Pandvani: Sabha Parv- Prabha Yadav & Mandali
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Pandvani: Sabha Parv- Prabha Yadav & Mandali

in Video
Published on: 11 May 2019
Raipur, Chhattisgarh, 2018

Pandvani is one of the most celebrated performative genres from Chhattisgarh. Known mostly as a regional/ folk version of the Mahabharata, its terms of relationship with the Sanskrit epic are little known.This series of modules presents the recitation of the Pandavani by Prabha Yadav, The recitation presents all the eighteen parv of the epic based on the version compiled by Sabal Singh Chauhan, an author whose text was in circulation in this region. Prabha Yadav is a noted performer of the Pandavani, and represents what has come to be seen as Jhaduram Devangan’s style of rendition.

 

The parv presented in this video is the Sabha Parv. The prasangs contained in this parv are Rajsuya Yagn, Jarasandh Vadh, Shishupal Vadh, Seepalbhakt ko yagn me lana, Paasa ka khel, Draupadi cheerharan.

 

This content has been commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh

 

Transcript

प्रभा

बोल बृन्‍दावन बिहारी लाल की जय।

प्रभा

बोल वृन्‍दावन बिहारी लाल की जय।

 

 

रागी

जय।

रागी

जय।

 

 

प्रभा

‘’रामे रामे भैया रामे रामें ग भैया जी राम रामे रामे रामे रामे राम ग भाई  

राजा जन्‍मेजय पूछन लागे भैया जी, वैसमपायम काहन लागय भाई, अरे भैया राजा जन्‍मेजय के प्रति वैसमपायम जी महराज कथे, राजा जन्‍मेजय’’।ौया

प्रभा

‘’रामे रामे भैया रामे रामें ग भैया जी राम रामे रामे रामे रामे राम ग भाई  

राजा जन्‍मेजय पूछने लगे भैया जी, वैसमपायम कहने लगे भाई, अरे भैया राजा जन्‍मेजय के प्रति वैसमपायम जी महराज कहते हैं, राजा जन्‍मेजय’’।  ौया

 

 

रागी

हव।

रागी

हां।

 

 

प्रभा

आज मय तोला सभा पर्व के कथा बतावत हंव।

प्रभा

आज मैं तुम्‍हें सभा पर्व की कथा बताता हूं।  

 

 

रागी

जय हो।

रागी

जय हो।

 

 

प्रभा

कहिस कि भैया ये सभा पर्व के कथा अईसन कथा ए जेकर सुने ले आवगमन से रहित हो जथे ‘’अरे पांडव चरित कहत मन लाए तब जन्‍मेजय राजा कर आए’’ रागी भैया हस्तिनापुर में महराज दुर्योधन निवास करथे अउ इंद्रप्रस्‍थ नगर में पांचो भैया पांडव निवास करत हे ‘’अ ग राज धर्मेश सोचन लागे भाई’’ कुंती नंदन महराज युधिष्ठिर मन में विचार करथे कि इंद्रप्रस्‍थ के राज लक्ष्‍मी धनधान्‍य सब मोर ए ‘’अ ग राजा धर्मेश ह सोचन लागे भाई, हां अर्जुन ल काहन लागे मोर भाई, हां अर्जुन ल काहन लागे मोर भाई, राजा युधिष्ठिर मन में विचार करथे ये इंद्रप्रस्‍थ के राज लक्ष्‍मी सब मोर ए।               

प्रभा

कहते हैं कि भैया ये सभा पर्व की कथा ऐसी कथा है जिसके सुन लेने से आवगमन से रहित हो जाते हैं ‘’अरे पांडव चरित्र कहने लगे तब जन्‍मेजय राजा के पास आए’’ रागी भैया हस्तिनापुर में महाराज दुर्योधन निवास करते हैं और इंद्रप्रस्‍थ नगर में पांचो भैया पांडव निवास करते है ‘’अ जी राजा धर्मेश सोचने लगे भाई’’ कुंती नंदन महराज युधिष्ठिर मनमें विचार करते हैं कि इंद्रप्रस्‍थ की राज्‍यलक्ष्‍मी धनधान्‍य सब मेरे है ‘’अ जी राजा धर्मेश ये सोचने लगे भाई, हां अर्जुन को कहने लगे मेरे भाई, हां अर्जुन से कहने लगे मेरे भाई, राजा युधिष्ठिर मन में विचार करते हैं ये इंद्रप्रस्‍थ की राज लक्ष्‍मी सब मेरी है।

 

                

रागी

जय हो।

रागी

जय हो।

 

 

प्रभा

रागी भैया ये इंद्रप्रस्‍थ नाम के नगर में राजस्‍वी यज्ञ करत हे बड़े बड़े राजा बड़े बड़े ब्राम्‍हण क्षत्रीय वैश्‍य शूद्र सब पहुंचथे यज्ञ ल देखे बर। 

प्रभा

रागी भैया इस इंद्रप्रस्‍थ नाम के नगर में राजस्‍वी यज्ञ करते हैं, बड़े बड़े राजा बड़े बड़े ब्राम्‍हण क्षत्रीय वैश्‍य शूद्र सब यज्ञ देखने के लिए पहुंचते हैं।

 

 

रागी

हव भई।

रागी

हां भई।

 

 

प्रभा

महावीर अर्जुन हाथ में गांडीव लेके भगवान द्वारका धीश ल लाय के खातिर द्वारिकानगर में पहुचंथे, ‘’हरि कर नाम ल भूल भैया, हरि नाम भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना’’।   

प्रभा

महावीर अर्जुन हाथ में गांडीव लेके भगवान द्वारि‍काधीश को लाने के लिए द्वारिकानगर में पहुंचते हैं, ‘’हरि का नाम ना भूल भैया, हरि नाम भजन बिना मुक्ति नहीं मिलती है और बेड़ा पार नहीं होता है। 

 

 

रागी

हरि नाम भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना।

रागी

हरि नाम भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है।

 

 

प्रभा

जय यदुनंदन जय मुनि जगबंदन भजन बिना बेड़ा पार नहीं होवय ना, भगवान द्वारिकानाथ समस्‍त यदुवंशी के वंशज ल लेके पांडव के घर में यज्ञ देखे बर पहुंचथे जय जय जय दुष्‍टनिकंदन भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना भैया भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना, हरि कर नाम ल ना भूल भैया भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना।

प्रभा

जय यदुनंदन जय मुनि जगबंदन भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है, भगवान द्वारिकानाथ समस्‍त यदुवंशियों का समाज लेकर पांडव के घर में यज्ञ देखने के लिए पहुंचते हैं, जय जय जय दुष्‍टनिकंदन भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है, भैया भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है, हरि के नाम को ना भूल भैया भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है।

 

 

रागी

भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना, हरि कर नाम ल ना भूल भैया भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना, भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना, हरि कर नाम ल ना भूल भैया भजन बिना बेड़ा पार नई होवय ना।  

रागी

भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है, हरि के नाम को ना भूल भैया भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है, भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है, हरि के नाम कारे ना भूल भैया भजन बिना बेड़ा पार नहीं होता है।    

 

 

प्रभा

भगवान बांके बिहारी यज्ञ देखे बर आय हे द्वारिकानगर के समस्‍त यदुवंशी ल लेके रागी भैया ।

प्रभा

भगवान बांके बिहारी यज्ञ देखने के लिए आये हैं द्वारिकानगर के समस्‍त यदुवंशियों को लेकर रागी भैया ।

 

 

रागी

हव भई।

रागी

हां भाई।

 

 

प्रभा

रागी भैया राजस्‍वी यज्ञ के सम्‍पन्‍न होत ले समस्‍त ब्राम्‍हण ल दक्षिणा देबर रीहीस हे रागी ब्राम्‍हण जतके अकन  दक्षिणा मांगतिस जइसने दान मांगतिस वईसने दान दे बर रीहीस।

प्रभा

रागी भैया राजस्‍वी यज्ञ के सम्‍पन्‍न होते तक समस्‍त ब्राम्‍हणों को दक्षिणा देना था, रागी ब्राम्‍हण जितना सारा दक्षिणा मांगते जैसा दान मांगते वैसा ही दान देना था।

 

 

रागी

जय हो।

रागी

जय हो।

 

 

प्रभा

राजा युधिष्ठिर ल बताय गे रीहीसे धर्मराज तोर घर में एक नेवला आही आधा शरीर सोना के बने हे अउ आधा शरीर ह कच्‍चा हे जब वो नेवला के शरीर पूरा सोन के बन जाही तभे ते जानबे मोर यज्ञ सफल होगे, घर के दरवाजा में एक ठन घंटी बंधाही ओ घंटी जब तीन घांव बाजही तीन आवाज दिही तब तोर यज्ञ सम्‍पन्‍न होही।

प्रभा

राजा युधिष्ठिर को बताया गया था कि धर्मराज तुम्‍हारे घर में एक नेवला आएगा जिसका आधा शरीर सोने का बना होगा और आधा शरीर कच्‍चा होगा जब उस नेवले का शरीर पूरा सोने का बन जाएगा तभी तुम जानना कि मेरा यज्ञ सफल हो गया, घर के दरवाजे में एक ठन घंटी बंधेंगी और जब वो घंटी तीन बार बजेगी तीन आवाज देगी तब तुम्‍हारा यज्ञ सम्पन्‍न होगा।

 

 

रागी

हव भई।

रागी

हां भई।

 

 

प्रभा

भगवान बांके बिहारी जब पांडव के समाज में पहुंचथे तब पांडव मन दउड़त जाथे, भगवान बांके बिहारी राजा युधिष्ठिर ल कथे भैया राजस्‍वी यज्ञ करत हावस पर सबसे पहिली मगध नाम के देश में जरासन नाम के राजा राज करत हे जोन ह निन्‍याबे राजा ल बंदी बना के कारागृह में बंदी बना के राखे हे।

प्रभा

भगवान बांके बिहारी जब पांडव के समाज में पहुंचते हैं तब पांडव लोग  दौड़ते हुए जाते हैं, भगवान बांके बिहारी राजा युधिष्ठिर से कहते हैं भैया राजस्‍वी यज्ञ कर रहे हो पर सबसे पहले मगध नाम के देश में जरासन नाम के राजा राज करते हैं जिसने कि निन्‍यावे राजाओं को बंदी बनाकर कारागृह में कैद कर रखा है।

 

 

रागी

जय हो जय हो।

रागी

जय हो जय हो।

 

 

प्रभा

तंय राजन जब तक के जरासन ल नी मारबे तोर यज्ञ सम्‍पन्‍न नी होय राजा युधिष्ठिर  कहिस भगवान तय तो सकल चराचर के स्‍वामी आस सारी दुनियां ल तंय नाच नचावत हस ।

प्रभा

राजन जब तक तुम जरासन को नहीं मार लोगे ब तक तुम्‍हारा यज्ञ सम्‍पन्‍न नहीं होगा, राजा युधिष्ठिर  कहते हैं भगवान तुम तो सकल चराचर के स्‍वामी हो सारी दुनिया तम्‍हारे ईशारे पर नाचती है।

 

 

रागी

जय हो जय हो।

रागी

जय हो जय हो।

 

 

प्रभा

कहे कि प्रभु जरासन ह तोर हाथ म हे मारबे त मरही अउ बचाबे त बांचही भगवान कहिस कि जरासन ह मोर हाथ म हे भाई पर जरासन ल मारे बर अर्जुन अउ भीम ल मोर संग म भेजे बर परही फिर अर्जुन भीम ल भेजे बर लागही राजा युधिष्ठिर काहत हे नहीं भेजव द्वारकानाथ भगवान पूछे काबर नी भेजस राजा युधिष्ठिर कथे मोर भाई मन लईका जात हे सुकुमार हे अर्जुन भीम अभी राजकुमार हे जरासन ल देख के सब डर्राथे जेकर भुजा में दस हजार हाथी के बल हे भगवान कथे युधिष्ठिर तोला जरासन ल मारे बर हे त अर्जुन भीम ल भेजे  ल लगही राजा युधिष्ठिर कहिस द्वारकानाथ अगर कहीं अर्जुन भीम ल तोर संग भेजहूं त राजा ल मार के मोर दूनो भाई जियत मोर आगू म लान देबे भगवान बोले युधिष्ठिर तंय चिंता मत कर भगवान बांके बिहारी हरि अर्जुन पवन नंदन भीमसेन मगध नगर म पहुंचथे जइसे ही मगध के तीर म जाथे तीनो झन ‘’ अ ग ब्राम्‍हण के रूपे धरन लागे रे भाई’’ सिर में जटा मस्तिष्‍क में अर्धचंद्र चंदन खांध म यज्ञोपवीत पनी के कपड़ा चंदन के खड़ाउ अउ गोरा गोरा रंग ‘’तीनो ब्राम्‍हण के रूप में पहुंचन लागे रे भाई हां राजा ओला देखन लागे रे भाई, तीनो ब्राम्‍हण के रूप में पहुंचन लागे रे भाई हां राजा ओला देखन लागे रे भाई’’ विप्र रूप में तीनो पहुंचते हैं लगे हैं जरासन महराज के समाज और बैठे हैं एक से बढ़कर एक रागी भैया तब तीनो झन ब्राम्‍हण ल आवत देखिस त राजा जरासन सिंहासन ल छोड़ के खड़ा हो गिस दोनों हाथ ल जोड़ के आसन म बैठार के कहिथे आवव महराज कहे जरासन के सभा में स्वागत हे।                     

प्रभा

कहते हैं कि प्रभु जरासन तुम्‍हारे हाथों में है तुम मारोगे तो मरेगा बचाओगे तो बचेगा भगवान कहते हैं कि जरासन तो मेरे ही हाथों  में है भाई पर जरासन को मारने के लिए अर्जुन और भीम को मेरे साथ भेजना पड़ेगा फिर अर्जुन भीम को भेजना ही पड़ेगा राजा युधिष्ठिर कहते हैं नहीं भेजूंगा  द्वारि‍कानाथ भगवान पूछते हैं क्‍यों नहीं भेजना हैं राजा युधिष्ठिर कहते हैं मेरे दोनों भाई अभी बच्‍चे है सुकुमार है अर्जुन भीम अभी राजकुमार है जरासन को देखकर सब डरते हैं जिसकी भुजाओं में दस हजार हाथियों के बल है भगवान कहते हैं युधिष्ठिर तुमको जरासन को मारना है तो अर्जुन और भीम को भेजना ही पड़ेगा राजा युधिष्ठिर कहते हैं द्वारिकानाथ अगर कहीं अर्जुन भीम को तुम्‍हारे साथ भेजूंगा तो राजा जरासन को मारकर मेरे दोनों भाईयों को जिन्‍दा मेरे सामने ला देना भगवान बोले युधिष्ठिर तुम चिंता मत करो, भगवान बांके बिहारी हरि अर्जुन पवन नंदन भीमसेन मगध नगर में पहुंचते हैं  जैसे ही मगध के पास में पहुंचते हैं तीनो ‘’अ जी ब्राम्‍हण का रूप धरने लगे रे भाई’’ सिर में जटा, मस्तिष्‍क में अर्धचंद्र चंदन, कंधे में यज्ञोपवीत पनी के कपड़े,  चंदन का खड़ाऊ और  गोरा गोरा रंग ‘’तीनो ब्राम्‍हण के रूप में पहुंचने लगे रे भाई, हां राजा उनको देखने लगे रे भाई, तीनो ब्राम्‍हण के रूप में पहुंचने लगे रे भाई, हां राजा उनको देखने लगे रे भाई’’ विप्र रूप में तीनो पहुंचते हैं, लगी है जरासन महराज की समाज और बैठे हैं एक से बढ़कर एक, रागी भैया तब तीनो ब्राम्‍हण को आते देखा तो राजा जरासन सिंहासन छोड़कर खड़ा हो गया दोनों हाथ जोड़कर के आसन में बि‍ठाकर कहा आईए महाराज कहा जरासन की सभा में स्वागत है।          

 

          

रागी

हव भई।

रागी

हां भाई।

 

 

प्रभा

तीनों महराज ल आसन म बईठाथे राजा जरासन ह पूछत हे का सेवा करंव कइसे आय हव ओतका कहन पाय राहय रागी बताथे राजा जरासन के राज महल के सिंह दरवाजा में एक नगाड़ा बंधाय राहय कोई भी आदमी युद्ध के नाम से जावय तहान वो नगाड़ा ह आवाज दे।

प्रभा

तीनो महाराज को आसन में बि‍ठाकर राजा जरासन पूछते हैं क्‍या सेवा करूं कैसे आए हो ? इतना ही  कह पाए थे रागी बताते हैं कि राजा जरासन के‍ राजमहल के सिंह दरवाजे में एक नगाड़ा बंधा था कोई भी आदमी युद्ध के नाम से जाता था तब वह वो नगाड़ा बज उठता था।

 

 

रागी

आवाज दे।

रागी

बज उठता था।

 

 

प्रभा

राजा जरासन जान डरे मोर राज म कोनो योद्धा आही युद्ध करे बर जरासन पूछत हे महराज का सेवा करंव ओतकेच कहीस त नगाड़ा ह बाजगे राजा जरासन कहिस ये नगाड़ा बाजगे जरूर मोर राज म कोई योद्धा युद्ध करे बरे आय हे।

प्रभा

राजा जरासन जान जाता था कि मेरे राज्‍य में कोई योद्धा आया हुआ है युद्ध करने के लिए राजा  जरासन पूछता है कि महाराज क्‍या सेवा करूं इतना ही बोल पाया था कि नगाड़ा बज उठा राजा जरासन ने कहा ये नगाड़ा बज गया जरूर मेरे राज्‍य में कोई योद्धा युद्ध करने के लिए आया है।

 

 

रागी

आय हे।

रागी

आया है।

 

 

प्रभा

राजा के बात सुनके भगवान कहे तोर जघा आय रेहेंव काबर अर्जुन भीम ले जादा भगवान जादा चालाक राहय राजा पूछत हे कईसे आय हव त राजा जरासन ल भगवान कहे तोरे जघा आय रेहेंव कुछू मांगबो त देहूं कहिबे त मांग लेबो जरासन, राजा जरासन कहे मांग ।

प्रभा

राजा की बात सुनकर भगवान कहते हैं तुम्‍हारे पास ही आए थे कयोंकि अर्जुन भीम से ज्‍यादा भगवान चालाक थे राजा पूछता है कैसे आए थे तो राजा जरासन को भगवान कहते है तुम्‍हारे पास ही आए थे, कुछ मांगगे अगर तुम दोगे कहोगे तो मांग लेंगे जरासन, राजा जरासन ने कहा मांगि‍ए।

 

 

रागी

हव।

रागी

हां।

 

 

प्रभा

भगवान कहे राजा तंय हमला युद्ध करे के वरदान दे मोला युद्ध चाहिए, त जरासन कहे महराज ब्राम्‍हण मन ह नी लड़े तुमन कोन आव अपन आप ल प्रकट करव, राजा के बात ल सुनके तीनों अपन रूप ल प्रकट कर देथे राजा जरासन के नजर ह जब भगवान उपर परिस तहान भगवान ल देख के हांस दिस अउ राजा जरासन कहे द्वारिकानाथ ‘’कथा राम सुनईया कांटा झन गड़े ग तुंहर पांव म, कथा राम सुनईया कांटा झन गड़े ग तुंहर पांव म, रामकहानी अमृतबानी आव कथा के छांव म कथा राम सुनईया कांटा झन गड़े ग तुंहर पांव म, इही कथा ल भोलेनाथ ह पार्वती ल सुनाईस हे।

प्रभा

भगवान ने कहा राजा तुम हमें युद्ध करने का वरदान दो हमें युद्ध चाहिए, तो जरासन ने कहा महराज ब्राम्‍हण लोग नहीं लड़ते हैं, आप कौन हैं अपने आप को प्रकट कीजिए, राजा की बात सुनकर तीनो अपना रूप प्रकट करते हैं राजा जरासन की नजर जब भगवान के ऊपर पड़ी तो भगवान को देखकर वह हंस दिया और राजा जरासन कहते हैं द्वारिकानाथ ‘’कथा राम की सुनने वाले कांटा ना चुभे तुम्‍हारे पांव में, ’कथा राम की सुनने वाले कांटा ना चुभे तुम्‍हारे पांव में, रामकहानी अमृतवाणी आओ कथा की छांव में,  कथा ’कथा राम की सुनने वाले कांटा ना चुभे तुम्‍हारे पांव में, इसी कथा को भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को सुनाया है’’।

 

 

रागी

पार्वती ल सुनाईस हे, पार्वती ल सुनाईस हे।

रागी

पार्वती को सुनाया है, पार्वती को सुनाया है।

 

 

प्रभा

इही कथा ल जब व्‍यास हे गजानंद ल बताईसे।

प्रभा

इसी कथा को जब व्‍यास ने गजानन को बताया है।

 

 

रागी

गजानंद ल बताईसे, गजानंद ल बताईसे।

रागी

गजानन को बताया है, गजानन को बताया है।

 

 

प्रभा

रामकहानी अमृतबानी आव कथा के छांव म कथा राम सुनईया कांटा झन गड़े ग तुंहर पांव म।

प्रभा

रामकहानी अमृतवाणी आओ कथा की छांव में, कथा ’कथा राम की सुनने वाले कांटा ना चुभे तुम्‍हारे पांव में ।

 

 

रागी

रामकहानी अमृतबानी आव कथा के छांव म कथा राम सुनईया कांटा झन गड़े ग तुंहर पांव म  

रागी

रामकहानी अमृतवाणी आओ कथा की छांव में,  कथा ’कथा राम की सुनने वाले कांटा ना चुभे तुम्‍हारे पांव में। 

 

 

प्रभा

राजा जरासन कहिस महराज अपन आप ल प्रकट करव भगवान जब प्रकट होथे रागी भैया अउ जरासन भगवान ल देखिस तहाने ‘’राजा ह हांसन लागे ए दे मोर भाई, हां राजा ह हांसन लागे ए दे मोर भाई, ओला राजा जरासन पूछन लागे भाई, भगवान काहन लागे ग भाई, भगवान काहन लागे ग भाई’’ भगवान बांके बिहारी जरासन ल कथे रागी कथे राजन हम ये तीन झन आय हन अब ये तीन झन में एक झन पसंद कर ले जेकर संग तोला लड़ना हे,  भगवान ईशारा करके पूछिस, मोर संग लड़बे, राजा जरासन मूड़ ल हलाईस कथे नी लड़व।

प्रभा

राजा जरासन कहते हैं महाराज अपने आप को  प्रकट करो भगवान जब प्रकट होते है रागी भैया और जरासन भगवान को देखते हैं फिर ‘’राजा जी हंसने लगे जी मेरे भाई, हां राजा हंसने लगे जी मेरे भाई, उनको राजा जरासन पूछने लगे भाई, भगवान कहने लगे जी भाई, भगवान कहने लगे जी भाई’’ भगवान बांके बिहारी जरासन से कहते हैं रागी कहते हैं  राजन हम ये तीन लोग आये हैं हम तीनो में कोई एक पसंद कर लो जिसके साथ तुमको लड़ना है,  भगवान ईशारा करके पूछते हैं, मेरे साथ लड़ोगे, राजा जरासन सिर हिलाकार कर कहता नहीं लड़ूंगा।

 

 

रागी

नी लड़व।

रागी

नहीं लड़ूंगा।

 

 

प्रभा

भगवान पूछे मोर संग काबर नी लड़स भैया भगवान पूछत हे कस जी मोर संग काबर नी लड़स त राजा जरासन ह कथे, तंय भगेलू अस सतरा बार रण में चढ़ाई करेंव लड़ाई के मैदान में रण ल छोड़ केक भाग जथस भगेलू अस ओकरे सेती दुनियां में तोला रणछोर कथे, मोरे डर के मारे समुद्र के अंदर में, द्वारका में बसे हस।  

प्रभा

भगवान पूछते हैं मेरे साथ क्‍यों नहीं लड़ोगे भैया भगवान पूछते है क्‍यो जी मेरे साथ क्‍यों लड़ोगे ? तो राजा जरासन कहते हैं, तुम  भगोड़े हो सत्रह बार रण में चढ़ाई किया मैंने लड़ाई का मैदान छोड़कर तुम भाग जाते हो तुम भगोड़े हो इसलिए सारी दुनिया तुम्‍हे रणछोड़ कहती है मेरे ही डर के कारण मेरे ही डर के कारण तुमन समुद्र के भीतर बसे हो, द्वारिका में बसे हो। 

 

 

रागी

जय हो जय हो।

रागी

जय हो जय हो।

 

 

प्रभा

द्वारका नाथ मय नई लड़व तोर संग काबर कि तंय लड़ाई के मैदान ल छोड़ के भाग जथस तेकर सेती संग नई लड़व भीम ह सुने कहे बाप रे बाप जगत के स्‍वामी जेकर आधार में सारी दुनिया चलत हे ओला एहा भगेलू अस कहिथे, भगवान अर्जुन कोती ईशारा करीस एकर संग लड़बे राजा अर्जुन ल देख के कहिस नई द्वारकानाथ एकरो संग नई लड़व।

प्रभा

द्वारिकानाथ मयैं नहीं लड़ूंगा आपके साथ क्‍योंकि तुम लड़ाई का मैदान छोड़कर भाग जाते हो इसलिए नहीं लड़ूंगा तुम्‍हारे साथ,  भीम ने सुना तो कहा बाप रे बाप जगत के स्‍वामी जिनके आधार पर सारी दुनिया चलती है यह उनको भगोड़ा कह रहा है, भगवान अर्जुन की तरफ ईशारा करते हैं इसके साथ लड़ोगे राजा अर्जुन को देखकर कहता नहीं द्वारिकानाथ इसके साथ भी नहीं लड़ूंगा।

 

 

रागी

हव भई बहुत दुबला पतला हे।

रागी

हां भाई बहुत दुबला पतला है।

 

 

प्रभा

भगवान कहे काबर नई लड़स त राजा कहे ये सुकुमार हे मोर गदा के मार ल नी सह पाही अर्जुन सुकुमार हे कोमल हे भीम मन में विचार करीस ये अर्जुन जईसे भारत वीर द्वापर के युग म पैदा नी होय हे वो वीर ल ये सुकुमार हे काहत हे, भगवान पूछे जरासन ल पूछे ये देकर संग लड़बे का, भैया जरासन भीम ल देख के कहे हां द्वारकानाथ ये हर मोर लायक हे ओतका ल सुनिस नहीं रागी त भीम के टेस ल का पूछबे, भीमसेन भगवान अउ अर्जुन कोती ईशारा करथे अउ हांस के कहिथे कहे देखे तुम दूनो झन छोड़ दिस अउ ‘’मोला पसंद करे हावय ग भैया, मोला पसंद करे हावय ग भैया पवन नंदन ग काहन लागे ग भाई, पवन नंदन ग काहन लागे ग भाई’’ भीम भगवान ल ईशारा कर दिस काहय द्वारकानाथ तुम दोनों ल छोड़ दिस अउ ओतका कहिके ‘’ अ ग भीम मूछे ल चघावन लागे भैया, भीम कहे द्वारकानाथ ओ तो मोला पसंद करे हावय ग भाई, हरि अर्जुन काहन लागे एदे ग भाई, हरि अर्जुन काहन लागे एदे ग भाई’’ रागी भाई जरासन ह गे रीहीन हे रेहे बर रागी,  जरासन ह रेहे बर घर दीस, अउ भोजन के भी बेवस्‍था करीस रात भर विश्राम करीस अउ होत प्रात:काल जब दोनों बीर लड़े के खातिर चलथे भीम जब युद्ध के मैदान में चलथे त भगवान अपन हाथ ल भीम के शरीर म फेरत हे, महावीर भीमसेन अपन दोनों हाथ ल जोड़ के भगवान द्वारकानाथ  के चरण में पांव परत हे युद्ध के मैदान में नाना प्रकार के जुझाउ बाजा बाजत हे सबल सिहं चौहान बताय हे कि जरासन के भुजा में दस हजार हाथी के बल हे अउ भीम के भुजा म साठ हजार हाथी के बल हे रागी भैया जउन ल भगवान महादेव ह देहे लड़ाई के मैदान में, जब दोनों वीर खड़े होथे त ‘’ये अपनो कमर ल कसन लागे ग भाई, शेर के समान गरजन लागे भाई, मन के युद्ध ग मोर होवन लागे ग भाई, ये दे दोनो वीर लड़न लागे ग भाई, ये दे दोनो वीर लड़न लागे ग भाई’’ सीना म सीना भुजा म भुजा अउ जंघा में जंघा मिलते हैं, रागी कोनो ल कोनो चटकन म मारत हे त कोनो ल कोनो मुटका म मारत हे, बिना एक क्षण विश्राम किए होता प्रात:काल से दिन डूबते तक लडि़स बेरा ह बूढ़ीस त दोनों झन आपस में भाई असन मिलगे दिन भर लड़े अउ दिन ह बूढ़े त भाई असन मिल जाय काबर कि दोनों के बीच धर्म के युद्ध होत राहय सात दिन बीतगे जरासन ल न भीम ह मार सके न भीम ह राजा जरासन ल मार सके, सात दिवस भयु घर संग्राम करते हैं बताय हे जब सातवां  दिन के लड़ाई में भीम ह आथे ना रागी भोजन करके गप शयन करथे भीम सोए हे पलंग म तब भीमसेन ल नींद नी आवत राहय भीम पलंग म सूते राहय अउ सूते सूते करवटी ले, त रागी तब कतको ओहा मुंहू ल दबाय के कोशिश करिस तभो ले आकर मुंह ले निकल जाय आह आह भगवान तीर म सूते रहाय ते काहय सूते हे त सूत नईते उठ के रईंग भगवान काहत हे ना खुद सूतत हे ना दूसरो ल सोवन देत हस भगवान काहत हे कस जी तोर नींद नई परत हे त ते उठ के रेंग।

प्रभा

भगवान कहते हैं क्‍यों नहीं लड़ोगे तो राजा कहता है ये सुकुमार है मेरे गदा की मार को नहीं सह पाएगा, अर्जुन सुकुमार है कोमल है भीम ने मन में विचार किया कि ये अर्जुन जैसे भारत वीर जो  द्वापर के युग में पैदा नहीं हुआ है उस वीर को ये सुकुमार कह रहा है, भगवान जरासन से पूछे इसके साथ लड़ोगे क्‍या, भैया जरासन भीम को देखकर कहता कि हां द्वारिकानाथ ये मेरे लायक है इतने को सुनकर ना रागी भीम के घमण्‍ड का क्‍या पूछना, भीमसेन भगवान और अर्जुन की ओर ईशारा करते हैं और हंस के कहते हैं, देखा तुम दोनों को छोड़ दिया और ‘’मुझे पसंद किया है जी    जी भैया, मुझे पसंद किया है जी भैया, पवन नंदन जी कहने लगे जी भाई, पवन नंदन कहने लगे जी भाई’’ भीम ने भगवान की ओर ईशारा कर दिया कहने लगे द्वारिकानाथ तुम दोनों को छोड़ दिया और इतना कहकर ‘’अ जी भीम अपनी मूछें चढ़ाने लगे भैया, भीम ने कहा द्वारिकानाथ उसने  तो मुझे पसंद कर लिया है जी भाई, हरि अर्जुन कहने लगे जी भाई, हरि अर्जुन कहन लगे जी भाई’’ रागी भाई राजा जरासन के घर गए थे रहने के लिए रागी, जरासन ने रहने के लिए घर दिया, और  भोजन की भी व्‍यवस्‍था की रात भर विश्राम किया और होते प्रात:काल जब दोनों वीर लड़ने  के लिए चलते हैं भीम जब युद्ध के मैदान में चलते हैं तो भगवान अपने हाथ भीम के शरीर में फेरते हैं, महावीर भीमसेन अपने दोनों हाथ जोड़कर भगवान द्वारिकानाथ के चरण स्‍पर्श करते हैं युद्ध के मैदान में नाना प्रकार के जुझारू बाजे बज रहे हैं,  सबल सिहं चौहान बताये हैं कि जरासन की भुजाओं में दस हजार हाथी के बल हैं और भीम की भुजाओं में साठ हजार हाथी के बल है रागी भैया जिसको भगवान महादेव ने दिया है, लड़ाई के मैदान में जब दोनों वीर खड़े होते हैं ‘’ये अपने कमर को कसने लगे जी भाई, शेर के समान गरजने लगे भाई, मन का युद्ध होने लगा जी मेरे भाई, अ जी  दोनों वीर लड़ने लगे जी भाई, अ जी दोनो वीर लड़ने लगे जी भाई’’ सीने से सीना भुजाओं से भुजा और  जांघों से  जांघ मिलते हैं, रागी किसी ने किसी को थप्‍पड़ से मारा तो किसी ने किसी को मुक्‍के से मार रहा है, बिना एक क्षण विश्राम किए होते प्रात:काल से दिन डूबते तक लड़ते हैं दिन डूबने पर दोनों वीर आपस में भाईयों के समान मिलते हैं दिन भर लड़ते हैं और दिन डूबते ही दोनों आपस में भाईयों के समान मिल जाते क्‍योंकि दोनों के बीच धर्म का युद्ध हो रहा है, सात दिन बीत गया जरासन को ना ही भीम मार सक रहा है ओर न ही राजा जरासन भीम को मार सक रहा है, सात दिन हो गए घोर संग्राम करते बताया है जब सातवें  दिन की लड़ाई में भीम आते हें ना रागी भोजन करने के बाद गप शयन करते हैं भीम सोए है पलंग में लेकिन  भीमसेन को नींद नहीं आ रही थी भीम पलंग में लेटे थे और लेटे लेटे करवट लेते हैं, तो वे कितना भी अपना मुंह दबाने की कोशिश करते तो भी मुंह से निकल जाता आह.. आह.. भगवान पास ही सोए थे वे कहते हैं सोना है तो सोओ नहीं तो उठ कर जाओ ना खुद सो रहे हो ना दूसरों को सोने दे रहे हो भगवान कहते है कैसे जी तुमको नींद नहीं आ रही है तो उठकर जाओ।            

 

 

रागी

हव भई बईठे हस ए मोर ।

रागी

हां भाई बैठ गए हो यहां पर।

 

 

प्रभा

भीम कथे केशव मय नई बांचहू तईसे लागत हे तब भगवान हांस के पूछथे कईसे का बात हे भीम बोले प्रभु मय नई बांचव भगवान बोले कईसे त भीम कहते हैं महराज जरासन उठा उठा के गदा में मोर शरीर ल मारथे त मोर सारी बदन दर्द से व्‍याकुल हो जाथे भगवान हांस के कथे रस्‍ता रेंगईया ल बला बला के अपन असन वीर पूछत रेहे तोर गांव कोती  मोर असन लड़ईया मिलही का, अउ आज तोला तोरे असन लड़ईया मिले हे त तंय नई बांचहूं काहत हस, भगवान बोले कल लड़ाई के मैदान में जाबे अउ लड़त लड़त जरासन ल उठा के पटक देबे भगवान बतात हे याद रखबे लड़ते लड़ते राजा जरासन ल पृथ्‍वी म पटक देबे अउ एक ठन पांव ल पांव म दबाबे अउ एक ठन पांव ल पकड़के ‘’दूए भागे ग करी देबे ग भाई, ’दूए भागे ग करी देबे ग भाई, ’दूए भागे ग करी देबे ग भाई।

प्रभा

भीम कहते हैं केशव मै नहीं बच पाऊंगा ऐसा लग रहा है तब भगवान हंस के पूछते है कैसे क्‍या बात है, भीम बोले प्रभु मै नहीं बचूंगा भगवान बोले कैसी बाते कर रहे हो भीम, भीम कहते हैं महाराज जरासन जब गदा उठा उठाकर मेरे शरीर में प्रहार करते हैं त मरेा सारा बदन दर्द से व्‍याकुल हो जाता है भगवान हंस कर कहते हैं राह चलते राहगीरों को बुला बुलाकर अपने जैसा वीर पूछ रहे थे कि तुम तुम्‍हारे गांव की तरफ है कोई मेरे जैसा पहलवान है, और आज जब तुम्‍हें अपने जैसा ही पहलवान मिला है तो नहीं बचूंगा कह रहे हो, भगवान बोले कल लड़ाई के मैदान में जाना और लड़ते लड़ते जरासन को  उठाकर पटक देना, भगवान बता रहे हैं याद रखना लड़ते लड़ते राजा जरासन को भूमी में पटक देना और एक ठन पांव को अपने पांव से दबाना और दूसरा पांव पकड़कर ‘’दो भाग जी कर देना भाई, ’दो भाग जी कर देना भाई, दो भाग जी कर देना भाई’’।

 

 

रागी

’दूए भागे ग करी देबे ग भाई’।

रागी

’दो भाग जी कर देना भाई’।     

 

 

प्रभा

‘’श्‍याम सुंदर  काहन लागे ग भाई, दूए भाग कर देबे ग डेरी हाथ म धरे रबे तेला जेवनी कोती फेंकबे अउ जेवनी कोती के ल डेरी कोती फेंकबे भीम क काहय इही ल पहिली नी बताय रते अतेक मार ल मय काबर खाय रतेंव, द्वारका नाथ भीम ल नींद नी आवत हे रात भर सोचे काली लड़े बर जाहूं ते जरासन ल दू भाग करहूं जेवनी केला डेरी कोती फेंकहूं अउ डेरी केला जेवनी कोती फेंकहूं रात भर सोचिस अउ होत बिहान लड़े बर गिस, लड़ाई के मैदान म राजा जरासन संग लड़त लड़त भूला गे भीम ह सुरता करे मोला भगवान ह काली काय बताय रीहीस रागी।

प्रभा

‘’श्‍याम सुंदर कहने लगे जी भाई, दो भाग कर देना जी बांए हाथ में जो पकड़ोगे उसे दाहिने तरफ और दांए हाथ में जो पकड़ोगे उसे बाईं तरफ फेंक देना भीम कहते हैं इसी बात पहले नहीं बता सकेते थे क्‍यों मै इतना मार खाता द्वारिकानाथ, भीम को नींद नहीं आ रही है रात भर सोच रहे थे कि  कल जब लड़ने के लिए जाऊंगा तो जरासन को दो भाग कर दूंगा दाईने भाग को बाईं ओर फेंकूंगा और बांए भाग को दाहिनी तरफ फेंकूंगा रात भर सोचा और होती सुबह लड़ने के लिए गए, लड़ाई के मैदान में राजा जरासन के साथ लड़ते लड़ते भूल गए, भीम याद कर रहे हैं कि कल भगवान ने मुझे क्‍या बताया था रागी।

 

 

रागी

हव भई बने सुरता कर।

रागी

हां भाई अच्‍छे से याद करो।

 

 

प्रभा

जब दिमाग म जोर दे के कोशिश करे तब राजा जरासन उठाय गदा अउ एक अरे ‘’अ ग वीर भीम ल मारन लागे भाई’’ भीम सुरता करेक त राजा जरासन उठाय गदा वीर भीम ल मारन लागे भाई’’ फेर भीम सुरता करय भगवान काय बताय रीहीस मोला।

प्रभा

जब दिमाग में जोर देने की कोशिश करते तब राजा जरासन गदा उठाकर मारने लगते ‘’अ जी वीर भीम को मारने लगते भाई’’ भीम याद करते कि राजा जरासन गदा उठाकर वीर भीम को मारने लगते भाई’’ फि‍र भीम याद करते कि भगवान ने कल क्‍या बताया था मुझे।

 

 

रागी

हव भई बने सुरता कर।

रागी

हां भाई अच्‍छे से याद करो।

 

 

प्रभा

तब उठा के गदा जरासन मारे तब भीम व्‍याकुल हो जाय ‘’भैया उठा के गदा में मारन लागे भाई’’ भगवान ह काहन लागे भीम पसीना पसीना होगे लड़ते लड़ते जब भीम के मुंह भगवान अउ अर्जुन कोती गिस भगवान जान डरिस कि येहा भुला गेहे रागी भैया भगवान अर्जुन ल ईशारा करके कथे येहा त अब भुल गे भगवान खड़े होईस अउ खड़ खड़े आसपास नजर लमा के देखिस त दूरिहा म एक ठन छोटे से गोंदला के काड़ी परे राहय भगवान निहरिस अउ निहर के वो गोंदला के काड़ी ल उठाईस अउ गोंदला को काड़ी ल उठा के दू भाग कर देथे अउ दू भाग कर के फेंक दिस जब वो लकड़ी ल दू हिस्‍सा में करके फेंकत हे रागी त भीम ल सुरता आगे एला दू भाग करे ल काहत हे ‘’यशोदा मईया तोर ललना वो, यशोदा मईया तोर ललना वो, यमुना म खेले दू अतैया, यशोदा मईया तोर ललना वो यशोदा मईया तोर ललना वो।

प्रभा

जब गदा उठाकार जरासन मारते थे तब भीम व्‍याकुल हो जाया करते थे ‘’भैया उठा के गदा में मारने लगे भाई’’ भगवान कहने लगे भीम लड़ते लड़ते पसीने से लथपथ हो गए, जब भीम की नजर  भगवान और अर्जुन की ओर गई भगवान जान गए कि ये भुल गया है रागी भैया भगवान अर्जुन को ईशारा करके कहते है कि यो तो भुल गया है, भगवान खड़े होते हैं और खड़े होकर आसपास नजर घुमाकर देखते हैं तो  दूर में एक छोटी सी गोंदला की लकड़ी पड़ी थी भगवान झुकते हैं और झुककर के उस गोंदला ककी लकड़ी को उठाते हैं और गोंदला की लकड़ी को उठाकर दो भाग कर देते हैं और  दो भाग करके फेंक देते हैं, जब वो लकड़ी को दो हिस्‍सों में करके फेंकते हैं रागी तो भीम को याद आ जाता है  कि भगवान इसे दो भाग करने को कह रहे हैं ‘’यशोदा मईया तुम्‍हारे ललना जी, यशोदा मईया तुम्‍हारे ललना जी, यमुना में खेले दू अतैया, यशोदा मईया तुम्‍हारे ललना जी यशोदा मईया तुम्‍हारे ललना जी।

 

 

रागी

यशोदा मईया तोर ललना वो, यशोदा मईया तोर ललना वो।

रागी

यशोदा मईया तुम्‍हारे ललना जी, यशोदा मईया तुम्‍हारे ललना जी।

 

 

प्रभा

भगवान के ईशारा देखथे ही भीम ल याद आथे रागी भाई झपट के जाथे अउ दउड़ते जाथे अउ राजा जरासन ल ‘’दूनो हाथ म उठावन लागे रे भाई, दूनो हाथ म उठावन लागे रे भाई, पृथ्‍वी म धर के पटकन लागे भैया, पृथ्‍वी म धर के पटकन लागे भैया’’ राजा जरासन ल पृथ्‍वी म पटक देथे, एक पांव म दबात हे अउ एक पांव ल हाथ म पकड़ के डेरी हाथ के ला जेवनी हाथ के ला डेरी कोती फेंकत हे भीमसेन अउ निकाल करके कमर से विजय शंख फूंकथे रागी भाई भगवान देखिस जरासन के कमर में कारागृह के चाबी बंधे हे कभ, भगवान देखे जरासन के कमर में कारागृह के चाबी बंधे हे जहां निन्‍याबे राजा बंदी हे भगवान जाथे अउ कारागृह के ताला ल खोल देथे बड़े बड़े सम्राट जो बंदी हे वो भगवान के शरण म गिरके काहत हे द्वारकानाथ ‘’जय मधुसुदन कुंजबिहारी तब जय जय जय गोवर्धनधारी’’ कहिस द्वारकानाथ आज तो तंय हमला कारागृ‍ह ले मुक्‍त कर देस राजा जरासन के बेटा हे सहदेव नाम के ओला मगध देश के भगवान ह राजा बना देतीस राजा जरासन के वध करके हरि अर्जुन भगवान बांके बिहारी वापस आथे रागी एती मगध नगर में जरासन के वध होथे अउ इंद्रप्रस्‍थ नगर के महल में राजमहल के दरवाजा में जो घंटी बंधाय हे वो घंटी ल तीन बार बजना हे अउ वो घंटी ह ‘’अ ग एके आवाज देवन लागे भाई, एक आवाज राजा युधिष्ठिर काहय एला तीन आवाज देना हे अउ ये एके घांव बाजे हावय राजा मन काहन लागे ग दे भाई, राजा मन काहन लागे ग दे भाई, राजा मन काहन लागे ग दे भाई’’ ‘अजी व्‍यास देव के पद कमल अरे बार ही बार मनांव, अजी गुण गावहुं भगवान के श्री हनुमत होई सहाय’ अरे भैया राजा जन्‍मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम कहते हैं, पवन नंदन भीमसेन राजा जरासन के वध करथे रागी भैया जो दू भाग कर देथे राजा जरासन ल जैसे ही राजा जरासन के मृत्‍यु होथे राजा युधिष्ठिर के राजमहल के सिंग दरवाजा में जो घंटी बंधे हे फिर ‘’ अ ग एके आवाज देवन लागे ग भाई, राजा ह सोचन लागे ग मोर भाई’’ राज युधिष्ठिर ह सोचथे भाई अरे ये घंटी ल तीन आवाज देना हे, घंटी एके आवाज काबर देवत हे भगवान बांके बिहारी ल राजा युधिष्ठिर पूछथे कि ये घंटी एके घांव काबर बाजिस भगवान पूछथे सबला नेवता दे के बलाय हस राजा कथे सब आय हे, रागी भाई ओकर बाद दुर्योधन के आगमन होथे भीम रास्‍ता बतावत जात हे बताय हे शिल्‍पी वहां के मय नाम दानव वो भवन के निर्माण ल करे हे जहां जल नजर आय वहां थल दिखे जहां थल नजर आय वहां जल दिखे, जहां थल नजर आय वहां थल दिखे रागी भैया जे जघा सूखा दिखे वो जघा म पानी राहय जे जघा म पानी भरे हे उही जघा सूखा राहय रागी,  जहां दीवार दिखे वहां दरवाजा अउ जहां दरवाजा दिखे वहां दीवार दिखत हे भीमसेन राजा दुर्योधन ल काहत हे भैया मैं आगे चलत हंव तंय पीछे पीछे चल रास्‍ता बताते हुए भीमसेन चले, रागी जल ही जल जहां नजर आय वहां पवन नंदन भीमसेन चलत हे, राजा दुर्योधन देखके विचार करे पांडव के कपट ल तो देख रागी।

प्रभा

भगवान का ईशारा देखते ही भीम को याद आता है रागी भाई, झट से जाते है और दौड़ते हुए जाकर राजा जरासन को  ‘’दोनों हाथों में उठाने लगे जी भाई, दोनों हाथों में उठाने लगे जी भाई, पकड़कर

भूमि‍ में पटकने लगे भैया, पकड़कर भूमि‍ में पटकने लगे भैया’’ राजा जरासन को भूमि‍ में पटक देते हैं और पटक एक पांव में दबाते हैं  और एक पांव को हाथ में पकड़कर बांए हाथ का दाहिने हाथ का बांई तरफ फेंक देते है और भीमसेन अपनी कमर से निकालकर विजय शंख फूंकते हैं रागी भाई भगवान देखते हैं कि जरासन की कमर में कारागृह की चाबी बंधी है, भगवान ने देखा जरासन की कमर में कारागृह की चाबी बंधी जहां निन्‍याबे राजा बंदी है भगवान जाते हैं और कारागृह का ताला  खोल देते है बड़े बड़े सम्राट जो बंदी हैं वे भगवान की शरण में गिर के कहते है द्वारिकानाथ ‘’जय मधुसुदन कुंजबिहारी तब जय जय जय गोवर्धनधारी’’ कहते हैं द्वारिकानाथ आज तो आपने हमें कारागृ‍ह से मुक्‍त कर दिया, राजा जरासन का बेटा है सहदेव नाम का उसे मगध देश का राजा बना देते भगवान, राजा जरासन का वध करके हरि अर्जुन भगवान बांके बिहारी वापस आते हैं रागी, इधर  मगध नगर में जरासन का वध होता है और इंद्रप्रस्‍थ नगर के महल में राजमहल के दरवाजे में जो घंटी बंधी है उस घंटी को तीन बार बजना है और वह घंटी ‘’अ जी एक ही आवाज देने लगी भाई, एक आवाज, राजा युधिष्ठिर कहते हैं इसे तो तीन आवाज देना है और यह एक ही बार बज रही है, राजा लोग कहने लगे जी भाई, राजा लोग कहने लगे जी भाई, राजा लोग कहने लगे जी भाई’’ ‘अजी व्‍यास देव के चरण कमल में बार बार प्रार्थना करो, अजी गुण गा रहा हूं भगवान का जिसका श्री हनुमान सहारा बनेगें’ अरे भैया राजा जन्‍मेजय के प्रति महामुनि वैसमपायम कहते हैं, पवन नंदन भीमसेन राजा जरासन का वध करके रागी भैया जिसको दो भाग कर देते है, राजा जरासन की जैसे ही मृत्‍यु होती है राजा युधिष्ठिर के राजमहल के सिंह दरवाजे में जो घंटी बंधी है फिर ‘’ अ जी एक ही आवाज देने लगी जी भाई, राजा ये सोचने लगे जी मेरे भाई’’ राजा युधिष्ठिर सोचते है भाई अरे इस घंटी को तो तीन आवाज देना है, और ये घंटी एक ही बार क्‍यों बज रही है भगवान बांके बिहारी को राजा युधिष्ठिर पूछते हैं कि यह घंटी एक ही बार क्‍यों बजी भगवान पूछते हैं, सबको निमंत्रण दे के बुलाए हो ? राजा कहते हैं  सब आए हैं, रागी भाई उसके बाद दुर्योधन का आगमन होता है, भीम रास्‍ता दिखाते जा रहें हैं, बताया है वहां का शिल्‍पी मय नामक दानव था जिसने भवन का निर्माण किया था,  जहां जल नजर आता वहां पर थल था और जहां थल नजर आता था वहां पर जल था, जहां थल नजर आता था वहां पर थल था रागी भैया और जिस जगह सूखा दिखता उस जगह में पानी था जिस जगह में पानी भरा था वहीं जगह सूखी थी रागी, जहां दीवार दिखता वहां दरवाजा और जहां दरवाजा दिखता वहां पर दीवार होती थी, भीमसेन राजा दुर्योधन को कहते है भैया मैं आगे चलत हूं और आप पीछे पीछे चलि‍ए रास्‍ता बताते हुए भीमसेन चल रहे हैं, रागी जल ही जल जहां नजर आतरा वहां पवन नंदन भीमसेन चलते हैं, राजा दुर्योधन देखके विचार कर कहते हैं पांडव के कपट को तो देखो रागी ल तो देख रागी।

 

 

रागी

जय हो जय हो।

रागी

जय हो जय हो।

 

 

प्रभा

रस्‍ता म रेंगे ल छोड़ के अरे सुक्‍खा म रेंगे ल छोड़ दिस अउ भीम मोला पानी म लेगत हे, आंखी देख के काबर मरिहंव राजा दुर्योधन जहां सुक्‍खा नजर आत हे वहां चलथे पर वहां सुक्‍खा में दुर्योधन अचानक जाके जल म गिर जथे दस हजार हाथी के बल हे राजा दुर्योधन ल थाह नईए कुछ दूर भगवान के सोलह हजार एक सौ आठ रानी के साथ मार द्रौपदी बईठे हे पानी के आवाज ल सुन के द्रौपदी कहिथे कुछू चीज गिरीसे तईसे लागथे, कहे दीदी कहीं चीज गिरीसे हे तईसे लागथे, मार द्रौपदी पलट के देखथे त दुर्योधन जल म गिरे राहय,  महारानी द्रौपदी रूखमणी ल कहिथे दीदी मय जानत रेहेंव राजा धृतराष्‍ट्र ह अंधा हे, राजा धृतराष्‍ट्र ह अंधा हे त हे पर ओकर बेटा घलो अंधरा हे कहिके नई जानत रेहेंव पर आज मय जान डरेंव ‘’अंधरा के बेटा अंधरा होवय ग भाई, अंधरा के बेटा अंधरा होवय ग भाई, जगत जननी सोचन लागय भाई’’ अंधा के बेटा दुर्योधन अंधा हे राजा दुर्योधन ल जल से निकालथे दूसरा पोशाक पहनाथे फिर सभा के मध्‍य लेके जाके रागी भैया शिशुपाल के वध होथे त दूसरा घंटी बाजथे राजा युधिष्ठिर भीष्‍म ल पूछथे बबा अतका झन बईठे हे तेमा पहिली पूजा काकर करंव त भीष्‍म पितामह कथे युधिष्ठिर हमला दूसर ले काय करे बर हे हमर घर म बांकें बिहारी कृष्‍ण जी आय हे ओकर पूजा आगू करव राजा युधिष्ठिर जब भगवान करे पूजा करे बर जाथे त शिशुपाल के नाम के नेत्र लाल हो जाथे, शिशुपाल चिल्‍लाकर करके बोले ए वीर...जितने भी वीर बैठे हो कान खोलकर सुन लो कहे राजा युधिष्ठिर एक अहिरा के पूजा करे बर जावत हे, एक काली कमली के ओढ़ईया जंगल जंगल गउ चरईया स्त्रियों के साथ रासलीला करईया शिशुपाल भेजा उठाके भगवान ल गाली देत हे भगवान के नेत्र लाल हो जथे भीमसेन कहते हैं भैया आदेश दे त धर के अभी कहीं शिशुपाल न मार देंव त मैं भीम कहलाना छोड़ दूंहू त भगवान ईशारा करत हे भीम ‘’बईठहूं भाई रे अरे भाई बईठहूं कहन जब लागे, मन मन भीम कहन जब लागे, ’बईठहूं भाई रे अरे भाई बईठहूं कहन जब लागे, मन मन भीम कहन जब लागे’’ शिशुपाल भरे समाज में भूजा उठा के भरे समाज में भगवान ल खुले आम  गाली देवत हे, भगवान आसन में बईठे मंद मंद मुस्‍कात गाली सुनत हे, रागी भैया सोचे के बात हे अरे जगत के स्‍वामी ल शिशुपाल खुले आम गाली देवत हे भगवान बईठे बईठे सुनत हे लेकिन गाली ल भगवान सुनत काबर हे, बताय हे जब शिशुपाल पृथ्‍वी म जन्‍म लिए तब तीन नेत्र अउ तीन पांव रहीस एक पांव या एक नेत्र जेकर गोद म गिरतिस ओकर हाथ ही शिशुपाल के मौत लिखाय रीहीस, शिशुपाल ल भगवान के आगे म लाथे शिशुपाल के पिताजी तो एक नेत्र एक पांव गिर जाथे राजा जान जाथे मोर बेटा के मौत भगवान के हाथ लिखे हे राजा झोली पसार के भीख मांग के कथे केशव तंय मोर बेटा के गलती सहिबे एक सौ गाली सहिबे एक सौ से ऊपर होही त मार देबे ओ दिन भगवान हव कहिस जईसे ही निन्‍याबे गाली देते हैं शिशुपाल,  भगवान सिंहासन के ऊप्‍पर ले चिल्‍लाते हैं भगवान आवाज दे अरे शिशुपाल कहे खामोश... कहीं एक भी लब्‍ज आगे चलाबे त बिना मारे नई छोड़व असर नई परिस शिशुपाल ल और जईसे ही सौ से ओभर गाली देथे, भगवान सिंहासन में बैठै हैं पृथ्‍वी में उतर जाते हैं, और पृथ्‍वी में उतरके ‘’अग ऊंगली म चक्र घुमावन लागे भाई’’ ऊंगली म जब चक्र घुमाके जब शिशुपाल ल मारे बर दउड़थे सभा के मध्‍य हवा में पिताम्‍बर फहरात हे श्‍याम स्‍वरूप के पसीना के बूंद झलमलावत हे ‘’ओला बड़े राजा मन देखन लागे भाई, मन मन ओमन कहन लागे ग ए दे भाई’’ निकाल चक्र सुदर्शन छोड़थे भगवान चक्र जाके शिशुपाल के सर काट देथे जईसे ही शिशुपाल के वध होथे फिर वो घंटी दूसर आवाज आथे, अब बांचगे एक आवाज राजा ल संशय होगे, कि ये घंटी एक बार अउ काबर नई बाजय रागी।

प्रभा

रास्‍ते पर चलना छोड़ के अरे सूखे में चलना छोड़ दिया और भीम मुझे पानी में लेके जा रहा है, आंखों से देखते हुए मैं क्‍यों मरूं, राजा दुर्योधन को जहां सूखा नजर आता है वहां पर चलते हैं पर उस सूखे में दुर्योधन अचानक जाकर जल में गिर जाते हैं, दस हजार हाथी के बल है राजा दुर्योधन को पता नहीं था, कुछ ही दूर में भगवान की सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के साथ द्रौपदी बैठी थी पानी की आवाज को सुनकर द्रौपदी कहती है लगता है कोई चीज गिर गई ऐसा लगता है, कहा दीदी कोई चीज गिर गई ऐसा लगता है, द्रौपदी पलटकर देखती है तो दुर्योधन जल में गिरे हुए हैं,  महारानी द्रौपदी रूखमणी से कहती दीदी मैं जान रही थी  कि राजा धृतराष्‍ट्र अंधे हैं, राजा धृतराष्‍ट्र है परन्‍तु उनका बेटा भी अंधा है यह नहीं जानती थी, पर मैं आज जान गई कि ‘’अंधा का बेटा  अंधा ही होता है जी भाई, अंधा का बेटा अंधा ही होता है भाई, जगत जननी सोचने लगी भाई’’ अंधा का बेटा दुर्योधन अंधा है राजा दुर्योधन को पानी से निकालते  और फिर दूसरा पोशाक पहनाते हैं फिर सभा के मध्‍य लेकर जाते है रागी, भैया शिशुपाल का वध होता है तो दूसरी घंटी बजती है,  राजा युधिष्ठिर भीष्‍म से पूछते हैं कि पि‍तामह इतने लोग बैठे हैं उनमें सबसे पहले किनकी पूजा करूं  तो भीष्‍म पितामह कहतें हैं युधिष्ठिर हमें दूसरों से क्‍या लेना देना है जब हमारे यहां बांकें बिहारी कृष्‍ण जी आए हैं उन्‍हीं की पूजा पहले करो राजा युधिष्ठिर जब भगवान की पूजा करने के लिए जाते हैं तो शिशुपाल नाम के राजा के नेत्र लाल हो जाते हैं, शिशुपाल चिल्‍लाकर बोले कि ए वीरों...जितने भी वीर बैठे हो कान खोलकर सुन लो कहते हें राजा युधिष्ठिर एक अहिरा की पूजा करने जा रहें हैं  एक काली कमली के ओढ़ने वाले जंगल जंगल गाएं चराने वाले स्त्रियों के साथ रासलीला करने वाले, शिशुपाल हाथ उठाकर भगवान को गाली देता है, भगवान के नेत्र लाल हो जाते हैं भीमसेन कहते हैं भैया आदेश दें तो मैं अभी शिशुपाल को मार ना दूं तो मैं भीम कहलाना छोड़ दूंगा, तो भगवान ईशारा करते है ‘’बैठो भाई जी अरे भाई बैठो कहने जब लगे, मन ही मन भीम जब कहने लगे, ’बैठो भाई जी अरे भाई बैठो कहने जब लागे, मन ही मन भीम जब कहने लगे’’ शिशुपाल भरे समाज में भुजा उठाकर भरी समाज में भगवान को खुले आम गाली दे रहा है, भगवान आसन में बैठे मंद मंद मुस्‍कराते गाली सुन रहे हैं, रागी भैया सोचने की बात है अरे जगत के स्‍वामी को शिशुपाल खुले आम गाली दे रहा है और भगवान बैठे बैठे सुन रहे हैं लेकिन भगवान गाली सुन क्‍यों रहें हैं, बताया  हैं जब पृथ्‍वी में शिशुपाल जन्‍म लिया तब तीन नेत्र और तीन पांव थे एक पांव या एक नेत्र जिनकी गोद में गिरेगा उसी के हाथों शिशुपाल की मृत्‍यु लिखी है, शिशुपाल को भगवान के सामने में उसके पिताजी लेकर आते हैं तो एक नेत्र और एक पांव भगवान की गोद में गिर जाता है, शिशुपाल के पिता जान जाते है कि मेरे बेटे की मौत भगवान के हाथ लिखी है, राजा झोली पसारकर भीख मांगकर कहते हैं केशव आप मेरे बेटी की गलती को सहन कर लेना एक सौ गालियां सहन कर लेना  एक सौ से ऊपर होगा तो उसे मार देना उस दिन भगवान ने हां कहा था, जैसे ही निन्‍याबे गाली देता हैं शिशुपाल, भगवान सिंहासन के ऊप्‍पर से चिल्‍लाते हैं भगवान आवाज देते हैं अरे शिशुपाल  खामोश... यदि एक भी शब्‍द आगे कहा तो मैं तुम्‍हे मार दूंगा छोड़ूंगा नहीं, शिशुपाल पर जरा भी असन नहीं हुआ और जेसे ही उसने सौ से ऊप्‍पर गाली दी, भगवान जो सिंहासन में बैठै थे वे पृथ्‍वी में उतर जाते हैं, और पृथ्‍वी में उतरके ‘’ अ जी ऊंगली में चक्र घुमाने लगे भाई’’ ऊंगली में जब चक्र घुमाकर जब शिशुपाल को मारने के लिए दौड़ते है तो सभा के मध्‍य हवा में पिताम्‍बर लहरा रहा है, श्‍याम स्‍वरूप के पसीने की बूंद झि‍लमि‍ला रही है व ‘’उसे बड़े बड़े राजा लोग देखने लगे भाई, मन ही मन वो लोग कहने लगे जी भाई’’ निकालकर सुदर्शन चक्र भगवान छोड़ते हैं तो चक्र जाकर  शिशुपाल क सि‍र काट देता है, और जैसे ही शिशुपाल का वध होता है फिर वो घंटी दूसरी बार बजती है, अब बच गई एक आवाज राजा को संशय हुआ, कि यह घंटी एक बार और क्‍यों नहीं बजी रागी।

 

 

रागी

हव भई अउ दुबारा अउ बाजे बर हे।

रागी

हां भाई दुबारा और बजना है।

 

 

प्रभा

भगवान कहे सबला नेवते हस ?

प्रभा

भगवान कहते हैं सबको निमंत्रण दिया है ?

 

 

रागी

हव सबला नेवते हंव त तो आय हे अतका झन।

रागी

हां सबको निमंत्रण दिया है तभी तो इतने लोग आए हैं।

 

 

प्रभा

युधिष्ठिर कहे सब आय हे भगवान कथे एक झन भर नई आय हे एक बाकी हे बोलो कौन ? सुपल भगत जी, राजा युधिष्ठिर ह पूछत हे कहां मिलही त भगवान बताय हे वो जगल म मिलही राजा कहे ओला लाने बर कोन जाही तब भीम बोल मैं जाहूं भीमसेन काहत हे मय जाके लानहूं सुपल भगत कहूं नई आंव कहीके इंकार कर दीही त कंधा म बिठाके लानहूं,  राजा युधिष्ठिर के यज्ञ सम्‍पन्‍न ना करांव त पवन नंदन भीम कहलाना छोड़ देहूं, हाथ में नारियल सुपारी धोती लेथे अउ जंगल के रास्‍ता पकड़थे भगवान के बताय अनुसार जंगल पहुचंत हे, सुपल महराज जानगे भीमसेन आवत हे, सुपल भगत सुन्‍दर स्‍वरूप में पृथ्‍वी के नीचे बईठे हे रागी जान डरिस भीम आवत हे सुपल भगत झट अपन रूप ल बदल दिस कुष्‍ठ के बिमारी से लथपथ शरीर से खून अउ मवाद बहत हे, सबल सिहं बताय हे कुष्‍ठ के रोग ग्रसित होगे सुपल भगत मक्‍खी भिनभिनावत हे माछी झूमत हे, रागी शरीर से खून पीब बोहवत हे देखे म घृणा होत हे, इतना दर्दनाक भीम जब आय तो देखिस ये तो नोहे सुपल भगत काबर वो सुंदर हे, अगोर लेथंव अबड़ बेर होगे पता नी चलिस भीम चारो मुड़ा खोज खोज के आय अउ झाड़ तरी बईठ अपने अपन खिसियावत हे आखिर में सुपल भगत पूछत हे काला खोजत हस भैया भीम कहिस मय खोजत हंव तेला बताबे।

प्रभा

युधिष्ठिर कहते हैं सब आए हैं भगवान कहते हैं केवल एक जन नहीं आए हैं एक बाकी हे बोलो कौन ? सुपल भगत जी, राजा युधिष्ठिर पूछते है कहां मिलेगें तो भगवान बताया कि वो जंगल में मिलेगें,  राजा कहे उसे लाने केक लिए कौन जाएगा तो भीम बोले मैं जाऊंगा, भीमसेन कहते हैं मैं जाकर लाऊंगा सुपल भगत यदि आने से इंकार करेंगें तो उसे मैं आने कंधे में बिठाकर लाऊंगा, उसे लाकर राजा युधिष्ठिर का यज्ञ सम्‍पन्‍न नहीं करवाया तो पवन नंदन भीम कहलाना छोड़ दूंगा, हाथ में नारियल सुपारी धोती लिए और जंगल का रास्‍ता पकड़ते हैं, भगवान के बताए अनुसार जंगल में पहुचंते है, सुपल महाराज जान गए कि भीमसेन आ रहे हैं, सुपल भगत सुन्‍दर स्‍वरूप में पृथ्‍वी के नीचे बैठे है, रागी जान जाते है कि भीम आ रहे हैं, सुपल भगत झट से अपना रूप ल बदलकर कुष्‍ठ रोग से लथपथ है शरीर से खून और मवाद बह रहे हैं, सबल सिहं ने बताया है कि सुपल भगत  कुष्‍ठ रोग से ग्रसित हो गए हैं और उन पर मक्‍खी भिनभिना रही हैं, मक्‍खी झूम रही हैं, रागी शरीर से खून और मवाद बह रहे हैं, देखने में घृणा हो रही है, बहुत ही दयनीय, भीम जब आऐ तो देखा कि ये तो सुपल भगत नहीं क्‍यों‍कि वे तो सुंदर है, इंजतार कर लेता हूं बहुत देर हो गई कुछ पता ही नहीं चल रहा है, भीम चारो दिशा में खोजकर आ गए और आकर पेड़ के नीचे बैठकर अपने आप बड़बड़ाने लगे, आखिर में सुपल भगत पूछते हैं किसे ढूंढ रहे हो भैया भीम कहते हैं मैं जिन्‍हे ढूंढ रहा हूं उसे बताओगे।

 

 

रागी

हव जानत होहूं तेला बताहूं।

रागी

हां जानता होऊंगा तो बताऊंगा।

 

 

प्रभा

सुपल भगत कथे जानत होहूं तेला बता देहूं जानत होहूं तेला बता देहूं भीमसेन काहत हे मय सुपल भगत  ल खोजत हंव सुपल भगत कहत हे मय ही त सुपल भगत आंव, भीम हाथ म नारियल सुपारी धोती धरे हे कहिस ये दे महराज कुंती नंदन महराज युधिष्ठिर राजस्‍वी यज्ञ करात हे अउ वो यज्ञ में आप ल सादर आमंत्रित हे सुपल कथे भीम मोला दे बर नेवता देत हस फेर मोर रेंगे के ताकत नईए चल नई पांव मैं भीम विचार करय नई आही त खांध में बिठा के लानहूं केंहेव अउ ये रेंगे नई सकव काहत हे, आखिर में भीम सुपल भगत के आगू म बईठिस कह आ मोर खांध म बईठ सुपल भगत ल जब भीम खांध म बईठा के चलथे रागी सबल सिंह महराज लिखे हे सुपल भगत के जतिक खराब खून अउ पीब राहय तेन ह ‘’ अरे भीम के अंगे म चूहन लागे भैया, भीम के अंग म चूहन लागे भाई चलथे भीम ह सोचन लागे भैया, भीम मन मन ओहा सोचन लागे भाई’’ इंद्रप्रस्‍थ के मेड़ो म आईस त सुपल भगत कथे इही करा थोरिक उतार देते बाबू भीम सोचिस कहूं जाहूं कहिके उतरहूं काहत हे, भिंया म उतार दिस सुपल भगत जो कुष्‍ठ रोग से ग्रसित राहय वो स्‍वरूप ल त्‍याग के सुन्‍दर और स्‍वस्‍थ रूप धरिस, भीम पूछथे महराज का कारण हे अभी त देखत म सुहात नई रेहे खून पीब बोहावत रीहीस हे सुपल भगत महराज बताईस भीमसेन अभी एक अईसे शुभ मुहुर्त जावत रीहीस हे कहे भीम तोर डेरी अंग में बांया अंग में जितना दूरिहा ले मोर खराब खून पीब चूहे हे उतना दूरिहा वज्र होय हे।

प्रभा

सुपल भगत कहते हैं जानता होऊंगा उसे बता दूंगा, जानता होऊंगा उसे बता दूंगा भीमसेन कहते हैं मैं सुपल भगत को खोज रहा हूं, सुपल भगत कहते हैं मैं ही तो सुपल भगत हूं, भीम हाथ में नारियल सुपारी धोती रखे हैं उसे देकर कहते हैं ये लीजिए महाराज, कुंती नंदन महाराज युधिष्ठिर राजस्‍वी यज्ञ करवा रहे हेा और उस यज्ञ में आप सादर आमंत्रित हैं सुपल कहते हैं भीम मुझे आमंत्रण देने को तो दे रहे हो लेकिन मुझमें चलने की ताकत नहीं है, मैं चल नहीं पाऊंगा भीम ने विचार किया नहीं आऐंगे तो तो मैं अपने कंधे पर बिठाकर लाऊंगा कहा था और ये नहीं चल पाऊंगा कह रहे हैं आखिर में भीम सुपल भगत के सामने बैठते हैं और कहते हैं आईए मेरे कंधे पर बैठ जाईए, सुपल भगत को जब भीम कंधे में बि‍ठाकर चलत हैं, रागी सबल सिंह महाराज ने लिखा सुपल भगत के जितने खराब खून और मवाद थे वो ‘’अरे भीम के अंगे में बहने लगे भैया, भीम के अंग मे बहने लगे भाई, चलते हुए भीम सोचने लगे भैया, भीम मन ही मन सोचने लगे भाई’’ इंद्रप्रस्‍थ की सीमा पर जैसे ही आते हैं तो सुपल भगत कहते हैं यहीं पर थोड़ा उतार देते बाबू भीम सोचते हैं, कहीं जाना होगा इसलिए उतरूंगा कह रहे हैं, जमीन में उतार दिया सुपल भगत जो कुष्‍ठ रोग से ग्रसित थे उन्‍होंने वो स्‍वरूप को त्‍यागकर सुन्‍दर और स्‍वस्‍थ रूप धारण किया, भीम पूछते हैं महराज क्‍या कारण है कि अभी तो आप दिखने में अच्‍छे नहीं लग रहे थे खून और मवाद बह रहे थे सुपल भगत महाराज बताया कि भीमसेन अभी एक ऐसा शुभ मुहुर्त गुजर रहा था कहते हैं भीम तुम्‍हारे बाएं अंग में जितनी दूर तक मेरे खराब खून और मवाद बह रहे थे उतनी दूर तक तुम्‍हारा शरीर वज्र हो गया।  

 

 

रागी

जय हो जय हो।

रागी

जय हो जय हो।

 

 

प्रभा

सुने कहे वज्र तब भीम कथे ले न महराज वईसने अउ रूप बना ‘’अ जी जेवनी बाखा वज्र करि लेवव भाई, भीम कहे एकंगू बाखा बांच गेहे जेवनी अंग ल वज्र करि लेहव भाई, हां भीमसेन कहन लागय भाई, हां भीमसेन कहन लागय भाई’’ भीम कहे वईसने अउ रूप बना न महाराज एकंगू बांच गेहे सुपल भगत कहे वो मुहुर्त गुजरगे जेन समय ह अउ बहुर के वापस नई आय भीमसेन मन म सोचिस धोखा खा गेंव रागी भाई जानत रईतेंव त दूनों साईड बाखा म चघाय रईतेंव खैर एक साइड वज्र होगे सुपल भगत ल लाथे त भगवान कथे भीम जाके द्रौपदी ल बता देबे आज अइसे भोजन बना के सुपल भगत ल खिलाही कि सुपल भगत खाते ही प्रसन्‍न हो जाय भीम द्रौपदी ल कथे पांचाली सुपल भगत महराज के आगमन होय हे तोर मंदिर म भोजन करे बर आही आज अइसन भोजन बना के परोसबे कि खाते ही सुपल भगत प्रसन्‍न हो जाय देवी द्रौपदी सोचथे आज मोर घर म सगा आय हे मोर हा‍थ के बने भोजन ल खाही विशेष अतिथि आय हे, रागी भैया आज खास व्‍यवस्‍था होना चाही।

प्रभा

सुनकर भीम ने कहा अगर वैसा ही है महाराज तो फिर से अपना वही अउ रूप बनाईए ‘’ अ जी दांयी ओर भी वज्र कर दीजिए भाई, भीम ने कहा एक अंग बाजू बच गया है दाहि‍ने अंग को भी वज्र कर दी‍जिए भाई, हां भीमसेन कहने लगे भाई, हां भीमसेन कहने लगे भाई’’ भीम ने कहा वैसा ही रूप और बनाईए महाराज एक अंग बाजू बच गया है, सुपल भगत कहते हैं वह मुहुर्त गुजर गया जो समय गुजर जाता है वह लौट कर वापस नहीं आता है, भीमसेन ने मन में सोचा  धोखा हो गया रागी भाई मैं जानते रहता तो दोनों कंधो पर बिठाए रहता खैर एक अंग तो वज्र हो गया, सुपल भगत को लाते है तो भगवान कहते हैं भीम जाकर द्रौपदी को बता दो आज ऐसा भोजन बनाकर सुपल भगत को खिलाए कि सुपल भगत खाते ही प्रसन्‍न हो जाएं भीम द्रौपदी को कहते हैं पांचाली सुपल भगत महाराज का आगमन हुआ है तुम्‍हारे मंदिर में भोजन करने आएंगे आज ऐसा भोजन बना के परोसना कि खाते ही सुपल भगत प्रसन्‍न हो जाए, देवी द्रौपदी सोचती है आज मेरे घर में अतिथि आए हैं मेरे हा‍थ का बना भोजन खाएंगे विशेष अतिथि आए हैं, रागी भैया आज खास व्‍यवस्‍था होनी चाहि‍ए।

 

 

रागी

हव ठोसलगहा।

रागी

हां खास व्‍यवस्‍था।

 

 

प्रभा

मां जगदम्‍बा अपन हाथ म भोजन तैयार करथे अउ सुपल भगत जी महराज भोजन करे बर आथे माता द्रौपदी लोटा म पानी देथे, हाथ पांव ल धो के सुपल महराज परछी म बईठे हे तब द्रौपदी भोजन परोसना शुरू करथे, पहिली भात के थारी आत हे रागी चावल ए चावल कथे सबले पहिली एचएमटी चावल के भात आईस ओकर बाद मासुरी चावल के भात आईस ओकर बाद सरना अउ का का नाव होथे रागी।

प्रभा

मां जगदम्‍बा अपने हाथ से भोजन तैयार करती है और सुपल भगत जी महाराज भोजन करने आते हैं, माता द्रौपदी लोटा में पानी देते हैं, हाथ पैर को धोकर सुपल महाराज बरामदे में बैठे हैं  तब द्रौपदी भोजन परोसना शुरू करती, पहले भात की थाली आती है रागी, चावल है चावल कहते है  सबले पहले एचएमटी चावल का भात आया है उसके बाद मासुरी चावल का भात आया उसके बाद सरना और क्‍या क्‍या नाम होते हैं।

 

 

रागी

गुरमटिया सफरी एक रूपया किलो।

रागी

गुरमटिया सफरी एक रूपया किलो।

 

 

प्रभा

जतका किसम के चाउर होत होही रागी द्रौपदी ओतका किसम के चाउर के भात खवाथे, भाते भात दार के नंबर लगिस त द्रौपदी  राहेर दार तिंवरा दार मसूर दार जितना भी दार हे घी दूध मेवा मिष्‍ठान्‍न भोजन ल देखे त सुपल भगत कहे बाप रे बाप इतना बिना भगवान ल अर्पण करे कईसे खाहूं रागी बिना भगवान ल अर्पित करे बिना खाहूं कईसे अउ दू दिन ले भगवान ल अतिक अतिक दूहूं तब ले नी सिरावय अतका अकन थारी माढ़े हावय सोचे ल परगे सुपल भगत ल आखिर म सब थारी के ल एक ठन म उलद दिस भात दार साग दूध दही घी जितना भी राहय सबला एके म उलद के काहत हे द्वारकानाथ ‘’अरे सर्वस्‍व अर्पण सब करहूं गोसाई’’ भगवान ऊपर सर्वस्‍व अर्पित करके  सुमल भगत महराज जब भोजन करत हे द्रौपदी ह दूरिहा म खड़े खड़े देखत हे रहा तो मोर हाथ के बने भात साग ह मिठावत हे कि नहीं अगर भेाजन बढि़या बने होही ना रागी तो खवईया के सिर ह जरूर हालही वाह द्रौपदी दूरिहा  ले देखत राहय सब थारी के ल एके ठन थारी में उलदत देखिस मार द्रौपदी के मन ह टूटगे द्रौपदी कथे अतका सुंदर भोजन बनाएंव का जानही खाय बर ये कड़रा ह खा के उठिस एक घंटी बाजे ते नई बाजिस ना नेवला के शरीर सोन के नी बनीस राजा यु‍धिष्ठिर भगवान ल कथे अब यज्ञ ह काबर सम्‍पन्‍न नी होत हे घंटी काबर नी बाजत हे तब भगवान ह पूछत हे तुमन सुपल भगत ल कुछू केहेव का ? राजा कथे हमन आकर नाव नई ले हन केशव ओकर नाव नई ले हन तुमन ओकर नाव नई ले हव त तुहर घर कोती गड़बड़ हे जातो द्रौपदी ल पूछ के आबे द्रौपदी ल पूछत‍ हे ये बता द्रौपदी तंय सुपल भगत ल कुछू कहे हस माता द्रौपदी कहे अतका सुंदर बनाएंव मरम का ल का जानहीं ए कड़रा अतकेच कहेंव महराज भीम कथे फिर से भोजन बना माता द्रौपदी फिर से भोजन बनाथे अउ सुपल भगत फिर से बड़ प्रेम से भोजन करथे जा के हाथ के अचवन करत हे, रागी भाई नेवला उही जघा घोंडत हे नेवला के शरीर ह कंचन के बनत हे घर के दरवाजा के घंटी बांचे हे बाजे बर वो घंटी ह पूर्ण होथे राजस्‍वी यज्ञ सम्‍पन्‍न होथे अउ जतका यज्ञ देखे बेर आय हे सब बिदा लेके चलत हे अउ भगवान ल राजा युधिष्ठिर ह काहत हे द्वारकानाथ ‘’जय बोलो वृन्‍दावन विपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, देशे महेशे ये तोर गुण गावय भाई सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, देशे ये शारद पार नई पावय भाई सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, ’जय बोलो वृन्‍दावन विपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो।            

प्रभा

जि‍तने किस्‍म के चावल होते होंगे रागी द्रौपदी ने उतने किस्‍म के चावल के भात खिलाए, भात ही भात दाल की बारी आई तो  द्रौपदी अरहर दाल तिंवरा दाल मसूर दाल जितने भी दाल थे और घी दूध मेवा मिष्‍ठान्‍न भोजन को देखकर सुपल भगत ने कहा बाप रे बाप इतना बिना भगवान को अर्पण करे कैसे खाऊं रागी, बिना भगवान को अर्पित करे बिना खाऊंगा कैसे और दो दिन तक यदि  भगवान को इतना इतना भी दूंगा तो भी खत्‍म नहीं होगा इतनी थालियां रखी है, सोचना पड़ गया सुपल भगत को आखिर में सब थालियों का खाना एक थाली में ही डाल दिया भात, दाल सब्‍जी, दूध, दही, घी जितने भी सबको एक में ही उढ़ेल दिया और कहते है द्वारिकानाथ ‘’अ जी सर्वस्‍व अर्पण करता हूं गोसाई’’ भगवान के ऊपर सर्वस्‍व अर्पित करके सुपल भगत महराज जब भोजन करते है, तो द्रौपदी  दूर से खड़ी खड़ी देख रही है रूको जरा मेरे हाथ का बना भात साग स्‍वादिष्‍ट है कि नहीं अगर भेाजन बढि़या बना होगा ना रागी तो खाने वाला का सिर जरूर हिलेगा वाह... द्रौपदी दूर से देख रही थी सब थालियों के भोजन को एक ही थाली में उढ़ेलते देखा तो द्रौपदी का मन टूट गया द्रौपदी कहती है इतना सुंदर भोजन बनाया मैंने और कड़रा क्‍या जानेगा खाने के‍ लिए, खा के उठते हैं एक घंटी बजनी थी सो नहीं बजी ना ही नेवले का शरीर सोने का बना, राजा यु‍धिष्ठिर भगवान से  कहते हैं अब यज्ञ क्‍यों सम्‍पन्‍न नहीं हो रहा है घंटी क्‍यों नहीं बज रही है तब भगवान पूछते हैं तुम लोगों ने सुपल भगत को कुछ कहा है क्‍या ? राजा कहते हैं हमने तो उनका नाम भी नहीं लिया है केशव उनका नाम नहीं लिया है तुमने तो जरूर तुम्‍हारे घर की तरफ गड़बड़ है, जाओ और द्रौपदी से पूछकर आओ, द्रौपदी से पूछते हैं ये बताओ द्रौपदी तुमने सुपल भगत से कुछ कहा है ? माता द्रौपदी कहती है इतना सुंदर भोजन बनाया उसे खाने का मर्म क्‍या जोनगा ये कड़रा इतना ही कहा है महाराज भी कहते फिर से भोजन बनाओ माता द्रौपदी फिर से भोजन बनाती और सुपल भगत फिर से बड़े प्रेम से भोजन करते हैं और जा के हाथ धोते है, रागी भाई नेवला उसी जगह लोट रहा था और नेवले का शरीर सोने का बन रहा था, घर के दरवाजे की घंटी बची है बजने के लिए वह घंटी भी पूर्ण होती है राजस्‍वी यज्ञ सम्‍पन्‍न होता है और जितने यज्ञ देखने आए थे वे सब विदा लेकर रहे हैं और भगवान से राजा युधिष्ठिर कह रहे हैं हे द्वारिकानाथ ‘’जय बोलो वृन्‍दावन विपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, देश और दुनिया आपके गुण को गाते हैं भाई सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, देशे ये शारद पार नई पावय भाई सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो, ’जय बोलो वृन्‍दावन विपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो।         

 

   

रागी

’जय बोलो वृन्‍दावन विपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो।

रागी

’जय बोलो वृन्‍दावन विपिन बिहारी भाई, सिया रामा हो राधे श्‍यामा हो।

 

 

प्रभा

सब वापिस हो जात हे राजस्वी यज्ञ देखे के बाद राजा दुर्योधन हस्तिना म जा के राजसभा म विराजमान होके काहत हे, वीरों इंद्रप्रस्‍थ में राजस्‍वी यज्ञ देखे बर गे रेहेंव जा के जल म गिर गेंव द्रौपदी मोला अंधा के बेटा अंधा कहिस आज ये सभा में प्रतिज्ञा करत हंव, अगर ये बात के बदला मय द्रौपदी संग नई ले लंव तो गांधारी के बेटा दुर्योधन कहना छोड़ देहूं रागी भैया शकुनि नाम के वीर कथे राजन चिंता झन कर देवारी के त्‍यौहार लठ्ठावत हावय दीवाली नजदीक हे कितनो दूर में परदेश गे रहिथे दीवाली त्‍यौहार मनाय बर सब अपन अपन घर आथे पांडव ल हस्तिना बला ले दीवाली माने बर अउ पांडव के साथ म जुआ खेल अउ जुआ खेल के पांडव के धन ल जीत के ‘’अ ग पांडव से बदला ल लेवव ग भाई’’ पांडव से बदला ले बर राजा शकुनि के बात मान जथे ‘’ओहा शकुनि के बात ल लेई लेवय भाई, हां राजा ह कहन लागे ग मोर भाई, राजा ह कहन लागे ग मोर भाई’’ राजा कहत हे पांडव से बदला ले सकत हन लेकिन ये राजस्‍वी यज्ञ सम्‍पन्‍न होय के बाद अब द्रौपदी चीरहरण के प्रसंग म जात हन तो शकुनि नाम के वीर ह राजा दुर्योधन ल केवल जुआ खेले के सलाह काबर देवत हे अउ कोई दूसर सलाह काबर नई देवत हे सबल सिंह महराज बताय हे शकुनि मंत्री के प्रतिज्ञा रीहीस हे कि एक दिन ये कौरव अउ पांडव म बैर बढ़ाके एक दिन सकल कौरव के नाश नई कर दंव तो शकुनि कहलाना छोड़ दूंहू शकुनि कहना छोड़ दूहूं लेकिन शकुनि ल कौरव के ऊपर का बैर रीहीस काबर कि कौरव शकुनि के भांचा ए पर वो कौरव वंश के नाश कराय बर सौगंध काबर ले हे रागी भैया ये पूरा अईसन कथा ए जे समय राजा दुर्योधन गजेन्‍द्र अउ गजेन्‍द्र के एक सौ बेटा ल कारागृह में बंद कर दिस एक दिया चना के दाल अउ एक दिया पानी खाय बर देवत रीहीस हे रागी राजा गजेन्‍द्र मरे के लाईक हो जथे सौ झन बेटा मरे के लाईक हो जाथे त राजा गजेन्‍द्र कथे ‘’ अ ग नर तन जनम गंवाए भजन बिना, नर तन जनम गंवाए भजन बिना।              

प्रभा

सब वापस हो जाते है राजस्वी यज्ञ देखने के बाद राजा दुर्योधन हस्तिना में जाकर राजसभा में विराजमान होकर कहते है, वीरों इंद्रप्रस्‍थ में राजस्‍वी यज्ञ देखने गया था, और जाकर जल में गिर गया, द्रौपदी ने मुझे अंधे के बेटा अंधा कहा आज इस सभा में प्रतिज्ञा करत हूं, कि अगर इस बात का बदला मैंने द्रौपदी से नहीं ले‍ लियो तो गांधारी का बेटा दुर्योधन कहलाना छोड़ दूंगा रागी भैया शकुनि नाम का वीर कहता है राजन आप चिंता ना करें दि‍वाली का त्‍यौहार पास आ रहा है दि‍वाली नजदीक है कोई कितना ही दूर में परदेश भी गय हो वे सब दिवाली त्‍यौहर मनाने सब अपने अपने घर जरूर आते हैं, पांडव को हस्तिना बुला लीजिए दि‍वाली मनाने के लिए और पांडव के साथ में जुआ खेलि‍ए और जुआ खेलकर पांडव के धन को जीतकर ‘’अ जी पांडव से बदला ले लीजिए जी भाई’’ पांडव से बदला लेने के लिए राजा शकुनि की बात मान जाते हैं ‘’वे शकुनि की बात से सहमत हो जाते हैं भाई, हां राजा जी कहने लगे जी मेरे भाई, राजा जी कहने लगे जी मेरे भाई’’ राजा कहते है पांडव से बदला ले सकते है लेकिन राजस्‍वी यज्ञ सम्‍पन्‍न होने के बाद अब द्रौपदी चीरहरण के प्रसंग में जाते हैं,  तो शकुनि नाम के वीर ने राजा दुर्योधन को केवल जुआ खेलने की सलाह क्‍यों दी और कोई दूसरी सलाह क्‍यों नहीं सबल सिंह महाराज बताया है कि शकुनि मंत्री की प्रतिज्ञा थी कि एक दिन इन कौरव और पांडव में बैर बढ़ाकर एक दिन सकल कौरव का नाश नहीं कर दिया तो शकुनि कहलाना छोड़ दूंगा, शकुनि कहलाना छोड़ दूंगा लेकिन शकुनि को कौरव से क्‍या बैर था क्‍योंकि कौरव शकुनि के भांजे है, पर उसने कौरव वंश का नाश करने की सौगंध क्‍यों लिया था रागी भैया ये पूरी ऐसी कथा है जिस समय राजा दुर्योधन ने गजेन्‍द्र और गजेन्‍द्र के एक सौ बेटों को कारागृह में बंद कर दिया था और एक दिया चने की दाल और एक दिये में पानी खाने के‍ लिए देते थे, रागी राजा गजेन्‍द्र की स्थिति मरने के लायक हो गई थी, उनके सौ बेटे  मरने के लायक हो गए थे तब राजा गजेन्‍द्र कहते हैं ‘’ अ जी नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना, नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना।          

 

  

रागी

नर तन जनम गंवाए भजन बिना, नर तन जनम गंवाए भजन बिना, नर तन जनम गंवाए भजन बिना।            

रागी

नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना, नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना।            

 

 

प्रभा

‘’मया डोरी म लपटाए भजन बिना ये जिनगी जस पानी के रेला, पानी के रेला, अउ हवा परत घुर जाही भजन बिना, नर तन जनम गंवाए भजन बिना नर तन जनम गंवाए!            

प्रभा

‘’प्रेम के धागे में लिपट हो भजन बिना ये जिन्‍दगी जैसे पानी का रेला, पानी का रेला, और हवा पड़ते ही घुल जाएगा भजन बिना, नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना, नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना।        

 

       

रागी

नर तन जनम गंवाए, भजन बिना नर तन जनम गंवाए भजन बिना नर तन जनम गंवाए ।

रागी

नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना, नर तन जन्‍म गंवाया भजन बिना, नर तन जन्‍म गंवाया ।       

 

       

प्रभा

राजा गजेन्‍द्र ह अपन सौ ठन बेटा ल कहिस कि बिना दोस के दोस बिना गलती के गलती आज राजा दुर्योधन एक ही साथ पूरा परिवार ल कारागृ‍ह म मारत हे आज जईसन मोर परिवार के नाश होवत हे वईसने एक दिन सकल कौरव के नाश कर दिही वो हम सब के लिए एक सौ एक दिया चना के दाल अउ एक सौ दिया पानी आथे रागी भाई ओला एक झन ही खा लेथे बताय हे शकुनि नाम के राजकुमार तेज अउ चालाक रीहीस पिताजी वो एक सौ एक दिया चना के दाल एक सौ एक दिया पानी में मैं खाके दुनिया में अउ सौगंध हे तोर चरण के एक दिन कहीं ये सकल कौरव के नाश ना कर दूहूं त शकुनि कहलाना छोड़ दूहूं निन्‍याबे बेटा के संग गजेन्‍द्र के मौत हो जथे रागी अउ गजेन्‍द्र के हड्डी ल निकाल के शकुनि पासा बनाथे अउ पासा बना के राखे हे भाई, आज शकुनि झट काहत हे दुर्योधन ल दीवाली म पांडव ल बला ले अउ पासा खेल घर से बेघर कर दे पांडव के धन सम्‍पत्ति लूट ले राजा ह मंत्री के बात म आ जथे राजा धृतराष्‍ट्र पुत्र के प्रेम में विवश होके आदेश देथे पांडव ल बोले रागी भैया पांडव रईथे कहां इंद्रप्रस्‍थ में अउ जुआ कहां होना हे हस्तिनापुर में जब पांडव हस्तिना आही तब जुआ होही, एमा एक बात अउ हे रागी राजा युधिष्ठिर ह राजस्‍वी यज्ञ करत रीहीस हे मय दानव के बनाय हुए घर में राजस्‍वी यज्ञ होवत रीहीस हे आज राजा दुर्योधन ह काहत हे कि पांडव जहां राजस्‍वी यज्ञ करत रीहीस हे विचित्र बने रीहीस वो घर ह बड़ा विचित्र भवन रीहीस हे ओकर ले भी बड़ा विचित्र भवन बनना चाहिए जहां मैं पांडव संग जुआ खेलहूं रागी भाई छोटे मोटे मिस्‍त्री कारीगर के बात नोहे बताय हे भगवान विश्‍वकर्मा ह हस्तिनानगर म जा के जब अपन हाथ में भवन बनात हे तब ‘’ग्‍यारह महीना लगन लागे भैया ग्‍यारह महीना ग बीतन लागे भैया सुन्‍दर भवन बनावन लागे भाई’’ सोचेच नई पात हे भगवान विश्वकर्मा ह ग्‍यारह महीना म कईसन भवन बनाही पांडव के बईठे बर अलग अलग मणि के आसन बनाय हे पांडव तो दुर्योधन ल सोना के सिंहासन में बईठारे रीहीस हे राजा दुर्योधन ह पांडव ल जुआ खेले बर बलाय हे न रागी मनि के आसन में बईठाय हे भक्‍त विदुर पांडव ल लाने बर जात हे अउ विदुर के संग म पांचो भईया पांडव हस्तिनानगर में आवत हे रनिवास में रूके के जघा देवत हे रात भर विश्राम करे के बाद पांडव  होत प्रात:काल स्‍नान ध्‍यान करथे गंगा सोन भीष्‍म के दर्शन  करथे गुरू द्रोणाचार्य के दर्शन करथे  कुलगुरू कृपाचार्य के दर्शन करथे राजा धृतराष्‍ट्र के दर्शन करथे ओ दिन के समय बीत जाथे दूसर दिन बड़े बड़े वीर से मिलथे ओकर बिहान दिन हस्तिना के प्रजा से मिलथे ये तीन दिन हस्तिना में पांडव के बीतथे आखिर में चौथे दिन सभा के मध्‍य में बुलावा आथे बड़े द्रोणाचार्य के बेटा अश्‍वस्‍थामा बुलाय के खातिर आथे राजा युधिष्ठिर कथे भाई ते आगू आगू चल हम पाछू पाछू आवत हन आगे आगे अश्‍वस्‍थामा महाराज पीछे म पांडव चलत हे बताए हे जब पांडव हस्तिना में गली म चलय त जब वे आदमी चलथे त एक तरफ छाया पड़थे पांडव जब रेंगे रागी तब दोनों तरफ छाया पड़े पांडव जब सभा में पहुंचते है सारे बीर सिंहासन छोड़ देते हैं राजा दुर्योधन पांडव के स्‍वागत करके कथे आओ भैया पांडव विराजमान हे आसन में दिखत कैसे है तो नजर आए कामदेव पांचरूप लेके बैठे हैं, राजा कथे भैया ये जतका आय हे ते मन जुआ देखे बर आय हे दुर्योधन काहत हे भैया ये मन ल मैं नेवता दे के बलाय हवं अउ काबर बलाय हंव बोले त जुआ देखे बर जुआ होना हे शकुनि नाम के मंत्री चौसर बिछाथे राजा युधिष्ठिर ल सुरता आथे कका विदुर केहे हे वहां मनुष्‍य के हड्डी के बनाय गेहे पासा देखना चाहिए ये कथे राजा युधिष्ठिर जाय अउ जा के तीनो गोटी ल उठा के देखथे त वाकई में मुनष्‍य के हड्डी द्वारा बनाय गेहे राजा युधि‍ष्ठिर मारे क्रोध में उठा करके पासा ल पटक देथे ‘’सिया राम के भजन कर प्राणी रे तोर दो दिन के जिनगानी रे सिया राम के भजन कर, सिया राम के भजन कर प्राणी रे तोर दो दिन के जिनगानी रे सिया राम के भजन कर’’।  

प्रभा

राजा गजेन्‍द्र ने अपने सौ बेटों से कहते है कि बिना दोष व बिना गलती की सजा देकर आज राजा दुर्योधन ने एक ही साथ पूरे परिवार को कारागृ‍ह में मार रहे हैं, आज जैसै मेरे परिवार का नाश हो रहा है है वैसे ही एक दिन सकल कौरव का नाश कर देंगे और वो हम सब के लिए एक सौ एक दिये चने का दाल और एक सौ दिए का पानी देते हैं रागी भाई उसे एक जन ही खा लेता है बताया है शकुनि नाम का राजकुमार तेज और चालाक था, पिताजी वो एक सौ एक दिये चने का दाल और  एक सौ एक दिए पानी मैं खाकर दुनिया में जीवित रहूंगा और मुझे सौगंध है  आपके चरणों की एक दिन कहीं इन सकल कौरव का नाश ना कर दूं तो मैं शकुनि कहलाना छोड़ दूंगा, निन्‍याबे बेटों के साथ गजेन्‍द्र की मौत हो जाती है रागी और गजेन्‍द्र की हड्डि‍यों को निकालकर शकुनि ने उनका पासा बनाया और पासा बनाकर रखा है भाई, और आज शकुनि झट से कहता है दुर्योधन से,  दि‍वाली में पांडव को बुला लो और पासा खेलकर घर से बेघर कर दो, पांडव की धन सम्‍पत्ति लूट लो राजा मंत्री की बात म आ जाते हैं राजा धृतराष्‍ट्र पुत्र प्रेम में विवश होकर आदेश देते हैं पांडव को, बोले रागी भैया पांडव कहां रहते हैं ? इंद्रप्रस्‍थ में, और जुआ कहां होना है ? हस्तिनापुर में, जब पांडव हस्तिना आएंगे तब जुआ होगा, इसमें एक बात और है रागी राजा युधिष्ठिर ने राजस्‍वी यज्ञ कर रहे थे तब मय दानव द्वारा बनाए हुए घर में राजस्‍वी यज्ञ हो रहा था, आज राजा दुर्योधन कह रहे हैं कि पांडव जहां राजस्‍वी यज्ञ कर रहे थे वो घर बड़ा ही विचित्र था बड़ा ही विचित्र भवन था, उससे भी बड़ा विचित्र भवन बनना चाहिए जहां मैं पांडव साथ जुआ खेलूंगा, रागी भाई छोटे मोटे मिस्‍त्री या कारीगर की बात नहीं है बताया है भगवान विश्‍वकर्मा ने हस्तिनानगर में जाकर के जब अपने हाथों से भवन बनाते है तब ‘’ग्‍यारह महीने लगने लगे भैया ग्‍यारह महीने जी बीतने लगे भैया सुन्‍दर भवन बनवाने लगे भाई’’ सोच ही नहीं पा रहे हैं भगवान विश्वकर्मा ग्‍यारह महीने में कैसे भवन बनाएंगे पांडव के बैठने के लिए अलग अलग मणियों के आसन बनाये है पांडव तो दुर्योधन को  सोने के सिंहासन में बिठाए थे राजा दुर्योधन ने पांडव को जुआ खेलने के लिए बुलाया न रागी तो मणि के आसन में बिठाया है, भक्‍त विदुर पांडव को लेने के लिए जाते हैं और विदुर के साथ पांचो भैया पांडव हस्तिनानगर में आते हैं, रनिवास में रूकने की जगह दी गई है, रात भर विश्राम करने  के बाद पांडव होते प्रात:काल स्‍नान ध्‍यान करके गंगा पुत्र भीष्‍म के दर्शन करते हैं गुरू द्रोणाचार्य के दर्शन करते हैं, कुलगुरू कृपाचार्य के दर्शन करते हैं, राजा धृतराष्‍ट्र के दर्शन करते हैं उस दिन का समय बीत जाता है, दूसरे दिन बड़े बड़े वीरों से मिलते हैं उसके दूसरे दिन हस्तिना के प्रजा से मिलते हैं ये तीन दिन हस्तिना में पांडव के बीतते है आखिर में चौथे दिन सभा के मध्‍य में बुलावा आता है द्रोणाचार्य का बेटा अश्‍वस्‍थामा बुलाने के लिए आते हैं राजा युधिष्ठिर कहते हैं भाई तुम आगे आगे चलो हम पीछे पीछे आते हैं आगे आगे अश्‍वस्‍थामा महाराज पीछे में पांडव चलते हे बताया है जब पांडव हस्तिना की गलियों  में चलते थे  जब कोई आदमी चलता है तो उसकी छाया एक तरफ पड़ती थी लेकिन जब पांडव चलते थे तो उनकी छाया दोनों तरफ पड़ती थी, रागी पांडव जब सभा में पहुंचते है सारे वीर सिंहासन छोड़ देते हैं राजा दुर्योधन पांडव का स्‍वागत करते हुए कहते हैं आओ भैया पांडव आसन में विराजमान हो, पांडव कैसे दिख रहे हैं ? तो नजर आते हैं जैसे  कामदेव पांचरूप लेकर बैठे हैं, राजा कहते हैं भैया ये जि‍तने आए हैं ये सारे लोग जुआ देखने आए हैं  दुर्योधन कहते है भैया इन लोगों को मैंने नि‍मंत्रण देकर बुलाया है और क्‍यों बुलाया है तो जुआ देखने के‍ लिए बुलाया है जुआ होना हा शकुनि नाम के मंत्री ने चौसर बिछाया है, राजा युधिष्ठिर को यादा आता है कि काका विदुर ने बताया था कि वहां मनुष्‍य की हड्डी से पासा बनाया गया है चलकर देखना चाहिए, राजा युधिष्ठिर गए और जाकर तीनो गोटियों को उठाकर देखा तो वाकई में मुनष्‍य की हड्डी द्वारा बनाया गया है, राजा युधि‍ष्ठिर मारे क्रोध के पासा उठाकार पटक देते हैं  ‘’सिया राम का भजन कर प्राणी जी तेरी दो दिन की जिन्‍दगानी जी सिया राम का भजन कर, सिया राम का भजन कर प्राणी जी तेर दो दिन की जिन्‍दगानी जी सिया राम का भजन कर’’। 

 

 

रागी

‘’सिया राम के भजन कर प्राणी रे तोर दो दिन के जिनगानी रे सिया राम के भजन कर, सिया राम के भजन कर प्राणी रे तोर दो दिन के जिनगानी रे सिया राम के भजन कर’’।

रागी

‘’सिया राम का भजन कर प्राणी जी तेरी दो दिन की जिन्‍दगानी जी सिया राम का भजन कर, सिया राम का भजन कर प्राणी जी तेर दो दिन की जिन्‍दगानी जी सिया राम का भजन कर’’।

 

 

प्रभा

राजा युधिष्ठिर जब गोटी ल उठा के पटकथे रागी भाई शकुनि नाम के वीर जाथे अउ तीन गोटी ल झपट के उठाथे राजा युधि‍ष्ठिर के आगे बईठ के बोलथे राजन हम दोनों में जुआ होने वाला है शकुनि कथे युधिष्ठिर तोला आज मोर संग जुआ खेलना हे ओतका ल सुनिस त राजा युधिष्ठिर कथे अरे शकुनि ‘’तोला शरम ये तो नई लागे ग भाई, राजा धर्मजय कहन लागे ग भाई’’ राजा युधिष्ठिर कहे अरे शकुनि तोला लाज नई लागे रे क्‍योंकि जुआ और युद्ध बराबरी म होथे योद्धा ही योद्धा के होथे बोले शकुनि तोर मोर समानता नईए तंय एक मंत्री आस अउ मय एक सम्राट अंव राजा युधिष्ठिर कहते हैं मैं राजा हूं अउ तंय एक तुच्‍छ मंत्री आस बोले तोर मोर समानता नहीं हे बराबरी नईए मुकाबला तो बराबरी म होथे शकुनि ल जवाब देवत नई बनीस नजर उठा के दुर्योधन ल देखिस ताहन दुर्योधन हांस दिस राजा दुर्योधन युधिष्ठिर ल काहत हे भैया शकुनि ल मंत्री झन जान काबर मोर बदला में शकुनि जुआ खेलही हारही त ओ धन मोर होही शकुनि मोर एवजि म खेलही जीतही त धन मोर होही हारही त मोरे धन जाही जुआ के खेल शुरू होथे रागी भैया एक एक करके शकुनि महराज एक एक करके दांव शकुनि जीतत हे, अउ एकेक करके राजा धर्मराज युधिष्ठिर हारत हे इंद्रप्रस्‍थ के राजलक्ष्‍मी सोना चांदी हीरा मोती दास दासी जतेक हे रागी एक एक करके लगावत हे शकुनि जीतत ह बीच म भीमसेन खड़े होके कहे भैया जुआ मत खेल भीम बीच में खड़े होकर के बोले भैया जुआ मत खेल क्‍योंकि यहां कपट के जुआ होवत हे राज युधिष्ठिर जुआ खेलत राहय नजर उठाके भीम के मुंह ल देखे अउ भीम के मुंह ल देख के ईशारा करके बोले भीम आज तोला धर्म के सौगंध हे कहे मत रोक मोला जुआ खेले बर मणि के आसन  बने हुए पांडव एक एक करके सिर झुका के बईठथे अउ युधिष्ठिर एक एक करके धन धान्‍य हार जथे राजा धर्मराज कथे दुर्योधन जतका धन दौलत रीहीस सबला हारगे हंव मोर जघा कुछ नई बांचे हे राजा हांस के कहिस भैया बहुत अकन चीज बांचे हे तुंहर पोशाक हे अस्‍त्र शस्‍त्र बांचे हे ओला नई लगावस।             

प्रभा

राजा युधिष्ठिर जब गोटियों को उठाकर पटकते हैं रागी भाई शकुनि नाम का वीर जाता है और झपट के गोटियां उठाता है राजा युधि‍ष्ठिर के आगे बैठकर बोलता है कि राजन हम दोनों में जुआ होने वाला है, शकुनि कहता है कि युधिष्ठिर तुम्‍हे आज मेरे साथ जुआ खेलना है इतना सुनते ही राजा युधिष्ठिर कहते हैं अरे शकुनि ‘’तुझे शरम नहीं लगती क्‍या भाई, राजा धर्मजय कहने लगे जी भाई’’ राजा युधिष्ठिर कहते हैं अरे शकुनि तुझे लाज नहीं लगती रे क्‍योंकि जुआ और युद्ध बराबरी में होता है योद्धा ही योद्धा से लड़ता है कहते हैं शकुनि तेरी और मेरी क्‍या समानता है तुम एक तुच्‍छ मंत्री हो और मैं एक सम्राट हूं राजा युधिष्ठिर कहते हैं मैं राजा हूं और तू एक तुच्‍छ मंत्री है बोले तुम्‍हारी और मेरी कोई  समानता नहीं है, बराबरी नहीं है मुकाबला तो बराबरी में होता है, शकुनि को जवाब देते नहीं बना तो नजर उठाकर को दुर्योधन को देखता है तो फिर दुर्योधन हंस देता है राजा दुर्योधन युधिष्ठिर को कहता है भैया शकुनि को मंत्री मत जानो क्‍योंकि मरे बदले में शकुनि जुआ खेलेगा हारेगा तो मेरा धन जाएगा शकुनि मेरे एवज में खेल रहा है जितेगा तो वह धन मेरा होगा और हारेगा तो भी वह धन मेरा ही होगा, जुआ का खेल शुरू होता है रागी भैया एक एक करके शकुनि महाराज एक एक करके दांव शकुनि जीतता है, ओर  एक एक करके राजा धर्मराज युधिष्ठिर हारते  हैं, इंद्रप्रस्‍थ की राजलक्ष्‍मी सोना चांदी हीरा मोती दास दासी जि‍तने थे रागी वे एक एक करके लगाते  हैं शकुनि जीत रहा है बीच में भीमसेन खड़े होकर कहता है भैया जुआ मत खेलो भीम बीच में खड़े होकर के बोले भैया जुआ मत खेलो क्‍योंकि यहां कपट का जुआ हो रहा है राजा युधिष्ठिर जुआ खेलते हुए नजर उठा के भीम की ओर देखते हैं और देखकर ईशारा करके बोले भीम आज तुम्‍हे धर्म की सौगंध है कहते हैं मुझे मत रोको जुआ खेलने के लिए मणि के आसन बने हुए हैं पांडव एक एक करके सिर झुकाकर बैठ जाते हैं और युधिष्ठिर एक एक करके धन धान्‍य हार जाते हैं राजा धर्मराज कहते हैं दुर्योधन जि‍तना धन दौलत था सब हार गया हूं मेरे पास अब कुछ भी नहीं बचा है राजा हंस के कहते हैं भैया बहुत सी चीजें बची है तुम्‍हारी पोशाक है अस्‍त्र शस्‍त्र बचे हैं उन्‍हें नहीं लगाते।     

 

         

रागी

दांव में।

रागी

दाव में।

 

 

प्रभा

एक एक करके राजा धर्मराज पांडव के पोशाक हारगे अस्‍त्र शस्‍त्र हारगे कथे दुर्योधन अब कुछ नईए राजा कथे एकाद भाई ल लगा दे पासा पलट जाही धन सम्‍पत्ति ल हारे हस सब वापस आ जाही सबल सिंह बताय हे ओ समय राजा युधिष्ठिर के आत्‍मा रो उठथे कहे दुर्योधन मय तोला का बतांव जोन ल मय अपन प्राण से भी ज्‍यादा प्रेम करथंव ते कौन जो मोर प्राण से भी ज्‍यादा प्‍यारा हे भैया सहदेव ल मय दांव म लगावत हंव सहदेव दांव म लग जाथे रागी, भैया कपट के जुआ ए युधिष्ठिर माधरीनंदन सहदेव ल हार जाथे नकुल महराज ल हारथे इंद्र सुवन अर्जुन ल हारथे अउ जउन काल के भी महाकाल हे भीमसेन ल भी दांव म लगा देथे अपन आप ल स्‍वयं युधिष्ठिर हार जाथे स्‍वयं कौरव के दास बन जाथे कहे भैया अब कुछू भी नई बांचे हे मय सब ल हार गेंव राजा युधिष्ठिर काहत हे अब मय तोर सेवक होगे हंव दास बन गेंव दुर्योधन अब कुछू नईए दुर्योधन सीना तान के काहत हे अभी एक और बाकी हे रख दे दांव में भाग्‍य ए पासा पलट जाही जितना हारे हो वापिस कर दिहंव जब जोश हे रागी जउन ह जगत के जननी ए जउन जगत के महतारी ए द्रुपद कुमारी मां जगदम्‍बा ल जुआ म लगा दिस, अउ राजा युधिष्ठिर माता पांचाली ल जुआ म हारगे सिर झुका के बईठे हे युधिष्ठिर महराज सीना तान के जब दुर्योधन कहे जितने भी बैठो हो कान खोल के सुन लो बोले वीरों द्रौपदी राजस्‍वी यज्ञ में अंधा के बेटा अंधा कहिके ताली पीट के हंसे रीहीसे आज ये सभा में देखही कि वाकई में अंधा हंव कि नेत्रवाला रागी भाई द्रौपदी ल लाय बर सभा के बीच में कामी मंत्री ल भेजथे बोले जाव कामी और बोले भरे सभा में द्रुपद कुमारी द्रौपदी को ले आओ जब कामी मंत्री द्रौपदी ल लाय बर जाथे तो भानुमति जो राजा दुर्योधन के धरमपत्‍नी ए भानुमति कहे अरे मंत्री अईसे लगथे तोर मरना नजदीक आ गे हे कहे पांडव के पास राजलक्ष्‍मी नई हे जेला सब ल छोड़के देवी द्रौपदी ल जुआ म हारही मां सब रीहीस हे लेकिन सब ल हारगे हारे के बाद में देवी द्रौपदी ल हारगे, रानी भानुमती कहिथे वो सभा के बीच म नई जाय, जा राजा ल बता दे, फिर भानुमति बोलिस द्रौपदी सभा के बीच म नई जाय जाके मंत्री कहि दिस महराज रानी भानुमति कहिस द्रौपदी सभा के बीच म नई जाय दुर्योधन के नेत्र लाल हो जथे मोर आदेश अउ मोर आदेश ल भानुमति टाल दिस हे आखिर में सभा के बीच में दुर्योधन चिल्‍लाए बोले एै दु:शासन हाथ म गदा लिए खड़े होगे कथे भैया का सेवा करंव राजा दुर्योधन कथे जाव राजमंदिर द्रुपद कुमारी द्रौपदी सीधा म आथे तब तो सीधा म ले आ अउ अगर कहीं आय बर इंकार करत हे तो ओकर ‘’केश पकड़ के खींचत लावा भैया केश के पकड़ ले आवा जी, राजा आर्डर देवन लागे भाई’’ हाथ म गदा लेके दु:शासन खड़ा होथे तब भीमसेन हाथ में गदा लेके खड़े होथे भीमसेन दु:शासन के रास्‍ता रोक के बोले खामोश भीम काहत हे दु:शासन ल मत जा राजमंदिर मत ला द्रौपदी ल सभा के बीच में द्रौपदी तोर कुल के ईज्‍जत ए द्रौपदी तोर कुल के बहू ए, भीम काहत हे मत जा दु:शासन भीम के आवाज ल सुनिस त राजा युधिष्ठिर सिर झुका के बईठे राहय सिर ऊपर करके भीम ल देख के बोलथे बईठ जा बाबू बोले जावन दे राजा काहत हे, ‘’होईहैं वही जो राम रचि राखा’’ धर्मराज कहे जो विधाता ल मंजूर हे भीमसेन होनी हो के रिथे होनी ल कोई नई टाल सके गरजते हुए दु:शासन राजमंदिर म प्रवेश करथे बताय हे अंगना म सोना के पलंग बिछे हे दोनों रानी पलंग म विराजमान हे राजा दुर्योधन के धरमपत्नी भानुमति अउ पांचो पांडव के धरमपत्‍नी द्रौपदी ओ दिन माता द्रौपदी के केश लंबा लंबा बिखरे रीहीस रागी।

प्रभा

एक एक करके राजा धर्मराज पांडव के पोशाक हार जाते हैं, अस्‍त्र शस्‍त्र हार जाते हैं कहते हैं दुर्योधन अब कुछ नहीं है राजा कहता है एकाद भाई को लगा दो पासा पलट जाएगा धन सम्‍पत्ति को हारे हो वो सब वापस आ जाएगा सबल सिंह बताया है उस समय राजा युधिष्ठिर की आत्‍मा रो उठती है कहते हैं दुर्योधन मैं तुम्‍हे क्‍या बताऊं जिसे मैं अपने प्राणों से भी ज्‍यादा प्रेम करता हूं वो कौन ? जो मुझे मेरे  प्राणों से भी ज्‍यादा प्‍यारा है भैया सहदेव को मै दाव मे लगाता हूं,  सहदेव दांव में लग जाता है रागी, भैया कपट का जुआ हो रहा है, युधिष्ठिर माधरीनंदन सहदेव को हार जाते हैं नकुल महाराज को हार जाते हैं इंद्र सुवन अर्जुन को हार जाते है और जो काल का भी महाकाल है भीमसेन को भी दाव में लगा देते हैं अपने आप को स्‍वयं युधिष्ठिर हार जाता है, स्‍वयं कौरव के दास बन जाते है, कहते हैं भैया अब कुछ भी नहीं बा है मैं सब कुछ हार चुका हूं राजा युधिष्ठिर कहते हैं अब तुम्‍हारा सेवक हो गया हूं,  दुर्योधन अब कुछ नहीं है दुर्योधन सीना तानकर कहते हैं अभी एक और बाकी है रख दो दांव पर भाग्‍य है पासा पलट जाएगा जितना हार चुके हो सब वापस कर दूंगा जब जोश है रागी जो जगत की जननी है जो जगत की माता है द्रुपद कुमारी मां जगदम्‍बा को जुआ में लगा देते है, और राजा युधिष्ठिर माता पांचाली को जुआ में हार गया, सिर झुका के बैठे है युधिष्ठिर, महराज दुर्योधन सीना तान के जब कहते हैं जितने भी बैठै हैं कान खोल के सुन लो बोले वीरों द्रौपदी राजस्‍वी यज्ञ में अंधे का बेटा अंधा कहकर ताली बजाकर हंस रही थी आज इस सभा में देखेगी कि वाकई में अंधा हूं कि नेत्रवाला, रागी भाई द्रौपदी को सभा के बीच में लाने के‍ लिए कामी मंत्री को भेजते हैं बोले जाओ कामी और कहा भरे सभा में द्रुपद कुमारी द्रौपदी को ले आओ जब कामी मंत्री द्रौपदी को लाने के‍ लिए गया तो भानुमति जो राजा दुर्योधन के धर्मपत्‍नी है भानुमति कहती है अरे मंत्री ऐसा लगता है जैसे तुम्‍हारी मृत्‍यु नजदीक आ गयी है कहती पांडव के पास राजलक्ष्‍मी नई है क्‍या जो सब कुछ छोड़कर देवी द्रौपदी को जुआ में हारेंगे मां सब था लेकिन सब कुछ हार जाने के बाद में देवी द्रौपदी को हार गए, रानी भानुमती कहती है वो सभा के बीच में नहीं जाएगी, जाओ राजा को बता दो, फिर भानुमति बोली द्रौपदी सभा के बीच में नहीं जाएगी, मंत्री जाकर महाराज से कहता है कि रानी भानुमति ने कहा कि द्रौपदी सभा के बीच में हीं आएगी दुर्योधन के नेत्र लाल हो जाते हैं मेरा आदेश और मेरे आदेश को भानुमति ने टाल दिया, आखिर में सभा के बीच में दुर्योधन चिल्‍लाए ओर कहा एै दु:शासन, दु:शासन हाथ में गदा लिए खड़े हो गया ओर कहा भैया क्‍या सेवा करूं राजा दुर्योधन कहते हैं कि जाओ राजमंदिर द्रुपद कुमारी द्रौपदी सीधे से आती है सीधे में ले आओ और अगर कहीं आने से इंकार करती है उसके ‘’केश पकड़ के खींचते हुए ले आओ भैया केश के पकड़ ले आओ जी, राजा आदेश देने लगे भाई’’ हाथ में गदा लेकर दु:शासन खड़ा हो जाता है तब भीमसेन हाथ में गदा लेके खड़े होते हैं भीमसेन दु:शासन का रास्‍ता रोककर कहते हैं खामोश.. भीम कहते है दु:शासन मत जा राजमंदिर मत ला द्रौपदी को सभा के बीच में द्रौपदी तेरे कुल की ईज्‍जत है द्रौपदी तेरे कुल की बहू है, भीम कहते है मत जा दु:शासन भीम की आवाज सुनकर राजा युधिष्ठिर सिर झुकाकर बैठे थे वो सिर ऊपर करके भीम को देखकर बोले बैठ जा बाबू कहा जाने दो राजा कहते हैं, ‘’होता वही है जो श्रीराम ने रच रखा है’’  धर्मराज कहते है  जो विधाता को मंजूर है भीमसेन होनी होकर रहता है होनी को कोई नहीं टाल सकता गरजते हुए दु:शासन राजमंदिर में प्रवेश करता है बताया है आंगन में सोने का पलंग बिछा है दोनों रानियां पलंग में विराजमान है राजा दुर्योधन की धर्मपत्नी भानुमति और पांचो पांडव की धर्मपत्‍नी द्रौपदी उस दिन माता द्रौपदी के लंबे लंबे केश बिखरे थे रागी।

 

 

रागी

या या।

रागी

या या।

 

 

प्रभा

लंबा केश बिखरे हे पूर्णिमा के चंद्रमा के समान रूप आसन में आसीन हे दु:शासन आवाज देकर के बोले ए द्रौपदी आवाज ल सुनते ही भानुमति पलंग ले उ‍तरिस अउ उतरते ही राजमंदिर के भीतर म जात हे द्रौपदी पलंग म बईठे हे ते खड़ा हो जथे पलंग ले उतर के दु:शासन ल देख के काहत हे दु:शासन आओ कइसे आय हस बईठ भैया प्रेम से द्रौपदी काहत हे आना तब दु:शासन काहत हे द्रौपदी पांडव तोला जुआ म हार गे हे तंय कौरव के चरण के दासी बन गे हस बड़े भैया दुर्योधन तोला सभा म बुलावत हे मय तोला लेगे के खातिर आय हंव कौरव के चरण के दासी बन गे हस रागी द्रौपदी कहे कईसन बात करत हस दु:शासन द्रौपदी कहे कइसे दु:शासन कईसे बात करत हस दु:शासन जागते जागत ‘’अरे सपनेहुं आन पुरूष नहीं जानी’’ दु:शासन जागत म कोन पूछे अरे दुसर के आगू म मय जांव नहीं दु:शासन वो सभा में बड़े बड़े वीर गुरू भाई  बंधु सकल सहोदर बईठे हे वो सभा में मय कईसे जाहूं ग कहे जा राजा दुर्योधन मोर से मिलना चाहत हे आज के समय दे दु:शासन काली वो सभा में जाके राजा से जरूर मिलहूं समझाय के प्रयास करत हे द्रौपदी फेर दु:शासन ल समझ नई आवत हे आखिर म द्रौपदी ल कह ल परगे दु:शासन आज मय वो सभा में जाय के योग्‍य नई रहि गेंव आज वो सभा म नई जावंव अरे ‘रजस्‍वला स्‍नान कराई’ कहे एके वसन म हंव मय वो सभा बीच नई जावंव दु:शासन नई मानत हे आखिर म द्रौपदी भागिस राजमंदिर बर लंबा केश बिखरे हे रागी तब द्रौपदी भागिस त दु:शासन झपट के ‘’अ ग देवी द्रौपदी के केशे ल पकड़न लागे ग भाई’’ खीच के पकड़त हे ‘’ओहा रानी के केश ल पकड़न लागे रे भाई, हां द्रौपदी भागन लागे ग मोर भाई’’ केश ल पकड़ के दु:शासन जब झटका देथे तो द्रौपदी पृथ्‍वी म गिर जाथे रागी भाई राजमंदिर ले एक हाथ म केश ल पकड़े हे अउ एक हाथ म द्रौपदी के हाथ ल पकड़े हे अउ दु:शासन राजमंदिर ले खीचत द्रौपदी ल ले जात हे, ओ समय के दृश्‍य देख जउन द्रौपदी के एक झलक देखे बर भगवान सूर्यदेव घलो तरस जाय आज वो दु:शासन द्रौपदी ल गली गली घसीटत लेगत हे, द्रौपदी चिल्‍लात हे बचाव बचाव, हस्तिना के प्रजा बचाव आवाज ल सुन के माता गांधारी दउड़त निकलथे जब गांधारी के भवन तीर से गुजरथे द्रौपदी चिल्‍लात हे मां गांधारी मोर लाज ल बचा दे गांधारी दरवाजा में आके बोले दु:शासन छोड़ दे द्रौपदी ल दु:शासन नई माने बताय हे ओ समय मां गांधारी के आत्‍मा कलपगे चिल्‍ला के कहिस आज मय ये पृथ्‍वी में सौ झन बेटा ल जनम नई दे हंव मय पृथ्‍वी में काल पैदा कर डरेंव रागी ‘’का करबे रे हंसा ये जीव हे दूसर के बस में का करबे रे हंसा’’।

प्रभा

लंबे केश बिखरे हैं पूर्णिमा के चंद्रमा के समान रूप आसन में आसीन है, दु:शासन आवाज देकर के बोले ए द्रौपदी... आवाज को सुनते ही भानुमति पलंग से उ‍तरती है और उतरते ही राजमंदिर के भीतर में जाती है, द्रौपदी पलंग में बैठी है वो खड़ी हो जाती है और पलंग से उतरकर दु:शासन को देखकर कहती है दु:शासन आओ कैसे आए हो ? बैठो भैया प्रेम से द्रौपदी कहती है आओ ना तब दु:शासन कहता है द्रौपदी पांडव तुम्‍हें जुए में हार गए हैं तुम कौरव के चरणों की दासी बन चुकी हो बड़े भैया दुर्योधन तुम्‍हें सभा में बुला रहे हैं मैं तुम्‍हें लेने के लिए आया हूं कौरव के चरणों की दासी बन गई हो, रागी द्रौपदी कहती कैसी बात कर रहे हो दु:शासन, द्रौपदी कहती है कैसे दु:शासन कैसी बातें कर रहो हो दु:शासन जागते जागते ‘’अरे सपने में भी पर पुरूष को मैं नहीं देखती’’ दु:शासन जागते में कौन पूछता है अरे मैं दूसरों के सामने में मैं जाती नहीं दु:शासन, उस सभा में बड़े बड़े वीर, गुरू भाई बंधु सकल सहोदर बैठे हैं उस सभा में मैं कैसे जाऊंगी, कहती है जाओ राजा दुर्योधन मुझसे मिलना चाहते हैं तो आज का समय दे दो दु:शासन मैं कल उस सभा में जाकर राजा से जरूर मिलूंगी, समझाने का प्रयास करती है द्रौपदी लेकिन दु:शासन को समझ नहीं आ रहा है, आखिर में द्रौपदी को कहना पड़ गया कि दु:शासन आज मैं उस सभा में जाने के योग्‍य नहीं हूं, आज उस सभा में नहीं जा पाऊंगी अरे ‘रजस्‍वला स्‍नान की है’ कहा एक ही वस्‍त्र में हूं मैं उस सभा बीच नहीं जा पाऊंगी, दु:शासन नहीं मानता है आखिर में द्रौपदी राजमंदिर की तरफ भागती है लंबे केश बिखरे हैं रागी जब द्रौपदी भागती है तो दु:शासन झपटकर ‘’अ जी देवी द्रौपदी के केश को पकड़ने लगा जी भाई’’ खीचकर के पकड़ता है ‘’वह रानी के केश को पकड़ने लगता है जी भाई, हां द्रौपदी भागने लगती है जी मेरे भाई’’ केश को पकड़कर  दु:शासन जब झटका देता है तो द्रौपदी जमीन में गिर जाती है रागी भाई राजमंदिर से एक हाथ में केश  पकड़े हैं और एक हाथ से द्रौपदी का हाथ पकड़ा है और दु:शासन राजमंदिर से खीचते हुए द्रौपदी को  ले जाता हे, उस समय का दृश्‍य देखि‍ए जिस द्रौपदी की एक झलक देखने के लिए भगवान सूर्यदेव भी  तरस जा थे आज वो दु:शासन द्रौपदी को गली गली घसीटता ले जा रहा है, द्रौपदी चिल्‍लाती है बचाआ बचाओ हस्तिना की प्रजा बचाओ आवाज को सुनकर माता गांधारी दौड़ती हुई निकलती है, जब गांधारी के भवन के पास से गुजरते हैं द्रौपदी चिल्‍लाती है मां गांधारी मेरी लाज बचा लो गांधारी दरवाजे में आकर बोली दु:शासन छोड़ दो द्रौपदी को दु:शासन नहीं मानता बताया है उस समय मां गांधारी की आत्‍मा तड़प गई चिल्‍लाकर कह आज मैंने इस पृथ्‍वी में सौ बेटों को जन्‍म नहीं दिया है बल्कि मैंने इस  पृथ्‍वी में काल पैदा कर डाला है रागी ‘’क्‍या करेगा रे हंसा जीव है दूसरे के वश में क्‍या करेगा रे हंसा’’।

 

 

रागी

‘’का करबे रे हंसा ये जीव हे दूसर के बस में का करबे रे हंसा, का करबे रे हंसा ये जीव हे दूसर के बस में का करबे रे हंसा, का करबे रे हंसा ये जीव हे दूसर के बस में का करबे रे हंसा’’।

रागी

‘’क्‍या करेगा रे हंसा जीव है दूसरे के वश में क्‍या करेगा रे हंसा, क्‍या करेगा रे हंसा जीव है दूसरे के वश में क्‍या करेगा रे हंसा, क्‍या करेगा रे हंसा जीव है दूसरे के वश में क्‍या करेगा रे हंसा’’।

 

 

प्रभा

‘’सुमत म ये सुवा ल पोसेंव दुमत में उड़ जाना, सुमत म ये सुवा ल पोसेंव दुमत में उड़ जाना, सुवा उड़ा के मंदिर म बईठे पिंजरा में आगी लगाना, का करबे रे हंसा जीव हे दूसर के बस में’’ रानी गांधारी चिल्‍लाकर बोले दु:शासन बोले द्रौपदी ल छोड़ दे कहिस राजा दु:शासन के समझ नई आवत हे, आखिर में रानी गांधारी कहिस धिक्‍कार हे मोर भाग ल जो दुनिया में सौ झन बेटा ल जनम देंव कहे आज मय सौ बेटा ल जनम नई दे हंव मय काल पैदा कर डरें हंव ओ दिन गांधारी के आत्मा कलप गे रागी भाई अउ आत्‍मा कलप गे ओ कलपिस त गांधारी कहे अरे दु:शासन जा एक दिन ‘’अरे सकल के नाश होई ग जावय भैया अरे सकल के नाशे होई जावय भाई, रानी गांधारी काहन लागे भाई, रानी गांधारी काहन लागे भाई सकल नाश हो जावय भाई, रानी गांधारी काहन लागे भाई सकल नाश हो जावय भाई’’ दु:शासन देवी द्रौपदी ल लाकर के राजा दुर्योधन के आगे खड़ा कर दिस, ह‍स्‍ति‍ना नरेश सम्राट दुर्योधन आसन में बिराजमान हे मणिमय मुकुट बांधे हे, घुंघरालु केश गोरा गोरा रंग हे किरीट कुंडल बसन भूषण लगाय हे, रागी पृथ्‍वी नरेश दुर्योधन कोई छोटे मोटे हस्‍ती या कोनो व्‍यक्ति के नाम नोहे क्‍योंकि दुर्योधन के बाम अंग में लक्ष्‍मी विराजमान हे राजा दुर्योधन काहत हे एै दु:शासन पांडव जुआ में द्रौपदी ल जुआ म हार चुके हे द्रौपदी हमर चरण के दासी बन गेहे आज ये सभा के बीच में खीच दे द्रौपदी के वस्‍त्र ल अउ द्रौपदी के वस्‍त्र ल खीच के बोले मोर जंघा म बिठा दे चीर खीच दे अउ खीच के मोर जंघा म बिठा काबर कि द्रौपदी हमर चरण के दासी ए।          

प्रभा

‘’सुमति‍ में ये तोला पाला और दुमति में वह उड़ गया, सुमति‍ में ये तोला पाला और दुमति में वह उड़ गया, तोता उड़कर मंदिर में बैठगया और पिंजरे को आग लगा दी, क्‍या करेगा रे हंसा जीव है दूसरे के वश में क्‍या करेगा रे हंसा’’ रानी गांधारी चिल्‍लाकर बोली दु:शासन बोली द्रौपदी को छोड़ दे कहा राजा दु:शासन को समझ नहीं आता है, आखिर में रानी गांधारी कहती है धिक्‍कार है मेरे भाग्‍य को जो मैंने इस दुनिया में सौ बेटों को जन्‍म नहीं दिया है बल्कि मैंने काल पैदा कर डाला है उस दिन गांधारी की आत्मा रो उठी और रागी भाई और आत्‍मा आत्‍मा तड़प गई तड़पकर गांधारी कहती है अरे दु:शासन जा एक दिन ‘’अरे सकल का नाश हो जाए जी भैया, अरे सकल का नाशे हो जाए भाई, रानी गांधारी कहने लगी भाई, रानी गांधारी कहने लगी भाई, सकल नाश हो जाए भाई, रानी गांधारी कहने लगे भाई सकल नाश हो जाए भाई’’ दु:शासन देवी द्रौपदी को लाकर के राजा दुर्योधन के सामने खड़ा कर देता है, हस्तिना नरेश सम्राट दुर्योधन आसन में बिराजमान है मणिमय मुकुट बांधे हैं, घुंघरालु केश गोरा गोरा रंग है किरीट कुंडल वस्‍त्र आभूषण लगाए हैं, रागी पृथ्‍वी नरेश दुर्योधन कोई छोटी मोटी हस्‍ती या कोई व्‍यक्ति का नाम नहीं है क्‍योंकि दुर्योधन के वाम अंग में लक्ष्‍मी विराजमान है राजा दुर्योधन कहते हैं एै दु:शासन पांडव जुए में द्रौपदी को में हार चुके हैं द्रौपदी हमारे चरणों की दासी बन गई है आज इस सभा के बीच में खीच दो द्रौपदी के वस्‍त्र को और द्रौपदी के वस्‍त्र को खीचकर कहा मेरी जंघा में बिठा दो चीर खीच दो और खीचकर मेरी जंघा में बिठा दो क्‍योंकि द्रौपदी हमारे चरणों की दासी है।         

 

 

रागी

दासी बन गेहे।

रागी

दासी बन गई है।

 

 

प्रभा

ए बात ल सुनिस त सभा के बीच में एक विकर्ण नाम के राजकुमार रीहीस कौरव के समाज से वो विकर्ण खड़े होवय विकर्ण नाम के वीर कहिस दुर्योधन तोला लाज नी लागय राजकुमार विकर्ण कहते हैं अरे दुर्योधन काय शर्म नहीं आय तोला, एक पतिव्रता अबला ल भरे समाज म लाके एक अबला के तंय अपमान करत हस दुर्योधन जिसके बाम अंग में लक्ष्‍मी विराजमान हे लक्ष्‍मीपति होकर ऐसे शब्‍द कहते हुए लाज नई आवय तोला, दुर्योधन बोले विकर्ण हंस देते राजा दुर्योधन अरे विकर्ण अगर ये दृश्‍य देख सकथस त बैठ के देख नहीं तो ये सभा के बीच से उठ के जा सकत हस।

प्रभा

यह बात सुनकर सभा के बीच में एक विकर्ण नाम का राजकुमार था जो कौरव के समाज से था वह विकर्ण खड़ा हुआ और विकर्ण नाम के वीर ने कहा दुर्योधन तुम्‍हें लाज नहीं आती राजकुमार विकर्ण कहते हैं अरे दुर्योधन क्‍या शर्म नहीं आती तुझे, एक पतिव्रता अबला को भरे समाज में लाकर एक अबला का तुम अपमान कर रहे हो दुर्योधन जिसके वाम अंग में लक्ष्‍मी विराजमान है लक्ष्‍मीपति होकर ऐसे शब्‍द कहते हुए लाज नहीं आती, दुर्योधन बोले हंसकर बोले विकर्ण राजा दुर्योधन ने कहा अरे विकर्ण अगर ये दृश्‍य देख सकते हो तो बैठकर देखो नहीं तो इस सभा के बीच से उठकर जा सकते हो।

 

 

रागी

चले जाओ।

रागी

चले जाओ।

 

 

प्रभा

कितनों भी ऐसे वीर है रागी भाई जोन वो सभा ले उठ के रेंग देथे अउ कतको ऐसे वीर है जो सभा में सिर झुका के बैठे हैं, राजा दुर्योधन बोले देर मत कर खीच दे द्रौपदी के चीर ल तब देवी भरे सभा में भुजा उठा करके फेर समस्‍त कौरव के दल में तीस हजार वीर बैठै हैं द्रौपदी सारे समाज ल चिल्‍ला करके बोले ए वीरों कौरव के समाज में जतेक बैठे हो सबको कान खोल के सुन लो पितामह भीष्‍म गुरू द्रोणाचार्य बोले कुलगुरू कृपाचार्य कका विदुर बईठे हे मय आप सबसे ये जानना चाहत हंव जब राजा युधिष्ठिर अपन आप ल हारगे चारो भाई हार चुके अपने आपको हार चुके ओकर बाद राजा युधिष्ठिर ल मोर ऊपर अईसे कोन से अधि‍कार हे जेमा मोला दांव म लगा दिस बोले बताव जवाब मांगे द्रौपदी तो कोनो जवाब नई दे सके सब सिर झुका के बईठे हे, भीष्‍म महराज सिर झुका के आसन म बईठे हे राजा दुर्योधन हांस के कथे, द्रौपदी काला तंय पूछत हस ये तो अंधरा के सभा ए जहां के राजा अंधा द्रौपदी वहां के प्रजा भी अंधा हे, जब मैं स्‍वयं राजा ही अंधा हंव तो वहां जितने भी बैठे हैं वहां सब अंधा है तो वहां जितने भी बैठे सब अंधे हैं और अंधों के बीच में का बात के लाज ए अरे तोला को बात के लाज हे ए तो अंधरा के सभा आय महारानी द्रौपदी कहिस द्वारकानाथ,  राजा दुर्योधन कहिस खीच दे द्रौपदी के वस्‍त्र राजा दु:शासन के भुजा में दस हजार हाथी के बल हे रागी दु:शासन जब खड़ा होईस तब झपट के मां द्रौपदी के आंचल ल जब पकड़थे तब द्रौपदी सभा में चिल्‍लाय हे बचाव वीरों बचाव ए अबला के लाज ल बचा लव, ए अबला के लाज ल बचा लेवव द्रौपदी नजर उठा के भीष्‍म ल देख के कहिस मय तोर कुल के बहू अंव तोर आगू म मोर लाज जावत हे बोले बबा मोर लाज ल बचा दे सब सिर झुका के बईठे हे द्रौपदी पलट के पांचो पति ल देखिस पांचो पति भी सिर झुका के बईठे हे उतना बड़े सभा में रागी भाई एक अबला के लाज बचईया कोनो नईए।

प्रभा

कितने ही ऐसे वीर थे रागी भाई जो उस सभा से उठकर चले गए और कितने ही वीर ऐसे थे जो सभा में सिर झुकाकर बैठे हुए थे, राजा दुर्योधन बोले देर मत करो खीच दो द्रौपदी के चीर को तब देवी भरी सभा में भुजा उठा करके फि‍र समस्‍त कौरव के दल में तीस हजार वीर बैठै हैं द्रौपदी सारे समाज को  चिल्‍लाकर कहती है कि एै वीरों.. कौरव के समाज में जि‍तने बैठे हो सब कान खोलकर सुन लो, पितामह भीष्‍म गुरू द्रोणाचार्य बोले कुलगुरू कृपाचार्य काका विदुर बैठे हैं मैं आप सबसे ये जानना चाहती हूं कि जब राजा युधिष्ठिर अपने आपको हार गए, चारो भाईयों को हार चुके अपने आपको हार चुके उसके बाद राजा युधिष्ठिर को मेरे ऊपर ऐसा कौन सा अधि‍कार रह गया जिसमें मुझे दाव पर लगा दिया बोली बताओ जवाब मांगती है द्रौपदी तो कोई जवाब नहीं दे सका सब सिर झुकाकर के बैठे हैं, भीष्‍म महाराज सिर झुकाकरके आसन में बैठे हैं राजा दुर्योधन हंसकर कहते हैं, द्रौपदी तुम किससे पूछ रही हो ये तो अंधों की सभा है जहां का राजा अंधा द्रौपदी वहां की प्रजा भी अंधी है, जब मैं स्‍वयं राजा ही अंधा हूं तो यहां जितने भी बैठे हैं वे सब अंधे हैं, यहां जितने भी बैठे सब अंधे हैं और अंधों के बीच में किस बात की शर्म है तुम्‍हें ये तो अंधों की सभा है महारानी द्रौपदी कहती है द्वारिकानाथ, राजा दुर्योधन कहता है खीच दे द्रौपदी के वस्‍त्र राजा दु:शासन की भुजाओं में दस हजार हाथी के बल हैं रागी दु:शासन जब खड़ा हुआ तब झपटकर मां द्रौपदी के आंचल को जब पकड़ता है तब द्रौपदी सभा में चिल्‍लाती है बचाओ वीरों बचाओ इस अबला की लाज बचा लो, मुझ अबला की लाज बचा लो, द्रौपदी नजर उठाकर भीष्‍म को देखती है और देखके कहती है मैं आपके कुल के बहू हूं आपके सामने मेरी लाज लुट रही है कहा पितामह मेरी लाज बचा लीजिए सब सिर झुकाकर बैठे हैं द्रौपदी पलटकर पांचो पतियों को देखती है पांचो पति भी सिर झुकाकर बैठे है इतनी बड़ी सभा में रागी भाई एक अबला की की लाज बचाने वाला कोई नहीं है।

 

 

रागी

कोनो नईए।  

रागी

कोई नहीं है। 

 

 

प्रभा

आखिर में द्रौपदी के डोर भगवान की ओर लमत हे दु:शासन द्रौपदी के चीर पकड़े हे भुजा म दस हजार हाथी के बल हे अउ दस हजार हाथी के बल में जब दु:शासन जब द्रौपदी के चीर खीचत हे ओ समय द्रौपदी भगवान ल काहत हे बचाव द्वारकानाथ तोला दीनबंधु कहिथे तोला भक्‍त वत्‍सल कहिथे तंय तो दीनबंधु आस कृपासिंधु आस एक अबला मय पुकारत हंव मोर लाज ल बचा दे आंसू के धार बहिगे द्रौपदी के बचाव बचाव बचाव दु:शासन द्रौपदी के चीर खीचत हे बाल बिखरे हे कसके द्रौपदी के आंचल ल दोनों ठन हाथ म पकड़े हे रागी भैया अउ दु:शासन चीर खीचत हे जब द्रौपदी चिल्‍लाय भगवान के आसन हिल गे माता रूकमणी के नजर परगे, कहे द्वारकानाथ तोर कोनो भक्‍त तोला पुकारत हे तोर आसन हिलत हे मां रूखमणी भगवान ल काहत हे आज काकर ऊपर मुसीबत आ गे हे भगवान व्‍याकुल होके कहिस मय तोला का बतांव रूखमणी आज मोर बहिनी द्रौपदी पुकारत हे द्रौपदी ऊप्‍पर म संकट आ गेहे आज द्रौपदी के भरे समाज में चीर खीचे जात हे रूखमणी, तब माता रूखमणी कहे जावव ना काबर देरी करत हव फिर भगवान काहत हे रूखमणी अभी देवी द्रौपदी ह मोर उपर समर्पित नई होय हे अभी दोनों हाथ म आंचल पकड़े अउ मोला जाना भी जरूरी हे रूखमणी काबर कि एक समय के देवी द्रौपदी के मय चीर लागत हंव बताय हे रागी भाई एक समय भगवान के ऊंगली कटा गे राहय ऊंगली म खून बहत रीहीस हे सोला हजार एक सौ आठ रानी ल जा के काहत हे मोर अंगरी कटा गेहे एमा बांधे बर कुछू कपड़ा देव रानी मन रनिवास में जाके कपड़ा खोजत हे ओ दिन द्रौपदी नवा साड़ी पहिर के बईठे राहय सवा लाख के साड़ी भगवान जाके काहत हे पांचाली ऊंगली कटा गेहे एमा बांधे बर कुछू कपड़ा दे दे बहिनी द्रौपदी देखिस भगवान के ऊंगली कटा गेहे माता द्रौपदी अपन साड़ी ल फाड़थे अउ साड़ी फाड़ के भगवान के ऊंगली ल बांधत हे भगवान कहे मांग द्रौपदी ओ दिन द्रौपदी  केहे रीहीस हे प्रभु तोर दे हुए मोर पास सब चीज हे कोई चीज के कमी नईए कोनेा दिन कोनो समय मोर ऊपर मुसीबत आही त आके मोर लाज ल बचा लेबे बोले रूखमणी उही दिन के मय  चीर लागत हंव अउ आज मोला जाय बर परत हे माता द्रौपदी आखिर म दोनों हाथ ल छोड़ देथे दु:शासन द्रौपदी के चीर खीचते हैं अउ द्रौपदी आंखी मूंद के भगवान ल काहत हे ‘’बिपति हरव हरि मोर बंधना छोड़व बंधीछोर, ’बिपति हरव हरि मोर बंधना छोड़व बंधीछोर, तुंहर छोड़ के हरि जी कोनो नईए मोर, तुंहर छोड़ के हरि जी कोनो नईए मोर।   

प्रभा

आखिर में द्रौपदी की डोर भगवान की ओर जाती है दु:शासन द्रौपदी का चीर पकड़े हुए हैं भुजा में दस हजार हाथियों के बल हे और दस हजार हाथी के बल के साथ जब दु:शासन जब द्रौपदी के चीर खीचता हे उस समय द्रौपदी भगवान से कहती हे बचाओ द्वारिकानाथ आपको दीनबंधु कहते हैं आपको भक्‍त वत्‍सल कहते हैं  आप तो दीनबंधु हैं कृपासिंधु हैं मैं अबला पुकार रही हूं मेरी लाज बचा लो आंसूओं की धार बह गई द्रौपदी के बचाओ बचाओ बचाओ दु:शासन द्रौपदी के चीर खीचता है बाल बिखरे हैं कसकर द्रौपदी के आंचल को दोनों हाथों में पकड़ा हुआ है, रागी भैया और दु:शासन चीर खीचता है जब द्रौपदी चिल्‍लाती भगवान का आसन हिल जाता माता रूखमणी की नजर पड़ गई, कहा द्वारिकानाथ आपका कोई भक्‍त आपको पुकार रहा है आपका आसन हिल रहा है मां रूखमणी भगवान से कहती हे आज किसके ऊपर मुसीबत आ गई है भगवान व्‍याकुल होकर कहते हैं मैं तुम्‍हे क्‍या बताऊं रूखमणी आज मेरी बहन द्रौपदी मुझे पुकार रही है द्रौपदी के ऊपर संकट आ गई है आज द्रौपदी का भरे समाज में चीर खीचा रहा है, रूखमणी, तब माता रूखमणी कहती है तो जल्‍दी क्‍यों देरी कर रहे हैं, तो फिर भगवान कहते हैं रूखमणी अभी देवी द्रौपदी मेरे ऊपर समर्पित नहीं हुई है अभी उसने दोनों हाथों में आंचल पकड़ रखा है और मुझे जाना भी जरूरी है रूखमणी क्‍योंकि एक समय का देवी द्रौपदी का मुझ पर  चीर ऋण है बताया है रागी भाई कि एक समय भगवान की ऊंगली कट गई थी और ऊंगली से खून बह रहा था सोलह हजार एक सौ आठ रानियों से भगवान कहते हैं कि मेरी ऊंगली कट गई है इसमें बांधने के लिए कोई कपड़ा दो रानियां रनिवास में जाकर कपड़ा ढूंढती हैं उस और दिन द्रौपदी नयी साड़ी पहनकर बैठी थी सवा लाख की साड़ी पहनी हुई थी, भगवान जाकर कहते हैं पांचाली ऊंगली कट गई है इसमें बांधने के लिए कोई  कपड़ा दे दो बहन, द्रौपदी देखती है भगवान की ऊंगली कट गई माता द्रौपदी अपनी साड़ी को फाड़ती है और साड़ी फाड़कर भगवान की ऊंगली में बांधती है तो भगवान कहते हैं मांग द्रौपदी मांग उस दिन द्रौपदी ने कहा था प्रभु आपका दिया हुआ मेरे पास सभी कुछ है मेरे पास किसी चीज की कोई कमी नहीं है, किसी दिन कि‍सी समय मेरे ऊपर मुसीबत आएगी तो आकर मेरी लाज बचा लेना भगवान ने कहा रूखमणी उसी दिन से मैं द्रौपदी चीर का ऋणी हूं और आज मुझे जाना पड़ रहा है माता द्रौपदी आखिर में दोनों हाथों से कपड़े को छोड़ देती है, दु:शासन द्रौपदी के चीर खीचते हैं और द्रौपदी आंखें मूंदकर भगवान से कहती हैं ‘’विपति हरो हरि मेरी बंधन छोड़ो बंधीछोड़, ’विपति हरो हरि मेरी बंधन छोड़ो बंधीछोड़, आपको को छोड़कर हरि जी कोई नहीं है मेरा, आपको को छोड़कर हरि जी कोई नहीं है मेरा ।   

 

      

रागी

’’बिपति हरव हरि मोर बंधना छोड़व बंधीछोर, ’बिपति हरव हरि मोर बंधना छोड़व बंधीछोर, तुंहर छोड़ के हरि जी कोनो नईए मोर, तुंहर छोड़ के हरि जी कोनो नईए मोर’’।  

रागी

‘’विपति हरो हरि मेरी बंधन छोड़ो बंधीछोड़, ’विपति हरो हरि मेरी बंधन छोड़ो बंधीछोड़, आपको को छोड़कर हरि जी कोई नहीं है मेरा, आपको को छोड़कर हरि जी कोई नहीं है मेरा’’।         

 

 

प्रभा

मोह माया में फंसे हो जईैसे फंसे हे गुड़ म माछी।

प्रभा

मोह माया में फंसे हो जैसे फंसे है गुड़ में मक्‍खी।

 

 

रागी

मोह माया में फंसे हो जईसे फंसे हे गुड़ म माछी।

रागी

मोह माया में फंसे हो जैसे फंसे हैं गुड़ में मक्‍खी।

 

 

प्रभा

चारो मुड़ा अंधियार दिखत हे पथरागे मोर आंखी।

प्रभा

चारो दिशाओं में  अंधेरा दिखता हे पथरा गई मेरी आंखें।

 

 

रागी

चारो मुड़ा अंधियार दिखत हे पथरागे मोर आंखी।

रागी

चारो दिशाओं में  अंधेरा दिखता हे पथरा गई मेरी आंखें।

 

 

प्रभा

’’बिपति हरव हरि मोर बंधना छोड़व बंधीछोर, ’बिपति हरव हरि मोर बंधना छोड़व बंधीछोर, तुंहर छोड़ के हरि जी कोनो नईए मोर, तुंहर छोड़ के हरि जी कोनो नईए मोर’’ द्रौपदी चिल्‍लाय हे बचाव बचाव, द्वारकानाथ ‘’जय जय मधुसुदन कुंज बिहारी तब जय जय जय गोवर्धनधारी तब भगत हे भवसागर गोसाई तब राखहु मोहि पुत्र भर नाई, यदु जय यदुनंदन मुनिजन बंदन तब जय जय जय दुष्‍ट निकंदन अउ दो कर जो कृष्‍ण कर आगे अज दो कर जोरि कृष्‍ण कर आगे तब करत बिनय द्रुप्रद सुत नाई’’ मां द्रौपदी चिल्‍लात हे बचाव द्रौपदी के पुकार ल सुन के भगवान बांके बिहारी द्वारका से दौड़थे अउ दौड़ के हस्तिना नगर में आथे अउ हस्तिना नगर में आके ‘’वसन रूप धरेउ भगवाना’’ भगवान तुरंत वसन रूप ले लेथे दु:शासन जब खीचत हे द्रौपदी के चीर रागी भैया हरा रंग साड़ी आथे ओमा नीला रंग किनारी हे नीला रंग के साड़ी आथे ओमा पीला रंग किनारी हे नीला रंग साड़ी आथे पीला रंग किनारी हे द्रौपदी चक्र के समान घूमत हे साड़ी के ढेर लगे हे देखने वाले मन अवाक, देखईया मन एक दूसरा ल काहत हे भैया ‘’अरे हरा रंग साड़ी है नीला रंग किनारी है, और नीली रंग साड़ी है तो पीली रंग किनारी है नारी पर साड़ी है कि साड़ी पर नारी है साड़ी पर नारी है कि नारी पर साड़ी है तो दोनों मध्‍य एक कृष्‍ण मुरारी है’’।

प्रभा

’’विपति हरो हरि मेरी बंधन छोड़ो बंधीछोड़, ’विपति हरो हरि मेरी बंधन छोड़ो बंधीछोड़, आपको को छोड़कर हरि जी कोई नहीं है मेरा, आपको को छोड़कर हरि जी कोई नहीं है मेरा, आपको को छोड़कर हरि जी कोई नहीं है मेरा’’ द्रौपदी चिल्‍लाती है बचाओ बचाओ, द्वारिकानाथ ‘’जय जय मधुसुदन कुंज बिहारी तब जय जय जय गोवर्धनधारी जब भक्‍त भवसागर में फंसा हो तब आप मेरे कुल की रक्षा करना प्रभु, यदु जय यदुनंदन मुनिजन बंदन तब जय जय जय दुष्‍ट निकंदन और दोनों हाथ जोंड़कर श्री कृष्‍ण मैं आपसे विनती कर रही हूं, मैं द्रुप्रद सुत आपसे विनती कर रही हूं’’ मां द्रौपदी चिल्‍लाती है   बचाओ द्रौपदी की पुकार को सुनकर भगवान बांके बिहारी द्वारिका से दौड़ते और दौड़कर हस्तिना नगर में आते हैं और हस्तिना नगर में आकर ‘’वस्‍त्र रूप धारण करते हैं भगवान’’ भगवान तुरंत वस्‍त्र रूप ले लेते हैं जब दु:शासन द्रौपदी के चीर खीचता है रागी भैया तो हरे रंग की साड़ी आती है उसमें नीले रंग की किनारी है नीले रंग की साड़ी आती है उसमें पीले रंग की किनारी है द्रौपदी चक्र के समान घूमती है साडि़यों के ढेर लग गई है देखने वाले सारे अवाक है, देखने वाले लोग एक दूसरे से कहते हैं भैया ‘’अरे हरा रंग साड़ी है नीला रंग किनारी है, और नीली रंग साड़ी है तो पीली रंग किनारी है नारी पर साड़ी है कि साड़ी पर नारी है साड़ी पर नारी है कि नारी पर साड़ी है तो दोनों के मध्‍य एक कृष्‍ण मुरारी है’’।

 

 

रागी

जय हो जय हो।

रागी

जय हो जय हो।

 

 

प्रभा

रागी भैया ‘’चाह करे बैरी प्रबल जो सहाय यदुवीर दस हजार गज बल धरउ तब धरउ दस बल गज’’ दु:शासन के भुजा में दस हजार हाथी के बल हे भुजा के बल घटते हैं पर देवी द्रोपदी के चीर नई घटत हे उही समय में फिर राजा धृतराष्‍ट्र आथे अउ आके कहे अरे दुर्योधन क्षत्रीय के कुल में जनम ले हस पर क्षत्रीय के धरम नई जानेस ‘’अरे उच्‍च निवास नीच कर तुति अरे देखि ना सकई पराई विभुति’’ राजा धृतराष्‍ट्र कहे द्रौपदी मांग त द्रौपदी काहत हे पिता जी पहला में मोर पांचो पति दास भाव से मुक्‍त कर दे दूसरा में अस्‍त्र शस्‍त्र ल दे अउ तीसर म उंखर पोशाक ल दे दे राजा कथे द्रौपदी मैं इंद्रप्रस्‍थ के राजलक्ष्‍मी ल वापस कर देंव बोले जाके राज भोगो अतका ल सुनिस तहान द्रोपदी काहत हे ‘’सांवरिया बर अउ मन लागे का ग मनमोहना बर मन लग जाए, ’सांवरिया बर अउ मन लागे का ग मनमोहना बर मन लग जाए’’।

प्रभा

रागी भैया ‘’चाहे बैरी कितना भी प्रबल हो जिसके सहायक श्री कृष्‍ण हो दस हजार गज बल दस गज के  के बराबर भी नहीं रहता’’ दु:शासन की भुजा में दस हजार हाथियों के बल हैं उसकी भुजाओं के बल घटते हैं पर देवी द्रोपदी के चीर नहीं घटते हैं, उसी समय में फिर राजा धृतराष्‍ट्र आते हैं और आकर कहते हैं कि अरे दुर्योधन क्षत्रीय के कुल में जन्‍म लिए हो पर क्षत्रीय का धर्म नहीं जानते हो ‘’अरे उच्‍च निवास नीच कर तुति अरे देखि ना सकई पराई विभुति’’ राजा धृतराष्‍ट्र कहते हैं द्रौपदी मांगों तो द्रौपदी कहती है पिताजी सबसे पहले मेरे पांचो पतियों को दास भाव से मुक्‍त कर दो दूसरा उनके अस्‍त्र शस्‍त्र  दे दो और तीसरा उनकी पोशाकें दे दो राजा कहते हैं द्रौपदी मैंने इंद्रप्रस्‍थ की राजलक्ष्‍मी वापस कर दी बोले जाओ और जाकर राज भोगो इतना सुनकर दौपदी कहती है ‘’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे और मन मोहन में मन लगा रहे, ’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे और मन मोहन में मन लगा रहे’’।

 

 

रागी

’सांवरिया बर अउ मन लागे का ग मनमोहना बर मन लग जाए, ’सांवरिया बर अउ मन लागे का ग मनमोहना बर मन लग जाए।

रागी

’’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे और मन मोहन में मन लगा रहे, ’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे और मन मोहन में मन लगा रहे’’।  

 

 

प्रभा

राजा बईठे हे उदास हो सांवरिया बर मन लग जाए, जा बईठे हे उदास हो सांवरिया बर मन लग जाए।

प्रभा

राजा बैठे हैं उदास जी ’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे और मन मोहन में मन लगा रहे’’।

 

 

रागी

राजा बईठे हे उदास हो सांवरिया बर मन लग जाए।

रागी

राजा बैठे हैं उदास जी ’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे।

 

 

प्रभा

दिन दयाल विपत संभारी सांवरिया बर मन लग जाए, हरहु नाथ मोर संकट भारी सांवरिया बर मन लग जाए, राधा बईठे हे उदास हो सांवरिया बर मन जग जाए।

प्रभा

हे दिन दयाल मेरी इस भारी संकट को आकर हर लीजिए ’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे, हे नाथ मेरी भारी संकट को हर लीजिए ’श्री कृष्‍ण में मन लगा रहे, राधा बैठी है उदास जी ’श्री कृष्‍ण में मन लग जाए।

 

 

रागी

राधा बईठे हे उदास हो सांवरिया बर मन जग जाए।

रागी

राधा बैठी है उदास जी ’श्री कृष्‍ण में मन लग जाए।

 

 

प्रभा

इंद्रप्रस्‍थ के राज पाके पांचो भैया पांडव कौरव के समाज से विदा लेथे अउ विदा लेके बाद पांचो पांडव इंद्रप्रस्‍थ जाय के तैयारी करत हे,  बोल बृन्‍दाबन बिहारी लाल की जय।

प्रभा

इंद्रप्रस्‍थ का राज पाकर पांचो भैया पांडव कौरव के समाज से विदा लेते हैं और विदा लेने के बाद पांचो पांडव इंद्रप्रस्‍थ जाने की तैयारी करते हैं, बोल वृन्‍दावन बिहारी लाल की जय।

 

 

रागी

जय।

रागी

जय।

 

 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and archaeology, Government of Chhattisgarh to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.