा | अच्छा ऐसा क्या। | 
| दौनामांझर | कोई नहीं है अच्छे से खेलो अच्छे से खेलो कह रही हूं। | 
| चंदा | क्या बोल रही है ? | 
| लोरिक | क्या पता बूढ़ीया दरवाजे को उसी तरफ धकेलो कह रही है शायद | 
| चंदा | लगता है दुखदायी बूढ़ीया की सरक गई है। | 
| लोरिक | पैर थके तो थके मन क्यों...। | 
| चंदा | हां मन क्यों थके। | 
| दौनामांझर | हां बढ़िया खेलो, तुम लोगों को निमंत्रण देने आई हूं। | 
| चंदा | वो देखो कोई अंधे जैसा बोल रहा है जाओ थोड़ा देख आओ। | 
| लोरिक | अरे पहाटनिन तुम हो यहां कैसे आई हो ? | 
| दौनामांझर | तुम क्या यहां आए हो ? | 
| लोरिक | अरे मैं बाजार से आ रहा था ना, तो मुझे मल्लिन दाई मिल गई कहने लगी...। | 
| दौनामांझर | अरे हां। | 
| लोरिक | बोली बेटा तुम्हारे दादा ने पांच थाली मोहरें देकर गाय और बछड़ा लायें है। | 
| दौनामांझर | गाय और बछड़ा लाए हैं। | 
| लोरिक | हां अरे इतनी ऊंची गाय है। | 
| दौनामांझर | पहाटिया हमारे पूरे गांव में इतनी ऊंची गाय तो किसी के घर भी नहीं है। | 
| लोरिक | और बच्चा बहुत ही छोटा है मुंह थन तक नहीं पहुंच पा रहा है। | 
| दौनामांझर | दूसरे की गाय और दूसरे का बछड़ा होगा जी । | 
| लोरिक | लाए थे तीन किलो दूध दे रही थी। | 
| दौनामांझर | अरे तीन किलो ? | 
| लोरिक | गोठान में थी तो तीन किलो दे रही थी अब डेढ़ किलो भी नहीं दे रही है। | 
| दौनामांझर | कैसे पहाटिया ? | 
| लोरिक | अब कितने ही बैरी कितने ही दुश्मन हैं , किसी की नजर लग गई होगी, मुझे कहा कि चलो बेटा थोड़ा झाड़ फूंक कर देना मेरे फूंकने पर बछड़े को पिला रही है। | 
| दौनामांझर | हां सही बात है पहाटिया जिसे आता है उसे करना ही चाहिए, लेकिन पहाटिया तुम कब से झाड़-फूंक करने लगे हो ? | 
| लोरिक | अरे मुझे तो तीस साल हो गए फूंकते झाड़ते। | 
| दौनामांझर | मैं सच्ची कह रही हूं पहाटिया जब से तुम्हारे घर आई हूं, मैं बिल्कुल भी नहीं जानती कि तुम झाड़ फूंक भी करते हो मेरी भी कमर में दर्द हो रहा है, पहाटिया थोड़ा मुझे भी झाड़ फूंक कर दोगे क्या ? | 
| दादा | लो अब जमाओ। | 
| लोरिक | चुप कर घर के घर में यह काम असर नहीं करता। | 
| दौनामांझर | कैसे जी ? | 
| लोरिक | बड़े-बूढ़े कहते हैं वैद्य के घर में बच्चे नहीं होते और बढ़ाई के घर में पीढ़ा-पाटा नहीं होता, कोई वैद्य अपना ही भभूत से अपने हाथ पैरों को झाड़ते फूकते देखा है क्या भला ? | 
| दौनामांझर | हां। | 
| लोरिक | यह दूसरों के घर काम करता है। | 
| दौनामांझर | सही बात है। | 
| लोरिक | हां। | 
| दौनामांझर | सही बात है जी । | 
| लोरिक | तो चलो चलें ? | 
| दौनामांझर | पहाटिया तुम कह रहो हो कि मल्लिन दाई ने पांच थाली मोहरें देकर ऊंची गाय खरीदी है तो मही बेचते बेचते आई हूं तो एक नजर मैं भी देख लूं फिर चलते हैं दोनों घर। | 
| लोरिक | रुको मैं पहले अंदर से पूछ कर आता हूं थोड़ा। | 
| दौनामांझर | लो जाओ जल्दी पूछो। | 
| लोरिक | (चंदा के पास जाकर) ए चंदा कैसे तूने चाल बदल दी क्या ? | 
| चंदा | लोरिक कौन है गया क्या ? | 
| लोरिक | गया क्या... और चौपड़ खेलना है क्या , अब उसे गाय बछड़ा देखना है बोल रही है मुझे गुस्सा आ रहा है। | 
| चंदा | गाय बछड़ा। | 
| लोरिक | तो। | 
| चंदा | पहाटिया यहां न गाय है ना बछड़ा है तो क्या दिखाओगे ? | 
| लोरिक | ऐसा करते हैं | 
| चंदा | कैसे ? | 
| लोरिक | बुढ़िया के घर के गोठान में तो अंधेरा है। | 
| चंदा | हां अंधेरा तो है। | 
| लोरिक | चलो तुम्हे उस गाय के पानी पीने की नाद की जगह बांध देता हूं और एक गठरी पुआल डाल देता हूं इतना तो कर ही सकती हो | 
| चंदा | जब देखो तुम् ऊटपटांग बोली बोलते हो मैं इंसान क्या पैरा भूसा खाऊंगी भला ? | 
| लोरिक | पकड़ने आ जाएगी तो हम्मा हम्मा कहकर रंभाना | 
| चंदा | ना मैं पैरा भूसा खा सकती हूं ना मैं ऐसे चिल्ला सकती हूं लेकिन कर ही रहे हो तो एक काम जरूर कर दो। | 
| लोरिक | कैसे ? | 
| चंदा | मेरे गले में रस्सी बांध देना, मैं यहीं चुपचाप दुबक के पानी पीने की जगह में बैठी रहूंगी मेरे ऊपर खूब सारा पुआल से ढंक देना, जब तुम्हारी पत्नी ढूंढने आएगी तो मैं बिल्कुल चुप रहूंगी वह मुझ पर पाँव रख देगी, रौंद भी डालेगी तो भी नहीं मैं कुछ नहीं बोलूंगीं। | 
| लोरिक | ऐसा क्या। | 
| चंदा | हां। | 
| लोरिक | तो चलो ठीक है। | 
| दोनामांझर | पहाटिया। | 
| लोरिक | हां..। | 
| दौनामांझर | एक गठरी पुआल से क्या होगा जी । | 
| लोरिक | हां हां हां। | 
| दौनामांझर | पांच गठरी पुआल लाना और उसके ऊपर ढंक देना और मैं जाकर माचिस से जला दूंगी। | 
| लोरिक | ये भी अच्छी बात है ह ह ह ह कंद की तरह भून जाएगी। | 
| दौनामांझर | तो क्या बोली मालिन दाई ? | 
| लोरिक | हां जाओ देखकर आओ बोल रही है | 
| दौनामांझर | पहाटिया तुम यहीं पर रहो मैं जल्दी से आ रही हूं। | 
| 
 | (संगीत) | 
| दौनामंझर | पहाटिया....। | 
| लोरिक | हां....। | 
| दौनामांझर | गाय को कैसे दरवाजे पर बांध दिए हो ? | 
| लोरिक | तो तुमने क्या देख लिया ? | 
| दौनामांझर | अरे उसकी पूछ पकड़ में आई है। | 
| लोरिक | वह अंधेरे में चंदा की चोटी को गाय की पूंछ समझ रही है, चलो अच्छा है झगड़े से तो बच गए। | 
| दौनामांझर | पहाटिया। | 
| लोरिक | हां । | 
| दौनामांझर | गाय की पूंछ क्यों ठूंठ जैसी है ? | 
| लोरिक | वह बछड़े ने पूंछ को चबा लिया होगा। | 
| दौनामांझर | अरे पूंछ को बछड़े ने चबा लिया होगा तो सींग किसने चबा लिया होगा ? | 
| लोरिक | हां। | 
| दौनामांझर | तो सींग किसने चबा लिया होगा ? | 
| लोरिक | अरे पगली गंजी,बिना सींग की गाय है ना। | 
| दौनामांझर | सही है पहाटिया मैंने सोचा गाय मारती होगी बड़ी-बड़ी सींगों वाली यह तो बिना सींग वाली गाय है। | 
| लोरिक | लो चलो रे। | 
| दौनामांझर | चलो... देखो तो कहने को राज महर की बेटी चंदा है और यहां गाय बछड़ा बन कर गोठान में बैठी है, मर जा रे तेरा रोना राऊं रे दुखदायी, पहाटिया उस गाय को बांधो जो भाग रही है। | 
| चंदा | तुम्हारा रोना रोऊं... कौन गाय है और कौन बछड़ा है तुम्हारी आंखें फूट गई है क्या बटेर जैसी आंखों वाली अंधी कुबड़ी....। | 
| दौनामांझर | तुमको आंखों से नहीं दिखा होगा, अंधी, बीमार रहने वाली, लूली-लंगड़ी कुबड़ी। | 
| चंदा | तेरी आंखें फूटे रे रोगी लंगड़ी। | 
| दौनामांझर | क्या बताएगी मुझे तू, अंधी, तेरी मां अंधी, तेरा बाप अंधा। | 
| चंदा | तू मर जा। | 
| दौनामांझर | तेरा रोना रोऊं रे। (दोनों एक दूसरे को मारने-कूटने लगती है और अंत दौनामांझर बारह मुक्के चंदा को जड़ देती है।) | 
| 
 | संगीत | 
| लोरिक | चलो और खेलोगी चौपड़ निकल गया ना लासा (गोंद)। | 
| चंदा | पहाटनिन आज तूने मुझे बारह मुक्के मारे हैं, मैं कसम खाकर कह रही हूं अगर बारह साल के लिए तुम्हारे पति को अपने साथ ना ले गई तो मेरा नाम भी राजकुमारी चंदा नहीं। | 
| दौनामांझर | बहुत ज्यादा हो गया क्या रे। | 
| चंदा | दौना तुम बेसुरी नाक बहने वाली। | 
| दौनामांझर | तू दुबली-पतली, अरहर की लकड़ी। | 
| चंदा | तुम सूअर जैसे मुंह वाली । | 
| दौनामांझर | राजा की बेटी है तो नाक ऊंची करके देख रही है क्या ? | 
| चंदा | हाय उसने मुझे बहुत मारा। | 
| दौनामांझर | तुम्हारी खाट-मुर्दा निकले रे तेरा रोना रोऊं । | 
| चंदा | इसका रोना रोऊं, इसका एक-एक मुक्का पत्थर जैसा लगता है माँ । | 
| लोरिक | इसका मुक्का देखा है जब रोटी बनाती है उसका टुकड़ा नहीं देखा है। | 
| चंदा | उसकी बनाई रोटी उसे ही खिला देना उसके ही मुंह में ठूंस देना अंधी के, मर जाती, खतम हो जाती, उसका रोना पड़ जाता। | 
| लोरिक | (दौना से ) बहुत ही ज्यादा मार दिया क्या उसको ? | 
| दौनामांझर | तो। | 
| लोरिक | (हंसते हुए) हा हा हा आखिर पत्नी किसकी है पहाटिया लोरिक की रौताईन | 
| दौनामांझर | अरे अरे अरे किसकी पत्नी ? | 
| दादा | भाग रे भाग रे। | 
| लोरिक | (दौनामांझर की तरफ हाथ उठाते हुए) एक दो थप्पड़ जड़ दूंगा तो जान जाएगी। | 
| दौनामांझर | लो गलती हो गई हो तो मार भी दो। | 
| लोरिक | लो मैं चला जाता हूं तुम लोग मारो । | 
| दादा | तू भी वैसा ही है यार। | 
| लोरिक | हंय...। | 
| दादा | तुम भी वैसे ही हो। | 
| लोरिक | क्या हो गया दादा ? | 
| दादा | पूरा जोरू का गुलाम। | 
| लोरिक | जोरू का गुलाम कह रहें हैं चलो चलते हैं। | 
| दौनामांझर | पहाटिया मैं तुमसे पूछती हूं की इसी तरह चौपड़ खेलते रहोगे तो क्या हमारा गुजर बसर हो जाएगा। | 
| लोरिक | वह बुढ़िया कहां गई गाय बछड़ा है कहकर मुझे झूठ बोल कर लाई थी । | 
| दौनामांझर | हां खिलाने के लाई थी चलो चलते हैं जब मैं नई नई आई थी तब तुम मुझसे कितना प्यार करते थे और अब नहीं करते हो। | 
| लोरिक | वाह प्यार नहीं करता तो यह डेढ़ रुपए की नेल पॉलिश लेकर नहीं देता। | 
| दौनामांझर | हां उतने में ही प्यार बढ़ गया क्या ? | 
| लोरिक | चलो उसे आंखों में लगा लेना। | 
| दौनामांझर | वाह देखो तो कौन नेल पॉलिश आंखों में लगाता है भला। | 
| लोरिक | और जो लगा ही लोगी तो क्या हो जाएगा ? | 
| दौनामांझर | तो फिर आंखें छछून्दर जैसी छोटी-छोटी हो जाएंगी। | 
| लोरिक | हां छोटी छोटी हो जाएगी ना। | 
| दौनामांझर | हां तो छोटी बड़ी। | 
| लोरिक | तो उससे नहीं धो लोगी क्या। | 
| दौनामांझर | किससे ? | 
| लोरिक | मिट्टी के तेल (केरोसिन) से। | 
| दौनामांझर | लो देख लो हमेशा उल्टा पुल्टा ही बोलते हैं पहाटिया। | 
| लोरिक | नहीं अगर चिपकने लग जाए तो कह रहा हूं। | 
| दौनामांझर | लो जल्दी आना घर की तरफ, मैं चाय बना कर रखती हूं। | 
| लोरिक | हां। | 
| दौनामांझर | और हां किसी के घर की ओर मत चले जाना। | 
| लोरिक | हां क्या अजीब झगड़ा है बाबा तभी बड़े-बूढ़े कहते हैं कि अगर घर में कचरा फैलाना है तो मुर्गी पाल लो और घर में झगड़ा बढ़ाना है तो दो बीवी रख लो। | 
| 
 | गीत | 
| लोरिक | मेरा कहता हैं बैरी। | 
| रागी | कहता है तेरा। | 
| लोरिक | लोरिक था जो। | 
| रागी | था जो। | 
| लोरिक | गैया हांक रहा था। | 
| रागी | गैया है जी। | 
| लोरिक | हो... रे.. होरे.. । | 
| रागी | कह रहा था। | 
| लोरिक | उस समय की बात है जाने के समय। | 
| रागी | क्या बताऊं मेरे भैया लोरिक है भैया क्या बताऊं मेरे साथी।(गीत समाप्त) | 
| लोरिक | (लोरिक की गाय जंगल में यहां वहां फैली हुई है लोरिक की बांसुरी सुनकर चंदा उसके पास आती है।) | 
| चंदा | तो ,तुमने मुझे मार खिलाया तो तुम्हें बहुत अच्छा लगा ना ? | 
| लोरिक | क्या अच्छा लगेगा चंदा ? | 
| चंदा | क्या अच्छा लगेगा चंदा बोल रहे हो और । | 
| लोरिक | जब तुम्हें मार पड़ रही थी तो मेरे आंसू से आंखें गिर रही थी। | 
| चंदा | अरे अरे इतनी बड़ी बड़ी आंखें गिरने तक क्यों रो लिए पहाटिया, तुम्हें मजाक सुझा है और यहां मुझे तुम्हारी याद में मुझे न खाने भाता न पीने भाता है पहाटिया। | 
| लोरिक | वैसे ही मुझे भी हो गया है चंदा। | 
| चंदा | तुम को क्या हुआ ? | 
| लोरिक | जब खा लेता हूं तो भूख नहीं लगती। | 
| चंदा | तो खाने के बाद पेटू कहीं के और भूख लगती है ? | 
| लोरिक | तो रे। | 
| चंदा | मैं सीधे बोलती हूं तो तुम उल्टा बोलते हो। | 
| लोरिक | तो तुम क्या बोल रही थी ? | 
| चंदा | मैं तुमको नहीं देखती तो मुझे ना खाने की इच्छा होती है ना पीने की इच्छा होती है ना ही नींद आती है ये बोल रही हूं। | 
| लोरिक | तो क्या विचार किया है ? | 
| चंदा | हम इस शहर में नहीं रहेंगे। | 
| लोरिक | ऐसे । | 
| चंदा | हां दूसरे शहर चले जाएंगे चलो। | 
| लोरिक | यहाँ,तुमको नदी तालाब में आने जाने वाले महिलाएं तुम्हे ताने मारती होंगी ? | 
| चंदा | हां बहुत ताने मारती है। | 
| लोरिक | कैसा बोलती है ? | 
| चंदा | अरे चंदा ऐसी है लोरिक वैसी है. तरह-तरह की इधर-उधर की बातें करती रहती हैं, कौन सा दुख बताऊं तुम्हें ? | 
| लोरिक | नहाने को जाती हो तब ? | 
| चंदा | नहाने जाऊं तब पानी भरने जाऊं तब। | 
| लोरिक | तो महिलायें घाट में नहाना धोना बंद कर दो। | 
| चंदा | तो फिर ? | 
| लोरिक | पुरुषों के घाट में नहाया करो । | 
| चंदा | चलो ऊटपटांग बोलते हो तुम। | 
| लोरिक | तो तुम्हें मुझे ले जाना है ना ? | 
| चंदा | हां। | 
| लोरिक | तो एक झांपी बनवा लो और झांपी बनवाने के लिए मालिन बूढ़ीया के घर जाओ। ‘झांपी’ (बांस की बनी वह टोकरी जिसमें दुल्हन के कपड़े गहने जेवर और जरूरत के सामान रखी जाती है) | 
| चंदा | मालिन बुढ़िया के घर। | 
| लोरिक | हां उसी को तुम कहना किसी को भेज करके झांपी बनवा देगी। | 
| चंदा | हां किसी को भेजकर बनवा देगी, है न। | 
| लोरिक | धीरे से बोलो कब आना है कब जाना है उसको, पहले झांपी तो बनवा लो चंदा। | 
| चंदा | ऐसा उसी दिन बता लेंगे फिर। | 
| लोरिक | मेरी चंदा सुन लेना। | 
| रागी | सुन रही है । | 
| लोरिक | मेरा कह रहा है लोरिक। | 
| रागी | कह रहा है। | 
| लोरिक | मेरा लोरिक बता रहा है। | 
| रागी | कह रहा है तुम्हारा। | 
| लोरिक | चंदा सुन रही है। | 
| रागी | सुन रही है तुम्हारी। | 
| लोरिक | मालिन के घर में। | 
| रागी | जा रही है। | 
| लोरिक | तुम चली जाना चंदा। | 
| रागी | जा रही है। | 
| लोरिक | ए सुन्दर झांपी बनावा लेना रे बैरी। | 
| रागी | उस समय की बात है... जाने का समय... क्या बताऊं मैं साथी... जाने के समय... जाने का समय... चंदा तेरे जाने के समय....। | 
| चंदा | यही मालिन दाई का घर... मालिन दाई ... ओ मालिन दाई ... हो कि नहीं ? | 
| मालिन दाई | कौन हो रे तुमको गाड दूं ? | 
| चंदा | मैं हूँ दाई राजकुमारी चंदा हूं। | 
| मालिन दाई | चंदा। | 
| चंदा | मालिन दाई । | 
| मालिन दाई | क्या हो गया री। | 
| चंदा | एक काम लेकर आई हूं सयानी। | 
| मालिन दाई | काम क्या काम तुम्हारा तो दिन रात काम ही रहता है। | 
| चंदा | कैसे नहीं रहेगा काम कसम से तुम्हारे बिना ही अटक जाती हूं। | 
| मालिन दाई | बता। | 
| चंदा | दाई तुम तो जानती ही हो उस दिन तुम्हारे घर हम लोग चौपड़ खेल रहे थे तो उस पहाटनिन ने मुझे बारह मुक्के मारे थे, जान तो रही हो ना । | 
| मालिन दाई | हां जानती हूं। | 
| चंदा | उसी दिन मैंने कसम खाई थी वादा किया है । | 
| मालिन दाई | हां हां। | 
| चंदा | मैंने कहा था बारह साल के लिए तेरे पति को भगा कर ले जाऊंगी, ए मैंने कहा था। | 
| मालिन दाई | हां तुम बोली थी | 
| चंदा | आज वह दिन आ गया है, पूरा हो रहा है | 
| मालिन दाई | हां हां हां। | 
| चंदा | तो मैं कह रही हूं कि कहीं से झांपी का जुगाड़ कर देती। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| चंदा | ढूंढ देती ना दाई या किसी को बोल दो ना, कोष्टा के घर जाकर मेरे लिए सुंदर-सुंदर साड़ियां बुनवा देती, सुनार के घर जाकर बारह साल के मेरे लिए सुन्दर-सुन्दर गहने गढ़वा देती, इतना काम कर दो न दाई। | 
| मालिन दाई | तो कैसे होगा पैसे दोगी तो सुनार के घर जाऊंगी। | 
| चंदा | मैं हूं ना तुम क्यों फिक्र करती हो। | 
| मालिन दाई | हां कोष्टा के घर जा रहीं हूं गांड़ा घर जा रही हूं। | 
| चंदा | हां हां देखो एक दूसरा कोई और न जानने पाए । | 
| मालिन दाई | अरे तो कौन जानेगा रे... तुम और मैं, मैं और तुम। | 
| चंदा | तब भी से किसी से मत कहना वैसे भी एक बार तुम्हारे घर मुझे मार खिला चुकी हो। | 
| मालिन दाई | हां तू अपने हाथों मार खाई है इसमें मैं क्या सकती हूं। | 
| चंदा | पर इस बार कोई न जान सके। | 
| मालिन दाई | कोई नहीं जानेगा बेटी। | 
| चंदा | हां हां आओगी तो मुझे खबर कर देना। | 
| मालिन दाई | हां और मेरी मजदूरी भर भिजवा देना। | 
| चंदा | हां तुम्हारी रोजी मजदूरी कहां जाएगी दे दूंगी। | 
| मालिन दाई | तो एसे करो ना । | 
| चंदा | कैसा ? | 
| मालिन दाई | तुम यहीं पर रहो मैं कंड़रा (एक जाति जो बांस से दैनिक उपयोगी सामग्री बनाती है) के घर से झांपी ला देती हूं, बन जाए गा। | 
| चंदा | नहीं मैं ही घर से आती हूं तब बनेगा। | 
| मालिन दाई | ऐसे। | 
| चंदा | हां | 
| मालिन दाई | जाती हूं देखती हूं। | 
| चंदा | हां हां। | 
| मालिन दाई | लो जा रही हूं रे। | 
| 
 | (संगीत) | 
| मालिन दाई | ओ कंड़रा हो क्या ? | 
| कंड़रा | हां। | 
| मालिन दाई | जाग रहे हो या सो रहे हो ? | 
| चंदा | जाग रहा हूं बताओ क्या काम है ? | 
| मालिन दाई | जाग रहे हो तो एक झांपी बना दो कह रही हूं। | 
| कंड़रा | झांपी अच्छा मजबूत वाला चाहिए ? | 
| मालिन दाई | हां मजबूत वाला। | 
| कंड़रा | हां ठीक है बन जाएगा बन जाएगा। | 
| मालिन दाई | और ढक्कन भी मजबूत बना देना टूट न जाए नहीं तो एक भी पैसा नहीं मिलेगा। | 
| कंड़रा | बांस का बनाऊंगा मजबूत वाला। | 
| मालिन दाई | हां हां नहीं तो पैसे नहीं मिलेंगे सारे पैसे मैं हड़प लूंगी। | 
| लोरिक | ऐसा करती मालिन दाई । | 
| मालिन दाई | कैसा करूं ? | 
| लोरिक | चंदा के लिए झांपी बनवाने जा रही हो ना | 
| मालिन दाई | हां हां। | 
| लोरिक | तो ये जो रखा है, वह क्या जांता है ? | 
| मालिन दाई | झांपी नहीं है बेटा ये झांपा है। | 
| लोरिक | (हंसते हुए ) ले जा दाई । | 
| मालिन दाई | ओ सुनार घर में हो क्या ? | 
| सुनार | क्या हुआ बूढ़ी अम्मा। | 
| मालिन दाई | अरे जाग रहे हो सुनार। | 
| सुनार | हां जाग रहा हूं दाई । | 
| मालिन दाई | अरे मेरे लिए सुंदर सुंदर गहने बना देते। | 
| सुनार | हां अम्मा सब बना बनाया रखा है ले जाओगी ? | 
| मालिन दाई | अरे तो दे दो ना उसके लिए ही तो आई हूं। | 
| सुनार | चलो ठीक है। | 
| मालिन दाई | जितना भी पैसा लगे ले लेना न। | 
| सुनार | वह बाद में बनता रहेगा पहले ले जाओ। | 
| मालिन दाई | हां हां बस। | 
| लोरिक | पूरा हो गया क्या दाई सब काम कर डाली ? | 
| मालिन दाई | सब हो गया बेटा। | 
| लोरिक | मैं बस जान गया चंदा बताई थी न। | 
| मालिन दाई | चंदा बोली थी। | 
| लोरिक | तो कब निकलने को बोली है ? | 
| मालिन दाई | अरे रातो-रात। | 
| लोरिक | मैं तो चंदा के साथ चला जाऊंगा दाई । | 
| मालिन दाई | हां बेटा। | 
| लोरिक | तुम बच गई तुम। | 
| मालिन दाई | मैं। | 
| लोरिक | तुम भी उस बुड्ढे को चली जाओगी तो बनेगा ? | 
| मालिन दाई | तो मैं अपने बुड्ढे को छोड़कर उस बुड्ढे के साथ क्यों जाऊंगी रे। | 
| 
 | गीत :– | 
| लोरिक | रात के समय बारह साल के लिए चंद झांपी लिए घर से चलने लगी रे । | 
| रागी | मेरे साथी । | 
| लोरिक | मस्त झांपी लिए धीरे धीरे आ रही है रे बैरी। | 
| रागी | आ रही है रे। | 
| लोरिक | राजा महर की। | 
| रागी | बेटी है। | 
| लोरिक | चंदा जो थी वो। | 
| रागी | जा रही है जी । | 
| लोरिक | और पहन के साड़ी। | 
| रागी | जा रही है जी । | 
| लोरिक | उस मय की बात है... मोर चल रही है बैरी । | 
| रागी | जा रही है.. क्या बताऊं मैं साथी... मेरे जाने के समय.. जा रहा है राउत... चंदा देख रही है। | 
| लोरिक | बढ़िया पीली साड़ी पहने रात के समय झांपी लिए धीरे-धीरे चंदा नदी के किनारे आ रही है, कोई देख ना ले भगवान, लोरिक कहां पर मिलेगा क्या करेंगे, ए चंदा मन ही मन सोचती हुई चली आ रही है | 
| 
 | (संगीत) | 
| चंदा | चलो बारह खंड की झांपी में बारह साल के लिए सामान जोड़ कर निकल आई हूं, काली अंधेरी रात में अपना हाथ पैर न कोई लोग पहचान नहीं आ रहा है, कितना अंधेरा है गांव मोहल्ला सब सुनसान है एकदम सन्नाटा फैला हुआ है मेरे मां-बाप सोए हुए हैं, पहाटिया ने कहा था तालाब के किनारे मंदिर के पास तुम आना और मेरी राह देखना जो मैं पहले आया तो मैं तुम्हारी राह देखूंगा, तुम पहले आई तो तुम मेरी राह देखना, ओहो यहां तो कुछ भी नहीं दिख रहा कुछ आहट भी नहीं मिल रही, हां लगता है वो पहाटिया है कहां जाओगे मुझसे बचकर पकड़ लिया तुम्हें... अरे ये पेड़ की ठूंठ है, जल्दी जल्दी आ रही थी मैं लोरिक समझकर यह तो लोरिक नहीं है अगर वह होता तो कहता चंदा यहां आओ मेरे पास बैठो, कहां पर है कितना अंधेरा है कुछ दिख नहीं रहा है, पानी की आवाज आ रही है लगता है हाथ मुंह धो रहा होगा, पास जाकर देखती हूं अरे ये तो पानी में डूबी हुई भैंस है, जाने कहां होगा वह कहीं उस तरफ तो नहीं वह मुझे तालाब के उस तरफ देखता रह जाएगा और मैं उसे इस तरफ देखती रह जाऊंगी ऐसे रात बीत जाएगी एक काम करती हूं पहले झांपी को मंदिर के पास रख देती हूं और ऊपर से टहनियां पत्ते डालकर उसे छुपा देती हूं ताकि कोई देख ना ले। फिर उसे ढूढूंगी वह कहीं छुपकर बैठा होगा ताकि कोई उसका दोस्त ना देख ले करके, पहाटिया.... पहाटिया लोरिक कहां हो तुम ? अरे बाबा यहां तो पेड़ों पर रहने वाले बंदरों का झुंड है कैसे खिस-खिस कर रहे हैं मुझे तो डर लग रहा है कहां देखूं पहाटिया को, ओ हो उस तरफ तो खेतों में काम करने वाले लोग हैं और रात के समय उल्लू भी चिल्ला रहा है क्या करूं मैं पहाटिया कहीं भी नहीं दिख रहा है। | 
| 
 | (गीत) | 
| चंदा | चंदा धीरे धीरे चलने लगी और मन मन में सोचने लगी। | 
| रागी | सिया रामा सिया रामा सिया रामा जी... बंसी बजाने वाले मन मोहन है जी। | 
| चंदा | आधी रात का समय है दीदी घनघोर जंगल झाड़ी है। | 
| रागी | सिया रामा सिया रामा सिया रामा जी... बंसी बजाने वाले मन मोहन है जी। | 
| चंदा | फलाने जगह में आने का वादा करके कैसे मुझे धोखा दे दिया। | 
| रागी | सिया रामा सिया रामा सिया रामा जी... बंसी बजाने वाले मन मोहन है जी। | 
| चंदा | सिया रामा सिया रामा सिया रामा जी... बंसी बजाने वाले मन मोहन है जी। | 
| रागी | सिया रामा सिया रामा सिया रामा जी... बंसी बजाने वाले मन मोहन है जी। सिया रामा सिया रामा सिया रामा जी... बंसी बजाने वाले मन मोहन है जी। | 
| चंदा | कसम से सभी ओर ढूंढ लिया मैंने पहाटिया लोरिक का कहीं भी पता नहीं चल रहा है क्या पता कहीं सो तो नहीं गया हो भूलकर कहीं उसकी मां खोईला ने कहा होगा मत जा बेटा, या उसकी घोड़ी जैसी पत्नी ने रोक लिया होगा, क्या करूं कौन सा उपाय करूं हां एक उपाय है मल्लिन दाई के पास जाती हूं, उसका घर तो यही गांव के किनारे तालाब के पास में है, वही मुझे कुछ ना कुछ उपाय बताएगी, यहां खड़े रहने से अच्छा है उसके घर ही जाती हूं ओ... तो मल्लिन दाई ... ओ मल्लिन दाई । | 
| मल्लिन दाई | कौन हो रे तुम लोगों को गाड़ दूं। | 
| 
 | 
 | 
| चंदा | मैं हूं दाई राजकुमारी चंदा हूँ । | 
| मालिन दाई | चंदा इतनी रात को तुझे गाड़ने लाया है। | 
| चंदा | दाई गाड़ने कहो या भूनने कहो, आई तो हूं तुम्हारे आंगन में। | 
| मालिन दाई | तो क्या काम है क्यों आई हो ? | 
| चंदा | तुम तो जानती ही हो सारी बातें और तुम्हे मैंने बताया भी था मैं एैसा कह रही थी कि तुम मुझे कोई अक्ल कोई उपाय बता दो, क्योंकि मैंने उसे जंगल और सभी जगह देख लिया कहीं नहीं मिला तो तुम कोई उपाय बता दो पहाटिया को बुलाने के लिए । | 
| मालिन दाई | अरे तुझे इतनी जल्दी जल्दी क्या पड़ी है धीरे-धीरे बता रे। | 
| चंदा | ठीक तो कह रही हूं कुछ उपाय बताओ मुझे, नहीं तो यही रात बीत जाएगी। | 
| मालिन दाई | तो तुम हड़बड़ी में तालाब के किनारे भैंसे से टकरा गई थी क्या ? | 
| चंदा | तो उसके साथ भी टकरा गई थी और पेड़ की ठूंठ पर भी गिर गई थी। | 
| मालिन दाई | तुम्हे तो गरम को खाऊं को ठंडे के लिए इंतजार करूं एैसा हो गया है। | 
| चंदा | हो तो गया दाई तो लो न दाई बताओ किस ढंग से पहाटिया को निकाल के लाएं। | 
| मालिन दाई | हां मैंने तो लिखित में दिया है तुम्हें उपाय बताने के लिए। | 
| चंदा | हट रे तेरा मुंह को... तेरा रोना रोऊं। | 
| मालिन दाई | हां मेरी मां। | 
| चंदा | दाई तुम्हारी जैसी बुजुर्ग गांव में कोई भी नहीं है मैं किसे बताती किससे कहती अपनी बातें तुम ही तो मां जैसी हो इसलिए तुमसे ही अपनी सारी सुख दुख की बातें बताती हूं दाई । | 
| मालिन दाई | कुछ हो मत हो बेटी नेकी और बदी से डरती हूं क्योंकि मैं गरीब औरत हूं। | 
| चंदा | हां हां। | 
| मालिन दाई | मैं तुम्हारे राज में रहती हूं रोजी मजदूरी करके जी रही हूं कोई जान गया तो यहां रहना मुश्किल हो जाएगा। | 
| चंदा | कौन जान जाएगा तो ? | 
| मालिन दाई | तुम्हारे पिताजी राजा महर । | 
| चंदा | हां तुम भी सही बात कह रही हो तो क्योंकि इतने बड़े राज्य के राजा हैं राजा से नहीं डरोगी तो किससे डरोगी ? | 
| मालिन दाई | बताओ भला ? | 
| चंदा | लेकिन दाई मेरे रहते तुम मत डरा करो। | 
| मालिन दाई | कैसे रे ? | 
| चंदा | अरे मैं भी तो उसी राजा की बेटी हूं, कोई तुमको पिताजी ने देश निकाला कर दिया भी तो मैं बोल दूंगी, की इसमें दाई की कोई गलती नहीं है, सारी गलती मेरी है अगर आपको निकालना ही है तो मुझे निकाल दो ऐसा कहुंगी तो तुम्हे नहीं निकालेंगे। | 
| मालिन दाई | नहीं निकालेंगे। | 
| चंदा | तुम्हारे ऊपर कोई उंगली तो उठाकर देखे दाई सबसे पहले तुम्हारे सामने आकर मैं खड़ी हो जाऊंगी तुम्हारे बदले की मार मैं खा लूंगी। | 
| मालिन दाई | एसे क्या। | 
| चंदा | इसीलिए डर रही हो। | 
| मालिन दाई | चंदा अगर जो तू मेरी जिम्मेदारी ले रही है ना तो लोरिक को निकालकर लाने की जिम्मेदारी मैं लेती हूं। | 
| चंदा | तो तुम कैसे निकालोगी बताओ न ? | 
| मालिन दाई | एक काम कर न तुझे गाड़ दूं। | 
| चंदा | लो कैसे लो बताओ ? | 
| मालिन दाई | वह काली कल्लोर (काले रंग की हृष्ट-पुष्ट दुधारू गाय) की घूमर (घंटी) निकाल कर ले आओ। | 
| चंदा | वो हमारी गाय काली गाय की घूमर को ? | 
| मालिन दाई | हां। | 
| चंदा | अरे। | 
| मालिन दाई | और सेमी (सेम ) के मंडप में लाल लाल लताएं है उनकी बाड़ी में। | 
| चंदा | वहां लोरिक के घर की बाड़ी में ? | 
| मालिन दाई | हां तो घूमर लेकर वहां जाना जैसे गाय चारा चरती हुई चलती हुई घंटियां बजाती है ठीक वैसे ही बजाना। | 
| चंदा | तो वह आऐगा ? | 
| मालिन दाई | गाय को भगाने के बहाने आएगा घूमर की आवाज सुनकर, तुझे गाड़ दूं। | 
| चंदा | सच में दाई बहुत अक्ल भी है बूढ़ीया तुम्हारे पास। | 
| मालिन दाई | तो रे। | 
| चंदा | दाई तुमने तो मुझे अक्ल बताने को तो बताई है, पौ फटने को है घूमर लेने जाऊंगी तो गांव की औरतें आंगन द्वार बुहारने निकलेंगी तो मुझे देखकर क्या कहेंगी ? | 
| मालिन दाई | क्या कहेंगी ? | 
| चंदा | लो देखो राजा महर की बेटी कहने को राजकुमारी चंदा है और देख लो इतनी रात गए कहां गई थी कहां से आ रही है। | 
| मालिन दाई | कहां से आ रही है। | 
| चंदा | ऐसा कहकर सभी लोग मुझे कोसने लगेंगे। | 
| मालिन दाई | हां सही बात है। | 
| चंदा | इससे तो अच्छा है कि हो सके तो आप ही चली जाओ घूमर लेने। | 
| मालिन दाई | हां तुम जाओगी तो तुमको बोलेंगे कि राजा की बेटी कहां आती है कहां जाती है। | 
| मालिन/चंदा | (दोनों एक/ साथ कहती हैं) ये विधवा, ये दुखदायी। | 
| मालिन दाई | ऐसा कहकर लोग तुम्हें कोसेंगे। | 
| चंदा | हां तो। | 
| मालिन दाई | और जो मैं जाऊं तो क्या मेरी आरती उतारेंगे ? | 
| चंदा | दाई तुम बूढ़ी हो हाथ में लोटा ले लो और लोटे में पानी भर लो, सीधे उसी तरफ जाओ गांव के लोग तुम्हे देखेंगे तो यही कहेंगे, क्या करें बुढ़ापा में कुछ उल्टा सीधा खा लिया होगा तो दिशा मैदान जा रही है, तो यही समझेंगे। | 
| मालिन दाई | हां क्योंकि मैं तो खूब खाने वाली, पेट की मरीज तो हूं चंदा। | 
| चंदा | हां दाई । | 
| मालिन दाई | लोक-लाज पीछे करके भूखा पेट आगे करके, इसी अक्ल के प्रताप में जी रही हूं। | 
| चंदा | जी रही हो। | 
| मालिन दाई | और खा पी रही हूं, उसके लिए मैं क्या शरमाऊंगी, ला वो लोटा काली कल्लोर की घूमर के लिए मैं जाती हूं। | 
| चंदा | हां हां अंदर है जाओ दाई ले लो | 
| मालिन दाई | हां मेरी मां। | 
| चंदा | तुम्हारे घर कौन सी चीजें कहां रखी है मुझे क्या मालूम। | 
| मालिन दाई | हां मैं लोटा लेकर आ रही हूं फिर जाती हूं। | 
| चंदा | कसम से ये बुढ़िया इतना इतराती है, लेकिन कुछ भी हो बात मान जाती है, बेचारी इसके लिए उसे खर्चा पानी देती हूं इसलिए बात रख लेती है। | 
| मालिन दाई | तो लो बेटी लोटा लेकर जा रही हूं और तुम्हारे गोठान में उजाला है कि नहीं ? | 
| चंदा | उजाला रहता है दाई । | 
| मालिन दाई | कपाट लगा है या फईरका (बांस और घास फूंस से बना दरवाजा) ? | 
| चंदा | हां तो कपाट टूट गया है इसलिए तो फईरका लगा दिए हैं। | 
| मालिन दाई | हां तो बढ़िया रहेगा बेटी। | 
| चंदा | हां हां। | 
| मालिन दाई | युं जाऊंगी और युं आऊंगी। | 
| चंदा | हां दाई तुम जाओ। | 
| मालिन दाई | हां तुम यहीं पर रहो। | 
| चंदा | हां तो देखो ये मालिन दाई कैसे भी करके मेरी बात रख लेती है, ऊपर से मेरे पिताजी राजा महर इतने गुस्सैल है कि बात- बात पर तीर और तलवार निकाल लेते हैं पता नहीं यह बुढ़िया आधी रात के समय में महल में गई है, कहीं राजा ने देख लिया तो तलवार से उसे उड़ा देंगे, और वह गई तो मैं भी आधा उड़ जाऊंगी ,घर की रहूंगी ना घाट की ये तो हाल हो गया है मेरा, ये मैं झांपी लेकर घर से निकल गई हूं, वो आ रही है मालिन दाई अरे उधर कहां जा रही हो इधर आओ तुम्हरा रोना रोऊं... गिर जाओगी कुआ बावड़ी में मरने जा रही हो ? | 
| मालिन दाई | क्या है ? | 
| चंदा | कुआं है। | 
| मालिन दाई | हाय बच गई रे तुझे गाड़ दूं, अभी कुंए में गिर गई होती मेरी माँ । | 
| चंदा | दुनिया सीधे देख कर चलती है कोई टेढ़ा देखकर नहीं चलता दाई । | 
| मालिन दाई | कभी-कभी टेढ़ा भी देखना पड़ता है। | 
| चंदा | कैसे ? | 
| मालिन दाई | चोरी करने गई हो तो क्या सीधे देखकर चलोगी ? | 
| चंदा | तो अभी कुएं में गिर गई होती तुम, मिला क्या ? | 
| मालिन दाई | चुप हल्ला मत कर ये ले तेरी काली कल्लोर की घूमर। | 
| चंदा | अरे वाह बहुत अच्छा किया। | 
| मालिन दाई | बढ़िया से बजाना कभी चरने जैसा, कभी भागने जैसा कभी चलने जैसा आहट ले लेना। | 
| चंदा | कैसे ? | 
| मालिन दाई | कहीं बुढ़िया आ रही या लड़की आ रही है ? | 
| चंदा | हां हां। | 
| मालिन दाई | और यदि कहीं उसकी पत्नी पहाटनिन मिल गई तो तुम को खड़े-खड़े वहीं बाड़ी में गाड़ देगी मैं नहीं जानती। | 
| चंदा | अरे हाय मुझे डर है तो उसकी पत्नी पहाटनिन का ही लो दाई अब मैं जाती हूं। | 
| मालिन दाई | हां बेटी | 
| चंदा | इस राज्य को इस देश को छोड़कर दूसरे राज्य दूसरे देश में जा रही हूं दाई | 
| मालिन दाई | हां बेटी | 
| चंदा | यहां रह रही थी तो तुम मुझे अपनी बेटी समझकर मुझे अक्ल और उपाय बताती थी। | 
| मालिन दाई | हां। | 
| चंदा | क्या पता उधर जाने से मुझे तुम्हारे जैसी कोई सयानी मिलेगी या नहीं। | 
| मालिन दाई | तो तुम एक काम करो न रे। | 
| चंदा | कैसे ? | 
| मालिन दाई | मुझे अपने सिर पर गठरी में बांध लो और साथ ले चलो जहां जरूरत पड़ेगी अक्ल की, गठरी खोलती जाना मैं अब अक्ल बताती जाऊंगी। | 
| चंदा | दाई मैं तुम्हें सिर पर गठरी बांधकर उठा कर ले चलती पर तुम्हारे घर दादा मुझे क्या कहेंगे। | 
| मालिन दाई | अरे वो बुढ़ऊ वह अकेले हो जाएंगे, छटपटाएंगे। | 
| चंदा | और मुझे श्राप देंगे कोसेगें सो अलग। | 
| मालिन दाई | हां हां। | 
| चंदा | उससे अच्छा है मैं तुम्हारे बुढ़ऊ का श्राप और कोसना नहीं ले जाऊंगी ले जाऊंगी तो तुम्हारा आशीर्वाद वही मुझे फलेगा, दो दाई अपना पैर इधर। | 
| मालिन दाई | खुश रहो बेटी मांग में सिंदूर हाथों में चूड़ियां भगवान अमर रखें। | 
| चंदा | हां दाई तुम्हारा आशीर्वाद पूरा फले। | 
| मालिन दाई | मेरी तरह बुढ़ी होने तक जियो बेटी भगवान तुम्हें इस दिन के आते तक बांह भर का बेटा दे बांह भर का बेटा। | 
| दादा | हां बुढ़िया को जैसा मांगोगे वैसा ही देती है। | 
| मालिन दाई | हां मैं ब्रह्मा का अवतार हूं। | 
| दादा | पहले भी ऐसे ही किसी को आशीर्वाद दी थी उसके बच्चे को पोलियो हो गया। | 
| मालिन दाई | उसको मैंने पकड़ा दिया है ? | 
| दादा | हां आदमी पहचान कर आशीर्वाद देती है। | 
| मालिन दाई | आदमी पहचान पैर छूओगे तो आदमी पहचान के आशीर्वाद भी मिलता है। | 
| दादा | बड़ी मुश्किल से बेचारे को तीन पहिये वाली गाड़ी मिली है। | 
| मालिन दाई | कर्म कमाने वाले के लिए न मां लगती ना बाप लगता, वह तो किस्मत की बात है अपना किस्मत भोग रहा है। | 
| दादा | नहीं वो तुम्हारे आशीर्वाद के कारण भुगत रहा है। | 
| मालिन दाई | हां.. आशीर्वाद देने से वैसा ही हो जाएगा, जाओ बेटी, अभी रात ढली नहीं है रात ढलने से पहले चली जाओ गांव और बस्ती के बूढ़े और पांच साल के बच्चे तक भी ना जान सकें। | 
| चंदा | हां दाई । | 
| मालिन दाई | लो जाओ। | 
| चंदा | मालिन दाई ने मुझे घूमर लाकर दिया लोरिक की बाड़ी में जाकर देखना पड़ेगा कि उसकी बाड़ी में कैसे घुसना है कैसे निकलना है, अरे इधर की भांड़ी (मिट्टी की दीवार) भी फूटी हुई है उधर की दीवार भी फूटी हुई है, यहीं से जाके घूमर बजाऊंगी तो पहाटिया आवाज़ सुनेगा अगर पहाटनिन गाय भगाने आ गई तो इसी फूटी दीवार से कूदकर उस पार छुप जाऊंगी, अरे बाड़ी में बहुत ही अंधेरा है यहां देखो तो सेम की लताएं कैसी फली फूली है और कुन्दरू को देखो कैसे ऊपर चढ़ा हुआ है, चलो अब मैं घूमर बजा कर देखती हूं (घूमर की आवाज) किसी की भी आहट नहीं मिल रही है लगता है सब के सब बच्चे बूढ़े सभी गहरी नींद में सो रहे हैं, कसम से पहाटिया एकाद बार सुन लेता तो क्या हो जाता। | 
| दौनामांझर | देखा इतनी रात हो गई है यह क्या बात हुई भाई हमारे घर पहाटिया कहां है जाने कितने बज गए ? | 
| चंदा | वो लम्बी टांगों वाली पहाटनिन आ रही है ऐसा लगता है, घूमर बजाना बंद कर देती हूं नहीं तो मुझे खूब मार डालेगी। | 
| दौनामांझर | अरे देखो किसने अपनी गाय को छोड़ रखा है, लगता है गाय चिकने कोटना (गाय-बैलों के पानी पीने का पात्र) का सारा पानी पी ली है, घूमर की आवाज भी आ रही है अरे ‘छेल्ला’ (आजाद) हो गई है तो खेत खलिहान की तरफ नहीं जाती, हमारा घर ही मिला है इनको, हमारे पहाटिया को कहती हूं कहीं भी जाते है दुहने बांधने सारी रात ऐसे ही बीत जाती है इतनी रात हो गई अब तक नहीं आए हैं नोनी भी खेलकूद आई है और खाकर सो गई है, मेरी सास भी अकेली बाड़ी में अकेली सोई रहती, और आज बादल जैसा मौसम दिख रहा है, वो बिना गोरसी के सोती नहीं है, ये नोनी भी गोरसी भर (कंडा जलाने) देती तो क्या हो जाता बच्ची ही तो है चलो सो गई तो सो गई मैं ही भर देती हूं, नहीं तो सिर्फ उसके लिए ही मुझे चार बातें सुननी पड़ेगी किसी का कयों सुनना अरे सियान सियान कह रही हूं सियान की नींद लग गई है ऐसा लग रहा है आहट भी नहीं मिल रही है कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। | 
| खोइलन (लोरिक की माँ) | हे भगवान.. वाह रे चोला... वाह रे प्राण। | 
| दौनामांझर | अरे अभी तक जग रही है क्या। | 
| खोइलन | ठंड के कारण मेरा पूरा शरीर कांप रहा है, और पूरी रात नींद भी नहीं आ रही है लड़की से कहा था ‘गोरसी’ (अलाव जलाने के लिए मिट्टी का बना पात्र) भर देना बेटी गोरसी भर देना, बच्ची तो है सो गई होगी जाने क्या किया होगा गोरसी तो भरी नहीं, बहूरिया.. ए.. बहूरिया | 
| दौनामांझर | अरे क्या है दाई ? | 
| खोइलन | जाग रही हो ? | 
| दौनामांझर | हां जाग रही हूं। | 
| खोइलन | ठंड के कारण नींद नहीं आ रही है बहुत ज्यादा कंपकपी लग रही है। | 
| दौनामांझर | हां। | 
| खोइलन | लड़की को बोली थी गोरसी भरने बच्ची तो है सो गई कि भूल गई होगी तुमको तो भर देना चाहिए था ना ? | 
| दौनामांझर | अरे हां नोनी को आपने कहा था वह खेल कर आई मुझसे कहा भाभी भूख लग रही है मैंने कहा बना दिया है जाओ निकाल कर खा लेना उसने खाना खाया और कहा भाभी मुझे नींद आ रही है मैं सो रही हूं। | 
| खोइलन | हां। | 
| दौनामांझर | उसने मुझे कहा था गोरसी भरने को तो मैंने कहा ठीक है तुम जाओ सो जाओ मैं भर दूंगी मैंने सूखे गोबर के कंडे को ठूंस ठूंस कर दिया है भर दिया है। | 
| खोइलन | हां मेरी मां। | 
| दौनामांझर | और तुम्हारे खटिया के नीचे रखने आ रही थी, हाथों से छूट गई... और गोरसी जो थी वो फूट गई। | 
| खोइलन | हे भगवान तुमने गोरसी फोड़ दी अब मैं आग किसमें सेकूंगी जान रही हो समझ रही हो बिना गोरसी के मैं सो भी नहीं सकती। | 
| दौनामांझर | अरे अरे अरे। | 
| खोइलन | ठंड के मारे बहुत कांप रही हूं मैं। | 
| दौनामांझर | हां सही है आप तो बहुत कांप रही हो दाई । | 
| खोइलन | हां दाई । | 
| दौनामांझर | अरे दाई एक काम करोगी क्या ? | 
| खोइलन | क्या काम है रे ? | 
| दौनामांझर | तुम्हारे खटिया के नीचे चार पांच टोकरी कंडे सुलगा देती हूं। | 
| खोइलन | सुलगा दे मेरी मां। | 
| दौनामांझर | और पांच लकड़ियां सिर की तरफ रख देती हूं। | 
| खोइलन | पंच लकड़ियां के लिए ? | 
| दौनामांझर | तुमको ही इतनी ठंड लग रही है। | 
| खोइलन | मेरी उम्र में आओगे तो पता चलेगा रे तुझे गाड़ दू, जो मुझे जडजुड़ही घुरघुरही (जिसको अत्यधिक ठंड लगती है) कह रही हो जा रे तेरा बेड़ा गर्क हो | 
| दौनामांझर | तुमको इतनी ठंड लग रही है इतनी ठंड लगते तो किसी को नहीं सुना है इधर गर्मी लग रही है और आज बादल भी छाया हुआ है और भी है पर तुमको ही ठंड ने घेर रखा है। | 
| खोइलन | अरे गर्मी का दिन है और तुम सब जवान हो मैं बूढ़ी हो गई हूं इसलिए मुझे ठंड लग रही है, मेरा खून भी ठंडा हो गया है इसलिए। | 
| दौनामांझर | देखो तो बेटा घूम रहा है गली गली, इतनी देर हो गई अभी तक घर नहीं आया है। बेटा आया या नहीं बहू एक बार पूछी हो ? बेटी घूमती है गली-गली देखो घूम कर आई है फिर खाकर मज़े से सो गई और बाकी मैं अकेली बहु वो भी तुम्हारी आंखों में चुभती है। | 
| खोइलन | तो ऐसे कर ना बहू बेटा घूम रहा है गली गली, बेटी भी घूम रही है गली और तुम ही एक घर में अकेली हो , तुम्हे भी बेचैनी लग रही हो तो तुम भी घूमो गली गली। | 
| दौनामांझर | लो देख रहे हो । | 
| खोइलन | जा जा | 
| दौनामांझर | ये अंधी बीमार ब़ुढ़िया मुझसे ही उलझी है क्या बताऊं इसको मरना आ जाए इसका खाट मुर्दा निकालूँ , ऐसा लगता है , रात-दिन, रात दि , रात दिन इसकी किट किट करती है। | 
| खोइलन | चार दिन मेरी सेवा नहीं की हो और तेवर देख लो मुझे अंधी बीमार कहती हो बेड़ा गर्क हो तेरा तु तो भाई बाप को मार कर खाने वाली, जाओ अपनी मां को कहो अंधी। | 
| दौनामांझर | अरे लो देख लो | 
| खोइलन | तेरी अंधी मां से तो ठीक हूं वो तलकहिन (नांक के बल उच्चारण करने वाले) से... सीता राम समधिन कहो तो ईं आं अम ईं आम कहती है। | 
| दौनामांझर | एक तो थोड़ा गोरसी ही नहीं भरी तो उसके लिए मेरे मां-बाप को कोस रही हो, क्या तुम खिलाती हो मेरे मां-बाप को, जो तुम्हारी छाती इतनी जल रही है अंधी, लूली, लंगड़ी, कूबड़ी, बीमार कही की। | 
| खोइलन | ले जा तेरे मां-बाप के घर नहीं है तो, और कितने चाहिए तो और बनवा देगें। | 
| दौनामांझर | मुंह कैसे खच खच खच चल रहा है इसे देखो। | 
| खोइलन | और तुम्हारा मुंह नहीं चल रहा है कैंची जैसा खच खच खच। | 
| दौनामांझर | यह बात इनका बेटा नहीं जानता और मुझे कहते हैं मेरी मां से इतना झगड़ती हो और इनका मुंह नहीं दिखता आग लगी है जुबान में। | 
| खोइलन | हां तुम्हारे मुंह में पानी उड़ेल दिया गया है। | 
| दौनामांझर | लो तुम बाड़ी में सोई रहो तुम्हारे बेटे के आने की आहट ले लेना मैं अंदर सो रही हूं। | 
| खोइलन | हां तो ठीक है मैं बाड़ी में सोती हूं, और ये अंदर सोई रहेगी। | 
| लोरिक | अरे सब सुन रहा हूं मैं क्या झगड़ा है यह ? | 
| खोइलन | मुझसे क्या पूछते हो जो पूछना है जाओ अपनी पत्नी से पूछो ? | 
| लोरिक | बताओ यार मेरी पत्नी ? | 
| दौनामांझर | अरे क्या बताऊं जी थोड़ा सा गोरसी नहीं भर पाई इसलिए तुम्हारी मां मुझे सत्रह बातें सुना रही है और मेरी बेईज्जती कर रही है। | 
| लोरिक | हां ठीक तो कह रही है दाई को तुम थोड़ा गोरसी भर ही देती तो क्या हो जाता ? | 
| खोइलन | हां जल के अंगार होती तो सेंक लेते। | 
| लोरिक | सास भी सास जैसी नहीं है बहू भी बहू जैसी नहीं है। | 
| खोइलन | हां मैं जली लकड़ी से जलाती हूं। | 
| लोरिक | हां इसके लिए तो भगवान मेहमान भी नहीं भेजेगा देखना। | 
| खोइलन | अरे बेटा सयानी उम्र हो गई है जीवन के चार हिस्सा में एक हिस्सा बचा है, आज मरती हूं या कल कोई भरोसा नहीं, तो क्या अभी मेरे लिए मेहमान आएंगे बेटा, और देख लो ये बेटा हे। | 
| लोरिक | वैसे मेहमान नहीं कह रहा हूं माँ । | 
| खोइलन | तो रे। | 
| 
 | गीत :– | 
| लोरिक | घुप्प अंधेरी रात है राजकुमारी चंदा दूसरी बार घूमर बचाने के लिए सेम के मंडप में पहुंचने लगी रे.... तुम चुपचाप सोई रहो दाई। | 
| रागी | साथी रे। | 
| लोरिक | चुपचाप मेरी दाई... सुन लेना पत्नी। | 
| दौनामांझर | हां। | 
| लोरिक | सुन लेना दाई। | 
| खोइलन | सुन रहीं हूं बेटा। | 
| लोरिक | आधी रात के समय। | 
| रागी | समय है। | 
| लोरिक | सो जाओ मईया। | 
| रागी | दाई मेरी। | 
| लोरिक | लोरिक की आहट। | 
| रागी | आहट को। | 
| लोरिक | सुन रही है बैरी। | 
| रागी | सुन रही है। | 
| लोरिक | सेम के मंडप में। | 
| रागी | मंडप में। | 
| लोरिक | चंदा है जो। | 
| रागी | है जो। | 
| लोरिक | मुझे रोक ली है दौना... मुझे रोक ली है दौना... | 
| रागी | उस समय की बात है क्या बताऊं मैं साथी... क्या बताऊं मैं साथी... (गीत समाप्त) | 
| लोरिक | तुम चुपचाप सोई रहो दाई। | 
| खोइलन | सोई हूं बेटा। | 
| चंदा | कसम से मैं बाड़ी से सुन रही थी क्या झगड़ा है इनका, कैसी सास है कैसी बहू है, आग लगे इनके झगड़े को, सास बहू को कोस रही है बहू सास को कोस रही है मुझे यहां तक सुनाई दे रहा है। अब सोई लगता है, उसका रोना रोऊं, अब एक बार घूमर बजा के देखती हूं। | 
| दौनामांझर | इधर आओ दाई इधर आओ। | 
| खोइलन | क्या है ? | 
| दौनामांझर | जाग रही हो या सो गई ? | 
| खोइलन | जाग रही हूं। | 
| दौनामांझर | देखा जाग रही हूं बोल रही है। | 
| खोइलन | हां | 
| दौनामांझर | बाड़ी में घूमर की आवाज सुनाई पड़ रही है जाओ ना थोड़ा गाय भगा देती तो क्या हो जाता ? | 
| खोइलन | हां घूमर की आवाज सुन के उठकर तो बैठी हूं, बात की बात है कहीं मर गई तो तुम क्या करोगी... तुम्हारे शरीर को क्या हुआ तुम थोड़ा नहीं भगा सकती ? | 
| दौनामांझर | लो जाओ सो जाओ मैं जा रही हूं देखने कहीं गाय मेरे हाथ लग गई तो उसे मार मार के कमर तोड़ दूंगी | 
| सियान | हां हां कमर में मत मारना। | 
| दौनामांझर | किसलिए जी ? | 
| सियान | पाप लगेगा। | 
| दौनामांझर | अरे देखो हमारे बाड़ी की सारी सेम की लताएं कैसे इसने चर डाली। | 
| खोइलन | कमर में मत मारना अगर टूट गई तो बेचारी चल नहीं सकेगी। | 
| दौनामांझर | अरे किसकी गाय है अभी चर रही थी, इतनी रात को भी बांधकर नहीं रखते अरे कहां चली गई अभी इधर बाड़ी से घूमर की आवाज़ सुनाई दे रही थी, भगाने आई हूं लगता है भाग गई, ओ सियान...। | 
| खोइलन | क्या है ? | 
| दौनामांझर | भाग गई ऐसा लगता है। | 
| खोइलन | हां आहट तो नहीं मिल रही है भाग गई ऐसा तो लग रहा हैा | 
| दौनामांझर | हां। | 
| खोइलन | जाओ तो बाड़ी में देखो गोबर दिया है ऐसा लगता है। | 
| दौनामांझर | तुम्हारी बेटी सुबह उठेगी तो उसे टोकरी देकर भिजवा देना गोबर बीनने। | 
| खोइलन | और तुम जाओगी तो क्या नाक कट जाएगी तुम्हारी ? | 
| दौनामांझर | खोइलन एक काम करोगी क्या ? | 
| खोइलन | क्या काम ? | 
| दौनामांझर | मैं अंदर सोई हूं और तुम बाड़ी में सोई हो, और यदि गाय की घूमर की आवाज आएगी ना तो तुम्हारे बेटे को जगा देना। | 
| खोइलन | जी मैडम। | 
| दौनामांझर | ऊटपटांग बोलती है। | 
| खोइलन | हां मैं बाड़ी में सोई हूं और मैं बेटे को जगाने जाऊंगी, तू तो अंदर ही सोई है तू नहीं जगा देगी ? | 
| दौनामांझर | मुझे गाली देते हैं। | 
| खोइलन | मुझे भी गाली देता है। | 
| दौनामांझर | तो क्या तुम उसकी मां नहीं हो। | 
| सियान | तो तुम उसकी पत्नी नहीं हो। | 
| दौनामांझर | ये रही लाठी जगा देना। | 
| खोइलन | हां जा सो जा मैं जगा दूंगी। | 
| लोरिक | क्यों दौनामांजर इतना झगड़ा की हो दो-चार बातें सुनी भी हो तो तुम खाना खाई हो या नहीं ? | 
| दौनामांझर | पहाटिया तो अभी घर आ रहे हो और क्या तुमसे पहले खा लूंगी मैं, किस दिन तुम्हारे बिना खाए मैंने खाया है। | 
| खोइलन | वाह देखो पत्नी की कैसे हिमायत कर रहा है, कि दौनामांझर तुने खाना खाया या नहीं, और मां से नहीं पूछ रहा है मां खाना खाई हो कि नहीं खाई हो। | 
| लोरिक | तुमको पिताजी नहीं पूछते ? | 
| दौनामांझर | कहां है पूछ तो उनसे ? | 
| लोरिक | किधर चले गए हां उस तरफ जा रहे हैं, उतावले होकर बाड़ी की ओर। | 
| खोइलन | हां पूछने के समय उस तरफ उस तरफ कह रहा है। | 
| लोरिक | दुम हिला रहे हैं पिताजी... दाई तुम सो जाओ चुपचाप। | 
| खोइलन | हां बेटा। | 
| लोरिक | कोई गाए छोड़ रखा है क्या दाई बाड़ी की तरफ ? | 
| चंदा | कसम से अच्छा ही हुआ जो इनकी भांड़ी फूटी है इधर कूदकर से उधर से भागी हूं, वो पहाटनिन आ रही थी लाठी लेकर, दो हाथ की लाठी से मारती तो मेरी कमर ही टूट ही जाती, लगता है गड़गड़ी कहीं अब सो गई चलो एक बार और घूमर बजा कर देखती हूं। | 
| खोइलन | हे भगवान किसकी गाय है रे, तेरा पति मर जाए, पूरी रात घूम-घूमकर चर रही है, इस तरफ जाती हूं तो उस तरफ चली जाती है उस तरफ जाती हूं तो इस तरफ आ जाती है। | 
| लोरिक | क्या है दाई दवाई छिड़क रही हो क्या ? | 
| खोइलन | हां दवाई छिड़क रही हूं कीड़े लग गए हैं, गाय कहां चली गई है घूमर की आवाज आ रही है करके लाठी से पटक पटक कर देख रही हूं, बेटा दवाई नहीं छिड़क रही हूं। | 
| लोरिक | देखो वह ड्राइवर लड़का आ रहा है उसे ही मत चुभा देना। | 
| खोइलन | लोरिक। | 
| लोरिक | हां मां। | 
| खोइलन | मुझे बाड़ी से घूमर की आवाज आ रही लगता है गाय घुसी है बेटा। | 
| लोरिक | हां मां मैं जाता हूं। (लोरिक जाके बाड़ी में देखता है) | 
| 
 | गीत :- | 
| लोरिक | किसकी है गइया। | 
| रागी | गइया है जी। | 
| लोरिक | किसकी है बछड़ी। | 
| रागी | बछड़ी है जी। | 
| लोरिक | अंधेरे में जाकर । | 
| रागी | जा रहा है। | 
| लोरिक | बाड़ी को देखे। | 
| रागी | देखे जी। | 
| लोरिक | घूमर रखी है। | 
| रागी | है जी। | 
| लोरिक | वो चंदा है बैरी। | 
| रागी | बैरी है जी। | 
| लोरिक | अरे कैसे घूमर बजा रही है जी। | 
| रागी | चल रही है बैरी .... रेंग रही है बैरी। | 
| लोरिक | होए होए होए... ये उस समय की बात कह रहा है बैरी। | 
| रागी | कह रहा है... जा रहा है बैरी... देख रहा है गइया। | 
| चंदा | कैसे धोखेबाज ? | 
| लोरिक | अरे चंदा तुम हो ? | 
| चंदा | जब से मैं घूमर बजा रही हूं तो। | 
| लोरिक | हम तुझे गाय समझ रहे थे रे बैल... हा हा हा हा। | 
| चंदा | चलो ऊटपटांग नहीं तो । | 
| लोरिक | तुम घूमर घंटी कहां से ले आई हो ? | 
| चंदा | यह हमारी काली कल्लोर की है, वाह मंदिर गई थी वहां.....। | 
| खोइलन | अरे लोरिक... अरे लोरिक, ए बेटा। | 
| लोरिक | हां मां। | 
| खोइलन | दो गायें हैं ऐसा लगता है बेटा, झगड़ रही हैं, घूमर की आवाज आ रही है। | 
| लोरिक | बड़ी पारखी है हमारी मां, दो गायें हैं कह रही है हम दोनों को। | 
| चंदा | वह अंदाजा लगा रही होगी अंधेरा है ना नहीं दिखेगा। | 
| लोरिक | हां अंधेरे में पहचान नहीं आ रहा है दाई। | 
| खोइलन | हां अंधरे में पहचान नहीं आ रहा होगा मैं लालटेन ला रही हूं। | 
| लोरिक | तुम इधर मत आओ दाई, बुढ़ी हो ज्यादा हड़बड़ी मत करो। | 
| खोइलन | हां बेटा। | 
| लोरिक | मां तुम चश्मा लगाई हो तो भी लालटेन लेकर आ रही हो। | 
| खोइलन | हां तो कैसे करूं ? | 
| लोरिक | (दाई का चश्मा निकालते हुए) और ऐसे निकाल दोगी तो दिखता है ? | 
| खोइलन | नहीं बेटा धुंधला धुंधला दिखता है। | 
| लोरिक | और इसे पहनती हो तो ठीक दिखता है ? | 
| खोइलन | अच्छे से दिखता है पहनती हूं तो। | 
| लोरिक | दिखाओ लाठी को... इस चश्में में कांच है। (लाठी से चश्में का कांच फोड़ देता है) | 
| खोइलन | तो तूने फोड़ क्यों दिया रे ? | 
| लोरिक | मैंने फोड़ दी कह रही है, तुम ही तो बोल रही थी अच्छा दिखता है, लाओ मैं घुसा देता हूं। | 
| खोइलन | न न नाक में घुसा दोगे। | 
| लोरिक | ले (हंसते हुए) लो तुम जाओ। | 
| खोइलन | हां। | 
| लोरिक | लो आओ। | 
| चंदा | चलो पहाटिया हम जाएंगे झांपी को मंदिर के पास रख दी हूं और तुम्हें बुलाने आई हूं। | 
| दौनामांझर | पहाटिया... ए पहाटिया....। | 
| खोइलन | क्या है ? | 
| दौनामांझर | गाय तक पहुंचे ऐसा लगता है, अरे किससे बातें कर रहे हो बाड़ी में तो दो-दो लोगों की आवाजें आ रही है अंदर तक ? | 
| लोरिक | यह भी बहुत होशियार है पगली जैसी नहीं है। | 
| दौनामांझर | हां तो। | 
| लोरिक | हमारी बाड़ी में चारों तरफ सेम के पौधे बोए हैं, तो पौ फटने के पहले उनकी आवाजें गूंजती है। | 
| दौनामांझर | सही में मैं क्या कह रही थी कि आधी रात को जो गाय घुसी थी उसे मैं भगाने आई थी, तुमने उसे ही पकड़ा है क्या पूछने आ रहीं हूं। | 
| लोरिक | मैं बाद में बताऊंगा लो तुम अभी जाओ जाओ। | 
| दौनामांझर | हां। | 
| चंदा | मुझे तुम्हारी लंबे टांगो वाली पत्नी को देखने की इच्छा नहीं होती, उसका रोना रोऊं, अंधी कहीं की, बेसुरी कहीं की, लोमड़ी जैसी, बिल्कुल भी मुझे पसंद नहीं है, उसका रोना रोऊं, | 
| लोरिक | चंदा घूमर ले आई हो, झांपी कहां रखी हो ? | 
| चंदा | उसे मंदिर के पास रखी हूं ना जी। | 
| लोरिक | ऐसा क्या। | 
| चंदा | चलो जाएंगे। | 
| खोइलन | लोरिक...। | 
| लोरिक | इसको फिर क्या हुआ... क्या हुआ ? | 
| खोइलन | पकड़ लिया क्या ? | 
| चंदा | हां पकड़ लिया कह दो, हटाओ उसका चेहरा। | 
| लोरिक | पकड़ लिया। | 
| खोइलन | किसकी गाय है ? | 
| लोरिक | राजा के घर की। | 
| दौनामांझर | किसकी गाय है जी ? | 
| लोरिक | राजा महर की गाय है काली कल्लोर। | 
| दौनामांझर | लो देख लो उनके गोठान में क्या आग लग गई है, भभक गई है, भूसा-पुआल भी नहीं वहां, इस दिन में अकाल पड़ा है क्या उनकी गाय को देखे हमारी बाड़ी में चर रही है। | 
| खोइलन | क्यों री ? | 
| दौनामांझर | हां। | 
| खोइलन | हम सब माँ बच्चे तो यहां एक साथ जाग रहे हैं, और तुम्हें कैसे पता चल गया कि राजमहल में आग लगी है ? | 
| दौनामांझर | अरे किसने कहा दाई ? | 
| खोइलन | तुम ही तो कह रही हो। | 
| दौनामांझर | इसकी आंखें पूरी फूट गई होगी क्या ? | 
| खोइलन | राजा के घर में आग लगी है भभक रही है तुम ही तो बोल रही थी। | 
| दौनामांझर | पास ही में नल है, दुहरा गगरी में पानी ले जा ले जा कर आग बुझा दो, कुबड़ी तुमको चिंता लगी है। | 
| खोइलन | हां मैं बुढ़ी होकर आग बुझाने जाऊं और तुम मुटियारन घर में बैठी रहो मैं कह रही हूं जब जानती ही हो बस्ती वालों को बता दो वे सब जाकर बुझाऐंगे। | 
| दौनामांझर | तो एक काम करो ना सियान। | 
| खोइलन | कैसे ? | 
| दौनामांझर | तुम ही कोतवालन बनकर चल देती मुनादी कर देती गली गली, राजा के घर आग लगी है तो बुझाने के लिए। | 
| खोइलन | हां तो मैं समझ रही हूं अकड़ू जैसी बातें कर रही हो । | 
| दौनामांझर | तो नहीं गुस्सा होंऊंगी क्या। | 
| लोरिक | क्या हुआ दाई क्यों गुस्सा हो रही हो ? | 
| खोइलन | खुद ही कह रही है राजा के घर आग लगी है, भभक रहा है। | 
| लोरिक | नहीं दाई औरतें कहती है ना घर में आग लगी है, वैसे ही एैसा हुआ वैसा हुआ, इस प्रकार से औरतें कोसती हैं। | 
| खोइलन | अच्छा गुस्से में कह रही थी। | 
| लोरिक | नहीं जानबूझकर बोल रही थी। | 
| खोइलन | मैं वहां आग लगी होगी सोच रही थी। | 
| लोरिक | मां यदि राज महर की गाय है करके हमारी बाड़ी में घुस गई है अगर हमारी गाय उनकी बाड़ी में घुस गई हेाती तो क्या करते ? | 
| खोइलन | हां तो कांजी-हाउस में ले जाते। | 
| लोरिक | तो ये मौका है आज हमारे घर। | 
| दौनामांझर | हां। | 
| लोरिक | यदि हम उनकी गाय को कांजी-हाउस ले जाएं या चारा चराने दूसरे शहर ले जाएं तो क्या होगा ? | 
| खोइलन | अच्छा होगा। | 
| लोरिक | हां अच्छा होगा बेटा। | 
| दौनामांझर | तो फिर राजा को पता चलेगा। | 
| लोरिक | हां फिर तुझे भी पता चलेगा। | 
| दौनामांझर | मुझे क्या पता चलेगा जी ? | 
| लोरिक | तो गाय अकेली थोड़ी जाएगी ? | 
| दौनामांझर | तो मजदूर नहीं लगा लेगें पहाटिया ? | 
| लोरिक | नहीं नहीं मैं लेकर जाऊंगा मैं खुद जाऊंगा तो बनेगा है ना दाई ? | 
| खोइलन | हां तुम तो बेटा चले जाओगे, तो घर सूना हो जाएगा। | 
| लोरिक | कैसे सूना हो जाएगा टूटे-फूटे पीपे (कनस्तर) को बजाती रहना। | 
| खोइलन | हट रे... | 
| लोरिक | लो चलो दाई मेरे जाने के बाद तुम दोनों सास बहू झगड़ना मत मैं गाय चराने दूसरे शहर ले जाऊंगा। | 
| खोइलन | हां बेटा। | 
| लोरिक | सास को सास जैसे और बहू को बहू जैसे रहना पड़ता है, ना दाई। | 
| खोइलन | हां बेटा, बेटी जैसी एक ही बहू है उससे मैं झगड़ा करूंगी क्या। | 
| लोरिक | हां केकड़े की चाल ना दाई। | 
| खोइलन | नहीं लड़ूगी बेटा। | 
| दौनामांझर | पहाटिया मेरी एक मां जैसी सास है उससे क्या मैं झगड़ा करूंगी ? | 
| लोरिक | हां जी बिना पेंदी का लोटा। | 
| दौनामांझर | नहीं लड़ूगी पहाटिया, नहीं लड़ूगी । | 
| लोरिक | ठीक है दाई पांव छू रहा हूं। | 
| खोइलन | हां बेटा। | 
| 
 | गीत :- | 
| लोरिक | मेरा कहता है बैरी। | 
| रागी | कह रहा है। | 
| लोरिक | लोरिक है जो वो । | 
| रागी | रहता है जी। | 
| लोरिक | रात के समय में चंदा के साथ। | 
| लोरिक | जा रहें हैं। | 
| रागी | वे तालाब के किनारे पहुंच गए हैं। | 
| रागी | कहता है बैरी जाने समय क्या बताऊं साथी, उस समय की बात है... क्या बताऊं मैं साथी... जाने के समय .. लोरिक और चंदा जा रहें हैं। | 
| लोरिक | कहां है तेरी झांपी ? | 
| चंदा | वहां पर मंदिर के पास है चलो चलते हैं। | 
| लोरिक | चलो चलो। | 
| चंदा | यह रहा पहाटिया। | 
| लोरिक | हां नया बनवाई हो क्या ? | 
| चंदा | हां नया है। | 
| लोरिक | हां हड़बड़ी में भी गूंथा है कितना सुन्दर गूंथा है, वो कड़रा छोड़ कोई दूसरा गूंथ दिया होगा। | 
| चंदा | कड़रा ने ही गूंथा है गूंथने को। | 
| लोरिक | हां नौसिखिया है। | 
| चंदा | हां नौसिखिया होगा। | 
| लोरिक | दिखाओ पूरा सामान रख ली हो ? | 
| चंदा | हां यह देखो तुम्हारे लिए नई धोती भी लाई हूं। | 
| लोरिक | अरे ऊंची वाली (मंहगी वाली) मुझे नहीं जमती । | 
| चंदा | नहीं जमती तो रहने दो बाद में पहनोगे तो तुम ही। | 
| लोरिक | बारह साल का जोड़ा जोड़ रखी हो, मगर चंदा जाने को तो जा रहे हैं चंदा इस राज्य का राजा कौन है, तुम्हारे पिताजी राजा महर। | 
| चंदा | सही बात है। | 
| लोरिक | एक बार पूछ लेते हमारे राउत समाज में दिस दिन मातर पूजा करते हैं खोड़हा देवता (लकड़ी का वह टुकड़ा जो ऊपर से दो भागों में बंटा होता है जिसे जमीन में गाड़कर उसे श्री कृष्ण का प्रतीक मानकर पूजा करते है ) को जानती हो ? | 
| चंदा | खोड़रहा देवता ? | 
| लोरिक | तुम्हारा थोबड़ा देवता, कठवा करते हैं रे पगली, हम लोग ‘खईरखा डांड़’ (गांव का वह स्थान जहां चराने से पहिले सारी गायों को इकट्ठा करते है) जहां दो भागों में बंटी लकड़ी गाड़ते हैं | 
| चंदा | और ऊपर में दो भाग रहता है क्या ? | 
| लोरिक | हां। | 
| चंदा | है ना। | 
| लोरिक | कद्दू लुढ़काते हैं उसकी को कहतें है मातर जागना (मातर पूजा) उसी दिन पूजा-पाठ करते हैं फिर नाचते कूदते हैं, वहां से आ जाते हैं फिर चल देते । | 
| चंदा | पहाटिया मेरा भी मन है तुम तो अपनी मां का आशीर्वाद लेकर आ गए हो, एक बार मैं भी पूछ कर आ जाती हूं। | 
| लोरिक | पूछूंगी बोल रही हो तो तुम्हारी मर्जी भई, लेकिन हिसाब से जाना कहीं मेरी पत्नी दौनामांझर पहाटनिन बैठी होगी तो फिर तुम्हारे बारह बजा देगी। | 
| चंदा | नहीं वैसी बात नहीं है मैं देखकर आई हूं। | 
| लोरिक | ऐसा ? | 
| चंदा | मैं देख कर आती हूं तुम यहीं पर रहना। | 
| लोरिक | चंदा लोरिक की मां से पूछने जाने लगी रे... । | 
| रागी | सगंवारी....। | 
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 | गीत :- | 
| चंदा | उस समय की बात है.... चंदा जा रही है खोईलन के पास। | 
| रागी | सिया राम सिया राम सिया राम ...बंशी बजाने वाले मनमोहन। | 
| चंदा | ये बारापाली छोड़कर जा रही हूं... हरदी की तरफ जा रही हूं। | 
| रागी | सिया राम सिया राम सिया राम ...बंशी बजाने वाले मनमोहन। | 
| चंदा | लो बारह सालों के लिए तुमको ले जा रहीं हूं राउत प्रेम-प्रीत में बांध लेना। | 
| रागी | सिया राम सिया राम सिया राम ...बंशी बजाने वाले मनमोहन। | 
| चंदा | दाई खोईलन को बुला रही हूं दीदी ... आ जाओ दाई बुला रही हूं। | 
| रागी | सिया राम सिया राम सिया राम ...बंशी बजाने वाले मनमोहन। | 
| चंदा | भैया सिया राम सिया राम सिया राम ...बंशी बजाने वाले मनमोहन। | 
| रागी | सिया राम सिया राम सिया राम ...बंशी बजाने वाले मनमोहन। (गीत समाप्त ) | 
| चंदा | अरे ओ दाई खोईलन। | 
| खोइलन | कौन है रे तुमको हंसिए से काटूं ? | 
| चंदा | हट रे टेढ़े मुंह वाली बुढ़िया। | 
| खोइलन | कौन है रे ? | 
| चंदा | मैं हूं दाई राजकुमारी चंदा। | 
| खोइलन | चंदा। | 
| चंदा | हां दाई। | 
| खोइलन | क्या है बेटी इतनी रात गए क्यों आई हो ? | 
| चंदा | दाई में एक खबर बताने आई हूं सियान। | 
| खोइलन | खबर क्या खबर रे ? | 
| चंदा | अरे तुम्हारा एक बछड़ा है न, जिसे तुमने छोटे से बड़ा किया है दाना पानी खिलाया पिलाया है उसे मेरे पिताजी राजा महर ने कांजी हाउस में रखवा दिया है, तुम्हारे बछड़े को। | 
| खोइलन | रात दिन दूसरों को आनी मुड़का (जानवर का दूसरे के खेत-बाड़ी में चरते हुए पकड़कर लाने के बदले चरवाहा द्वारा जानवर के मालिक से लिया गया धन या धान) दे देकर मेरा घर खाली हो गया है और ये आखिरी दाव में बछड़े को राजा ने कांजी हाउस में रखवा दिया है, अब रात के समय मैं ,अब क्या करुं, बेटा रहता तो उससे कहती छुड़वा लाने को। | 
| चंदा | तो तुम्हारा बेटा कहां गया है ? | 
| खोइलन | बेटा तुम्हारी काली कल्लोर को लेकर गया है बेटी। | 
| चंदा | अरे हमारी काली कल्लोर कहां चर रही थी ? | 
| खोइलन | हमारी बाड़ी में। | 
| चंदा | अच्छा तो वह उसको ले गया है क्या ? | 
| खोइलन | हां। | 
| चंदा | हमारी बाड़ी में तुम्हारा बछड़ा घुस आया था इस कारण पिताजी राजा महर भिजवा रहें हैं। | 
| खोइलन | हे भगवान मैं किससे कहूं दाई, रात के समय उसे छुड़ाने। | 
| चंदा | मैं कह रही थी तुम बूढ़ी हो गई हो दाई, तुम अपने बच्चे जैसा पाला पोसा है तुम चिंता फिक्र मत करो सुंदर ढंग से रहो अच्छे से खाओ पियो और सुख से रहो और चंदा इतनी रात को आई है ऐसा मत कहना मैं बस खबर देने आई थी। | 
| खोइलन | हां वही तो मैं कह रही थी बेटी इतने नौकर-चाकर हैं। | 
| चंदा | हां नौकर-चाकर तो बहुत है दाई। | 
| खोइलन | एकाद को भेज दी होती तुम इतने बड़े राजा महर की बेटी होकर मेरे घर आई हो दाई। | 
| चंदा | दाई भेजने को तो भेज देती नौकरों को मगर वो बेचारे दिन भर काम करके थके रहते हैं, तो रात का चार पहर भी बेचारे ठीक से नहीं सो पाते तो उनको क्यों तकलीफ हो ऐसा सोच कर ही मैं खुद आ गई तो ठीक नहीं किया क्या ? | 
| खोइलन | अच्छा हुआ बेटी तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है अच्छी है। | 
| चंदा | हां दाई। | 
| खोइलन | बता दी तो मैं चिंता फिक्र से दूर हो गई। | 
| चंदा | तुम चिंता फिक्र मत करना अपने बछड़े के लिए। | 
| खोइलन | और तो यहां राज्य में अकाल पड़ा है, क्या करें वो यहां खाता तो खाता अब वहां है तो वहां खाएगा, अच्छा किया जो तूने बता दिया बेटी, पर मन नहीं मानता। | 
| चंदा | हां पर मन में संतोष रखना दाई, मैं बस यही खबर देने आई थी, चलो चलती हूं लो पांव छू रही हूं। | 
| खोइलन | अच्छा किया बेटी तुम्हारे मांग का सिंदूर, हाथों की चूड़ियां, अमर रहे सुहाग तुम्हारा भगवान बनाए रखें। | 
| चंदा | हां हां कसम से आनी मुड़का देने के कारण घर एकदम खाली हो गया है उसका बछड़ा कितना खा जाता होगा मैं उसके बेटे पहाटिया से जाकर पूछती हूं, कितना खा लिया होगा उस बछड़े ने, मुझे कहती है तुम्हारी काली कल्लोर ने हमारी बाड़ी चर डाली, दूसरों को मुड़का दे देकर मेरा घर खाली हो गया है बोल रही है बुढ़िया। | 
| लोरिक | तो चल क्या कहा उसने ? | 
| चंदा | पहाटिया मैं गई थी तो वो कह रही थी क्या करूं बेटी, आनी के मुड़का देने के कारण मेरा घर खाली हो गया है, मेरा बछड़ा बहुत खाबड़ (पेटू) हो गया है बोल रही थी लो देखो तुम कब से इतने पेटू हो गए हो ? | 
| लोरिक | अरे वह सच का बछड़ा समझ रही होगी पगली चल आशीर्वाद तो ले ली ना ? | 
| चंदा | हां आशीर्वाद ले ली हूं। | 
| लोरिक | चलो इस गांव को छोड़कर हमें दूसरे शहर जाना है। | 
| चंदा | हां हां। | 
| लोरिक | तुमने बारह मुक्के खाकर कसम खाई थी कि लोरिक को बारह साल के लिए अपने साथ ले जाऊंगी, चलो अब लोरिक तुम्हारे साथ बारह साल के लिए जाएगा तुम्हारे साथ, ले चलो। | 
| चंदा | ऐसा क्या, चलो चलते हैं। | 
| लोरिक | अब तुम कहीं भी ले चलो। | 
| चंदा | चलो इसे मेरे सिर पर रखो । | 
| लोरिक | लोरिक और चंदा गांव छोड़कर चलने लगे रे। | 
| रागी | संगवारी....। | 
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 | गीत :- | 
| लोरिक | मेरा चल रहा है बैरी। | 
| रागी | जा रहें हैं वो। | 
| लोरिक | लोरिक और चंदा। | 
| रागी | है जो। | 
| लोरिक | घर छोड़ रहें हैं। | 
| रागी | जा रहें हैं जी । | 
| लोरिक | जा रहा है राउत। | 
| रागी | जा रहें हैं। | 
| लोरिक | और साथ में है चंदा । | 
| रागी | है जी। | 
| लोरिक | मेरी है रे बैरी । | 
| रागी | है जी। | 
| लोरिक | उस समय की बात है, मेरे चल रहें हैं बैरी। | 
| रागी | जा रहें हैं जी। | 
| लोरिक | जा रहें है भैया। | 
| रागी | जा रहा है लोरिक.. जा रही है चंदा। | 
 
        
         
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
